सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Wednesday, April 14, 2010

पत्नी के मन को भी तो समझो । उसे कोई प्रॉब्लम भी तो हो सकती है ? Falsehood of love jihad .


ब्लॉग के ज़रिये हम दिलों के बीच मौजूद दीवारों को गिरा सकते हैं । हमारे लेखन का मक़सद भी यही है लेकिन कुछ लोगों का मक़सद यह है कि उन ख़ताओं के लिए भी ज़िम्मेदार भी मुसलमानों को ठहराओ , जिनके गुनाहगार वास्तव में वे खुद हैं ।
किसी हमदर्द के समझाने से मैं शांत हो गया था । मैंने ऐलान 3 दिन के लिए किया था लेकिन मैंने और ज़्यादा मोहलत दी ।
लेकिन मेरी इस ख़ामोशी के अंतराल में एक विषपुरूष ने पूरी पोस्ट क्रिएट कर दी कि मुसलमान संगठित तरीक़े से हिन्दू लड़कियों को मुसलमान बना रहे हैं ।
बताइये , ऐसा क्यों किया गया ?
क्या ऐसे आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला कभी समाप्त हो पाएगा ?
क्या ऐसे में मुझे जवाब देना चाहिये था या फिर मैं चुप लगा जाता ?
कोई हिन्दू भाई इसका उचित जवाब देता तो शायद मैं चुप रह जाता लेकिन मजबूरन मुझे इन आरोपवादियों को सच्चाई बतानी पड़ी और उसमें मैंने जानबूझकर वेदों का नाम तक नहीं लिया ।
वेदों का नाम नहीं लिया तो भाई अमित शर्मा बिगड़ गये बोले कि आपने अपने ब्लॉग का नाम वेद कुरआन क्यों रखा ?
इस ब्लॉग पर आप ख़तना , लिंगाग्र, स्तंभन और वीकनेस का ज़िक्र क्यों कर रहे हैं ?
आप अपने ब्लॉग का नाम बदलिए ।
मैं तो अमित शर्मा जी के अन्दर बिल्कुल मुल्ला मौलवियों जैसी शर्मो-हया देखकर दंग ही तो रह गया ।
सोचता रहा कि क्या जवाब दूं ?
क्या इन्होंने सचमुच वेद नहीं पढ़े ?
अगर पढ़े हैं तो लिंगाग्र जैसे नॉर्मल वर्ड्स पर इस तरह लजाने का नाटक क्यों कर रहे हैं ?
अगर कोई समस्या समाज में मौजूद है और उसका समाधान भी है , तो उसका ज़िक्र क्यों न किया जाएगा ?
हमने तो संक्षिप्त में ज़िक्र किया है , लेकिन कोर्स में तो पूरी संरचना दी गई है जिसे सभी भाई बहन पढ़ते हैं और मां बाप ऊँची फ़ीस देकर पढ़ाते हैं और खुश होते हैं कि हमारे बच्चे विज्ञान पढ़ रहे हैं ।
क्या हमारे पूर्वज कुछ कम वैज्ञानिक थे ?
जिस लिंग की संरचना और कार्यों पर पश्चिमी वैज्ञानिक आज प्रकाश डाल रहे हैं उसकी विवेचना तो हमारे मनीषी हज़ारों या अरबों साल पहले ही कर चुके हैं ।
न सेशे यस्य रोमशं निषेदुषो विजृम्भते ,
सेदीशे यस्य रम्बतेऽन्तरा सक्थ्या कपृद विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
ऋग्वेद 10-86-17
अर्थात वह मनुष्य मैथुन करने में सक्षम नहीं हो सकता , जिस के बैठने पर लोमयुक्त पुरूषांग बल प्रकाश करता है । वही समर्थ हो सकता है , जिसका पुरूषांग दोनों जांघों के बीच लंबायमान है ।
हमने तो वेदों में आर्य नारी को भी ‘ार्माते लजाते हुए नहीं देखा -
उपोप मे परा मृश मा मे दभ्राणि मन्यथाः ,
सर्वामस्मि रोमशा गन्धारीणामिवाविका ।
ऋग्वेद 1- 126- 7
अर्थात मेरे पास आकर मुझे अच्छी तरह स्पर्श करो । यह न जानना कि मैं कम रोमवाली अतः भोग के योग्य नहीं हूं । मैं गांधारी मेषी ( भेड़ ) की तरह लोमपूर्णा ( रोमों से भरी हुई ) और पूर्ण अवयवा ( जिसके अंग पूर्ण यौवन प्राप्त हैं ) हूं ।
अफ़सोस श्री अमित शर्मा जी के हाल पर । मुझे तो लगता है कि उन्होंने शायद आज तक गर्भाधान संस्कार भी न किया होगा अन्यथा वे इस मन्त्र को ज़रूर जानते । सनातन धर्म पुस्तकालय , इटावा द्वारा 1926 में छपवाई गई ‘ ‘षोडष संस्कार विधि‘ के अनुसार गर्भाधान संस्कार में यह मन्त्र लेटी हुई पत्नी की नाभि के आसपास हाथ फेरते हुए 7 बार पढ़ा जाता है ।
ओं पूषा भगं सविता मे ददातु रूद्रः कल्पयतु ललामगुम ।
ओं विष्णुर्योनिं कल्पयतु त्वष्टा रूपाणि पिंशतु ।
आसिंचतु प्रजापतिर्धाता गर्भं दधातु ते ..
ऋग्वेद 10-184-1
अर्थात पूषा और सविता देवता मुझे भग ( स्त्री की योनि ) दें , रूद्र देवता उसे सुन्दर बनाए । विष्णु स्त्री की योनि को गर्भ धारण करने योग्य बनाए , त्वष्टा गर्भ के रूप का निश्चय करे , प्रजापति वीर्य का सिंचन करे और धाता गर्भ को स्थिर करे ।
देखा अमित जी ! आप तो मात्र वेदों की भावना को आत्मसात न कर पाने के कारण शर्मा रहे थे वर्ना ऐसी कोई बात नहीं है और न ही मुझे अपने ब्लॉग का नाम ही बदलने की ज़रूरत है ।

भाई अमित जी को तो इसमें भी खोट निकालना था और बताना था कि महान तो केवल हम हैं । सो उन्होंने हमें इल्ज़ाम दे डाला -
हम गर्भाधान संस्कार करतें है,तो वोह भी हमारा एक सम्यक रीती से निभाया जाने वाला धार्मिक संस्कार है. लेकिन आप जिस परम्परा का अनुगमन करतें है वहाँ काम, वासना की पूर्ति के लिए प्रयोग किया जाता है ,और उसके आवश्यक संस्कार के रूप में लिंगाग्र को कपडे से रगड़कर स्थंबन का स्वाभाव विकसित किया जाता है, ताकि चार चार प्रियतमाओं सहित खुद की भी वासना पूर्ति हो सके.

बृहदारण्यक उपनिषद , 6-4-7 के अनुसार
स्त्री यदि मैथुन न करने दे तो उसे उस की इच्छा के अनुसार वस्त्र आदि दे कर उसके प्रति प्रेम प्रकट करे । इतने पर भी यदि वह मैथुन न करने दे तो उसे डंडे या हाथ से ( थप्पड़ , घंूसा आदि ) मारकर उसके साथ बलपूर्वक समागम करे । यदि यह भी संभव न हो तो ‘मैं तुझे शाप दे दूंगाा , तुम्हें वंध्या अथवा भाग्यहीना बना दूंगा ‘ - ऐसा कहकर ‘इंद्रियेण‘ इस मंत्र का पाठ करते हुए उसके पास जाए । उस अभिशाप से वह ‘दुर्भगा‘ एवं वंध्या कही जाने वाली अयशस्विनी ( बदनाम ) ही हो जाती है ।
अब कहिये , क्या यही है गर्भाधान की सम्यक रीति ?
अरे भाई , क्यों देवताओं की तरह कामातुर हो रहे हो ?
पत्नी के मन को भी तो समझो । उसे कोई प्रॉब्लम भी तो हो सकती है ?
पहले अपनी पत्नी के मन को समझना सीखो । फिर वे न किसी इच्छाधारी के पास जायेंगी और न किसी मुसलमान के पास । तब आपके दिमाग़ से लव जिहाद का फ़र्ज़ी डर भी निकल जाएगा ।
कृप्या अपनी लड़कियों को बदनाम न करें , उन्हें अच्छी बातें सिखायंे ।
लेकिन आप अच्छी बातें सिखाएंगे किस किताब से ?
सब जगह तो उपरोक्त सामग्री भरी पड़ी है ।

40 comments:

Amit Sharma said...

फिर वही बात जमाल साहब आपको हर जगह काम ही काम(वासना युक्त ) ही क्यों दिखाई देता है. बार बार एक ही बात क्यों सिखलानी पड़ती है की वेद एक सम्पूर्ण ज्ञान है जिसमें जीवन के हर एक पक्ष का समावेश है. आप तो ऐसे उचल कूद मचा रहे है जैसे की ७वी ८वी में पड़ने वाला उपरी क्लासेस में पदाई जाने वाली जीव विज्ञान विषयक की पुस्तक को पढकर हैरान हो जाये .
जब वेद जीवन के हर पक्ष का विवेचन कर रहें है तो पति पत्नी के बीच होने वाली मीठी नोकझोंक का तरीका भी सिखाएगा, यहाँ मारने कूटने की बात नहीं आई है बंधु . गृहस्थ में पति पत्नी के बीच मान-मनुहार आदि जो रस्वर्धक सम्यक क्रियाये है उनका उल्लेख है. मारण का उपदेश नहीं है ताडन का उल्लेख है,और ताडन मारण-कूटन नहीं होता मेरे भाई .यहां 'काम' का अमर्यादित आवेग नहीं है। शास्त्रों में जो ६४ कलाओं का ज्ञान प्रदान किया गया है उनमे एक काम कला भी है. उसका अध्यन भी आवश्यक है, उसमें पति-पत्नी की इन सामान्य प्रीतिवर्धक चेस्ताओं का वर्णन है ,इसमें आप इतने क्यों उद्विग्न है. इतनी सामान्य सी बात आपके दिमाग में क्यों कर नहीं घुसी.भारतीय संस्कृति में प्रजवर्धन के लिए प्रजनन क्रिया को यज्ञ बतलाया है.
मनोवांछित सन्तान की प्राप्ति के लिए मन्त्रों का विवेचन है। मन्त्र द्वारा गर्भाधान करना, गर्भनिरोध करना तथा स्त्री प्रसंग को भी यज्ञ-प्रक्रिया के रूप में वर्णित किया गया है। इसमें कहीं भी अश्लीलता-जैसी कोई बात नहीं है। सृष्टि का सृजन और उसके विकास की प्रक्रियायों को शुद्ध और पवित्र तथा नैसर्गिक माना गया है। जो व्यक्ति प्रजनन की इच्छा से, उसकी समस्त मर्यादाओं को भली प्रकार समझते हुए रति-क्रिया में प्रवृत्त होता है, उसे प्रजनन यज्ञ का पुण्य अवश्य प्राप्त होता है। भारतीय संस्कृति में इस प्रजनन यज्ञ को सर्वाधिक श्रेष्ठ यज्ञ का स्थान प्राप्त है। यहां 'काम' का अमर्यादित आवेग नहीं है। ऐसी अमर्यादित रति-क्रिया करने से पुण्यों को क्षय होना माना गया है। ऐसे लोग सुकृतहीन होकर परलोक से पतित हो जाते हैं।
बाकी तो आपका अध्यन सामने है ही की आप किस प्रकार वासना के अंधे हो चारों तरफ मरे मरे फिर रहे हो.
भगवान् आपको सद्बुद्धि दे .

Amit Sharma said...

वेद कल्पवृक्ष है. जिस तरह कल्पवृक्ष से जो माँगा जाये वही प्रदान करता है. उसी प्रकार वेद रूपी कल्पवृक्ष आपकी कामविषयक लोलुपताओं को शांत कर रहा है. याद रखिये इस अखंड अनन्त ब्रह्माण्ड में ऐसा कोई विषय नहीं है, जिसका विवेचन वेद में नहीं हो. इसी लिए तो ये पूर्ण ज्ञान कहलाते है .

Anonymous said...

आपने कहा है की कोई हिन्दू भाई इसका उचित जवाब देता तो शायद मैं चुप रह जात,क्या इन लोगो को क्या जवाब दिया जा सकता है?इनको कब्ज़ हो जाती है तो भी ये लोग इसके पीछे इस्लामी षड़यंत्र खोजते है.क्या जवाब दिया जा सकता है इनको?मुझे तो कहीं भी कोई भी जवाब नहीं मिल रहा है,इन्हें धर्म के बारे में ज्ञान नहीं है,इन्हें लोकतंत्र में आस्था नहीं है,गाँधी के हत्यारों को महिमामंडित करते है,गुजरात में मानवता शर्मसार हुई है उसे जायज मानते है,वहाँ पर महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया उसे जायज मानते है.अब आप ही बताये कौनसी भाषा में इन्हें जवाब दिया जाये?
आप वेदों की बात करते है अपने ब्लॉग में पर इन्हें तो हनुमान चालीसा भी याद नहीं है.अगर कोई तरीका आपको मिलता है तो हमे भी जरूर बताना.

Shah Nawaz said...

ब्लॉग के ज़रिये हम दिलों के बीच मौजूद दीवारों को गिरा सकते हैं । हमारे लेखन का मक़सद भी यही है लेकिन कुछ लोगों का मक़सद यह है कि उन ख़ताओं के लिए भी ज़िम्मेदार भी मुसलमानों को ठहराओ , जिनके गुनाहगार वास्तव में वे खुद हैं।

aarya said...

यार खुद की तुम्हारी फटी पड़ी है उसको तो सिल नहीं पाते, जिनकी नहीं फटी है उसमे विनावाजः टांग अडाते हो. बहुत दिनों से तुम्हारी नौटंकी देख रहा हूँ लेकिन मुर्ख समझ कर टिप्पणी नहीं कर रहा था, लेकिन आप तो शर्म का लबादा ओढ़े भेडिये की तरह वार कर रहे हैं, जिसका ना कोई और है ना छोर.
और हाँ इन मुहँ ना दिखा पाने वाले लोगों का तो अल्लाह मिया ही भला करे की उनकी हिमायत करने वाला अपना मुह छिपा कर बोलता है और टिप्पणी देता है वह खुद का तो ना जाने लेकिन पाक परवरदिगार को बेईज्जत जरुर करता.
दुबारा तो मै आपकी पोस्ट पढ़ने से रहा.
रत्नेश त्रिपाठी

Anonymous said...

ब्लॉग के ज़रिये हम दिलों के बीच मौजूद दीवारों को गिरा सकते हैं । हमारे लेखन का मक़सद भी यही है लेकिन कुछ लोगों का मक़सद यह है कि उन ख़ताओं के लिए भी ज़िम्मेदार भी मुसलमानों को ठहराओ , जिनके गुनाहगार वास्तव में वे खुद हैं।
एक दम दरुस्त फ़रमाया शाहनवाज तुमने,

L.R.Gandhi said...

ज़माल भई बेहतर तो यह है की अपने धर्म-मज़हब के पुराने घिसे पिटे 'संस्कारों ' को त्याग कर समस्त मानवता के कल्याण हेतु जो उचित है उसे आत्मसात किया जाए।अब पैगंबर साहेब के इस उपदेश' किसी आदमी से यह नहीं पूछा जायेगा की उसने अपनी बीवी को क्यों पीटा है। या तुलसी दास के ढोर गवार शुद्र और नारि...ताडन के अधिकारी ..का आज के समाज में क्या कोई स्थान रह गया है। या आज के युग में 'सती प्रथा, बाल विवाह,तीन तलाक-हलाला ,सुन्नत-खतना का कोई सरोकार बाकी है

DR. ANWER JAMAL said...

@ L R GANDHI JI ! इन्सान को जीने के लिए कुछ उसूल चाहियें . उन उसूलों को आपको कहीं से तो लेना ही पड़ेगा . आप यहाँ से ले लीजिये .

http://hamarianjuman.blogspot.com/2010/04/blog-post_14.html

I LOVE ISLAM said...

बहोत अच्चे जा रहे हो अनवर, जन्नत नसीब होगी तेरे कू

The X-RATED PARADISE OF ISLAM

I shall describe the Islamic Paradise or Jannat which was invented by Prophet Mohammed to bribe the Arabs into committing hedious crimes by promising them materialistic things which they couldn't obtain in the harsh desert. The paradise contains six important items: beautiful virgins, young boys, water, wine, fruits and wealth.

To prove my point I have taken verses from the Koran and quotes from the Hadiths.

VIRGINS (HOURIS)

Mohammed knew that sex would sell very well among the group of his lecherous followers who were motivated to fight battles by the promise of sex slaves and booty. By constantly emphasizing to his followers that they would get untouched virgins in Paradise, Mohammed is clearly expressing his "high" opinion of the institution of marriage and his fairness to women. Once the followers go to heaven, they can conveniently ditch their wives for the fresher and more pleasurable sexual encounters with 'Houris' (beautiful virgins). Not only that, the poor wives who gave up their virginity for the pleasure of their husbands do not get even one Male Sex Bomb. But wait, Allah is all merciful! He gives the wives the rare honour of watching their husbands deflower those 72 Houris (virgins) and 28 young pre-pubescent boys.

The relevant verses from the Koran are:

Koran 78:31
As for the righteous, they shall surely triumph. Theirs shall be gardens and vineyards, and high- bosomed virgins for companions: a truly overflowing cup.

Koran 37:40-48
...They will sit with bashful, dark-eyed virgins, as chaste as the sheltered eggs of ostriches.

Koran 44:51-55
...Yes and We shall wed them to dark-eyed houris. (beautiful virgins)

Koran 52:17-20
...They shall recline on couches ranged in rows. To dark-eyed houris (virgins) we shall wed them...

Koran 55:56-57
In them will be bashful virgins neither man nor Jinn will have touched before.Then which of the favours of your Lord will you deny ?"

Koran 55:57-58
Virgins as fair as corals and rubies. Then which of the favours of your Lord will you deny ?"

Koran 56:7-40
...We created the houris (the beautiful women) and made them virgins, loving companions for those on the right hand.. "

Koran 55:70-77
"In each there shall be virgins chaste and fair... Dark eyed virgins sheltered in their tents whom neither man nor Jin will have touched before..

In the Hadiths, Mohammed goes one step further and expands the promise of virgins to include a free sex market where there is no limit of the number of sexual partners. Women and young boys are on display as if in a fruit market where you can choose the desired ripeness.

Quote from Hadiths

Al Hadis, Vol. 4, p. 172, No. 34
Ali reported that the Apostle of Allah said, "There is in Paradise a market wherein there will be no buying or selling, but will consist of men and women. When a man desires a beauty, he will have intercourse with them."

YOUNG BOYS

Homosexuality was and is widely practised in Islamic conutries. To please the homosexuals among his followers he promised them pre-pubescent boys in Paradise. So after committing plunder, loot, rape and murder in this life, the followers of Islam get "rewarded" by untouched virginal youths who are fresh like pearls.

The relevant verses from the Koran are:

Koran 52:24
Round about them will serve, to them, boys (handsome) as pearls well-guarded.

Koran 56:17
Round about them will serve boys of perpetual freshness.

Koran 76:19
And round about them will serve boys of perpetual freshness: if thou seest them, thou wouldst think them scattered pearls.

Mohammed Umar Kairanvi said...

nice post

नन्‍दू गुजराती said...

क्या 'हिन्दू शब्द भारत के लिए समस्या नहीं बन गया है?
आज हम 'हिन्दू शब्द की कितनी ही उदात्त व्याख्या क्यों न कर लें, लेकिन व्यवहार में यह एक संकीर्ण धार्मिक समुदाय का प्रतीक बन गया है। राजनीति में हिन्दू राष्ट्रवाद पूरी तरह पराजित हो चुका है। सामाजिक स्तर पर भी यह भारत के अनेक धार्मिक समुदायों में से केवल एक रह गया है। कहने को इसे दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय माना जाताहै, लेकिन वास्तव में कहीं इसकी ठोस पहचान नहीं रह गयी है। सर्वोच्च न्यायालय तक की राय में हिन्दू, हिन्दुत्व या हिन्दू धर्म की कोई परिभाषा नहीं हो सकती, लेकिन हमारे संविधान में यह एक रिलीजन के रूप में दर्ज है। रिलीजन के रूप में परिभाषित होने के कारण भारत जैसा परम्परा से ही सेकुलर राष्ट्र उसके साथ अपनी पहचान नहीं जोडऩा चाहता। सवाल है तो फिर हम विदेशियों द्वारा दिये गये इस शब्द को क्यों अपने गले में लटकाए हुए हैं ? हम क्यों नहीं इसे तोड़कर फेंक देते और भारत व भारती की अपनी पुरानी पहचान वापस ले आते।

हिन्दू धर्म को सामान्यतया दुनिया का सबसे पुराना धर्म कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि दुनिया में ईसाई व इस्लाम के बाद हिन्दू धर्म को मानने वालों की संख्या सबसे अधिक है। लेकिन क्या वास्तव में हिन्दू धर्म नाम का कोई धर्म है? दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर रहे डॉ. डी.एन. डबरा का कहना है कि 'हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे नया धर्म है..........

http://navyadrishti.blogspot.com/2009/12/blog-post_31.html

सहसपुरिया said...

कुछ लोगों का मक़सद यह है कि उन ख़ताओं के लिए भी ज़िम्मेदार भी मुसलमानों को ठहराओ , जिनके गुनाहगार वास्तव में वे खुद हैं ।

Ayaz ahmad said...

nice post

Safat Alam Taimi said...

nice post

Taarkeshwar Giri said...

ha ha ha 72 sunder- sunder ladkiya. aur jannti sharab.

Ayaz ahmad said...

@अमित जी वेदो मे जो बाते लिखी है वही बातेँ डा.अनवर कहते है तो आपत्ति क्यो?क्या इसलिए कि वह मुसलमान है जब अपनी बात का पूरा सबूत भी दे रहे है तो फिर आप क्यो समझना नही चाहते

Amit Sharma said...

@ Dr. Ayaz ahmad---
महाशय भोजन तो आप भी करतें है, बड़ी तहजीब से , पर घर के छोटे बालक उसी भोजन को फैला फैला के खातें है तो बड़े उन्हें समझाते है. अब मैं उम्र में तो आप सभी का बालक हूँ .पर जो विषय वेद का आप लोगों ने चुना है उससे मेरा सम्बन्ध पुराना है और आप लोगों का नया नया .इसलिए ज्ञान ना होते हुए भी इस घर में मैं आप से बड़ा या कह लीजिये की पुराना हूँ ,बाकि तो उपरवाला साक्षी है की आप लोग हमारे पूजनीय श्रीमोहम्मद साहब के प्यारे वैदिक धर्म की उलजलूल छवि पेश करने की कोशिश करके हमारे आदरणीय श्रीमोहम्मद साहब की आत्मा को कितना अशांत कर रहे हो .

Mahak said...

Amit Bhaii, aapne bilkul thik kaha hai, Jamal Bhaii ne kabhi apne dharm ki kamiyon ke upar to ek blog to kya ek shabd bhi nahin likha jo ki aaj poore world ke liye sirdard bana hua hai,likhen bhi kaise unhe pata hai aisa likhte hi unke upr bhi fatwe jaari ho jaayeinge haan ye hindu dharm bada asaan topic hai, naa koi fatwe jaari karta hai balki apni trp hi badhti hai

ZEAL said...

@ Dr. Anwar-

Itni kadwahat kyun hai aapke andar?

aapsi prem badhaiye....majhab par kam likhiye.

Ved aur Quran padhne ke baad to aapko behtar posts likhni chahiye.

"phal aane par daaliyan, vinamrata se jhuk jati hain"

ZEAL said...

@ anonymous-

aag mein ghee daalna aapka pesha hai ya passion?

Sudhar jaiye janab !

Pushpendra said...

dr.jamaal aapne ye kaisa rasta pakad raka hai, kya isi tarah prem failaenge

ZEAL said...

Dr. Anwar-

Blogvani ko bhadaas nikaalne ka sthaan mat banaiye !

Its a pious platform to learn and contribute something positive.

So kindly refrain from speading bitterness among us.

Don't you believe in 'brotherhood' ?

Kam se kam apne blog ke naam ki to izzat kariye.

kunwarji's said...

अपने आतंकवादी भाई जान नहीं आये आज "सपोर्ट" बनने के लिए!

डाक्टर साहब सब बात छोड़ कर पुष्पेन्द्र जी की बात का जवाब तो दे ही दीजियेगा आज!



कुंवर जी,

Anonymous said...

@ आदरणीय अनवर जमाल जी -
मुझे लगता है आपके हाथ गलत किताबें लगीं हैं, तभी तो गड़बड़-सड-बड हो रही है -
यहाँ से पढ़िए, सुनिए और डाउनलोड भी कीजिये - http://www.vedpuran.com/

और कोई किताब चाहिए तो बता दीजियेगा !!

पंकज सिंह राजपूत

!!! बस एक ही धुन जय-जय भारत !!!

Anonymous said...

@@ कुंवरजी - अपने आतंकवादी भाई जान नहीं आये आज "सपोर्ट" बनने के लिए!

किसे दूंढ रहें हैं आप >^*<

!!! बस एक ही धुन जय-जय भारत !!!

L.R.Gandhi said...

विश्व में आज तक इन मज़हबी उसूलों पर इतने लोगों का खून बहाया जा चूका है जितना किसी भी बिमारी, अकाल, या युद्ध में नहीं बहा। विज्ञान की खोजों की तरहं क्या मानवता के कल्याण के लिए नए उसूल नहीं इजाद किये जा सकते - अहिंसा का उसूल भी तो किसी ने इजाद किया ही है। बेहतर तो यह है की हर इंसान का अपना ही एक 'धर्म-मज़हब ' हो , और मानवता से प्रेम उसकी प्रार्थना-इबादत। बकौल एक शायर;
घर से मस्जिद है बहुत दूर,
चलो यूं कर लें ,
किसी रोते हुए बच्चे को ,
हंसाया जाये...
इश्वर- अल्लाह तेरो नाम, सब को अनमति दे भगवान्...

kashmeeri Lal said...

@ मेरा देश मेरा धर्म bhai लिंग पुराण नामी किताब भेज सको या बता सको कहां मिलेगी तो क़पा होगी यह नहीं कहना यह किताब होती ही नहीं डाक्‍टर साहब पढ लेंगे इ छोरा तो कुछ भी न जाने

kunwarji's said...

@ मेरा देश मेरा धर्म
are अपने सलीम खान!कल-परसों ही तो कह रह थे कि "माय नेम इस सलीम खान,और मै एक आतंकवादी हूँ!"

कुंवर जी,

Anonymous said...

मेरा देश मेरा धर्म said...To http://27amit.blogspot.com/2010/04/blog-post_15.html

जो जिज्ञासु है वही तत्वको जानने की कोशिश करता है. बाकी तो दस्युओं की तरह लूट-पात मचाये है .

========================================================================== बड़े भाई साहब अमित जी - जय श्री राधे-राधे !!!

आप जिज्ञासु भी हैं और ज्ञानी भी हैं, क्योंकि जिज्ञासु एक ऐसे मार्ग पर चलता है जिसकी मंजिल है तत्व ज्ञान, इसलिए इस पर चलने वाला स्वत: ही ज्ञानी हो जाता है !
इस तत्वज्ञान के मार्ग पर ना तो वापसी का विकल्प होता है और ना ही विराम और विश्राम के लिए स्थान, इस स्थिति में तत्व ज्ञान को पाने और जानने की अभिलाषा भी अत्यंत दुर्लभ होती है !
एक तरफ संसार होता है और दूसरी तरफ तत्व ज्ञान, इसीकारण चयन भी नितांत कठिन हो जाता है !
तत्वज्ञान को पाने का ज्ञान ही ज्ञानी बना देता है -
जिज्ञासा (जिज्ञ + आशा) - जानने योग्य को जानने की आशा (अभिलाषा)
जानने योग्य इस संसार है क्या - केवल तत्वज्ञान क्योंकि यहीं परिपूर्ण है, इसे जानने के बाद कुछ भी शेष नहीं रह जाता है !

जानने योग्य को जानना चाहिए उसे प्राप्त करने का निरंतर प्रयास करना चाहिए ऐसा केवल एक दृढ निश्चयी जिज्ञासु ही जानता है !
जो ऐसा ज्ञान रखता हो वह ज्ञानी ही कहलाने योग्य है !!
मेरे पूर्ण मत के साथ आप ज्ञानी हैं !!

!!! बस एक ही धुन जय-जय भारत !!!
April 15, 2010 11:43 AM

Anonymous said...

@@@@ kashmeeri Lal said...
@ मेरा देश मेरा धर्म bhai लिंग पुराण नामी किताब भेज सको या बता सको कहां मिलेगी तो क़पा होगी यह नहीं कहना यह किताब होती ही नहीं डाक्‍टर साहब पढ लेंगे इ छोरा तो कुछ भी न जा
==========================================================================

कमेन्ट फेक ईडी से है !!!

फिर भी जमाल साहब जी नियत ठीक कर लिंग पुराण पढ़े तो सही !!!
http://www.vedpuran.com/
लिंग का सही अर्थ भी जान जायेंगे और उनका उद्धार भी हो जायेगा !!!

!!! बस एक ही धुन जय-जय भारत !!!

Anonymous said...

@@@ कुंवर जी याद दिलाने के लिए धन्यवाद !!

वैसे माय नेम इज पंकज सिंह राजपूत और आपकी तरह मैं भी राष्ट्रवादी हूँ !!

Anonymous said...

@ kashmeeri Lal

tum kashmir ke lal ho ya nahi par kashmi or kasmiriyat ko tum logo ne jrur lal kardye h

वीरेन्द्र जैन said...

जिसको भी हिन्दू धर्म के बारे में जानने का शौक हो उसे हरि मोहन झा लिखित खट्टर काका पुस्तक ज़रूर पढना चाहिए

Arvind Mishra said...

डॉ. अनवर आप साबित क्या करना चाहते हैं -एक दिन पायेगें की ब्लोगवाणी से आपका यह ब्लॉग गायब है !

Man said...

chachaa ki gamnd me sir suresh jee aur bhai ameet ..bakree.. doo rahe e dhar bandh ke...haa haa haaaa ...chalane do dhaar

naren said...

bhai jamal apni is gyan ko hindu musalman ka prem bddhn pe kaam lete to jyad acha reta . is chote se amit ko dekho kese prem se baat kahta h.tasall milte h, tumhre baato se ubaal aata h.kauch seekho bhayi

DR. ANWER JAMAL said...

प्रेम कैसे फैलेगा ?
मैं कहता हूं कि दो पैमानों से नापना छोड़ दीजिए , प्रेम फैल जाएगा । अगर आप अपने ग्रन्थ का सम्मान चाहते हैं तो दूसरा भी तो यही चाहता है । अगर आप खुद को गद्दार कहलाना पसन्द नहीं करते तो दूसरा भी अपने लिए इस लफ़्ज़ को पसन्द नहीं करता ।
अगर आप बेजा इल्ज़ाम किसी पाक किताब या पूरी क़ौम पर लगाएंगे तो फिर दूसरी तरफ़ से जवाब आना तो लाज़िमी ही है । महाभारत से लेकर ताज़ा नक्सली हमले तक जब भी भाई ने भाई को मारा मुल्क और वतन का सिर्फ़ और सिर्फ़ नुक्सान ही हुआ है ।
हिन्दुओं की तरह हरेक जुर्म के गुनाहगार मुसलमानों में भी हैं । उन्हें पकड़ो और सज़ा दो लेकिन न किसी बेगुनाह हिन्दू को नक्सलवादी घोषित करके मारो और न ही किसी बेगुनाह मुसलमान को ।
आपकी तरह मैं भी समाज में इज़्ज़त से अपने प्यारे वतन की खि़दमत करते हुए जीना चाहता हूं और अपने बच्चों को भी यही सिखाना चाहता हूं । फिर क्यों आप मुझे और मेरी क़ौम को संदिग्ध बनाने पर तुले हुए हैं ?
क्या आप चाहते हैं कि मेरा बच्चा किसी दिन दंगे का शिकार होकर मर जाए ?
मैं तो आपके बच्चे के लिए ऐसा नहीं चाहता ।
अपने बच्चों की हिफ़ाज़त के लिए हमें कूटनीति को छोड़कर सत्य और न्याय को अपनाना ही होगा । हम सब ऋषियों की सन्तान हैं । इस पवित्र भूमि पर इसके अलावा हमारे लिए न तो कोई पथ है और न ही कोई उपाय ।
सत्य में ही मुक्ति है । इसी से प्रेम उपजेगा और इसी से भारत बनेगा विश्वगुरू । क़ौमों लड़ाना कोई सेवा नहीं है । हत्या चाहे जिस भी मनुष्य की हो लेकिन लहू महर्षि मनु का ही बहता है , मरता धरती का ही लाल है ।
आप अम्न का माहौल बनाने के लिए मिलकर जो कुछ भी करेंगे , मुझे सदा अपने साथ पाएंगे और मुझ जैसे हरेक मुसलमान को भी ।

DR. ANWER JAMAL said...

@L. R. गांधी जी ! धर्म तो नियम हैं लेकिन इन्हें लागू इनसान ही करता है । अगर वह धार्मिक नियम लागू करता है तो समाज में अमन , सुकून और खुशहाली आती है लेकिन अगर राजा उन्हें छोड़कर या उनकी आड़ में अपना निजि एजेन्डा लागू कर दे तो खून खराबा और तबाही इनसानियत को घेर लेती है । इसमें ग़लती धर्म के नियमों की नहीं बल्कि इनसान की नीयतों के खोट की होती है । सारे बड़े युद्ध चाहे धर्म के नाम पर हुए हों लेकिन वे धर्म के लिए नहीं थे । महाभारत के युद्ध में 1 अरब 66 करोड़ लोग मरे लेकिन नियोग से पैदा होने वाले जुआरियों द्वारा लड़ा गया यह युद्ध अपने ऐश्वर्य के लिए था न कि धर्म के लिए । खून खराबा रोकने के लिए धर्म के नियमों की पाबन्दी लाज़िमी है । आज धर्म केवल इसलाम है । जीते जी यह बात समझ में आ जाये तो कल्याण है वर्ना मरकर तो हरेक जीव पर सत्य प्रकट हो ही जाता है । कृपया कुप्रचार से मुक्त होकर विचार करें .
@ MAHAK JI ! aap bhi vicharen.
@ MISHRA JI aap bhi .

DR. ANWER JAMAL said...

@मेरा देश मेरा धर्म ! देश के लिए धर्म बहुत ज़रूरी है और धर्म मात्र पूजा पाठ को ही नहीं कहते । वर्ण धर्म आज के दौर में चलने वाली चीज़ है नही तो फिर आज के लिए , सारे देश के कौन सा धर्म उपयुक्त है ?
कृप्या सोचें ।

shyam gupta said...

अनवर जमाल साहब....आप जाने कहां चन्डूखाने से ये ग्यान लेकर आते हैं---आपके बहुत सारे भ्रम दूर होजाने चाहिये...
१-- वेदों का कोई भी मन्त्र ’ॐ’ से प्रारम्भ नहीं होता, वेदों में ओम का जिक्र नहीं है, ये आपके दिये हुए मन्त्र अशुद्ध , झूठे व मन्घडंत हैं--मूल मन्त्र..रिग्वेद १०/१८४ एवं अथर्व ६/८१ में यह है--
"विष्णुर्योनि कल्पयतु त्वष्टा रूपाणि पिंशतु ।
आ सिन्चतु प्रजापतिर्धाता गर्भ दधातु मे ॥"
२---वैसे भी भग एक आदित्य है(मित्र, अर्यमा,वरुण, दक्ष, अंश..आदि प्रक्रिति के अनुशासक) ..स्त्री योनि नहीं..आपके अर्थ के अनुसार गर्भ धारण करने वाली स्त्री-पुरुष मुझे स्त्री-योनि(भग) दो-- क्यों कहेगा वह तो वहां है ही...भग वैदिक साहित्य में भर्ग= तेज के लिये प्रयोग होता है...
३--इस आपके मन्त्र में स्त्री शब्द कहीं है भी? ....इसका मूल अर्थ है...पूषा, व सविता देव मुझमें तेज उत्पन्न करें( करते हैं--जब यह मन्त्र श्रिष्टि स्रजन के सन्दर्भ में कहा जाता है ),रुद्र मूल सौन्दर्यमय रचना की परिकल्पना प्रस्तुत करें,विष्णु, सर्वशक्तिमान परमात्मा-योनि ( गर्भाशय-या धरती) को समर्थ करें , त्वष्टा( विश्वकर्मा) गर्भ ( या श्रिटि-तत्व) के आकारों को बनायें तथा प्रजापति-धाता,गर्भ को सब प्रकार से सींचे..जान डाले सम्पन्न बनायें ।-इसमें कहीं भी अश्लीलता का नाम नहीं है..
४--इसी लिन्क में जो मन्त्र--"न सेशे रम्यतेन्तरा..." है उसका भी अनर्थमूलक अर्थ है, वह नहीं जो आप बता रहे हैं...अपितु अर्थ है--"इन्द्राणी- इन्द्र(विश्व-शक्ति--रासायनिक संघटक शक्ति) की मूल कार्यकारी, प्रतिपादक, अन्तर्शक्ति है, जो रोमश: अर्थात विभिन्न प्रकार के ग्यान से आव्रत्त रहती है, उस अन्तर्शक्ति के बिना इन्द्र कुछ नही कर सकता...
---उपोप मे परा मृश मा मे दभ्राणि मन्यथाः ,
सर्वामस्मि रोमशा गन्धारीणामिवाविका ।
ऋग्वेद 1- 126- 7---का भी अर्थ है कि पत्नी पति से कहती है कि आप हर बात में मुझसे परामर्श करें, मेरे कार्यों को अन्यथा न लें , मैं भी-गान्धार की भेडों की भांति रोमशा:( रोम रोम से--विभिन्न सर्वश्रेष्ठ गुणों से परिपूर्ण हूं--क्योंकि-सुन्दर स्त्रियों के अन्ग रोमहीन/ स्निग्ध होते हैं..रोम वाली स्त्रियां असुन्दर मानी जाती हैं।) ---क्योंकि उसी संदर्भ में अन्य मन्त्र में पत्नी कहती है ..
“अहं केतुरहं मूर्धामुग्रा विवाचनी। ममेदनु क्रतु पति: सेहनाया आचरेत॥“(ऋग्वेद १०/१५६/) ----मैं गृहस्वामिनी तीब्र बुद्धि वाली हूं, प्रत्येक विषय पर विवेचना( परामर्श)देने में समर्थ हूं; मेरे पति मेरे कार्यों का सदैव अनुमोदन करते हैं।
--तथा—“अहं बदामि नेत तवं, सभामानह त्वं बद:। मेयेदस्तंब केवलो नान्यांसि कीर्तियाशचन॥“---हे स्वामी! सभा में भले ही आप बोलें परन्तु घर पर मैं ही बोलूंगी; उसे सुनकर आप अनुमोदन करें।

----आशा है अब तो आप वेदों आदि के बारे में ये व्यर्थ की भ्रमात्मक बातें पढना, लिखना छोडकर किसी अच्छे कार्य में मन लगायेंगे....