सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Sunday, May 30, 2010

Fruit n work हरेक आदमी को चाहिए कि वह पहले फल की चिन्ता करे ताकि उसका काम फलप्रद हो।

ऐ ईमान वालो! परमेश्वर का डर (तक़वा) इख्तियार करो और हर आदमी को देखना चाहिये कि उसने आने वाले कल के लिए आगे क्या भेजा है ? और डरो परमेश्वर से निस्संदेह परमेश्वर को उन तमाम कामों की ख़बर है जो तुम करते हो । पवित्र कुरआन, 59, 18
आदमी का स्वभाव है कि वह काम का अंजाम चाहता है। परमेश्वर ने उसे उसके स्वभाव के अनुसार ही शिक्षा दी है कि हरेक आदमी को चाहिए कि वह पहले फल की चिन्ता करे ताकि उसका काम फलप्रद हो। जो भी उपदेशक आदमी को फल से बेफ़िक्र करता है दरअस्ल वह उसका दिल काम से ही उचाट कर देता है।

आज दुनिया में जितने भी प्रोजेक्ट चल रहे हैं उनमें काम करने वाले उनको फलित होते देखकर और भी ज़्यादा मेहनत से उसे पूरा करने के लिए जुट जाते हैं। आदमी पेड़ लगाता है फल के लिए , लेकिन अगर उसे फल की चिन्ता से ही मुक्त कर दिया जाए तो फिर वह पेड़ ही क्यों लगाएगा ?
आदमी पेड़ लगाते समय उसकी नस्ल भी देखता है कि कौन सी नस्ल का पेड़ अच्छा और ज़्यादा फल देगा ?
सारी कृषि की उन्नति का आधार ही फल की चिन्ता पर टिका है।
आदमी अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में प्रवेश दिलाता है और फिर साल गुज़रने पर वह देखता है कि उसके बच्चे ने जो मेहनत की उसका फल उसे क्या मिला ?
बेहतर फल के लिए ही आदमी अपने बच्चों को शिक्षा दिलाता है। इनसान नेकी का भी फल चाहता है। लेकिन कभी तो यह फल उसके जीते जी उसे मिल जाता है लेकिन कभी उसे इस जीवन में उसकी नेकी का फल नहीं मिल पाता।बुरा इनसान अपने बुरे कामों का फल नहीं भोगना चाहता, लेकिन फिर भी उसके बुरे कामों का बुरा नतीजा उसे इसी जीवन में भोगना पड़ता है लेकिन कभी वह बिना उसे भोगे ही मर जाता है।फल मिलना स्वाभाविक है। फल देने वाला ईश्वर है। आपके ‘फल की चिन्ता‘ से मुक्त होने की वजह से न तो वह अपनी कायनात का उसूल बदलेगा और न ही इनसानी समाज आज तक कभी फल की चिन्ता से मुक्त हुआ है और न ही कभी हो सकता है।

इसलाम कहता है कि जो भी करो उसे करने से पहले उसके ‘फल की चिन्ता‘ ज़रूर करो।
आप क्या कहते हैं ?

37 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

हा-हा, यही तो फर्क है डा० साहब, आपमें और हममे, या यूँ कहूँ कि यही तो कमी है हममे कि हम आप लोगो की तरह फल की चिंता नहीं करते, सिर्फ बस पेड़ लगाते है !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

एक बात और मैंने आपका लेख अभी पूरा नहीं पडा सिर्फ हेडिंग और कुछ शुरुआती लेने पढ़कर ही टिपण्णी दी है क्योंकि दिल में यही एक आत्म विशेवास है कि मैंने जो टिपण्णी दी वो सही है1

Ayaz ahmad said...

अच्छी पोस्ट

सहसपुरिया said...

इसी को बुधीजीवी कहते हैं. बग़ैर पढ़ें ही टिप्पणी करदी......
इक हम हैं दो तीन बार पढ़ने के बाद ही समझ में आता है......

DR. ANWER JAMAL said...

ज्येष्ठ ब्लॉगर गोदियाल जी! आप ग़लत बयानी से काम ले रहे हैं उस दिन आप अवधिया जी से भिड़े हुए थे कि आप अपने बच्चों को ग़रीबों के बच्चों के साथ पढ़ाने के हक़ में नहीं हैं क्योंकि वहां वे उनसे गाली आदि सीख सकते हैं।
आपको तो फल की चिन्ता सबसे ज़्यादा है।
अभी आपकी पोस्ट आयी थी कि सरकार पर दबाव डालकर कुछ कानूनी संशोधन करवाने के परामर्श देने के संबंध में ताकि लोगों के कष्ट कुछ कम हो सकें। आप चलते हमारे ही तरीके़ पर हैं लेकिन आपको चेतना नहीं है।

Hamdard said...

Nice Post.

DR. ANWER JAMAL said...

भाई सहसपुरिया ! आप यह बताइये कि आपकी वोट न देने पाने की दिक़्क़त अभी तक बरक़रार है या ख़त्म हो गई ?

सहसपुरिया said...

डा० साहब ,वोट का मसला तो हाल हो गया. बस दुआ की गुज़ारिश है....
अल्लाह आपको सलामत रखे,
कभी आपसे मुलाक़ात हुई तो ''गेन्दा फूल'' का हार पहनाऊंगा.
शफ्फक़त बनाए रखिएगा

DR. ANWER JAMAL said...

@ Sahaspuriya ji ! Apke ooper hai ki aap milna kab chahte hain ? Hum to hazir hain , ap kahen to jaipur aa jayen ya kahen to Delhi , boliye ?

मिलकर रहिए said...

पुरुष की आंख कपड़ा माफिक है मेरे जिस्‍म पर http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/05/blog-post_9338.html मेरी नई पोस्‍ट प्रकाशित हो चुकी है। स्‍वागत है उनका भी जो मेरे तेवर से खफा हैं

सहसपुरिया said...

ज़रूर, आपसे मुलाक़ात का शरफ़ तो हासिल करना है...बस मुनासिब वक़्त का इंतज़ार है अपना email तो इनायत कीजिए..

zeashan haider zaidi said...

पहली टिप्पणी के जवाब में :
जो लोग कहते हैं की हमें फल की चिंता नहीं वही सबसे ज्यादा फल की चिंता में घुले जाते हैं. मैंने कुछ ऐसे लोगों को देखा है जिनका तकिया कलाम है की पैसा तो हाथ का मेल होता है और मैंने उन्हीं को पैसे के पीछे सबसे ज्यादा भागते देखा.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

unke usee lekh par maine ek spastheekaran bhee diyaa thaa shaayda wah nahee padhaa aapne !!

Shah Nawaz said...

आपने बिलकुल सही कहा अनवर भाई. बस बात इतनी है, की फल की इच्छा अवश्य ही करनी चाहिए, चिंता नहीं. क्योंकि हमारा पालनहार परमेश्वर है, कोई मनुष्य नहीं. हाँ अगर कोई मनुष्य होता तो अवश्य ही फल की चिंता रहती, क्योंकि कोई भी मनुष्य दूसरों को कुछ भी आसानी से देने के लिए तैयार नहीं होता है. अच्छा लेख. बहुत खूब!

merajkhan said...

जो भी उपदेशक आदमी को फल से बेफ़िक्र करता है दरअस्ल वह उसका दिल काम से ही उचाट कर देता है।

Ayaz ahmad said...

जो भी उपदेशक आदमी को फल से बेफ़िक्र करता है दरअस्ल वह उसका दिल काम से ही उचाट कर देता है।

रविदास said...

दरअसल धरम के हिसाब से दलितों को जो कम सोंपे गए थे कही उनसे लोग सवाल न करने लगे इसलिए फल की चिंता न करने के लिए कहा गया है ताकि लोग इसे अपने लिए इश्वेर का आदेश समझ कर पालन करते रहे और बिना झिजक सेवा किये जाये

niti said...

यही तो हमारी चाल थी मुसलमानों तुम्हारा भी हाल दलितों वाला ही करेंगे तुम काया समझते हम से बच जाओगे

S.M.Masoom said...

डॉ. अनवर जमाल साहेब आप ब्लॉग तोह बेहतरीन है और आप के ख्यालात इस्लाम को कमज़ोर नहीं करते . आपने किसी एक ब्लॉग मैं लिखा है की न जाने लूग आप की बात को नेगेटिव क्यूं लेते हैं? अआप हक पे हैं लेकिन खुद का मुकाबला उनसे केर गए जो इस बात को शान से बयां करते हैं की मज़ल्लाह अल्लाह नए हिजाब का हुक्म दे के और्तून पे ज़ुल्म किया है और अब अल्लाह की कुरान मैं सुधर की ज़रुरत है. ऐसे गुम्रहूँ की हिमायत करने की वजह से आप को भी लूग नेगतीवे ले रहे हैं.
ऐ ईमान वालो! परमेश्वर का डर (तक़वा) इख्तियार करो और हर आदमी को देखना चाहिये कि उसने आने वाले कल के लिए आगे क्या भेजा है ? और डरो परमेश्वर से निस्संदेह परमेश्वर को उन तमाम कामों की ख़बर है जो तुम करते हो । पवित्र कुरआन, 59, 18

नरेंदर मोदी said...

सच कहा नितिन दलित तो हमारी चाल बहूत दिन मे समझे उन्हें आंबेडकर और कांशीराम मायावती ने बचा लिया पर मुसलमानों तुम्हारा हाल दलितों से भी ख़राब करेंगे तुम्हारे पास तो ऐसा एक भी नेता नहीं है

merajkhan said...

nice post

Aslam Qasmi said...

अनवर जमाल ने जिस भविष्य की चिंता या फल की बात की हे वह परलोक के सम्बन्ध में हे ओर परलोक की चिंता वह न करे जिसे मरना न हो पर जिसे अपनी मोत का यकीन हे ओर वह जानता हे कि कोई शक्ति हे जो मारती ओर जिलाती हे तो उसे परलोक की चिन्ता या फल की आशा करनी ही चाहिए

Sharif Khan said...

आज के युग में जब कि भौतिकवादी विचारधारा का बोलबाला है अच्छी तरह से यह बात समझी जा सकती है कि जब कोई भी काम बे मकसद नहीं जाता तो काम करने से पहले फल के बारे में न सोचा जाना पाखंड के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है.

Jandunia said...

कुरान में बहुत अच्छी-अच्छी बातें हैं, इंसान को चाहिए कि वो अपनी जिंदगी में इनका अनुसरण करें

Mohammed Umar Kairanvi said...

गुरू जी आज तक आपकी हर तीसरी चोथी पोस्‍ट पर फखर रहा, लेकिन आजके कमेंटस के रूप में मिले फल भी काबिले फखर हैं

Ayaz ahmad said...

फल के बारे मे जानने के लिए असलम क़ासमी की किताब परलोक की समस्या पढ़े

Anonymous said...

ظَهَرَ الْفَسَادُ فِى الْبَرِّ وَالْبَحْرِ بِمَا كَسَبَتْ أَيْدِى النَّاسِ لِيُذِيقَهُمْ بَعْضَ الَّذِى عَمِلُواْ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ - قُلْ سِيرُواْ فِى الاٌّرْضِ فَانْظُرُواْ كَيْفَ كَانَ عَـقِبَةُ الَّذِينَ مِن قَبْلُ كَانَ أَكْثَرُهُمْ مُّشْرِكِينَ ]


(Rum 30-41. Evil has appeared in Al-Barr and Al-Bahr because of what the hands of men have earned, that He may make them taste a part of that which they have done, in order that they may return.) (42. Say: "Travel in the land and see what was the end of those before (you)! Most of them were idolators.'')

http://www.tafsir.com/default.asp?sid=30&tid=40445


समंदर पर तेल की विनाशलीला
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5991696.cms

Anonymous said...

unchi baat hai geeta ka sandesh . aapki samaz me nahi aayega

Anonymous said...

To action alone hast thou a right and never at all to its fruits; let not the fruits of action be thy motive; neither let there be in thee any attachment to inaction"

Anonymous said...

Agar same cheez aapke granth me likhi hoti .. to abhi tak uski aart utar rahe hote.. jaise ki interest free loan.. haina

Anonymous said...

Karmanyeva adhikaraste ma phaleshu kadachana

Karmanyeva -Certainly in what you do
adhikaraste your Authority or privilege

ma -Not
phaleshu -In results or outcome

kadachana-At any time or never


Your privilege is certainly in what you do; but, never in the outcome of what you do.


(Since you don’t have control over the Karmaphal) Do not do something only for achieving a particular Karmaphal or result; also, there should be no attachment in not doing anything (Akarman or no actvity)

zeashan haider zaidi said...
This comment has been removed by the author.
zeashan haider zaidi said...

@Anonymous
दरअसल गीता का सन्देश 'कर्म करो फल की चिंता मत करो' का मतलब ये हुआ की अच्छे कर्म के बाद अच्छे फल का पूरा विश्वास रखो, जो की परमेश्वर की तरफ से अवश्य मिलेगा. उसके लिए चिंतित होने की आवश्यकता नहीं.

सुज्ञ said...

@गोदियाल जी
इनकी फल की चिंता जायज है.यह डरते है परमेश्वर से,क्योकि यह नहीं जानते जो यह कर रहे है वह नेकी है या बदी.
संशयपूर्ण इंसान का फल के बारे में चिंता करना प्राकृतिक है. आप सही है गोदियाल जी.

Taarkeshwar Giri said...

Sriman Anwar Ji

Kuran se bahut pahle BHAGWAN SRI KRISHAN Ji ne GEETA main ye bat kahi hai ki karm karo fal ki chinta mat karo. Lekin karm aisa bhi nahi hona chahiye ki Ped to laga rahe ho babul ka aur fal chahiye aam ka.

Geeta ko padhiye ,Geeta Gyan ka bhandar hai, aur Hindustani Bhasha aur Hindustan ki sabhyata ka khajana hai.

JAI SRI KRISHAN

Aryan said...

Dr Anwar Jamal Saheb, aap itna likten hai. lekin batayiye ki kyon mujhe ye lagta hain aap hamesha kuraan aur islaam ki tarifon ke kaside hi padhna chahte hain. request hai ki aap apne blogname se ved shabd nikaal dain. ye aap ki shakshiyat ke saath mail nahin khata. Uske baad aap dil khol kar apna kaam karen

Aryan said...

Dr Anwar Jamal Saheb, aap itna likten hai. lekin batayiye ki kyon mujhe ye lagta hain aap hamesha kuraan aur islaam ki tarifon ke kaside hi padhna chahte hain. request hai ki aap apne blogname se ved shabd nikaal dain. ye aap ki shakshiyat ke saath mail nahin khata. Uske baad aap dil khol kar apna kaam karen