सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Wednesday, August 10, 2011
रमज़ान के महीने में क़ुरआन की भेंट Quran majeed (Hindi)
क़ुरआने मजीद हज़रात मुहम्मद साहब स. की नुबुव्वत का प्रमाण है .
इल्म हकीक़त यह कि दीने इस्लाम तमाम दूसरे दीन व मज़हब से बढ़ कर इंसानी ज़िन्दगी की भलाई और ख़ुशहाली की गारंटी देता है, हकीक़त का क़ुरआने मजीद के ज़रिये ही मुसलमानों तक पहुचा है। इसी तरह इस्लाम के दीनी उसूल जो ईमानी, ऐतेक़ादी, अख़लाक़ी और अमली क़वानीन की कड़ियाँ है, उन सब की बुनियाद भी क़ुरआने मजीद ही है।
अल्लाह तआला फ़रमाता है: इसमें शक नहीं है कि यह क़ुरआने मजीद उस राह की हिदायत करता है जो सबसे ज़्यादा सीधी है। (सूरह बनी इसराईल आयत 9)
और फिर फ़रमाता है: और हमने तुम पर किताब (क़ुरआने मजीद) नाज़िल की हर चीज़ को वाजे़ह तौर पर बयान करती है और उस पर रौशनी डालती है। (सूरह नहल आयत 89)
अत: साफ़ है कि क़ुरआने मजीद में धार्मिक रीति नीति, अख़लाक़ी फ़ज़ाइल और अमली कानून का मजमूआ बहुत सी आयातों में बयान किया गया है .
दूसरा विस्तृत बयान
इन चंद तफ़सीलात पर ग़ौर करने के बाद इंसानी ज़िन्दगी के मकसद और उसके कामों को क़ुरआने मजीद की रौशनी में आसानी से समझा जा सकता है .
1. इंसान अपनी ज़िन्दगी में कामयाबी, ख़ुशहाली और सुकून के अलावा और कोई मक़सद नहीं रखता।
कभी कभी ऐसे लोग भी नज़र आ जाते हैं जो अपनी भलाई और ख़ुशहाली को नज़र अंदाज़ कर देते हैं जैसे कि एक शख़्स ख़ुदकुशी करके अपनी ज़िन्दगी को ख़त्म कर लेता है या ज़िन्दगी की दूसरी लज़्ज़तों को छोड़ बैठता है, अगर ऐसे लोगों की दिमाग़ी हालत पर ग़ौर किया जाए तो पता चलता है कि यह लोग अपनी सोच और अपने नज़रिये के मुताबिक़ एक ख़ास दायरे में ज़िन्दगी की कामयाबी को परखते और जाँचते हैं और जब सिर्फ उन्हीं चीज़ों में अपनी कामयाबी समझते हैं। जैसे कि जो शख़्स ख़ुदकुशी करता है वह ज़िन्दगी की सख़्तियों और मुसीबतों की वजह से अपने आप को मौत के मुँह में ख़याल करता है और जो कोई साधना और तपस्या में मशग़ूल हो कर ज़िन्दगी की लज़्ज़तों को अपने लिये हराम कर लेता है, वह अपने नज़रिये और तरीक़े में ही ज़िन्दगी की कामयाबी समझता है।
इसी तरह हर इंसान अपनी ज़िन्दगी में सआदत और कामयाबी को हासिल करने के लिये कोशिश करता है चाहे वह अपनी भलाई और कामयाबी की पहचान में ठीक हो या ग़लत।
2. जीवन की सफलता के लिए ये कोशिशें बिना किसी योजना के कभी कामयाब नहीं, यह बिल्कुल साफ़ मसला है और अगर किसी वक़्त यह मसला इंसान की नज़रों से छिपा रहता है तो वह बार बार दोहराने की वजह से है, क्योकि एक तरफ़ तो इंसान अपनी ख़्वाहिश और अपने इरादे के मुताबिक़ काम करता है और जब तक किसी काम को ज़रुरी नहीं समझता उसको अंजाम नहीं देता यानी किसी काम को अपने अक़्ल व शुऊर के हुक्म से ही करता है और जब तक उसकी अक़्ल और उसका ज़मीर किसी काम की इजाज़त नहीं देते, उस काम को वह शुरु नहीं करता, लेकिन दूसरी तरफ़ जिन कामों को अपने लिये अंजाम देता है उनसे मक़सद अपनी ज़रूरतों को पूरा करना होता है लिहाज़ा उसकी सोच और उसके कर्म में ब राहे रास्त एक ताअल्लुक़ होता है।
खाना, पीना, सोना, जागना, उठना, बैठना, जाना, आना वग़ैरह सब काम एक ख़ास अंदाज़े और देशकाल के मुताबिक़ अंजाम पाते हैं। कहीं यह काम ज़रुरी होते हैं और कहीं ग़ैर ज़रुरी। एक वक़्त में मुफ़ीद और दूसरे वक़्त में ग़ैर मुफ़ीद या नुक़सानदेह । लिहाज़ा तमाम काम उस अक़्ल व फिक्र और इंसानी चेतना के ज़रिये अंजाम पाते हैं जो आदमी में मौजूद हैं । इसी तरह तमाम छोटे और बड़े काम उसी समग्र सोच के मुताबिक़ करता है।
हर इंसान अपने निजी कामों में एक मुल्क की मानिन्द है जिसके बाशिन्दे ख़ास कानून और रस्मो रिवाज में ज़िन्दगी गुज़ारते हैं और उस मुल्क की मुख़्तार और हाकिम ताक़तों का फ़र्ज़ है कि सबसे पहले अपने किरदार को उस मुल्क के बाशिन्दों के मुताबिक़ बनायें और फिर उनको लागू करें।
एक समाज की समाजी गतिविधियाँ भी व्यक्तिगत गतिविधियों की तरह होती हैं लिहाज़ा हमेशा की तरह एक तरह के क़वानीन, आदाब व रुसूम और उसूल जो अकसरियत के लिये क़ाबिले क़बूल हों, उस समाज में प्रभावी होने चाहिये। वर्ना समाज के सारे तत्व बिखराव के शिकार हो जायेंगे . बहरहाल अगर समाज मज़हबी हो तो हुकूमत भी अहकामे मज़हब के मुताबिक़ होंगे और अगर समाज ग़ैर मज़हबी और सभ्य होगा तो उस समाज की सारी सर गरमियाँ क़ानून के तहत होगीं। अगर समाज ग़ैर मज़हबी और ग़ैर सभ्य होगा तो उसके लिये तानाशाहों ने जो क़ानून बना कर उस पर ठूँसा होगा या समाज में पैदा होने वाली रस्म व रिवाज और क़िस्म क़िस्म की मान्यताओं के मुताबिक़ ज़िन्दगी बसर करेगा।
सो हर हाल में इंसान अपनी निजी और समाजी सर गरमियों में एक ख़ास मक़सद रखने के लिये मजबूर है लिहाज़ा अपने मक़सद को पाने के लिये मुनासिब तरीक़ा ए कार इख़्तियार करने और प्रोग्राम के मुताबिक़ काम करने से हरगिज़ बेनियाज़ नहीं हो सकता।
क़ुरआने मजीद भी इस नज़रिये की ताईद व तसदीक़ फ़रमाता है: तुम में से हर शख़्स के लिये एक ख़ास मक़सद है जिसके पेशे नज़र काम करते हो सो हमेशा अच्छे कामों में एक दूसरे से बढ़ चढ़ कर कोशिश करो ताकि अपने ऊंचे मक़सद को हासिल कर सको। (सूरह बक़रा आयत 148)
बुनियादी तौर पर क़ुरआने मजीद में दीन का मतलब तरीक़ा ए ज़िन्दगी है और मोमिन व काफ़िर , यहाँ तक कि वह लोग जो ख़ालिक़ (क्रियेटर) के मुकम्मल तौर पर इनकारी हैं वे भी दीन के बग़ैर नही रह सकते हैं क्योकि इंसानी ज़िन्दगी एक ख़ास तरीक़े के बग़ैर नही रह सकती चाहे वह तरीक़ा नबुव्वत और प्रकाशन के ज़रिये से हो या बनावटी और दुनियावी क़ानून के मुताबिक़, जो ख़ुदाई दीन से दुश्मनी रखते हैं और किसी भी तबक़े से ताअल्लुक़ रखते हैं उन सितमगरों के बारे में अल्लाह तआला फ़रमाता हैं:
जो ख़ुदा की राह से लोगों को हटाते और रोकते हैं और उसमें जो फ़ितरी ज़िन्दगी की राह है (ख़्वाह मख़ाह) उसको तोड़ मोड़ कर अपने लिये अपनाते हैं। (सूरह आराफ़ आयत 45)[1]
3. हमेशा से चला आने वाला ज़िन्दगी का बेहतरीन तरीक़ा वह है जिसकी तरफ़ इंसानी फ़ितरत रहनुमाई करे, न कि वह जो एक आदमी या समाज के अहसासात से पैदा हुआ हो। अगर प्रकृति का ध्यान से अध्ययन करें तो मालूम होगा कि हर तत्व ज़िन्दगी का एक मक़सद लिये हुए है जो अपनी पैदाईश से लेकर उस ख़ास मक़सद की तरफ़ मुतवज्जे है और अपने मक़सद को पाने के लिये नज़दीक तरीन और मुनासिब तरीन राह की तलाश में है, यह ज़ुज़ अपने अंदरुनी और बेरुनी ढाँचें में एक ख़ास साज़ व सामान से आरास्ता है जो उसके हक़ीक़ी मक़सूद और गुनागूँ सर गरमियों का सर चश्मा शुमार होता है। हर जानदार और बेजान चीज़ फ़ितरत की यही रवय्या और तरीक़ा कार फ़रमा है।
जैसे गेंहू का पौधा अपनी पैदाईश के पहले दिन से ही जब वह मिट्टी से अपनी सर सब्ज़ और हरी भरी पत्ती के साथ दाने से बाहर निकलता है तो वह (शुरु से ही) अपनी फ़ितरत की तरफ़ मुतवज्जे होता है यानी यह कि वह एक ऐसे पौधा है जिसके कई ख़ोशे हैं और अपनी फ़ितरी ताक़त के साथ उनसुरी अजज़ा को ज़मीन और हवा से ख़ास निस्बत से हासिल करता है और अपने वुजूद की हिस्सा बनाते हुए दिन ब दिन बढ़ता और फैलता रहता है और हर रोज़ अपनी हालत को बदलता रहता है। यहाँ तक कि एक कामिल पौधा बन जाता है जिसकी बहुत सी शाख़ें और ख़ोशे होते हैं फिर उस हालत को पहुच कर अपनी रफ़तार और तरक़्क़ी को रोक लेता है।
एक अख़रोट के पेड़ का भी ब ग़ौर मुतालआ करें तो मालूम होगा कि वह भी अपनी पैदाईश के दिन से लेकर एक ख़ास मक़सद और हदफ़ की तरफ़ मुतवज्जे है यानी यह कि वह एक अखरोट का पेड़ है जो तनू मंद और बड़ा है लिहाज़ा अपने मक़सद तक पहुचने के लिये अपने ख़ास और मुनासिब तरीक़े से ज़िन्दगी की राह को तय करता है और उसी तरह अपनी ज़रुरियाते ज़िन्दगी को पूरा करता हुआ अपने इंतेहाई मक़सद की तरफ़ बढ़ता रहता है। यह पेड़ गेंहू के पौधे का रास्ता इख़्तियार नही करता जैसा कि गेंहू का पौधा भी अपने मक़सद को हासिल करने में अख़रोट के पेड़ का रास्ता इख़्तियार नही करता।
तमाम कायनात और मख़लूक़ात जो इस ज़ाहिरी दुनिया को बनाती है। उसी क़ानून के तहत अमल करती हैं और कोई वजह नही है कि इँसान इस क़ानून और क़ायदे से मुसतसना हो। (इंसान अपनी ज़िन्दगी में जो मक़सद और ग़रज़ व ग़ायत रखता हो उसकी सआदत उसी मक़सद को पाने के लिये है और वह अपने मुनासिब साज़ व सामान के साथ अपने हदफ़ तक पहुचने की तगो दौ में मसरुफ़ है।) बल्कि इंसानी ज़िन्दगी के साज़ व सामान की बेहतरीन दलील यह है कि वह भी दूसरी सारी कायनात की तरह एक ख़ास मक़सद रखता है जो उसकी ख़ुश बख़्ती और सआजत की ज़ामिन है और अपने पूरे वसायल और कोशिश के साथ इस राहे सआदत तक पहुचने की जिद्दो जहद करता है।
लिहाज़ा जो कुछ ऊपर अर्ज़ किया गया है वह ख़ास इंसानी फ़ितरत और आफ़रिनिशे जहान के बारे में है कि इंसान भी सी कायनात का एक अटूट अंग है। यही चीज़ इँसान को उसकी हक़ीक़ी सआदत की तरफ़ रहनुमाई करती है। इसी तरह सबसे अहम पायदार और मज़बूत क़वानीन जिन पर चलना ही इंसानी सआदत की ज़मानत है, इँसान की रहनुमाई करते हैं।
गुज़श्ता बहस की तसदीक़ में अल्लाह तआला फ़रमाता है:
हमारा परवरदिगार वह है जिसने हर चीज़ और हर मख़्लूक़ को एक ख़ास सूरत (फ़ितरत) अता फ़रमाई, फिर हर चीज़ को सआदत और ख़ास मक़सद की तरफ़ रहनुमाई की। (सूरह ताहा आयत 50)
फिर फ़रमाता है: वह ख़ुदा जिसने मख़्लूक़ के अजज़ा के जमा करके (दुनिया को) बनाया और वह ख़ुदा जिसने हर चीज़ का ख़ास अंदाज़ मुक़र्रर किया, फिर उसको हिदायत फ़रमाई। (सूरह आला आयत 2,3)
फिर फ़रमाता है: क़सम अपने नफ़्स की और जिसने उसको पैदा किया और फिर उसने नफ़्स को बदकारी और परहेज़गारी का रास्ता बताया। जिस शख़्स ने अपने नफ़्स की अच्छी तरह परवरिश की, उसने निजात हासिल की और जिस शख़्स ने अपने नफ़्स को आलूदा किया वह तबाह व बर्बाद हो गया। (सूरह शम्स आयत 7,10)
फ़िर ख़ुदा ए तआला फ़रमाता है: अपने (रुख़) आपको दीन पर उसतुवार कर, पूरी तवज्जो और तहे दिल से दीन को क़बूल कर, लेकिन ऐतेदाल पसंदी को अपनी पेशा बना और इफ़रात व तफ़रीत से परहेज़ कर, यही ख़ुदा की फ़ितरत है और ख़ुदा की फ़ितरत में तब्दीली पैदा नही होती। यही वह दीन है जो इंसानी ज़िन्दगी का इंतेज़ाम करने की ताक़त रखता है। (मज़बूत और बिल्कुल सीधा दीन है।) (सूरह रुम आयत 30)
फिर फ़रमाता है: दीन और ज़िन्दगी का तरीक़ा ख़ुदा के सामने झुकने में ही है। उसके इरादे के सामने सरे तसलीम को ख़म करने है यानी उसकी कुदरत और फ़ितरत के सामने जो इंसान को एक ख़ास क़ानून की तरफ़ दावत देता है। (सूरह आले इमरान आयत 19)
और दूसरी जगह फ़रमाता है: जो कोई दीने इस्लाम के बग़ैर यानी ख़ुदा के इरादे के बग़ैर किसी और दीन की तरफ़ रुजू करे तो उसका वह दीन या तरीक़ा हरगिज़ क़ाबिले क़बूल नही होगा। (सूरह आले इमरान आयत 85)
मुनदरेजा बाला आयत और ऐसी ही दूसरी आयात जो इस मज़मून की मुनासेबत में नाज़िल हुई है उनका नतीजा यह है कि ख़ुदा ए तआला अपनी हर मख़लूक़ और मिन जुमला इंसान को एक ख़ास सआदत और फ़ितरी मक़सद की तरफ़ यानी अपनी फ़ितरत की तरफ़ रहनुमाई करता है और इंसानी ज़िन्दगी के लिये हक़ीक़ी और वाक़ई रास्ता वही है जिसकी तरफ़ उस (इंसान) की ख़ास फ़ितरत दावत करती है लिहाज़ा इंसान अपनी फ़रदी और समाजी ज़िन्दगी में क़वानीन पर कारबंद है क्यो कि एक हक़ीक़ी और फ़ितरी इंसान की तबीयत उसी की तरफ़ रहनुमाई करती है न कि ऐसे इंसानो को जो हवा व हवस और नफ़्से अम्मारा से आलूदा हों और अहसासात के सामने दस्त बस्ता असीर हों।
फ़ितरी दीन का तक़ाज़ा यह है कि इंसानी वुजूद का निज़ाम दरहम बरहम न होने पाए और हर एक (जुज़) को हक़ बखूबी अदा हो लिहाज़ा इंसानी वुज़ूद में जो मुख़्तलिफ़ और मुताज़ाद निज़ाम जैसे मुख़्तलिफ़ अहसासाती ताक़तें अल्लाह तआला ने बख़्शी हैं वह मुनज़्ज़म सूरत में मौजूद हैं, यह सब क़ुव्वतें एक हद तक दूसरे के लिये मुज़ाहिमत पैदा न करें, उनको अमल का इख़्तियार दिया गया है।
और आख़िर कार इंसान के अंदर अक़्ल की हुकूमत होनी चाहिये न कि ख़्वाहिशाते नफ़्सानी और अहसासात व जज़्बात का ग़लबा और समाज में इंसानों के हक़ व सलाग पर मबनी हुकूमत क़ायम हो न कि एक आमिर और ताक़तवर इंसान की ख़्वाहिशात और हवा व हवस के मुताबिक़ और नही अकसरियत अफ़राद की ख़्वाहिशात के मुताबिक़, अगरचे वह हुकूमत एक जमाअत या गिरोह की सलाह और हक़ीक़ी मसलहत के ख़िलाफ़ ही क्यो न हो।
मुनजरेजा बाला बहस से एक और नतीजा अख़्ज़ किया जा सकता है और वह यह है कि तशरीई (शरअन व क़ानूनन) लिहाज़ से हुकूमत सिर्फ़ अल्लाह की है और उसके बग़ैर हुकूमत किसी और की हक़ नही है।
सरवरी ज़ेबा फ़क़त उस ज़ाते बे हमता को है
हुक्म राँ है एक वही बाक़ी बुताने आज़री
(इक़बाल)
हुक्म राँ है एक वही बाक़ी बुताने आज़री
(इक़बाल)
कि फ़रायज़, क़वानीन, शरई क़वानीन बनाए या तअय्युन करे, क्योकि जैसा कि पहले बयान किया जा चुका है सिर्फ़ नही क़वानीन और क़वाइद इंसानी ज़िन्दगी के लिये मुफ़ीद हैं जो उसके लिये फ़ितरी तौर पर मुअय्यन किये गये हों यानी अंदरुनी या बेरुनी अनासिर व अवामिल और इलल इंसान को उन फ़रायज़ की अंजाम दही की दावत करें और उसको मजबूर करें जैसे उनके अंजाम देने में ख़ुदा का हुक्म शामिल हो क्यो कि जब हम कहते हैं कि ख़ुदा वंदे आलम इस काम को चाहता है तो इसका मतलब यह है कि अल्लाह तआला ने इस काम को अंजाम देने का तमाम शरायत और वुजूहात को पहले से पैदा किया हुआ है लेकिन कभी कभी यह वुजूहात और शरायत ऐसी होती हैं कि किसी चीज़ की जबरी पैदाईश की मुजिब और सबब बन जाती है जैसे रोज़ाना क़ुदरती हवादिस का वुजूद में आना और इस सूरत में ख़ुदाई इरादे को तकवीनी इरादा कहते हैं और कभी यह वुजुहात व शरायत इस क़िस्म की हैं कि इंसान अपने अमल को इख़्तियार और आज़ादी के साथ अंजाम देता है जैसे खाना, पीना वग़ैरह और इस सूरत में उस अमल को तशरीई इरादा कहते हैं। अल्लाह तआला अपने कलाम में कई जगह पर इरशाद फ़रमाता है:
ख़ुदा के सिवा कोई और हाकिम नही है और हुकूमत सिर्फ़ अल्लाह के वास्ते हैं।
(सूरह युसुफ़ आयत 40, 67)
इस तमहीद के वाज़ेह हो जाने के बाद जान लेना चाहिये कि क़ुरआने मजीद इन तीन तमहीदों के पेशे नज़र कि इंसान अपनी ज़िन्दगी में एक ख़ास मक़सद और ग़रज़ व ग़ायत रखता है। (यानी ज़िन्दगी की सआदत) जिसको अपनी पूरी ज़िन्दगी में हासिल करने के लिये जिद्दो जेहद और कोशिश करता है और यह कोशिश बग़ैर किसी प्रोग्राम के नतीजे में नही होगी। लिहाज़ा उस प्रोग्राम को भी ख़ुदा की किताबे फ़ितरत और आफ़रिनिश में ही पढ़ना चाहिये। दूसरे लफ़्ज़ों में उसको ख़ुदाई तालीम के ज़रिये ही सीखा जा सकता है।
क़ुरआने मजीद ने उन तमहीदों के पेशे नज़र इंसानी ज़िन्दगी के प्रोग्राम की बुनियाद इस तरह रखी है:
क़ुरआने मजीद ने अपने प्रोग्राम की बुनियाद ख़ुदा शिनासी पर रखी है और इसी तरह मा सिवलल्लाह से बेगानगी को शिनाख़्ते दीन की अव्वलीन बुनियाद क़रार दिया है।
इस तरह ख़ुदा को पहचनवाने के बाद मआद शिनासी (रोज़े क़यामत पर ऐतेक़ाद जिस दिन इंसान के अच्छे बुरे कामों का बदला और एवज़ दिया जायेगा।) का नतीजा हासिल होता है और उसको एक दूसरा उसूल बनाया। उसके बाद मआद शिनासी से पैयम्बर शिनासी का नतीजा हासिल किया, क्योकि अच्छे और बुरे कामों का बदला, वही और नबूवत के ज़रिये इताअत, गुनाह, नेक व बद कामों के बारे में पहले से बयान शुदा इत्तेला के बग़ैर नही दिया जा सकता .
इस तरह तीन उसूल सामने आते हैं.
१- एक अल्लाह ही पैदा करने वाला है, हर चीज़ का मालिक और बादशाह वही है और वही सबको पाल रहा है. उसके अलावा कोई भी पूजा-उपासना और इबादत के लायक़ नहीं है .
२- नबियों के ज़रिये वही अल्लाह इंसान को सीधी राह दिखाता है .
3- मरने के बाद तमाम जिन्न और इंसान एक खास दिन जी उठेंगे ताकि अपने कामों का फल पायें.
उसके बाद दूसरे दर्जे पर अख़लाक़े पसंदीदा और नेक सिफ़ात जो पहले तीन उसूलों के मुनासिब हों और एक हक़ीक़त पसंद और बा ईमान इंसान को उन सिफ़ाते हमीदा से मुत्तसिफ़ और आरास्ता होना चाहिये, बयान फ़रमाया। फिर अमली क़वानीन जो दर अस्ल हक़ीक़ी सआदत के ज़ामिन और अख़लाक़े पसंदीदा को जन्म दे कर परवरिश देते हैं बल्कि उस से बढ़ कर हक़ व हक़ीक़त पर मबनी ऐतेकादात और बुनियादी उसूलों को तरक़्क़ी व नश व नुमा देते हैं, उनकी बुनियाद डाली और उसके बारे में वज़ाहत फ़रमाई।
क्योकि शख़्स जिन्सी मसायल या चोरी, ख़यानत, ख़ुर्द बुर्द और धोखे बाज़ी में हर चीज़ को जायज़ समझता है उससे किसी क़िस्म की पाकीज़गी ए नफ़्स जैसी सिफ़ात की हरगिज़ तवक़्क़ो नही रखी जा सकती या जो शख़्स माल व दौलत जमा करने का शायक़ और शेफ़ता है और लोगों के माली हुक़ूक़ और क़र्ज़ों की अदायगी की तरफ़ हरगिज़ तवज्जो नही करता। वह कभी सख़ावत की सिफ़त से मुत्तसिफ़ नही हो सकता या जो शख्स ख़ुदा तआला की इबादत नही करता और हफ़्तो बल्कि महीनों तक ख़ुदा की याद से ग़ाफ़िल रहता है वह कभी ख़ुदा और रोज़े क़यामत पर ईमान और ऐसे ही एक आबिद की सिफ़ात रखने से क़ासिर है।
पस पसंदीदा अख़लाक़, मुनासिब आमाल व अफ़आल के सिलसिले से ही ज़िन्दा रहते हैं। चुनाँचे पसंदीदा अख़लाक़, बुनियादी ऐतेक़ादात की निस्बत यही हालत रखते हैं जैसे जो शक़्स किब्र व गुरुर, ख़ुद ग़रज़ी और ख़ुद पसंदी के सिवा कुछ नही जानता तो उससे ख़ुदा पर ऐतेक़ाद और मक़ामे रुबूबियत के सामने ख़ुज़ू व ख़ुशू की तवक़्क़ो नही रखी जा सकती। जो शख़्स तमाम उम्र इंसाफ़ व मुरव्वत और रहम व शफ़क़त व मेहरबानी के मअना से बेखबर रहा है वह हरगिज़ रोज़े क़यामत सवाल व जवाब पर ईमान नही रख सकता।
ख़ुदा वंदे आलम, सच्चे विश्वास और पसंदीदा अख़लाक़ के सिलसिले में ख़ुद ईमान और ऐतेक़ाद से वाबस्ता है, इस तरह फ़रमाता है:
ख़ुदा वंदे तआला पर पुख़्ता और पाक ईमान बढ़ता ही रहता है और अच्छे कामों को वह ख़ुद बुलंद फ़रमाता है यानी ऐतेकादात को ज़्यादा करने में मदद करता है।
(सूरह फ़ातिर आयत 10)
और ख़ुसूसन अमल पर ऐतेक़ाद के सिलसिले में अल्लाह तआला यूँ फ़रमाता है:
उसके बाद आख़िर कार जो लोग बुरे काम करते थे उनका काम यहाँ तक आ पहुचा कि ख़ुदा की आयतों को झुटलाते थे और उनके साथ मसख़रा पन करते थे।
(सूरह रुम आयत 10)
मुख़तसर यह कि क़ुरआने मजीद हक़ीक़ी इस्लाम की बुनियादों को कुल्ली तौर पर मुनजरता ज़ैल तीन हिस्सों में तक़सीम करता है:
इस्लामी उसूल व अक़ायद जिन में दीन के तीन उसूल शामिल हैं: यानी तौहीद, नबूवत और क़यामत और इस क़िस्म के दूसरे फ़रई अक़ायद जैसे लौह, कज़ा, क़दर, मलायका, अर्श, कुर्सी, आसमान व ज़मीन की पैदाईश वग़ैरह।
पसंदीदा अख़लाक़
शरई अहकाम और अमली क़वानीन जिनके मुतअल्लिक़ क़ुरआने मजीद ने कुल्ली तौर पर बयान फ़रमाया है और उनकी तफ़सीलात और ज़ुज़ईयात को पैग़म्बरे अकरम (स) ने बयानात या तौज़ीहात पर छोड़ दिया है और पैग़म्बरे अकरम (स) ने भी हदीसे सक़लैन के मुताबिक़ जिस पर तमाम इस्लामी फ़िरक़े मुत्तफ़िक़ हैं और मुसलसल उन अदाहीस को नक़्ल करते रहे हैं, अहले बैत (अ) को अपना जानशीन बनाया है।[2]
शरई अहकाम और अमली क़वानीन जिनके मुतअल्लिक़ क़ुरआने मजीद ने कुल्ली तौर पर बयान फ़रमाया है और उनकी तफ़सीलात और ज़ुज़ईयात को पैग़म्बरे अकरम (स) ने बयानात या तौज़ीहात पर छोड़ दिया है और पैग़म्बरे अकरम (स) ने भी हदीसे सक़लैन के मुताबिक़ जिस पर तमाम इस्लामी फ़िरक़े मुत्तफ़िक़ हैं और मुसलसल उन अदाहीस को नक़्ल करते रहे हैं, अहले बैत (अ) को अपना जानशीन बनाया है।[2]
ब. क़ुरआने मजीद नबूवत की सनद है।
क़ुरआने मजीद चंद जगह वज़ाहत से बयान फ़रमाता है कि यह (क़ुरआन) ख़दा का कलाम है यानी यह किताब उनही मौजूदा अल्फ़ाज़ के साथ अल्लाह तआला की तरफ़ से नाज़िल हुई है और पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने भी इनही अल्फ़ाज़ में इसको बयान फ़रमाया है।
इस मअना को साबित करने के लिये कि क़ुरआने मजीद ख़ुदा का कलाम है और किसी इंसान का कलाम नही, बार बार बहुत ज़्यादा आयाते शरीफ़ा में इस मौज़ू पर ज़ोर दिया गया है और क़ुरआने मजीद को हर लिहाज़ से एक मोजिज़ा कहा गया है जो इंसानी ताक़त और तवानाई से बहुत बरतर है।
जैसा कि ख़ुदा ए तआला इरशाद फ़रमाता है:
या कहते हैं कि पैग़म्बरे अकरम (स) ने ख़ुद क़ुरआन को बना (घड़) कर उसे ख़ुदा से मंसूब कर दिया है, यही वजह है कि वह उस पर ईमान नही लाते। पस अगर वह ठीक कहते हैं तो उस (क़ुरआन) की तरह इबादत का नमूना लायें (बनायें)।
(सूरह तूर आयत 33, 34)
और फिर फ़रमाता है:
ऐ रसूल कह दो कि अगर (सारे जहान के) आदमी और जिन इस बात पर इकठ्ठे और मुत्तफ़िक़ हों कि क़ुरआन की मिस्ल ले आयें तो (नामुम्किन) उसके बराबर नही ला सकते अगरचे (उस कोशिश में) वह एक दूसरे की मदद भी करें।
(सूरह बनी इसराईल आयत 88)
और फिर फ़रमाता है:
क्या यह लोग कहते हैं कि उस शख़्स (तुम) ने उस (क़ुरआन) को अपनी तरफ़ से घड़ लिया है तो तुम उन से साफ़ साफ़ कह दो कि अगर तुम (अपने दावे में) सच्चे हो तो (ज़्यादा नही) ऐसी ही दस सूरतें अपनी तरफ़ से घड़ के ले आओ।
(सूरह हूद आयत 13)
और फिर फ़रमाता है:
आया यह लोग कहते हैं कि इस क़ुरआन को रसूल ने झूट मूठ बना कर ख़ुदा से मंसूब कर दिया है, पस ऐ रसूल उन से कह दो कि उसकी मानिन्द सिर्फ़ एक ही सूरह लिख कर ले आएँ।
(सूरह युनुस आयत 38)
और फिर (उन लोगों का) पैग़म्बरे अकरम (स) से मुक़ाबला करते हुए फ़रमाता है:
और जो चीज़ (क़ुरआन) हम ने अपने बंदे पर नाज़िल की है अगर तुम्हे उसमें शक व शुब्हा है तो ऐसे इंसान की तरह जो लिखा पढ़ा नही और जाहिलियत के माहौल में उस की नश व नुमा हुई है, इस तरह का एक क़ुरआनी सूरह लिख कर ले आओ।
(सूरह बक़रा आयत 23)
और फिर इख़्तिलाफ़ और तज़ाद न रखने के मुतअल्लिक़ बराबरी और मुक़ाबला करते हुए फ़रमाया है:
आया यह लोग कुरआन पर ग़ौर नही करते और अगर यह क़ुरआन ख़ुदा के अलावा किसी और की तरफ़ से नाज़िल हुआ होता तो उसमे बहुत ज़्यादा इख़्तिलाफ़ पाये जाते क्योकि इस दुनिया में हर चीज़ में तग़य्युर और तरक़्क़ी पज़ीरी के क़ानून में शामिल है और वह इख़्तिलाफ़ अजज़ा और अहवाल से मुबर्रा नही होती और अगर क़ुरआन इंसान का बनाया हुआ होता तो जैसा कि तेईस साल के अरसे में थोड़ा थोड़ा नाज़िल होता रहा तो यह क़ुरआन) इख़्तिलाफ़ात और तज़ादात से मुबर्रा नही हो सकता था और इस तरह हरगिज़ यकसाँ न होता।
(सूरह निसा आयत 82)
क़ुरआने मजीद जो इन फ़ैसला कुन और पुख़्ता अंदाज़ से ख़ुदा का कलाम होने का ऐलान और उसका सबूत फ़राहम करता है। अव्वल से लेकर आख़िर तक साफ़ तौर पर हज़रत मुहम्मद (स) का अपने रसूल और पैग़म्बर के तौर पर तआरुफ़ कराता है और इस तरह आँ हज़रत (स) के नबूवत की सनद लिखता है। इसी बेना पर कई बार ख़ुदा के कलाम में पैग़म्बरे अकरम को हुक्म दिया जाता है कि अपनी नबूवत व पैग़म्बरी के सबूत में ख़ुदा की शहादत यानी क़ुरआने मजीद की रौ से अपनी नबूवत का ऐलान करें:
ऐ नबी कह दें कि मेरे और तुम्हारे दरमियान, मेरी नबूवत और पैग़म्बरी के मुतअल्लिक़ ख़ुद ख़ुदा की शहादत काफ़ी है।
(सूरह रअद आयत 43)
एक और जगह (क़ुरआने मजीद) में ख़ुदा वंदे करीम की शहादत के अलावा फ़रिश्तों की शहादत भी है:
लेकिन ख़ुदा वंदे तआला ने जो चीज़ तुझ पर नाज़िल की है उसके मुतअल्लिक़ ख़ुद भी शहादत देता है और फ़रिश्ते भी शहादत देते हैं और सिर्फ़ ख़ुदा वंदे तआला की शहादत काफ़ी है।
(सूरह निसा आयत 166)
यह एक उर्दू लेख है जिसमें हिंदी पाठकों की आसानी के लिए कुछ मुनासिब तब्दीलियाँ की गयीं हैं .
हिन्दी पाठकों में, विशेषकर हमारे हिन्दू भाईयों में क़ुरआन को जानने की प्रबल इच्छा पाई जाती है। कुछ वजहों से उनकी यह ख्वाहिश अब और भी शदीद हो गई है। सच्चाई के लिए उनकी तड़प और प्यास को देखते हुए हम आज पवित्र क़ुरआन का हिन्दी अनुवाद उन्हें सप्रेम भेंट कर रहे हैं।
यह रमज़ान का महीना है और रमज़ान क़ुरआन के नाज़िल होने का महीना भी है और इसे ज़्यादा से ज़्यादा पढ़े जाने का महीना भी है। इसे समझकर पढ़ा जाए और पढ़कर इस पर अमल किया जाए तो इंसान की समस्याएं हल हो जाती हैं और जीवन और मृत्यु के बारे में अपने हरेक सवाल का जवाब मिल जाता है।
जिन बातों का जानना ज़रूरी है उन बातों की सही और सच्ची जानकारी शुद्ध रूप में आज केवल क़ुरआन के ज़रिये ही मिल सकती है।
पेश है आपके लिए आपके सवालों का जवाब और आपकी समस्याओं का समाधान :
यह रमज़ान का महीना है और रमज़ान क़ुरआन के नाज़िल होने का महीना भी है और इसे ज़्यादा से ज़्यादा पढ़े जाने का महीना भी है। इसे समझकर पढ़ा जाए और पढ़कर इस पर अमल किया जाए तो इंसान की समस्याएं हल हो जाती हैं और जीवन और मृत्यु के बारे में अपने हरेक सवाल का जवाब मिल जाता है।
जिन बातों का जानना ज़रूरी है उन बातों की सही और सच्ची जानकारी शुद्ध रूप में आज केवल क़ुरआन के ज़रिये ही मिल सकती है।
पेश है आपके लिए आपके सवालों का जवाब और आपकी समस्याओं का समाधान :
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4 comments:
mashaa allah khuda sabhi ko nek hidaayt de or sabhi ko quran ke raaste par chlne ki tofiq ata frmaye ..aamin .akhtar khan akela kota rajsthan
आपको व परिवार को ईद मुबारक हो अनवर भाई !
Khuda apne bande ko nek hidayat de or sabhi ko quran ke raaste par chalne ki tofiq ata farmaye. khuda mera sath dena........... sachin verma bareilly
Eid mubarak ho aap sabhi ko
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