सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
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Monday, February 22, 2010
ग़ज़ल व गंगा का चीत्कार
चीज़ें बोलती हैं लेकिन इन्हें सुनता वही है जो इनके संकेतों पर ध्यान देता है। प्रज्ञा, ध्यान और चिंतन से ही मनुष्य अपने जन्म का उद्देश्य जान सकता है। ये गुण न हों तो मनुष्य पशु से भी ज़्यादा गया बीता बन जाता है।
ग़ज़ल
पानी
क्यों प्यासे गली-कूचों से बचता रहा पानी
क्या ख़ौफ था कि शहर में ठहरा रहा पानी
आखि़र को हवा घोल गयी ज़हर नदी में
मर जाऊंगा, मर जाऊंगा कहता रहा पानी
मैं प्यासा चला आया कि बेरहम था दरिया
सुनता हूँ मिरी याद में रोता रहा पानी
मिट्टी की कभी गोद में, चिड़ियों के कभी साथ
बच्चे की तरह खेलता-हंसता रहा पानी
इस शहर में दोनों की ज़फ़र एक-सी गुज़री
मैं प्यासा था, मेरी तरह प्यासा रहा पानी
ज़फ़र गोरखपुरी (मुंबई)
लिप्यांतरण : अबू शाहिद जमील
इतना जहर घोला गंगाजल में
कानपुर-कानपुर शहर का मैला ढोते-ढोते रूठ गई गंगा ने अपने घाटों को छोड़ दिया है। गंगा बैराज बनाकर भले गंगा का पानी घाटों तक लाने की कवायद हुई मगर वो रौनक शहर के घाटों पर नहीं लौटी। कानपुर शहर गंगा का बड़ा गुनाहगार है। 50 लाख की आबादी का रोज का मैला 36 छोटे-बडे़ नालों के जरिए सीधे गंगा में उड़ेला जाता है। 50 करोड़ लीटर रोजाना सीवरेज गंगा में डालने वाले इस शहर में गंगा एक्शन प्लान, इंडोडच परियोजना के तहत करोड़ों रूपए खर्च किए गए। जाजमऊ में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई और क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दफ्तर इस शहर में स्थापित हैं। गंगा की गोद में सैकड़ों लाशे यूँ ही फेंकी जाती रहीं है और यह हरकत अब तक जारी है। गंगा की गोद के किनारे बसे जाजमऊ की टेनरियों से निकला जहरीला क्रोमियम गंगा के लिए काल बन गया। टेनरियों से निकलने वाले स्लज में क्रोमियम की मात्रा खतरानक स्थितियों तक पहुँच गई, तब भी यह शहर और सरकार के अफसर नहीं जागे। जाजमऊ के दो दर्जन पड़ोसी गाँव शेखपुर, जाना, प्योंदी, मवैया, वाजिदपुर, तिवारीपुर, सलेमपुर समेत अन्य में ग्राउंड वाटर 120 फिट नीचे तक जहरीला हो गया तो प्रशासन के होश उड़ गए। खेत जल गए और अब पशुओं का गर्भपात होने लगा है। काला-भूरा हो गया गंगा का पानी आचमन के लायक तक नहीं बचा।
गंगा अपने उद्धार के लिए हमें पुकार रही है। कौन सुनेगा उसका चीत्कार? कौन महसूस करेगा अपना दोष? किसे होगा अपने कर्तव्य का बोध? कौन कितनी और क्या पहल करता है? गंगा यही निहार रही है।महाकुम्भ का यह स्नान तभी सफल सिद्ध होगा जबकि नहाने वाले अपने शरीर के मैल की तरह अपने दोष भी त्याग दें। अपनी आस्था, विचार और कर्म को उन प्राचीन ऋषियों जैसा बनायें जिनसे आदि में धर्मज्ञान निःसृत हुआ था। इसी में आपकी मुक्ति है।गंगा को शुद्ध करें, स्वयं को शुद्ध करें, और शुद्ध, सुरक्षित और प्रामाणिक ईश्वर की वाणी से ज्ञान प्राप्त करें। हरेक बाधा को पार करके रास्ता बनाते हुए अपनी मंज़िल तक पहुँचें जैसे कि गंगा सागर तक पहुँचती है।गंगा यही सिखाती है लेकिन सीखता वही है जिसे वास्तव में कुछ सीखने और सत्य को पाने की ललक है।काश! हमारे अन्दर यह ललक जाग जाये।
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