सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
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Friday, May 14, 2010
Hell n Heaven in Holy Scriptures कहां है वेद और कुरआन में स्वर्ग-नर्क का विवरण

ईश्वर एक है
तो उसने जब कभी किसी ऋषि के अन्तःकरण पर सत्य प्रकट किया तो उसे जन्म और मृत्यु के विषय में स्पष्ट ज्ञान दिया । जन्म और मृत्यु के बीच की अवधि को हम जीवन के नाम से जानते हैं लेकिन जीवन तो मृत्यु के बाद भी है बल्कि यह कहना ज़्यादा सही होगा कि वास्तव में जीवन तो है ही मृत्यु के बाद । आदमी अपने मन में भोग की जो कामनाएं लिए रहता है वे यहां पूरी कब हो पाती हैं ?
और जो लोग पूरी करने की कोशिश करते हैं उनके कारण समाज में बहुत सी ख़राबियां फैल जाती हैं । वजह यह नहीं है कि भोग कोई बुरी बात है । सीमाओं के बन्धन में रहते हुए तो भोग की यहां भी अनुमति है और जीवन का व्यापार उसी से चल भी रहा है लेकिन अनन्त भोग के लिए अनन्त भोग की सामथ्र्य और अनन्त काल का जीवन चाहिये और एक ऐसा लोक भी चाहिये जहां वस्तु इच्छा मात्र से ही प्राप्त हो जाये और उसका कोई भी बुरा प्रभाव किसी अन्य पर न पड़ता हो । प्रत्येक ईशवाणी मनुष्य के मन में बसी हुई इस चिर अभिलिषित इच्छा के बारे में ज़रूर बताती है ।
पवित्र कुरआन में इसका बयान साफ़ साफ़ आया है लेकिन वेदों से भी यह ग़ायब नहीं किया जा सका है बल्कि इनका बयान तो बाइबिल में भी मिलता है ।
इस बयान का मक़सद सिर्फ़ यह है कि आदमी दुनिया के सुख भोगने के लिए बेईमानी और जुल्म का तरीका अख्ितयार न करे बल्कि ईमानदारी से अपना फ़र्ज़ पूरा करे चाहे इसके लिए उसे प्राप्त सुखों का भी त्याग करना पड़े या फिर मरना ही क्यों न पड़े ?
क्योंकि अगर वह अपने फ़र्ज़ को पूरा करते हुए मर भी गया तब भी उसका मालिक उसे अमर जीवन और सदा का भोग देगा । यही विश्वास आदमी के लड़खड़ाते क़दमों को सहारा देता है और उसके दिल से दुनिया का लालच और मौत का ख़ौफ़ दूर कर देता है ।
यत्रानन्दाश्च मोदाश्च मुदः प्रमुद आसते ।
कामस्य यत्राप्ताः कामास्तत्र माममृतं कृधीनन्द्रायंन्दां परि स्रव ।।
-ऋग्वेद , 9-113-11
मुझे उस लोक में अमरता प्रदान कर , जहां मोद , मुद और प्रमुद तीन प्रकार के आनन्द मिलते हैं और जहां सभी चिर अभिलिषित कामनाएं इच्छा होते ही पूर्ण हो जाती हैं ।
मोद , मुद और प्रमुद ये तीन आनन्द जिनका उल्लेख इस मंत्र में किया गया है संभोग से संबंधित आनन्द हैं और विशेषकर ‘प्रमुद‘ तो वेदों में संभोग के आनन्द के लिए ही आता है । इससे मालूम हुआ कि स्वर्ग में लोगों को पत्नियां भी मिलेंगी । इसका प्रमाण दूसरे वर्णनों से भी मिलता है ।
भोजा जिग्युः सुरभिं योनिमग्ने भोजा जिग्युर्वध्वंवया सुवासाः ।
भोजा जिग्युरन्तः पेयं सुराया भोजा जिग्युर्ये अहूताः प्रयन्ति ।
ऋग्वेद, 10-107-9
फिर अच्छे सुन्दर वस्त्र वाली सुन्दर स्त्रियां और तेज़ शराब के जाम को ।
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