सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Saturday, July 31, 2010

The real Guide सच का जानने और बताने वाला केवल वह मालिक है . वही मार्गदर्शन करने का सच्चा अधिकारी है। कर्तव्य और अकर्तव्य का सही ज्ञान वही कराता है। -Anwer Jamal

जनाब सतीश जी! मैंने लिखा है कि मस्जिद के लिए किसी इन्सान का खून बहाना जायज़ नहीं है। रामचन्द्र जी ने वनवास स्वीकार किया लेकिन लड़कर अपनी जन्मभूमि में न रहे।
पैग़म्बर साहब स. भी टकराव और खून ख़राबा टालने के लिये ही मक्का छोड़कर चले गये।
 हिन्दू श्री रामचन्द्र जी को अपना आदर्श मानते हैं और मुसलमान पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. को । दोनों समुदायों के नेता इनमें से किसी को भी अपना आदर्श नहीं मानते और टकराव का माहौल तैयार करते रहते हैं। जबकि दोनों समुदायों के लोग आपस में प्यार से रहते हैं और रोज़ी रोटी कमाने में एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। अगर दोनों समुदाय के आम लोग और नेता अपने आदर्श पुरूषों के जीवन से शिक्षा लेकर उसपर व्यवहार करें तो हरेक विवाद का हल शांतिपूर्वक हो सकता है।
ऐसा मैंने लिखा तो इसमें आपको मुझपर तरस खाने और ब्लॉग संसद पर मूर्ख बताने की कौन सी ज़रूरत आन पड़ी ?

सच का जानने और बताने वाला केवल वह मालिक है जिसने हर चीज़ को पैदा किया है और जो हर चीज़ को देखता है मगर उसे कोई आंख नहीं देख सकती। वही मार्गदर्शन करने का सच्चा अधिकारी है। कर्तव्य और अकर्तव्य का सही ज्ञान वही कराता है। मस्जिद में उसी की पूजा होती है। 
मंदिर में उसके अलावा की होती है। इस तरह समाज में अनिश्चितता का माहौल बनता है। जो कुछ भी ज्ञान नहीं दे सकते लोग उनसे प्रार्थना करके अपना समय , धन और जीवन नष्ट करते हैं।
क़ानून उन्हें अपनी मान्यता के अनुसार जीने की अनुमति देता है तो उन्हें वह करने दिया जाए जो वे करना चाहें लेकिन क़ानून हरेक को यह अधिकार देता है कि वह अपने विचार से जिस बात को सत्य मानता है दूसरों को उससे आगाह कर दे। मैंने मुसलमानों को टकराव से बचकर लोगों से ‘संवाद‘ की सलाह दी है जो कि आधुनिक दुनिया का बेस्ट मैथड है। इसमें आपको तरस क्यों आ गया ?

  • कृष्ण जी ने इन्द्र की पूजा बन्द करवा दी आपको उनपर तरस न आया ?

  • शिवजी ने ब्रह्मा की पूजा बन्द करवा दी आपको उनपर तरस न आया ?

  • बुद्ध और महावीर ने यज्ञों का विरोध किया , आपको उनपर तरस न आया ?

  • शंकराचार्य ने देशभर में घूम घूम कर बौद्धों और जैनियों के मतों का खण्डन करके अपने मत को प्रतिष्ठित किया , आपको उनपर तरस न आया ?

  • गुरू नानक ने ‘वेद पुरान सब कहानी‘ कहकर उनका खण्डन किया । सूर्य को जल चढ़ाते लोगों को शिक्षा देने के लिये पश्चिम की तरफ को मुंह करके अपने खेतों को पानी देने का अभिनय किया। आपको उनपर तरस न आया।

  • कबीर ने ‘पाहन पूजै हरि मिलै तो मैं पूजूं पहार, तातै वा चक्की भली पीस खाय संसार‘ कहकर मूर्तिपूजा का खण्डन किया । आपको उनपन तरस नहीं आया ?

  • दयानंद जी ने पुराणों के मानने वालों का , उनके गुरूओं का दिल खोलकर मज़ाक़ उड़ाया। आपको उनपर तरस न आया ?

  • विवेकानंद के पास विदेश जाने के लिये रक़म नहीं थी। उन्होंने सहायता मांगी मगर वे विदेश गये। सब को ठीक कहते कहते भी भगिनी निवेदिता को भारतीय कल्चर में रंग डाला। आपको उनपर तरस न आया ?
प्रार्थना समाज, ब्रह्म समाज, राधा स्वामी , निरंकारी , स्वाध्याय परिवार, इस्कॉन, प्रणामी पंथ, रैदासी, उदासी, साकार विश्व हरि, मानव धर्म, हंसा मत, ब्रह्मा कुमारी, पतंजलि पीठ और बहुत से अन्य अनेक पंथों के संस्थापकों ने दूसरे पंथों की आलोचना की और अपने मत को ही सर्वश्रेष्ठ बताया। उनके अनुयायी यहां ब्लॉगजगत में भी सक्रिय हैं। आपको न तो उन संस्थापकों पर तरस खाते देखा गया और न ही उनके अनुयायियों पर, क्यों ?
पवित्र कुरआन पर आये दिन भंडाफोड़ू और उस जैसे कई ब्लॉगर्स बेबुनियाद इल्ज़ाम आयद करते रहते हैं और नामी ब्लॉगर्स उनकी वाह वाह करके उसे टॉप पर पहुंचा देते हैं तब आप धृतराष्ट्र का रोल करने लगते हैं, क्यों ?
उनकी ख़ैर ख़बर ली जाये और वास्तविकता स्पष्ट कर दी जाये तो आपको तरस आने लगता है , वह ब्लॉगर मूर्ख दिखने लगता है। क्यों ?
बुद्धिमान दिखने के लिये ज़ाकिर अली ‘रजनीश‘ और इरफ़ान आदि की तरह सब कुछ देखकर भी गांधी जी के बंदर की तरह गीत ग़ज़ल में मगन रहा जाये तो आप उसे उदारमना मान लेंगे। मैं जिस बात को सत्य मानता हूं उसे साफ़ कहता हूं । अब कोई मुझे जो कुछ भी समझे , मुझे परवाह नहीं , लेकिन मैं ईमानदारी का दम भरने वाले आप जैसे बुजुर्ग से यह ज़रूर जानना चाहूंगा कि वही गुण , वही कार्य तो हज़ारों साल से इस पवित्र, पुण्य और कर्मभूमि भारत में होता आ रहा है, अब भी हो रहा है, तब सबको छोड़कर आपको तरस खाने के लिये मैं ही क्यों मिला ?
हौसला पस्त करने का यह भी एक तरीक़ा होता है। जो नाम के लिये लिखता है वह अपना नाम ख़राब होता देखकर उस रास्ते पर आगे नहीं बढ़ता।
क़ानून से अन्जान आदमी के लिये क़ानून एक डरावनी चीज़ है लेकिन जो मुझे पहचानते हैं वे जानते हैं कि क़ानून मेरी बुनियाद में दाखि़ल है।
वैसे अगर आपने कुछ क़ानूनी कार्रवाई कर भी दी तो क़ानून मेरा क्या बिगाड़ेगा ?
कौन सी बात मैंने ऐसी कही है जो क़ानून के विपरीत है ?
सरिता मुक्ता के ‘विश्वनाथ जी‘ पर दर्जनों बार मुक़द्दमे किये गये लेकिन उन्हें सज़ा एक दिन की भी न हुई। आपको उनपर भी कभी तरस न आया।
इमोशनल ब्लैकमेलिंग, क़ानून की धमकी सब मेरे ही लिए, आखि़र क्यों ?
और अगर आप या कोई दूसरा क़ानूनी कार्रवाई करता है तो वे सब ‘उत्साही युवा‘ चौड़े  में मारे जाएंगे जिन्होंने मेरे ब्लॉग पर इस्लाम और पैग़म्बर साहब स. के प्रति ‘हिन्दुत्ववादी टिप्पणियां‘ कर रखी हैं।
मैं तो चाहता हूं कि कोई तो करे क़ानूनी कार्रवाई । यहां आड़ में जाने कब से यह ग़लीज़ खेल खेला जा रहा था वह तो मीडिया के ज़रिये जगज़ाहिर होगा।
इस सबके बाद भी मुझे आपसे प्रेम ही है। इस जग से विदा होने वाले को किसी से रंजिश रखके करना भी क्या है ? 
जो टिप्पणी पढ़कर जनाब सतीश सक्सेना साहब मुझ पर तरस खाने को आमादा हुए वह निम्न है- 
जनाब शरीफ़ साहब ! आप स्वीकारते हैं कि मसले को जानबूझकर उलझाया गया है, आप यह भी जानते हैं कि वे बाअसर लोग हैं। वे ऐसे लोग हैं कि ‘अल्पसंख्यक‘ होने के बावजूद बहुसंख्यक पर राज कर रहे हैं। लोग जब कभी शांत चित्त हो जायेंगे वे जान लेंगे कि देश की संपदा पर नाजायज़ तरीक़े से कौन क़ाबिज़ है। वे चाहते हैं कि विवाद कभी न सुलझे, एक विवाद सुलझे तो दूसरा खड़ा कर दें। वास्तव में मसला मंदिर मस्जिद का है ही नहीं। मुसलमानों को डिमॉरेलाइज़ करने का है। ऐसे में मुसलमानों को किसी भी विवाद को हवा देना उचित नहीं है। जो लोग परलोक को नहीं मानते, ईश्वर के कल्याणकारी अजन्मे अविनाशी स्वरूप को नहीं जानते वे क्या न्याय देंगे ?
 ये लोग केवल कूटनीति जानते हैं कि कैसे मंथन के बाद निकले हुए अमृत का बंटवारा ‘केवल अपनों‘ में हो ?
 इस्लाम शांति का पैग़ाम है और यहां माहौल टकराव के लिए तैयार किया जा रहा है और मुसलमानों से लड़ाया जाएगा उन पिछड़ी जाति के लोगों को, जो खुद उनके अत्याचार से त्रस्त हैं ताकि जो भी मरे उनका एक दुश्मन कम हो। न्याय इस जगत में केवल बलशाली को ही मिलता है और मुसलमानों ने बहुत से फ़िरक़ों में बंटकर खुद को निर्बल बना लिया है।
कहावत है कि ‘ठाडै की दूर बला‘ ।

  • मुसलमानों को चाहिए कि वे लोगों को बताएं कि मंदिरों की किसकी पूजा होती है और मस्जिद में किसकी ?
  • मंदिर में जिनकी पूजा होती है उनका जीवन कैसा था ?
  • और मस्जिद में नमाज अदा करना सिखाने वाले नबी साहब स. का जीवन कैसा था ?
        काम लम्बा है लेकिन दूसरा कोई शॉर्टकट नहीं है और मस्जिद के लिए इन्सान का खून बहाना जायज़ नहीं है। लोग जब समझेंगे तो खुद उस तरफ अपने क़दम बढ़ाएंगे जहां उन्हें अपना कल्याण नज़र आएगा। तब तक मुसलमानों को सब्र करना चाहिए क्योंकि हरेक हिन्दू उसका दुश्मन नहीं है और दुश्मन तो आर.एस.एस. के लोग भी नहीं होते लेकिन राजनीति और कूटनीति बुरी बला है और मुसलमानों की लीडरी करने वाले इन लोगों से मिले होते हैं।
 आजकल राहबर ही राहज़न बने हुए हैं। हिन्दू-मुस्लिम और मंदिर-मस्जिद की आड़ में माल इकठ्ठा किया जा रहा है। आज़म खां की मिसाल सबके सामने है। अल्लाह ने हरेक उस आदमी को ज़लील कर दिया है जिसने उसके बन्दों को उसके नाम पर लड़ाया और नाम और दाम कमाया।
बहुसंख्यक हिन्दू और मुसलमान भोले हैं। आपस में प्यार से रहते हैं। यह प्यार बना रहे , बढ़ता रहे , ऐसी कोशिश करनी चाहिये।
खुद श्री रामचन्द्र जी ने वन में जाना पसंद किया लेकिन लड़कर राज्य न किया , उनके नाम को लड़ाई के लिये इस्तेमाल करना महापाप है।
खुद हज़रत मुहम्मद साहब स. ने मक्का छोड़कर मदीना जाना गवारा किया लेकिन अपने अनुयायियों को काबा पर क़ब्ज़ा करने के लिये न कहा।
हम जिन्हें अपना आदर्श कहते हैं, उनके जीवन से हमें व्यवहारिक शिक्षा लेनी चाहिये।
http://haqnama.blogspot.com/2010/07/babri-masjid-sharif-khan.html?showComment=1280507284599#c2097935227089136194

Saturday, July 24, 2010

The way for mankind धर्म वह ईश्वरीय जीवन पद्धति है जिसके बिना कल्याण संभव नहीं है। वह सदा से एक ही है। - Anwer Jamal

ईश्वर शाश्वत है , धर्म सनातन है , ईश्वर धर्म का मूल है। ईश्वर एक ही है। उसके गुण अनंत हैं। न तो ईश्वर के रूप की कल्पना संभव है और न ही उसके किसी गुण की। मनुष्य एक सामाजिक और नैतिक प्राणी है। उसका जीवन और यह लोक दोनों ही अस्थायी हैं। परलोक स्थायी है। मनुष्य का कर्म धर्मानुकूल ही होना चाहिये और धर्म ईश्वर द्वारा निर्धारित होता है। ज्ञानी और श्रेष्ठ सदाचारी लोगों के अन्तःकरण में ईश्वर अपनी वाणी का अवतरण करता है , वे उस पर अमल करते हैं और लोगों के सामने एक आदर्श और मिसाल पेश करते हैं। उनके काल में भी और बाद में भी बहुत से लोग उनका विरोध करते हैं। विरोध करने वालों में नादान और कम समझ लोग भी होते हैं और वे लोग भी होते हैं जिनकी चैधराहट पर आंच आ रही होती है। लोग उमूमन सुविधा पसंद होते हैं और होना भी चाहिये लेकिन यह बात तब अपराध बन जाती है जब धर्म की गद्दी पर बैठने वाले लोग अपनी इच्छाओं को धर्म के अधीन करने के बजाय धर्म को अपनी इच्छानुकूल बदलते रहते हैं। उसके मौलिक सिद्धांतों तक में भारी फेर बदल कर देते हैं।

वे न तो उपासना पद्धति को ही प्राचीन विधि के अनुकूल रहने देते हैं और न ही सामाजिक नियमों को।
धर्म केवल उपासना पद्धति और नाम जाप का ही नाम नहीं होता बल्कि वह मनुष्य को जीवन के हर पहलू में हर संकट में सही और सीधा मार्ग दिखाता है।
मनुष्य को ईश्वर ने पैदा किया है और इस कायनात की हरेक चीज़ को भी। कल्याणकारी सीधा मार्ग उस सच्चे स्वामी के सिवा और कोई नहीं जानता। उससे सीधे सन्मार्ग की विनती ही प्रार्थना का मूल है। यह प्रार्थना फलीभूत तब होती है जब केवल उसी एक पर पूरी निष्ठा रखते हुए उसके द्वारा अवतरित धर्म विधान का पालन किया जाए। इस विधान का पालन ही तय करता है कि कौन भक्त वास्तव में ईश्वर के प्रति निष्ठावान है ?

ईश्वर एक है और उसने मानवता को सदा एक ही धर्म की शिक्षा दी है। उस धर्म की शिक्षा उसने अपनी वाणी वेद के माध्यम से दी और महर्षि मनु को आदर्श बनाया तो इस धर्म को वैदिक धर्म या मनु के धर्म के नाम से जाना गया और जब बहुत से लोगों ने वेद को छिपा दिया और इसके अर्थों को दुर्बोध बना दिया तो उसी परमेश्वर ने जगत के अंत में पवित्र कुरआन के माध्यम से धर्म को फिर से सुलभ और सुबोध बना दिया है।

ईश्वर अपनी वाणी कुरआन में स्वयं कहता है-

इन्नहु लफ़ी ज़ुबुरिल्-अव्वलीन ।

अर्थात बेशक यह कुरआन आदिग्रंथों में है।

इस ज़मीन पर ‘वेद‘ सबसे पुराने धार्मिक ग्रंथ हैं।
वेद सार ब्रह्म सूत्र है-

एकम् ब्रह्म द्वितीयो नास्ति , नेह , ना , नास्ति किंचन ।
अर्थात ब्रह्म एक है दूसरा नहीं है, नहीं है, नहीं है, किंचित भी नहीं है।

पवित्र कुरआन के सार को कलिमा ए तय्यिबा कहा जाता है -

ला इलाहा इल्-लल्लाह
अर्थात परमेश्वर के सिवा कोई अन्य उपासनीय नहीं है।

वेद और कुरआन दोनों के मानने वाले ईश्वर की इच्छा से इस मुल्क में इकठ्ठे हो चुके हैं।
वेदों के बारे में वैदिक विद्वान भी एकमत नहीं हैं। कोई इनमें इतिहास बताता है और कोई इनमें इतिहास को सिरे से नकारता है। कोई इन्द्र का अर्थ राजा करता है और दूसरा कोई उसका अर्थ ईश्वर बताता है।
कोई ब्राह्मण ग्रंथों को वेदों का भाग बताता है और दूसरा वर्ग उसे मात्र व्याख्या बताता है। कोई उन्हें चार-पांच हज़ार साल पूर्व ऋषियों द्वारा रचित बताता है और कोई इन्हें तिब्बत में लगभग दो अरब वर्ष पूर्व का ज्ञान बताता है।
यही हाल जाति के अनुसार कर्म की है। नारी और शूद्रों के अधिकारों की है। विधवा नारियों की समस्याओं के समाधान की है। 100 वर्ष की आयु मानकर चार आश्रमों के पालन की है, यज्ञ और हवन की है। स्वर्ग और नर्क के विभागों की नाम सहित ऐसी व्याख्या भी यहां मिलेगी कि आदमी पढ़ते हुए समझेगा कि सारा दृश्य उसकी नज़रों के सामने है और फिर वहीं यह भी लिखा मिलेगा कि स्वर्ग नाम सुख का और नर्क नाम दुख का है दोनों वास्तव में अलंकार हैं।
ग़र्ज़ यह कि हज़ारों साल के दौरान बहुत से कवि और दार्शनिक पैदा हुए और उन्होंने अपनी अपनी बुद्धि से बहुत सा साहित्य रचा। उनमें कुछ बातें बहुत उच्च स्तर की हैं और बहुत सी ऐसी हैं जिनमें अत्याचार और अश्लीलता है।
अपनी इच्छाओं और वासनाओं की पूर्ति के लिये महापुरूषों और ऋषियों के चरित्र को ऐसा विकृत कर दिया गया कि महाभारत में अपने बाप से उत्पन्न आदमी को ढूंढना मुश्किल हो जाता है।
श्री रामचन्द्र जी और श्री कृष्ण जी समेत बहुत से महापुरूषों के जीवन चरित्र के साथ खिलवाड़ किया गया है। मानवता के सामने आज आदर्श का संकट है । वह किसे सही माने और किस के जीवन के अनुसार अपना जीवन ढाले। दोनों ही महापुरूष भारतीय जनमानस में अति लोकप्रिय है परंतु दोनों के ही जीवन चरित्र को लीला कह दिया गया।

पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस जगत में आने मानवता का सबसे बड़ा संकट उस दयालु ईश्वर ने हल कर दिया है। मुहम्मद साहब सल्ल. के अंतःकरण पर अवतरित ईश्वरीय वाणी ऐतिहासिक रूप से सुरक्षित है। उनकी जीवनी भी सुरक्षित है। उनके बताये गये नियम पूर्णतः वेदानुकूल हैं, आज के समय में सरलतापूर्वक पालनीय हैं। उनके द्वारा बतायी गयी उपासना पद्धति भी सहज सरल और पालनीय है। कटते जंगल, बढ़ते ग्लोबल वॉर्मिंग और घटते घी के दौर में आज जब हवन

करना लगभग साढ़े छः अरब मनुष्यों के लिये संभव नहीं है तब भी नमाज़ अदा करना आसान है, हरेक के लिये , ग़रीब के लिये भी और अमीर के लिये भी।
धर्म वह ईश्वरीय जीवन पद्धति है जिसके बिना कल्याण संभव नहीं है। वह सदा से एक ही है। अलग अलग भाषाओं में उसके बहुत से नाम हैं। एक ही धर्म आज केवल विकारों के कारण बहुत से मतों की भीड़ में दब गया है लेकिन ‘तत्वदर्शी‘ उसे अपनी ज्ञानदृष्टि से आसानी से पहचान लेता है और मान भी लेता है।
विश्व के परिदृश्य में भारत एक उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति है। अगर हमने समझदारी से अपने मनमुटाव दूर कर लिये तो फिर यह विश्व की सबसे बड़ी नैतिक शक्ति भी होगा। विश्व नेतृत्व पद हमारे सामने है लेकिन हमें खुद को उसके योग्य साबित करना होगा।  

Tuesday, July 20, 2010

Resolution of rights 'भड़ास ब्रिगेड' को बताना चाहिये कि ‘वाजिब हक़‘ क्या है यह कौन तय करेगा ? With महक जी! सत्य गौतमएक जाल है जिसमें आप फंसते जा रहे हैं।- Anwer Jamal



A
जनाब शम्स जी को यह आपत्ति थी कि मैं अपने लेख में जो लफ़्ज़ इस्तेमाल ही नहीं करता उसे टैग क्यों बनाता हूं मैंने उन्हें बताया कि इंटरनेट लेखन का यह कोई नियम नहीं है। लेखक जिस लफ़्ज़ को चाहे टैग के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है।

लेकिन मुझे यह देखकर ताज्जुब हुआ कि वे मेरे कमेंट पर कुछ नहीं बोले। उनके एतराज़ के जवाब में मैंन,टैग के बारे में, अपनी सोच और योजना भी बताई, यह पोस्ट चिठ्ठाजगत की हॉटलिस्ट में भी रही लेकिन जनाब मोहतरम शम्स साहब ने मेरे ब्लाग पर आकर कमेंट करना मुनासिब न समझा।
ये साहब मुझे सुझा रहे हैं कि मैं माओवाद पर कुछ लिखूं और फिर खुद ही कह रहे हैं कि मैं उन्हें भी इस्लाम कुबूल करने का निमंत्रण दूंगा।
मैं दूंगा नहीं बल्कि दे भी चुका हूं। नक्सलवाद की समस्या पर मेरे कई लेख हैं। आपको उन्हें पढ़ लेना चाहिये था।
दुनिया में जंग किस बात की है ?
आमतौर पर जो ताक़तवर है वह साधनों पर इस तरह क़ाबिज़ हो गया है कि वह कमज़ोरों को उनका उचित हक़ भी नहीं देना चाहता।
जो कमज़ोर हैं वे अपना हक़ मांगते हैं । जब मांगने से उन्हें अपना हक़ नहीं मिलता तो वे छीनने पर आमादा हो जाते हैं।
दोनों ग्रुप्स में टकराव होता है जो ज़्यादा संगठित और योजनाबद्ध होता है वह जीत जाता है जैसे कि रूस में जनता जीत गई और चीन में जनता हार रही है।
कभी ऐसा भी होता है कि शासक वर्ग की नीतियों से कुछ गुट संतुष्ट नहीं होते, वह और ज़्यादा मांगते हैं। शासक वर्ग उन्हें और देता है तो मांगने वाले अपनी मांग और भी ज़्यादा बढ़ा देते हैं।
इसी तरह इतिहास में टकराव हुआ और आज भी हो रहा है। कहीं इसका नाम माओवाद है और कहीं राष्ट्रवाद। कहीं इसका नाम नक्सलवाद है और कहीं इसे इस्लामी आतंकवाद कहा जाता है।
हल केवल माओवाद का ही क्यों ढूंढा जाये ?
हल तो हरेक वाद और हरेक विवाद का ढूंढा जाना चाहिये।
'भड़ास बिग्रेड' को बताना चाहिये कि वह कौन सी तकनीक या विधि है जिसकी वजह से
  • शासक वर्ग लोगों को उनका वाजिब हक़ अदा करने के लिये खुद को बाध्य महसूस करे?
  • और जनता जो मिले उस पर संतुष्ट हो जाये, फ़ालतू आंदोलन करके बवंडर खड़ा न करे ?
  • और सबसे बड़ी बात यह कि ‘वाजिब हक़‘ क्या है यह कौन तय करेगा ?
  • शासक या जनता ?
यह हक़ केवल ईश्वर अल्लाह का है लेकिन अगर आप उसका यह हक़ स्वीकार नहीं करते तो फिर आप यह काम अंजाम देकर दिखाएं। उसपर लोगों को संतुष्ट करके दिखाएं।
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B
महक जी! आपके दो में से एक गुरूतुल्य ब्लागर ने आपको इशारा किया है लेकिन आप नहीं समझे। उत्तेजना में विचार शक्ति क्षीण हो जाती है और सत्य गौतम जी यही चाहते हैं।
 यह एक जाल है जिसमें आप फंसते जा रहे हैं। यह सत्य गौतम जी जो भी हैं मेरे ब्लॉग पर भी कई बार अपनी पोस्ट के अंश पब्लिसिटी की ग़र्ज़ से डाल चुके हैं। मैं चुप रहा क्योंकि आप जानते हैं कि इन दिनों कुछ घरेलू मसरूफ़ियत ज़्यादा चल रही है और मैं इनके कुछ स्टेटमेंट भी देखना चाहता था क्योंकि इनसान के अल्फ़ाज़ उसकी सोच का आईना होते हैं। इनकी ज़्यादातर पोस्ट तो चंदे की हैं। हालांकि उनसे भी इनके सोचने की दिशा और दशा का पता चल जाता है लेकिन आदमी पकड़ा जाता है अपने बयान पर।
आप अपनी ताक़त बचायें और ‘ब्लॉग संसद‘ पर ध्यान दें। अपने मंतव्य से ध्यान हटाना ठीक नहीं है। इन्हें जवाब मैं दूंगा लेकिन थोड़ा ठहर कर। जिन लोगों को हिन्दू भाई देवी देवता मानते हैं मैं उन्हें तक़दीर का बनाने बिगाड़ने वाला तो नहीं मानता लेकिन उनमें से जो ऐतिहासिक या इतिहास पूर्व के धर्मनिष्ठ लोग हैं उनको मैं अपना पूर्वज मानकर आदर देता हूं। अगर कोई किसी कवि के अलंकारों या क्षेपक के कारण उनके चरित्र पर उंगली उठाता है तो उसकी आपत्ति का निराकरण करना मेरा फ़र्ज़ है। श्री रामचन्द्र जी और सीता जी भी उन्हीं में से हैं। आप मुझे आदर से पुकारते हैं सो सही सलाह आपको देना ज़रूरी समझा। इस टिप्पणी में भी अभी मैंने सत्य गौतम जी को कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा लेकिन मैं न तो भूलता हूं और न ही भूलने देता हूं।

Monday, July 19, 2010

Plutonic love किशोरों और युवाओं को बचाना है, समाज को बचाना है तो यौवन के बारे में उन्हें सही जानकारी देना बुनियादी ज़रूरत है। - Anwer Jamal

मेरे प्रिय भाई !
आपका एहसानमंद हूं कि आपने मुझपर इतना समय लगाया और इतना लंबा लेख लिखा।

1.पहली बात तो मैं आपको यह बता दूं कि सेक्स कोई गंदी चीज़ नहीं है। विवाह संबंध का उद्देश्य नस्ल चलाना होता है और विवाह को एक धार्मिक संस्कार और क़रार माना जाता है वेद वालों के यहां भी और कुरआन वालों के यहां भी।
सम्भोग पर मैंने कई लेख लिखे हैं जो कि आपने संभवतः पढ़े ही नहीं।
संभोग एक पवित्र कर्म है इसे अपवित्र बनाता है हमारा ईश्वर की मर्यादा और सीमा को तोड़ना। अपने ब्लॉग पर मैंने इसी बात पर ज़ोर दिया है कि लोग मालिक का आदेश मानें और उसकी निश्चित की गई मर्यादा का पालन करें।
2. टैग में सेक्स लफ़्ज़ लिखने पर आपकी तरफ़ से कोई पाबंदी है या नेक दिखने के लिये ऐसा नहीं करना चाहिये ऐसा न तो आपने कभी बताया है और न ही किसी और ने। फिर आपका ऐतराज़ क्या मायने रखता है ?
3.‘सेक्स‘ को टैग बनाने के पीछे एक रोचक क़िस्सा है।
बहुत दिन पहले मैंने एक लेख सीता माता जी के विवाह के संबंध में लिखा था। उस लेख के लिये मुझे एक चित्र की खोज थी। गूगल पर इमेज खोजने के लिये मैंने अंग्रेज़ी में सीता लिखा तो आवारा लड़कियों के चित्र वहां नज़र आने लगे। मैंने पेज पर पेज पलटे लेकिन हरेक पेज पर यही क़िस्सा जारी रहा। मैं बहुत दुखी हुआ। सीता जी नेकी और पवित्रता की प्रतीक हैं उनका नाम लिखने के बाद उनके विपरीत चरित्र वाली औरतों के कामुक चित्र देखना मेरे जैसे हरेक भारतीय और ग़ैर भारतीय के लिये दुख की बात होना स्वाभाविक है। मैंने इस समस्या के मूल पर ग़ौर किया तो पता चला कि उस वेबसाइट में वह नाम कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में अवश्य आया है। सर्च इंजन टैग से भी ढूंढता है।
मैंने इस विधि को लोगों के ‘माइंड प्योरिफ़िकेशन‘ के लिये इस्तेमाल करना आरम्भ कर दिया ताकि अगर कोई आदमी सेक्स विषय पर जानकारी पाना चाहे तो उस तक केवल अमर्यादित और पापकारक जानकारी ही न पहुंचे बल्कि उसे पवित्र संदेश भी पहुंचे। हो सकता है कि उसके दिल पर मालिक का नाम या उसका पैग़ाम असर कर जाए और वह सच्ची तौबा करके गुनाह की दलदल से निकल आए।
जिन किशोरों और युवाओं को सेक्स और विवाह के संबंध में सही जानकारी नहीं दी जाती, वे जज़्बात में आकर ग़लत क़दम उठा रहे हैं। उन्हें बचाना है, समाज को बचाना है तो यौवन के बारे में उन्हें सही जानकारी देना बुनियादी ज़रूरत है।

आपने पूछा सो मैंने बता दिया। आपका नाम शम्स है और शम्स नाम के मेरे एक चाचा हैं जो एक मशहूर शायर हैं। इस नाम का लिहाज़ करते हुए आपको काफ़ी कुछ कन्सेशन दिये जाते हैं। उम्मीद है कि समझ जाएंगे।
मोहतरम जनाब शम्स जी की पोस्ट का एक अंश ‘भड़ास‘ से साभार है-
वेद कुरआन की बात करने वाला डा.अनवर जमाल भी सेक्स के भूत की चपेट में......

जो कुदरती है वह बुरा कैसे हो सकता है बुरा और भला तो हम अपने सामाजिक नियमों से अपने हितो को मद्देनजर रखते हुए निर्धारित करते है। नीतियां भी वही पचती हैं जो कि हमारे हित में हों फिर हम बाद में उसे जनहित, राष्ट्रहित और ना जाने किन किन के हित से जोड़ कर बताते हैं ताकि अधिकतम लोग हमारे साथ खड़े हो जाएं। जैसा कि मैं पहले ही लिख चुका हूं कि मैं अच्छा मुसलमान नहीं हूं यदि ईश्वर अल्ला जिन सिद्धांतों पर दुनिया को किताबो में बता रहा है तो मेरी तो मिट्टी खराब होनी है लेकिन क्या करूं बुद्धि जो उसने दी है वह भ्रष्ट हो गयी है कि भड़ास पर रम गया हूं।


जो अच्छे हिन्दू या मुसलमान होने के लिये ताल ठोंकते नजर आते हैं उनमें से डा.अनवर जमाल जो कि पूरी दुनिया को जमालगोटा दे रहे हैं कि सनातनधर्म और इस्लाम मे बहुत साम्य है दोनो एक ही है हिन्दुओं को मुसलमान बन जाना चाहिये क्योंकि अन्तिम संदेष्टा ने कहानी पूरी कर दी है अब कोई विवाद नहीं होगा आदि आदि। अनवर जमाल के पत्रा पर देखा तो दंग रह गया कि ये आदमी तो एक नंबर का टोटकेबाज़ है। पोस्ट में जो लिख रहा है सो तो है ही लेकिन लेबल्स(जो कि पोस्ट को सर्च इंजनों की पकड़ में आने के लिये कुंजी का कार्य करते हैं) में ऐसा शब्द प्रयोग कर रहा है जिसका कि पोस्ट से कोई लेना देना ही नहीं है।

Saturday, July 17, 2010

At the time of marriage ‘सीता जी की आयु 6 वर्ष थी‘, जो लोग बाल्मीकि रामायण को प्रमाण मानते हैं वे इस तथ्य को झुठला नहीं सकते।-Anwer Jamal

दुहिता जनकस्याहं मैथिलस्य महात्मनः।। 3 ।।

सीता नाम्नास्मि भद्रं ते रामस्य महिषी प्रिया ।।
‘ब्रह्मन ! आपका भला हो। मैं मिथिलानरेश  जनक की पुत्री और अवध नरेश श्री रामचन्द्र जी की प्यारी रानी हूं। मेरा नाम सीता है‘।। 3 ।।

उषित्वा द्वादश समा इक्ष्वाकूणां निवेशने ।। 4 ।।

भुन्जाना मानुषान् भोगान् सर्वकामसमृद्धिनी ।।
‘विवाह के बाद बारह वर्षों तक इक्ष्वाकुवंशी महाराज दशरथ के महल में रहकर मैंने अपने पति के साथ सभी मानवोचित भोग भोगे हैं। मैं वहां सदा मनोवांछित सुख-सुविधाओं से सम्पन्न रही हूं‘।। 4 ।।



तत्र त्रयोदशे वर्षे राजातन्त्रयत प्रभुः।। 5 ।।

अभिषेचयितुं रामं समेतो राजमन्त्रिभिः ।।

‘तेरहवें वर्ष के प्रारम्भ में सामर्थ्यशाली महाराज दशरथ ने राजमन्त्रियों से मिलकर सलाह की और श्रीरामचन्द्र जी का युवराज पद पर अभिषेक करने का निश्चय किया‘ ।। 5 ।।



मम भर्ता महातेजा वयसा पञ्चविंशकः ।। 10 ।।

अष्टादश हि वर्षाणि मम जन्मनि गण्यते ।।
‘उस समय मेरे महातेजस्वी पति की अवस्था पच्चीस साल से ऊपर की थी और मेरे जन्मकाल से लेकर वनगमनकाल तक मेरी अवस्था वर्ष गणना के अनुसार अठारह साल की हो गयी थी ।। 10 ।।
श्रीमद्बाल्मीकीय रामायणे, अरण्यकाण्डे, सप्तचत्वारिंशः सर्गः, पृष्ठ 598 , सं. 2051 तेरहवां संस्करण,
 मूल्य पैंतालीस रूपये
अनुवादक- साहित्याचार्य पाण्डेय पं. रामनारायण दत्त शास्त्री ‘राम‘
प्रकाशक - गीता प्रेस , गोरखपुर,
रामायण के मूल श्लोक और उनका अनुवाद आपके सामने रख दिये गये हैं। आप खुद फ़ैसला कर सकते हैं। कवि ने क्यों सीता जी को विवाह के समय 6 वर्ष का दिखाना ज़रूरी समझा, इस विषय पर मैं अपना नज़रिया बाद में रखूंगा।
दुख होता है यह देखकर कि
 जो लोग रामायण के ब्लॉग चला रहे हैं उन्हें भी सही तथ्य का ज्ञान नहीं है
 या फिर दूसरे लोगों को भ्रम में डाले रखने के लिए खुद को अनभिज्ञ दिखाते हैं।
रामचन्द्र जी का असली चरित्र रमणीय और आदर्श ही होना चाहिये, ऐसा मेरा मानना है। बौद्धिक जागरण के इस काल में तर्क को परंपरा का हवाला देकर नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। रामचन्द्र जी के चरित्र को सामने लाने के लिए देश की रामकथाओं के साथ साथ मलेशिया आदि विदेशों में प्रचलित रामकथाओं पर भी नज़र डालना ज़रूरी है। यदि ऐसा किया जाए तो सच भी सामने आएगा, रामकथा का व्यापक प्रभाव भी नज़र आएगा और हो सकता है कि श्री रामचन्द्र जी का वास्तविक जन्म स्थान वर्तमान अयोध्या के अलावा कोई और जगह निकले, तब राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद भी स्वतः ही हल हो जाएगा। सच से मानवता का कल्याण होगा। सच कड़वा होता है तब भी इसे ग्रहण करना चाहिये क्योंकि सच हितकारी होता है, कल्याणकारी होता है, समस्याओं से मुक्ति देता है।

Wednesday, July 14, 2010

A thought on blog parliament शराब और तवायफ़ों के अड्डे इस पाक ज़मीन पर कौन चला रहा है ? इन सब हालात को जो महापुरूष सुधार सकते थे, सही मार्ग दिखा सकते थे उनके जीवन चरित्र को ही बिगाड़ दिया गया है। उन्हें जार, चोर, शराबी, धोखेबाज़ और ज़ालिम लिख दिया।-Anwer Jamal

क़ाबिल ए क़द्र, जनाब भाई महक साहब! आप देश की व्यवस्था के बारे में चिंतित हैं। बहुत सही चिंता है आपकी। आपने रोहतक से दिल्ली का सफ़र किया और देखा कि महान भारत के लोगों को सफ़र करने के सामान्य नियमों का पालन करने तक में कोई दिलचस्पी नहीं है। धक्का मुक्की और बदतमीज़ी आम है जबकि दूसरी तरफ़ जनाब सतीश सक्सेना जी ने विदेशी ट्रेन में सफ़र किया तो उन्हें लोगों की तो क्या ट्रेन की भी आवाज़ नहीं आई। इसके बावजूद इस देश के लोग यूरोप को संस्कारविहीन समझते और कहते हैं। कहीं खड़े होने के लायक़ तक नहीं हैं और खुद को महान घोषित कर लिया। भारत तो बेशक महान है लेकिन सवाल यह है कि क्या हम इस महान देश के अनुरूप आचरण करते हैं।
शराब और तवायफ़ों के अड्डे इस पाक ज़मीन पर कौन चला रहा है ?
फ़िल्म कलाकारों और मॉडल्स के अधनंगे नाच को कला का नाम किसने दिया ?
कालाबाज़ारी और मिलावट कौन कर रहा है ?
पेट में ही कन्या भ्रूण हत्या कौन कर रहा है ?
और जो लड़कियां जन्म ले लेती हैं उन्हें स्कूल आते जाते कौन छेड़ता है ?
शिक्षित कन्याओं को उनके वर्क प्लेस पर क्या कुछ सहना पड़ता है यह कोई सायमा सहर से पूछे ?
विवाहित लड़की को अपना घर छोड़ने के बाद जो घर मिलता है उसे वह अपना घर मानकर भी मान नहीं पाती ?
हरेक रिश्ते पर दौलत और लालच हावी हो चुका है। मां बाप आज ठोकरें खा रहे हैं। इन सब हालात को जो महापुरूष सुधार सकते थे, सही मार्ग दिखा सकते थे उनके जीवन चरित्र को ही बिगाड़ दिया गया है। उन्हें जार, चोर, शराबी, धोखेबाज़ और ज़ालिम लिख दिया। उनकी कथाएं बिगाड़ दीं, उनकी शिक्षाएं बिगाड़ दीं। उन्होंने अधर्म का नाश किया और आडम्बर का विरोध किया। उनके वचनों में ही अधर्म और आडम्बर समाहित कर दिया। ऐसा किसी एक के साथ नहीं किया बल्कि इस देश के हरेक महापुरूष के साथ यही किया गया। हज़ारों साल से बार बार यही किया गया यहां तक कि फिर इस देश में ‘ईशवाणी‘ के अवतरण का सिलसिला ही रूक गया। फिर बुद्ध और महावीर जैसे महान दार्शनिकों ने सुधार का बीड़ा उठाया लेकिन उनके साथ भी वही किया गया जो कि हमेशा से सुधारकों के साथ किया जाता रहा है। आज इनकी शिक्षाओं का मौलिक रूप लुप्त हो चुका है।
सुधार के लिए ज़रूरत है
उसूलों की और एक आदर्श महापुरूष की, जिसका जीवन चरित्र सुरक्षित हो। सभी महापुरूषों की जीवनी पढ़िये और देखिये कि यह ज़रूरत किस महापुरूष से पूरी हो रही है और जब यह ज़रूरत पूरी हो जाये तो बस फिर उसका अनुसरण कीजिये। बस इतना सा काम करना है और लीजिये हो गया आपकी हरेक समस्या का समाधान।
अगर लोग इतना सा काम न कर सकें तो फिर किसी भी समस्या से मुक्ति मिलने वाली नहीं है। जब असली पार्लियामेंट मसलों को हल नहीं कर पा रही है तो फिर यह ‘ब्लॉग पार्लियामेंट‘ ही मसलों को कैसे हल कर पाएगी ?
ऐसा मेरा विचार है। इसके बावजूद कुछ न करने से कुछ करना बेहतर होता है इसलिए आप जो भी पॉज़िटिव काम करेंगे, हम आपका साथ देंगे। सम्मिलित होने से पहले मैं अपने
ब्लॉग गुरू श्री श्री 801 सारथि जी महाराज से परामर्श करना चाहूंगा।
आप इस विचार को जनाब शरीफ़ ख़ान साहब के सामने भी रख सकते हैं। वे भी समाज में सुधार के इच्छुक हैं। पिछली पोस्ट पर उनका कमेंट भी है।
इतने अच्छे और मौलिक प्रस्ताव के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपको तो वैसे भी मेरा ही उदारवादी चेहरा तक समझ लिया गया था। आपमें और मुझमें कुछ ज़्यादा ही साम्य है। मालिक आपका उत्साह बनाये रखे और आपको मंज़िल तक पहुंचाये।
यह विचार मैंने जनाब महक जी के प्रस्ताव पर व्यक्त किये जोकि निम्नवत है। इस पर आप लोग भी विचार करें और अपनी बेहतर राय से आगाह करें।
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Mahak said...

Part 1of 4
बहुत दिनों से एक विचार मेरे मन की गहराइयों में हिलोरे खा रहा था लेकिन उसे मूर्त रूप प्रदान करने के लिए आप सबका सहयोग चाहिए इसलिए उसे आप सबके समक्ष रखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था की पता नहीं कहीं वो असफल और अस्वीकार ना हो जाए लेकिन तभी ये विचार भी आया की बिना बताये तो स्वीकार होने से रहा इसलिए बताना ही सही होगा .
दरअसल जब भी मैं इस देश की गलत व्यवस्था के बारे में कोई भी लेख पढता हूँ, स्वयं लिखता हूँ अथवा किसी से भी चर्चा होती है तो एक अफ़सोस मन में होता है बार-2 की सिर्फ इसके विरुद्ध बोल देने से या लिख देने से क्या ये गलत व्यवस्थाएं हट जायेंगी , अगर ऐसा होना होता तो कब का हो चुका होता , हम में से हर कोई वर्तमान भ्रष्ट system से दुखी है लेकिन कोई भी इससे बेहतर सिस्टम मतलब की इसका बेहतर विकल्प नहीं सुझाता ,बस आलोचना आलोचना और आलोचना और हमारा काम ख़त्म , फिर किया क्या जाए ,क्या राजनीति ज्वाइन कर ली जाए इसे ठीक करने के लिए ,इस पर आप में से ज़्यादातर का reaction होगा राजनीति !!! ना बाबा ना !(वैसे ही प्रकाश झा की फिल्म राजनीति ने जान का डर पैदा कर दिया है राजनीति में कदम रखने वालों के लिए ) वो तो बहुत बुरी जगहं है और बुरे लोगों के लिए ही बनी है , उसमें जाकर तो अच्छे लोग भी बुरे बन जाते हैं आदि आदि ,इस पर मेरा reaction कुछ और है आपको बाद में बताऊंगा लेकिन फिलहाल तो मैं आपको ऐसा कुछ भी करने को नहीं कह रहा हूँ जिसे की आप अपनी पारिवारिक या फिर अन्य किसी मजबूरी की वजह से ना कर पाएं, मैं सिर्फ अब केवल आलोचना करने की ब्लॉग्गिंग करने से एक step और आगे जाने की बात कर रहा हूँ आप सबसे
July 13, 2010 2:53 PM
Mahak said...
आप सोच रहे होंगे वो कैसे ,तो वो ऐसे जनाब की मैं एक साझा ब्लॉग (Common Blog ) create करना चाहता हूँ जिसका की मकसद होगा एक ऐसा मंच तैयार करना जिसपे की हम सब हमारे देश के वर्तमान सिस्टम की खामियों की सिर्फ आलोचना करने के साथ-२ उसका एक तार्किक और बढ़िया हल भी प्रस्तुत करें और उसे बाकायदा एक बिल के रूप में पास करें आपसी बहस और वोटिंग के द्वारा
इस पर आपका कहना होगा की क्या सिर्फ ब्लॉग जगत के द्वारा देश के लिए नए और बेहतर कानून और सिस्टम बनाने से और वो भी सिर्फ ब्लॉग पर पास कर देने से देश का गलत सिस्टम और भ्रष्ट व्यवस्था बदल जायेगी ? तो श्रीमान आपसे कहना चाहूँगा की ये मैं भी जानता हूँ की ऐसा नहीं होने वाला लेकिन ज़रा एक बात सोचिये की जब भी हममें से कोई इस भ्रष्ट और गलत व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाता है या भविष्य में भी कभी उठाएगा तो जब इस गलत व्यवस्था के समर्थक हमसे पूछेंगे की -" क्या तुम्हारे पास इससे बेहतर व्यवस्था का प्लान है ?,अगर है तो दिखाओ " , तो क्या आपको नहीं लगता की हमारे पास पहले से वो सही सिस्टम होना तो चाहिए जो उस समय हम उनके सामने पेश कर सकें ,एक बार हम एक सही व्यवस्था का खाका तैयार करने में कामयाब हो गए तो वो दिन दूर नहीं होगा जब हम इसे पूरे देश के सामने भी पेश करेंगे और देश हमारा साथ देगा और इस पर मोहर लगाएगा .
इसीलिए मेरी आप सबसे प्रार्थना है की इसमें सहयोग करें , मैं आपसे आर्थिक सहयाग मतलब रुपया ,पैसे का सहयोग नहीं मांग रहा बल्कि आपसे बोद्धिक सहयोग चाह रहा हूँ ,
हमारे इस common BLOG का नाम होगा
"BLOG Parliament - Search for a right system & laws for the country "
http://blog-parliament.blogspot.com/
इसके मुख्यतः 3 चरण होंगे
1 . अपने बिल अथवा प्रस्ताव की प्रस्तुति और उसपे बहस
2 . उस प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में वोटिंग
3 . Majority वोटिंग के हक में प्रस्ताव का पास होना अथवा reject होना
July 13, 2010 2:54 PM
Mahak said...
आप सबसे यही सहयोग चाहिए की आप सब इसके मेम्बर बनें,इसे follow करें और प्रत्येक प्रस्ताव के हक में या फिर उसके विरोध में अपने तर्क प्रस्तुत करें और अपना vote दें
जो भी लोग इसके member बनेंगे केवल वे ही इस पर अपना प्रस्ताव पोस्ट के रूप में publish कर सकते हैं जबकि वोटिंग members और followers दोनों के द्वारा की जा सकती है . आप सबको एक बात और बताना चाहूँगा की किसी भी common blog में members अधिक से अधिक सिर्फ 100 व्यक्ति ही बन सकते हैं ,हाँ followers कितने भी बन सकते हैं
तो ये था वो सहयोग जो की मुझे आपसे चाहिए ,
मैं ये बिलकुल नहीं कह रहा हूँ की इसके बदले आप अपने-२ ब्लोग्स लिखना छोड़ दें और सिर्फ इस पर ही अपनी पोस्ट डालें , अपने-2 ब्लोग्स लिखना आप बिलकुल जारी रखें , मैं तो सिर्फ आपसे आपका थोडा सा समय और बौद्धिक शक्ति मांग रहा हूँ हमारे देश के लिए एक बेहतर सिस्टम और न्याय व्यवस्था का खाका तैयार करने के लिए
1. डॉ. अनवर जमाल जी
2. सुरेश चिपलूनकर जी
3. सतीश सक्सेना जी
4. डॉ .अयाज़ अहमद जी
5. प्रवीण शाह जी
6. शाहनवाज़ भाई
7. जीशान जैदी जी
8. पी.सी.गोदियाल जी
9. जय कुमार झा जी
10.मोहम्मद उमर कैरान्वी जी
11.असलम कासमी जी
12.राजीव तनेजा जी
13.देव सूफी राम कुमार बंसल जी
14.साजिद भाई
15.महफूज़ अली जी
16.नवीन प्रकाश जी
17.रवि रतलामी जी
18.फिरदौस खान जी
19.दिव्या जी
20.राजेंद्र जी
21.गौरव अग्रवाल जी
22.अमित शर्मा जी
23.तारकेश्वर गिरी जी
( और भी कोई नाम अगर हो ओर मैं भूल गया हों तो मुझे please शमां करें ओर याद दिलाएं )
मैं इस ब्लॉग जगत में नया हूँ और अभी सिर्फ इन bloggers को ही ठीक तरह से जानता हूँ ,हालांकि इनमें से भी बहुत से ऐसे होंगे जो की मुझे अच्छे से नहीं जानते लेकिन फिर भी मैं इन सबके पास अपना ये common blog का प्रस्ताव भेजूंगा
common blog शुरू करने के लिए और आपको उसका member बनाने के लिए मुझे आप सबकी e -mail id चाहिए जिसे की ब्लॉग की settings में डालने के बाद आपकी e -mail ids पर इस common blog के member बनने सम्बन्धी एक verification message आएगा जिसे की yes करते ही आप इसके member बन जायेंगे , प्रत्येक व्यक्ति member बनने के बाद इसका follower भी अवश्य बने ताकि किसी member के अपना प्रस्ताव इस पर डालते ही वो सभी members तक blog update के through पहुँच जाए ,अपनी हाँ अथवा ना बताने के लिए मुझे please जल्दी से जल्दी मेरी e -mail id पर मेल करें
mahakbhawani@gmail.com
July 13, 2010 2:55 PM
Mahak said...
हमारे इस common blog में प्रत्येक प्रस्ताव एक हफ्ते के अंदर अंदर पास किया जायेगा , Monday को मैं या आप में से इच्छुक व्यक्ति अपना प्रस्ताव पोस्ट के रूप में डाले ,Thursday तक उसके Plus और Minus points पर debate होगी, Friday को वोटिंग होगी और फिर Satuday को votes की गणना और प्रस्ताव को पास या फिर reject किया जाएगा वोटिंग के जरिये आये हुए नतीजों से
आप सब गणमान्य ब्लोग्गेर्स को अगर लगता है की ऐसे कई और ब्लोग्गेर्स हैं जिनके बौधिक कौशल और तर्कों की हमारे common ब्लॉग को बहुत आवश्यकता पड़ेगी तो मुझे उनका नाम और उनका ब्लॉग adress भी अवश्य मेल करें ,मैं इस प्रस्ताव को उनके पास भी अवश्य भेजूंगा .
तो इसलिए आप सबसे एक बार फिर निवेदन है इसमें सहयोग करने के लिए ताकि आलोचना से आगे भी कुछ किया जा सके जो की हम सबको और ज्यादा आत्मिक शान्ति प्रदान करे
इन्ही शब्दों के साथ विदा लेता हूँ
जय हिंद
महक
July 13, 2010 2:55 PM

Monday, July 12, 2010

Death on namazsheet जीवन का सबसे बड़ा सच मौत है। मौत आदमी के सामने है और आदमी अपनी मौत से ग़ाफ़िल है। -Anwer Jamal

हर नफ़्स को मौत का मज़ा चखना है और तुम्हें पूरा बदला तो बस क़ियामत के दिन मिलेगा, सो जो शख्स आग से बच जाए और जन्नत में दाखि़ल किया जाए वही कामयाब रहा और दुनिया की ज़िन्दगी तो बस धाखे का सौदा है। यक़ीनन तुम अपने जान और माल में आज़माए जाओगे, और तुम बहुत सी दुखदायी बातें सुनोगे उनसे जिन्हें तुमसे पहले ‘किताब‘ मिली और उनसे भी जिन्होंने शिर्क किया।                                              आलेइमरान, 184
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मुबारक पब्लिक स्कूल हापुड़ का एक मशहूर और पुराना स्कूल है। जनाब अनवार अहमद साहब की वालिदा ने बेशुमार बच्चों को तालीम के ज़ेवर से आरास्ता किया और फिर उनके बाद उनकी औलाद ने भी उस शमा ए इल्म को बुझने न दिया। हापुड़ के लोग अनवार साहब को मास्टर अनवार के नाम से जानते हैं। ‘मास्टर‘ लफ़्ज़ उनके नाम का हिस्सा ही बनकर रह गया है। इसके अलावा पब्लिशिंग का काम भी है। परसों मास्टर अनवार साहब का फ़ोन आया। उन्होंने ग़मज़दा से लहजे में बताया कि उनकी बहन सबीहा का 7 जुलाई 2010 को रात 10ः30 बजे सिर्फ़ 45 की उम्र में इंतिक़ाल हो गया है। उन्होंने अपने पीछे 3 बच्चे छोड़े हैं। एक लड़का बिलाल-18 साल,दो लड़कियां अस्फी-12 साल और सुमय्या-9 साल। उनके पति पिछले 25 साल से दुबई में ही काम करते हैं। मौत की ख़बर सुनकर वे आए और पछताए कि उनकी पत्नी उनसे हिंदुस्तान में रहने के लिए कहती रही लेकिन वे नहीं माने । शायद अब वे दुबई न लौटेंगे।

इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन ।

अर्थात हम सब अल्लाह के हैं और बेशक हम सबको उसी की तरफ़ लौटना है।

इनसान की ज़िंदगी धोखे में बीत रही है। जहां उसे लौटकर जाना है उसकी तरफ़ न तो उसका ध्यान है और न ही वहां काम आने वाले सत्कर्मों को करने की फ़िक्र। अगर लोगों को बताया जाए कि तुम्हारा एक मालिक है वह तुम्हें धरती से क़ियामत के दिन सशरीर निकालेगा ताकि तुम्हें तुम्हारे कामों का सिला दिया जाए तो हर वह आदमी इस बात का विरोध करने लगता है जिसके दर्शन से यह सत्य टकराता है या उसके हितों पर चोट पड़ती है। जो लोग रास्ता देखना ही नहीं चाहते वे सत्य के प्रचारकों को तरह तरह की दुख देने वाली बातें कहते हैं। लेकिन सच्चा हमदर्द वही है जो उनकी बातों को इग्नोर करके उन्हें परम सत्य से आगाह करता रहे। जीवन का सबसे बड़ा सच मौत है। मौत आदमी के सामने है और आदमी अपनी मौत से ग़ाफ़िल है।

सबीहा साहिबा वैसे भी नेक तबियत की मालिका थीं और मौत से कुछ वक्त पहले उन्होंने अल्लाह से तौबा की, तसबीह लेकर नमाज़ पढ़ने के लिए मुसल्ले पर बैठीं और उनकी रूह परवाज़ कर गई। वे डायबिटीज़ की पेशेंट थीं।
अल्लाह उनकी मग़फ़िरत फ़रमाये और हमें उनकी मौत से सबक़ लेकर जागने और ज़्यादा से ज़्यादा नेक अमल करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाये। आमीन

Sunday, July 11, 2010

Reply me किसका बता कुसूर ? -Anwer Jamal

  • कविता


किसका बता कुसूर ?

हीरे पन्ने माणिक मोती आसमान के तारे,

इस दुनिया में लोग जो दिखते ये सारे के सारे।

इनके बीच बिता कर जीवन रहा जो मुझ से दूर।। किसका बता कुसूर ?


मैंने तो यह कायनात ही जब तुझको दे डाली,

तेरे ही हित खड़ा रहा मैं, बन बग़िया का माली।

तूने फ़र्क़ किया अपनों में, जुल्म किये भरपूर ।। किसका बता कुसूर ?


इस दुनिया में आकर जब से होश संभाला,

भिन्न-भिन्न ही समझा तूने, मुझको गोरा काला।

थोड़ी सी बुद्धि पाकर ही, कितना किया गुरूर ।। किसका बता कुसूर ?


धरती के बाक़ी जीवों में, अक्षय नियम पाले,

साफ़ रहे कुदरत में जीकर, नहीं लगाये ताले।

मरे जिये अपनी दुनिया में, ले आनन्द भरपूर।। किसका बता कुसूर ?


बिना काम की बातों में ही, बुद्धि बहुत लगायी,

दूजे का श्रम हरने को, लंबी लड़ी लड़ाई।

सुख के लम्हे कुछ ही देखे, थककर चकनाचूर।। किसका बता कुसूर ?


तूने चांद-सितारे जाकर, निज आंखों से देखे,

बहुत जुटाए तथ्य समय के, तूने रक्खे लेखे ।

भूल गया औरों के दुख को, होकर तू मग़रूर।। किसका बता कुसूर ?


कितना ज़ोर लगाया तूने, शस्त्रास्त्र को पाने में,

उतना ज़ोर लगाता जो तू, सबको सखा बनाने में।

मनभावन बन जाता जीवन, खुशियों से भरपूर।। किसका बता कुसूर ?


श्रद्धा और विश्वास के साये, जीवन नाव चलाता,

इस जीवन को सुख से जीकर, फिर सद्गति को पाता।

मैं जब तुझको दिल में रखता, क्यूं तू रखता दूर।। किसका बता कुसूर ?


समय तेरी दहलीज़ पर आकर, बूढ़ा हो गया ‘श्याम‘,

चिंताओं की भीड़ में तुझको, कब आया आराम ।

जीवन खेल समझ कर खेला, परचिंता से दूर ।। किसका बता कुसूर ?


श्याम लाल वर्मा

से.नि., संयुक्त निदेशक, शिक्षा विभाग, राजस्थान

मासिक कांति, जून 2009 से साभार

आप इस मासिक पत्रिका की नमूना प्रति मुफ़्त मंगाने के लिये संपर्क कर सकते हैं -

प्रबंधक, ‘कांति मासिक‘

डी-314, दावत नगर,अबुल फ़ज़्ल इन्कलेव

जामिया नगर, नयी दिल्ली- 110025

फ़ोन- 011-26949430

---और इसी अंक से एक ग़ज़ल पेश-ए-खि़दमत है-

नहीं होतीं कभी साहिल के अरमानों से वाबस्ता

हमारी किश्तियां रहती हैं तूफ़ानों से वाबस्ता


कहीं मसली हुई कलियां, कहीं रौंदे हुए गुंचे

बहुत-सी दास्तानें हैं शबिस्तानों से वाबस्ता


हमारा ही जिगर है यह, हमारा ही कलेजा है

हम अपने ज़ख्म रखते हैं नमकदानों से वाबस्ता


न ले चल ख़ानक़ाहों की तरफ़ शैख़े-हरम मुझको

मुजाहिद का तो मुस्तक़बिल है मैदानों से वाबस्ता


अभी चलते-चलते देख लेते हैं ख़राशों को

अभी कुछ और ज़ंजीरें हैं दीवानों से वाबस्ता


मैं यूं रहज़न के बदले पासबां पर वार करता हूं

मेरे घर की तबाही है निगहबानों से वाबस्ता


मुवर्रिख़! तेरी रंग-आमेज़ियां तो खूब हैं लेकिन

कहीं तारीख़ हो जाए न अफ़सानों से वाबस्ता


मुहब्बत ख़ामुशी भी, चीख़ भी, नग़मा भी, नारा भी

ये एक मज़मून है कितने ही उन्वानों से वाबस्ता


‘हफ़ीज़े‘ मेरठी को कौन पहचाने कि बेचारा

न ऐवानों से वाबस्ता न दरबानों से वाबस्ता

Friday, July 9, 2010

The existence of God प्रकृति के किसी भी तत्व में ‘माइंड‘ नहीं पाया जाता, फिर प्रकृति में योजना और संतुलन कैसे पाया जाता है ? - Anwer Jamal

और वे कहते हैं कि हमारी इस दुनिया की ज़िंदगी के सिवा कोई और ज़िंदगी नहीं-हम मरते हैं और जीते हैं और हमें सिर्फ़ कालचक्र नष्ट करता है।और उन्हें इस विषय में कोई ज्ञान नहीं है , वे केवल कल्पना के आधार पर ऐसा कहते हैं । -अलजासिया,24


तज़्कीरूल-कुरआन, उर्दू से हिन्दी अनुवाद

हमेशा चीज़ें ज़ाहिर होती हैं और हक़ीक़त पोशीदा, गुप्त और रहस्य। घटनाएं दिखाई देती हैं और नियम उनके आवरण में छिपे होते हैं।

अक्सर लोगों की नज़र चीज़ों और घटनाओं के ज़ाहिर पर ही ठिठक जाती है। बहुत कम लोग होते हैं जिनकी अक्ल-ओ-निगाह उनमें काम कर रहे नियमों और उनमें छिपी हक़ीक़तों तक पहुंचती है।

सेब का पेड़ से गिरना एक घटना है जिसे अरबों-खरबों इनसान हज़ारों साल से देखते चले आए हैं। न्यूटन ने भी यह घटना देखी और उसकी अक्ल-ओ-निगाह गुरूत्वाकर्षण के उस नियम तक पहुंच गई जिसके तहत यह घटना घटित होती है। यह नियम तो उस समय भी मौजूद था जब लोग उसे दरयाफ़्त नहीं कर पाए।

बुलन्द हक़ीक़तों तक बहुत कम अक्लें पहुंच पाती हैं।

सबसे ज़्यादा बुलन्द हक़ीक़त ईश्वर है। वह परम सत्य है।

प्रकृति प्रकट है और ईश्वर रहस्य। कुदरत नज़र के सामने है और कुदरत वाला नज़र की पहुंच से परे।

जो ईश्वर को नहीं मानता, कुदरत को तो वह भी मानता है।

प्रकृति के किसी भी तत्व में ‘माइंड‘ नहीं पाया जाता, फिर प्रकृति में योजना और संतुलन कैसे पाया जाता है ?

नियम और व्यवस्था की मौजूदगी खुद बता रही है कि प्रकृति के अलावा कोई ‘हस्ती‘ है जो व्यवस्थापक है, जिसकी बुद्धि और शक्ति अतुलनीय है। जगत की प्रोग्रैमिंग इसी ‘हस्ती‘ ने की है। इस परम सत्य तक बहुत कम लोगों की पहुंच हो सकी है। ज़्यादातर लोग उसका नाम लेने के बावजूद अपने आचरण से यही साबित कर रहे हैं कि जैसे वे किसी ‘स्वामी‘ के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। जब यही लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ईश्वर के नाम की आड़ लेकर शोषण करते हैं तो इनके दुराचरण से घिन करने वालों को ईश्वर के वुजूद में भी शक होने लगता है। लेकिन यह भी केवल घटनाओं के ज़ाहिर पर ही ठिठक जाना हुआ।

हक़ीक़त हमेशा गहरी होती है और उस तक गहरी नज़र वाले ही पहुंच पाते हैं। इन्हीं को तत्वदर्शी और आरिफ़ कहा जाता है। जो ज़ाहिर से आगे नहीं बढ़ना चाहते, हक़ीक़त कभी उनके हाथ नहीं आती और जिन्हें हक़ीक़त से कम मंज़ूर नहीं है वे कभी महरूम नहीं रहते।

मिलियन डॉलर क्वेश्चन यह है कि

आप खुद को टटोलें कि आपको क्या चाहिए ?

सिर्फ़ ज़ाहिर या कि हक़ीक़त ?

Thursday, July 8, 2010

Charity परमेश्वर की नज़र में सच्चा दानी कौन होता है ? -Anwer Jamal


परमेश्वर की नज़र में सच्चा दानी कौन होता है ? वह अपनी वाणी में स्वयं उनकी पहचान बताते हुए कहता है -

और (नेक लोग) ईश्वर के प्रेम में खाना खिलाते हैं मिस्कीन, यतीम और क़ैदियों को। (वे कहते हैं कि) हम तो तुम्हें केवल परमेश्वर के लिए खिलाते हैं न तुमसे बदला चाहते हैं न शुक्रगुज़ारी। बेशक हम अपने रब से उस दिन का ख़ौफ़ करते हैं जो उदासी और सख्ती वाला होगा। -अद्-दहर,8-10
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आदमी किसी को कुछ देता है तो वह बदले में अपने लिए कुछ ज़रूर चाहता है। कभी तो वह समाज में अपनी ‘छवि निर्माण‘ के लिए लोगों की मदद करता है और कभी अपने मन की संतुष्टि के लिए ऐसा करता है। लोग उसकी वाहवाही करते हैं और ज़रूरतमंद उनके शुक्रगुज़ार होते हैं तो वे भी अपनी मदद में आगे और आगे बढ़ते चले जाते हैं और अगर उन्हें अपनी मदद के बदले में लोगों से ये चीज़ें नहीं मिलतीं तो उनका दिल मुरझा जाता है। उन्हें लगता है कि शायद उन्होंने मदद के लिए ‘सही आदमी‘ चुनने में ग़लती की है। जिस ऐलान के साथ वे पहले किसी की मदद करते हैं, फिर वैसा ही ऐलान करके वे बताते हैं कि अमुक आदमी ‘ग़लत‘ निकला। ऐसा करते हुए वे यह भी नहीं सोचते कि उनके लेख से किसी खुददार के मान को ठेस लग सकती है और जो आदमी पहले ही ‘आत्महत्या के विरूद्ध‘ जंग लड़ रहा हो, वह अपना हौसला हार भी सकता है।
ये लोग अपनी बड़ाई में जीते हैं। शायद इन्हें बुरा लगता है कि ‘मदद‘ के लिए गुहार लगाने वाला उनके साथ खुददारी और बराबरी के साथ बात करने की जुर्रत कैसे कर सकता है ?
दान देने वाला दयालु होता है और जहां दया होती है वहां क्षमा भी ज़रूर होती है। मदद पाने वाले से अगर कोई नामुनासिब बात सरज़द भी हो जाए तब भी उसे क्षमा किया जाना चाहिए। कड़वे हालात में उसके वचन भी कड़वे हो जाएं तो क्या ताज्जुब ?

इसके विपरीत जो लोग अपने रब के सच्चे बन्दे हैं वे अपना बदला भी अपने मालिक से ही चाहते हैं। बदले के दिन पर उनका यक़ीन उन्हें लोगों की तरफ़ से बेनियाज़ कर देता है। वे लोगों की मदद सिर्फ़ इसलिए करते हैं कि मालिक का हुक्म कि ज़रूरतमंदों की मदद की जाए। मालिक ने उनके माल में ज़रूरतमंदों का हक़ मुक़र्रर किया है और वे लोगों को उनका हक़ पहुंचाते हैं। इसके बदले में लोगों से शुक्रगुज़ारी तक नहीं चाहते। वास्तव में अपने रब के नज़्दीक यही लोग नेक और मददगार हैं। यही लोग सच्चे दानी हैं।

Wednesday, July 7, 2010

Islam is saviour of girlchild . कन्या भ्रूण-हत्या

कन्या भ्रूण-हत्या
आज गूगल में देख रहा था कि हिंदी दुनिया में क्या चल रहा है ?
इसी दरमियान इस लेख पर नज़र पड़ गयी और मैं इसे उठा लाया आपके लिए,
साभार http://www.islamdharma.org/article.aspx?ptype=B&menuid=7&arid=92
कन्या भ्रूण-हत्या

पाश्चात्य देशों की तरह, भारत भी नारी-अपमान, अत्याचार एवं शोषण के अनेकानेक निन्दनीय कृत्यों से ग्रस्त है। उनमें सबसे दुखद ‘कन्या भ्रूण-हत्या’ से संबंधित अमानवीयता, अनैतिकता और क्रूरता की वर्तमान स्थिति हमारे देश की ही ‘विशेषता’ है...उस देश की, जिसे एक धर्म प्रधान देश, अहिंसा व आध्यात्मिकता का प्रेमी देश और नारी-गौरव-गरिमा का देश होने पर गर्व है।

वैसे तो प्राचीन इतिहास में नारी पारिवारिक व सामाजिक जीवन में बहुत निचली श्रेणी पर भी रखी गई नज़र आती है, लेकिन ज्ञान-विज्ञान की उन्नति तथा सभ्यता-संस्कृति की प्रगति से परिस्थिति में कुछ सुधर अवश्य आया है, फिर भी अपमान, दुर्व्यवहार, अत्याचार और शोषण की कुछ नई व आधुनिक दुष्परंपराओं और कुप्रथाओं का प्रचलन हमारी संवेदनशीलता को खुलेआम चुनौती देने लगा है। साइंस व टेक्नॉलोजी ने कन्या-वध की सीमित समस्या को, अल्ट्रासाउंड तकनीक द्वारा भ्रूण-लिंग की जानकारी देकर, समाज में कन्या भ्रूण-हत्या को व्यापक बना दिया है। दुख की बात है कि शिक्षित तथा आर्थिक स्तर पर सुखी-सम्पन्न वर्ग में यह अतिनिन्दनीय काम अपनी जड़ें तेज़ी से फैलाता जा रहा है।

इस व्यापक समस्या को रोकने के लिए गत कुछ वर्षों से कुछ चिंता व्यक्त की जाने लगी है। साइन बोर्ड बनाने से लेकर क़ानून बनाने तक, कुछ उपाय भी किए जाते रहे हैं। जहां तक क़ानून की बात है, विडम्बना यह है कि अपराध तीव्र गति से आगे-आगे चलते हैं और क़ानून धिमी चाल से काफ़ी दूरी पर, पीछे-पीछे। नारी-आन्दोलन (Feminist Movement) भी रह-रहकर कुछ चिंता प्रदर्शित करता रहता है, यद्यपि वह नाइट क्लब कल्चर, सौंदर्य-प्रतियोगिता कल्चर, कैटवाक कल्चर, पब कल्चर, कॉल गर्ल कल्चर, वैलेन्टाइन कल्चर आदि आधुनिकताओं (Modernism) तथा अत्याधुनिकताओं (Ultra-modernism) की स्वतंत्रता, स्वच्छंदता, विकास व उन्नति के लिए; मौलिक मानवाधिकार के हवाले से—जितना अधिक जोश, तत्परता व तन्मयता दिखाता है, उसकी तुलना में कन्या भ्रूण-हत्या को रोकने में बहुत कम तत्पर रहता है।

कुछ वर्ष पूर्व एक मुस्लिम सम्मेलन में (जिसका मूल-विषय ‘मानव-अधिकार’ था) एक अखिल भारतीय प्रसिद्ध व प्रमुख एन॰जी॰ओ॰ की एक राज्यीय (महिला) सचिव ने कहा था: ‘पुरुष-स्त्री अनुपात हमारे देश में बहुत बिगड़ चुका है (1000:840, से 1000:970 तक, लेकिन इसकी तुलना में मुस्लिम समाज में यह अनुपात बहुत अच्छा, हर समाज से अच्छा है। मुस्लिम समाज से अनुरोध है कि वह इस विषय में हमारे समाज और देश का मार्गदर्शन और सहायता करें...।’

उपरोक्त असंतुलित लिंग-अनुपात (Gender Ratio) के बारे में एक पहलू तो यह है कि कथित महिला की जैसी चिंता, हमारे समाजशास्त्री वर्ग के लोग आमतौर पर दर्शाते रहते हैं और दूसरा पहलू यह है कि जैसा कि उपरोक्त महिला ने ख़ासतौर पर ज़िक्र किया, हिन्दू समाज की तुलना में मुस्लिम समाज की स्थिति काफ़ी अच्छी है। इसके कारकों व कारणों की समझ भी तुलनात्मक विवेचन से ही आ सकती है। मुस्लिम समाज में बहुएं जलाई नहीं जातीं। ‘बलात्कार और उसके बाद हत्या’ नहीं होती। लड़कियां अपने माता-पिता के सिर पर दहेज और ख़र्चीली शादी का पड़ा बोझ हटा देने के लिए आत्महत्या नहीं करती। जिस पत्नी से निबाह न हो रहा हो उससे ‘छुटकारा’ पाने के लिए ‘हत्या’ की जगह पर ‘तलाक़’ का विकल्प है और इन सबके अतिरिक्त, कन्या भ्रूण-हत्या की लानत मुस्लिम समाज में नहीं है।

मुस्लिम समाज यद्यपि भारतीय मूल से ही उपजा, इसी का एक अंग है, यहां की परंपराओं से सामीप्य और निरंतर मेल-जोल (Interaction) की स्थिति में वह यहां के बहुत सारे सामाजिक रीति-रिवाज से प्रभावित रहा तथा स्वयं को एक आदर्श इस्लामी समाज के रूप में पेश नहीं कर सका, बहुत सारी कमज़ोरियों उसमें भी घर कर गई हैं, फिर भी तुलनात्मक स्तर पर उसमें जो सद्गुण पाए जाते हैं, उनका कारण सिवाय इसके कुछ और नहीं हो सकता, न ही है, कि उसकी उठान एवं संरचना तथा उसकी संस्कृति को उत्कृष्ट बनाने में इस्लाम ने एक प्रभावशाली भूमिका अदा की है।
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Sunday, July 4, 2010

रब का मिज़ाज रहमत वाला है। उसका सच्चा बन्दा भी वही है जिसका मिज़ाज रहमत वाला है। - Anwer Jamal

मानवधर्म : पैग़म्बर की वाणी में
1. हजरत अबू हुरैरह रज़ि0 से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने कहा कि अल्लाह तआला क़ियामत के दिन (किसी बन्दे से) कहेगाः ”हे आदम के बेटे! मैं बीमार हुआ तूने मेरी बीमारपुर्सी नहीं की।“ वह बन्दा कहेगा कि हे रब! मैं तेरी बीमारपुर्सी कैसे करता तू तो सारे जगत का रब है? वह कहेगाः ”क्या तू नहीं जानता था कि मेरा अमुक बन्दा बीमार है तूने उसकी बीमारपुर्सी नहीं की? क्या तू नहीं जानता था कि अगर तू उसकी बीमारपुर्सी करता, तो अवश्य ही तू मुझे उसके पास पाता। हे आदम के बेटे! मैंने तुझसे खाना मांगा लेकिन तूने मुझे खाना नहीं खिलाया।” बन्दा कहेगा-हे रब! मैं तुझे खाना कैसे खिलाता तू तो जगत का रब है। वह कहेगाः ”क्या तुझे नहीं मालूम कि मेरे अमुक बन्दे ने तुझसे खाना मांगा लेकिन तूने उसे खाना नहीं खिलाया। क्या तूने बात न जानी कि अगर तूने उसे खिलाया होता, तो उस (के सवाब) को मेरे पास पाता। हे आदम के बेटे! मैंने तुझसे पानी मांगा लेकिन तूने मुझे पानी न पिलाया।“ बन्दा कहेगा- हे रब, मैं तुझे कैसे पानी पिलाता तू तो सारे जगत का रब है। वह कहेगाः ‘‘मेरे अमुक बन्दे ने तुझसे पानी मांगा लेकिन तूने उसे न पिलाया अगर तू उसे पानी पिलाता तो उस (के सवाब) को मेरे पास पाता।“ - मुस्लिम

2. हज़रत अबू हुरैरह रज़ि0 से रिवायत है कि नबी सल्ल0 ने कहा कि जब कोई मुसलमान अपने किसी बीमार भाई की बीमारपुर्सी करता है या उससे मुलाक़ात करता है तो अल्लाह तआला कहता हैः ‘‘तुझे मुबारक हो और तेरा यह चलना मुबारक है। तूने अपना घर जन्नत में बना लिया।“ -तिरमिज़ी
रब का मिज़ाज रहमत वाला है। उसका सच्चा बन्दा भी वही है जिसका मिज़ाज रहमत वाला है।इनसान अपने रब की कुदरत का भी निशान है और उसकी रहमत और मुहब्बत का भी। उसने इनसान से ऐसी और इतनी मुहब्बत की है जिसे इनसान पूरे तौर पर कभी समझ नहीं पायेगा। खुदा इनसानों से भी यही चाहता है कि वो भी आपस में प्यार-मुहब्बत का बर्ताव करें। उसने ज़मीनो-आसमान की हर चीज़ को इनसान को नफ़ा पहुंचाने में लगा दिया है। बहुत सी चीज़ों के भण्डार उसने खुद इनसानों के ही हवाले कर दिये हैं जिन्हें बरतने के लिए बांटने की ज़िम्मेदारी भी उसने इनसानों पर ही डाल दी है। ज़िन्दगी के लिए ज़रूरी बुनियादी चीज़ों के ग़लत बंटवारे की वजह से कुछ लोगों पर तो बहुत कुछ हो जाता है जबकि बहुत से लोगों के पास कुछ भी नहीं होता। कभी-कभी अपनी ग़लत आदतों या ग़लत फैसलों के नतीजे में भी इनसान बदहाली का शिकार हो जाता है। और कभी यही बदहाली हालात के उतार-चढ़ाव के नतीजे में इनसान को घेर लेती है। वजह कुछ भी हो लेकिन बुरे हाल से गुज़रने वाला शख़्स अगर आपसे मदद मांगता है तो हैसियत के मुताबिक़ उसकी मदद करना अपकी ज़िम्मेदारी है चाहे उसका मत, प्रदेश, जाति और भाषा कुछ भी क्यों न हो? जैसे नज़र आने वाले शख़्स के पीछे आंख से नज़र न आने वाला मालिक मौजूद है ऐसे ही इस नज़र आने वाली दुनिया के पीछे आंख से दिखाई न देने वाली आखि़रत (परलोक) भी पोशीदा है। जो कुछ आप आज कर रहे हैं, वह कल आपके ही काम आने वाला है। कल जब क़ियामत के रोज़ आप अपने रब के दरबार में पेश किये जाएंगे तो वहाँ तिलावते-कुरआन, नमाज़, रोजा, हज और ज़िक्र व तस्बीह को भी जांचा परखा और तौला जाएगा और यह भी देखा जाएगा कि सच्चे मालिक का इतना नाम लेने वाले ने अपने मालिक के मिज़ाज और उसकी मन्शा को कितना पहचाना है और वह मालिक के रंग में खुद को कितना रंग पाया है? रब का मिज़ाज रहमत वाला है। उसका सच्चा बन्दा भी वही है जिसका मिज़ाज रहमत वाला है। जहां लोगों के मिज़ाज में रहमत और हमदर्दी होगी वहां ज़ुल्म-ज़्यादती, ग़रीबी, दुख और जुर्म बाकी नहीं रह सकते। दुखी लोगों के दरम्यान रहते हुए भी उनके दुख की तरफ़ से आँखे बंद करके ध्यान में लीन रहने वाला भक्त अपने पालनहार के स्वभाव से अपरिचित है, चाहे उसके कितने ही चक्र जाग्रत हों और कितने ही लोग उसे गुरू क्यों न मानते हों?
न तो आज वो अपने लिए कुछ भेज रहा है और न ही कल उसे कुछ मिलने वाला है।

Saturday, July 3, 2010

Thankfullness परमेश्वर कहता है कि - अगर तुम शुक्रगुज़ार हुए तो हम ज़्यादा देंगे। ( Anwer Jamal )

परमेश्वर का नियम है कि -

बेशक मुश्किल के साथ आसानी है। -अलकुरआन

और परमेश्वर यह भी कहता है कि -
अगर तुम शुक्रगुज़ार हुए तो हम ज़्यादा देंगे। -अलकुरआन
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अल्लाह का शुक्र है कि ‘अनम‘ का बुख़ार भी जाता रहा और वह दूध भी पीने लगी है। शहर के मशहूर चाइल्ड स्पेशलिस्ट ऐलोपैथ डा. एम. अंसारी को जब पैदाइश के बाद दिखाया गया तो उन्होंने तुरंत हाथ खड़े कर दिये। एक सच्चे होम्योपैथ डा. प्रभात कुमार अग्रवाल के ट्रीटमेंट से अनम का जख्म लगातार हील होता जा रहा है। होम्योपैथी नॉनसेंस नहीं है अलबत्ता इसे समझने के लिये हायर सेंस चाहिये।
प्रिय प्रवीण जी की आमद और भाई तारकेश्वर गिरी जी की वापसी मेरे लिये खुशी और राहत का बायस है। जनाब सतीश सक्सेना जी और जनाब उमर कैरानवी के जज़्बात से बेहद मुतास्सिर हूं। लगता है कि इन्सानियत अभी ज़िन्दा है।
दीगर भाइयों के नेक ख़यालात ने मेरा हौसला बढ़ाया है।
सभी लोग मेरे लिये खुदा की बेहतरीन नेमत हैं जिसपर मैं मालिक का शुक्रगुज़ार हूं। मालिक हम सबको सतपथ का राही बनाए और मंज़िल तक पहुंचाये । ‘आमीन‘

Thursday, July 1, 2010

The statement of God ‘हम‘ ज़रूर आज़मायेंगे तुमको ख़ौफ़ और भूख से और कुछ माल और जान के नुक्सान से और फलों की पैदावार के घाटे में भी , ऐसे मौक़े पर सब्र करने वाले को खुशख़बरी सुना दो। -अनवर जमाल

हरेक आदमी को वही मिलेगा जिसका वह पात्र होगा। पात्रता सिद्धि के लिये नीयत और कर्म ही आधार बनते हैं। परमेश्वर सावधान करते हुए कहता है -


क्या तुमने यह समझ रखा है कि जन्नत में बस यूं ही चले जाओगे जबकि तुम पर अभी वह हालात नहीं आये जो तुमसे पहले लोगों पर आ चुके थे उन्हें सख्त तंगदस्ती का सामना पड़ा और बड़े बड़े नुक्सान और तकलीफ़ें उठानी पड़ीं और उन्हें खंगाल कर ऐसा हिला डाला गया कि वक्त के रसूल और उनके ईमान वाले साथी पुकार उठे कि अल्लाह की मदद कब आयेगी ? जान लो कि बेशक अल्लाह की मदद अब क़रीब है।      -अलबक़रह, 214

‘हम‘ ज़रूर आज़मायेंगे तुमको ख़ौफ़ और भूख से और कुछ माल और जान के नुक्सान से और फलों की पैदावार के घाटे में भी , ऐसे मौक़े पर सब्र करने वाले को खुशख़बरी सुना दो। -अलबक़रह, 155
                                अनुवाद : मौलाना अब्दुल करीम पारीख साहब रह.
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दुनिया की ज़िन्दगी में इनसान को मुख्तलिफ़ हालात पेश आते हैं। मोमिन जानता है कि यह ज़िन्दगी तरबियत और इम्तेहान का मरहला है। वह बेहतर अंजाम के लिये नेक रास्ते पर डटा रहता है। क़दम क़दम पर उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और वह सब्र के साथ नेकी के लिये, लोगों की भलाई के लिये त्याग करता है, अपना जान माल और वक्त खर्च करता है। किसी भी मुश्किल में न तो वह मालिक की तय की गई सीमा से बाहर निकलता है और न ही अपने मालिक से शिकवा ही करता है। वह अपने मालिक से अपनी बेहतरी के लिये दुआ और फ़रियाद ज़रूर करता है लेकिन वह किसी भी हालत के लिये मालिक से आग्रह नहीं करता कि यह काम ऐसे ही हो या इतने समय में ज़रूर हो। बन्दगी नाम है बिना शर्त पूरे समर्पण का। किस दुआ को कब और कैसे पूरा करना है, बन्दे से ज्यादा इसे मालिक बेहतर जानता है।
नेक बन्दों पर आने वाले मुश्किल हालात उनकी आज़माइश हैं , उनके विकास और निखार का सामान हैं जबकि ज़ालिम और पापी लोगों पर पड़ने वाली मुसीबतें ही नहीं बल्कि उन्हें मिलने वाली राहतें तक मालिक की यातना होती हैं। लोग मुसीबतों को तो यातना के रूप में जान लेते हैं लेकिन राहतों की शक्ल में भी सज़ा दी जा सकती है इसे हरेक नहीं जान सकता सिवाय ‘आरिफ़ बन्दों‘ के , जिन्हें तत्वदृष्टि प्राप्त है। इसी बोध के कारण ‘आरिफ़ मोमिन‘ मुसीबतों में भी विचलित नहीं होते, उनके दिलों को क़रार रहता है जबकि ज़ालिम पापियों के दिल राहतों में भी बेचैन और बेक़रार रहते हैं।
इससे बड़ी सज़ा किसी इनसान के लिये क्या हो सकती है कि वह अपने जन्म का मूल उद्देश्य पूरा करने से ही वंचित रह जाये ? और उससे उसका मालिक नाराज़ हो ?
और सबसे बड़ी कामयाबी यह है कि इनसान अपने जन्म का मक़सद पूरा कर ले और उससे उसका मालिक राज़ी हो जाये। यह कामयाबी सिर्फ़ मोमिन को ही नसीब होती है। जिसे न तो अपने मालिक पर यक़ीन है और न ही वह उसके बताये रास्ते पर क़दम आगे बढ़ाता है, उसे कामयाबी कैसे नसीब हो सकती है?
पहले के लोगों को भी इम्तेहान से गुज़रना पड़ा है। हर ज़माने में यह नियम लागू रहा है और आज भी है। पालनहार की मुहब्बत इस इम्तेहान को आसान बना देती है। और मुहब्बत तो चीज़ ही ऐसी है कि हरेक दर्द और तकलीफ़ का अहसास लज़्ज़त में बदल जाता है।

... अब कुछ अनम के बारे में
अनम बीमार है। कल और आज उसे बुख़ार रहा है। दवा के साथ साथ उसके बदन को पानी में भिगोये हुए कपड़े से साफ़ किया गया। कल उसका रंग पीला पड़ गया था और आज सुबह से उसने अपनी मां का दूध पकड़ना भी छोड़ दिया था। मां का दूध फ़ीडर के ज़रिये उसने थोड़ा थोड़ा करके दो बार लिया है। मैं दूसरे शहर में था मुझे सुबह घर से फ़ोन किया गया कि अनम की हालत ज़्यादा ही ख़राब है। मैं तुरन्त वापस आ गया। आकर देखा तो वह लेटी थी। नींद कम और बेहोशी की हालत ज़्यादा है।
दुआ चाहिये। दवा चल ही रही है।