सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
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Tuesday, July 20, 2010
Resolution of rights 'भड़ास ब्रिगेड' को बताना चाहिये कि ‘वाजिब हक़‘ क्या है यह कौन तय करेगा ? With महक जी! सत्य गौतमएक जाल है जिसमें आप फंसते जा रहे हैं।- Anwer Jamal
A
लेकिन मुझे यह देखकर ताज्जुब हुआ कि वे मेरे कमेंट पर कुछ नहीं बोले। उनके एतराज़ के जवाब में मैंन,टैग के बारे में, अपनी सोच और योजना भी बताई, यह पोस्ट चिठ्ठाजगत की हॉटलिस्ट में भी रही लेकिन जनाब मोहतरम शम्स साहब ने मेरे ब्लाग पर आकर कमेंट करना मुनासिब न समझा।
ये साहब मुझे सुझा रहे हैं कि मैं माओवाद पर कुछ लिखूं और फिर खुद ही कह रहे हैं कि मैं उन्हें भी इस्लाम कुबूल करने का निमंत्रण दूंगा।
मैं दूंगा नहीं बल्कि दे भी चुका हूं। नक्सलवाद की समस्या पर मेरे कई लेख हैं। आपको उन्हें पढ़ लेना चाहिये था।
दुनिया में जंग किस बात की है ?
आमतौर पर जो ताक़तवर है वह साधनों पर इस तरह क़ाबिज़ हो गया है कि वह कमज़ोरों को उनका उचित हक़ भी नहीं देना चाहता।
जो कमज़ोर हैं वे अपना हक़ मांगते हैं । जब मांगने से उन्हें अपना हक़ नहीं मिलता तो वे छीनने पर आमादा हो जाते हैं।
दोनों ग्रुप्स में टकराव होता है जो ज़्यादा संगठित और योजनाबद्ध होता है वह जीत जाता है जैसे कि रूस में जनता जीत गई और चीन में जनता हार रही है।
कभी ऐसा भी होता है कि शासक वर्ग की नीतियों से कुछ गुट संतुष्ट नहीं होते, वह और ज़्यादा मांगते हैं। शासक वर्ग उन्हें और देता है तो मांगने वाले अपनी मांग और भी ज़्यादा बढ़ा देते हैं।
इसी तरह इतिहास में टकराव हुआ और आज भी हो रहा है। कहीं इसका नाम माओवाद है और कहीं राष्ट्रवाद। कहीं इसका नाम नक्सलवाद है और कहीं इसे इस्लामी आतंकवाद कहा जाता है।
हल केवल माओवाद का ही क्यों ढूंढा जाये ?
हल तो हरेक वाद और हरेक विवाद का ढूंढा जाना चाहिये।
'भड़ास बिग्रेड' को बताना चाहिये कि वह कौन सी तकनीक या विधि है जिसकी वजह से
- शासक वर्ग लोगों को उनका वाजिब हक़ अदा करने के लिये खुद को बाध्य महसूस करे?
- और जनता जो मिले उस पर संतुष्ट हो जाये, फ़ालतू आंदोलन करके बवंडर खड़ा न करे ?
- और सबसे बड़ी बात यह कि ‘वाजिब हक़‘ क्या है यह कौन तय करेगा ?
- शासक या जनता ?
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B
महक जी! आपके दो में से एक गुरूतुल्य ब्लागर ने आपको इशारा किया है लेकिन आप नहीं समझे। उत्तेजना में विचार शक्ति क्षीण हो जाती है और सत्य गौतम जी यही चाहते हैं।
यह एक जाल है जिसमें आप फंसते जा रहे हैं। यह सत्य गौतम जी जो भी हैं मेरे ब्लॉग पर भी कई बार अपनी पोस्ट के अंश पब्लिसिटी की ग़र्ज़ से डाल चुके हैं। मैं चुप रहा क्योंकि आप जानते हैं कि इन दिनों कुछ घरेलू मसरूफ़ियत ज़्यादा चल रही है और मैं इनके कुछ स्टेटमेंट भी देखना चाहता था क्योंकि इनसान के अल्फ़ाज़ उसकी सोच का आईना होते हैं। इनकी ज़्यादातर पोस्ट तो चंदे की हैं। हालांकि उनसे भी इनके सोचने की दिशा और दशा का पता चल जाता है लेकिन आदमी पकड़ा जाता है अपने बयान पर।
आप अपनी ताक़त बचायें और ‘ब्लॉग संसद‘ पर ध्यान दें। अपने मंतव्य से ध्यान हटाना ठीक नहीं है। इन्हें जवाब मैं दूंगा लेकिन थोड़ा ठहर कर। जिन लोगों को हिन्दू भाई देवी देवता मानते हैं मैं उन्हें तक़दीर का बनाने बिगाड़ने वाला तो नहीं मानता लेकिन उनमें से जो ऐतिहासिक या इतिहास पूर्व के धर्मनिष्ठ लोग हैं उनको मैं अपना पूर्वज मानकर आदर देता हूं। अगर कोई किसी कवि के अलंकारों या क्षेपक के कारण उनके चरित्र पर उंगली उठाता है तो उसकी आपत्ति का निराकरण करना मेरा फ़र्ज़ है। श्री रामचन्द्र जी और सीता जी भी उन्हीं में से हैं। आप मुझे आदर से पुकारते हैं सो सही सलाह आपको देना ज़रूरी समझा। इस टिप्पणी में भी अभी मैंने सत्य गौतम जी को कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा लेकिन मैं न तो भूलता हूं और न ही भूलने देता हूं।
महक जी! आपके दो में से एक गुरूतुल्य ब्लागर ने आपको इशारा किया है लेकिन आप नहीं समझे। उत्तेजना में विचार शक्ति क्षीण हो जाती है और सत्य गौतम जी यही चाहते हैं।
यह एक जाल है जिसमें आप फंसते जा रहे हैं। यह सत्य गौतम जी जो भी हैं मेरे ब्लॉग पर भी कई बार अपनी पोस्ट के अंश पब्लिसिटी की ग़र्ज़ से डाल चुके हैं। मैं चुप रहा क्योंकि आप जानते हैं कि इन दिनों कुछ घरेलू मसरूफ़ियत ज़्यादा चल रही है और मैं इनके कुछ स्टेटमेंट भी देखना चाहता था क्योंकि इनसान के अल्फ़ाज़ उसकी सोच का आईना होते हैं। इनकी ज़्यादातर पोस्ट तो चंदे की हैं। हालांकि उनसे भी इनके सोचने की दिशा और दशा का पता चल जाता है लेकिन आदमी पकड़ा जाता है अपने बयान पर।
आप अपनी ताक़त बचायें और ‘ब्लॉग संसद‘ पर ध्यान दें। अपने मंतव्य से ध्यान हटाना ठीक नहीं है। इन्हें जवाब मैं दूंगा लेकिन थोड़ा ठहर कर। जिन लोगों को हिन्दू भाई देवी देवता मानते हैं मैं उन्हें तक़दीर का बनाने बिगाड़ने वाला तो नहीं मानता लेकिन उनमें से जो ऐतिहासिक या इतिहास पूर्व के धर्मनिष्ठ लोग हैं उनको मैं अपना पूर्वज मानकर आदर देता हूं। अगर कोई किसी कवि के अलंकारों या क्षेपक के कारण उनके चरित्र पर उंगली उठाता है तो उसकी आपत्ति का निराकरण करना मेरा फ़र्ज़ है। श्री रामचन्द्र जी और सीता जी भी उन्हीं में से हैं। आप मुझे आदर से पुकारते हैं सो सही सलाह आपको देना ज़रूरी समझा। इस टिप्पणी में भी अभी मैंने सत्य गौतम जी को कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा लेकिन मैं न तो भूलता हूं और न ही भूलने देता हूं।
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