सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Wednesday, March 31, 2010
मानवता का धर्म है इस्लाम : मौलाना अबुल कलाम आज़ाद Islam : The ultimate way
क़ुरआन कहता है कि खुदा की सच्चाई एक है, आरम्भ से एक है, और सारे इनसानों और समुदायों के लिए समान रूप में आती रही है, दुनिया का कोई देश और कोई कोना ऐसा नहीं जहाँ अल्लाह के सच्चे बन्दे न पैदा हुए हों और उन्होंने सच्चाई की शिक्षा न दी हो, परन्तु सदैव ऐसा हुआ कि लोग कुछ दिनों तक उस पर क़ाएम रहे फिर अपनी कल्पना और अंधविश्वास से भिन्न भिन्न आधुनिक और झूटी बातें निकाल कर इस तरह फैला दीं कि वह ईश्वर की सच्चाई इनसानी मिलावट के अंदर संदिग्ध हो गई।इस्लाम दुनिया में कोई नया धर्म स्थापित नहीं करना चाहता
बल्कि उसका आंदोलन स्वंय उसके बयान के अनुसार मात्र यह है कि संसार में
प्रत्येक धर्म के मानने वाले अपनी वास्तविक और शुद्ध सत्य पर आ जाएं और बाहर से
मिलाई हुई झूटी बातों को छोड़ दें- यदि वह ऐसा करें तो जो आस्था उनके पास होगी उसी
का नाम क़ुरआन की बोली में इस्लाम है।
क़ुरआन यही कहता है और उसकी बोली में उसी मिली जुली और विश्वव्यापी सत्यता का नाम “इस्लाम” है।
लेखक सलीम ख़ान, स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़
साभार हमारी अंजुमन
Tuesday, March 30, 2010
क्यों चीर डाला अवध्य बाबू का जबड़ा खिलाड़ी ब्लॉगर्स की मीटिंग में गिरी जैसे semi scholar ने, पान के देश में ? और क्या कहा वकील साहब ने ...?
Monday, March 29, 2010
ताकि आपके बच्चों के सामने ‘मार्ग‘ क्लियर रहे और वे ‘Live in relationship‘ की गंदी दलदल में न जा धंसें और आपको ऐसे बच्चों का नाना दादा न बनना...
कौन जाने कि मैं तारीख़ का आईना हूं
Posted by DR. ANWER JAMAL at 8:03 PM
क्या इस पोस्ट में आपको कुछ भी ग़लत मालूम होता है । नहीं न । लेकिन इसके बावजूद एक आर्य समाजी नैनसुख ‘राज‘ आये और यह टिप्पणी पेल गये -
लेकिन सभी तो नैनसुख नहीं होते । कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके चेहरों के साथ उनकी अक़्लें भी नूरानी होती हैं । शाहनवाज़ भाई ऐसे ही एक आदमी हैं । उन्होंने ‘राज‘ नामक उस नैनसुख को जो जवाब दिया आप भी उसके सही या ग़लत होने का फ़ैसला कीजिये -
हां , अब भी कोई यह कह सकता है कि शाहनवाज़ तो आपके साथी हैं वे तो आपको सपोर्ट करेंगे ही , लेकिन Mr. Rakesh Ravi तो हमारे साथी नहीं हैं । हमारे लेख की तारीफ़ तो उन्होंने भी की है । देखिये -
इनके अलावा भी बहुत से भाइयों ने लेख की सराहना की है । मैं इन सभी भाइयों का बहुत बहुत आभारी हूं लेकिन उनका काम सराहना पर समाप्त नहीं हो जाता , बल्कि इस तरह तो वे स्वयं को उस दिव्य ज्ञान का पात्र कह रहे होते हैं जो उस मालिक ने ऋषियों के अन्तःकरण पर मानवजाति के कल्याण हेतु उतारा था ।
Sunday, March 28, 2010
हे परमेश्वर शिव ! अपने भक्त भोले शिव के नादान बच्चों को क्षमा कर दे क्योंकि वे नहीं जानते कि वे आपके प्रति क्या अपराध कर रहे हैं ? Prayer
सत्यस्वरूप परमेश्वर शिव के सुन्दर नाम से आरम्भ करता हूं जो सारी कायनात का अकेला मालिक है । कोई ब्रहमा और कोई विष्णु न उसकी सत्ता में साझीदार हैं और न ही सहायक , बल्कि ये दोनों पवित्र नाम भी उसी परम शिव के हैं । हरेक भाषा में सृष्टा , पालनहार और संहत्र्ता के लिए प्रयुक्त हज़ारों हज़ार नाम भी उसी एक सदाशिव के हैं । अरबी भाषा में अल्लाह , रहमान ,रहीम और रब आदि नाम भी उसी महाशिव के हैं । उसके सिवा न कोई स्वामी है और न ही कोई पूज्य । अकल्पनीय सृष्टि के स्वामी का रूप भी अकल्पनीय है ।
किसी चित्रकार में इतनी ताक़त नहीं है कि वह उसका चित्र बना सके ।
किसी मूर्तिकार के बस में नहीं कि वह उस निराकार का आकार बना सके । जिसने भी जब कभी जो कुछ बनाया अपनी कल्पना से बनाया , अपनी तसल्ली के लिए बनाया ।
सत्यस्वरूप शिव हरेक कल्पना से परे है ।
उसके हज़ारों हज़ार नामों के बावजूद वास्तव में उसका कोई नाम नहीं है । कोई भी लफ़्ज़ इतना व्यापक नहीं है कि उस अनन्त सत्य का पूरा परिचय प्रकट कर सके ।
वह पवित्र है ।
सारी स्तुति वन्दना का वास्तविक अधिकारी वही अकेला अनादि शिव है । सारी सृष्टि उसी के सुन्दर गुणों को दिखाने वाला दर्पण मात्र है । हर ओर वही व्याप रहा है , बस वही भास रहा है लेकिन इसके बावजूद न कोई उसका अंश है और न ही वंश । उसने सृष्टि की उत्पत्ति अपने अंश से नहीं बल्कि अपने संकल्प से की ।
महिमावान है मेरा प्रभु महाशिव
जो असत् ( अदम ) से सत ( वुजूद ) की सृष्टि करने में समर्थ है । उसी ने आदिमानव अर्थात आदम को शिवरूप बनाया । उनके वामपक्ष से पार्वती अर्थात हव्वा को पैदा किया । इन्हीं को ब्रह्मा और सरस्वती भी कहा गया । समय गुज़रता गया बात पुरानी पड़ने लगी और यादें धुंधलाने लगीं । लोगों ने फिर भी उन्हें याद रखा । कवियों ने उनकी कथाओं को अलंकारों से सजाया । दार्शनिकों ने भी जटिल प्रश्नों का समाधान तलाशना चाहा और खुद जटिलताओं के शिकार हो गये ।
वाम मार्गी भी आये आये और कामाचारी पापाचारी भी पैदा हुए ।
उन्होंने स्वयं को ईश्वरीय गुणों का दर्पण बनाने के बजाय धर्म को ही अपनी दूषित वासनाओं की पूर्ति का साधन बना लिया । धर्म भीरू जनता गुरूभक्ति में उन इच्छाधारियों का विरोध श्रद्धावश न कर सकी । नशा , व्यभिचार और बुज़दिली वग़ैरह जो बुराइयां खुद इन पाखण्डियों में थी , वे सब इन्होंने अनादि शिव और आदि शिव में कल्पित कर लीं और लोगों को ऐसी विस्मृति के कुएं में धकेल दिया , जहां वे अनादि शिव और आदि शिव का अन्तर ही भूल गए और जब जानने वाले ने उन्हें मानवता का बिसरा दिया गया इतिहास याद दिलाना चाहा तो स्मृति लोप के कारण उन्हें उसकी बातें अजीब सी तो लगीं मगर अच्छी भी लगीं ।
हरेक कमी , ऐब और दोष से पवित्र है वह सृष्टिकर्ता शिव ।
उसकी शान तो इससे भी ज़्यादा बुलन्द है कि कोई सद्गुण ही उसे पूरा व्यक्त कर सके । हरेक लफ़्ज़् उसके सामने छोटा और हरेक उपमा उसके लिए अधूरी है ।
सुब्हान अल्लाह - पवित्र है प्रभु परमेश्वर ।
अल्हम्दुलिल्लाह - सच्ची स्तुति वन्दना केवल परमेश्वर के लिए है ।
अल्लाहु अकबर - परमेश्वर ही महानतम है ।
अर्थःरिवायात - परम्पराएं , तारीख़ - इतिहास
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हे परमेश्वर शिव ! अपने भक्त भोले शिव के नादान बच्चों को क्षमा कर दे क्योंकि वे नहीं जानते कि वे आपके प्रति क्या अपराध कर रहे हैं ?
गिरी जी भी इसलाम में कमियां निकाल रहे हैं और तसलीमा भी लेकिन गिरी जी को तसलीमा की तरह नाम पैसा और प्रसिद्धि क्यों नहीं मिल पा रही है ? Why ?
Saturday, March 27, 2010
हज़रत मुहम्मद साहब स. ने बताया कि बाप के मुक़ाबले माँ तीन गुना ज़्यादा आदर और सेवा की हक़दार है । Greater than Paradise .
जो धारणीय है , वह धर्म है । धर्म का स्रोत ईश्वर है । ईश्वर किसी आदर्श मनुष्य के अन्तःकरण में अपनी वाणी का अवतरण करता है और उसे जीवन जीने की विधि सिखाने वाला विधान देता है । कुछ लोग धर्म से हटकर अपने अनुमान से कुछ नियम क़ानून बनाते हैं । यह धर्म नहीं दर्शन कहलाते हैं । ईश्वर सदा से है और उसका धर्म भी सदा से है । समय समय पर ऋषि हुये और उन्होंने लोगों को मूल धर्म का ज्ञान दिया । घटिया परम्पराओं और रूढ़ियों का सफ़ाया किया । अच्छी बातों और परम्पराओं की शिक्षा दी । बड़ों का आदर करना भी एक अच्छी आदत और अच्छी परम्परा है । फिर बड़प्पन के भी दर्जे हैं । हम बड़े भाई का भी आदर करते हैं और अपने पिताजी का भी , लेकिन बाप का आदर ज़्यादा करते हैं और बड़े भाई का उनसे कम । यह स्वाभाविक है । बाप ने हमें जन्म दिया है । हमारी देखरेख की है । हमारी ज़रूरतें पूरी की हैं । उसका हम पर उपकार ज़्यादा है । माँ का उपकार हम पर बाप से भी ज़्यादा है । हमें पैदा करने की ख़ातिर उसने मृत्यु तुल्य कष्ट उठाया है । अपने ख़ून से बना दूध पिलाया , हमें पालने में उसका रूप रंग और समय सभी कुछ बीत गया । उसने अपने बदन की सारी ताक़त हमारे अन्दर उतार दी । खुद ढल गई और हमें परवान चढ़ा दिया । हज़रत मुहम्मद साहब स. ने इसी हक़ीक़त का ऐलान करते हुए बताया कि जन्नत माँ के क़दमों के तले है । बताया कि बाप के मुक़ाबले माँ तीन गुना ज़्यादा आदर और सेवा की हक़दार है । और यह भी बताया कि दूसरे गुनाहों में से अल्लाह जिस गुनाह को चाहे माफ़ कर सकता है या उसकी सज़ा को परलोक के लिए टाल सकता है लेकिन माँ बाप की नाफ़रमानी करना , उनसे बदतमीज़ी करना और उनका दिल दुखाना ऐसा गुनाह है कि इसके करने वाले को अल्लाह तब तक मौत नहीं देता जब तक कि उसे दुनिया में ज़लील व रूसवा न कर दे ।
गुरू भी आदरणीय है । गुरू ही वह आदमी है जो इनसान को सही ग़लत की तमीज़ सिखाता है । इन अर्थां में भी हरेक इनसान का पहला गुरू उसकी मां होती है । वही उसे बोलना चलना और सभ्यता के नियम सिखाती है । बाद के गुरू उस मां की बीज रूप शिक्षा को ही पूर्णता तक पहुंचाते हैं । इनसान पर गुरू का उपकार भी बहुत बड़ा है । ईश्वर का उपकार इनसान पर सबसे ज़्यादा है । उसी ने माँ बाप बनाये । उसी ने उनके माध्यम से इनसान को जन्म दिया । उसी ने गुरू को पैदा किया और गुरू को ज्ञान दिया । उसी ने सारी कायनाती ताक़तों और देवताओं को इनसान की सेवा में लगाया । जीवन के लिए आवश्यक हर चीज़ उसने हमें प्रदान की । उसके किसी एक उपकार को भी कोई आदमी पूरी तरह नहीं जान सकता ।ईश्वर का उपकार मनुष्य पर सबसे ज़्यादा है । इसीलिये सबसे ज़्यादा आदर का हक़दार भी केवल ईश्वर है । वह एक है । वह अनादि , अनन्त , सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है । जो ज़्यादा जानता है और ज़्यादा ताक़त रखता है उसकी बात कोई नहीं टालता क्योंकि उसकी बात सदा हितकारी होती है । यह एक स्वाभाविक बात है ।शिव नाम ही अपने अन्दर कल्याण का गुण दर्शाता है और पवित्र कुरआन में भी अल्लाह ने अपना परिचय रहमान और रहीम कहकर दिया है अर्थात अनन्त दयावान और कृपाशील ।जैसा वह है और जैसा ऋषियों के माध्यम से उसने अपना परिचय हमें दिया है , वैसा ही उसे जानना मानना सत्य का तक़ाज़ा है और जैसा आदेश वह दे उसका पालन करना उसका सच्चा आदर करना है । आदर के सर्वोच्च दर्जे का हक़दार सिर्फ़ वही अनादि शिव है । आदर दिल की भावना का नाम है जिसे प्रकट करने के लिए इनसान हाथ जोड़ने , चूमने , सर झुकाने और ज़मीन पर घुटने टेकने या ज़मीन पर माथा टेकने आदि क्रियाओं का सहारा लेता है । ज़मीन पर अपने घुटने टेक कर अपनी नाक और अपना माथा रख देना इनसान के पूर्ण समर्पण का प्रतीक और आदर की पराकाष्ठा है । सबसे अधिक आदर और पूर्ण समर्पण को प्रकट करने के लिए इससे ज़्यादा बेहतर क्रिया सम्भव ही नहीं है ।इसीलिए यह केवल परमेश्वर के लिए जायज़ है । दूसरों के लिए इससे कम दर्जे की क्रिया किये जाने का प्रावधान है।दूसरों के प्रति भी जो आदर सम्मान हम दिल में रखते हैं और अपने अल्फ़ाज़ में और अपनी क्रियाओं में उसे प्रकट करते हैं तो वास्तव में वह भी ईश्वर के प्रति ही अपनी अहसानमन्दी जताना है ।
हजरे अस्वद को चूमना जायज़ है लेकिन उसे ईश्वर की भांति सज्दा या साष्टांग करना नाजायज़ और वर्जित है । एक आदमी को किसी कम्पटीशन में कामयाबी मिलती है और उसे आयोजक की तरफ़ से कोई यादगार निशान दिया जाता है तो वह खुशी में बेइखितयार होकर चूम लेता है । दुनिया जानती है कि यह एक स्वाभाविक क्रिया है । कोई भी यह नहीं समझता कि वह उस चिन्ह की पूजा कर रहा है ।हजरे अस्वद भी उस कम्पटीशन के बाद ही तो ईश्वर ने आदि शिव आदिम् अर्थात आदम को दिया था जिसमें देवताओं को आदम की पात्रता पर सन्देह था । तब परमेश्वर ने उनको अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए कहा और आदम ने वे रहस्य प्रकट कर दिये जिन्हें देवता भी न जानते थे। तब सारे देवता आदि शिव के सामने आदरवश झुक गये । यह काला पत्थर धरती के दूसरे पत्थरों की तरह का कोई मामूली सा पत्थर नहीं है कि चलो चूमना ही तो है । वह न सही यही चूम लो । जब आदम ने इसे चूमा था तब हम उनके जिस्म में सूक्ष्म रूप में मौजूद थे । विजय और उल्लास का वह क्षण केवल एक अकेले आदम की ही उपलब्धि न थी बल्कि वह पूरी मानवजाति की उपलब्धि थी और आदम उस समय उसके प्रतिनिधि थे ।आदि शिव का इस चिन्ह को चूमना एक स्वाभाविक क्रिया थी । हमें अब ‘शरीर मिला है । हम अब चूमते हैं । इस तरह हम अपने आदि पिता के व्यवहार का ही अनुकरण करते हैं । पैतृक गुणों और परम्पराओं के पालन का नाम ही तो धर्म है । जो कुछ धारणीय है उसे हमारे पिता ने धारण करके और उसका पालन करके दिखा दिया है । हमें तो केवल उसका अनुकरण मात्र करना है । और जो कोई अपने पिता के मार्ग से हटकर चला उसने उनकी अवज्ञा की और जिसने उनकी अवज्ञा की । वह तब तक मर नहीं सकता जब तक कि वह दुनिया में ज़िल्लत व रूसवाई की यातना न भोग ले । ज़्यादातर आदमी आज ज़िल्लत व रूसवाई का अज़ाब भोग रहे हैं । कोई सरकार और कोई ओल्ड एज होम उन्हें इस अज़ाब से मुक्ति नहीं दे सकता । सिवाये इसके कि अपने पिता की आज्ञा और उनकी परम्परा के पालन को अपने जीवन का विधान बनाया जाए । हजरे अस्वद यही याद दिलाता है । आओ अपने पिता के धर्म की ओर , आओ ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण की ओर । आओ सफलता की ओर , आओ स्वर्ग की ओर ।
अनादि अनन्त महाशिव की जय जयकार ।
सबके माता पिता की जय , धर्म की जय ।
ताकि हरेक जान ले कि सच्चा मुसलमान कैसा होता है ? Submission to Allah, The real God .
Friday, March 26, 2010
लेकिन क्या वाक़ई हरेक सम्भोग के नतीजे में बच्चा पैदा होना लाज़िमी है ?Sex is a heavenly gift.
फ़रिश्ते से बेहतर है इन्सां बनना
मेरे प्रिय श्री रामचन्द्र जी को उनके कुल सहित नष्ट करने की धमकी देने वाला और उन्हें सचमुच नष्ट करने वाला दुर्वासा भी क्या मुसलमान था ? Balmiki Ramayna
यह इस लायक़ नहीं कि इसे ज़्यादा स्पेस दिया जाए इसे तो हम यूं ही चलता कर देंगे । बेशक हमने अपने विरोधी प्रवीण जी का विरोध किया है लेकिन अपनी पोस्ट में उन्हें इतना ज़्यादा स्पेस देकर हमने उनके प्रति अपने प्रेम को ही प्रकट किया है ।निःसन्देह वे मेरे विरोधी हैं लेकिन एक बेतरीन विरोधी हैं । एक बेहतरीन आदमी हैं । उनकी वाणी से मैंने कभी कोई गाली निकलते हुए नहीं सुनी ।
...और ए बी उर्फ़ अर्ध बुद्धि ! ये बता कि तू छोटा है या झूठा है ।
Thursday, March 25, 2010
शिव वंश के मरते मिटते सदस्यों को कौन यह बोध कराएगा कि वास्तव में वे आपस में सगे सम्बंधी और एक परिवार हैं ? Holy Family of Aadi Shiva
समस्त आकाशगंगाओं का वह अकेला स्वामी है । खरबों सूर्य उसके वशीभूत हैं । उसके महान और दिव्य तेज के सामने सभी सूर्यों की आभा शून्य है । वही जीवन का स्रोत है और मृत्यु भी उसी के अधीन है । न तो उसका विशाल अन्तरिक्ष हमारी नज़र में समा सकता है , और न ही उसका वह रूप हमारी कल्पना में आ सकता है जैसा कि वास्तव में वह है ।
उसका हरेक काम सार्थक है ।
सारे जग में हुक्म है तो बस उसका और और सच्चा प्रभुत्व है तो बस उसका ।
जिसे वह देना चाहे तो कोई उसे रोकने वाला नहीं और जिसे वह न देना चाहे तो उसे कोई देने वाला नहीं । उसके सारे कामों में से किसी एक काम की पूरी हक़ीक़त से भी कोई वाक़िफ़ नहीं है
और शांति हो आदम अर्थात आदि शिव पर अनादि शिव अल्लाह की ओर से ।
और शांति सारी मानवजाति की जननी मां हव्वा पर अर्थात जगत जननी माता पार्वती पर ।
शांति हो हम सब पर , हम जोकि उनका अंश भी हैं और उनका वंश भी ।
धर्म और मार्ग तो बस वही है जिसे अनादि शिव ने स्वयं निर्धारित किया और जिसका पालन परम पिता आदि शिव और माता पार्वती जी ने किया ।
जिसने उन्हें फ़ोल्लो (Follow) किया उसने अपना कल्याण किया और जिसने उनसे हटकर अपनी वासना से कोई नई रीत निकाली तो निश्चय ही उसने अपनी तबाही का सामान कर लिया ।
क्या है वह कल्याणकारी धर्म मार्ग , जिसे अनादि शिव ने आदि शिव पर प्रकट किया था ?
वह कहां अंकित है ?
वह कहां सुरक्षित है ?
जन जन को समता और ऐश्वर्य देने वाले उस मार्ग को अब कौन बताएगा ?
अलंकारों को उनके वास्तविक अर्थों में अब कौन समझेगा और विकारों को कौन हटाएगा ?
शिव वंश के मरते मिटते सदस्यों को कौन यह बोध कराएगा कि वास्तव में वे आपस में सगे सम्बंधी और एक परिवार हैं ?गुरू वही है जो अंधकार से प्रकाश में लाये । चेहरों को भी प्रकाश में ही पहचाना जा सकता है और हक़ीक़तों को पहचानने के लिए भी प्रकाश चाहिये , ज्ञान का प्रकाश । अंधकार को गर है मिटाना तो लाज़िम है ज्ञान को पाना (...जारी)
@ अन्य मक़सद धारी प्रिय अमित जी ,
मैंने किसी आपत्ति करने वाले हिन्दू के जनेऊ धारण न करने पर उसे अपने धर्म नियम की पाबन्दी के लिए तो ज़रूर कहा है लेकिन उसे छोड़ने के लिए कहां और कब कहा है , बताइये ?
जो बात मैंने कही नहीं उस पर मुझ पर बिगड़ने का क्या मतलब है ?
आपके जनेऊ आदि छुड़वाये हैं कबीर जी , नानक साहिब और अम्बेडकर आदि ने , सॉरी अम्बेडकर जी के लिए तो आपके यहां जनेऊ पहनना ही वर्जित है । बहरहाल जो भी हो , आप इनसे पूछिये कि इन्होंने ऐसा क्यों किया ?
इन्हें तो आपने सन्त और सुधारक घोषित कर दिया , इनसे आप कैसे पूछेंगे ?
मूतिर्यों पर भी बुलडोज़र मैंने कभी नहीं चलवाया और न ही ऐसा कहीं कहा है ?
आप संस्कृति रक्षक श्री मोदी जी के काम के साथ मेरा नाम क्यों जोड़ रहे हैं ?
गुजरात में मन्दिरों पर बुल्डोज़र उन्होंने चलवाया , उन्हीं से पूछिये ?
मैं तो वैदिक धर्म को मूलतः निर्दोष मानता हूँ । उसमें सुधार चाहता हूं ।
दयानन्द जी और पं. श्री राम आचार्य जी भी जीवन भर वैदिक धर्म के विकारों को अपने विचारों के अनुसार दूर करते रहे ।
मैं भी दूर करना चाहता हूं क्योंकि मैं इसी पवित्र भूमि का पुत्र हूं , मैं भी हिन्दू हूं । क्या मुझे इसका हक़ नहीं है ?अगर नहीं है , तो क्यों नहीं है ?
और मुझे वह हक़ पाने के लिए क्या करना पड़ेगा , जो कि हरेक हिन्दू को प्राप्त है ?
आप प्रायः वे सवाल उठाते हैं जिनका मौजूदा पोस्ट से कोई ताल्लुक़ नहीं होता । पिछली पोस्ट शिव महिमा पर थी , आप को उसमें जो ग़लत लगे उस पर ज़रूर टोकिये लेकिन ...
अब आपको क्या समझाया जाए , आप कोई बच्चे तो हैं नहीं ।
अभी मैं कुछ दिन शिव और महाशिव का गुण बखान करने के मूड में हूं ।
इसलिये प्लीज़ शांति से देखते रहिये । हां , जहां मैं कोई ग़लत बात कहूं वहां ज़रूर टोकिये या फिर आप मुझ से ज़्यादा ज्ञानियों के ब्लॉग्स पर जाकर भी अपने समय और ऊर्जा का सदुपयोग कर सकते हैं । इस तरह मेरी टी.आर.पी. भी डाउन हो जायेगी और यह ब्लॉग गुमनामी के अन्धेरे में खो जाएगा । लेकिन अगर आप आते रहे और कमेन्ट्स देते रहे तो यह ब्लॉग बना रहेगा ।
अगर यह ब्लॉग ग़लत है तो कृपया , इसे न देखकर , इसे मिटा दें ।
किसी पुराने तजर्बेकार ने यह सलाह आपको दी भी है ।
सलाह अच्छी है , आज़माकर तो देखें ।
ख़ैर , एक शेर अर्ज़ है -
Wednesday, March 24, 2010
शिवलिंग की हक़ीक़त क्या है ? The universe is a sign of Lord Shiva .
भक्त को भगवान के साथ एकाकार होने की ज़रूरत क्यों पड़ी ?
ईश्वर शिव है , सत्य है , सुन्दर है , शान्ति और आनन्द का स्रोत है । ईश्वर सभी उत्कृष्ट गुणों से युक्त हैं । सभी उत्तम गुण उसमें अपनी पूर्णता के साथ मौजूद हैं । सभी गुणों में सन्तुलन भी है ।
प्रकृति की सुन्दरता और सन्तुलन यह साबित करता है कि उसके सृष्टा और संचालक में ये गुण हैं । प्राकृतिक तत्वों का जीवों के लिए लाभदायक होना बताता है कि इन तत्वों का रचनाकार सबका उपकार करता है ।
इन्सान अपना कल्याण चाहता है । यह उसकी स्वाभाविक इच्छा है । बल्कि स्वहित चिन्ता तो प्राणिमात्र की नैसर्गिक प्रवृत्ति है ।
जब इन्सान देखता है कि ज़ाहिरी नज़र से फ़ायदा पहुंचाते हुए दिख रहे प्राकृतिक तत्व तो चेतना , बुद्धि और योजना से रिक्त हैं तो फिर आखि़र जब इन जड़ पदार्थों में योजना बनाने की क्षमता ही सिरे से नहीं है तो फिर ये अपनी क्रियाओं को सार्थकता के साथ कैसे सम्पन्न कर पाते हैं ?
थोड़ा सा भी ग़ौर करने के बाद आदमी एक ऐसी चेतन शक्ति के वुजूद का क़ायल हो जाता है , जो कि प्रकृति से अलग है और जो प्रकृति पर पूर्ण नियन्त्रण रखता है।
सारी सृष्टि उस पालनहार के दिव्य गुणों का दर्पण और उसकी कुदरत का चिन्ह है ।
सारी सृष्टि स्वयं ही एक शिवलिंग है ।
इस सृष्टि का एक एक कण अपने अन्दर एक पूरी कायनात है ।
इस सृष्टि का एक एक कण शिवलिंग है ।
न तो कोई जगह ऐसी है जो शिव से रिक्त हो और न ही कोई कण क्षण ऐसा है जिसमें शिव के अलावा कुछ और झलक रहा हो ।
ईश्वर ने समस्त प्रकृति में फैले हुए अपने दिव्य गुणों को जब लघु रूप दिया तो पहले मानव की उत्पत्ति हुई । अजन्मे अनादि शिव ने एक आदि शिव को अपनी मनन शक्ति से उत्पन्न किया ।
( ...जारी )
ऋषियों ने सत्य को अलंकारों के माध्यम से प्रकट किया । कालान्तर में ज्ञान के स्तर में गिरावट आई और लोगों ने अलंकारों को न समझकर नई व्याख्या की । हरेक नई व्याख्या ने नये सवालों को जन्म दिया और फिर उन सवालों को हल करने के लिए नये नये पात्र और कथानक बनाये गये ।
इस तरह सरल सनातन धर्म में बहुत से विकार प्रवेश करते चले गये और मनुष्य के लिए अपने सच्चे शिव का बोध कठिन होता चला गया ।
शिव को पाना तो पहले भी सरल था और आज भी सरल है लेकिन अपने अहंकार को त्यागना पहले भी कठिन था और आज भी कठिन है ।
क्या मैंने कुछ ग़लत कहा ?
मैं सभी की भावनाओं को पूरा सम्मान दे रहा हूं और अपने लिए भी यही चाहता हूँ ।
Tuesday, March 23, 2010
क्या वाक़ई हज्रे अस्वद शिवलिंग है ? Black stone : A sign of ancient spiritual history.
Monday, March 22, 2010
क्या काबा सनातन शिव मंदिर है ? Is kaba an ancient sacred hindu temple?
उसके बाद आज ब्लॉगिस्तान के वटपुरूष माननीय श्री ए बी इन्कनविनिएन्ट जी ने भी इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने की बड़ी सुन्दर कोशिश की है ।
हिन्दू मुसलिम भाइयों के बीच एकता के बिन्दुओं में पवित्र काबा एक प्रमुख बिन्दु है ।