सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Thursday, March 4, 2010

आत्महत्या करने में हिन्दू युवा अव्वल क्यों ? under the shadow of death

मुक्ति मोक्ष और निर्वाण की ग़लत कल्पना के चलते या हालात से घबराकर हमारे पूर्वजों में जो लोग आत्महत्या करके मर चुके हैं उनका महिमा मंडन बन्द किया जाना अब समय की मांग है । आत्महत्या संबधी ख़बरें प्रायः अख़बारों में छपती रहती हैं और नागवारी उन्हें पढ़ भी हैं लेकिन कभी इस बात पर ध्यान नही देते कि इस सूची से मुसलमान का नाम प्राय : नदारद क्यों होता है ?
आखिर क्या बात है कि एक मुसलमान एक हिन्दू भाई के मुकाबले कहीं ज़्यादा कठिन हालात में पैदा होता है , बड़ा होता है। अपनी तमाम वफ़ादारियों के बावजूद दिल को छलनी कर देने वाले ताने सुनता है । सामाजिक और प्रशासनिक उत्पीड़न भी झेलता है लेकिन इसके बावजूद वह किसी हिन्दू की तरह आत्महत्या करने जैसा कायरतापूर्ण क़दम नहीं उठाता । आखि़र एक ही ज़मीन पर बसने वाले दो समुदायों के बीच इतना बड़ा अन्तर क्यों ?

वह क्या बात है जो दोनों को दो बनाती है ?


वह केवल मान्यता का अन्तर है जो दोनों के मन में बचपन से ही आकार लेने लगती हैं ।


मुसलमान आवागमन में विश्वास नहीं करता और न ही ‘शरीर को अपनी मर्ज़ी से किसी जीर्ण पत्ते के समान त्यागना जायज़ समझता है । बल्कि वह स्वर्ग नर्क में विश्वास करता है और आत्महत्या को ईश्वर की नज़र में दण्डनीय अपराध मानता है इसलिये वह आत्महत्या की तरफ़ ले जाने वाले किसी भी विचार को अपने मन में जड़ ही नहीं पकड़ने देता ।


स्वर्ग नर्क का वर्णन तो पवित्र कुरआन की तरह पवित्र वेदों और पुराणों में भी है । वैदिक मान्यता को जीवन में कैसे धारण करें ? यह मुसलमानों से सीखा जा सकता है । अपनी औलाद के अच्छे भविष्य के लिए , उसके जीवन की सुरक्षा के लिए मुसलमानों से अकारण नफ़रत छोड़ दीजिए । इससे नुक़्सान तो स्पष्ट है लेकिन नफ़ा कुछ भी नहीं। राष्ट्र को नुक़्सान पहुंचाना तो राष्ट्रवाद नहीं कहलाता ।


क्या आप मुसलिम इतिहास में किसी एक भी नबी वली या आलिम का नाम बता सकते हैं जिसने आत्महत्या की हो या करने की प्रेरणा दी हो ?


अब आप हिन्दू इतिहास पर नज़र डालिये और बताइये कि वह कौन सी औरत है जो पवित्रता का पर्याय मानी जाती है ? और उसकी मृ्त्यु कैसे हुई ? उसके पराक्रमी पति की मृत्यु कैसे हुई?


उसके छोटे भाई ने अपने जीवन का त्याग किस नदी में डूबकर किया ? ग़ौर करेंगे तो सच्चाइ समझ में आ जाएगी और आप लोक परलोक में कल्याप्रद मार्ग पा जाएंगे ।


अब कुछ कल के बारे में ...


आदरणीय वेद व्यथित जी आप दो दिन पहले कह रहे थे कि मुसलमान ज्ञान को नकार रहे हैं विज्ञान को नकार रहे हैं । लेकिन जब हमने कल आपसे पूछा कि दयानन्द जी की मान्यतानुसार सूर्य चन्द्रमा और तारों पर सर्वत्र मनुष्यादि प्रजा का वास है और वहां की व्यवस्था भी इन्हीं चारों वेदों के अनुसार चल रही है । सत्यार्थप्रकाश , अष्टमसमुल्लास


इस बात पर आपने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी । दयानन्द जी का उद्धरण देखते ही सारी ज्ञान पिपासा ‘शान्त हो गई ? या फिर ‘शायद आपको यक़ीन ही नहीं आया होगा कि दयानन्द जी जैसा ज्ञानी भी ऐसी बात कह सकता है ? यजुर्वेद का हवाला देकर भी आपके सामने हमने अपनी जिज्ञासा प्रकट की थी । उस अश्लील अनुवाद को बार बार लिखकर न तो हम आपको ‘शर्मिन्दा करना चाहते हैं और न ही किसी अन्य को ।


आपने व्यंग्य न किया होता तो ‘शायद हम प्रथम बार भी उसे न लिखते । क्योंकि हम वेदों का सिर्फ़ आदर ही नहीं करते बल्कि उनकी कल्याणकारी शिक्षाओं का पालन भी करते हैं।


बहरहाल आपने सोचा होगा कि पहले पढ़कर देख लूं कि हक़ीक़त क्या है ?अब लगभग 48 घण्टे बीत चुके हैं । पूरे ब्लॉग जगत की निगाहें आपकी तरफ़ लगी हुई हैं । उपरोक्त दोनों विषयों के बारे में आपका ज्ञान क्या कहता है ? हम तो कल आपके लिए पलक पांवड़े बिछाए बैठे रहे लेकिन आप नहीं आए । आए बग़ैर तो आपका दिल नहीं माना होगा लेकिन आपने अपनी हाज़िरी को ज़ाहिर करना मुनासिब न समझा होगा । बहरहाल आप जितना समय लेना चाहें ले लें और किसी से पूछना या लाना चाहें तो ले आयें लेकिन हमें जवाब ज़रूर दें । देखा मुसलमान ज्ञान के कितने क़द्र्रदान होते हैं ? अहंकार बुरा होता है । किसी का तिरस्कार करना तो और भी ज़्यादा बुरा होता है । आपको टक्कर लग चुकी है आशा है अब जीवन में किसी को कुछ कहने से पहले अपना अवलोकन ज़रूर कर लिया करेंगे , विशेषकर किसी मुसलमान को कुछ कहने से पहले।


कृप्या ब्लॉग जगत पर सक्रिय सभी बुद्धिराक्षस इस चेतावनी पर अवश्य ध्यान दें ।अब हम यहां मौजूद हैं । मायावादी मिथ्याभिमानी पढ़पशुओं की बलि अब हमारे ज्ञान यज्ञ में दी जाएगी ।


‘शुरूआत हो भी चुकी है ।

अग्ने नय सुपथा राय अस्मान । {वेद}

34 comments:

DR. ANWER JAMAL said...

सावधान !
कोई भी आदमी बदतमीज़ी के लिए खद ज़िम्मेदार होगा ।

DR. ANWER JAMAL said...

जो बोले सोच समझ कर बोले कभी अपने ही गले में अटक जाए ।

Anonymous said...

jaharbujhe tera uddesh kya hai.
ek tu hi doodh dhula hai paapi?

Anonymous said...

तेरा ब्लाग तो गया समझ ।
देखना बच्चू अब मैं क्या करता हूं

Mohammed Umar Kairanvi said...

वाह गुरू जी हो गये शुरू, कहते हो ''अब हम यहां मौजूद हैं । मायावादी मिथ्याभिमानी पढ़पशुओं की बलि अब हमारे ज्ञान यज्ञ में दी जाएगी ।'' पलक पांवड़े बिछाए बैठे रहे लेकिन कोई नहीं आया, धिक्‍कार है ऐसे ज्ञानियों पर,
धन्‍य हो गुरू, ऐसी ज्ञान से परिपूर्ण बातें ब्‍लागजगत ने कभी न देखीं, ऐसा गुरू ईश्‍वर सबको दे जो गुरू दक्षिणा की भी माँग न करे

डाक्‍टर साहब आज हमने भी प्रेम से आवाज लगाई ''हाटलिस्‍ट'' में देख लो, प्रेम की शक्ति देखी आप ही से सीखी


इधर ज्ञानवर्धक पस्‍तक पर भी पधारो तो, धन्‍य भाग हमारे
विभिन्‍न प्रकार की नमाज और उन्हें पढने का तरीका book

Anonymous said...

'सीता' पे सारा शक़ गया होगा.....
मुझे ये इल्म है कि 'राम' रेखा लांघ बैठा है
मगर अफ़सोस कि 'सीता' पे सारा शक़ गया होगा

चलो 'ईमान' का अब गुमशुदा में नाम लिखवा दें
के 'काफ़िर' ढूंढ कर इंसाफ़; काफ़ी थक गया होगा

सुना है 'बेगुनाही' रास्ते से लौट आयी है
यक़ीनन 'जुर्म' ले फ़रियाद; दिल्ली तक गया होगा

सरासर झूठ है, मैं ख़ुदकुशी करने को आया था
सलीबे* पे मेरा सर कोई क़ातिल रख गया होगा

अदालत! मुफ़लिसों* से इस क़दर तुम मुंह तो मत फेरो
बहुत उम्मीद से वो दर पे दे दस्तक गया होगा....

PARAM ARYA said...

तो ले बेटा ये कविता भी झेल
तेरा ब्लॉग सडावेंगे

ढूँढ रहे थे हम किसे वीरानो में,
आवारगी हमें कहाँ ले आई|

है कोई वाकया इन सिलसिलों में,
फितरतें हमें कहाँ ले आई|

तपता सूरज आंख में चुभता रहा,
रात के सन्नाटों ने ख़ामोशी चुराई|

झुझते रहे हम करवटों से रात भर,
हर सिलवट ने आवाज़ हमें लगाई|

मत पूछ के कैसे लिखता है ‘वीर’,
पूछ उसे दुनिया क्यों रास ना आई|

DR. ANWER JAMAL said...

apka shukriya aap aaye to sahi aur apne kam se kam gun to nahin chalai .

DR. ANWER JAMAL said...

@bhai kairanvi
main opera community men tha .
hindi blog ka raasta to aapne hi dikhaya hai.
hindi blogging men to aap hi mere GURU HAIN AUR
SAHAYAK BHI.

HAKEEM SAUD ANWAR KHAN said...

उत्तम विचार

वन्दे ईश्वरम vande ishwaram said...

वन्दे ईश्वरम

Anonymous said...

nice post n good job.

DR. ANWER JAMAL said...

THANKS Mr. anonymous.

DR. ANWER JAMAL said...

@DR. aslam Qasmi sahib
zarra nawazi ke liye shukriya .

Anonymous said...

इसी लिये तुम लोगों को देश द्रोही कहा जाता है एक दो तुम्हारे जैसी मछली तालाब गंदा करती है।

MOHAMMED SHADAB said...

मुसलमान आवागमन में विश्वास नहीं करता और न ही ‘शरीर को अपनी मर्ज़ी से किसी जीर्ण पत्ते के समान त्यागना जायज़ समझता है । बल्कि वह स्वर्ग नर्क में विश्वास करता है और आत्महत्या को ईश्वर की नज़र में दण्डनीय अपराध मानता है इसलिये वह आत्महत्या की तरफ़ ले जाने वाले किसी भी विचार को अपने मन में जड़ ही नहीं पकड़ने देता ।

AAPNE BILKUL QURAN KE ACCODING APNI BAAT KAHI H.

EMRAN ANSARI said...

jazakallah.

DR. ANWER JAMAL said...

aap sabhi hazraat ka shukriya .

Taarkeshwar Giri said...

सही कहा आपने जमाल साहेब, तभी तो कुछ मुसलमान नौजवान अल्लाह के पास जाने मैं इतनी जल्दबाजी करते हैं की खुद के शरीर पर बम लगा कर के अपने साथ साथ कई और लोगो की जान ले लेते हैं। शिया और शुन्नी जितना आपस मैं लड़ते हैं , शायद उतना तो हिन्दू और मुसलमान भी आपस मैं नहीं लड़ते होंगे।

शुक्र है की आप हिंदुस्तान मैं हैं।

हिन्दू मुस्लिम सब भाई - भाई
लेकिन बीच मैं ये कसाई.

Taarkeshwar Giri said...

कभी कुछ जानकारी काबा के बारे मैं भी दे। की इस्लाम से पहले क्या था वंहा पर।

Anonymous said...

Dr. Anvar ,
Ram Ram Kaise Ho.
Kripaya mera gyan badhaya
1.Islam dharm ki sthapana kisne kii?
2. Allah koun hai, Unka janam hua thaa? Agar hua that to kab our kahan.
3. Md Paigamber koun hain. Unka janam kab our kahain hua.
4. Kyaa Md Paigamber ke dada hindu the.

Shabbar Jaffry said...

ये साले जानवरों और कीड़ों की पूजा करने वाले हिन्दू इन अहमक बुतपरस्त काफिरों का मर जाना ही ठीक है. इंशाल्लाह इंडिया में भी जल्द ही इस्लाम का परचम लहराएगा

Mohammed Umar Kairanvi said...

गुरू देव इधर के सब गुरू तो भाग लिये, अब यह तसलीमा को ला रहे हैं, रूश्‍दी को हिन्‍दी ब्‍लागिंग में लाने की तमन्‍ना कर रहे हैं, यह नहीं जानते मेरा गुरू ऐसी हजार तसलीमाओ पे भारी है, खेर आपने इधर 4 दिन में समेट दिया, साइबर कैफे से अधिक मारक नहीं हो पा रहा जल्‍द खबर दो कि आप घर पर नेट ले आये हो,


मैं ब्‍लागस से बाहर जाया नहीं करता, इधर किसी को जमते नहीं देता, पर आप तो गुरू हो कैरानवी का गुरू होना मजाक थोडे ही है, मौका लगे तो महारथियों की वेब पर पढ लेना, और फिर सौ सुनार की एक जमाल की

रुश्दी डरपोक, हुसेन कट्टरपंथी हैं, मेरा नाम उनसे मत जोड़ें
http://janatantra.com/2010/02/28/taslima-on-husain-and-salman-rushdi/

Mithilesh dubey said...

देश के गद्दार और आतंकवादियों में सबसे ज्यादा क्या बस मुसलमान ही हैं ।

Nikhil kumar said...

आप ने जिसे आल्लाह कहा हमने कहा भगवान था
फिर क्या फर्क पड़ता है, कि कौन हिन्दू था कौन मुस्लमान था
इन बेकार की बहसों से कुछ हासिल नहीं होगा
अरे इतना ही काफी नहीं, कि हर शख्श एक इंसान था............

please verify the comments before it post on ur blog, it may be possible that ur intention is not to start a cast based fight in the form comments but..................

Nikhil kumar said...

kahi bhi aap log suru ho jate hai, hai na... bas ek mauka milna chahiye aur madhyam , "chor machaye shor" aap ne to ye line suni hogi .....aur ye bhi ki

"बड़े बडाई ना करे बड़े ना बोले बोल
रहिमन हिरा कब कहे लाख टका मोरा मोल "

Saleem Khan said...

आत्महत्या हराम मौत है... बहूत ही तथ्य्परख लेख; हमारी अंजुमन आपको बुला रही है जाईये और अगले ब्लास्ट की तैयारी कर लीजिये; आईये हम सब मिल कहें कि "हाँ हम हैं मास्टर माईंड"

Anonymous said...

किसी ने भी तारकेश्वर जी का जवाब नहीं दिया की मुसलमान आत्मघाती हमलावर बन कर क्या कर रहें है.

Anonymous said...

ठहर जा मादरचोद. मैं तेरे मुहम्मद की गांड मारकर आता हूं।

Unknown said...

तो डॉ. साहब आपके अनुसार देश का युवा जो आत्महत्या कर रहा है, उनमें ज्यादातर हिन्दू हैं, और वो आत्महत्या इसलिए कर रहे हैं क्योकि वो हिन्दू हैं !! क्या खूब जोड़ा है मानसिक समस्या को धर्म से | कमाल कर दिया डॉ. साहब आपने | अपनी बौद्धिकता का क्या खूब परिचय दिया है आपने | डॉ. की डिग्री को बखूबी प्रमाणित कर रहे हैं आप | एक सवाल का जवाब देंगे, कहाँ से पायी यह डिग्री आपने ?

यदि आपकी बात को आधार माना जाए, तब तो देश का सबसे पिछड़ा वर्ग जो कि मुस्लिम वर्ग का है, वास्तव में पिछड़ा इसलिए है क्योकि वो मुसलमान है | यानी अपने पिछड़ेपन का कारण मुस्लिम समुदाय खुद है, क्योकि वो इस्लाम को मानता है | क्यों सही कहा न मैंने ? यह बात इससे भी सिद्ध होती है कि देश का सबसे सम्रद्ध, साक्षर, और प्रगतिशील, वर्ग जो सबसे जयादा अल्पसंख्यक भी है, जैन धर्म का है | यानी यह वर्ग प्रगतिशील और खुशहाल इसलिए है क्योकि वो जैन धर्म को मानता है | कितना अच्छा हो कि सभी मुसलमान भी प्रगतिशील और खुशहाल जीवन जीने के लिए प्रमाणित शांति प्रिय और अहिंसक धर्म, जैन धर्म को अपना लें | क्योकि अगर वो ऐसा नहीं करते तब तो पिछड़े ही रहेंगे , आपके सिद्धांत के अनुसार | तो कब से देना शुरू कर रहें हैं अपने पिछड़े समुदाय (मुस्लिम ) को जैन धर्म अपनाने कि यह नेक सलाह ? जितनी जल्दी शुरू करेंगे उतनी जल्दी ईश्वर (अल्लाह ) का करम आप पर बरसेगा | तो बस शुरू हो जाईये आज से | ईश्वर आपको सद्दबुद्धि दे |

आपकी theory के ही आधार पर कुछ और भी सिद्ध होता है जैसे कि, क्योकि लगभग सभी इस्लामिक आतंकवादी जो इंसानियत के खिलाफ है, इस्लाम को मानने वाले है | तो क्या वो आतंकवादी इसलिए हैं क्योकि वो मुसलमान है ? यानी वो इस्लाम को मानने के कारण आतंकवादी बने है ? तब तो आपको और सभी मुसलमानों को ऐसा धर्म तुरंत छोड़ देना चाहिए, जो इंसान को आतंकवादी बनाता हो ? इंसान को इंसान के खिलाफ लड़वाता हो, इंसान को जानवर बना देता हो ?

डॉ. साहब उत्तर आपके ही शब्दों में " आखि़र एक ही ज़मीन पर बसने वाले दो समुदायों के बीच इतना बड़ा अन्तर क्यों ?
वह क्या बात है जो दोनों को दो बनाती है ?
वह केवल मान्यता का अन्तर है जो दोनों के मन में बचपन से ही आकार लेने लगती हैं ।" सही कहा आपने |

एक और बात सिद्ध होती है कि देश के वीर सैनिक जो देश के खातिर शहीद हो जाते है, ज्यादातर गैर- मुस्लिम है, तो क्या वो मुसलमानों से ज्यादा देश भक्त होते हैं ? और वो ऐसे इसलिए हैं क्योकि वो मुसलमान नहीं है ?

डॉ. साहब आपकी theory ने तो बहुत सी समस्याओं का समाधान खोज निकाला | आपका धन्यवाद :)

विभावरी रंजन said...

किसी ख़ास मकसद से धर्म के ऊपर ये जो बहस छेड़ी गयी है वो ठीक नहीं है,किसी धर्म या धर्मग्रन्थ के बारे में कोई ओछी टिप्पणी करना अधर्म है चाहे वो कुरआन हो या वेद हो...
भगवान् कृष्ण ने कहा है "सर्व धर्मान परित्यज्य मामेकं शरणम व्रज"(क्षमा प्रार्थी हूँ कि कुछ जगहों पर मात्रा छूट गयी है और आगे भी आशा है कि कुछ गलतियाँ होनी हैं ये असल में गूगल की अपनी सीमाएं हैं),इसका मतलब आमतौर पर ये लगाया जा सकता है कि भगवान् ये कह रहे हैं कि इस्लाम,जैन,बौद्ध या किसी अन्य धर्मं को छोड़ कर मेरे धर्म का आश्रय लो,परन्तु ऐसा बिलकुल नहीं है भगवान् कृष्ण तो सिर्फ इस बात पर जोर दे रहे थे कि सत्य का मार्ग अपनाओ कहीं खो मत जाओ आखिर क्यों ना कहें कोई भी अंतर तो नहीं भगवान् कृष्ण या अल्लाह में ,पर पता नहीं लोग भगवान और अल्लाह में अंतर क्यों मानते हैं,मेरे दिवंगत पिता जी अल्लाह की परिभाषा कुछ यूँ दिया करते थे "आह्लादयति आनंदम यः सः अल्लाह" अर्थात जो आनंद को भी आनंदित कर दे वो अल्लाह है उनका मानना था कि राम,कृष्ण,गणेश,शिव,दुर्गा,लक्ष्मी या अन्य देवी देवता,अल्लाह या ख़ुदा ये सब उसी ऊपरवाले के अभिन्न नाम हैं,हम अपने अलग अलग तरीकों से उसकी इबादत या अर्चना करते हैं,
आश्चर्य है कि हम अल्लाह या ईश्वर को आनंद के रूप में नहीं देख कर एक अलग धर्म के प्रतिनिधि के रूप में देखते हैं और अन्य धर्मों के ऊपर अपने आक्रोश को प्रकट करने के लिए अनर्गल टिप्पणियाँ करते हैं...कोई कहता है कि अल्लाह का अस्तित्व नहीं तो कोई ईश्वर की सत्ता मानने से इनकार करता है लगता है लोग ये भूल गए हैं कि "ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान् "
मैं बिहार से हूँ और हमारे यहाँ छठ पूजा का त्यौहार बड़े धूम धाम से मनाया जाता है,मैं जिस गाँव से हूँ वहाँ की आबादी में काफी मुस्लिम भाई हैं और आपमें से कुछ भाइयों को ये सुन कर बेहद तकलीफ़ होगी कि हमारे गाँव में इस त्यौहार की सारी तैयारी सैकड़ों सालों से मुस्लिम भाई ही करते आ रहे हैं और ईद-बकरीद में हिन्दू भाई बराबर शरीक होते रहे हैं और आपको बता दूं कि ना वो मुस्लिम काफ़िर हैं ना ही वो हिन्दू पापी,एक दूसरे के पर्व त्योहारों में शामिल होते हैं लेकिन फिर भी पूजा या इबादत के उनके अपने तरीके में कोई बदलाव नहीं आया है और ना ही वो कभी धर्म के बारे में हो रही किसी बहस का हिस्सा बने ......मुझे लगता है कि अगर इस ब्लौग का अध्ययन मेरे गाँव के लोग पढ़ लें तो उनके पास सिर्फ एक ही काम बचेगा....आप जानना चाहेंगे क्या......इस ब्लौग के रचयिता के ऊपर हँसना.
आपलोग बेहद समझदार हैं सुधी जन हैं मेरी आपसे दरख्वास्त है की कुरआन,हदीस और वेदों की छीछालेदर और गर्भाधान संस्कार के बारे में इतनी ज़बरदस्त व्याख्या करने से पहले ये सोच लें कि क्या आपके पास समुचित ज्ञान है कि सदियों पहले लिखी हुई बातों को घुमा फिरा कर अपनी बातों को अपने सीमित ज्ञान की चाशनी में डुबो कर नकार रहे हैं और अपनी बातें लोगों के ऊपर थोपने का प्रयास कर रहे हैं,अजी छोडिये ये ब्रेनवाश इससे कोई फायदा नहीं है......लोग बस आपके ऊपर हँसेंगे ही जनाब.

Unknown said...

महोदय, कल मैंने एक कमेंट किया था, मैसेज मिला कि ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बाद कमेंट दिखने लगेगा। लेकिन अब तक दिखा नहीं। क्या यह समझा जाए कि ब्लॉग स्वामी उसे अनुमति नहीं देना चाहते?
दुनाली

Unknown said...

आत्महत्या किस धर्म के लोग कर रहे हैं? यह कोई सवाल नहीं है। सवाल यह है कि वे किन परिस्थितियों में आत्महत्या कर रहे हैं। धर्म कभी किसी को आत्महत्या के लिए नहीं उकसाता।
आपका मानना है कि हिन्दू धर्म के लोग ज्यादा आत्महत्याएं करते हैं। हो सकता है कि यह सही भी हो। हिन्दू सोसायटी एक ओपन सोसायटी है। लोग अपने दिमाग से सोचते हैं। दिमाग अगर संतुष्ट नहीं है तो वे आत्महत्या तक का कदम उठा लेते हैं। लेकिन सभी ऐसा करते हैं, ऐसा नहीं है।
एक बात और। अगर आप कहते हैं कि मुस्लिम लोग आत्महत्या नहीं करते तो आप गलत हैं। जरा नीचे दिए गए लिंक्स पर गौर फरमाएं। ये पाकिस्तान में हो रही आत्महत्याओं की तस्वीर बयां करते हैं।



pakistan suicide
rate on rise



INCREASING RATE OF
SUICIDE IN PAKISTAN



One million people commit
suicide every year



or Pls go to Google and search- suside rate in pakistan



मलखान सिंह ‘आमीन’

DR. ANWER JAMAL said...

भाई लोगों को बात बात में पाकिस्तान जाने की आदत क्यों है ?
मुस्लिम देश तो सऊदी अरब, मलेशिया और ईरान भी हैं।
चलिए आप इन देशों में होने वाली आत्महत्या के आंकड़ों की तुलना दूसरे देशों के आंकड़ों से कर लीजिए और तब आप खुद जान लेंगे कि हम सच कह रहे हैं कि मुसलमानों में आत्महत्या का रूझान बहुत कम है, लगभग नगण्य सा।