सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
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Friday, July 9, 2010
The existence of God प्रकृति के किसी भी तत्व में ‘माइंड‘ नहीं पाया जाता, फिर प्रकृति में योजना और संतुलन कैसे पाया जाता है ? - Anwer Jamal
और वे कहते हैं कि हमारी इस दुनिया की ज़िंदगी के सिवा कोई और ज़िंदगी नहीं-हम मरते हैं और जीते हैं और हमें सिर्फ़ कालचक्र नष्ट करता है।और उन्हें इस विषय में कोई ज्ञान नहीं है , वे केवल कल्पना के आधार पर ऐसा कहते हैं । -अलजासिया,24
तज़्कीरूल-कुरआन, उर्दू से हिन्दी अनुवाद
हमेशा चीज़ें ज़ाहिर होती हैं और हक़ीक़त पोशीदा, गुप्त और रहस्य। घटनाएं दिखाई देती हैं और नियम उनके आवरण में छिपे होते हैं।
अक्सर लोगों की नज़र चीज़ों और घटनाओं के ज़ाहिर पर ही ठिठक जाती है। बहुत कम लोग होते हैं जिनकी अक्ल-ओ-निगाह उनमें काम कर रहे नियमों और उनमें छिपी हक़ीक़तों तक पहुंचती है।
सेब का पेड़ से गिरना एक घटना है जिसे अरबों-खरबों इनसान हज़ारों साल से देखते चले आए हैं। न्यूटन ने भी यह घटना देखी और उसकी अक्ल-ओ-निगाह गुरूत्वाकर्षण के उस नियम तक पहुंच गई जिसके तहत यह घटना घटित होती है। यह नियम तो उस समय भी मौजूद था जब लोग उसे दरयाफ़्त नहीं कर पाए।
बुलन्द हक़ीक़तों तक बहुत कम अक्लें पहुंच पाती हैं।
सबसे ज़्यादा बुलन्द हक़ीक़त ईश्वर है। वह परम सत्य है।
प्रकृति प्रकट है और ईश्वर रहस्य। कुदरत नज़र के सामने है और कुदरत वाला नज़र की पहुंच से परे।
जो ईश्वर को नहीं मानता, कुदरत को तो वह भी मानता है।
प्रकृति के किसी भी तत्व में ‘माइंड‘ नहीं पाया जाता, फिर प्रकृति में योजना और संतुलन कैसे पाया जाता है ?
नियम और व्यवस्था की मौजूदगी खुद बता रही है कि प्रकृति के अलावा कोई ‘हस्ती‘ है जो व्यवस्थापक है, जिसकी बुद्धि और शक्ति अतुलनीय है। जगत की प्रोग्रैमिंग इसी ‘हस्ती‘ ने की है। इस परम सत्य तक बहुत कम लोगों की पहुंच हो सकी है। ज़्यादातर लोग उसका नाम लेने के बावजूद अपने आचरण से यही साबित कर रहे हैं कि जैसे वे किसी ‘स्वामी‘ के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। जब यही लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ईश्वर के नाम की आड़ लेकर शोषण करते हैं तो इनके दुराचरण से घिन करने वालों को ईश्वर के वुजूद में भी शक होने लगता है। लेकिन यह भी केवल घटनाओं के ज़ाहिर पर ही ठिठक जाना हुआ।
हक़ीक़त हमेशा गहरी होती है और उस तक गहरी नज़र वाले ही पहुंच पाते हैं। इन्हीं को तत्वदर्शी और आरिफ़ कहा जाता है। जो ज़ाहिर से आगे नहीं बढ़ना चाहते, हक़ीक़त कभी उनके हाथ नहीं आती और जिन्हें हक़ीक़त से कम मंज़ूर नहीं है वे कभी महरूम नहीं रहते।
मिलियन डॉलर क्वेश्चन यह है कि
आप खुद को टटोलें कि आपको क्या चाहिए ?
सिर्फ़ ज़ाहिर या कि हक़ीक़त ?
तज़्कीरूल-कुरआन, उर्दू से हिन्दी अनुवाद
हमेशा चीज़ें ज़ाहिर होती हैं और हक़ीक़त पोशीदा, गुप्त और रहस्य। घटनाएं दिखाई देती हैं और नियम उनके आवरण में छिपे होते हैं।
अक्सर लोगों की नज़र चीज़ों और घटनाओं के ज़ाहिर पर ही ठिठक जाती है। बहुत कम लोग होते हैं जिनकी अक्ल-ओ-निगाह उनमें काम कर रहे नियमों और उनमें छिपी हक़ीक़तों तक पहुंचती है।
सेब का पेड़ से गिरना एक घटना है जिसे अरबों-खरबों इनसान हज़ारों साल से देखते चले आए हैं। न्यूटन ने भी यह घटना देखी और उसकी अक्ल-ओ-निगाह गुरूत्वाकर्षण के उस नियम तक पहुंच गई जिसके तहत यह घटना घटित होती है। यह नियम तो उस समय भी मौजूद था जब लोग उसे दरयाफ़्त नहीं कर पाए।
बुलन्द हक़ीक़तों तक बहुत कम अक्लें पहुंच पाती हैं।
सबसे ज़्यादा बुलन्द हक़ीक़त ईश्वर है। वह परम सत्य है।
प्रकृति प्रकट है और ईश्वर रहस्य। कुदरत नज़र के सामने है और कुदरत वाला नज़र की पहुंच से परे।
जो ईश्वर को नहीं मानता, कुदरत को तो वह भी मानता है।
प्रकृति के किसी भी तत्व में ‘माइंड‘ नहीं पाया जाता, फिर प्रकृति में योजना और संतुलन कैसे पाया जाता है ?
नियम और व्यवस्था की मौजूदगी खुद बता रही है कि प्रकृति के अलावा कोई ‘हस्ती‘ है जो व्यवस्थापक है, जिसकी बुद्धि और शक्ति अतुलनीय है। जगत की प्रोग्रैमिंग इसी ‘हस्ती‘ ने की है। इस परम सत्य तक बहुत कम लोगों की पहुंच हो सकी है। ज़्यादातर लोग उसका नाम लेने के बावजूद अपने आचरण से यही साबित कर रहे हैं कि जैसे वे किसी ‘स्वामी‘ के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। जब यही लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ईश्वर के नाम की आड़ लेकर शोषण करते हैं तो इनके दुराचरण से घिन करने वालों को ईश्वर के वुजूद में भी शक होने लगता है। लेकिन यह भी केवल घटनाओं के ज़ाहिर पर ही ठिठक जाना हुआ।
हक़ीक़त हमेशा गहरी होती है और उस तक गहरी नज़र वाले ही पहुंच पाते हैं। इन्हीं को तत्वदर्शी और आरिफ़ कहा जाता है। जो ज़ाहिर से आगे नहीं बढ़ना चाहते, हक़ीक़त कभी उनके हाथ नहीं आती और जिन्हें हक़ीक़त से कम मंज़ूर नहीं है वे कभी महरूम नहीं रहते।
मिलियन डॉलर क्वेश्चन यह है कि
आप खुद को टटोलें कि आपको क्या चाहिए ?
सिर्फ़ ज़ाहिर या कि हक़ीक़त ?
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