सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Saturday, April 3, 2010

यदि न तो बहन जी ही वस्त्र त्याग कर सकती हैं और न ही उनके फ़ैन्स तो फिर इस लिखने और सराहने का फ़ायदा क्या है ? Holy Dress .

ईश्वर आदरणीय है और उसकी हरेक रचना भी आदरणीय है लेकिन कोई भी चीज़ ईश्वर का अंश नहीं है और न ही उसके बराबर है । अब न्याय की रीत तो यही है कि चीज़ों का आदर तो किया जाए लेकिन किसी भी चीज़ को उसकी हद से आगे न बढ़ाया जाए । मस्लन एक मुसलमान हज्रे अस्वद का आदर तो करता है लेकिन उसे ईश्वर का अंश नहीं मानता और न ही उससे अपने कल्याण की प्रार्थना करता है और न ही उसके प्रति वैसा आदर प्रकट करता है जैसा कि वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के लिए सज्दा करके करता है । इस तरह एक मुसलमान का हज्रे अस्वद को चूमना मात्र उसका आदर करना कहलाएगा जबकि हिन्दू भाई कण कण में ईश्वर का होना मानते हैं और वे मूर्तियों के सामने भी वैसे ही झुकते हैं जैसे कि वास्तव में केवल एक परमेश्वर के सामने झुकना चाहिये । वे मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा करके सोचते हैं कि अब इसमें देवता आ बसा है । वे मूर्तियों से अपने कल्याण की प्रार्थना भी करते हैं । खुद खाने से पहले उन्हें भोग भी लगाया जाता है । ये चीज़ें पूजा कहलाती हैं और एक मुसलमान हज्रे अस्वद के साथ यह सब नहीं करता । वह उसे धार्मिक इतिहास का केवल एक यादगार चिन्ह मानता है और किसी चिन्ह को चूमना पूजा नहीं कहलाता ।
केवल एक पालनहार प्रभु परमेश्वर ही पूजा उपासना का सच्चा हक़दार है । यह बात सनातन धर्म का मूल है ।
इसलाम की आधारभूत शिक्षा भी यही है । आखि़र आप खुद को कब तक अपने सच्चे मालिक से दूर रखेंगे ?
कब तक धर्म के मर्म और उसके केन्द्र काबा से दूर रहकर जिएंगे ?
कब तक ‘शांति , कल्याण और आनन्द का द्वार खुद पर बन्द रखेंगे ?
आओ ! अब और देर न करो ।
धरती की चीज़ें एक एक करके मिटती जा रही हैं । नस्लें लुप्त हो रही हैं । धरती और मानवता , दोनों ही धीरे धीरे मर रही हैं । यही तो क़ियामत है । इसी को प्रलय कहते हैं । हर चीज़ नाशवान है सिवाए प्रभु पालनहार के ।
आओ ! उसी अनन्त प्रभु की शरण में आओ ताकि वह तुम्हें अनन्त जीवन प्रदान करे । आखि़र तुम्हें हुआ क्या है कि तुम मार्ग को पहचान कर भी नहीं पहचानते और अपने नफ़े नुक्सान से भी ग़फ़लत में पड़े हुए हो ?
आ जाओ , इससे पहले कि समय सीमा समाप्त हो जाए और तब तुम आना चाहो लेकिन उस समय तुम्हें स्वीकार न किया जाए ।
आओ , आओ , जल्दी आओ । आओ , मिलकर चलें कल्याण की ओर ।
---------------------------------------------------------------------------

यहां बहन फ़िरदौस के ख़याल पर भी एक नज़र डालना ज़रूरी मालूम होता है । उनका मानना है कि ‘वस्त्र बुराई की जड़ है ।‘उनके इस ख़याल को ग़लत साबित करने के लिए इतना जान लेना ही काफ़ी है कि वे खुद भी कपड़े पहनती हैं । लिबास इतनी बड़ी खूबी है कि दुनिया की हरेक सभ्यता में लिबास का इस्तेमाल किया गया है । जो जातियां जंगली मानी जाती हैं उनमें भी अपने अंग ढकने की परम्परा पाई जाती है । दुनिया की क़ौमों में इस बात पर तो मतभेद हो सकता है कि औरत और मर्द अपने जिस्म का कितना भाग ढकें लेकिन जिस्म ढकने को लेकर कोई मतभेद नहीं पाया जाता । जिन मुल्कों ने न्यूड क्लब्स को मान्यता दे रखी है । उन मुल्कों में भी नंगई समर्थक सार्वजनिक स्थानों पर नंगे नहीं घूम सकते । दुनिया के सारे अच्छे लोगों की लिस्ट बना लीजिये । आपको वे सभी लोग और उनके परिवार की औरतें लिबास पहने हुए दिखाई देंगी । फ़ैशन मॉडल हो या कोई तवायफ़ हो , वह भी कपड़े पहनती है बल्कि बाज़ दफ़ा तो वे अपने फ़ैन्स की नज़र से बचने के लिए बुर्क़ा तक पहनती हैं ।
जितने लोगों ने बहन फ़िरदौस के लेख की सराहना की है , क्या वे अपने घर की औरतों को बुराई यानि कि कपड़ा छोड़ने की प्रेरणा देना पसन्द करेंगे ?
यदि न तो बहन जी ही वस्त्र त्याग कर सकती हैं और न ही उनके फ़ैन्स तो फिर इस लिखने और सराहने का फ़ायदा क्या है ?

77 comments:

Chamupati said...

इस लिखने और सराहने का फ़ायदा क्या है ?

Nandrasen said...

समय अभाव के कारण कम पढ़ पाया हूँ, भविष्य में अधिक पढने के लिए, मैं आपका लिंक अपने ब्लाग पर दे रहा हूँ , अच्छा और ज्ञानवर्धक लिखते हैं ! शुभकामनायें !

संजय बेंगाणी said...

दिमाग से पैदल कुतर्कियों को क्या कहें?

DR. ANWER JAMAL said...

@Nandrasen ji , Thanks .

DR. ANWER JAMAL said...

@ Sanjay ji , ab apko hum bhi kya kahen ?

Jandunia said...

अच्छी बात लिखी है।

DR. ANWER JAMAL said...

@jANDUNIYA WALO APKA sHUKRIYA .

कहत कबीरा-सुन भई साधो said...
This comment has been removed by the author.
dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

ऎ इमान वालो कुत्तर्क कर कर इस्लाम को बदनाम ना करो

Anonymous said...

मुहमद साहब के पास १ नोकर था जैद नाम का
मुहमद साहब उसे अपने बेटे की तरह प्यार करते थे और उसकी (जैद ) की दूसरी शादी "जैनब" से हुई थी "जैनब" कुरैशी खानदान की थी व् मुहमद भी कुरैशी खानदान के थे इस तरह जैनब मुहमद की फुफेरी जाति "बहन" थी
१ दिन मुहमद जैद के न होने पर उसके घर जा पंहुचा चिक ( परदे ) की आड में जैनब बैठी थी उसने रसूल (जो उसका ससुर भी था) की आवाज सुनी तो जल्दी से उसे भीतर लाने का प्रबंध करने लगी
मुहमद की निगाह उसके सुन्दर बदन पर पड़ी बस फिर क्या था ??
दिल पर १ बिजली सी गिर पड़ी व् मुहँ से निकला आह सुभान अल्ला तू कैसे - कैसी खूबसूरती की कारीगरी करने वाला है ?
जैनब ने ये शब्द सुने और दिल ही दिल में पैगेम्बर के दिल पर कब्जा प् जाने की खुशी जताई जैद से शायद उसकी न बनती थी बस फिर हो गया फुफेरी जाति "बहन" से मिलन ????
जब जैद घर आया तो जैनब ने उसे सारा किस्सा बताया फिर क्या था वह मुहमद के पास गया व् जैनब को तलाक देने व् उसे अपनाने की बात कहने लगा
चाहे कुछ भी हो था तो ये गुनाह ही व् ऐसा नही था की मुहम्मद अपने गुनाह न जानता था बल्कि वह जनता था कि अगर उसकी बेहुद गियाना नज़र जैनब पर न पड़ती तो ये दिन - दहाड़े ये अंधेर न होता अतं जो हुआ अब जो हो गया सो हो गया अब आगे देखो आगे मुहमद के मोमिनों पर खासकर उनकी बीबियो पर कन्ट्रोल के लिए पवित्र कुरान में ये आयत लिखी



ऐ मोमिनों रसूल के मकान में न जाओ जब तुम्हे कुछ पूछना हो तो परदे की आड में पूछो यह तुम्हारे व् उनके दिलो के लिए बेहतर होगा यह मुनासिब नहीं की तुम रसूल के दिल को दुखाओ और न यह कि उनके बाद उनकी बीबियो से शादी करो रसूल की बीबिया मोमिनों की माएं (माँ ) है " सुरह अखराब रकूब ५ "

औरते अकसर १०- १० शादिया कर लेती थी जिन्होंने २ -२ खाविन्द किये
उनकी तादात बहुत कम थी जो अपने पति को बुढा होते देखती या दूसरे से उसकी आखं लड़ जाती तो वह मक्के सरीफ की सेवा में हाज़िर होती और मामला फैसला करा अपने पहले पति को छोड देती और किसी दूसरे से जो जवान व् खूबसूरत हो तो उसके साथ निकाह कर लेती
तो इन पर कंट्रोल करने के लिए हमारे प्यारे मुहम्मद साहब ने पर्दा चालू करवाया

सहसपुरिया said...

GOOD ANSWER

Ayaz ahmad said...

इतने अच्छे लेख की तो सभी को तारीफ़ करनी चाहिए मगर पूरवाग्रही लोगो ने तो जैसे बस विरोध करने का पक्का मन बनाया हुआ है ऐसे लोग सच को देखना ही नही चाहते और असत्य के रास्ते पर डटे रहना चाहते हैँ

कहत कबीरा-सुन भई साधो said...

@संजय बेंगाणी
सौ प्रतिशत सहमत
दिमाग़ से पैदल लोगों को क्या कहें ?
फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है

कहत कबीरा-सुन भई साधो said...

@संजय बेंगाणी
सौ प्रतिशत सहमत
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फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है

mohd maqsud inamdar said...

@संजय बेंगाणी
हम भी सौ प्रतिशत सहमत
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फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है

mohd maqsud inamdar said...

@संजय बेंगाणी
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mohd maqsud inamdar said...

@संजय बेंगाणी
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अतुल मिश्र said...

@संजय बेंगाणी
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दिमाग़ से पैदल लोगों को क्या कहें ?
फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है !!!!!!
@संजय बेंगाणी
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दिमाग़ से पैदल लोगों को क्या कहें ?
फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है !!!!!!
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फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है !!!!!!
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फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है !!!!!!
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फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है !!!!!!

Anonymous said...

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@संजय बेंगाणी
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दिमाग़ से पैदल लोगों को क्या कहें ?
फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है !!!!!!
@संजय बेंगाणी
हम भी सौ प्रतिशत सहमत
दिमाग़ से पैदल लोगों को क्या कहें ?
फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है !!!!!!
@संजय बेंगाणी
हम भी सौ प्रतिशत सहमत
दिमाग़ से पैदल लोगों को क्या कहें ?
फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है !!!!!!
@संजय बेंगाणी
हम भी सौ प्रतिशत सहमत
दिमाग़ से पैदल लोगों को क्या कहें ?
फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है !!!!!!
@संजय बेंगाणी
हम भी सौ प्रतिशत सहमत
दिमाग़ से पैदल लोगों को क्या कहें ?
फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है !!!!!!
@संजय बेंगाणी
हम भी सौ प्रतिशत सहमत
दिमाग़ से पैदल लोगों को क्या कहें ?
फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है !!!!!!
@संजय बेंगाणी
हम भी सौ प्रतिशत सहमत
दिमाग़ से पैदल लोगों को क्या कहें ?
फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है !!!!!!
@संजय बेंगाणी
हम भी सौ प्रतिशत सहमत
दिमाग़ से पैदल लोगों को क्या कहें ?
फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है !!!!!!
@संजय बेंगाणी
हम भी सौ प्रतिशत सहमत
दिमाग़ से पैदल लोगों को क्या कहें ?
फ़िरदौस जी ने 'व्यंग्य' किया है !!!!!!

Ayaz ahmad said...

दिमाग़ से पैदल कौन है आप लोगो ने दिखा दिया

Anonymous said...

अरे भाई इन्हे जैन मंडली मे शामिल करवाओ

Anonymous said...

अरे भाई इन्हे जैन मंडली मे शामिल करवाओ

Anonymous said...

असल मे हमने इन्हे कपड़े पहनना तो सिखाया पर सभय्ता नही ये नंगे ही रहना ठीक थे

Man said...

bhai anonymous bahoot bhadhiyaa...naga karo inko..ye doorachari pigamber ko sub koochh maan rahe he jo sala soovidhaya or kapat ko khoobsoorat roop se inke dimag me utar diya

drdhabhai said...

ये खुद टिप्पणियां कर कर के बहुत ही गंदा खेल खेल रहें हैं आप....और कभी कभार तर्कशील बातें भी लिखा करो....आपके इस लेख मैं बहन फिरदौस के प्रति जो लिखा गया हैं वो आपके दिमाग की गंदगी को जाहिर करता है

Amit Sharma said...

सवाल तो काफी है ,पर इन दो मुख्य सवालों का ज़वाब अभी दे दीजिए, क्योंकि विकार रहित तो दोनों घर एक ही साथ होने चाहिये ना.
इनके बाद जैसे जैसे समय मिलेगा जिज्ञासाओ को आपके सामने रखता रहूँगा.
१.हज यात्री जो सरकारी सब्सिडी से हज के किये जाते है.तो उनकी वह यात्रा मालिक के दर पे कुबूल है या रद्द है ?
२. और अगर कबूल है तो किस प्रकार है ,और रद्द है तो फिर इस विकार को दूर करने के लिए ब्लॉग पे पोस्ट कब लिख रहे है,और समाज में जाकर इस विकार को दूर करने के लिए अभियान कब चला रहे है ?
३.क्या आप मुसलमानों द्वारा खोले गए किसी अस्पताल (सिर्फ हकिम्खाना नहीं जहाँ सिर्फ मुसलमानों का ही इलाज होता हो )
या धर्मशाला (मुस्लिम मुसाफ्हिर्खाना नहीं जहाँ सिर्फ मुस्लिम ही ठहर सकतें हों ) या अन्य सेवा कार्यों का विवरण बतला सकतें हैं ,
की ऐसे सेवा कार्य देश में कहाँ कहाँ चल रहें हैं ?

Satish Chand Gupta said...

please batana qabar banane men kitna kharch aata he Chita ka kharch men batata hoon

स्वामी दयानंद सरस्वती ने दाह संस्कार की जो विधि बताई है वह विधि दफ़नाने की अपेक्षा कहीं अधिक महंगी है। जैसा कि स्वामी जी ने लिखा है कि मुर्दे के दाह संस्कार में “शरीर के वज़न के बराबर घी, उसमें एक सेर में रत्ती भर कस्तूरी, माषा भर केसर, कम से कम आधा मन चन्दन, अगर, तगर, कपूर आदि और पलाष आदि की लकड़ी प्रयोग करनी चाहिए। मृत दरिद्र भी हो तो भी बीस सेर से कम घी चिता में न डाले। (13-40,41,42)
स्वामी दयानंद सरस्वती के दाह संस्कार में जो सामग्री उपयोग में लाई गई वह इस प्रकार थी - घी 4 मन यानी 149 कि.ग्रा., चंदन 2 मन यानि 75 कि.ग्रा., कपूर 5 सेर यानी 4.67 कि.ग्रा., केसर 1 सेर यानि 933 ग्राम, कस्तूरी 2 तोला यानि 23.32 ग्राम, लकड़ी 10 मन यानि 373 कि.ग्रा. आदि। (आर्श साहित्य प्रचार ट्रस्ट द्वारा प्रकाषित पुस्तक, ‘‘महर्शि दयानंद का जीवन चरित्र’’ से) उक्त सामग्री से सिद्ध होता है कि दाह संस्कार की क्रिया कितनी महंगी है।

MLA said...

Bahut hi badhiya post hai Dr. Sahab. Bahut Khoob.

MLA said...

ईश्वर आदरणीय है और उसकी हरेक रचना भी आदरणीय है लेकिन कोई भी चीज़ ईश्वर का अंश नहीं है और न ही उसके बराबर है । अब न्याय की रीत तो यही है कि चीज़ों का आदर तो किया जाए लेकिन किसी भी चीज़ को उसकी हद से आगे न बढ़ाया जाए ।

Anjum Sheikh said...

फिरदौस जी परदे का विरोध कर रही हैं और खुद ही अपने ब्लॉग के लिए परदे का इस्तेमाल कर रही हैं. मैंने उन्हें कल से कई कमेंट्स लिखे जिनमे से उन्होंने एक भी कुबूल नहीं किया.

Anjum Sheikh said...

मेरा ब्लॉग: http://anjumsheikh.blogspot.com/

मैं एक साधारण सी गृहणी हूँ. हिंदुस्तान से बाहर रहती हूँ और आजकल अपने प्यारे वतन आई हुई हूँ. कोई लेखक नहीं हूँ, मगर फिरदौस जी के लेख ने मुझे मजबूर किया यहाँ लिखने के लिए.

वह कहती हैं कि परदे पर बैन महिलाओं की जीत है और मैं कहती हूँ की यह मेरा हक है?

आखिर कैसे कोई सरकार मेरे हक को छीन सकती है? यह मसअला तो मेरे और मेरे खुदा की बीच का है. यह तो एक इंसान का अपने रब के लिए प्यार है, आखिर इसका अंदाज़ा कोई सरकार कैसे लगा सकती है????

मैं अपने खुदा के आदेशों को मानु अथवा नहीं, इसके बीच में सरकार कहाँ से आ गई?

अगर कोई सरकार किसी महिला पर ज़बरदस्ती पर्दा करने के खिलाफ कानून बनती तो यकीनन मैं उस फैसले का समर्थन करती. और फिरदौस जी के समर्थन पर खुश होती. परन्तु यहाँ तो किसी देश की सरकार के द्वारा हम औरतों के हक का हनन किया जा रहा है, और एक औरत (फिरदौस जी) बड़े फख्र के साथ उसका समर्थन कर रही हैं. अगर ऐसा कोई कानून मेरे देश में होता अथवा वहां जहाँ मैं रहती हूँ तो एक महिला होने के नाते मैं इसके खिलाफ आखिरी साँस तक क़ानूनी लड़ाई लडती. परन्तु मुझे रंज हुआ कि यहाँ एक महिला ही महिलाओं के हक के खिलाफ बन रहे कानून का पक्ष ले रही है.

यहाँ जो बुरखे का ज़िक्र सभी लोग कर रहे हैं, इस्लाम में उसका कोई महत्त्व नहीं है. असल लफ्ज़ 'हिजाब' है और हिजाब का मतलब अलग-अलग परिस्तिथियों के हिसाब से अलग-अलग होता है. औरतों के लिए महरम के सामने का हिजाब अपने बदन को ढकना है, वहीँ ग़ैर-महरम रिश्तेदारों के सामने हिजाब का मतलब मुंह और हाथ के पंजे छोड़ कर पुरे बदन को ढंकना है.

अल्लाह ने कुरआन में मर्दों और औरतों को अपनी आंख्ने नीची करने, और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करने का हुक्म दिया है. वहीँ औरतों को ऐसे कपडे पेहेन्ने का हुक्म दिया है, जिसे उनका बदन अच्छी तरह से ढका रहे. अल्लाह ने कुरआन में फ़रमाया है -

[सुर: 24, अन-नूर, 30] इमान वाले पुरुषों से कह दो कि अपनी निगाहें बचाकर रखें और अपनी शर्म गाहों की हिफाज़त करें. यही उनके लिए ज्यादा अच्छी बात है. अल्लाह को उसकी पूरी खबर रहती है, जो कुछ वे किया करते हैं.

[31] और ईमान वाली औरतों से कह दो कि वे भी अपनी निगाहें बचाकर रखे और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें. और अपने श्रृंगार ज़ाहिर न करें, सिवाय उसके जो उनमें खुला रहता है (अर्थात महरम) और अपने सीनों पर दुपट्टे डाले रहे और अपना श्रृंगार किसी पर ज़ाहिर न करे सिवाह अपने शौहर के या अपने पिता के या अपने शौहर के पिता के या अपने बेटों के अपने पति के बेटों के या अपने भाइयों के या अपने भतीजों के या अपने भानजो के या अपने मेल-जोल की औरतों के या जो उनकी अपनी मिलकियत में हो उनके, या उन गुलाम पुरुषों के जो उस हालात को पार कर चुके हों जिसमें स्त्री की ज़रूरत होती है, या उन बच्चो के जो औरतों के परदे की बातों को ना जानते हों. और औरतों अपने पांव ज़मीन पर मरकर न चलें कि अपना जो श्रृंगार छिपा रखा हो, वह मालूम हो जाए. ऐ ईमान वालो! तुम सब मिलकर अल्लाह से तौबा करो, ताकि तुम्हे सफलता प्राप्त हो.

मैंने उनके लेख पर भी कमेंट्स लिखा था, जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया. पता नहीं क्यों? क्योंकि वहां मैंने प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद (सल.) के खिलाफ बहुत ही गंदे कमेंट्स देखे हैं, जिन्हें फिरदौस जी ने कुबूल कर लिया और मेरे सवालों को क़ुबूल नहीं किया. आखिर क्यों? मैंने उनको जानती नहीं हूँ, पर उनके इस फैसले से मुझे शक होता है, क्या वह मुसलमान है? और मुसलमान छोडो, क्या वह एक इन्साफ पसंद महिला हैं???

कहत कबीरा-सुन भई साधो said...

पहले दाढ़ी उगाकर आओ, फिर बात करना
औरों को नसीहत खुद मियां फजीहत!!!

क्या तुम मुसलमान हो???
क्या सिर्फ औरतों पर अत्याचार करने के समय ही कुरान और इस्लाम याद आता है
कभी-कभार खुद भी अपने मज़हब का पालन कर लिया करो.

Unknown said...
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Unknown said...
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Unknown said...

Anjum Sheikh
जब आपका पति (अगर आप विवाहित हैं तो) आपके सर पर आपकी तीन-तीन सौतने लाकर बिठा देगा. तब आपको पता चलेगा. हो सकता है आप इस बात के लिए भी तैयार हों कि आपका पति चार-चार औरतों के साथ सोये (जिसे ग्रुप सेक्स कहते हैं). ईश्वर न करे आपका ससुर आपके साथ...(इमराना जैसा कुछ हो) और फिर आपको धक्के देकर घर से निकाल दिया जाए तब, आपको पता चलेगा कि आप किन कुप्रथाओं का समर्थन कर रही हैं.
आपको देखकर नहीं लगता कि आप पर्दा करने वाली औरत हैं. क्या यही आपका इस्लामी लिबास है???????? क्या इस तरह नेट पर बैठकर गैर मर्दों के साथ बतियाने की इस्लाम आपको अनुमति देता है. इस्लाम में फोटो खिंचवाना मना है. फिर क्यों आपने फोटो खिंचवाया.

नेट के ज़रिये गैर मर्दों से बतियाने को कुरान में क्या कहा गया है, अवश्य बताइयेगा. हम भी हिंदी का कुरआन लाकर ज्ञान बाधा लेंगे.
किसी ने ठीक ही कहा है, औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन है. आज देख भी लिया.


आप खुद क्यों बुर्का नहीं पहनती, बेपर्दगी फैलाती फिर रही हैं????

Anjum Sheikh said...

सरस्वती जी, जहाँ मुझे जैसा लिबास की ज़रूरत होती है, वहां मैं वैसा लिबास पहनती हूँ, और फिर यह मेरी मर्ज़ी से होता है. आप कौन होती है, मुझे सलाह देने वाली? यह मेरे और मेरे रब की बीच का मामला है. आप औरत होते हुए भी ऐसे गंदे लफ्ज़ इस्तेमाल करते हुए नहीं शर्माती और चली हैं मुझे सलाह देने?

आपसे किसने कह दिया कि इस्लाम में फोटो खिचवाना मन है. जहाँ पहचान दिखाना ज़रूरी होता है वहां फोटो खिचवाने की कोई मनाही नहीं है. और फिर यह मेरी असली फोटो नहीं है. यह तो लेख के हिसाब से मैंने फोटो लगाई है.

जहाँ तक ग़ैर मर्दों से बातों की बात है, तो परदे की पीछे से तो हज़रात आयशा (रज़ी.) भी लोगो के सवालो के जवाब देती थी. जब आपको इस्लाम की जानकारी ही नहीं है, तो क्यों बीच में पद कर सवाल जवाब करती हैं? इससे अच्छा है के पहले इस्लाम के बारे में जानकारी हासिल करें.

Unknown said...

nicely done aap apna kaam karte rahiye jeet hamesha truth ki hoti hai aur logon ko aapka blog itna pasand aaya hai ki aapko galat sabit karne ke liye kitni baar ek hi baat dohrayi gayi par phir bhi sahi ko galat sabit nahi kar sake hai aur na future main bhi nahi kar sakegen jazakallahu-khair.

Dropify Team 1 said...

anjum aapne bilkum sahi kaha jawab diya saraswati ko

Anonymous said...

nicely done aap apna kaam karte rahiye

Anonymous said...

अंजुमन, अपने मौलवी लोगो के फतवे पढ़ा करो, उन्होंने तो voter id card के लिए भी फोटो खिचवाने का विरोध किया है, कहते हैं कि चेहरा बहार के किसी व्यक्ति को नहीं दिखा सकते|इस पर कोर्ट में केस भी चल रहा है, जहाँ पर कोर्ट कि टिप्पड़ी थी कि वोट देना भी जरूरी नहीं है अगर आप ऐसे ही सोचते हैं|
साथ ही आप कृपया यह बताये कि दिन पर दिन बढ़ते आतंकवादी हमलो से बचने के लिए आपका क्या सुझाव है, यदि कोई आदमी ही बुर्का पहन कर बम लेकर आया तो कैसे जानेगे|
यहाँ पर नागरिकों कि सुरक्षा के लिए कोई भी सरकार नियम बना सकती हैं और बना रही हैं| अगर आपको बुर्का पहनने का इतना ही शौक है तो घर के अन्दर पहन कर बैठिये|

Anonymous said...

Dr. Anwar Jamal, nude clubs के बारे में बहुत जानकारी है आपको, इस्लाम का पालन करते हुए यह कहाँ से सीखा? फिरदौस बाहें ने एक व्यंग क्या किया कि आप पचा नहीं पाए? और आपलोग जो बुर्का से सब एक जैसे हो जाते हैं का दुष्प्रचार करते हैं, में ओमान और कतर से हो कर आ रहा हूं, २ वर्ष काम किया है वहां, बुर्का में भी बस थोडा सा रंग लगा कर दरजी कितना दाम बाधा कर बेचते हैं आपको मालूम है? बेचारी लड़कियां, शौक पूरा करने के लिए व्यर्थ के पैसे खर्च करना पसंद करती हैं, क्योंकि कपड़ों पर कहीं और तो कुछ दीखता नहीं, और बुर्का पर ज्यादा कुछ हो नहीं सकता|
रही बात साकार पूजन कि तो आर्य समाजी, ब्रह्म एवं अनेक अन्य हिन्दू पंथ मात्र निराकार ब्रम्ह में विस्वास रखते हैं| पर क्या आप मुस्लिम धर्म जो व्यक्ति पूजन का विरोधी है, जगह जगह पर मजारों का अस्तित्व और उस पर प्रतिदिन होने वाली भीड़ के बारे में तर्क दे सकते हैं? क्या वहां लोग अपने कल्याण के इच्छा से नहीं आते?

Anonymous said...
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