सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Monday, April 19, 2010

बेशक हिन्दू सद्गुणों की खान है । Great Indians

आदरणीय जनाब सतीश जी ! बेशक हिन्दू सद्गुणों की खान है । सनातन धर्मी भाईयों में ज्ञान और ज्ञानी को आदर देने का गुण पाया जाता है । निरंकारी , राधास्वामी , ब्रह्माकुमारी , इस्कॉन , स्वाध्याय परिवार , गायत्री परिवार , कबीरपंथी , रामकृष्ण मिशन और अन्य अनेक मतों के आचार्यों व पंथानुयायियों से मैं प्रायः मिलता रहता हूं और हरेक को मैं उसकी शालीनता और ध्यान के प्रभाव से उसके चेहरे पर उपजे तेज से ही मुझे उसके मत का पता अमूमन चल जाता है और अगर कभी चूक हो जाती है तो उसकी वाणी से तो पता चल ही जाता है । अपने 21 वर्षीय लम्बे सम्पर्क में मैंने इनके मुंह से कभी बदतमीज़ी की बात नहीं सुनी और न ही मुझे इनसे या इन्हें मुझसे कोई शिकायत कभी पेश आई।

सभी से मेरे दोस्ताना ताल्लुक़ात हैं । रात को भी कभी आवाज़ देता हूं तो दौड़े चले आते हैं । आज सुबह भी मेरे प्रिय मित्र डा. नरेश गिरी मेरे घर आये थे क्योंकि मुझे उनकी मदद की ज़रूरत थी । और यह कहने की बात नहीं है कि मैं भी उन सबके लिए ऐसा ही हूं । लेकिन समाज में दो ग्रुप ऐसे पाये जाते हैं जिनसे मुझे इसलाम , मुसलमान , पवित्र कुरआन और पैग़म्बर साहब के लिए प्रायः कष्टप्रद बातें सुनने को मिलती रहती हैं । अपने लिट्रेचर में भी यह लोग इसलाम के खण्डन की सामग्री निःसंकोच प्रकाशित करते रहते हैं । एक ग्रुप आर्य समाज कहलाता है और दूसरा ग्रुप शाखा में लाठियां चलाता है। मेरे ब्लॉग पर भी बदतमीज़ी करने वाले यही दो ग्रुप हैं , सामान्य हिन्दू नहीं है ।
सौरभ आत्रेय और महाजाल ब्लॉग का स्वामी दोनों ही मुसलमान नहीं हैं । दोनों ने ही इन्तिहाई नीच हरकत की लेकिन किसी ने उन्हें नहीं समझाया । काला चश्मा लगाने वाला और सुअर की गाली देने वाला एक आदमी आये दिन मुसलमान औरत के बुरके पर चिन्ता प्रकट करता रहता है । वह भी मुसलमान नहीं है । ऐसे ही वेब जगत के बाशिन्दे मुझसे प्रश्न करने या व्यंग्य करने आ जाते हैं और जब जवाब लेकर अपना मुंह चाटते हैं तो दूसरे कहते हैं कि हम आहत हो रहे हैं । भाई , इन्हें रोकिए । मेरा वादा है कि ये रूक गए तो कोई आहत नहीं होगा । बेनामी ब्लॉगर्स की तो मैं परवाह ही नहीं करता , उनकी कोई शिकायत भी नहीं पालता । हर हर महादेव के नाम से लिखने वाला आदमी भी जिज्ञासु का शिष्य मुरादाबाद का राजबीर है । मैं उसे जानता हूं । याद रखिए कि कोई मुसलमान या शिवभक्त हिन्दू कभी काबा को गाली नहीं दे सकता ।
अब बताइये मोहतरम , मेरी शिकायत क्या ग़लत है ?
और अब जो भी दिल छलनी करने वाली पोस्ट आएगी , मैं आपको दिखा दूंगा । मेरा जवाब इन्हीं लोगों को होता है , सामान्य हिन्दू भाईयों को मैंने सम्बोधित करके कभी कोई बात नहीं कही । प्रश्नकत्र्ता को तो जवाब दिया ही जाएगा । अब आप बताएं ।

अक्ल तो नहीं लेकिन मुफ़्त सर खपाते हैं


फ़लसफ़ीनुमा बन कर फ़लसफ़ा सिखाते हैं

शरपसन्द अनासिर की यूरिशों के क्या कहने

नफ़रतों के शोलों से ज़िन्दगी जलाते हैं

ज़िन्दगी की अज़्मत का ऐतराफ़ है हमें

मुश्किलों की ज़द में भी हम मुस्कुराते हैं

कलाम - मुजीब शाहपुरी

44 comments:

Satish Saxena said...

डॉ अनवर जमाल का यह प्रश्न
@ सतीश जी ! मैंने आपसे कल पूछा था कि ' जब कोई इस्लाम या कुरान पर नाहक इल्ज़ाम लगाएगा . क्यूँ मोहतरम, तब तो आप मुझे बोलने का हक देंगे ?'
लेकिन आपने कोई जवाब नहीं दिया . क्यूं ?
हम दोनों ही इस महान देश के नागरिक हैं , फिर मैं कौन होता यह हक देने वाला ! कोई भी घ्रणित मानसिकता का इंसान अगर आपकी श्रद्धा पर इलज़ाम लगाता है या आप की श्रद्धा पर उंगली उठाता है तो वह समाज का अपराधी है ! ऐसे लोग अपने बच्चों के भविष्य के लिए अपराधी है ....आने वाले समय के लिए अपराधी हैं ...
मेरा यह मानना है कि इस्लाम या कुरआन पर कोई भी सच्चा या थोडा भी पढ़ा लिखा हिन्दू कभी इलज़ाम नहीं लगाएगा ! आप यकीन मानिए अनवर भाई !हिन्दू मानसिकता दुसरे धर्मों और मान्यताओं का सम्मान करना ही सिखाती है !अगर कोई व्यक्ति इसके खिलाफ कहीं बोलता है तो यकीनन वह संकीर्ण और घटिया मानसिकता वाला अपवाद हिन्दू हो सकता है और ऐसे लोग हर धर्म में हैं !
आपका कहना है कि आप व्यथित हैं कि आप और आपकी मान्यताओं के खिलाफ गन्दा और असहनीय बोला जा रहा है , अतः आप मजबूर हैं इन लोगों को यह समझाने पर कि खुद उनका धर्म क्या कहता है , और आप यह साबित करने के लिए उल्लेख और सन्दर्भ धार्मिक ग्रंथों के हिसाब से दे रहे हैं !
अपने विद्वान् दोस्त से मेरा प्रश्न यह है कि कि किसे जवाब दे रहे हैं आप ?
अनाम बुजदिलों को जिनकी कोई पहचान नहीं है ...ये वे अनपढ़ और अशिक्षित मुस्लिम हैं जो विभिन्न कारणों से हिन्दू जन मानस के साथ जुड़ना कभी पसंद नहीं करते और हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए हिन्दू देवी देवताओं के नाम के साथ अवतारित होकर आपके ब्लाग पर ऐसी गंदी गन्दी गालियाँ बकते है जो शायद वे अपने घर में कभी बोलने का सोंच भी ना पायें !
या उन चंद लोगों को, जो विभिन्न कारणों से साम्प्रदायिक भावना के साथ जुड़े हैं और चाहते हैं कि आप जैसे लोगों के कारण, उन्हें कहने का मौका मिलता रहे !
या उनको, जो अपने धर्म को उतना ही कठोरता से निबाहते हैं जैसे आप लोग !
या उन मूर्ख ब्लागरों को, जो अपना नाम चमकाने के लिए किसी भी मशहूर व्यक्ति के कहे पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करने का प्रयत्न करते हैं जिससे वे अपने मोहल्ले में मशहूर हो सकें ! आप किसे श्रेय देना चाहेंगे अनवर भाई !
कुरआन शरीफ को मानने वाले करोड़ों हैं और हम सब इसकी इज्ज़त करते हैं ! मगर आप अगर इन लोगों के घटिया कमेंट्स छाप कर , अपने करनी को ठीक ठहराना चाह रहे हैं तो निस्संदेह मेरे जैसे और लोग और संस्थाओं के प्रयासों को जाने अनजाने में बर्बाद कर रहे हैं ! यह रास्ता कभी ठीक नहीं हो सकता अनवर भाई ....कृपया दुबारा विचार करें और बिना सहायकों से मदद लिए विचार करें ! खुदा आपकी मदद करे ! अंत में शहरोज़ की कृपा से हबीब जालिब की एक ग़ज़ल आपकी नज़र है जो मुझे बहुत पसंद है !

"खतरा है ज़र्दारो को
गिरती हुई दीवारों को
सदियों के बीमारों को
खतरे में इस्लाम नहीं

सारी जमीन को घेरे हुए
हैं आखिर चंद घराने क्यों ?
नाम नबी का लेने वाले
उल्फत से बेगाने क्यों

खतरा है बटमारों को
मगरिब के बाज़ारों को
नव्वावों गद्दारों को
खतरे में इस्लाम नहीं "
मेरा अनुरोध है कि इस्लाम और हिन्दू धर्म के खिलाफ अनाम लोगों के कमेंट्स को छापना बंद कर दें ...उन्हें तवज्जो न दें और अपने देश के जनमानस पर विश्वास करें !
सादर !
PS: पूरे देश का हित आवश्यक है न की एक दो लोगों को जवाब देने आवश्यक , मेरी यह आपसे आखिरी गुजारिश है हो सके तो मान जाइए !

Ayaz ahmad said...

आप सही कहते हो सक्सेना साहब हमारा और anwar भाई का यकीन इन्ही बातो में है हम खुद इस तरह की बातो बचना कहते है हम तो ब्लॉगजगत में kuch लोग है par आप jaise logo का saath और pyar hame hamesha milta rahega

Ayaz ahmad said...

आखिर कब तक उकसावे में आकर अपनी उर्जा को बर्बाद करते रहोगे! जैसे लेखन का प्रयोग आपने अपनी पुस्तक "दयानंद जी ने क्या खोया क्या पाया" में किया था, अपनी प्रतिभा को वैसे ही प्रयोग करिए, ताकि लोगो ने जो इस्लाम के बारे में मिथ्या प्रचार फैला रखा है, उसका अंत हो.

Ayaz ahmad said...

ऐ रसूल-अल्लाह, फर्मा दीजिये, कि मैं कोई नया धर्म लेकर नहीं आया हूँ, बल्कि यह तो वही पुराना धर्म है, जो इस विश्व के आरम्भ से चाला आ रहा है."

Ayaz ahmad said...

मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ, कि यहाँ लोग दोगले चरित्र की बातें करते हैं, जब कोई कुरआन के बारें में गलत बातें लिखता हैं, (जिन का कोई सर-पैर भी नहीं होता) तो वही लोग वहां जाकर उस लेख की तारीफों में कसीदे पढ़ते हैं. परन्तु जब कोई हिन्दू धर्म के भाष्यों के बारे में लिखता है, तो लोग धमकियां देने लगते हैं

सहसपुरिया said...

सतीश साहब आपकी बात बिल्कुल सही है, इक दूसरे की भावना का सम्मान सभी को करना चाहिए. दूसरे मैं कमी निकालने से पहले अपनी कमियो दूर करना ज़रूरी है. आपसे बहुत छोटा हूँ उम्र मैं भी और इल्म मैं भी, लेकिन मुझे आपसे इक शिकायत है जिस तरह आप डा० साहब को समझा रहे है वो पोस्ट आपके ब्लॉग पर देख कर बहुत अच्छा लगा, ये आपका बड़प्पन है और मैं आपके इस बड़प्पन की क़द्र करता हू, लेकिन क्या आपने कभी अपने ब्लॉग पर इक पोस्ट उन लोगो का नाम ले लेकर लगाई जिन्होने ये सब शुरू किया? ये वोही लोग हैं जो अपना अध कचरा ज्ञान लेकर '' बुधीजीवी'' बनने पर तुले हुए हैं,
इक साहब हैं उनको हिन्दी तो ढंग से लिखनी नही आती मगर उनको अपनी सभ्यता से इतना प्यार है वो किसी और को बर्दाश्त ही नही करना चाहते, और तो और उनका दोगला पन देखिए कभी तो वो मुसलमानो के बड़े हमदर्द बन कर सामने आते हैं और थोड़ी देर बाद उसी इस्लाम मैं कामिया निकालने लग जाते है इन '' गिरे'' हुए साहब का नाम लेकर कभी इनको भी समझा दीजिए. दूसरे ''चिपकू'' क़िस्म के है जहाँ कहीं उनको सोते जागते इस्लाम या मुसलमान सुनाई दिया लग गये अपने आपको ''देशप्रेमी'' साबित करने.
कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे ये देश इन्ही के भरोसे चल रहा है, अगर इनका बस चले तो ये नया संविधान ही बना दें. हर मसले पर कही इनकी बात पत्थर की लकीर होती है, सितम तो ये है की दूसरे भी लग जाते है बगले बजाने, कहीं ''देशप्रेम'' की दौड़ मैं ये लोग पीछे ना रह जाए.
डा० साहब का हर लेख क्रिया की प्रितिक्रिया है उन्होने अपनी तरफ से कभी पहल नही की, अगर तुच्छ मानसिकता के ''बुधीजीवी'' इसलाम और मुसलमानो को सॉफ्ट टारगेट समझ कर इस तरह की उल्टी बातें करेंगे, तो आप किस किस को चुप कराएँगे?

उम्मीद है आप मेरी बात को किसी और सेन्स मैं नही लेंगे, और इसी तरह अपना बड़प्पन बनाए रखेंगे .
आख़िरी सवाल सबसे, क्या ब्लॉग जगत (ख़ास तौर से हिन्दी ब्लॉग्स) मैं मशहूर होने के लिए इस्लाम और मुसलमान को गाली देना ज़रूरी है ?

सहसपुरिया said...
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सहसपुरिया said...

Dr. LONG LIVE

Mohammed Umar Kairanvi said...

nice post

Satish Saxena said...
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Satish Saxena said...

@ आदरणीय सहसपुरिया और डॉ अयाज अहमद,
आज पहली बार मैंने बिना आक्रोश इतनी प्यार भरी बातें सुनी ...मुझे लगा मेरी मेहनत सफल हो गयी ...मेरे ही कुछ भाइयों से मुझे मिलने वाली नफरत के बदले यह सम्मान अतुलनीय है ! मगर आप महानुभावों से कर वद्ध प्रार्थना करते हुए निवेदन है !
जिन लोगों की तरफ आपने नाम लेकर इशारा किया मैंने उनके अपने धर्म पर लिखे गए कुछ लेख पढ़े हैं और यकीन मानिए मैं उनका भी समर्थक हूँ और आदर भी करता हूँ ! धार्मिक भावना के साथ कार्यरत यह लोग हिन्दू धर्म का चरित्र बरकरार रखने और और उचित संस्कार हमारे बच्चों में पंहुचाने के लिए बहुत मेहनत करते हैं ...और यह आवश्यक भी है ! ठीक इसी प्रकार दे अनवर जमाल ...सलीम खान ..आप खुद और उमर कैरानवी अपने अपने क्षेत्र में विद्वान् हैं और अपने दीन के लिए बहुत अच्छा काम कर रहे हैं ! समस्या तब शुरू होती है जब यह आदरणीय विद्वान् अपना कार्य भूल कर, एक दूसरे के सामने खड़े होकर दूसरे धर्म की व्याख्या ( क्रोधित होकर ) शुरू कर देते हैं ...
उससे भी अधिक ख़राब तब होता है जब अपने श्रद्धेय को देख, भीड़ में से निकल कुछ लोग घटिया गालियाँ देना शुरू कर देते हैं और गालियाँ भी उनको दी जाती हैं जिनको हम सोते जागते नमन करते हैं ! और यही यहाँ हो रहा है ...जब भी कोई अच्छा लिखना शुरू करता है भीड़ में से गुस्से में उबलता, देख रहा एक व्यक्ति, बेहद घटियापन पर आकर वह गालियाँ दे जाता है कि कोई बात शुरू करने की हिम्मत ही न करे !
आप सबसे निवेदन है कि आप लोग कोई गंदे कमेंट्स चाहे वह पवित्र हिन्दू धर्म के खिलाफ हों या नबी के खिलाफ , किसी हालत में न छापें ! किसी का दिल दुखाये बिना अपने धर्म की खूबसूरती को आगे बढ़ाएं ! यह बातें आपके ही दीन और ईमान में कही गयी हैं जिन्हें हर मुसलमान के लिए फ़र्ज़ और जीने का मकसद बताया गया है, को मैं नमन करते हुए याद दिला रहा हूँ !
जो हिन्दू भाई यहाँ आकर गन्दा बोल रहे हैं ..मैं उनसे विनती कर रहा हूँ कि अपने संस्कार को याद करते हुए, अपना गुस्सा छोड़ कर क्षमा करना सीखें और एक भी अपशब्द प्रयोग न करें तो मेरी मान्यता को बेहद बल मिलेगा ! और हम अपने धर्म में सिखाई बातों पर चल पाने इमं समर्थ होंगे !
मुझे पूरा विश्वास है जो वास्तविक हिन्दू यहाँ हैं उनमें कोई भूल नहीं है ...वे शालीनता और ज्ञान के भण्डार हैं ! मैं खुद अपने आपको , धार्मिक पुस्तकों का ज्ञानी नहीं मानता और इन लोगों को देख गर्वित होता हूँ उनसे मुझे पूरी उम्मीद है कि वे इस प्यार के पौधे को पनपने का अवसर ही नहीं देंगे बल्कि इसे सींचेंगे भी !!
अनवर भाई और आप सब लोगों की तरफ आशा भरी निगाह से देखता हुआ
आपका अपना ही भाई
सतीश सक्सेना

Satish Saxena said...

@ सहस पुरिया ,
"लेकिन मुझे आपसे इक शिकायत है जिस तरह आप डा० साहब को समझा रहे है वो पोस्ट आपके ब्लॉग पर देख कर बहुत अच्छा लगा, ये आपका बड़प्पन है और मैं आपके इस बड़प्पन की क़द्र करता हू, लेकिन क्या आपने कभी अपने ब्लॉग पर इक पोस्ट उन लोगो का नाम ले लेकर लगाई जिन्होने ये सब शुरू किया? ये वोही लोग हैं जो अपना अध कचरा ज्ञान लेकर '' बुधीजीवी'' बनने पर तुले हुए हैं, "

वे मेरी बातें नहीं मानेंगे ..यह मुझे पता है , मैं उनका गुरु नहीं हूँ और न उनकी मुझ पर कोई श्रद्धा है ...वे अपने को पूरी कौम का प्रतिनिधि मानते हैं और आप लोगों की सोच को गाली देने ही यहाँ आते हैं ! इन मूर्ख विद्वानों को यह भी नहीं पता कि उनकी बार बार यहाँ आने से ही डॉ अनवर जमाल लोकप्रियता के शीर्ष पर पंहुच गए ! ख़राब बताने आये थे और अच्छा करके चले गए :-))
मैं बार बार कहता हूँ कि आप लोग इनसे कुछ न कहें और न इन्हें भाव दें ..ऐसे लोग आपकी तरफ भी कम नहीं हैं !

एक बात और कहना चाहता हूँ सारे अनाम साथियों ( इनका सही नाम ढूँढना बेहद आसान होता है ) से जिनमें आप लोग भी शामिल हैं जोश में होश न खोएं . भारतीय कानून के तहत किसी का अपमान करने की सजा का प्रावधान है और यह सजा धार्मिक मामलों में और भी गहरी है !

कृपया मूर्खताएं न करें अगर कोई व्यक्ति धार्मिक अवमानना के कारण कोर्ट में चला गया तो यकीनन पछताने को कुछ नहीं बचेगा !
सादर

HAR HAR MAHADEV said...

भाई जमाल वन्देमातरम
माफी चाहता हूँ की मेरे शब्दों से आपको ठेस पहुची ..भाई जमाल में कभी नहीं चाहता हूँ की किसी को दुख पहूंचाऊ लकिन ...आप ने लिखा हे हे शाखा में लाठिय भांजने वाले भी होते हे में भी उनमे से एक हूँ...में बजरंगी हूँ ...भाई आप कुरान और अपने धरमकी अछइयो को यंहा अपने ब्लॉग में लिखे ....में खुद मुस्लिम संतो का आदर करता हूँ ...में अजमेर का हूँ भाई में खवाजा साहब का मुरीद हूँ ....मेरे देशवाली भाई कई दोस्त हे ....जन्हा बात कट्टरता की आजाती हे वंहा बात बिगड़ जाती हे ...आप संतुलन बनाये रखिये ....में आप से वादा करता हूँ की ....आयन्दा ऐसी कोई बात नहीं होगी ...पुन माफी के साथ आपका हमवतन भाई हर हर ....वन्देमातरम

Amit Sharma said...

श्रीमान जमाल साहब,
जैसा की शाह नवाज़ भाई ने कहा था ----यह सब लिखने से बेहतर है, दोनों धर्मों में क्या समानताएं हैं, इस पर रौशनी डालते. शांति और भाईचारे की आज पुरे विश्व को ज़रुरत है."
मेरी भी आपसे यही कामना है की हम लोग इस्लाम को जानना चाहते है, हमे अपनी लेखनी से इस्लाम के बारे में अवगत कराइए, बिना आमंत्रण की भावना के, सिर्फ उपासना पद्दति मानने वालों की संख्या बढ़ने का लक्ष्य अपने दिमाग में ना रखिये, इस्लाम का प्रचार तो यूँ ही हो जायेगा जब उसकी सात्विक रौशनी में मानवता दिखलाई देगी.
इसके अलावा कुछ ऐसा भी लिखिए की मुस्लिम समाज में शिक्षा का स्तर बड़े, समाज के परिवारों में घूम-घूम के उन्हें समझाओ की सिर्फ एक पीड़ी को ग्रेजुएट बना दो पूरा समाज ग्रेट बन जायेगा. अपने लेखन कर्म से शिक्षा और सद्भाव का वातावरण बनाइये,

अमित शर्मा

impact said...

"काला चश्मा लगाने वाला और सुअर की गाली देने वाला एक आदमी आये दिन मुसलमान औरत के बुरके पर चिन्ता प्रकट करता रहता है ।"
उसे तो होगी ही चिंता. काले चश्मे के पीछे से भूखी नज़रें कैसे सेंकेगा.

Shah Nawaz said...

आखिर कब तक उकसावे में आकर अपनी उर्जा को बर्बाद करते रहोगे! जैसे लेखन का प्रयोग आपने अपनी पुस्तक "दयानंद जी ने क्या खोया क्या पाया" में किया था, अपनी प्रतिभा को वैसे ही प्रयोग करिए, ताकि लोगो ने जो इस्लाम के बारे में मिथ्या प्रचार फैला रखा है, उसका अंत हो. वैसे भी इंसान को हमेशा मधुर भाषा का प्रयोग करना चाहिए, कटु- वाणी के प्रयोग से कभी भी बात के महत्त्व का पता नहीं चलता है. कुछ लोग आपको विषाक्त विषयों में उलझाए रखना चाहते हैं, इन लोगो का मकसद ही यह हो सकता है की आपको झगड़ो में उलझाए रखा जा सके. मेरे विचार से तो आपको हिन्दू-मुस्लिम एकता पर लिखना चाहिए, क्योंकि प्रेम और शांति से बढ़कर विश्व में कोई भी विषय नहीं हो सकता है. आपके ब्लॉग का नाम वेद और कुरआन है, तो क्यों ना इन दोनों धर्मों के ग्रंथो के बीच यक्सू (एक जैसी) बातों को दुनिया के सामने लाया जाए.

zeashan haider zaidi said...

शान्ति की राह में एक क़दम तो बढ़ा. मैं इस क़दम के साथ हूँ. अब देखें और क़दम कब बढ़ते हैं.

ZEAL said...

@ Dr Anwar--

What's your say on M F Husain's paintings ( The nude pics of Gods and Goddesses).

What could be his motive?

His ignorance?...or his intellectual terrorism?

Did you feel good watching those pics?...Did you ever feel like raising your voice against his filthy mentality?

Can a 'Fatwa' be issued against such people?

kunwarji's said...

fark to padta hai bhai!marji hai aapki aakhir desh hai aapka!

kunwar ji,

Pushpendra said...

"इसके अलावा कुछ ऐसा भी लिखिए की मुस्लिम समाज में शिक्षा का स्तर बड़े, समाज के परिवारों में घूम-घूम के उन्हें समझाओ की सिर्फ एक पीड़ी को ग्रेजुएट बना दो पूरा समाज ग्रेट बन जायेगा. अपने लेखन कर्म से शिक्षा और सद्भाव का वातावरण बनाइये."

amit ji ne bilkul theek kha hai.sirf siksha hi kisi samaj ko manavtavadi bana sakti hai

Unknown said...

इच्छा तो नहीं थी, लेकिन आपने कई बार मेरा नाम ले-लेकर पोस्टें लिखीं और आरोप लगाये हैं इसलिये कमेण्ट कर रहा हूं…
1) जमाल साहब मेरी 3-4 ऐसी पोस्ट निकालकर बतायें जिसमें मैंने "अपनी तरफ़ से" कुर-आन की आलोचना या बुराई की हो…
2) मैंने जो भी लिखा हमेशा उसकी लिंक और रेफ़रेंस दी है, खामखा मनमर्जी से कुछ नहीं ठोका…
3) मैं अधिकतर आजकल चल रहे हालातों पर लिखता हूं… वेद-पुराण-कुरान पकड़कर नहीं बैठा रहता… क्योंकि उन "सभी धार्मिक किताबों" में कई बाते अप्रासंगिक हैं, बकवास हैं…। लेकिन आप हैं कि आज के जमाने की बातें छोड़कर वेदों की आलोचना में लगे रहते हैं, क्योंकि उससे आपको अपना कार्य जस्टिफ़ाई करने में मदद मिलती है।

अन्त में एक फ़ाइनल बात, आप हमेशा नरेन्द्र मोदी, प्रज्ञा, तोगड़िया आदि को कट्टर और आतंकवादी बताते हो… यानी विश्व में कुल कितने हिन्दू आतंकवादी हुए? जिन्होंने हिन्दू ग्रन्थ पढ़े और जिन पर हिन्दू संस्कार हुए।

अब एक और लिस्ट बनाईये, जिन्होंने कुर-आन पढ़ी - लादेन, जवाहिरी, अफ़ज़ल गुरु, कसाब… आदि-आदि-आदि-आदि-आदि लम्बी लिस्ट है।

जिन आतंकवादियों ने बाइबल पढ़ी - जॉर्ज बुश, प्रभाकरण, आयरिश आर्मी वाले, नागालैण्ड-मणिपुर के गुट आदि-आदि-आदि-आदि-आदि… लम्बी लिस्ट है।

अब तुलना कीजिये - किस धर्म की शिक्षा लेने वाले आतंकवादियों की संख्या अधिक है? आपको "समस्या की जड़ कहाँ है" खुद ही पता चल जायेगा…। ये आँकड़े भी एकत्रित कर लीजिये कि समूचे विश्व में मुसलमानों पर अत्याचार करने वाले किस धर्म के अधिक लोग हैं… उसके बाद मुझ पर आरोप कीजियेगा…

और ये मत कहियेगा कि सभी धर्मों में आतंकवादी तो होते ही हैं… क्योंकि मेरा सवाल यही होगा कि फ़िर हिन्दू धर्म में आतंकवादी कम क्यों हैं? और मेरा जवाब भी वही होगा - मूल रूप से धार्मिक शिक्षा का अन्तर… और "माइण्डफ़्रेम" की डिज़ाइन…।

zeashan haider zaidi said...

सुरेश जी, इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है, तो आबादी के अनुसार स्पष्ट है की उसमें गलत लोग भी ज्यादा होंगे. लेकिन आप इसको अगर आबादी के अनुसार परसेंटेज में कैलकुलेट करें तो स्थिति ज्यादा स्पष्ट होगी. मुसलमानों में आतंकवादी कितने मिलेंगे शायद 0.01% भी नहीं.

Unknown said...

चलिये ज़ैदी साहब, आपके मन की ही कर लेते हैं… आप परसेंटेज ही निकाल लीजिये…

हिन्दुओं की आबादी में से कितने हिन्दुओं ने अलग-अलग मुस्लिम देशों में जाकर बम फ़ोड़े, हवाई जहाज़ अगवा किये, बन्धक बनाये, लोगों के गले रेते, संगठन बनाकर धमकाया, आत्मघाती बम बनाये…आदि-आदि-आदि-आदि।

और हिन्दुओं के इस परसेंटेज की तुलना पहले ईसाई धर्म मानने वाले आतंकवादियों के परसेंटेज से कीजियेगा… फ़िर इस्लाम के नाम पर आतंक फ़ैलाने वालों से। ओके I am waiting...

HAR HAR MAHADEV said...

सुरेश जी सर ,जीशान भाई ,,उन्हें बुरे लोग बता रहे हे ...जबकि बुरे और अतंकवादियो में बहुत अंतर हे ,,,,मूल कारन खोजने पैर धार्मिक सिक्षा को गलत तरीके से उनके दिमाग में उतारना....जीशान भाई खुले रूप से उनके खिलाफ एक पोस्ट तो लिखो .....???आप का भी आधुनिक दिमाग समने आये ...भाई परिवर्तन की आवश्यकता हर वस्तू विचार ,और संस्कृति को होती हे आप सवीकार करना सीखो ,,,सुरेश जी सर सही लिख रहे हे.....धन्यवाद

zeashan haider zaidi said...

सुरेश जी, हम तो यह कह रहे हैं, "बेशक हिन्दू सद्गुणों की खान है । सनातन धर्मी भाईयों में ज्ञान और ज्ञानी को आदर देने का गुण पाया जाता है ।"

Satish Saxena said...

बहुमत हर धर्म में अच्छों का अधिक है , फिर कम लोगों की चर्चा क्यों ? उन्हें क़ानून अपने आप देख लेगा ! आइये हम एक दूसरे की अच्छाइयां देखने का प्रयत्न करें ! सुरेश चिपलूनकर और अनवर जमाल के लेखन में जो अच्छी चीजें हैं वे हम देखने की कोशिश करते हैं और मूल बात पर तो सहमति बन ही गयी लगती है ! आज लोगों ने खराब बातें भी नहीं की हैं ! आशा है भाई अनवर जमाल , डॉ अयाज़ अहमद , सहस्पुरिया , सलीम खान , कैरानवी साहब, सुरेश भाई , अमित शर्मा आदि सुयोग्य विद्वान् इस माहौल को ख़राब नहीं होने देंगे !
सादर आप सबको

Saleem Khan said...

इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है, तो आबादी के अनुसार स्पष्ट है की उसमें गलत लोग भी ज्यादा होंगे. लेकिन आप इसको अगर आबादी के अनुसार परसेंटेज में कैलकुलेट करें तो स्थिति ज्यादा स्पष्ट होगी. मुसलमानों में आतंकवादी कितने मिलेंगे शायद 0.01% भी नहीं......................................................

iqbal said...

भारत के तिहाई हिस्‍से पर जिन नक्‍सलियों ने आतंक मचा रखा है क़प्‍या उन्‍हें आतंकवादी न गिना जाये

Unknown said...

@ iqbal भाई, - नक्सली तो वामपंथ से प्रेरित हैं, जो कहते हैं कि हमारा कोई धर्म ही नहीं है, हम नास्तिक हैं। इसलिये उन्हें हिन्दू-मुस्लिम में गिनने का सवाल ही नहीं है… फ़िर कई नक्सल प्रभावित आदिवासी जिलों में धर्म परिवर्तन करके लाखों ईसाई बन चुके हैं, जिनके नाम हिन्दुओं जैसे ही हैं… जैसे प्रभाकरण था। इसलिये आपने सही कहा कि नक्सलियों को इसमें नहीं गिनना चाहिये…

यहाँ बात हो रही है कि वेद-पुराण-गीता पढ़कर कितने आतंकवादी बने और कुरान-बाइबल पढ़कर कितने आतंकवादी बने…। इकबाल जी विषय से भटको (भटकाओ) मत… :)

Mahendra said...

भाई अनवर जमाल साहब ,और सुरेश चिपलूनकर साहब

आपका पोस्ट मैं पड़ता हु लेकिन कमेन्ट कभी नहीं करता था क्योकि समझ में नहीं आता था की क्या लिखू ,गलत किसे और कैसे कहू कुरआन या गीता या ,रामायण को / मै समझता हु किसी को न तो कुअरान के बारे में और ना ही गीता या रामायण के बारे में कुछ अप्सब्द बोलने का हक है क्योकि ये सब धार्मिक किताबे है और हर इंसान की भावनाए इनसे जुडी हुई होती है और इनकी रचना करने वाले महान और पुजय्नीय थे .सतीश सक्स्सेना साहब आपको धनयबाद आपकी वजह से ही मुझे भी कमेन्ट करने का मौका मिला / भाई चिपलूनकर साहब आपके ब्लॉग मै अनवर जमाल साहब के ब्लॉग से पहले पढ रहा हु आप हर लेख का लिंक देते है लेकिन मतलब तो वही निकलता है की आप किसी को निचा दिखाने की ही कोसिस कर रहे हो आतंकबाद चाहे हिन्दू हो या मुसलमान किसी को सही नहीं कहा जा सकता इससे आप भी सहमत होंगे तो फिर इस बात का कोई मतलब नहीं होता की किसमे ज्यादा है / आतंकबाद मुसलमान में ज्यादा क्यों है ये सायद सतीश सक्स्सेना साहब या अमित शर्मा जी बेहतर ढंग बता सके मेरे समझ से तो गरीबी और शिछा का आभाव है जिसे आप सब सज्जन लोग चाहे तो दूर हो सकता है

Gyan Darpan said...

लेकिन समाज में दो ग्रुप ऐसे पाये जाते हैं जिनसे मुझे इसलाम , मुसलमान , पवित्र कुरआन और पैग़म्बर साहब के लिए प्रायः कष्टप्रद बातें सुनने को मिलती रहती हैं । अपने लिट्रेचर में भी यह लोग इसलाम के खण्डन की सामग्री निःसंकोच प्रकाशित करते रहते हैं । एक ग्रुप आर्य समाज कहलाता है और दूसरा ग्रुप शाखा में लाठियां चलाता है। मेरे ब्लॉग पर भी बदतमीज़ी करने वाले यही दो ग्रुप हैं , सामान्य हिन्दू नहीं है

@ लेकिन इन पर प्रतिक्रिया स्वरूप आपको पुरे हिन्दू धर्म के बारे में उलजलूल लिखकर सामान्य हिन्दू का दिल दुखाने का अधिकार भी नहीं है |

Anonymous said...

@sureshji-agar kitaab padh kar hi koi antaki hone lage to 1-2 desho ko chod kar baki sabhi desho ke nagrik anaki ho jate,antaki hona ya nahi hona sirf kitabon ya dharmik parivesh ko sandarbh me rakh kar hi nahi dekha ja sakta ..laden aur al-qayda kisne aur kaise establish kare unkko aadhunik hathiyaar kisne diye yeh bhi aap jante hain.aap sirf aur sirf dharmik nazariye se dekhate hain isiliye aapka nazariya bahut hi chota hai duniya me dharm ke alawa bahut se karan hain jo puri duniya ka vartmaan aur bhavishya ka rukh tay karte hain agar aankh aur dimaag ka dayra badhayenge to sab assf nazar aayega...

Satish Saxena said...

आज इस सुखद माहौल में मैं श्री रतन सिंह शेखावत जी से सहमत हूँ ...
सवाल किसी विचार या उद्देश्य की आलोचना का नहीं है ! जब हम इतनी संख्या में हैं तो मतभेद भी स्वाभाविक है, मगर क्या हम उनकी अच्छी विशेषताएं नहीं देख सकते ? यहाँ सबसे बड़ा अभाव एक दूसरे की तारीफ करने का हम केवल एक दूसरे की टांग खींचने की कोशिश क्यों करते हैं ? देश को प्यार तो हम सभी करते हैं मगर अगर उसका ठेका कोई और लेकर उस भक्ति पर सिर्फ अपना हक़ जताने लगे तो शिकायत का सबव बनता है !

Awadhesh Pandey said...

लेकिन समाज में दो ग्रुप ऐसे पाये जाते हैं जिनसे मुझे इसलाम , मुसलमान , पवित्र कुरआन और पैग़म्बर साहब के लिए प्रायः कष्टप्रद बातें सुनने को मिलती रहती हैं । अपने लिट्रेचर में भी यह लोग इसलाम के खण्डन की सामग्री निःसंकोच प्रकाशित करते रहते हैं । एक ग्रुप आर्य समाज कहलाता है और दूसरा ग्रुप शाखा में लाठियां चलाता है। मेरे ब्लॉग पर भी बदतमीज़ी करने वाले यही दो ग्रुप हैं , सामान्य हिन्दू नहीं है ।
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इतिहास को कब तक झुठलाते रहोगे आप. इस्लाम बेशक एक बहुत अच्छा धर्म होगा, लेकिन अन्य धर्मो के प्रति कितना सहिष्णु है, यह आप भी जानते हो और हम भी. बेहतर है किसी और को गाली देने से अच्छा बुराइयों को दूर करो, आर्य समाज और शाखा में लाठिया चलाने वाले लोग आपकी तारीफ करते नहीं थकेंगे.
हिन्दू धर्म में तमाम समाज सुधारक पहले भी थे अब भी हैं, ऐसा कुछ काम कर के दिखाओ सब अपने आप सुधर जायेंगे. भारत में ज्यादातर सामान्य हिन्दू ही रहते हैं, सब एक दूसरे से प्रेम करते हैं. काफ़िर जैसे शब्द को डिक्सनरी से निकाल दो, सबका भला सोचो, फिर चंद लोगों के गाली देंगे भी तो क्या कर लेंगे.

Satish Saxena said...

@ avdhesh pandey ,
एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !

DR. ANWER JAMAL said...

@ satish ji ! Thanks .

Amit Sharma said...

जमाल साहब आपने मेरे ब्लॉग पे पूछा है--------
@nice post . आपने लिखा है ... 'लेकिन यह कहा का न्याय की उनको जवाब देने की आड़ में आप हमारे ग्रंथों का मनमाना अर्थ करें. भाई आप पूछिये तो सही कि अमुक मंत्र का अनुवाद किस का है ? मैं आपको उस के अनुवादक का नाम बता दूंगा . मैं पवित्र कुरान कि आयत का अनुवाद भी न खुद करता हूँ , न किसी मदरसे के छात्र से फ़ोन पर पूछता हूँ बल्कि मैं तो किसी प्रामाणिक आलिम से ही उधृत करता हूँ . अब मैं वेद कुरान कि समानता पर लिखूंगा .
लेकिन प्रिय अनुज ! अभी आपने यह नहीं बताया कि क्या आप अभी भी बड़ा भाई बन कर ही बोल रहे हैं ?

April 20, 2010 8:02 PM

Amit Sharma said...

आदरणीय जमाल साहब ,
आप सिर्फ एक बात बताइए की किसी एक बात का धरना ही क्यों देके बैठ जाते है आप. आप ही बता दीजिये की व्याकरण में शब्दार्थ नाम की कोई चीज होती है या नहीं ? अगर होती है तो फिर क्यों शब्दार्थ और भाष्य का भेद नहीं समझ पा रहे है. और अगर नहीं जानते है तो निवेदन करना चाहूँगा की प्लीज पहले कुछ चीजों को क्लियर कीजिये, जैसे की शब्दार्थ और भाष्य का भेद .और इन जैसी कई और बातें. सिर्फ किताबों के टीपन से ही तो काम नहीं चलता है ना . जैसे की सभी को पता है की बांधो से पानी रोककर फिर उससे बिजली बनायीं जाती है,पानी काफी स्पीड से टरबाईन पे गिराया जाता है. फिर वोह घूमता है फिर बिजली बनती है आदि आदि . यह सामान्य ज्ञान है . लेकिन सिर्फ इतने भर से ही तो बिजली नहीं बन जाती है. उसकी एक पूरी विधि होती है, जिसको उस विषय के अनुसंधानक ही बेहतर तरीके से सीख, समझ, और कार्यान्वित कर सकतें है. इसी तरह ऋषियों ने वेदार्थ को समझने के लिए कुछ पद्दतियां निश्चित की है; उन्ही के अनुसार चल कर हम श्रद्धापूर्वक वेदार्थ को समझ सकते है. और सिर्फ वेद ही की बात नहीं है किसी भी भाषा को समझने के लिए उस भाषा का एक निश्चित व्याकरण होता है.

तो जिस भाषा में वेद लिखे गए है, उस भाषा के अर्थ को समझने के लिए तो उस भाषा और उस भाषा के व्याकरण का जानने वाला ज्यादा उन्नत तरीके से बता सकता है( ध्यान से समझिये सिर्फ शब्दार्थ, भाष्य विस्तार नहीं.) आप और मेरे जैसे ना जानने वालो से. जिस प्रकार बिजली उत्पादन इकाई के इंजिनियर और कर्मचारी बिजली बनाने की विधि किसी सामान्य व्यक्ति से ज्यादा जानते है और समझा सकते है .

भाष्य हमेशा भाष्यकारों के आत्मानुसंधान का प्रतिफल होता की उन विद्वान् ने किस लीक से आबद्ध होकर किसी शास्त्र के भाष्य में अपनी लेखनी को प्रवत्त किया है. फिर आपसे प्रार्थना करूँगा की शब्दार्थ और भाष्य विस्तार को समझते हुए किसी चीज को समझिये. अब हो सकता है की आप आगे फिर कुछ इस विषय पे लिखेंगे फिर मै अपनी आदत से मजबूर आप तक अपनी बात पहुँचाने आ बैठूँगा. लेकिन अगर आप इस छोटी सी बात को समझने का प्रयाश कर लेंगे तो मै समझता हूँ की शायद आपके अहम् के आड़े आने का कोई सवाल नहीं पैदा होगा. यहाँ जो बाते हो रही थी आप ही के कथनानुसार परस्पर संवाद ही तो था. संवाद में दूर्वाद किस तरह आ घुसा. कोई छिपी हुई बात नहीं है.

मै कोई धर्म, शास्त्र, व्याकरण या किसी भी विषय का विद्वान नहीं हूँ. सिर्फ एक जिज्ञासु भर हूँ . तो जिस प्रकरण में मुझसे ज्यादा कोई और जानता है तो उससे मालूम करने में मुझे तो कोई शर्म महसूस नहीं है मेरी कोई हेठी नहीं है. क्योंकि मुझे मालूम है की जहाँ शास्त्र निर्धारित रीती से अध्यापन हो रहा है तो वहां का विद्यार्थी ज्यादा अच्छी तरह से बता पायेगा बजाये बाजार में उपलब्ध कितोबों के. आप मत पूछिए किसी से अगर आप किसी से ज्ञान प्राप्त करने में अपनी हेठी मानते है तो. बाकी हमारे यहाँ तो यही सिखाया जाता है की ज्ञान कही से भी प्राप्त हो ग्रहण करने योग्य है, इसमें ज्ञान डाटा की उम्र कोई बाधा नहीं है.

बड़े हमेशा आप ही रहेंगे. लेकिन मैंने मैंने आप से काफी पहले भी निवेदन किया था की, एकता की बाते करते है तो एक ही होइए. एक होने में भी आपका आग्रह यदि इसी बात पे रहता है की इस्लामिक उपासना पद्दति को मानकर ही एकता हो पायेगी अन्यथा नहीं. तो फिर तो आपसे सम्मान सहित यही निवेदन करना कहूँगा की आप एक बार फिर खाई पाटने की और नहीं खाई खोदने की तरफ ही कदम बढ़ाते प्रतीत होंगे.
आगे आप ज्यादा समझदार है. ज्यादा बेहतर समझ सकतें है

अमित शर्मा

HAR HAR MAHADEV said...

जमाल भाई एक लेख इन पागल कुतो के लिए भी लिख दो ..जो इस्लाम से दूर हो चले हे ...जेसे की कासाब और अफजल .....या इंडियन मुजाहिदीन .....सादर वन्देमातरम भाई ..जय भवानी जय परताप ..भाई में समझूंगा अगली पोस्ट इन्ही पागल कुतो के नाम होगी ...आप लिखोगे ना भाई ..

Taarkeshwar Giri said...

अच्छी और सार्थक बहस के लिए सतीश जी और अनवर जी को धन्यवाद्। मैं अगर ये चाहता हूँ की लोग मेरी इज्जत करे तो सबसे पहले मुझे ये चाहिए की मैं लोगो की इज्जत करना सीखू। और ये भी जरुरी है की अगर किसी भी समाज मैं कोई बुराई है तो उसे सब मिलकर के दूर करे।

अनवर साहेब ने वेदों को लेकर के काफी लम्बी बहस की, मेरे जैसे कुछ लोग इन्हें मना भी करते रहे और समय -समय पर कुरान के अन्दर का दृश्य भी लोगो को दिखाते रहे। लेकिन उस से क्या मिला । क्या कोई धर्म किसी की रोजी रोटी का जुगाड़ कर सकता है, शायद नहीं। फिर भी लोगो ने हद कर दी। मेरा धर्म तेरे से अच्छा , तेरा मेरे से ख़राब, क्या मिला लोगो को।
भगवान ने सभी धर्म के मानने वालो को एक जैसा ही बनाया हुआ फिर भी धर्म परिवर्तन क्यों। लोगो को क्या मिलता है धर्म परिवर्तन करने से और करने से।

Ayaz ahmad said...

आज की पोस्ट से ये साबित हो गया कि अच्छे लोग अब भी बहुसंख्या मे है ब्लाग पर आकर अच्छी बाते करने वाले सभी बन्धुओ का धन्यवाद और शुभकामनाए

Anonymous said...

अबे चूतिओं तुम लोग ये हिन्दू मुस्लिम दंगा कब बंद करोगे मादरचोदों ?

Anonymous said...

rat me bulaane ka kya chakkar hai.gandu hai kya.

Asir Bharti said...

I don't accept your version. If somebody is writting wrong things about you or muslim religion, quraan or allah, no doubt he is wrong and require critisim. But your answer covering all hindus/hindu texts/hindu religion is also equily wrong and requires equal critisim
When you say that your answer is to one only then you are not telling the truth. I can judge from your blog answers that in this way you put out your real sentiments about Hinduism