सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Thursday, March 18, 2010
किस अनुवाद में लिखा है कि अल्लाह का अर्थ मनमोहन है ? The opening surah of Holy Quran
ज़्यादा टेंशन ठीक नहीं , आओ मूड चेंज करें।
यहां ब्लॉग लिखा जा रहा है ,कोई महाभारत का युद्ध नहीं लड़ा जा रहा है ।
कल हमारे प्रिय भाई आदरणीय श्री तारकेश्वर गिरी जी ने एक ऐतिहासिक ब्लॉग लिखा । ऐतिहासिक भी वह कई वजह से कहलाने का हक़दार है ।प्रमुख वजह तो यह बनी कि मेरे मनभावन ब्लॉगावतार श्री श्री सारथि जी महाराज ने मेरे हृदय परिवर्तन की भविष्यवाणी कर दी और उनकी भविष्यवाणी कभी मिथ्या नहीं होती ।
सो अचानक आज जब सुबह सोकर उठा तो खु़द को धान के देश में बिल्कुल विचार शून्य पाया । तब मेरे निर्मल मन में जो विचार उठे , आज आपको अर्पित करता हूं ।
प्रेम की धरती ज्ञान के फूल
सत्य के बिना मनुष्य को सफलता नहीं मिल सकती ।
सत्य क्या है , इसका फैसला करना इनसान के लिए हमेशा से ही एक बड़ा मुश्किल काम रहा है । इसके पीछे कई कारण हैं । जिनमें से एक है इनसान का अपनी भाषा संस्कृति के प्रति स्वाभाविक लगाव ।
ईश्वर सत्य है । उसने अपनी कल्पना शक्ति से सृष्टि की रचना की । हर चीज़ उसकी कारीगरी का बेहतरीन नमूना है । हरेक चीज़ आज़ाद भी है और दूसरी सभी चीज़ों के साथ जुड़ी हुई भी है । इन सभी चीज़ों से इनसान रात दिन नफ़ा उठा रहा है । इनसान ख़ुद भी उस मालिक की एक बेहतरीन रचना है ।
ईश्वर मौजूद है । इसका पता इनसान को खुद अपने वजूद से ही चल सकता है ।
बस शर्त यह है कि वह संजीदगी से ग़ौर करे ।
हर चीज़ बामक़सद है । इनसान के हरेक अंग का एक मक़सद है जिसे उसका वह अंग पूरा करता है । यहां तक कि एक बाल भी बेवजह नहीं है । हरेक बाल तक अपना मक़सद पूरा कर रहा है ।इनसान के जीवन का भी एक मक़सद है । उसी मक़सद के लिए वह इस धरती पर पैदा होता है , एक निश्चित अवधि तक वह यहां रहता बसता है और फिर यहां से चला जाता है ।
वह यहां किस मक़सद को पूरा करने के लिए आता है ?
वह कहां से आता है ?
फिर कहां चला जाता है ?
उसके लिए क्या करना सही है और क्या करना ग़लत है ?
किस काम का क्या परिणाम होता है?
क्या मृत्यु के बाद भी जीवन है ?
इस तरह के बहुत से सवाल इनसान के मन में उठते हैं । ये महज़ कोई दार्शनिक प्रकृति के सवाल नहीं हैं बल्कि ये इनसान की फ़ितरत में शामिल हैं ।
इनसान की सच्ची मंज़िल क्या है ?
और उसे पाने का सीधा सच्चा मार्ग क्या है ?
यह वह सबसे बड़ा सवाल है , जिसके हरेक भाषा में इनसान ने अपने मालिक से सदा ही प्रार्थना की है । परमेश्वर ने अपने निज ज्ञान अर्थात वेद के अवतरण का समापन पवित्र कुरआन के रूप में किया । उसका आरम्भ भी उसने मनुष्य की इसी सबसे बड़ी और फ़ितरी ज़रूरत को दुआ का रूप देकर किया । उसने सबसे पहले मनुष्य को दुआ की तालीम देकर बताया कि
आप जो चाहें पा सकते हैं
लेकिन पहले आपको अपनी अनिश्चय की स्थिति से निकलना होगा ।
सबसे पहले आपको निश्चय करना होगा कि आपको पाना क्या है ?
संकल्प और प्रयास का मरहला तो बाद का है ।
ईश्वर को सारी मानवता से प्यार है । उसने बहुत सी भाषाओं में अपनी वाणियां अवतरित करके मानवता को शिक्षित किया । उन ग्रन्थों के आलिम विद्वानों ने उनका अनुवाद करके उन्हें उन लोगों के लिए भी समझना आसान कर दिया जो उसकी मूल भाषा नहीं जानते । अनुवाद करते समय भी विद्वानों ने अलग अलग वर्ग की ज़रूरतों को सामने रखा । पवित्र कुरआन का अनुवाद भी बहुत से विद्वानों ने किया है ।
बाज़ार में सबसे ज़्यादा बिकने वाले अनुवादों में से एक अनुवाद श्री नन्द कुमार अवस्थी जी का भी है । इस वक्त मेरे सामने हज़रत मौलाना फ़ज़्लुर्रहमान गंज मुरादाबादी साहब रहमतुल्लाह अलैहि ( जन्म 1208 हिजरी - मृत्यु 1313 हिजरी ) का अनुवाद मौजूद है ।
यह एक बहुत पुरानी किताब है जिसे मैं काफ़ी कोशिश के बाद पाने में कामयाब हो सका । मौलाना को इसलामी जगत में बहुत ऊँचा मक़ाम हासिल है । उनके इस अनुवाद की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि यह पूरब की भाषा में है और इसमें वैदिक साहित्य की पारिभाषिक शब्दावली का बेतक्रल्लुफ़ प्रयोग किया गया है । आदमी पढ़ते वक्त बिल्कुल यह महसूस नहीं करता कि वह जो पढ़ रहा है , वह अरबी का अनुवाद है ।
पवित्र कुरआन की पहली सूराः का अनुवाद पढ़कर आप भी इसकी मिठास का अन्दाज़ा बख़ूबी लगा सकते हैं ।
पहले ही पहल नाम लेता हूं मनमोहन का जो बड़ी मयामोह का महर वाला है ।
1- अलहम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन
सब सराहत मनमोहन को है जो सारे संसार का पालनहारा बड़ी मायामोह का महरवाला है ।
2- मालिकि यौमिद्दीन
जिसके बस में चुकौती का दिन है ।
3- इय्याका ना बुदु व इय्याका नस्तईन
हम तेरा ही आसरा चाहते हैं और तुझी को पूजते हैं ।
4- इहदि नस्सिरातल मुस्तक़ीम
चला हमको सीधी राह डगमग नहीं ।
5- सिरातल् लज़ीना अनअमता अलैइहिम
उन लोगों की जिन पर तेरी दया हुई
6,7- ग़इरिल मग़ज़ूबि अलैइहिम वलज़्ज़ाल्लीन
न उनकी जिन पर तेरी झुंझलाहट हुई और न राह कुराहों की और न खोये हुओं की और न राह भटके हुओं की ।
इसमें नाम अल्लाह का अनुवाद मनमोहन किया गया है और अनुवाद का नाम भी ‘मनमोहन की बातें‘ रखा गया है । लोगों के दिलों को जोड़ने के लिए सभी मतों के बहुत से विद्वान हमेशा से जुटे हुए हैं । प्रस्तुत अनुवाद भी उसी की एक कड़ी है ।
इस ब्लॉग को बनाने का मक़सद भी यही है लेकिन कुछ लोगों ने आकर नुक्ताचीनी करना और अपनी योग्यता दर्शाना आरम्भ कर दिया और बात दूसरी ही दिशा में मुड़ गयी ।
अब अगर आप चाहते हैं बात दोबारा उस दिशा में न जाने पाये तो कृपया मेरा सहयोग करें और शेख़ी बघारने वाले तत्वों को हतोत्साहित करें ।मुझे आपका प्यार और सहयोग आज भी दरकार है ।
क्या मैं आपसे उम्मीद करूं कि मुझे आपका प्यार और सहयोग सदा मिलेगा ?
मैं अपनी विदुषी बहनों से भी कहूंगा कि वे निःसंकोच आकर मेरी पोस्ट पढ़ें । इन्शा अल्लाह अब उनकी फ़ीलिंग्स हर्ट नहीं होंगी ।
मैंने तो अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर दी लेकिन अब आपकी आरम्भ हो जाती है ।
क्या आप अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने और सहयोग देने के लिए तैयार हैं ?
पिछली पोस्ट पर कुछ प्रश्न उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं । उनका क्या जवाब दिया जाए?
आदरणीय तारकेश्वर जी , जनाब सतीश सक्सेना साहब , रचना मैडम , ज्योत्स्ना दीदी और अन्य सभी बन्धुओं व विदुषी देवियों आप सुझाव देकर मेरा मार्गदर्शन करें ।
क्योंकि अगर मैं जवाब देता हूं तो आप लोगों की फ़ीलिंग्स हर्ट होंगी और अगर नहीं देता हूं तो मेरी होंगी ।
अब बताइये दुर्बोधग्रस्त लोगों के सवालों का जवाब किस प्रकार दिया जाए ?
यहां ब्लॉग लिखा जा रहा है ,कोई महाभारत का युद्ध नहीं लड़ा जा रहा है ।
कल हमारे प्रिय भाई आदरणीय श्री तारकेश्वर गिरी जी ने एक ऐतिहासिक ब्लॉग लिखा । ऐतिहासिक भी वह कई वजह से कहलाने का हक़दार है ।प्रमुख वजह तो यह बनी कि मेरे मनभावन ब्लॉगावतार श्री श्री सारथि जी महाराज ने मेरे हृदय परिवर्तन की भविष्यवाणी कर दी और उनकी भविष्यवाणी कभी मिथ्या नहीं होती ।
सो अचानक आज जब सुबह सोकर उठा तो खु़द को धान के देश में बिल्कुल विचार शून्य पाया । तब मेरे निर्मल मन में जो विचार उठे , आज आपको अर्पित करता हूं ।
प्रेम की धरती ज्ञान के फूल
सत्य के बिना मनुष्य को सफलता नहीं मिल सकती ।
सत्य क्या है , इसका फैसला करना इनसान के लिए हमेशा से ही एक बड़ा मुश्किल काम रहा है । इसके पीछे कई कारण हैं । जिनमें से एक है इनसान का अपनी भाषा संस्कृति के प्रति स्वाभाविक लगाव ।
ईश्वर सत्य है । उसने अपनी कल्पना शक्ति से सृष्टि की रचना की । हर चीज़ उसकी कारीगरी का बेहतरीन नमूना है । हरेक चीज़ आज़ाद भी है और दूसरी सभी चीज़ों के साथ जुड़ी हुई भी है । इन सभी चीज़ों से इनसान रात दिन नफ़ा उठा रहा है । इनसान ख़ुद भी उस मालिक की एक बेहतरीन रचना है ।
ईश्वर मौजूद है । इसका पता इनसान को खुद अपने वजूद से ही चल सकता है ।
बस शर्त यह है कि वह संजीदगी से ग़ौर करे ।
हर चीज़ बामक़सद है । इनसान के हरेक अंग का एक मक़सद है जिसे उसका वह अंग पूरा करता है । यहां तक कि एक बाल भी बेवजह नहीं है । हरेक बाल तक अपना मक़सद पूरा कर रहा है ।इनसान के जीवन का भी एक मक़सद है । उसी मक़सद के लिए वह इस धरती पर पैदा होता है , एक निश्चित अवधि तक वह यहां रहता बसता है और फिर यहां से चला जाता है ।
वह यहां किस मक़सद को पूरा करने के लिए आता है ?
वह कहां से आता है ?
फिर कहां चला जाता है ?
उसके लिए क्या करना सही है और क्या करना ग़लत है ?
किस काम का क्या परिणाम होता है?
क्या मृत्यु के बाद भी जीवन है ?
इस तरह के बहुत से सवाल इनसान के मन में उठते हैं । ये महज़ कोई दार्शनिक प्रकृति के सवाल नहीं हैं बल्कि ये इनसान की फ़ितरत में शामिल हैं ।
इनसान की सच्ची मंज़िल क्या है ?
और उसे पाने का सीधा सच्चा मार्ग क्या है ?
यह वह सबसे बड़ा सवाल है , जिसके हरेक भाषा में इनसान ने अपने मालिक से सदा ही प्रार्थना की है । परमेश्वर ने अपने निज ज्ञान अर्थात वेद के अवतरण का समापन पवित्र कुरआन के रूप में किया । उसका आरम्भ भी उसने मनुष्य की इसी सबसे बड़ी और फ़ितरी ज़रूरत को दुआ का रूप देकर किया । उसने सबसे पहले मनुष्य को दुआ की तालीम देकर बताया कि
आप जो चाहें पा सकते हैं
लेकिन पहले आपको अपनी अनिश्चय की स्थिति से निकलना होगा ।
सबसे पहले आपको निश्चय करना होगा कि आपको पाना क्या है ?
संकल्प और प्रयास का मरहला तो बाद का है ।
ईश्वर को सारी मानवता से प्यार है । उसने बहुत सी भाषाओं में अपनी वाणियां अवतरित करके मानवता को शिक्षित किया । उन ग्रन्थों के आलिम विद्वानों ने उनका अनुवाद करके उन्हें उन लोगों के लिए भी समझना आसान कर दिया जो उसकी मूल भाषा नहीं जानते । अनुवाद करते समय भी विद्वानों ने अलग अलग वर्ग की ज़रूरतों को सामने रखा । पवित्र कुरआन का अनुवाद भी बहुत से विद्वानों ने किया है ।
बाज़ार में सबसे ज़्यादा बिकने वाले अनुवादों में से एक अनुवाद श्री नन्द कुमार अवस्थी जी का भी है । इस वक्त मेरे सामने हज़रत मौलाना फ़ज़्लुर्रहमान गंज मुरादाबादी साहब रहमतुल्लाह अलैहि ( जन्म 1208 हिजरी - मृत्यु 1313 हिजरी ) का अनुवाद मौजूद है ।
यह एक बहुत पुरानी किताब है जिसे मैं काफ़ी कोशिश के बाद पाने में कामयाब हो सका । मौलाना को इसलामी जगत में बहुत ऊँचा मक़ाम हासिल है । उनके इस अनुवाद की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि यह पूरब की भाषा में है और इसमें वैदिक साहित्य की पारिभाषिक शब्दावली का बेतक्रल्लुफ़ प्रयोग किया गया है । आदमी पढ़ते वक्त बिल्कुल यह महसूस नहीं करता कि वह जो पढ़ रहा है , वह अरबी का अनुवाद है ।
पवित्र कुरआन की पहली सूराः का अनुवाद पढ़कर आप भी इसकी मिठास का अन्दाज़ा बख़ूबी लगा सकते हैं ।
अलफ़ातिहा
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम पहले ही पहल नाम लेता हूं मनमोहन का जो बड़ी मयामोह का महर वाला है ।
1- अलहम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन
सब सराहत मनमोहन को है जो सारे संसार का पालनहारा बड़ी मायामोह का महरवाला है ।
2- मालिकि यौमिद्दीन
जिसके बस में चुकौती का दिन है ।
3- इय्याका ना बुदु व इय्याका नस्तईन
हम तेरा ही आसरा चाहते हैं और तुझी को पूजते हैं ।
4- इहदि नस्सिरातल मुस्तक़ीम
चला हमको सीधी राह डगमग नहीं ।
5- सिरातल् लज़ीना अनअमता अलैइहिम
उन लोगों की जिन पर तेरी दया हुई
6,7- ग़इरिल मग़ज़ूबि अलैइहिम वलज़्ज़ाल्लीन
न उनकी जिन पर तेरी झुंझलाहट हुई और न राह कुराहों की और न खोये हुओं की और न राह भटके हुओं की ।
इसमें नाम अल्लाह का अनुवाद मनमोहन किया गया है और अनुवाद का नाम भी ‘मनमोहन की बातें‘ रखा गया है । लोगों के दिलों को जोड़ने के लिए सभी मतों के बहुत से विद्वान हमेशा से जुटे हुए हैं । प्रस्तुत अनुवाद भी उसी की एक कड़ी है ।
इस ब्लॉग को बनाने का मक़सद भी यही है लेकिन कुछ लोगों ने आकर नुक्ताचीनी करना और अपनी योग्यता दर्शाना आरम्भ कर दिया और बात दूसरी ही दिशा में मुड़ गयी ।
अब अगर आप चाहते हैं बात दोबारा उस दिशा में न जाने पाये तो कृपया मेरा सहयोग करें और शेख़ी बघारने वाले तत्वों को हतोत्साहित करें ।मुझे आपका प्यार और सहयोग आज भी दरकार है ।
क्या मैं आपसे उम्मीद करूं कि मुझे आपका प्यार और सहयोग सदा मिलेगा ?
मैं अपनी विदुषी बहनों से भी कहूंगा कि वे निःसंकोच आकर मेरी पोस्ट पढ़ें । इन्शा अल्लाह अब उनकी फ़ीलिंग्स हर्ट नहीं होंगी ।
मैंने तो अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर दी लेकिन अब आपकी आरम्भ हो जाती है ।
क्या आप अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने और सहयोग देने के लिए तैयार हैं ?
पिछली पोस्ट पर कुछ प्रश्न उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं । उनका क्या जवाब दिया जाए?
आदरणीय तारकेश्वर जी , जनाब सतीश सक्सेना साहब , रचना मैडम , ज्योत्स्ना दीदी और अन्य सभी बन्धुओं व विदुषी देवियों आप सुझाव देकर मेरा मार्गदर्शन करें ।
क्योंकि अगर मैं जवाब देता हूं तो आप लोगों की फ़ीलिंग्स हर्ट होंगी और अगर नहीं देता हूं तो मेरी होंगी ।
अब बताइये दुर्बोधग्रस्त लोगों के सवालों का जवाब किस प्रकार दिया जाए ?
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29 comments:
लोगों के दिलों को जोड़ने के लिए सभी मतों के बहुत से विद्वान हमेशा से जुटे हुए हैं । प्रस्तुत अनुवाद भी उसी की एक कड़ी है ।
इस ब्लॉग को बनाने का मक़सद भी यही है लेकिन कुछ लोगों ने आकर नुक्ताचीनी करना और अपनी योग्यता दर्शाना आरम्भ कर दिया और बात दूसरी ही दिशा में मुड़ गयी ।
अब अगर आप चाहते हैं बात दोबारा उस दिशा में न जाने पाये तो कृपया मेरा सहयोग करें और शोख़ी बघारने वाले तत्वों को हतोत्साहित करें ।मुझे आपका प्यार और सहयोग आज भी दरकार है ।
क्या मैं आपसे उम्मीद करूं कि मुझे आपका प्यार और सहयोग सदा मिलेगा ?
Hell has three gates:
lust, anger, and greed.
दिन इस्लाम का जेहादी सवाब मुसलामानों को मारते मारते और मरते मरते ख़त्म कर देगा.
क़ुरआन किसी अल्लाह का कलाम हो ही नहीं सकता.
कोई अल्लाह अगर है तो अपने बन्दों के क़त्ल-ओ- खून का हुक्म न देगा.
क्या सर्व शक्ति वान, सर्व ज्ञाता, हिकमत वाला अल्लाह मूर्खता पूर्ण और अज्ञानता पूर्ण बकवास करेगा?
क्या इन बेहूदा बातों की तिलावत (पाठ) से कोई सवाब मिल सकता है?
जागो! मुसलमानों जागो!! मुहम्मद के सर पर करोड़ों मासूमों का खून है जो इस्लाम के फरेब में आकर अपनी नस्लों को इस्लाम के हवाले कर चुके हैं. मुहम्मद की ज़िदगी में ही हज़ारों मासूम मारे गए और मुहम्मद के मरते ही दामाद अली और बीवी आयशा के दरमियाँ जंग जमल में दो लाख इंसान बहैसियत मुसलमान मारे गए. स्पेन में सात सौ साल काबिज़ रहने के बाद दस लाख मुसलमान जिंदा नकली इस्लामी दोज़ख में डाल दिए गए, अभी तुम्हारे नज़र के सामने ईराक में दस लाख मुसलमान मारे अफगानिस्तान, पाकिस्तान कश्मीर में लाखों इन्सान इस्लाम के नाम पर मारे जा रहे है.चौदह सौ सालों में हज़ारों इस्लामी जंगें हुईं हैं जिसमें करोड़ों इंसानी जानें गईं. मुस्लमान होने का अंजाम है बेमौत मारो या बेमौत मरो.
क्या अपनी नस्लों का अंजाम यही चाहते हो? एक दिन इस्लाम का जेहादी सवाब मुसलामानों को मारते मारते और मरते मरते ख़त्म कर देगा. वक़्त आ गया है खुल कर मैदान में आओ. ज़मीर फरोश गीदड़ ओलिमा का बाई काट करो, इनके साए से दूर रहो और भोले भाले लोगों को दूर रखो.
ITS UNIQUE TRANSLATION. I ENJOYED VERY MUCH.
adbhut aur anokha anuvaad paish karney k liye aapko badhai. ummeed h ki sabhi log isey nafrat ki patti hatakar padhengey aur pyar ka paigaam samajh kar samjhayengey.
आदरणीय तारकेश्वर जी , जनाब सतीश सक्सेना साहब , रचना मैडम , ज्योत्स्ना दीदी और अन्य सभी बन्धुओं व विदुषी देवियों आप सुझाव देकर मेरा मार्गदर्शन करें ।
क्योंकि अगर मैं जवाब देता हूं तो आप लोगों की फ़ीलिंग्स हर्ट होंगी और अगर नहीं देता हूं तो मेरी होंगी ।
अब बताइये दुर्बोधग्रस्त लोगों के सवालों का जवाब किस प्रकार दिया जाए ?
@ emran bhai apka shukriya.
@ Janab Shadab bhai apka bhi shukriya.
itne din bad haziri?
kahan ghayab rahe bhai ?
भोसड़ी के, तू फिर आ गया!?
Jab tak aap jaise log yahan hai Sach inshallah dikhta rahega.
अरे सुन लो ब्लागिंग में शांति की तमन्ना रखने वालों अभी मौका है फिर न कहना कहा नहीं था, अनवर साहब की दरखास्त वह कहते हैं : कृपया मेरा सहयोग करें और शेख़ी बघारने वाले तत्वों को हतोत्साहित करें
Aapka anuwad to lajawab hai, isi tarah progress karte rahiye. Allah Hafiz.
Janab Anwer Bhai,
kya baat hai.
lage rahiye.....
अनवर साहब, आपने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है. जवाबों का शान्ति के साथ मुकाबला कीजिये. जब आप कोई अच्छा काम करते हैं तो शैतान हमेशा परेशान होता है.
अनवर साहब, बहुत शानदार , हमारे लिए तो आजकल मनमोहन जी ही अल्लाह हैं।
बाकि इस बार का आपका लेख पढ़कर मैं टिपण्णी देने के लिए मजबूर हो गया। बहुत ही अच्छा । देखो अगर कोई कुत्ता आपके सामने भोकेगा तो आप भोंक कर उसका जबाब नहीं देंगे। अगर आप इन्सान हैं तो । हमारी ताकत हमारी सोच होती हैभोंकने वालों को नजरंदाज करके अपने अच्छे व नेकी भरे विचारों को आगे लाईये । इस्लाम को ज्यादा नुकसान खुद के कट्टरपंथियों से ही है। उनके विरोध में लड़िये। कोई आपके विरोध में बोलता है तो उसकी बातों की सचाई को परखिये । सच को अपनाईये और गलत पर ध्यान नहीं दीजिये।
अंत में धरती के मनमोहन ने ८ प्रतिशत महंगाई भत्ता देकर और आपने ऊपर के मनमोहन के विषय में बता कर सुबह सुबह मेरा मन खुश कर दिया । आप तीनों का शुक्रिया।
Anwar Bhai Namashkar,
Lage rahiye, dekhte hain aage- aage kya hota hai, magar main apko ek salah dunga ki Aaap Dilli aayein aur main Khud aapko BABA RAM DEV KE ASHRAM (HARIDWAR) main lekar chalunga , udhar YOG se man ko shanti milti hai. Aur agar man shant rahta hai to aadmi ke vichar uttam hote hain.
Jai Ho Ap Sabki, aur Kashi Wale Baba ki.
कृपया मेरा सहयोग करें और शेख़ी बघारने वाले तत्वों को हतोत्साहित करें
अरबी सभ्यता जब धर्म से दूर होकर जंगलीपने की हद तक जा पहुंची तब श्रीमोहम्मदसाहबजी ने इस्लाम के माध्यम से अरबी सभ्यता को धर्मानुकुल बनाने की कोशिश की थी . पर श्रीमोहम्मदसाहबजी के स्वर्गगमन के बाद उनके अनुयायियों ने अपने देश की सभ्यता की प्रीत में इस्लाम को ही अपनी सभ्यता का दास बना लिया , अरबी सभ्यता लड़ाई झगडे को विशेष सम्मान देती है , इसी कारन इस्लाम के अनुयायी बन जाने पर कई बार टालें जाने पर भी इस्लाम में युद्ध का प्रवेश हो गया ,
श्रीमोहम्मदसाहबजी के बाद जब इस्लाम अरबी सभ्यता का अनुयायी हो गया ,तब जेहाद ही उन नए इस्लामवादियों द्वारा विशेस कर्त्तव्य मान लिया गया . इसी विश्वास के के चलते अरबो ने इरान और अफगानिस्थान को अपनी धुन में मुस्लिम बना लेने के बाद भारत पर भी धावा बोल दिया अब अरबो को भारत में शारीरिक जीत तो मिल गयी पर धार्मिक रूप में नए इस्लाम की पुराने इस्लाम से टक्कर हुयी . पुराने इस्लाम के वेदानुकुल सिधान्तो के सामने नए इस्लाम को हार मानने पड़ी . (हजारों सालो तक सैंकड़ों विजेताओं ने चाहे वह शक ,हूण,मंगोल ,हो या अरबी सबने भारतीय संस्कृति पर घातक से घातक वार किये पर इसके जड़ों को काटते-काटते इनकी तलवारे भोंती हो गयी . अगर भारतीय संस्कृति इतनी ही ख़राब है ,हिन्दूओं के अचार विचार इतने ही सड़ें हुयें है तो , अब तक हिन्दू जाती मर क्यों नहीं गयी. )
वह दीने हिजाजीका बेबाक बेडा
निशां जिसका अक्क्साए आलममें पहुंचा
मजाहम हुआ कोई खतरा जिसका
न अम्मआन में ठिटका न कुल्जममें झिझका
किये पै सिपर जिसने सातों समंदर
वह डूबा दहानेमें गंगा के आकर
अरबी सभ्यता भारत में आकर यहाँ के रंग में घुलने मिलने लगा था , इस्लाम पर भारतीय संस्कृति का इतना प्रबल प्रभाव पड़ा था की आम जनता के आचार विचार में कोई विशेष भेद नहीं रह गया था . यदि मुस्लिम विद्वान् उलेमा वर्ग भी बिना किसी भीड़ भाव के अरबी फ़ारसी की जगह भारतीय भाषा को इस्लामी विचार का साधन बना लिया जाता और सिर्फ अरबी संस्कृति को ही इस्लाम न मान लिया जाता तो कम से कम भारतीय इतिहास के माथे पर हिन्दू मुस्लिम मरकत का कलंक न लगा होता . क्योंकि वास्तव में दोनों एक ही तो हैं .
बस मोलवियों के इन्ही सिधान्तो और बर्तावों ने हिन्दू मुसलमानों को पराया बनाने का काम किया था ,जिसका भयानक परिणाम आज सबके सामने है . जबकि पवित्र कुरआन में किसीसे भी विरोध नहीं है .
"केवल अल्लहा ही पूजनीय है , और सब अच्छे नाम उसी के लिए है"
क्या राम उसका नाम नहीं हो सकता (सर्वर्त्र रमन्ति इति राम - जो सभी के लिए रमणीय है वह राम है)
जमाल साब कृपया इसी प्रकार लिखते रहिये , इनदिनों तो आपने मेरे जैसे को भी कट्टरपंथी बना दिया था , जैसा बोलेंगे वैसा ही सुनेंगे , एकता की बात करते है तो एक ही होइए ,उस एक होने में भी यह आग्रह क्यों करते है की अरबी संस्कृति से ही उस की इबादत की जा सकती है ,क्या फर्क पड़ता है जो तोहीद "अल्लहा एक है उसके सिवा और कोई नहीं है" , कहने से पूरी होती है
वही अद्वैतवाद "एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति " कहने में भी पूरा होता है
एक बहुत अच्छे लेख पर अमित जी की बहुत अच्छी टिप्पणी
इक अच्छी बहस का अच्छा जबाब दिया है अमित जी ने, इस बात के लिए अमित जी को धन्यवाद , मैं खुद भी अमित जी की बात से सहमत हूँ की इस्लाम - कुरान या हिन्दू कोई भी बूरा नहीं है। बूरा है तो सिर्फ अरबी संस्कृत । क्योंकि अरबी समाज सदियों से लड़ाई झगडे और लूट पाट मैं भरोषा करते आयें हैं , और उसका नतीजा भारत ने भुगता है। सोमनाथ के आक्रमण से लेकर के आजतक भारत मैं हिन्दू और मुसलमान आपस मैं नहीं लड़ रहे हैं, लड़ रहें हैं तो भारत और अरब समाज .
मैं सभी मुसलमान बंधू से येही निवेदन करता हूँ आप भारतीय संस्कृत को न भूले। ये वो जगह है , जो भी आया इधर का ही हो गया , सबको प्यार दिया है, हमारी सभ्यता और संस्कृत ने।
मेरे कमेन्ट में शामिल कविता श्री मौलाना अल्ताफ हुसैन हाली जी की है जो की उन्होंने मुसदिये हाली नामक प्रसिद्ध किताब में लिखी है-
वह दीने हिजाजीका बेबाक बेडा
निशां जिसका अक्क्साए आलममें पहुंचा
मजाहम हुआ कोई खतरा जिसका
न अम्मआन में ठिटका न कुल्जममें झिझका
किये पै सिपर जिसने सातों समंदर
वह डूबा दहानेमें गंगा के आकर
अनवर भाई आप महान है, ठीक वैसे ही जैसे अपना भारत देश महान है!!
lage raho munna bhai
जमाल भाई आपको बधाई आज तो!
devband ka ek shiya mulla aur ulema aur lakho logo jinki baat mante hai wah muslaman khud kahta hai ki mai 1000 hinduo ke bich khush aur sukh se rahta hu. kintu jaha 10 musalman rahte ho waha mere ko hamesha meri jaan ka khatara rahta hai.
dunia me kahi bhi jao hindu kabhi us desh se gaddari nahi karta , america , england, china, rusia, australia kisi bhi kone me dekho. kintu muslaman jaha rahta hai waha gaddari jarur us desh se karta hai. ex. Bharat, America, Australia, Niziria, Rusia aur Sare europeon country kyoki wo saudi arab ko hi apna desh manta hai aur non-muslim country ko kafiro ka desh. mai bolne me bahut kadwa hu , karan islam ka 1000 saal ka itihas , sikho par atyachar ka itihas maine padha hai.
Allah ne farmaya jo iman waala nhi uske liye jannat nhi hai.
Allah ke ajaabon se daro wahi sabka rakhwala hai.
Allah ke siwa or koi nhi maabud hai
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