सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Tuesday, April 20, 2010
मेरे मन की दुनिया में हरेक का स्वागत है । The Power of imagination .
मन की दुनिया भी कितनी अजीब है ?
हरेक अपनी मन की दुनिया का शहंशाह है । अक्सर आदमी अपनी कल्पनाओं में उन चीज़ों को पा लेता है , जो उसे चेतना के स्तर पर सचमुच नहीं मिल पातीं लेकिन कभी कभी इनसान के मन को कल्पना करनी नहीं पड़ती बल्कि उसे कल्पना उसके मन में खुद ब खुद आकार ले लेती हैं । एक आनन्द से भर देने वाली ऐसी ही कल्पना मेरे मन में भी उपजी है । रात बीत चुकी है । दूर तक फैले हुए समुद्र के किनारे मैं ठण्डी रेत पर लेटा हुआ हूं । बांस से बनी हुई मेरी झोंपड़ी का दीपक अभी तक जल रहा है । हल्के हल्के सूरज समुद्र के पानी से निकलता हुआ सा प्रतीत हो रहा है । बादल उसके प्रकाश को ढकने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं । तभी आसमान से नन्हीं नन्हीं बूंदे मेरे बदन पर गिरती हैं और उनकी ठण्डक मेरी रूह तक पहुंचती है । एक ग़ज़ल मन की सतह से बुलन्द होती है और होंठों से गुज़र कर माहौल को तरन्नुम से भर देती है -
बाक़ी हैं कुछ सज़ाएं सज़ाओं के बाद भी
बाक़ी हैं कुछ सज़ाएं सज़ाओं के बाद भी
हम वफ़ा कर रहे हैं उनकी जफ़ाओं के बाद भी
हमें अपने वुजूद से लड़ने का शौक़ है
हम जल रहे हैं तेज़ हवाओं के बाद भी
करता है मेरे अज़्म की मौसम मुख़ालिफ़त
धरती पे धूप आई घटाओं के बाद भी
मौत खुद आके उसकी मसीहाई कर गई
बच न पाया मरीज़ दवाओं के बाद भी
लहजे पे था भरोसा , न लफ़्ज़ों पे था यक़ीं
दिल मुतमईं हो कैसे दुआओं के बाद भी
मुन्सिफ़ से जाके पूछ लो ‘अनवर‘ ये राज़ भी
वो बेख़ता है कैसे ख़ताओं के बाद भी
शब्दार्थ : जफ़ा - बेवफ़ाई , अज़्म - इरादा , मुन्सिफ़ - इन्साफ़ करने वाला
मेरे चारों तरफ़ का माहौल रौशन होने लगता है और तभी मेरे मन की दुनिया में एक तरफ़ से रेत पर टहलते हुए कुछ लोग हंसते - खिलखिलाते चले आ रहे हैं , बिल्कुल एक परिवार के सदस्यों की तरह । यह सच है या मेरे मन में बरसों से जड़ पकड़े बैठी कल्पना , मैं यह जानने के लिए खुद को चिकोटी काटना चाहता हूं लेकिन तभी रूक जाता हूं । अगर यह सिर्फ़ कल्पना ही हुई तो ... ?
शब्दार्थ : जफ़ा - बेवफ़ाई , अज़्म - इरादा , मुन्सिफ़ - इन्साफ़ करने वाला
मेरे चारों तरफ़ का माहौल रौशन होने लगता है और तभी मेरे मन की दुनिया में एक तरफ़ से रेत पर टहलते हुए कुछ लोग हंसते - खिलखिलाते चले आ रहे हैं , बिल्कुल एक परिवार के सदस्यों की तरह । यह सच है या मेरे मन में बरसों से जड़ पकड़े बैठी कल्पना , मैं यह जानने के लिए खुद को चिकोटी काटना चाहता हूं लेकिन तभी रूक जाता हूं । अगर यह सिर्फ़ कल्पना ही हुई तो ... ?
बहरहाल जो भी है सुंदर है , शांतिदायक है । तब तक वे लोग भी मेरे पास चले आते हैं । इनमें सतीश सक्सेना जी हैं , प्रिय अमित हैं , सहसपुरिया , डा. अयाज़ , जनाब उमर कैरानवी , शाह नवाज, सलीम ख़ान , विचार शून्य , प्रवीण शाह जी, महक जी , जनदुनिया वाले बुज़ुर्ग , भाई तारकेश्वर गिरी जी , असलम कासमी, सफ़त भाई और ज़ीशान ज़ैदी हैं । उनसे थोड़ा फ़ासले पर ‘लफ़ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी‘ भी एक मराठी बन्धु से बातचीत कर रही हैं । मेरे मन की दुनिया में हरेक का स्वागत है । मैं सबके स्वागत के लिए उठ खड़ा होता हूं ।
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24 comments:
वाह जी, वाह जी वाह, शायरे ब्लागिस्तान ने क्या खूब कहाः
मुन्सिफ़ से जाके पूछ लो ‘अनवर‘ ये राज़ भी
वो बेख़ता है कैसे ख़ताओं के बाद भी
हमें याद न किया बडे बे मुरव्वत हो
मुन्सिफ़ से जाके पूछ लो ‘अनवर‘ ये राज़ भी
वो बेख़ता है कैसे ख़ताओं के बाद भी
डाक्टर साहेब ! सच पूछिए तो मजा आ गया
डा० साहब ,माशाल्लाह बहुत रूप हैं आपके, इस रंग की तो हमें जानकारी ही नही थी. क्या कहना है ज़िंदाबाद .
अब देखना ये है इन ''विषपुरुषो'' पर जनाब अमित सक्सेना साहब की बातो का असर कब तक रहता है चलिए हम भी इंतेज़ार कर रहे है ? उम्मीद है अब ''बुधीजीवी'' समझदारी का सबूत देंगे. इस्लाम और मुसलमानो को अपने 'ज़हर' से दूर रखेंगे
डा० साहब मैं आपके ब्लॉग के माध्यम से जनाब सक्सेना साहब का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ, उनके प्यार और खुलुस की तहे दिल से क़द्र करता हूँ, उम्मीद है हम सब मिलकर हिन्दी ब्लॉग को एक सशक्त मध्यम बनाकर अपने बीच मैं इक सकारात्मक संवाद बनाए मैं सफल होंगे. और असामाजिक तत्वो को मुँह तोड़ जवाब देंगे. और इस मुल्क की तरक़्क़ी मैं मिलजुल कर हाथ बट्टाएगे.
वैसे तो आज लिखने को बहुत कुछ है, चलिए फिर कभी के लिए उठाके रखता हूँ, आज डा० साहब का मूड भी कुछ शायराना है, आप सभी के लिए नेक तमन्नाएँ, खुश रहिए
हाय 'सीमाब' उसकी मजबूरी
की हो जिसने शबाब मैं तोबा.
(Seemab Akbarabadi)
Namashkar Anvar Bhai
Lata hai Mera Kam Bina Haridwar gay hi pura hone wala hai.
शायरी मे भी आप बेमिसाल है अनवर भाई @गिरी साब आपसे हरिद्वार मे ज़रूर मुलाक़ात होगी
नाइस पोस्ट
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मेरे मन की दुनिया में हरेक का स्वागत है ।
यह सही है,
मेरे मन की दुनिया में भी हर एक का स्वागत है... यहाँ आपको शांति और सुंदरता भले ही न मिले पर बंद दिमागों को थोड़ी रोशनी, हल करने को कुछ सवाल, यथास्थितिवादियों को थोड़ी बेचैनी मिलेगी यह मेरा वादा है ! और जो कुछ भी वहाँ मैं कह रहा हूँ है वह सीधे दिल से... बिना किसी ग्रन्थ का आसरा लिये!
हमें अपने वुजूद से लड़ने का शौक़ है
हम जल रहे हैं तेज़ हवाओं के बाद भी!
बिलकुल जमाल साहब आपके साथ ही रहेंगे सभी. लोगों की पीड़ा से हमारा रिश्ता बने, सारे विश्व को सुधरने की कवायद बहुत बड़ी है लेकिन यह लक्ष्य भी हमारी आने वाली पीढियां प्राप्त कर लेंगी, अगर हम सभी सिर्फ बातें ही करना छोड़ कर ज्यादा दूर नहीं अपने ही आसपास किसी मरीज़ के इलाज़ में,किसी गरीब की शिक्षा में, किसी बुजुर्ग के साथ समय गुज़र कर उनके अकेलेपन को दूर करने में सहायक बनके. अपने मनुष्य होने के कर्त्तव्य का ही पालन ठीक तरीके से कर पाए .
आदिशंकराचार्य जी महाराज कह गए है
न मृत्युर्न शंका न में जातिभेद: पिता नैव माता नैव जन्म
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिश्यस्चिदानंद रुपः शिवोहम शिवोहम
लोगों के कल्याण में अगर हम कुछ भी कर पाने में सहायक हो सकें तो यह भाई है की बहन है,हिन्दू है की मुसलमान है या और किसी पंथ का अनुयायी है को भूल कर ही सात्विक भाव से कर पायेंगे.
vaah kya khoob kahi hai sir ji
मुन्सिफ़ से जाके पूछ लो ‘अनवर‘ ये राज़ भी
वो बेख़ता है कैसे ख़ताओं के बाद भी
डाक्टर साहेब ! सच पूछिए तो मजा आ गया
+ 1
बहूत खूब अनवर भाई! हम स्वयं भी आपकी मेहमान नवाजी के लिए बेकरार हैं. :)
और अगर पता हो कि मेज़बान इतने ख़ुलूस और गर्मजोशी से स्वागत करने के लिए तैयार है, तो इस बेकरारी का और तेज़ होना स्वाभाविक ही है.
‘लफ़ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी‘ भी एक मराठी बन्धु से बातचीत कर रही हैं। mamala Gadbad nahin he
अनवर भाई !
कुछ अनाम जो बेहूदगी लिखते हैं ...कृपया उनके कमेंट्स प्रकाशित न करें आपका आभारी रहूँगा ! लेखन में अपार शक्ति होती है ..हर लेखन से व्यक्तित्व का पता चल जाता है..कृपया सब्र करें !
आपका
बच्चों अब तुम्हारी नौटंकियां नहीं चलेंगी खान और सिद्दीकी सबको अग्रीगेटर से बाहर निकलना होगा यह हमारा अनुरोध नहीं आदेश है
1419914199
Waah Jamaal Bhaii waah, aaj aapka ya shayrana andaaz dekhkar dil khush ho gaya, aapki lekhni ko padhkar ye to pehle hi maloom ho gaya tha ki aap koi aire gaire nahin balki ek tarksheel aur buddhijeevi lekhak hain lekin janaab ke ander ek kavi ek shayar bhi baitha hua hai ye aaj pata chala.Aapki ek different side dekhkar acha laga.
Aur previous post aur uske upar aaye hue saaf-suthre aur prem bhare comments se saabit ho gaya ki agyaanta aur division ke is andhere ko door karne mein agar sabhi thoda-2 contribute karein aur baatchit ka ek level rakhen to hum sab ek ho sakte hain aur is desh ke dushmanon se, is watan ke enemies se milkar lad sakte hain. Aaj aur Kal ki itni achi post likhne ke liye meri aur se bahut-2 shubhkamnaayein aur prem.
Zeashan Bhaii
Aur
Shahanawaz Bhaii
Main in dono ko dil se shukriya ada karna chaahonga ki inhone har cheez ko ek impartial view se liya, inhone hamesha har topic par "Kon Sahi Hai" ko naa maankar "Kya Sahi Hai" ka principal follow kiya .Is blog safar mein in dono ne sirf isliye haan ya naa nahin ki ki hum musalmaan hain balki hamesha har topic par apna impartial judgement diya.Iske liye aap dono aur aapke jaise hi khoobiyon waale jo bhi log hain un sabhi ko dhanyavaad.
badhaai ho doctor sahaab!
kunwar ji,
ब्रह्म क्या है? जीव क्या है? आत्मा क्या है? ब्रह्मांण्ड की उत्पत्ति कैसे हुई है?
@ जनाब महक जी ! आपके आने से इस ब्लॉग का आँगन भी महका है . आपकी ज़बान की चाशनी आपके मर्तबे का पता देती है .
@ जनाब सतीश जी ! अगर किसी को बेनामी बनकर मुझे गाली देकर अपना दिल कुछ हल्का महसूस होता है तो मुझे इससे ख़ुशी होती है . आखिर एक मिट जाने वजूद को बेईज्ज़ती से बचा कर मैं करूँगा भी क्या ? भारतीय संतों और सूफियों ने मान अपमान को सदा समान भाव से देखा है . मेरे अन्दर उठने वाले अहंकार का इलाज भी इसी में निहित है . गाली देने वाला खुश और मैं भी खुश तो फिर तो किसी को परेशां होने की ज़रूरत क्या है ? इससे मेरे अन्दर धैर्य भी विकसित हुआ है .
bahut shaandar vichar.
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