सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
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Saturday, March 27, 2010
ताकि हरेक जान ले कि सच्चा मुसलमान कैसा होता है ? Submission to Allah, The real God .

बहन फ़िरदौस जी ,
विचारोत्तेजक लेख के लिए बधाई ।
मैं आपसे बिल्कुल सहमत हूं कि इनसान के कल्याण के लिए इसलाम काफ़ी है
मुसलमानों को आरक्षण के चक्कर में पड़ने के बजाए इसलाम को मज़बूती से थामना चाहिये ।
असल बात यह है कि हिन्दुस्तान में लोग वर्णवाद से घबराकर मुसलमान तो हो गये लेकिन जाति पांति का भेदभाव उनके अन्दर इतनी गहराई तक घुस चुका था कि इसलाम कुबूल करने बाद भी वह पूरी तरह न जा सका ।
इसलाम के अन्दर ज़कात का निज़ाम है ।
अगर सभी साहिबे निसाब मुसलमान वाजिब ज़कात अदा करें तो मुसलमानों के साथ साथ हिन्दुओं की भी ग़रीबी दूर हो जायेगी । तब न गुरबत होगी और न बग़ावत होगी । आज मुल्क में नक्सलवाद तबाही मचा रहा है । हां , मानता हूं कि इसके पीछे भुखमरी की शिकार जनता है और इसके लिए पूंजी का असमान वितरण है । इसके पीछे मधु कोड़ा जैसे बेईमान नेता और अफ़सर हैं ।
इसके पीछे ये हैं और इसके पीछे वे हैं ।
क्या किसी चीज़ के पीछे हम भी हैं ?
क्या कभी हमने यह जानने का प्रयास किया ?
सकता है कि इस दुनिया के क़ानून में नक्सलवाद के पीछे मुसलमान ज़िम्मेदार न माना जाये लेकिन दुनिया सिर्फ़ यही तो नहीं है । यह तो अमल की दुनिया है , एक रोज़ अन्जाम की दुनिया भी तो ज़ाहिर होगी । एक दिन वह भी तो आना है जब सारे हाकिमों को हुकूमत अता करने वाला खुद को ज़ाहिर करेगगा । तब वह हरेक हाकिम से हिसाब लेगा ।
मरती सिसकती दुनिया को उसने जीने की राह दिखाई थी , अपना ज्ञान भेजकर ।
उसके ज्ञान को कितना फैलाया ?तब वह हिसाब लेगा ।हिसाब तो वह आज भी ले रहा है और पापियों को सज़ा भी दे रहा है लेकिन अभी सज़ा के साथ सुधरने की मोहलत और ढील भी दे रहा है । ढील देखकर लोग अपने ज़ुल्म में और बढ़े जा रहे हैं ।सोच रहे हैं कि इस दुनिया का कोई रखवाला न कभी था और न ही आज है । कर लो जो करना है ।
बड़े पेट भरे पापियों की नास्तिकता और अमीरी देखकर छोटे लोगों के दिल से भी पाप और उसके बुरे अन्जाम का डर निकलता जा रहा है ।
ज़मीन पर खुदा का पैग़ाम , पवित्र कुरआन मौजूद हो लेकिन अहले ज़मीन की अक्सरियत उससे नावाक़िफ़ हो ।
इसलाम का अर्थ ही सलामती हो और लोग इसलाम से ही ख़तरा महसूस कर रहे हों ।
इसलाम फ़िरक़ेबन्दी के ख़ात्मे के लिए भेजा गया हो और खुद इसलाम में ही फ़िरक़े बनाकर रख दिये गये हों ।क्या इन सबका ज़िम्मेदार भी मुसलमान नहीं है ।बाबरी मस्जिद ढहाने वाले कुछ जोशीले हिन्दू जत्थे तो सबको नज़र आते हैं लेकिन उन्हें भड़काकर इस मक़ाम पहुंचाने वाले आज़म ख़ां जैसे कमअक्ल और ख़ुदग़र्ज़ लीडर्स उनसे कहीं ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं । और सिर्फ़ लीडर्स पर ही ज़िम्मेदारी डालकर हम बच नहीं सकते ।
हम मुसलमानों का , खुद का अपना हाल क्या है?
कितने परसेन्ट मुसलमान मस्जिदों में जाते हैं ?
जो जाते हैं उनमें से कितने लोग कुरआन पाक को समझने और उस पर अमल करने का प्रयास करते हैं ?
कितने लोग हैं जो अपनी बीवियों को महर की अदायगी निकाह के वक्त करते हैं ?
कितने लोग हैं जो अपनी जायदाद में अपनी बेटियों को भी उनका हक़ उनका हिस्सा देते हैं ?
कुरआन अमल के लिए है । कुरआन सबसे बड़े हाकिम का फ़रमान है ।
इसकी नाफ़रमानी दण्डनीय है । हम नाफ़रमानी कर रहे हैं और लगातार किये जा रहे हैं ।
हम पर मालिक की सज़ा पड़ रही है और हमारी वजह से दूसरे भी कष्ट भोग रहे हैं ।
ऐ मुसलमान अपने गिरेबां में झांक ।
अपने जुर्मों की तावील न कर , बहाने न बना । वक्त रहते सुधर जा । इसलाम हर समस्या का समाधान है । आज यह एक किताबी बात बनकर रह गयी है । इसे करके दिखा । लोग आज समस्याओं से ही तो दुखी हैं । उन्हें समाधान ही तो चाहिये । अगर वाक़ई इसलाम सच्चा पक्का समाधान है तो फिर कौन उसका इनकार करके घाटा उठाना चाहेगा , सिवाए नादान के ?किसी भी समाज की तबाही उसकी अपनी अन्दरूनी कमज़ोरी के कारण होती है और जब तक उनको दूर न किया जाये तब भला नहीं हुआ करता । विरोधी तो केवल षड्यंत्र कर सकता है लेकिन उसे हरगिज़ कामयाबी नहीं मिल सकती अगर खुद के अन्दर कमज़ोरी न हो । लीडर अपने अन्जाम से डरें और अवाम भी खुद को संभाले ।खुदा इनसान को दो ही फ़िर्क़ां में बांटकर देखता है ।
भला और बुरा ।
देखिये कि आप खुद को किस वर्ग में पाते हैं ?
यहां एक बात और ध्यान देने के लायक़ है कि क्या हम सच्चे मुसलमान हैं ?
सही बात तो यह है कि कौन सच्चा है और कौन पाखण्डी ?
इस बात का हक़ीक़ी फ़ैसला तो इनसाफ़ के दिन मालिक खुद करेगा ।लेकिन एक बात जो हम कह सकते हैं वह यह है कि अगर हम सच्चे दिल से इसलाम की सच्चाई का यक़ीन रखते हैं तो हम सच्चे मुसलमान हैं ।लेकिन यहां आकर ही हमारा काम पूरा नहीं हो जाता बल्कि यहां से हमारा काम आरम्भ होता है ।
इसलाम का अर्थ है एक अल्लाह के प्रति पूर्ण समर्पण ।
यहां हर आदमी का स्तर अलग अलग है । समर्पण की प्रक्रिया एक दिन में सम्पन्न होने वाली चीज़ नहीं है बल्कि यह जीवन भर चलने वाला अमल है । जो दिल से इसलाम को सच्चा मानते हैं उनकी मान्यता का असर उनके जीवन में भी झलकना लाज़िमी भी है और झलकता भी है ।
पुराने लोग मरते रहते हैं और नये पैदा होते रहते हैं इस तरह यह जीवन भी चलता रहता है और इसलाम में ढलने चलने की प्रक्रिया भी ।सुधार की इब्तदा होती है नमाज़ से
मुसलमान को चाहिये कि अपनी सारी जि़न्दगी को ही नमाज़ बना दे ।
अपने आपको खुदा के सामने पूरी तरह झुका दे ताकि हरेक जान ले कि सच्चा मुसलमान कैसा होता है ?
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