सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Tuesday, April 27, 2010

परमेश्वर के सिवाए कोई उपास्य नहीं . The Lord


ला इलाहा इल् - लल्लाह , मुहम्मद- उर - रसूलुल्लाह
अर्थात परमेश्वर के सिवा कोई उपास्य नहीं है , मुहम्मद परमेश्वर के दूत हैं ।

धर्म की बुनियाद परमेश्वर के अस्तित्व पर पूरा विश्वास और भक्ति है । यही बात सूरा ए फ़ातिहा में यूं कही गई है - इय्याका ना‘बुदु व इय्याका नस्तईन - पवित्र कुरआन , 1, 5

अर्थात हम तेरी ही भक्ति करते हैं और अपने तमाम कामों में तुझ ही से मदद और तौफ़ीक़ तलब करते हैं ।
कु़ल हुवल्लाहु अहद - पवित्र कुरआन , 112 , 1 अर्थात वह परमेश्वर एक है ।
चुनांचे सारे धर्म-मतों में भक्ति का जो भी तरीक़ा प्रचलित है , उसमें मुख़ातिब सिर्फ़ परमेश्वर का ही वुजूद होता है , किसी ऋषि मुनि , नबी या रसूल को संबोधित नहीं किया जाता । यह सबूत है इस बात का कि सभी धर्म-मतों का बुनियादी विश्वास एक परमेश्वर पर यक़ीन और उसकी भक्ति है । इसमें रद्दो बदल या कमी-ज़्यादती बाद की बातें हैं ।
हज़रत उस्मान से रिवायत की गई हदीस में यह कहा गया है कि
जो आदमी इस हाल में मरा कि उसे इस बात का यक़ीन था कि परमेश्वर के सिवाए कोई उपास्य नहीं , वह जन्नत में दाखि़ल हो गया ।
तो इसका भी यही मतलब है कि बुनियादी चीज़ अल्लाह की इबादत है । सो , जब किसी आदमी ने यह फ़र्ज़ अदा कर दिया , तो वह अपनी मन्ज़िले मक़सूद को पहुंच गया ।
लेखक : मालिक राम

पुस्तक : इस्लामियात ( उर्दू ) पृष्ठ 15 का हिन्दी अनुवाद

प्रकाशक : मकतबा जामिया लिमिटेड , नई दिल्ली

जो आदमी जानना चाहे कि मालिक राम कौन थे ?

वह इस पते पर ईमेल करके मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान साहब से पूछ सकता है ।

info@cpsglobal.org
आप यहां से पवित्र कुरआन व अन्य सार्थक साहित्य मुफ्त या क़ीमत देकर मंगा सकते हैं ।

40 comments:

DR. ANWER JAMAL said...

@ जन दुनिया वालो ! आज की पोस्ट आपके लिए .
@ प्रिय प्रवीण जी ! इस पोस्ट में एक इंग्लिश बुक का लिंक आपके लिए .
@ मराठी बन्धु ! कुछ समय की रहत आपके लिए .
@ गिरी जी ! आपको आज कोई शिकायत हो तो बताओ .
@ प्रिय महक जी ! आपके ब्लॉग पर अब तक न आ पाने के लिए क्षमा चाहता हूँ .
@ सभी हिन्दू मुस्लिम भाइयों के लिए दुआ और दिव्य प्यार .
@ प्रिय अमित ! आपका डिलीट किया गया कमेन्ट मैंने अपनी ईमेल में पढ़ा , मराठी बन्धु से आपकी शिकायत वाजिब है . अब तो आप मेरे साथ साथ इनको भी समझ गए . क्यूँ ?

Mahak said...

Aadarniye evam Priya Jamaal Bhaii

Jab tak aap aur Suresh ji mere blog par aakar apni rai aur sujhaav nahin denge main apne blog ko adhura samjhoonga.Kyonki aap dono hi mere liye Gurutulya hain.Aapse punaha nivedan ki jaldi se jaldi aayein aur apna aashirvaad dein.

Suresh Ji aap bhi.

Dhanyavaad

Ayaz ahmad said...

अनवर जमाल साहब आज आपने सचमुच सबको राहत पहुँचाने वाला लेख लिखा है

Mahak said...

Aadarniye evam Gurutulya Jamaal bhaii

Aaj aapke mere blog par aane se aur aapka aashirvaad roopi comment padhkar mujhe kitni khushi hui hai bata nahin sakta.Main aapko aur Suresh ji ko is blog jagat mein apne Guru ke samaan maanta hoon kyonki aap dono ke blogs padhkar mujhe kaafi kuch seekhne ko mila aur meri khud ki aankhon par bhi jo dharmandhta ki patti bandhi hui thi wo khuli aur maine baaton ko neutral wey se dekhna shuru kiya.
Aapka bahut bahut aabhaar.
Aasha hai aage bhi aapse yehi prem aur aashirvaad prapt hota rahega.

Ek baar phir bahut-2 shukriya aane ke liye aur aage bhi aate rahiyega.Aapka sadev swagat hai.

Mahak

DR. ANWER JAMAL said...

महक जी ! आप मेरे ब्लॉग पर followers के ऊपर google typing लिखा हुआ देखते होंगे . उस पर क्लिक करें और रोमन में लिखें . हिंदी में transliterate हो जायेगा . आजमा कर देखें . यह तोहफ़ा शाहनवाज़ भाई का है जो हमें पहुँचाया है भाई उमर कैरानवी साहब ने . use कर के बताएं कैसा लगा ?

zeashan haider zaidi said...
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Shah Nawaz said...

सभी साथियों के लिए एक और जानकारीः

जो कृतिदेव टाईपिंग जानते हैं और उसे यूनिकोड में बदलना चाहते हैं। वह आसानी से निम्नलिखित लिंक को खोल कर पेज को अपने कमप्यूटर में सेव कर लें। और जब चाहे अपने लेख को कृतिदेव से यूनिकोड टाईपिंग में बदल लें। निम्नलिखित वेब साईट (alldelhi.com) मेंरी अपनी ही हैः

http://alldelhi.com/uniconverter.htm

Shah Nawaz said...

बेहतरीन जानकारी अनवर साहब। बहुत खूब!

अजित वडनेरकर said...

आपके प्रोफाइल में ईमेल आईडी दर्ज नहीं है, सो शब्दों का सफर पर आपकी टिप्पणी का जवाब यही दर्ज कर रहा हूं।

पढ़ने के बाद इसे यहां से डिलीट कर दें और अपना ईपता मुझे उपलब्ध करा दें।

@डॉ अनवर जमाल
आपके पास संभवतः अधूरी जानकारी है और इसका आधार क्या है, यह आप बताएं। श्रीकृष्ण का चरित्र जिस रूप में रचा गया है, उनके इर्द-गिर्द गोप-गोपियां हैं ऐसे में यह संभव नहीं कि वे आपस में लोकानुरंजन न करते हों। बात रास शब्द के कृष्णकाल में प्रचलित होने की है। गोपियों के साथ कृष्ण की नृत्यलीला को उस दौर में रास कहा जाता था या नहीं, मामला यह है और यह विशुद्ध ऐतिहासिक भाषाविज्ञान से जुड़ा प्रश्न है।

कतिपय विद्वानों का मानना है कि श्रीकृष्ण के समय रास शब्द प्रचलित नहीं था। वे नृत्य की परिपाटी और श्रीकृष्ण के कलाप्रेम को खारिज नहीं करते हैं। कृष्णचरित से कलाओं को अलग किया ही नहीं जा सकता। मुरलीमनोहर और गोप-गोपियों के मेल ने भारतीय संस्कृति को विविध कलाएं दी हैं। गुप्तकालीन रचना रास पंचाध्यायी से मण्डलाकार नृत्य के लिए रास शब्द का प्रचलन बढ़ा है। निश्चित ही रास ब्रज क्षेत्र का पारम्परिक लोकनृत्य रहा है। कृष्ण चरित से इस शब्द के जुड़ा होने के पीछे की भ्रम की गुंजाइश नहीं है।

पण्डा शब्द का संदर्भ पोथी-जंत्री तक ही सीमित है। इस वर्ग का नृत्य या कलाकर्म में कोई दखल नहीं था इसलिए रास शब्द से इन्हें जोड़ना भी ठीक नहीं।
यहां देखे-http://hi.brajdiscovery.org/index.php?title=%E0%A4%A8%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%AF_%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%BE

Ayaz ahmad said...

ला इलाहा इल् - लल्लाह , मुहम्मद- उर - रसूलुल्लाह
अर्थात परमेश्वर के सिवा कोई उपास्य नहीं है , मुहम्मद परमेश्वर के दूत हैं ।

Ayaz ahmad said...

कु़ल हुवल्लाहु अहद - पवित्र कुरआन , 112 , 1 अर्थात वह परमेश्वर एक है ।
चुनांचे सारे धर्म-मतों में भक्ति का जो भी तरीक़ा प्रचलित है , उसमें मुख़ातिब सिर्फ़ परमेश्वर का ही वुजूद होता है , किसी ऋषि मुनि , नबी या रसूल को संबोधित नहीं किया जाता । यह सबूत है इस बात का कि सभी धर्म-मतों का बुनियादी विश्वास एक परमेश्वर पर यक़ीन और उसकी भक्ति है । इसमें रद्दो बदल या कमी-ज़्यादती बाद की बातें हैं ।

dhawan said...

nice post

Anonymous said...

bhoot sunder likha mai to samjha tha aap likhna jante hi nahi

सहसपुरिया said...

good

Mohammed Umar Kairanvi said...

ईश्‍वर एक है, सब जाने फिर पता नहीं अनेक को क्‍यूँ मानें?

जमाल साहब प्रिय अमित का वो कमेंटस सभी पाठक पढना चाहेंगे, ब्‍लागिंग एवं धर्म हित में उसे सबको पढवाओ

Mahak said...

आदरनियें एवं गुरुतुल्य
जमाल भाई

आज आपके मेरे ब्लॉग पर आने से और आपका आशीर्वाद रुपी comment पढ़कर मुझे कितनी ख़ुशी हुई है बता नहीं सकता . मैं आपको और सुरेश जी को इस ब्लॉग जगत में अपने गुरु के सामान मानता हूँ क्योंकि आप दोनों के blogs पढ़कर मुझे काफी कुछ सीखने को मिला और मेरी खुद की आँखों पर भी जो धर्मान्धता की पट्टी बंधी हुई थी वो खुली और मैंने बातों को neutral way से सोचना शुरू किया .

आपका बहुत -2 आभार .आशा है आगे भी आपसे यही प्रेम और आशीर्वाद प्राप्त होता रहेगा .

एक बार फिर बहुत -2 शुक्रिया आने के लिए और आगे भी आते रहिएगा .आपका सदेव स्वागत है .

महक

Mahak said...

जमाल भाई

ये सच में शानदार है .मैं खुद भी काफी दिनों से इसकी खोज कर रहा था की कैसे रोमन में लिखने की बजाये pure हिंदी स्क्रिप्ट में लिखूं लेकिन तरीका मिल नहीं रहा था .आपको कैसे पता लगा की मुझे ये समस्या आ रही है ? बताईगा ज़रूर.आपका एक बार फिर बहुत-२ शुक्रिया और शाहनवाज़ भाई और कैरानावी भाई का भी बहुत-२ शुक्रिया.इससे मेरे जैसे लोगों को काफी लाभ होगा.

Taarkeshwar Giri said...

Jai ho Kashi Wale Baba

Unknown said...

अजीत वडनेरकर साहब ऐसी रासलीला कोई महापुरुष रचा सकता है यकीन नही आता महापुरुष तो क़ौम के लिए आदरश होते है अगर उनके रास्ते पर देश चल पड़े तो नाश हो जाएगा ये सब पंडो का बनाया झूठ है जो उनहोने धरम का नाश करने के लिए किया था और वह कामयाब हो गये

Anonymous said...

Mahak ka dharmantaran kara dia re

Anonymous said...

लिंग परिवर्तन भी हो जायेगा

Mahak said...

@Ashwin भाई

नाम लिखकर comment कर देते तो भी तुम्हारी बात का मुझे बुरा नहीं लगता.

और ये जो दूसरा anonymous है ये तो अब किसी को मूंह दिखाने के ही लायक नहीं रहा है, अपना लिंग क्या दिखाएगा

Amit Sharma said...
This comment has been removed by the author.
Amit Sharma said...

श्रीमान अनवर साहब , और कैरंवी साहब मैं अपनी फैक्ट्री से नेट यूज करता हूँ , स्वाभाविक है की मेरे साथ काम करने वाले साथी भी मेरी इन गतिविधियों को, बड़े चाव से देखते,पढ़ते है. आप जिस कमेन्ट की बात कर रहे है उसको पढने से ही आप को पता चल गया होगा की ये मेरा लिखा हुआ नहीं है. हमारे कैमिस्ट साहब नवरतन जी कुमावत बड़े उत्तेजित होते है यह सब देख सुनकर और कुछ लिखने के लिए हमेशा बेताब रहते है. मैं जब मेरे चैंबर से बाहर गया तो उन्हें मौका मिल गया और अपनी भड़ास जिसके लिए भी निकालनी थी, निकाल दी और मेरे आते ही बोले सर देखिये मैंने यह लिखा है. वोह समय है और अभी का समय कुमावत जी अपनी गलती की भयानकता को समझ पाने के बाद अभी तक भी मेरे सामने आने का साहस नहीं कर पाए है. आप बार बार मेरे डिलीटेड कमेन्ट का हौवा खड़ा ना करे इसलिए मुझे स्पस्टीकरण देना पड़ रहा है.

इस पोस्ट के लिए साधुवाद ! हम भी एक ही ईश्वर में विश्वास करतें है . लेकिन उसमें किसी मानव को अनिवार्य रूप में साझीदार नहीं बनाते . जैसा की आप लोग ईश्वर के साथ पैगम्बर साहब की अनिवार्यता आवश्यक है . पैगम्बर रूपी मानव आपके यहाँ ईश्वर के साथ आवश्यक है .और हमारे यहाँ सारे रूप उस एक ईश्वर के है. अनेक रूपों में उस एक ईश्वर के आलावा हम किसी को नहीं मानते जबकि आपके यहाँ सिर्फ ईश्वर को मानना ही पर्याप्त नहीं एक मानव को भी पूर्ण रूपेण स्वीकृति देना आवश्यक है नहीं तो आपका एकीश्वरवाद पूरा नहीं होता है

Ayaz ahmad said...

@अमित जी आप वेदो के ऋषियो को सत्य मानते हो या नही ?

Anonymous said...

महक जी लगता है आप भी सारे ही लुच्चो को जानते है सबको नंगा कर देते है

वन्दे ईश्वरम vande ishwaram said...

वन्देईश्वरम् विश्व शान्ति की कामना

ज़ाहिद देवबन्दी said...

ये दुनिया एक मुसाफ़िरख़ाना है लौट के फिर वापस जाना है भर गया नेकियोँ से दामन गर कब्र मे खुशियो का खजाना है

nitin tyagi said...

एक बार की बात है कि पैगेम्बर मोहम्मद अपने मूह बोले बेटे के घर गए ,अचानक घर में भीतर गए तो वहां मूह बोले बेटे की पत्नी को नंगा नहते हुए देख लिया .अब पैगम्बर को जैनब की सुन्दरता इतनी भाई कि तुरंत अल्लाह तक उनके मन की बात पहुंची और तुरंत अल्लाह ने एक आयत एक्सपोर्ट कर दी कि जैनब को अल्लाह ने पैगम्बर के लिए ही धरती पर भेजा है।

http://quranved.blogspot.com/

nitin tyagi said...

Weekly Jihad Report
Apr 17 - Apr 23

Jihad Attacks: 38

Dead Bodies: 227

Critically Injured: 597

Unknown said...

लंका दहन नायक पवनपुत्र महावीर हनुमान जी ने मन्दिर को टूटने से बचाना क्यों जरूरी न समझा ? plain truth about Hindu Rashtra .

Unknown said...

- वेद आर्य नारी को बेवफ़ा क्यों बताते हैं ? The heart of an Aryan lady .

nitin tyagi said...

More people are killed by Islamists each year than in all 350 years of the Spanish Inquisition combined

Mohammed Umar Kairanvi said...

@ जमाल साहब यह कमेंटस भी हो सकता है नवरतन जी का ही हो, जो एक बार कर सकता है वह दोबारा भी कर सकता है, हम नवरतन जी की भावनाओं से परिचित होना चाहते हैं, उनकी आवाज़ दबाईये मत, वरना यह आपकी भयानक गलती हो सकती है,

@नवरतन जी, केवल हमारे यहाँ ही एक ईश्‍वर है दूसरा मानव उसका संदेष्‍टा है, आपके ग्रंथों में एक ईश्‍वर को मानने को कहा तो गया है लेकिन उस पर अमल नहीं किया जाता, इस बात को अधिक समझने के लिये देख सकते हैं antimawtar.blogspot.com
बहरहाल आप भी अगर एक ईश्‍वर को मानते हैं तो आप भी जन्‍नत में दाखिल हो सकेंगे जैसा कि जमाल साहब ने लिखा है ''जो आदमी इस हाल में मरा कि उसे इस बात का यक़ीन था कि परमेश्वर के सिवाए कोई उपास्य नहीं , वह जन्नत में दाखि़ल हो गया।''

DR. ANWER JAMAL said...

आपका हुक्म सर माथे पर . वैसे मैं अमित जी से सहमत हूँ लेकिन फिर भी है तो यह भी एक कमेन्ट ही . मराठी बंधू को पता चलना ही चाहिए कि लोग उनके रवय्ये से कितने ख़फ़ा हैं ?
कमेन्ट यह है - or sures ji aap to jab vedon ki dhajiyan uda raha tha ye dagdar to chale gaye thi gandgi bata kar, ab isne aapka naam liya to macak-macak ke jawab d rahe ho. matlab kiya sbjhe ved nakabile gor or tom sirmor had h
और सुरेश जी आप तो जब वेदों की धज्जियां उडा रहा था यह दागदार तो चले गये थे गन्‍दगी बताकर, अब इसने आपका नाम लिया तो macak-macak के जवाब दे रहे हो, मतलब क्‍या sbjhe वेद नाका‍बिले गोर और तुम सिरमौर हद है

Safat Alam Taimi said...

भाई Amit Sharma जी!
इस्लाम "हमारे हाँ और आपके हाँ" की बात नहीं करता अपितु अपना संदेश मानव के समक्ष पेश करता है। खूश़ी की बात यह है कि आज हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ भी इस्लामी सिद्धान्त का समर्थन कर रहे हैं।
मानव के लिए हर युग में एक ही धर्म आया परन्तु उसे लोगों तक पहुंचाने के लिए अलग अलग संदेष्टा आए। सब से अन्त में मुहम्मद सल्ल0 आए है।
लेकिन बुद्धि की दुर्बलता कहिए कि जिन संदेष्टाओं नें मानव को एक ईश्वर की ओर बोलाया था उन्हीं को ईश्वर का रूप दे दिया गया।
और यह सब अवतार की परिभाषा न समझने के कारण हुआ...डा0 श्री राम शर्मा "कल्कि पुराण" के 278 पृष्ठ पर अवतार की परिभाषा इस प्रकार करते हैं " संसार की गिरी हुई दशा में उन्नति की ओर ले जाने वाला महामानल नेता" अर्थात् मानव में से महान नेता जिसको ईश्वर मानव मार्गदर्शन हेतु चुनता है। ज्ञात यह हुआ कि अवतार असल में पैग़म्बर ही होते हैं जो परमेश्वर का संदेश पहुंचाने का काम करते थें। वह स्वयं सब से बड़े परमेश्वर के भक्त थे परन्तु लोगों ने उन्हीं को ईश्वर का रूप दे दिया और कहने लगे कि परमेश्वर फ़लाँ के रूप में उतरे हैं इस लिए इनकी पूजा ईश्वर की पूजा है। हालाँकि यह सत्य से अनभिज्ञता का परिणाम है। इस्लाम यही कहता है कि तुम एक ईश्वर की पूजा करो और संदेष्टा को मात्र मार्गदर्शक मानो।
ज़ाहिर है उस महान परमेश्वर के सम्बन्ध में यह तो कल्पना नहीं की जासकती कि वह स्वयं धरती पर आए इसी लिए तो उस ने मानव तक अपना संदेश संदेष्टाओं द्वारा पहुंचाया...
आप ने कहा कि एकेश्वरवाद उस समय तक पूर्ण नहीं होता जब तक किसी को बीच में न लाया जाए.. इस्लाम की हद तक ऐसा कहना सही नहीं...क्योंकि यदि कोई मुस्लिम मुहम्मद सल्ल0 को भी लाभ अथवा हानि का मालिक समझ ले तो वह इस्लाम की सीमा से निकल जाएगा क्योंकि मुहम्मद सल्ल0 भी मात्र इनसान थे उन में ईश्वरीय गुण कदापि नहीं था।
इस्लाम में एकेश्वरवाद के लिए किसी के माध्यम की आवश्यकता कदापि नहीं होती परन्तु संदेष्टा एकेश्वरवाद की शिक्षा देने के लिए ही आते हैं।आशा है कि इस दृष्टिकोण को सही कर लेंगे।
उन संदेष्टाओं की अन्तिम सीमा मुहम्मद सल्ल0 हैं जो सारे संसार के लिए संदेष्टा बना कर भेजे गए वही कल्कि अवतार हैं जिनकी आज हिन्दू समाज में प्रतीक्षा हो रही हैं। यदि उन्हें पहचान लिया जाए तो सारी समस्या ही समाप्त हो जाए।

Mohammed Umar Kairanvi said...

वेद नाका‍बिले गोर और तुम(सुरेश)सिरमौर हद है

नवरत्‍न जी ने पता नहीं सच कहा या झूठ कहा पर क्‍या खूब कहाः

और सुरेश जी आप तो जब वेदों की धज्जियां उडा रहा था यह दागदार तो चले गये थे गन्‍दगी बताकर, अब इसने आपका नाम लिया तो macak-macak के जवाब दे रहे हो, मतलब क्‍या sbjhe वेद नाका‍बिले गोर और तुम सिरमौर हद है

अमित जी से दरखास्‍त है वह नवरत्‍न जी से मालूम करके बतायें कि उनके कमेंटस में macak-macak हम समझ नहीं पाये यह मटक-मटक कर है या मचल मचल कर है?

Anonymous said...

नवरत्न भाई मराठी बाबू भाँड है क्या जो मटक मटक कर बुला रहा है

DR. ANWER JAMAL said...

@ अमित जी ! आपने कहा - हमारे यहाँ सारे रूप उस एक ईश्वर के है. चलिए अब यूं समझिये कि मैं भी ईश्वर का रूप और उसका अंश हूँ .
जब मैं ईश्वर हूँ तो मेरी बात भी सत्य हुई लेकिन आप हैं कि मुझे ईश्वर मानने के बावजूद मेरी बात को नहीं मानते . जो आदमी किसी ऋषि या पैग़म्बर का अनुसरण नहीं करता वह ऐसे ही खुद भी confuse रहता है और दूसरों को भी करता रहता है और वह सच सामने आने के बाद भी बात को मान यूं नहीं सकता कि मेरे नवरतन जैसे साथियों में मेरी इज्ज़त ख़ाक में मिल जाएगी कि यह क्या, जिसे हमने संस्कृति का रक्षक समझा था वह तो हाजी नमाज़ी बन गया . क्यों ?

diwakar said...

अनवर जमाल साहेब के मुताल्लिक इक बात कहना चाहूँगा
जनाब आप समझ ही न पाए कि आप इश्वारंश हैं आप आदतन चेहरा ही देखते रहे अपना, खुदाया ऑंखें बंद कर लीं होतीं .इसमें आप की खता नहीं ,दरबानों !!! से बचे होते तो खुदा का नूर देख पाते , तब शक ही न रहता और बहस भी नहीं .वो तो जर्रे जर्रे में है तुम हो कि अपनी बात मनवाने में फंस गए...........