सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Tuesday, February 9, 2010
‘बिस्मिल्लाह’ का चमत्कार
बिस्मिल्लाह के अक्षरों में छिपा रहस्य
पवित्र कुरआन का आरम्भ जिस आयत से होता है वह खुद इतना बड़ा गणितीय चमत्कार अपने अन्दर समाये हुए है जिसे देखकर हरेक आदमी जान सकता है कि ऐसी वाणी बना लेना किसी मुनष्य के बस का काम नहीं है। एकल संख्याओं में 1 सबसे छोटा अंक है तो 9 सबसे बड़ा अंक है और इन दोनों से मिलकर बना 19 का अंक जो किसी भी संख्या से विभाजित नहीं होता।
पवित्र कुरआन का आरम्भ ‘बिस्मिल्लाहिर-रहमानिर रहीम’ से होता है। इसमें कुल 19 अक्षर हैं। इसमें चार शब्द ‘इस्म’(नाम), अल्लाह,अलरहमान व अलरहीम मौजूद हैं। परमेश्वर के इन पवित्र नामों को पूरे कुरआन में गिना जाये तो इनकी संख्या इस प्रकार है-
इस्म-19,
अल्लाह- 2698,
अलरहमान -57,
अलरहीम -114
अब अगर इन नामों की हरेक संख्या को ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम’ के अक्षरों की संख्या 19 से भाग दिया जाये तो हरेक संख्या 19, 2698, 57 व 114 पूरी विभाजित होती है कुछ शेष नहीं बचता।
है न पवित्र कुरआन का अद्भुत गणितीय चमत्कार-
# 19 ÷ 19 =1 शेष = 0
# 2698 ÷ 19 = 142 शेष = 0
# 57 ÷ 19 = 3 शेष = 0
# 114 ÷ 19 = 6 शेष = 0
पवित्र कुरआन में कुल 114 सूरतें हैं यह संख्या भी 19 से पूर्ण विभाजित है।
पवित्र कुरआन की 113 सूरतों के शुरू में ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्ररहीम’ मौजूद है, लेकिन सूरा-ए-तौबा के शुरू में नहीं है। जबकि सूरा-ए-नम्ल में एक जगह सूरः के अन्दर, 30वीं आयत में बिस्मिल्लाहिर्रमानिर्रहीम आती है। इस तरह खुद ‘बिस्मिल्ला- हर्रहमानिर्रहीम’ की संख्या भी पूरे कुरआन में 114 ही बनी रहती है जो कि 19 से पूर्ण विभाजित है। अगर हरेक सूरत की तरह सूरा-ए-तौबा भी ‘बिस्मिल्लाह’ से शुरू होती तो ‘बिस्मिल्लाह’ की संख्या पूरे कुरआन में 115 बार हो जाती और तब 19 से भाग देने पर शेष 1 बचता।
क्या यह सब एक मनुष्य के लिए सम्भव है कि वह विषय को भी सार्थकता से बयान करे और अलग-अलग सैंकड़ों जगह आ रहे शब्दों की गिनती और सन्तुलन को भी बनाये रखे, जबकि यह गिनती हजारों से भी ऊपर पहुँच रही हो?
पहली प्रकाशना में 19 का चमत्कार
पवित्र कुरआन का एक और चमत्कार देखिये-
अन्तिम सन्देष्टा हज़रत मुहम्मद (स.) के अन्तःकरण पर परमेश्वर की ओर से सबसे पहली प्रकाशना (वह्या) में ‘सूरा-ए-अलक़’ की पहली पांच आयतें अवतरित हुईं। इसमें भी 19 शब्द और 76 अक्षर हैं।
76÷19=4 यह संख्या भी पूरी तरह विभाजित है। इस सूरत की आयतों की संख्या भी 19 है।
कुरआन शरीफ़ की कुल 114 सूरतों में यह 96 वें नम्बर पर स्थित है। यदि पीछे से गिना जाये तो यह ठीक 19वें नम्बर पर मिलेगी क्या यह एक कुशल गणितज्ञ की योजना का प्रमाण नहीं है?
कुल संख्याओं का योग और विभाजन
पवित्र कुरआन की आयातों में कुछ संख्याएं आयी हैं। उदाहरणार्थ-
कह दीजिए,“ वह अल्लाह एक है” (कुरआन 112:1)
और वे अपनी गुफा में तीन सौ साल और नौ साल ज़्यादा रहे। (कुरआन 18:25)
इन सारी संख्याओं को इकटठा किया जाए तो वे इस प्रकार होंगी- 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12, 19,20, 30, 40, 50, 60, 70, 80, 99, 100, 200, 300, 1,000, 2,000, 3,000, 5,000, 50,000, 100,000
इन सारी संख्याओं का कुल योग है 16,21,46
यह योग भी 19 से पूरी तरह विभाजित है 162146÷19=8534
क्या अब भी कोई आदमी कह सकता है कि यह कुरआन तो मुहम्मद साहब की रचना है? ध्यान रहे कि उन्हें ईश्वर ने ‘अनपढ़’ (उम्मी) रखा था।
क्या आज का कोई भी पढ़ा लिखा आदमी पवित्र कुरआन जैसा ग्रन्थ बना सकता है।?
क्या अब भी शक-शुबहे और इनकार की कोई गंन्जाइश बाक़ी बचती है?
नर्क पर भी नियुक्त हैं 19 रखवाले
पवित्र कुरआन के इस गणितीय चमत्कार को देखकर आस्तिकों का ईमान बढ़ता है और आचरण सुधरता है जबकि अपने निहित स्वार्थ और अहंकार के वशीभूत होकर जो लोग पवित्र कुरआन को ईश्वरकृत नहीं मानते और उसके बताये मार्ग को ग्रहण नहीं करते। वे मार्ग से भटककर दुनिया में भी कष्ट भोगते हैं और मरने के बाद भी आग के गडढ़े में जा गिरेंगे। उस आग पर नियुक्त देवदूतों की संख्या भी 19 ही होगी।
19 की संख्या विश्वास बढ़ाने का ज़रिया
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है-
फिर उसने (कुरआन को) देखा। फिर (घृणा से) मुँह मोड़ा और फिर अहंकार किया। फिर बोला,“ यह एक जादू है जो पहले से चला आ रहा है, यह मनुष्य का वचन (वाणी है)”
‘मैं, शीघ्र ही उसे ‘सक़र’ (नर्क) में झोंक दूँगा, और तुम्हें क्या मालूम कि सक़र क्या है?
वह न बाक़ी रखेगी, और न छोड़ेगी। वह शरीर को बिगाड़ देने वाली है। उस पर 19 (देवदूत) नियुक्त हैं। और ‘हमने’ उस अग्नि के रखवाले केवल देवदूत (फरिश्ते) बनाए हैं, और ‘हमने’ उनकी संख्या को इनकार करने वालों के लिए मुसीबत और आज़माइश बनाकर रखा है। ताकि पूर्व ग्रन्थ वालों को (कुरआन की सत्यता का) विश्वास हो जाए और आस्तिक किसी शक में न पडें। (पवित्र कुरआन 29:21:31)
मनुष्य का मार्ग और धर्म
पालनहार प्रभु ने मनुष्य की रचना दुख भोगने के लिए नहीं की है। दुख तो मनुष्य तब भोगता है जब वह ‘मार्ग’ से विचलित हो जाता है। मार्ग पर चलना ही मनुष्य का कत्र्तव्य और धर्म है। मार्ग से हटना अज्ञान और अधर्म है जो सारे दूखों का मूल है।
पालनहार प्रभु ने अपनी दया से मनुष्य की रचना की उसे ‘मार्ग’ दिखाया ताकि वह निरन्तर ज्ञान के द्वारा विकास और आनन्द के सोपान तय करता हुआ उस पद को प्राप्त कर ले जहाँ रोग,शोक, भय और मृत्यु की परछाइयाँ तक उसे न छू सकें। मार्ग सरल है, धर्म स्वाभाविक है। इसके लिए अप्राकृतिक और कष्टदायक साधनाओं को करने की नहीं बल्कि उन्हें छोड़ने की ज़रूरत है।
ईश्वर प्राप्ति सरल है
ईश्वर सबको सर्वत्र उपलब्ध है। केवल उसके बोध और स्मृति की ज़रूरत है। पवित्र कुरआन इनसान की हर ज़रूरत को पूरा करता है। इसकी शिक्षाएं स्पष्ट,सरल हैं और वर्तमान काल में आसानी से उनका पालन हो सकता है। पवित्र कुरआन की रचना किसी मनुष्य के द्वारा किया जाना संभव नहीं है। इसके विषयों की व्यापकता और प्रामाणिकता देखकर कोई भी व्यक्ति आसानी से यह जान सकता है कि इसका एक-एक शब्द सत्य है।
आधुनिक वैज्ञानिक खोजों के बाद भी पवित्र कुरआन में वर्णित कोई भी तथ्य गलत नहीं पाया गया बल्कि उनकी सत्यता ही प्रमाणित हुई है। कुरआन की शब्द योजना में छिपी गणितीय योजना भी उसकी सत्यता का एक ऐसा अकाट्य प्रमाण है जिसे कोई भी व्यक्ति जाँच परख सकता है।
प्राचीन धर्म का सीधा मार्ग
ईश्वर का नाम लेने मात्र से ही कोई व्यक्ति दुखों से मुक्ति नहीं पा सकता जब तक कि वह ईश्वर के निश्चित किये हुए मार्ग पर न चले। पवित्र कुरआन किसी नये ईश्वर,नये धर्म और नये मार्ग की शिक्षा नहीं देता। बल्कि प्राचीन ऋषियों के लुप्त हो गए मार्ग की ही शिक्षा देता है और उसी मार्ग पर चलने हेतु प्रार्थना करना सिखाता है।
‘हमें सीधे मार्ग पर चला, उन लोगों का मार्ग जिन पर तूने कृपा की।’ (पवित्र कुरआन 1:5-6)
ईश्वर की उपासना की सही रीति
मनुष्य दुखों से मुक्ति पा सकता है। लेकिन यह इस पर निर्भर है कि वह ईश्वर को अपना मार्गदर्शक स्वीकार करना कब सीखेगा? वह पवित्र कुरआन की सत्यता को कब मानेगा? और सामाजिक कुरीतियों और धर्मिक पाखण्डों का व्यवहारतः उन्मूलन करने वाले अन्तिम सन्देष्टा हज़रत मुहम्मद (स.) को अपना आदर्श मानकर जीवन गुज़ारना कब सीखेगा?
सर्मपण से होता है दुखों का अन्त
ईश्वर सर्वशक्तिमान है वह आपके दुखों का अन्त करने की शक्ति रखता है। अपने जीवन की बागडोर उसे सौंपकर तो देखिये। पूर्वाग्रह,द्वेष और संकीर्णता के कारण सत्य का इनकार करके कष्ट भोगना उचित नहीं है। उठिये,जागिये और ईश्वर का वरदान पाने के लिए उसकी सुरक्षित वाणी पवित्र कुरआन का स्वागत कीजिए।
भारत को शान्त समृद्ध और विश्व गुरू बनाने का उपाय भी यही है।
क्या कोई भी आदमी दुःख, पाप और निराशा से मुक्ति के लिये इससे ज़्यादा बेहतर, सरल और ईश्वर की ओर से अवतरित किसी मार्ग या ग्रन्थ के बारे में मानवता को बता सकता है?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
10 comments:
कली बेंच देगें चमन बेंच देगें,
धरा बेंच देगें गगन बेंच देगें,
कलम के पुजारी अगर सो गये तो
ये धन के पुजारी
वतन बेंच देगें।
हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में प्रोफेशन से मिशन की ओर बढ़ता "जनोक्ति परिवार "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . नीचे लिंक दिए गये हैं . http://www.janokti.com/ ,
धन्यवाद ,
खुश आमदीद अर्थात स्वागतम ।
assalam allaikum, ALLAH Apko apni dheron inaayaton se faizyaab kare aameen.
bahut hi umda kam kar rahe hain.
Swagat hai!
nice post
आपको ब्लागवाणी का मेम्बर बनने पर बधाई, हिन्दी ब्लाग की दुनिया में ऐसा स्वागत मैंने पहले कभी न देखा, आपकी प्रस्तुत जानकारियां अतुलनीय होती हैं, उम्मीद है आप ऐसा ही लिखते रहेंगें, शुक्रिया
इस नए चिट्ठे के साथ हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
sarv pratham stuti vandna prabhu parmeshwar ki.
Blogvani administration ka shukriya ki usne turant registration diya aur meri post bhi khud hi publish kar di. isse pata chalta hai ki blogvani harek purvagrah se mukt hai.
Senior bloggers ne hosla badhaya iske liye main unka bhi behad shukraguzar hun aur sabke bhale ke liye malik se dua karta hun.
Achhe maqsad ke liye hum praspar sahyogi banen.
isi bhvna ke saath
VANDE ISHWARAM
Assalamu alaikum anwar bhai bahot hi umda posts rahti hain aapki allah apki madad kare aur islam ki khidmaat len.....aur jazae khair at farmae....
Nice
Post a Comment