सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Monday, May 31, 2010

Man will get his full reward tomorrow . कर्म के लिए आज है, फल के लिए कल

कर्म के लिए आज है, फल के लिए कल दुनिया को इनसान ने नहीं बनाया है और न ही यह कायनात इनसान के नियम-क़ानून की पाबन्द है।दुनिया को मालिक ने बनाया है और इनसान को भी। हर चीज़ उसी के ठहराए हुए नियमों का पालन करती है और खुद इनसान भी।आने वाले कल की चिन्ता और मिलने फल की फ़िक्र का नियम भी उसी मालिक ने निश्चित किया है। यही चिन्ता इनसान को कुछ करने की प्रेरणा देती है। इनसान दुनिया में जीता है और अच्छे या बुरे कर्म करता है और एक दिन मर जाता है। अपने अच्छे या बुरे कर्मों के फल निकलते हुए देखने के लिए और उन्हें भोगने के लिए वह यहां नहीं होता।
वन तस्कर जंगल में अवैध रूप से अंधाधुंध लकड़ी काटते हैं और उसकी तस्करी करके मोटा मुनाफ़ा कमाते हैं। वे उसे अधिकारियों और नेताओं के साथ मिल बांट कर खाते हैं। इसलिये वे कभी पकड़े नहीं जाते। इसके नतीजे में पर्यावरण बिगड़ता है। धरती का तापमान बढ़ता है, समय पर बारिश नहीं होती, फ़सलें मारी जाती हैं, महंगाई बढ़ती है, किसान-मज़दूर संघर्ष करते हैं, सरकार इनका दमन करती है और बहुत से ग़रीब लोग मारे जाते हैं लेकिन इन मरने वालों में कोई भी वन तस्कर नहीं होता।
इतनी बड़ी तबाहियों के ज़िम्मेदार लोग फ़ाइव स्टार होटलों में ऐश उड़ाते हैं और जब मरते हैं तब भी उनका इलाज ‘फ़ाइव स्टार हॉस्पिटल‘ में ही चल रहा होता है।
लोग उन्हें शान से मरता हुआ देखकर सोचते हैं कि इनसान पाप और बेईमानी का फल भोगने से बच भी सकता है। वे समझते हैं कि दुनिया महज़ एक इत्तेफ़ाक़ी हादसा है। मरना और जीना समय का गुज़रना है और ईश्वर केवल कमज़ोर मन का वहम है। जबकि सच यह है कि जैसे दुनिया में पेड़ का फल खाने के लिए इनसान को कल तक इन्तेज़ार करना पड़ता है, ठीक वैसे ही इनसान का यह लौकिक जीवन ‘आज‘ है और मौत के बाद का समय उसके लिए ‘कल‘ है । जहां उसके लिए उसके कर्मों का फल सुरक्षित है।यह जीवन और जगत कर्मों का पूरा फल भोगने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसीलिए कर्मों के फल भोगने के लिए मालिक ने परलोक बनाया है।
जीवन सत्य है और मौत निश्चित है। आत्मा अमर है और परलोक इसका ठिकाना है। फल देने वाला ईश्वर है और वह इनसान के हर कर्म का स्वयं साक्षी और गवाह है। अब जो आदमी चाहता हो कि उसे कल अच्छा फल मिले तो उसे आज मालिक की मर्ज़ी के मुताबिक़ अच्छे काम करने चाहियें। आने वाले कल में मिलने वाले फल की चिंता उसे ‘आज‘ करनी होगी। यही चिंता उसके चरित्र को निखारेगी, उसके कर्म को सुधारेगी और उसे मालिक के कोप से बचाएगी। यही दुनिया का दस्तूर है, यही मालिक का नियम है।
ऐ ईमान वालो! परमेश्वर का डर (तक़वा) इख्तियार करो और हर आदमी को देखना चाहिये कि उसने आने वाले कल के लिए आगे क्या भेजा है ? और डरो परमेश्वर से निस्संदेह परमेश्वर को उन तमाम कामों की ख़बर है जो तुम करते हो । पवित्र कुरआन, 59, 18

Sunday, May 30, 2010

Fruit n work हरेक आदमी को चाहिए कि वह पहले फल की चिन्ता करे ताकि उसका काम फलप्रद हो।

ऐ ईमान वालो! परमेश्वर का डर (तक़वा) इख्तियार करो और हर आदमी को देखना चाहिये कि उसने आने वाले कल के लिए आगे क्या भेजा है ? और डरो परमेश्वर से निस्संदेह परमेश्वर को उन तमाम कामों की ख़बर है जो तुम करते हो । पवित्र कुरआन, 59, 18
आदमी का स्वभाव है कि वह काम का अंजाम चाहता है। परमेश्वर ने उसे उसके स्वभाव के अनुसार ही शिक्षा दी है कि हरेक आदमी को चाहिए कि वह पहले फल की चिन्ता करे ताकि उसका काम फलप्रद हो। जो भी उपदेशक आदमी को फल से बेफ़िक्र करता है दरअस्ल वह उसका दिल काम से ही उचाट कर देता है।

आज दुनिया में जितने भी प्रोजेक्ट चल रहे हैं उनमें काम करने वाले उनको फलित होते देखकर और भी ज़्यादा मेहनत से उसे पूरा करने के लिए जुट जाते हैं। आदमी पेड़ लगाता है फल के लिए , लेकिन अगर उसे फल की चिन्ता से ही मुक्त कर दिया जाए तो फिर वह पेड़ ही क्यों लगाएगा ?
आदमी पेड़ लगाते समय उसकी नस्ल भी देखता है कि कौन सी नस्ल का पेड़ अच्छा और ज़्यादा फल देगा ?
सारी कृषि की उन्नति का आधार ही फल की चिन्ता पर टिका है।
आदमी अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में प्रवेश दिलाता है और फिर साल गुज़रने पर वह देखता है कि उसके बच्चे ने जो मेहनत की उसका फल उसे क्या मिला ?
बेहतर फल के लिए ही आदमी अपने बच्चों को शिक्षा दिलाता है। इनसान नेकी का भी फल चाहता है। लेकिन कभी तो यह फल उसके जीते जी उसे मिल जाता है लेकिन कभी उसे इस जीवन में उसकी नेकी का फल नहीं मिल पाता।बुरा इनसान अपने बुरे कामों का फल नहीं भोगना चाहता, लेकिन फिर भी उसके बुरे कामों का बुरा नतीजा उसे इसी जीवन में भोगना पड़ता है लेकिन कभी वह बिना उसे भोगे ही मर जाता है।फल मिलना स्वाभाविक है। फल देने वाला ईश्वर है। आपके ‘फल की चिन्ता‘ से मुक्त होने की वजह से न तो वह अपनी कायनात का उसूल बदलेगा और न ही इनसानी समाज आज तक कभी फल की चिन्ता से मुक्त हुआ है और न ही कभी हो सकता है।

इसलाम कहता है कि जो भी करो उसे करने से पहले उसके ‘फल की चिन्ता‘ ज़रूर करो।
आप क्या कहते हैं ?

Saturday, May 29, 2010

Ved and Quran have same message "एक हैं वेद व कुरआन,दोनों में ही इंसानियत और भाईचारे की बात कही गई है।"

जयपुर। वेद और कुरआन एक हैं। दोनों में ही ईश्वर को अजन्मा, अविनाशी व निराकार कहा गया है। यह बात रविवार को जमात-ए-इस्लामी हिन्द की ओर से कुरआन सबके लिए अभियान के तहत आयोजित कुरआन कॉन्फ्रेन्स में कानपुर के स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य ने बताई। स्वामी ने कहा कि वेद, उपनिषद व गीता की तरह कुरआन में भी बहुदेववाद का घोर विरोध किया गया है। कार्यक्रम के अध्यक्ष जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सैयद जलालुद्दीन उमरी ने कहा कि कुरआन मंजिल पर पहंुचाने वाला है। संगठन के प्रदेशाध्यक्ष इंजीनियर मोहम्मद सलीम ने कहा कि कुरआन सारी मानव जाति के लिए ईश्वर की ओर से मार्गदर्शन है। जमात के केन्द्रीय सचिव मोहम्मद इकबाल मुल्ला, राजस्थान मुस्लिम फोरम के संयोजक कारी मोईनुद्दीन, सद्भाव मंच के संयोजक सवाई सिंह, राजस्थान अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष जसबीर सिंह, लेखक इकराम राजस्थानी ने कुरआन के कुछ अंशों के भावार्थ पेश किए। कार्यक्रम का आरम्भ कारी मोहम्मद यूसुफ के तिलावते कुरआन से हुआ।
छात्रा इरम इकबाल का गीत "कुरआन सबके लिए..." लोगों ने काफी पसन्द किया। कुरआन के हिन्दी अनुवादक मौलाना मोहम्मद फारूख खां सोमवार को अपराह्न 3 बजे मालवीय नगर स्थित प्राकृत भारती अकादमी में आयोजित कुरआन प्रवचन देंगे।
http://www.patrika.com/news.aspx?id=210882
एक सच्चे संत के सन्देश को आम जनता के सामने लाने के लिए .
फोटो : सलीम खान साहिब स्वामी श्री लक्ष्मी शंकराचार्य जी के साथ .

Friday, May 28, 2010

Adam's family सारी मानवजाति एक परिवार है .

सारी मानवजाति एक परिवार है . उसका पैदा करने वाला भी एक है और उसके माता पिता भी एक ही हैं . ऊंच नीच का आधार रंग नस्ल भाषा और देश नहीं बल्कि तक़वा है. जो इन्सान जितना ज्यादा ईश्वरीय अनुशासन का पाबंद है और लोकहितकारी है वो उतना ही ऊंचा है और जो इसके जितना ज़्यादा खिलाफ अमल करता है वो उतना ही ज़्यादा नीच है .

Thursday, May 27, 2010

Countless blessings of God हे मानव! दयालु दाता को छोड़कर तू किसके सामने अपनी झोली फैला रहा है और किसे शीश नवा रहा है ?

आरम्भ अल्लाह के नाम से जो अत्यन्त दयालु सदा कृपाशील है ।
आ गया परमेश्वर का आदेश, सो उस (प्रलय और प्रकोप) की जल्दी न करो। वह पवित्र और महान है उससे जिसको वे साझीदार ठहराते हैं।
वह फ़रिश्तों को रूह के साथ अपने हुक्म से अपने बन्दों में से जिस पर चाहता है उतारता है कि लोगों को ख़बरदार कर दो कि मेरे सिवा कोई ‘इलाह‘ (उपास्य,सृष्टा,विधाता) नहीं, सो तुम मुझसे डरो।
उसने आसमानों और ज़मीन को सत्य के साथ पैदा किया है, वह महान है उस साझेदारी से जो वे कर रहे हैं।
उसने इनसान को वीर्य से उत्पन्न किया। फिर वह (उपकार भुलाकर धर्म प्रचारक से) खुल्लम खुल्लम झगड़ने लगा।
और उसने चौपायों को बनाया उनमें तुम्हारे लिए लिबास भी है और खुराक भी और दूसरे फ़ायदे भी, और उनमें से खाते भी हो। और उनमें तुम्हारे लिए रौनक़ है जबकि शाम के समय उनको लाते हो और सुबह के समय छोड़ते हो। और वे तुम्हारे बोझ ऐसी जगहों तक पहुंचाते हैं जहां तुम सख्त मेहनत के बिना नहीं पहुंच सकते थे। निस्संदेह तुम्हारा पालनहार बड़ा प्रजा वत्सल, दयालु है।
और उसने घोड़े,ख़च्चर और गधे पैदा किये ताकि तुम उनपर सवार हो और शोभा के लिए भी और वह ऐसी चीज़ें पैदा करता है जिन्हें तुम नहीं जानते।
और परमेश्वर तक पहुंचती है सीधी राह और कुछ राहें टेढ़ी भी हैं और अगर परमेश्वर चाहता तो तुम सबको (एक ही मार्ग की) प्रेरणा दे देता।वही है जिसने ऊपर से पानी उतारा तुम उसमें से पीते हो और उसी से पेड़ होते हैं जिनमें तुम चराते हो। वह उसी से तुम्हारे लिए खेती और ज़ैतून और खजूर और अंगूर और हर क़िस्म के फल उगाता है।
और उसने तुम्हारे काम में लगा दिया रात को और दिन को और सूरज को और चांद को और सितारे भी उसके हुक्म से वशीभूत हैं, निस्संदेह इसमें निशानियां हैं बुद्धिजीवियों के लिए। और ज़मीन में जो चीज़ें मुख्तलिफ़ क़िस्म की तुम्हारे लिए फैलाईं, निस्संदेह इसमें निशानी है उन लोगों के लिए जो (घटनाओं को देखकर) सबक़ हासिल करें।
और वही है जिसने समुद्र को तुम्हारी सेवा में लगा दिया ताकि तुम उसमें से (मछली आदि का) ताज़ा मांस खाओ और उससे आभूषण निकालो जिसको तुम पहनते हो और तुम नौकाओं को देखते हो कि उसमें चीरती हुई चलती हैं और ताकि तुम उसका फ़ज़्ल तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो।
और उसने ज़मीन में पहाड़ रख दिये ताकि वह तुमको लेकर डगमगाने न लगे और उसने नहरें और रास्ते बनाए ताकि तुम राह पाओ। और दूसरे बहुत से चिन्ह भी हैं और लोग तारों से भी रास्ता मालूम कर लेते हैं।
फिर क्या जो पैदा करता है वह उसके बराबर है जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकता, क्या तुम सोचते-विचारते नहीं ?
अगर तुम परमेश्वर की भेंट-उपहारों को गिनो तो तुम उनको गिन न सकोगे। निस्संदेह परमेश्वर क्षमाशील दयावान है।
-पवित्र कुरआन, सूरह ए नहल,1-18

Wednesday, May 26, 2010

Vibha Rani said- जो सनातन धर्म के नाम पर बेटी की इच्छा का अनादर करते हैं.मुझे ऐसे मां बाप और ऐसी पूजा इबादत से सख्त ऐतराज़ है.

दयालु पालनहार कहता है -
‘और अगर वे दोनों तुझपर ज़ोर डालें कि तू मेरे साथ ऐसी चीज़ को शरीक ठहराए जो तुझको मालूम नहीं तो उनकी बात न मानना, और दुनिया में उनके साथ नेक बर्ताव करना और तुम उस शख्स के रास्ते की पैरवी करना जिसने मेरी तरफ़ रूजू किया है, फिर तुम सबको मेरे पास आना है, फिर मैं तुमको बता दूंगा जो कुछ तुम करते रहे। -सूरह ए लुक़मान,15
मां-बाप का फ़र्ज़ औलाद की सही परवरिश करना है, उसे सही-ग़लत की तमीज़ सिखाना है ताकि वह सही रास्ते पर चले और अपना, अपने परिवार का और समाज का भला कर सके, लेकिन अगर मां-बाप सही-ग़लत का भेद ठीक से न समझते हों और वे अपनी औलाद को भी पूर्वजों की परम्परा के नाम पर ग़लत शिक्षा दें तो औलाद को चाहिये कि उनकी ग़लत बात को न माने और उस आदमी का अनुसरण करें जिसे सही-ग़लत का सच्चा बोध हो और वह एक परमेश्वर के प्रति पूरी निष्ठा के साथ समर्पित हो। मान्यताओं के अन्तर के बावजूद औलाद पर अपने मां-बाप के साथ ‘नेक बर्ताव‘ करना अनिवार्य है। आखि़रकार हरेक आदमी को लौटकर अपने मालिक के पास ही जाना है और तब हरेक जान लेगा कि जगत का सच्चा शासक केवल एक परमेश्वर है और कोई भी उसके वुजूद या उसके किसी भी गुण में न तो साझीदार है और न ही सहायक।
जगत भी उसका है और उसी की योजना और आदेश इसमें क्रियान्वित है। जो भी अपने जीवन को उसकी योजना के अनुसार गुज़ारेगा वह खुद को सदा के नर्क से बचा लेगा और जो शक में रहेगा तो वह समय भी आएगा जब वह खुद को नर्क की धधकती आग में पाएगा। तब वह जान लेगा कि जिस नर्क को वह जीवन भर झूठ या अलंकार समझता रहा था वह सचमुच मौजूद है।जो लोग में नर्क में जलने-बसने के पात्र हैं उनकी हद से बढ़ी हिर्स ओ हवस ने इस दुनिया में भी तरह तरह की आग भड़काकर इसे भी नर्क का नमूना बनाकर रख दिया है। ग्लोबल वॉर्मिंग मानवता के इन्हीं दुश्मनों की देन है। दूसरों का हक़ हराम तरीक़े से डकारने वाले इन झूठों के फ़रेब को पहचानना भी कल्याण की अनिवार्य शर्त है।बेहतर बात बताना मां-बाप के फ़र्ज़ में दाखि़ल है लेकिन अगर की सत्य और न्याय की बेहतर समझ रखती है तो फिर अपने मां-बाप को सही बात बताना उनकी ज़िम्मेदारी है।
क्या आप जानते हैं कि वह कौन सा मूल सत्य है जिस पर सारी सच्चाईयों का दारोमदार है ?
ईसा मसीह अलैहिस्सलाम की पवित्र वाणी में देखिए-
एक धर्मशास्त्री आया। उसने उन्हें वाद-विवाद करते सुना। उसने देखा कि यीशु ने उन्हें अच्छा उत्तर दिया है। उसने यीशु से पूछा, ‘‘सब से महत्वपूर्ण आज्ञा कौन सी है? ‘‘यीशु ने उत्तर दिया, ‘‘सब आज्ञाओं में से यह मुख्य हैः ‘हे इस्राएल सुन, हमारा प्रभु परमेश्वर एक ही प्रभु है। तू अपनी सारी शक्ति से प्रेम करना।‘ और दूसरी यह है, ‘तू अपने पड़ौसी से अपने समान प्रेम करना।‘ इससे बड़ी और कोई आज्ञा नहीं है।‘‘ -नया नियम, मरकुस, 12 : 28-31

बेशक मां-बाप अपने बच्चों की भलाई चाहते हैं, मगर जब मां-बाप अपने झूठे
मान-प्रतिष्ठा को अपना ज़ाती सवाल बता कर बच्चों की इच्छाओं को ताक पर रखने लग जाएं,
तब ऐसे मां बाप के इन विचारों का विरोध होना ही चाहिये. ताज़ातरीन उदाहरण निरुपमा
पाठक का है, जो सनातन धर्म के नाम पर बेटी की इच्छा का अनादर करते हैं. निरुपमा की
मौत को हम अगर मां बाप की पूजा के बर अक्स रखें तो माफ करें, मुझे ऐसे मां बाप और
ऐसी पूजा इबादत से सख्त ऐतराज़ है.
पवित्र कुरआन अपने पाठकों से खुद बात करता है और उन्हें उनकी समस्याओं का सच्चा और स्थायी समाधान देता है, जैसा कि आपने देखा कि बहन विभा के मन में सूरह ए लुक़मान की 14वीं आयत को पढ़ते समय जो प्रश्न पैदा हुआ उसका उत्तर ठीक वहीं यानि 15वीं आयत में मौजूद है।

Tuesday, May 25, 2010

Obey your parents अपने पिता और माता का आदर करना

दयालु परमेश्वर कहता है -
और हमने इनसान को उसके मां बाप के मामले में ताकीद की, उसकी मां ने दुख उठाकर उसको पेट में रखा और दो बरस मे उसका दूध छुड़ाना हुआ कि तू मेरा शुक्र कर और अपने मां बाप का , मेरी ही तरफ़ लौट कर आना है ।
-सूरह ए लुक़मान, 14
ईसा मसीह अलैहिस्सलाम का कथन भी देखिये -
यहूदियों के किसी अगुवे ने यीशु से पूछा, ‘‘हे उत्तम गुरू, अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिये मैं क्या करूं ?‘‘यीशु ने उत्तर दिया, ‘‘तुम मुझे उत्तम क्यों कहते हो ? कोई उत्तम नहीं केवल एक, अर्थात परमेश्वर ही उत्तम है । तुम आज्ञाओं को तो जानते ही होगे : ‘व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, अपने पिता और माता का आदर करना ।‘ -लूका, 18-20
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रचनाएं अपने रचनाकार का परिचय कराती हैं । हर चीज़ परमेश्वर की रचना है । हरेक चीज़ से उस परमेश्वर के गुण झलक रहे हैं । उसके गुणों की बेहतरीन झलक ‘मां बाप‘ में नज़र आती है । जो परमेश्वर को पाना चाहे उसे अपने मां-बाप को पा लेना चाहिए। मां बाप को पाना, उनकी सेवा करना, उनकी बात मानना और उन्हें राज़ी कर लेना आसान है। मां-बाप की रज़ा में ही ख़ुदा की रज़ा है।
खुदा को पा लेना, उसकी रज़ा को पा लेना सहज सरल है। परमेश्वर ने इनसान के लिए हर वह चीज़ पाना आसान बनाया है जिसपर उसके जीवन का दारोमदार है जैसे कि हवा, रौशनी वग़ैरह।इनसान केवल शरीर ही नहीं है उसके अन्दर मन भी है। मन में कुछ उमंगें, सपने और आशाएं भी हैं। इनसान ज्यों ज्यों बचपन से जवानी और फिर बुढ़ापे की तरफ़ बढ़ता है उसकी उमंगें एक एक करके दम तोड़ने लगती हैं। उसके ज़्यादातर सपने हक़ीक़त की ज़मीन से टकराकर चूर चूर हो जाते हैं। इस सबके बावजूद वह जीता है क्योंकि उसके मन में एक आस अभी तक ज़िन्दा होती है। यह आस उसे ख़ुद से या समाज से नहीं बल्कि अपने पैदा करने वाले से होती है। अपने मां बाप के रूप में वह उसका जलवा देख चुका होता है कि उसने उनसे जब जो मांगा वह उसे मिला, फ़ौरन मिला या कुछ समय बाद मिला। ईश्वर से भी मनुष्य को यह उम्मीद होती है कि वह उसकी ख्वाहिशें पूरी करेगा, उसका कल्याण करेगा। कुछ लोगों ने समझा कि ईश्वर को पाने के लिए मां-बाप और समाज को छोड़कर कठिन तपस्या करना ज़रूरी है और वे मां-बाप को छोड़कर निकल गए। उन्होंने सहज सुलभ को दुर्लभ बना डाला, खुद के लिए भी और सारे समाज के लिए भी , जबकि वे तो मंज़िल पर ही खड़े थे लेकिन उन्हें ‘बोध‘ न था।उस दयालु मालिक ने हरेक को उसकी मंज़िल के दरवाज़े पर ही पैदा किया है और उसका कल्याण मां-बाप के हुक्म को मानने में ही रख दिया है। मां-बाप हमेशा बच्चे की भलाई चाहते हैं और सही बात बताते हैं। वे रचे भी गए हैं इसी मक़सद के लिए। हरेक रचना अपना मक़सद पूरा कर रही है और अपने रचयिता का परिचय दे रही है क्योंकि रचनाएं अपने रचनाकार का परिचय देती हैं।

Monday, May 24, 2010

Mother ख़ाक जन्नत है इसके क़दमों की सोच फिर कितनी क़ीमती है मां ?


मां


ज़िन्दगी भर मगर हंसी है मां

दिल है ख़ुश्बू है रौशनी है मां

अपने बच्चों की ज़िन्दगी है मां

ख़ाक जन्नत है इसके क़दमों की

सोच फिर कितनी क़ीमती है मां

इसकी क़ीमत वही बताएगा

दोस्तो ! जिसकी मर गई है मां

रात आए तो ऐसा लगता है

चांद से जैसे झांकती है मां

सारे बच्चों से मां नहीं पलती

सारे बच्चों को पालती है मां

कौन अहसां तेरा उतारेगा

एक दिन तेरा एक सदी है मां

आओ ‘क़ासिम‘ मेरा क़लम चूमो

इन दिनों मेरी शायरी है मां

जनाब क़ासिम नक़वी साहब की पैदाइश ज़िला बुलन्दशहर के क़स्बा शिकारपुर से है । आपकी सुसराल मेरे पास के ज़िले ख़ास मुज़फ़्फ़रनगर में है और वे रहते अलीगढ़ में हैं । वे नौजवान हैं और उर्दू अदब की एक बेनज़ीर शख्सियत हैं । मैं एडिशनल एस पी साहब के आफ़िस में बैठा हुआ था कि वे आ गये और मुझे इन्वाइट करते हुए बोले कि 13 जून को उनकी बहन का निकाह है और मुझे आना है । खुद उनके निकाह में मैं बहुत दूर से मशक्क़त उठाकर पहुंचा था सो जाना तो अब भी लाज़िमी है क्योंकि वे फ़न ए शायरी में मेरे उस्ताद हैं । मैंने ‘मां‘ पर उनके अशआर सुने थे तब से ही उन्हें नोट कर लेना चाहता था और वह मौक़ा मालिक ने आज बख्शा था ।मां के ताल्लुक़ से उनके कुछ अशआर ‘रवासी अदब‘ के भी हैं जिन्हें मैं भाई ज़ीशान की ख़ातिर लिखना चाहता था लेकिन उन्होंने मना कर दिया और बोले कि इसे आम फ़हम ही रहने दो । तभी उन्हें किसी ने बुला लिया और वे एस.एस.पी. साहब को इन्वाइट करने के लिए चले गए ।


मैं किस ज़िले का रहने वाला हूं ?

और मेरी मुलाक़ात जनाब क़ासिम साहब से किस ज़िले के पुलिस मुख्यालय में हुई?

यह एक ऐसी पहेली है जिसे कोई अपरिचित कभी हल नहीं कर सकता । हां Man कर सकता है क्योंकि वह मुझसे मिल चुका है ।

Sunday, May 23, 2010

डा. मीनाक्षी राना जैसे डाक्टरों की सलाह मानकर कितने ही लोग अपने होने वाले बच्चों को मात्र इस कारण से मार डालते हैं कि वे अपाहिज क्यों हैं ?अपने अपाहिज होने का ज़िम्मेदार गर्भ में पलने वाला मासूम बच्चा तो नहीं है न , तो फिर उसे किस जुर्म के बदले में क़त्ल किया जाता है ?
यह घिनौना जुर्म आज का सभ्य समाज अंजाम दे रहा है । लोग दुनिया के स्टैण्डर्ड और स्टेटस की ख़ातिर अपने ही हाथों अपने बच्चों को मार कर आधुनिक बनकर विदेशी धुनों पर थिरक रहे हैं । अगर इन्हें इनके पैदा करने वाले दयालु मालिक का कोई वचन सुनाकर नेकी की तालीम दी जाती है तो ये उस आदमी की अक्ल पर तरस खाते हुए सोचते हैं कि यह बेचारा वक्त के साथ न चल सका । ख़ैर मैंने डाक्टर साहिबा की सलाह रद्द कर दी और अपने ज़मीर से फ़त्वा लिया और फिर
‘अगर अब भी न जागे तो‘ के लेखक महोदय से भी दीनी हुक्म मालूम किया तो वहां से भी मेरे ज़मीर की ही तस्दीक़ हुई ।मेरी वाइफ़ के गर्भ में बच्चा बिना किसी मूवमेंट के पिछले 7 महीनों से पड़ा था । मैंने वैद्य जी नरेश गिरी को अपने घर पर आने के लिए कहा ।
वैद्य जी आयुर्वेद में सिद्धहस्त हैं । उनसे मेरे 7 साल पुराने संबंध हैं । वे एक पौराणिक मान्यताओं में जीने वाले सरल स्वभाव के इनसान हैं । मैं जिन बातों को धर्म के विरूद्ध और आडम्बर मानता हूं उनपर उनको हमेशा टोकता हूं । पहले पहल तो उन्हें काफ़ी नागवार लगा लेकिन अब वे मेरी बात पर प्रतिक्रियास्वरूप सिर्फ़ मुस्कुराते हैं । बहरहाल मान्यताओं का अन्तर और टोकाटाकी हमारे दरम्यान कभी दीवार नहीं बना क्योंकि हमारी बातचीत की बुनियाद हमेशा मुहब्बत ही रही है । मेरे बुलाने पर वे आये और नब्ज़ देखकर उन्होंने ‘गर्भचिन्तामणि रस‘ और ‘सारिवाद्यासव‘ प्रेस्क्राइब किया ।
इनके सेवन से बच्चे ने अगले ही दिन गर्भ में मूवमेंट करना आरम्भ कर दिया ।
यह आयुर्वेद का एक चमत्कार है , हमारे पूर्वजों की महानता का जीता जागता सुबूत है । यह हिन्दू-मुसलिम प्रेम और सहयोग की मिसाल है । यह वाक़या भारत के अद्भुत रंग रूप से भी परिचय कराता है । जो काम एक वैल सर्टिफ़ाइड ऐलोपैथ के लिए संभव न हो सका उसे उस आदमी ने कर दिखाया जिसे सरकारी काग़ज़ों में ‘झोलाछाप‘ कहा जाता है ।
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अपने वक़्त पर एक नन्ही सी बच्ची ने जन्म लिया. उसकी कमर पर एक बड़ा सा फोड़ा था . 'स्पाइना बिफिडा' इस बीमारी का नाम है.
एक महीने से भी कम वह ज़िंदा रही और फिर वह जन्नत का फूल बन गयी. उसकी मौत पर हिंदी ब्लॉग जगत  ने हमें जज्बाती सहारा भी दिया और दुआ देने वालों ने दुआएं भी दीं .
(यह अंश आज 20 मार्च 2011 को बढाया गया)

Saturday, May 22, 2010

Satanic activities पवित्र कुरआन की आयतों को साक्षात होते देख रहा है ब्लॉगिस्तान

114. सूरह ए नास

1. कह दो मैं इनसानों के रब की शरण में आया ।
2. मैं इनसानों के बादशाह की शरण में आया ।
3. मैं तमाम इनसानों के बादशाह के माबूद (उपास्य) की शरण में आया ।
4. वसवसा (बुरा ख़याल) डालकर छिप जाने वाले ख़न्नास (शैतान) के शर (उपद्रव) से बचने के लिए 5. जो लोगों के सीनों में वसवसा (बुरा ख़याल, वहम) डालता है ।
6. फिर वह जिन्नों में से हो या इनसानों में से।


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नेकी और बदी की जंग शुरू से ही जारी है । नेकी और सच्चाई के आम होने से झूठ और अंधविश्वास का ख़ात्मा होना निश्चित है । इनके ख़त्म होने से बहुत से ऐसे लोगों का वुजूद ही मिट जाएगा जिन्हें झूठ और अंधविश्वास के बल पर ही समाज में धन,पद और वैभव प्राप्त है । ऐसे लोग जब धर्म और सत्य के मुक़ाबले में स्वयं को निर्बल और तर्कहीन पाते हैं तो वे सत्य के प्रचारक को समाज की नज़रों में अविश्वसनीय बनाने की घृणित चाल चलते हैं ।
कल ब्लॉगिस्तान ने पवित्र कुरआन की आयतों को साक्षात होते हुए देखा । कल किसी दुर्जन ने मेरे फ़ोटो और मेरे नाम का ग़लत उपयोग करते हुए बहन फ़िरदौस को भी भरमाया और
महाजाल के पाठकों को भी चकराया नीचता की हद तो उसने तब की जब उसने मेरे ही ब्लॉग पर मेरे विचार और अभियान के खि़लाफ़ ही टिप्पणी कर डाली और यही आदमी मेरा फ़ालोअर भी बन गया ।
यह आदमी उर्दू नहीं जानता इसीलिये हर्फ़ ‘क़ाफ़‘ के बजाए ‘काफ़‘ का इस्तेमाल करता है ।उसका यह कर्म ‘वसवसा डालना‘ कहा जाएगा । वसवसे का मक़सद उपद्रव फैलाना होता है जो कि ‘ख़न्नास‘ अर्थात शैतान का मिशन है । इसका समाधान यह है कि पालनहार प्रभ की शरण पकड़ी जाए ।
ईश्वर दया, प्रेम, ज्ञान और उपकार आदि गुणों का स्रोत है और जो भी उसकी शरण में जाएगा उसमें भी यही गुण झलकेंगे । इन्हीं गुणों के होने या न होने से पता चलता है कि आदमी परमेश्वर की शरण में वास्तव में है कि नहीं ?


और यह भी कि आदमी ने उसकी शरण में आने के लिए वास्तव में प्रयास कितना किया ?


आयतों को जुबान से मात्र पढ़ लेने से ही अभीष्ट लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता । इसके लिए तदनुकूल कर्म भी ज़रूरी है । तभी हरेक उपद्रव और शर का ख़ात्मा होगा ।अपनी और समाज की बेहतरी के लिए ज़रूरी है कि आप शैतानों को पहचानें और उनके शैतानी जाल में न फंसें ।उन्हें आपके द्वारा पहचान लेना ही उनकी साज़िश को नाकाम करने के लिए काफ़ी है ।
अन्त में ...
मेरी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देने से यह ज़रूर सुनिश्चित कर लें कि वह टिप्पणी वास्तव में मेरी ओर से है या फिर किसी ख़न्नास का फैलाया बड़ा जाल है ?


@ वत्स जी ! हरेक चीज़ का रचयिता एक परमेश्वर है ।
@ भाई अमित जी ! आपके द्वारा पुराण वचनों का संकलन वाक़ई क़ाबिले दीद है । मैं चाहूंगा कि आप उसे संपादित करके पुनः प्रकाशित करें । इससे इसलाम और वैदिक धर्म के आध्यात्मिक एकत्व का भी बोध होगा और विश्वासी जनों को पाप से बचने की प्रेरणा भी मिलेगी ।
@ डा. अयाज़ साहब और सभी भाइयों का मैं आभारी हूं जिन्होंने इस दुर्जन बहुरूपिए का बरवक्त पर्दा चाक कर दिया । और एक अच्छी ख़बर गर्भस्थ भ्रूण के संबंध में भी है जिसे मैं आपसे नेक्स्ट पोस्ट में share करूंगा ।


Friday, May 21, 2010

No Problem दुख इनसान को इतना दुखी नहीं करता जितना कि उसे कुबूल न कर पाना ।

दुनिया की हर चीज़ की रचना जोड़े में की गई है ।
हर ऐब से पाक है अल्लाह , जिसने सभी चीज़ों को जोड़े में पैदा किया। -पवित्र कुरआन,यासीन,36
सुख का जोड़ा दुख है । जो लोग केवल सुख के अभिलाषी हैं , वास्तव में वे एक ऐसी चीज़ चाहते हैं जो इस दुनिया में आज तक न तो किसी को मिली है और न ही मिल पाएगी । इस दुनिया में अगर आप सुख चाहते हैं तो आपको दुख भी स्वीकार करना होगा । आप स्वीकार न करें तब भी दुख तो आपको पहुंचकर रहेगा लेकिन उसे स्वीकारने का फ़ायदा यह होगा कि अब वह आपको कष्ट नहीं देगा । दुख इनसान को इतना दुखी नहीं करता जितना कि उसे कुबूल न कर पाना ।
आपको परमेश्वर का यह नियम जानना भी होगा और मानना भी कि उसने सुख के साथ दुख को भी आपके भले के लिए अनिवार्य कर दिया है ।किसी भी चीज़ की पहचान इनसान तभी कर पाता है जबकि वह उसके विपरीत का भी अनुभव रखता हो ।मिलन के सुख को वही प्रेमी जान सकता है जिसने विरह की पीड़ा को भोगा हो । मां होने का सुख वही औरत पाती है जिसने प्रसव की वेदना को सहा हो । कुछ बनने के लिए मेहनत और संघर्ष इस दुनिया का अनिवार्य नियम है । आदमी बाप भी होता है और किसी का बेटा भी । बाप का फ़र्ज़ औलाद की हिफ़ाज़त, परवरिश और बेहतर तालीम है और औलाद का फ़र्ज़ यह है कि वह अपने बाप का आदर करे और उसके आदेश का पालन करते हुए उसकी बेहतरीन परम्पराओं को बाक़ी रखे । दोनों ही हालत में आदमी के लिए सख्त मेहनत के सिवाय चारा नहीं है ।
बाप और औलाद की गवाही ले लो । बेशक इनसान को पैदा करके हमने उसे मेहनत और उलझन में डाला है । -पवित्र कुरआन,बलद,3 व 4
मानव सभ्यता के ये दो बुनियादी किरदार हैं बाप और औलाद । यह तक बनने के लिए इनसान को मेहनत किये बग़ैर चारा नहीं है । मेहनत करना ही दुख उठाना है लेकिन जब इनसान के सामने मक़सद साफ़ होता है तो फिर उस मक़सद को पाने की लगन उसके लिए न सिर्फ़ वह कष्ट सहना आसान हो जाता है बल्कि उसे उसमें सुख और आनन्द का अनुभव होने लगता है । मानवीय सभ्यता को बाक़ी रखने के लिए नस्ल चलाना ज़रूरी है । जब लोगों के औलाद होगी तो इनसानी पैदाइश के हर संभव रूप प्रकट होना लाज़िमी है । वे रूप भी हमारी गोद में खेलेंगे जो बहुतों की समस्याओं का समाधान करेंगे और वे रूप भी हमारे साथ रहेंगे जो खुद एक समस्या होंगे । अगर हम एक का स्वागत खुशी खुशी करते हैं तो हमें दूसरे रूप को भी स्वीकार करना होगा क्योंकि यही इस दुनिया का क़ायदा और मालिक का विधान है । अगर हम इसमें तरमीम करके अपाहिज भ्रूणों को मां के पेट में ही मारने के रास्ते पर चल पड़ेंगे तो फिर अपाहिजों और निरूपयोगी बूढ़ों के लिए ज़रूरी रहमदिली का लोगों में नितान्त अभाव हो जाएगा और तब इनसान एक बेरहम व्यापारी तो बन जाएगा लेकिन इनसान नहीं रह पाएगा ।
हम क्या बनना चाहते हैं ?
यह हमें तय करना है । जो आप बनेंगे वही चेतना आपकी औलाद में भी ट्रांसफ़र होगी । आपका फ़ैसला व्यापक प्रभाव रखता है और मानवता को सदा प्रभावित करता रहेगा । आइये प्रभु के सुख-दुख के विधान को स्वीकार कीजिए ताकि दुख आपको भविष्य के सुख का साधन प्रतीत होने लगे । आपकी सही सोच दुख के प्रभाव को बदलने में सक्षम है । पवित्र कुरआन यही सिखाता है ।
वेदज्ञ साहिबान भी बताएं कि वेद मनुष्य की बेहतरी के लिए क्या बताते हैं ?
और अपाहिज भ्रूण के विषय में वह क्या उपाय सुझाता है ?

Thursday, May 20, 2010

Hope for life क्या अपाहिज भ्रूण को जन्म लेने का अधिकार है ?



डा. मीनाक्षी ने गर्भस्थ शिशु को टर्मिनेट करवाने की सलाह दी और मैंने शिशु को परमेश्वर की इस सुन्दर धरा पर खिलखिलाने और अपनी मां की गोद में खेलने का मौक़ा देने का फ़ैसला लिया ।
हम दोनों के नज़रिये और फ़ैसले में इतना बड़ा अन्तर क्यों है ?
क्या इसलिए कि डा. मीनाक्षी एक हिन्दू महिला हैं और मैं एक मुसलमान ?
नहीं । डा. मीनाक्षी का यह फ़ैसला एक हिन्दू का फ़ैसला नहीं बल्कि एक आधुनिक डाक्टर का फ़ैसला है ।
कोई भी हिन्दू अपने शास्त्रों के आधार पर मुझे ऐसी सलाह नहीं दे सकता । ईश्वर को जीवनदाता और विधाता मानने वाला हिन्दू ठीक वही निर्णय लेगा जो कि एक मुसलमान लेगा जबकि आधुनिक शिक्षा तो ईश्वर और आत्मा को ही नहीं मानती । न ही वह मनुष्य के जन्म का कोई उच्चतर उद्देश्य ही तय कर पाई है । उसके लिए तो बच्चा भी एक Product है जिसे नाक़िस होने की वजह से रिजेक्ट किया जा सकता है ।

इस समस्या के कई पहलू हैं और हरेक पहलू तफ़्सीली बहस चाहता है । इसका एक पहलू तो मां-बाप के जज़्बात और आर्थिक सामाजिक कष्टों से संबंधित है । इसका दूसरा पहलू खुद अपाहिज बच्चे के कष्टमय जीवन से संबंधित है और इसका तीसरा पहलू समाज के लिए उसके उपयोगी या अनुपयोगी होने से संबंधित है । हरेक पहलू अहम है और उनमें से किसी एक को भी नज़रअन्दाज़ करना ठीक नहीं है ।इससे पहले कि मैं पहले पहलू पर अपना ख़याल ज़ाहिर करूं , मैं कहना चाहूंगा कि समाधान तक पहुंचने के लिए खुद समस्याएं ही वास्ता और ज़रिया बनती हैं । अगर हम समस्याओं के अन्त के लिए ‘न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी‘ वाली नीति अपनाते हैं तो यह मानवता के विकास को अवरूद्ध करना होगा । आवश्यकताएं ही अविष्कार की जननी हैं ।

मैं अलबेला खत्री जी का आभारी हूं कि उन्होंने मुझे बिल्कुल सही मश्विरा दिया और मैं सुबह के पुरसुकून लम्हों में अपने मालिक से प्रार्थना कर रहा हूं और अभी मुझे ध्यान आया कि मुझे अपने ब्लॉग पर पधारने वाले भाइयों के लिए भी उन्हीं लम्हों में सच्चे मालिक से अरदास करनी चाहिए । कल सुबह से मैं यह भी शुरू कर दूंगा । सबके लिए , चाहे वह मुझ पर स्नेह लुटाने वाले अलबेला जी हों या फिर मेरे विचारों से असहमत कृष्ना जी , मान जी और मनुज जी आदि हों ।

आखि़र सभी मेरे भाई हैं । उनकी असहमति या विरोध का मतलब यह नहीं है कि वे मेरे दुश्मन हैं या वे मानवीय संवेदना से ख़ाली पत्थर मात्र हैं ।

मनुज जी ने एक बार परम आर्य जी को उनकी सख्तकलामी पर टोका था और पिछली पोस्ट पर उन्होंने मान जी को टोका । इससे उनके उदारमना होने का पता चलता है और मुझे मान जी का अपनाइयत भरा जवाब भी अच्छा लगा । अगर दिल में नफ़रत और लहजे में तल्ख़ी न हो तो आपसी संवाद हमारे दिल के गुबार को कम कर देता है

जिन लोगों ने मुझे डाक्टर मीनाक्षी राना की सलाह मान लेने का सुझाव दिया मैंने उनकी हमदर्दी को भी महसूस करके खुद को काफ़ी कुछ हल्का पाया । प्रिय प्रवीण जी तो मात्र भौतिक और लौकिक हानि-लाभ के आधार पर सोचने वाले आदमी हैं । उनके सुझाव से असहमत होने के बावजूद मैं उनसे कुछ कहने की स्थिति में खुद को फ़िलहाल नहीं पाता लेकिन मेरे जो वैदिक और पौराणिक भाई आध्यात्मिक मूल्यों में विश्वास रखते हैं मैं उनसे ज़रूर जानना चाहूंगा कि उनके सुझाव का आधार भारतीय सांस्कृतिक मूल्य हैं या उन्होंने पश्चिम के कोरे बुद्धिवाद की चपेट में आकर ऐसा कह डाला ?अगर बच्चे को भविष्य के संभावित कष्टों से बचाने का तरीक़ा उन्हें मार देना ही है तो फिर वे मां-बाप क्यों निन्दा के पात्र ठहरते हैं जो ग़रीबी से तंग आकर अपने बच्चों को भविष्य के कष्टों से बचाने की ख़ातिर पहले उनकी हत्या करते हैं और फिर खुद भी आत्महत्या कर लेते हैं ?
और फिर कष्ट मात्र अपाहिज लोग ही नहीं भोगते । समाज का कौन सा आदमी ऐसा है जो आज कष्ट नहीं भोग रहा है ?
क्या समाज के हरेक आदमी को कष्टों से मुक्ति के लिए अपनी जान दे देनी चाहिए ?
हरेक बच्चा अपने जीवन में अनगिनत कष्ट भोगता है और अन्ततः मर जाता है । जब अन्त मौत ही है तो फिर इतना कष्ट क्यों उठाया जाए ?
क्या यह बेहतर न होगा कि हरेक मां-बाप अपने बच्चों को पैदा होते ही मार दिया करें ताकि वे जीवन में पेश आने वाले कष्टों को भोगने से बच जाएं ?
कोई बाल यौन शोषण का शिकार होता है तो कोई लड़की बलात्कार या प्रेमी की बेवफ़ाई का दुख उठाती है । प्रायः लड़के-लड़कियों को उनके सपनों का जीवनसाथी नहीं मिल पाता और वे अपना मन मारकर बस किसी तरह निबाह करती रहती हैं । वे मां बनती हैं तो भी भयंकर वेदना उठानी पड़ती है और फिर बच्चों को पालना ही अपने आप में एक कष्टप्रद साधना है । इनसान का तो जीवन ही कष्ट से भरपूर है । वह कष्ट से बच नहीं सकता । दरअस्ल हमें यह भी समझना पड़ेगा कि कष्ट हमारे जीवन में रखे क्यों गये हैं ?

क्या कष्ट हमारे लिए यातना मात्र हैं या इनसे मानवीय चरित्र और सभ्यता के निर्माण में कोई मदद भी मिलती है ?

आपके बेहतर विचारों का सदा स्वागत है । काजल जी के नाम से जिन भी सज्जन ने टिप्पणी की है , उनकी तरफ़ से मैं काजल जी से क्षमा चाहता हूं । लेकिन उनसे यह भी कहना चाहूंगा कि उन्हें प्रस्तुत पोस्ट पर अपने विचार व्यक्त करने चाहियें थे ।

Tuesday, May 18, 2010

आज के मां-बाप और डाक्टर : क़ातिल या मसीहा


डाक्टर मीनाक्षी राना ने रिपोर्ट देखकर कहा कि
आपकी पत्नी के गर्भ में पल रहा शिशु जन्मजात विकृतियों का शिकार है । आपको उसे टर्मिनेट करवाना होगा ।

मेरी वालिदा साहिबा भी साथ में थीं , उन्होंने पूछा कि अगर बच्चे को पैदा होने दिया जाए तो डिलीवरी नार्मल होगी या फिर आप्रेशन करना पड़ेगा ?

डाक्टर साहिबा ने जवाब दिया - बच्चे की कमर में जो रसौली है वह अभी तो छोटी है लेकिन अगर उसका साइज़ बड़ा हो गया तो फिर आप्रेशन की नौबत भी आ सकती है । तब आप खुद को बड़ा कोसेंगी ।

मैंने पूछा - बच्चा ज़िन्दा तो है न ?

मेरे पूछने के लहजे से वह जान गईं कि मैं भी अपनी मां की तरह उनसे सहमत नहीं हूं । उन्होंने जवाब दिया - हां । देखिये , जज़्बाती मत होइये । आपके तो और भी बच्चे हैं । आप रसौली की बात भी जाने दीजिये । यह बच्चा एक बोझ है । मैं तो आपको इसे टर्मिनेट कराने की सलाह ही दूंगी । बाक़ी आपकी इच्छा । यह कहकर उस बेहतरीन पर्सनैलिटी और आला सलाहियत की मालिक उस मसीहा ने अपनी क़लम से बच्चे के लिए मां के गर्भ में ही उसकी मौत का सजेशन तहरीर कर दिया । उन्होंने फिर एक बार कोशिश करना मुनासिब समझा - और लोग अनपढ़ होते हैं , ऐसी हालत में वे उम्मीद करते हैं कि शायद जन्म के समय बच्चा सही पैदा हो जाए ?

लेकिन ऐसा नहीं होता । आप लोग एजुकेटिड हैं । आप ज़रा अक्ल से सोचिए । मैंने पहले दिल से , फिर ज़मीर से और फिर इन सबसे हटकर अक्ल से भी सोचा लेकिन हर बार जवाब यही मिला कि गर्भ में पल रहे शिशु का क़त्ल करना जायज़ नहीं है , चाहे उसमें जन्मजात विकार ही क्यों न हों और जीवन भर उनके ठीक होने की उम्मीद भी न हो ।

आप क्या सोचते हैं ?

जो जवाब मुझे मिला , क्या वह सही है ?

यासही जवाब कुछ और है ?

आप में से कौन बताएगा कि कल की संवेदनशील पोस्ट पर भी मुझे माइनस के 2 वोट क्यों मिले ? और ब्लागवाणी ने मुझे अपनी हॉटलिस्ट में लेने के लिए संकोच क्यों दिखाया ?

@अविनाश वाचस्पति जी ! आप या तो दो बोल मेरी हमदर्दी में बोलते या फिर अपाहिज भ्रूण के हक़ में अपनी जुबान खोलते लेकिन यह क्या कि आप इतनी संवेदनशील पोस्ट पर ‘ज़लज़ला‘ उठा लाए ?
ब्लॉगर्स से भरे इस आभासी संसार में हमदर्दी के दो बोल अगर मिले भी तो अपने इस्लामी भाइयों से , बाक़ी सबकी संवेदना कहां सो गई ?
एक दो जाली राष्ट्रवादी आये भी तो अपना वही पाकिस्तान का राग अलापते रहे या फिर मुझे ही झूठा कहकर अपना फ़र्ज़ पूरा समझ लिया ।
मैं सभी मोमिन भाइयों का बेहद शुक्रगुज़ार हूं
और ख़ास तौर पर ज़ीशान भाई का कि उन्होंने भारत में हिन्दी साहित्य संसार में पहली बार अपाहिज भ्रूणों के जीवन की रक्षा के हक़ में उठने वाली आवाज़ को बल दिया । मेरे दिल का हौसला और मेरे ईमान को तक़वियत दी । अभी-अभी पोस्ट लिखने के दौरान ही भाई तारकेश्वर गिरी जी से बात हुई । उनकी जानकारी में मेरे हालात पहले से ही हैं । उनसे मैंने विशेष तौर कहा कि जो भी आपको उचित लगे आप ज़रूर बतायें । देखिये कि उनकी टिप्पणी कितनी देर में प्राप्त होती है ।

Monday, May 17, 2010

A grave in the womb . क्या मां-बाप को अपने अपाहिज भ्रूण को गर्भ में ही मार डालना चाहिये ?


मैं 15 अप्रैल 2010 को डा. मीनाक्षी राना के केबिन में अपनी पत्नी के साथ था ।

मेरी वाइफ़ प्रेग्नेंट है और उनकी तरफ़ तवज्जो देने की ख़ातिर मैंने अपना टी. वी. भी बन्द कर दिया है और अपने इन्टरनेट के सभी कनेक्शन भी सिरे से ही कटवा डाले । जो भी ज़रूरी चीज़ें दरकार हैं तक़रीबन सभी मुहैया करने की कोशिश की । डा. मीनाक्षी अपने पेशेंट्स की 7 वें महीने के बाद अल्ट्रा साउंड रिपोर्ट्स देखकर गर्भ में पल रहे शिशु की सेहत का अन्दाज़ा करती हैं । पहली रिपोर्ट के बाद आज उन्होंने ‘बी‘ लेवल का अल्ट्रा साउंड टेस्ट करवाया था । रिपोर्ट देखकर उन्होंने बताया कि शिशु का दिमाग़ आपस में जुड़ते वक्त थोड़ा ओवरलेप करके जुड़ा है , उसकी रीढ़ की हड्डी भी तिरछी है और उसकी कमर में एक रसौली भी है । डा. मीनाक्षी ने मुझे सारी कैफ़ियत बताने के बाद कहा कि मेरी राय में आप


‘इसे‘ टर्मिनेट करा दीजिये ।
मैंने उन्हें क्या जवाब दिया और क्यों दिया , यह तो मैं आपको बाद में बताऊंगा लेकिन पहले मैं आपका जवाब जानना चाहता हूं कि अगर पेट में पल रहा बच्चा अपाहिज हो और पैदा होने के बाद भी वह आजन्म अपाहिज ही रहे तो क्या उसकी मां की कोख को ही उसकी क़ब्र बना दिया जाए ?

आजकल आपने कन्या भ्रूण की हिफ़ाज़त के हक़ में कुछ आवाजे़ ज़रूर सुनी होंगी लेकिन क्या आपने अपाहिज भ्रूण की हिफ़ाज़त में उठने वाली कोई आवाज़ कभी सुनी है ?

जबकि इस तथाकथित सभ्य समाज में बड़े पैमाने पर पढ़े-लिखे लोग अपाहिज भ्रूणों की हत्या कर रहे हैं ?

आप यह भी देखिएगा कि लोग बिना पढ़े ही किस तरह इस पोस्ट को माइनस वोट करते हैं ?

Sunday, May 16, 2010

The source of peace क्या पवित्र कुरआन शांतिदाता का पैग़ाम है ?


अनुनाद जी ने कहा कि पवित्र कुरआन आतंकवाद का मेनिफेस्टो है .
हिन्दू धर्माचार्य श्री लक्ष्मी शंकराचार्य जी ने कहा कि



पवित्र कुरआन ईश्वर की वाणी है , शांति का स्रोत है.
डॉ. सुरेन्द्र कुमार शर्मा अज्ञात पूछते हैं कि क्या वेद अहिंसावादी हैं ?
डॉ. सुरेन्द्र कुमार शर्मा अज्ञात बताते हैं कि गीता में युद्ध का उन्माद है.
शर्मा जी कि बातें कितनी सच हैं ये तो आप लोग फैसला करें लेकिन श्री राम सेना के लोग दंगे का धंधा करते हैं इस सच को दुनिया के सामने वाले भी हिन्दू ही हैं . तहलका. कॉम और अज तक हज़ार सराहना के पात्र हैं . इसका मतलब है कि भारत में सच को जानने और पहचानने वाले लोग भी हैं और उसे सामने लेन का हौसला भी उनमें अभी तक बाकी है .
जनाब भाई सलीम खान साहब भी एक ऐसे ही हौसलामंद नौजवान हैं .
उनके हौसले को हमारा सलाम है , हरा सलाम और भगवा प्रणाम .
मुजरिम को मुजरिम समझो , उसे सज़ा तक पहुँचाओ ,
चाहे अपना हो या पराया , देस में जमा हो या हो बहार से आया .

... और जल्द ही मैं आपको बताऊंगा कि मुझे किस चीज़ ने रोका

अपने उस शिशु कि हत्या से जो कि पिछले जन्म का पापी नहीं है .

Friday, May 14, 2010

Hell n Heaven in Holy Scriptures कहां है वेद और कुरआन में स्वर्ग-नर्क का विवरण


ईश्वर एक है

तो उसने जब कभी किसी ऋषि के अन्तःकरण पर सत्य प्रकट किया तो उसे जन्म और मृत्यु के विषय में स्पष्ट ज्ञान दिया । जन्म और मृत्यु के बीच की अवधि को हम जीवन के नाम से जानते हैं लेकिन जीवन तो मृत्यु के बाद भी है बल्कि यह कहना ज़्यादा सही होगा कि वास्तव में जीवन तो है ही मृत्यु के बाद । आदमी अपने मन में भोग की जो कामनाएं लिए रहता है वे यहां पूरी कब हो पाती हैं ?

और जो लोग पूरी करने की कोशिश करते हैं उनके कारण समाज में बहुत सी ख़राबियां फैल जाती हैं । वजह यह नहीं है कि भोग कोई बुरी बात है । सीमाओं के बन्धन में रहते हुए तो भोग की यहां भी अनुमति है और जीवन का व्यापार उसी से चल भी रहा है लेकिन अनन्त भोग के लिए अनन्त भोग की सामथ्र्य और अनन्त काल का जीवन चाहिये और एक ऐसा लोक भी चाहिये जहां वस्तु इच्छा मात्र से ही प्राप्त हो जाये और उसका कोई भी बुरा प्रभाव किसी अन्य पर न पड़ता हो । प्रत्येक ईशवाणी मनुष्य के मन में बसी हुई इस चिर अभिलिषित इच्छा के बारे में ज़रूर बताती है ।

पवित्र कुरआन में इसका बयान साफ़ साफ़ आया है लेकिन वेदों से भी यह ग़ायब नहीं किया जा सका है बल्कि इनका बयान तो बाइबिल में भी मिलता है ।

इस बयान का मक़सद सिर्फ़ यह है कि आदमी दुनिया के सुख भोगने के लिए बेईमानी और जुल्म का तरीका अख्ितयार न करे बल्कि ईमानदारी से अपना फ़र्ज़ पूरा करे चाहे इसके लिए उसे प्राप्त सुखों का भी त्याग करना पड़े या फिर मरना ही क्यों न पड़े ?

क्योंकि अगर वह अपने फ़र्ज़ को पूरा करते हुए मर भी गया तब भी उसका मालिक उसे अमर जीवन और सदा का भोग देगा । यही विश्वास आदमी के लड़खड़ाते क़दमों को सहारा देता है और उसके दिल से दुनिया का लालच और मौत का ख़ौफ़ दूर कर देता है ।

यत्रानन्दाश्च मोदाश्च मुदः प्रमुद आसते ।

कामस्य यत्राप्ताः कामास्तत्र माममृतं कृधीनन्द्रायंन्दां परि स्रव ।।

-ऋग्वेद , 9-113-11

मुझे उस लोक में अमरता प्रदान कर , जहां मोद , मुद और प्रमुद तीन प्रकार के आनन्द मिलते हैं और जहां सभी चिर अभिलिषित कामनाएं इच्छा होते ही पूर्ण हो जाती हैं ।

मोद , मुद और प्रमुद ये तीन आनन्द जिनका उल्लेख इस मंत्र में किया गया है संभोग से संबंधित आनन्द हैं और विशेषकर ‘प्रमुद‘ तो वेदों में संभोग के आनन्द के लिए ही आता है । इससे मालूम हुआ कि स्वर्ग में लोगों को पत्नियां भी मिलेंगी । इसका प्रमाण दूसरे वर्णनों से भी मिलता है ।

भोजा जिग्युः सुरभिं योनिमग्ने भोजा जिग्युर्वध्वंवया सुवासाः ।

भोजा जिग्युरन्तः पेयं सुराया भोजा जिग्युर्ये अहूताः प्रयन्ति ।

ऋग्वेद, 10-107-9


फिर अच्छे सुन्दर वस्त्र वाली सुन्दर स्त्रियां और तेज़ शराब के जाम को ।


Thursday, May 13, 2010

For your children sake अपनी औलाद की हिफ़ाज़त और बेहतरी की ख़ातिर इसलामी मूल्यों को अपनाइये । ये व्यवहारिक भी हैं और वर्तमान समस्याओं का समाधान भी ।


आज का दिन भी प्यार की ख़ातिर जान देने वालों की ख़बरें पढ़कर शुरू हुआ । शामली की जनता धर्मशाला के एक कमरे का दरवाज़ा जब मैनेजर ने खुलवाया तो युवती पूजा , मुज़फ़्फ़रनगर ने दरवाज़ा खोला । उसके मुंह से सल्फ़ास की गंध आ रही थी । बेड पर उसका पति अनुज , हरिद्वार अचेत पड़ा था । दोनों को अस्पताल पहुंचाया गया तो चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया । दोनों 3 दिन पहले घर से फ़रार चल रहे थे और किसी मन्दिर में विवाह भी कर चुके थे लेकिन उन्हें जुदाई का डर सता रहा था ।

दूसरा केस गांव नैनसोब का है । मंदिर परिसर में 19 वर्षीय विनीत ने फांसी लगाकर इसलिए जान दे दी क्योंकि उसके परिजन उस युवती से उसके विवाह के लिए तैयार नहीं थे जिसके साथ उसका प्रेम प्रसंग चल रहा था । कहीं तो जाति का अलग होना इन प्रेमियों के रास्ते की दीवार बनता है और कहीं उनके गोत्र या गांव का एक होना ।

इस समस्या का सच्चा समाधान केवल इसलामी व्यवस्था है क्योंकि इसलामी व्यवस्था में केवल सगी बहन या दूध शरीक बहन , मौसी , बुआ आदि निहायत क़रीबी रिश्तेदारों के साथ ही वैवाहिक संबंध वर्जित हैं ।जो लोग आज इसलाम की व्यवहारिक व्यवस्था को आज केवल पूर्वाग्रह के कारण नहीं मान रहे हैं , वे जल्द ही अपनी परम्पराओं को टूटता और मिटता हुआ देखने के लिए अभिशिप्त होंगे । तब उनके बच्चों के पास कोई भी नैतिक मूल्य शेष न बचेगा क्योंकि इसलामी मूल्य उन्हें दिए नहीं गए होंगे और प्राचीन रूढ़ियों को वे रास्ते की दीवार मानकर ध्वस्त कर चुके होंगे ।
अपनी औलाद की हिफ़ाज़त और बेहतरी की ख़ातिर इसलामी मूल्यों को अपनाइये । ये व्यवहारिक भी हैं और वर्तमान समस्याओं का समाधान भी ।

भाई ज़ीशान ज़ैदी जी से विनती है कि वे विषय को और अधिक स्पष्ट करें , ख़ासकर प्रश्न करने वालों को ज़रूर जवाब दें क्योंकि मेरे पास नेट की फे़सिलिटि घर पर नहीं है ।
भाई शाहनवाज़ का और जनाब उमर कैरानवी और डा. अयाज़ साहब समेत सभी भाईयों का दिल से आभारी हूं । महक और मान का भी शुक्रगुज़ार हूं और पुष्पेन्द्र और नवरत्न जी का भी ।
भाई अमित तो चुपके से पढ़कर निकल जाते हैं ।
भाई तारकेश्वर गिरी जी की कोई कोई बात तो बादाम गिरी से भी ज़्यादा दिमाग़ को ताज़गी देती है । युवा होते ही लड़के और लड़की का विवाह कर देने का उनका विचार एकदम सही है । मैं उनसे ऐलानिया सहमत होता हूं । जो उनसे असहमत हो वह कारण बताए ।

Wednesday, May 12, 2010

ईशवाणी हमारे कल्याण के लिए अवतरित की गई है , यदि इस पर ध्यानपूर्वक चिंतन और व्यवहार किया जाए तो यह नफ़रत और तबाही के हरेक कारण को मिटाने में सक्षम है ।


वेद

समानं मन्त्रमभि मन्त्रये वः

मैं तुम सबको समान मन्त्र से अभिमन्त्रित करता हूं ।

ऋग्वेद , 10-191-3

कुरआन

कु़ल या अहलल किताबि तआलौ इला कलिमतिन सवाइम्-बयनना व बयनकुम

तुम कहो कि हे पूर्व ग्रन्थ वालों ! हमारे और तुम्हारे बीच जो समान मन्त्र हैं , उसकी ओर आओ ।

पवित्र कुरआन , 3-64 - शांति पैग़ाम , पृष्ठ 2 , अनुवादकगण : स्वर्गीय आचार्य विष्णुदेव पंडित , अहमदाबाद , आचार्य डा. राजेन्द प्रसाद मिश्र , राजस्थान , सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ , रामपुर

एक ब्रह्मवाक्य भी जीवन को दिशा देने और सच्ची मंज़िल तक पहुंचाने के लिए काफ़ी है ।

जो भी आदमी धर्म में विश्वास रखता है , वह यक़ीनी तौर पर ईश्वर पर भी विश्वास रखता है । वह किसी न किसी ईश्वरीय व्यवस्था में भी विश्वास रखता है । ईश्वरीय व्यवस्था में विश्वास रखने के बावजूद उसे भुलाकर जीवन गुज़ारने को आस्तिकता नहीं कहा जा सकता है । ईश्वर पूर्ण समर्पण चाहता है । कौन व्यक्ति उसके प्रति किस दर्जे समर्पित है , यह तय होगा उसके ‘कर्म‘ से , कि उसका कर्म ईश्वरीय व्यवस्था के कितना अनुकूल है ?

इस धरती और आकाश का और सारी चीज़ों का मालिक वही पालनहार है ।

हम उसी के राज्य के निवासी हैं । सच्चा राजा वही है । सारी प्रकृति उसी के अधीन है और उसके नियमों का पालन करती है । मनुष्य को भी अपने विवेक का सही इस्तेमाल करना चाहिये और उस सर्वशक्तिमान के नियमों का उल्लंघन नहीं करना चाहिये ताकि हम उसके दण्डनीय न हों । वास्तव में तो ईश्वर एक ही है और उसका धर्म भी , लेकिन अलग अलग काल में अलग अलग भाषाओं में प्रकाशित ईशवाणी के नवीन और प्राचीन संस्करणों में विश्वास रखने वाले सभी लोगों को चाहिये कि अपने और सबके कल्याण के लिए उन बातों आचरण में लाने पर बल दिया जाए जो समान हैं । ईशवाणी हमारे कल्याण के लिए अवतरित की गई है , यदि इस पर ध्यानपूर्वक चिंतन और व्यवहार किया जाए तो यह नफ़रत और तबाही के हरेक कारण को मिटाने में सक्षम है ।
आज की पोस्ट भाई अमित की इच्छा का आदर और उनसे किये गये अपने वादे को पूरा करने के उद्देश्य से लिखी गई है । उन्होंने मुझसे आग्रह किया था कि मैं वेद और कुरआन में समानता पर लेख लिखूं । मैंने अपना वादा पूरा किया । उम्मीद है कि लेख उन्हें और सभी प्रबुद्ध पाठकों को पसन्द आएगा ।
Photo- S. Abdullah Tariq in white dress

Tuesday, May 11, 2010

The model of Islamophobia नियमों का नाम ही धर्म है


इनसान ने आज जितनी भी तरक्क़ी की है वह सब नियमों की खोज और उनके पालन के बाद ही संभव हो सका है । नियमों का नाम ही धर्म है । ये वे नियम होते हैं जो व्यक्ति और समाज को जीना और मरना सिखाते हैं । प्राकृतिक नियमों की तरह ये नियम भी शाश्वत होते हैं । देश-काल और परिस्थिति से ये मूलतः कभी नहीं बदलते । अगर बदलता है तो केवल इनके इम्पलीमेंटेशन का तरीक़ा बदलता है जिससे लोगों की बाहरी क्रियाओं और परम्पराओं में थोड़ा बहुत अन्तर आ जाता है ।

कुछ आदर्श व्यक्ति उनके मुताबिक़ आचरण करके समाज को दिखाते हैं कि वे सत्य का पालन कैसे करें ?

खुद को भावनाओं में बहने से कैसे बचायें ?

और न्याय कैसे करें ?

समय बदलता है और समय के साथ राजा महाराजा बदलते हैं और फिर ऐसे लोग भी समाज में पैदा होते हैं जो लोगों को अपना गुलाम बना लेना चाहते हैं लेकिन ऐसा तब तक संभव नहीं होता जब तक कि लोगों को धर्म के नियमों की सही जानकारी होती है ।लोगों को अपना दास बनाने के लिए वे उनकी मान्य धर्म पुस्तकों में ही हेर-फेर कर देते हैं और जब कभी लोग उन्हें उनके जुल्म पर टोकती है , जब कभी जनता उन्हें स्त्री प्रसंग से रोकना चाहती है तो वे कहते हैं कि जो कुछ वे कर रहे हैं , धार्मिक महापुरूष यही करते रहे हैं । यही धर्म है ।

धीरे-धीरे ये लोग महापुरूषों का चरित्र इतना दूषित कर देते हैं कि या तो लोग उनका पालन करके सद्गुण ही गंवा बैठते हैं या फिर धर्म का इन्कार करके नास्तिक बन जाते हैं । फिर वे धर्मग्रन्थ समाज की समस्याओं को हल नहीं कर पाते । आनन्द पाण्डेय जी ने बताया है कि वेदों में बलात्कार का बयान नहीं है और न ही बलात्कार की सज़ा का वर्णन है । तलाक़ का बयान भी उसमें नहीं है ।

भई ! अगर वहां नहीं है तो प्लीज़ पवित्र कुरआन से ले लीजिये , जैसा कि भारतीय क़ानूनविदों ने लिया भी है । लेकिन हमारा इतना कहना तो ग़ज़ब हो जाता है ।


हम तो कभी नहीं कहते कि गीता पढ़ो, फ़लाँ ग्रन्थ का लिंक यहाँ है, हिन्दू धर्म में आओ आदि-आदि, लेकिन आप लोगों के साथ "इस्लाम का प्रचार" यही एक मुख्य समस्या है, जिसकी वजह से पूरे हिन्दी ब्लॉग जगत में आप जैसों के ब्लॉग से लोग बिदकते हैं और आपकी निगेटिव "इमेज" बन गई है।
भई ! आप अगर किसी धर्मग्रन्थ का लिंक या हवाला नहीं देते तो यह आपकी मजबूरी है । आपको अपने धर्मग्रन्थों के प्रति आस्था नहीं है तो मैं क्या कर सकता हूं । आप खुद कहते हैं कि वेद पुराण में कई बातें अप्रासंगिक और बकवास हैं । आप अपनी मजबूरी को हमारे लिए नियम का रूप क्यों देना चाहते हैं ?

हमें पवित्र कुरआन के प्रति आस्था है इसीलिये हम इसका लिंक भी देते हैं और हवाला भी । हमारे जिन हिन्दू भाईयों को अपने धर्मग्रन्थों के प्रति श्रद्धा है वे भी ऐसा ही करते हैं और हमने कभी उनपर ऐतराज़ नहीं किया और न ही उनके ब्लॉग पर आपको ऐतराज़ करते हुए देखा ।क्या इसी को नहीं कहते हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और ?

यह मेरी सबसे नर्म प्रतिक्रिया है जो मैंने जनाब सतीश जी का लिहाज़ करते हुए की है और इसमें भाई तारकेश्वर गिरी जी का आदर भी निहित है क्योंकि आज मैंने फ़ोन पर उनसे मधुर संवाद किया है ।


Monday, May 10, 2010

Towards the fragrance of Islam क्या इस्लाम की बात करने से बदबू फैलती है ?



ऐसे बदलते हुए हालात में भी मेरे लेख



जैसे ही कोई भी अपने लेख में "इस्लाम" का प्रचार करने की कोशिश करेगा, तत्काल उसकी नीयत पर शक किया जायेगा…। चाहे कैरानवी हों, सलीम हों या आप हों… कई राष्ट्रीय मुद्दों पर अच्छा लिख भी सकते हो, लेकिन जैसे ही आप लोग विभिन्न इस्लामी प्रचार लिंक, पुस्तकों के लिंक, हर बात को इस्लाम से जोड़ना आदि शुरु कर देते हो… पाठक बिदकने लगते हैं, नाक पर रुमाल रखकर निकल लेते हैं, कई लोग इसी वजह से आप लोगों से चिढ़ने लगे हैं।
हालांकि राष्ट्रवादी मानसिकता से ग्रस्त ‘मनुज‘ जी पहले ही कह चके हैं कि बाल ठाकरे जी भी राज ठाकरे और गिलानी की ही तरह देश के ग़द्दार हैं । इसके बावजूद हमने तो कभी उनपर शक नहीं किया और न ही हमने उनके कथन में बदबू की ही शिकायत की ।

इस्लाम तो सत्य है , अमृत है , आकर्षक है और सुगंध का भंडार भी । उसके नाम से अगर किसी को बदबू का अहसास होता है तो यह उसका निजी अनुभव है जिसका कारण खुद उसके अन्दर छिपा है ।जैसे कि कस्तूरी मृग दुनिया जहान में खुश्बू का स्रोत ढूंढता फिरता है जबकि उसका स्रोत खुद उसके अन्दर होता है ।

कुत्ते के काटे हुए रैबीज़ के शिकार मरीज़ भी पानी देखते ही चिल्लाने लगते हैं । उन्हें पानी में अपनी मौत दिखाई देने लगती है हालांकि पानी अमृत होता है ।

सांप के डसे हुए मरीज़ को भी नीम का ज़ायक़ा कड़वा नहीं लगता । इससे पता चलता है कि अगर आदमी मरीज़ हो तो उसे चीज़ें हक़ीक़त के उलट भी नज़र आ सकती हैं ।लेकिन उम्मीद पर तो दुनिया क़ायम है । हमें उम्मीद है कि जिस तरह वे वेद पुराण में कई बातों को अप्रासंगिक और बकवास स्वीकार कर चुके हैं , उसी तरह एक दिन वे अपनी बातों में से भी कुछ को अप्रासंगिक और बकवास मानकर उन्हें त्याग देंगे ।
आक़ा ए महाजाल ! आपने अपने ब्लॉग पर पैसा बटोर बॉक्स किस विधि से लगाया ? ज़रा हमें भी तो बताइये , हम भी लगाना चाहते हैं ।

Saturday, May 8, 2010

अजेय भारत के निर्माण के लिए... Unbeatable India


दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले में देश के 76 फौजी मारे गए । ये सभी एक एन्टी माइन वाहन में बैठकर नक्सलियों के सफ़ाए के लिए जंगल की तरफ़ जा रहे थे । इनके वाहन को नक्सलियों ने ‘माइन’ से ही उड़ा दिया। इतनी मौतों के बाद ‘विशेषज्ञों’ ने बताया कि इन फ़ौजियों को इस तरह के जंगलो में ऐसे छापामारों से लड़ने के लिए प्रशिक्षित ही नहीं किया गया था ।
फ़ौजियो की लाशें उनके घरों को आने का सिलसिला शुरू हुआ। उनकी विधवाओं और उनके रिश्तेदारों को दहाड़े मार कर रोते हुए न्यूज़ चैनल्स और अखबारों ने दिखाया और यही मीडिया इसी दौरान यह भी दिखा रहा था कि देश का युवा वर्ग आई.पी.एल. क्रिकेट मैच देखने में मगन है और चौके - छक्कों पर चीयर लीडर्स मस्त नाच दिखा रही हैं। कुछ ही समय बाद पता चला कि नेता व्यापारी और सटोरिये भी चांदी-सोना काट रहे थे और नाच रहे थे। सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेता इन्हीं लोगों से चुनाव में होने वाले खर्च में ‘सहयोग’ लेते है और बदले में देश की जनता को इन्हें सौंप देते हैं।
वन्दे मातरम् गाने वाले ये ‘राष्ट्रवादी व्यापारी’ (?) आटा, दाल, चीनी, और दूध जैसी रोज़मर्रा की चीज़ों की जमाख़ोरी और कालाबाज़ारी करके नेताओं को अपने द्वारा दिये गए चन्दे से सौ गुना ज़्यादा वसूल करते हैं। नेता लोग कहते हैं कि अभी मंहगाई और बढ़ेगी। क्योंकि वे जानते हैं कि उन्होंने मंहगाई बढ़ाने वालों का नमक खाया है और हमारे देश का आदमी ‘नमक हराम’ नहीं होता।
ग़रीब किसान महाजनों से सूद पर रकम लेते हैं और बदले में अपनी इज़्ज़त-आबरू के साथ अपनी जान भी दे देते हैं। अब तक देश के लगभग 2 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं जोकि पाक समर्थित आतंकवाद में मरने वालों की संख्या से कई गुना ज़्यादा हैं। ऐसे ही ग़रीबों-वंचितों के दिलों में निराशा और अवसाद और फिर आक्रोश पैदा होता है। समाज शस्त्र के नियम के अनुसार समस्या से ध्यान हटाने के लिए नेता लोग मनोरंजन के साधन बढ़ा देते हैं लेकिन मनोरंजन के साधन आए दिन ऐसी हिंसक फिल्में दिखाते हैं जिनमें जनता का शोषण करने वाले नेताओं की सामूहिक हत्या को समाधान के रूप में पेश किया जाता है। व्यवस्था और कानून से अपना हक़ और इन्साफ़ मिलते न देखकर हिंसा के रास्ते पर आगे बढ़ते हैं। इनकी समस्या के मूल में जाने के बजाय नेता लोग इसे इसलामी आतंकवाद, नक्सलवाद और राष्ट्रवाद का नाम देकर अपनी राजनीति की रोटियां सेकने लगते हैं। व्यवस्था की रक्षा में फ़ौजी मारे जाते हैं और उनके आश्रित नौकरी और पेट्रोल पम्प आदि पाने के लिए बरसों भटकते रहते हैं। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता। देश की व्यवस्था को सम्हालने वाले तो उन लोगों की भी ख़बर नहीं लेते जिन्होंने देश का 70 हज़ार करोड़ रूपया विदेशों में जमा कर रखा है लेकिन सरकार उस मध्यवर्गीय क्लर्क की सैलरी से आयकर काटना नहीं भूलती जिसे अपने बच्चों की फ़ीस देना और उनका इलाज कराना तक भारी होता जा रहा है।
समस्याएं बहुत सी हैं लेकिन सारी समस्याओं का कारण अव्यवस्था है। यह ‘अव्यवस्था’ केवल इसलिए है कि व्यवस्था को चलाने वाले नेता और उन्हें चुनने वाली देश की जनता अधिकांशतः अपने फ़र्ज़ की अदायगी को लेकर ‘ईमानदार’ नहीं है।
जब उनके दिल में ‘ईमान’ ही नहीं है तो ईमानदारी आयेगी भी कैसे ?
ईमान क्या है ?
ईमान यह है कि आदमी जान ले कि सच्चे मालिक ने उसे इस दुनिया में जो शक्ति और साधन दिए हैं उनमें उसके साथ -साथ दूसरों का भी हक़ मुक़र्रर किया है। इस हक़ को अदा करना ही उसका क़र्ज़ है। फ़र्ज़ भी मुक़र्रर है और उसे अदा करने का तरीक़ा और हद भी। जो भी आदमी इस तरीक़े से हटेगा और अपनी हद से आगे बढ़ेगा। मालिक उस पर और उस जैसों पर अपना दण्ड लागू कर देगा। इक्का दुक्का अपवाद व्यक्तियों को छोड़ दीजिए तो आज हरेक आदमी बैचेनी और दहशत में जी रहा है। हरेक को अपनी सलामती ख़तरे में नज़र आ रही है।
सलामती केवल इस्लाम दे सकता है
लेकिन कब ?
सिर्फ़ तब जबकि इसे सिर्फ़ मुसलमानों का मत न समझा जाए बल्कि इसे अपने मालिक द्वारा अवतरित धर्म समझकर अपनाया जाए। इसके लिए सभी को पक्षपात और संकीर्णता से ऊपर उठना होगा और तभी हम अजेय भारत का निर्माण कर सकेंगे जो सारे विश्व को शांति और कल्याण का मार्ग दिखाएगा और सचमुच विश्व गुरू कहलायेगा।

Friday, May 7, 2010

Love Fasad 2 वफ़ा भी रास नहीं आती हिन्दू प्रेम दीवानों को


ज़हर खाकर प्रेमी और प्रेमिका ने दम तोड़ा गुलावठी । मोहल्ला करनपुरी कलेसर के युवक और युवती को एक साथ आम के बाग़ में देखकर एकत्र हुए लोगों ने जब उन्हें दबोचने की कोशिश की तो उन्होंने ज़हरीला पदार्थ खा लिया । काफ़ी दूर दौड़ने के बाद दोनों गिरकर बेहोश हो गए । उन्हें नर्सिंग होम ले जाया गया जहां युवती ने दम तोड़ दिया । जबकि युवक ने हापुड़ के ख़ान अस्पताल में अंतिम सांस ली ।
अमर उजाला , नई दिल्ली संस्करण , दिनांक 5-05-2010
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एक अन्य हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तान के अनुसार लड़की प्रजापति बिरादरी की थी जबकि लड़का दूसरी बिरादरी का था । दोनों में काफ़ी अर्से से प्रेम प्रसंग चल रहा था । दोनों के घरवालों ने दोनों को काफ़ी समझाया लेकिन इन प्रेम दीवानों पर उनके समझाने का कोई असर न हुआ और वफ़ा की राह में दोनों प्रेम दीवानों ने बिल्कुल फ़िल्मी स्टाइल में अपनी जान हलाक कर दी ।
हिन्दू यंग ब्लड कहीं तो बेवफ़ाई का ज़ख्म खाकर तड़प रहा है और कहीं वफ़ा करके भी उन्हें साथ साथ जीना नसीब नहीं हो रहा है । वफ़ादार प्रेमियों के रास्ते में हिन्दू धर्म की आउट डेटेड रस्में दीवार बन रही हैं । कभी दोनों का विवाह इसलिये नहीं हो पाता कि दोनों एक ही बिरादरी या एक ही गांव के होते हैं और कभी उनका मिलन इसलिये नहीं हो पाता कि उन दोनों की जाति अलग अलग होती है ।
हिन्दू धर्म की रस्मों के कारण हिन्दू युवाओं को जीना मुश्किल और मरना आसान लगने लगता है और वे मौत को चुन लेते हैं । मृत्यु का वरण करते समय उन्हें परलोक में किसी सज़ा की चिन्ता भी नहीं होती जबकि एक मुसलमान कठिन हालात से घबराकर जब कभी मरने के बारे में सोचता भी है तो उसे परलोक में सज़ा का यक़ीन आत्महत्या से रोक लेता है ।
एक मुसलमान को यह यक़ीन होता है कि आत्महत्या करना एक ऐसा गुनाह है जिसकी सज़ा के तौर पर उसे क़ियामत तक ठीक उसी रीति से असंख्य बार मरने पड़ेगा जिस रीति से वह आत्महत्या करेगा । इससे पहले इस्लाम जज़्बात को भड़काने वाले नाच गाने देखना और लड़कियों से तन्हाई में मिलने पर ही पाबन्दी लगाकर सोसायटी में बिगाड़ के प्रेरक तत्वों के मूल पर ही प्रहार करता है। यही वजह है कि जहां इस्लामी नियम सोसायटी का दस्तूर हैं वहां इस तरह की जाहिलाना और जज़्बाती आत्महत्याओं का प्रतिशत हिन्दू सोसायटी के मुक़ाबले न के बराबर है ।

Tuesday, May 4, 2010

Love Fasad लो कर लो हिन्दू युवाओं पर ऐतबार , झूठे प्यार की सच्ची दास्तान


Greater noida मे हुए खुर्जा की छात्राओं के गैंगरेप के पीछे सोशल वेबसाइट आरकुट वजह बना। आरकुट के माध्यम से दो युवतियों की दोस्ती दो युवकों से हुई। दोस्ती इस क़दर परवान चढ़ी की दोनों दोस्तों ने पहले लड़कियों को प्यार का झांसा देकर फंसाया। इसके बाद दोनों प्रेमियों ने अपनी प्रेमिकाओं को बदल कर उनका रेप किया। यही नहीं अपने दो अन्य दोस्तों से भी दोनों युवतियों का गैंगरेप कराया। गैंगरेप की शिकार लड़कियों में एक नाबालिग़ है। पुलिस ने गैंगरेप का मामला दर्ज कर तीन युवकों को गिरफ्तार किया है जबकि एक फ़रार है। गिरफ़्तार युवकों मे दो छात्र और दो निजी कम्पनी के एक्ज़ीक्यूटिव हैं। पुलिस के मुताबिक लड़कियों के साथ बीती रात गे्रनो के एन.आर.आई. सिटी के एक फ़्लैट में गैंगरेप किया गया। लेकिन घटना से पहले लड़कियां अपनी मर्ज़ी से खुर्जा से गे्रनो आई थीं। मैडिकल जांच में भी रेप की पुष्टि हो गइ है। दोनों पीड़ित लड़कियां पुलिसकर्मियों की बेटियां है। आॅरकुट के माध्यम से दोनों युवतियों को पूरे भरोसे में लेने के बाद शुक्रवार रात दीपक व प्रशांत ने फोन कर खुर्जा में पढ़ने वाली अपनी-अपनी गर्लफ्रेंड को अपने दोस्तों के फ़्लैट पर बुला लिया। नोएडा की चमक-धमक ने युवतियों को अंधा कर दिया। उन्होंने ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा कि उनकी अस्मत से इस कदर खिलवाड़ होगा। प्यार के भूत में लड़कियां किसी सहेली के घर जाने का बहाना बनाकर अपने पे्रमियों के पास चली गईं। शुक्रवार रात इन लोगों ने प्रेमियों के संग शारीरिक संबंध बनाए। इसी बीच प्रेमी प्रशांत व दीपक ने फोन कर अपने दोस्तों जितेन्द्र और विक्की को बुला लिया। हालांकि लड़कियां इन युवकों को भी जानती थीं, लिहाजा उनके आने पर युवतियों ने विरोध नहीं किया। लेकिन इस बार दोस्तों के दिल में हवस भरी हुई थी। उन्होंने आते ही दोनो को बंधक बना लिया। पूरी रात बारी-बारी से युवतियों के साथ गैंगरेप किया। यही नहीं दोनों दोस्तों ने भी अपनी प्रेमिकाओं को बदलकर रेप किया। घटना में एक नाबालिग लड़की की हालत खराब हो गई, लिहाजा सुबह जितेन्द्र ने उसे काफी समझा-बुझाकर बाइक पर बैठाया और दादरी स्टेशन छोड़ने जाने लगा। दोना लड़कियां काफ़ी डरी व सहमी थीं। लेकिन आमका फाटक पर एक पुलिस जिप्सी को देख युवतियों ने साहस करते हुए चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया। पुलिस ने बाइक को रोक लिया और लड़की की आपबीती सुनने पर लड़कों को गिरफ़्तार कर लिया। लड़की के बयान के बाद कासना पुलिस ने एन.आर.आई. सिटी में छापा मारा और दीपक व प्रशांत को गिरफ़्तार कर लिया जबकि घटना की भनक लगते ही विक्की फरार हो गया। एस.एस.पी. गौतमबुद्धनगर ने बताया कि लड़कियों की शिकायत पर मामला गैंगरेप में दर्ज किया गया है। दोनो लड़कियां अपनी मर्ज़ी से पहले बस में बैठ सिकन्द्राबाद आई और फिर दोस्तों के साथ कार में बैठकर फ़्लैट पर गई। उन्हें यह नहीं पता था कि वहां दो अन्य साथी भी होंगे जो उनके साथ ऐसे वाक़ये को अंजाम देंगे। एस.एस.पी. ने पुष्टि की कि इनमें से एक लड़की नाबालिग़ भी है।

संभ्रंात परिवारों के हैं चारों युवक

गैंगरेप में शामिल चारों युवकों में ऐसा कोई भी नहीं था, जिसने अच्छी-खासी तालीम न पाई हो। चारों जिस परिवार से ताल्लुक रखते हैं, उनका अपराध से दूर तक कोई वास्ता नहीं है। गिरफ्तार जीतू उर्फ जितेन्द्र नोएडा में रिलायंस कम्पनी में सेल्स मैनेजर है जबकि फ़रार विक्की एक प्रतिष्ठि कम्पनी में रीजनल हेड बताया जा रहा है। इसके अलावा दीपक एनीमेशन का तृतीय वर्ष का छात्र है और प्रशांत ग्रेनो के कॉलेज में बीबीए तीसरे वर्ष का छात्र है। हिन्दुस्तान, अंक, सोमवार 26.04.2010 से साभार
 इसलाम की शिक्षाएं ऐसे हादसों से रक्षा करती हैं। लड़के-लड़कियों का उन्मुक्त मिलन और प्रचलित ढंग की सह-शिक्षा इसलाम में वर्जित है जब तक इस व्यवस्था को नहीं बदला जायेगा। ऐसे हादसे होते रहेंगे। अपनी औलाद की हिफ़ाज़त की ख़ातिर इसलामी नियमों की जानकारी हासिल कीजिए और अपने बच्चों को भी दीजिए।
@ जागो हिन्दू जागो ! देखो अपने केसरिया वीर्यवानों की लाल सफ़ेद करतूत और दिखाओ कि आपने कितनी पोस्ट्स में ऐसे दरिन्दों की भत्र्सना की है ?

@पी.सी.गोदियाल जी! आप मदरसे के पिटे हुए बच्चे को तो तुरन्त कैश करते हैं लेकिन आप यह बताएं कि बुरक़ा न पहनने वाली और गोल गप्पों को सरलतापूर्वक अपने मुख में ग्रहण करने में सक्षम इन यूनिवर्सिटी बालाओं के प्रति आपने संवेदना प्रकट करना क्यों ज़रूरी न समझा ?

@आक़ा ए महाजाल ! क्या ऐसी घटनाओं को , जिनमें कि मुस्लिम युवक लिप्त न हों , लव फ़साद का नाम दिया जा सकता है ?

@बहन फ़िरदौस ! अगर वस्त्र या बुरक़ा तमाम बुराईयों की जड़ है तो ये कन्याएं तो बुरक़ा न पहनती थीं और जो थोड़ा बहुत पहनती भी थीं उसे भी अपने हाथों से ही उतार चुकी थीं , फिर इनके साथ इतना बुरा क्यों हुआ ?

@फ़ौज़िया जी ! कौमार्य झिल्ली तो हिम्नोप्लास्टी से दोबारा बनाई जा सकती है लेकिन इनके मन का घाव किस सर्जरी से ठीक किया जा सकता है ? पवित्रता की परवाह तो आपको है ही नहीं ।

@भाई अमित ! इस कलियुग की पुलिस ने बलात्कारियों को तुरन्त अन्दर कर दिया जबकि तथाकथित ‘सतयुगादि‘ में श्राप तो मिलता था बेचारी अहल्या को और बलात्कारी ‘देवता‘ बने दनदनाते घूमते थे । बताइये कि वे युग अच्छे थे या वर्तमान युग ?

@मनुज जी , महक जी ! आप भी आइये और अपने विचार बताइये ।

@परम आर्य जी , अजित वडनेरकर जी , इक़बाल ज़फ़र साहब , कामदर्शी जी , गुलशन , गुलज़ार ज़ाहिद देवबन्दी , ज्योत्स्ना जी , लावंण्यम् जी और रचना जी ! आप सभी आएं और वर्तमान हालात में नारी सुरक्षा के व्यवहारिक उपाय बताएं ।भाई शाहनवाज़ और भाई अयाज़ ! बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के कारण और सटीक निवारण बताने की मेहरबानी फ़रमायें ।

@सफ़त भाई ! क्या आप कुछ हिफ़ाज़ती तदबीर बता सकते हैं , जिन्हें अपनाकर भारतीय बालाएं अपनी अस्मत की हिफ़ाज़त कर सकें ?

@रतन पाल जी ! आप मुर्दा ज़मीरों के दरम्यान सचमुच एक ज़िन्दा ज़मीर इन्सान हैं । अगर आपकी तरह ग़लत को ग़लत कहने वाले 20 आदमी भी यहां हो गये तो फिर किसी अनवर जमाल को ऐसी पोस्ट लिखने की ज़रूरत न बचेगी । आप से क्षमा चाहता हूं ।

@आनन्द पाण्डेय जी ! आप मुझसे जवाब चाहते थे न ? उम्मीद है कि उपरोक्त पंक्तियों में आपको अपना जवाब मिल गया होगा । अब आप यह बताएं कि क्या वैदिक काल में भी जार कर्म और बलात्कार आदि हुआ करते थे ? वेद कब की रचना हैं ? और बलात्कार का इतिहास कितना पुराना है ? आप वेदों पर रिसर्च कर रहे हैं आपसे सही जवाब मिलने की उम्मीद है ।
@जनाब उमर कैरानवी साहब ! जब ये लोग बता चुकें तो आप यह बताना कि किसके बताये पर चलना समस्या का बेहतर समाधान है ?

@प्रिय प्रवीण जी ! आप आज़ाद हैं जो चाहे बताएं और जब चाहे बताएं ।

Monday, May 3, 2010

सर्मपण से होता है दुखों का अन्त Submission to God


मनुष्य का मार्ग और धर्म
पालनहार प्रभु ने मनुष्य की रचना दुख भोगने के लिए नहीं की है। दुख तो मनुष्य तब भोगता है जब वह ‘मार्ग’ से विचलित हो जाता है। मार्ग पर चलना ही मनुष्य का कर्तव्य और धर्म है। मार्ग से हटना अज्ञान और अधर्म है जो सारे दूखों का मूल है। पालनहार प्रभु ने अपनी दया से मनुष्य की रचना की उसे ‘मार्ग’ दिखाया ताकि वह निरन्तर ज्ञान के द्वारा विकास और आनन्द के सोपान तय करता हुआ उस पद को प्राप्त कर ले जहाँ रोग,शोक, भय और मृत्यु की परछाइयाँ तक उसे न छू सकें। मार्ग सरल है, धर्म स्वाभाविक है। इसके लिए अप्राकृतिक और कष्टदायक साधनाओं को करने की नहीं बल्कि उन्हें छोड़ने की ज़रूरत है।
ईश्वर प्राप्ति सरल है
ईश्वर सबको सर्वत्र उपलब्ध है। केवल उसके बोध और स्मृति की ज़रूरत है। पवित्र कुरआन इनसान की हर ज़रूरत को पूरा करता है। इसकी शिक्षाएं स्पष्ट,सरल हैं और वर्तमान काल में आसानी से उनका पालन हो सकता है। पवित्र कुरआन की रचना किसी मनुष्य के द्वारा किया जाना संभव नहीं है। इसके विषयों की व्यापकता और प्रामाणिकता देखकर कोई भी व्यक्ति आसानी से यह जान सकता है कि इसका एक-एक शब्द सत्य है। आधुनिक वैज्ञानिक खोजों के बाद भी पवित्र कुरआन में वर्णित कोई भी तथ्य गलत नहीं पाया गया बल्कि उनकी सत्यता ही प्रमाणित हुई है। कुरआन की शब्द योजना में छिपी गणितीय योजना भी उसकी सत्यता का एक ऐसा अकाट्य प्रमाण है जिसे कोई भी व्यक्ति जाँच परख सकता है।
प्राचीन धर्म का सीधा मार्ग
ईश्वर का नाम लेने मात्र से ही कोई व्यक्ति दुखों से मुक्ति नहीं पा सकता जब तक कि वह ईश्वर के निश्चित किये हुए मार्ग पर न चले। पवित्र कुरआन किसी नये ईश्वर,नये धर्म और नये मार्ग की शिक्षा नहीं देता। बल्कि प्राचीन ऋषियों के लुप्त हो गए मार्ग की ही शिक्षा देता है और उसी मार्ग पर चलने हेतु प्रार्थना करना सिखाता है।
‘हमें सीधे मार्ग पर चला, उन लोगों का मार्ग जिन पर तूने कृपा की।’
(पवित्र कुरआन 1:5-6)
ईश्वर की उपासना की सही रीति
मनुष्य दुखों से मुक्ति पा सकता है। लेकिन यह इस पर निर्भर है कि वह ईश्वर को अपना मार्गदर्शक स्वीकार करना कब सीखेगा?
वह पवित्र कुरआन की सत्यता को कब मानेगा? और सामाजिक कुरीतियों और धर्मिक पाखण्डों का व्यवहारतः उन्मूलन करने वाले अन्तिम सन्देष्टा हज़रत मुहम्मद (स.) को अपना आदर्श मानकर जीवन गुज़ारना कब सीखेगा?
सर्मपण से होता है दुखों का अन्त
ईश्वर सर्वशक्तिमान है वह आपके दुखों का अन्त करने की शक्ति रखता है। अपने जीवन की बागडोर उसे सौंपकर तो देखिये। पूर्वाग्रह,द्वेष और संकीर्णता के कारण सत्य का इनकार करके कष्ट भोगना उचित नहीं है। उठिये,जागिये और ईश्वर का वरदान पाने के लिए उसकी सुरक्षित वाणी पवित्र कुरआन का स्वागत कीजिए। भारत को शान्त समृद्ध और विश्व गुरू बनाने का उपाय भी यही है।
क्या कोई भी आदमी दुःख, पाप और निराशा से मुक्ति के लिये इससे ज़्यादा बेहतर, सरल और ईश्वर की ओर से अवतरित किसी मार्ग या ग्रन्थ के बारे में मानवता को बता सकता है?

Sunday, May 2, 2010

जाति या वर्ण का विचार न कर , सबके प्रति समान भाव-बन्धुत्व का प्रदर्शन-यही इस्लाम की महत्ता है , इसी में उसकी श्रेष्ठता है । - Swami Vivekanand


स्वामी विवेकानन्द जी को यदि भारतीय संस्कृति मनीषियों का सिरमौर कहा जाये तो कुछ अनुचित न होगा । उनका कथन है कि पैग़म्बर साहब ने अपने जीवन के दृष्टान्त से यह दिखला दिया है कि मुसलमान मात्र में सम्पूर्ण साम्य एवं भ्रातृ-भाव रहना चाहिये । उनके धर्म जाति , मतामत , वर्ण , लिंग , आदि पर आधारित भेदों के लिए कोई स्थान न था ।

तुर्किस्तान का सुल्तान अफ्ऱीक़ा के बाज़ार से एक हब्शी गुलाम ख़रीदकर ज़ंजीरों में बांधकर अपने देश में ला सकता है । किन्तु यदि यही गुलाम इस्लाम को अपना ले और उपयुक्त गुणों से विभूषित हो तो उसे तुर्की की शहज़ादी से निकाह करने का भी हक़ मिल जाता है । मुसलमानों की इस उदारता के साथ ज़रा इस देश (अमेरिका) में हब्शियों (नीग्रो) एवं रेड इंडियन लोगों के प्रति किये जाने वाले घृणापूर्ण व्यवहार की तुलना तो करो ।

हिन्दू भी और क्या करते हैं ?

यदि तुम्हारे देश का कोई धर्म-प्रचारक (मिशनरी) भूलकर किसी ‘सनातनी‘ हिन्दू के भोजन को स्पर्श कर ले तो वह उसे अशुद्ध कहकर फेंक देगा । हमारा दर्शन उच्च और उदार होते हुए भी हमारा आचार हमारी कितनी दुर्बलता का परिचायक है !किन्तु अन्य धर्मावलंबियों की तुलना में हम इस दिशा में मुसलमानों को अत्यन्त प्रगतिशील पाते हैं । जाति या वर्ण का विचार न कर , सबके प्रति समान भाव-बन्धुत्व का प्रदर्शन-यही इस्लाम की महत्ता है , इसी में उसकी श्रेष्ठता है ।

( विवेकानन्द साहित्य , सप्तम खंड , पृष्ठ 192 , प्रकाशक : अद्वैत आश्रम , 5 डिही एण्टाली रोड , कलकत्ता - 14 )

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खान-पान के नियमों की अवहेलना करने वाले अपने मत से भी अनभिज्ञ वासनाजीवियों के लिए यह बात आश्चर्यजनक हो सकती है कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. के शरीर से निकलने वाले पसीना आदि भी सुगन्धित होता था । जबकि शरीर से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों में सुगन्ध का पाया जाना कोई असंभव बात नहीं है । आप किसी भी आयुर्वेदिक या प्राकृतिक चिकित्सक से इस बात की पुष्टि कर सकते हैं । गायत्री परिवार के संस्थापक श्री राम शर्मा आचार्य जी ने अपने ग्रन्थों में बताया है कि कई भारतीय सन्तों को भी यह सिद्धि प्राप्त थी । यह कोई बहुत मुश्किल या असंभव बात नहीं है अगर आप चाहें तो आप यह प्रयोग खुद पर भी करके देख सकते हैं । इसका आसान तरीक़ा यह है कि आप एक बार मानवता के आदर्श पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. के खान-पान , शौच , शुद्धि , उपासना और सोने जागने का विवरण पढ़कर उसका अनुसरण करके देख लीजिये । आपका पूरा वुजूद महक उठेगा और आपके वुजूद से जो कुछ निकलेगा वह भी सुगन्धित ही होगा । यह मेरा वादा भी है और मेरा दावा भी क्योंकि यह मेरा ईमान भी है और स्वयं मेरा निजि अनुभव भी । ध्यान रहे कि हज़रत मुहम्मद साहब स. ने कभी पेट भर नहीं खाया , कभी लहसुन जैसी बदबू पैदा करने वाली चीज़ नहीं खाई और उनके चेहरे पर सदैव मुस्कान रहती थी चाहे हालात कितने भी कठिन क्यों न हों ! मुस्कुराहट के फ़ायदे अब वैज्ञानिकों ने जगज़ाहिर कर ही दिये हैं । यह विषय एक पूरी पोस्ट चाहता है ।नेट की सुविधा घर पर उपलब्ध होने के बाद इस पर प्रकाश डालने का प्रयास किया जाएगा ।
इन्शाअल्लाह !

Saturday, May 1, 2010

परमेश्वर ने सृष्टि के आरम्भ से ही मानवजाति के मार्गदर्शन के लिए अपने दूत और मार्गदर्शक भेजे हैं । Divine Chain of Divine Messengers .


अल्लज़ीना यूमिनूना बिल ग़ैइबि व यूक़ीमूनस्सलाता व मिम्मा रज़क़नाहुम युनफ़िक़ून , वल्लज़ीना यूमिनूना बिमा उन्ज़िला इलैइका वमा उन्ज़िला मिन क़ब्लिका वबिल आखि़रतिहुम यूक़िनून । पवित्र कुरआन , 2,3-4


(ये वे लोग हैं) जो

1- अनदेखे ख़ुदा पर ईमान लाते हैं , और


2- (उसी की) इबादत में में मशग़ूल रहते हैं , और


3- परमेश्वर ने उन्हें जो (भौतिक , मानसिक , चारित्रिक , आध्यात्मिक ग़र्ज़ तमाम) योग्यताएं प्रदान की हैं , वे (उसकी और उसके बन्दों की राह में) ख़र्च करते हैं , और वे लोग जो


4- उस ‘ज्ञान‘ पर विश्वास करते हैं जो तुम्हारी तरफ़ अवतरित किया गया , और


5- (उनका यह विश्वास है कि परमेश्वर ने सृष्टि के आरम्भ से ही मानवजाति के मार्गदर्शन के लिए अपने दूत और मार्गदर्शक भेजे हैं । इसलिए) वे पिछले सभी (ईशदूतों और उन पर) अवतरित ईशज्ञान पर भी विश्वास रखते हैं , और

6- उन्हें परलोक पर भी यक़ीन है । (जब लोगों के पाप-पुण्य के अनुसार उन्हें यातना और पुरस्कार दिया जाएगा ।) यही शिक्षा सभी धर्म-मतों की है और यही वह मार्ग है जो इनसान को उसकी सच्ची मन्ज़िल तक पहुंचाने वाला है ।
लेखक : प्रोफ़ेसर मालिक राम