सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Tuesday, May 18, 2010
आज के मां-बाप और डाक्टर : क़ातिल या मसीहा
डाक्टर मीनाक्षी राना ने रिपोर्ट देखकर कहा कि
आपकी पत्नी के गर्भ में पल रहा शिशु जन्मजात विकृतियों का शिकार है । आपको उसे टर्मिनेट करवाना होगा ।
मेरी वालिदा साहिबा भी साथ में थीं , उन्होंने पूछा कि अगर बच्चे को पैदा होने दिया जाए तो डिलीवरी नार्मल होगी या फिर आप्रेशन करना पड़ेगा ?
डाक्टर साहिबा ने जवाब दिया - बच्चे की कमर में जो रसौली है वह अभी तो छोटी है लेकिन अगर उसका साइज़ बड़ा हो गया तो फिर आप्रेशन की नौबत भी आ सकती है । तब आप खुद को बड़ा कोसेंगी ।
मैंने पूछा - बच्चा ज़िन्दा तो है न ?
मेरे पूछने के लहजे से वह जान गईं कि मैं भी अपनी मां की तरह उनसे सहमत नहीं हूं । उन्होंने जवाब दिया - हां । देखिये , जज़्बाती मत होइये । आपके तो और भी बच्चे हैं । आप रसौली की बात भी जाने दीजिये । यह बच्चा एक बोझ है । मैं तो आपको इसे टर्मिनेट कराने की सलाह ही दूंगी । बाक़ी आपकी इच्छा । यह कहकर उस बेहतरीन पर्सनैलिटी और आला सलाहियत की मालिक उस मसीहा ने अपनी क़लम से बच्चे के लिए मां के गर्भ में ही उसकी मौत का सजेशन तहरीर कर दिया । उन्होंने फिर एक बार कोशिश करना मुनासिब समझा - और लोग अनपढ़ होते हैं , ऐसी हालत में वे उम्मीद करते हैं कि शायद जन्म के समय बच्चा सही पैदा हो जाए ?
लेकिन ऐसा नहीं होता । आप लोग एजुकेटिड हैं । आप ज़रा अक्ल से सोचिए । मैंने पहले दिल से , फिर ज़मीर से और फिर इन सबसे हटकर अक्ल से भी सोचा लेकिन हर बार जवाब यही मिला कि गर्भ में पल रहे शिशु का क़त्ल करना जायज़ नहीं है , चाहे उसमें जन्मजात विकार ही क्यों न हों और जीवन भर उनके ठीक होने की उम्मीद भी न हो ।
आप क्या सोचते हैं ?
जो जवाब मुझे मिला , क्या वह सही है ?
यासही जवाब कुछ और है ?
आप में से कौन बताएगा कि कल की संवेदनशील पोस्ट पर भी मुझे माइनस के 2 वोट क्यों मिले ? और ब्लागवाणी ने मुझे अपनी हॉटलिस्ट में लेने के लिए संकोच क्यों दिखाया ?
@अविनाश वाचस्पति जी ! आप या तो दो बोल मेरी हमदर्दी में बोलते या फिर अपाहिज भ्रूण के हक़ में अपनी जुबान खोलते लेकिन यह क्या कि आप इतनी संवेदनशील पोस्ट पर ‘ज़लज़ला‘ उठा लाए ?
ब्लॉगर्स से भरे इस आभासी संसार में हमदर्दी के दो बोल अगर मिले भी तो अपने इस्लामी भाइयों से , बाक़ी सबकी संवेदना कहां सो गई ?
एक दो जाली राष्ट्रवादी आये भी तो अपना वही पाकिस्तान का राग अलापते रहे या फिर मुझे ही झूठा कहकर अपना फ़र्ज़ पूरा समझ लिया ।
मैं सभी मोमिन भाइयों का बेहद शुक्रगुज़ार हूं
और ख़ास तौर पर ज़ीशान भाई का कि उन्होंने भारत में हिन्दी साहित्य संसार में पहली बार अपाहिज भ्रूणों के जीवन की रक्षा के हक़ में उठने वाली आवाज़ को बल दिया । मेरे दिल का हौसला और मेरे ईमान को तक़वियत दी । अभी-अभी पोस्ट लिखने के दौरान ही भाई तारकेश्वर गिरी जी से बात हुई । उनकी जानकारी में मेरे हालात पहले से ही हैं । उनसे मैंने विशेष तौर कहा कि जो भी आपको उचित लगे आप ज़रूर बतायें । देखिये कि उनकी टिप्पणी कितनी देर में प्राप्त होती है ।
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31 comments:
अनवर भाई आप माननिए संवेदनाओं से भरे हुए व्यक्ति हैं. एक बार शरीर में आत्मा के प्रवेश होने पर केवल उसी हालत में बच्चे की हत्या की इजाज़त होनी चाहिए जिसमें माँ के बचने की उम्मीद ना हो.
इसका एक सीधा सा जवाब यह है, कि अगर किसी के अपाहिज बच्चा पैदा हो जाए तो क्या वह उसकी हत्या कर सकता है? अगर नहीं कर सकता है तो इस तरह के बच्चो की हत्या करना भी बेहद अमानवीय कृत्य है.
अनवर भाई मैं आपकी भावनाओं को सलाम करता हूँ और अल्लाह से दुआ करता हूँ कि बच्चा और माँ दोनों ठीक-ठाक और स्वस्थ हो. अल्लाह ने चाह तो बच्चे की परेशानी भी ठीक हो जाएगी.आमीन!
बच्चे को आने दो और दुनिया में http://www.missionislam.com/family/rightsnewborn.htmजीने दो ।
It is also a usefull .
http://www.bbc.co.uk/religion/religions/islam/ritesrituals/birth.shtml
भाई मेरे,
जहाँ दवा बे असर हो जाती है वहाँ दुआ पुरअसर हो जाती है .........परवरदीगर की बनाई इस कायनात में किसी सी को किसी की जान लेने का हक़ नहीं है.........
बच्चा दुनिया में आये............उसकी माँ और वह दोनों स्वस्थ रहें,,,,,,,,,,,,ये दुआ आप भी करो.मैं भी करता हूँ..........
कुछ कहते नहीं बनता बस आपसे आशा है कि जो करोगे इस्लाम की रौशनी में करोगे और दूसरों के मिसाल बनोगे,
अल्लाह तुम्हें हिम्मत और हौसला दे
इस पोस्ट पर तो nice post लिखकर भी काम नही चलाया जा सकता
देश-प्रदेश के हिन्दुओं खासकर सवर्णों (हिन्दू देवी-देवताओं, हिन्दू धर्म ग्रन्थों) को बुरी तरह से अपमानित करनें का अभियान किस तरह चला रही है इसका प्रत्यक्ष नजारा देखना हो तो ‘अम्बेडकर टुडे’ पत्रिका का मई- 2010 का ताजा अंक देखिए जिसके संरक्षकों में मायावती मंत्रिमण्डल के चार-चार वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री शामिल हैं। इस पत्रिका के मई-2010 के अंक का दावा है कि- ‘हिन्दू धर्म’ मानव मूल्यों पर कलंक है, त्याज्य धर्म है, वेद- जंगली विधान है, पिशाच सिद्धान्त है, हिन्दू धर्म ग्रन्थ- धर्म शास्त्र- धर्म शास्त्र- धार्मिक आतंक है, हिन्दू धर्म व्यवस्था का जेलखाना है, रामायण- धार्मिक चिन्तन की जहरीली पोथी है, और सृष्टिकर्ता (ब्रह्या)- बेटी....(कन्यागामी) हैं तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी- दलितों का दुश्मन नम्बर-1 हैं।
http://www.visfot.com/news_never_die/3468.html
डॉ .जमाल बच्चे को कोख में मारना उतना ही हराम जितना भगवान् के अस्तीत्व को नकारना आप ने बिलकूल एक नया मुदा उठाया हे पेट में अपाहिज बच्चे को मारना कतई उचित नहीं ,या ओ बीज लगावो मत लगावो तो उसको मसोसो मत ????
डॉ. साहब जो भी हो नयी आत्माए अपना इस्थान ढूँढने के लिए आती हे ,उनकी कुछ इछाये और आकंकशाये होती हे ,याद्दी उनको रोक दिया जाये ओ सबसे बड़े पाप के भागी
अनवर साहब, मुझे खेद है कि ऊपर किसी ने मेरे नाम से टिप्पणी की है. मेरा इससे कुछ लेना देना नहीं.
हु ,,हु,, हु,, हा,, हा ,,. हा,, काजल भाई,,,,, बुरा न मनो तो एक बात कहूँ आप के नाम से जो टिपण्णी हे वः चाहे जिसने भी की हो बात सत्य हे ,ज़रा सोचो तो इस धर्म में अगड़े हें पिछड़े हें ,ओर वह आंबेडकर वाले तो शूद्र हें जब इस धर्म वालों ने हजारों साल उन्हें सर उठाने का ओसर नहीं दिया तो अब उन्हें ओसर मिला हे तो सुनों उनकी गालियाँ ,ओर सही पुचो तो यह धर्म ही था जिस ने हमें एक हज़ार साल तक गुलाम बनाए रखा ,यकीन न आए तो सुरेद्र अग्ग्यत की पुस्कक ,.बालू की भींत पर खड़ा हें हिन्दू धर्म ,, पढ़लें ,,
@MANजी लगता है आप मे मानवीय संवेदनाए अब भी बाकी है नही तो जिन संगठनो से आप जुड़े है वहाँ तो इसकी जरूरत है न अहमियत । वहाँ तो सिर्फ नफरत सिखाई जाती है लेकिन आप एक अच्छे आदमी मालूम होते है जो गलत जगह फँस गए है हम तो आपके लिए दुआ ही कर सकते है
डॉ. अयाज साहब एसी बात नहीं हे हमारे sanghtnn पब्लिक इशुज भी उठाते हे ,बाकि में सही जगह पर हूँ ,जंहा रास्ट्र भक्ती सिखाई जाती हे ,नफरत केवल देश दरोहियो से करना सिखाया जाता हे |क्या देश द्रोहियों से नफरत करना गलत हे ,क्या अफजल गुरु से प्यार करे ?उसे अपने देश का जीजा माने ?
@प्रियman जी कसाब ,गुरु, गिलानी जैसे गददारो से हम भी नफरत करते है।पर आप इस मामले मे दोहरा पैमाना रखते है अगर देशद्रोही और हजारो लोगो के कातिल पुरोहित या साध्वी हो तो आप उनसे नफरत के बजाए मोहब्बत करते है और उन स्वधर्म वाले आतंकियो का समर्थन करते हो ऐसा दोहरा पैमाना क्यो?
हम से क्या पूछ रहे है अपने मन से फैसला करे हमारे यहाँ जो होता है आपको पहले ही पता है
@नितिन त्यागी अरे भाई खुद ही बता दो तुम्हारे यहाँ क्या होता है?
भ्रूण ह्त्या के खिलाफ लोगों का दायरा अब बढ़ रहा है. डा. साहब आपके साथ काफी लोग हैं.
डॉ. अयाज ऐसे चरम पंथियों की हम निंदा करते हे(यदी वो सच मुच हे क्योकि अभी तक न्यालय ने उन्हें ऐसा घोषित नहीं किया हे ) ,,मुस्लिम चरम पंथियों का उद्देश्य समझ में आता हे लेकिन वो क्या करने जा रहे हे ? हिन्दू किसी पर आगे होके वार नहीं करता हे|
this above nitin tyagi id is fraud
He is terrorist with my name
देर से आने का लिए माफ़ी,
सभी भाई लोगो को मेरा नमस्कार, काफी दिनों से व्यस्त रहने के वजह से कुछ लिख नहीं पाया लेकिन फिर भी अनवर भाई से बातचीत जारी थी।
मेरा खुद का मानना है की , इन्सान कौन होता है किसी को जिंदगी या मौत देने वाला। अगर भगवान ने कोई चुनौती दी है , तो हमें उसे स्वीकार करनी चाहिए। लेकिन हाँ , मैं तो अनवर भाई को येही सलाह दूंगा की किसी अच्छे डॉ की सलाह जरुर ले।
दुनिया मैं, दवा जब काम करना बंद कर देती है तो उस समय दुवा काम करती है। और मैं अपने आराध्य भगवान भोले शिव से येही प्राथना करूँगा की माँ और बच्चा तो दोनों ही स्वस्थ्य रहे।
डॉ जमाल साहब,
आपके जज्बे को सलाम. लेकिन एक बात जो की मै कहना चाहूँगा कि आपका जज्बा भले ही आपको अपने होने वाले विकलांग पुत्र के सभी भविष्य में आने वाले सभी कष्टों और दुखो से निबटारा दिला दे पर आपके पुत्र का जीवन जब नरकतुल्य हो जायेगा और जिन कष्टों को वो झेलेगा तब क्या आप खुद को उस के लिए दोषी नहीं मानेंगे? जब वो ईश्वर से हर पल मौत मांगेगा, तब क्या उसे कष्ट में देखकर आप खुश हो सकेंगे ?
आप एक बुद्धीजीवी हैं और स्वयं सोचिये कि इतनी गंभीर स्थिति वाले विकलांग पुत्र को इस दुनिया में लाकर आप उस पर अत्याचार नहीं कर रहे?
आपकी बात को मैं समझता हूँ कि जब ईश्वर की मर्जी है तो फिर हम-आप कौन होते हैं, उसके विधान में हस्तक्षेप करने वाले; लेकिन डॉ साहब इस बात को भी समझना ज़रूरी है कि ये ईश्वर की ही मर्जी है कि आपको उसके जन्म से पहले ही पता चल गया कि उसके जन्म के बाद वो सामान्य नहीं रह पायेगा, जीवन उसका दोज़ख से भी बदतर हो जायेगा...ईश्वर के संकेत को समझिये और डॉ मीनाक्षी के कहे अनुसार कीजिये. मेरी तो यही सलाह है, आगे आपकी मर्जी....
@डॉ अयाज़ अहमद
"@MANजी लगता है आप मे मानवीय संवेदनाए अब भी बाकी है नही तो जिन संगठनो से आप जुड़े है वहाँ तो इसकी जरूरत है न अहमियत । वहाँ तो सिर्फ नफरत सिखाई जाती है लेकिन आप एक अच्छे आदमी मालूम होते है जो गलत जगह फँस गए है हम तो आपके लिए दुआ ही कर सकते है"
आपसे अनुरोध है कि विषय से हट कर टिप्पणी न करें, जब ये विषय उठाया जायेगा, तब ऐसी टिप्पड़ी कीजियेगा.
सभी ब्लॉगर भाइयों से अनुरोध है कि अपने राजनेतिक विचारधाराओं से uth कर दुःख कि इस घड़ी में डॉ जमाल जी का दुःख बांटें, एवं unhe saantvanaa den
ईश्वर से प्रार्थना है कि डॉ जमाल और उनके परिवार ke सभी कष्टों से ubaaren.
aameen
डॉ. जमाल आप से सब से पहले मेने इस पोस्ट पर अपना मत जाहिर कर दिया था ,उसके बाद की बात डॉ. अयाज और मेरी आपस की बात हे उसे अन्यथा ना ले .में इसके लिए आप से माफी मांगता हूँ ,डॉ. अयाज से मेरी अच्छी पट ती हे ?
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आदरणीय डॉ० अनवर जमाल साहब,
दुख हुआ जानकर कि आप को ऐसा फैसला करना पड़ा, आपने जो फैसला लिया उसका और उसके पीछे की सोच का मैं पूरा सम्मान करता हूँ।
परंतु साथ ही यह भी कहूँगा कि यदि मुझे ऐसा फैसला लेना होता तो मैं गर्भ-समापन का निर्णय लेता...वजह सीधी सी है गर्भावस्था के दौरान काफी सारी जांचें महज इसलिये कराई जाती हैं कि पता चले कि होने वाले बच्चे में कोई जन्मजात विकृति तो नहीं है... जन्मजात विकृति युक्त बच्चे को पैदा करने का फैसला लेने की आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक कीमत बहुत ज्यादा है जो उसके माता-पिता को ही चुकानी पड़ती है... मैं यह कीमत देने को तैयार नहीं और न ही इसकी आवश्यकता भी समझता हूँ... अत: ऐसी स्थिति में मैं गर्भसमापन को सही मानता ।
मैं यह भी कहूँगा कि इस मुद्दे पर मुझ से इतर राय रखने वाले किसी ऊँचे नैतिक पायदान पर खड़े हैं यह भी मैं नहीं मानता...क्योंकि भावुकता या धर्म के उपदेशों की त्रुटिपूर्ण व्याख्या के परिणाम स्वरूप लिया उनका यह फैसला बच्चे को गरिमाहीन, निरूद्देश्य व आश्रित जीवन जीने को मजबूर करता है...जबकी उस बच्चे जैसी ही स्थिति में पहुंचे बहुत से वयस्क तक Euthanasia की मांग करने लगते हैं।
आभार!
डॉ जमाल साहब,
आपके जज्बे को सलाम. लेकिन एक बात जो की मै कहना चाहूँगा कि आपका जज्बा भले ही आपको अपने होने वाले विकलांग पुत्र के सभी भविष्य में आने वाले सभी कष्टों और दुखो से निबटारा दिला दे पर आपके पुत्र का जीवन जब नरकतुल्य हो जायेगा और जिन कष्टों को वो झेलेगा तब क्या आप खुद को उस के लिए दोषी नहीं मानेंगे? जब वो ईश्वर से हर पल मौत मांगेगा, तब क्या उसे कष्ट में देखकर आप खुश हो सकेंगे ?
आप एक बुद्धीजीवी हैं और स्वयं सोचिये कि इतनी गंभीर स्थिति वाले विकलांग पुत्र को इस दुनिया में लाकर आप उस पर अत्याचार नहीं कर रहे?
आपकी बात को मैं समझता हूँ कि जब ईश्वर की मर्जी है तो फिर हम-आप कौन होते हैं, उसके विधान में हस्तक्षेप करने वाले; लेकिन डॉ साहब इस बात को भी समझना ज़रूरी है कि ये ईश्वर की ही मर्जी है कि आपको उसके जन्म से पहले ही पता चल गया कि उसके जन्म के बाद वो सामान्य नहीं रह पायेगा, जीवन उसका दोज़ख से भी बदतर हो जायेगा...ईश्वर के संकेत को समझिये और डॉ मीनाक्षी के कहे अनुसार कीजिये. मेरी तो यही सलाह है, आगे आपकी मर्जी....
यदि मुझे ऐसा फैसला लेना होता तो मैं गर्भ-समापन का निर्णय लेता...वजह सीधी सी है गर्भावस्था के दौरान काफी सारी जांचें महज इसलिये कराई जाती हैं कि पता चले कि होने वाले बच्चे में कोई जन्मजात विकृति तो नहीं है... जन्मजात विकृति युक्त बच्चे को पैदा करने का फैसला लेने की आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक कीमत बहुत ज्यादा है जो उसके माता-पिता को ही चुकानी पड़ती है... मैं यह कीमत देने को तैयार नहीं और न ही इसकी आवश्यकता भी समझता हूँ... अत: ऐसी स्थिति में मैं गर्भसमापन को सही मानता ।
मनुज एवं प्रवीण जी से पूरी तरह सहमत
प्रवीन शाह जी,
स्टीफन हाकिंस के बारे में आपका क्या विचार है?
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@ मित्र जीशान जैदी,
अब यह बात तो सही नहीं है प्रोफेसर स्टीफन हाकिंग सामान्य पैदा हुए थे अब मोटर न्यूरोन डिजीज से पीड़ित हैं बहस और पोस्ट के मुद्दे से बाहर की है यह स्थिति देखिये यहाँ पर...
@प्रवीण शाह जी,
स्टीफन हाकिंस का उदाहरण मैंने इसलिए लिया, की हो सकता है आगे कुछ ऐसी मशीनें इन्वेंट हो जाए जो गर्भ में ही बता दें की पैदा होने वाले बच्चे को आगे कौन सी बीमारी हो सकती है. और उस समय निश्चित ही मोटर न्यूरोन जैसी बीमारियों के लिए बच्चे को मारने का ही प्रिस्क्रिप्शन लिखा जाएगा. फिर तो हाकिंस और आइन्स्टीन जैसे लोग कभी पैदा ही नहीं हो पायेंगे. बीमारी और विकलांगता किसी भी उम्र में हो सकती है. और उसके बाद भी लोगों को सफलता के झंडे गाड़ते देखा गया है. कुदरत किसी से कोई चीज़ लेती है तो बदले में कुछ ऐसी योग्यताएं दे देती है जो औरों में कम या नहीं होतीं. अक्सर पूरी तरह विकलांग लोगों को केवल उनकी मानसिक योग्यता के बल पर आगे बढ़ते देखा गया है.
ये तो एक बात हुई. दूसरी ये की, हो सकता है कल मेडिकल साइंस इतनी विकसित हो जाए की आज की लाइलाज बीमारियों का कल इलाज मिल जाए. आज से पंद्रह साल पहले मेरा एक दांत डेंटिस्ट की नज़र में बेकार हो गया था. और उसे निकालने के अलावा कोई चारा नहीं था. मैंने उस समय उसे नहीं निकलवाया. अभी पिछले महीने मैंने उसका रूट कैनाल करवाया और अब वह पूरी तरह सही है.
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@ मित्र जीशान जैदी,
'हो सकता है' 'अगर-मगर' 'अक्सर' से दुनिया नहीं चलती... ऐसे मामलों मे हर आदमी अपना फैसला अपनी अपनी दिमागी, रूहानी, आर्थिक और सामाजिक हैसियत के आधार पर करता है... कोई एक फैसला नियम नहीं बन सकता... उम्मीद है आप इस बात को समझोगे... आस्था होना अच्छा है पर कटु हकीकत को नकारना अच्छा नहीं है ।
*** गंभीर Spina Bifida with Myelomeningocele के साथ पैदा हुऐ अधिकांश शिशु अपने कमर के नीचे का हिस्सा नहीं चला पाते, मल-मूत्र की निकासी पर कोई नियंत्रण नहीं होता उनका, बिस्तर पर पड़े-पड़े Bed Sores हो जाते हैं ... और भारतीय परिस्थितियों व संसाधनों मे वे लंबा जीवन न जी कर १-२ साल में ही काल-कवलित हो जाते हैं, यह हकीकत है।
*** दाँतों के Root Canal Treatment में आपके दाँत की सारी Blood supply देती Arteries व Veins तथा संवेदना देती Nerves बर्में की तरह के औजार की मदद से निकाल दी जाती हैं, अब आपका दाँत एक मृत अंग है कुछ ही सालों में निकालना ही पड़ेगा इसको...:)
मैं अलबेला खत्री जी का आभारी हूं कि उन्होंने मुझे बिल्कुल सही मश्विरा दिया और मैं सुबह के पुरसुकून लम्हों में अपने मालिक से प्रार्थना कर रहा हूं और अभी मुझे ध्यान आया कि मुझे अपने ब्लॉग पर पधारने वाले भाइयों के लिए भी उन्हीं लम्हों में सच्चे मालिक से अरदास करनी चाहिए । कल सुबह से मैं यह भी शुरू कर दूंगा । सबके लिए , चाहे वह मुझ पर स्नेह लुटाने वाले अलबेला जी हों या फिर मेरे विचारों से असहमत कृष्ना जी , मान जी और मनुज जी आदि हों ।
आखि़र सभी मेरे भाई हैं । उनकी असहमति या विरोध का मतलब यह नहीं है कि वे मेरे दुश्मन हैं या वे मानवीय संवेदना से ख़ाली पत्थर मात्र हैं ।
मनुज जी ने एक बार परम आर्य जी को उनकी सख्तकलामी पर टोका था और पिछली पोस्ट पर उन्होंने मान जी को टोका । इससे उनके उदारमना होने का पता चलता है और मुझे मान जी का अपनाइयत भरा जवाब भी अच्छा लगा । अगर दिल में नफ़रत और लहजे में तल्ख़ी न हो तो आपसी संवाद हमारे दिल के गुबार को कम कर देता है ।
जिन लोगों ने मुझे डाक्टर मीनाक्षी राना की सलाह मान लेने का सुझाव दिया मैंने उनकी हमदर्दी को भी महसूस करके खुद को काफ़ी कुछ हल्का पाया । प्रिय प्रवीण जी तो मात्र भौतिक और लौकिक हानि-लाभ के आधार पर सोचने वाले आदमी हैं । उनके सुझाव से असहमत होने के बावजूद मैं उनसे कुछ कहने की स्थिति में खुद को फ़िलहाल नहीं पाता लेकिन मेरे जो वैदिक और पौराणिक भाई आध्यात्मिक मूल्यों में विश्वास रखते हैं मैं उनसे ज़रूर जानना चाहूंगा कि उनके सुझाव का आधार भारतीय सांस्कृतिक मूल्य हैं या उन्होंने पश्चिम के कोरे बुद्धिवाद की चपेट में आकर ऐसा कह डाला ?अगर बच्चे को भविष्य के संभावित कष्टों से बचाने का तरीक़ा उन्हें मार देना ही है तो फिर वे मां-बाप क्यों निन्दा के पात्र ठहरते हैं जो ग़रीबी से तंग आकर अपने बच्चों को भविष्य के कष्टों से बचाने की ख़ातिर पहले उनकी हत्या करते हैं और फिर खुद भी आत्महत्या कर लेते हैं ?
और फिर कष्ट मात्र अपाहिज लोग ही नहीं भोगते । समाज का कौन सा आदमी ऐसा है जो आज कष्ट नहीं भोग रहा है ?
क्या समाज के हरेक आदमी को कष्टों से मुक्ति के लिए अपनी जान दे देनी चाहिए ?
हरेक बच्चा अपने जीवन में अनगिनत कष्ट भोगता है और अन्ततः मर जाता है । जब अन्त मौत ही है तो फिर इतना कष्ट क्यों उठाया जाए ?
क्या यह बेहतर न होगा कि हरेक मां-बाप अपने बच्चों को पैदा होते ही मार दिया करें ताकि वे जीवन में पेश आने वाले कष्टों को भोगने से बच जाएं ?
कोई बाल यौन शोषण का शिकार होता है तो कोई लड़की बलात्कार या प्रेमी की बेवफ़ाई का दुख उठाती है । प्रायः लड़के-लड़कियों को उनके सपनों का जीवनसाथी नहीं मिल पाता और वे अपना मन मारकर बस किसी तरह निबाह करती रहती हैं । वे मां बनती हैं तो भी भयंकर वेदना उठानी पड़ती है और फिर बच्चों को पालना ही अपने आप में एक कष्टप्रद साधना है । इनसान का तो जीवन ही कष्ट से भरपूर है । वह कष्ट से बच नहीं सकता । दरअस्ल हमें यह भी समझना पड़ेगा कि कष्ट हमारे जीवन में रखे क्यों गये हैं ?
क्या कष्ट हमारे लिए यातना मात्र हैं या इनसे मानवीय चरित्र और सभ्यता के निर्माण में कोई मदद भी मिलती है ?
आपके बेहतर विचारों का सदा स्वागत है । काजल जी के नाम से जिन भी सज्जन ने टिप्पणी की है , उनकी तरफ़ से मैं काजल जी से क्षमा चाहता हूं । लेकिन उनसे यह भी कहना चाहूंगा कि उन्हें प्रस्तुत पोस्ट पर अपने विचार व्यक्त करने चाहियें थे ।
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