सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Sunday, February 28, 2010
एक हिन्दू संत का अदभुत करिशमा : anwer jamal
भारत का विश्वगुरू बनना अब कितना आसान ? एक ऐसी सच्चाई जिसे जानता हर कोई है लेकिन मानने के लिये वही तैयार होता है जिसका ज़मीर जिन्दा है, इस्लाम मारकाट आतंकवाद की शिक्षा देता है इस बात का प्रचार होने से अच्छे भले दिमाग में गलतफहमियां जड पकड चुकी हैं, जिसने हिन्दू मुस्लिम एकता को कमजोर ही किया है, स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य जी ने उन सभी गलतफहमियों के मूल पर प्रहार करके हिन्दू मुस्लिम एकता को मजबूत किया है,
जिस दिन दोनों समुदायों के बीच से गलत फहमियों और नफरतों का सफाया सचमुच हो जायेगा भारतीय जाति उसी दिन विश्व नायक पद पर आसन हो जायेगी,
अपनी गलती पर अज्ञानी अडता है जबकि ज्ञानी उसे स्वीकार करके उसका निराकरण करता है, इस किताब ने स्वामी जी के साफ मन और महान चरित्र को ही प्रकट किया है, भारतीय सन्तों की यह विशेषता सदा से चली आयी है,
भारत का भविष्य उज्जवल है, यह किताब इसी आशा को बल देती है
इस्लाम आतंक? या आदर्श- यह पुस्तक का नाम है जो कानपुर के स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य जी ने लिखी है। इस पुस्तक में स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य ने इस्लाम के अपने अध्ययन को बखूबी पेश किया है।स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य के साथ दिलचस्प वाकिया जुड़ा हुआ है। वे अपनी इस पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं-मेरे मन में यह गलत धारणा बन गई थी कि इतिहास में हिन्दु राजाओं और मुस्लिम बादशाहों के बीच जंग में हुई मारकाट तथा आज के दंगों और आतंकवाद का कारण इस्लाम है। मेरा दिमाग भ्रमित हो चुका था। इस भ्रमित दिमाग से हर आतंकवादी घटना मुझ इस्लाम से जुड़ती दिखाई देने लगी।इस्लाम,इतिहास और आज की घटनाओं को जोड़ते हुए मैंने एक पुस्तक लिख डाली-'इस्लामिक आंतकवाद का इतिहास' जिसका अंग्रेजी में भी अनुवाद हुआ।पुस्तक में स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य आगे लिखते हैं-जब दुबारा से मैंने सबसे पहले मुहम्मद साहब की जीवनी पढ़ी। जीवनी पढऩे के बाद इसी नजरिए से जब मन की शुद्धता के साथ कुरआन मजीद शुरू से अंत तक पढ़ी,तो मुझो कुरआन मजीद के आयतों का सही मतलब और मकसद समझाने में आने लगा।सत्य सामने आने के बाद मुझ अपनी भूल का अहसास हुआ कि मैं अनजाने में भ्रमित था और इस कारण ही मैंने अपनी उक्त किताब-'इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास' में आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ा है जिसका मुझो हार्दिक खेद है
जिस दिन दोनों समुदायों के बीच से गलत फहमियों और नफरतों का सफाया सचमुच हो जायेगा भारतीय जाति उसी दिन विश्व नायक पद पर आसन हो जायेगी,
अपनी गलती पर अज्ञानी अडता है जबकि ज्ञानी उसे स्वीकार करके उसका निराकरण करता है, इस किताब ने स्वामी जी के साफ मन और महान चरित्र को ही प्रकट किया है, भारतीय सन्तों की यह विशेषता सदा से चली आयी है,
भारत का भविष्य उज्जवल है, यह किताब इसी आशा को बल देती है
पुस्तक '''इस्लामिक आंतकवाद का इतिहास' '
लेखक-स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य
laxmishankaracharya@yahoo.in
ए-१६०१,आवास विकास कॉलोनी,हंसपुरम,नौबस्ता,कानपुर-२०८०२१
laxmishankaracharya@yahoo.in
ए-१६०१,आवास विकास कॉलोनी,हंसपुरम,नौबस्ता,कानपुर-२०८०२१
इस्लाम आतंक? या आदर्श- यह पुस्तक का नाम है जो कानपुर के स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य जी ने लिखी है। इस पुस्तक में स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य ने इस्लाम के अपने अध्ययन को बखूबी पेश किया है।स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य के साथ दिलचस्प वाकिया जुड़ा हुआ है। वे अपनी इस पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं-मेरे मन में यह गलत धारणा बन गई थी कि इतिहास में हिन्दु राजाओं और मुस्लिम बादशाहों के बीच जंग में हुई मारकाट तथा आज के दंगों और आतंकवाद का कारण इस्लाम है। मेरा दिमाग भ्रमित हो चुका था। इस भ्रमित दिमाग से हर आतंकवादी घटना मुझ इस्लाम से जुड़ती दिखाई देने लगी।इस्लाम,इतिहास और आज की घटनाओं को जोड़ते हुए मैंने एक पुस्तक लिख डाली-'इस्लामिक आंतकवाद का इतिहास' जिसका अंग्रेजी में भी अनुवाद हुआ।पुस्तक में स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य आगे लिखते हैं-जब दुबारा से मैंने सबसे पहले मुहम्मद साहब की जीवनी पढ़ी। जीवनी पढऩे के बाद इसी नजरिए से जब मन की शुद्धता के साथ कुरआन मजीद शुरू से अंत तक पढ़ी,तो मुझो कुरआन मजीद के आयतों का सही मतलब और मकसद समझाने में आने लगा।सत्य सामने आने के बाद मुझ अपनी भूल का अहसास हुआ कि मैं अनजाने में भ्रमित था और इस कारण ही मैंने अपनी उक्त किताब-'इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास' में आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ा है जिसका मुझो हार्दिक खेद है
==नमूना====
पैम्फलेट में लिखी 8 वें क्रम की आयत हैः''हे 'ईमान' लाने वालो!......और 'काफिरों' को अपना मित्र मत बनाओ, अल्लाह से डरते रहो यदि तुम ईमान वाले हो'' सूरा 5, आयत 57Swami Laxmi Sankaracharya:यह आयत भी अधूरी दी गई है, आयत के बीच का अंश जान बूझकर छिपाने की शरारत की गई है, पूरी आयत है'ऐ ईमान लाने वालो! जिन लोगों को तुमसे पहले किताबें दी गई थीं, उन को और काफिरों को जिन्होंने तुम्हारे धर्म को हंसी और खेल बना रखा है, मित्र न बनाओ और अल्लाह से डरते रहो यदि तुम ईमान वाले हो - कुरआन ,पारा6 , सूरा 5, आयत 57आयत को पढने से साफ है कि काफि़र कुरैश तथा उनके सहयोगी यहूदी और ईसाई जो मुसलमानों के धर्म की हंसी उडाया करते थे, उन को दोस्त न बनाने के लिये यह आयत आई, यह लडाई-झगडे के लिये उकसाने वाली या घृणा फैलाने वाली कहां से है ? इसके विपरीत पाठक स्वयं देखें कि पैम्फलेट में 'जिन्होंने तुम्हारे धर्म को हंसी और खेल बना रखा है' को जानबूझकर छिपा कर उसका मतलब पूरी तरह बदल देने की साजिश करने वाले क्या चाहते हैं=======
पैम्फलेट में लिखी 8 वें क्रम की आयत हैः''हे 'ईमान' लाने वालो!......और 'काफिरों' को अपना मित्र मत बनाओ, अल्लाह से डरते रहो यदि तुम ईमान वाले हो'' सूरा 5, आयत 57Swami Laxmi Sankaracharya:यह आयत भी अधूरी दी गई है, आयत के बीच का अंश जान बूझकर छिपाने की शरारत की गई है, पूरी आयत है'ऐ ईमान लाने वालो! जिन लोगों को तुमसे पहले किताबें दी गई थीं, उन को और काफिरों को जिन्होंने तुम्हारे धर्म को हंसी और खेल बना रखा है, मित्र न बनाओ और अल्लाह से डरते रहो यदि तुम ईमान वाले हो - कुरआन ,पारा6 , सूरा 5, आयत 57आयत को पढने से साफ है कि काफि़र कुरैश तथा उनके सहयोगी यहूदी और ईसाई जो मुसलमानों के धर्म की हंसी उडाया करते थे, उन को दोस्त न बनाने के लिये यह आयत आई, यह लडाई-झगडे के लिये उकसाने वाली या घृणा फैलाने वाली कहां से है ? इसके विपरीत पाठक स्वयं देखें कि पैम्फलेट में 'जिन्होंने तुम्हारे धर्म को हंसी और खेल बना रखा है' को जानबूझकर छिपा कर उसका मतलब पूरी तरह बदल देने की साजिश करने वाले क्या चाहते हैं=======
स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य ने अपनी पुस्तक में
मौलाना को लेकर इस तरह के विचार व्यक्त किए हैं-इस्लाम को नजदीक से ना जानने वाले भ्रमित लोगों को लगता है कि मुस्लिम मौलाना,गैर मुस्लिमों से घृणा करने वाले अत्यन्त कठोर लोग होते हैं। लेकिन बाद में जैसा कि मैंने देखा,जाना और उनके बारे में सुना,उससे मुझो इस सच्चाई का पता चला कि मौलाना कहे जाने वाले मुसलमान व्यवहार में सदाचारी होते हैं,अन्य धर्मों के धर्माचार्यों के लिए अपने मन में सम्मान रखते हैं। साथ ही वह मानवता के प्रति दयालु और सवेंदनशील होते हैं। उनमें सन्तों के सभी गुण मैंने देखे। इस्लाम के यह पण्डित आदर के योग्य हैं जो इस्लाम के सिद्धान्तों और नियमों का कठोरता से पालन करते हैं,गुणों का सम्मान करते हैं। वे अति सभ्य और मृदुभाषी होते हैं।ऐसे मुस्लिम धर्माचार्यों के लिए भ्रमवश मैंने भी गलत धारणा बना रखी थी।
मौलाना को लेकर इस तरह के विचार व्यक्त किए हैं-इस्लाम को नजदीक से ना जानने वाले भ्रमित लोगों को लगता है कि मुस्लिम मौलाना,गैर मुस्लिमों से घृणा करने वाले अत्यन्त कठोर लोग होते हैं। लेकिन बाद में जैसा कि मैंने देखा,जाना और उनके बारे में सुना,उससे मुझो इस सच्चाई का पता चला कि मौलाना कहे जाने वाले मुसलमान व्यवहार में सदाचारी होते हैं,अन्य धर्मों के धर्माचार्यों के लिए अपने मन में सम्मान रखते हैं। साथ ही वह मानवता के प्रति दयालु और सवेंदनशील होते हैं। उनमें सन्तों के सभी गुण मैंने देखे। इस्लाम के यह पण्डित आदर के योग्य हैं जो इस्लाम के सिद्धान्तों और नियमों का कठोरता से पालन करते हैं,गुणों का सम्मान करते हैं। वे अति सभ्य और मृदुभाषी होते हैं।ऐसे मुस्लिम धर्माचार्यों के लिए भ्रमवश मैंने भी गलत धारणा बना रखी थी।
लक्ष्मीशंकराचार्य अपनी पुस्तक की भूमिका के अंत में लिखते हैं-मैं अल्लाह से,पैगम्बर मुहम्मद सल्ललल्लाहु अलेह वसल्लम से और सभी मुस्लिम भाइयों से सार्वजनिक रूप से माफी मांगता हूं तथा अज्ञानता में लिखे व बोले शब्दों को वापस लेता हूं। सभी जनता से मेरी अपील है कि 'इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास' पुस्तक में जो लिखा है उसे शून्य समझों।एक सौ दस पेजों की इस पुस्तक-इस्लाम आतंक? या आदर्श में शंकराचार्य ने खास तौर पर कुरआन की उन चौबीस आयतों का जिक्र किया है जिनके गलत मायने निकालकर इन्हें आतंकवाद से जोड़ा जाता है। उन्होंने इन चौबीस आयतों का अच्छा खुलासा करके यह साबित किया है कि किस साजिश के तहत इन आयतों को हिंसा के रूप में दुष्प्रचारित किया जा रहा है।उन्होंने किताब में ना केवल इस्लाम से जुड़ी गलतफहमियों दूर करने की बेहतर कोशिश की है बल्कि इस्लाम को अच्छे अंदाज में पेश किया है।
अब तो स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य देश भर में घूम रहे हैं और लोगों की इस्लाम से जुड़ी गलतफहमियां दूर कर इस्लाम की सही तस्वीर लोगों के सामने पेश कर रहे हैं।
साभारः
'हमारी अन्जुमन'
http://hamarianjuman.blogspot.com/2010/02/blog-post_25.html
अब तो स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य देश भर में घूम रहे हैं और लोगों की इस्लाम से जुड़ी गलतफहमियां दूर कर इस्लाम की सही तस्वीर लोगों के सामने पेश कर रहे हैं।
साभारः
'हमारी अन्जुमन'
http://hamarianjuman.blogspot.com/2010/02/blog-post_25.html
Tuesday, February 23, 2010
मनुष्य का मार्ग और धर्म
मनुष्य का मार्ग और धर्म
नूनव्यसे नवीयसे सूक्ताय साधया पथः।प्रत्नवद् रोचया रूचः ।। ऋग्वेद 1:1:8।।
अनुवाद- नये और नूतनतर सूक्तों के लिए पथ हमवारकरता जा, जैसे पिछले लोगों ने ऋचाओं पर अमल किया था।
यज्ञं प्रच्छामि यवमं।सः तद्दूतो विवोचति किदं ऋतम् पूर्व्यम् गतम।कस्तदबिभर्ति नूतनौ।वित्तम मे अस्य रोधसी।। ऋग्वेद 1:105:4।।
अनुवाद- मैं तुझसे सबसे बाद में आने वाले यज्ञ का सवाल पूछता हूँ। उसकी विवेचना वह पैग़म्बर आकर बताएगा। वह पुराना शरीअत का निज़ाम कहाँ चला गया जो पहले से चला आ रहा था ? उसकी नयी व्याख्या कौन करेगा? हे आकाश पृथ्वी! मेरे दुख पर ध्यान दो।
पवित्र कुरआन ः एक ईश्वरीय चमत्कार
पवित्र कुरआन में गणितीय चमत्कार - quran-math
"और जो 'हमने' अपने बन्दे 'मुहम्मद' पर 'कुरआन' उतारा है, अगर तुमको इसमें शक हो तो इस जैसी तुम एक 'ही' सूरः बनाकर ले आओ और अल्लाह के सिवा जो तुम्हारे सहायक हों' उन सबको बुला लाओ' अगर तुम सच्चे हो। फिर अगर तुम ऐसा न कर सको और तुम हरगिज़ नहीं कर सकते तो डरो उस आग से जिसका ईंधन इनसान और पत्थर हैं जो इनकारियों के लिए तैयार की गई है" -('पवित्र कुरआन' 2 : 23-24)
दुःख दर्द का इतिहास
मनुष्य जाति का इतिहास दुख-दर्द और जुल्म की दास्तान है। उसका वर्तमान भी दुख दर्द और ज़ुल्म से भरा हुआ गुज़र रहा है और भविष्य में आने वाला विनाश भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है।ऐसा नहीं है कि इनसान इस हालत से नावाक़िफ़ है या उसने दुख का कारण जानने और दुख से मुक्ति पाने की कोशिश ही नहीं की। इनसान का इतिहास दुखों से मुक्ति पाने की कोशिशों का बयान भी है। वर्तमान जगत की सारी तरक्की और तबाही के पीछे यही कोशिशें कारफ़रमा हैं।
सोचने वालों ने सोचा कि दुख का मूल कारण अज्ञान है। अज्ञान से मुक्ति के लिए इनसानों ने ज्ञान की तरफ़ कदम बढ़ाए। कुछ ने नज़र आने वाली चीज़ों पर एक्सपेरिमेन्ट्स शुरू किए तो कुछ लोगों ने अपने मन और सूक्ष्म शरीर को अपने अध्ययन का विषय बना लिया। वैज्ञानिकों ने आग, पानी, हवा, मिट्टी और अतंरिक्ष को जाना समझा, मनुष्य के शरीर को जाना समझा और अपनी ताक़त के मुताबि़क उन पर कंट्रोल करके उनसे काम भी लिया। हठयोगियों ने शरीर को अपने ढंग से वश में किया और राजयोगियों ने मन जैसी चीज़ का पता लगाया और उसे साधने जैसे दुष्कर कार्य को संभव कर दिखाया।
दुख का कारण
कुछ लोगों ने तृष्णा और वासना को दुखों का मूल कारण समझा और उन्हें त्याग दिया और कुछ लोगों ने सोचा कि शायद उनकी तृप्ति से ही शांति मिले। यह सोचकर वे उनकी पूर्ति में ही जुट गए। इनसानों ने योगी भोगी और नैतिक-अनैतिक सब कुछ बनकर देखा और सारे तरीके़ आज़माए बल्कि आज भी इन्हीं सब तरीकों को आज़मा रहे हैं लेकिन फिर भी मानव जाति को दुखों से मुक्ति और सुख-शांति नसीब नहीं हुई बल्कि उसके दुखों की लिस्ट में एड्स, दहेज, कन्या, भ्रूण हत्या, ग्लोबल वॉर्मिग और सुपरनोवा जैसे नये दुखों के नाम और बढ़ गए। आखि़र क्या वजह रही कि सारे वैज्ञानिक और आध्यात्मिक लोग मिलकर मानवजाति को किसी एक दुख से भी मुक्ति न दिला सके?कहीं कोई कमी तो ज़रूर है कि साधनों और प्रयासों के बावजूद सफलता नहीं मिल रही है। विचार करते हैं तो पाते हैं कि ये सारी कोशिशें सिर्फ़ इसलिए बेनतीजा रहीं क्योंकि ये सारी कोशिशें इनसानों ने अपने मन के अनुमान और बुद्धि की अटकल के बल पर कीं और ईश्वर को और उसके ज्ञान को उसका वाजिब हक़ नहीं दिया।
सच्चा राजा एक है
सारी सृष्टि का सच्चा स्वामी केवल एक प्रभु परमेश्वर है। उसी ने हरेक चीज़ को उत्पन्न किया। उनका मक़सद और काम निश्चित किया। उनमें परस्पर निर्भरता और संतुलन क़ायम किया। उनकी मर्यादा और सीमाएं ठहराईं। परमेश्वर ही स्वाभाविक रूप से मार्गदर्शक है। उसने प्रखर चेतना और उच्च मानवीय मूल्यों से युक्त मनुष्यों के अन्तःकरण में अपनी वाणी का अवतरण किया। उन्हें परमज्ञान और दिव्य अनुभूतियों से युक्त करके व्यक्ति और राष्ट्र के लिए आदर्श बना दिया। उन्होंने हर चीज़ खोलकर बता दी और करने लायक सारे काम करके दिखा दिए। इन्हीं लोगों को ऋषि और पैग़म्बर कहा जाता है।पैग़म्बर (स.) मानवता का आदर्शइतिहास के जिस कालखण्ड में इन लोगों की शिक्षाओं का पालन किया गया बुरी परम्पराओं और बुरी आदतों का खात्मा हो गया। इनसान की जिन्दगी संतुलित और सहज स्वाभाविक होकर दुखों से मुक्त हो गयी। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.) के द्वारा अरब की बिखरी हुई युद्धप्रिय और अनपढ़ आबादी में आ चुका बदलाव एक ऐतिहासिक साक्ष्य है। यह युगांतरकारी परिवर्तन केवल तभी सम्भव हो पाया जबकि लोगों ने ईश्वर को उसका स्वाभाविक और वाजिब हक़ देना स्वीकार कर लिया। उसे अपना मार्गदर्शक मान लिया। ईश्वर ही वास्तविक राजा और सच्चा बादशाह है यह हमें मानना होगा। उसके नियम-क़ानून ही पालनीय हैं। ऐसा हमें आचरण से दिखाना होगा। यही वह मार्ग है जिसकी प्रार्थना गायत्री मंत्र और सूरा-ए-फ़ातिहा पढ़कर हिन्दू-मुस्लिम करते हैं। सबका रचयिता एक है तो सबके लिए उसकी नीति और व्यवस्था भी एक होना स्वाभाविक है।कुरआन का इनकार कौन करता है?पवित्र कुरआन इसी स्वाभाविक सच्चाई का बयान है। इस सत्य को केवल वे लोग नहीं मानते जो पवित्र कुरआन के तथ्यों पर ग़ौर नहीं करते या ग़ुज़रे हुए दौर की राजनीतिक उथल-पुथल की कुंठाएं पाले हुए हैं। ये लोग रहन-सहन,खान-पान और भौतिक ज्ञान में, हर चीज़ में विदेशी भाषा-संस्कृति के नक्क़ाल बने हुए हैं लेकिन जब बात ईश्वरीय ज्ञान पवित्र कुरआन की आती है तो उसे यह कहकर मानने से इनकार कर देते हैं कि यह तो विदेशियों का धर्मग्रंथ है। जबकि देखना यह चाहिए कि यह ग्रंथ ईश्वरीय है या नहीं?बदलता हुआ समाजपवित्र क़ुरआन से पहले भी ईश्वर की ओर से महर्षि मनु और हज़रत इब्राहिम आदि ऋषियों-पैग़म्बरों पर हज़ारों बार वाणी का अवतरण हुआ, लेकिन आज उनमें से कोई भी अपने मूलरूप में सुरक्षित नहीं है और जिस रूप में आज वे हमें मिलती हैं तो न तो उनके अन्दर इस तरह का कोई दावा है कि वे ईश्वर की वाणी हैं औन न ही एक आधुनिक समतावादी समाज की राजनीतिक,सामाजिक, आध्यात्मिक व अन्य ज़रूरतों की पूर्ति उनसे हो पाती है। यही वजह है कि उन ग्रन्थों के जानकारों ने उनके द्वारा प्रतिपादित सामाजिक नियम,दण्ड-व्यवस्था और पूजा विधियाँ तक या तो निरस्त कर दी हैं या फिर उनका रूप बदल दिया है। बदलना तो पड़ेगा। लेकिन यह बदलाव भी ईश्वर के मार्गदर्शन में ही होना चाहिए अन्यथा अपनी मर्जी से बदलेंगे तो ऐसा भी हो सकता है कि हाथ में केवल भाषा-संस्कृति ही शेष बचें और धर्म का मर्म जाता रहे, क्योंकि धर्म की गति बड़ी सूक्षम होती है।
पवित्र कुरआन : कसौटी भी, चुनौती भी
पवित्र कुरआन बदलते हुए युग में आवश्यक बदलाव की ज़रूरतों को पूरा करता है। यह स्वयं दावा करता है कि यह ईश्वर की ओर से है। यह स्वयं अपने ईश्वरीय होने का सुबूत देता है और अपने प्रति सन्देह रखने वालों को अपनी सच्चाई की कसौटी और चुनौती एक साथ पेश करता है कि अगर तुम मुझे मनुष्यकृत मानते हो तो मुझ जैसा ग्रंथ बनाकर दिखाओ या कम से कम एक सूरः जैसी ही बनाकर दिखाओ और अगर न बना सको तो मान लो कि मैं तुम्हारे पालनहार की ओर से हूँ जिसका तुम दिन रात गुणगान करते हो। मैं तुम्हारे लिए वही मार्गदर्शन हूँ जिसकी तुम अपने प्रभु से कामना करते हो। मैं दुखों से मुक्ति का वह एकमात्र साधन हूँ जो तुम ढूँढ रहे हो।पवित्र कुरआन अपनी बातों में ही नहीं बल्कि उन्हें कहने की शैली तक में इतना अनूठा है कि तत्कालीन समाज में अपनी धार्मिक-आर्थिक चैधराहट की ख़ातिर हज़रत मुहम्मद (स.) का विरोध करने वाले भी अरबी के श्रेष्ठ कवियों की मदद लेकर भी पवित्र कुरआन जैसा नहीं बना पाये। जबकि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.) के जीवन की योजना ही ईश्वर ने ऐसी बनायी थी कि वे किसी आदमी से कुछ पढ़ाई-लिखाई नहीं सीख सके थे।पवित्र कुरआन का चमत्कारहज़रत मुहम्मद (स.) आज हमारी आँखों के सामने नहीं हैं लेकिन जिस ईश्वरीय ज्ञान पवित्र कुरआन के ज़रिये उन्होंने लोगों को दुख निराशा और पाप से मुक्ति दिलाई वह आज भी हमें विस्मित कर रहा हैै।एक साल में 12 माह और 365 दिन होते हैं। पूरे कुरआन शरीफ में हज़ारों आयतें हैं लेकिन पूरे कुरआन शरीफ में शब्द शह् र (महीना) 12 बार आया है और शब्द ‘यौम’ (दिन) 365 बार आया है। जबकि अलग-अलग जगहों पर महीने और दिन की बातें अलग-अलग संदर्भ में आयी हैं। क्या एक इनसान के लिए यह संभव है कि वह विषयानुसार वार्तालाप भी करे और गणितीय योजना का भी ध्यान रखे? ‘मुहम्मद’ नाम पूरे कुरआन शरीफ़ में 4 बार आया है तो ‘शरीअत’ भी 4 ही बार आया है। दोनों का ज़िक्र अलग-अलग सूरतों में आया है।‘मलाइका’ (फरिश्ते) 88 बार और ठीक इसी संख्या में ‘शयातीन’ (शैतानों) का बयान है। ‘दुनिया’ का ज़िक्र भी ठीक उतनी ही बार किया गया है जितना कि ‘आखि़रत’ (परलोक) का यानि प्रत्येक का 115 बार। इसी तरह पवित्र कुरआन में ईश्वर ने न केवल स्त्री-पुरूष के मानवधिकारों को बराबर घोषित किया है बल्कि शब्द ‘रजुल’ (मर्द) व शब्द ‘इमरात’ (औरत) को भी बराबर अर्थात् 24-24 बार ही प्रयुक्त किया है।ज़कात (2.5 प्रतिशत अनिवार्य दान) में बरकत है यह बात मालिक ने जहाँ खोलकर बता दी है। वही उसका गणितीय संकेत उसने ऐसे दिया है कि पवित्र कुरआन में ‘ज़कात’ और ‘बरकात’ दोनों शब्द 32-32 मर्तबा आये हैं। जबकि दोनांे अलग-अलग संदर्भ प्रसंग और स्थानों में प्रयुक्त हुए हैं।पवित्र कुरआन में जल-थल का अनुपातएक इनसान और भी ज़्यादा अचम्भित हो जाता है जब वह देखता है कि ‘बर’ (सूखी भूमि) और ‘बह्र’ (समुद्र) दोनांे शब्द क्रमशः 12 और 33 मर्तबा आये हैं और इन शब्दों का आपस में वही अनुपात है जो कि सूखी भूमि और समुद्र का आपसी अनुपात वास्तव में पाया जाता है।
सूखी भूमि का प्रतिशत- 12/45 x 100 = 26.67 %
समुद्र का प्रतिशत- 33/45 x 100 = 73.33 %
सूखी जमीन और समुद्र का आपसी अनुपात क्या है?
यह बात आधुनिक खोजों के बाद मनुष्य आज जान पाया है लेकिन आज से 1400 साल पहले कोई भी आदमी यह नहीं जानता था तब यह अनुपात पवित्र कुरआन में कैसे मिलता है? और वह भी एक जटिल गणितीय संरचना के रूप में।क्या वाकई कोई मनुष्य ऐसा ग्रंथ कभी रच सकता है?
क्या अब भी पवित्र कुरआन को ईश्वरकृत मानने में कोई दुविधा है?
(...जारी)-साभार ''वन्दे ईश्वरम'' मासिक
Posted by DR. ANWER JAMAL
नूनव्यसे नवीयसे सूक्ताय साधया पथः।प्रत्नवद् रोचया रूचः ।। ऋग्वेद 1:1:8।।
अनुवाद- नये और नूतनतर सूक्तों के लिए पथ हमवारकरता जा, जैसे पिछले लोगों ने ऋचाओं पर अमल किया था।
यज्ञं प्रच्छामि यवमं।सः तद्दूतो विवोचति किदं ऋतम् पूर्व्यम् गतम।कस्तदबिभर्ति नूतनौ।वित्तम मे अस्य रोधसी।। ऋग्वेद 1:105:4।।
अनुवाद- मैं तुझसे सबसे बाद में आने वाले यज्ञ का सवाल पूछता हूँ। उसकी विवेचना वह पैग़म्बर आकर बताएगा। वह पुराना शरीअत का निज़ाम कहाँ चला गया जो पहले से चला आ रहा था ? उसकी नयी व्याख्या कौन करेगा? हे आकाश पृथ्वी! मेरे दुख पर ध्यान दो।
पवित्र कुरआन ः एक ईश्वरीय चमत्कार
पवित्र कुरआन में गणितीय चमत्कार - quran-math
"और जो 'हमने' अपने बन्दे 'मुहम्मद' पर 'कुरआन' उतारा है, अगर तुमको इसमें शक हो तो इस जैसी तुम एक 'ही' सूरः बनाकर ले आओ और अल्लाह के सिवा जो तुम्हारे सहायक हों' उन सबको बुला लाओ' अगर तुम सच्चे हो। फिर अगर तुम ऐसा न कर सको और तुम हरगिज़ नहीं कर सकते तो डरो उस आग से जिसका ईंधन इनसान और पत्थर हैं जो इनकारियों के लिए तैयार की गई है" -('पवित्र कुरआन' 2 : 23-24)
दुःख दर्द का इतिहास
मनुष्य जाति का इतिहास दुख-दर्द और जुल्म की दास्तान है। उसका वर्तमान भी दुख दर्द और ज़ुल्म से भरा हुआ गुज़र रहा है और भविष्य में आने वाला विनाश भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है।ऐसा नहीं है कि इनसान इस हालत से नावाक़िफ़ है या उसने दुख का कारण जानने और दुख से मुक्ति पाने की कोशिश ही नहीं की। इनसान का इतिहास दुखों से मुक्ति पाने की कोशिशों का बयान भी है। वर्तमान जगत की सारी तरक्की और तबाही के पीछे यही कोशिशें कारफ़रमा हैं।
सोचने वालों ने सोचा कि दुख का मूल कारण अज्ञान है। अज्ञान से मुक्ति के लिए इनसानों ने ज्ञान की तरफ़ कदम बढ़ाए। कुछ ने नज़र आने वाली चीज़ों पर एक्सपेरिमेन्ट्स शुरू किए तो कुछ लोगों ने अपने मन और सूक्ष्म शरीर को अपने अध्ययन का विषय बना लिया। वैज्ञानिकों ने आग, पानी, हवा, मिट्टी और अतंरिक्ष को जाना समझा, मनुष्य के शरीर को जाना समझा और अपनी ताक़त के मुताबि़क उन पर कंट्रोल करके उनसे काम भी लिया। हठयोगियों ने शरीर को अपने ढंग से वश में किया और राजयोगियों ने मन जैसी चीज़ का पता लगाया और उसे साधने जैसे दुष्कर कार्य को संभव कर दिखाया।
दुख का कारण
कुछ लोगों ने तृष्णा और वासना को दुखों का मूल कारण समझा और उन्हें त्याग दिया और कुछ लोगों ने सोचा कि शायद उनकी तृप्ति से ही शांति मिले। यह सोचकर वे उनकी पूर्ति में ही जुट गए। इनसानों ने योगी भोगी और नैतिक-अनैतिक सब कुछ बनकर देखा और सारे तरीके़ आज़माए बल्कि आज भी इन्हीं सब तरीकों को आज़मा रहे हैं लेकिन फिर भी मानव जाति को दुखों से मुक्ति और सुख-शांति नसीब नहीं हुई बल्कि उसके दुखों की लिस्ट में एड्स, दहेज, कन्या, भ्रूण हत्या, ग्लोबल वॉर्मिग और सुपरनोवा जैसे नये दुखों के नाम और बढ़ गए। आखि़र क्या वजह रही कि सारे वैज्ञानिक और आध्यात्मिक लोग मिलकर मानवजाति को किसी एक दुख से भी मुक्ति न दिला सके?कहीं कोई कमी तो ज़रूर है कि साधनों और प्रयासों के बावजूद सफलता नहीं मिल रही है। विचार करते हैं तो पाते हैं कि ये सारी कोशिशें सिर्फ़ इसलिए बेनतीजा रहीं क्योंकि ये सारी कोशिशें इनसानों ने अपने मन के अनुमान और बुद्धि की अटकल के बल पर कीं और ईश्वर को और उसके ज्ञान को उसका वाजिब हक़ नहीं दिया।
सच्चा राजा एक है
सारी सृष्टि का सच्चा स्वामी केवल एक प्रभु परमेश्वर है। उसी ने हरेक चीज़ को उत्पन्न किया। उनका मक़सद और काम निश्चित किया। उनमें परस्पर निर्भरता और संतुलन क़ायम किया। उनकी मर्यादा और सीमाएं ठहराईं। परमेश्वर ही स्वाभाविक रूप से मार्गदर्शक है। उसने प्रखर चेतना और उच्च मानवीय मूल्यों से युक्त मनुष्यों के अन्तःकरण में अपनी वाणी का अवतरण किया। उन्हें परमज्ञान और दिव्य अनुभूतियों से युक्त करके व्यक्ति और राष्ट्र के लिए आदर्श बना दिया। उन्होंने हर चीज़ खोलकर बता दी और करने लायक सारे काम करके दिखा दिए। इन्हीं लोगों को ऋषि और पैग़म्बर कहा जाता है।पैग़म्बर (स.) मानवता का आदर्शइतिहास के जिस कालखण्ड में इन लोगों की शिक्षाओं का पालन किया गया बुरी परम्पराओं और बुरी आदतों का खात्मा हो गया। इनसान की जिन्दगी संतुलित और सहज स्वाभाविक होकर दुखों से मुक्त हो गयी। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.) के द्वारा अरब की बिखरी हुई युद्धप्रिय और अनपढ़ आबादी में आ चुका बदलाव एक ऐतिहासिक साक्ष्य है। यह युगांतरकारी परिवर्तन केवल तभी सम्भव हो पाया जबकि लोगों ने ईश्वर को उसका स्वाभाविक और वाजिब हक़ देना स्वीकार कर लिया। उसे अपना मार्गदर्शक मान लिया। ईश्वर ही वास्तविक राजा और सच्चा बादशाह है यह हमें मानना होगा। उसके नियम-क़ानून ही पालनीय हैं। ऐसा हमें आचरण से दिखाना होगा। यही वह मार्ग है जिसकी प्रार्थना गायत्री मंत्र और सूरा-ए-फ़ातिहा पढ़कर हिन्दू-मुस्लिम करते हैं। सबका रचयिता एक है तो सबके लिए उसकी नीति और व्यवस्था भी एक होना स्वाभाविक है।कुरआन का इनकार कौन करता है?पवित्र कुरआन इसी स्वाभाविक सच्चाई का बयान है। इस सत्य को केवल वे लोग नहीं मानते जो पवित्र कुरआन के तथ्यों पर ग़ौर नहीं करते या ग़ुज़रे हुए दौर की राजनीतिक उथल-पुथल की कुंठाएं पाले हुए हैं। ये लोग रहन-सहन,खान-पान और भौतिक ज्ञान में, हर चीज़ में विदेशी भाषा-संस्कृति के नक्क़ाल बने हुए हैं लेकिन जब बात ईश्वरीय ज्ञान पवित्र कुरआन की आती है तो उसे यह कहकर मानने से इनकार कर देते हैं कि यह तो विदेशियों का धर्मग्रंथ है। जबकि देखना यह चाहिए कि यह ग्रंथ ईश्वरीय है या नहीं?बदलता हुआ समाजपवित्र क़ुरआन से पहले भी ईश्वर की ओर से महर्षि मनु और हज़रत इब्राहिम आदि ऋषियों-पैग़म्बरों पर हज़ारों बार वाणी का अवतरण हुआ, लेकिन आज उनमें से कोई भी अपने मूलरूप में सुरक्षित नहीं है और जिस रूप में आज वे हमें मिलती हैं तो न तो उनके अन्दर इस तरह का कोई दावा है कि वे ईश्वर की वाणी हैं औन न ही एक आधुनिक समतावादी समाज की राजनीतिक,सामाजिक, आध्यात्मिक व अन्य ज़रूरतों की पूर्ति उनसे हो पाती है। यही वजह है कि उन ग्रन्थों के जानकारों ने उनके द्वारा प्रतिपादित सामाजिक नियम,दण्ड-व्यवस्था और पूजा विधियाँ तक या तो निरस्त कर दी हैं या फिर उनका रूप बदल दिया है। बदलना तो पड़ेगा। लेकिन यह बदलाव भी ईश्वर के मार्गदर्शन में ही होना चाहिए अन्यथा अपनी मर्जी से बदलेंगे तो ऐसा भी हो सकता है कि हाथ में केवल भाषा-संस्कृति ही शेष बचें और धर्म का मर्म जाता रहे, क्योंकि धर्म की गति बड़ी सूक्षम होती है।
पवित्र कुरआन : कसौटी भी, चुनौती भी
पवित्र कुरआन बदलते हुए युग में आवश्यक बदलाव की ज़रूरतों को पूरा करता है। यह स्वयं दावा करता है कि यह ईश्वर की ओर से है। यह स्वयं अपने ईश्वरीय होने का सुबूत देता है और अपने प्रति सन्देह रखने वालों को अपनी सच्चाई की कसौटी और चुनौती एक साथ पेश करता है कि अगर तुम मुझे मनुष्यकृत मानते हो तो मुझ जैसा ग्रंथ बनाकर दिखाओ या कम से कम एक सूरः जैसी ही बनाकर दिखाओ और अगर न बना सको तो मान लो कि मैं तुम्हारे पालनहार की ओर से हूँ जिसका तुम दिन रात गुणगान करते हो। मैं तुम्हारे लिए वही मार्गदर्शन हूँ जिसकी तुम अपने प्रभु से कामना करते हो। मैं दुखों से मुक्ति का वह एकमात्र साधन हूँ जो तुम ढूँढ रहे हो।पवित्र कुरआन अपनी बातों में ही नहीं बल्कि उन्हें कहने की शैली तक में इतना अनूठा है कि तत्कालीन समाज में अपनी धार्मिक-आर्थिक चैधराहट की ख़ातिर हज़रत मुहम्मद (स.) का विरोध करने वाले भी अरबी के श्रेष्ठ कवियों की मदद लेकर भी पवित्र कुरआन जैसा नहीं बना पाये। जबकि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.) के जीवन की योजना ही ईश्वर ने ऐसी बनायी थी कि वे किसी आदमी से कुछ पढ़ाई-लिखाई नहीं सीख सके थे।पवित्र कुरआन का चमत्कारहज़रत मुहम्मद (स.) आज हमारी आँखों के सामने नहीं हैं लेकिन जिस ईश्वरीय ज्ञान पवित्र कुरआन के ज़रिये उन्होंने लोगों को दुख निराशा और पाप से मुक्ति दिलाई वह आज भी हमें विस्मित कर रहा हैै।एक साल में 12 माह और 365 दिन होते हैं। पूरे कुरआन शरीफ में हज़ारों आयतें हैं लेकिन पूरे कुरआन शरीफ में शब्द शह् र (महीना) 12 बार आया है और शब्द ‘यौम’ (दिन) 365 बार आया है। जबकि अलग-अलग जगहों पर महीने और दिन की बातें अलग-अलग संदर्भ में आयी हैं। क्या एक इनसान के लिए यह संभव है कि वह विषयानुसार वार्तालाप भी करे और गणितीय योजना का भी ध्यान रखे? ‘मुहम्मद’ नाम पूरे कुरआन शरीफ़ में 4 बार आया है तो ‘शरीअत’ भी 4 ही बार आया है। दोनों का ज़िक्र अलग-अलग सूरतों में आया है।‘मलाइका’ (फरिश्ते) 88 बार और ठीक इसी संख्या में ‘शयातीन’ (शैतानों) का बयान है। ‘दुनिया’ का ज़िक्र भी ठीक उतनी ही बार किया गया है जितना कि ‘आखि़रत’ (परलोक) का यानि प्रत्येक का 115 बार। इसी तरह पवित्र कुरआन में ईश्वर ने न केवल स्त्री-पुरूष के मानवधिकारों को बराबर घोषित किया है बल्कि शब्द ‘रजुल’ (मर्द) व शब्द ‘इमरात’ (औरत) को भी बराबर अर्थात् 24-24 बार ही प्रयुक्त किया है।ज़कात (2.5 प्रतिशत अनिवार्य दान) में बरकत है यह बात मालिक ने जहाँ खोलकर बता दी है। वही उसका गणितीय संकेत उसने ऐसे दिया है कि पवित्र कुरआन में ‘ज़कात’ और ‘बरकात’ दोनों शब्द 32-32 मर्तबा आये हैं। जबकि दोनांे अलग-अलग संदर्भ प्रसंग और स्थानों में प्रयुक्त हुए हैं।पवित्र कुरआन में जल-थल का अनुपातएक इनसान और भी ज़्यादा अचम्भित हो जाता है जब वह देखता है कि ‘बर’ (सूखी भूमि) और ‘बह्र’ (समुद्र) दोनांे शब्द क्रमशः 12 और 33 मर्तबा आये हैं और इन शब्दों का आपस में वही अनुपात है जो कि सूखी भूमि और समुद्र का आपसी अनुपात वास्तव में पाया जाता है।
सूखी भूमि का प्रतिशत- 12/45 x 100 = 26.67 %
समुद्र का प्रतिशत- 33/45 x 100 = 73.33 %
सूखी जमीन और समुद्र का आपसी अनुपात क्या है?
यह बात आधुनिक खोजों के बाद मनुष्य आज जान पाया है लेकिन आज से 1400 साल पहले कोई भी आदमी यह नहीं जानता था तब यह अनुपात पवित्र कुरआन में कैसे मिलता है? और वह भी एक जटिल गणितीय संरचना के रूप में।क्या वाकई कोई मनुष्य ऐसा ग्रंथ कभी रच सकता है?
क्या अब भी पवित्र कुरआन को ईश्वरकृत मानने में कोई दुविधा है?
(...जारी)-साभार ''वन्दे ईश्वरम'' मासिक
Posted by DR. ANWER JAMAL
Monday, February 22, 2010
ग़ज़ल व गंगा का चीत्कार
चीज़ें बोलती हैं लेकिन इन्हें सुनता वही है जो इनके संकेतों पर ध्यान देता है। प्रज्ञा, ध्यान और चिंतन से ही मनुष्य अपने जन्म का उद्देश्य जान सकता है। ये गुण न हों तो मनुष्य पशु से भी ज़्यादा गया बीता बन जाता है।
ग़ज़ल
पानी
क्यों प्यासे गली-कूचों से बचता रहा पानी
क्या ख़ौफ था कि शहर में ठहरा रहा पानी
आखि़र को हवा घोल गयी ज़हर नदी में
मर जाऊंगा, मर जाऊंगा कहता रहा पानी
मैं प्यासा चला आया कि बेरहम था दरिया
सुनता हूँ मिरी याद में रोता रहा पानी
मिट्टी की कभी गोद में, चिड़ियों के कभी साथ
बच्चे की तरह खेलता-हंसता रहा पानी
इस शहर में दोनों की ज़फ़र एक-सी गुज़री
मैं प्यासा था, मेरी तरह प्यासा रहा पानी
ज़फ़र गोरखपुरी (मुंबई)
लिप्यांतरण : अबू शाहिद जमील
इतना जहर घोला गंगाजल में
कानपुर-कानपुर शहर का मैला ढोते-ढोते रूठ गई गंगा ने अपने घाटों को छोड़ दिया है। गंगा बैराज बनाकर भले गंगा का पानी घाटों तक लाने की कवायद हुई मगर वो रौनक शहर के घाटों पर नहीं लौटी। कानपुर शहर गंगा का बड़ा गुनाहगार है। 50 लाख की आबादी का रोज का मैला 36 छोटे-बडे़ नालों के जरिए सीधे गंगा में उड़ेला जाता है। 50 करोड़ लीटर रोजाना सीवरेज गंगा में डालने वाले इस शहर में गंगा एक्शन प्लान, इंडोडच परियोजना के तहत करोड़ों रूपए खर्च किए गए। जाजमऊ में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई और क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दफ्तर इस शहर में स्थापित हैं। गंगा की गोद में सैकड़ों लाशे यूँ ही फेंकी जाती रहीं है और यह हरकत अब तक जारी है। गंगा की गोद के किनारे बसे जाजमऊ की टेनरियों से निकला जहरीला क्रोमियम गंगा के लिए काल बन गया। टेनरियों से निकलने वाले स्लज में क्रोमियम की मात्रा खतरानक स्थितियों तक पहुँच गई, तब भी यह शहर और सरकार के अफसर नहीं जागे। जाजमऊ के दो दर्जन पड़ोसी गाँव शेखपुर, जाना, प्योंदी, मवैया, वाजिदपुर, तिवारीपुर, सलेमपुर समेत अन्य में ग्राउंड वाटर 120 फिट नीचे तक जहरीला हो गया तो प्रशासन के होश उड़ गए। खेत जल गए और अब पशुओं का गर्भपात होने लगा है। काला-भूरा हो गया गंगा का पानी आचमन के लायक तक नहीं बचा।
गंगा अपने उद्धार के लिए हमें पुकार रही है। कौन सुनेगा उसका चीत्कार? कौन महसूस करेगा अपना दोष? किसे होगा अपने कर्तव्य का बोध? कौन कितनी और क्या पहल करता है? गंगा यही निहार रही है।महाकुम्भ का यह स्नान तभी सफल सिद्ध होगा जबकि नहाने वाले अपने शरीर के मैल की तरह अपने दोष भी त्याग दें। अपनी आस्था, विचार और कर्म को उन प्राचीन ऋषियों जैसा बनायें जिनसे आदि में धर्मज्ञान निःसृत हुआ था। इसी में आपकी मुक्ति है।गंगा को शुद्ध करें, स्वयं को शुद्ध करें, और शुद्ध, सुरक्षित और प्रामाणिक ईश्वर की वाणी से ज्ञान प्राप्त करें। हरेक बाधा को पार करके रास्ता बनाते हुए अपनी मंज़िल तक पहुँचें जैसे कि गंगा सागर तक पहुँचती है।गंगा यही सिखाती है लेकिन सीखता वही है जिसे वास्तव में कुछ सीखने और सत्य को पाने की ललक है।काश! हमारे अन्दर यह ललक जाग जाये।
MORE MORE MORE
http://vedquran.blogspot.com/2010/02/blog-post_21.html
Sunday, February 21, 2010
बहुत कुछ सिखाती है गंगा
चीज़ें बोलती हैं लेकिन इन्हें सुनता वही है जो इनके संकेतों पर ध्यान देता है। प्रज्ञा, ध्यान और चिंतन से ही मनुष्य अपने जन्म का उद्देश्य जान सकता है। ये गुण न हों तो मनुष्य पशु से भी ज़्यादा गया बीता बन जाता है।
भारत की विशालता, हिमालय की महानता और गंगा की पवित्रता बताती है कि स्वर्ग जैसी इस भूमि पर जन्म लेने वाले मनुष्य को विशाल हृदय, महान और पवित्र होना चाहिए। ऋषियों की वाणी भी यही कहती है। ज्ञान ध्यान की जिस ऊँचाई तक वे पहुँचे, उसने सिद्ध कर दिया कि निःसंदेह मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना है।
परन्तु अपने पूर्वजों की दिव्य ज्ञान परम्परा को हम कितना सुरक्षित रख पाये? नैतिकता और चरित्र की रक्षा के लिए सबकुछ न्यौछावर करने वालों के आदर्श को हमने कितना अपनाया? ईश्वर को कितना जाना? उसके ‘दूत’ को कितना पहचाना? और उसकी ओर कितने कदम बढ़ाए?
गंगा केवल एक नदी मात्र ही नहीं है बल्कि गंगा भारत की आत्मा और उसका दर्पण भी है जिसमें हर भारतवासी अपना असली चेहरा देख सकता है और अगर सुधरना चाहे तो सुधर भी सकता है। गंगा हमें सत्य का बोध कराती है लेकिन हम उसके संकेतों पर ध्यान नहीं देते।
गंगा की रक्षा हम नहीं कर पाये। अपना कचरा, फैक्ट्रियों का ज़हरीला अवशिष्ट, मूर्तियाँ और लाशें सभी कुछ हम गंगा में बहाते रहे। नतीजा गंगा का जल न तो जलचरों के बसने लायक़ बचा और न ही हमारे पीने योग्य बचा। अमृत समान जल को विष में बदलने का काम किसने किया?
निःसंदेह गंगा की गोद में बसने वाले हम मनुष्यों ने ही यह घोर अपराध किया है।
भारत की दिव्य ज्ञान गंगा भी आज इसी प्रकार दूषित हो चुकी है। उसमें ऐसे बहुत से विरोधी और विषैले विचार बाद में मिला दिये गए जो वास्तव में ‘ज्ञान’ के विपरीत हैं। हम भारतीय न ज्ञान गंगा को सुरक्षित रख पाये और न ही जल गंगा को।
गंगा अपने उद्धार के लिए हमें पुकार रही है। कौन सुनेगा उसका चीत्कार? कौन महसूस करेगा अपना दोष? किसे होगा अपने कर्तव्य का बोध? कौन कितनी और क्या पहल करता है? गंगा यही निहार रही है।
महाकुम्भ का यह स्नान तभी सफल सिद्ध होगा जबकि नहाने वाले अपने शरीर के मैल की तरह अपने दोष भी त्याग दें। अपनी आस्था, विचार और कर्म को उन प्राचीन ऋषियों जैसा बनायें जिनसे आदि में धर्मज्ञान निःसृत हुआ था। इसी में आपकी मुक्ति है।
गंगा को शुद्ध करें, स्वयं को शुद्ध करें, और शुद्ध, सुरक्षित और प्रामाणिक ईश्वर की वाणी से ज्ञान प्राप्त करें। हरेक बाधा को पार करके रास्ता बनाते हुए अपनी मंज़िल तक पहुँचें जैसे कि गंगा सागर तक पहुँचती है।
गंगा यही सिखाती है लेकिन सीखता वही है जिसे वास्तव में कुछ सीखने और सत्य को पाने की ललक है।
काश! हमारे अन्दर यह ललक जाग जाये।
वेदमार्ग
नूनव्यसे नवीयसे सूक्ताय साधया पथः।
प्रत्नवद् रोचया रूचः ।। ऋग्वेद 1:1:8।।
अनुवाद- नये और नूतनतर सूक्तों के लिए पथ हमवार
करता जा, जैसे पिछले लोगों ने ऋचाओं पर अमल किया था।
यज्ञं प्रच्छामि यवमं।
सः तद्दूतो विवोचति किदं ऋतम् पूर्व्यम् गतम।
कस्तदबिभर्ति नूतनौ।
वित्तम मे अस्य रोधसी।। ऋग्वेद 1:105:4।।
अनुवाद- मैं तुझसे सबसे बाद में आने वाले यज्ञ का सवाल पूछता हूँ। उसकी विवेचना वह पैग़म्बर आकर बताएगा। वह पुराना शरीअत का निज़ाम कहाँ चला गया जो पहले से चला आ रहा था ? उसकी नयी व्याख्या कौन करेगा? हे आकाश पृथ्वी! मेरे दुख पर ध्यान दो।
ग़ज़ल
पानी
क्यों प्यासे गली-कूचों से बचता रहा पानी
क्या ख़ौफ था कि शहर में ठहरा रहा पानी
आखि़र को हवा घोल गयी ज़हर नदी में
मर जाऊंगा, मर जाऊंगा कहता रहा पानी
मैं प्यासा चला आया कि बेरहम था दरिया
सुनता हूँ मिरी याद में रोता रहा पानी
मिट्टी की कभी गोद में, चिड़ियों के कभी साथ
बच्चे की तरह खेलता-हंसता रहा पानी
इस शहर में दोनों की ज़फ़र एक-सी गुज़री
मैं प्यासा था, मेरी तरह प्यासा रहा पानी
ज़फ़र गोरखपुरी (मुंबई)
लिप्यांतरण : अबू शाहिद जमील
इतना जहर घोला गंगाजल में
कानपुर-कानपुर शहर का मैला ढोते-ढोते रूठ गई गंगा ने अपने घाटों को छोड़ दिया है। गंगा बैराज बनाकर भले गंगा का पानी घाटों तक लाने की कवायद हुई मगर वो रौनक शहर के घाटों पर नहीं लौटी। कानपुर शहर गंगा का बड़ा गुनाहगार है। 50 लाख की आबादी का रोज का मैला 36 छोटे-बडे़ नालों के जरिए सीधे गंगा में उड़ेला जाता है। 50 करोड़ लीटर रोजाना सीवरेज गंगा में डालने वाले इस शहर में गंगा एक्शन प्लान, इंडोडच परियोजना के तहत करोड़ों रूपए खर्च किए गए। जाजमऊ में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई और क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दफ्तर इस शहर में स्थापित हैं। गंगा की गोद में सैकड़ों लाशे यूँ ही फेंकी जाती रहीं है और यह हरकत अब तक जारी है। गंगा की गोद के किनारे बसे जाजमऊ की टेनरियों से निकला जहरीला क्रोमियम गंगा के लिए काल बन गया। टेनरियों से निकलने वाले स्लज में क्रोमियम की मात्रा खतरानक स्थितियों तक पहुँच गई, तब भी यह शहर और सरकार के अफसर नहीं जागे। जाजमऊ के दो दर्जन पड़ोसी गाँव शेखपुर, जाना, प्योंदी, मवैया, वाजिदपुर, तिवारीपुर, सलेमपुर समेत अन्य में ग्राउंड वाटर 120 फिट नीचे तक जहरीला हो गया तो प्रशासन के होश उड़ गए। खेत जल गए और अब पशुओं का गर्भपात होने लगा है। काला-भूरा हो गया गंगा का पानी आचमन के लायक तक नहीं बचा।
पुनश्चः
गंगा को शुद्ध करें, स्वयं को शुद्ध करें, और शुद्ध, सुरक्षित और प्रामाणिक ईश्वर की वाणी से ज्ञान प्राप्त करें। हरेक बाधा को पार करके रास्ता बनाते हुए अपनी मंज़िल तक पहुँचें जैसे कि गंगा सागर तक पहुँचती है।
गंगा यही सिखाती है लेकिन सीखता वही है जिसे वास्तव में कुछ सीखने और सत्य को पाने की ललक है।
काश! हमारे अन्दर यह ललक जाग जाये।
Tuesday, February 9, 2010
‘बिस्मिल्लाह’ का चमत्कार
बिस्मिल्लाह के अक्षरों में छिपा रहस्य
पवित्र कुरआन का आरम्भ जिस आयत से होता है वह खुद इतना बड़ा गणितीय चमत्कार अपने अन्दर समाये हुए है जिसे देखकर हरेक आदमी जान सकता है कि ऐसी वाणी बना लेना किसी मुनष्य के बस का काम नहीं है। एकल संख्याओं में 1 सबसे छोटा अंक है तो 9 सबसे बड़ा अंक है और इन दोनों से मिलकर बना 19 का अंक जो किसी भी संख्या से विभाजित नहीं होता।
पवित्र कुरआन का आरम्भ ‘बिस्मिल्लाहिर-रहमानिर रहीम’ से होता है। इसमें कुल 19 अक्षर हैं। इसमें चार शब्द ‘इस्म’(नाम), अल्लाह,अलरहमान व अलरहीम मौजूद हैं। परमेश्वर के इन पवित्र नामों को पूरे कुरआन में गिना जाये तो इनकी संख्या इस प्रकार है-
इस्म-19,
अल्लाह- 2698,
अलरहमान -57,
अलरहीम -114
अब अगर इन नामों की हरेक संख्या को ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम’ के अक्षरों की संख्या 19 से भाग दिया जाये तो हरेक संख्या 19, 2698, 57 व 114 पूरी विभाजित होती है कुछ शेष नहीं बचता।
है न पवित्र कुरआन का अद्भुत गणितीय चमत्कार-
# 19 ÷ 19 =1 शेष = 0
# 2698 ÷ 19 = 142 शेष = 0
# 57 ÷ 19 = 3 शेष = 0
# 114 ÷ 19 = 6 शेष = 0
पवित्र कुरआन में कुल 114 सूरतें हैं यह संख्या भी 19 से पूर्ण विभाजित है।
पवित्र कुरआन की 113 सूरतों के शुरू में ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्ररहीम’ मौजूद है, लेकिन सूरा-ए-तौबा के शुरू में नहीं है। जबकि सूरा-ए-नम्ल में एक जगह सूरः के अन्दर, 30वीं आयत में बिस्मिल्लाहिर्रमानिर्रहीम आती है। इस तरह खुद ‘बिस्मिल्ला- हर्रहमानिर्रहीम’ की संख्या भी पूरे कुरआन में 114 ही बनी रहती है जो कि 19 से पूर्ण विभाजित है। अगर हरेक सूरत की तरह सूरा-ए-तौबा भी ‘बिस्मिल्लाह’ से शुरू होती तो ‘बिस्मिल्लाह’ की संख्या पूरे कुरआन में 115 बार हो जाती और तब 19 से भाग देने पर शेष 1 बचता।
क्या यह सब एक मनुष्य के लिए सम्भव है कि वह विषय को भी सार्थकता से बयान करे और अलग-अलग सैंकड़ों जगह आ रहे शब्दों की गिनती और सन्तुलन को भी बनाये रखे, जबकि यह गिनती हजारों से भी ऊपर पहुँच रही हो?
पहली प्रकाशना में 19 का चमत्कार
पवित्र कुरआन का एक और चमत्कार देखिये-
अन्तिम सन्देष्टा हज़रत मुहम्मद (स.) के अन्तःकरण पर परमेश्वर की ओर से सबसे पहली प्रकाशना (वह्या) में ‘सूरा-ए-अलक़’ की पहली पांच आयतें अवतरित हुईं। इसमें भी 19 शब्द और 76 अक्षर हैं।
76÷19=4 यह संख्या भी पूरी तरह विभाजित है। इस सूरत की आयतों की संख्या भी 19 है।
कुरआन शरीफ़ की कुल 114 सूरतों में यह 96 वें नम्बर पर स्थित है। यदि पीछे से गिना जाये तो यह ठीक 19वें नम्बर पर मिलेगी क्या यह एक कुशल गणितज्ञ की योजना का प्रमाण नहीं है?
कुल संख्याओं का योग और विभाजन
पवित्र कुरआन की आयातों में कुछ संख्याएं आयी हैं। उदाहरणार्थ-
कह दीजिए,“ वह अल्लाह एक है” (कुरआन 112:1)
और वे अपनी गुफा में तीन सौ साल और नौ साल ज़्यादा रहे। (कुरआन 18:25)
इन सारी संख्याओं को इकटठा किया जाए तो वे इस प्रकार होंगी- 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12, 19,20, 30, 40, 50, 60, 70, 80, 99, 100, 200, 300, 1,000, 2,000, 3,000, 5,000, 50,000, 100,000
इन सारी संख्याओं का कुल योग है 16,21,46
यह योग भी 19 से पूरी तरह विभाजित है 162146÷19=8534
क्या अब भी कोई आदमी कह सकता है कि यह कुरआन तो मुहम्मद साहब की रचना है? ध्यान रहे कि उन्हें ईश्वर ने ‘अनपढ़’ (उम्मी) रखा था।
क्या आज का कोई भी पढ़ा लिखा आदमी पवित्र कुरआन जैसा ग्रन्थ बना सकता है।?
क्या अब भी शक-शुबहे और इनकार की कोई गंन्जाइश बाक़ी बचती है?
नर्क पर भी नियुक्त हैं 19 रखवाले
पवित्र कुरआन के इस गणितीय चमत्कार को देखकर आस्तिकों का ईमान बढ़ता है और आचरण सुधरता है जबकि अपने निहित स्वार्थ और अहंकार के वशीभूत होकर जो लोग पवित्र कुरआन को ईश्वरकृत नहीं मानते और उसके बताये मार्ग को ग्रहण नहीं करते। वे मार्ग से भटककर दुनिया में भी कष्ट भोगते हैं और मरने के बाद भी आग के गडढ़े में जा गिरेंगे। उस आग पर नियुक्त देवदूतों की संख्या भी 19 ही होगी।
19 की संख्या विश्वास बढ़ाने का ज़रिया
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है-
फिर उसने (कुरआन को) देखा। फिर (घृणा से) मुँह मोड़ा और फिर अहंकार किया। फिर बोला,“ यह एक जादू है जो पहले से चला आ रहा है, यह मनुष्य का वचन (वाणी है)”
‘मैं, शीघ्र ही उसे ‘सक़र’ (नर्क) में झोंक दूँगा, और तुम्हें क्या मालूम कि सक़र क्या है?
वह न बाक़ी रखेगी, और न छोड़ेगी। वह शरीर को बिगाड़ देने वाली है। उस पर 19 (देवदूत) नियुक्त हैं। और ‘हमने’ उस अग्नि के रखवाले केवल देवदूत (फरिश्ते) बनाए हैं, और ‘हमने’ उनकी संख्या को इनकार करने वालों के लिए मुसीबत और आज़माइश बनाकर रखा है। ताकि पूर्व ग्रन्थ वालों को (कुरआन की सत्यता का) विश्वास हो जाए और आस्तिक किसी शक में न पडें। (पवित्र कुरआन 29:21:31)
मनुष्य का मार्ग और धर्म
पालनहार प्रभु ने मनुष्य की रचना दुख भोगने के लिए नहीं की है। दुख तो मनुष्य तब भोगता है जब वह ‘मार्ग’ से विचलित हो जाता है। मार्ग पर चलना ही मनुष्य का कत्र्तव्य और धर्म है। मार्ग से हटना अज्ञान और अधर्म है जो सारे दूखों का मूल है।
पालनहार प्रभु ने अपनी दया से मनुष्य की रचना की उसे ‘मार्ग’ दिखाया ताकि वह निरन्तर ज्ञान के द्वारा विकास और आनन्द के सोपान तय करता हुआ उस पद को प्राप्त कर ले जहाँ रोग,शोक, भय और मृत्यु की परछाइयाँ तक उसे न छू सकें। मार्ग सरल है, धर्म स्वाभाविक है। इसके लिए अप्राकृतिक और कष्टदायक साधनाओं को करने की नहीं बल्कि उन्हें छोड़ने की ज़रूरत है।
ईश्वर प्राप्ति सरल है
ईश्वर सबको सर्वत्र उपलब्ध है। केवल उसके बोध और स्मृति की ज़रूरत है। पवित्र कुरआन इनसान की हर ज़रूरत को पूरा करता है। इसकी शिक्षाएं स्पष्ट,सरल हैं और वर्तमान काल में आसानी से उनका पालन हो सकता है। पवित्र कुरआन की रचना किसी मनुष्य के द्वारा किया जाना संभव नहीं है। इसके विषयों की व्यापकता और प्रामाणिकता देखकर कोई भी व्यक्ति आसानी से यह जान सकता है कि इसका एक-एक शब्द सत्य है।
आधुनिक वैज्ञानिक खोजों के बाद भी पवित्र कुरआन में वर्णित कोई भी तथ्य गलत नहीं पाया गया बल्कि उनकी सत्यता ही प्रमाणित हुई है। कुरआन की शब्द योजना में छिपी गणितीय योजना भी उसकी सत्यता का एक ऐसा अकाट्य प्रमाण है जिसे कोई भी व्यक्ति जाँच परख सकता है।
प्राचीन धर्म का सीधा मार्ग
ईश्वर का नाम लेने मात्र से ही कोई व्यक्ति दुखों से मुक्ति नहीं पा सकता जब तक कि वह ईश्वर के निश्चित किये हुए मार्ग पर न चले। पवित्र कुरआन किसी नये ईश्वर,नये धर्म और नये मार्ग की शिक्षा नहीं देता। बल्कि प्राचीन ऋषियों के लुप्त हो गए मार्ग की ही शिक्षा देता है और उसी मार्ग पर चलने हेतु प्रार्थना करना सिखाता है।
‘हमें सीधे मार्ग पर चला, उन लोगों का मार्ग जिन पर तूने कृपा की।’ (पवित्र कुरआन 1:5-6)
ईश्वर की उपासना की सही रीति
मनुष्य दुखों से मुक्ति पा सकता है। लेकिन यह इस पर निर्भर है कि वह ईश्वर को अपना मार्गदर्शक स्वीकार करना कब सीखेगा? वह पवित्र कुरआन की सत्यता को कब मानेगा? और सामाजिक कुरीतियों और धर्मिक पाखण्डों का व्यवहारतः उन्मूलन करने वाले अन्तिम सन्देष्टा हज़रत मुहम्मद (स.) को अपना आदर्श मानकर जीवन गुज़ारना कब सीखेगा?
सर्मपण से होता है दुखों का अन्त
ईश्वर सर्वशक्तिमान है वह आपके दुखों का अन्त करने की शक्ति रखता है। अपने जीवन की बागडोर उसे सौंपकर तो देखिये। पूर्वाग्रह,द्वेष और संकीर्णता के कारण सत्य का इनकार करके कष्ट भोगना उचित नहीं है। उठिये,जागिये और ईश्वर का वरदान पाने के लिए उसकी सुरक्षित वाणी पवित्र कुरआन का स्वागत कीजिए।
भारत को शान्त समृद्ध और विश्व गुरू बनाने का उपाय भी यही है।
क्या कोई भी आदमी दुःख, पाप और निराशा से मुक्ति के लिये इससे ज़्यादा बेहतर, सरल और ईश्वर की ओर से अवतरित किसी मार्ग या ग्रन्थ के बारे में मानवता को बता सकता है?
Subscribe to:
Posts (Atom)