सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Wednesday, April 21, 2010

जब भगिनी निवेदिता तक अपनी पश्चिमी ड्रेस छोड़कर भारतीय परिधान पहन सकती हैं तो क्या ये तथाकथित राष्ट्रवादी भारतीय परिधान नहीं पहन सकते ? Indian culture



ग़ज़ल
किस तरह यक़ीं दिलाऊँ ज़हर घोलते होंगे
इतने ख़ूबसूरत लब झूठ बोलते होंगे
रात सो चुकी लेकिन शहर के बड़े ताजिर
लड़कियां , दहेजों पर रखकर तौलते होंगे
आदमी का हर लम्हा एक सा नहीं होता
झूठ बोलने वाले भी सच बोलते होंगे
इन हवा के झोंकों के हाथ भी नहीं होते
खिड़कियां मकानों की कैसे खोलते होंगे
होशियार लोगों ने उलझनें बढ़ा दी हैं
रात भर ख़यालों में लोग खौलते होंगे
सारे दिन के मारे हैं , जुगनुओं से मत बोलो
रात के अंधेरे में भी कुछ टटोलते होंगे
कल भी सो भूखे लॉटरी के मतवाले
हम ‘शफ़क़‘ समझते थे नोट रोलते होंगे
जनाब सतीश सक्सेना जी ने समझाया कि ‘लाइट ले यार‘ और हमने हरिद्वार घुमन्तू भाई तारकेश्वर जी को सदा हल्के में ही लिया । प्राचीन काल में भी भारतीय राजा अपने मनोरजंन के लिए विदूषक रखा करते थे । विदूषक को पूरी छूट होती थी कि वह जो चाहे राजा को कह सकता था । राजा कभी विदूषक को दण्ड नहीं देता था । गांवों की चैपालों में भी मुंहलगे छोरों की बातें बूढ़े लोग अक्सर लाइटली लिया करते थे क्योंकि यही छोरे तो उनकी चिलम भरा करते थे । लेकिन हमारा ब्लॉग न तो किसी राजा की सभा है और न ही गिरी जी कोई विदूषक हैं ।
हमारा ब्लॉग गांव की चैपाल भी नहीं है और न ही गिरी जी हमारे चिलमची छोरे हैं । इसके बावजूद भी न तो गिरी ने हम सबका मनोरंजन करने में ही कोई कसर छोड़ी और न ही हमने उन्हें लाइटली लेने में ।
भाई तारकेश्वर गिरी एक बेजोड़ शख्िसयत हैं क्योंकि प्रायः उनके लेख की थीम और शीर्षक तक में भी कोई जोड़ नहीं होता । इस सबके बावजूद वे मैदान में डटे रहे और हमसे तांबा और पीतल सब कुछ लिया , बस अगर नहीं ले पाये तो वे हमसे लोहा ही नहीं ले पाये । और वे बेचारे ही क्या ख़ाक लोहा लेते ?
जबकि गोला बारूद से लैस सेनाध्यक्ष तक नक्सलियों से लोहा लेने से पहले अर्जुन की भांति सोच में डूबे हुए हैं ।
लेकिन भइय्या माइन्ड (?) भी क्या गजब पाया है गिरी जी ने । हमें चुपके से माइनस वोट देकर भाग जाते थे और उनकी मुहब्बत में हम ऐसे पागल थे कि हम उन्हें प्लस में वोट करते थे । उनके विचार भी ऐसे हैं जिनसे आज तक वे खुद भी प्रभावित न हो पाए । वे गुण तो गाते हैं भारतीय संस्कृति के और खुद लिबास पहनते हैं पश्चिमी संस्कृति का । वे मुसलमानों से कहते हैं कि तुम भारतीय संस्कृति अपना लो ।
अरे भाई हम तो 100 बार अपना लें लेकिन आप खुद तो एक बार विदेशी संस्कृति त्याग कर दिखा दो। यह कह दो तो जवाब देते हैं कि हमने तो अपने आप को हालात के मुताबिक़ ढाल लिया है । हम कहते हैं कि अगर आज अंग्रेज़ों की पिल रही है तो आप अंग्रेजी लिबास पहने अकड़े अकड़े घूम रहे हैं तो क्या अगर कल को भारत पहले की तरह अखण्ड बन गया और खुदा न ख्वास्ता राज हो गया अफ़ग़ानों का , तो फिर तो आप तुरन्त लम्बे घेर वाली शलवार कमीज़ सिलवाकर अस्तंजा और मिस्वाक करना सीख लोगे ?
कोई पूछेगा तो कह देंगे कि हमने तो खुद को हालात के मुताबिक़ बदल लिया है । अरे भाई , कब तक खुद को आक़ा क़ौमों के चलन में ढालते रहोगे ?
हालात को बदलने की मर्दानगी कब पैदा करोगे ?
यह अजीब बात है कि सावरकर जी के जितने भी मुरीद यहां ब्लॉग बनाये बैठे हैं , सभी उन अंग्रेज़ों की ड्रेस पहनते हैं जिन्होंने सावरकर जी को यातनाएं दी थीं । जब भगिनी निवेदिता तक अपनी पश्चिमी ड्रेस छोड़कर भारतीय परिधान पहन सकती हैं तो क्या ये तथाकथित राष्ट्रवादी भारतीय परिधान नहीं पहन सकते ?कहीं ये सभी जाली राष्ट्रवादी तो नहीं ?
गिरी जी अक्सर हरिद्वार जाते रहते हैं । क्यों जाते हैं ? क्या करने जाते हैं ? नहाने ही जाते होंगे , किसी को नहाते हुए देखने थोड़े ही जाते होंगे ?
गिरी जी बाबा रामदेव जी के भी फ़ैन हैं ।
बाबा रामदेव जी भी एक बेजोड़ शख्िसयत हैं । योग को भारत में किसी उत्पाद की तरह लोकप्रिय बनाने का श्रेय उनको ही जाता है । गिरी जी मुझे बाबा जी के आश्रम में ले जाना चाहते हैं लेकिन जब से इच्छाधारी बाबा की घटना सामने आयी है , तब से तो ...... ।
इसी को कहते हैं कि दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है ।इसके बावजूद बाबा जी जितनी चीज़ें पीने से मना करते हैं उन्हें मैं नहीं पीता । ऐसा मैं उनके कहने से नहीं करता बल्कि उनसे पहले से ही मैं वे सब नहीं पीता ।
कुल मिलाकर गिरी जी मेरा भला चाहते हैं । मेरे बारे में पोस्ट लिख लिख कर वे मेरे साथ साथ अपना भी भला करते रहे । नतीजा यह हुआ कि वह आज वह एक स्टार ब्लॉगर हैं । उन्होंने ऐलान भी कर दिया है कि मैं उनकी वजह से ही सुधरा हूं । लेकिन यह सेहरा भी लोग उनसे छीन लेना चाहते हैं । कोई कहता है कि मैं फ़िरदौस बहन की वजह से सुधरा हूं बल्कि एक ‘पा‘ तो यह कह चुका है कि मैं फ़िरदौस बहन से हार गया हूं । अरे भाई , क्या यहां कोई लूडो का टूर्नामेन्ट हुआ था ?
और क्या मेरे साथ बहन जी कभी खेलीं थीं ?
न , न , न गिरी जी । आप दिल छोटा न करें । हम खुद को आपकी वजह से ही सुधरा हुआ मानेंगे और हमें उम्मीद है कि जनाब सतीश जी भी गिरी जी का दिल रखने की ख़ातिर अपना दावा पेश नहीं करेंगे और इसे ‘लाइटली‘ ही लेंगे । क्यों गिरी जी ! अब तो हो गए न खुश ?
हम तो सुधर जाएं लेकिन यह मराठी बन्धु हमें सुधरने दें , तब न । यह तो हमारे ब्लॉग पर आकर अब भी उल्टी बात कर रहे हैं । यह साहब तो गिरी जी की सारी मेहनत में शुरू से ही पलीता लगाते आ रहे हैं । गिरी जी , अब आप ही बताइये कि हम क्या करें ?
अब आपकी तरह हरेक को तो हम भी ‘लाइटली‘ नहीं ले सकते न । उम्मीद है कि आप जीवन में पहली बार अपनी ‘अनयूज़्ड‘ अक्ल पर ज़ोर डालकर पोस्ट बनाकर उत्तर देंगे ।गिरी जी के अलावा भी जो साहब बताना चाहें बता सकते हैं कि क्या मराठी बंधु सही कह रहे हैं ?
देखिए उनकी टिप्पणी no. 22

25 comments:

HAR HAR MAHADEV said...

I COULD,T UNDERSTAND

MLA said...

Wah kya baat hai Anwar Jamal sahab!

Taarkeshwar Giri said...

चतुराई तो कोई अनवर भाई से सीखे। जिस पाले मैं गेंद गई उसी पाले मैं शामिल हो गए। वैसे अनवर भाई हैं तो सज्जन आदमी। भारतीय संस्कृत कूट - कूट करके भरी है, तभी तो इतनी ज्ञान की बाते करते हैं। लेकिन वो करे तो करे क्या कुछ कठमुल्ला उन्हें उकसाते रहते हैं।
अनवर भाई सबसे पहले तो मैं आपको ये बताना चाहूँगा की मैं या मेरे समाज के लोगो ने समय के हिसाब से बदलना सीखा है। उसका ताजा तरीन उदहारण वेदों के बारे मैं आपका लेख बताता है। लेकिन वो वेदआज से हजारो साल पहले के लिखे गए हैं , रही होगी उस ज़माने मैं एसी परंपरा। हिंदुवो ने खुद ही अपनी उन तमाम पुरानी परंपरा को बदला है जिसकी आज के समाज मैं कोई जरुरत नहीं है। आपके समाज के लोगो ने भी काफी कुछ बदल लिया है अपने आप को।
वैसे तो सचमुच आप आदमी अच्छे हैं और आपका दिल बहुत ही साफ है , और येही वजह है की मैं बार-बार आपको हरिद्वार ले जाने की बात करता हूँ। बाबा रामदेव के ज्ञान का सिर्फ मैं कायल हूँ , और कायल मैं आपका भी हूँ इसलिए मैंने अपना मोबइल नंबर आपके मेल पर भेज दिया है , हो सके तो बात जरुर करियेगा।

और चिंता मत करिए मैं इस टिप्पड़ी को पोस्ट नहीं बनाऊंगा। सतीश जी को मैं धन्यवाद् दूंगा जो की हमारी बीच की दूरियों को कम करने के लिए आगे आये।
नफरत फ़ैलाने से ही फैलती है और कम करने से कम होती है।

Amit Sharma said...
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Amit Sharma said...

किसको कहे यहाँ हमराही अपना सभी पराये से लगते है
किस को ताकेगा तू "अमित" सभी तो बौराए से लगते है

Satish Saxena said...

अनवर भाई !!
आपकी पोस्ट और तारकेश्वर गिरी के कमेंट्स पढ़े , आपकी इस पोस्ट में आनंद नहीं आया ! आप औरों के नज़रिए से भी देखें अपने आपको ! मैं, यकीन करें उमर कैरानवी की भी इज्ज़त करता हूँ जबकि वे अपने कथन में हमेशा कटु रहे हैं ! इस पोस्ट पर अमित शर्मा के कमेंट्स भी देखें ! व्यंग्य के बदले इज्ज़त कैसे मिलेगी ! हमें ईमानदार बनना होगा ! और आपके ईमान के बारे में मुझे कोई शक नहीं , फिर यह गुस्सा क्यों भाई जी ! कृपया गुस्सा थूक दें जो भला बुरा कहें, मुझे कहें और किसी को नहीं , यही निवेदन है !

आशा है , आपसे सम्मान हासिल करने का मेरा हक बना रहने देंगे ! सादर आपका !

anwer shaikh said...

मुझे आज भी यकीं नहीं ए 'जन्‍नत'
इतने ख़ूबसूरत लब झूठ बोलते होंगे

call me
1419914199
Indonesia

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 said...

CHHODO YARON BEKAR KI BATTEN,TUM PYAR KA JAM PIO,..
BERUKHE KHUSHK LBON KO KOI CHOOMA NHI KARTA...JAI HIND

चिट्ठाचर्चा said...

आईये... दो कदम हमारे साथ भी चलिए. आपको भी अच्छा लगेगा. तो चलिए न....

Satish Saxena said...

शायद पहली बार आपके ब्लाग पर माहौल शांत है , आप लोगों से निवेदन है की चंद मूर्खों के कमेंट्स पर ( जो विभिन्न नामों से हिन्दू या मुस्लिम कोई भी हो सकते हैं ) अपनी यह अवधारणा न बनायें कि अधिकतर लोग आपके खिलाफ हैं ! अगर मैं हिन्दुओं के तरफ से बात करूँ तो बहुत से लोग काफ़िर का अर्थ नहीं जानते ! पूरे देश को काफ़िर का अर्थ समझाने में कितना समय लगेगा अनवर भाई ? बता पाओगे ? इसमें अनपढ़ों की संख्या का हिसाब अवश्य रखियेगा !

और आप मुझ मूर्ख से पूछ रहे हो कि सतीश जी अगर कोई मेरे दीन को गाली दे तो मैं क्या करूँ ??
अनवर जमाल को इस साधारण प्रश्न का उत्तर मैं कैसे समझाऊँ ? क्या यह प्रश्न ज़वाब के लायक है ! आप खूब जानते हो कि कि भीड़ में मूर्खों की कोई कमी नहीं होती और आप तो भीड़ को रोज ही अपनी और खींच रहे हो भाई जी ?? आप की लेखनी में सरस्वती का वास तो है ही!
इस भीड़ को उत्तर देने में न तो आप समर्थ है और न कोई और विद्वान् ! अतः उत्तर देने की बात सिर्फ तब आये जब अमित शर्मा , सुरेश चिपलूनकर जैसे लोग आपसे कुछ पूँछे या शिकायत करें अन्यथा आपको सिर्फ शांत रहना चाहिए !

पिछली पोस्ट में मैंने आपको फिलासफर जैसा पाया ...बहुत अच्छा लगा सिर्फ फिरदौस के कथन को छोड़ कर ! आपसे मैं अपना विरोध सहने की अपेक्षा करता हूँ ! फिरदौस का मामला आपका अपना मामला है उसको खुली नज़र से देखने का सीमित आग्रह करूंगा ! मेरी दखलंदाजी शोभा नहीं देती ! फिर भी जो आदेश हदीस में साफ़ साफ़ न हो उसे खुले दिल से विचार करने की प्रार्थना अवश्य करूंगा ! आशा है यहाँ बोलने के लिए मुझे आप और उमर माफ़ करेंगे !

सादर आपका ! हाथ जोड़ कर इल्तिजा है कि हिन्दू साथी यहाँ अपनी प्रतिक्रिया न दें या सोच समझ कर दें , अमित शर्मा और सुरेश भाई से चाहूँगा कि साफ़ साफ़ बोलें ! .......
आपका सादर
सतीश सक्सेना

DR. ANWER JAMAL said...

@ आली मकाम जनाब सतीश जी ! आप सच मच बड़े हैं क्यूँ की आप ने अपने बड़े होने का हक अदा किया है . कोई माने या न माने आप मेरे बड़े सदा रहेंगे . मैं आपके लिए सत्य के पूर्ण प्रकाश की कामना करता हूँ . मेरे हिन्दू teachers ने मुझे उतने ही प्यार से शिक्षा दी है जितनी उन्होंने अपने बच्चों को दी है . मैं molvi साहिबान से कम पढ़ा हूँ और मेरे हिन्दू गुरुओं की संख्या 500 से भी ज्यादा है . आज मैं यहाँ बोल रहा हूँ तो ज़बान बेशक मेरी है लेकिन ज्ञान मेरे गुरुओं का ही बोल रहा है . संस्कृत संभाषण वर्ग में मुझे केवल १० दिनों में डॉक्टर गजेन्द्र कुमार पंडा जी ने संस्कृत बोलना सिखा दिया था . ६ बार उन्हें गोल्ड मेडल मिल चूका है . हिन्दुओं की सुहृदयता का मैं खुद गवाह हूँ .
@अयं गुरु जी ' जनाब उम्र साहब ! ये क्या आप ने मेरा ब्लॉग कैंसल करने की सिफारिश कर डाली . ब्लोग्वानी जी मैं भी एक ब्लॉग बताता हूँ इससे भी बहुत इस्लाम की शिक्षा आम हो रही है इसे भी तुरंत बंद किया जाये .
और लगे हाथों इन की हमारी अंजुमन भी बंद कर दो . इसे पढ़ कर भी बहुत लोगों को इस्लाम के बारे में सही जानकारी मिल रही है .
@ प्रिय अमित ! क्या आप यकीन करेंगे की मैं आपसे प्यार करता हूँ ?
@ गिरी जी ! आप दोस्त बेशक बन जाओ लेकिन यार मेरे विरोध में पोस्ट बनाना मत छोड़ना , इसी में हम दोनों का फायदा है . समझा करो यार . आप एक तो आदमी मिले हो जिसे हम lightly ले सकते हैं . बाकी तो सब ......

Mohammed Umar Kairanvi said...

सतीश जी काफी दिनों से मैं nice post कह के निकल लेता था, आज भी nice post लिख के निकल लेता हूँ आपके लिये

Satish Saxena said...
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Satish Saxena said...

उमर साहब,
यह ( देश) आपका घर है , फिर भी मैं आपका वाकई आभारी हूँ , भावनाओं को हल्का न बनाएं आप जैसे विद्वान् को कडवाहट शोभा नहीं देती...बाहें खोल कर तो देखें ...लोग आपके पीछे खड़े हो जायेंगे !
सादर ! आज टिप्पणी कम हैं मगर अनवर भाई जीत रहें हैं, लोगों के दिल में जगह बना रहे हैं ! केवल मुस्लिम के क्यों हिन्दुस्तान की रहनुमाई क्यों नहीं ?? इस देश में बहुत प्यार है ....इस लाइन पर सोचियेगा जरूर ...कडवाहट धुलते देर नहीं लगेगी ! एक दिन मैंने आपसे कुछ कड़वा बोल दिया था ...अपना समझ माफ़ कर देना !
सब भाइयों का आभारी हूँ...जिन्होनें मेरी इज्ज़त रख ली ! कुछ दिन ऐसे ही चल गया तो शायद सब ठीक हो जायेगा !
सादर !!

सहसपुरिया said...

achcha hai.....

Mahak said...

Jamaal Bhaii, Swami Ramdev ke prati aapka jo attitude hai wo sahi nahin hai, unhone yog ko product ke roop mein nahin balki hamaare bimaariyon ke ilaaj aur hamein swastha rakhne ki ek procedure ke roop mein prachaarit kiya hai.Yog aur Pranayam ke baare mein pehle kaha jaata tha ki ye to sirf rishi-muniyon ke karne ki cheez hai lekin swami ramdev ne is myth ko toda aur usey janta ke beech laaker unhe uski khoobiyaan bataai.Aaj aise lakhon log hain jo unke dwara bataaye gaye aasan aur pranayamon ke dwara bahut dangerous bimaariyon se bahar aaye hain aur iska live example main khud hoon.Mujhe ek saal pehle jaundice (peeliya) ho gaya tha jo ki badhkar hepatitis-B mein convert ho gaya.Doctors ne keh diya tha ki ab koi umeed nahin hai kyonki alopathy mein hepatitis ki koi medicine nahin hai,aise samay mein meri mata ji mujhe unke chikitsalya mein lekar gayeein aur wahan se mili medicines aur unke bataaye hue disha-nirdeshon ka maine palan kiya aur 2 mahiney mein hi main thik ho gaya.Aaj Mujhe thik dekhkar wo doctors hairaan hote hain ki aisa kaise hua.Aur ek baat aur bata doon wahan par hospitals ki tarah dekhne ki fees nahin lagti ki le liye patient se 50 rs,8 rs ya 100 rs uska check-up karne ka.Ye poore bharat mein swami ji ke chikitsalya nishulk chalte hain.
Unhone jo kuch bhi janta se daan ke roop mein liya usey janta ki bhalaai mein hi laga diya.Swami ji to khud kehte hain ki is desh ke logon ne aaj tak muhjhe daan ke roop mein 700 crore rs diye hain aur koi bhi person unse ek-2 paise ka hisaab le sakta hai.Aap Haridwar mein Patanjali Yogpeeth jaakar dekhiye kitna bhavya nirmaan hua hai aur iska nirmaan inhi 700 crore rs se hua hai aur aaj wahan se kitne rogi swastha hoker jaa rahen hain.
Aaj is desh ke halaat dekhkar aap,main aur bhi bahut se log chintit hain aur hum sab kuch karna chaahte hain lekin kya karen abhi hamaare paas na paryapt matra mein dhan hai aur na wo strong position jo is desh ko thik karne ke liye chaahiye, aise mein ek sant ne, ek sanyasi ne aisa karne ka beeda uthaiyaa, usney billi ke galle mein ghanti baandhne ka jokhim utthane ka decision liya hai to kya aapka aur mera farz nahin banta ki aise person ke haath mazboot karen.

HAR HAR MAHADEV said...

जमाल सुरेश जी से लिखना सीखो ...हर विषय पर आपने चश्मे को हटावो

Ayaz ahmad said...

@हर हर महादेव भैया सूरेश जी की ही नक़ल मे इतना हंगामा हुआ आप फिर उनसे प्रेरणा लेने के लिए कह रहे है शायद आपने सुरेश जी की पिछली टिप्पणी ध्यान से नही पढ़ी पिछली पस्ट पर

HAR HAR MAHADEV said...

डा. अयाज मेरे कहने का मतलब हे की धरम करम से निकल के जेसे की कर्रेंट अफेयर्स ,poltical sitution ..आदि ,.सुब्जेक्ट

HAR HAR MAHADEV said...

भाइयो इन भाई लोगो को तो एक ही योग आता हे ....उसी में ज्यादा संतुस्ट....बाकी ये चाहते हे की बाबा रामदेव भी इनका योग सीखे ??

Ayaz ahmad said...

महादेव जी हमारा योग तो अपने आप मे पूरा है फिर भी हमे दूसरे योग सीखने कोई एतराज़ नही लेकिन अगर आपके पास कोई अच्छी चीज़ है तो वह हमे भी बताओ क्योकि हमारा तो मक़सद है कि दुसरो की अच्छी चीज़े ले और उनहे अपनी अच्छी चीज़े दे

Ayaz ahmad said...

रही बात बाबा रामदेव जी की वे विद्वान है अगर उनके पास एक और योग आ जाए तो क्या बात है और जब वे मुसलमानो के एक बड़े प्रोग्राम मे आकर हमे योग सिखा सकते है तो उनकौ सीखने मे क्या एतराज़ लेन देन से ही मोहब्बत बढ़ती है

HAR HAR MAHADEV said...

जरूर डॉ. आप से में सहमत हूँ ,,इस बारेमे किसी को कोई हरज नहीं ..u r welcome

HAR HAR MAHADEV said...

सूफी संतो की वाणियो और उनके खयालातो के बारे में बताये उनकी सिक्षावो के बारे में बताये ...उनकी हिंदी translation को यंहा बताये ....बहूत अछा लगेगा ...i regard and reccpect all them ...निश्चित ही ..
जिन तारो को रातो में उठ उठ के गगन में खोजते हो ...
जिन फूलो को ,कलियों को ,जा जा के चमन में ढूंढते हो..
वो फूल ,वो कालिया वो तारे आँचल में रहते हे ,
हम प्यार की बिजली ले के बादल में रहते हे ....
दुनिया सारे ज़माने ले ,दोलत ले ले ,खजाने ले ले
लूट सके न जिसको जमाना
मालिक एक पल ऐसा हम को दे दे ....
शायर का नाम याद नहीं आ रहा हे ...sorry

DR. ANWER JAMAL said...

@ जनाब महक जी ! बाबा रामदेव जी से आपको लाभ मिला , दूसरों कि बीमारियाँ भी दूर हुईं , इसकी मैं तारीफ करता हूँ . समाज कि भलाई में हर मौके पर हम उनके साथ खड़े होकर उनके हाथ मजबूत करेंगे . लेकिन किसी के बड़े नाम को देख कर मैं अपने तर्क और चिंतन का गला तो नहीं घोंट सकता . योग का मकसद है आत्म ज्ञान कि प्राप्ति . योग दर्शन में कुल १९४ सूत्र हैं , उनमे से केवल १ सूत्र नंबर ९७ में आसन का बयान है . गौण विषय को मुख्य और मुख्य को गौण बना देना तो योगदर्शन कार पतंजलि का अनुसरण नहीं कहलायेगा . दुर्भाग्य से आज योग को पश्चिम के नज़रिए से देखा जा रहा है . पश्चिम ने योग को exercise और तमाशा बना कर रख दिया है .
आपको मेरे वचन से दुःख हुआ , मैं आप से माफ़ी मांगता हूँ . आपका आदर भी ज़रूरी है और सत्य कहना भी .