सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Friday, May 28, 2010

Adam's family सारी मानवजाति एक परिवार है .

सारी मानवजाति एक परिवार है . उसका पैदा करने वाला भी एक है और उसके माता पिता भी एक ही हैं . ऊंच नीच का आधार रंग नस्ल भाषा और देश नहीं बल्कि तक़वा है. जो इन्सान जितना ज्यादा ईश्वरीय अनुशासन का पाबंद है और लोकहितकारी है वो उतना ही ऊंचा है और जो इसके जितना ज़्यादा खिलाफ अमल करता है वो उतना ही ज़्यादा नीच है .

16 comments:

Saleem Khan said...

samarthan 100%%%%%%%%%%%%%%%%%%%!!!!!!!!!

Sharif Khan said...

nice post.

Haq Naqvi said...

सारी मानवजाति एक परिवार है .

honesty project democracy said...

सर्वोत्तम विचार ,कास सब समझ पाते /

honesty project democracy said...

सर्वोत्तम विचार ,कास सब समझ पाते /

सहसपुरिया said...

GOOD POST

Anonymous said...

अच्छी प्रस्तुति

Jandunia said...

आपने बहुत अच्छी बात कही है सारी मानव जाति एक परिवार है।

kamal said...

कुरान की शिक्षा सामने लाने के लिए धन्यवाद . समय की जरुरत है , आपके लिए भी और हमारे लिए भी . उत्तम विचार कहीं से भी लिया जा सकता है . पालन भी जरुरी है .

मानव said...

सारी मानवजाति एक परिवार है . उसका पैदा करने वाला भी एक है और उसके माता पिता भी एक ही हैं . ऊंच नीच का आधार रंग नस्ल भाषा और देश नहीं बल्कि तक़वा है. जो इन्सान जितना ज्यादा ईश्वरीय अनुशासन का पाबंद है और लोकहितकारी है वो उतना ही ऊंचा है और जो इसके जितना ज़्यादा खिलाफ अमल करता है वो उतना ही ज़्यादा नीच है .

Anonymous said...

manav , who are u ?

Ayaz ahmad said...

सारे मानव एक ही माँ बाप की संतान है इसलिए सभी इंसान एक दूसरे के खूनी रिश्ते भाई है

nitin tyagi said...

याहू आ गए न मानवता पर

Suresh Chiplunkar (फर्ज़ी) said...

क्यूँ रे चूतिये कैसा है? मैंने ही तेरी और सुरेश जी के नकली प्रोफाइल बनाये थे. अब बोल क्या बोलेगा. क्या उखाड़ लेगा मेरा साले. तुझ जैसे कीड़े तो मेरी झांटों में अटके रहते हैं साले एड्स के मरीज़.....

Suresh Chiplunkar (फर्ज़ी) said...

सालो तुम सब को पोटा में ऐसा गायब करूंगा, कि पप्पा पूरी कंट्री में ढूंढते फिरेंगे, सालो आस्तीनों के साँपों...

KAMDARSHEE said...

द्रोपदियों का गांव
भूख का दर्द कैसा होता है,आप में से कुछ समझेंगे कुछ नहीं!समझेगा वही जो भूख को चबाया होगा!भूख चबाना दो दिन,चार दिन तक तो संभव है,उसके आगे तो जीने की जुगत लगानी ही होगी क्यूंकि भूख जीत जाती है, तमाम सिधान्तों पर, विचारों पर और बुनियादी चीज जो नजर आती है, वो सिर्फ और सिर्फ भूख होतीहै!लद्दाख से तिब्बत तक के इलाके में ज़िन्दगी बहुत मुश्किल है!यहाँ सर्दी इन्सान तो क्या ज़मीन को सिकोड़ देती है,इस सिकुडन में रोटी की दिक्कत है,ऊपर से समतल ज़मीन का ना होना!ना घर के लिए जगह होती है ना दाना-पानी उगाने की जगह!खैर वहां के लोगो ने ऐसे में ही अनुकूलन बना लिया है!इस अनुकूलन के भी कुछ निहितार्थ हैं!दरअसल लोग यहाँ रोटी, ज़मीन और परिवार के लिए घर में एक द्रोपदी रखते हैं!कोई भी द्रोपदी हो वो मजबूरी की ही प्रतीक है!तब मां के वचन का पालन करना था पर तब वचन की विवशता थी आज ये अलग है!आज द्रोपदी किसी वचन को विवश नहीं है!ये द्रोपदी परम्परा का निर्वहन कर रही है! लद्दाख-तिब्बत पट्टी में समतल नहीं, पहाड़ है! यहाँ खेती-बाड़ी की बात तो दूर झोपड़ी डालने तक की जगह नहीं होती, ऐसे में यहाँ लोगों ने कालांतर से ही जीवन की एक नई शैली विकसित कर ली!शैली है एक परिवार के सभी भाइयों की एक पत्नी!इसका कारण ये है की अगर पत्नी एक होगी तो बंटवारे की समस्या नहीं आयेगी!चूँकि सबकी पत्नी एक तो सबके बच्चे एक, ऐसे में बंटवारे का प्रश्न नहीं आयेगा!बंटवारा तो तब होगा ना जब सबका अलग घर-परिवार होगा!अब यहाँ तो समस्त भाइयों की पत्नी एक तो बाप में फर्क कौन करे और एसा करना मुमकिन भी नहीं!ऐसे में बंटवारे का गणित खुद ब खुद दम तोड़ देता है और ज़िन्दगी पहले से ही खींचे ढर्रे पर चलती रहती है,चलती रहती है!
http://manishmasoom.blogspot.com/2010/05/blog-post_28.html