सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Wednesday, March 24, 2010
शिवलिंग की हक़ीक़त क्या है ? The universe is a sign of Lord Shiva .
परमेश्वर ही सच्चा शिव अर्थात कल्याणकारी है । जो प्राणी उसकी शरण में आ जाता है , वह भी शिवत्व को प्राप्त करके स्वयं भी शिव रूप हो जाता है । इसी को अलंकारिक भाषा में भक्त का भगवान से एकाकार होना कहा जाता है ।
भक्त को भगवान के साथ एकाकार होने की ज़रूरत क्यों पड़ी ?
ईश्वर शिव है , सत्य है , सुन्दर है , शान्ति और आनन्द का स्रोत है । ईश्वर सभी उत्कृष्ट गुणों से युक्त हैं । सभी उत्तम गुण उसमें अपनी पूर्णता के साथ मौजूद हैं । सभी गुणों में सन्तुलन भी है ।
प्रकृति की सुन्दरता और सन्तुलन यह साबित करता है कि उसके सृष्टा और संचालक में ये गुण हैं । प्राकृतिक तत्वों का जीवों के लिए लाभदायक होना बताता है कि इन तत्वों का रचनाकार सबका उपकार करता है ।
इन्सान अपना कल्याण चाहता है । यह उसकी स्वाभाविक इच्छा है । बल्कि स्वहित चिन्ता तो प्राणिमात्र की नैसर्गिक प्रवृत्ति है ।
जब इन्सान देखता है कि ज़ाहिरी नज़र से फ़ायदा पहुंचाते हुए दिख रहे प्राकृतिक तत्व तो चेतना , बुद्धि और योजना से रिक्त हैं तो फिर आखि़र जब इन जड़ पदार्थों में योजना बनाने की क्षमता ही सिरे से नहीं है तो फिर ये अपनी क्रियाओं को सार्थकता के साथ कैसे सम्पन्न कर पाते हैं ?
थोड़ा सा भी ग़ौर करने के बाद आदमी एक ऐसी चेतन शक्ति के वुजूद का क़ायल हो जाता है , जो कि प्रकृति से अलग है और जो प्रकृति पर पूर्ण नियन्त्रण रखता है।
सारी सृष्टि उस पालनहार के दिव्य गुणों का दर्पण और उसकी कुदरत का चिन्ह है ।
सारी सृष्टि स्वयं ही एक शिवलिंग है ।
इस सृष्टि का एक एक कण अपने अन्दर एक पूरी कायनात है ।
इस सृष्टि का एक एक कण शिवलिंग है ।
न तो कोई जगह ऐसी है जो शिव से रिक्त हो और न ही कोई कण क्षण ऐसा है जिसमें शिव के अलावा कुछ और झलक रहा हो ।
ईश्वर ने समस्त प्रकृति में फैले हुए अपने दिव्य गुणों को जब लघु रूप दिया तो पहले मानव की उत्पत्ति हुई । अजन्मे अनादि शिव ने एक आदि शिव को अपनी मनन शक्ति से उत्पन्न किया ।
( ...जारी )
ऋषियों ने सत्य को अलंकारों के माध्यम से प्रकट किया । कालान्तर में ज्ञान के स्तर में गिरावट आई और लोगों ने अलंकारों को न समझकर नई व्याख्या की । हरेक नई व्याख्या ने नये सवालों को जन्म दिया और फिर उन सवालों को हल करने के लिए नये नये पात्र और कथानक बनाये गये ।
इस तरह सरल सनातन धर्म में बहुत से विकार प्रवेश करते चले गये और मनुष्य के लिए अपने सच्चे शिव का बोध कठिन होता चला गया ।
शिव को पाना तो पहले भी सरल था और आज भी सरल है लेकिन अपने अहंकार को त्यागना पहले भी कठिन था और आज भी कठिन है ।
क्या मैंने कुछ ग़लत कहा ?
मैं सभी की भावनाओं को पूरा सम्मान दे रहा हूं और अपने लिए भी यही चाहता हूँ ।
भक्त को भगवान के साथ एकाकार होने की ज़रूरत क्यों पड़ी ?
ईश्वर शिव है , सत्य है , सुन्दर है , शान्ति और आनन्द का स्रोत है । ईश्वर सभी उत्कृष्ट गुणों से युक्त हैं । सभी उत्तम गुण उसमें अपनी पूर्णता के साथ मौजूद हैं । सभी गुणों में सन्तुलन भी है ।
प्रकृति की सुन्दरता और सन्तुलन यह साबित करता है कि उसके सृष्टा और संचालक में ये गुण हैं । प्राकृतिक तत्वों का जीवों के लिए लाभदायक होना बताता है कि इन तत्वों का रचनाकार सबका उपकार करता है ।
इन्सान अपना कल्याण चाहता है । यह उसकी स्वाभाविक इच्छा है । बल्कि स्वहित चिन्ता तो प्राणिमात्र की नैसर्गिक प्रवृत्ति है ।
जब इन्सान देखता है कि ज़ाहिरी नज़र से फ़ायदा पहुंचाते हुए दिख रहे प्राकृतिक तत्व तो चेतना , बुद्धि और योजना से रिक्त हैं तो फिर आखि़र जब इन जड़ पदार्थों में योजना बनाने की क्षमता ही सिरे से नहीं है तो फिर ये अपनी क्रियाओं को सार्थकता के साथ कैसे सम्पन्न कर पाते हैं ?
थोड़ा सा भी ग़ौर करने के बाद आदमी एक ऐसी चेतन शक्ति के वुजूद का क़ायल हो जाता है , जो कि प्रकृति से अलग है और जो प्रकृति पर पूर्ण नियन्त्रण रखता है।
सारी सृष्टि उस पालनहार के दिव्य गुणों का दर्पण और उसकी कुदरत का चिन्ह है ।
सारी सृष्टि स्वयं ही एक शिवलिंग है ।
इस सृष्टि का एक एक कण अपने अन्दर एक पूरी कायनात है ।
इस सृष्टि का एक एक कण शिवलिंग है ।
न तो कोई जगह ऐसी है जो शिव से रिक्त हो और न ही कोई कण क्षण ऐसा है जिसमें शिव के अलावा कुछ और झलक रहा हो ।
ईश्वर ने समस्त प्रकृति में फैले हुए अपने दिव्य गुणों को जब लघु रूप दिया तो पहले मानव की उत्पत्ति हुई । अजन्मे अनादि शिव ने एक आदि शिव को अपनी मनन शक्ति से उत्पन्न किया ।
( ...जारी )
ऋषियों ने सत्य को अलंकारों के माध्यम से प्रकट किया । कालान्तर में ज्ञान के स्तर में गिरावट आई और लोगों ने अलंकारों को न समझकर नई व्याख्या की । हरेक नई व्याख्या ने नये सवालों को जन्म दिया और फिर उन सवालों को हल करने के लिए नये नये पात्र और कथानक बनाये गये ।
इस तरह सरल सनातन धर्म में बहुत से विकार प्रवेश करते चले गये और मनुष्य के लिए अपने सच्चे शिव का बोध कठिन होता चला गया ।
शिव को पाना तो पहले भी सरल था और आज भी सरल है लेकिन अपने अहंकार को त्यागना पहले भी कठिन था और आज भी कठिन है ।
क्या मैंने कुछ ग़लत कहा ?
मैं सभी की भावनाओं को पूरा सम्मान दे रहा हूं और अपने लिए भी यही चाहता हूँ ।
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52 comments:
उत्तम
मेरी तो समझ में कुछ नहीं आया....थोड़ी सरल भाषा का प्रयोग करते तो अच्छा रहता.....मेरे ऊपर ऊपर से निकल गया.....
yar Anwar bhai Ab to aap kuch jyada hi gyani ho gaye hain. aap ko samjh pana pada mushkil ho raha hai.
@ Murari ji , Tatva ko is se ziyada saral bhasha men aur kese vyakt kiya jaye?
@ Bhai Tarkeshwar ji, Vedic darshan ko duniya khaam-khwah hi mahan nahin kehti. thanks
nice post ,jabab hi na chhoda ji. kalam tod di aaj to ji.
sundar prastuti
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। राम नवमी पर शिव के विषय में लिखा एक बहुत बढ़िया सन्देश। मजा आ गया पढ़ कर। मैं शिव उपासक होते हुए भी उनके विषय में इतना अच्छा नहीं लिख पाता आपके पिछले दो लेख भी अच्छे थे। मैं सभी प्राचीन धर्मों में कई समानताये पाताहूँ । आप हिन्दू धर्म की बात करें , इस्लाम की बात करें, यहूदी धर्म की बात करें, सभी में मुझे कुछ बाहरी और कुछ भीतरी बातें एक सी दिखाती हैं। जैसे इन धर्मों से जुड़े लोग बड़ी बड़ी दाढ़िया रखते हैं। जैसी हिन्दू धर्म में गायके खुर के सामान शिखा रखने का रिवाज है वैसे ही इस्लाम , ईसाई और यहूदी धर्म में skull cap पहनी जाती है। माथे पर टीका लगाने का रिवाज भी एक जैसा ही है। ये कुछ ऐसी बातें हैं जो आसानी से नज़र आतीहैं । ज्यादा गहरे से आप सोच सकते है। मुझे लगता है की आप जैसा इन्सान ही इन समानताओं को ज्यादा अच्छे ढंग से सामने ला सकता है। बहरहाल आज की पोस्ट बहुत अच्छी लगी।
"शिव को पाना तो पहले भी सरल था और आज भी सरल है लेकिन अपने अहंकार को त्यागना पहले भी कठिन था और आज भी कठिन है ।"
Yahi ahankaar insaan ko sachchaai ki taraf jaane se rokta hai.
@Bandhu Vichar shunya ji , आभार ।
हमारा तो मिज़ाज ये है कि
माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके
कुछ ख़ार कम तो कर गये , गुज़रे जिधर से हम
@ Bhai Gabbar ji ,आपके प्रति आभार व्यक्त करता हूं
@ Bhai Zeeshan sahab , Aap dekh sakte hain ki zyadatar log bhasha ki wajah se satya ko nakar dete hain aur jab usi baat ko unki bhasha men kaha jata hai to swikar bhi karte hain aur tarif bhi.
Jis Creator ko sanskrit men Shiva
kehte hen usi ko Arabic men Allah kehte hain.
Aamad hetu Thanks.
अभी तक अमित जी का सुन्दर मुस्कुराता हुआ चेहरा नहीं दिखाई पड़ा। वो कहाँ चले गए। अमित जी आप कहाँ है ? I miss you. come on say somthing.
PADH KAR BAHUT ACHCHA LAGA -------AB SAMAJHNA HOGA UNKO JO SAMJH KAR BHI NAHI SAMJHNEY CHAHTEY..
KYA KAHNA?
AAP VASTAV MAIN REAL GURU HAIN.
अनवर भाई, आप पहले भी यही सब कहना चाहते थे लेकिन कुछ लोग उसको गलत समझ बैठे. आशा है अब कोई ग़लतफ़हमी नहीं होगी.
अनवर जमाल साहब! बहुत ही सुन्दर लेख लिखा है आपने. आपकी बात बिलकुल सही है. भाषाएँ अलग अलग हो सकती हैं परन्तु परम-शक्ति तो एक ही है. उसे प्रभु कहो या रब दोनों अलग-अलग भाषाओँ में उस ईश्वर अर्थात अल्लाह ही के गुणात्मक नाम हैं.
इतना बढ़िया लेख मैंने आजतक नहीं देखा है. बहुत खूबसूरती के साथ आपने अल्लाह की ताकत का वर्णन किया है!
रश्मि जी, बहुत अच्छी बात लिखी है आपने...
परन्तु मेरा मानना है कि "परम-शक्ति" शब्द, मेरे प्रभु के लिए उचित शब्द नहीं है. इससे कुछ ऐसा आभास होता है जैसे कई शक्तियों में से परम शक्ति ईश्वर है. परन्तु मेरा मानना है कि मेरे प्रभु के आगे कोई और शक्ति हो ही नहीं सकती है. वह अकेला, तने-तन्हा ही शक्ति मान है. और सारी दिखाई देने वाली शक्तियां सिर्फ आँखों का धोखा है. क्योंकि "ताकत" पर तो बस ईश्वर का ही राज है.
यस्यप्रणम्य चरणौवरदस्यभक्त्या
स्तुत्वाचवाग्भिरमलाभिरतंद्रिताभि:।
दीप्तैस्तमासिनुदतेस्वकरैर्विवस्वां
तंशंकरं शरणदं शरणं व्रजामि॥
जिन वरदायक भगवान के चरणों में भक्तिपूर्वकप्रणाम करने तथा आलस्य रहित निर्मल वाणी द्वारा जिनकी स्तुति करके सूर्य देव अपनी उद्दीप्त किरणों से जगत का अंधकार दूर करते हैं, उन शरणदाता भगवान शंकर की शरण ग्रहण करता हूं।
श्रीजमाल साहब, शिव तत्व ठीक से समझने-समझाने की कोशिश की है आपने.धन्यवाद
इसी तत्त्व को सदियों से महान मनीषियों का अनुसरण- कर्त्ता सनातन मतावलंबी समझता आ रहा हैऔर
अपने जीवन को शिवमय अर्थात कल्याणमय बनाता चला जा रहा है .आज की जीवनशैली जिसमें धर्म की कोई सम्भावना ही नहीं छोड़ी जा रही है ,को छोड़ दें तो आम भारतीय ने कभी किसी का अकल्याण नहीं चाहा है,कण -कण में उसी का दीदार किया है.कभी अपनी मान्यता किसी के ऊपर थोपने की कोशिश नहीं की है .सिर्फ अपनी सामान मान्यता वालों के ही सुख की ही कामना न करके सृस्ठी के कण कण के कल्याण की भावना एक भारतीय की रही है .
जमाल साहब आप ही बताईये,जिसका सामर्थ्य कण कण में व्याप्त होने का हो ,जो सर्व कर्म समर्थ है, जिसके संकल्प मात्र से पूरी सृस्ठी उत्पन्न होती है,क्या उस पे यह तोहमत लगाई जा सकती है की वह एक मूर्ति में नहीं समा सकता बात मूर्ति को भगवान् मानने न मानने की नहीं है , बात उस सर्व समर्थ के सामर्थ्य की है, वह क्यों नहीं मानव रूप में प्रकट हो सकता है ,जमाल साहब ध्यान दीजिये "प्रकट" शास्त्रों में कही भी उसके अवतार लेने की चर्चा आई है तो वहां "प्रकट" होना ही लिखा है नौ महीने गर्भवास करके गर्भद्वार से जन्मने का उल्ल्लेख कही नहीं आया है.
और आप द्वारा शिवतत्त्व का विवेचन करने की बाद मै आप से यह जानना चाहता हूँ की आप क्या अब भी ये ही आग्रह रखतें है की सारी कायनात अपनी अपनी मान्यताए त्याग के अपना खतना करवाएं, पांच बार नमाज पढ़ें, अपने सारे पुराण शास्त्र सभी को आग के हवाले कर दें ,तिलक जनेऊ को त्याग दें , सारे मंदिरों की मूर्तियों को बुलडोजर के निचे पिसवा दे.
कम से कम एक वैदिक धर्मावलम्बी तो कभी किसी जमाल साहब से नहीं कहेगा की आप अपनी मान्यता,विश्वाश को त्याग के मूर्तिपूजा करें,तिलक लगायें ,जो सारी सृस्ठी में राम रहा है , उसे दसरथ पुत्र राम भी माने.
बाकी शिव तत्त्व को समझने के बाद भी सिर्फ अपने खुद के ही दर्शन को मान्यता दी जाए दूसरों की आस्था में फिर भी खोट निकाला जाए जैसा की आप द्वारा अपनी अगली पोस्ट में किये जाने की संभावना है क्योंकि आपने सरल सनातन धर्म के विकारों की तरफ इशारा करके ध्यान दिलाया है.
तो ऐसे में शिवतत्त्व को जानके भी आप को क्या लाभ मिला आपको.
GuruJi, Sahi Jaa Rahe ho lage raho
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। ६।
बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला'
'और लिये जा, और पीये जा', इसी मंत्र का जाप करे'
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।।
धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।
बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।।
दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला,
ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला,
कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को?
शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला।।
@Amit Sharma:
अमित जी मेरे विचार से तो इसमें आग्रह करने जैसी कोई बात ही नहीं है, क्योंकि जो सत्य होता है, सत्यप्रिय लोगो को वही पसंद होता है. और मनुष्य को मान्यताएं नहीं अपितु सत्य का अनुसरण करना चाहिए. मैं एक उदहारण देता हूँ:
अगर यह माना जाए कि पहले मान्यता थी कि पृथ्वी का आकार चपटा है, परन्तु वैज्ञानिक खोजो से पता चला कि नहीं पृथ्वी तो अंडाकार है. तो क्या आप पुरानी मान्यताओं को ही मानते रहोगे या सत्य का अनुसरण करोगे?
रही बात खतना करने, पाच बार नमाज़ पढने की, तो इनका महत्त्व अलग है. जहाँ खतना स्वच्छता का घोतक है, वहीँ पांच बार नमाज़ पढना श्रृद्धा का. और अगर आप यह सोचते हैं कि अगर कोई मनुष्य पांच बार नमाज़ नहीं पढता अथवा खतना नहीं कराइ हुई हैं तो वह मुसलमान नहीं है, तो आपका ऐसा सोचना गलत है. यह चीज़े तो मुसलमान की ड्यूटी हैं, और जो प्रभु से असीम प्रेम रखते हैं वह अवश्य ही अपने फ़र्ज़ को निभाते हैं, परन्तु जो फ़र्ज़ नहीं निभा पा रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं कि वह विश्वास ही नहीं रखते हैं.
और यह तो किसी ने कहा ही नहीं है कि पुराणों, शास्त्रों को आग के हवाले कर दिया जाए. यह अपने समय के अनुसार सर्वोत्तम ग्रन्थ हो सकते हैं, परन्तु जैसे ही समय बदला, समयानुसार प्रभु ने स्वयं वेदों की तरह ही नए समयानुसार अपने कथन को मनुष्यों तक पहुंचा दिया. क्योंकि जैसे-जैसे समय बदला, मनुष्य पहले से अधिक परिपक्व होता गया और इस स्थिति के अनुरूप ईश्वर ने कानून बना दिया. एक ऐसा कानून जिसमें इस संसार के आखिरी दिन तक बदलाव की आवश्यकता को समाप्त कर दिया.
इसलिए अब यह फ़र्ज़ बना कि पुराने ग्रंथो को सम्मान देना और प्रभु के कथन एवं आदेशो का अनुसरण करना ही सही मार्ग है. क्योंकि जिसका अनुसरण करना है वही तो सारे संसार का पालनहार अर्थात प्रभु अर्थात रब है. और मनुष्य उसका अनुसरण करके प्रभु पर कोई उपकार नहीं करता अपितु स्वयं अपने ऊपर ही उपकार करता है.
सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला,
सजधजकर, पर, साकी आता, बन ठनकर, पीनेवाला,
शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से
चिर विधवा है मस्जिद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला।।
बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,
गाज गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला,
शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को
अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला!।
कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,
बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला,
एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले,
देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला!।
मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।
bilkul sahi chal rahe ho GURUJI,
bas mast mast likha karo, logon ka kuchh to kahenge hee
अगर खतना लाजिमी ही होता तो अल्लाह बच्चे को गलफ़ के बिना ही भेजता. पर नहीं.
अल्लाह बच्चे को पूरे गलफ़ के साथ भेजता है. यह कैसी बंदगी है, की तुम अल्लाह की डिजाइन में खोट निकालते हो? अल्लाह भेजता है साबुत, तुम उसे काट डालते हो? यह तो सरासर उसका अपमान हुआ.
अहंकार की हद! यह तक सोचने लगे की तुम खतना करके उपरवाले की भूल सुधार सकते हो.
लाहौलविलाकुवत!!!
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शराब की इस्लाम में मनाही है. सच्चा मुसलमान इस तरह शराब और शराबखाने के गुण नहीं गाता. भूल से भी नहीं!
अमित, विचार शून्य और तारकेश्वर गिरी, इस ब्लॉग पर अपना कीमती समय बेकार न करें, यह आदमी धार्मिक बकवास करता ही रहेगा। इसे देश की समस्याओं से कोई वास्ता नहीं, ऊलजलूल लिखना ही इसका पेशा है,
शिव को पाना तो पहले भी सरल था और आज भी सरल है लेकिन अपने अहंकार को त्यागना पहले भी कठिन था और आज भी कठिन है ।
chakit hun k bhartiy gyan meemaansaa ke soorma khaamosh hain!
क्या 'हिन्दू शब्द भारत के लिए समस्या नहीं बन गया है?
आज हम 'हिन्दू शब्द की कितनी ही उदात्त व्याख्या क्यों न कर लें, लेकिन व्यवहार में यह एक संकीर्ण धार्मिक समुदाय का प्रतीक बन गया है। राजनीति में हिन्दू राष्ट्रवाद पूरी तरह पराजित हो चुका है। सामाजिक स्तर पर भी यह भारत के अनेक धार्मिक समुदायों में से केवल एक रह गया है। कहने को इसे दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय माना जाताहै, लेकिन वास्तव में कहीं इसकी ठोस पहचान नहीं रह गयी है। सर्वोच्च न्यायालय तक की राय में हिन्दू, हिन्दुत्व या हिन्दू धर्म की कोई परिभाषा नहीं हो सकती, लेकिन हमारे संविधान में यह एक रिलीजन के रूप में दर्ज है। रिलीजन के रूप में परिभाषित होने के कारण भारत जैसा परम्परा से ही सेकुलर राष्ट्र उसके साथ अपनी पहचान नहीं जोडऩा चाहता। सवाल है तो फिर हम विदेशियों द्वारा दिये गये इस शब्द को क्यों अपने गले में लटकाए हुए हैं ? हम क्यों नहीं इसे तोड़कर फेंक देते और भारत व भारती की अपनी पुरानी पहचान वापस ले आते।
हिन्दू धर्म को सामान्यतया दुनिया का सबसे पुराना धर्म कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि दुनिया में ईसाई व इस्लाम के बाद हिन्दू धर्म को मानने वालों की संख्या सबसे अधिक है। लेकिन क्या वास्तव में हिन्दू धर्म नाम का कोई धर्म है? दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर रहे डॉ. डी.एन. डबरा का कहना है कि 'हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे नया धर्म है।
http://navyadrishti.blogspot.com/2009/12/blog-post_31.html
@ ab inconvenienti
अगर खतना लाजिमी ही होता तो अल्लाह बच्चे को गलफ़ के बिना ही भेजता. पर नहीं.
अल्लाह बच्चे को पूरे गलफ़ के साथ भेजता है. यह कैसी बंदगी है, की तुम अल्लाह की डिजाइन में खोट निकालते हो? अल्लाह भेजता है साबुत, तुम उसे काट डालते हो? यह तो सरासर उसका अपमान हुआ.
अहंकार की हद! यह तक सोचने लगे की तुम खतना करके उपरवाले की भूल सुधार सकते हो.
श्रीमान इसको भूल सुधारना नहीं अपितु गंदगी से बचना कहा जाता है. वैसे भी सफाई निस्फ़ (आधा) ईमान होता है.
पैदा तो इंसान ऐसे भी होता है कि उसकी नाभि उसकी माँ के साथ जुडी होती है. लेकिन पैदा होने के बाद उसे काटा जाता है, ताकि दोनों को सुविधा हो और जीवन आसानी से गुज़रे.
फिर हमें इतना अच्छा चेहरा और बदन भी दिया ईश्वर ने तो क्यों फिर सुबह उठकर मुंह धोते हो, स्नान करते हो? और क्यों दाढ़ी बना कर, बाल कटवा कर, और कपडे पहन कर ईश्वर के बनाए हुए शरीर को खराब करते हो?
बंधू यह सब इसलिए किया जाता है कि ईश्वर ने जो शरीर बनाया है, उसका ख्याल रखा जा सके. इसलिए यह ईश्वर का अपमान नहीं अपितु सम्मान कहलाता है. वर्ना आपके अनुसार तो सिर्फ मजनू/दीवाने/पागल ही ऐसे है जो ईश्वर के बनाए हुए शरीर से खिलवाड़ नहीं करते. ना नहाते हैं, ना दाढ़ी बनवाते हैं और ना बाल कटवाते हैं.
तो बताइए श्रीमान मजनू बनना चाहते हैं या सभ्य इंसान बने रहना चाहते हैं?
परमेश्वर ही सच्चा शिव अर्थात कल्याणकारी है । जो प्राणी उसकी शरण में आ जाता है , वह भी शिवत्व को प्राप्त करके स्वयं भी शिव रूप हो जाता है । इसी को अलंकारिक भाषा में भक्त का भगवान से एकाकार होना कहा जाता है ।
bahut acha.
BHAGWAAN SHIV AAPKE UPAAR SADA MEHARBAAN RAHE.
JAI BHOLENAATH
@ अमित जी मेरे विचार से तो इसमें आग्रह करने जैसी कोई बात ही नहीं है, क्योंकि जो सत्य होता है, सत्यप्रिय लोगो को वही पसंद होता है. और मनुष्य को मान्यताएं नहीं अपितु सत्य का अनुसरण करना चाहिए.
भाई शाह नवाज़जी ठीक कहा आपने,अपनी ही बात को सत्य बतलाकर दूसरों को झुठलाना,कमियां बतलाना सरल आग्रह नहीं हो सकता , सीधा सीधा दुराग्रह ही है.
और बात यहाँ भौतिक ज्ञान,विज्ञान की मान्यताओ के परिमार्जन की नहीं है.
बात यहाँ उस सर्वव्यापी परमेश्वर को जानने की है,जिसको किसी भी माध्यम से जानने की कोशिश करो,उसका ही दीदार होता है.
यह अपने अपने साक्षात्कार की बात है. फिर किसी पे यह क्यों कर थोपा जाये की तुम जो कर रहे हो गलत है, अमुक मनीषी ने जो राह दिखलाई है सिर्फ और सिर्फ वही सत्य है अब तो क़यामत तक
गर्भनाल न भी काटी जाए तब भी वह दो तीन दिन में सूखकर खुद ही झड जाती है. गर्भनाल का जन्म के बाद कोई कार्य नहीं है, क्योंकि बच्चा मुंह से आहार लेने लगता है. पर दुनिया भर के वैज्ञानिक और शोधकर्ता खतने का विरोध कर रहे है.
क्या जिनका खतना नहीं हुआ वे साफ़ सुथरे नहीं होते? या वे असभ्य होते हैं?
Anatomy of the Penis, Mechanics of Intercourse
http://www.cirp.org/pages/anat/
Immunological functions of the human prepuce
http://www.cirp.org/library/disease/STD/fleiss3/
What is Lost to Circumcision
http://www.cirp.org/pages/parents/lostlist/
Full_Disclosure on circumcision
http://www.icgi.org/Downloads/Full_Disclosure.pdf
सारे वैज्ञानिक सुबूत दे दिए. पढो, फिर जवाब दो.
इतने उपयोगी अंग को काटना अल्लाह का अपमान है. शर्म करो, खतना अल्लाह से बगावत है.
मो. पैगम्बर ने एक किताब लिखी, ये किताब नही एक गुलाम मांसिकता वाली किताब है, इसमे उन्होने एक अजन्मे अल्लाह का डर दिखाया,
जैसे -
1. तुम अगर खतना नही करोगे तो , अल्लाह तुमको कोड़ो से मारेगा. या तुमको जन्नत नही मिलेगी.
2. तुम केवल मेरी ही पूजा करो किसी और की नही, यानी तुम इसलाम के गुलाम हो.
3. औरतो को बुर्के मे रखो, मतलब औरत को गुलाम की जिन्दगी जीनी है, तसलीमा नसरीन ने इसका विरोध किया , उसको मारने का फ़तवा जारी हो गया, मतलब कोई भी आवाज नही उठा सकता, यानी तुम इसलाम के गुलाम हो.
और न जाने कितने गुलाम के किस्से हैन कुरान में
आज मुस्लिम समाज या औरते गुलाम की सी जिंदगी जी रहे है, जैन अभी एक इस्लामिक धर्म गुरू ने कहा कि औरतो का केवल बच्चा पैदा करना हैं, नेतागिरी नही
इस अजन्मे प्राणी (अल्लाह ) का खोफ दिखाकर लोग आत्मघाती बम बन रहे है, और निर्दोस लोगो को मार रहे हैं
जबकि अल्लाह नाम की कोई चीज है ही नही, पैगम्बर ने कुरान की किताब से गुलाम बना के रखा है. कुरान मे दूसरे धर्म का अनादार है. वो धर्म हू क्या जो दूसरे धर्म का अनादार करे, वो तो अधर्म कह लायेगा, इसलिये इस्लाम धर्म नही एक अधर्म है
जिसने ना जाने कितने बेकासूर लोगो को मारा
राज सिंह
@Ab Ji,
अगर आप गूगल में 'Benefits of Circumcision' सर्च करें तो हज़ारों इस तरह के फायेदे वाले भी शोध दिख जायेंगे.
@राज सिंह
कानून को लागू करने के लिए डर भी होना चाहिए . क्या आप पुलिस के बिना कानून व्यवस्था की सोच सकते हैं?
"1. तुम अगर खतना नही करोगे तो , अल्लाह तुमको कोड़ो से मारेगा. या तुमको जन्नत नही मिलेगी."
कुरआन में ऐसा कोई डर नहीं दिखाया गया है.
"2. तुम केवल मेरी ही पूजा करो किसी और की नही, यानी तुम इसलाम के गुलाम हो."
जिस ने पूरी कायनात बनाई अगर वह यह कहता है तो बुरा क्या है?
"3. औरतो को बुर्के मे रखो, मतलब औरत को गुलाम की जिन्दगी जीनी है, तसलीमा नसरीन ने इसका विरोध किया , उसको मारने का फ़तवा जारी हो गया, मतलब कोई भी आवाज नही उठा सकता, यानी तुम इसलाम के गुलाम हो."
कुरआन औरत मर्द दोनों के लिए परदे की बात करता है. कोई किसी का गुलाम नहीं. यह पर्दा सुरक्षा के लिए है गुलामी के लिए नहीं.
"कुरान मे दूसरे धर्म का अनादार है. वो धर्म हू क्या जो दूसरे धर्म का अनादार करे, वो तो अधर्म कह लायेगा, इसलिये इस्लाम धर्म नही एक अधर्म है"
कुरआन में किसी मूल धर्म का अनादर नहीं. आप पहले कुरआन पढ़ें फिर बात करें.
@ zeashan भाई आप के लिये ढेर सारी दुआएं कर रहा हूं, अल्लाह आपके ज्ञान में और इजाफा करे
Shukriya Umar Bhai
इतने उपयोगी अंग को काटना अल्लाह का अपमान है. शर्म करो, खतना अल्लाह से बगावत है.
जमाल पहली बार तू लाइन में आया है लाइन से हटकर चालेगा तो-------------------------------------------
@ अन्य मक़सद धारी प्रिय अमित जी ,
मैंने किसी आपत्ति करने वाले हिन्दू के जनेऊ धारण न करने पर उसे अपने धर्म नियम की पाबन्दी के लिए तो ज़रूर कहा है लेकिन उसे छोड़ने के लिए कहां और कब कहा है , बताइये ?
जो बात मैंने कही नहीं उस पर मुझ पर बिगड़ने का क्या मतलब है ?
आपके जनेऊ आदि छुड़वाये हैं कबीर जी , नानक साहिब और अम्बेडकर आदि ने , सॉरी अम्बेडकर जी के लिए तो आपके यहां जनेऊ पहनना ही वर्जित है । बहरहाल जो भी हो , आप इनसे पूछिये कि इन्होंने ऐसा क्यों किया ?
इन्हें तो आपने सन्त और सुधारक घोषित कर दिया , इनसे आप कैसे पूछेंगे ?
मूतिर्यों पर भी बुलडोज़र मैंने कभी नहीं चलवाया और न ही ऐसा कहीं कहा है ?
आप संस्कृति रक्षक श्री मोदी जी के काम के साथ मेरा नाम क्यों जोड़ रहे हैं ?
गुजरात में मन्दिरों पर बुल्डोज़र उन्होंने चलवाया , उन्हीं से पूछिये ?
मैं तो वैदिक धर्म को मूलतः निर्दोष मानता हूँ । उसमें सुधार चाहता हूं ।
दयानन्द जी और पं. श्री राम आचार्य जी भी जीवन भर वैदिक धर्म के विकारों को अपने विचारों के अनुसार दूर करते रहे ।
मैं भी दूर करना चाहता हूं क्योंकि मैं इसी पवित्र भूमि का पुत्र हूं , मैं भी हिन्दू हूं । क्या मुझे इसका हक़ नहीं है ?अगर नहीं है , तो क्यों नहीं है ?
और मुझे वह हक़ पाने के लिए क्या करना पड़ेगा , जो कि हरेक हिन्दू को प्राप्त है ?
आप प्रायः वे सवाल उठाते हैं जिनका मौजूदा पोस्ट से कोई ताल्लुक़ नहीं होता । पिछली पोस्ट शिव महिमा पर थी , आप को उसमें जो ग़लत लगे उस पर ज़रूर टोकिये लेकिन ...
अब आपको क्या समझाया जाए , आप कोई बच्चे तो हैं नहीं ।
अभी मैं कुछ दिन शिव और महाशिव का गुण बखान करने के मूड में हूं ।
इसलिये प्लीज़ शांति से देखते रहिये । हां , जहां मैं कोई ग़लत बात कहूं वहां ज़रूर टोकिये या फिर आप मुझ से ज़्यादा ज्ञानियों के ब्लॉग्स पर जाकर भी अपने समय और ऊर्जा का सदुपयोग कर सकते हैं । इस तरह मेरी टी.आर.पी. भी डाउन हो जायेगी और यह ब्लॉग गुमनामी के अन्धेरे में खो जाएगा । लेकिन अगर आप आते रहे और कमेन्ट्स देते रहे तो यह ब्लॉग बना रहेगा ।
अगर यह ब्लॉग ग़लत है तो कृपया , इसे न देखकर , इसे मिटा दें ।
किसी पुराने तजर्बेकार ने यह सलाह आपको दी भी है ।
सलाह अच्छी है , आज़माकर तो देखें ।
ख़ैर , एक शेर अर्ज़ है -
अहले ज़र पे उठ सके जो , है कहां ऐसी नज़र
ज़ुल्म तो बस मुफ़लिस ओ नादार पर देखे गए
सभी का आभार
chachaa soodharoge to nahi toomhare dharm per hmala huaa to thoda diffencive ho gaye bus....line chdoge to fir dhookh paa javoge?????
YHWH = Iam That I am = Aham brahamasmi= tat twam aasi = mai hi Ishvar hu. Agar mai hi ishvar hu to dusara ishvar aaya kahase ?
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