सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Friday, April 16, 2010
क्या वेद अहिंसावादी हैं ? - डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ The True Hindu
जब मुसलिम देशों के संसाधनों पर क़ब्ज़ा जमाने के लिए उन पर हमले किए गए या किसी मुल्क में मुसलिम समुदाय को उनके वाजिब हक़ से महरूम रखा गया तो प्रतिक्रियास्वरूप उनमें उग्रवाद पनपा । फिर एक सुनियोजित षड्यन्त्र के तहत उनके हमलों को इसलाम के सिद्धान्तों से जोड़ कर उनके धर्म को ही कटघरे में खड़ा करने का कुत्सित प्रयास किया गया । बुद्धिजीवी होने का दम भरने वालों में कुछ लोग तो पवित्र कुरआन पर रिसर्च सी करके यह साबित करने में ही लगे हुए हैं कि मुसलमानों में कट्टरता का कारण पवित्र कुरआन है ।
हिन्दुस्तान में हज़ारों दंगे हुए जिनमें सन 84 के दंगों की तरह प्रशिक्षित सांप्रदायिक हिन्दूनुमा जीवों ने भयानक मारकाट की लेकिन किसी मुसलमान ने तो आजतक उनके पीछे उनके धर्मग्रन्थ की शिक्षाओं को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया । ये दुर्भावनाग्रस्त स्वकल्पनाजीवी अगर वेदादि पर सरसरी सी भी नज़र डाल लेते तो उन्हें खुद की कट्टरता का मूल नज़र आ जाता ।
डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ ने इसी महान मूल को ढूंढ निकाला है । उनके द्वारा लिखित पुस्तक ‘हिंदू इतिहास : हारों की दास्तान ‘ पृष्ठ 71 व 72 से यह चिरस्मरणीय लेख साभार उद्धृत है । यह पुस्तक विश्व विजय प्रा. लि. एम-12, कनाट सरकस , नई दिल्ली 110001 पर उपलब्ध है । अज्ञात जी जैसे लोग ही वास्तव में सच्चे हिन्दू और सच्चे ज्ञानी कहलाने के हक़दार हैं ।
क्या वेद अहिंसावादी हैं ?
भारत में प्रवेश के समय अथवा शुरू से ही आर्य लड़ाकू रहे हैं , ऐसा वेदों से पता चलता है । उन्हें यहां के मूल निवासियों , द्रविड़ों आदि अथवा अपने विरोधियों से पगपग पर और जम कर लोहा लेना पड़ा , युद्ध उनके लिए अनिवार्यता थी । इसलिए युद्धों में ज़्यादा से ज़्यादा मारकाट करने वाले को सर्वोच्च देवता क़रार दिया गया ।
ऋग्वेद का एक चैथाई भाग युद्ध और युद्ध के इस देवता से संबंध रखता है . ऋग्वेद में कुल 1,017 सूक्त हैं । इनमें 250 इंद्र से संबंधित हैं । इतने ज़्यादा सूक्त अन्य किसी देवता से संबंधित नहीं मिलते । नीचे इंद्र और उसके युद्धों का वर्णन करने वाले कुछ मंत्र प्रस्तुत हैं :
त्वमेतात्र् जनराज्ञो द्विदशाबंधुना सुश्रवसोपजग्मुषः ,
षष्टिं सहसा नवतिं नव श्रुतो नि चक्रेण रथ्या दुष्पदावृणक्
( ऋग्वेद , 1-53-9 )
अर्थात हे इंद्र , सुश्रवा नामक राजा के साथ युद्ध करने के लिए आए 20 राजाओं और उनके 60,099 अनुचरों को तुमने पराजित कर दिया था ।
इंद्रो दधीचो अस्थभिर्वृत्राण्यप्रतिष्कुतः जघान नवतीर्नव ।
( ऋग्वेद , 1-84-13 )
अर्थात अ-प्रतिद्वंदी इंद्र ने दधीचि ऋषि की हड्डियों से वृत्र आदि असुरों को 8-10 बार नष्ट किया ।
अहन् इंद्रो अदहद् अग्निः इंद्रो पुरा दस्यून मध्यन्दिनादभीके ।
दुर्गे दुरोणे क्रत्वा न यातां पुरू सहस्रा शर्वा नि बर्हीत्
( ऋग्वेद , 4-28-3 )
अर्थात हे सोम , तुझे पी कर बलवान हुए इंद्र ने दोपहर में ही शत्रुओं को मार डाला था और अग्नि ने भी कितने ही शत्रुओं को जला दिया था । जैसे किसी असुरक्षित स्थान में जाने वाले व्यक्ति को चोर मार डालता है , उसी प्रकार इंद्र ने हज़ारों सेनाओं का वध किया है ।
अस्वापयद् दभीयते सहस्रा त्रिंशतं हथैः, दासानिमिंद्रो मायया ।
( ऋग्वेद , 4-30-21 )
अर्थात इंद्र ने अपने कृपा पात्र दभीति के लिए अपनी शक्ति से 30 हज़ार राक्षसों को अपने घातक आयुधों से मार डाला ।
नव यदस्य नवतिं च भोगान् साकं वज्रेण मधवा विवृश्चत्,
अर्चंतींद्र मरूतः सधस्थे त्रैष्टुभेन वचसा बाधत द्याम ।
( ऋग्वेद , 5-29-6 )
अर्थात इंद्र ने वज्र से शंबर के 99 नगरों को एक साथ नष्ट कर दिया । तब संग्राम भूमि में ही मरूतों ने त्रिष्टुप छंद में इंद्र की स्तुति की । तब जोश में आकर इंद्र ने वज्र से शंबर को पीड़ित किया था ।
नि गव्यवो दुह्यवश्च पष्टिः शता सुषुपुः षट् सहसा
षष्टिर्वीरासो अधि षट् दुवोयु विश्वेदिंद्रस्य वीर्या कृतानि
( ऋग्वेद , 7-18-14 )
अर्थात अनु और दुहयु की गौओं को चाहने वाले 66,066 संबंधियों को सेवाभिलाषी सुदास के लिए मारा गया था । ये सब कार्य इंद्र की शूरता के सूचक हैं ।
वेदों में युद्ध के लिए युद्ध करना बड़े बड़े यज्ञ करने से भी ज़्यादा पुण्यकारी माना गया है । आज तक जहां कहीं यज्ञ होता है , उस के अंत में निम्नलिखित शलोक पढ़ा जाता है ।
अर्थात अनेक यज्ञ , कठिन तप कर के और अनेक सुपात्रों को दान दे कर ब्राह्मण लोग जिस उच्च गति को प्राप्त करते हैं , अपने जातिधर्म का पालन करते हुए युद्धक्षेत्र में प्राण त्यागने वाले शूरवीर क्षत्रिय उस से भी उच्च गति को प्राप्त होते हैं ।
हिन्दुस्तान में हज़ारों दंगे हुए जिनमें सन 84 के दंगों की तरह प्रशिक्षित सांप्रदायिक हिन्दूनुमा जीवों ने भयानक मारकाट की लेकिन किसी मुसलमान ने तो आजतक उनके पीछे उनके धर्मग्रन्थ की शिक्षाओं को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया । ये दुर्भावनाग्रस्त स्वकल्पनाजीवी अगर वेदादि पर सरसरी सी भी नज़र डाल लेते तो उन्हें खुद की कट्टरता का मूल नज़र आ जाता ।
डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ ने इसी महान मूल को ढूंढ निकाला है । उनके द्वारा लिखित पुस्तक ‘हिंदू इतिहास : हारों की दास्तान ‘ पृष्ठ 71 व 72 से यह चिरस्मरणीय लेख साभार उद्धृत है । यह पुस्तक विश्व विजय प्रा. लि. एम-12, कनाट सरकस , नई दिल्ली 110001 पर उपलब्ध है । अज्ञात जी जैसे लोग ही वास्तव में सच्चे हिन्दू और सच्चे ज्ञानी कहलाने के हक़दार हैं ।
क्या वेद अहिंसावादी हैं ?
भारत में प्रवेश के समय अथवा शुरू से ही आर्य लड़ाकू रहे हैं , ऐसा वेदों से पता चलता है । उन्हें यहां के मूल निवासियों , द्रविड़ों आदि अथवा अपने विरोधियों से पगपग पर और जम कर लोहा लेना पड़ा , युद्ध उनके लिए अनिवार्यता थी । इसलिए युद्धों में ज़्यादा से ज़्यादा मारकाट करने वाले को सर्वोच्च देवता क़रार दिया गया ।
ऋग्वेद का एक चैथाई भाग युद्ध और युद्ध के इस देवता से संबंध रखता है . ऋग्वेद में कुल 1,017 सूक्त हैं । इनमें 250 इंद्र से संबंधित हैं । इतने ज़्यादा सूक्त अन्य किसी देवता से संबंधित नहीं मिलते । नीचे इंद्र और उसके युद्धों का वर्णन करने वाले कुछ मंत्र प्रस्तुत हैं :
त्वमेतात्र् जनराज्ञो द्विदशाबंधुना सुश्रवसोपजग्मुषः ,
षष्टिं सहसा नवतिं नव श्रुतो नि चक्रेण रथ्या दुष्पदावृणक्
( ऋग्वेद , 1-53-9 )
अर्थात हे इंद्र , सुश्रवा नामक राजा के साथ युद्ध करने के लिए आए 20 राजाओं और उनके 60,099 अनुचरों को तुमने पराजित कर दिया था ।
इंद्रो दधीचो अस्थभिर्वृत्राण्यप्रतिष्कुतः जघान नवतीर्नव ।
( ऋग्वेद , 1-84-13 )
अर्थात अ-प्रतिद्वंदी इंद्र ने दधीचि ऋषि की हड्डियों से वृत्र आदि असुरों को 8-10 बार नष्ट किया ।
अहन् इंद्रो अदहद् अग्निः इंद्रो पुरा दस्यून मध्यन्दिनादभीके ।
दुर्गे दुरोणे क्रत्वा न यातां पुरू सहस्रा शर्वा नि बर्हीत्
( ऋग्वेद , 4-28-3 )
अर्थात हे सोम , तुझे पी कर बलवान हुए इंद्र ने दोपहर में ही शत्रुओं को मार डाला था और अग्नि ने भी कितने ही शत्रुओं को जला दिया था । जैसे किसी असुरक्षित स्थान में जाने वाले व्यक्ति को चोर मार डालता है , उसी प्रकार इंद्र ने हज़ारों सेनाओं का वध किया है ।
अस्वापयद् दभीयते सहस्रा त्रिंशतं हथैः, दासानिमिंद्रो मायया ।
( ऋग्वेद , 4-30-21 )
अर्थात इंद्र ने अपने कृपा पात्र दभीति के लिए अपनी शक्ति से 30 हज़ार राक्षसों को अपने घातक आयुधों से मार डाला ।
नव यदस्य नवतिं च भोगान् साकं वज्रेण मधवा विवृश्चत्,
अर्चंतींद्र मरूतः सधस्थे त्रैष्टुभेन वचसा बाधत द्याम ।
( ऋग्वेद , 5-29-6 )
अर्थात इंद्र ने वज्र से शंबर के 99 नगरों को एक साथ नष्ट कर दिया । तब संग्राम भूमि में ही मरूतों ने त्रिष्टुप छंद में इंद्र की स्तुति की । तब जोश में आकर इंद्र ने वज्र से शंबर को पीड़ित किया था ।
नि गव्यवो दुह्यवश्च पष्टिः शता सुषुपुः षट् सहसा
षष्टिर्वीरासो अधि षट् दुवोयु विश्वेदिंद्रस्य वीर्या कृतानि
( ऋग्वेद , 7-18-14 )
अर्थात अनु और दुहयु की गौओं को चाहने वाले 66,066 संबंधियों को सेवाभिलाषी सुदास के लिए मारा गया था । ये सब कार्य इंद्र की शूरता के सूचक हैं ।
वेदों में युद्ध के लिए युद्ध करना बड़े बड़े यज्ञ करने से भी ज़्यादा पुण्यकारी माना गया है । आज तक जहां कहीं यज्ञ होता है , उस के अंत में निम्नलिखित शलोक पढ़ा जाता है ।
अर्थात अनेक यज्ञ , कठिन तप कर के और अनेक सुपात्रों को दान दे कर ब्राह्मण लोग जिस उच्च गति को प्राप्त करते हैं , अपने जातिधर्म का पालन करते हुए युद्धक्षेत्र में प्राण त्यागने वाले शूरवीर क्षत्रिय उस से भी उच्च गति को प्राप्त होते हैं ।
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36 comments:
@सहसपुरिया भाई ! मैं जल्दी ही आपके लिये लिखूंगा ‘पान के देश मे पार्ट 5‘
आप रहस्य के आवरण में हो लेकिन मेरे दिल में रहते हो , जितने बड़े खिलाड़ी आप हो उस हिसाब से तो आपको एक बहुत बड़ा ब्लॉगर होना चाहिये । ख़ैर , आपकी हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
@भाई अमित ! क्या अपनी पुत्री के साथ सम्भोग करना भी वेदों के अनुसार ‘सम्यक रीति‘ में आता है ? क्या पुत्री को गर्भवती करते समय भी गर्भाधान संस्कार में पढ़ा जाने वाला मन्त्र पढ़ा जाता है या कोई अन्य ?
Bhai amit ji ! mujhe sayan ke bhshya men apka arth mila nahin . kahan dekhun ?
aur lage hathon yam yami samvad yani bhai bahan ki kam krida vishyak vartalap bhi samjha den uske bad ashvamedh yag ke bare men sanataniyon ki ghalatfahmi apse door karwaunga kyunki mujhe in sab par na kal aitraz tha aur na aaj hai . apni tarah dusre logon ko bhi namra banao . main khud mulayam ho jaunga .
kisi ki post se darne wale to khan sahab hain nahin . ghun ghun ghun ghun bas bus suti tuti ti ti hi hi hi ha ha haha ha ......
वेदों में जो वर्णित है वह बहुत कुछ हजरत आदम, हजरत नूह, हजरत अब्राहम, हजरत मूसा आदि के किस्सों की तरह है जो ओल्ड टेस्टामेंट में है. यदि आपको उनमें कुछ असत्य और अतिशयोक्ति या काबिलेईतराज़ नहीं लगता हो वेदों में भी नहीं लगना चाहिए.
जमाना बहुत बदल गया है. क्या जाने उस ज़माने में ऐसी चीज़ें क्यों लिखी गईं लेकिन आज सभी यह मानते हैं की ये किस्से केवल प्रतीकात्मक या केवल किस्से हैं.
एक आप ही इतने बेवक़ूफ़ हैं जो इन बातों को इस तरह पेश करते हैं जैसे ये किसी अंतिम किताब में लिखी हुई हों.
कमाल है. कुरआन में कही किसी भी बात की ज़रा सी भी नुक्ताचीनी नहीं, और वेदों पुरानों में घुसकर पोस्टों पर पोस्टें बनाई जा रही हैं,
ये सब पढ़े-लिखो के लक्षण नहीं हैं.
कुछ समझे मेरे चिकने चूतियानंदन!
ज्योत्सना बहन,
वैसे तो शुरु से ही इनके पास लिखने के लिये कुछ और था ही नहीं, और अब एक महिला फ़िरदौस बहन से बुरी तरह मात खाने के बाद तो ये साहब एकदम उबल रहे हैं…। इसलिये अब ये निचले स्तर पर आते-आते, लिंग-सम्भोग-मैथुन-यौन आदि विषयों पर आ गये हैं।
जिस दिन ये वेदों की ऊटपटांग व्याख्या नहीं करेंगे, उस दिन इन्हें कब्ज़ हो जायेगी… :) और इनकी तनख्वाह बन्द होने का खतरा भी मंडराने लगेगा…। रोजी-रोटी कमाने के लिये इन्हें ऐसा लिखना बेहद जरूरी है… आप इनसे थोड़ी सहानुभूति भी रखें।
खत्री साहब ज्योत्सना को यह क्या कह रहे हो
चुदक्कड़ जी कुछ मज़ा आया
Ved ki rachna jis samay ki gai us samay ke samaj main aur aaj ke samaj main bahutkuch parivartan aa chuka hai.
Kuran ki rachna Arab ke mahual main hui na ki Bhartiya mahual, Ek Arbian Samaj ko Bhartiya samaj se taulane wale sriman Anwar Saheb , Kripaya Apne gyan ko Kuran ki Buraion ko door karne main hi lagaye.
mere sath Haridwar Chale , Bhagwan Bhole nath Apko maf kar denge.
अरे भाईAgyat sharma जी लिख रहे ये बाते अब तो कोई एतराज़ नही है वो उम्र और तजुरबे मे भी बड़े है
नाइस पोस्ट
वन्दे ईश्वरम ! दिल जोने की बात करो तो कुछ मज़ा भ आये .
Aap sahi keh raho Dr. Sahib, Na koi Kuraan ke liye bura bolege aur na Vedo ke bare mein sunega.
Jab tek yeh ladai samapt nahi hogi, yeh ek dusre ko galiyan dete rahenge.
@प्यारे भाई गिरी जी ! आपका नम्बर मैं सलीम जी से लूं लेकिन सलीम जी का मोबाइल नं. मैं किससे लूं । आप अपना नं. मुझे ईमेल क्यों नहीं कर देते ?
आपने ईमेल एड्रेस लिया किस काम के लिए था ? आप तो सचमुच बहुत भोले हैं । यह सब भोले बाबा के ध्यान का प्रभाव मालूम होता है ।
Dr. Sahib, Chiplunkar aur Tarkeshwar jaise bewakoof aur Sampradayik Vidvesh failane wale logo ki post padh kar aap kab tak yeh bekaar ki batein likhte rahoge.
Aap apni pratibha ko in jaiso ke chakkar mein bekaar mat karo.
Firdause ji se haar ki baat to aise likh rahe hai, jaise koi war chal rahi ho, aur yeh unki sena ke Sipahi ho. :) :) :)
hansi ke mare mere pet main dard ho gaya hai, inki bewakofi ki mazaak bhari batein sun-sun kar.
अनवर जमाल पर जो आँखें लाल पीली कर रहे हैं, मैं उन से कहना चाहूँगा की भाई क्यों गुस्सा करते हो ? आज तक हम यह प्रोपेगंडा करते रहे की हमारा धर्म शांति का धर्म हे परन्तु हमने इस्थिति का विश्लेषण किया तो पाया की यहाँ तो तीन तीन धर्म पुस्तकें ऐसी हें जिका आधार ही युद्ध हे ,किया रामायण का आधार युद्ध नहीं ? गीता पूरी की पूरी युद्ध ही का तो उपदेश हे ,महाभारत एक महायुद्ध की कथा ही तो हे , बात यह हे की हमें सच्चाई स्वीकार कर लेनी चाहिये ,यह ही भले मानुष की निशानी हे.
क्या वेद अहिंसावादी हैं ? - डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ The True Hindu गिरी साहब कुछ तो सोचो is ahinsawadi dharam ke bare mai aub तो sharma ji bhi keh rahe hai chahe woh agyaat hi kyon na ho
@ महक जी ! आपकी बात बिलकुल दुरुस्त है . मैं सभी ऋषियों का सम्मान करता हूँ लेकिन उनके बारे में फैला दी गयी हैं . मैं मुस्लिम समाज की कुरीतियों पर भी लिखूंगा और थोडा सा लिखा भी है .
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/submission-to-allah-real-god.html
मैं मुस्लिम आलिमों के जिन विचारों से सहमत नहीं उनको भी लिखूंगा लेकिन देसी हमलावरों से तो फुर्सत मिले .
आप बुज़ुर्ग है , आप कोई ऐसा विषय चुनें जिस से हिन्दू मुस्लिम दोनों समाज की बदगुमानियां दूर हों और पिता मनु की सारी औलाद एक परिवार की तरह देश और विश्व का मार्गदर्शन करे .
nice post
डा० साहब शुक्रिया, मैं किसी आवरण मैं नही छुपा हूँ, बस रोज़ी रोटी की तलाश मैं भटक रहा हूँ, और अपने उस्ताद इक़बाल राजा मरहूम के सोग मैं हूँ. उनके जाने के बाद मैं अकेला रह गया हूँ, अल्लाह ताला उन्हे जन्नत नसीब करे (आमीन)
उनमे भी आपके जैसा जोश, और दूरदृष्टि थी.
आपका हर लेख क्रिया की प्रितिक्रिया है, मगर गिरे हुए और चिपकू लोगो को कोन बताए? इन को तो बस ''बुधीजीवी'' बनने की धुन है, अब ज़ाहिर सी बात है ''बुधीजीवी '' कहलाने के लिए इस्लाम और मुसलमान से अच्छा सॉफ्ट टारगेट कोन सा होगा, जिन्होने ज़िंदगी मैं कभी कोई कुछ नही किया वो कूप मंडूक बुधीजीवी आज हमें जीना सीखा रहे है? ताज्जुब है और सद अफ़सोस इनकी सोच पर या यूँ कहिए लानत है.....
वेदों में युद्ध के लिए युद्ध करना बड़े बड़े यज्ञ करने से भी ज़्यादा पुण्यकारी माना गया है ।
इन gire hue , chipku लोगो की सभ्यता तो आपके कॉमेंट बॉक्स मैं ज़ाहिर हो रही है, किया करे अपनी आदत से मजबूर हैं, इसी लिए नाम बदलकर अपने माँ बाप का नाम रोशन कर रहे है ?
चुप हैं किसी सबब तो तू पत्थर हमें ना जान
दिल पर असर हुआ है तेरी बात बात का
Mere Priya Anwar Bhai, Vedo ki Tulna Kuran se kaise kar sakte hain aap. Kuran to ek Dharmik Pustak hai. Aur Ved to Vigyan hai, Ved to pura Sansar hai, Ved to Jeewan hai, Kuran ki Tulana agar aap Ramayan ya Geeta se karte to theek bhi hota,
Vedo ki hi den ki duniya Vigyan main itnai Tarrki Kar Rahi hai.
Aur ye Agyat Sharma ji kanhi aap main se hi koi to nahi. Kyonki aap logo ka to koi Bharosha hai nahi.
कुछ ही समय की बात हे की बड़े बड़े हिन्दू वादी नेता कुरान की आयतों को तोड़ मरोड़ कर उसमें हिंसा की बात करते थे अब इन्हें आइना दिखाया जा रहा हे तो गालिओं पर उतर आये हैं ,
आइना दिखाइअ तो बुरा मान गए
अनवर भाई,
युद्ध की बात करना, युद्ध के लिए प्रिशिक्षण लेना, युद्ध के लिए उपदेश देना अथवा उदध के लिए युवाओं को तैयार करना, इसमें से कुछ भी बुरा नहीं है. बस बुरा है युद्ध का गलत उपयोग. क्योंकि अगर उपरोक्त बातें बुरी होती तो आज किसी भी देश में सेना नहीं होती. आज हम अपने देश के वीर जवानों पर फख्र नहीं करते. और अगर हमारे जवान युद्ध के लिए तैयार नहीं होते तो आज हम पहले ही की तरह गुलाम होते.
बस बात यह है कि युद्ध के उपदेशों को लोग सामान्य हालातों के उपदेश बता कर सारी दुनिया को बेवक़ूफ़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं. और दर-असल स्वयं अपने आप को ही बेवक़ूफ़ बना रहे हैं.
ये हिन्दुओं की सहिष्णुता है कि इतनी गंदगी फैलाने के बाद भी आपके जैसे लोग मौज कर रहे हैं, यदि हिन्दू सहिष्णु न होता तो आप जैसे लोग जन्मते ही नहीं जैसे कि हिन्दुओं के साथ पाकिस्तान और बांग्लादेश में किया गया ... इतने ही खुले दिमाग के हैं तो मोहम्मद साहब के कार्टून लगाकर फिर इस निरंकुशता के विरोध में एक मुखालफत भरी पोस्ट लिखेंगे क्या...
इस ब्लॉग के लेखक और टिप्पणीकर्ताओं ने साबित कर दिया की. धर्म सम्बन्धी चर्चा ही साड़ी बुराई की जड़ है, धर्मान्धता, धार्मिक विद्वेष, देशवासियों के बीच रंजिश कैसे फैलता है. यहाँ के लेखक और टिप्पणीकर्ताओं से सीखना चाहिए.
लगे रहो... एक दिन सड़क पे उतर के छुरी, तलवार भी चलाओगे... पता है... आप जैसे घटिया बुद्धिजीवी ही हिंसा, नफरत और दंगे के जिम्मेदार हैं. यहाँ डाक्टर कौन और प्रोफ़ेसर कौन राइटर कौन.... सब असामाजिक तत्व हैं.
suresh jee sir aap kanha is pagal ko mooh laga rahe ho...bus ghateyaa pan he jo ye bata raha he..milawatee khoon ka asar knaha jayega...arbee soowaro ka khoon jo mila huaa he ????
आप लोग तो कु . . . से भी नीचे चले गये हो.
आप सभी को कोई और काम नही हैं क्या.
जब देखो सिर्फ ऐसी ही बातें करते रहते हो
और में तो उन सभी हिन्दुओ से भी प्रार्थना करूँगा की क्यों खामखाह एक ऐसे आदमी के लिये जो मानसिक विकृत हो चूका हैं ,से बहस कर रहे हो .
मुद्दे तो और भी हैं इस जहाँ में.
या सिर्फ येही हैं आप लोगो के पास.
कुछ तो शर्म करो आप सभी
या जब भी बकोगे तो सिर्फ जहर ही बकोगे.
क्यों इस देश की माँ बहिन एक करने पै फिर रहे हो.
और आप जमाल भाई ,क्या तारीफ़ करू में आपकी.
शायद जितना आप हिन्दू ग्रंथो के बारे में जानते हो इतना शायद इस्लाम के बारे में भी नही जानते होंगे.
मिया कभी तो मुह से प्यार की बातें भी कर लिया करो.
अगर आप इतना अच्छा मानते हैं अपने धरम को तो कोई बात नही ये अच्छी बात हैं. तो इस ज्ञान को धरम के विकाश में लगाओ ना ना की हमेशा दुसरो के धर्मो के बारे में बकने के.
शर्म करो.
गांड मराओ सालों तुम सब.
Anonymous.... साहब आप क्या लिख रहे है आपको सरम आती है की एकदम बेसरम हो गए है कम से कम अपने माता पिता की तो इज्ज़त करो क्योकि लोग आपको गाली नहीं देगे आपके .............. सिच्छित आदमी हो कम से कम भासा तो सुधारों
amit se bhi yahi swal aapse bhi
छोटा सा सवाल तुम से भी amit से भी तुम किस का अनुवाद भासस्य से अपनी बात कह रहे हो या मामा ने लिखा भांजा घोड़े को ईश्वर बना के पेश कर रहा हे और हम सब pathak जाहिल साबित हो रहे हें
तुम किस का अनुवाद भासस्य से अपनी बात कह रहे हो?
तुम किस का अनुवाद भासस्य से अपनी बात कह रहे हो?
तुम किस का अनुवाद भासस्य से अपनी बात कह रहे हो?
surendr ji aap ne to kmaal hi kr diya sch esaa khaa jo dil ko chu gyaa lekin ek bdhaa sch yhi he ke koi bhi dhrm kbhi bura nhin hota bura hota he sirf aadmi or us bure aadmi ke aachrn se hi log uske dhrm ko bura maanne lgte hen sbhi logon ko achchaa bhaartiy bnna he to mryaada purushottm raam ki jivni bhi pdh len or sbhi dhrmon ko milaakr pdhen kevl aalochna ki drshti se nhin sch saamne aa jayega. akhtar khan akela kota rajsthan
@भाई सहसपुरिया ! मेरी दुआएं आपके साथ हैं । मालिक उन्हें कुबूल करे और आपकी महबूब हस्तियों की मग़फ़िरत फ़रमाये । आमीन
@भाई अमित ! आपने वेदमंत्र का यह नवीन अर्थ किस विद्वान से लिया है जो किसी भी प्राचीन विद्वान के भाष्य में नहीं मिल रहा है ?
ये बेचारे तो भोले लोग हैं । इन्होंने वेदों की सूरत भी न देखी होगी । ये आज आपकी वाह वाह कर रहे हैं लेकिन जब मैं आपके गुरू के अन्य विचार अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करूंगा तो फिर इनमें से आपके गुरू जी की वाह वाह करने कोई नहीं आयेगा । यह हमारा दावा भी है और वादा भी । बस , जल्दी से उस आदमी का नाम बताइये जिसके भावार्थ को आप फ़ोल्लो कर रहे हैं । मैं इस मजमे को यह भी दिखाऊँगा कि अमित जी जिसे महान समझ रहे हैं वह वेदों के एक मंत्र , एक लाइन बल्कि एक लफ़्ज़ का अनुवाद करने की योग्यता से भी रिक्त था लेकिन यहां तो पब्लिक भगवे कलर के कपड़ों में संस्कृत जानने वाले हरेक ऐरे ग़ैरे को गुरू या साक्षात ईश्वर ही मान लेती है । लेकिन पब्लिक का क्या है ? पब्लिक तो कुछ भी कह देती है । अब देखिये , अगर मैं ग़लत नहीं हूं तो ......
ख़ैर छोड़िये , आप पहले नाम बताइये । बाक़ी बातें उसके बाद ही होंगी ।
aap sabhi logo ko pata hona chahiye ki ved ya quran ya koi bhi dharmik pustak swarthpurvak hi likhi gayi hai , inme na to koi sachai hai aur na hi koi gyan ki baat , jo log inme gyan ki jhooti baat karte hai unhe ek baar in dharmik pustako ko dimag khol kar avashya padh leli chahiye,
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