सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Saturday, March 27, 2010

ताकि हरेक जान ले कि सच्चा मुसलमान कैसा होता है ? Submission to Allah, The real God .


बहन फ़िरदौस जी ,

विचारोत्तेजक लेख के लिए बधाई ।

मैं आपसे बिल्कुल सहमत हूं कि इनसान के कल्याण के लिए इसलाम काफ़ी है

मुसलमानों को आरक्षण के चक्कर में पड़ने के बजाए इसलाम को मज़बूती से थामना चाहिये ।

असल बात यह है कि हिन्दुस्तान में लोग वर्णवाद से घबराकर मुसलमान तो हो गये लेकिन जाति पांति का भेदभाव उनके अन्दर इतनी गहराई तक घुस चुका था कि इसलाम कुबूल करने बाद भी वह पूरी तरह न जा सका ।

इसलाम के अन्दर ज़कात का निज़ाम है ।

अगर सभी साहिबे निसाब मुसलमान वाजिब ज़कात अदा करें तो मुसलमानों के साथ साथ हिन्दुओं की भी ग़रीबी दूर हो जायेगी । तब न गुरबत होगी और न बग़ावत होगी । आज मुल्क में नक्सलवाद तबाही मचा रहा है । हां , मानता हूं कि इसके पीछे भुखमरी की शिकार जनता है और इसके लिए पूंजी का असमान वितरण है । इसके पीछे मधु कोड़ा जैसे बेईमान नेता और अफ़सर हैं ।

इसके पीछे ये हैं और इसके पीछे वे हैं ।

क्या किसी चीज़ के पीछे हम भी हैं ?

क्या कभी हमने यह जानने का प्रयास किया ?

सकता है कि इस दुनिया के क़ानून में नक्सलवाद के पीछे मुसलमान ज़िम्मेदार न माना जाये लेकिन दुनिया सिर्फ़ यही तो नहीं है । यह तो अमल की दुनिया है , एक रोज़ अन्जाम की दुनिया भी तो ज़ाहिर होगी । एक दिन वह भी तो आना है जब सारे हाकिमों को हुकूमत अता करने वाला खुद को ज़ाहिर करेगगा । तब वह हरेक हाकिम से हिसाब लेगा ।

मरती सिसकती दुनिया को उसने जीने की राह दिखाई थी , अपना ज्ञान भेजकर ।

उसके ज्ञान को कितना फैलाया ?तब वह हिसाब लेगा ।हिसाब तो वह आज भी ले रहा है और पापियों को सज़ा भी दे रहा है लेकिन अभी सज़ा के साथ सुधरने की मोहलत और ढील भी दे रहा है । ढील देखकर लोग अपने ज़ुल्म में और बढ़े जा रहे हैं ।सोच रहे हैं कि इस दुनिया का कोई रखवाला न कभी था और न ही आज है । कर लो जो करना है ।

बड़े पेट भरे पापियों की नास्तिकता और अमीरी देखकर छोटे लोगों के दिल से भी पाप और उसके बुरे अन्जाम का डर निकलता जा रहा है ।

ज़मीन पर खुदा का पैग़ाम , पवित्र कुरआन मौजूद हो लेकिन अहले ज़मीन की अक्सरियत उससे नावाक़िफ़ हो ।

इसलाम का अर्थ ही सलामती हो और लोग इसलाम से ही ख़तरा महसूस कर रहे हों ।

इसलाम फ़िरक़ेबन्दी के ख़ात्मे के लिए भेजा गया हो और खुद इसलाम में ही फ़िरक़े बनाकर रख दिये गये हों ।क्या इन सबका ज़िम्मेदार भी मुसलमान नहीं है ।बाबरी मस्जिद ढहाने वाले कुछ जोशीले हिन्दू जत्थे तो सबको नज़र आते हैं लेकिन उन्हें भड़काकर इस मक़ाम पहुंचाने वाले आज़म ख़ां जैसे कमअक्ल और ख़ुदग़र्ज़ लीडर्स उनसे कहीं ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं । और सिर्फ़ लीडर्स पर ही ज़िम्मेदारी डालकर हम बच नहीं सकते ।

हम मुसलमानों का , खुद का अपना हाल क्या है?

कितने परसेन्ट मुसलमान मस्जिदों में जाते हैं ?

जो जाते हैं उनमें से कितने लोग कुरआन पाक को समझने और उस पर अमल करने का प्रयास करते हैं ?

कितने लोग हैं जो अपनी बीवियों को महर की अदायगी निकाह के वक्त करते हैं ?

कितने लोग हैं जो अपनी जायदाद में अपनी बेटियों को भी उनका हक़ उनका हिस्सा देते हैं ?

कुरआन अमल के लिए है । कुरआन सबसे बड़े हाकिम का फ़रमान है ।

इसकी नाफ़रमानी दण्डनीय है । हम नाफ़रमानी कर रहे हैं और लगातार किये जा रहे हैं ।

हम पर मालिक की सज़ा पड़ रही है और हमारी वजह से दूसरे भी कष्ट भोग रहे हैं ।

मुसलमान अपने गिरेबां में झांक ।

अपने जुर्मों की तावील न कर , बहाने न बना । वक्त रहते सुधर जा । इसलाम हर समस्या का समाधान है । आज यह एक किताबी बात बनकर रह गयी है । इसे करके दिखा । लोग आज समस्याओं से ही तो दुखी हैं । उन्हें समाधान ही तो चाहिये । अगर वाक़ई इसलाम सच्चा पक्का समाधान है तो फिर कौन उसका इनकार करके घाटा उठाना चाहेगा , सिवाए नादान के ?किसी भी समाज की तबाही उसकी अपनी अन्दरूनी कमज़ोरी के कारण होती है और जब तक उनको दूर न किया जाये तब भला नहीं हुआ करता । विरोधी तो केवल षड्यंत्र कर सकता है लेकिन उसे हरगिज़ कामयाबी नहीं मिल सकती अगर खुद के अन्दर कमज़ोरी न हो । लीडर अपने अन्जाम से डरें और अवाम भी खुद को संभाले ।खुदा इनसान को दो ही फ़िर्क़ां में बांटकर देखता है ।

भला और बुरा

देखिये कि आप खुद को किस वर्ग में पाते हैं ?

यहां एक बात और ध्यान देने के लायक़ है कि क्या हम सच्चे मुसलमान हैं ?

सही बात तो यह है कि कौन सच्चा है और कौन पाखण्डी ?

इस बात का हक़ीक़ी फ़ैसला तो इनसाफ़ के दिन मालिक खुद करेगा ।लेकिन एक बात जो हम कह सकते हैं वह यह है कि अगर हम सच्चे दिल से इसलाम की सच्चाई का यक़ीन रखते हैं तो हम सच्चे मुसलमान हैं ।लेकिन यहां आकर ही हमारा काम पूरा नहीं हो जाता बल्कि यहां से हमारा काम आरम्भ होता है ।

इसलाम का अर्थ है एक अल्लाह के प्रति पूर्ण समर्पण ।

यहां हर आदमी का स्तर अलग अलग है । समर्पण की प्रक्रिया एक दिन में सम्पन्न होने वाली चीज़ नहीं है बल्कि यह जीवन भर चलने वाला अमल है । जो दिल से इसलाम को सच्चा मानते हैं उनकी मान्यता का असर उनके जीवन में भी झलकना लाज़िमी भी है और झलकता भी है ।

पुराने लोग मरते रहते हैं और नये पैदा होते रहते हैं इस तरह यह जीवन भी चलता रहता है और इसलाम में ढलने चलने की प्रक्रिया भी ।सुधार की इब्तदा होती है नमाज़ से

मुसलमान को चाहिये कि अपनी सारी जि़न्दगी को ही नमाज़ बना दे ।

अपने आपको खुदा के सामने पूरी तरह झुका दे ताकि हरेक जान ले कि सच्चा मुसलमान कैसा होता है ?

34 comments:

Shah Nawaz said...

अनवर साहब, अब तक जितने भी लेख पढ़े यूँ तो सभी एक से बढ़कर एक हैं, लेकिन आपका यह लेख सर्वोत्तम है. यकीन मानिये मैंने आजतक इतना बढ़िया लेख किसी ब्लोगर का नहीं पढ़ा. यह वाकई काबिले-तारीफ है, बल्कि जितनी भी तारीफ की जाएँ कम हैं.

Shah Nawaz said...

मुसलमानों को आरक्षण के चक्कर में पड़ने के बजाए इसलाम को मज़बूती से थामना चाहिये ।

Shah Nawaz said...

"अगर सभी साहिबे निसाब मुसलमान वाजिब ज़कात अदा करें तो मुसलमानों के साथ साथ हिन्दुओं की भी ग़रीबी दूर हो जायेगी । तब न गुरबत होगी और न बग़ावत होगी । आज मुल्क में नक्सलवाद तबाही मचा रहा है । हां , मानता हूं कि इसके पीछे भुखमरी की शिकार जनता है और इसके लिए पूंजी का असमान वितरण है । इसके पीछे मधु कोड़ा जैसे बेईमान नेता और अफ़सर हैं"

Shah Nawaz said...

"इसलाम फ़िरक़ेबन्दी के ख़ात्मे के लिए भेजा गया हो और खुद इसलाम में ही फ़िरक़े बनाकर रख दिये गये हों ।क्या इन सबका ज़िम्मेदार भी मुसलमान नहीं है ।बाबरी मस्जिद ढहाने वाले कुछ जोशीले हिन्दू जत्थे तो सबको नज़र आते हैं लेकिन उन्हें भड़काकर इस मक़ाम पहुंचाने वाले आज़म ख़ां जैसे कमअक्ल और ख़ुदग़र्ज़ लीडर्स उनसे कहीं ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं । और सिर्फ़ लीडर्स पर ही ज़िम्मेदारी डालकर हम बच नहीं सकते"

Shah Nawaz said...

"अगर हम सच्चे दिल से इसलाम की सच्चाई का यक़ीन रखते हैं तो हम सच्चे मुसलमान हैं ।लेकिन यहां आकर ही हमारा काम पूरा नहीं हो जाता बल्कि यहां से हमारा काम आरम्भ होता है"

Shah Nawaz said...

"इसलाम का अर्थ है एक अल्लाह के प्रति पूर्ण समर्पण ।

यहां हर आदमी का स्तर अलग अलग है । समर्पण की प्रक्रिया एक दिन में सम्पन्न होने वाली चीज़ नहीं है बल्कि यह जीवन भर चलने वाला अमल है । जो दिल से इसलाम को सच्चा मानते हैं उनकी मान्यता का असर उनके जीवन में भी झलकना लाज़िमी भी है और झलकता भी है"

Shah Nawaz said...

वैसे तो पूरा लेख ही ज़बरदस्त है, परन्तु ऊपर लिखे कुछ जुमले मुझे सबसे अधिक पसंद आये.... और अंत में यह शब्द तो अमूल्य हैं:


"सुधार की इब्तदा होती है नमाज़ से....
मुसलमान को चाहिये कि अपनी सारी जि़न्दगी को ही नमाज़ बना दे"

DR. ANWER JAMAL said...

@Bhai Shahnawaz , Apki wajah se mera hosla char guna ho gaya. ab main dekhta hun sham ki post aur ise sambhaliye aap.
Thanks
Allah Hamen Jannat men sada ke liye sath rakhe.
Aameen.

DR. ANWER JAMAL said...

@ Bhai shahnawaz,
Apne to comment likhte likhte hi mera hosa 4 ke bajay 7 guna kar diya .
shukriya.

kunwarji's said...

"असल बात यह है कि हिन्दुस्तान में लोग वर्णवाद से घबराकर मुसलमान तो हो गये लेकिन जाति पांति का भेदभाव उनके अन्दर इतनी गहराई तक घुस चुका था कि इसलाम कुबूल करने बाद भी वह पूरी तरह न जा सका ।"

इसको यदि ऐसे कहते कि औरंगजेब जैसे आक्रान्ताओं के कहर से डर कर,अकबर जैसे चालाको की चाल में फंस कर मुसलमान तो हो गये,ये ज्यादा करीब होता सच्चाई के !
वैसे बढ़िया है! कुंवर जी,

Saleem Khan said...

असल बात यह है कि हिन्दुस्तान में लोग वर्णवाद से घबराकर मुसलमान तो हो गये लेकिन जाति पांति का भेदभाव उनके अन्दर इतनी गहराई तक घुस चुका था कि इसलाम कुबूल करने बाद भी वह पूरी तरह न जा सका ।

Saleem Khan said...

हम मुसलमानों का , खुद का अपना हाल क्या है?

कितने परसेन्ट मुसलमान मस्जिदों में जाते हैं ?

जो जाते हैं उनमें से कितने लोग कुरआन पाक को समझने और उस पर अमल करने का प्रयास करते हैं ?

कितने लोग हैं जो अपनी बीवियों को महर की अदायगी निकाह के वक्त करते हैं ?

कितने लोग हैं जो अपनी जायदाद में अपनी बेटियों को भी उनका हक़ उनका हिस्सा देते हैं ?

Anonymous said...

अपने जुर्मों की तावील न कर , बहाने न बना । वक्त रहते सुधर जा । इसलाम हर समस्या का समाधान है । आज यह एक किताबी बात बनकर रह गयी है । इसे करके दिखा । लोग आज समस्याओं से ही तो दुखी हैं । उन्हें समाधान ही तो चाहिये । अगर वाक़ई इसलाम सच्चा पक्का समाधान है तो फिर कौन उसका इनकार करके घाटा उठाना चाहेगा , सिवाए नादान के ?किसी भी समाज की तबाही उसकी अपनी अन्दरूनी कमज़ोरी के कारण होती है और जब तक उनको दूर न किया जाये तब भला नहीं हुआ करता । विरोधी तो केवल षड्यंत्र कर सकता है लेकिन उसे हरगिज़ कामयाबी नहीं मिल सकती अगर खुद के अन्दर कमज़ोरी न हो । लीडर अपने अन्जाम से डरें और अवाम भी खुद को संभाले ।खुदा इनसान को दो ही फ़िर्क़ां में बांटकर देखता है ।

Safat Alam Taimi said...

आँख खोलने वाला लेख प्रस्तुत करने पर हम आपको दिल की गहराई से बधाई देते हैं डा0 साहिब।

Safat Alam Taimi said...

आँख खोलने वाला लेख प्रस्तुत करने पर हम आपको दिल की गहराई से बधाई देते हैं डा0 साहिब।

ab inconvenienti said...

ऊँची जाती के मुसलामानों के पूर्वज हमलावरों से अपनी रियासत बचाने की संधि और डर के कारण मुसलमान बने, वर्ना वे तो पहले ही समाज के शीर्ष पर थे. गरीब जाज़िये और लगान की ऊँची दर के कारण मुसलमान बने. गुलामवंश और मुग़ल काल में जहाँ ज़कात स्वेच्छा पर निर्भर था और इसकी दर कम थी, जजिया अनिवार्य था और इसकी दर भी बहुत ऊँची थी. जजिया न चुकाने पर जमीन-जायदाद कुर्क कर ली जाती, या अपराधी घोषित कर दिया जाता. गरीब लोगों के पास इस्लाम अपनाने के आलावा कोई चारा नहीं था. कुछ अति उत्साही मुस्लिमों ने कमज़ोर दलितों को जबरजस्ती कलमा कबुलवाया. भारत में इस्लाम संधियों, राजनैतिक और फौजी दबाव, मुग़ल नीतियों और अति उत्साही मुस्लिमों के जबरन धर्म परिवर्तन द्वारा फैला.

राजपूतों वर्ण व्यवस्था में ऊँचे पायदान पर थे, कश्मीर के मुसलमान कभी पंडित और तिब्बती बौद्ध थे. अगर राजा फौजी दबाव के तहत मुसलमान बना लिया जाता था तो उसके वफादार, दरबारी, अधिकारी और सारे रिश्तेदार यूँ ही इस्लाम कुबूल कर लेते थे. इसीलिए नहीं की उन्हें इस्लाम अच्छा लगा, या उसमे उन्हें कुछ अलग दिखा बल्कि राजा के प्रति हर हाल में वफ़ादारी की परंपरा कारण. पाकिस्तान का भुट्टो परिवार कभी राजपूत था. वर्ण व्यवस्था से तंग आकर धर्म परिवर्तन की बात बकवास है. अगर जातिवाद से तंग आकर ही दलित मुसलमान बने होते तो, भारत-पाकिस्तान-बंगलादेश के मुसलमानों में जातिवाद शुरू से ही न होता.

आज भी ऊँची जाती के मुसलमान अपने से नीची जाति में रिश्ता नहीं करते. आपको ऐसे मुसलमान मिल जायेंगे जो अपने पटेल, राजपूत, चौधरी, ब्राहमण, होने पर गर्व करते हैं. जो खुद को ईरान या अरब से जोड़ते हैं, वे खुद को सभी भारतीय और दलित मुसलमानों से कहीं ऊँचा महसूस करते हैं. क्या इन्हें हज़ार सालों में कुरआन आपस में भाईचारा तक न सिखा पाई? हिन्दुओं से किस तरह अलग है मुस्लिम समाज?

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अगर सभी साहिबे निसाब मुसलमान वाजिब ज़कात अदा करें तो मुसलमानों के साथ साथ हिन्दुओं की भी ग़रीबी दूर हो जायेगी । तब न गुरबत होगी और न बग़ावत होगी ।

इस्लामी मुल्कों में तो ग़ुरबत और बगावत का नाम न होगा, जमाल मियां! पाकिस्तान, बंगलादेश, सीरिया सूडान और अन्य अफ़्रीकी देशों के पास तेल के कुँए नहीं हैं, और जकात अनिवार्य है, फिर भी ग़ुरबत है. क्यों?

क्या इन देशों से भुखमरी और गरीबी मिट चुकी है?

पाकिस्तान में तो सुन्नी नमाज़ अदा करते सुन्नियों की मस्जिद उड़ा देते हैं, पश्तून पंजाबियों और सिंधियों से नफरत करते हैं. क्यों मुसलमान वहां मुसलमानों से बगावत कर रहा है.

हां नमाजियों से भरी मस्जिदें उड़ा देना बच्चों की लड़ाई से अलग है.

Mohammed Umar Kairanvi said...

भाई जमाल साहब, आपने फिरदौस बहन से सहमति जता कर बहुत अच्‍छा किया, आपकी तो हम सब बातों से सहमत हैं किस-किस बात का कमेंटस में जिक्र करूं, बस आपके लिये दुआ करता हूं अल्‍लाह करे जोरे कलम और ज्‍यादा

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

इस्लाम को यदि कठ्मुल्लाओ से निज़ात मिल जाये तो अच्छा रहेगा .
सैय्यद ,पठान ,जुलाहे ,धुना ,मेवाती ,गद्दी........ तक मे बट रहे है मुसल्मान . शिया-सुन्नी ,अहमदिया के बाद . हिन्दुओ की सभी कमिया मुसल्मानो मे पहुच रही है और आरक्षण के बाद तो और खाई खुदेगी . सिर्फ़ ५ साल का इन्तजार किजिये जैसे हिन्दुओ मे जूते से दाल बट रही है वैसे ही मुसलमानो मे बटेगी .

सहसपुरिया said...

WOW,
Dr. SAHAB AAP TO GAZAB PE GAZAB DHA RAHE HAIN. MASHALLAH , ALLAH BURI NAZAR SE BACHAYE.

सहसपुरिया said...

@SHAHNAWAZ BHAI
MASHALLAH AAP BHI KUCH KAM NAHI HAI.
ZINDABAAD

सहसपुरिया said...

@DHIRU SINGH
100% AGREE

त्यागी said...

सच्चा और मुस्लमान. क्या कोई चुटकला है. ओ कलाकार ब्लोगर जरा अपना देश तो बता. और यदि तेरा देश हिंदुस्तान है तो बता उसके अंगभंग करने की क्या सजा दी जाये. अब तित्तर भी हमे सच्चा और झूठा बता रहे है.और फिर कौन है यह मुस्लमान ? इस देश के लिए तो मुस्लमान एक लुटेरा ही है. और टिपण्णी करने वाले मुस्लमान एक दूसरे की पीठ ही खुजा खुजा कर खुश होरहे है.
नौ सो चूहे खाकर बिल्ली हज को चली
http://parshuram27.blogspot.com/

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

धर्म के जानकार लोगों से माफी सहित ....
धर्म के बारे में लिखने ..एवं ..टिप्पणी करने बाले.. तोता-रटंत.. के बारे में यह पोस्ट ....मेरा कॉमन कमेन्ट है....
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_27.html

kunwarji's said...

"ab inconvenienti" JI KI BAAT NAHI PADH PAAYE SHAYAD YE JANAAB.....

KUNWAR JI,

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

राजपूतों वर्ण व्यवस्था में ऊँचे पायदान पर थे, कश्मीर के मुसलमान कभी पंडित और तिब्बती बौद्ध थे. अगर राजा फौजी दबाव के तहत मुसलमान बना लिया जाता था तो उसके वफादार, दरबारी, अधिकारी और सारे रिश्तेदार यूँ ही इस्लाम कुबूल कर लेते थे. इसीलिए नहीं की उन्हें इस्लाम अच्छा लगा, या उसमे उन्हें कुछ अलग दिखा बल्कि राजा के प्रति हर हाल में वफ़ादारी की परंपरा कारण. पाकिस्तान का भुट्टो परिवार कभी राजपूत था.
जनरल परवेज अहमद कयानी के बारे में यह जान लीजिए कि वे भारत के एक क्षत्रिय खानदान से ताल्लुक रखते हैं।

वर्ण व्यवस्था से तंग आकर धर्म परिवर्तन की बात बकवास है. अगर जातिवाद से तंग आकर ही दलित मुसलमान बने होते तो, भारत-पाकिस्तान-बंगलादेश के मुसलमानों में जातिवाद शुरू से ही न होता.

इस देश के लिए तो मुस्लमान एक लुटेरा ही है. और टिपण्णी करने वाले मुस्लमान एक दूसरे की पीठ ही खुजा खुजा कर खुश होरहे है.

1000 % sahi baat

Anonymous said...

@अपने आपको खुदा के सामने पूरी तरह झुका दे ताकि हरेक जान ले कि सच्चा मुसलमान कैसा होता है?
Sachha musalmaan or Jhootha Musalmaan me kya anter hai.

Kya Salmaan Khan Sachaa muslmaan hain
or
Bin Laden Kya sachaa musalmman?

Aaj ishi "SACHHA", musalmaan ne poori duniya ko Bardaad karke rakha hai, Aaj Musalmaan mein "SACHHA" musalmaan hone kii hod lagii hain jaise- "AATmghati Bomb", Apne aap ko sache musalmaan kahate hain, Talibaan Apne Aap ko sachhe musalmaan kahte hain, Ye Sache musalmaan, sabko mar hi rahe hain, saath mein anya SAche jhoothe musalmaan ko bhi maar rahe,

Kya yahi hai sache musalmaan kii Paribhaasha,

Hame aise sachhe musalman kii koi jaroorate nahii, Please don't go JAnnat with your Allaha,
Leave this countery. We want peace


Munaf Patel

अन्तर सोहिल said...

बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट
प्रणाम

vedvyathit said...

bdi ajib bat hai log jati ko to bhoole nhi pr apne mool dhrm ko bhool gye kaise 2 trk hain vah
ydi jati yd hai to hindoo pna bhi to yad hoga chardin ke nye bne log jyada shorkrenge hi
dr. ved vyathit

सहसपुरिया said...

अल्लाह आपको सलामत रखे,

Anonymous said...

@डॉक्टर अनवर जमाल,कृपया अब आप "ab inconvenienti" जी के प्रश्नों के उत्तर दे. हम सभी आपके उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे है.

zeashan haider zaidi said...

@ Ab
महान आश्चर्य है की मुस्लिम शासक इतने दमनकारी थे उसके बावजूद सात सौ सालों तक उनका शासन चलता रहा? अगर अँगरेज़ न आते तो आज भी वह शासन चल रहा होता. जर्मनी में एक हिटलर ने दमनकारी शासन चलाया तो उसके वंश का भी पता नहीं. आपकी दलीलें इतनी खोखली हैं की आपको खुद इसका एहसास है.

Anonymous said...

ye saale musalmaan kabhi kunye se baahar niklenge hi nahi. inko samjhana ya inse bahas karne ka matlab gadhe ko baansuri sikhana hai.

bharat bhaarti said...

yar nandu sochta to main bhi yahi hun ke yeh koi dhaerm he bhi ya nahi