सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Wednesday, March 31, 2010

मानवता का धर्म है इस्लाम : मौलाना अबुल कलाम आज़ाद Islam : The ultimate way


मुझे पता चला कि जिस धर्म को संसार इस्लाम के नाम से जानता है वास्तव में वही धार्मिक मतभेद के प्रश्न का वास्तविक समाधान है।




इस्लाम दुनिया में कोई नया धर्म स्थापित नहीं करना चाहता
बल्कि उसका आंदोलन स्वंय उसके बयान के अनुसार मात्र यह है कि संसार में
प्रत्येक धर्म के मानने वाले अपनी वास्तविक और शुद्ध सत्य पर आ जाएं और बाहर से
मिलाई हुई झूटी बातों को छोड़ दें- यदि वह ऐसा करें तो जो आस्था उनके पास होगी उसी
का नाम क़ुरआन की बोली में इस्लाम है

क़ुरआन कहता है कि खुदा की सच्चाई एक है, आरम्भ से एक है, और सारे इनसानों और समुदायों के लिए समान रूप में आती रही है, दुनिया का कोई देश और कोई कोना ऐसा नहीं जहाँ अल्लाह के सच्चे बन्दे न पैदा हुए हों और उन्होंने सच्चाई की शिक्षा न दी हो, परन्तु सदैव ऐसा हुआ कि लोग कुछ दिनों तक उस पर क़ाएम रहे फिर अपनी कल्पना और अंधविश्वास से भिन्न भिन्न आधुनिक और झूटी बातें निकाल कर इस तरह फैला दीं कि वह ईश्वर की सच्चाई इनसानी मिलावट के अंदर संदिग्ध हो गई।
अब आवश्यकता थी कि सब को जागरुक करने के लिए एक विश्य-व्यापी आवाज़ लगाई जाए, यह इस्लाम है। वह इसाई से कहता है कि सच्चा इसाई बने, यहूदी से कहता है कि सच्चा यहूदी बने, पारसी से कहता है कि सच्चा पारसी बने, उसी प्रकार हिन्दुओं से कहता है कि अपनी वास्तविक सत्यता को पुनः स्थापित कर लें, यह सब यदि ऐसा कर लें तो वह वही एक ही सत्यता होगी जो हमेशा से है और हमेशा सब को दी गई है, कोई समुदाय नहीं कह सकता कि वह केवल उसी की सम्पत्ती है।उसी का नाम इस्लाम है और वही प्राकृतिक धर्म है अर्थात ईश्वर का बनाया हुआ नेचर, उसी पर सारा जगत चल रहा है, सूर्य का भी वही धर्म है, ज़मीन भी उसी को माने हुए हर समय घूम रही है और कौन कह सकता है कि ऐसी ही कितनी ज़मीनें और दुनियाएं हैं और एक ईश्वर के ठहराए हुए एक ही नियम पर अमल कर रही हैं।अतः क़ुरआन लोगों को उनके धर्म से छोड़ाना नहीं चाहता बल्कि उनके वास्तविक धर्म पर उनको पुनः स्थापित कर देना चाहता है। दुनिया में विभिन्न धर्म हैं, हर धर्म का अनुयाई समझता है कि सत्य केवल उसी के भाग में आई है और बाक़ी सब असत्य पर हैं मानो समुदाय और नस्ल के जैसे सच्चाई की भी मीरास है अब अगर फैसला हो तो क्यों कर हो? मतभेद दूर हो तो किस प्रकार हो? उसकी केवल तीन ही सूरतें हो सकती हैं एक यह कि सब सत्य पर हैं, यह हो नहीं सकता क्योंकि सत्य एक से अधिक नहीं और सत्य में मतभेद नहीं हो सकता, दूसरी यह कि सब असत्य पर हैं इस से भी फैसला नहीं होता क्योंकि फिर सत्य कहाँ है? और सब का दावा क्यों है ? अब केवल एक तीसरी सूरत रह गई अर्थात सब सत्य पर हैं और सब असत्य पर अर्थात असल एक है और सब के पास है और मिलावट बातिल है, वही मतभेद का कारण है और सब उसमें ग्रस्त हो गए हैं यदि मिलावट छोड़ दें और असलियत को परख कर शुद्ध कर लें तो वह एक ही होगी और सब की झोली में निकलेगी।
क़ुरआन यही कहता है और उसकी बोली में उसी मिली जुली और विश्वव्यापी सत्यता का नाम “इस्लाम” है।
लेखक
,
साभार हमारी अंजुमन

Tuesday, March 30, 2010

क्यों चीर डाला अवध्य बाबू का जबड़ा खिलाड़ी ब्लॉगर्स की मीटिंग में गिरी जैसे semi scholar ने, पान के देश में ? और क्या कहा वकील साहब ने ...?


PART 2
हां तो अब बताइये कि क्या क्या हुआ बड़े खिलाड़ी ब्लॉगर्स की उस अर्ध गोपनीय मीटिंग में ?
होना क्या था , डॉक्टर साहब के बारे में ही मशविरा हुआ कि कैसे इस बला से निपटा जाये ?
हां , यह तो मैं भी समझ रहा हूं लेकिन यह तो बताइये कि किसने क्या कहा ?
अरे भाई जिसके जी में जो आया उसने वही कहा । गेंदालाल जी ज़्यादा भड़के हुए दिख रहे थे । सबसे पहले वही फटे ।
भई वे क्यों फटे ? डॉक्टर साहब ने उन्हें ऐसा क्या कह दिया उन्हें ?
डॉक्टर साहब की बात पर नहीं , वे तो अपने भांजे नत्थू की बात पर भड़के हुए थे ।
भांजे की बात का इस मीटिंग से क्या मतलब ?
मतलब है । वह भांजा भी तो ब्लॉगर है न ।
ओह ! आई सी ।
ख़ैर किसी तरह महर जी ने गेंदालाल जी को समझाया कि आज का इश्यू उनका भांजा नहीं है बल्कि डॉक्टर है तो वे बोले कि यार उसे तो इश्यू तुम लोगों ने बना रखा है वर्ना वह भी कोई इश्यू है । मैंने तो आप लोगों से कई बार कहा कि अरे भई इग्नोर करो उसे लेकिन आप हैं कि उसे सर पर उठाये फिर रहे हैं । क्यों जाते हैं आप उसे पढ़ने के लिए ?
क्यों गंेदालाल जी , आप भी तो जाते हैं , क्यों ?
अ...अ...अरे, मैं कोई उसे पढ़ने थोड़े ही जाता हूं । मैं तो वहां उनका फ्रॉड देखने जाता हूं । फ्रॉड , कैसा फ्रॉड ?
अरे भई , मैं तो इस पर नज़र रखता हूं कि इनके ब्लॉग पर कुल कितने लोग आ रहे हैं और उनमें मुल्ला कितने हैं और दूसरे कितने ? मेरे जाने का तो एक जायज़ मक़सद है लेकिन आप क्या करने जाते हैं वहां ? क्यों अवध्य बाबू आप बताइये ?
अवध्य बाबू बोले - मैं तो उस ब्लॉग पर नज़र गड़ाकर यह देखता हूं कि इनकी पोस्ट पर टिप्पणी करने वाले ब्लॉगर्स सचमुच हैं भी या नहीं ?
आपको उनकी असलियत में क्यों शक हुआ ?
देखो भई ! शुरूआत में जब मुझे किसी ने कमेंट नहीं दिए तो फिर कमेंट भी मुझे खुद ही करने पड़ते थे । अब तो जिस किसी नये ब्लॉगर को कमेन्ट मिलते देखता हूं तो अपने दुर्दिन याद आ जाते हैं । वह तो बाद में आप लोगों के ग्रुप से मेरा ‘कमेन्ट पैक्ट‘ हो गया कि हम सब एक दूसरे को कमेन्ट दिया करेंगे । अगर यह पैक्ट न हुआ होता तो सोचो हमारी क्या दशा होती ? या तो हम अपना ब्लॉग लिखना ही बन्द कर चुके होते या फिर खुद कमेन्ट कर रहे होते ।
महर जी बोले - देखिये , हमारे बुरे दिन बीत चुके हैं । उनके ज़िक्र से अब कोई फ़ायदा नहीं है । अब तो हम और ब्लॉगर्स की तरह इज़्ज़तदार से लगने लगे हैं । जाते तो उनके ब्लॉग पर हम भी हैं लेकिन हम कभी कमेन्ट नहीं देते लेकिन यह गिरी तो उन्हें कमेन्ट भी देता है । इससे पूछो , यह हम सबसे अलग हटकर क्यों चलता हैं ?
ईश्वर गिरी - देखो भई ! अगर तुम लोगों की तरह मैं भी चुप रहूं तो आने वाली पीढ़ियां हमें कैसे माफ़ करेंगी ? मैं तो उनमें कमियां ही निकालता हूं , उनकी तारीफ़ तो नहीं करता।
ठाकरे के हज्जाम से भी अब चुप न रहा गया । बोला - ये बता देश के विभाजन के ज़िम्मेदार नेताओं को ज़रूरत पड़ी तेरी माफ़ी की ?
गिरी - नहीं तो ।हज्जाम - बस तो जब अगली पीढ़ी आएगी तब तुझे ही कौन सी ज़रूरत पड़ेगी कि वह तुझे माफ़ करे तो तुझे खुदा जन्नत बख्शे ? हम तो जन्नत को कुछ मानते नहीं । हम तो मर कर यहीं कहीं कुत्ते बिल्ली बनकर अगली पीढ़ी के तलुए चाट रहे होंगे । अब दुमछल्ला बेगाने बाबू को भी बोलना ज़रूरी हो गया । बोले - हम मर कर क्यों बनेंगे कुत्ता बिल्ली ? क्या स्वर्ग नर्क हम नहीं मानते ?
परवीन जी की नास्तिकता ने भी अब अंगड़ाई ली । बोले - ख़बरदार जो मेरे सामने किसी ने स्वर्ग नर्क का नाम लिया तो ... , यह सब इन वकील साहब के बड़ों का प्रपंच है । लोगों से फ्री में सेवा लेने के लिए ही इनके पूर्वजों ने स्वर्ग नर्क का ड्रामा खड़ा किया था ।
गिरी जी बोले - अयं , अयं , यह आप क्या कह रहे हैं परवीन जी ? वह डाक्टर तो हमारी किताबों को केवल मिलावटी बताता है और आप तो उन्हें सिरे से ही नक़ली बता रहे हैं । मुझे तो लगता है कि डाक्टर को छोड़कर पहले आपकी ही अक्ल दुरूस्त करनी पड़ेगी । क्यों भाइयों ?
यह कहते हुए गिरी जी ने अपनी आस्तीनें चढ़ानी शुरू कर दीं । ठाकरे के हज्जाम ने बात को सम्भाला । बोला - देखिये , हम यहां न तो अपनी मान्यताओं पर बहस के लिए इकठ्ठा हुए हैं और न ही इतिहास की ग़लतियां दोहराने के लिए । पहले भी हम इन मुसलमानों के पूर्वजों से इसी लिए हारे थे कि भारत के हिन्दू राजाओं मे एकता का अभाव था और आज भी स्थिति वही की वही है । आज भी इस डाक्टर के खि़लाफ़ कोई भी सेकुलर हमारा साथ नहीं दे रहा है बल्कि सक्सेना जी ने तो उसकी हिमायत में एक पोस्ट ही लिख डाली । मैं पूछता हूं क्यों , आखि़र क्यों ?
अब बोलने की बारी वकील साहब की थी । बोले - इन कायस्थों का क्या है , ये तो होते ही आधे मुसलमान हैं । भई पेड़ तो आखि़र अपने रूख़ पर ही गिरेगा न । इसी लिए हमारे बड़ों ने इनको पंचम वर्ण घोषित कर दिया था ।
अवध्य बाबू बोले - अजी आपकी हलती चलती के वे दिन तो हवा हो गए । अब तो कोई चार ही वर्ण मानने को तैयार नहीं है । पांचवे की तो बात ही छोड़िए ।
हज्जाम फिर बोला - ख़ैर यह पीरियड संक्रमण काल का चल रहा है , जल्दी ही दिन फिरने वाले हैं , ऐसा सन्त बताते हैं । हम सब यहां राष्ट्रवादी लोग अपने अपने ज़रूरी काम छोड़कर आये हैं और मैं तो बहुत ही अर्जेन्ट काम छोड़कर आया हूं ।
परवीन बाबू ने एक चुटकी ली । ठाकरे के हज्जाम से पूछा - क्यों , आपको बिहारियों की किसी बस्ती में आग लगाने जाना था क्या ?
हज्जाम के बजाय उनका दुमछल्ला बेगाने बाबू बोले - देखिये , सीरिएस टॉक चल रही है । इसमें मसख़री नहीं करने का ।
हज्जाम ने जवाब दिया - असल में मुझे ठाकरे जी के बाल बनाने जाना था ।
पता नहीं किस तुनक में अवध्य बाबू पूछ बैठे - बाल , कहां के बाल बनाने जाना था भई आपको ?
बस इतना सुनना था कि हज्जाम का मूड पूरी तरह आफ़ हो गया । गिरी जी को अपनी रिसर्च डूबती हुई और टी.आर.पी. डाउन होती हुई नज़र आई तो उन्होंने फ़ौरन उठकर अवध्य बाबू का मुंह अपने दोनों हाथों से फाड़ा और अपनी पूरी नाक उसमें घुसेड़ दी और उबकाइयां लेते हुए पीछे हटे और बोले - भई इनकी बात का बुरा न मानो इस समय ये सोमरस लगाए हुए हैं ।
लेकिन हज्जाम तो भड़क गया । बोला - ये कोई इन्द्र हैं और यहां क्या कोई मेनका , रम्भा या उर्वशी नाच रही है , जो ये सोमरस चढ़ाकर चले आए ?
अवध्य बाबू अपना जबड़ा सहलाते हुए शिकायती लहजे में वकील साहब से बोले - देखिये , मैं तो खुद यहां आने का इच्छुक नहीं था लेकिन आपके कहने से चला आया । अब आप देखिये एक सीनियर सिटीज़न से कैसा बर्ताव किया जा रहा है ?
वकील साहब गिरी जी से बोले - देखिये मिस्टर ! आपने इनके साथ जो कुछ किया है , यह आई.पी.सी. और सी.आर.पी.सी. दोनों में जुर्म है ।
महर जी बोले - जुर्म से आजकल डरता कौन है ? कसाब को तो आज तक आपसे फांसी न दिलाई गई और कानून की धमकी भी दे रहे हैं तो एक राष्ट्रवादी को ?
इसी बीच ज़िन्दगी की यूनिवर्सिटी के होल सोल समावेश जी भी बग़ल में बाल्मीकि रामायण की एक प्रति दबाए चले आए और लोगों की तवज्जोह उनकी तरफ़ चली गयी और चुं चपड़ बन्द हो गयी ।
फिर क्या हुआ जी ?
हां सारी बात अभी बता दूं । रात के 3 बज रहे हैं । चलो अब सो जाओ । बाक़ी क़िस्सा फ़िर सुनाऊँगा ।
यह क़िस्सा है या शैतान की आंत , ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है ।
तुम ख़त्म की बात कर रहे हो ? अभी तो क़िस्से की इब्तेदा भी नहीं हुई ।चलो , अब उठ भी जाओ भाई ।
आपकी ये बात ठीक नहीं है । जब भी मज़ा सा आने लगता है । आप ख़त्म कर देते हो । भई यही तो नेचुरल है , जहां मज़ा सा आना शुरू होता है तभी ख़त्म हो जाता है ।
ठीक है जी । लेकिन अगली क़िस्त का इन्तेज़ार बेसब्री से रहेगा ।
किसे रहेगा ? तुम्हें या खिलाड़ी ब्लॉगर्स को ?
रहेगा तो सभी को लेकिन वे तो बेचारे आपके फ़ोलोवर सहसपुरिया की तरह खुलकर फ़रमाइश भी नहीं कर सकते ।
अच्छा भाई , गुड नाइट ।

Monday, March 29, 2010

ताकि आपके बच्चों के सामने ‘मार्ग‘ क्लियर रहे और वे ‘Live in relationship‘ की गंदी दलदल में न जा धंसें और आपको ऐसे बच्चों का नाना दादा न बनना...


इसमें कोई सन्देह नहीं है कि प्रकृति की क्रियाएं बेहतरीन तरीके़ से सम्पन्न हो रही हैं और इसमें भी कोई सन्देह नहीं है कि प्रकृति में बुद्धि और योजना बनाने का गुण नहीं पाया जाता । जब प्रकृति में बुद्धि पायी नहीं जाती और प्रकृति के सारे काम हो रहे हैं बुद्धिमत्तापूर्ण तरीक़े से , तो पता यह चलता है है कि अगर बुद्धि प्रकृति के अन्दर नहीं पायी जाती तो फिर प्रकृति के बाहर तो ज़रूर ही मौजूद है । यही बुद्धिमान अस्तित्व पालनहार ईश्वर के नाम से जाना जाता है ।

जिन हक़ीक़तों को इनसान अपनी आंख से नहीं देख सकता उनका भी पता वह अपनी अक्ल के ज़रिये लगा लेता है । लेकिन यह अक्ल सही फ़ैसला केवल तब कर पाती है जबकि वह निष्पक्ष होकर विचार करे । अगर आदमी पक्षपात के साथ विचार करेगा तो फिर उसे सत्य तथ्य नज़र न आएंगे बल्कि फिर तो उसे वही कुछ दिखाई देगा जो धारणा उसने पहले से ही बना रखी होगी ।

ऐसे लोग चाहे आंख के अंधे न भी हों और चाहे उनका नाम भी नैनसुख न हो तब भी ये लोग नैनसुख से ज़्यादा अंधे होते हैं क्योंकि ये आंख के तो पूरे होते हैं लेकिन अक्ल के अंधे होते हैं । यह दुनिया आंख वाले अंधों से भरी हुई है ।

इनमें से कुछ तो आजकल हाईटेक भी हो गये हैं ।


लिटमस पेपर टेस्ट


इस जगत का कोई सृष्टा ज़रूर है । उसी सृष्टा को अलग अलग भाषाओं में ईश्वर , अल्लाह , खुदा , यहोवा , इक ओंकार और गॉड आदि हज़ारों नामों से जाना जाता है । यह बात आज वे सभी लोग मानते हैं जो ईश्वर और धर्म में यक़ीन रखते हैं चाहे उनका मत , वतन और भाषा कुछ भी क्यों न हो ?

इसी बात को हमने कल की पोस्ट में बयान किया था ।

अक्ल के अंधों को पहचानने के लिए यह सत्य विचार ‘लिटमस पेपर टेस्ट‘ का काम करता है। आप भी एक नज़र डालिए -
सत्यस्वरूप परमेश्वर शिव के सुन्दर नाम से आरम्भ करता हूं जो सारी कायनात का अकेला मालिक है । कोई ब्रहमा और कोई विष्णु न उसकी सत्ता में साझीदार हैं और न ही सहायक , बल्कि ये दोनों पवित्र नाम भी उसी परम शिव के हैं ।
हरेक भाषा में सृष्टा , पालनहार और संहत्र्ता के लिए प्रयुक्त हज़ारों हज़ार नाम भी उसी एक सदाशिव के हैं । अरबी भाषा में अल्लाह , रहमान ,रहीम और रब आदि नाम भी उसी महाशिव के हैं । उसके सिवा न कोई स्वामी है और न ही कोई पूज्य ।
अकल्पनीय सृष्टि के स्वामी का रूप भी अकल्पनीय है ।किसी चित्रकार में इतनी ताक़त नहीं है कि वह उसका चित्र बना सके ।किसी मूर्तिकार के बस में नहीं कि वह उस निराकार का आकार बना सके । जिसने भी जब कभी जो कुछ बनाया अपनी कल्पना से बनाया , अपनी तसल्ली के लिए बनाया ।सत्यस्वरूप शिव हरेक कल्पना से परे है ।उसके हज़ारों हज़ार नामों के बावजूद वास्तव में उसका कोई नाम नहीं है । कोई भी लफ़्ज़ इतना व्यापक नहीं है कि उस अनन्त सत्य का पूरा परिचय प्रकट कर सके ।

वह पवित्र है ।

सारी स्तुति वन्दना का वास्तविक अधिकारी वही अकेला अनादि शिव है । सारी सृष्टि उसी के सुन्दर गुणों को दिखाने वाला दर्पण मात्र है । हर ओर वही व्याप रहा है , बस वही भास रहा है लेकिन इसके बावजूद न कोई उसका अंश है और न ही वंश । उसने सृष्टि की उत्पत्ति अपने अंश से नहीं बल्कि अपने संकल्प से की ।
महिमावान है मेरा प्रभु महाशिवजो असत् ( अदम ) से सत ( वुजूद ) की सृष्टि करने में समर्थ है । उसी ने आदिमानव अर्थात आदम को शिवरूप बनाया । उनके वामपक्ष से पार्वती अर्थात हव्वा को पैदा किया । इन्हीं को ब्रह्मा और सरस्वती भी कहा गया ।

समय गुज़रता गया बात पुरानी पड़ने लगी और यादें धुंधलाने लगीं ।

लोगों ने फिर भी उन्हें याद रखा । कवियों ने उनकी कथाओं को अलंकारों से सजाया । दार्शनिकों ने भी जटिल प्रश्नों का समाधान तलाशना चाहा और खुद जटिलताओं के शिकार हो गये ।वाम मार्गी भी आये आये और कामाचारी पापाचारी भी पैदा हुए ।उन्होंने स्वयं को ईश्वरीय गुणों का दर्पण बनाने के बजाय धर्म को ही अपनी दूषित वासनाओं की पूर्ति का साधन बना लिया । धर्म भीरू जनता गुरूभक्ति में उन इच्छाधारियों का विरोध श्रद्धावश न कर सकी । नशा , व्यभिचार और बुज़दिली वग़ैरह जो बुराइयां खुद इन पाखण्डियों में थी , वे सब इन्होंने अनादि शिव और आदि शिव में कल्पित कर लीं और लोगों को ऐसी विस्मृति के कुएं में धकेल दिया , जहां वे अनादि शिव और आदि शिव का अन्तर ही भूल गए और जब जानने वाले ने उन्हें मानवता का बिसरा दिया गया इतिहास याद दिलाना चाहा तो स्मृति लोप के कारण उन्हें उसकी बातें अजीब सी तो लगीं मगर अच्छी भी लगीं ।

हरेक कमी , ऐब और दोष से पवित्र है वह सृष्टिकर्ता शिव ।

उसकी शान तो इससे भी ज़्यादा बुलन्द है कि कोई सद्गुण ही उसे पूरा व्यक्त कर सके ।

हरेक लफ़्ज़् उसके सामने छोटा और हरेक उपमा उसके लिए अधूरी है ।

सुब्हान अल्लाह - पवित्र है प्रभु परमेश्वर ।

अल्हम्दुलिल्लाह - सच्ची स्तुति वन्दना केवल परमेश्वर के लिए है ।

अल्लाहु अकबर - परमेश्वर ही महानतम है ।

अपने दामन में रिवायात लिए बैठा हूं
कौन जाने कि मैं तारीख़ का आईना हूं


अर्थःरिवायात - परम्पराएं , तारीख़ - इतिहास

रियल शिव नाम महिमा के लिए इस ब्लॉग पर आते रहिये .

अपना कमेन्ट और वोट देकर हौसला हमारा बढ़ाते रहिये .

हे परमेश्वर शिव ! अपने भक्त भोले शिव के नादान बच्चों को क्षमा कर दे क्योंकि वे नहीं जानते कि वे आपके प्रति क्या अपराध कर रहे हैं ?
Posted by DR. ANWER JAMAL at
8:03 PM
क्या इस पोस्ट में आपको कुछ भी ग़लत मालूम होता है । नहीं न । लेकिन इसके बावजूद एक आर्य समाजी नैनसुख ‘राज‘ आये और यह टिप्पणी पेल गये -


एक बात तो साफ हो गयी कि, जब किसी चीज का कोई वजूद(काल्पनिक पुरुस) नही हो तो , उसका वजूद जबर्दस्ती बनाने के लिये आदमी बहुत नीची हरकत करने लग जाता है. आज मुस्लिम समाज एक वीरान चौराह पे खडा है, या जैसे बिन पानी की मछली तडपती रहती है, जाऊ तो जाऊ कहां, किसको आपना भगवान बनाऊहे विराट रूपी भगवानएव राक्षसो या 'आततायो" के बध करने वाले,पूरे ब्रह्माण्ड का पालन कर्ता,जिनके भक्त अर्थार्त परमेश्वर भगवान शिव है, इन आततायी बेचारे लोगो का सही मार्गदर्शन कर दो.आज मुस्लिम समाज अपना वजूद ढूढने मे , सारे धर्मो को अपने से जोडने की कोशिश कर रहा है, लेकिन कोई भी इनसे नही जुडना चाह्ता, कोई इनको अपने देश मे आने से प्रतिबंध लगा रहा, तो कोई वीजा ही नही दे रहा, तो कोई बुरका पर प्रतिबंध लगा रहा, आज ये कहते फिर रहे कि "माई नेम इज खान - आइ एम नोट आतंकवादी या यू कहे कि सारे मुसल्मान आतंकवादी नही पर सारे आतकवादी, मुसलमान है" ये कभी भोले शिव को अपना भग्वान मानते तो कभी यीशू को तो कभी किसी और को.. इनके भग्वान का कोई वजूद नही, आज ये जाये तो जाये कहा, एक अकेला इजराइल ने इनकी नाक मे दम कर रखा, आज सारे महाद्वीप मे लोग, इनके कर्मो के कारण से इनको नाले के कुत्ते की तरह पहचाती है, इन लोगो ने आपकी बनाये इस सन्सार को दिया ही क्या हैये लोग सबके लिये कूडे के बोझ के समान है, जो निगले नही निगलते, थूके नही थुकते, चाहे अमेरिकन महाद्वीप " अमेरिका" हो, या युरोपिय महाद्वीप " इटली, फ्रान्स,स्पेन....", या अफ़्रिकन महाद्वीप "सोमालिया,नाईजीरिया,सुडान..." हो, या एशिया " चीन- उरिगुरी, पाकिस्तान, भारत वर्ष.." हो, हर जगह इन्होने लोगो, छोट बच्चो, महिलाये सव बेकसूर लोगो को बम से या कोडे से या जलाकर मारा , इनका कोई धर्म नही, और एक काल्पनिक- जिसका कोई वजूद न हो या मुर्दा पुरुस का इनको डर लगा रहता है, आज यही डर या "सच्चा मुसल्मान" सबके लिये गले की हड्डी बन गया, विराट रूपी भगवान इनको सही रास्ता दिखाओ. आज शान्ति, करुणा, क्षमा, ज्ञान, धैर्य अगर कही है, तो विराट रूपी भगवान की शरण या पवित्र धर्म गर्न्थ गीता मे है, आओ हम सब मिलकर विराट रूपी भगवान मे विलीन हो जाये, इस धरती को पाप रहित या "आतम्घाती बम" रहित बनाये, न कोई बिन लादेन होगा, न कोई कसाव होगा, न बटला कांड होगा हर तरफ हरि ही हरि होगे, आरक्षण की भी जरूरत नही पडेगी

अनवर को चाहने वाला "राज"

यही है राज की खाज
लेकिन सभी तो नैनसुख नहीं होते । कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके चेहरों के साथ उनकी अक़्लें भी नूरानी होती हैं । शाहनवाज़ भाई ऐसे ही एक आदमी हैं । उन्होंने ‘राज‘ नामक उस नैनसुख को जो जवाब दिया आप भी उसके सही या ग़लत होने का फ़ैसला कीजिये -
हां , अब भी कोई यह कह सकता है कि शाहनवाज़ तो आपके साथी हैं वे तो आपको सपोर्ट करेंगे ही , लेकिन Mr. Rakesh Ravi तो हमारे साथी नहीं हैं । हमारे लेख की तारीफ़ तो उन्होंने भी की है । देखिये -

Dear Anwar Jamal Ji ,

i was moved by your blog and hence writing this comment in appreciation. It eliminates the differences which are not meaningful and tells the same truth which is the essence of every religion. thank you.

rakesh ravi
इनके अलावा भी बहुत से भाइयों ने लेख की सराहना की है । मैं इन सभी भाइयों का बहुत बहुत आभारी हूं लेकिन उनका काम सराहना पर समाप्त नहीं हो जाता , बल्कि इस तरह तो वे स्वयं को उस दिव्य ज्ञान का पात्र कह रहे होते हैं जो उस मालिक ने ऋषियों के अन्तःकरण पर मानवजाति के कल्याण हेतु उतारा था ।


बस गुमराही में अब और समय न गुज़ारिये ।

थाम लीजिये उस सच्चे मालिक का नाम-ज्ञान ताकि आपके क़दम ग़लत रास्तों पर न जाने पायें , ताकि आपके बच्चों के सामने ‘मार्ग‘ क्लियर रहे और भविष्य में वे ‘लिव इन रिलेशनशिप‘ की गंदी दलदल में न जा धंसें और आपको ऐसे बच्चों का नाना दादा न बनना पड़े जिनका कि आप नाम भी ....

समाज के उन नैनसुखों के लिए भी हम मंगल कामना करते हैं जिन्हें सत्य तो चाहे दिखाई न देता हो लेकिन हमें नापसन्द का वोट देने के लिए उन्हें बिन्दु ज़रूर दिखाई देता है । उनके लिए , अपने लिए और सबके लिए परब्रह्म परमेश्वर से हम फिर यही दुआ करते हैं कि हे परब्रह्म परमेश्वर ! अपने नादान बन्दों को क्षमा कर दीजिये क्योंकि वे नहीं जानते कि वे आपके प्रति क्या अपराध कर रहे हैं ?

Sunday, March 28, 2010

हे परमेश्वर शिव ! अपने भक्त भोले शिव के नादान बच्चों को क्षमा कर दे क्योंकि वे नहीं जानते कि वे आपके प्रति क्या अपराध कर रहे हैं ? Prayer



सत्यस्वरूप परमेश्वर शिव के सुन्दर नाम से आरम्भ करता हूं जो सारी कायनात का अकेला मालिक है । कोई ब्रहमा और कोई विष्णु न उसकी सत्ता में साझीदार हैं और न ही सहायक , बल्कि ये दोनों पवित्र नाम भी उसी परम शिव के हैं । हरेक भाषा में सृष्टा , पालनहार और संहत्र्ता के लिए प्रयुक्त हज़ारों हज़ार नाम भी उसी एक सदाशिव के हैं । अरबी भाषा में अल्लाह , रहमान ,रहीम और रब आदि नाम भी उसी महाशिव के हैं । उसके सिवा न कोई स्वामी है और न ही कोई पूज्य । अकल्पनीय सृष्टि के स्वामी का रूप भी अकल्पनीय है ।


किसी चित्रकार में इतनी ताक़त नहीं है कि वह उसका चित्र बना सके ।
किसी मूर्तिकार के बस में नहीं कि वह उस निराकार का आकार बना सके । जिसने भी जब कभी जो कुछ बनाया अपनी कल्पना से बनाया , अपनी तसल्ली के लिए बनाया ।





सत्यस्वरूप शिव हरेक कल्पना से परे है ।





उसके हज़ारों हज़ार नामों के बावजूद वास्तव में उसका कोई नाम नहीं है । कोई भी लफ़्ज़ इतना व्यापक नहीं है कि उस अनन्त सत्य का पूरा परिचय प्रकट कर सके ।


वह पवित्र है ।


सारी स्तुति वन्दना का वास्तविक अधिकारी वही अकेला अनादि शिव है । सारी सृष्टि उसी के सुन्दर गुणों को दिखाने वाला दर्पण मात्र है । हर ओर वही व्याप रहा है , बस वही भास रहा है लेकिन इसके बावजूद न कोई उसका अंश है और न ही वंश । उसने सृष्टि की उत्पत्ति अपने अंश से नहीं बल्कि अपने संकल्प से की ।


महिमावान है मेरा प्रभु महाशिव


जो असत् ( अदम ) से सत ( वुजूद ) की सृष्टि करने में समर्थ है । उसी ने आदिमानव अर्थात आदम को शिवरूप बनाया । उनके वामपक्ष से पार्वती अर्थात हव्वा को पैदा किया । इन्हीं को ब्रह्मा और सरस्वती भी कहा गया । समय गुज़रता गया बात पुरानी पड़ने लगी और यादें धुंधलाने लगीं । लोगों ने फिर भी उन्हें याद रखा । कवियों ने उनकी कथाओं को अलंकारों से सजाया । दार्शनिकों ने भी जटिल प्रश्नों का समाधान तलाशना चाहा और खुद जटिलताओं के शिकार हो गये ।


वाम मार्गी भी आये आये और कामाचारी पापाचारी भी पैदा हुए ।


उन्होंने स्वयं को ईश्वरीय गुणों का दर्पण बनाने के बजाय धर्म को ही अपनी दूषित वासनाओं की पूर्ति का साधन बना लिया । धर्म भीरू जनता गुरूभक्ति में उन इच्छाधारियों का विरोध श्रद्धावश न कर सकी । नशा , व्यभिचार और बुज़दिली वग़ैरह जो बुराइयां खुद इन पाखण्डियों में थी , वे सब इन्होंने अनादि शिव और आदि शिव में कल्पित कर लीं और लोगों को ऐसी विस्मृति के कुएं में धकेल दिया , जहां वे अनादि शिव और आदि शिव का अन्तर ही भूल गए और जब जानने वाले ने उन्हें मानवता का बिसरा दिया गया इतिहास याद दिलाना चाहा तो स्मृति लोप के कारण उन्हें उसकी बातें अजीब सी तो लगीं मगर अच्छी भी लगीं ।


हरेक कमी , ऐब और दोष से पवित्र है वह सृष्टिकर्ता शिव ।


उसकी शान तो इससे भी ज़्यादा बुलन्द है कि कोई सद्गुण ही उसे पूरा व्यक्त कर सके । हरेक लफ़्ज़् उसके सामने छोटा और हरेक उपमा उसके लिए अधूरी है ।





सुब्हान अल्लाह - पवित्र है प्रभु परमेश्वर ।





अल्हम्दुलिल्लाह - सच्ची स्तुति वन्दना केवल परमेश्वर के लिए है ।





अल्लाहु अकबर - परमेश्वर ही महानतम है ।



अपने दामन में रिवायात लिए बैठा हूं

कौन जाने कि मैं तारीख़ का आईना हूं
अर्थःरिवायात - परम्पराएं , तारीख़ - इतिहास


रियल शिव नाम महिमा के लिए इस ब्लॉग पर आते रहिये


.अपना कमेन्ट और वोट देकर हौसला हमारा बढ़ाते रहिये .
हे परमेश्वर शिव ! अपने भक्त भोले शिव के नादान बच्चों को क्षमा कर दे क्योंकि वे नहीं जानते कि वे आपके प्रति क्या अपराध कर रहे हैं ?

गिरी जी भी इसलाम में कमियां निकाल रहे हैं और तसलीमा भी लेकिन गिरी जी को तसलीमा की तरह नाम पैसा और प्रसिद्धि क्यों नहीं मिल पा रही है ? Why ?


हर तरफ़ तेरा चर्चा , हर तरफ़ तेरा चर्चा आखि़रकार वही हुआ जो होना चाहिये था यानि कि बड़े खिलाड़ी ब्लॉगर्स की अर्ध गोपनीय मीटिंग हुई ।

अर्ध गोपनीय मीटिंग ?

इसका क्या मतलब हुआ भाई ?

अर्ध गोपनीय मीटिंग का मतलब यह हुआ कि यह मीटिंग मुझ से गुप्त रखकर की गई थी और मुझसे ही यह गोपनीय न रह सकी ।

...तो फिर यह अर्ध गोपनीय कैसे हुई ?

अरे भाई ! मेरे अलावा ब्लॉगिस्तान में किसी को भी इस मीटिंग की हवा तक नहीं लगी , तो उनसे तो अभी तक भी गोपनीय ही हुई न ?

हां सो तो है । लेकिन यह मीटिंग हुई थी कहां ?

ज़िन्दगी की यूनिवर्सिटी की लायब्रेरी में ।

पर भाई साहब ! यह यूनिवर्सिटी है किस देश में ?

पान के देश मे । अरे भाई बड़ी प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी है ।

आपने ‘मे‘ को बिना बिन्दी के क्यों लिखा ?

इस कन्ट्री का नाम ऐसे ही लिखा जाता है । अपने अवध्य बाबू हैं न , उन्होंने ही इस की खोज की तो नाम रखने का हक़ उनका ही बनता था । सो रख दिया । ब्लॉगिस्तान के कोलम्बस माने जाते हैं वे ।लेकिन इसी नाम का तो एक मुलुक और भी चमके है जी ?

उसमें बिन्दी है , ध्यान से देखना । चलो माना । अब बताओ कि क्या ख़ासियत है इस यूनिवर्सिटी की ?इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें केवल शिक्षक है लेकिन कोई कोर्स तय नहीं है ।

...और स्टूडेन्ट्स ?

वे भी तय नहीं हैं । रोज़ घटते , बढ़ते और बदलते रहते हैं ।

ख़ैर अब मेन मुद्दे पर आओ और बताओ कि इस मीटिंग का टॉपिक क्या था ?

टॉपिक तो वही था जो आजकल बिल्कुल हॉट है ।

वह क्या है ?

क्या ब्लागबानी या जगतचिठ्ठा पर नज़र नहीं डालते ?

अरे भाई , उसी आदमी के बारे में बातें हो रही थीं जो खुद लिखता है तो हॉट होता है और जो उसके खि़लाफ़ लिखता है वह भी हॉट हो जाता है ।

अच्छा अच्छा वे डाक्टर साहब ।

हां , ठीक समझे । मीटिंग में कौन कौन था ?

भई , थे तो कम ही लोग लेकिन थे सभी बड़े खिलाड़ी । एक तो ठाकरे जी के हज्जाम थे । दूसरे गेंदालाल जी थे । ईश्वर गिरी थे , महर जी थे , वे भी थे जो परवीन बॉबी के कुछ नहीं लगते लेकिन नाम उनका भी परवीन ही है ।

और अवध्य बाबू ?

वे भी थे ।

बेगाने बाबू का नाम नहीं लिया आपने ?

उनका नाम लेने की क्या ज़रूरत है । न तो उनकी अपनी कोई सोच है और न ही कोई शिनाख्त । वे तो उस हज्जाम के दुमछल्ले हैं । जब दुम है तो छल्ला तो अपने आप होगा न ? प्लीज़ ट्राई टू अन्डरस्टैन्ड यार ।

ओ. के. बाबा ओ. के. इनमें कोई सुलझा हुआ आदमी भी था क्या ?

हां एक वे भी थे ।

उनका नाम नहीं पुछूंगा क्योंकि इनकी मीटिंग में तो सिर्फ़ एक ही माइन्डेड आदमी जा सकता है । और वे हैं अपने वकील साहब ।

बिल्कुल ठीक ।

लेकिन इन्होंने मीटिंग के लिए लायब्रेरी ही क्यों चुनी ?

अरे भाई , बात ये हुई कि अपने गिरी जी पर आजकल जुनून सवार है कुरआन पर रिसर्च करने का और हाल यह है कि अन्दाज़ा के बजाय कल के ब्लॉग में लिख रहे हैं कि इसी से लोग ‘अन्देशा’ लगा लें । ये इतने लोग किताब ढूंढने में उनकी मदद को गये थे । अपने वकील साहब तो क़ाज़ी जी से भी पढ़े हैं न ।

गिरी जी का क्या है वे तो जवाब को भी जबाब लिखते हैं ।

जबाब लिखना भी बाद में सीखा पहले तो वे इतना भी नहीं जानते थे ।

अच्छा ये तो बताइये कि गिरी जी भी इसलाम में कमियां निकाल रहे हैं और तसलीमा भी लेकिन गिरी जी को तसलीमा की तरह नाम पैसा और प्रसिद्धि क्यों नहीं मिल पा रही है ?

तसलीमा तो औरत है और वह भी बिल्कुल अकेली । ऐसे में भला उनकी मदद का मौक़ा कौन गवांएगा ? जबकि अपने गिरी बाबू न तो औरत हैं और न ही अकेले ।

लेकिन रूश्दी भी तो मर्द है और उस बेचारे ने तो इतना कुफ़र भी न बका था जितना उस ठाकरे के हज्जाम ने बका है । वह भी इन्टरनेशनल हीरो नहीं बन पाया , क्यों ?

यह सब वेस्टर्न मीडिया की कॉन्सपिरेसी है । ख़ाली कुफ़र बकने से ही तो काम नहीं चलता । कुफ़र बकने वाले उनके यहां क्या कम हैं ? किस किस को हीरो बनाएंगे । कुफ़र की वैल्यू तब है जब उसे कोई मुसलमान करे । वैल्यू तो अस्ल में मुसलमान की है , चाहे वह शुकर करे या कुफ़र ।

लेकिन अपनी मीडिया भी इन्हें घास आदि कुछ नहीं डालती ।

वह इन्हें घास क्यों डालेगी ? ये आदमी हैं , कोई जानवर थोड़े ही हैं ।

तो फिर इनका उद्धार कैसे होगा ?

उद्धार तो इनके बड़ों तक का न हुआ । इनका क्या होगा ? कल्याण सिंह , उमा भारती और आडवाणी जी आखि़र क्या पा सके ?

तो इससे तो यही साबित हुआ कि नफ़रत फैलाने वाले सदा नामुराद ही रहते हैं ?

बिल्कुल ।

इस मीटिंग के अध्यक्ष कौन बने ?

भई , वकील साहब की मौजूदगी में भला कोई दूसरा कौन बन सकता है ?

क्यों , अपने अवध्य बाबू को भी तो अध्यक्ष बनाया जा सकता है ?

उन्हें कौन अध्यक्ष बनाएगा ? वे तो रिटायर्ड हैं , सर्विस से भी और अक्ल से भी । पियक्कड़ अलग से हैं। उन्हें तो मीटिंग में ही बुला लिया तो बड़ी बात समझो । जहां जाते हैं काम बिगाड़ देते हैं । अब देखो न , अपने देश का नाम रखा और ‘मे‘ पर बिन्दी लगाना भूल गये। men के बजाए me लिख आये।

हुम्म ! कुछ ये भी तो बताइये कि इस मीटिंग में हुआ क्या क्या ? किसने क्या कहा ?

ये अगली क़िस्त में बताऊँगा । लोगों को लम्बे लम्बे ब्लॉग पढ़ने की आदत नहीं है ।

ठीक है भई , आपको भी तड़पाने में मज़ा आता है । तड़पाइये । हमारा क्या है ? क़िस्सा सुनना है तो करना पड़ेगा इन्तेज़ार भी ।

Saturday, March 27, 2010

हज़रत मुहम्मद साहब स. ने बताया कि बाप के मुक़ाबले माँ तीन गुना ज़्यादा आदर और सेवा की हक़दार है । Greater than Paradise .

 जो धारणीय है , वह धर्म है । धर्म का स्रोत ईश्वर है । ईश्वर किसी आदर्श मनुष्य के अन्तःकरण में अपनी वाणी का अवतरण करता है और उसे जीवन जीने की विधि सिखाने वाला विधान देता है । कुछ लोग धर्म से हटकर अपने अनुमान से कुछ नियम क़ानून बनाते हैं । यह धर्म नहीं दर्शन कहलाते हैं । ईश्वर सदा से है और उसका धर्म भी सदा से है । समय समय पर ऋषि हुये और उन्होंने लोगों को मूल धर्म का ज्ञान दिया । घटिया परम्पराओं और रूढ़ियों का सफ़ाया किया । अच्छी बातों और परम्पराओं की शिक्षा दी । बड़ों का आदर करना भी एक अच्छी आदत और अच्छी परम्परा है । फिर बड़प्पन के भी दर्जे हैं । हम बड़े भाई का भी आदर करते हैं और अपने पिताजी का भी , लेकिन बाप का आदर ज़्यादा करते हैं और बड़े भाई का उनसे कम । यह स्वाभाविक है । बाप ने हमें जन्म दिया है । हमारी देखरेख की है । हमारी ज़रूरतें पूरी की हैं । उसका हम पर उपकार ज़्यादा है । माँ का उपकार हम पर बाप से भी ज़्यादा है । हमें पैदा करने की ख़ातिर उसने मृत्यु तुल्य कष्ट उठाया है । अपने ख़ून से बना दूध पिलाया , हमें पालने में उसका रूप रंग और समय सभी कुछ बीत गया । उसने अपने बदन की सारी ताक़त हमारे अन्दर उतार दी । खुद ढल गई और हमें परवान चढ़ा दिया । हज़रत मुहम्मद साहब स. ने इसी हक़ीक़त का ऐलान करते हुए बताया कि जन्नत माँ के क़दमों के तले है । बताया कि बाप के मुक़ाबले माँ तीन गुना ज़्यादा आदर और सेवा की हक़दार है । और यह भी बताया कि दूसरे गुनाहों में से अल्लाह जिस गुनाह को चाहे माफ़ कर सकता है या उसकी सज़ा को परलोक के लिए टाल सकता है लेकिन माँ बाप की नाफ़रमानी करना , उनसे बदतमीज़ी करना और उनका दिल दुखाना ऐसा गुनाह है कि इसके करने वाले को अल्लाह तब तक मौत नहीं देता जब तक कि उसे दुनिया में ज़लील व रूसवा न कर दे ।

गुरू भी आदरणीय है । गुरू ही वह आदमी है जो इनसान को सही ग़लत की तमीज़ सिखाता है । इन अर्थां में भी हरेक इनसान का पहला गुरू उसकी मां होती है । वही उसे बोलना चलना और सभ्यता के नियम सिखाती है । बाद के गुरू उस मां की बीज रूप शिक्षा को ही पूर्णता तक पहुंचाते हैं । इनसान पर गुरू का उपकार भी बहुत बड़ा है । ईश्वर का उपकार इनसान पर सबसे ज़्यादा है । उसी ने माँ बाप बनाये । उसी ने उनके माध्यम से इनसान को जन्म दिया । उसी ने गुरू को पैदा किया और गुरू को ज्ञान दिया । उसी ने सारी कायनाती ताक़तों और देवताओं को इनसान की सेवा में लगाया । जीवन के लिए आवश्यक हर चीज़ उसने हमें प्रदान की । उसके किसी एक उपकार को भी कोई आदमी पूरी तरह नहीं जान सकता ।ईश्वर का उपकार मनुष्य पर सबसे ज़्यादा है । इसीलिये सबसे ज़्यादा आदर का हक़दार भी केवल ईश्वर है । वह एक है । वह अनादि , अनन्त , सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है । जो ज़्यादा जानता है और ज़्यादा ताक़त रखता है उसकी बात कोई नहीं टालता क्योंकि उसकी बात सदा हितकारी होती है । यह एक स्वाभाविक बात है ।शिव नाम ही अपने अन्दर कल्याण का गुण दर्शाता है और पवित्र कुरआन में भी अल्लाह ने अपना परिचय रहमान और रहीम कहकर दिया है अर्थात अनन्त दयावान और कृपाशील ।जैसा वह है और जैसा ऋषियों के माध्यम से उसने अपना परिचय हमें दिया है , वैसा ही उसे जानना मानना सत्य का तक़ाज़ा है और जैसा आदेश वह दे उसका पालन करना उसका सच्चा आदर करना है । आदर के सर्वोच्च दर्जे का हक़दार सिर्फ़ वही अनादि शिव है । आदर दिल की भावना का नाम है जिसे प्रकट करने के लिए इनसान हाथ जोड़ने , चूमने , सर झुकाने और ज़मीन पर घुटने टेकने या ज़मीन पर माथा टेकने आदि क्रियाओं का सहारा लेता है । ज़मीन पर अपने घुटने टेक कर अपनी नाक और अपना माथा रख देना इनसान के पूर्ण समर्पण का प्रतीक और आदर की पराकाष्ठा है । सबसे अधिक आदर और पूर्ण समर्पण को प्रकट करने के लिए इससे ज़्यादा बेहतर क्रिया सम्भव ही नहीं है ।इसीलिए यह केवल परमेश्वर के लिए जायज़ है । दूसरों के लिए इससे कम दर्जे की क्रिया किये जाने का प्रावधान है।दूसरों के प्रति भी जो आदर सम्मान हम दिल में रखते हैं और अपने अल्फ़ाज़ में और अपनी क्रियाओं में उसे प्रकट करते हैं तो वास्तव में वह भी ईश्वर के प्रति ही अपनी अहसानमन्दी जताना है ।

हजरे अस्वद को चूमना जायज़ है लेकिन उसे ईश्वर की भांति सज्दा या साष्टांग करना नाजायज़ और वर्जित है । एक आदमी को किसी कम्पटीशन में कामयाबी मिलती है और उसे आयोजक की तरफ़ से कोई यादगार निशान दिया जाता है तो वह खुशी में बेइखितयार होकर चूम लेता है । दुनिया जानती है कि यह एक स्वाभाविक क्रिया है । कोई भी यह नहीं समझता कि वह उस चिन्ह की पूजा कर रहा है ।हजरे अस्वद भी उस कम्पटीशन के बाद ही तो ईश्वर ने आदि शिव आदिम् अर्थात आदम को दिया था जिसमें देवताओं को आदम की पात्रता पर सन्देह था । तब परमेश्वर ने उनको अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए कहा और आदम ने वे रहस्य प्रकट कर दिये जिन्हें देवता भी न जानते थे। तब सारे देवता आदि शिव के सामने आदरवश झुक गये । यह काला पत्थर धरती के दूसरे पत्थरों की तरह का कोई मामूली सा पत्थर नहीं है  कि चलो चूमना ही तो है । वह न सही यही चूम लो । जब आदम ने इसे चूमा था तब हम उनके जिस्म में सूक्ष्म रूप में मौजूद थे । विजय और उल्लास का वह क्षण केवल एक अकेले आदम की ही उपलब्धि न थी बल्कि वह पूरी मानवजाति की उपलब्धि थी और आदम उस समय उसके प्रतिनिधि थे ।आदि शिव का इस चिन्ह को चूमना एक स्वाभाविक क्रिया थी । हमें अब ‘शरीर मिला है । हम अब चूमते हैं । इस तरह हम अपने आदि पिता के व्यवहार का ही अनुकरण करते हैं । पैतृक गुणों और परम्पराओं के पालन का नाम ही तो धर्म है । जो कुछ धारणीय है उसे हमारे पिता ने धारण करके और उसका पालन करके दिखा दिया है । हमें तो केवल उसका अनुकरण मात्र करना है । और जो कोई अपने पिता के मार्ग से हटकर चला उसने उनकी अवज्ञा की और जिसने उनकी अवज्ञा की । वह तब तक मर नहीं सकता जब तक कि वह दुनिया में ज़िल्लत व रूसवाई की यातना न भोग ले । ज़्यादातर आदमी आज ज़िल्लत व रूसवाई का अज़ाब भोग रहे हैं । कोई सरकार और कोई ओल्ड एज होम उन्हें इस अज़ाब से मुक्ति नहीं दे सकता । सिवाये इसके कि अपने पिता की आज्ञा और उनकी परम्परा के पालन को अपने जीवन का विधान बनाया जाए । हजरे अस्वद यही याद दिलाता है । आओ अपने पिता के धर्म की ओर , आओ ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण की ओर । आओ सफलता की ओर , आओ स्वर्ग की ओर ।

अनादि अनन्त महाशिव की जय जयकार ।

सबके माता पिता की जय , धर्म की जय ।

ताकि हरेक जान ले कि सच्चा मुसलमान कैसा होता है ? Submission to Allah, The real God .


बहन फ़िरदौस जी ,

विचारोत्तेजक लेख के लिए बधाई ।

मैं आपसे बिल्कुल सहमत हूं कि इनसान के कल्याण के लिए इसलाम काफ़ी है

मुसलमानों को आरक्षण के चक्कर में पड़ने के बजाए इसलाम को मज़बूती से थामना चाहिये ।

असल बात यह है कि हिन्दुस्तान में लोग वर्णवाद से घबराकर मुसलमान तो हो गये लेकिन जाति पांति का भेदभाव उनके अन्दर इतनी गहराई तक घुस चुका था कि इसलाम कुबूल करने बाद भी वह पूरी तरह न जा सका ।

इसलाम के अन्दर ज़कात का निज़ाम है ।

अगर सभी साहिबे निसाब मुसलमान वाजिब ज़कात अदा करें तो मुसलमानों के साथ साथ हिन्दुओं की भी ग़रीबी दूर हो जायेगी । तब न गुरबत होगी और न बग़ावत होगी । आज मुल्क में नक्सलवाद तबाही मचा रहा है । हां , मानता हूं कि इसके पीछे भुखमरी की शिकार जनता है और इसके लिए पूंजी का असमान वितरण है । इसके पीछे मधु कोड़ा जैसे बेईमान नेता और अफ़सर हैं ।

इसके पीछे ये हैं और इसके पीछे वे हैं ।

क्या किसी चीज़ के पीछे हम भी हैं ?

क्या कभी हमने यह जानने का प्रयास किया ?

सकता है कि इस दुनिया के क़ानून में नक्सलवाद के पीछे मुसलमान ज़िम्मेदार न माना जाये लेकिन दुनिया सिर्फ़ यही तो नहीं है । यह तो अमल की दुनिया है , एक रोज़ अन्जाम की दुनिया भी तो ज़ाहिर होगी । एक दिन वह भी तो आना है जब सारे हाकिमों को हुकूमत अता करने वाला खुद को ज़ाहिर करेगगा । तब वह हरेक हाकिम से हिसाब लेगा ।

मरती सिसकती दुनिया को उसने जीने की राह दिखाई थी , अपना ज्ञान भेजकर ।

उसके ज्ञान को कितना फैलाया ?तब वह हिसाब लेगा ।हिसाब तो वह आज भी ले रहा है और पापियों को सज़ा भी दे रहा है लेकिन अभी सज़ा के साथ सुधरने की मोहलत और ढील भी दे रहा है । ढील देखकर लोग अपने ज़ुल्म में और बढ़े जा रहे हैं ।सोच रहे हैं कि इस दुनिया का कोई रखवाला न कभी था और न ही आज है । कर लो जो करना है ।

बड़े पेट भरे पापियों की नास्तिकता और अमीरी देखकर छोटे लोगों के दिल से भी पाप और उसके बुरे अन्जाम का डर निकलता जा रहा है ।

ज़मीन पर खुदा का पैग़ाम , पवित्र कुरआन मौजूद हो लेकिन अहले ज़मीन की अक्सरियत उससे नावाक़िफ़ हो ।

इसलाम का अर्थ ही सलामती हो और लोग इसलाम से ही ख़तरा महसूस कर रहे हों ।

इसलाम फ़िरक़ेबन्दी के ख़ात्मे के लिए भेजा गया हो और खुद इसलाम में ही फ़िरक़े बनाकर रख दिये गये हों ।क्या इन सबका ज़िम्मेदार भी मुसलमान नहीं है ।बाबरी मस्जिद ढहाने वाले कुछ जोशीले हिन्दू जत्थे तो सबको नज़र आते हैं लेकिन उन्हें भड़काकर इस मक़ाम पहुंचाने वाले आज़म ख़ां जैसे कमअक्ल और ख़ुदग़र्ज़ लीडर्स उनसे कहीं ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं । और सिर्फ़ लीडर्स पर ही ज़िम्मेदारी डालकर हम बच नहीं सकते ।

हम मुसलमानों का , खुद का अपना हाल क्या है?

कितने परसेन्ट मुसलमान मस्जिदों में जाते हैं ?

जो जाते हैं उनमें से कितने लोग कुरआन पाक को समझने और उस पर अमल करने का प्रयास करते हैं ?

कितने लोग हैं जो अपनी बीवियों को महर की अदायगी निकाह के वक्त करते हैं ?

कितने लोग हैं जो अपनी जायदाद में अपनी बेटियों को भी उनका हक़ उनका हिस्सा देते हैं ?

कुरआन अमल के लिए है । कुरआन सबसे बड़े हाकिम का फ़रमान है ।

इसकी नाफ़रमानी दण्डनीय है । हम नाफ़रमानी कर रहे हैं और लगातार किये जा रहे हैं ।

हम पर मालिक की सज़ा पड़ रही है और हमारी वजह से दूसरे भी कष्ट भोग रहे हैं ।

मुसलमान अपने गिरेबां में झांक ।

अपने जुर्मों की तावील न कर , बहाने न बना । वक्त रहते सुधर जा । इसलाम हर समस्या का समाधान है । आज यह एक किताबी बात बनकर रह गयी है । इसे करके दिखा । लोग आज समस्याओं से ही तो दुखी हैं । उन्हें समाधान ही तो चाहिये । अगर वाक़ई इसलाम सच्चा पक्का समाधान है तो फिर कौन उसका इनकार करके घाटा उठाना चाहेगा , सिवाए नादान के ?किसी भी समाज की तबाही उसकी अपनी अन्दरूनी कमज़ोरी के कारण होती है और जब तक उनको दूर न किया जाये तब भला नहीं हुआ करता । विरोधी तो केवल षड्यंत्र कर सकता है लेकिन उसे हरगिज़ कामयाबी नहीं मिल सकती अगर खुद के अन्दर कमज़ोरी न हो । लीडर अपने अन्जाम से डरें और अवाम भी खुद को संभाले ।खुदा इनसान को दो ही फ़िर्क़ां में बांटकर देखता है ।

भला और बुरा

देखिये कि आप खुद को किस वर्ग में पाते हैं ?

यहां एक बात और ध्यान देने के लायक़ है कि क्या हम सच्चे मुसलमान हैं ?

सही बात तो यह है कि कौन सच्चा है और कौन पाखण्डी ?

इस बात का हक़ीक़ी फ़ैसला तो इनसाफ़ के दिन मालिक खुद करेगा ।लेकिन एक बात जो हम कह सकते हैं वह यह है कि अगर हम सच्चे दिल से इसलाम की सच्चाई का यक़ीन रखते हैं तो हम सच्चे मुसलमान हैं ।लेकिन यहां आकर ही हमारा काम पूरा नहीं हो जाता बल्कि यहां से हमारा काम आरम्भ होता है ।

इसलाम का अर्थ है एक अल्लाह के प्रति पूर्ण समर्पण ।

यहां हर आदमी का स्तर अलग अलग है । समर्पण की प्रक्रिया एक दिन में सम्पन्न होने वाली चीज़ नहीं है बल्कि यह जीवन भर चलने वाला अमल है । जो दिल से इसलाम को सच्चा मानते हैं उनकी मान्यता का असर उनके जीवन में भी झलकना लाज़िमी भी है और झलकता भी है ।

पुराने लोग मरते रहते हैं और नये पैदा होते रहते हैं इस तरह यह जीवन भी चलता रहता है और इसलाम में ढलने चलने की प्रक्रिया भी ।सुधार की इब्तदा होती है नमाज़ से

मुसलमान को चाहिये कि अपनी सारी जि़न्दगी को ही नमाज़ बना दे ।

अपने आपको खुदा के सामने पूरी तरह झुका दे ताकि हरेक जान ले कि सच्चा मुसलमान कैसा होता है ?

Friday, March 26, 2010

लेकिन क्या वाक़ई हरेक सम्भोग के नतीजे में बच्चा पैदा होना लाज़िमी है ?Sex is a heavenly gift.


आरम्भ अल्लाह के नाम से जो साक्षात कल्याणकारी अर्थात सदाशिव है ।


वही महाशिव है और सारी सृष्टि उसी के अधीन है । कल्याण और उपकार की भावना का स्रोत ‘दया‘ है । उसकी दया अनन्त है । कोई बुद्धि उसकी दया का अन्दाज़ा नहीं लगा सकती। जन्म उसी की दया से है और मृत्यु ...?


मृत्यु भी उसका अनमोल उपहार है ।


मृत्यु कैसे उसका अनमोल उपहार है , इसे फिर किसी रोज़ समझाया जायेगा ।


फिलहाल तो आप अपने जन्म पर ग़ौर कर लीजिये कि आप पर एक लम्बी मुद्दत ऐसी भी गुज़री है जब आप कोई क़ाबिले ज़िक्र चीज़ न थे ।


फिर जाने कहां की हवा और कहां का पानी आपके पिता जी के बदन में पहुंचा , कहां का भोजन और किस मुल्क की दवा उन्होंने खाई ?


और ऐसा ही आपकी आदरणीय माता जी के साथ होता रहा । इस बीच ज़मीन घूमती रही और दिन और रात आते रहे ।


सूरज अपना तेज बरसाता रहा ।


हार्मोन बनते रहे और आप अपने पिता जी के बदन में एक नामालूम सा आकार लेने लगे । आपके वुजूद को बनाने में सिर्फ़ एक ज़मीन और एक सूरज ही काम में नहीं लगा रहा बल्कि सारी आकाशगंगा आपको सपोर्ट करती रही । और एक आकाशगंगा दूसरी से बंधी है ।


इस तरह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पूरी कायनात आपको सपोर्ट करती रही ।


लेकिन ऐसा उसने किसके इशारे पर किया ?


क्या आपकी माता जी के इशारे पर सारी कायनात ने यह काम अंजाम दिया ?या फिर आपके पिता जी ने यह प्रबन्ध किया था ?


या फिर कोई गुरू यह सामर्थय रखता है ?


न तो मेरे माता पिता में और न ही किसी और के माता पिता में यह ताक़त है कि इतने विशाल अन्तरिक्ष को अपने वश में कर सके और न ही किसी गुरू योगी और पीर फ़क़ीर में यह बल पाया जाता है ।यह बल तो केवल उस अनादि शिव का ही है जिसकी दया अनन्त है।


पूरी कायनात की शक्तियों की सेवा पाकर जन्म लेने वाला प्राणी हरगिज़ किसी एक इलाक़े का बन्धुआ नहीं हो सकता । वह तो पूरी कायनात का ऋणी है । उसका इलाक़ा सारी कायनात है ।


इस पूरी कायनात के साथ उसे हारमोनी बनाकर चलना पड़ेगा वर्ना वह नाशुक्रा कहलायेगा । ख़ैर क्या कभी आपने ग़ौर किया कि एक आदमी के जन्म के पीछे क्या घटना कारण बनती है ?


औरत मर्द का जिस्मानी ताल्लुक़ ।


बेशक , यह एक सही जवाब है , लेकिन इससे भी ज़्यादा सही जवाब एक और है ।


एक नर और नारी को आपस में क्या चीज़ क़रीब करती है ?


हां , हार्मोन्स और फ़ेरामोन्स भी अपना काम करते हैं ।


एक दूसरे का रूप गुण और रख रखाव भी एक दूसरे की तरफ़ आकर्षित करते हैं , लेकिन अस्ल मालिक की दया और योजना ही तो है जिसने यह विधान रचा और एक दूसरे के प्रति आकर्षण और प्रेम उपजाने का सामान भी उनके अन्दर ही रख दिया ।


जब नर और नारी का शरीर किसी को जन्म देने के लायक़ हो जाता है तो वे सहज रूप से ही एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने लगते हैं । दोनों में प्रेम जागता है । दोनों एक दूसरे के प्रति समर्पण करते हैं । समर्पण की परिणति ही सम्भोग में होती है ।


इसी के बाद एक बच्चा इस संसार में जन्म लेता है ।


लेकिन क्या वाक़ई हरेक सम्भोग के नतीजे में बच्चा पैदा होना लाज़िमी है ?


क्या हरेक आदमी जब चाहे तब बच्चा पैदा कर सकता है ?


क्या हरेक जोड़े को मां बाप कहलाने का सौभाग्य मिल पाता है ?


नहीं , यहां भी आपकी मर्ज़ी का कोई दख़ल नहीं है । योजना और आदेश तो केवल परमेश्वर शिव का ही लागू होता है । कोई भी बच्चा मामूली नहीं होता ।


वह ईश्वर की पवित्र योजना से जन्म लेता है ।


हम नहीं जानते कि उस महाशिव ने कौन सा बच्चा मानवता को क्या कुछ देने के लिए पैदा किया है ?


बहरहाल , मां क्या करती है ?


मां अपने बच्चे को प्यार करती है । उसे चूमती है । मां का अपने बच्चे को चूमना उसके प्यार का इज़्हार है ।वह बच्चा उस मां के उन लम्हों की भी निशानी है जब उसने अपने पति के प्रति समर्पण किया था ।


जब उस पर उसके पति का प्रेम बरसा था ।


जब उन्होंने अपने जीवन के एक अहम मक़सद को पा लिया था ।


एक बच्चा इनसान के प्रति परमेश्वर के प्रेम का भी चिन्ह है और नर नारी के आपसी मुहब्बत का भी निशान है ।


जब एक मां अपने बच्चे को प्यार से चूमती है , तो क्या कोई यह समझता है कि मां अपने बच्चे की पूजा कर रही है ?


नहीं ।


इसी तरह हज्रे अस्वद को प्यार से चूमना भी पूजा करना नहीं होता ।


कोई कह सकता है कि हम भी तो अपने पूर्वजों की मूर्तियों के सामने प्यार दर्शाने के लिए ही सर झुकाते हैं ।यह क्या बात हुई कि तुम प्यार से पत्थर चूमो तो पुण्य कमाओ और हम चूमें तो पापी कहलायें ।


ऐसा अन्तर क्यों ?वह क्या चीज़ है जो किसी क्रिया को पूजा बना देता है ?


दो आदमी ज़ाहिर में एक सा अमल करते हैं , लेकिन उसके परिणाम अलग अलग निकलते हैं।


क्यों ?


आपको हर क्यों का जवाब मिलेगा ।इन्शा अल्लाह , लेकिन एक बड़े ब्रेक के बाद ।


तब तक आप दूसरे ब्लॉग पढ़ लीजिये । अब हम लेते हैं आपसे विदा ।


शब बख़ैर , खु़दा हाफ़िज़ ।ऊँ शांति ।


सुब्हान अल्लाह ।जय जयकार पावन प्रभु अनादि शिव का ।
फ़रिश्ते से बेहतर है इन्सां बनना


पर इसमें पड़ती है मेहनत ज़्यादा


- फ़रहत कानपुरी

मेरे प्रिय श्री रामचन्द्र जी को उनके कुल सहित नष्ट करने की धमकी देने वाला और उन्हें सचमुच नष्ट करने वाला दुर्वासा भी क्या मुसलमान था ? Balmiki Ramayna


@आदरणीय ब्लॉग पधारक परछिद्रान्वेषाभ्यासमग्नजनशिरोमणि नास्तिक्यभ्रमधुंधाच्छादित विकलहृदय क्षीणमनबलेन्द्रिय दुसाध्य वायरसयुक्त ब्लॉगरूपी ध्वस्त दुर्गस्वामी प्रश्नकलाविस्मृत सद्भाव वक्तव्य याचक प्रवीण जी , 3 बिन्दीयुक्त आपकी टिप्पणी प्राप्त हुई परन्तु उसमें आपके व्यक्तित्व की छाप न थी ।

1- उसमें आपने हस्बे आदत यहां और यहां कहकर कुछ भी न दिखाया था । हालांकि आप कम से कम जनाब सतीश सक्सेना जी के ब्लॉग का लिंक तो दे ही सकते थे , जहां आपने यह कमेन्ट तब किया था जब मैंने ‘शिव महाशिव व्याख्यानमाला‘ का उद्घाटन नहीं किया था ।

2- आप अपने वक्तव्यानुसार नास्तिक हैं और श्री श्री सारथि जी महाराज की पावन सूची कलंकित कॉलम में नास्तिक नम्बर 3 की उपाधि से विभूषित भी हैं ।नास्तिक होने के दावे के बावजूद ईश्वर और धर्म को कल्याणकारी मानने का क्या अर्थ है ?

क्या मेरे प्रवचन के बाद आपने नास्तिक मत त्याग दिया है ?

या फिर आप लोगों को अपने बारे में धोखा दे रहे थे और आप नास्तिक केवल इसलिये बने हुए थे कि आप तो दूसरों की मान्यताओं पर प्रश्नचिन्ह लगा सकें लेकिन कोई आपसे कुछ न पूछ सके ?

हमारे स्वर्गीय गुरू जी कहा करते थे कि हिन्दुस्तान की मिट्टी का मिज़ाज आध्यात्मिक है , यहां का आदमी नास्तिक नहीं हुआ करता । भारत का नास्तिक भी ईश्वर से डरता है ।

ख़ैर जो भी आपकी मानसिक प्रॉब्लम हो ।हमें तो यह बताइये कि मेरी किस बात से दुर्भावना फैली है ?मेरी दुर्भावना के शिकार प्रमुख व्यक्तियों के नाम क्या हैं ?

वे व्यक्ति खुद तो इसी जुर्म के आदी तो नहीं हैं ?

ब्लॉग मेरे गीत पर आपकी टिप्पणी के बाद ‘आदि शिव और अनादि शिव पर सुन्दर तत्वचर्चा‘ चल रही है । क्या इतने लम्बे चैड़े और इतने प्यारे व्याख्यान के बाद भी दुर्भावना वालों की दुर्भावना दूर नहीं हुई ?

आखि़र जब इतनी पवित्र हस्तियों पर इतनी बड़ी बातें देख सुनकर भी लोगों के दिलों का ज़ंग न छूटा तो आपके द्वारा प्रस्तावित मात्र 3 सैन्टेन्स कह देने से कैसे छूट जाएगा ?

जब आप पहले से ही बदगुमान हैं कि मैं आपके प्रस्ताव को न मानूंगा तो आप यहां करने क्या आये हैं ?

लेकिन याद रखिये , नास्तिकों की बुद्धि के तंग दायरे से केवल ईश्वर ही नहीं बल्कि उसके बन्दे भी परे होते हैं ।जो आप कह रहे हैं मैं कह दूंगा ।


लेकिन...


1- आपकी बात मानने से पहले मैं 3 बातों की गारण्टी चाहूंगा ।उनमें सबसे पहली बात यह है कि आप मुझे यक़ीन दिलाएं कि यह प्रस्ताव सचमुच आपका ही है , किसी अन्य ने आपके नाम से नहीं भेजा है और जो कुछ आप मुझसे मानने के लिए कह रहे हैं , आप स्वयं भी उसपर विश्वास रखते हैं । ...जारी


धन्य हैं श्री श्री सारथि जी महाराज , जिनकी नीति कुशलता के कारण आज यहां याचक मुद्रा में खड़े बड़े मुझसे वह कुछ मांग रहे हैं , जो कि मैं स्वयं बांट रहा हूं । मेरे रथ को जेट गति से ब्लॉगाकाश में पहुंचा देने वाले शत्रुनिद्राहरणहार श्री उमर कैरानवी जी को उनके जन्म दिन पर डबल बधाई ।क्या कहा ?


उनका जन्म तो 13 को हुआ था और मैं उनको बधाई दे रहा हूं 26 को ?


दरअस्ल बात यह कि 13 दुनी 26 । आज 26 है जो कि 13 का डबल है । मैं श्री 1008 विहीन सारथि जी महाराज को उनके जन्मदिन पर डबल मुबारकबाद पेश करता हूं ।

हो सकता है कि आज मैं उन्हें मुबारकबाद देना भूल जाता लेकिन ...

आदरणीय प्रवीण जी की आमद ने उनके जन्म दिन की याद को ताज़ा कर दिया । यही तो वह दिन है जब...

ख़ैर... अब कहां प्रवीण जी के ब्लॉग में कोई वायरस छिपा होगा ?

कोई देखे तो मेरे मायावी की उपकार लीला ।

प्रशंसा , बहुत प्रशंसा ।

आप चाहे न जियें हज़ारों साल

परन्तु दुष्ट रोयें हज़ारों साल

और वैसे भी आप हज़ारों साल से ज़्यादा जी चुके हैं

क्योंकि शेर की एक दिन की ज़िन्दगी हज़ार कुत्तों के हज़ार वर्ष के जीवन से बेहतर है ।


मुस्लिम काफिरो ने भारत वर्ष के टुकडे किये, ये गद्दार है, देश द्रोही है, देस के गद्दारो को जूते मारो (या कोडे) सालो को
यह इस लायक़ नहीं कि इसे ज़्यादा स्पेस दिया जाए इसे तो हम यूं ही चलता कर देंगे । बेशक हमने अपने विरोधी प्रवीण जी का विरोध किया है लेकिन अपनी पोस्ट में उन्हें इतना ज़्यादा स्पेस देकर हमने उनके प्रति अपने प्रेम को ही प्रकट किया है ।निःसन्देह वे मेरे विरोधी हैं लेकिन एक बेतरीन विरोधी हैं । एक बेहतरीन आदमी हैं । उनकी वाणी से मैंने कभी कोई गाली निकलते हुए नहीं सुनी ।

उन्हें यक़ीन आये या न आये लेकिन मैं बता देना चाहता हूं कि मैं उनसे दिल से प्यार करता हूं । मैं तो अपने हरेक दिन को अपना आखि़री दिन मानता हूं ।

रोड एक्सीडेन्ट में आये दिन लोगों को मरते हुए देखता हूं और खुद भी बहुत बार चपेट में आने से उस मालिक के करम से बचा हूं लेकिन आख़िरकार मौत तो मुझे आकर रहेगी । कब आ जाये , नहीं जानता ?

बहरहाल इस मर्त्यलोक में मुझे सदा नहीं रहना है ।

... लेकिन मैं जहां भी रहूंगा प्रवीण जी को एक बेहतर इनसान के रूप में अरबों खरबों साल तक याद रखूंगा । मेरे मरते ही प्रवीण जी कृपया मेरे कटु वचनों को माफ़ कर दीजियेगा । लेकिन जब तक मैं जियूंगा हरेक नास्तिक को हैरान किये रखंगा और आप को भी ।

अरे इस राज की खाज मिटाना तो रह ही गई ।

रह जाने दो भाई ये आदमी नालायक़ है और दो महान आदमियों के साथ इसका ज़िक्र करना ठीक नहीं है । पहले ये किसी लायक़ बने तो सही ।यह अपना ब्लॉग बनाने या उसे बताने तक के लायक़ नहीं । गद्दार खुद है । बता दयानन्द जी को ज़हर किस मुसलमान ने दिया ?आदि शंकराचार्य को ज़हर किस मुसलमान ने दिया ?

मेरे प्रिय श्री रामचन्द्र जी को उनके कुल सहित नष्ट करने की धमकी देने वाला और उन्हें सचमुच नष्ट करने वाला दुर्वासा भी क्या मुसलमान था ?

गांधी को , इंदिरा गांधी को और राजीव गांधी को मारने वाला किस धर्म का था ?

अब पाकिस्तान की सुन !जिन्नाह की मज़ार वन्दना करने वाले हिन्दुस्तानी लाल का नाम बताओ ?

जिन्नाह को 800 पेज से ज़्यादा लिखकर दोषमुक्त किस नेता ने कहा ?

मुसलमानों के भारत आगमन से पहले ही आर्यावर्त का हज़ारों टुकड़ों मे विभाजन करने वाले हिन्दू राजाओं को और उनके वंशजों को ग़द्दार कब कहा जायेगा ?

विदेशी हमलावरों को भारत पर हमले के लिए बुलाने वाले और उनकी मदद करने वाले ग़द्दार राजा और सिपाही तुम्हारे बाप दादा ही तो थे ।

ग़द्दारी तो तुम्हारे खून में है ।

आज भी जिस सीट पर बैठे हो जनता से रिश्वत लिये बग़ैर काम ही नहीं करते । वाह क्या खूब राष्ट्रभक्ति है ?

नकटे ही आज नाक वालों को नक्कू कह रहे हैं?

हम मुसलमां हैं जां निसारे वतन

हमने क़ायम किया है वफ़ा का चलन

हम ख़ुलूस ओ मुहब्बत के पैकार हैं

राहे हक़ में सिदाक़त के पैकार हैं

दुश्मनों के लिए तीर ओ तलवार हैं

हमसे कहते हैं फिर भी कि ग़द्दार हो

इस हसीं लफ़्ज़ के तुम ही हक़दार हो

सच कहो सच से अगर रखते प्यार हो

क़त्ल किसने किया बापू ए वतन ?
...और ए बी उर्फ़ अर्ध बुद्धि ! ये बता कि तू छोटा है या झूठा है ।

तू 30 साल का होकर अपने चाचा को बेटा बता रहा है । बदतमीज़ कहीं के ।

या तो बता कि तू 70 साल का है । बुड्ढा समझकर तेरी हर बात झेलेंगे लेकिन अगर तू मुझसे 10 साल छोटा है तो फिर फिर छोटा बनकर बात कर ।

विरोध कर मगर मर्यादा को न भूल ।

तुझ आस्तिक से तो प्रवीण जी जैसे नास्तिक बेहतर हैं ।

उन्हीं से कुछ सीख ले । मैं भी उनसे सीखने का प्रयास कर रहा हूं ।

... बस प्रवीण जी के प्यारे नाम और उनसे सादर क्षमा के साथ अब की बोर्ड को आराम देता हूँ ।

जय हिन्द .

Thursday, March 25, 2010

शिव वंश के मरते मिटते सदस्यों को कौन यह बोध कराएगा कि वास्तव में वे आपस में सगे सम्बंधी और एक परिवार हैं ? Holy Family of Aadi Shiva


आरम्भ करता हूं अल्लाह के पवित्र नाम से साक्षात शिव अर्थात कल्याणकारी है । उसके हरेक भाषा में असंख्य नाम हैं । वह सत्य और सुन्दर है । उसकी बनाई हरेक भाषा सार्थक है । हरेक भाषा में उसका हरेक नाम सुन्दर और कल्याणकारी है । वह पवित्र है । न वह कभी जन्मा है और न ही मौत की कल्पना उसके लिए की जा सकती है । वह अनादि और अनन्त है ।
समस्त आकाशगंगाओं का वह अकेला स्वामी है । खरबों सूर्य उसके वशीभूत हैं । उसके महान और दिव्य तेज के सामने सभी सूर्यों की आभा शून्य है । वही जीवन का स्रोत है और मृत्यु भी उसी के अधीन है । न तो उसका विशाल अन्तरिक्ष हमारी नज़र में समा सकता है , और न ही उसका वह रूप हमारी कल्पना में आ सकता है जैसा कि वास्तव में वह है ।
उसका हरेक काम सार्थक है ।
सारे जग में हुक्म है तो बस उसका और और सच्चा प्रभुत्व है तो बस उसका ।
जिसे वह देना चाहे तो कोई उसे रोकने वाला नहीं और जिसे वह न देना चाहे तो उसे कोई देने वाला नहीं । उसके सारे कामों में से किसी एक काम की पूरी हक़ीक़त से भी कोई वाक़िफ़ नहीं है
और शांति हो आदम अर्थात आदि शिव पर अनादि शिव अल्लाह की ओर से ।
और शांति सारी मानवजाति की जननी मां हव्वा पर अर्थात जगत जननी माता पार्वती पर ।
शांति हो हम सब पर , हम जोकि उनका अंश भी हैं और उनका वंश भी ।
धर्म और मार्ग तो बस वही है जिसे अनादि शिव ने स्वयं निर्धारित किया और जिसका पालन परम पिता आदि शिव और माता पार्वती जी ने किया ।
जिसने उन्हें फ़ोल्लो (Follow) किया उसने अपना कल्याण किया और जिसने उनसे हटकर अपनी वासना से कोई नई रीत निकाली तो निश्चय ही उसने अपनी तबाही का सामान कर लिया ।
क्या है वह कल्याणकारी धर्म मार्ग , जिसे अनादि शिव ने आदि शिव पर प्रकट किया था ?
वह कहां अंकित है ?
वह कहां सुरक्षित है ?
जन जन को समता और ऐश्वर्य देने वाले उस मार्ग को अब कौन बताएगा ?
अलंकारों को उनके वास्तविक अर्थों में अब कौन समझेगा और विकारों को कौन हटाएगा ?
शिव वंश के मरते मिटते सदस्यों को कौन यह बोध कराएगा कि वास्तव में वे आपस में सगे सम्बंधी और एक परिवार हैं ?गुरू वही है जो अंधकार से प्रकाश में लाये । चेहरों को भी प्रकाश में ही पहचाना जा सकता है और हक़ीक़तों को पहचानने के लिए भी प्रकाश चाहिये , ज्ञान का प्रकाश । अंधकार को गर है मिटाना तो लाज़िम है ज्ञान को पाना (...जारी)
@ अन्य मक़सद धारी प्रिय अमित जी ,
मैंने किसी आपत्ति करने वाले हिन्दू के जनेऊ धारण न करने पर उसे अपने धर्म नियम की पाबन्दी के लिए तो ज़रूर कहा है लेकिन उसे छोड़ने के लिए कहां और कब कहा है , बताइये ?
जो बात मैंने कही नहीं उस पर मुझ पर बिगड़ने का क्या मतलब है ?
आपके जनेऊ आदि छुड़वाये हैं कबीर जी , नानक साहिब और अम्बेडकर आदि ने , सॉरी अम्बेडकर जी के लिए तो आपके यहां जनेऊ पहनना ही वर्जित है । बहरहाल जो भी हो , आप इनसे पूछिये कि इन्होंने ऐसा क्यों किया ?
इन्हें तो आपने सन्त और सुधारक घोषित कर दिया , इनसे आप कैसे पूछेंगे ?
मूतिर्यों पर भी बुलडोज़र मैंने कभी नहीं चलवाया और न ही ऐसा कहीं कहा है ?
आप संस्कृति रक्षक श्री मोदी जी के काम के साथ मेरा नाम क्यों जोड़ रहे हैं ?
गुजरात में मन्दिरों पर बुल्डोज़र उन्होंने चलवाया , उन्हीं से पूछिये ?
मैं तो वैदिक धर्म को मूलतः निर्दोष मानता हूँ । उसमें सुधार चाहता हूं ।
दयानन्द जी और पं. श्री राम आचार्य जी भी जीवन भर वैदिक धर्म के विकारों को अपने विचारों के अनुसार दूर करते रहे ।
मैं भी दूर करना चाहता हूं क्योंकि मैं इसी पवित्र भूमि का पुत्र हूं , मैं भी हिन्दू हूं । क्या मुझे इसका हक़ नहीं है ?अगर नहीं है , तो क्यों नहीं है ?
और मुझे वह हक़ पाने के लिए क्या करना पड़ेगा , जो कि हरेक हिन्दू को प्राप्त है ?
आप प्रायः वे सवाल उठाते हैं जिनका मौजूदा पोस्ट से कोई ताल्लुक़ नहीं होता । पिछली पोस्ट शिव महिमा पर थी , आप को उसमें जो ग़लत लगे उस पर ज़रूर टोकिये लेकिन ...
अब आपको क्या समझाया जाए , आप कोई बच्चे तो हैं नहीं ।
अभी मैं कुछ दिन शिव और महाशिव का गुण बखान करने के मूड में हूं ।
इसलिये प्लीज़ शांति से देखते रहिये । हां , जहां मैं कोई ग़लत बात कहूं वहां ज़रूर टोकिये या फिर आप मुझ से ज़्यादा ज्ञानियों के ब्लॉग्स पर जाकर भी अपने समय और ऊर्जा का सदुपयोग कर सकते हैं । इस तरह मेरी टी.आर.पी. भी डाउन हो जायेगी और यह ब्लॉग गुमनामी के अन्धेरे में खो जाएगा । लेकिन अगर आप आते रहे और कमेन्ट्स देते रहे तो यह ब्लॉग बना रहेगा ।
अगर यह ब्लॉग ग़लत है तो कृपया , इसे न देखकर , इसे मिटा दें ।
किसी पुराने तजर्बेकार ने यह सलाह आपको दी भी है ।
सलाह अच्छी है , आज़माकर तो देखें ।
ख़ैर , एक शेर अर्ज़ है -

अहले ज़र पे उठ सके जो , है कहां ऐसी नज़र

ज़ुल्म तो बस मुफ़लिस ओ नादार पर देखे गए

Wednesday, March 24, 2010

शिवलिंग की हक़ीक़त क्या है ? The universe is a sign of Lord Shiva .

परमेश्वर ही सच्चा शिव अर्थात कल्याणकारी है । जो प्राणी उसकी शरण में आ जाता है , वह भी शिवत्व को प्राप्त करके स्वयं भी शिव रूप हो जाता है । इसी को अलंकारिक भाषा में भक्त का भगवान से एकाकार होना कहा जाता है ।
भक्त को भगवान के साथ एकाकार होने की ज़रूरत क्यों पड़ी ?
ईश्वर शिव है , सत्य है , सुन्दर है , शान्ति और आनन्द का स्रोत है । ईश्वर सभी उत्कृष्ट गुणों से युक्त हैं । सभी उत्तम गुण उसमें अपनी पूर्णता के साथ मौजूद हैं । सभी गुणों में सन्तुलन भी है ।
प्रकृति की सुन्दरता और सन्तुलन यह साबित करता है कि उसके सृष्टा और संचालक में ये गुण हैं । प्राकृतिक तत्वों का जीवों के लिए लाभदायक होना बताता है कि इन तत्वों का रचनाकार सबका उपकार करता है ।

इन्सान अपना कल्याण चाहता है । यह उसकी स्वाभाविक इच्छा है । बल्कि स्वहित चिन्ता तो प्राणिमात्र की नैसर्गिक प्रवृत्ति है ।
जब इन्सान देखता है कि ज़ाहिरी नज़र से फ़ायदा पहुंचाते हुए दिख रहे प्राकृतिक तत्व तो चेतना , बुद्धि और योजना से रिक्त हैं तो फिर आखि़र जब इन जड़ पदार्थों में योजना बनाने की क्षमता ही सिरे से नहीं है तो फिर ये अपनी क्रियाओं को सार्थकता के साथ कैसे सम्पन्न कर पाते हैं ?
थोड़ा सा भी ग़ौर करने के बाद आदमी एक ऐसी चेतन शक्ति के वुजूद का क़ायल हो जाता है , जो कि प्रकृति से अलग है और जो प्रकृति पर पूर्ण नियन्त्रण रखता है।
सारी सृष्टि उस पालनहार के दिव्य गुणों का दर्पण और उसकी कुदरत का चिन्ह है ।

सारी सृष्टि स्वयं ही एक शिवलिंग है ।
इस सृष्टि का एक एक कण अपने अन्दर एक पूरी कायनात है ।
इस सृष्टि का एक एक कण शिवलिंग है ।
न तो कोई जगह ऐसी है जो शिव से रिक्त हो और न ही कोई कण क्षण ऐसा है जिसमें शिव के अलावा कुछ और झलक रहा हो ।
ईश्वर ने समस्त प्रकृति में फैले हुए अपने दिव्य गुणों को जब लघु रूप दिया तो पहले मानव की उत्पत्ति हुई । अजन्मे अनादि शिव ने एक आदि शिव को अपनी मनन शक्ति से उत्पन्न किया ।
( ...जारी )
ऋषियों ने सत्य को अलंकारों के माध्यम से प्रकट किया । कालान्तर में ज्ञान के स्तर में गिरावट आई और लोगों ने अलंकारों को न समझकर नई व्याख्या की । हरेक नई व्याख्या ने नये सवालों को जन्म दिया और फिर उन सवालों को हल करने के लिए
नये नये पात्र और कथानक बनाये गये ।
इस तरह सरल सनातन धर्म में बहुत से विकार प्रवेश करते चले गये और मनुष्य के लिए अपने सच्चे शिव का बोध कठिन होता चला गया ।
शिव को पाना तो पहले भी सरल था और आज भी सरल है लेकिन अपने अहंकार को त्यागना पहले भी कठिन था और आज भी कठिन है ।
क्या मैंने कुछ ग़लत कहा ?
मैं सभी की भावनाओं को पूरा सम्मान दे रहा हूं और अपने लिए भी यही चाहता हूँ ।

Tuesday, March 23, 2010

क्या वाक़ई हज्रे अस्वद शिवलिंग है ? Black stone : A sign of ancient spiritual history.


क्या वाक़ई हज्रे अस्वद शिवलिंग है ?

हमने कल आपको बताया था कि सच्चा शिव कौन है ?

सच्चा शिव वह परमेश्वर है जिसने मनुष्य को अपने स्वभाव पर रचा ।

परमेश्वर ने मनुष्य की रचना अपने अंश से नहीं बल्कि अपनी मनन शक्ति से की ।

मनुष्य की रचना से पहले भी हरेक चीज़ की रचना उसने ऐसे ही की ।

कायनात तरक्क़ी करते हुए एक स्टेज से दूसरी स्टेज की तरफ़ बढ़ती रही ।

ईश्वरीय योजना के अनुसार चीज़ें बनती रहीं और मिटती रहीं । यह सिलसिला आज भी जारी है । इसी दरम्यान वह मरहला आया जब ईश्वर ने प्रथम मानव की सृष्टि की और उसी के वाम पक्ष से , उसके बायें भाग से उसकी पत्नी को पैदा किया ।

यही जोड़ा पहला जोड़ा था । इसी से सारे मनुष्यों की उत्पत्ति हुई ।इसी पहले जोड़े को शिव और पार्वती कहा गया । इसी प्रथम पुरूष को ब्रह्मा कहा गया । शिव भी परमेश्वर का गुणवाचक नाम है और ब्रह्मा भी । क्योंकि मनुष्य में ईश्वर के गुण प्रतिबिम्बित होते हैं , इसलिये ईश्वर के अधिकतर सगुण नाम प्रायः प्रथम पुरूष के लिए इस्तेमाल हुए हैं ।

प्रथम के लिए संस्कृत में आद्य और आदि शब्द भी आये हैं ।

आदि से ही शब्द आदिम् बना जो कालान्तर में मुख सुख के कारण आदम प्रचलित हो गया । ईश्वर कल्याण करता है । अतः शिव कहलाता है । उत्पत्ति करने के कारण उसे ही ब्रह्मा कहा जाता है ।

प्रथम पुरूष ने इस सुंदर धरा पर सन्तान को पैदा किया । उसका रक्षण-शिक्षण किया । मनुष्य जाति का आरम्भ करके सारे जगत का कल्याण किया । मानव जाति की उत्पत्ति करने की वजह से उन्हें ब्रह्मा कहा गया और सबका कल्याण करने के कारण उन्हें शिव कहा गया ।

यहां यह भी समझ लेना ज़रूरी है कि लिंग का अर्थ होता है ‘चिन्ह‘ अर्थात निशान ।

नर की पहचान उनके यौनांग से होने के कारण उसे भी लिंग कह दिया जाता है ।

इस तरह लिंग शब्द कई अर्थ देता है जिनमें से दो का बयान यहां कर दिया गया ।

एक शिवलिंग तो वह है जो आम तौर से भारत के शिवालयों में बल्कि आजकल तो खुले आम हरेक नगर के चैराहों पर देखे जा सकते हैं । ये तो यौनांगों की आकृतियां हैं ।

पवित्र काबा के काले पत्थर का कोई सम्बन्ध यौनांग से नहीं है और न वह भारत के शिवलिंग की तरह लम्बा होता है ।

हज्रे अस्वद एक अण्डाकार काला पत्थर है ।

शिव अर्थात अजन्मे परमेश्वर और प्रथम पुरूष का स्मृति चिन्ह होने के कारण उसे शिवलिंग कहा जा सकता है ।

यह पत्थर स्वर्ग का है ।

यह मनुष्य को उसके महान स्वर्गिक पद और रूप की स्मृति का बोध कराता है ।

यह मनुष्य पर ईश्वर के जीवन रूपी सबसे बड़े वरदान की याद दिलाता है ।

यह शून्य रूपाकार वाला पत्थर इनसान को उसकी वास्तविक पापशून्य स्थिति की भी याद दिलाता है । इनसान के अवचेतन में उसका इतिहास और उसकी स्मृतियां मौजूद होती हैं ।

इस दिव्य चिन्ह को देखते ही उसके अवचेतन में दबा पड़ा उसका निष्पापी स्वरूप उसकी चेतना पर छा जाता है और उसके लिए पाप के मार्ग पर और आगे बढ़ना असंभव बना देता है । इस समय एक मानव अपने उस रूप को पा लेता है जैसा कि वह अपने शिशुकाल में था । यहीं से उसके दिल में अपने गुनाहों पर शर्मिन्दगी पैदा होती है , जो तौबा का रूप ले लेती है । यह उसके जीवन का टर्निंग पॉइंट होता है ।

यह लम्हा हरेक को नसीब नहीं होता बल्कि यह वरदान केवल उसी को नसीब होता है जो कि ईश्वरीय वरदान का खोजी होता है । जो लोग अपने नाम के साथ हाजी लिखकर मुसलिम मतदाताओं को प्रभावित करने आदि की ग़र्ज़ से हज करते हैं उनमें न तो किसी चेतना का उदय होता है और न ही वे ईश्वर के इस दिव्य वरदान को पाते हैं ।

पवित्र काबा का काला पत्थर कुछ दीगर वजहों से कुछ और भी ख़ासियतें रखता है । उन सब ख़ासियतों के कारण और अपने पूर्वजों से इसकी निस्बत होने के कारण एक मुसलिम इससे प्रेम करता है ।इनसान जिससे प्रेम करता है , उसे वह आदर भी देता है ।

इस दिव्य चिन्ह को चूमकर एक मुसलमान अपने प्रेम और आदर को ही प्रकट करता है ।


लेकिन...


क्या हज्रे अस्वद को चूमना मूर्ति पूजा के समान नहीं है ?...

इस पर हम कल बात करेंगे , इन्शा अल्लाह ।

@आदरणीय सीनियर सिटीज़न जनाब ए. बी. जी ,एकता और सुधार की बातों को मानने के लिए हम प्रमाण नहीं मांगते ।इस उम्र में आप पर अधिक लोड डालना वैसे भी ठीक नहीं । लोगों को ज़रूरत हुई तो आपकी बात के समर्थन में प्रमाण भी हम ही उपलब्ध करा देंगे । वैसे भी यह मुमकिन नहीं है कि पृथ्वी के केन्द्र पर एक अहम हिन्दू तीर्थ हो और उसका ज़िक्र वेदों और पुराणों में न हो ।

अलबत्ता हरेक महापुरूष के बारे में फैला दी गई अश्लील और बेहूदा कथाओं को विकार समझकर हम नकारते हैं । अब यदि आप या कोई दीगर आदमी उन्हें सत्य मानता है तो उनकी सत्यता के हक़ में प्रमाण दिया जाना ज़रूरी है । आप दें या कोई और , जो चाहे दे । हो सकता है कि हम ग़लत समझ रहे हों और हक़ीक़त कुछ और हो ।

@प्रिय मोहक मुस्कान स्वामी भाई अमित जी ,आपके सवाल के जवाब में मेरा चुप रहना मात्र इस कारण से है कि

1- मैं आपको खोना नहीं चाहता ।

2- दो आदमियों की बातचीत में ऐसे भी प्रसंग आ जाते हैं जो दूसरे लोगों को नागवार लगते हैं ।

3- इसीलिये मैंने आपको दो प्रश्नवीरों का हश्र सुनाकर सावधान करना अपना फ़र्ज़ समझा ।

4- आजकल मैं श्री मुरारी जी की सलाह मानकर ‘लहजा सुधार प्रैक्टिस‘ कर रहा हूं । आपको जवाब देता हूं तो मेरी प्रैक्टिस खण्डित हो जायेगी ।

... लेकिन आपके आग्रह को पूरा करने के लिए मैं आपको जवाब देने का प्रयास करूंगा ।

आज एक सवाल मैं भी अपने पाठकों से पूछना चाहूंगा । पाठकों की गिनती तो काउन्टर तक़रीबन 300 दिखाता है जबकि टिप्पणियां उससे आधी या तिहाई भी नहीं मिलतीं । जब हम आपके लिए अपने विचार प्रकट करने के लिए घण्टों मेहनत करते हैं तो क्या आप दो वाक्य लिखकर अपनी पसंद या नापसंद नहीं लिख सकते ?

मैं अपने सभी पाठकों के प्रति आभार व्यक्त करता हूं और उनके प्रति भी जो मुझे नियमित रूप से नापसन्द का वोट देते हैं । उनकी नियमित आमद सराहनीय है ।

सबका आभार ।

हमारा तो मिज़ाज ये है कि

माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके

कुछ ख़ार कम तो कर गये , गुज़रे जिधर से हम

क्या हम कह सकते हैं कि एक और दिन ऐसा गुज़र गया जबकि किसी की भावना आहत नहीं हुई ?

Monday, March 22, 2010

क्या काबा सनातन शिव मंदिर है ? Is kaba an ancient sacred hindu temple?



क्या काबा सनातन शिव मंदिर है ?


क्या सचमुच हज्रे अस्वद शिवलिंग है ?


क्या मक्का हिन्दुओं का प्राचीन पवित्र तीर्थ है ?


क्या हिन्दुओं का मक्का से कोई धार्मिक संबंध कभी रहा है ?


इन सवालों को रेखांकित करता हुआ एक अंग्रेज़ी लेख अभी कुछ दिनों पहले भाई तारकेश्वर जी ने अपने ब्लॉग पर नुमायां किया था ।
उसके बाद आज ब्लॉगिस्तान के वटपुरूष माननीय श्री ए बी इन्कनविनिएन्ट जी ने भी इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने की बड़ी सुन्दर कोशिश की है ।



हिन्दू मुसलिम भाइयों के बीच एकता के बिन्दुओं में पवित्र काबा एक प्रमुख बिन्दु है ।




वे आये दिन ऐसे आश्चर्यजनक किन्तु सत्य तथ्य प्रकट करते रहते हैं जिनके कारण तम प्रहरी तो आये दिन उन पर अपनी निन्दा के बाण चलाते ही रहते हैं


लेकिन उन्हें अपने उन हम अक़ीदा भाइयों की नाराज़गी का भी अन्देशा लगा रहता है जो क्लिष्ट हिन्दी और ‘तत्व‘ से अनजान हैं ।


परन्तु धन्य है वह पुण्य भूमि , जिसने ऐसे महान कर्म योगियों को जन्म दिया ।


धन्य है वह ब्लॉगभूमि , जहाँ कि आखि़रकार इन्होंने आकाश से ज्ञानगंगा को अवतरित कर ही डाला।


धन्य है वह ब्लॉगवाणी , जिसने उन्हें ऱजिस्ट्रेशन देकर मानव एकता का मार्ग प्रशस्त किया ।


धन्य है वह चिठ्ठा जगत , जिसने उनके स्वर को विश्व जन तक पहुंचाने के लिए अनुकूल मंच दिया।


धन्य हैं ये भी ...


और धन्य हैं वे भी ...


सभी धन्य हैं ।


और अन्त में धन्य हैं वे सभी पाठक जिन्होंने सार्थक सामग्री पढ़कर सिद्ध कर दिया कि भारतवासी सचमुच ही सत्य के खोजी और आकांक्षी हैं ।


आज का दिन ब्लॉगिस्तान के लिए एक ऐतिहासिक दिन है ।


आज विश्व के दो बड़े समुदायों के दरम्यान इस बात पर आखि़रकार सहमति बन ही गई कि मक्का एक पवित्र प्राचीन तीर्थ है ।


जिस तीर्थ से मुसलमान आज जुड़े हुए हैं , उससे हिन्दू भाई पहले दिन से जुड़े हुए हैं ।


यहां हिन्दी के पारिभाषिक नामों से नावाक़िफ़ भाइयों की सुविधा की ख़ातिर मैं कुछ शब्दार्थ पेश कर रहा हूं ताकि किसी को भी यह अटपटा न लगे कि कहां काबा और कहां मन्दिर ?


मन्दिर का अर्थ ‘भवन‘ होता है ।


आजकल यह शब्द केवल उस भवन के लिए बोला जाता है जहां ईश्वर की स्तुति वंदना और पूजा उपासना की जाती है ।


काबा भी ईश्वर की उपासना वंदना के लिए ही प्रयुक्त होता है । अतः उसे मन्दिर कहने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए ।


वैदिक साहित्य में ‘शिव‘ नाम कई अलग अलग पर्सनैल्टीज़ के लिए आया है ।


सिंह की छाल पर ईश्वर के ध्यान में लीन रहने वाले माता पार्वती के पति भोले जी अर्थात आदम के लिए भी यह नाम आता है ।


उन्होंने ही सबसे पहले सारे जगत का कल्याण करने के लिए काबा का निर्माण किया था ।


उन्होंने ही सबसे पहले अपनी सन्तान को पालनहार के आदेश उपदेश सुनाकर कल्याणकारी मार्ग दिखाया था । इसलिए उन्हें भी शिव कहा जाता है और काबा नामक आराधनालय को उनके द्वारा निर्मित होने के कारण भी शिव मंदिर कहा जाता है ।


शिव‘ वास्तव में सत्यस्वरूप परमेश्वर का एक सगुण नाम है ।


शिव का अर्थ होता है कल्याण करने वाला ।यह उस पालनहार का ही गुण है ।


वास्तव में वही शिव है । काबा को शिव का मंदिर इसी लिए कहा गया है क्योंकि काबा में इकठ्ठा होने वाले लोग उसी कल्याणकारी ईश्वर की वन्दना करने के लिए और उसके आदेश उपदेश जानने के लिए इकठ्ठा होते हैं ।


भाई तारकेश्वर जी ने और श्री ए.बी. जी ने हालांकि कोई मज़बूत शास्त्रीय प्रमाण नहीं दिया है लेकिन इसके बावजूद आज हम उन पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे ।


आज तो हम केवल इस बात का आनन्द लेना चाहते हैं कि तल्खि़यां विदा हो रहीं हैं , नफ़रतें दम तोड़ रही हैं , इनसानियत जीत रही है ।




हिन्दुओं को काबा मुबारक हो ।


निःसन्देह काबा उनका भी है ।


काबा ही क्या , पूरी पृथ्वी पालनहार ने महर्षि मनु को दी थी ।


पूरी धरा उनकी है । धर्म भी उनका और हम खुद उनके




आओ , संभालो अपना सत्य , अपनी सत्ता और अपनी विरासत ।




आज की पोस्ट में किसी भावनाएं तो आहत नहीं हुईं ?


कृपया अवश्य सूचित करें ।


... और जल्द ही हम बताएंगे कि किनके विकारी कर्म बना रहे हैं हिन्दू बुद्धिजीवियों को नास्तिक ?

Sunday, March 21, 2010

क्या वाक़ई भगवान छोटा और अल्लाह बड़ा है ? Rajyoga or Saashtang .

किसी की ये अदा भी खूब रही कि अपने काव्य मंजूषा को गद्य मंजूषा बना दिया और उसमें भी अल्लाह को बड़ा और भगवान को छोटा कह दिया ।
क्या वाक़ई भगवान छोटा और अल्लाह बड़ा है ?
छोटाई और बड़ाई की तुलना के लिए दो वुजूद होना लाज़िमी है । इस सृष्टि के रचनाकार को अरबी भाषा में ’अल्लाह’ कहते हैं । उसी को संस्कृत में ’भगवान‘ कहते हैं ।


‘भगः सकलैश्वय्र्यं सेवनं वा विद्यते यस्य स भगवान्‘


अर्थात जो समस्त ऐश्वर्य से युक्त वा भजने योग्य है वह भगवान है ।


दोनों एक ही रचनाकार के नाम हैं । इसके बावजूद दोनों नामों में एक अन्तर है।


अरबी भाषा में अल्लाह पालनहार का निज नाम है जो केवल उसी मालिक के लिए लिखा और बोला जाता है । यह नाम किसी आदमी के लिए लिखना नाजायज़ है जबकि अरबी भाषा का ही नाम ‘रहीम‘ है , यह उसका गुणवाचक नाम है । यह उस मालिक के गुण को व्यक्त करने के लिए भी आता है और बन्दों की रहमदिली को ज़ाहिर करने के लिए भी ।


संस्कृत साहित्य में उसका निज नाम ऊँ माना गया है । भगवान उसका गुणवाचक नाम है । मुसलमान भाई तो इस बात की एहतियात रखते हैं कि अपने बच्चों का नाम अल्लाह नहीं रखते लेकिन हिन्दू भाई अपने बच्चों का नाम ऊँ भी रख देते हैं और भगवान भी ।


क्या मुसलमानों की यह एक ऐसी ख़ासियत नहीं है जिसे हिन्दू भाईयों को भी अपनाने की ज़रूरत है?


भाई तारकेश्वर जी ने मुझे अपने साथ हरिद्वार स्थित श्री रामदेव जी के आश्रम में ले जाने का प्रस्ताव दिया है । उन्हें लगता है कि इससे मुझे सुकून मिलेगा ।


उनके आश्रम को तो उनके गुरू जी ही छोड़कर चले गये । तब से रामदेव जी खुद बेचैन हैं । वहां मुझे क्या चैन मिलेगा ?


मेरे पड़ौसी श्री पं. प्रेमनारायण शर्मा जी अपनी 65 वर्षीय माता जी को उनके 10 दिवसीय कैम्प में लेकर पहुंचे । माता जी को दमा ,बवासीर , कंब्ज़ , ल्यूकोरिया व गैस ट्रबल आदि बीमारियां थीं । माननीय रामदेव जी के निर्देशन में उन्होंने जो कुछ किया उसके नतीजे में उनकी पुरानी बीमारियों में से तो एक न गयी अलबत्ता 7 वें दिन उनकी रीढ़ की हड्डी का मोहरा ज़रूर सरक गया ।
माता जी मधुमेह की भी मरीज़ हैं , आप्रेशन भी नहीं करा सकतीं थीं। बिस्तर पर ही टट्टी आदि करने लगीं । पूरा घर मुसीबत में पड़ गया । वे मेरे पास आये , दवा ली ,लाभ हुआ तो ’लला , लला ’ कहकर बहुत दुआएं दीं ।
योग कोई खेल नहीं है कि आते ही जोत दो । साधक की काफ़ी मुद्दत तो यम नियम और आसन की सिद्धि में ही निकल जाती है । तब कहीं जाकर प्राणायाम का नम्बर आता है । ल्ेकिन यम नियम की पाबन्दी तो वह करे जिसे ईश्वर से जुड़ना हो , यहां तो लोग कसरत के लिये आते हैं और मक़सद होता है बीमारी से नजात ।
पतंजलि के योगदर्शन में भी योग का अर्थ ईश्वर से जुड़ना नहीं मिलता । इसीलिये बादरायण ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ब्रह्मसूत्र अर्थात वेदान्तदर्शन के एक सूत्र में कहा है :

एतेन योगः प्रत्युक्तः ब्रह्मसूत्र 2-1-3
अर्थात इससे हम योग का खंडन करते हैं , इससे योग रद्द समझा जाए ।
इस ब्रह्मसूत्र की व्याख्या में शंकराचार्य जी ने लिखा है कि योग क्योंकि वेदों की परवाह नहीं करता , अतः उका खंडन किया गया है , उसे रद्द किया गया हैः
निराकरणं तु न वेदनिरपेक्षेण योगमार्गेण निश्रेयसमधिगम्यत इति
- ब्रह्मसूत्र 2-1-3 पर शंकरभाष्य
अर्थात बिना वेदों के योगमार्ग का आश्रय लेने मात्र से , कल्याण नहीं होता ; अतः इसका निराकरण ( खंडन ) किया गया है। वेदों में योग शब्द तो मिलता है लेकिन इसका अर्थ वहां क्या है ?देखिये -
योगः रथे योजनम्
ऋग्वेद 1-34-9 पर सायणभाष्य
अर्थात योग का अर्थ है :
रथ में जोड़ना ; जबकि योग वाले योग शब्द का अर्थ करते हुए कहते हैं कि , चित्तवृत्तियों के निरोध का नाम योग है :

योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः पांजलयोगसूत्र 1-2

इसके बावजूद मैं शंकराचार्य जीकी तरह योग का पूरी तरह खंडन नहीं करता । मैं योग को हितकारी मानता हूं और स्वयं योग करता हूं लेकिन मैं आष्टांग योग के बजाए साष्टांग योग करता हूं । यह सहज सरल और प्रभाव में तीव्र है ।
षटचक्रों का जागरण जल्दी होता हैं। इसके ज़रिये व्यक्ति में निवृत्ति की नहीं बल्कि प्रवृत्ति की भावनाएं जन्म लेती हैं ।


इसे कुंवारे , गृहस्थ , बच्चे , बूढ़े और औरतें बल्कि गर्भवती औरतें तक आसानी से कर सकती हैं । यह सहजता से सिद्ध होने वाला योग है । इससे मनुष्य ईश्वर को तुरन्त उपलब्ध होता है । ईश्वर ही भगवान है । अरबी भाषा में उसी को अल्लाह कहते हैं । जब सबका मालिक एक है तो वह एक मालिक स्वयं से ही बड़ा या छोटा कैसे हो सकता है?


लेकिन कहने वालों का क्या है ?


वैदिक साहित्य का सबसे ज़्यादा बेड़ा ग़र्क़ कवियों ने ही किया है और ये अब भी बाज़ नहीं आ रहे हैं । मुसलमान अज़ान देते हैं , कहते हैं -


अल्लाहु अकबर : अर्थात भगवान सबसे बड़ा है ।


आओ सत्य को पहचानें और मिलकर चलें कल्याण की ओर ।


...लेकिन हरिद्वार की बात तो रह ही गयी ।


हरिद्वार निश्चय ही एक रमणीय जगह है । मैं खुद इसी के दामन में रहता हूं । मेरी नसों में गंगाजल ही व्याप्त है । अब मैं आऊँ या भाई तारकेश्वर जी आयें , जो भी रास्ता निकले लेकिन मिलकर कहीं न कहीं तो जाना ही है ।


तो क्यों न मिलकर काबा ही चलें ?


वह आपका भी तीर्थ है और हमारा भी ।वेद पहले से ही प्रतिमा पूजा से रोकते हैं ।इसलाम के माध्यम से उसी लोप हो चुके वैदिक धर्म का नवीनीकरण हुआ है । यज्ञादि तो आपने भी निरस्त कर रखे हैं , ईश्वर ने इसलाम में भी निरस्त करके आपके विचार पर प्रामाणिकता की मुहर लगा दी है ।


आइये , नफ़रत छोड़कर प्रेम से देखिये ।


विकारग्रस्त परम्पराएं अनेक किए हुए हैं । इसीलिए मैं विकार को अस्वीकार करता हंू ।
This artistic concept is drawn by my 9 yrs old son, Master Anas Khan. He is a good preacher also and has his own blog on