सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Wednesday, April 7, 2010

हमारा तन्त्र जल्द से जल्द ईमानदार कैसे बन सकता है? Think .


आदरणीय जनाब सतीश सक्सेना जी ! आपके लिए सलामती और शांति की कामना करता हूं । सोचा था कि आज आपसे कुछ और बातें करूंगा लेकिन छत्तीसगढ़ के दांतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले में मारे गये जवानों की लाशें देखकर ख़याल का रूख़ दूसरी ही तरफ़ मुड़ गया । इतने बड़े और ऐतिहासिक हमले के बाद भी उन्हें आतंकवादी घोषित नहीं किया गया , यह संतोष का विषय है ।

एक साहब का फ़ोन आया कि मैं इस बात पर अपना प्रतिरोध दर्ज कराऊँ । मैंने कहा कि नहीं , राजनेताओं का यह बयान बिल्कुल ठीक है । अगर एक बार एक समुदाय के साथ ग़लती की जा चुकी है तो ज़रूरी नहीं है कि उसे बार बार दुहराया जाए ।

अस्ल सवाल यह नहीं है कि नक्सलियों को क्या घोषित किया जाए बल्कि सवाल यह है कि इस समस्या से निपटा कैसे जाए ?

देश के दो तिहाई ज़िले नक्सलवाद से प्रभावित हैं । नक्सलवाद एक विचार है और किसी भी विचार का उन्मूलन हथियारों के बल पर नहीं किया जा सकता ।

निकृष्ट विचार का उन्मूलन श्रेष्ठ विचार से ही किया जा सकता है ।

ग़रीब और वनाश्रित लोगों और मज़दूरों के सामने रोटी पानी की भयावह समस्या है और यही समस्या नगरीय क्षेत्रों और उससे सटे इलाक़ों के लोगों के सामने भी है । पानी , पेट्रोल और मंहगाई को लेकर राजधानी और मेगा सिटीज़ में भी आये दिन प्रदर्शन होते रहते हैं बल्कि लोग आत्मदाह तक कर लेते हैं । लेकिन ये लोग मुद्दे को लेकर प्रदर्शन करते हैं और वर्तमान व्यवस्था के विकल्प के तौर पर किसी दीगर व्यवस्था की मांग नहीं करते । लोगों के अभाव के पीछे वर्तमान व्यवस्था है । यह एक स्थापित सत्य है । इसी सत्य के सहारे नक्सलियों ने अपनी कल्पना का महल खड़ा किया है लेकिन जन जन तक अपने विचार को पहुंचाने का काम वे तब कर रहे थे जब उनके क्षेत्रों के चुने हुए प्रतिनिधि ए सी की हवा खा रहे थे । राजधानी में ही लोगों के लिए पानी और आवास पाना मुश्किल हो रहा है । अपना उत्पाद बेचने की ख़ातिर पूंजीपतियों ने लोगों की आकांक्षाएं इतनी ज़्यादा बढ़ा दी हैं कि सबके लिए उन को पूरा कर पाना सम्भव नहीं हो पा रहा है । लोग हताश हो रहे हैं या फिर युवा वर्ग क्राइम की तरफ़ बढ़ रहा है । अपनी सुविधा के लिए लोग हत्या भी कर रहे हैं और निराश होकर आत्महत्या भी कर रहे हैं । अकेले भी कर रहे हैं और पूरे परिवार सहित भी कर रहे हैं ।

समाज व्यवस्था से चलता है और व्यवस्था न्याय से चलती है । आज आप अपने देश के किसी भाग या विभाग में चले जाइये , क्या आप उम्मीद करते हैं कि आपको आपका हक़ मिल जाएगा ?

मुसलमानों को शिकायत है कि उन्हें न्याय नहीं मिलता लेकिन सन् 84 के दंगा पीड़ितों को ही कब न्याय मिल पाया है ?

बहुसंख्यक हिन्दुओं के भी कितने उदाहरण आप देख सकते हैं कि जब भी समाज के सदस्य के तौर पर उन्हें न्याय की ज़रूरत पड़ी तो वह उन्हें नसीब न हुआ । केवल न्याय के लिए क़ायम अदालतों में लाखों केस लम्बित हैं । मुजरिम ज़मानतों पर छूटकर आ जाते हैं और फिर गवाहों को हॉस्टाइल करते हैं ।

पिछड़े हुए इलाक़ों की हालत और भी ज़्यादा ख़राब है । उन्हें भी जीवन की बुनियादी सुविधाएं चाहिये और उन्हें उपलब्ध कराने का काम तो उनका ही है जो व्यवस्था सम्हालते हैं लेकिन उनका ज़्यादातर समय तो सरकार बनाने और फिर उसे बचाने में ही चला जाता है । काफ़ी सारा वक्त मन्दिर मस्जिद जैसे फ़ालतू मसले पी जाते हैं । बाक़ी वक्त बयानबाज़ी और नारों में निकल जाता है । इसी दरम्यान नक्सलियों ने ग़रीब अवाम के दिमाग़ों पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया । अवाम हमारी अपनी है , उसे गाली देकर या गोली मारकर समस्या हल होने वाली नहीं है । इसका हल यही है कि उस इलाक़े के नेता जनता के बीच जाकर उन्हें वे चीज़ें दें जिनका वायदा उन्होंने वोट मांगते समय किया था । यदि जनता की जायज़ ज़रूरतें बग़ैर हथियार उठाए पूरी हो जाएंगी तो फिर वे हथियार उठाने के लिए उकसाने वालों के बहकावे में नहीं आएंगे । यह तो है तुरन्त का समाधान लेकिन पूरे देश की जनता भी तो समस्या से जूझ रही है तो क्या उस पर इसलिए न ध्यान दिया जाए कि वह हथियार नहीं उठा रही है ?

आखि़र समस्या को विस्फोटक होने की स्थिति तक पहुंचने ही क्यों दिया जाए ?

ऐसे भयानक हालात में भी कुछ लोग यह कहने चले आते हैं कि


Pratul Vasistha said — इतिहास और वर्तमान कि आतंकिया वारदातों में
जिनका भी नाम आता है उनमे सबसे पहले कौन लोग दर्शाए जाते हैं। आप भी जानते होंगे।
यही डर आपको रहता होगा कि मुझे भी उन्ही में न समझ लिया जाये।...वैसे तो देशद्रोह
करने वाले किसी भी मज़हब को मानने वालों में मिल जायेंगे। लेकिन हमें एक बिरादरी
विशेष से ज़्यादा सतर्क रहने की आवश्कता बन पड़ी है।

शर्म भी आती है और अफ़सोस भी है इनके हाल पर । 20 करोड़ से अधिक आबादी को संदिग्ध बनाकर ये देश की कौन सी सेवा करना चाहते हैं ?

आप जिस समय कमेन्ट कर रहे थे उस समय न्यूज़ चैनल्स अब तक के सबसे बड़े नक्सली हमले की कवरेज दिखा रहे थे । क्या ये मुसलमान हैं ?

अब इतिहास की सुनिये - रावण स्वर्ग पर हमला करके इन्द्र और कुबेर को पकड़ लाया । रावण किसका पुजारी था ? वह किस जाति का था ?

हनुमान जी ने कोटि कोटि लंकावासियों को जला डाला । वे जलने वाले किस धर्म के थे ? और वे मासूम नागरिक किस जुर्म में जलाये गये ?वह जलाने वह किस धर्म का था ?

राक्षस आये दिन विश्वामित्र के यज्ञों में विध्वंस करते रहते थे ?

सतयुग में भी हथियारों के प्रयोग और रक्तपात का विवरण मिलता है । तब तो मुसलमान लफ़्ज़ तक आर्यावर्त में न मिलता था । हर चीज़ में महानता का टाइटिल हथियाने वालो अब बताओ कि सबसे प्राचीन और सबसे बड़ा आतंकवादी कौन है ?

दूसरे समुदायों की तरह मुसलमानों में भी जोशीले और जल्दबाज़ नौजवान पाये जाते हैं जो अन्याय के प्रतिकार में असंतुलन का शिकार हो जाते हैं । समस्या के मूल पर विचार करके उसका सही हल ढूंढने का प्रयास करना चाहिये , न कि मौक़ा ग़नीमत जानकर अपनी ऐतिहासिक राजनैतिक पराजयों से उपजी कुंठाओं और ग्रन्थियों के कारण सारे समुदाय को बदनाम करने की कोशिश करनी चाहिये । आप लोग ऐसे सवाल करने क्यों चले आते हैं कि जिनके उत्तर में चुप रहना पाप है और उनका जवाब दूं तो दूसरे लोग कहते हैं कि हम आहत हो गये ?

इससे भी शांति न हुई हो तो देखें -
इन साहब के ब्लॉग पर मैं तो कभी नहीं गया और इनको मैंने यहां बुलाया भी नहीं । ये जनाब यहां आये क्यों ?

और आये तो सवाल क्यों किया ?

और सवाल भी किया तो ज़हर में बुझा हुआ । होम्योपैथी का सिद्धान्त है कि सिमिलिया सिमिलिबस क्यूरेन्टर अर्थात समं समेन शम्यति यानि कि टिट फ़ॉर टैट ।

मेरे पास तो आप जो भी ज़हर लाएंगे मैं उसी से आपके इलाज के लिए एन्टीडोट तैयार करूंगा । सांप के ज़हर का इलाज भी उसी के ज़हर से होता है । कम से कम एक दिन का तो लिहाज़ कर लिया होता ।

@ मेरा देश मेरा धर्म वालो ! विभाजन के लिए नेहरू , जिन्नाह , गांधी या अंग्रेज़ों को ज़िम्मेदार ठहराना ग़लत है । वे कुछ नहीं थे , वे तो सिर्फ़ हमारे नेता थे । हममें आपस में बेपनाह प्यार होता तो विभाजन हरगिज़ न होता । आपसी प्यार होता तो अंग्रेज़ों की चाल भी नाकाम ही रहती । प्यार की बुनियाद पर तो कई टूटे हुए देश फिर से जुड़ गए हैं । राजनीतिक सीमाएं कभी स्थायी नहीं होतीं । दिल से दीवारें गिरा दीजिए , सरहद की दीवारें खुद ब खुद गिर जाएंगी । वैसे भी विश्व खुद ब खुद एक ही बस्ती बनता जा रहा है । सरहदें तो जल्दी ही अपना महत्व खो देंगी ।

इस सबके बीच भी लोग आई पी एल के मैच देखकर रोमांचित हो हो कर चिल्ला रहे हैं या फिर सानिया की ख़बरों पर तब्सरे कर रहे हैं ।

अफ़सोस , अफ़सोस , अफ़सोस ।

दांतेवाड़ा के अफ़सोसनाक हादसे से शोकाकुल होकर मैं 3 दिवस का अवकाश घोषित करता हूं। इस दरम्यान मैं किसी विरोधी को उत्तर न दूंगा । इस बीच मैं यह भी देखूंगा कि ज़िम्मेदार ब्लॉगर्स क्या विधान निश्चित करते हैं दुर्भावना और वैमनस्य रोकने के लिए ?

केवल मुझे ख़ामोश रहने का सुझाव देना व्यवहारिक और न्यायपूर्ण नहीं है ।

न्यायपूर्ण लफ़ज़ से मुझे याद आई प्रिय प्रवीण जी की । उनकी आमद का बहुत बहुत शुक्रिया । उनसे भी मुझे कुछ कहना है लेकिन आज के ग़मगीन माहौल में नहीं । आज तो सक्सेना जी से भी मैं कुछ न कह सका ।

मुल्क की व्यवस्था चरमरा चुकी है , इसे हरेक बुद्धिजीवी जानता है ।

मुल्क को एक न्यायपूर्ण व्यवस्था दरकार है और न्यायपूर्ण व्यवस्था को चलाने के लिए ईमानदार नेता और एडमिनिस्ट्रेशन चाहिए ताकि हरेक को उसका वाजिब हक़ सही तरीक़े से और उचित समय पर दे दिया जाए । हमारा तन्त्र जल्द से जल्द ईमानदार कैसे बन सकता है? यह एक ऐसा विषय है जिसपर सबको सोचना होगा ।ख़ास तौर से प्रिय प्रवीण जी जैसे लोगों को , क्योंकि अगर कहीं कोई ईश्वर और कर्मफल नहीं है तो फिर नेता की मौज तो जनता का माल डकारने में है। आज तक तो किसी बेईमान नेता या अफ़सर को तो फांसी लगी नहीं और मरने के बाद उसे कोई कुछ कहने वाला नहीं तो फिर वह क्यों लोगों को उनका हक़ देकर खुद कंगाल रहे और घर का माल उनकी सेवा में और फंूक दे और वह भी ऐसी जनता के लिए जो खुद अपने लिए जातिवाद की बुनियाद पर लायक़ प्रतिनिधि को ठुकरा कर निकम्मे नेताओं को बार बार चुनती है ।

अगर लोगों के मन में यह बैठा दिया जाए कि ईश्वर है ही नहीं और धर्म तो आडम्बर है , एक अफ़ीम है , उच्च वर्गों द्वारा कमज़ोरों के एक्सप्लॉएटेशन का ज़रिया है तो क्या होगा ? क्या कोई किसी पर दया करेगा ?

नहीं , बल्कि निठारी के पंजाबी पंधेल की तरह बच्चों के गुर्दे निकालकर भी माल बनाने से न चूकेगा ।ईश्वर के बिना नैतिकता सम्भव नहीं है । दुनिया के किसी मुल्क में हो तो मुझे बताइये ।

सभी पाठकों का आभार , धन्यवाद ।

ऐ मालिक ! हमें रास्ता दिखा ।

आमीन , तथास्तु ।

28 comments:

Taarkeshwar Giri said...

मिल गई आपको फुरसत वेद और कुरान से। हरिद्वार तो आये नहीं................... झूठे कंही के....................


ये सवाल मुहम्मद साहेब से भी पूछो की कुरान मैं लोगो की गर्दने उतारने की बाते क्यों लिखी हैं।

अपना भारत महान, अनवर महोदय , भूल जावो अरबी सभ्यता को..................

draslamqasmi said...

क्या ये मुसलमान हैं ? आप Pratul Vasistha जिस समय कमेन्ट कर रहे थे उस समय न्यूज़ चैनल्स अब तक के सबसे बड़े नक्सली हमले की कवरेज दिखा रहे थे ।

रावण स्वर्ग पर हमला करके इन्द्र और कुबेर को पकड़ लाया । रावण किसका पुजारी था ? वह किस जाति का था ?


हनुमान जी ने कोटि कोटि लंकावासियों को जला डाला । वे जलने वाले किस धर्म के थे ? और वे मासूम नागरिक किस जुर्म में जलाये गये ?वह जलाने वह किस धर्म का था ?

राक्षस आये दिन विश्वामित्र के यज्ञों में विध्वंस करते रहते थे ?

सतयुग में भी हथियारों के प्रयोग और रक्तपात का विवरण मिलता है । तब तो मुसलमान लफ़्ज़ तक आर्यावर्त में न मिलता था । हर चीज़ में महानता का टाइटिल हथियाने वालो अब बताओ कि सबसे प्राचीन और सबसे बड़ा आतंकवादी कौन है ?

अवधिया चाचा said...

वो फोन करने वाला ज़रूर अजजु कसाई होगा?

अवधिया चाचा
जो कभी अवध न गया

DR. ANWER JAMAL said...

@भाई तारकेश्वर ! मेरे पास नेट की फेसिलिटी सुचारू नहीं हो पा रही है . कम्यूनिकेशन गॅप रह गया . लेकिन मिलेंगे अवश्य , क्यूँ कि आदमी आप भी मुहब्बत वाले हो . इस बहस में आप ना कूदो , ये किसी के सवाल का जवाब है . आप देखना चाहो तो yeh देखो . लिंक ... http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2010/04/pan-ke-desh-me.html

DR. ANWER JAMAL said...

@Awadhiya chacha ! apka andaza ghalat hai , woh nathhu gondlal tha .

Unknown said...

pyaare bhaai !

desh hi nahin, poori duniya vinaash ki kagaar par hai..

zaroorat hai sabra ki dhery ki aur mohabbat ki.....

ab ittehaad ke bina hame koi nahin bachaa sakta - na ishwar aur na hi allaah

pyaar zindgi hai ........

Unknown said...

pyaare bhaai !

desh hi nahin, poori duniya vinaash ki kagaar par hai..

zaroorat hai sabra ki dhery ki aur mohabbat ki.....

ab ittehaad ke bina hame koi nahin bachaa sakta - na ishwar aur na hi allaah

pyaar zindgi hai ........

zeashan haider zaidi said...

इस बारे में मैंने पहले लिखा था एक सांकेतिक कहानी के रूप में

Mohammed Umar Kairanvi said...

गुरू जी मेरा तो सोचना था कि इन्‍हें आतंकवादी घोषित किया जाये लेकिन आपका यह कहना कि

'इतने बड़े और ऐतिहासिक हमले के बाद भी उन्हें आतंकवादी घोषित नहीं किया गया , यह संतोष का विषय है।'

हैरत में डालता है लेकिन जब गहराई से विचार करते हैं तो समझ में आता है उम्‍मीद है समझदार समझ लेंगे जो नहीं समझेंगे आप 3 दिन बाद समझा देंगे

सहसपुरिया said...

इस शोक के माहोल मैं भी ''गिरे'' हुए अपनी हरकत से बाज़ नही आ रहे हैं. कूप मंडूक को कोई क्या समझा सकता है. साधुवाद है आपको डा० साहब. आपकी बात बिल्कुल सच है नक्सलियो को आतंकवादी घोषित करने से अच्छा है, इस समस्या का निदान. लेकिन सवाल नेक नीयत का है ?

सहसपुरिया said...

सलाम डा० साहब आपके जज़्बे को और सहनशीलता को, माशाल्लाह क्या नज़र पाई है,

सहसपुरिया said...

माओवादी हिंसा के खिलाफ कड़े कदम उठाने के सरकार के फैसले के साथ हैं।

Man said...

bhai kya kahoo yaar ...mood gaye ho toom dusri or

aahat said...

post ki 51 laino tak to dr. ji ke saath seena taan ke khade hai hum.

par uske baad saath khade hone men sharma aati hai

or comment me unka jawaab padkar to unko ji kahne me bhi sharam aati hai kyonki chacha ne teen din ka avkaash ghosit kiya tha -par dray day pe geela kar diya

Amit Sharma said...

मेरे पड-दादाजी कि आलमारी में काफी किताबें उर्दू में थी, कैसे समझ में आये ? फिर मैंने हमारे गाँव के सांई चाचा को अपनी परेशानी बताई. 95 साल कि उम्र चलने फिरने में परेशानी. फिर भी मेरे साथ गए(पता है कहाँ? हमारे मंदिर में जिसकी हम १३ पीड़ियों से पूजा करते आरहे है.)
वहां जाकर उन्होंने देखा 15 -20 किताबें तो तत्कालीन जयपुर स्टेट के राजकीय नियमावली से सम्बंधित थी(मेरे पड-दादाजी राज सवाई जयपुर में इंजीनियर थे), 5 -7 ज्योतिष की, और एक गीताजी का उर्दू अनुवाद था. बाकी पुस्तकें गल जाने के कारण छेड़ना ठीक नहीं समझा.
जरीना चाची ने रमजान के महीने में हमारे मंदिर के लाउड-स्पीकर को माँगा मस्जिद में लगाने के लिए, दादा जी ने उतार के दे दिया.
हुसैन मेरा ख़ास दोस्त है. हुसैन, मै, कपिल, नमो, गुड्डू ( सांई चाचा का पोता ) रात में 1 -2 बजें तक बातें करतें रहते थें. अब भी कभी गाँव जाता हूँ . तब वोही हाल है .

चाचा ने दिया नहीं बुझाया, ज़रीना चाची ने दिया नहीं बुझाया, हम ने दिया नहीं बुझाया. कभी जिन्दगी में ऐसी गलीच बाते दिमाग में नहीं आई.
यह तो मेरे आस-पास के बिलकुल नगण्य उदहारण है मेरे गाँव के उदाहरणों को पढते पढ़ते ही साल बीत जायेंगे. पूरे हिदुस्थान की तो बात ही छोड़ो . दिए क्या अखंड ज्योत जल रही है, प्रेम की .
लेकिन जब घर में भाई बहन ही आपस में झगड़ बैठते अपनी बात पर. तो जब आपस में विचार मंथन चल रहा है तो आरोप प्रत्यारोप भी होंगे ही. फिर उसको लाइट लेने में क्या हर्ज़ है .


क्या पात्रों को आपने समझा था, बिना समझें सिर्फ कविता करने को लिखा था
बीते ठाले लिखने से क्या देश का भला हो गया, रक्त का उबाल यहीं ठंडा हो गया
करी इतिहास की बुराई,हो गए कवि राई,पूछता हूँ देश गरिमा तुमने क्यों ना गायी
काश तुम कलमवीर न हुए होते,काश तुम युद्धवीर होते, तो अर्थ के अनर्थ ना होते

HAR HAR MAHADEV said...

disha heen ho gya blogee bengan ...na koi umang na koi sang he chaacha ka blog to katee patang he....ved kuran peechhhe choot gaye

Ayaz ahmad said...

तंत्र मे बदलाव हो न हो तंत्र शायद ही इमानदार हो मगर लगता है आपकी इन कोशिशो से ब्लागजगत ज़रुर इमानदार हो जाएगा

Taarkeshwar Giri said...

Sriman aapka har examples hindu devi -devatwo ki taraf se hi hokar ke jata hai.

Kya aap hame shant nahi baithne denge.

Taarkeshwar Giri said...

Kal Haridwar aa rahe hain kya.

Shah Nawaz said...

Anwar bhai ko Sadhuwad! bahut hi zabardast Lekh hai.

DR. ANWER JAMAL said...

@ भाई तारकेश्वर जी , अभी तो नहीं मिल सकता लेकिन अगर आप चाहो तो मेरे भाई साहब से रूड़की में मुलाक़ात हो सकती है . बोलो ? अपना मोबाइल न. दे देना .

DR. ANWER JAMAL said...

@अमित शर्मा जी ,
बाक़ी हैं कुछ सज़ाएं सज़ाओं के बाद भी
हम वफ़ा कर रहे हैं उनकी जफ़ाओं के बाद भी
मुनसिफ़ से जा के पूछ लो 'अनवर' ये राज़ भी
वो बे खता है कैसे , ख़ताओं के बाद भी .

SACH KA SAMNA said...

जमाल साहब की विद्वता और संयत भाषा इन पोस्टों में पढिये एक एक पोस्ट को ध्यान से पढियेगा इतना निवेदन है. और फिर एक ख़त और लिखियेगा छोटे भाई को.
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/blog-post.html
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/blog-post_02.html
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/aryan-method-of-breeding-156-24-20-1927.html
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/under-shadow-of-death.html
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/bowl-of-death.html
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/unique-preacher.html
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/women-in-ancient-hindu-culture.html
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/cruel-murders-in-vedic-era-and-after.html
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/gayatri-mantra-is-great-but-how-know.html
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/balmiki-ramaynabalkand.html
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/heart-of-aryan-lady.html
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/plain-truth-about-hindu-rashtra.html

DR. ANWER JAMAL said...

हमारा तन्त्र जल्द से जल्द ईमानदार कैसे बन सकता है? यह एक ऐसा विषय है जिसपर सबको सोचना होगा ।ख़ास तौर से प्रिय प्रवीण जी जैसे लोगों को , क्योंकि अगर कहीं कोई ईश्वर और कर्मफल नहीं है तो फिर नेता की मौज तो जनता का माल डकारने में है। आज तक तो किसी बेईमान नेता या अफ़सर को तो फांसी लगी नहीं !
Priya Praveen ji , apki pratikriya abhi tak nahin mili , kyun ?

प्रवीण said...

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आदरणीय डॉ० अनवर जमाल साहब,

हमारा तन्त्र जल्द से जल्द ईमानदार कैसे बन सकता है?

इस पर प्रतिक्रिया जरूर दूँगा परंतु यह विषय ऐसा है जिसे थोड़े समय और एक पूरी पोस्ट की आवश्यकता पड़ेगी।

आभार!

DR. ANWER JAMAL said...

@ Priya Pravin ji ,गाय काटने वाले मुसलमानों की प्रार्थना ऊपर वाला कैसे सुन सकता है जी ? - भोले भाले गिरी जी ने पुराण मर्मज्ञ महर जी को टोका । question ?
पार्ट 4 Pan ke desh me
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/04/question.html
Kripya is lekh ki last line ko dekhen jo as a writer ek agnostic ko kahi gayi hain , apko chubh sakti hain , aap kahen to inhen kat dun aur apki ijazat ho to chhap dun ? kisi pyar karne wale ka bus humse dil na dukhe .

प्रवीण said...

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आदरणीय अनवर जमाल साहब,

हा हा हा !

गाय काटने वाले मुसलमानों की प्रार्थना ऊपर वाला कैसे सुन सकता है जी ? पढ़ा,

ब्लैक ह्यूमर मुझे पसंद है । कुछ काटने की जरूरत नहीं, जब मुझे धार्मिकों के उलाहने नहीं चुभते तो उन लाइनों की बिसात क्या है ?

रही बात नर, मादा या बीचवाले की...

*** जब फौज में लड़ता था अपने साथियों के साथ साथ कंधे से कंधा मिलाकर... Alpha male यानी 'महा-नर' था मैं ।

*** आज भी जब किसी बेजुबान बचपन को भीख मांगते देखता हूँ... तो आंसू आते हैं मेरे ठीक उसकी उस माँ की तरह जो किसी बेबसी में उसे छोड़ गई सड़क पर... तब भीतर से किसी 'नारी' सा ही होता हूँ मैं ।

*** और जब देखता हूँ अपने देशवासियों को जूझते महंगाई, जहालत और गरीबी से... रोजाना धर्म और जात के नाम पर लुटते- पिसते- मरते- लड़ते... और बेशर्मी से ऐश करते कर्णधारों और धर्मगुरूओं को... और पाता हूँ एक भागीदार, आपराधिक खामोशी... उन लोगों की जिनका बोलना जरूरी था... तो लगता है कि हमारे देश के 'सही सोच रखने वाले' कहीं 'बीचवाले' तो नहीं हो गये?... खुद को उनमें जानता-मानता हूँ तो आप मुझे भी 'वह' कह सकते हैं ।

मैं Agnostic ही भला, अभी तो नया-नया साथ है हो सकता है कि कभी आप ही मुझे धर्म और ईश्वर को मानने के लिये Convince कर लें... मैं तो खुद ही कहता हूँ कि अंतिम सत्य तो आज तक किसी ने जाना नहीं... खोज जारी है... और हम सब उसी खोज-यात्रा के सहभागी हैं।

आभार!

DR. ANWER JAMAL said...

@ Priya Praveen ji !
आओ अब मिल के एक कम करें
खुल्क़ ओ महर ओ वफ़ा आम करें
ख़त्म हो जाएँ आपसी झगड़े
मिल के कुछ ऐसा एहतमाम करें
हो के क़ुरबान हक़ की राहों में
आओ यह ज़िंदगी तमाम करें
आभार!
apka sirf ek din chahiyega aur aap clear ho jayenge , Haq aap par Daleel ke zariye Roshan ho jayega .
Kisi bhi mahine ka pehla sunday .
Mere dil ke darwaze sada apke liye khule hain .
Main jannat men apke sath rehna chahunga .