सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Sunday, September 25, 2011

जानिए कि परम धर्म क्या है ?

चीजें बोलती हैं, हवा, पानी और रौशनी हर चीज़ बोलती है लेकिन वे हिंदी या अंग्रेज़ी  में नहीं बोलती हैं, उनकी अपनी ज बान है, वे अपनी ज़बान में बोलती हैं और उनके बोलने को सुनते वे लोग हैं जिनके कान हैं यानि ऐसे लोग जो कि उनकी भाषा की समझ रखते हैं। वे उनकी बात भी समझते हैं और उनके मूड को भी भांप लेते हैं।
हवा और धूल भरी आंधी उठते देखकर बूढ़े  तजर्बेकार लोग बारिश होने की भविष्यवाणी कर देते हैं।
चीज़ें अपनी क्रिया दर्शाती हैं और लोग उनकी क्रिया को उनकी तरफ  से एक संदेश और चेतावनी के रूप में पढ ते हैं। जब से मानव जाति की शुरूआत हुई है तब से ही वह अपने आस पास की चीज़ें का अध्ययन करता हुआ आ रहा है।
ये अध्ययनशील लोग वैज्ञानिक कहलाए।
कुछ लोगों ने अपने शरीर का भी अध्ययन किया और उसकी क्रियाओं को जाना-समझा, ये लोग वैद्य, हकीम और डॉक्टर कहलाए।
कुछ लोगों ने मन का भी अध्ययन किया, ये लोग सूफ़ी, संत और योगी कहलाए।
कुछ लोग और ज् यादा गहराई में गए, उन्होंने इंसान और उसके आस पास की सारी चीज़ों को एक अलग तल पर जाना, ये लोग ऋषि और पैग म्बर कहलाए।
हिंदुस्तान में कितने सौ या कितने हज़ार ऋषि हुए हैं, आज कहना मुश्किल है लेकिन हुए ज़रूर हैं, यह ज़रूर कहा जा सकता है।
चाहे आज उनके बारे में पूरी और सही जानकारी मौजूद न हो लेकिन लोग आज भी अच्छे कामों को अच्छा समझते हैं और उन्हें करते हैं तो यह उनकी शिक्षा का ही नतीजा है और फिर ऐसा केवल हिंदुस्तान में ही नहीं है बल्कि सारी दुनिया में यही तरीक़ा है।
अच्छाई का यह तरीक़ा  ही धर्म है।

खुदगर्ज़  और कमज़ोर राजनेताओं ने एक धरती को हजारों टुकड़ों में बांट डाला है लेकिन उनके बांटने से धरती हजारों नहीं बन गई हैं। धरती आज भी एक है और हमारी बनाई राजनीतिक सीमाओं को प्रकृति ने कभी नहीं माना, वह आज भी नहीं मानती है।
भलाई के तरीक़े को, धर्म को, जो कभी एक ही था, उसे भी कभी नासमझी की वजह से तो कभी लालच और नफ रत की वजह से हमने बांटा और बार बार बांटा लेकिन हमारे बांटने की वजह से वह बंट नहीं गया है।
धर्म आज भी एक ही है।
परोपकार धर्म है और ऐसा धर्म है कि इस जैसा धर्म दूसरा नहीं है। यह ऐसा धर्म है कि इससे कोई नास्तिक भी इंकार नहीं कर सकता।
नास्तिक जिस बात से इंकार करता है, वह शोषण और अन्याय होता है, जिसे धर्म का नाम लेकर किया जाता है।
धर्म के नाम पर अधर्म किया जाता है और आज से नहीं बल्कि यह पहले से होता आ रहा है।
न तो हर आदमी धार्मिक है और न ही हरेक आदमी का हरेक काम धर्म कहला सकता है।
धर्म वही है जो कल्याण करता है।
किसी भी मुल्क में समझदार नर-नारियों का कोई भी समूह जब भी समाज की सामूहिक उन्नति के लिए कुछ नियम-क़ायदे  बनाएंगा तो उनका बहुत बड़ा हिस्सा हरेक धर्म-मत में पहले से मौजूद मिलेगा।
क्या यह ताज्जुब की बात नहीं है ?
हां, कुछ बातें उनसे टकराती हुई भी मिल सकती हैं। किसी जगह ये बातें कुछ होंगी और किसी जगह कुछ लेकिन इन सबका नतीजा एक समान होगा कि ये बातें उन लोगों के जीवन को नष्ट कर रही होंगी, जो कि इन पर चल रहे होंगे और अपना जीवन नष्ट होते देखकर लोगों ने इन पर चलना भी अब छोड  दिया होगा।
इन बातों को कब किसने शुरू किया, आज ठीक से यह भी नहीं कहा जा सकता।
ऐसी बातों को लेकर अपने पूर्वजों को, अपने महापुरूषों को गालियां केवल वही दे सकता है, जिसे भले-बुरे की तमीज  ही नहीं है।
ऐसे लोग जो धर्म और अधर्म तक का अंतर नहीं जानते वे अधर्म के काम को धर्म के नाम पर होता देखकर उसे भी धर्म समझ लेते हैं और फिर धर्म को कोसना शुरू कर देते हैं।
यह बिल्कुल ऐसे है जैसे कि एक शरीफ़ आदमी का 'मास्क' लगाकर कोई आदमी किसी का मर्डर करके भाग जाए और पब्लिक भागते हुए उसकी शक्ल देख ले और जा चढ़े शरीफ  आदमी के घर और उसे पीट पीट कर मार डाले।
यह नासमझों का काम है, इसे न्याय नहीं अन्याय कहा जाएगा।
इसे समाज सुधार नहीं बल्कि इसे समाज में फ साद का नाम दिया जाएगा।
जो धर्म के नाम पर अधर्म कर रहे हैं, दूसरों को दबा रहे हैं, उन्हें अपमानित कर रहे हैं, वे भी समाज में फ़साद कर रहे हैं और जो लोग अधर्मी लोगों के कामों के कारण धर्मी महापुरूषों को गालियां दे रहे हैं, उनकी खिल्ली उड़ा रहे हैं, वे भी समाज में फ़साद ही फैला रहे हैं।
जो इंसान ख़ामोश चीज़ों तक की ज बान जानता हो, वह इतना बहरा कैसे हो जाता है कि धर्म की उन हज़ारों  ठीक बातों को वह कभी सुनता ही नहीं, जिनका चर्चा दुनिया के हरेक धर्म-मत के ग्रंथ में मिलता है लेकिन अपना सारा ज़ोर उन बातों पर लगा देता है जिन पर सारी दुनिया तो क्या ख़ुद उस धर्म-मत के मानने वाले भी एक मत नहीं हैं।
यह कैसा अन्याय है ?
यह कैसा अंधापन है ?
कैसे मूर्ख हैं वे, जो इन अंधों को अपना साथी और अपना गुरू बनाते हैं ?
अपने अंधेपन को ये जानते तक नहीं हैं और कोई बताए तो मानते भी नहीं हैं।
जो आंख वाले हैं, उनकी नैतिक जि म्मेदारी है कि वे अंधों को मार्ग दिखाएं।
अंधों को मार्ग दिखाना परोपकार है, धर्म है बल्कि परम धर्म है।
कौन है जो इस धर्म की आलोचना कर सके ?


Friday, September 2, 2011

कट्टरपंथी कौन होता है ?

हमारा संवाद नवभारत टाइम्स की साइट पर
दो पोस्ट्स पर ये कुछ कमेंट्स हमने अलग अलग लोगों के सवालों जवाब में दिए हैं। रिकॉर्ड रखने की ग़र्ज़ से इन्हें एक पोस्ट की शक्ल दी जा रही है।
हो सकता है कि इनमें से कोई सवाल आपको भी परेशान करता हो।
नीचे दोनों पोस्ट्स के लिंक भी दिये जा रहे हैं ताकि पूरा विवरण आप वहां देख सकें।

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देवबंद में ईद की नमाज़ सकुशल संपन्न हुई
देवबंद की सरज़मीन प्यार मुहब्बत की सरज़मीन है। ईदगाह के बाहर ही बहुत से पंडाल लगाकर हिन्दू भाई बैठ जाते हैं और जैसे मुसलमान भाई नमाज़ अदा करके निकलते हैं तो वे उनसे गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देते हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं के अलावा राजनीतिक पार्टियों के लीडर भी ईद मिलन के आते हैं और दिन भर अलग अलग जगहों पर ईद मिलन के औपचारिक और अनौपचारिक कार्यक्रम चलते ही रहते हैं बल्कि कई बड़े आयोजन तो कई दिन बाद तक होते रहते हैं।
इस साल भी प्यार मुहब्बत की यही ख़ुशनुमा फ़िज़ा देखने में आ रही है। कोई हिन्दू भाई अपने मुसलमान दोस्तों के घर ईद मिलने जा रहा है और कहीं कोई मुसलमान अपने हिन्दू दोस्तों के घर शीर लेकर जा रहा है और उसका मक़सद उनकी मां से दुआ प्यार पाना भी होता है।
दुनिया भर में देवबंद की जो छवि है,  वह यहां आकर एकदम ही उलट जाती है।
बड़ा अद्भुत समां है।
आम तौर पर कुछ लोग कहते हैं कि धर्म नफ़रत फैलाता है और अपने अनुयायियों को संकीर्ण बनाता है लेकिन ईद के अवसर पर हर जगह यह धारण ध्वस्त होते देखी जा सकती है और देवबंद का आपसी सद्भाव देख लिया जाए तो बहुत लोग यह जान जाएंगे कि इंसान को इंसान से जोड़ने वाली ताक़त सिर्फ़ धर्म के अंदर ही है।
जो लोग धर्म के बारे में लिखने पढ़ने के शौक़ीन हों या फिर वे सामाजिक संघर्ष के विराम पर चिंतन कर रहे हों, उन्हें चाहिए कि वे एक नज़र देवबंद के हिन्दू मुस्लिम रिलेशनशिप का अध्ययन ज़रूर कर लें।
आगरा में अगर पत्थर का ताजमहल है तो यहां सचमुच मुहब्बत का ताजमहल है।
हिंदू मुस्लिम की मुहब्बत का ताजमहल है देवबंद।
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कट्टरपंथी कौन होता है ?
मेरे दोस्त हौसलेवाला ! आपको सादर अभिवादन ,
कट्टरपंथी वह होता है जो सत्य आने के बाद भी सत्य को नहीं स्वीकारता बल्कि यह चाहता है जो उसका विचार है, वही सच मान लिया जाए बिना किसी तर्क के। जिस समाज में यह चलन आम हो जाए, वह विदेशियों का ग़ुलाम हो जाता है या फिर आपस में ही गृहयुद्ध और दंगे शुरू हो जाते हैं।
इस प्रवृत्ति के लोग धर्म में होते हैं तो धर्म की मूल भावना का लोप हो जाता है और कट्टरता का दौर शुरू हो जाता है। इस तरह के लोग जब राजनीति में आते हैं तो वहां से भी सत्य और न्याय का सफ़ाया करके बस अपने लिए ही सारी सुविधाएं एकत्र कर लेते हैं।
धर्म की किताब हो या राजनीति की किताब, ये इंसानों के हाथों के हाथों में ही रहती हैं और बहुत कम ऐसा हुआ कि उनमें इन कट्टरपंथियों ने अपनी सुविधानुसार बदलाव न किए हों !
धर्म की किताबों जो अनाप शनाप आपको लिखा हुआ मिलता है, वह ऐसे ही ख़ुदग़र्ज़ लोगों का लिखा हुआ मिलता है।
आप धर्म को तबाही का ज़िम्मेदार बता रहे हैं जबकि हक़ीक़त यह है कि धर्म ने ही आपको यह बताया है कि हौसले वाला, यह तेरी मां है और यह तेरी बेटी है और इनसे रिश्ते की मर्यादा यह है, इसे कभी भंग मत करना और आपने कभी धर्म की बताई हुई मर्यादा को भंग भी नहीं किया।
अगर आप धर्म को त्याग देंगे तो फिर आपको रिश्तों की पवित्रता का ज्ञान कहां से मिलेगा ?
रही बात युवाओं की तो आप युवाओं के पास बैठकर देखना, ये किसी उसूल ज़ाब्ते के पाबंद कम ही मिलेंगे।
आज का युवा अपने लिए ज़्यादा से ज़्यादा सुविधाएं जुटाने के लिए ग़लत काम भी कर सकता है और कर रहा है। ऐसे में युवाओं से अच्छी अच्छी आशाएं पालना व्यर्थ है जब तक कि आप उन्हें सही और ग़लत की तमीज़ न दे दें और उन्हें अनुशासन की पाबंदी न करना सिखा दें।
धर्म को छोड़ने के बाद आप नहीं बता सकते कि सही क्या है और ग़लत क्या है ?
आप में और मुझमें यही ख़ास अंतर है कि मैं धर्म में मिला दिए गए क्षेपक को जानता हूं और उन्हें अलग भी कर सकता हूं जबकि आप धूल के कणों की ख़ातिर गेहूं की पूरी बोरी ही फेंक रहे हैं।
यह ठीक नहीं है।
एल. आर. बाली जी का साहित्य हमने भी पढ़ा है। उनके अलावा श्री सुरेन्द्र कुमार शर्मा अज्ञात की पुस्तकें, सरिता मुक्ता रिप्रिंट और बहुत सा दलित साहित्य इस समय भी हमारे कम्प्यूटर के पास ही है।
हमें बेहतर समाज बनाने के लिए कुछ उसूलों की नितांत आवश्यकता है और इसका इंकार बाबा साहब अंबेडकर जी ने भी नहीं किया है।
हौसला अच्छी बात है लेकिन संयम भी ज़रूरी है।
आप एक विद्वान आदमी है, आशा है कि आप हमारी बात पर विचार करेंगे।

शुक्रिया !
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पाखंडियों का लिखा धर्म नहीं होता
डा. अंबेडकर एक विद्वान आदमी थे। हम उनका आदर करते हैं। हम ही क्या उनका आदर तो आजकल आरएसएस के लोगों को भी करना पड़ रहा है।
ब्राह्मणवादी आर्यों ने भारत पर हमला करके यहां की उन्नत सभ्यता को नष्ट कर दिया जिसका वर्णन वेदों में लिखा मिलता है आज भी। उनका यह काम धर्म के अनुकूल नहीं था लेकिन किसी मुसलमान को यहां बोलना इसलिए उचित नहीं है क्योंकि दलितों की लात तो पाखंडवादी लोग इस उम्मीद में खा रहे हैं कि ज़रा संक्रमण काल चल रहा है, यह बीत जाए बच्चू तेरी हेकड़ी तब निकालेंगे।
इसके बावजूद हम कहते हैं कि अगर हिंदू धर्म से माफ़ियाओं का लिखा हुआ निकाल दिया जाए तो हिंदू धर्म की असल तस्वीर सामने आ जाएगी और उस पर किसी को कोई ऐतराज़ नहीं होगा।

प्यार से बैठकर आपस में तय कर लीजिए कि धर्म असल में क्या है ?
ज़ुल्म ज़्यादती और शोषण की बातों को अब धर्म कोई मान ही नहीं सकता।

हौसलेवाला जी से हमारी विनती यही है कि इस वेदमंत्र के अर्थ से सभी वेदाचार्य सहमत नहीं हैं।
स्वामी दयानंद जी ने इसका जो अर्थ किया है, उस पर भी एक नज़र डाल लेते।

बहरहाल यह बहस तो चलती ही रहेगी।
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सबके साथ भला बर्ताव करो चाहे उसका धर्म कुछ भी हो -इस्लाम
भाई एस. प्रेम जी ! आप लिंक पर जाकर पढ़ते तो जवाब भी आपको मिल जाता लेकिन ख़ैर।
जिस आयत को आप यहां अधूरा पेश कर रहे हैं यह आततायी हमलावर नास्तिकों के संबंध में है कि जब वे हमला करें तो उन्हें पीठ दिखाकर भागने के बजाय उनसे युद्ध करो।
जो युद्ध न करें, उन्हें परेशान करने वाला मुसलमान दुनिया में इस्लामी शरीअत की ओर से सज़ा का मुस्तहिक़ है और परलोक में यातना का।
आपने आयतें भी चाही हैं तो आपको आयतों का अनुवाद भी दे रहे हैं।

‘पड़ोसी‘ में मुस्लिम और ग़ैर मुस्लिम सभी पड़ोसी शामिल हैं।
आशा है कि आपको संतुष्टि मिल गई होगी।
आपको यह जानकर और भी ज़्यादा ख़ुशी होगी कि आयतों का यह अनुवाद लाला काशीराम चावला जी के लेख से लिया गया है।

शुक्रिया !
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हर सवाल का जवाब है इस्लाम में
आदरणीय एस. प्रेम जी ! पिछली पोस्ट पर आपके सवाल का जवाब दिया जा चुका है , आप जाकर देखिए तो सही और यह लिंक देख मत लेना कहीं आपके सिर में दर्द न हो जाय, धन्यवाद !
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मुसलमानों से नफ़रत भी करते हैं और फिर उनका वोट भी चाहिए ?
रामेश्वर झा जी ! मुसलमान से आपको इतनी नफ़रत क्यों है ?
कभी अपने दिल को टटोलना और सोचना कि नफ़रत की बोली बोलकर आप कौन सा फ़ायदा हासिल कर रहे हैं और कितने ज़्यादा फ़ायदे गंवा रहे हैं ?
शर्म आनी चाहिए आपको इतनी अच्छी पोस्ट पर भी ऐतराज़ करते हुए।
जब मुसलमानों से इतनी ही नफ़रत है तो फिर क्यो आ जाते हो उनसे वोट मांगने कि हमारी पार्टी को वोट देकर इसे केंद्र में ले आएं ?
ले आईये प्रदेश और केंद्र में ख़ुद अपने बूते।
अगर आज आपकी पार्टी की दुगर्ति हो रही है तो उसके पीछे यही मुसलमान से नफ़रत करना है।
नफ़रत पहले आप शूद्रों से करते रहे और करते तो उनसे अब भी हो लेकिन कह नहीं सकते।
कितने बेचारे हैं आप जैसे लोग ?
अपनी बेचारगी का मातम मनाना सीखिए भाई साहब !
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इस्लाम की मुख़ालिफ़त उसकी ओर आकर्षित कर रही है विश्व जन को
भैया भंडाफोड़ू उर्फ़ बी. एन. शर्मा पंडित जी ! आप यहां आते हैं तो कुछ रौनक़ सी हो जाती है। आप चिंतित न हों कि कौन क्या और क्यों सीख रहा है ?
अच्छी बातें अपनी तरफ़ ख़ुद ब ख़ुद खींच लेंगी।
आप भी हमारा ही प्रचार कर रहे हैं लेकिन अभी आप जानते नहीं हैं।
जिस दिन जानेंगे तब तक आप हमारा बहुत काम कर चुकेंगे।
कभी किसी विज्ञापन प्रचार एजेंसी वाले से पूछिएगा,
वह बताएगा कि नेगेटिव प्रचार भी पॉज़िटिव प्रचार की तरह ही प्रचार का एक तरीक़ा है जिसका अंतिम लाभ उसी को मिलता है जिसके विरूद्ध नेगेटिव प्रचार किया जा रहा है।
यह बात मैं आपको बताना तो नहीं चाहता था और न ही आज तक आपको बताई है लेकिन अब मैं संतुष्ट हूं कि आप न तो बात को समझेंगे और न ही अपनी राह से हटेंगे इसलिए बताने में कोई हर्जा नहीं है।
धन्यवाद !
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मुसलमानो ! तौबा करो और गुनाह छोड़ दो
भाई इस्लाम में तो कोई ग़लत बात है नहीं और अगर कोई परंपरा आपको ग़लत नज़र आ रही है तो वह या तो आपकी समझ का फेर है या फिर किसी मुस्लिम आलिम ने अपनी समझ से उसे शुरू किया होगा। ऐसी बातों को जो दीन में नई निकाल ली जाएं अपनी तरफ़ से , उन्हें ‘बिदअत‘ कहा जाता है और बिदअत करना गुनाह है। मुसलमानों की ज़िंदगी में आपको गुनाह मिल जाएगा।
कौन इंकार करता है।
इस्लाम की बुनियाद क़ुरआन पर है। मुसलमानों को चाहिए कि वे क़ुरआन की बुनियाद पर अपने अमल को बार बार चेक करके सुधारते रहें और गुनाहों को छोड़कर नेक-पाक ज़िंदगी गुज़ारें। 
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महापुरूषों को बुरा न कहो
मधुसूदन जी ! आपने बहुत अच्छी बात कही है। हक़ीक़त यही है कि महापुरूषों को बुरा नहीं कहना चाहिए।

आपका शुक्रिया !
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महापुरूषों की मज़ाक़ उड़ाना अज्ञान है
भाई तबरेज़ ख़ान साहब ! मज़ाक़ वही उड़ाता है जिसे सच्चाई की तलाश नहीं है बल्कि बस एक मस्ती में जी रहा है अहंकार में भरा हुआ। मौत ऐसे आदमी को जब सच के अंजाम की दुनिया में ले जाएगी तब यह वहां बहुत रोएगा कि
काश ! मैं मज़ाक़ उड़ाने के बजाय नेकी के उसूलों को सीख लेता और बुनियादी नेकी यह है कि आप किसी का मज़ाक़ न उड़ाएं किसी भी धर्म मत में कहीं नहीं लिखा है कि आप दूसरे मत की मान्यताओं का , महापुरूषों का मज़ाक़ उड़ाएं।
शुक्रिया !
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जनता को लड़ाने वाले धर्म की आड़ लिये बैठे हैं
प्रीति सिन्हा जी ! हक़ीक़त यही है कि अच्छे लोगों के बीच में बुरे और मक्कार आदमी भी होते हैं और धर्म की गददी पर बैठ कर इन्होंने लोगों की श्रृद्धा का नाजायज़ फ़ायदा उठाकर मंदिरों में दौलत के ढेर और लड़कियों की लाइनें लगा ली हैं। आज भी इनके आश्रमों में जाकर इनके राजसी वैभव को देखा जा सकता है। यह सब इन लोगों ने यही बताकर किया है कि हमारे महापुरूषों ने ये सब काम किए हैं इसलिए हम भी कर रहे हैं। नशा और व्याभिचार करना भी इन्होंने महापुरूषों के बारे में लिख दिया है और ख़ुद करते रहते हैं।
अपनी तरफ़ से ध्यान हटाने के लिए ये लोग जनता को संप्रदायों में बांटकर आपस में लड़ाते रहते हैं कि जनता अपना दुश्मन जनता को ही समझे, उन्हें कभी न समझे जो कि गुरूओं की गददी पर नाजायज़ तरीक़े से बैठ गए हैं।
ऐसे तत्व मुसलमानों में भी हैं।
देश और विश्व की मानवता के दुश्मन यही हैं।
धर्म की और महापुरूषों की निंदा की ज़रूरत नहीं है बल्कि ज़रूरत है इन धोखेबाज़ों को पहचानने की।
आपका शुक्रिया !
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महापुरूषों पर आरोप लगाना सबसे बड़ा जुर्म है
यहां पैग़ंबर साहब पर आरोप लगाने वाले मुजरिम आ गए हैं।
यही लोग हैं जिन्होंने बाल्मीकि रामायण में लिख दिया कि सीता जी की विवाह के समय आयु 9 वर्ष की थी।
इन जैसे ही मानसिक विकृति के शिकार लोगों ने मनु स्मृति को बदल डाला और उसमें लिख दिया कि लड़की का मासिक धर्म शुरू होने से पहले उसका विवाह कर दो वर्ना तो मां बाप अमुक अमुक नर्क में पड़ेंगे।
इन लोगों ने धर्म के नाम पर अपने क़ानून पेले और अपनी मर्ज़ी से नर्क की धमकियां इतनी दीं कि आज बुद्धिजीवी इनके नर्क की धमकी को सीरियसली ही नहीं लेता।
इन्हीं जैसे लोगों ने धर्मग्रंथों में लिख दिया कि देवताओं के गुरू बृहस्पति ने अपनी गर्भवती भाभी ममता के इंकार के बावजूद उसके साथ बलात्कार किया।
इन्हीं लोगों ने लिख दिया कि ब्रह्मा ने अपनी बेटी सरस्वती के साथ बलात्कार करके ये सारी योनियां उत्पन्न कीं।
अब यही लोग पैग़ंबर साहब स. के चरित्र हनन की कोशिश कर रहे हैं।
इन्हें डर रहता है कि अगर किसी भी महापुरूष का चरित्र सुरक्षित जनता तक पहुंच गया तो जनता उससे जुड़कर इनकी हक़ीक़त पहचान जाएगी।
...और जनता अब इनके छल कपट को जान चुकी है।
यही इनके अंत की शुरूआत है।

धर्म की जय हो।
सत्पुरूषों की जय हो।।
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दलितों के शोषण का इतिहास और उनके साथ किये जा रहे ताज़ा षडयंत्र
भाई हौसलेवाला जी ! दलितों के साथ हज़ारों साल से ज़ुल्म होता आया है और हो रहा है। सबसे ज़्यादा दुख की बात यह है कि यह ज़ुल्म उनके ऊपर ईश्वर और धर्म के नाम पर किया गया और फिर उनकी आवाज़ भी नहीं सुनी गई।
ये वर्णवादी कुप्रचारक ख़ुद को 800 साल से ग़ुलाम बताते हैं लेकिन ये नहीं बताते कि इन्होंने तो शूद्रों को ग़ुलाम का दर्जा भी नहीं दिया और आज भी यही कहते हैं कि संक्रमण काल चल रहा है आजकल। इसका मतलब यही है कि उन्हें यह उम्मीद है कि जल्दी ही फिर से ब्राह्मण को वही रूतबा मिल जाएगा जब कि वे सबको सज़ा दे देते थे लेकिन उन्हें किसी प्रकार की न तो सज़ा मिलती थी और न ही कोई कर देना पड़ता था और खाने के लिए कमाना भी नहीं पड़ता था बस कहीं से भिक्षा मांग लाए या किसी राजा से जाकर फ़रमाईश कर दी और वह उसे पूरी करने के लिए मजबूर हो जाता था वर्ना उसे अपने श्राप का भय दिखाते थे।
इन पाखंडी लोगों का पाखंड खुलना ही चाहिए।
आपका यह प्रयास बहुत उम्दा है और आपके हौसले को हम सलाम करते हैं लेकिन आपको थोड़ी सावधानी बरतनी चाहिए।
ईश्वर और महापुरूषों के बारे में जो ग़लत बातें इन मुफ़्ख़ोरों ने लिख दी हैं, वे ग़लत लिखी हैं और उनसे ईश्वर और महापुरूषों की निंदा होती है।
जबकि निंदा इन ज़ालिमों की होनी चाहिए।
ये लोग नाकाम होते देखकर आपको मुसलमानों से भिड़ाने के लिए मुस्लिम नाम से गालियां देंगे और तरह तरह के प्रपंच रचेंगे लेकिन हम आपको स्थिति से अवगत कराते रहेंगे।
आप हमें अपनी ईमेल भेजिए ताकि आपका पता अपनी मेल सूची में भी सुरक्षित रख सकूं।
मेरा पता यह है
और यह कि आप फ़ेसबुक पर भी अपना अकाउंट बनाएं और फिर वहां अपना ग्रुप बनाकर डिस्कशन करें।
आपकी शैली अब ठीक है,
इसके लिए मुबारकबाद।
कोई भी बात ऐसी नहीं है जिसे हम बिना भड़के और शालीनता से न कह सकें।

धन्यवाद !
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भाई इंडियन साहब ! आपको इस तरह लिंक बनाने का पूरा तरीक़ा सिखा दिया जाएगा।
इस पर मेरा एक लेख है। उसका लिंक आपको भेज दिया जाएगा।
आप मुझे अपना ईमेल पता भेज दीजिए नीचे दिए ईमेल पते पर :
eshvani@gmail.com
शुक्रिया !
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मत भिन्नता के बावजूद अपने तर्क शालीनता से रखने चाहिएं
पंडित बी. एन. शर्मा जी उर्फ़ भाई भंडाफोड़ू ! भारत एक महान देश है और हिंदी एक महान भाषा है और भाई विनोद हौसलेवाला हिंदी में लिखते हैं और भारत में रहते हैं। इसलिए उनके महान होने के पूरे चांस हैं। ऐसे महान हिंदी ब्लॉगर की शान में आप फ़रमा रहे हैं कि
‘होसलेवाला ! तुम एक मूर्ख प्रवृत्ति के इंसान हो।‘
क्या आप इसे अभद्र भाषा बोलना नहीं मानते ?
आप इस्लाम के खि़लाफ़ कब से लिख रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद हमने आपको कभी इस तरह से नहीं कहा।
आपने तो हमें ‘तुम‘ कह भी दिया है अपने इस कमेंट में लेकिन हमने आपको सदा आदर देकर ही बात की है और आपको ‘आप‘ कहकर ही संबोधित किया है।
आपको शालीनता हमसे सीखनी चाहिए।
आपने हमारे जितने ब्लॉग्स के नाम लिए हैं, आप उन पर आने वाले हिन्दू मुस्लिम और दलित भाईयों के, मर्दों के साथ औरतों के कमेंट पढ़िए, सब कह रहे हैं कि हां इन ब्लॉग्स पर अब प्यार ही बांटा जा रहा है।
आप ख़ुद को अकेला कैसे कह रहे हैं जबकि आपके साथ सुज्ञ जी, वशिष्ठ जी और अमित जी विशेष रूप से हैं।
धन्यवाद !
वंदे ईश्वरम् !!