सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Monday, May 10, 2010
Towards the fragrance of Islam क्या इस्लाम की बात करने से बदबू फैलती है ?
ऐसे बदलते हुए हालात में भी मेरे लेख
जैसे ही कोई भी अपने लेख में "इस्लाम" का प्रचार करने की कोशिश करेगा, तत्काल उसकी नीयत पर शक किया जायेगा…। चाहे कैरानवी हों, सलीम हों या आप हों… कई राष्ट्रीय मुद्दों पर अच्छा लिख भी सकते हो, लेकिन जैसे ही आप लोग विभिन्न इस्लामी प्रचार लिंक, पुस्तकों के लिंक, हर बात को इस्लाम से जोड़ना आदि शुरु कर देते हो… पाठक बिदकने लगते हैं, नाक पर रुमाल रखकर निकल लेते हैं, कई लोग इसी वजह से आप लोगों से चिढ़ने लगे हैं।
हालांकि राष्ट्रवादी मानसिकता से ग्रस्त ‘मनुज‘ जी पहले ही कह चके हैं कि बाल ठाकरे जी भी राज ठाकरे और गिलानी की ही तरह देश के ग़द्दार हैं । इसके बावजूद हमने तो कभी उनपर शक नहीं किया और न ही हमने उनके कथन में बदबू की ही शिकायत की ।
हालांकि राष्ट्रवादी मानसिकता से ग्रस्त ‘मनुज‘ जी पहले ही कह चके हैं कि बाल ठाकरे जी भी राज ठाकरे और गिलानी की ही तरह देश के ग़द्दार हैं । इसके बावजूद हमने तो कभी उनपर शक नहीं किया और न ही हमने उनके कथन में बदबू की ही शिकायत की ।
इस्लाम तो सत्य है , अमृत है , आकर्षक है और सुगंध का भंडार भी । उसके नाम से अगर किसी को बदबू का अहसास होता है तो यह उसका निजी अनुभव है जिसका कारण खुद उसके अन्दर छिपा है ।जैसे कि कस्तूरी मृग दुनिया जहान में खुश्बू का स्रोत ढूंढता फिरता है जबकि उसका स्रोत खुद उसके अन्दर होता है ।
कुत्ते के काटे हुए रैबीज़ के शिकार मरीज़ भी पानी देखते ही चिल्लाने लगते हैं । उन्हें पानी में अपनी मौत दिखाई देने लगती है हालांकि पानी अमृत होता है ।
सांप के डसे हुए मरीज़ को भी नीम का ज़ायक़ा कड़वा नहीं लगता । इससे पता चलता है कि अगर आदमी मरीज़ हो तो उसे चीज़ें हक़ीक़त के उलट भी नज़र आ सकती हैं ।लेकिन उम्मीद पर तो दुनिया क़ायम है । हमें उम्मीद है कि जिस तरह वे वेद पुराण में कई बातों को अप्रासंगिक और बकवास स्वीकार कर चुके हैं , उसी तरह एक दिन वे अपनी बातों में से भी कुछ को अप्रासंगिक और बकवास मानकर उन्हें त्याग देंगे ।
आक़ा ए महाजाल ! आपने अपने ब्लॉग पर पैसा बटोर बॉक्स किस विधि से लगाया ? ज़रा हमें भी तो बताइये , हम भी लगाना चाहते हैं ।
आक़ा ए महाजाल ! आपने अपने ब्लॉग पर पैसा बटोर बॉक्स किस विधि से लगाया ? ज़रा हमें भी तो बताइये , हम भी लगाना चाहते हैं ।
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38 comments:
बार बार क्या ये बासी चीजे आगे कर देते हो? कुछ नया सोचो दीमाग की बती जलावो ????????????????????? जमाल भाई आरोप पर्त्यारोप ,नहीं कुछ उदहारण सहीत दो | क्या बार बार महा जाल के आका महा जाल के आका जब की उन्होंने आप को अ अपनी किसी भी पोस्ट में एक बार भी याद नही किया हे ?कुछ नया लिखो जेसे की महाजाल के आका ने आज लिखी हे |अपने अंदर गर्म हवा भर के कुछ उपर उठो ,,,ज्यादा उपर नहीं ?
कुत्ते के काटे हुए रैबीज़ के शिकार मरीज़ भी पानी देखते ही चिल्लाने लगते हैं । उन्हें पानी में अपनी मौत दिखाई देने लगती है हालांकि पानी अमृत होता है ।
---- Nice
Log chahe kuchh bhi kahen, parantu yar tum batei bahut maze ki karte ho.
आक़ा ए महाजाल ! आपने अपने ब्लॉग पर पैसा बटोर बॉक्स किस विधि से लगाया ?
nice
Muslims r terrorist by birth
इस पूरे संसार में कोई भी मुसलमान किसी और मजहब और धर्म को मान्यता नहीं देता |इसके एक नहीं अनेक उद्धरण हैं जैसे अरब की तरफ जितने भी मुस्लिम देश हैं, सब वहां के राजदूत के लिए भी किसी मुस्लिम्स का होने को बाध्य करते हैं |वो भारत सरकार को भी मुस्लिम राजदूत का होने को बाध्य करते हैं |
वहां पर वो किसी और मजहब के लोगों को नागरिकता नहीं देते |अगर कोई दुसरे मजहब के लोग वहां जाते हैं तो वो अपने मजहब से सम्बंधित कोई पुस्तक या कोई मूर्ति नहीं ले जा सकते |पाकिस्तान व् बंगलादेश के मुसलमानों ने अपने पूर्वजों को भारत न बताकर अपने को अरब के मुसलमानों से जोड़ कर देखा ,इसलिए वहां भी पाकिस्तान में २०% से १% व् बंगलादेश में ३२% से ५ % दुसरे मजहब और धर्म के लोग बचे हैं |यही कश्मीर में हुआ वो पाकिस्तान के पिछलग्गू बन कर रहे तो उन्होंने भी दुसरे मजहब और धर्म के लोगों को वहां से भगा दिया |इससे स्पष्ट है की मुस्लिम्स की ये सभ्यता है |
क्या इस्लाम की बात करने से बदबू फैलती है ?
ans->yes
@MAN जी आप जो सलाह जमाल साहब को दे रहे है उस पर खुद भी तो चले।
अबे त्यागी अपना इतिहास जानता है? त्यागी हराम की औलाद को कहते है , पूरी बात बताए क्या?
सही कहा अनामी भाई इंटरनेट पर इस त्यागी का खानदान ढूँढ रहे थे इसका तो कुछ पता ही नही पाया पक्का हरामी लगता है।
आक़ा ए महाजाल कुत्ते के काटे हुए रैबीज़ के शिकार मरीज़ भी पानी देखते ही चिल्लाने लगते हैं । उन्हें पानी में अपनी मौत दिखाई देने लगती है हालांकि पानी अमृत होता है ।
VERY GOOD
तुम्हारे जैसे लोगों के लिये अमेरिका और इस्राइल ही ठीक है.. जो तुम लोगों के अन्दर .... भर रहा है... जाहिद, अनोनिमस, सहसपुरिया तुम सब ................ हो
अबे अनामी मुझे अपने हराम के होने का पता तुझसे पहले है अब इसमे मै क्या कर सकता हूँ ? ये पहले लोगो की गलतियाँ है इसमे मेरा कोई दोष नही इस बात को दुबारा नही करना मुझे जब लोग हराम की औलाद कह कर पुकारते है तो दुख होता है मै अपने नाम के आगे से उपनाम हटा लूंगा
इस्लाम अन्य धर्मो के प्रति कितना असहिष्णु भाव रखता है ,कुछ टिपणियों में साफ़ दिखाइ दे रहा है।इस्लाम और तालिबानी संस्कृति में कुछ तो अंतर होगा ही।
@नितिन त्यागी दुबई मे 60% कारोबार हिंदुओ के हाथ मे है और उनके वहाँ पर बड़े बड़े मंदिर भी है यह बात तुम्हारे आरोप गलत साबित करने के लिए काफी है
सहसपुरया जी ब्लागवाणी पर वोट डालने के लिए नया एकाउंट रजिस्टरड कराए
@आशुतोष जी आप गलत न समझे ये तो आप ही के लोग एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे है जो यहाँ पर पहले से ही होता आया है आप पहली बार आए है इसलिए समझ न सके वैसे आप का स्वागत है आशा है आप की गलतफहमी दूर हो गई होगी।
अयाज़ डॉ. में तो अब लिखना सिख रहा हूँ लकिन किसी को पढ़ तो सकता ही हूँ ना ...आप कहो तो में इस ब्लॉग को नहीं पढू ??? मेने दोनों ब्लोगों को नियमित पढ़ा और अंतर लगा तो मेने यंहा बता दिया आप तो बूरा मान गए ....
अब एक और बानगी देखिये
मोहनदास करम चन्द्र गांधी
मेरा अपना अनुभव है कि मुसलमान कूर और हिन्दू कायर होते हैं मोपला और नोआखली के दंगों में मुसलमानों द्वारा की गयी असंख्य हिन्दुओं की हिंसा को देखकर अहिंसा नीति से मेरा विचार बदल रहा है ।
गांधी जी की जीवनी, धनंजय कौर पृष्ठ ४०२ व मुस्लिम राजनीति श्री पुरूषोत्तम योग ....
अब इन को तो पागल कूते ने नहीं काटा होगा ??
दयानिधि श्री देवदास गांधी, जो दिवंगत महात्मा गांधी के पुत्र हैं, अपने एक निबंध में लिखते हैं‘‘एक महान शक्तिशाली सूर्य के समान ईश्वर-दूत हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने अरब की मरूभूमि को उस समय रौशन किया, जब मानव-संसार घोर अंधकार में लीन था और जब आप इस दुनिया से विदा हुए तो आप अपना सब काम पूर्ण रूप से पूरा कर चुके थे, वह पवित्रतम काम जिससे दुनिया को स्थायी लाभ पहुंचने वाला था। दुनिया के सच्चे पथ-प्रदर्शक बहुत थोड़े हुए हैं और उनके युगों में एक-दूसरे से बहुत अन्तर रहा है और वे लोग कि जिन्होंने मुहम्मद साहब के जीवन-चरित्र का अध्ययन उसी श्रद्धा के साथ किया है, जिसके वे अधिकारी हैं, इस बात के मानने पर बाध्य हैं कि आप महान धर्म-उपदेशकों में से एक थे। आपकी महानता और गुरूता में उस समय और भी वृद्धि हो जाती है, जबकि आपका चित्रा खींचते वक्त हम उस नितांत आध्यात्मिक और नैतिक ह्नास की पृष्ठभूमि पर भी दृष्टि रखें जो आपके जन्म के समय अरब में विद्यमान थी। मुहम्मद साहब एक सभ्य और उन्नतशील वातावरण की पैदावार न थे। आपके समय में एक आदमी भी ऐसा नहीं था जिससे आप ब्रहम्वाद की शिक्षा ग्रहण करते, उस काल में ईश्वरीय धर्म के लिए तो अरब में जगह ही न थी, वह देश अपने अंधकारमय काल से गुज़र रहा था। जब ख़राबी और पतन अपनी सीमा को पहुंच गया तो उस समय आप ईश्वरीय अनुकंपा बनकर उदित हुए। ऐसी दशा में यदि उन्हें ‘रहमतुल लिल् आलमीन’ (संसार के लिए दयानिधी) की पद्वी दी जाती है, तो इसमें आश्चर्य ही क्या है?आपकी अदर्श जीवनी हमें बताती है कि आपने अपने उपदेश और प्रचार का जीवन भर यही नियम रखा कि जो कुछ अपने अनुयायियों को सिखाना चाहते थे, पहले वह सब स्वयं करके दिखा दिया और
---कभी किसी ऐसे कार्य की शिक्षा न दी जिसका उदाहरण आपने उपस्थित न कर दिया हो।आपके पवित्रा जीवन में उस समय भी किसी प्रकार का कोई अन्तर नहीं आया, जबकि आप पैग़म्बर के पद पर शोभायमान हो गये। आपने सम्पूर्ण जीवन उसी सरलता और सादगी से व्यतीत किया। सांसारिक सुख और जीवन के भोग-विलास उस समय भी आपको अपनी ओर आकर्षित न कर सके जब एक से अधिक साम्राज्यों का धन आपके चरणों में अर्पित हो रहा था। आपका भोजन बहुत ही सादा और थोड़ा होता था और उसे भी केवल इसलिए खाते थे कि जीवित रह सकें। चटाइयां और टाट आपके बिस्तर थे और इसी तरह पहनने के कपड़े भी बहुत साधारण होते थे। आपने कभी किसी को कटुवचन नहीं कहा, यहां तक कि लड़ाई के अवसर पर भी दुश्मनों के साथ आपका स्वर कोमल होता था। सत्य यह है कि आपको अपनी इच्छाओं और मनोभावों पर पूरा-पूरा संयम प्राप्त था। गीता में कर्मयोगी के जो गुण बताये गये हैं, वह सबके सब आपमें पूर्णतया मौजूद थे।आप अपने अप्रिय कर्तव्यों को भी सच्चे ईमान और सच्ची वीरता के साथ पूर्ण किया करते थे और इच्छाएं या घमंड कभी आपके पगों में कम्पन उत्पन्न नहीं कर सकता था। कर्मयोगी उस व्यक्ति को कहते हैं जो अपने उत्तम विचारों को भी कार्य रूप में परिणत कर दे, और मुहम्मद साहब एक ऐसे ही व्यक्ति थे। एक नश्वर मनुष्य होते हुए भी आप अलौकिक गुण रखते थे। सुख- दुख, हर्ष, क्षोभ, जिनके प्रभावों के अन्तर्गत हम साधारण मनुष्यों के जीवन व्यतीत होते हैं और जो वास्तव में हमारे जीवन में क्रान्ति उत्पन्न कर देते हैं, उनसे यह पवित्रा और महान आत्मा कभी प्रभावित न होती थी।जो लोग समाज की वर्तमान व्यवस्था और प्रणाली को परिवर्तित करने में लगे हुए हैं और चाहते हैं कि इससे अच्छे समाज को जन्म दें, उनके दिलों पर जिस बात का गहरा प्रभाव पड़ेगा वह पैग़म्बर साहब का वह उच्च आदर्श है जिसे उन्होंने मेहनत-मज़दूरी के संबंध में कषयम किया। इस ईशदूत ने ऐसे बहुत से अनुकरणीय उदाहरण उपस्थित किये हैं, जिन्हें लोगों ने भुला दिया है। उनमें से एक यह है कि आप अपने कपड़ों की स्वयं मरम्मत करते थे। यही नहीं बल्कि अपने जूते भी ख़ुद ही टांकते थे। आप घर के काम-काज में प्रायः अपने सेवकों की सहायता करते थे। मस्जिद के निर्माण में आपने मज़दूरों के साथ बराबर काम किया है। मज़दूरों के साथ काम करते वक्त आप उनमें इस प्रकार घूल-मिल जाते थे कि कोई उन्हें पहचान न सकता था।बच्चों से आपको विशेष लगाव था और उनके साथ आप बहुत प्रसन्न रहते थे। वे सौभाग्यशाली बच्चे जो आपके जीवनकाल में थे और जिन्हें आपका प्रेम प्राप्त रहा, अपने घरों में इतने प्रसन्न नहीं रहते थे जितना आपके साथ। बच्चों के साहचर्य में उठना-बैठना आपके लिए कोई इत्तिफ़ाकी बात न थी, बल्कि यह आपका नियम और कार्यक्रम था कि बच्चों को ढूंढ़कर उनके साथ हो जाते और अपने उत्तम विचार उनके मस्तिष्क में अर्पित कर देते। क्या शिक्षा और उपदेश का इससे अधिक स्वाभाविक और सरल ढंग कोई हो सकता है? मासिक ‘पेशवा’, दिल्ली, जुलाई 1931 ई.
शायद इन को भी सांप ने डुस लिया हे ..
मोहम्मद अल्ली जिन्ना ...
आज भी हमारी औरते अँधेरे में जी रही ,इसका कारन हे हमारे धरम के दकिया नुसी विचार ,जिस घुटन से उनका जिंदगी चल रही हम उन्नती नहीं कर सकते हे ,,हमें अपनी औरतो को आजादी देनी होगी ,,उन्हें बराबरी के मोके देने होंगे |....पाकिस्तान के दुसरे सवतंत्रता दिवस पर दिया गया भाषण |
अब बोलो भाई क्या करे?????????????????
please batana Qabar banane men kitna kharch aata he Chita ka kharch men batata hoon
स्वामी दयानंद सरस्वती ने दाह संस्कार की जो विधि बताई है वह विधि दफ़नाने की अपेक्षा कहीं अधिक महंगी है। जैसा कि स्वामी जी ने लिखा है कि मुर्दे के दाह संस्कार में “शरीर के वज़न के बराबर घी, उसमें एक सेर में रत्ती भर कस्तूरी, माषा भर केसर, कम से कम आधा मन चन्दन, अगर, तगर, कपूर आदि और पलाष आदि की लकड़ी प्रयोग करनी चाहिए। मृत दरिद्र भी हो तो भी बीस सेर से कम घी चिता में न डाले। (13-40,41,42)
स्वामी दयानंद सरस्वती के दाह संस्कार में जो सामग्री उपयोग में लाई गई वह इस प्रकार थी - घी 4 मन यानी 149 कि.ग्रा., चंदन 2 मन यानि 75 कि.ग्रा., कपूर 5 सेर यानी 4.67 कि.ग्रा., केसर 1 सेर यानि 933 ग्राम, कस्तूरी 2 तोला यानि 23.32 ग्राम, लकड़ी 10 मन यानि 373 कि.ग्रा. आदि। (आर्श साहित्य प्रचार ट्रस्ट द्वारा प्रकाषित पुस्तक, ‘‘महर्शि दयानंद का जीवन चरित्र’’ से) उक्त सामग्री से सिद्ध होता है कि दाह संस्कार की क्रिया कितनी महंगी है।
@man ji mai aapki parshan is blog pur lagatar padh raha hou aap purshan acche kur rahe hai lekin jo sawal ye log aap unke jawab nahi de paate unke jawab bhi diya kare to maza aaye
अब तक देश के लगभग 2 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं जोकि पाक समर्थित आतंकवाद में मरने वालों की संख्या से कई गुना ज़्यादा हैं। ऐसे ही ग़रीबों-वंचितों के दिलों में निराशा और अवसाद और फिर आक्रोश पैदा होता है। समाज शस्त्र के नियम के अनुसार समस्या से ध्यान हटाने के लिए नेता लोग मनोरंजन के साधन बढ़ा देते हैं लेकिन मनोरंजन के साधन आए दिन ऐसी हिंसक फिल्में दिखाते हैं जिनमें जनता का शोषण करने वाले नेताओं की सामूहिक हत्या को समाधान के रूप में पेश किया जाता है। व्यवस्था और कानून से अपना हक़ और इन्साफ़ मिलते न देखकर हिंसा के रास्ते पर आगे बढ़ते हैं। इनकी समस्या के मूल में जाने के बजाय नेता लोग इसे इसलामी आतंकवाद, नक्सलवाद और राष्ट्रवाद का नाम देकर अपनी राजनीति की रोटियां सेकने लगते हैं। व्यवस्था की रक्षा में फ़ौजी मारे जाते हैं और उनके आश्रित नौकरी और पेट्रोल पम्प आदि पाने के लिए बरसों भटकते रहते हैं। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता। देश की व्यवस्था को सम्हालने वाले तो उन लोगों की भी ख़बर नहीं लेते जिन्होंने देश का 70 हज़ार करोड़ रूपया विदेशों में जमा कर रखा है लेकिन सरकार उस मध्यवर्गीय क्लर्क की सैलरी से आयकर काटना नहीं भूलती जिसे अपने बच्चों की फ़ीस देना और उनका इलाज कराना तक भारी होता जा रहा है।
समस्याएं बहुत सी हैं लेकिन सारी समस्याओं का कारण अव्यवस्था है। यह ‘अव्यवस्था’ केवल इसलिए है कि व्यवस्था को चलाने वाले नेता और उन्हें चुनने वाली देश की जनता अधिकांशतः अपने फ़र्ज़ की अदायगी को लेकर ‘ईमानदार’ नहीं है।
जब उनके दिल में ‘ईमान’ ही नहीं है तो ईमानदारी आयेगी भी कैसे ?
ईमान क्या है ?
ईमान यह है कि आदमी जान ले कि सच्चे मालिक ने उसे इस दुनिया में जो शक्ति और साधन दिए हैं उनमें उसके साथ -साथ दूसरों का भी हक़ मुक़र्रर किया है। इस हक़ को अदा करना ही उसका क़र्ज़ है। फ़र्ज़ भी मुक़र्रर है और उसे अदा करने का तरीक़ा और हद भी। जो भी आदमी इस तरीक़े से हटेगा और अपनी हद से आगे बढ़ेगा। मालिक उस पर और उस जैसों पर अपना दण्ड लागू कर देगा। इक्का दुक्का अपवाद व्यक्तियों को छोड़ दीजिए तो आज हरेक आदमी बैचेनी और दहशत में जी रहा है। हरेक को अपनी सलामती ख़तरे में नज़र आ रही है।
सलामती केवल इस्लाम दे सकता है
लेकिन कब ?
सिर्फ़ तब जबकि इसे सिर्फ़ मुसलमानों का मत न समझा जाए बल्कि इसे अपने मालिक द्वारा अवतरित धर्म समझकर अपनाया जाए। इसके लिए सभी को पक्षपात और संकीर्णता से ऊपर उठना होगा और तभी हम अजेय भारत का निर्माण कर सकेंगे जो सारे विश्व को शांति और कल्याण का मार्ग दिखाएगा और सचमुच विश्व गुरू कहलायेगा।
@गिरी जी कहाँ हो कमेंट शमेँट नही किया
@man जी बाबरी मस्जिद डहाने वाले बलबीर सिंह तो मान गए आप भी मान जाओ
डा. अयाज़ साहब में तो उस टाइम छोटा बच्चा था ,पा नहीं क्या हुआ था ?लेकिन गोधा कांड याद हे मुझे ,फिर क्या हुआ था येभी याद हे |इन बातो को छोड़ो ,
@ Man ! नितिन जी ! आप जो कह रहे हैं अपने मन से कह रहे हैं या किसी हदीस से यह बात कह रहे हैं ?
मैंने जो भी लिखा है आप मुझ से उसका हवाला मांग सकते हैं . मैंने तो अजित जी के ब्लॉग पर जा कर कहा कि श्री कृष्ण जी ने कभी रस लीला खेलने का पाप नहीं किया . महापुरुष समाज के सामने आदर्श पेश करते हैं . उनके बाद स्वार्थी लोग शोषण करते हैं और महापुरुषों को कलंकित करते हैं . कृपया मेरे लेख देख कर बताएं कि मेरी कौन सी बात अप्रमाणिक है ?
हिन्दू नारी कितनी बेचारी ? women in ancient hindu culture
क्या दयानन्द जी को हिन्दू सन्त कहा जा सकता है ? unique preacher
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क्या कहेंगे अब अल्लाह मुहम्मद का नाम अल्लोपनिषद में न मानने वाले ?
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गायत्री को वेदमाता क्यों कहा जाता है ? क्या वह कोई औरत है जो ...Gayatri mantra is great but how? Know .
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वेद आर्य नारी को बेवफ़ा क्यों बताते हैं ? The heart of an Aryan lady .
लंका दहन नायक पवनपुत्र महावीर हनुमान जी ने मन्दिर को टूटने से बचाना क्यों जरूरी न समझा ? plain truth about Hindu Rashtra .
@आक़ा ए महाजाल ! आपने अपने ब्लॉग पर पैसा बटोर बॉक्स किस विधि से लगाया ? ज़रा हमें भी तो बताइये , हम भी लगाना चाहते हैं ।
डॉ. जमाल उपर के दोनों विद्वानों के कोटेशन के पते नीचे दिए हुवे हे ...बके जिन्ना के कोटेशन का पता में आपको 9 ता . के दैनिक भास्कर का एक रवि वारिय अंक आता रस रंग उसमे एक कोलम आता हे जाहिदा हिना का पाकिस्तानी डायरी उसमे शोक से पढ़े और सोचे की क्यों इतना जल्दी हम ख़तम होते जा रहे हे ,,,हिन्दू कल्चर तो जी चूका हे धाप के ?और रास्ता भी यही दिखाएगा क्यों की जवानी चेंज होती रहती हे ,,अभी भी हन्दू कल्चर
खुद को नए में ढाल चूका हे |आप सोचो की हम क्या कर रहे हे ????????????????
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एक हदीस के अनुसार पैगम्बर जब खेतों में मल त्याग करने जाते थे, तो वे जिस डले से अपना पिछवाडा साफ़ करते थे,तो उनके अनुयाई उस डले के लिए आपस में झगड़ते थे.क्योकि उस हदीस के अनुसार उस डले से इतर की खुशबु आती थी.(तल्विसुल शाह जिल्द शाह सफा ८ )
जब डले में इतनी खुशबु आती होगी तो मल (पैगम्बर की टट्टी) तो पूरा का पूरा इतर का डब्बा होता होगा । पैगम्बर के अनुयाई डले के ऊपर ही झगड़ते थे किसी ने भी खेत में पड़े मल की तरफ ध्यान नहीं दिया।
http://quranved.blogspot.com/
ज़ालिम को ज़ालिम कहने का इनाम यह मिलता है कि उस सच्चे आदमी को ही आतंकवादी घोषित कर दिया जाता है और ज़ालिमों की चरणवंदना करने वाले उनकी हां में हां मिलाते हैं । दुनिया का दरोग़ा आज अमेरिका को कहा जाता है । रूस को उजाड़ने के लिए ही उसने पाकिस्तान के मदरसों के छात्रों को हथियार दिए । आज वही उसके लिए भस्मासुर साबित हो रहे हैं तो दोष इस्लाम के देवबंदी मसलक को क्यों दिया जाता है । रावण तो जब भी अत्याचार करेगा अपने अंजाम को पहुंचेगा । रावण के पुतलों को हर साल जलाने वालों को तो इसमें शक न होना चाहिये । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पाकिस्तान के तमाम खूनी इसलाम के शहीद कहलाने के हक़दार हैं । भारत के विरूद्ध , कश्मीर में उसकी खूनी कार्यवाही केवल चाणक्यनीति है इसलाम नहीं । दुनिया का विनाश कूटनीतिकों ने मारा है और विडम्बना यह है कि उसे धर्म के नाम की आड़ में किया गया । आज दुनिया प्रबुद्ध है वह जानती है कि सबसे बड़ा केवल ईश्वर है और इनसानों में केवल वह बड़ा है जो मानवता के हित में बलिदान देता है । अब आप यह तय कीजिए कि मानवता का हित ज़ालिम के विरोध में है या फिर उसके जयगान में जैसा कि बुज़दिलों की सनातन रीत है । http://blogvani.com/blogs/blog/15882
भाई जमाल साब,आपके आलेख अक्सर हिदु धर्म विरोधी होते हैं और आपका एक ही मकसद रहता है कि जैसे-तैसे इस्लाम को महिमा मंडित किया जावे।अन्य धर्मों की बखिया उधेडे बिना भी तो आप इस्लाम का गुण गान कर सकते हैं। हिन्दू धर्म का जहां तक सवाल है यह दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है। इस्लाम,जैन,बौद्ध,क्रिश्चन धर्मों के प्रवर्तक कोई एक महापुरूष या महामानव है। हर एक धर्म के धर्म ग्रंथों में एक ही महामानव के उपदेश और शिक्छाएं होने से उनमें परस्पर विरोधी बातें बहुत कम मिलती हैं। हिदू धर्म को सनातन धर्म भी कहा जाता है। इस धर्म के प्रवर्तक महापुरुष का किसी को पता नहीं है। कई संतों ,महर्षियों और विद्वानों ने अपने उपदेशों और शिक्छाओं से इस धर्म के धर्म ग्रंथों का प्रणयन किया है। परस्पर विरोधी उपदेशों का भी इस धर्म में आदर किया जा है। निराकार ईश्वर को मानने वाले भी इस धर्म में सम्मानित हैं तो जो ३३ करोड देवता को मानने वाले हैं उनका भी स्थान हिन्दु धर्म में पूरी तरह सुरक्छित है। मूर्ति पूजक भी इस धर्म के अंग हैं तो मूर्ति पूजा को पाप की संग्या देने वालों का भी दब दबा हिन्दू धर्म में कायम है।महर्षि दयानंद और कबीर ईसी श्रेणी के महापुरूष हैं। यह कहना सोलह आना सच होगा कि अपने स्वयं के स्वतंत्र विचार रखने और प्रकट करने की जितनी आजादी हिन्दू धर्म में है उतनी शायद दुनियां के किसी अन्य धर्म में नहीं है। सैंकडों वर्ष पहिले लिखे गये धर्म ग्रंथ की सभी बातों को आज की बदली परिस्थिती में भी ज्यों का त्यों लागू करना इस्लाम की बहुत बडी कमजोरी है। तस्लीमा नसरीन जैसे स्वच्छंद विचारों को इस्लाम में कोई जगह नहीं है।क्यों? मेरा तो मानना है कि धर्म ग्रंथों की बातों और सिद्धांतों को मानने के लिये फ़तवे जारी करना और आतंकी तरीके इस्तेमाल करना किसी भी नजर से उचित नहीं ठहराये जा सकते हैं। अगर धर्म ग्रंथों का सृजन ईश्वरीय प्रेरणा से हुआ है तो जिस जमीन और असमां के बीच हम स्थापित हैं उस धरती और सूर्य, चन्द्रमा के बारे विग्यान सम्मत सही जानकारी किसी भी धर्म ग्रंथ में क्यों नहीं है? और आखिर में एक निवेदन और कि भारत में रहने वाले अधिकांश मुसलमानों के पुरखे हिन्दू ही थे और इन मुसलमानों की गौत्रें भी हिन्दुओं की हैं जैसे पडिहार,सोलंकी,र्राठौर आदि। ऐसे में अपने पुरखों के धर्म के बारे में ईतनी आग उगलना उचित नहीं है।
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