सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Friday, March 5, 2010
आखि़र कब रूकेगा एक औसत इनसान की दर्दनाक मौत का सिलसिला ? The bowl of death
अख़बारों में कृपालु महाराज आश्रम के हादसे की भी ख़बरे छपीं और ज़हरीली ‘शराब से मरने वालों की भी । उनमें घरेलू परेशानियों की वजह से आत्महत्या करने वालों को भी जगह दी गयी और डाक्टरों की लापरवरही की वजह से मरने वालों को भी । इनसे भी कहीं ज़्यादा गिनती उन घटनाओं की भी होती है जो या तो अख़बारों तक पहुंच ही नहीं पातीं या फिर उन्हें बिकाऊ न होने की वजह से नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है ।
हर बार की तरह इस बार भी वही कुछ हुआ जो इस तरह के हादसों में हमेशा होता आया है । अख़बार अपना काम कर रहे हैं और प्रशासन अपना । पर क्या ये सचमुच अपना काम कर रहे हैं ?
अख़बार , नेता और प्रशासन ही क्यों ? हम क्या कर रहे हैं ? दुखी परेशान और वंचित लोग तो हमारे गिर्द भी मौजूद हैं । हमने उनके लिए ही आज तक क्या किया है?
अगर हमने उनका उतना भला नहीं किया है जितना कि हम कर सकते थे या कर सकते हैं तो फिर किसी भी हादसे पर दुख भरे ‘शब्द बोलना मात्र औपचारिकता है जिससे समाज और राष्ट्र का कभी कल्याण न होगा । जितनी भी तरह से हम ज़रूरतमन्दों के काम आ सकते हैं हमें ज़रूर आना चाहिये ।
इसी के साथ हमें लोगों को जीवन के बारे में ईश्वर की दिव्य योजना के बारे में भी जागरूक और प्रशिक्षित करना होगा ।
जो उस दयामय प्रभु की ‘शरण में चला जाता है उसका कल्याण अवश्य होता है । यह एक सर्वमान्य तथ्य है। इस सिद्धान्त के प्रकाश में अगर हम अपना निरीक्षण करें तो हम पाएंगे कि अभी तक हमारा कल्याण नहीं हुआ है । इसका मतलब अभी तक हम सच्चे प्रभु की ‘शरण में नहीं पहुंचे हैं । यहां व्यक्तिगत कल्याण नहीं बल्कि सामूहिक कल्याण की प्राप्ति अभीष्ट है ।
वह कौन सी व्यवस्था है जो सबके लिए कल्याणकारी है ?
वह कौन सी व्यवस्था है जो नशे को हराम घोषित करती है ?
वह कौन सी व्यवस्था है जो आत्महत्या को निन्दनीय और दण्डनीय कहती है ?
पूरे विश्व में ब्याज के लेन देन को हराम ठहराने वाली व्यवस्था को कौन नहीं जानता ?
आख़िर कब तक हम अपनी फ़िज़ूल नफ़रतों की वजह से ख़ुद को अपने सच्चे प्रभु की शरण और कल्याण से दूर रखेंगे ?
मरने वालों का तो कर्मपत्र बन्द हो चुका और वे वहां पहुंच चुके हैं जहां एक दिन हमें भी जाना है ।
बेशक हम उनके लिए तो कुछ नहीं कर सकते लेकिन जो अभी ज़िन्दा हैं उनके लिए तो हम कर ही सकते हैं और करना भी चाहिये ? क्योंकि ये हमारा फ़र्ज़ भी है और इनसानियत का तक़ाज़ा भी। आज दिल दुखी और दिमाग़ बोझिल है । इसके बावजूद भी मैं यह कहना चाहूंगा कि इस पवित्र पुण्य को मालिक ने हमारी कर्र्मभूमि बनाया है । हमें यहां पिकनिक मनाने और डांस करने के लिए नहीं भेजा गया है ।
वेद कुरआन के पवित्र मन्त्र भी हमें कर्म की ही शिक्षा देते हैं ।
हम प्रायः गायत्री मन्त्र और सूरह ए फ़ातिहा का पाठ करते हैं । यह पाठ तभी फलप्रद होगा जबकि हम इन पवित्र मन्त्रों के उच्चारण के साथ साथ इनके भाव को अपना स्वभाव बना लें । हम सबका कल्याण निश्चित है ।
क्या इस बात के सही होने में किसी को कोई ‘शक है ? http://my.opera.com/sunofislam/blog/
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20 comments:
"अगर हमारी थोड़ी कोशिस से किसी के सूने जीवन मैं बहार आ जाये तो हमें वो थोड़ी कोशिस जरूर करनी चहिये"
भगवान इस संसार मैं सबको एक जैसा ही भेजते है पर समय और परिस्थितयां उसकों और लोगों से अलग कर देती हैं" ...
यहाँ तक की वह अपना सही वजूद भी खो बैड़ता है.
agreed.
मार्मिक गाथा
थैंक्स
aapka shukriya.
स्वातंत्र व्यंक्ति न हिंदू होता है, न मुसलमान होता है, न ईसाई होता है। स्वातंत्र व्यंक्ति तो सिर्फ मनुष्यन होता है। स्वहतंत्र व्यसक्ति न भारतीय होता है, न पाकिस्तावनी, न चीनी होता है, न अमरीकी होता है। स्व्तंत्र व्यनक्ति तो कहेगा, सारी पृथ्वीं हमारी है, सारा अस्तित्वह हमारा है। क्योंह हम इसे खंडों में बांटें क्योंपकि सब खंडों में बांटना आज नहीं कल युद्धों का कारण बनता है।
इस लेख से शायद उन्हें कोई दिशा मिलेगी।अलग-अलग तरह की परिस्थितियों को प्रत्यक्ष समझने का अवसर मिलता है और बाधाओं से पार पाने का व्यावहारिक प्रशिक्षण मिलता है।
आख़िर कब तक हम अपनी फ़िज़ूल नफ़रतों की वजह से ख़ुद को अपने सच्चे प्रभु की शरण और कल्याण से दूर रखेंगे ?
बेशक
खिन्नता यहाँ से उपजती है।
चित्रों ने शब्दों में सौ हजार गुना अभिव्यक्ति बढ़ा दी है।
. Whoever believes (has emaan) in Allah and His Messenger (sal Allahu alayhi wa sallam), and establishes the prayer and fasts the month of Ramadan, it is incumbent upon Allah that He enters him in Jannah. [Bukhari]
आज वह मूल्य नहीं है।
@PARAM ARYA JI
shukriya .
aaj ki post thik likhi hai . aisi hi likha karo daily .
samjhe .
dr.sahab aap ke religious concepts kafi clear lagte hain, mera mann to ye prashn pehle se hi karta hai ke eid ke din aapki masjidon aur eid gaah mein aur apki teerth yatra hajj mein lakho log hone ke baad bhi bhagdad nahi hoti,na hi bhaktidham ki tarha itni sankhya mein log iss tarha kuchal kar marte hain,iske peeche islam ki kaun si vyavastha aur kis tarha ka anushasan hai?
nice post
शानदार पोस्ट है...
thanks to all brothers.
DR SAHAB
THANKS FOR YOUR INCREDIBLE EFFORTS TO BRING THE TRUTH.
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