सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Monday, March 15, 2010

आखि़र हिन्दू नारियों को पुत्र प्राप्ति की ख़ातिर सीमैन बैंको से वीर्य लेने पर कौन मजबूर करता है ? Holy hindu scriptures

हक़ीक़त आगाह , मद्दाह ए ब्लॉग ए मोमिन जनाब वकील साहब , ओम् ‘शाति ।
अपने दिल के समन्दर से मंथन के बाद निकले एक नायाब मोती को यह सोचकर आपको समर्पित किया था कि आप उसकी क़द्र करेंगे लेकिन आपने उसकी क़द्र करना तो दूर उस पर कोई टिप्पणी करना भी मुनासिब नहीं समझा ।

आखि़र क्यों ?

मैंने आपका इन्तेज़ार भी किया , बार बार आपको पुकारता रहा और अपनी कमी को भी तलाश करता रहा ।ऐसा मैंने एक दो दिन नहीं बल्कि पूरे तीन दिन किया । लेकिन आप फिर भी तशरीफ़ नहीं लाये ।

आख़िर क्यों ?

मैं यही सोचता रहा कि

1-क्या आप मुझसे डर गये हैं ?

2-क्या आपके दिल में एक मुसलमान के लिए नफ़रत भरी हुई है ?

3-या फिर आपको गायत्री मन्त्र के नाम से कोई चिढ़ है ?

मैंने ग़ौर किया तो पाया कि दरअस्ल ऐसी कोई बात नही है । ग़लती आपकी नहीं है बल्कि कमी तो ख़ुद मेरे अन्दर है । मैं ही आपके टेस्ट को न पहचान सका । आपने तो ब्लॉग ए मोमिन को क़ाबिले तारीफ़ बताकर अपनी पसंद का सुराग़ भी दिया था लेकिन मैं ही नादान था जो समझ न सका । बहरहाल अपनी ग़लती मैंने पकड़ ली है और अपनी ग़लती सुधारने में मैं कभी देर नहीं करता ।

इन्शा अल्लाह जल्द ही आपकी रूचि के अनुरूप सामग्री प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा । लेकिन इससे मेरे सामने एक और दिक्क़त खड़ी हो जाएगी । पॉज़िटिव थिंकिंग रखने वाला मेरा पाठक वर्ग नाराज़ हो जाएगा ।

ऐसे में सलाह मशविरा से ही कोई रास्ता निकल सकता है ।
मेरे दिल को अपनी मुहब्बत की खु़श्बुओं से महकाने वाले , नेक पाक तबियत के मालिक , हर दिल अज़ीज़ जनाब सतीश सक्सैना जी , अससलामु अलैकुम अर्थात ओम् शंति ।
हिन्दी ब्लॉग जगत में आप काफ़ी अर्से से हैं । आप जानते हैं कि जब कोई इसलाम पसन्द सिरे से ही यहां नहीं था तब भी यहां बराबरी की तालीम देने वाले अज़ीम दीन इसलाम पर वर्णवादी कीचड़ उछाल रहे थे ।

क्यों उछाल रहे थे ?

ऐसा सिर्फ़ वे अपनी कुंठा और खुन्नस दर्शाने के लिए कर रहे थे । चन्द हफ़ते क़ब्ल मैंने यहां ब्लॉगिंग आरम्भ की । पवित्र कुरआन के बारे में लिखने से ‘शुरूआत की । क्या मैंने कोई ग़लती की ?

हिन्दू धर्मग्रन्थों की कमी पर भी कोई तब्सरा मैंने नहीं किया ।

मनुष्य , मानवता , भारत और विश्व की उन्नति वर्णवादी व्यवस्था , नियोग और तथाकथित वैदिक संस्कार में ही है । मैं दयानन्द जी के इस विचार से सहमत नहीं हूं ।

‘दयानन्द जी ने क्या खोजा और क्या पाया ?‘ नामक पुस्तक लिखकर मैंने अपनी असहमति के कारण गिनाए लेकिन स्वामी जी या उनके मानने वालों के प्रति मैंने ऐसी कोई अपमानजनक टिप्पणी नहीं की जैसी कि उन्होंने खुद दूसरे विद्वानों के प्रति व्यक्त की हैं और उनके तथाकथित सभ्य ( ? ) अनुयायी आज भी व्यक्त करते रहते हैं ।

मेरी उक्त पुस्तक के द्वारा सच्चाइर्र सामने आते ही कुछ लोग बेचैन हो गये । मुझ पर तरह तरह से दबाव बनाने लगे । मुझे परेशान करने के लिए इसलाम की मज़ाक़ उड़ाने वाले एस एम एस भी भेजे गये । मुरादाबाद के एक युवा उत्साही धर्म रक्षक तो मुझे ढंूढने के लिए मेरे नगर ही आ पहुंचे और 15 दिन से भी ज़्यादा एक ऐसे होटल में ठहरे रहे जिसके किचन में अण्डों के व्यंजन आदि भी बनते हैं । वे वहीं पड़े रहे , उसी किचन के बने व्यंजन खाते रहे और आखि़र मुझ तक पहुंच भी गये । मेरे पास आये तो मैंने उनका आतिथ्य सत्कार किया ।

वे बातचीत में पवित्र कुरआन में और खुदा में कमियां निकालने लगे ।

मैंने जवाब में दो ‘शब्द कहने आरम्भ ही किये थे कि वे आपा खोकर हकलाने लगे । मैंने बात को ख़ूबसूरत मोड़ देकर उनसे विदा ली और बाद की कॉल्स को एवॉइड कर दिया । तब ये पीतल पुरूष धमकी देने लगे कि या तो मैं अपनी पुस्तक वापस ले लूं वर्ना वे इंटरनेट पर कुंठित स्वामी रचित रंगीला रसूल नामक पुस्तक डाल देंगे ।

श्री सौरभ आत्रेय जी ने भी अपने ब्लॉग पर मेरी पुस्तक का पोस्टमार्टम करने की कोशिश की ।

तर्क देने से भी पहले उन्होंने मुझे धूर्त मूर्ख और पाखण्डी आदि न जाने क्या क्या लिखा । फिर भी मैंने अपने लेखन का रूख़ नहीं बदला और मैं हिन्दू मुसलिम ग्रन्थों से दोनों समुदायों को जोड़ने वाली सामग्री पेश करता रहा । अब ये आर्यसमाजी नुमा ‘शूद्र मेरे ब्लॉग पर ही आकर मेरे लेखन को आधारहीन और अपनी कल्पनाओं को सत्य बताने लगे ।

क्या अब मेरे सामने इन्हें जवाब देने के सिवाय कोई रास्ता बाक़ी था ?क्या अब भी मेरे लिए चुप रहना जायज़ था ?

सच्चे दीन को झुठलाया जाए तो क्या करना चाहिये ?

जो करना चाहिये मैंने वही किया । मेरे ऐसा करते ही वे लोग भी अपने बाल नोचने लगे जो आर्य समाजी तो नहीं हैं लेकिन हैं वे भी वर्णवादी व्यवस्था के ही सिपाही ।

उन्होंने श्री श्री रविशंकर जी के बारे में अपमानजनक बातें कहने वाले श्री आत्रेय जी को तो कुछ न कहा लेकिन मुझ पर पिल पड़े ।

अंधेरे में अपना नंगापन दिखाई नहीं देता । अब मैंने ज़रूरी समझा कि इनके सामने सत्य का प्रकाश कर ही दिया जाए और वैसे भी ये बहुत दिनों से अपनी बुद्धियों के लिए सविता से सन्मार्ग की प्रार्थना कर रहे थे ।
मैंने तो अपनी हद भर उजाला कर दिया और उन्हें अपने नंगेपन का अहसास भी ‘शायद हो गया । तभी तो नियोग जनित एक चिपचिपे आदमी ने किसी विदेशी शिखण्डी की आड़ ली और अपने माँ बाप के संभोगरत खिलौनों पर पाक हस्तियों के नाम लिखकर नुमाइश लगाई और अपनी नैतिक गिरावट का परिचय दिया । उस मकड़जाल स्वामी की इस हरकत पर भी हमने उसे कुछ बुरा भला नहीं कहा बल्कि उसे साधुवाद ही प्रेषित किया । लोग समझते हैं कि मुसलमान कट्टर होते हैं ।
बताइये हमारे मुंह से किसी ने सुनी किसी के प्रति कोई कठोर टिप्पणी ?

बल्कि हम न सिर्फ़ उनके अभियान में शामिल हो गए बल्कि उसे नये क्षितिज और नये आयाम दे दिये। इनमें से किसी एक ने भी न तो मुझे साधुवाद दिया और न ही मेरे द्वारा आहूत

श्री राम गौरव रक्षा अभियान में ही शिरकत की ।

आख़िर क्यों ?

खै़र मैंने एक विराम की ख़ातिर एक अपूर्व लेख लिखा ‘गायत्री मन्त्र को वेदमाता क्यों कहा जाता हैं ?
क्या यह लेख भी सराहना का हक़दार नहीं है ।
वैसे तो मुसलमानों पर आरोप लगाया जाता है कि ये मुख्य धारा में नहीं आते लेकिन जब कोई आने की कोशिश करता है तो हिन्दू धर्मध्वजियों में से कोई स्वागत और सराहना करने के लिए भी नहीं आता ।इनके इसी अहंकार के कारण इनके (अ) धर्म का लोप हो गया है ।
अरे कोई वर्णवादी कलिमा पढ़कर उसकी अच्छी सच्ची व्याख्या करके मुसलमानों का रिस्पॉन्स तो देखे ।
मुसलमान कितना प्यार देते हैं ? खुद पता चल जाएगा ।
जब मेरा यह पॉज़िटिव आर्टिकिल दुनिया पढ़ रही थी ठीक उसी समय एक और नियोगवादी महाशय मुसलमानों के विवाह नियम को बीमारियां फैलाने वाला बता रहे थे । मैं तो वहां भी टिप्पणी करने नहीं पहुंचा कि किसी भी हॉस्पिटल के आंकड़े उठाकर देख लीजिये । आप खुद जान जाएंगे कि बीमारी और अपंगता में हिन्दू बच्चे ही टॉप पर हैं ।

कितने ही बच्चों के जन्म के लिए उनकी माँओं ने आशीर्वाद की ख़ातिर अपने गुरूओं की सेवा तक की। यकीन न आये तो सीमैन बैंकों से वीर्य लेने वालों को देख लीजिये । आपको वहां एक भी मुसलमान नज़र न आएगा । ये भी नियोग का आधुनिक रूप ही तो है ।

आखि़र हिन्दू नारियों को पुत्र प्राप्ति की ख़ातिर सीमैन बैंको से वीर्य लेने पर कौन मजबूर करता है ?

हिन्दू नारी को सरोगेट मदर बनने पर कौन मजबूर करता है ?क्या आप जानते हैं कि हॉस्टल में रहने वाली बालाएं पैसे की ख़ातिर अपना डिम्ब भी बेचती हैं ?

दहेज की हवस और नर्क से मुक्ति के लालच में वर्णवादी सदा से औरत के साथ ऐसे अमानवीय कर्म करते आये हैं कि उन्हें लिखना भी मेरे बस के बाहर है ।
इन्हें मनुस्मृति की विवाह पद्धति में भी कोई दोष नज़र नहीं आता जिसमें बलपूर्वक उठाकर लाई गयी या सोती हुई , मद्यादि पी हुई पागल कन्या से बलात्कार संयोग करने को भी विवाह के 8 प्रकारों में सम्मिलित किया गया है । (सत्यार्थप्रकाश,चतुर्थसमुल्लास,पृष्ठ 62)

इसलाम के प्रकाश को अपनी फूंकों से बुझाने का सिलसिला अभी बन्द नहीं हुआ है ।

पीतल पुरूष अभी भी छिपकर कमेंट करता है ।अरे भाई नेट संसार में तो उसे ‘शर्माने वाली किताबें पहले से मौजूद हैं । आप भी लाइये जल्दी लाइये । मैं अपनी हद भर श्री वेद व्यथित जी की तरह आपका भी जी जान से सत्कार अवश्य करूंगा । उस दिन के लिए भी मैंने थोड़ी सी पठनीय पूंजी रख छोड़ी है । रोज़ाना जो कुछ मैं लिखता हूँ वह तो पर्वत के सामने राई समान है ।

श्री वेद व्यथित जी की याद भी आज बड़े मौके़ से आई है । जाने किस लायब्रेरी में बैठे क्या क्या पढ़ रहे होंगे ?ख़बरदार कोई ये न समझे कि वे डरकर भाग गये हैं । एक दिन वे अवश्य आएंगे तब वे हमें सच्चा ज्ञान देंगे ।

ख़ैर , मेरे ख़ैरख्वाह जनाब सतीश जी !

आपकी इच्छा थी कि आप मुझे समझाएंगे । लीजिये मैं समझने के लिए खुद को आपकी खि़दमत में पेश करता हँ ।

मुझे समझाइये कि हिन्दी वेबजगत में इसलाम को बदनाम करने वालों को उनकी बदतमीज़ियों से कैसे रोका जाए ?

निष्पक्ष लोगों तक इसलाम की सही जानकारी कैसे पहुंचाई जाए ?पैग़म्बरों और अवतारों के बारे में फैला दी गई ग़लत धारणाओं को निर्मूल कैसे किया जाए?

और अन्त में ...

जनाब वकील साहब आपकी ख्वाहिश का अहतराम करते हुए मैंने मोमिन जी का ब्लॉग पढ़ा । वाक़ई वे अच्छा लिखते हैं । आप उनकी ग़लत तारीफ़ नहीं करते ।

इसलामी पृष्ठभूमि से अनजान होने के बावजूद उनसे कुछ बातें ठीक भी लिखी गई हंै। मैं भी उनकी ठीक बातों की तारीफ़ करता हूँ । इन्शा अल्लाह उनकी ग़लतफ़हमियों को भी जल्द ही दूर कर दिया जाएगा । उम्मीद है आपको हमारा प्रयास पसन्द आएगा । आप अपनी स्नेह दृष्टि बनाए रखिएगा ।
देखिए न , आपका दिल जीतने के लिए हम कितने प्राणपण से कोशिश कर रहे हैं । सबसे अन्त में मैं ज़िन्दगी की पाठशाला के शिक्षक महोदय को भी सादर प्रणाम करता हूँ । हमें उनके जवाब का भी तो इन्तेज़ार है ।

65 comments:

DR. ANWER JAMAL said...

जनाब वकील साहब आपकी ख्वाहिश का अहतराम करते हुए मैंने मोमिन जी का ब्लॉग पढ़ा ।
वाक़ई वे अच्छा लिखते हैं ।
आप उनकी ग़लत तारीफ़ नहीं करते । इसलामी पृष्ठभूमि से अनजान होने के बावजूद उनसे कुछ बातें ठीक भी लिखी गई हैं । मैं भी उनकी ठीक बातों की तारीफ़ करता हूँ ।
इन्शा अल्लाह उनकी ग़लतफ़हमियों को भी जल्द ही दूर कर दिया जाएगा । उम्मीद है आपको हमारा प्रयास पसन्द आएगा । आप अपनी स्नेह दृष्टि बनाए रखिएगा । देखिए न , आपका दिल जीतने के लिए हम कितने प्राणपण से कोशिश कर रहे हैं ।

दिनेशराय द्विवेदी said...

अब आप मेरे मुहँ में अपनी बात क्यों डालना चाहते हैं कि मैं ने मोमिन के ब्लाग की तारीफ की है। जनाब आपने जिस तरह से संस्कृत के कृष्ण संबंधी श्लोक का अर्थ किया था। उस पर प्रश्न खड़ा किया था। और पूछा था कि क्या आप कुऱआन की व्याख्या भी ऐसे ही करेंगे और यदि की तो फिर मोमिन गलत क्या कर रहा है?
आप का मकसद अगर इस्लाम या उस के सिद्धांतों का प्रचार करना है तो खूब करिए। लेकिन दूसरों के विश्वासों पर चोट न कीजिए। इस तरह कभी कोई धर्म फैला नहीं है। चाहे वह कुछ भी क्यों न रहा हो। मेरे विचार में धर्म अब अप्रासंगिक हो चुके हैं। वे दुनिया में अमन नहीं लाते। वे केवल लोगों को लड़ाते हैं सभी धर्म अमानवीय हो उठे हैं। इस से अच्छा तो है दीन दुखियों की मदद कीजिए। उन के लिए कोई उपक्रम चलाइए। उस से यह लोक तो सुधरेगा। परलोक किसने देखा है?

DR. ANWER JAMAL said...

वन्दे ईश्वरम्
आपका लेख अभी तक नहीं मिला डाक्टर साहब ।

DR. ANWER JAMAL said...

@ Dr. Aslam sahib suna hai aaj aap delhi men hain.
aaj tak courier ka intezar hi kar raha hun .
aapne duniya ko banta par mujhe ab tak na mila , kyun ?
jab bhi comment karen to zuroor batayen .
phuppi ki apne 6 years old bachche ke sath road accident menmaut ho gayi hai jumerat ko unke liye bhi dua karna .

DR. ANWER JAMAL said...

@ shukr hai khuda ka ki aap aaye bhi aur kuchh bole bhi.
Dharm aprasangik ho chuke hain aur parlok hai nahin to kya koi bawla hua hai Jo apna maal dusron par lutaye.
aap to neki ke jazbe ki jad hi kaat rahe hain.
jo baat aap mujh se keh rahe hain
kya kabhi aapne momin ji se bhi kahi hai ?

bharat bhaarti said...

purbhu aapki laikhni ko ati shaki de

Gulshan said...

इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन ।

DR. ANWER JAMAL said...

इसका अर्थ भी लिख देते तो पाठकों का कुछ भला होता ।

Gulshan said...

इसका मतलब है कि
हम सब अल्लाह की मिल्कियत हैं और एक मुक़र्रर मुद्दत के बाद हमें उसी मालिक के पास जाना ही है ।

Aslam Qasmi said...

dinesh rai divedi ji man ki gehraaiyon se sochie parlok aapne dekha nahin prantu khbar denewala khabar de raha he kahin aisa na ho ki kal pachhtana pade

Aslam Qasmi said...

aor ha mai lelhak anwar jalal ko dhannai hehna to bhool hi gia tha sory anwar jamal .....your post is nice

Mohammed Umar Kairanvi said...

Waaah Guru Thmhara Gyan aage aage koi na tike, shabash

Sachi said...

मैंने तो अब इन ज्ञानियों के ब्लॉग पर कुछ भी लिखना ही छोड़ दिया है | आज फिर भी, मैं अपने आप को रोक नहीं पा रहा | अरे, जब इतने ही बड़े ज्ञानी हो, तो दीन दुखियों की सेवा करो, जो कि सब धर्मों के मूल में है | नेहरु की गलतियों का फल पूरा देश भोग रहा है|

Anonymous said...

इस ब्लॉग के खिलाफ कानूनी कदम उठाये जाने चाहिये। ब्ळोग वाणी से अनुरोध है कि इस ब्ळोग को बंद करे।

DR. ANWER JAMAL said...

@ Dr. Aslam sb and bhai kairanvi and others THANKS.

DR. ANWER JAMAL said...

@ Dr. Aslam sb and bhai kairanvi and others THANKS.

Aslam Qasmi said...

भाई अनवर, यह जानकर अफसोस हुआ कि आपकी फूफी का बच्‍चे के साथ इन्‍तकाल होगया है, अल्‍लाह की ऐसी ही मरजी थी, हम उनके लिये मगफिरत की दुआ करते हैं और अल्‍लाह से दुआ है कि पसमान्‍दगान को सबर अता फरमाये, इजहारे ताजियत में देर करने के लिये माफी चाहता हूं, कूरियर आपको इन्‍शाअल्‍लाह जल्‍द मिल जायेगा,

आपकी तहरीरे बडी जानदार हैं, लिखते रहिये खुदा करे ज़ोरे कलम और ज्‍यादा

सहसपुरिया said...

ZINDABAAD DR. SAHAB
NO COMMENT

सहसपुरिया said...

BAHUT SOCHA KYA LIKHU
LAFZ HI NAHI MIL RAHE.......
LAGE RAHIYE

सहसपुरिया said...

ALLAH AAPKO AUR AAPKI PHUPPO KO SABAR ATA FARMAYE, 'AAMIN'

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

वेद शब्द पढ़ कर ,
आपका लिखा पढने आये और ये सब देखा --
:-((
Bahot dukh huaa --

हिन्दू नारियों ने क्या किया और क्या नहीं -
- उस विषय पर ऐसी चर्चा क्यूं ?
आपके परिवार की सभी महिलाओं की तरह दूसरी सभी माता , बहन व पुत्रियों के लिए
आप भी मंगल कामना कीजिये -
- आपकी आत्मीय परिजन
आ. फूफी जी ) की आत्मा को
ईश्वर अपने प्रकाश में लें
ये मेरी प्रार्थना है
चैत्र नवरात्र की मंगल कामना --
आप को अपना धर्म प्रिय है -
- मुझे मेरा --
शांति , अमन चैन , सद`भाव
सद`गुण हैं -
उन्हें अपनाएँ
आमीन
- लावण्या

क्षत्रिय said...

आप का मकसद अगर इस्लाम या उस के सिद्धांतों का प्रचार करना है तो खूब करिए। लेकिन दूसरों के विश्वासों पर चोट न कीजिए। इस तरह कभी कोई धर्म फैला नहीं है। चाहे वह कुछ भी क्यों न रहा हो। मेरे विचार में धर्म अब अप्रासंगिक हो चुके हैं। वे दुनिया में अमन नहीं लाते। वे केवल लोगों को लड़ाते हैं सभी धर्म अमानवीय हो उठे हैं। इस से अच्छा तो है दीन दुखियों की मदद कीजिए। उन के लिए कोई उपक्रम चलाइए। उस से यह लोक तो सुधरेगा। परलोक किसने देखा है?

दिनेश जी के उक्त विचारों से पूर्णत: सहमत |
एक दुसरे के धर्म के खिलाफ कोई भी लिखे निंदनीय है |

Gyan Darpan said...

आप का मकसद अगर इस्लाम या उस के सिद्धांतों का प्रचार करना है तो खूब करिए। लेकिन दूसरों के विश्वासों पर चोट न कीजिए। इस तरह कभी कोई धर्म फैला नहीं है। चाहे वह कुछ भी क्यों न रहा हो। मेरे विचार में धर्म अब अप्रासंगिक हो चुके हैं। वे दुनिया में अमन नहीं लाते। वे केवल लोगों को लड़ाते हैं सभी धर्म अमानवीय हो उठे हैं। इस से अच्छा तो है दीन दुखियों की मदद कीजिए। उन के लिए कोई उपक्रम चलाइए। उस से यह लोक तो सुधरेगा। परलोक किसने देखा है?

दिनेश जी के उक्त विचारों से पूर्णत: सहमत |
एक दुसरे के धर्म के खिलाफ कोई भी लिखे निंदनीय है |

राजीव रंजन प्रसाद said...

इस तरह के आलेखों पर मैं कभी टिप्पणी नहीं करता किंतु आदरणीया लावण्या शाह जी की टिप्पणी और उसमें अंतर्निहित क्षोभ नें बाध्य कर दिया। आस्थाओं पर प्रहार करने की परम्परायें बंद होनी चाहिये। डॉ जमाल आप नें जिस उद्देश्य से इस आलेख को लिखा है उसकी मंशा ठीक नहीं है। सद्भाव एक बारीक रेखा है और यह गंगा जमनी संस्कृति वाला देश एसी बातो और मानसिकता के कारण ही बदनाम हो जाता है।

अत्यंत दुख और क्षोभ के साथ।

drdhabhai said...

आप सच्चे मुसलमान हैं .....शायद दूसरों की आस्था पर चोट करना इस्लाम के मूल संस्कारों मैं से है......अगर आपके विचार इतने गंदे हैं तो जिन सिद्धांतो पर आप जीते हैं ...उनकी राम जाने...खैर आप के ब्लोग का नियमित पाठक हूं ....आप को पढ पढकर इस्लाम के बारे मैं ठीक ठाक जानने को मिल रहा हैं....

Saleem Khan said...

राजीव जी लगता है अन्तर्यामी हो गए हैं...

मकसद साफ़ है मगर दिख नहीं रहा.... मतलब जो लिखा है वह तुम बोलो नहीं और जो कुछ भी नहीं उसे वो मीडिया का भरपूर इस्तेमाल करके खूब चिल्लायेंगे!!!

Anonymous said...

bahoot khoob janaab. ab aap to guruon ke guru nikle.

saadar SALAAM

Unknown said...

मिहिरभोज से सहमत हूं, आप निरन्तर ऐसे ही घटिया हेडिंग दे-देकर लिखते रहिये, ताकि हम अपने लोगों को बता सकें कि देखो कुरान के कथित जानकार और ज़ाकिर नाईक के चेले क्या-क्या और कैसा-कैसा लिखते हैं… आपकी मदद से हमें सेकुलरों को भी आपका "असली" चेहरा दिखाने में मदद मिलेगी… ऐसे लोग जो "हिन्दुत्व" के पक्ष या विपक्ष में नहीं हैं उन्हें आपके, आपके चेले और सलीम आदि के लेख पढ़वाने से उन्हें भी पता चले कि हिन्दुत्व कितना महान है कि हिन्दू कभी किसी दूसरे के धर्म के बारे में गलत-सलत नहीं लिखता और "ये लोग" हैं कि……। इसलिये वेदों पर लिखना (यानी उन्हें नीचा दिखाना, मनमानी व्याख्या करना) जारी रखिये…। हम तो जानते हैं, लेकिन बाकियों को भी जानना चाहिये कि आप "असल" में क्या हैं… :)

उम्दा सोच said...

आप की जैसी सोच वैसी आप की लेखनी मिया, कयामत के दिन की तैयारी मे अप्ना जीना यूही हराम किये रहो, अए नफ़रत के सौदागरो "हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन, दिल के बहलाने को तुम्हारा ये खयाल अछ्छा है ! आप की बात पर एक वाक्या सुनाता हू सुनो … फ़क्रूद्दीन अप्ने स्टूडेन्ट्स से रोज़ सवाल करता बताओ एफ़िल्टावर कहाँ है?,बताओ सहारा डेज़र्ट कहाँ है?,बताओ पिरामिड कहाँ मिलते है? वगेरह वगेरह्… सही जवाब न मिलने पर स्टूडेट्स को मारता और कहता गधो कभी घर से बाहर भी निकला करो…
एक दिन जब अति हो गई तो फ़क्रूद्दीन के एक स्टूडेन्ट् जावेद ने फ़क्रूद्दीन से कहा मास्टर साहब बताओ हरीशंकर कहाँ पाया जाता है ???
मास्टर फ़क्रूद्दीन के पास जवाब न था…तो स्टूडेन्ट् जावेद ने कहा … "मास्टर साहब कभी घर मे भी रहा करो !!!

इस कहानी से सिक्षा मिलती है कि अए मिया लमाल अनवर अपना घर सम्हालो कुरान मे छेद कम नही है… हमने डालना शुरू किया तो फ़िर पछ्ताते घूमना !!!

Mohammed Umar Kairanvi said...

गुरू जी शांत हो जाइये, मायूस न होइये, कुछ द्वि‍वेदी जी के मशवरों पर धयान दिजिये,परोपकारी की बातें शुरू कीजिये, फिर दिखा दिजिये उधर भी आपका कोई मुकाबला नहीं

बिना दंगा अभिलाषी का नाम लिये आपने दिखा दिया, बात में दम हो तो वोट और फोन, मेल करने की आवश्‍यकता नही

Anonymous said...

एक जेहादी लुटेरा वहीय क़ल्बी जो एक परी ज़ाद को देख कर फ़िदा हो जाता है, मुहम्मद के पास आता है और एक अदद बंदिनी की ख्वाहिश का इज़हार करता है जो उसे मुहम्मद अता कर देते हैं. वहीय के बाद एक दूसरा जेहादी दौड़ा दौड़ा आता है और इत्तेला देता है या रसूल अल्लाह सफ़िया बिन्त हई तो आप की मलिका बन्ने के लायक हसीन जमील है, वह बनी क़रीज़ा और बनी नसीर दोनों की सरदार थी. मुहम्मद के मुंह में पानी आ जाता है, क़ल्बी को बुलाया और कहा तू कोई और लौंडी चुन ले. मुहम्मद की एक पुरानी मंजूरे नज़र उम्मे सलीम ने सफ़िया को दुल्हन बनाया मुहम्मद दूलह बने और दोनों का निकाह हुवा।

Anonymous said...

अच्छा लिखते हो, बहुत खास लिखते हो, मगर सच कहूं कभी - कभी बहुत बकवास लिखते हो.
खुद को जाना नहीं खुदाया खास बनते हो, अपने खुद के बाप को जानते नहीं और हमारे पुरखों की बात करते हो.same comment posted on islaminhindi.blogspot.com also.

Mohammed Umar Kairanvi said...

वाह गुरू जी आज तो 12 नापसन्‍द वोट का भी रिकार्ड बना दिया, इधर-उधर न देखना भी आपकी सफलता का राज है, शायद अर्जुन की तरह केवल मछली की आँख पर आपकी नजर है

त्यागी said...

सम्मानीय ब्लोगर को अभी कोई सवा शेर टकराया नहीं. मित्र जितनी खूबसूरती से अपने एक धर्म विशेष का मजाक उड़ाने की भरपूर चेष्टा की है इस का जवाब यदि तुम्हे देदिया जाये तो काफी असुविधा होगी आपको.
याद रखना जवाब दिया भी जा सकता है और फिर उअसकी वकालत करना आपके बस की बात नहीं रहेगी. उचित होगा अपनी विद्वता का परिचय देते हुए अपने शब्दों पर क्षमा मांग ले अन्यथा समझा यह जायेगा की आप अपनी बात के जरिये जहर उगल रहे है.
सप्रेम
http://parshuram27.blogspot.com/

DR. ANWER JAMAL said...

आप मेरे नियमित पाठक हैं यही मेरे लिए बहुत है । आप ही मेरी ताक़त हैं चाहे आप मुझे नापसन्द ही क्यों न करते हों ।
आप बुद्धिजीवी हैं जल्द या बदेर आप सच्चाई को जान जाएंगे ।
हम सब एक ही आत्मा के अंश हैं । मेरी प्रेम तरंगे आपको बता देंगी कि मैं सिर्फ़ ज़ालिमों से नफ़रत करता हूं भोले भाले अबोध लोगों से नही । क्योंकि वे तो केवल अपनी परम्परा मोह के कारण विरोध करते हैं जोकि स्वाभाविक है जबकि ज़ालिम वह होता है जो सच को भली प्रकार जानने के बाद भी न तो खुद अपनाता है बल्कि दूसरों को रोकने फांसने के लिए उनके रास्ते में अपना महाजाल तानकर खड़ा हो जाता है ।
सबका धन्यवाद ।

Anonymous said...

इसमे डा. अनबर की कोई गलती नही है| ये तो इस्लाम का मूल सिद्दांत है की दूसरे धर्म को गाली देना. और अपने धर्म का प्रचार करना. डा. अनबर, उसी का पालन कर रहे है.
आज इसी प्रचार के कारण मुसलमानो ने लाखो लोगो को मार दिया है, और खुद भी मर रहे है.
बस इन्तजार है पुरी दुनिया से इसलाम का सफ़ाया. इसमे सबकी भलाई है

अवनीश सिंह said...

आप सच्चे मुसलमान हैं .....शायद दूसरों की आस्था पर चोट करना इस्लाम के मूल संस्कारों मैं से है......

Satish Saxena said...

मैं माफ़ी चाहता हूँ डॉ अनवर जमाल !
बहुत अच्छा प्रयत्न कर रहे हैं आप, शीर्षक पर अवश्य, पब्लिक का ध्यान आकर्षण करने का आरोप आसानी से लग सकता है ! उमर कैरानवी के व्यंग्य पर भी ध्यान दीजियेगा , वे भी आपको चेताने का प्रयत्न ही कर रहे हैं ! समस्या वही है , मगर धैर्य चाहिए ....आम तौर पर पाठक बेहद समझदार नहीं होता !
आप किससे उम्मीद कर रहे हैं , रास्ता बेहद लम्बा और मुश्किल है मगर ईश्वर पर भरोसा रखें , मुझे आपके सच्चे मुस्लिम होने पर उसी तरह विश्वास है जिस तरह अपने आप पर सच्चे हिन्दू होने पर ! मगर किसको विश्वास दिलाओगे ?
किसी भी धर्म का अपमान करने वाले को सिर्फ "जाहिल" कहा जा सकता है ! तथाकथित धर्म रक्षकों के बारे में, मैं क्या कहूं , शायद इन्हें यह नहीं मालूम की वे अपनी ही औलादों के सबसे बड़े दुश्मन हैं !
अपना जीवन जहर से भरा और औलादों के आगे भी कांटे बोते चले गए !

साजिश है आग लगाने की
कोई रंजिश, हमें लड़ाने की
वह रंज लिए, बैठे दिल में
हम प्यार, बांटने निकले हैं!
हम आशा भरी नज़र लेकर उम्मीद लगाए बैठे हैं !

बहुत मुश्किल काम है डॉ अनवर जमाल , और इस रास्ते पर चलते समय न सतीश सक्सेना और न उमर कैरानवी किसी से उम्मीद न रखें ! है हिम्मत ....?

आपसे मेरी उम्मीदें है, चूंकि आप विद्वान हैं, आप को ही कांटो का ताज पहनना है दोनों तरफ से .....कबीर हैं आप ....

आशा है बुद्धि में आपसे कम होने के बावजूद , उम्र में बड़े होने के कारण, आप मेरी बात समझेंगे !

शीघ्र आपका जवाब एक लेख लिख कर देने का प्रयत्न करूंगा ! हालांकि मुश्किल काम है,,,,,,

Saleem Khan said...

satish jee ke vicharon ko samjhne ki koshish karnee chahiye ....

Dr D.P Rana said...

देखिये आप तो बहुत ही गलत बात कर रहे हो , आप शांति नही बल्कि अशांति फ़ैला रहे हो । आप जोडने का काम नही बल्कि समाज को तोडने का काम कर रहे हो । आपके बलोग को अगर साधारण भारतवासी पडता है तो वो आगबबुला हो जाता है, आप जो लिख रहे हो वो कानुन के विरुद्द है । कृपया करके आप ऎसा मत किजिये । अगर आप समाज मे कुछ अच्छा नही दे पाते तो कृपया आप समाज मे कम से कम नफ़रत तो नही फ़ैलाईये । मे भी ब्लोग लिखता हु , और लोगो की स्वास्थय संबधी स्मस्याऒं को दुर करने की कोशिश करताहुँ । मै हर धर्म के लोगो को सलाह देता हु , कभी भी भेदभाव नही करता ? आप क्यों और किस वजह से नफ़रत फ़ैला रहे हो ? इन बातो का हमेशा विपरित ही परिणाम मिलेगा । कृपया आप कुतर्क से बचकर राष्ट्र निर्माण मे सहयोग करे ।http://www.jivayurveda.blogspot.com

Anonymous said...

मिहिरभोज से सहमत हूं, आप निरन्तर ऐसे ही घटिया हेडिंग दे-देकर लिखते रहिये, ताकि हम अपने लोगों को बता सकें कि देखो कुरान के कथित जानकार और ज़ाकिर नाईक के चेले क्या-क्या और कैसा-कैसा लिखते हैं… आपकी मदद से हमें सेकुलरों को भी आपका "असली" चेहरा दिखाने में मदद मिलेगी… ऐसे लोग जो "हिन्दुत्व" के पक्ष या विपक्ष में नहीं हैं उन्हें आपके, आपके चेले और सलीम आदि के लेख पढ़वाने से उन्हें भी पता चले कि हिन्दुत्व कितना महान है कि हिन्दू कभी किसी दूसरे के धर्म के बारे में गलत-सलत नहीं लिखता और "ये लोग" हैं कि……। इसलिये वेदों पर लिखना (यानी उन्हें नीचा दिखाना, मनमानी व्याख्या करना) जारी रखिये…। हम तो जानते हैं, लेकिन बाकियों को भी जानना चाहिये कि आप "असल" में क्या हैं… :समचुच आपका लेख हम जैसे सेकुलर हिन्दुऒ को अपने धर्म मे आस्था की ओर अग्रसर कर रहा, हिन्दुओं को जोडने का काम कर रहा है .

Jack said...

अरे भाई तुम्हारे पास कोई काम धाम है कि नही भारत में रहना चाहते हो या नही अबे बेवकुफ मुझे यह बताओं कि तुन किस सीमैन बैंक मॆं गए थे , मै तुन्हे सीमैन बैंक ले चलता हूं और वहा मुस्लमान नामों को दिखाता हूं, आधी से ज्याद संख्या तुम मुल्लों की है आगे लिखों मगर भावनाओं को ठेस मत पहुचाना.

Anonymous said...

इस्लाम कबूल है! कबूल है! कबूल है! आप की तो इच्छा है की लोग अन्य धर्मों को छोड़कर खासकर हिन्दू धर्म को छोड़ कर इस्लाम को अपनाएं यहीं प्रयास आप islaminhindi ब्लॉग में भी कर रहें और यहाँ भी तो चलिए मैं कहता हूँ की मुझे इस्लाम कबूल है - पूरे तीन बार कहता हूँ . कुरआन के मुताबिक अब मैं अल्लाह का बन्दा हुआ मैंने अपने गलतिओं की तौबा कर ली मेरे अपराध माफ़ हुए. लेकिन कल ही मैंने ग़दर देखी कुछ इसी तरह का ही सीन था ! फिल्म तो आपने भी देखी होगी आगे क्या हुआ जानते भी होंगे! अब ये मत कहियेगा की कहो पाकिस्तान जिंदाबाद >> इस्लाम की अच्छी बातों को तो मैं हिन्दू रहते भी अपना सकता हूँ? जवाब जरूर लिखना }

मेरे दोस्त जिस थाली में खातें हैं वहीँ छेद नहीं करते ! खाओ हिन्दुस्तान की और गाओ पकिस्तान की ये तो गलत है !

देश की चिंता करो धर्म अपने आप ठीक हो जाएगा. हमारा देश ही हमारा धर्म है इसे समझो याद रखो भारत के हर गाँव हर कसबे में १०-१२ हिन्दू घरों के बाद एक मुस्लिम घर आता अगर मुस्लिम भाई के घर में आग लगती है तो तुम्हारे कौम के लोग या तुम लोग वहां मदद के लिए नहीं जाते और ना जा पाओगे उस समय तो हिन्दू भाई ही मुसलमान के काम आता है और आएगा . इस सच को जितना जल्दी हो सके समझ लो उतना ही ठीक होगा.

जनाब डॉ. अनवर जमाल साहब मैं आपके जबाब के लिए उत्सुक हूँ

Anonymous said...

इस्लाम धर्म (الإسلام) ईसाई धर्म के बाद अनुयाइयों के आधार पर दुनिया का दूसरा सब से बड़ा धर्म है। इस्लाम शब्द अरबी भाषा का शब्द है जिसका मूल शब्द सल्लमा है जिस की दो परिभाषाएं हैं (१) अमन और शांति (२) आत्मसमर्पण।

Anonymous said...

इस्लाम एकेश्वरवाद को मानता है। इसके अनुयायियों का प्रमुख विश्वास है कि ईश्वर सिर्फ़ एक है और पूरी सृष्टि में सिर्फ़ वह ही महिमा (इबादत) के लायक है, और सृष्टि में हर चीज़, ज़िंदा और बेजान, दृश्य और अदृश्य उसकी इच्छा के सामने आत्मसमर्पित और शांत है। इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक का नाम क़ुरआन है जिसका हिंदी में मतलबसस्वर पाठ है। इसके अनुयायियों को अरबी में मुस्लिम कहा जाता है, जिसका बहुवचन मुसलमान होता है। मुसलमान यह विश्वास रखते है कि क़ुरआन जिब्राईल (ईसाईयत में Gabriel) नामक एक फ़रिश्ते के द्वारा, मुहम्मद साहब को ७वीं सदी के अरब में, लगभग २३ साल में याद-कंठस्‍थ कराया गया था। मुसलमान इस्लाम को कोई नया धर्म नहीं मानते। उनके अनुसार ईश्वर ने मुहम्मद साहब से पहले भी धरती पर कई दूत भेजे हैं, जिनमें इब्राहीम, मूसा और ईसाशामिल हैं। मुसलमानों के अनुसार मूसा और ईसा के कई उपदेशों को लोगों ने विकृत कर दिया। अधिकतम मुसलमानों के लिये मुहम्मद साहब ईश्वर के अन्तिम दूत थे और क़ुरआन मनुष्य जाति के लिये अन्तिम संदेश है।
मुसलमान एक ही ईश्वर को मानते हैं, जिसे वो अल्लाह (फ़ारसी: ख़ुदा) कहते हैं। एकेश्वरवाद को अरबी में तौहीद कहते हैं, जो शब्द वाहिद से आता है जिसका अर्थ है एक। इस्लाम में इश्वर को मानव की समझ से ऊपर समझा जाता है। मुसलमानों से इश्वर की कल्पना करने के बजाय उसकी प्रार्थना और जय जयकार करने को कहा गया है। मुसलमानों के अनुसार इश्वर अद्वितीय हैः उसके जैसा और कोई नहीं। इस्लाम में ईश्वर की एक विलक्षण अवधारणा पर ज़ोर दिया गया है। साथ में यह भी माना जाता कि उसकी पूरी कल्पना मनुष्य के बस में नहीं है।

Anonymous said...

कहो: है ईश्वर एक और अनुपम।
है ईश्वर सनातन, हमेशा से हमेशा तक जीने वाला।
उसकी न कोई औलाद है न वह खुद किसी की औलाद है।
और उस जैसा कोई और नहीं॥”
(कुरान, सूरत ११२, आयते १ - ४)

Anonymous said...

इस्लाम के अनुसार ईश्वर ने धरती पर मनुष्य के मार्गदर्शन के लिये समय समय पर किसी व्यक्ति को अपना दूत बनाया। यह दूत भी मनुष्य जाति में से होते थे और ईश्वर की ओर लोगों को बुलाते थे। ईश्वर इन दूतों से विभिन्न रूपों से समपर्क रखते थे। इन को इस्लाम में नबी कहते हैं। जिन नबियों को इश्वर ने स्वयं शास्त्र या धर्म पुस्तकें प्रदान कीं उन्हें रसूल कहते हैं। मुहम्मद साहिब भी इसी कड़ी का हिस्सा थे। उनको जो धार्मिक पुस्तक प्रदान की गयी उसका नाम कुरान है। कुरान में ईश्वर के २५ अन्य नबियों का वर्णन है। स्वयं कुरान के अनुसार ईश्वर ने इन नबियों के अलावा धरती पर और भी कई नबी भेजे हैं जिनका वर्णन कुरान में नहीं है।
सभी मुसलमान ईश्वर द्वारा भेजे गये सभी नबियों की वैधता स्वींकार करते हैं और मुसलमान मुहम्मद साहब को ईशवर का अन्तिम नबी मानते हैं।अहमदिय्या समुदाय के लोग मुहम्मद साहब को अन्तिम नबी नहीं मानते हैं और स्वयं को इस्लाम का अनुयायी भी कहते हैं। भारत के उच्चतम न्यायालयके अनुसार उनको भारत में मुसलमान माना जाता है। कई अन्य प्रतिष्ठित मुसलमान विद्वान समय समय पर पहले भी मुहम्मद साहब के अन्तिम नबी होने पर सवाल उठा चुके हैं।

मुसलमानों के लिये ईश्वर द्वारा रसूलों को प्रदान की गयी सभी धार्मिक पुस्तकें वैध हैं। मुसलमनों के अनुसार कुरान ईश्वर द्वारा मनुष्य को प्रदान की गयी अन्तिम धार्मिक पुस्तक है। कुरान में चार और पुस्तकों की चर्चा है:
 सहूफ़ ए इब्राहीमी जो कि इब्राहीम को प्रदान की गयीं। यह अब लुप्त हो चुकी है।
 तौरात जो कि मूसा को प्रदान की गयी।
 ज़बूर जो कि दाउद को प्रदान की गयी।
 इंजील जो कि ईसा को प्रदान की गयी।
मुसलमान यह समझते हैं कि ईसाइयों और यहूदियों ने अपनी पुस्तकों के संदशों में बदलाव कर दिये हैं। वह इन चारों के अलावा अन्य धार्मिक पुसतकों की होने की सम्भावना से इन्कार नहीं करते हैं।

Anonymous said...

मुसलमान फरिश्तों (अरबी में मलाइका) के अस्तित्व को मानते हैं। उनके अनुसार फरिश्ते स्वयं कोई इच्छाश्क्ति नहीं रखते और केवल ईश्वर की आज्ञा का पालन ही करते हैं। वह खालिस रोशनी से बनीं हूई अमूर्त और निर्दोष हस्तियों हैं जो कि न मर्द हैं न औरत बल्कि इंसान से हर लिहाज़ से अलग हैं। हालांकि अगणनीय फरिश्ते है पर चार फरिश्ते कुरान में प्रभाव रखते हैं:
 जिब्राईल (Gabriel) जो नबीयों और रसूलों को इश्वर का संदेशा ला कर देता है।
 इज़्राईल (Azrael) जो इश्वर के समादेश से मौत का फ़रिश्ता जो इन्सान की आत्मा ले जाता है।
 मीकाईल (Michael) जो इश्वर के समादेश पर मौसम बदलनेवाला फ़रिश्ता।
 इस्राफ़ील (Raphael) जो इश्वर के समादेश पर कयामत के दिन की शुरूवात पर एक आवाज़ देगा।

Anonymous said...

मध्य एशिया के अन्य धर्मों की तरह इस्लाम में भी कयामत का दिन माना जाता है। इसके अनुसार ईशवर एक दिन संसार को समाप्त करेगा। यह दिन कब आयेगा इसकी सही जानकारी केवल ईश्वर को ही है। इसे मुसलमान कयामत का दिन कहते हैं। इस्लाम में शारीरिक रूप से सभी मरे हुए लोगों का उस दिन जी उठने पर बहुत ज़ोर दिया गया है। उस दिन हर इनसान को उसके अच्छे और बुरे कर्मों का फल दिया जाएगा। इस्लाम में हिन्दू मत की तरह समय के परिपत्र होने की अवधारणा नहीं है। कयामत के दिन के बाद दोबारा संसार की रचना नहीं होगी।

मुसलमान तक़दीर को मानते हैं। तक़दीर का मतलब इनके लिये यह है कि ईश्वर बीते हुए समय, वर्तमान और भविष्य के बारे में सब जानता है। कोई भी चीज़ उसकी अनुमति के बिना नहीं हो सकती है। मनुष्य को अपनी मन मरज़ी से जीने की आज़ादी तो है पर इसकी अनुमति भी ईश्वर ही के द्वारा उसे दी गयी है। ईस्लाम के अनुसार मनुष्य अपने कुकर्मों के लिये स्वयं जिम्मेदार इस लिये है क्योंकि उन्हें करने या न करने का निर्णय ईश्वर मनुष्य को स्वयं ही लेने देता है। उसके कुकर्मों का भी पूर्व ज्ञान ईश्वर को होता है।

इस्लाम के दो प्रमुख वर्ग हैं, शिया और सुन्नी. दोनों के अपने अपने इस्लामी नियम हैं लेकिन बुनयादी सिद्धांत मिलते जुलते हैं। सुन्नी इस्लाम में हर मुसलमान के ५ आवश्यक कर्तव्य होते हैं जिन्हें इस्लाम के ५ स्तंभ भी कहा जाता है। शिया इस्लाम में थोड़े अलग सिद्धांतों को स्तंभ कहा जाता है। सुन्नी इस्लाम के ५ स्तंभ हैं-
 शहादाह- इस का शाब्दिक अर्थ है गवाही देना। इस्लाम में इसका अर्थ मे इस अरबी घोषणा से हैः
अरबी:ﻻ ﺍﻟﻪ ﺍﻻﺍ ﷲ ﻣﺤﻤﺪﺍ ﻟﺮﺳﻮﻝﺍ ﷲ
हिंदी: ईश्वर के सिवा और कोई पूजनीय (पूजा के योग्य) नहीं और मुहम्मद ईश्वर के रसूल हैं।
इस घोषणा से हर मुसलमान ईश्वर की एकेश्वरवादिता और मुहम्मद साहब के रसूल होने के अपने यक़ीन की गवाही देता है। यह इस्लाम का सबसे अहम सिद्धांत है। हर मुसलमान के लिये अनिवार्य है कि वह इसे स्वींकारे। एक गैर मुस्लिम को इस्लाम कबूल करने के लिये केवल इसे स्वींकार कर लेना काफी है।

Anonymous said...

 सलात- इसे हिन्दुस्तानी में नमाज़ भी कहते हैं। यह एक प्रकार की प्रार्थना है जो अरबी भाषा में एक विशेष नियम से पढ़ी जाती है। इस्लाम के अनुसार नमाज़ ईश्वर के प्रति मनुष्य की कृतज्ञता दर्शाती है। यह मक्का की ओर मुँह कर के पढ़ी जाती है। हर मुसलमान के लिये दिन में ५ बार नमाज़ें पढ़ना अनिवार्य है। मजबूरी और बीमारी की हालत में इसे टाला जा सकता है और बाद में समय मिलने पर छूटी हूई नमाज़ें पढ़ी जा सकती हैं।
 ज़कात- यह एक सालाना दान है जो कि हर आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमान को गरीबों को देना अनिवार्य है। अधिकतम मुसलमान अपनी सालाना आय का २.५% ज़कात में देते हैं। यह एक धार्मिक कर्तव्य इस लिये है क्योंकि इस्लाम के अनुसार मनुष्य की पूंजी असल में ईश्वर की अमानत है।
 सौम- इस के अनुसार इस्लामी कैलेण्डर के नवें महीने में सभी सक्षम मुसलमानों के लिये सूर्योदय से सूर्यास्त तक वृत रख्नना अनिवार्य है। इस वृत को रोज़ा भी कहते हैं। रोज़े में हर प्रकार का खाना-पीना वर्जित है। अन्य व्यर्थ कर्मों से भी अपने आप को दूर रखा जाता है। यौनिक गतिविधियाँ भी वर्जित हैं। मजबूरी में रोज़ा रखना ज़रूरी नहीं होता। रोज़ा रखने के कई उद्देश्य हैं जिन में से दो प्रमुख उद्देश्य यह हैं कि दुनिया की बाक़ी आकर्षणों से ध्यान हटा कर ईश्वर से नज़दीकी महसूस की जाए और दूसरा यह कि ग़रीबों, फ़कीरों और भूखों की समस्याओं और मुश्किलों का एहसास हो।
 हज- हज उस धार्मिक तीर्थ यात्रा का नाम है जो इस्लामी कैलेण्डर के १२वें महीने में मक्का के शहर में जाकर की जाती है। हर समर्पित मुसलमान (जो ह्ज का खर्च‍‍ उठा सकता हो और मजबूर न हो) के लिये जीवन में एक बार इसे करना अनिवार्य है।

Anonymous said...

मुसलमानों के लिये इस्लाम जीवन के हर पहलू पर अपना असर रखता है। इस्लामी सिद्धांत मुसलमानों के घरेलू जीवन, उनके राजनैतिक या आर्थिक जीवन, मुसलमान राज्यों की विदेश निति इत्यादि पर प्रभाव डालते हैं। शरियत उस समुच्चय निति को कहते हैं जो इस्लामी कानूनी परंपराओं और इस्लामी व्यक्तिगत और नैतिक आचरणों पर आधारित होती है। शरियत की निति को नींव बना कर न्यायशास्त्र के अध्य्यन को फिक़ह कहते हैं। फिक़ह के मामले में इस्लामी विद्वानों की अलग अलग व्याख्याओं के कारण इस्लाम में न्यायशास्त्र कई भागों में बट गया और कई अलग अलग न्यायशास्त्र से संबंधित विचारधारओं का जन्म हुआ। इन्हें मज़हब कहते हैं। सुन्नी इस्लाम में प्रमुख मज़हब हैं-
 हनफी मज़हब- इसके अनुयायी दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में हैं।
 मालिकी मज़हब-इसके अनुयायी पश्चिम अफ्रीका और अरब के कुछ हिस्सों में हैं।
 शाफ्यी मज़हब-इसके अनुयायी अफ्रीका पूर्वी अफ्रीका, अरब के कुछ हिस्सों और दक्षिण पूर्व एशिया में हैं।
 हंबली मज़हब- इसके अनुयायी सऊदी अरब में हैं।
अधिकतम मुसलमानों का मानना है कि चारों मज़हब बुनियादी तौर पर सही हैं और इनमें जो मतभेद हैं वह न्यायशास्त्र की बारीक व्याख्याओं को लेकर है।

Anonymous said...

हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम(५७०-६३२) को मक्का की पहाड़ियों में परम ज्ञान ६१० के आसपास प्राप्त हुआ। जब उन्होंने उपदेश देना आरंभ किया तब मक्का के समृद्ध लोगों ने इसे अपनी सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था पर खतरा समझा और उनका विरोध होने लगे। अंत में ६२२ में उन्हें अपने अनुयायियों के साथ मक्का सेमदीना के लिए कूच करना पड़ा। इस यात्रा को हिजरत कहा जाता है और यहीं से इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत होती है। मदीना के लोगों की ज़िंदगी आपसी लड़ाईयों से परेशान सी थी और हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के संदेशों ने उन्हें वहाँ बहुत लोकप्रिय बना दिया। ६३० में हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमने अपने अनुयायियों के साथ एक संधि कि उल्लंघना होने के कारण मक्का पर चढ़ाई कर दी। मक्कावासियों ने आत्मसमर्पण करके इस्लाम कबूल कर लिया। मक्का में स्थित काबा को इस्लाम का पवित्र स्थल घोषित कर दिया गया । ६३२ में हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमका देहांत हो गया। पर उनकी मृत्यु तक इस्लाम के प्रभाव से अरब के सारे कबीले एक राजनीतिक और सामाजिक सभ्यता का हिस्सा बन गये थे। इस के बाद इस्लाम में खिलाफत का दौर शुरु हुआ।

Anonymous said...

हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ससुर अबु बक्र सिद्दीक़ मुसलमानों के पहले खलीफा (सरदार) ६३२ में बनाये गये। कई प्रमुख मुसलमानों ने मिल के उनका खलीफा होना स्वीन्कार किया। हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के भतीजे, अली, जिन का मुसलमान बहुत आदर करते थे ने शुरु में अबु बक्र को खलीफा मानने से इन्कार कर दिया। लेकिन ये विवाद टल गया जब अबु बक्र को उनकी सहमति भी मिल गयी। अबु बक्र के कार्यकाल में पूर्वी रोमन साम्राज्य और ईरानी साम्राज्य से मुसलमान फौजों की लड़ाई हूई। यह युद्ध हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने से चली आ रही दुश्मनी का हिस्सा थे। अबु बक्र के बाद उमर बिन खत्ताब को ६३४ में खलीफा बनाया गया। उनके कार्यकाल में इस्लामी साम्राज्य बहुत तेज़ी से फैला और समपूर्ण ईरानी साम्राज्य और दो तिहाई पूर्वी रोमन साम्राज्य पर मुसलमानों ने कबजा कर लिया। पूरे साम्राज्य को विभिन्न प्रदेशों में बाट दिया गया और और हर प्रदेश का एक राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया जो की खलीफा का अधीन होता था।
उमर बिन खत्ताब के बाद उसमान बिन अफ्फान ६४४ में खलीफा बने। यह भी हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के प्रमुख साथियों में से थे। इनका कार्यकाल बहुत विवादपूर्ण रहा और इसने इस्लाम के पहले गृहयुद्ध का बीज बोया। उसमान बिन अफ्फान पर उनके विरोधियों ने ये आरोप लगाने शुरु किये कि वो पक्षपात से नियुक्तियाँ करते हैं और कि अली (हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के भतीजे) ही खलीफा होने के सही हकदार हैं। तभी मिस्र में विद्रोह की भावना जागने लगी और वहाँ से १००० लोगों का एक सशस्त्र समूह इस्लामी साम्राज्य की राजधानी मदीना आ गया। उस समय तक सभी खलीफा आम लोगों की तरह ही रहते थे। इस लिये यह समूह ६५६ में उसमान की हत्या करने में सफल हो गया। कुछ प्रमुख मुसलमानों ने अब अली बिन अबी तालिब, जो की हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमके भतीजे थे, को खलीफा स्वींकार कर लिया। इसपे मुसलमानों का एक बड़ा दल अली के खिलाफ हो गया। इन मुसलमानों का मानना था की जबतक उसमान के हत्यारों को सज़ा नहीँ मिलती अली का खलीफा बनना सही नहीं है। यह इस्लाम का पहला गृहयुद्ध था। शुरु में इस दल के एक हिस्से की अगुआई आयशा, जो की हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पत्नी थी, कर रही थीं। अली और आश्या की सेनाओं के बीच में जंग हूई जिसे जंग-ए-जमल कहते हैं। इस जंग में अली की सेना विजय हूई। अब सीरिया के राज्यपालमुआविया ने विद्रोह का बिगुल बजाया। मुआविया उसमान का रिश्तेदार भी था। मुआविया की सेना और अली की सेना के बीच में जंग हूई पर कोई परिणाम नहीं निकला। अली ने साम्राज्य में फैली अशांति पर काबू पाने के लिये राजधानी मदीना से कूफा में (जो अभी ईराक़ में है) पहले ही बदल दी थी। मुआविया की सेनाऐं अब पूरे इस्लामी साम्राज्य में फैल गयीं और जल्द ही कूफा के प्रदेश के सिवाये सारे साम्राज्य पर मुआविया का कब्जा हो गया। तभी एक कट्टरपंथी ने ६६१ में अली की हत्या कर दी।

Anonymous said...

अली के बाद हालांकि मुआविया खलीफा बन गया लेकिन मुसलमानों का एक वर्ग रह गया जिसका मानना था कि मुसलमानों का खलीफा हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमके परिवार का ही हो सकता है। उनका मानना था कि यह खलीफा (जिसे वह ईमाम भी कहते थे) स्वयँ भगवान के द्वारा आध्यात्मिक मार्गदर्शन पाता है। इनके अनुसार अली पहले ईमाम थे। यह वर्ग शिया वर्ग के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बाकी मुसलमान, जो की यह नहीं मानते हैं कि हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमका परिवारजन ही खलीफा हो सकता है, सुन्नी कहलाये। सुन्नी पहले चारों खलीफाओं को राशिदून खलीफा कहते हैं जिसका अर्थ है सही मार्ग पे चलने वाले खलीफा।
मुआविया के खलीफा बनने के बाद खिलाफत वंशानुगत हो गयी। इससे उम्मयद वंश का आरंभ हुआ। मुआविया के बेटे यज़ीद की वैधता को जब अली के बेटे हुसैन ने चुनौती दी तो दोनों के बीच में ६८० में जंग हूई जिसे जंग-ए-करबला कहते हैं। यह इस्लाम का दूसरा गृहयुद्ध था। इस जंग में हुसैनको शहादत प्राप्ति हो गयी। शिया लोग १० मुहर्रम के दिन इसी का शोक मनाते हैं।

Anonymous said...

उम्मयद वंश ७० साल तक सत्ता में रहा और इस दौरान उत्तरी अफ्रीका, दक्षिण यूरोप, सिन्ध और मध्य एशिया के कई हिस्सों पर उनका कब्ज़ा हो गया। उम्मयद वंश के बाद अब्बासी वंश ७५० में सत्ता में आया। शिया और अजमी मुसलमानों ने (वह मुसलमान जो कि अरब नहीं थे) अब्बासियों को उम्मयद वंश के खिलाफ विद्रोह करने में बहुत सहायता की। उम्मयद वंश की एक शाखा दक्षिण स्पेन और कुछ और क्षेत्रों पर सिमट कर रह गयी। केवल एक इस्लामी सम्राज्य की धारणा अब समाप्त होने लगी।
अब्बासियों के राज में इस्लाम का स्वर्ण युग शुरु हुआ। अब्बासी खलीफा ज्ञान को बहुत महत्त्व देते थे। मुस्लिम दुनिया बहुत तेज़ी से विशव का बौद्धिक केन्द्र बनने लगी। कई विद्वानों ने प्राचीन युनान, भारत, चीन और फ़ारसी सभय्ताओं की साहित्य, दर्शनशास्र, विज्ञान, गणित इत्यादी से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन किया और उनका अरबी में अनुवाद किया। विशेषज्ञों का मानना है कि इस के कारण बहुत बड़ा ज्ञानकोष इतिहास के पन्नों में खोने से रह गया।

Anonymous said...

इस्लामी दर्शनशास्त्र में प्राचीन युनानी सभय्ता के दर्शनशास्र को इस्लामी रंग से विकसित किया गया। इबने सीना ने नवप्लेटोवाद, अरस्तुवाद और इस्लामी धर्मशास्त्र को जोड़ कर सिद्धांतों की एक नई प्रणाली की रचना की। इससे दर्शनशास्र में एक नई लहर पैदा हूई जिसे इबनसीनावाद कहते हैं। इसी तरह इबन रशुद ने अरस्तू के सिद्धांतों को इस्लामी सिद्धांतों से जोड़ कर इबनरशुवाद को जन्म दिया। द्वंद्ववाद की मदद से इस्लामी धर्मशास्त्र का अध्ययन करने की कला को विकसित किया गया। इसे कलाम कहते हैं। मुहम्मद साहब के उद्धरण, गतिविधियां इत्यादि के मतलब खोजना और उनसे कानून बनाना स्वयँ एक विषय बन गया। सुन्नी इस्लाम में इससे विद्वानों के बीच मतभेद हुआ और सुन्नी इस्लाम कानूनी मामलों में ४ हिस्सों में बट गया।
राजनैतिक तौर पर अब्बासी सम्राज्य धीरे धीरे कमज़ोर पड़ता गया। अफ्रीका में कई मुस्लिम प्रदेशों ने ८५० तक अपने आप को लगभग स्वतंत्र कर लिया। ईरान में भी यही हाल हो गया। सिर्फ कहने को यह प्रदेश अब्बासियों के अधीन थे। महमूद ग़ज़नी (९७१-१०३०) ने अपने आप को तो सुल्तान भी घोषित कर दिया। सल्जूक तुरकों ने अब्बासियों की सेना शक्ति नष्ट करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने मध्य एशिया और ईरान के कई प्रदेशों पर राज किया। हालांकि यह सभी राज्य आपस में युद्ध भी करते थे पर एक ही इस्लामी संस्कृति होने के कारण आम लोगों में बुनियादी संपर्क अभी भी नहीं टूटा था। इस का कृषिविज्ञान पर बहुत असर पड़ा। कई फसलों को नई जगह ले जाकर बोया गया। यह मुस्लिम कृषि क्रांति कहलाती है।

Anonymous said...

फातिमिद वंश (९०९-११७१) जो कि शिया था ने उत्तरी अफ्रीका के कुछ हिस्सों पर कब्ज़ा कर के अपनी स्वतंत्र खिलाफत की स्थापना की। (हालांकि इस खिलाफत को अधिकतम मुसल्मान आज अवैध मानते हैं।) मिस्र में गुलाम सैनिकों से बने ममलूक वंश ने १२५० में सत्ता हासिल कर ली। मंगोलों ने जब १२५८ में अब्बासियों को बग़दाद में हरा दिया तब अब्बासी खलीफा एक नाम निहाद हस्ती की तरह मिस्र के ममलूक सम्राज्य की शरण में चले गये। एशिया में मंगोलों ने कई सम्राज्यों पर कब्ज़ा कर लिया और बोद्ध धर्म छोड़ कर इस्लाम कबूल कर लिया। मुस्लिम सम्राज्यों और इसाईयों के बीच में भी अब टकराव बढ़ने लगा। अय्यूबिद वंश के सलादीन ने ११८७ में येरुशलाईम को, जो पहली सलेबी जंग (१०९६-१०९९) में इसाईयों के पास आ गया था, वापस जीत लिया। १३वीं और १४वीं सदी से उस्मानी साम्राज्य(१२९९-१९२४) का असर बढ़ने लगा। उसने दक्षिणी और पूर्वी यूरोप के कई प्रदेशों को और उत्तरी अफ्रीका को अपना अधीन कर लिया। खिलाफत अब वैध रूप से उस्मानी वंश की होने लगी। ईरान में शिया सफवी वंश(१५०१-१७२२) और भारत में दिल्ली सुल्तानों (१२०६-१५२७) और बाद में मुग़ल साम्राज्य(१५२६-१८५७) की हुकूमत हो गयी।
नवीं सदी से ही इस्लाम में अब एक धार्मिक रहस्यवाद की भावना का विकास होने लगा था जिसे सूफी मत कहते हैं। ग़ज़ाली(१०५८-११११) ने सूफी मत के पष में और दर्शनशास्त्र की निरर्थकता के बारे में कुछ ऐसे तर्क दिये थे कि दर्शनशास्त्र का ज़ोर कम होने लगा। सूफी काव्यात्मकता की प्रणाली का अब जन्म हुआ। रूमी (१२०७-१२७३) की मसनवी इस का प्रमुख उदाहरण है। सूफियों के कारण कई मुसलमान धर्म की ओर वापस आकर्षित होने लगे। अन्य धर्मों के कई लोगों ने भी इस्लाम कबूल कर लिया। भारत और इंडोनेशिया में सूफियों का बहुत प्रभाव हुआ। मोइनुदीन चिश्ती, बाबा फरीद, निज़ामुदीन जैसे भारतिय सूफी संत इसी कड़ी का हिस्सा थे।
१९२४ में तुर्की के पहले प्रथम विश्वयुद्ध में हार के बाद उस्मानी साम्राज्य समाप्त हो गया और खिलाफत का अंत हो गया। मुसल्मानों के अन्य देशों में प्रवास के कारण युरोप और अमरीका में भी इस्लाम फैल गया है। अरब दैशों में तेल के उत्पादन के कारण उनकी अर्थव्यवस्था बहुत तेज़ी से सुधर गयी। १९वीं और २०वीं सदी में इस्लाम में कई पुनर्जागरण आंदोलन हुए। इन में से सलाफी और दियोबंदी मुख्य हैं। एक पश्चिम विरोधी भावना का भी विकास हुआ जिससे कुछ मुसलमान कट्टरपंथ की तरफ आकर्षित होने लगे।

Anonymous said...

विश्व में आज लगभग १.३ अरब (या फिर १३० करोड़) से १.८ अरब (१८० करोड़) मुसलमान हैं। इन्में से लगभग ८५% सुन्नी और लगभग १५% शिया हैं। सुन्नी और शिया के अलावा इस्लाम में कुछ अन्य वर्ग भी हैं परन्तु इन का प्रभाव बहुत कम है। सबसे अधिक मुसलमान दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण एशिया के देशों में रहते हैं। मध्य पूर्व, अफ़्रीका और युरोप में भी मुसलमानों के बहुत समुदाय रहते हैं। विश्व में लगभग ४८ देश ऐसे हैं जहाँ मुसलमान बहुमत में हैं। विश्व में कई देश ऐसे भी हैं जहाँ की मुसलमान जनसंख्या के बारे में कोई विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध नहीं है।

Anonymous said...

मुसलमानों के उपासनास्थल को मस्जिद कहते हैं। मस्जिद इस्लाम में केवल ईश्वर की प्रार्थना का ही केंद्र नहीं होता है बल्की यहाँ पर मुस्लिम समुदाय के लोग विचारों का आदान प्रदान और अध्ययन भी करते हैं। मस्जिदों में अक्सर इस्लामी वास्तुकला के कई अद्भुत उदाहरण देखने को मिलते हैं। विश्व की सबसे बड़ी मस्जिद मक्का की मस्जिद अल हराम है। मुसलमानों का पवित्र स्थल काबा इसी मस्जिद में है। मदीना की मस्जिद अल नबवी और येरुशलाईम की मस्जिद ए अक़सा भी इस्लाम में महत्वपूर्ण हैं।

Anonymous said...

मुसलमानों का पारिवारिक और सामाजिक जीवन इस्लामी कानूनों और इस्लामी प्रथाओं से प्रभावित होता है। विवाह एक प्रकार का कानूनी और सामाजिक अनुबंध होता है जिसकी वैधता केवल पुरुष और स्त्री की मर्ज़ी और २ गवाहों से निर्धारित होती है (शिया वर्ग में केवल १ गवाह चाहिये होता है)। इस्लामी कानून स्त्रियों को भी पुर्षों की तरह विरासत में हिस्सा देते हैं।(हालांकि उनका हिस्सा आम तौर से पुर्षों का आधा होता है।)
इस्लाम के दो महत्वपूर्ण त्यौहार ईद उल फितर और ईद-उल-अज़्हा हैं। रमज़ान का महीना (जो कि इस्लामी कैलेण्डर का नवाँ महीना होता है) बहुत पवित्र समझा जाता है। अपनी इस्लामी पहचान दिखाने के लिये मुसलमान अपने बच्चों का नाम अक्सर अरबी भाषा से लेते हैं। इसी कारण वह दाढ़ी भी रखते हैं। इस्लाम में कपड़े पहनते समय लाज और शीलता रखने पर बहुत ज़ोर दिया गया है। इस लिये कुछ स्त्रियाँ अजनबी पुर्षों से पर्दा करती हैं।

Anonymous said...

अन्य धर्मों से इस्लाम का संपर्क समय और परिस्थ्ति से प्रभावित रहा है। यह संपर्क मुहम्मद साहब के समय से ही शुरु हो गया था। उस समय इस्लाम के अलावा अरब में ३ परम्पराओं के मानने वाले थे। एक तो अरब का पुराना धर्म (जो अब लुप्त हो चुका है) था जिसकी वैधता इस्लाम ने नहीं स्वीकार की। इसका कारण था कि वह धर्म ईश्वर की एकता को नहीं मानता था जो कि इस्लाम के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध था। ईसाई धर्म और यहूदी धर्म को इस्लाम ने वैध तो स्वींकार कर लिया पर इस्लाम के अनुसार इन धर्मों के अनुयायियों और पुजारियों ने इनमें बदलाव कर दिये थे। मुहम्म्द साहब ने अपने मक्का से मदीना पहुंचने के बाद वहाँ के यहूदियों के साथ एक संधि करी जिसमें यहूदियों की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वायत्तता को स्वींकारा गया।[१४] अरब बहुदेववादियों के साथ भी एक संधि हूई जिसे हुदैबा की सुलह कहते हैं।
मुहम्मद साहब के बाद से अक्सर राजनैतिक कारण अन्य धर्मों की ओर् इस्लाम का व्यवहार निर्धारित करते आये हैं। जब राशिदून खलीफाओं ने अरब से बाहर कदम रखा तो उनका सामनापारसी धर्म से हुआ। उसको भी वैध स्वींकार कर लिया गया। इन सभी धर्मों के अनुयायियों को धिम्मी कहा गया। मुसलमान खलीफाओं को इन्हें एक शुल्क देना होता था जिसे जिज़्या कहते हैं। इसके बदले राज्य उन्हें सुरक्षा देता था और आम मुसलमानों की तरह उन्हें सेना में शामिल होने और ज़कात देने (एक सालाना दान जो हर मुसलमान को गरीबों को देना अनिवार्य है) के लिये मजबूर नहीं करता था। उम्मयदों के कार्यकाल में इस्लाम कबूल करने वाले को अक्सर हतोत्साहित किया जाता था। इसका कारण था कि कई लोग केवल राजनैतिक और आर्थिक लाभों के लिये ही इस्लाम कबूल करने लगे थे। इससे जिज़्या कम होने लगा था |
भारत में इस्लाम का आगमन तो अरब व्यापारी ७वीं सदी में ही ले आये थे। लेकिन भारत में प्रारंभिक मुस्लिम सुल्तानों का आना १०वीं सदी में ही हुआ। अब तक आधिकारिक रूप से इन सुलतानों का इस्लामी खलीफाओं से कोई संबंध नहीं था। इसलिये इन सभी ने अपनी अपनी समझ के हिसाब से हिन्दू धर्म कि ओर अपना रवैया अपनाया। शुरु में कुछ मुस्लिम सुल्तानों ने हिन्दू धर्म कि कच्ची समझ के कारण उसे पुराने अरब के बहुदेववाद के साथ जोड़ा। १०वीं सदी तक दोनों धर्मों के अनुयायियों के बीच के सतही मतभेदों ने एक धार्मिक मनमुटाव की भावना थी। धीरे धीरे यह भावना लुप्त हो गयी। सूफी संतों और भक्ती आंदोलन ने इस मनमुटाव को दूर करने में बहुत अहम भूमिका निभाई।

तुम जैसे लोगों ने नहीं .

Anonymous said...

इस्लाम के बारे में इतनी सारी जानकारी दी धन्यवाद नहीं दोगे इस्लाम के ठेकेदारों

लिखना जरूर कैसी लगी जानकारी

और जानने के लिए देखो - http://meradeshmeradharm.blogspot.com/

DR. ANWER JAMAL said...

@ Bahan ji
Muslim aurat ke bare rozana blogbazi hote aap dekhti hain.
Aakhir unhe aina koi to dikhayega.
Murti puja na kabhi dharma thi aur na hi aaj hai.
Kabir jaise bilkul anpadh aadmi ne bhi ise ghalat bataya
aur dayanand ji ko to bachpan men hi pata chal gaya tha ki
murti puja pakhand hai.
Aakhi padha likha samaj is pakhand ko kab chodega?
aapki bhavna adar karte hue ab main dusre mudde le raha hun.
aap aaiyye
ab apko dukh nahin hoga.
Insha Allah

Man said...

blogi baba ek baat batiye....vese aap batae kanaha ho????islaam me paravarik sanakaar ke baare koi niyam he...mera matalb poorsho ke liye????...aage padho mere me kamiya mat niakl ne lag jana baba ...baba sache muslim sharab ke haatha nahi lagaate hen..ase mene soona he ..padha nahi he..lakin baba 70% mohamdon aaj sham ko ek ghoont ki chirmirahat mooh se lekar gand tak mahsoos karte hen..doosra sawal kya mosalmano ki bhadti jansankhya or rojgaar nahi milane se bhookhe marte vo jihad ki taraf badh ke aatam htya ko mahaima mnadit kar rahe he????? or parivar ko bhi is nam se kafee paisa mil jata he>???jakir baba sawal ke bhale hi chote jawab de lakin baba aapki rahhnoomai chata hoon ..ata farmaye

Anonymous said...

अनवर, लूत भी तो तेरे पैगम्बरों में से एक था. हिन्दू ग्रंथो को तू चाहे कैसा भी अर्थ निकाले. तुझे सब jhaante hai ki तू nira jhutha hai kintu लूत तो sharab peekar apni dono ladkiyon par hi chad baitha. or unse olaad paida kari jiska तू भी vansaj hai.