सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Wednesday, May 26, 2010
Vibha Rani said- जो सनातन धर्म के नाम पर बेटी की इच्छा का अनादर करते हैं.मुझे ऐसे मां बाप और ऐसी पूजा इबादत से सख्त ऐतराज़ है.
दयालु पालनहार कहता है -
‘और अगर वे दोनों तुझपर ज़ोर डालें कि तू मेरे साथ ऐसी चीज़ को शरीक ठहराए जो तुझको मालूम नहीं तो उनकी बात न मानना, और दुनिया में उनके साथ नेक बर्ताव करना और तुम उस शख्स के रास्ते की पैरवी करना जिसने मेरी तरफ़ रूजू किया है, फिर तुम सबको मेरे पास आना है, फिर मैं तुमको बता दूंगा जो कुछ तुम करते रहे। -सूरह ए लुक़मान,15
मां-बाप का फ़र्ज़ औलाद की सही परवरिश करना है, उसे सही-ग़लत की तमीज़ सिखाना है ताकि वह सही रास्ते पर चले और अपना, अपने परिवार का और समाज का भला कर सके, लेकिन अगर मां-बाप सही-ग़लत का भेद ठीक से न समझते हों और वे अपनी औलाद को भी पूर्वजों की परम्परा के नाम पर ग़लत शिक्षा दें तो औलाद को चाहिये कि उनकी ग़लत बात को न माने और उस आदमी का अनुसरण करें जिसे सही-ग़लत का सच्चा बोध हो और वह एक परमेश्वर के प्रति पूरी निष्ठा के साथ समर्पित हो। मान्यताओं के अन्तर के बावजूद औलाद पर अपने मां-बाप के साथ ‘नेक बर्ताव‘ करना अनिवार्य है। आखि़रकार हरेक आदमी को लौटकर अपने मालिक के पास ही जाना है और तब हरेक जान लेगा कि जगत का सच्चा शासक केवल एक परमेश्वर है और कोई भी उसके वुजूद या उसके किसी भी गुण में न तो साझीदार है और न ही सहायक।
जगत भी उसका है और उसी की योजना और आदेश इसमें क्रियान्वित है। जो भी अपने जीवन को उसकी योजना के अनुसार गुज़ारेगा वह खुद को सदा के नर्क से बचा लेगा और जो शक में रहेगा तो वह समय भी आएगा जब वह खुद को नर्क की धधकती आग में पाएगा। तब वह जान लेगा कि जिस नर्क को वह जीवन भर झूठ या अलंकार समझता रहा था वह सचमुच मौजूद है।जो लोग में नर्क में जलने-बसने के पात्र हैं उनकी हद से बढ़ी हिर्स ओ हवस ने इस दुनिया में भी तरह तरह की आग भड़काकर इसे भी नर्क का नमूना बनाकर रख दिया है। ग्लोबल वॉर्मिंग मानवता के इन्हीं दुश्मनों की देन है। दूसरों का हक़ हराम तरीक़े से डकारने वाले इन झूठों के फ़रेब को पहचानना भी कल्याण की अनिवार्य शर्त है।बेहतर बात बताना मां-बाप के फ़र्ज़ में दाखि़ल है लेकिन अगर की सत्य और न्याय की बेहतर समझ रखती है तो फिर अपने मां-बाप को सही बात बताना उनकी ज़िम्मेदारी है।
क्या आप जानते हैं कि वह कौन सा मूल सत्य है जिस पर सारी सच्चाईयों का दारोमदार है ?
ईसा मसीह अलैहिस्सलाम की पवित्र वाणी में देखिए-
एक धर्मशास्त्री आया। उसने उन्हें वाद-विवाद करते सुना। उसने देखा कि यीशु ने उन्हें अच्छा उत्तर दिया है। उसने यीशु से पूछा, ‘‘सब से महत्वपूर्ण आज्ञा कौन सी है? ‘‘यीशु ने उत्तर दिया, ‘‘सब आज्ञाओं में से यह मुख्य हैः ‘हे इस्राएल सुन, हमारा प्रभु परमेश्वर एक ही प्रभु है। तू अपनी सारी शक्ति से प्रेम करना।‘ और दूसरी यह है, ‘तू अपने पड़ौसी से अपने समान प्रेम करना।‘ इससे बड़ी और कोई आज्ञा नहीं है।‘‘ -नया नियम, मरकुस, 12 : 28-31
बेशक मां-बाप अपने बच्चों की भलाई चाहते हैं, मगर जब मां-बाप अपने झूठेपवित्र कुरआन अपने पाठकों से खुद बात करता है और उन्हें उनकी समस्याओं का सच्चा और स्थायी समाधान देता है, जैसा कि आपने देखा कि बहन विभा के मन में सूरह ए लुक़मान की 14वीं आयत को पढ़ते समय जो प्रश्न पैदा हुआ उसका उत्तर ठीक वहीं यानि 15वीं आयत में मौजूद है।
मान-प्रतिष्ठा को अपना ज़ाती सवाल बता कर बच्चों की इच्छाओं को ताक पर रखने लग जाएं,
तब ऐसे मां बाप के इन विचारों का विरोध होना ही चाहिये. ताज़ातरीन उदाहरण निरुपमा
पाठक का है, जो सनातन धर्म के नाम पर बेटी की इच्छा का अनादर करते हैं. निरुपमा की
मौत को हम अगर मां बाप की पूजा के बर अक्स रखें तो माफ करें, मुझे ऐसे मां बाप और
ऐसी पूजा इबादत से सख्त ऐतराज़ है.
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47 comments:
@ Searchtruepath !पवित्र कुरआन अपने पाठकों से खुद बात करता है और उन्हें उनकी समस्याओं का सच्चा और स्थायी समाधान देता है, जैसा कि आपने देखा कि बहन विभा के मन में सूरह ए लुक़मान की 14वीं आयत को पढ़ते समय जो प्रश्न पैदा हुआ उसका उत्तर ठीक वहीं यानि 15वीं आयत में मौजूद है।
http://blogvani.com/blogs/blog/15882
Janab anwer sahaab kya aap quran ka tarjuma karte hai ? quran ko tarjume se pad kar log gumraah bhi ho jaate hai ....agar aap ne quran padaa hai to aapne padaa hoga ki Allah is quran ke jariye kisi hidaydeta deta hai to kisi ko gumraah bhi kar deta hai kyoki Allah jise chata hai use hidayat deta hai aur jise chahata hai gumraah kar deta hai us waqt quran bhi ki daleel bhi uske hidayat nahi deti agar aisaa hota to mecca ke mushrik aur kuffar sab imaan le aate aap sochiye sab sa badaa deen ka daae sabse behtar kirat karne wale un mecca ke mushriko ko quran sunaa rahe rahe lekin 12-13 saal mai kitne log imaan laaye ...mere kehne ka matlab ye hai ki quraan ko samjhne ke liye sahi hadith saamne hona jaroori hai usko tafseer se samhna jaroori hai warna koi galat matlab bhi nikaal lega..tarjume karne vaalo ne kai lafj alag alag rakhe hai aur misaal ke taur par jaisa ki aap kehte quraan aap se baat karta hai is baat ko ek lekar ek fitna uthaa tha imaam hambli ke jamaane mai ki quraan makhlook hai vo hamse baat karta hai aur imaam hambali ne fatwa diya tha quran makhlook nahi hai iske vajah se unhe waqt ke baadshah ne sakth takleefe bhi pahuchaayi thi.
nice post
ना चाहते हुए भी आगया, क्योंकि मै डॉ. सब्द की इज्जत करता हूँ, लेकिन आपको पढ़कर दुःख होता है१
मियां कुछ अच्छा लिखें, इन भोंडी मानसिकता से ऊपर उठकर! मै आपके लिए सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि,
मैंने बड़े आसानी से खुद को मसहुर किया है
कि अपने से बड़े शख्श को गाली दी है....
आपका अल्ला आपका भला करे!
agar mujhe aap ke is article mai kahi baat kaatni hai to mai ye daleel samne rakh dunga ki mecca ke mushriko aur sahaaba mai jange huee un jango mai koi baap mecca ke mushriko ki taraf se ladaa to betaa muslmaano ki taraf se ..and vice versa...agar kisi gair muslim ke saamne ye baat aayegi to vo yahi kahegaa ki ek taraf quran maa baap se achcha salook ki hidayat deta dusri taraf baap bete aapas mai ladte hai....vajah saaf hai voo gair muslim islaam ki buniyaad baat ko sahi taur par nahi samajh paaya ...jab buniyaad hi kamjor to us par koi makaan kaise banega.....aaj kal ka ye fitna hai ki koi ved ke jariye to koi bible ke jariye quraan samjhaane ki koshish karta hai ....kya rasullullah ne aisaa kiya ? kya sahaaba ne aisaa kiya ? to kya aaj kal ke log unse jaydaa akal ya ilm rakhte hai ? ...jab quraan nazil ho raha tha to koi aayat utarti to sahaab rasullullah ke paas aate ki iske kya matlab ahi ...jabki quran ki jubaan bhi arabi aur sahaab abhi ki jubaan bhi arabi thi..Quran ko samjhna hai ya samjhana hai to Rasullullah ki hadith saamne rakhe sahaab ne kaise samjhna usko saamne rakhe aur tabeeen...aur tabe tabeein ki baat ko saamne rakhe....jayada jaankari ke liye mere blog par kuch lecture ke link hai unhe sune aur websites ke link diye hai vahaa se pad sakte hai....http://www.searchtruepath.blogspot.com/
आर्य जी! आप ही कुछ सलाह दें कि मैं और अच्छा कैसे लिख सकता हूं और यह भी बताएं कि मां बाप की सेवा की बातें करना आपकी नज़र में भौंडा कैसे है? क्या आपने अपने मां बाप को वानप्रस्थी बना डाला है?
earchtruepath !मैंने पवित्र कुरआन की इस आयत का अनुवाद मौलाना वहीदुददीन ख़ान साहब के उर्दू अनुवाद ‘तज़्कीरूल कुरआन‘ से लिया है। आपको पवित्र कुरआन के बारे में अगर कुछ पूछना है तो उनसे सम्पर्क कर सकते हैं ।
www.cpsglobal.org
अल्लाह ने पवित्र में फ़रमाया है कि
वल्लज़ीना जाहदू लनहदियन्नहुम सुबुलना
जो लोग हमारे मार्ग की खोज में संघर्ष करते हैं हम उन्हें ज़रूर सत्यमार्ग दिखाते हैं ।
आप भी कोशिश करके देखिए । आपको भी मार्ग ज़रूर मिलेगा ।
@ Arya Bhai Sahab! Aisi baat na karo , Dekho
दयालु पालनहार कहता है -
‘और अगर वे दोनों तुझपर ज़ोर डालें कि तू मेरे साथ ऐसी चीज़ को शरीक ठहराए जो तुझको मालूम नहीं तो उनकी बात न मानना, और दुनिया में उनके साथ नेक बर्ताव करना और तुम उस शख्स के रास्ते की पैरवी करना जिसने मेरी तरफ़ रूजू किया है, फिर तुम सबको मेरे पास आना है, फिर मैं तुमको बता दूंगा जो कुछ तुम करते रहे।
-सूरह ए लुक़मान,15
http://www.islamdharma.org/article.aspx?ptype=A&menuid=16
आपकी इस बात से पूर्ण सहमत कि अपने माता-पिता का आदर करना ही चाहिए.
लेकिन विषयांतर करके कुछ प्रश्नों का जवाब चाहता हूँ...
कृपया निम्न बातों का जवाब दें,
प्रश्न १:- आप ये बताएं कि इस्लाम में "परमेश्वर एक है" इस बात पर इतना जोर क्यूँ है? ईश्वर एक है या अनेक, क्या ये प्रश्न बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है? अगर है तो कैसे ?
प्रश्न २:- "काफ़िर" , ये शब्द किन लोगों के लिए प्रयुक्त होता है?
(१)एक ईश्वर को मानने वालों के लिए
(२)अनेकों देवी-देवताओं को मानने वालों के लिए
(३)ईश्वर के अस्तित्व को नकारने वालों के लिए
प्रश्न ३:- क्या इस्लाम के अनुसार उस सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी ईश्वर को कोई फर्ख पड़ेगा कि धराचर (धरतीवासी) उसकी सत्ता को मानने से इनकार कर दें?साथ ही उन धरतीवासियों पर क्या फर्ख पड़ेगा? क्या उन्हें ईश्वर के कोप का भाजन बनना पड़ेगा?
प्रश्न ४:- क्या एक ईश्वर में विश्वास के लिए इस्लाम में दीक्षित होना और कलमा पढ़ना आवश्यक है? क्या इसके बगैर एक ईश्वर में विश्वास करना संभव नहीं है? और क्या वे लोग जो एक ईश्वर में विश्वास तो करते हैं लेकिन कलमा इत्यादि कोई भी इस्लामिक कर्मकांड नहीं करते है तो प्रश्न संख्या २ के अनुसार वे काफ़िर कहलाने के अधिकारी हैं अथवा मुसलमान कहलायेंगे या कोई तीसरी केटेगरी में उनको डाला जायेगा?
आपके उत्तर में आपसे आशा करता हूँ कि, आप किसी भी धर्मग्रन्थ को उद्धृत नहीं करेंगे, और सामान्य तर्क विद्या का प्रयोग करके समझायेंगे, जिससे कि मुझ जैसा सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति भी आत्मसात कर लेगा.
wahiuddin sahaab se mujhe quran samjhne ki jaroorat nahi hai unke tarjume mai kai khamiye ulema e salaf ne nikaali hai aur unki kai baate islaam ke khilaaf hai jiski tafseel karne ke liye pure lecture majood hai....unhone bhi kai aayato ka apni marji se tarjuma kar diya jaise ashraf ali thanvi, maulana maudoodi vaigraah ke tarjume quran mai hai...quran ko samjhne ke liye ek website hai www.tafsir.com...jo ibne khatir rahimullah ne tafsir likhi hai sahih hadith ki roshni mai vo is website mai nakal ki gayi hai english mai... Allah shukr hai ki usne sahi tarika bataa diya varna in jahilo ke chakkar mai to jayadatar log apni duniya aur akhirat barbaad kar rahe hai....Islam ki buniyaad tauheed hai aur sabse pahele tauheed ko janna jaroori hai usee se insaan ka imaan aur akeeda tay hota hai...agar kisi insaan ka imaan aur akeeda sahi hai to vo seedha aur sahi raste par hai...aur akeede mai khalaa hai to fir vo shaitaan ka rasta hai....jaraa gaur kare deoband ... barelvi....kharji...shiya... murji...sufi...vaigraah vaigraah ke akeede par ....to pataa chalega Islam (tauheed, Imaan) kufr, shirk mai fark....takreeban 10-12 saal se isi khoj mai lagaa huaa hun Allah ke fajal se ......Allah gumraaho ko hidayat de.
बड़ा जटिल विषय है,
इस पर कुछ भी कहो तो विवाद हो कर ही रहेगा ..........
लिहाज़ा सुनो जन की.........करो मन की !
nice post
nice post!
ईसा मसीह अलैहिस्सलाम की पवित्र वाणी में देखिए-
एक धर्मशास्त्री आया। उसने उन्हें वाद-विवाद करते सुना। उसने देखा कि यीशु ने उन्हें अच्छा उत्तर दिया है। उसने यीशु से पूछा, ‘‘सब से महत्वपूर्ण आज्ञा कौन सी है? ‘‘यीशु ने उत्तर दिया, ‘‘सब आज्ञाओं में से यह मुख्य हैः ‘हे इस्राएल सुन, हमारा प्रभु परमेश्वर एक ही प्रभु है। तू अपनी सारी शक्ति से प्रेम करना।‘ और दूसरी यह है, ‘तू अपने पड़ौसी से अपने समान प्रेम करना।‘ इससे बड़ी और कोई आज्ञा नहीं है।‘‘
@ प्रिय मनुज जी ! आपके प्रेमपूर्ण सवालों का स्वागत है। मैं किसी हिन्दू धर्मग्रन्थ को उद्धृत किये बिना ही आपको उत्तर दूंगा जैसा कि आपका आग्रह है।
1 व 2 -सच को जानने मानने में ही इनसान का कल्याण है । सच को मानने का नाम ईमान है और सच का इनकार करना कुफ़्र कहलाता है। ईश्वर एक है यह बात हरेक धर्म के ग्रन्थ कहते हैं। ईश्वर को एक और वास्तविक राजा माने बिना कोई भी आदमी सही रास्ते पर नहीं चल सकता क्योंकि फिर हरेक आदमी अपनी समझ के हिसाब से दावा करेगा कि सही वह है जो वह कह रहा है । इन बहुत से दावेदारों के दरम्यान कभी भी फ़ैसला न हो पाएगा कि वास्तव में सही क्या है?
यही वजह है कि बहुत से मुल्कों में समलैंगिकों के विवाह को जायज़ क़रार दे दिया गया है।
3- उस सर्वशक्तिमान को तो कोई अन्तर न पड़ेगा लेकिन अगर हमने उसके द्वारा निर्धारित हक़ अदा न किये तो ताक़तवर लोग कमज़ोरों का ख़ून चूस लेंगे और उनके लिए जीना मुश्किल और मरना आसान हो जाएगा। आप देख ही रहे हैं कि आज मज़दूर किसान और ग़रीब किस तरह आत्महत्या कर रहे हैं ?
4- किसी भी विचारधारा को मानने के लिए उसके बुनियादी सिद्धान्तों में विश्वास व्यक्त करना ज़रूरी है। आप किसी भी भाषा में कलिमे का भाव ग्रहण कर सकते हैं। ‘ाब्दों की पाबन्दी ज़रूरी नहीं है लेकिन अगर बात सही है तो फिर किसी भी भाषा से नफ़रत और परहेज़ क्यों?
ईश्वर में विश्वास का अर्थ मात्र उसका गुणकीर्तन करना ही नहीं है बल्कि ईश्वर के विधान के अनुसार आचरण करना भी है। आज जो लोग ईश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं और वे अपने पास ईश्वर की ओर से ऋषियों द्वारा प्रतिपादित कोई व्यवस्था होना भी बताते हैं वे आज के समय में उस पर अमल नहीं कर पा रहे हैं जैसे कि मनुस्मृति का विधान।
ईसाई साहिबान भी मूसा अलैहिस्सलाम के विधान को निरस्त कर चुके हैं।
अतः ईश्वरीय विधान के अनुसार आचरण करने के लिए इस्लाम में दीक्षित होना ज़रूरी है लेकिन अगर कोई आदमी इस्लाम के सत्य होने के बारे में संतुष्ट नहीं है और अपने धर्म को ही सत्य मानता है तो फिर पवित्र कुरआन उससे आह्वान करता है कि वह उस विधान का पूर्ण समर्पण भाव से पालन करे जिसे वह सत्य मानता है लेकिन अगर कोई उस विधान का भी पालन न करे जिसे वह सत्य मानता है तो फिर वह वासनाजीवी है और उसे कभी कल्याण नसीब होने वाला नहीं है।
उम्मीद है आपको अपने सवालों का जवाब मिल गया होगा।
मान्यताओं के अन्तर के बावजूद औलाद पर अपने मां-बाप के साथ ‘नेक बर्ताव‘ करना अनिवार्य है।
http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2010/05/kafir.html
@ searchtruepath
भाई , कोन सही है कोन ग़लत इसका फ़ैसला करने वाले आप कोन होते हो, जब इस्लाम में इतने फिरक़े हो ही गये है और इस बात की भविष्यवाणी अल्लाह के रसूल ने भी की थी, तो सही ग़लत का फ़ैसला अल्लाह पर छोड़ दीजिए, क्यूंकी आप जितनी गहराई में जाएँगे उतना ही हक़ीक़त स दूर हो जाएँगे. अच्छाई बुराई नापने का पेमाना अल्लाह ताला ने इंसान के अंदर फिट कर दिया है, जिस बात पर आपका ज़मीर मुतमाईन हो उस पर अमल कीजिए.
यहाँ क्या बात चल रही है आप इस पर ध्यान दे और ये भी ख्याल रखे कि इस मज़मून को कोन-कोन पढता है, उन लोगो को आपके कहे तरीक़े से बात समझ नही आती, जैसा कि आप खुद देख रहे है, मॉ बाप कि सेवा के विषय पर भी लोग ऐकमत नही है, यहाँ भी बुराई ढूँढ रहे है लोग,
आख़िर में आप से ये कहना है.......में खुद उस मत को मानता हूँ जिसकी आप दुहाई दे रहे है, और आप से ज़्यादा बड़ा सलफी हूँ मगर दावत के काम में जितना सब्र होना चाहिए उसकी आप में बहुत कमी है. यहाँ हमारा मक़सद किसी को मुसलमान बनाना नही है बल्कि इन लोगो के दिमाग़ से इस्लाम और मुसलमान के बारे ग़लतफहमी को दूर करना है. मेरे ख्याल से ये कम डा० अनवर साहब बखूबी अंजाम दे रहे है.
पहले हम लोग खुद मुसलमान बन जाएँ और अल्लाह ताला के बताए तरीक़े को अपनी अमली ज़िंदगी में अपनाएँ. ताकि दूसरो के लिए मिसाल बन सके. दूसरे में बुराई ढूँढने से पहले अपने गिरेबान में झाकना ज़रूरी है.
अल्लाह ताला का इरशाद है ''इस्लाम में पूरे के पूरे दाखिल हो जाओ'' इस के बारे में डा० अनवर साहब से गुज़ारिश है तफ़सील से रोशनी डालें.
@भाई सहसपुरिया ये जो serechtruepath है ये सत्यार्थ प्रकाश REDIMADE एतराज उठा लाए है इनका मकसद समझना नही है सिर्फ एतराज करना है
@sahespuriya maine jo savaal uthaaye the vo pahele vale article par the jiska javaab nahi mila tha namwar sahaab ki taraf se jo unhone javaab diya to maine bhi unke javaab ka usi andaaj mai de diya....sahi aur galat ka faisle ke liye nabi bheje gaye the aur jab kabhi aapas mai ikhtilaaf ho kisi baat par Allah aur rasool ki taraf palto ye taleem quraan aur hadith ki hai...aur islaam ke naam par koi kuchh bhi kar de aur aap sirf isliye chup baithe ya bithaa diye jaaye ki log kya kahenge ? dawt ka kaam gair muslimo par karne se jayadaa muslamaano par karne ki jaroorat hai ...muslmaano ka imaan akide mai kharabiya hai to kya vo muslmaan hai fir sirf rakhna is baat ki daleel nahi banti ki usko dawat ki jaroorat nahi kyoki vo to khandaani muslmaan hai...aap ne bhi khoob kahi ki jameer jo kahe vahaan fit kar diye jiye sahi aur galat ....insaan koi amal karta hai to 3 vajah hai duniya ke lihaaj se 1. bujurgo ki pairvee 2. nafas ki pairvee 3. akal + duniya ilm jo usne hasil kiya uski pairvee .....jameer inhi kisi ka naam ban jaata hai aur jo islaam mai dakhil ho to fir 4th baat ki pairvee in 3 pairvee se upar hoti hai aur vo hai Allah ka hukm aur rasool ki pairvee.
jaise ki aap farmaate hai ki pahele ham to muslmaan bane to janab jab deen islaam ki baat karte hai to 4 baate saamne rakhi jaaye 1. Allah ka vajood ko manna (jaisa vo hai bina kisi laag lapet ya hair fer ke) aur waqt ka nabi ka kehnaa manna 2. Ibadat (jaisee ibadat waqt ke nabi ne sikhaaye, naki kisi bujurg ne, imaam ke kahe mutabik) 3. Halal aur Haraam (kya khana kya nahi khana kya pehnna kya nahi pehnna, subah se raat tak aur 360 ya 365 din aur poori jindagi ke amal 4. haq ya rights ya adhikaar (rights personal, family, soical, economics, political, etc. ) ab upar ki teen baate to insaan ke apne jimme hai agar 1 no. baat hi nahi maani jaaye to 2 ya 3 ya 4 ka hona ya hona muslmaan hone ki daleel mai nahi aata ....to pahele muslmaan hone ke liye 1 number ki baat aur 2 number ki baat par pukhta hona jaroori hai to insaan 3 ya 4 number ko bhi aasani se maan lega nahi to jo allah ko hi namaane vo allah ka hukm kyo manega ?...rasulllah ki jindagi sabhi ne padi hai aur dawat tauheed kitne saal rahi jab tauheed par ek hue to baki ki baate saamne aayee.
@dr anwar jamaal jee
thanks. coming soon.
Dr. Ayaz hame islaam aur uski baate readymade mili hai... kehte bhi hai ki islaam ko rasullullah ne gehu ke daane ki shakl mai sahaaba ko diya sahaab ne use peesa tabe-een ne goontha tabe tabeen ne uski roti pakaayi aur ham vo ready made roti kha rahe hai...ab agar koi us gehu ke daane ko apni marji se kuch aur kekhne ki koshish kare chahe jaane mai ya anjaane mai to us par kya etraaj nahi uthaya jaana chaiye ....agar aisaa hi rahaa to vo roti jo gehu ki hai log use chaval ki ya kisi aur aate ki bhi saabit kar denge apnee daleel aur takr ki bina par.
Dr. Ayaz agar mai bhi apne blog par apne mutabik khuchh likh deta hun aur log aake uski tareef kar dete ...vah vah kya likha ...to meri galti meri najar se chhup jayegi ki maine to sab kuchh sahi hi likha balki ye bhi khayal aayega ki bahut achhca likha hai...to ye baat dheere dheere gumrahi ban jaati hai....isliye maine apne blog par apni taraf se kuchh likha to pahele sahi daleel lee (vo daleel readymade hi hogi) ki kya meri baat bhi vo hi hai jo salaf us saleheen ki rahi ...agar nahi to fir meri baat ki koi ehmiyat nahi uske kachre ke dibbe mai dalo... imaam hanfi, imam shafi, imam hambali, imam malik ka farmaana hai ki mera deen sahih hadith hai unhone apne apne andaaj mai ye bhi keh diya aur bari hue ki agar meri baat ke mukaable mai sahih hadith aa jaaye to rasullullah ki sahih hadith ko apnana aur meri baat ko chhod dena imam hanfi to yaha tak kehte hai ki sahih hadith ke mukable mai meri baat takraaye to meri baat ko deevar par fek maarna....
मैं ईमानदार हूँ मैं ईमानदार हूँ मैं ईमानदार हूँ मैं ईमानदार हूँ
मैं अच्छा आदमी हूँ मैं अच्छा आदमी हूँ मैं अच्छा आदमी हूँ मैं अच्छा आदमी हूँ
इस तरह की बात बार बार बार बार तभी बोली जाती है जबकि उसके ग़लत होने की संभावना हो
पवित्र क़ुरआन पवित्र क़ुरआन पवित्र क़ुरआन पवित्र क़ुरआन पवित्र क़ुरआन
पवित्र क़ुरआन पवित्र क़ुरआन पवित्र क़ुरआन पवित्र क़ुरआन ....................
पिछले कुछ दिनों से मैं आपका ब्लॉग पढ़ रहा हूँ "पवित्र" शब्द को बार बार पढ़ कर यह सोचने को मजबूर हो रहा हूँ की क्या क़ुरआन के "अपवित्र " हो सकने की भी कोई संभावना है| आपके लेखों की भाषा शैली ही आपके अपवित्र या ग़लत होने की संभावना को पैदा करती है|
@Searchtruepath
आपने अपने ब्लॉग के टाइटिल में लिखा है,
MESSENGER OF ALLAAH MUHAMMAD SALLALLAHU WALEH WASALAM SAID "THE BEST OF PEOPLE IS MY GENERATION, THEN THOSE WHO COME AFTER THEM, THEN THOSE WHO COME AFTER THEM.", I.E THE FIRST THREE GENERATIONS
हदीस में नबी ने कहा की सर्वश्रेष्ठ लोग मेरी जेनेरेशन से हैं, लेकिन इसमें यह कहाँ कहा गया है की वह पहली तीन जेनेरेशन हैं. कृपया इसे स्पष्ट करें.
burai har jagah hai, shyad islam main kuch jyada hi hai.
zeashan zaidi ...paheli teen generation mai pahele sahaaba dusre tabeeen (yani vo jinhone sahaaba se deen seekha) teesree tabe tabeen (yani vo jinhone kisi sahaba ya tabeen se deen sikhaa) isko salaf kahaa gaya aur inke tareeke ko salaf us saleheen kahaa jataa hai ...ab aap ne puccha meri teen generation to ye to kahi bhi nahi likha hai ki rasullullah ne apni nasl ki teen genration ke baare mai khaa hai, agar aapko generation lafj ka matlab dekhna hai to dictionary uthaaye usme generation ka matlab production bhi likha hai, parivaar ki pidi bhi likha hai aur samkaaleen manavo ka samuh ya samaan istar vaale vichaardhara vaale manavo ka samuh ...islam mai rishte do parkaar ke hai ek imaan ka rishta dusra khoon ka rishta....or jab bhi baat kahi Rasullullah ne to imaan ke rishte se kahi..jaise imaan ke rishte par mujhajir aur ansaar bhai bhai hue .....abu bakr imaan ke rishte mai rasullullah ke bahi the lekin sasur bhi the...kya aapne kabhi kisi hadith mai ye padaa ki rasullullah ne farmaaya ho aye mere sasur abu bakr ? aapne nasl ki nahi balki ummat aur imaan ke manne valo ki baat kahi yani samaan vichaardhara vale ssamkaleen samuh
@Searchtruepath
माफ़ कीजिये, आप मेरा सवाल नहीं समझे. मैंने पूछा था की तीन ही जेनेरेशन क्यों? तीन से कम या तीन से ज्यादा क्यों नहीं? रसूल की हदीस जेनेरेशन की बात कर रही है, 'केवल तीन' जेनेरेशन की नहीं.
maafi to mai bhi aapse maang leta hun ki shayad aapne nahi pada jo likha hai usme likha hai meri generation aur uske baad jo aaye aur uske baad jo aaye vo, aap kya ye kehna chahahte ki rasulllulah ne teen se kam ya teen se jayada kyo nahi kaha? ya ye kehna chahate hai ki hadith mai teen lafj istemaal nahi hua ? agar aap ka ye kehna hai ki rasullah ne teen lafj nahi kahaa to is baare mai.. mai to kuchh bolne layak hi nahi ki kyo nahi kaha, dusree baat agar hai ki teen lafj ka istemaal nahi hua hai to iska javaab ye hai ki rasullullah ki ye hadith samne rakhi jaaye jisme unhone farmaya "mujhe aisa ilm ataa kiya gaya hai jisse kam lafjo mai jayada baat kehta hu" ab ye hi choti sei baat hai jiske jariye alag alag firke kisi ko apne maslo mai atkaa dete hai (maine khud ne persoanlly jaa ke deoband, barelvi , jamat islami, IRF zakir naik vagairaah mai ye tricks dekhi)...is se bachne aur rasullullah ki hadith ko sahi tareeke se samjhne aur uske sahi maayene nikaalne ke usool hai jo salaf us saleheen ne bataa diye the jise usoolo fiqh hai....aur unhone hi is hadith mai logo ko samjhaane ke liye lafj teen ka istemaal kiya hai taki koi ye na keh sake falaana generation ke liye bola hai....varna agar is koi apne man mutabik matlab nikalna chaega to saari generation hi aajtak ki rasullullah ke baad hi hai...to vo ye bhi keh dega ki vo to ham hai..aur aisaa davaah bhi kai log akrte bhi hai....qadri, chisti, nakhsbadni etc.etc...aap se ek gujarih to mai kar sakta hu ki aap aur dusre muslim islam ka basic course jaroor kare jisme tauheed, akeeda, Quran, hadith, fiqh kya hai aur use kaise samjhe iske liye http://www.islamiconlineuniversity.com free basic course karvaati hai, jo koi bhi bahut ki kam waqt mai kabhi kar sakta hai.
@Searchtruepath
हालांकि अभी भी आपने तीन का कांसेप्ट स्पष्ट नहीं किया, फिर भी मैं आपकी बात मान लेता हूँ. तो अब एक और सवाल पैदा होता है. अगर मिसाल के तौर पर पहली जेनरेशन में ही एक दूसरे से कुछ मसलों में इख्तिलाफ हो तो हम किसकी बात मानें? जैसे की सिफ्फीन व नहरवान की जंग में पहली जेनरेशन के दो लोग एक दूसरे के खिलाफ लड़े. अब ये तो मुमकिन नहीं के हम दो मुखालिफ लोगों की पैरवी एक साथ कर लें. या दोनों से एक साथ दीन को हासिल करें. तो फिर हमें क्या करना चाहिए?
.गिरी साहब ....फिर शुरू हो गये
भाई मैने आपसे पहले ही अर्ज़ किया है आप जितनी गहराई में जाएँगे हक़ीक़त से उतना ही दूर होते जाएँगे, अब जो असल बात थी वो तो कहीं पीछे छूट गयी है आप और ज़ीशान भाई बहस करते करते कहाँ से कहाँ पहुँच गये....
मेरे ख्याल से ये मंच इन फिक़्ही बातो के लिए नही है या फिर इस वक़्त ये मुनासिब नही है. कहीं ऐसा ना हो हम सब असल मुद्दे से भटक जाएँ.
zeashan zaidi aapke in saare savaalo ka javaab maujood hai kyoki aap pahele shaks nahi hai jisne ye savaal kiye aur in savaalo ke baad kaun se savaal aap karenge aur unke kya javaab hai vo sab darj hai...aapke savaal ka yahaan javaab likhne ke liye jaroori hai ki savaal puchne vaale ko islaam ki taleem ki buniyaadi baato ka pataa hona aur janna jaroori hai, fir islam ki history us wakt ki...kya halat the ? kyo hua tha ? kaun sahi tha ? kaun galat tha ? ko compress ki jaaye aur yahaan likhi jaaye... nahi to aapke savaal ka javaab aapko nahi mil paayega jaisa ki aapne likha ki aap ko teen ka javaab nahi mila ...isi tareh is ka bhi nahi mil payega....
वैलकम बैक मिस्टर गिरी! टापकी विरोध वाणी सुनने के लिए तो हम तरस ही गये थे।
मैं ईमानदार हूँ मैं ईमानदार हूँ मैं ईमानदार हूँ मैं ईमानदार हूँ
मैं अच्छा आदमी हूँ मैं अच्छा आदमी हूँ मैं अच्छा आदमी हूँ मैं अच्छा आदमी हूँ
इस तरह की बात बार बार बार बार तभी बोली जाती है जबकि उसके ग़लत होने की संभावना हो
पवित्र क़ुरआन पवित्र क़ुरआन पवित्र क़ुरआन पवित्र क़ुरआन पवित्र क़ुरआन
पवित्र क़ुरआन पवित्र क़ुरआन पवित्र क़ुरआन पवित्र क़ुरआन ....................
पिछले कुछ दिनों से मैं आपका ब्लॉग पढ़ रहा हूँ "पवित्र" शब्द को बार बार पढ़ कर यह सोचने को मजबूर हो रहा हूँ की क्या क़ुरआन के "अपवित्र " हो सकने की भी कोई संभावना है| आपके लेखों की भाषा शैली ही आपके अपवित्र या ग़लत होने की संभावना को पैदा करती है|
@ शिवलोक जी ! आप बचपन से अपने बाप को पिताजी पिताजी पिताजी कहते रहे . क्या आपको उनके बारे में कोई शक था की ये मेरे पिता नहीं है ? उनके साथ जी आप आदर की वजह से लगते थे क्या आपको कभी उनके बारे में शक हुआ की ये तो आदर के लायक नहीं हैं ? अगर आपको कोई शक नहीं हुआ और आपके बार बार कहने से दूसरों को भी शक नहीं हुआ तो आपको पवित्र कुरान के बारे में ही क्यों शक होता है . दर असल आप लोग घी के जले है सो आपको पानी देख कर भी घी की याद आ जाती है .
पवित्र पिताजी , पवित्र माताजी , पवित्र महाभारत , पवित्र रामायण इस तरह के शब्दों का उच्चारण कभी नहीं किया जाता है| जी शब्द आदर सूचक शब्द है , पवित्र शब्द गुणवत्ता सूचक है| भाई जी , पिताजी ,माताजी , बहनजी सामान्य आदर सूचक शब्द हैं| पवित्र शब्द आदर सूचक नहीं है यह शब्द गुणवत्ता का सूचक है हमने तो कभी भी पवित्र गीता , पवित्र रामायण नहीं कहा | जमाल साहब कृपा करके पिता माता की तुलना किताब से मत करो| अपने नाम से पहले लगे डॉ शब्द की सार्थकता को बनाए रखे| आपके तर्कों और शब्दों के संतुलन से ऐसा लगना चाहिए की आप अनवर जमाल नहीं हैं डॉक्टर अनवर जमाल हैं |
वैसे आपकी जानकारी के लिए स्पष्ट कर दूं की क़ुरआन एक अच्छी पुस्तक है , एक पवित्र पुस्तक है , आप उसे पवित्र कहेंगे तो भी नहीं कहेंगे तो भी ,,,,, बल्कि जितना ज़्यादा आप उसे पवित्र पवित्र पवित्र कहेंगे उतना ही ज़्यादा उसके अपवित्र हो सकने की संभावना भी आप स्वयं ही खड़ी करेंगे|
@डॉ. अनवर जमाल जी, मैने अपने विचार लिखे हैं. मैंने पाक कोरान को पढा नहीं है, इसलिए वह क्या कहता है, मुझे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. इसलिए मेहरबानी से मेरी अदना सी बात को पाक कोरान से जोडकर या उसकी बातों के हवाले से साबित करने की कोशिश ना करें. मैं केवल इतना जानती हूं कि हर धर्म या मज़हब इंसानी प्रेम मुहब्बत, भाईचारे, अमन की बात कहता है और अपने बन्दों से उसी की तामील करने को कहता है. हर धर्म और मज़हब के लोग अपने ही धर्म की बातों को मानने लगें तो यह दुनिया हंसता खेलता जहान हो जाएगा. आमेन!
बहन विभा जी! मैंने आपके विचारों को कुरआन के सन्दर्भ में देखा तो उसमें वही लिखा मिला जो आत्मा कह रही है । आपकी ही क्या हरेक इन्साफ़पसन्द आदमी की आत्मा यही कहेगी। आपका यह कहना कि हरेक धर्म में अच्छी बातें बताईं गई हैं, इस संबंध में मेरा कहना यह है कि आप धर्म का पालन करके देखिये तो आपको सच पता चल जाएगा। आप एक हिन्दू हैं आप या दूसरा कोई भी किसी हिन्दू देवता या अवतार या ऋषि का अनुसरण करके दिखाए तो सही तब आपको पता चलेगा कि आप उनका अनुसरण ही नहीं कर सकते और न ही लोगों के साथ उन नियमों को बरत सकते हैं जिनकी तालीम हिन्दू स्मृतियां और विधि पुस्तकें देती हैं ।
आपसे विनती है कि एक बार आप अपने प्रभु की वाणी ज़रूर पढ़ें ताकि आप अपनी आत्मा को संतुष्ट करने वाले वचन सुनें और फलप्रद नियमों का आपको ज्ञान हो। इस्लाम दुनिया का एकमात्र व्यवहारिक धर्म है। बाक़ी मत हैं जिनमें लोग श्रद्धा तो रख सकते हैं लेकिन उनके अनुसार चलने में मजबूर हैं। न वे 3 समय संध्या कर सकते हैं और न ही सोलह संस्कार पूरे कर सकते हैं और न चारों आश्रमों का पालन ही कर सकते हैं इसीलिए आज हरेक हिन्दू अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ चल रहा है।
http://quranhindi.com/
B I B L E :- BASIC INFORMATION BEFORE LEAVING EARTH
John14:6
Jesus saith unto him, I am the way, the truth, and the life: no man cometh unto the Father, but by me.
John 3:16
For God so loved the world, that he gave his only begotten Son, that whosoever believeth in him should not perish, but have everlasting life.
John 3:17
For God sent not his Son into the world to condemn the world; but that the world through him might be saved.
John 3:18
He that believeth on him is not condemned: but he that believeth not is condemned already, because he hath not believed in the name of the only begotten Son of God.
John 3:19
And this is the condemnation, that light is come into the world, and men loved darkness rather than light, because their deeds were evil.
John 3:20
For every one that doeth evil hateth the light, neither cometh to the light, lest his deeds should be reproved.
John 3:21
But he that doeth truth cometh to the light, that his deeds may be made manifest, that they are wrought in God.
Job 28:7
There is a path which no fowl knoweth, and which the vulture's eye hath not seen:
Job 28:8
The lion's whelps have not trodden it, nor the fierce lion passed by it.
John 10:1
Verily, verily, I say unto you, He that entereth not by the door into the sheepfold, but climbeth up some other way, the same is a thief and a robber.
John 10:2
But he that entereth in by the door is the shepherd of the sheep.
John 10:3
To him the porter openeth; and the sheep hear his voice: and he calleth his own sheep by name, and leadeth them out.
John 10:4
And when he putteth forth his own sheep, he goeth before them, and the sheep follow him: for they know his voice.
John 10:5
And a stranger will they not follow, but will flee from him: for they know not the voice of strangers.
John 10:6
This parable spake Jesus unto them: but they understood not what things they were which he spake unto them.
John 10:7
Then said Jesus unto them again, Verily, verily, I say unto you, I am the door of the sheep.
John 10:8
All that ever came before me are thieves and robbers: but the sheep did not hear them.
John 10:9
I am the door: by me if any man enter in, he shall be saved, and shall go in and out, and find pasture.
John 10:10
The thief cometh not, but for to steal, and to kill, and to destroy: I am come that they might have life, and that they might have it more abundantly.
John 10:11
I am the good shepherd: the good shepherd giveth his life for the sheep.
John 10:12
But he that is an hireling, and not the shepherd, whose own the sheep are not, seeth the wolf coming, and leaveth the sheep, and fleeth: and the wolf catcheth them, and scattereth the sheep.
John 10:13
The hireling fleeth, because he is an hireling, and careth not for the sheep.
John 10:14
I am the good shepherd, and know my sheep, and am known of mine.
John 10:15
As the Father knoweth me, even so know I the Father: and I lay down my life for the sheep.
John 10:16
And other sheep I have, which are not of this fold: them also I must bring, and they shall hear my voice; and there shall be one fold, and one shepherd.
John 10:17
Therefore doth my Father love me, because I lay down my life, that I might take it again.
John 10:18
No man taketh it from me, but I lay it down of myself. I have power to lay it down, and I have power to take it again. This commandment have I received of my Father.
John 12:44
Jesus cried and said, He that believeth on me, believeth not on me, but on him that sent me.
John 12:45
And he that seeth me seeth him that sent me.
John 12:46
I am come a light into the world, that whosoever believeth on me should not abide in darkness.
John 12:47
And if any man hear my words, and believe not, I judge him not: for I came not to judge the world, but to save the world.
John 12:48
He that rejecteth me, and receiveth not my words, hath one that judgeth him: the word that I have spoken, the same shall judge him in the last day.
John 12:49
For I have not spoken of myself; but the Father which sent me, he gave me a commandment, what I should say, and what I should speak.
John 12:50
And I know that his commandment is life everlasting: whatsoever I speak therefore, even as the Father said unto me, so I speak.
John 14:26
But the Comforter, which is the Holy Ghost, whom the Father will send in my name, he shall teach you all things, and bring all things to your remembrance, whatsoever I have said unto you.
John 16:12
I have yet many things to say unto you, but ye cannot bear them now.
John 16:13
Howbeit when he, the Spirit of truth, is come, he will guide you into all truth: for he shall not speak of himself; but whatsoever he shall hear, that shall he speak: and he will shew you things to come.
John 16:14
He shall glorify me: for he shall receive of mine, and shall shew it unto you.
Acts 2:38
Then Peter said unto them, Repent, and be baptized every one of you in the name of Jesus Christ for the remission of sins, and ye shall receive the gift of the Holy Ghost.
mujhe lagta hai aap ne ye vibha ji ki soch par mugdh ho kar ye post nahin likhi balke isme snatan dharm ka naam aaya hai (aur usko galat batane ka mauka hai) ye soch kar ye post likhi hai. Sachai ye hai ki aaj jitna muslim logo ki batiya dukhi hai utni aur kisi ki nahin. aisi kayi aurton aur ladkiyo se meri baat hui hai jo pakistan se bharat aati hain wo batati hain ki asl mein unki zindi kitni kharab hai. to ye guzarish hai ki aap post likhen, kuraan ki tarifon ke pul bandhe lekin plesae sanatn dharm ki buri karne ka sehra hamesha baandh kar na rakhe
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