सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Thursday, March 25, 2010
शिव वंश के मरते मिटते सदस्यों को कौन यह बोध कराएगा कि वास्तव में वे आपस में सगे सम्बंधी और एक परिवार हैं ? Holy Family of Aadi Shiva
आरम्भ करता हूं अल्लाह के पवित्र नाम से साक्षात शिव अर्थात कल्याणकारी है । उसके हरेक भाषा में असंख्य नाम हैं । वह सत्य और सुन्दर है । उसकी बनाई हरेक भाषा सार्थक है । हरेक भाषा में उसका हरेक नाम सुन्दर और कल्याणकारी है । वह पवित्र है । न वह कभी जन्मा है और न ही मौत की कल्पना उसके लिए की जा सकती है । वह अनादि और अनन्त है ।
समस्त आकाशगंगाओं का वह अकेला स्वामी है । खरबों सूर्य उसके वशीभूत हैं । उसके महान और दिव्य तेज के सामने सभी सूर्यों की आभा शून्य है । वही जीवन का स्रोत है और मृत्यु भी उसी के अधीन है । न तो उसका विशाल अन्तरिक्ष हमारी नज़र में समा सकता है , और न ही उसका वह रूप हमारी कल्पना में आ सकता है जैसा कि वास्तव में वह है ।
उसका हरेक काम सार्थक है ।
सारे जग में हुक्म है तो बस उसका और और सच्चा प्रभुत्व है तो बस उसका ।
जिसे वह देना चाहे तो कोई उसे रोकने वाला नहीं और जिसे वह न देना चाहे तो उसे कोई देने वाला नहीं । उसके सारे कामों में से किसी एक काम की पूरी हक़ीक़त से भी कोई वाक़िफ़ नहीं है
और शांति हो आदम अर्थात आदि शिव पर अनादि शिव अल्लाह की ओर से ।
और शांति सारी मानवजाति की जननी मां हव्वा पर अर्थात जगत जननी माता पार्वती पर ।
शांति हो हम सब पर , हम जोकि उनका अंश भी हैं और उनका वंश भी ।
धर्म और मार्ग तो बस वही है जिसे अनादि शिव ने स्वयं निर्धारित किया और जिसका पालन परम पिता आदि शिव और माता पार्वती जी ने किया ।
जिसने उन्हें फ़ोल्लो (Follow) किया उसने अपना कल्याण किया और जिसने उनसे हटकर अपनी वासना से कोई नई रीत निकाली तो निश्चय ही उसने अपनी तबाही का सामान कर लिया ।
क्या है वह कल्याणकारी धर्म मार्ग , जिसे अनादि शिव ने आदि शिव पर प्रकट किया था ?
वह कहां अंकित है ?
वह कहां सुरक्षित है ?
जन जन को समता और ऐश्वर्य देने वाले उस मार्ग को अब कौन बताएगा ?
अलंकारों को उनके वास्तविक अर्थों में अब कौन समझेगा और विकारों को कौन हटाएगा ?
शिव वंश के मरते मिटते सदस्यों को कौन यह बोध कराएगा कि वास्तव में वे आपस में सगे सम्बंधी और एक परिवार हैं ?गुरू वही है जो अंधकार से प्रकाश में लाये । चेहरों को भी प्रकाश में ही पहचाना जा सकता है और हक़ीक़तों को पहचानने के लिए भी प्रकाश चाहिये , ज्ञान का प्रकाश । अंधकार को गर है मिटाना तो लाज़िम है ज्ञान को पाना (...जारी)
@ अन्य मक़सद धारी प्रिय अमित जी ,
मैंने किसी आपत्ति करने वाले हिन्दू के जनेऊ धारण न करने पर उसे अपने धर्म नियम की पाबन्दी के लिए तो ज़रूर कहा है लेकिन उसे छोड़ने के लिए कहां और कब कहा है , बताइये ?
जो बात मैंने कही नहीं उस पर मुझ पर बिगड़ने का क्या मतलब है ?
आपके जनेऊ आदि छुड़वाये हैं कबीर जी , नानक साहिब और अम्बेडकर आदि ने , सॉरी अम्बेडकर जी के लिए तो आपके यहां जनेऊ पहनना ही वर्जित है । बहरहाल जो भी हो , आप इनसे पूछिये कि इन्होंने ऐसा क्यों किया ?
इन्हें तो आपने सन्त और सुधारक घोषित कर दिया , इनसे आप कैसे पूछेंगे ?
मूतिर्यों पर भी बुलडोज़र मैंने कभी नहीं चलवाया और न ही ऐसा कहीं कहा है ?
आप संस्कृति रक्षक श्री मोदी जी के काम के साथ मेरा नाम क्यों जोड़ रहे हैं ?
गुजरात में मन्दिरों पर बुल्डोज़र उन्होंने चलवाया , उन्हीं से पूछिये ?
मैं तो वैदिक धर्म को मूलतः निर्दोष मानता हूँ । उसमें सुधार चाहता हूं ।
दयानन्द जी और पं. श्री राम आचार्य जी भी जीवन भर वैदिक धर्म के विकारों को अपने विचारों के अनुसार दूर करते रहे ।
मैं भी दूर करना चाहता हूं क्योंकि मैं इसी पवित्र भूमि का पुत्र हूं , मैं भी हिन्दू हूं । क्या मुझे इसका हक़ नहीं है ?अगर नहीं है , तो क्यों नहीं है ?
और मुझे वह हक़ पाने के लिए क्या करना पड़ेगा , जो कि हरेक हिन्दू को प्राप्त है ?
आप प्रायः वे सवाल उठाते हैं जिनका मौजूदा पोस्ट से कोई ताल्लुक़ नहीं होता । पिछली पोस्ट शिव महिमा पर थी , आप को उसमें जो ग़लत लगे उस पर ज़रूर टोकिये लेकिन ...
अब आपको क्या समझाया जाए , आप कोई बच्चे तो हैं नहीं ।
अभी मैं कुछ दिन शिव और महाशिव का गुण बखान करने के मूड में हूं ।
इसलिये प्लीज़ शांति से देखते रहिये । हां , जहां मैं कोई ग़लत बात कहूं वहां ज़रूर टोकिये या फिर आप मुझ से ज़्यादा ज्ञानियों के ब्लॉग्स पर जाकर भी अपने समय और ऊर्जा का सदुपयोग कर सकते हैं । इस तरह मेरी टी.आर.पी. भी डाउन हो जायेगी और यह ब्लॉग गुमनामी के अन्धेरे में खो जाएगा । लेकिन अगर आप आते रहे और कमेन्ट्स देते रहे तो यह ब्लॉग बना रहेगा ।
अगर यह ब्लॉग ग़लत है तो कृपया , इसे न देखकर , इसे मिटा दें ।
किसी पुराने तजर्बेकार ने यह सलाह आपको दी भी है ।
सलाह अच्छी है , आज़माकर तो देखें ।
ख़ैर , एक शेर अर्ज़ है -
समस्त आकाशगंगाओं का वह अकेला स्वामी है । खरबों सूर्य उसके वशीभूत हैं । उसके महान और दिव्य तेज के सामने सभी सूर्यों की आभा शून्य है । वही जीवन का स्रोत है और मृत्यु भी उसी के अधीन है । न तो उसका विशाल अन्तरिक्ष हमारी नज़र में समा सकता है , और न ही उसका वह रूप हमारी कल्पना में आ सकता है जैसा कि वास्तव में वह है ।
उसका हरेक काम सार्थक है ।
सारे जग में हुक्म है तो बस उसका और और सच्चा प्रभुत्व है तो बस उसका ।
जिसे वह देना चाहे तो कोई उसे रोकने वाला नहीं और जिसे वह न देना चाहे तो उसे कोई देने वाला नहीं । उसके सारे कामों में से किसी एक काम की पूरी हक़ीक़त से भी कोई वाक़िफ़ नहीं है
और शांति हो आदम अर्थात आदि शिव पर अनादि शिव अल्लाह की ओर से ।
और शांति सारी मानवजाति की जननी मां हव्वा पर अर्थात जगत जननी माता पार्वती पर ।
शांति हो हम सब पर , हम जोकि उनका अंश भी हैं और उनका वंश भी ।
धर्म और मार्ग तो बस वही है जिसे अनादि शिव ने स्वयं निर्धारित किया और जिसका पालन परम पिता आदि शिव और माता पार्वती जी ने किया ।
जिसने उन्हें फ़ोल्लो (Follow) किया उसने अपना कल्याण किया और जिसने उनसे हटकर अपनी वासना से कोई नई रीत निकाली तो निश्चय ही उसने अपनी तबाही का सामान कर लिया ।
क्या है वह कल्याणकारी धर्म मार्ग , जिसे अनादि शिव ने आदि शिव पर प्रकट किया था ?
वह कहां अंकित है ?
वह कहां सुरक्षित है ?
जन जन को समता और ऐश्वर्य देने वाले उस मार्ग को अब कौन बताएगा ?
अलंकारों को उनके वास्तविक अर्थों में अब कौन समझेगा और विकारों को कौन हटाएगा ?
शिव वंश के मरते मिटते सदस्यों को कौन यह बोध कराएगा कि वास्तव में वे आपस में सगे सम्बंधी और एक परिवार हैं ?गुरू वही है जो अंधकार से प्रकाश में लाये । चेहरों को भी प्रकाश में ही पहचाना जा सकता है और हक़ीक़तों को पहचानने के लिए भी प्रकाश चाहिये , ज्ञान का प्रकाश । अंधकार को गर है मिटाना तो लाज़िम है ज्ञान को पाना (...जारी)
@ अन्य मक़सद धारी प्रिय अमित जी ,
मैंने किसी आपत्ति करने वाले हिन्दू के जनेऊ धारण न करने पर उसे अपने धर्म नियम की पाबन्दी के लिए तो ज़रूर कहा है लेकिन उसे छोड़ने के लिए कहां और कब कहा है , बताइये ?
जो बात मैंने कही नहीं उस पर मुझ पर बिगड़ने का क्या मतलब है ?
आपके जनेऊ आदि छुड़वाये हैं कबीर जी , नानक साहिब और अम्बेडकर आदि ने , सॉरी अम्बेडकर जी के लिए तो आपके यहां जनेऊ पहनना ही वर्जित है । बहरहाल जो भी हो , आप इनसे पूछिये कि इन्होंने ऐसा क्यों किया ?
इन्हें तो आपने सन्त और सुधारक घोषित कर दिया , इनसे आप कैसे पूछेंगे ?
मूतिर्यों पर भी बुलडोज़र मैंने कभी नहीं चलवाया और न ही ऐसा कहीं कहा है ?
आप संस्कृति रक्षक श्री मोदी जी के काम के साथ मेरा नाम क्यों जोड़ रहे हैं ?
गुजरात में मन्दिरों पर बुल्डोज़र उन्होंने चलवाया , उन्हीं से पूछिये ?
मैं तो वैदिक धर्म को मूलतः निर्दोष मानता हूँ । उसमें सुधार चाहता हूं ।
दयानन्द जी और पं. श्री राम आचार्य जी भी जीवन भर वैदिक धर्म के विकारों को अपने विचारों के अनुसार दूर करते रहे ।
मैं भी दूर करना चाहता हूं क्योंकि मैं इसी पवित्र भूमि का पुत्र हूं , मैं भी हिन्दू हूं । क्या मुझे इसका हक़ नहीं है ?अगर नहीं है , तो क्यों नहीं है ?
और मुझे वह हक़ पाने के लिए क्या करना पड़ेगा , जो कि हरेक हिन्दू को प्राप्त है ?
आप प्रायः वे सवाल उठाते हैं जिनका मौजूदा पोस्ट से कोई ताल्लुक़ नहीं होता । पिछली पोस्ट शिव महिमा पर थी , आप को उसमें जो ग़लत लगे उस पर ज़रूर टोकिये लेकिन ...
अब आपको क्या समझाया जाए , आप कोई बच्चे तो हैं नहीं ।
अभी मैं कुछ दिन शिव और महाशिव का गुण बखान करने के मूड में हूं ।
इसलिये प्लीज़ शांति से देखते रहिये । हां , जहां मैं कोई ग़लत बात कहूं वहां ज़रूर टोकिये या फिर आप मुझ से ज़्यादा ज्ञानियों के ब्लॉग्स पर जाकर भी अपने समय और ऊर्जा का सदुपयोग कर सकते हैं । इस तरह मेरी टी.आर.पी. भी डाउन हो जायेगी और यह ब्लॉग गुमनामी के अन्धेरे में खो जाएगा । लेकिन अगर आप आते रहे और कमेन्ट्स देते रहे तो यह ब्लॉग बना रहेगा ।
अगर यह ब्लॉग ग़लत है तो कृपया , इसे न देखकर , इसे मिटा दें ।
किसी पुराने तजर्बेकार ने यह सलाह आपको दी भी है ।
सलाह अच्छी है , आज़माकर तो देखें ।
ख़ैर , एक शेर अर्ज़ है -
अहले ज़र पे उठ सके जो , है कहां ऐसी नज़र
ज़ुल्म तो बस मुफ़लिस ओ नादार पर देखे गए
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44 comments:
अहले ज़र पे उठ सके जो , है कहां ऐसी नज़र
ज़ुल्म तो बस मुफ़लिस ओ नादार पर देखे गए
sach kaha,,,khoob kaha,,,,masha allah
मैं इसी पवित्र भूमि का पुत्र हूं , मैं भी हिन्दू हूं । क्या मुझे इसका हक़ नहीं है ?अगर नहीं है , तो क्यों नहीं है ?
abe to kiya ham musalman hen agar tu hindu he?
phir bakwas
barkhudar jam gaye ho,,kabhi urdu men bhi kuch pesh kar diya karo
Ek aur Lajawab Post
अभी मैं कुछ दिन शिव और महाशिव का गुण बखान करने के मूड में हूं । इसलिये प्लीज़ शांति से देखते रहिये
beta doctor se pandit banne ka irada he kya?
इसे कहते हैं ---"प्रवचन"....
यानि.... "पर वचन"....
यानी ....दुसरे का वचन......यानि..
....अब इससे ज्यादा अच्छी हिन्दी तो हमें आती नहीं सर जी ......
माफ कीजियेगा.....थोड़ी सरल भाषा का प्प्रयोग करके समझाइये.......
.....इसी कारण तो मुझे संस्कृत में नंबर कम आते थे......
......मैं तो प्रवचन में कभी मन नहीं लगा पाया.....
अल्लाह, खुदा,इश्वर,जीसस......सभी मुझे माफ करें और आप भी......
हाँ ....एक लिंक दे रहा हूँ .....जितना मैंने समझा है...........
.................
.कृष्ण की बांसुरी, ..बिस्मिल्लाह खान की शहनाई..... और जीसस का क्रॉस
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_1697.html
@Janab Kairanvi Sahab
ek Sher hi kisi Sher ki qadr kar sakta hai . Aaj aapne sabit kar dikhaya.
@ Thanks Nandu ji
@Qasmi sahab apka to khas Shukriya . Bhai kahan hai apki kitab?
aur kahan the abhi tak aap?
@ Zeeshan sahab , Aapka aana hamen ZEESHAN yani Shaan wala bana deta hai . apke aur Shahnawaz bhai ke aane se khannas bhi under control rehte hain.
@ Vishva Gaurav ji, Vaapsi mubarak ho. Kumbh kaisa chal raha hai ?
@ Indian ji , Aapko koi aitraz to nahin ek musalman ke pandit banne par ?
@ Murari ji, Aapki aamad ka mashkoor hun. Aapke link ko dekha bhi aur padha bhi aur wahan kuchh likha bhi .
जनाब मैं बार बार नहीं लिखूंगा की आप अच्छा लिख रहे हैं। अब एसा लिखने की जरुरत ही नहीं लगती। हाँ अब मैं अपने दिल की छुपी हुई कुछ बातोंको जरुर सबके सामने उजागर करना चाहूँगा। मैं मन ही मन जहाँ जहाँ तक हूँ। कारन निम्नलिखित हैं।
आप अच्छ लिखे या बुरा , आपको ढेर सारे लोग पढ़ते और टिप्पणिया देते हैं ।
२) आपके विरोधी चाहे कितने ही कट्टर क्यों न हों पर हैं समझदार। जनाब अमित जी इसका ज्वलंत उदहारण हैं। कहते है एक मुर्ख साथी से अच्छा एक समझ दर विरोधी होता है।
३) विरोधी समझदार हो और साथ में सुन्दर भी हो तो सोने पर सुहागा हो जाता है।
मुझे पूरा विश्वाश है अमित जी अपना जवाब जरुर लिख रहे होंगे। मेरे विचार में अपनी पिछली टिपण्णी में उन्होंने आप पर नहीं मुस्लिम कद्मुल्लेपन पर निशाना साधा था जिसकी वजह से पाक स्थान भी दूषित हो गया। शायद आप सहमत हों।
@Bhai Vichar Shunya ji , Mere blog par aakar kisi aur pe nishana sadhne ka kya tuk hai ? Nishana hi sadhna tha to Brahmin Vidhvaon ki durdasha ke liye zimmmedar apne jaise kathpandon par saadha hota . see this link for bramin widows http://khwabkadar.blogspot.com/2010/03/blog-post_23.html
Kya aap mujh se sahmat hain ?
yaar aadmi bahut hi shaandar aur mazedaar ho aap...
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@ आदरणीय, प्रभातस्मरणीय, अत्यंत-आत्ममुग्ध, विरोधी-अपमान-निपुण व पुरातन-ग्रंथ-अनर्गल-व्याख्या-स्वयंभू-विशेषज्ञ डॉक्टर अनवर जमाल साहब,
अच्छा लगा, आपके यह कहने पर कि "मैं इसी पवित्र भूमि का पुत्र हूं , मैं भी हिन्दू हूं ।"
लेकिन सिर्फ कहने मात्र से कोई हिन्दू नहीं हो जाता, असल सनातनधर्मी हिन्दू धर्म के मामले में बहुत बड़ी सोच रखता है, संकीर्ण नहीं!
आप द्वारा उठाई गई यह बहस और उस के परिणाम स्वरूप फैली यह सब दुर्भावना आपके एक कथन मात्र से खत्म हो सकती है, यदि अपने धर्म पर दॄढ़ रहने वाले एक सनातमधर्मी हिन्दू की तरह ही आप भी यह कह दें इसी मंच पर, कि...
"मेरे धर्म (इस्लाम) के अतिरिक्त अन्य धर्मों के धर्मावलंबी भी यदि परोपकार भरा, न्यायपूर्ण जीवन जीयें, अपने धर्म का पालन करें तो वह भी उस अजन्मे अविनाशी ईश्वर की कृपा पा सकते हैं । "
है आपमें यह साहस ?
छोड़ सकते हो स्वधर्म को सर्वश्रेष्ठ व एकमात्र सही धर्म, तथा स्वधर्मग्रंथ को ईश्वर का अंतिम व एकमात्र अनुकरणीय संदेश मानने की अपनी कट्टरपंथी मानसिकता ? तभी आप सही मायने में 'हिन्दू' कहलाने लायक बन सकते हो ! यानी एक ऐसा व्यक्ति जो धर्म का 'मर्म' जान चुका है ।
मेरा यह सवाल और प्रस्ताव एकदम सीधा-साफ है, पर मैं जानता हूँ कि आप कभी ऐसा कहोगे नहीं बल्कि आप उलजलूल तर्क और शब्दजाल रचकर मुद्दे से बचने और बहस को भटकाने का प्रयास करोगे क्योंकि आपकी नीयत साफ नहीं है और आपका एकमात्र ध्येय By hook or by crook अपने धर्म को ऊँचा, बाकी को नीचा और अन्य धर्मों के मानने वालों पर अपना ज्ञान(???) बघारना है।
आभार!
जमाल, बेटे क्या बकवास लगा रखी है? तुम फिर शुरू हो गए?
और शांति हो आदम अर्थात आदि शिव पर अनादि शिव अल्लाह की ओर से ।
और शांति सारी मानवजाति की जननी मां हव्वा पर अर्थात जगत जननी माता पार्वती पर ।
तुम वेदों को मानते हो, वेदों के देवताओं को मानते हो. वेदों के अनुसार शिव अनंत हैं, अजन्मे हैं, अविनाशी हैं. आदम तो कब का मर खप गया. शिव महाकाल हैं, मृत्यु और विध्वंस के संचालक हैं.
अरे, यही गुण तो तुम्हारे अल्लाह के भी हैं! क्यों भगवान शिव (जिन्हें तुम अल्ला कहते हो) को आदम बता कर काबे का अपमान कर रहे हो.
जगत जननी पार्वती नहीं बल्कि शक्ति हैं, जिन्हें दुर्गा, अम्बा, इला या एला के नाम से जाना जाता है. शक्ति अर्धनारीश्वर शिव का स्त्री रूप हैं.
खैर ख़ुशी इस बात की है की तुमने साफ़ साफ़ मान लिया की भगवान शिव ही अल्लाह हैं. अब जब काबे वाले शालिग्राम की परिक्रमा करने मक्का जाओ, तो ॐ नमः शिवाय का जाप करना न भूलना. भोलेनाथ कृपा करेंगे.
खुद तुम कहते हो शिव वही हैं जिसे तुम अल्लाह कहते हो. जिनके नाम पर मस्जिद-अल-हराम (हरम्) मक्का में बनी हुई है. जिनके शालिग्राम की काबे में परिक्रमा करते हो.
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मूर्तियों पर बुलडोजर चलवाने की मुसलमानों की औकात नहीं रही अब. तुम खैर हो ही क्या?
धर्म के नाम कोई अतिक्रमण करेगा तो वे अवैध निर्माण गिरा दिए जायेंगे, चाहे मंदिर हो या मस्जिद. यह होती है धर्मनिरपेक्षता. जैसी निति मंदिरों के लिए वही मस्जिदों के लिए.
तुम्हे हिन्दू होने का हक़ इसीलिए नहीं है क्योंकि तुम मुसलमान हो. पहले इस्लाम त्याग कर हिन्दू बनो.
क्या 'हिन्दू शब्द भारत के लिए समस्या नहीं बन गया है?
आज हम 'हिन्दू शब्द की कितनी ही उदात्त व्याख्या क्यों न कर लें, लेकिन व्यवहार में यह एक संकीर्ण धार्मिक समुदाय का प्रतीक बन गया है। राजनीति में हिन्दू राष्ट्रवाद पूरी तरह पराजित हो चुका है। सामाजिक स्तर पर भी यह भारत के अनेक धार्मिक समुदायों में से केवल एक रह गया है। कहने को इसे दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय माना जाताहै, लेकिन वास्तव में कहीं इसकी ठोस पहचान नहीं रह गयी है। सर्वोच्च न्यायालय तक की राय में हिन्दू, हिन्दुत्व या हिन्दू धर्म की कोई परिभाषा नहीं हो सकती, लेकिन हमारे संविधान में यह एक रिलीजन के रूप में दर्ज है। रिलीजन के रूप में परिभाषित होने के कारण भारत जैसा परम्परा से ही सेकुलर राष्ट्र उसके साथ अपनी पहचान नहीं जोडऩा चाहता। सवाल है तो फिर हम विदेशियों द्वारा दिये गये इस शब्द को क्यों अपने गले में लटकाए हुए हैं ? हम क्यों नहीं इसे तोड़कर फेंक देते और भारत व भारती की अपनी पुरानी पहचान वापस ले आते।
हिन्दू धर्म को सामान्यतया दुनिया का सबसे पुराना धर्म कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि दुनिया में ईसाई व इस्लाम के बाद हिन्दू धर्म को मानने वालों की संख्या सबसे अधिक है। लेकिन क्या वास्तव में हिन्दू धर्म नाम का कोई धर्म है? दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर रहे डॉ. डी.एन. डबरा का कहना है कि 'हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे नया धर्म है।
http://navyadrishti.blogspot.com/2009/12/blog-post_31.html
@ A B ji , hindu vicharak to mante hai ki Har bhartiya hindu hai chahe uski puja vidhi kuchh bhi ho. Musalmano ko bhi Kisi Muhammadi Hindu mana hai .phir aap mujhe namaz Chodne ke liye kyun keh rahe hen
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मेरा उपरोक्त सवाल और प्रस्ताव एकदम सीधा-साफ है, पर मैं जानता हूँ कि आप कभी ऐसा कहोगे नहीं बल्कि आप उलजलूल तर्क और शब्दजाल रचकर मुद्दे से बचने और बहस को भटकाने का प्रयास करोगे क्योंकि आपकी नीयत साफ नहीं है और आपका एकमात्र ध्येय By hook or by crook अपने धर्म को ऊँचा, बाकी को नीचा और अन्य धर्मों के मानने वालों पर अपना ज्ञान(???) बघारना है।
आभार!
आरम्भ करता हूं अल्लाह के पवित्र नाम से। उसका केवल कूरान में एक ही नाम हैं । वह न सत्य और न सुन्दर है । उसको भाषा बनाना आता ही नही। । न वह कभी जन्मा है और न कभी जन्मे गा और न ही मौत की कल्पना उसके लिए की जा सकती है । वह कालपनिक है उसको किसी ने नही देखा है तो वह पवित्र कैसे हो सकता है वह नादि और अन्त है।
समस्त आतंकवादियो का वह अकेला स्वामी है । और न ही उसका वह रूप हमारी कल्पना में आ सकता है जैसा कि वास्तव में वह है । कोई उसके काम के बारे किताब लिखी है, जो की डारावनी है, जैसे, कत्ल की रात, काफिर, शैतान जुल्म का बादशाह, काला बाबा, जिन
उसका हरेक काम नार्थक है जैसे, जो मेरा साथ नही वह काफिर, काफिर हराम है. उसने केवल बह्मा की बनी बनायी ब्रह्माण्ड को अपने जुल्मो से लहू लुहान किया, उस सैतान को कोडो मारो, पैगम्बेर भी यही कहते है, वह काला बाबा है, योनी उसका आकार, लोग उसके आकार को चूमते है. शिवलिंग का वो दिवाना है, वह प्यासा है शिवलिंग का, सारे पाप उसमे समाये है जो उसके कहे पर नही चलता उसका खतना हो जाता है, व अंग विनासक है व दयालू है औरतो को जुल्म ढाता है वो कहता है ससुर अगर औरत का रेप कर दो तो , ससुर उसका पति हो सक्ता है, वह शक्तिमान है, बच्चे पैदा करने के लिये शक्ति चाहिये, वो कहता है काफिरो को हिन्दूओ को मारो, काटो, डा. अनवर भी तो हिन्दू है पर कृष्ण का अवतार हुआ, उन्होने , उनके चेलो का( पापियो) सर काट के अरब सागर में फेक दिया, पैगम्बर भी मरा, केवल अनवर बच्चा, क्योकि अन्वर हिन्दू है. पर हिन्दू विचार धारा मे, खतना नही होता, ना ही मुर्दा पूजा होती, हिन्दू वैदिक है और वैदिक सनातनी धर्म है , इसलिये क्या अनवर मुस्लिम काफिर है, मुस्लिम काफिरो ने भारत वर्ष के टुकडे किये, ये गद्दार है, देश द्रोही है, देस के गद्दारो को जूते मारो (या कोडे) सालो को
आकाल्पनिक अल्लाह न कोई वजूद , है न कोई नेक काम किया, ये पैगम्बेर ने डारा रखा है जन्नत के नाम पर, बस डर है कि तालिबान गोली ना मार दे
सत्य केवल कैलास वाले बाबा है, मक्का मे कैलास वाले बाबा की पूजा होती है, जो सत्य है प्रिकरमा
होती है
Raj
क्या आप जैसे नासमझों को मुसलमान कहलाने का हक़ है...?
हमारा ताल्लुक़ इस्लाम से है...और हम मुसलमान हैं...
हम ईद मनाते हैं...ईद पर बहुत से लोग हमारे घर आते हैं...जिनमें मुसलमान ही नहीं हिन्दू और ईसाई भी होते हैं...हमारी सहेलियों को भी अम्मी ईदी देती हैं...
दिवाली के दिन भी हमारे घर में बहुत रौनक़ होती है...इस दिन भी बहुत से हिन्दू और ईसाई परिचित हमारे घर आते हैं...
न तो हमें कभी ईद के दिन यह महसूस हुआ कि हम मुसलमान हैं और ईद सिर्फ़ हमारा ही त्यौहार है...और न ही कभी दिवाली के दिन ऐसा महसूस हुआ कि दिवाली सिर्फ़ हिन्दुओं का त्यौहार है...
इसी तरह क्रिसमस और गुड फ्राई डे को भी हम और हमारा भाई चर्च जाते हैं...
हमें लगता है...सभी त्यौहार खुशियों का पैग़ाम देते हैं...और ख़ुशी में जितने ज़्यादा लोग शामिल हुआ करते हैं, वो उतनी ही बढ़ जाया करती है...
हज़रत मुहम्मद (सल्लललाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया है कि...किसी भी मुसलमान के नज़दीक सबसे बड़ा गुनाह किसी के दिल को ठेस पहुंचाना है...इसके अलावा 'क़ुरआन' के 30वें पारे में कहा गया है, 'लकुम दीनोकुम वले यदीन' यानी तुम्हें तुम्हारा दीन (मज़हब) मुबारक, हमें हमारा दीन (मज़हब) मुबारक...
फिर क्यों हम किसी और मज़हब के लोगों के दिल को ठेस पहुंचाएं...? अगर हम ऐसा करते हैं तो क्या हम अपने रसूल और अल्लाह ('क़ुरआन' अल्लाह की किताब) की नाफ़रमानी नहीं कर रहे हैं...? क्या यह सब करके भी हमें खुद को मुसलमान कहलाने का हक़ रह जाता है...?
सोचो जमाल!
@ आदरणीय प्रवीण शाह जी,
मेरे विचार में कोई भी सच्चा मुसलमान बेहिचक इसे कह सकता है, "कोई मेरे धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों के धर्मावलंबी भी यदि परोपकार भरा, न्यायपूर्ण जीवन जीयें, अपने मूल विकारहीन धर्म का पालन करें तो वह भी उस अजन्मे अविनाशी ईश्वर की कृपा पा सकते हैं ।"
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@ zeashan zaidi,
फिर वही जिद, यहाँ पर "मूल विकारहीन धर्म" शब्द क्यों घुसा रहे हैं, मैंने तो नहीं लिखा यह, किनारे खड़े होकर देखें तो यह सारे धर्म एक समान ही हैं अपने अपने अतार्किक, अवैज्ञानिक, अज्ञानतापूर्ण और आदिम विचारों से भरे... किसी एक धर्म के मानने वालों को क्या हक बनता है स्वधर्म को 'विकारहीन' व दूसरे के धर्म को "मूल से हटा और विकारग्रस्त" बताने का... सच कहूँ तो कभी-कभी तरस भी आता है आप जैसों पर... क्योंकि धर्म का आप जैसों का Interpretation आप लोगों को रोक देता है विचारों के खुलेपन से... डरते ही रहते हो, डरते डरते ही जीते हो... आप लोग... न जाने किससे...
@ प्रवीण जी,
चलिए मैं दूसरों की नहीं अपने धर्म की बात करता हूँ. इस्लाम में आतंकवाद और सुसाइड बोम्बर के लिए कोई जगह नहीं. लेकिन अब यह विकार बनकर कहीं कहीं इस्लाम में शामिल हो रहा है. तो यह धर्म का विकार हुआ या नहीं? अब क्या हमारी ज़िम्मेदारी नहीं की अपने धर्म के इस विकार को हटाकर असली धर्म का पालन करें? इसमें डरने जैसी क्या बात?
अहले ज़र पे उठ सके जो , है कहां ऐसी नज़र
ज़ुल्म तो बस मुफ़लिस ओ नादार पर देखे गए
समस्त आकाशगंगाओं का वह अकेला स्वामी है । खरबों सूर्य उसके वशीभूत हैं । उसके महान और दिव्य तेज के सामने सभी सूर्यों की आभा शून्य है । वही जीवन का स्रोत है और मृत्यु भी उसी के अधीन है । न तो उसका विशाल अन्तरिक्ष हमारी नज़र में समा सकता है , और न ही उसका वह रूप हमारी कल्पना में आ सकता है जैसा कि वास्तव में वह है ।
उसका हरेक काम सार्थक है
मैं भी दूर करना चाहता हूं क्योंकि मैं इसी पवित्र भूमि का पुत्र हूं , मैं भी हिन्दू हूं । क्या मुझे इसका हक़ नहीं है ?अगर नहीं है , तो क्यों नहीं है ?
@आदरणीय ब्लॉग पधारक परछिद्रान्वेषाभ्यासमग्नजनशिरोमणि नास्तिक्यभ्रमधुंधाच्छादित विकलहृदय क्षीणमनबलेन्द्रिय दुसाध्य वायरसयुक्त ब्लॉगरूपी ध्वस्त दुर्गस्वामी प्रश्नकलाविस्मृत सद्भाव वक्तव्य याचक प्रवीण जी ,
3 बिन्दीयुक्त आपकी टिप्पणी प्राप्त हुई परन्तु उसमें आपके व्यक्तित्व की छाप न थी ।
1- उसमें आपने हस्बे आदत यहां और यहां कहकर कुछ भी न दिखाया था । हालांकि आप कम से कम जनाब सतीश सक्सेना जी के ब्लॉग का लिंक तो दे ही सकते थे , जहां आपने यह कमेन्ट तब किया था जब मैंने ‘शिव महाशिव व्याख्यानमाला‘ का उद्घाटन नहीं किया था ।
2- आप अपने वक्तव्यानुसार नास्तिक हैं और श्री श्री सारथि जी महाराज की पावन सूची कलंकित कॉलम में नास्तिक नम्बर 3 की उपाधि से विभूषित भी हैं ।
नास्तिक होने के दावे के बावजूद ईश्वर और धर्म को कल्याणकारी मानने का क्या अर्थ है ?
क्या मेरे प्रवचन के बाद आपने नास्तिक मत त्याग दिया है ?
या फिर आप लोगों को अपने बारे में धोखा दे रहे थे और आप नास्तिक केवल इसलिये बने हुए थे कि आप तो दूसरों की मान्यताओं पर प्रश्नचिन्ह लगा सकें लेकिन कोई आपसे कुछ न पूछ सके ?
हमारे स्वर्गीय गुरू जी कहा करते थे कि हिन्दुस्तान की मिट्टी का मिज़ाज आध्यात्मिक है , यहां का आदमी नास्तिक नहीं हुआ करता । भारत का नास्तिक भी ईश्वर से डरता है ।
ख़ैर जो भी आपकी मानसिक प्रॉब्लम हो ।
हमें तो यह बताइये कि मेरी किस बात से दुर्भावना फैली है ?
मेरी दुर्भावना के शिकार प्रमुख व्यक्तियों के नाम क्या हैं ?
वे व्यक्ति खुद तो इसी जुर्म के आदी तो नहीं हैं ?
ब्लॉग मेरे गीत पर आपकी टिप्पणी के बाद ‘आदि शिव और अनादि शिव पर सुन्दर तत्वचर्चा‘ चल रही है । क्या इतने लम्बे चैड़े और इतने प्यारे व्याख्यान के बाद भी दुर्भावना वालों की दुर्भावना दूर नहीं हुई ?
आखि़र जब इतनी पवित्र हस्तियों पर इतनी बड़ी बातें देख सुनकर भी लोगों के दिलों का ज़ंग न छूटा तो आपके द्वारा प्रस्तावित मात्र 3 सैन्टेन्स कह देने से कैसे छूट जाएगा ?
जब आप पहले से ही बदगुमान हैं कि मैं आपके प्रस्ताव को न मानूंगा तो आप यहां करने क्या आये हैं ?
लेकिन याद रखिये , नास्तिकों की बुद्धि के तंग दायरे से केवल ईश्वर ही नहीं बल्कि उसके बन्दे भी परे होते हैं ।
जो आप कह रहे हैं मैं कह दूंगा ।
लेकिन...
1- आपकी बात मानने से पहले मैं 3 बातों की गारण्टी चाहूंगा ।
उनमें सबसे पहली बात यह है कि आप मुझे यक़ीन दिलाएं कि यह प्रस्ताव सचमुच आपका ही है , किसी अन्य ने आपके नाम से नहीं भेजा है और जो कुछ आप मुझसे मानने के लिए कह रहे हैं ,आप स्वयं भी उसपर विश्वास रखते हैं।
@Raj , एक बददिल बदज़बान कल हमें यह टिप्पणी दे गया। यह इस लायक़ नहीं कि इसे ज़्यादा स्पेस दिया जाए इसे तो हम यूं ही चलता कर देंगे । बेशक हमने अपने विरोधी प्रवीण जी का विरोध किया है लेकिन अपनी पोस्ट में उन्हें इतना ज़्यादा स्पेस देकर हमने उनके प्रति अपने प्रेम को ही प्रकट किया है ।
निःसन्देह वे मेरे विरोधी हैं लेकिन एक बेतरीन विरोधी हैं । एक बेहतरीन आदमी हैं । उनकी वाणी से मैंने कभी कोई गाली निकलते हुए नहीं सुनी । उन्हें यक़ीन आये या न आये लेकिन मैं बता देना चाहता हूं कि मैं उनसे दिल से प्यार करता हूं । मैं तो अपने हरेक दिन को अपना आखि़री दिन मानता हूं । रोड एक्सीडेन्ट में आये दिन लोगों को मरते हुए देखता हूं और खुद भी बहुत बार चपेट में आने से उस मालिक के करम से बचा हूं लेकिन आख़िरकार मौत तो मुझे आकर रहेगी ।
कब आ जाये , नहीं जानता ?
बहरहाल इस मर्त्यलोक में मुझे सदा नहीं रहना है ।
... लेकिन मैं जहां भी रहूंगा प्रवीण जी को एक बेहतर इनसान के रूप में अरबों खरबों साल तक याद रखूंगा ।
मेरे मरते ही प्रवीण जी कृपया मेरे कटु वचनों को माफ़ कर दीजियेगा ।
लेकिन जब तक मैं जियूंगा हरेक नास्तिक को हैरान किये रखंगा और आप को भी ।
अरे इस राज की खाज मिटाना तो रह ही गई ।
रह जाने दो भाई ये आदमी नालायक़ है और
दो महान आदमियों के साथ इसका ज़िक्र करना ठीक नहीं है । पहले ये किसी लायक़ बने तो सही ।
यह अपना ब्लॉग बनाने या उसे बताने तक के लायक़ नहीं ।
गद्दार खुद है । बता दयानन्द जी को ज़हर किस मुसलमान ने दिया ?
आदि शंकराचार्य को ज़हर किस मुसलमान ने दिया ?
मेरे प्रिय श्री रामचन्द्र जी को उनके कुल सहित नष्ट करने की धमकी देने वाला और उन्हें सचमुच नष्ट करने वाला दुर्वासा भी क्या मुसलमान था ?
गांधी को , इंदिरा गांधी को और राजीव गांधी को मारने वाला किस धर्म का था ?
अब पाकिस्तान की सुन !
जिन्नाह की मज़ार वन्दना करने वाले हिन्दुस्तानी लाल का नाम बताओ ?
जिन्नाह को 800 पेज से ज़्यादा लिखकर दोषमुक्त किस नेता ने कहा ?
मुसलमानों के भारत आगमन से पहले ही आर्यावर्त का हज़ारों टुकड़ों मे विभाजन करने वाले हिन्दू राजाओं को और उनके वंशजों को ग़द्दार कब कहा जायेगा ?
विदेशी हमलावरों को भारत पर हमले के लिए बुलाने वाले और उनकी मदद करने वाले ग़द्दार राजा और सिपाही तुम्हारे बाप दादा ही तो थे ।
ग़द्दारी तो तुम्हारे खून में है ।
आज भी जिस सीट पर बैठे हो जनता से रिश्वत लिये बग़ैर काम ही नहीं करते । वाह क्या खूब राष्ट्रभक्ति है ?
नकटे ही आज नाक वालों को नक्कू कह रहे हैं?
हम मुसलमां हैं जां निसारे वतन
हमने क़ायम किया है वफ़ा का चलन
हम ख़ुलूस ओ मुहब्बत के पैकार हैं
राहे हक़ में सिदाक़त के पैकार हैं
दुश्मनों के लिए तीर ओ तलवार हैं
हमसे कहते हैं फिर भी कि ग़द्दार हो
इस हसीं लफ़्ज़ के तुम ही हक़दार हो
सच कहो सच से अगर रखते प्यार हो
क़त्ल किसने किया बापू ए वतन ?
@ A B ...और ए बी उर्फ़ Ardh बुद्धि ! ये बता कि तू छोटा है या झूठा है । तू 30 साल का होकर अपने चाचा को बेटा बता रहा है । बदतमीज़ कहीं के । या तो बता कि तू 70 साल का है । बुड्ढा समझकर तेरी हर बात झेलेंगे लेकिन अगर तू मुझसे 10 साल छोटा है तो फिर फिर छोटा बनकर बात कर । विरोध कर मगर मर्यादा को न भूल । तुझ आस्तिक से तो प्रवीण जी जैसे नास्तिक बेहतर हैं । उन्हीं से कुछ सीख ले । मैं भी उनसे सीखने का प्रयास कर रहा हूं ।
@Zeeshan bhai
@Saleem khan sahib
aur aap sabhi hazrat ka shukriya.
aaiyye ab naye page par bahas karen .
Tanks all of you .
गुरूजी बहुत अच्छा लिखा हर कदम मंजिल की ओर है, कोई और पढ़े न पढ़े मैं तो जरूर पढूंगा ओरों को भी पढ़ने की सलाह दूंगा
ये संकीर्ण विचारधार वाले क्या जाने की इस्लाम का आधार ही एकता है, निम्न पंक्तियाँ लिख रहा हूँ उन हिन्दुओं के लिए जो मुसलमानों के प्रति घृणा बनाये हुए हैं, एक मुसलमान हिन्दुओं के लिए इस तरह की रचना करता है परन्तु यदि किसी हिन्दू ने हिन्दू मुसलमानों को करीब लाने की कोई इस तरह की जहमत उठाई हो तो मुझे जरूर लिखे,
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं गोकुल गाँव के ग्वालन।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।
जो खग हौं बसेरो करौं मिल कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन।।
यह आलेख हम जैसे "सिर्फ मानवीय मूल्यों में आस्था" रखने वालों (ज्ञानी/अल्पज्ञानी/मुरख/महाज्ञानी) को कुछ कहने के लिए उकसा रहा है. इसका साफ़ मतलब है की मैं(सुलभ) कोई विशिष्ट या अलग सोच नहीं रखता.
आस्तिक नास्तिक ईश्वरीय सत्ता के मुद्दे पर मैंने हाल ही में ऐसी टिप्पणी किया था...
मेरे विचार में,
मैं ही इश्वर हूँ और प्रत्येक बुद्धिप्राप्त प्राणी इश्वर है. इस सृष्टि में दो ही चीज़ है... जान और बेजान (Living thing & Non-living thing) मनुष्य पिछले हज़ारो/अनगिनत सदियों से अपनी बुद्धि और चेतना का निरंतर प्रयोग करते हुए आज सूचना युग में विचरण कर रहा है. मैं चाहूँ तो वैदिक काल के ऋषि या इसा पूर्व महात्मा बुद्ध या इशु या मोहम्मद या जैनगुरु महावीर की तरह किसी नए धर्म/पंथ का ईजाद कर सकता हूँ और फुर्सत की उम्र रही तो महाकाव्य(पवित्र किताब धर्मग्रंथ) या holi-book भी रच सकता हूँ और भक्तों/अंध-भक्तों (अनुयायियों) की फ़ौज मिले तो दुनिया भर में ईश्वरीय सत्ता को नए तरीके से स्थापित कर सकता हूँ. लेकिन ऐसा कर के क्या होगा क्या पृथ्वी पर मानव समुदाय का सचमुच कल्याण हो जायेगा. शायद नहीं! होगा सिर्फ इतना की आने वाले शताब्दियों में एक और युग-पुरुष/धर्मगुरु/पैगम्बर इत्यादि के रूप में सुलभ और उसके द्वारा बनाए गए इश्वर (I-S-H-W-A-R या G-O-D या A-L-L-A-H या #-#-#) को धर्म-निरपेक्ष समाज/राज में एक पंथ/धर्म के रूप में मान्यता मिल जायेगी (क्यूंकि तबतक दुनिया के कुछ प्रतिशत आबादी इसके अनुयायी रहेंगे और मानवीयता का तकाजा है सर्व:धर्म:समभाव सबकी आस्था का सम्मान होगा). लेकिन क्या मानव समुदाय सच्चा मानव बन पायेगा. शायद नहीं. स्थिति आज की तरह या इससे भी त्रासद होगी... तभी तो एक सच्चा मानव (धार्मिक/नास्तिक/आस्तिक मानव) ऐसा दुःख देखकर इस पृथ्वी से अल्पायु में ही विदा हो गया जिनको हम स्वामी विवेकानंद नाम से जानते हैं.
हर विवेकशील प्राणी का दिल ही जानता है की वो क्यूँ ऐसा स्वयं पर विश्वास करता है या क्यूँ ऐसा तर्क औरों को देता है.
मेरा मानना है, एक उम्र के बाद सबको ब्रह्मज्ञान (स्वयं ज्ञान या सृष्टि-ज्ञान ) हो जाता है. मैं ज्ञान के तलाश में हूँ.... इसके लिए मुझे किसी अन्य के मंतव्यों/वक्तव्यों की जरुरत नहीं होगी. ऐसा मेरा विश्वास है.
@ऊपर किसी ने ऐसा लिखा है...
हज़रत मुहम्मद (सल्लललाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया है कि...किसी भी मुसलमान के नज़दीक सबसे बड़ा गुनाह किसी के दिल को ठेस पहुंचाना है...
अब ये बताने की जरुरत नहीं है की ठेस कब कब कैसे लगता है.
बेहतर होगा अपनी ऊर्जा राष्ट्र के नवनिर्माण में लगाएं. जो आज बारूद के ढेर पे है.वेद कुरआन को तार्किक बहस का मुद्दा न बनाकर, अपने आस पास युवाओं में वैश्विक और तकनिकी शिक्षा का प्रसार करें.केवल संस्कृति, तहजीब और उचित मानवीय व्यवहार एवं चारित्रिक गुणों को पुष्ट करने के लिए "वेद, कुरआन" का सन्दर्भ लेना श्रेयष्कर रहेगा.
शुभ भाव
सुलभ
nice post
JAI SHRI RAM DR. SAHAB
AAP KI SOCH VASTAV MAIN ACHI HAI DONO BADE DHARMO KO LEKAR LEKIN MERE KUCH SAWALO KE JABAB DENGE TO ABHARI RAHOONGA.
1) BHAGWAN SHIV ALLAH HAI YA AADAM PEHLE SOCH LE PHIR LIKHE YAHA PAR AAPNE DONO HI BATAYE HAI ......KYO KI AGAR ALLAH HI SHIV BHAGWAN HAI AUR ADDAM BHI TO ISLAM MAIN ALLAH AUR AADAM DONO HI POOJA KE YOG HO JAYENGE JO ISKE VIRUDH HAI
2) JANAOU ( YAGOPAVIT ) KA SCIENCE REASON HAI PAR NANAKDEV KE PITAJI NE UNHE REASON NAHI BATAYA TO HUM KYA KARE HINDU KE POORE GRANTH BRAHMIN NE HI LIKHE, JANAOU KA REASON HAI JAB AADMI TOILET YA BATHROOM JATA HAI TO KAN PAR 3 BAR LAPETATA HAI JIS SE MEMORY LOSS NAHI HOTI AUR SABKO PATTA HAI BRAHMIN KITNE MINDED HOTE HAI
@ Mera desh mera Dharm wale Bhai sahab , aki npanktiyan padh kar ankhon men do boonden chhalak aayin.
Pehli baar ek aisa nishpaksh aadmi mila hai jo sach ko nirvikar ho kar dekh bhi sakta hai aur swikar bhi sakta hai .
thanks
@ Sulabh satrangi ji , meri oorja insaniyat ki seva men hi lag rahi hai . apki salah par bhi jaldi hi amal karunga aur phir dekhunga ki aa mera kitna saath dete hain ?
ज्यादा ही ज्ञान देना है तो एक काम करो
अपने धर्म के लोगों के उत्थान के लिए कार्य करो। दूसरे धर्मों में क्या था, क्या है और क्या होना चाहिए... इसकी चिंता छोड़ो।
न तो तुम्हारा उद्देश्य एकता बढ़ाना है और न ही कुछ जानना समझना।
विवाद खड़ा करके ब्लॉग की रेटिंग बढ़ाना चाहते हो और वो भी खुद ही टिप्पणियां करके।
अपने धर्म के उत्थान के विषय में सोचो और उसे परिष्कृत करो। हिन्दू धर्म के बारे में एक शब्द भी मत कहना। इसी में समझदारी होगी।
@ DR. ANWAER JAMAL JI,
Tippani me jawaab dene ke liye shukriya! chunki aapke profile me email id nahi hai so yahi likh raha hun. Aapki mehnat insaniyat ki seva me lag rahi hai. yah jaankar santosh hua. Meri salah par jab bhi aap rashtra hit me ya kuch yuvaaon ke utthan ke liye likhe to kripya mujhe mere id par mail kar de. Blogs ki itni jyaada bheed hai ki main sabhi post dekh nahi sakta.
Rahi baat aapka saath dene ki to banda hamesha haajir hai. Main sirf comment ke jariye saath dene ke bajaye khule dil se sahyog karna jyaada pasand karta hun. Maslan, kabhi bhi aapko koi sahyog chaahiye WEBSITE Nirmaan, Blog, Banner Promotion ya samaaj rashtr hit me chanda to yaad bhar kar lijyega. Mujhe aise karyon me sachmuch bahut khushi hoti hai. Insaaniyat mera dharm hai.
Allah Haafiz.
(Email jarur kijyega)
Dr. Jamaal ji one more thing,
Here is my blog: राष्ट्र जागरण धर्म हमारा > लम्हों ने खता की और सदियों ने सजा पाई http://myblogistan.wordpress.com/
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