सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Friday, May 7, 2010

Love Fasad 2 वफ़ा भी रास नहीं आती हिन्दू प्रेम दीवानों को


ज़हर खाकर प्रेमी और प्रेमिका ने दम तोड़ा गुलावठी । मोहल्ला करनपुरी कलेसर के युवक और युवती को एक साथ आम के बाग़ में देखकर एकत्र हुए लोगों ने जब उन्हें दबोचने की कोशिश की तो उन्होंने ज़हरीला पदार्थ खा लिया । काफ़ी दूर दौड़ने के बाद दोनों गिरकर बेहोश हो गए । उन्हें नर्सिंग होम ले जाया गया जहां युवती ने दम तोड़ दिया । जबकि युवक ने हापुड़ के ख़ान अस्पताल में अंतिम सांस ली ।
अमर उजाला , नई दिल्ली संस्करण , दिनांक 5-05-2010
........................
एक अन्य हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तान के अनुसार लड़की प्रजापति बिरादरी की थी जबकि लड़का दूसरी बिरादरी का था । दोनों में काफ़ी अर्से से प्रेम प्रसंग चल रहा था । दोनों के घरवालों ने दोनों को काफ़ी समझाया लेकिन इन प्रेम दीवानों पर उनके समझाने का कोई असर न हुआ और वफ़ा की राह में दोनों प्रेम दीवानों ने बिल्कुल फ़िल्मी स्टाइल में अपनी जान हलाक कर दी ।
हिन्दू यंग ब्लड कहीं तो बेवफ़ाई का ज़ख्म खाकर तड़प रहा है और कहीं वफ़ा करके भी उन्हें साथ साथ जीना नसीब नहीं हो रहा है । वफ़ादार प्रेमियों के रास्ते में हिन्दू धर्म की आउट डेटेड रस्में दीवार बन रही हैं । कभी दोनों का विवाह इसलिये नहीं हो पाता कि दोनों एक ही बिरादरी या एक ही गांव के होते हैं और कभी उनका मिलन इसलिये नहीं हो पाता कि उन दोनों की जाति अलग अलग होती है ।
हिन्दू धर्म की रस्मों के कारण हिन्दू युवाओं को जीना मुश्किल और मरना आसान लगने लगता है और वे मौत को चुन लेते हैं । मृत्यु का वरण करते समय उन्हें परलोक में किसी सज़ा की चिन्ता भी नहीं होती जबकि एक मुसलमान कठिन हालात से घबराकर जब कभी मरने के बारे में सोचता भी है तो उसे परलोक में सज़ा का यक़ीन आत्महत्या से रोक लेता है ।
एक मुसलमान को यह यक़ीन होता है कि आत्महत्या करना एक ऐसा गुनाह है जिसकी सज़ा के तौर पर उसे क़ियामत तक ठीक उसी रीति से असंख्य बार मरने पड़ेगा जिस रीति से वह आत्महत्या करेगा । इससे पहले इस्लाम जज़्बात को भड़काने वाले नाच गाने देखना और लड़कियों से तन्हाई में मिलने पर ही पाबन्दी लगाकर सोसायटी में बिगाड़ के प्रेरक तत्वों के मूल पर ही प्रहार करता है। यही वजह है कि जहां इस्लामी नियम सोसायटी का दस्तूर हैं वहां इस तरह की जाहिलाना और जज़्बाती आत्महत्याओं का प्रतिशत हिन्दू सोसायटी के मुक़ाबले न के बराबर है ।

44 comments:

DR. ANWER JAMAL said...

@ Mr. Amit ! Please give me answer like others .
भाई अमित ! इस कलियुग की पुलिस ने बलात्कारियों को तुरन्त अन्दर कर दिया जबकि तथाकथित ‘सतयुगादि‘ में श्राप तो मिलता था बेचारी अहल्या को और बलात्कारी ‘देवता‘ बने दनदनाते घूमते थे । बताइये कि वे युग अच्छे थे या वर्तमान युग ?

DR. ANWER JAMAL said...

@पी.सी.गोदियाल जी! आप मदरसे के पिटे हुए बच्चे को तो तुरन्त कैश करते हैं लेकिन आप यह बताएं कि बुरक़ा न पहनने वाली और गोल गप्पों को सरलतापूर्वक अपने मुख में ग्रहण करने में सक्षम इन यूनिवर्सिटी बालाओं के प्रति आपने संवेदना प्रकट करना क्यों ज़रूरी न समझा ?
@बहन फ़िरदौस ! अगर वस्त्र या बुरक़ा तमाम बुराईयों की जड़ है तो ये कन्याएं तो बुरक़ा न पहनती थीं और जो थोड़ा बहुत पहनती भी थीं उसे भी अपने हाथों से ही उतार चुकी थीं , फिर इनके साथ इतना बुरा क्यों हुआ ?


@फ़ौज़िया जी ! कौमार्य झिल्ली तो हिम्नोप्लास्टी से दोबारा बनाई जा सकती है लेकिन इनके मन का घाव किस सर्जरी से ठीक किया जा सकता है ? पवित्रता की परवाह तो आपको है ही नहीं ।
@परम आर्य जी , अजित वडनेरकर जी , इक़बाल ज़फ़र साहब , कामदर्शी जी , गुलशन , गुलज़ार ज़ाहिद देवबन्दी , ज्योत्स्ना जी , लावंण्यम् जी और रचना जी ! आप सभी आएं और वर्तमान हालात में नारी सुरक्षा के व्यवहारिक उपाय बताएं ।भाई शाहनवाज़ और भाई अयाज़ ! बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के कारण और सटीक निवारण बताने की मेहरबानी फ़रमायें ।

MLA said...

Nice Article Jamal Sahab

Anonymous said...

कोई नहीं आएगा.
क्योंकि बात आपने हिन्दू - मुस्लिम
से जोड़कर कही है.

बार बार
एक ही तमाशा
अच्छा नहीं लगता.

MLA said...

"एक मुसलमान को यह यक़ीन होता है कि आत्महत्या करना एक ऐसा गुनाह है जिसकी सज़ा के तौर पर उसे क़ियामत तक ठीक उसी रीति से असंख्य बार मरने पड़ेगा जिस रीति से वह आत्महत्या करेगा । इससे पहले इस्लाम जज़्बात को भड़काने वाले नाच गाने देखना और लड़कियों से तन्हाई में मिलने पर ही पाबन्दी लगाकर सोसायटी में बिगाड़ के प्रेरक तत्वों के मूल पर ही प्रहार करता है।"

MLA said...

"यही वजह है कि जहां इस्लामी नियम सोसायटी का दस्तूर हैं वहां इस तरह की जाहिलाना और जज़्बाती आत्महत्याओं का प्रतिशत हिन्दू सोसायटी के मुक़ाबले न के बराबर है"

MLA said...

Aaj to lagta hai aapko Napasnd ke vote dene walo ka Tanta lag gaya hai.

Mera ek sawal hai, Islam ke khilaf likhne walo ko kyon kabhi koi Napasnd ke vote nahi deta hai????????

Ans.: "Kyonki ham Nafrat nahi balki Prem ki batein karte hain."

Aap Nafrat failane ke uddeshy se "NAPASND" ke vote dete rahiye magar ham fir bhi ek bhi vote "NAPASAND" ka kisi ko nahi denge, yeh hamara vada hai.

MLA

Man said...

डा. जमाल हिन्दू युवा युवतीया तो प्यार में अंधे होके जान देते हे ?लकिन सुसा सायद बोम्बर तो ७० वेर्जेनिटी के चक्क्कर में मोंत को गले लगा लेते हे .वो भी ऐसी की टूकड़े गिनना मुश्किल ..कुरान ने में इसे रोकने के लिए भी कुछ कहाहोगा ?

Man said...

एक मुसलमान को यह यक़ीन होता है कि आत्महत्या करना एक ऐसा गुनाह है जिसकी सज़ा के तौर पर उसे क़ियामत तक ठीक उसी रीति से असंख्य बार मरने पड़ेगा जिस रीति से वह आत्महत्या करेगा??????????????
fir aatm ghatee hamle karne vale kon he ??????khooda ki rah me chalne vale nek bane honge

Mahak said...

एक मुसलमान को यह यक़ीन होता है कि आत्महत्या करना एक ऐसा गुनाह है जिसकी सज़ा के तौर पर उसे क़ियामत तक ठीक उसी रीति से असंख्य बार मरने पड़ेगा जिस रीति से वह आत्महत्या करेगा

फिर आत्मघाती हमले करने वाले कौन हैं ????????????????

आज पहली बार " man " ने सही बात कही है

Ayaz ahmad said...

@प्रिय महक जी आत्मघाती हमलो के बारे मे आपको ज़ीशान ज़ैदी साहब ने डा. ताहिर उल क़ादरी के 600 पेज के फ़तवे का लिंक दिया था जिससे आप संतुष्ट भी हो गए थे

Shah Nawaz said...

@ Mahak

फिर आत्मघाती हमले करने वाले कौन हैं ????????????????


यक़ीनन आत्मघाती हमले करके बेगुनाहों की हत्या करने वाले हत्यारे आतंकवादी हैं, उनको आत्महत्या के साथ-साथ दूसरों के क़त्ल के की सजा भी अवश्य मिलेगी.

आतंकवाद और उसको फ़ैलाने वाले के खिलाफ दारुल-उलूम देवबंद समेत अनेकों इस्लामिक संसथान फतवा जारी कर चुके हैं और इसके खिलाफ जनजागरण अभियान भी चलाया जा रहा है.

इस मसले पर आप मेरा लिखा हुआ लेख भी पढ़ सकते हैं. आशा है, इस लेख के ज़रिये आपके अपने ऐसे प्रश्नों का उत्तर भी मिल जाएगा कि क्या इस्लाम आतंकवाद की इजाज़त देता है?

"आतंकवाद और हम"
http://premras.blogspot.com/2010/04/blog-post_30.html

बलबीर सिंह (आमिर) said...

डाक्‍टर बाबू कभी मेरे साथ किश्‍ती में सवार हो लो फिर भूल जाओगे लव या फसाद और फिर हम भी कहलायेंगे फौजिया खान

प्रवीण said...

.
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आदरणीय डॉ० अनवर जमाल साहब,

"एक मुसलमान को यह यक़ीन होता है कि आत्महत्या करना एक ऐसा गुनाह है जिसकी सज़ा के तौर पर उसे क़ियामत तक ठीक उसी रीति से असंख्य बार मरने पड़ेगा जिस रीति से वह आत्महत्या करेगा । इससे पहले इस्लाम जज़्बात को भड़काने वाले नाच गाने देखना और लड़कियों से तन्हाई में मिलने पर ही पाबन्दी लगाकर सोसायटी में बिगाड़ के प्रेरक तत्वों के मूल पर ही प्रहार करता है। यही वजह है कि जहां इस्लामी नियम सोसायटी का दस्तूर हैं वहां इस तरह की जाहिलाना और जज़्बाती आत्महत्याओं का प्रतिशत हिन्दू सोसायटी के मुक़ाबले न के बराबर है ।"

असहमत हूँ आपसे, आत्महत्या करने वाले मानसिक तौर पर बीमार होते हैं और इन बीमारों का प्रतिशत धर्म से निर्धारित नहीं होता किसी भी आबादी में...

पढ़िये कैम्ब्रिज विश्वविद्मालय की यह रिपोर्ट

An analysis of suicide and undetermined deaths in 17 predominantly Islamic countries contrasted with the UK...

Background. Suicide is expressly condemned in the Qu'ran, and traditionally few Islamic countries have reported suicide. Undetermined deaths are classified by the World Health Organization (WHO) as Other Violent Deaths (OVD) in ICD-9, or Other External Causes (OEC) in ICD-10. It has been suggested that to avoid under-reporting of suicides, both formal suicide verdicts and OVD should be considered together because OVD may contain ‘hidden’ suicides.

Method. The latest WHO mortality data, by age and gender, were analysed and tested by χ2 tests. Levels of suicide and OVD in 17 Islamic countries were examined and contextually compared with UK rates. The regional Islamic cultural differences in Middle Eastern, South Asian, European Islam countries and those of the former Union of Socialist Soviet Republics (FUSSR) were analysed separately to test the hypotheses that there would be no difference between regional suicide and OVD rates per million (pm) and 17 Islamic countries and UK rates.

Results. Suicide rates were higher for males than females, and ‘older’ (65+) higher than ‘younger’ (15–34) rates in every country reviewed. The rate for Middle Eastern males was 0–36 pm, South Asian 0–12 pm, European 53–177 pm and FUSSR 30–506 pm, with three countries exceeding the UK rate of 116 pm. The Western male average OVD rate was 22 pm; the UK 55 pm rate was highest. Middle Eastern OVD was 1–420 pm, South Asian 0–166 pm, European 1–66 pm and FUSSR 11–361 pm. OVD rates in 10 Islamic countries were considerably higher than the Western average and eight had OVD rates considerably higher than their suicide rates.

Conclusions. Islamic suicide rates varied widely and the high OVD rates, especially the Middle Eastern, may be a repository for hiding culturally unacceptable suicides.

आभार!

Mahak said...

@ आदरनिये एवं मेरे प्रिये अयाज भाई

मुझे बिलकुल याद है वो लिंक और मैंने खुद भी कई बार इस पर अपनी सहमति प्रकट की है की सारे मुस्लिम ऐसे नहीं हैं लेकिन आप जमाल भाई को भी तो सहमत करें की सारे हिन्दू भी ऐसे नहीं हैं . जैसे मेरे "man " वाले comment को support करने के कारण आपको दुःख पहुंचा है वैसे ही मुझे और बहुत से भाइयों को दुःख पहुँचता है जब जमाल भाई "हिन्दू" शब्द के साथ कोई भी गलत line लगाकर सारे हिन्दुओं को ही गलत ठहरा देते हैं.जबकि मैं इस ब्लॉग पर ही हज़ार बार कह चूका हूँ की अच्छे और बुरे लोग हर धर्म में हैं और कुछ बुरे लोगों की वजह से पूरी कौम को ही कठघरे में खड़ा कर देना गलत है.

Mahak said...

@ प्रिये शाहनवाज़ जी
जो बात अयाज़ भाई को कही वही आपसे भी कहना चाहूंगा .
और वो जो आपका लेख है "आंतकवाद और हम" तो उसके बारे में तो मैं आपके ब्लॉग पर भी कमेंट्स में कह चूका हूँ की वो सच में एक एतिहासिक लेख है और उसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है.आज उस तरह के लेखों की बहुत आवश्यकता है जिससे की कुरान के विषय में कुछ गलत लोगों की वजह से फैली हुई भ्रांतियां दूर हों.
सच में आपका वो लेख एक संग्रहणीय लेख है और आपका उसके द्वारा किया हुआ प्रयास सराहनीये है .
मैं सभी भाइयों से प्रार्थना करूंगा की उसे एक बार अवश्य पढ़ें

धन्यवाद

महक

Ayaz ahmad said...

@प्रिय महक जी आधुनिक युग मे भी गोत्र और जाति हिंदू युवाओ के मिलन मे बाधा बन रही है । अब आप ही बताइए कि इस समस्या के लिए अगर हिंदूओ को सम्बोधित न किया जाए तो क्या ईसाइयो को सम्बोधित किया जाएगा? इसमे सारे हिन्दुओ को खराब बताने वाली बात कहाँ है? डा. साहब तो खुद मानते है कि हिंदु सदगुणो की खान है।

Mahak said...

@ प्रिय अयाज़ भाई
इसी तरह जो आत्मघाती हमले करते हैं जन्नत पाने के लिए तो आप ही बताइए कि इस समस्या के लिए अगर मुसलामानों को सम्बोधित न किया जाए तो क्या सिखों को सम्बोधित किया जाए ?इसमे सारे मुसलामानों को खराब बताने वाली बात कहाँ है?

ज़ाहिद देवबन्दी said...

नफरतो के अँधेरो को मिटा दो ज़ाहिद रोशनी मुहब्बत की उभर जाएगी

Mohammed Umar Kairanvi said...

कासमी साहब कहते हैं गैर मुस्लिम भाई 80 प्रतिशत इस्‍लाम पर आगये अगर यह 14 सौ साल पुरानी हीरे की तरह कीमती होती जाती शिक्षा भी अपना लें तो 81 प्रतिशत हो जायेगा

और अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करो और अपने ही हाथों से अपने-आपको तबाही में न डालो, और अच्छे से अच्छा तरीक़ा अपनाओ। निस्संदेह अल्लाह अच्छे से अच्छा काम करनेवालों को पसन्द करता है॥Quran 2:195॥

कासमी साहब की पुस्‍तक 'जिहाद या फसाद' भी इस विषय पर लाजवाब है, नयी पुस्‍तक 'हिन्‍दू राष्‍ट्र - सभ्‍मव या असम्‍भव' पर आपके विचार का उन्‍हें इन्‍तजार है
aslamqasmi.blogspot.com

Mohammed Umar Kairanvi said...

इस्‍लाम धर्म की ऐसी ही अच्‍छी शिक्षा के कारण भी 53 देशों में इसकी आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है, यही कारण है कि इस्लाम और कुरआन पर महापुरूषों के विचार भी अच्‍छे मिलते हैं यह तो और भी खुशी की बात है कि दुनिया का हर चौथा इन्सान- मुसलमान Every Fourth Person of This World is following ISLAM ! है जिनको शिक्षा मिली है कि खुदकशी हराम है अर्थात इस्‍लाम उसे जिन्‍दगी से हालात से मुकाबला करने के लिये प्रेरित करती है

Saleem Khan said...

right!

zeashan haider zaidi said...

इस्लाम हर सिचुएशन और हर कंडीशन में जीने की राह दिखाता है.

Man said...

इस्‍लाम धर्म की ऐसी ही अच्‍छी शिक्षा के कारण भी 53 देशों में इसकी आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है,............लकिन भाई इतनी बड़ी आबादी का कोई सामाजिक, वैज्ञानिक ,आर्थिक ,मानवीय ,तकनिकी ,राजनितिक ,..योगदान बतावो .केवल संसाधन खाने के आलावा ...और भारी मात्रा में जबरदस्ती ध्र्मान्त्र्ण और बोम्ब फोड़ने के आलावा

Man said...

इस्‍लाम धर्म की ऐसी ही अच्‍छी शिक्षा के कारण भी 53 देशों में इसकी आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है,...........लकिन भाई इतनी बड़ी आबादी का कोई सामाजिक, वैज्ञानिक ,आर्थिक ,मानवीय ,तकनिकी ,राजनितिक ,..योगदान बतावो .केवल संसाधन खाने के आलावा ...और भारी मात्रा में जबरदस्ती ध्र्मान्त्र्ण और बोम्ब फोड़ने के आलावा

Man said...

डा. अयाज कितनी लडकिया गिना दोगे जो तुमने सउदिया से यंहा ला के अपनी बहू या बीबी बनाई हो ,(पूरे एशिया में )और कितनी गिन ना चाहोगे एशिया की मुस्लिम और दुसरी जात की लडकिया अरबो के रखेले बनी हुई हे ? कान्हा गयी तुम्हारे धरम की समानता ....और एकता ...कारण वो तुम्हे दोयाम मानते हे ..जवाब दो

Man said...

डा. अयाज कितनी लडकिया गिना दोगे जो तुमने सउदिया से यंहा ला के अपनी बहू या बीबी बनाई हो ,(पूरे एशिया में )और कितनी गिन ना चाहोगे एशिया की मुस्लिम और दुसरी जात की लडकिया अरबो के रखेले बनी हुई हे ? कान्हा गयी तुम्हारे धरम की समानता ....और एकता ...कारण वो तुम्हे दोयाम मानते हे ..जवाब दो

Man said...

डा. अयाज कितनी लडकिया गिना दोगे जो तुमने सउदिया से यंहा ला के अपनी बहू या बीबी बनाई हो ,(पूरे एशिया में )और कितनी गिन ना चाहोगे एशिया की मुस्लिम और दुसरी जात की लडकिया अरबो के रखेले बनी हुई हे ? कान्हा गयी तुम्हारे धरम की समानता ....और एकता ...कारण वो तुम्हे दोयाम मानते हे ..जवाब दो

Man said...

डा. अयाज कितनी लडकिया गिना दोगे जो तुमने सउदिया से यंहा ला के अपनी बहू या बीबी बनाई हो ,(पूरे एशिया में )और कितनी गिन ना चाहोगे एशिया की मुस्लिम और दुसरी जात की लडकिया अरबो के रखेले बनी हुई हे ? कान्हा गयी तुम्हारे धरम की समानता ....और एकता ...कारण वो तुम्हे दोयाम मानते हे ..जवाब दो

Man said...

डा. अयाज कितनी लडकिया गिना दोगे जो तुमने सउदिया से यंहा ला के अपनी बहू या बीबी बनाई हो ,(पूरे एशिया में )और कितनी गिन ना चाहोगे एशिया की मुस्लिम और दुसरी जात की लडकिया अरबो के रखेले बनी हुई हे ? कान्हा गयी तुम्हारे धरम की समानता ....और एकता ...कारण वो तुम्हे दोयाम मानते हे ..जवाब दो

Man said...

शिया सूनी का खूनी झगडा भी क्या इस्लामिक एकता का ही उदाहरन हे ?तालिबानियों के खिलाफ लडती पाकिस्तानी सेना भी इस्लामिक एकता का अछा उदहारण हे ?

Man said...

शिया सूनी का खूनी झगडा भी क्या इस्लामिक एकता का ही उदाहरन हे ?तालिबानियों के खिलाफ लडती पाकिस्तानी सेना भी इस्लामिक एकता का अछा उदहारण हे ?

Man said...

शिया सूनी का खूनी झगडा भी क्या इस्लामिक एकता का ही उदाहरन हे ?तालिबानियों के खिलाफ लडती पाकिस्तानी सेना भी इस्लामिक एकता का अछा उदहारण हे ?

Man said...

शिया सूनी का खूनी झगडा भी क्या इस्लामिक एकता का ही उदाहरन हे ?तालिबानियों के खिलाफ लडती पाकिस्तानी सेना भी इस्लामिक एकता का अछा उदहारण हे ?

DR. ANWER JAMAL said...

@ MAN ! Devdasiyon ko rakhail arbon ne bana rakha hai ya pandon ne ?

DR. ANWER JAMAL said...

@ MAN ! इस कलियुग की पुलिस ने बलात्कारियों को तुरन्त अन्दर कर दिया जबकि तथाकथित ‘सतयुगादि‘ में श्राप तो मिलता था बेचारी अहल्या को और बलात्कारी ‘देवता‘ बने दनदनाते घूमते थे । बताइये कि वे युग अच्छे थे या वर्तमान युग ?

Anonymous said...

इधर कू देख ले घोंचू
रिक्शा चलाने वाले ही धर्म की रक्षा करते हैं!!!

Man said...

डा.जमाल यंहा बात तथा कथित इस्लाम में समानता की हो रही हे ,बराबरी की हो रही हे .कोई पोरानिक गाथा नहीं चल रही हे? ..में डा जमाल से फिर पूछता हूँ .........डा. अयाज कितनी लडकिया गिना दोगे जो तुमने सउदिया से यंहा ला के अपनी बहू या बीबी बनाई हो ,(पूरे एशिया में )और कितनी गिन ना चाहोगे एशिया की मुस्लिम और दुसरी जात की लडकिया अरबो के रखेले बनी हुई हे ? कान्हा गयी तुम्हारे धरम की समानता ....और एकता ...कारण वो तुम्हे दोयाम मानते हे ..जवाब दो ..?????????
bhai baatभाई बात बात वर्तमान की हे ..उसका सामयिक जवाब दो ....न की देखो देल्ही की तरफ और नुकसान आगरा में हो

Md. Javed said...

@man! nafrat mitao pyar badao.

DR. ANWER JAMAL said...

@MAN ! देवदासी समस्या देश की वर्तमान समस्या है . वृन्दावन की विधवाओं की दुर्दशा आप जब चाहे देख लें . विवाहिताओं को दहेज़ की खातिर हिन्दुओं को जलने ख़बरें आप पढ़ते ही होंगे . फिर आप ये सब छोड़ कर अरब का ज़िक्र करके भारत की समस्याओं से ध्यान क्यों हटाना चाहते हैं ?

Man said...

डा.जमाल विषय अंतर क्यों कर रहे हो ...बात समानता और बराबरी की होरही हे ..आप का कहना हे की इस्लाम में सब बराबर हे ...बराबर मतलब कोई उंच नीच नहीं कोई जाती पाती नहीं ..तो केवल ये भारत के मुसलमानों के लिए ही लागू होगी क्या ?तो भारत के अन्दर की ही बात करते हे ...पठान क्यों अपनी बेटी देशवाली को नहीं देना चाहता हे ?मुग़ल क्यों अपनी बेटी देशवाली को नहीं देना चाहता हे ? शेयद क्यों इन देशवाली मुसलमानों से खुद को ऊँचा समझता हे ?...ये अहमदी समाज क्यों मुसलमानों में बेचारा अलग थलग पड़ा हे ?
मोहमदी जिन्हें दो कोडी का समझते हे ?पठान देश्वलियो के हाथ का पानी पीना पसंद नहीं करते हे ..क्यों? खायाम्खानी सभी मुसलमानों से श्रेष्ठ क्यों बने हुवे हे ?(और वो हे) डा.भाईजमाल यंहा स्त्रियों किदशा पर आप ने ब्लॉग नहीं लिखा था आप ने जात पात उंच नीछ की बात उठाई थी और इस्लाम में सभी को बराबर बताया था इस लिए मेने अरब का परसंग रखा था आप से जवाब दिया नहीं गया और महिला दशा राग गाने लग गए ?

Man said...

डा. जमाल आप भी उसी कुरान को मानते हो जीस कुरान को अरबी लोग मानते .या अलग बने गयी हे ?में आप से ये पूछ रहा तह की अरब के लोग तुम्हे दोयम दर्जे क्यों मानते हे ...जबकि कुरान में तो सभी खुदा को मानाने वाले मुस्लिम बराबर हे ?जवाब दीजिये

zeashan haider zaidi said...

@Man
इस्लाम और मुसलमान दो अलग अलग चीज़ें हैं. इस्लाम नाम है कानूनों का और मुसलमान नाम है उसका जो उन कानूनों का पालन करता है. ये ज़रूरी नहीं की हर मुसलमान इस्लाम के सभी कानूनों का पालन करे इसलिए क्योंकि मानवीय कमजोरियां उसमें भी पाई जाती हैं. एक दूसरे से असमानता का व्यवहार और अपने को दूसरे मुसलमानों से श्रेष्ठ समझना इन्हीं मानवीय कमजोरियों का फल है.
लेकिन इसके बावजूद वह नमाज़ में दूसरे से अपने को श्रेष्ठ समझकर ऊंची जगह पर नमाज़ अदा कर ले तो उसकी नमाज़ गई. ये है इस्लामी कानून.
दूसरी बात, इस्लाम पूरी तरह समानता की भी बात नहीं करता. एक ईमानदार व्यक्ति बेईमान के बराबर थोड़ी न हो जाएगा. रिश्ते वगैरह जोड़ने में ये सब तो देखना ही पड़ता है. एक व्यक्ति अपनी बेटी का रिश्ता ऐसे घर में ही करना चाहेगा जहां उसकी बेटी ख़ुशी व आराम से रहे. तो फिर अरब का अमीर मुसलमान ग़रीब भारतीय मुसलमान से क्यों रिश्ता जोड़ेगा? इस्लाम रिश्ते नातों में सर्वश्रेष्ट चुनने की सबको आज़ादी देता है.

DR. ANWER JAMAL said...

@ Man !

नितिन जी ! आप जो कह रहे हैं अपने मन से कह रहे हैं या किसी हदीस से यह बात कह रहे हैं ?
मैंने जो भी लिखा है आप मुझ से उसका हवाला मांग सकते हैं . मैंने तो कल भी अजित जी के ब्लॉग पर जा कर कहा कि श्री कृष्ण जी ने कभी रस लीला खेलने का पाप नहीं किया . महापुरुष समाज के सामने आदर्श पेश करते हैं . उनके बाद स्वार्थी लोग शोषण करते हैं और महापुरुषों को कलंकित करते हैं . कृपया मेरे लेख देख कर बताएं कि मेरी कौन सी बात अप्रमाणिक है ?

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