सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



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Wednesday, August 4, 2010

I like Ramchandra ji श्री रामचन्द्र जी के प्रति मेरा अनुराग और चिंतन - Anwer Jamal


ब्लॉग जगत में बाबरी मस्जिद को लेकर बहस चल रही है तो राम मंदिर और अयोध्या का ज़िक्र तो आना ही है। ऐसे समय में मैं श्री रामचन्द्र जी के बारे में अपने अनुराग को साफ़ कर देना ज़रूरी समझता हूं।
जीवन की पाठशाला वाले भावेश जी ने बताया है कि पहले रामायण पत्तियों पर लिखी हुई थी, बाद में वे पत्तियां हिल गईं और कई जगह अर्थ का अनर्थ हो गया। जिन विद्वानों ने रामकथा पर रिसर्च की है वे प्रमाण सहित बताते हैं कि रामायण में व्यापक स्तर पर घटत-बढ़त हुई है। इसी कारण मैं रामायण को अक्षरशः सत्य नहीं मानता। न तो मैं श्री रामचन्द्र जी को सर्वज्ञ ईश्वर का अवतार मानता हूं और न ही मैं यह मानता हूं कि उन्होंने जीवन में किसी पर कभी जुल्म किया होगा , जैसा कि रामायण के आधार पर दलित बंधु या सरिता-मुक्ता का पब्लिशर मानता है।

मैं मानता हूं कि श्री रामचन्द्र जी अपने काल के एक आदर्श प्रजावत्सल राजा रहे होंगे। उनके काम की वजह से ही जनता ने उन्हें अपने दिल में जगह दी और वे मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाये। वे अपने जीवनकाल में कई बार ब्राह्मणों से भिड़े और एक ब्राह्मण वेदभाष्यकार राजा रावण का अंत भी किया। इसी कारण से ब्राह्मणों ने उनका जीना हराम कर दिया और उनके जीवन का अंत भी एक ब्राह्मण दुर्वासा के ही कारण हुआ। उनके बाद ब्राह्मणों ने उनकी जीवनी लिखने के नाम पर ऐसे प्रसंग उनके विषय में लिख दिये जिसकी वजह से नारी और समाज के कमज़ोर तबक़ों के अलावा बुद्धिजीवी भी उन पर आरोप लगाने लगे, उन्हें ग़लत समझने लगे। श्री रामचन्द्र जी ग़लत नहीं थे । ग़लत थे वे लोग जिन्होंने उनके बारे में मिथ्या बातें लिखीं। श्री रामचन्द्र जी अयोध्या में शांति चाहते थे और उन्होंने सारे राजपाट और वैभव को ठुकराकर यह बता भी दिया कि वे लालची और युद्धाकांक्षी नहीं हैं।
इस देश की जनता भोली है और नेता जैसे हैं उन्हें सब जानते हैं। जनता सुख चैन , रोज़गार और सुरक्षा चाहती है। नेता इसका वादा तो हमेशा करते हैं लेकिन दे आज तक नहीं पाये। यह जनता अपने स्वरूप का बोध न कर ले , एक न हो जाये , इसलिये इसे बांटना और आपस में लड़ाना उनकी मजबूरी है और अफ़सोस की बात यह है कि हम न चाहते हुए भी आपस में टकराते रहते हैं।
आज भारत अशांत पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल और कठोर चीन से घिरा हुआ है। देश के अन्दर भी नक्सलवाद जैसे बहुत से हिंसक आंदोलन चल रहे हैं। हरेक सूबे नौजवान असंतुष्ट हैं। देश के हालात नाज़ुक हैं। धर्म मंच से जुड़े लोगों को ऐसे समय में लोगों को प्रेम और एकता का संदेश देना चाहिये। शैतान के दांव बहुत घातक होते हैं। उसके दांव-घात को नाकाम करना चाहिये।
हर चीज़ इतिहास के दायरे में नहीं आ सकती है। इनसानी आबादी इतिहास लेखन से भी पहले से इस ज़मीन पर आबाद है। हर क़ौम में नबी आये हैं, सुधारक और नेक आदमी हुए हैं, पवित्र कुरआन ऐसा कहता है। बाद के लोगों ने उनके बारे में बहुत अतिश्योक्ति से काम लिया और उन्हें बन्दगी के मक़ाम से उठाकर मालिक ही ठहरा दिया।
देवबंद के आलिम श्री रामचन्द्र जी और श्री कृष्ण जी का सम्मान करते हैं और कहते हैं कि हो सकता है कि वे अपने दौर के नबी रहे हों क्योंकि कुल 1,24,000 नबी हुए हैं। इसलाम में नबी का पद इनसानों में सबसे बड़ा होता है।
ईश्वर, धर्म और महापुरूषों ने सदा लोगों क्षमा,प्रेम और त्याग की तालीम दी है। उनके नाम पर लड़ना-लड़ाना खुद को मालिक की नज़र से गिराना है।
कोर्ट कुछ भी फ़ैसला दे या देश में आग लगाउ तत्व कुछ भी कहें, मुसलमान को यह देखना है कि वह शांति को कैसे क़ायम रखेगा क्योंकि शांति उसके धर्म ‘इसलाम‘ का पर्याय है, शांति भंग करना या उसे होते देखना स्वयं इसलाम पर चोट करना या होते देखना है, जिसे कोई मुसलमान कभी गवारा नहीं करता और न ही उसे करना चाहिये।
वक्त की ज़रूरत है शांति। शांति बनी रहे तो देश का बौद्धिक विकास मानव जाति को उस मक़ाम पर ले जाकर खड़ा कर देगा जहां वे सत्य का इन्कार न कर सकेंगे। बहुत से पाखण्ड तो हमारे देखते-देखते दम तोड़ भी चुके हैं और बाक़ी कुरीतियां अपने समय का इंतेज़ार कर रही हैं। मुसलमान भी सब्र करें और वे काम करें जो करने के काम हैं और उस पर फ़र्ज़ किये गये हैं।
इनमें सबसे पहला काम हरेक जुर्म और पाप से तौबा है, अपना सुधार निखार और विकास है , दूसरों के साथ भी वैसा ही व्यवहार करना है जैसा कि एक मुसलमान अपने लिये पसंद करता है। देश उनका दुश्मन नहीं है और न ही सारे देशवासी और थोड़ा बहुत उठापटख़ तो हर घर में चलती ही है, उसे हिकमत और सूझबूझ से सुलझाना चाहिये।
देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को कोई समझे या न समझे मुसलमान को तो समझना ही चाहिये। श्री रामचन्द्र जी ने भी यही संदेश अपने आचरण से दिया है, उनके अच्छे आचरण को अपनाना उनके प्रति अपने अनुराग को प्रकट करने के लिये मैं सबसे उपयुक्त तरीक़ा मानता हूं।
हदीस पाक में आया भी है कि हिकमत मोमिन की मीरास है, जहां से भी मिले ले लो।

Saturday, July 17, 2010

At the time of marriage ‘सीता जी की आयु 6 वर्ष थी‘, जो लोग बाल्मीकि रामायण को प्रमाण मानते हैं वे इस तथ्य को झुठला नहीं सकते।-Anwer Jamal

दुहिता जनकस्याहं मैथिलस्य महात्मनः।। 3 ।।

सीता नाम्नास्मि भद्रं ते रामस्य महिषी प्रिया ।।
‘ब्रह्मन ! आपका भला हो। मैं मिथिलानरेश  जनक की पुत्री और अवध नरेश श्री रामचन्द्र जी की प्यारी रानी हूं। मेरा नाम सीता है‘।। 3 ।।

उषित्वा द्वादश समा इक्ष्वाकूणां निवेशने ।। 4 ।।

भुन्जाना मानुषान् भोगान् सर्वकामसमृद्धिनी ।।
‘विवाह के बाद बारह वर्षों तक इक्ष्वाकुवंशी महाराज दशरथ के महल में रहकर मैंने अपने पति के साथ सभी मानवोचित भोग भोगे हैं। मैं वहां सदा मनोवांछित सुख-सुविधाओं से सम्पन्न रही हूं‘।। 4 ।।



तत्र त्रयोदशे वर्षे राजातन्त्रयत प्रभुः।। 5 ।।

अभिषेचयितुं रामं समेतो राजमन्त्रिभिः ।।

‘तेरहवें वर्ष के प्रारम्भ में सामर्थ्यशाली महाराज दशरथ ने राजमन्त्रियों से मिलकर सलाह की और श्रीरामचन्द्र जी का युवराज पद पर अभिषेक करने का निश्चय किया‘ ।। 5 ।।



मम भर्ता महातेजा वयसा पञ्चविंशकः ।। 10 ।।

अष्टादश हि वर्षाणि मम जन्मनि गण्यते ।।
‘उस समय मेरे महातेजस्वी पति की अवस्था पच्चीस साल से ऊपर की थी और मेरे जन्मकाल से लेकर वनगमनकाल तक मेरी अवस्था वर्ष गणना के अनुसार अठारह साल की हो गयी थी ।। 10 ।।
श्रीमद्बाल्मीकीय रामायणे, अरण्यकाण्डे, सप्तचत्वारिंशः सर्गः, पृष्ठ 598 , सं. 2051 तेरहवां संस्करण,
 मूल्य पैंतालीस रूपये
अनुवादक- साहित्याचार्य पाण्डेय पं. रामनारायण दत्त शास्त्री ‘राम‘
प्रकाशक - गीता प्रेस , गोरखपुर,
रामायण के मूल श्लोक और उनका अनुवाद आपके सामने रख दिये गये हैं। आप खुद फ़ैसला कर सकते हैं। कवि ने क्यों सीता जी को विवाह के समय 6 वर्ष का दिखाना ज़रूरी समझा, इस विषय पर मैं अपना नज़रिया बाद में रखूंगा।
दुख होता है यह देखकर कि
 जो लोग रामायण के ब्लॉग चला रहे हैं उन्हें भी सही तथ्य का ज्ञान नहीं है
 या फिर दूसरे लोगों को भ्रम में डाले रखने के लिए खुद को अनभिज्ञ दिखाते हैं।
रामचन्द्र जी का असली चरित्र रमणीय और आदर्श ही होना चाहिये, ऐसा मेरा मानना है। बौद्धिक जागरण के इस काल में तर्क को परंपरा का हवाला देकर नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। रामचन्द्र जी के चरित्र को सामने लाने के लिए देश की रामकथाओं के साथ साथ मलेशिया आदि विदेशों में प्रचलित रामकथाओं पर भी नज़र डालना ज़रूरी है। यदि ऐसा किया जाए तो सच भी सामने आएगा, रामकथा का व्यापक प्रभाव भी नज़र आएगा और हो सकता है कि श्री रामचन्द्र जी का वास्तविक जन्म स्थान वर्तमान अयोध्या के अलावा कोई और जगह निकले, तब राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद भी स्वतः ही हल हो जाएगा। सच से मानवता का कल्याण होगा। सच कड़वा होता है तब भी इसे ग्रहण करना चाहिये क्योंकि सच हितकारी होता है, कल्याणकारी होता है, समस्याओं से मुक्ति देता है।