सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Friday, April 30, 2010
गृहमंत्रालय के संयुक्त सचिव ओ. रवि के फंड मैनेजर राकेश रस्तोगी को सी बी आई ने गिरफ्तार कर लिया । For money sake .
आखि़र ऐसा क्यों होता है कि जब माधुरी गुप्ता को देश से ग़द्दारी करते हुए पकड़ा जाता है वह केवल एक व्यक्ति को बुरा मानकर बात आई गई कर दी जाती है जबकि उसी जुर्म में अगर किसी मुसलमान को पकड़ लिया जाए तो फिर सारे मुसलमानों को निशाने पर ले लिया जाता है बल्कि यह तक कहा जाता है कि इनको ऐसे कामों की प्रेरणा इनका धर्मग्रन्थ देता है ?
भाई मनुज जी ने कहा कि हिन्दुओं में ऐसे केस कम सामने आये हैं । मैं विनती करूंगा कि पहले इसरो जासूसी कांड जैसे सभी केसेज़ के मुजरिमों के नाम देख लीजिये , फिर बताइये । इसरो जासूसी कांड देश पर एक बड़ा धब्बा था जिसे जांच एजेन्सी ने अपने ‘हुनर‘ से धोकर देश की लाज रख ली । ‘देश की लाज‘ इस तरह कई बार रखी गई ।
देश के खि़लाफ़ जासूसी करना और आतंकवाद में लिप्त रहना जघन्यतम अपराध है लेकिन किसी भी सरकारी पद का दुरूपयोग भी उससे ज़रा कम सही लेकिन है जघन्यतम अपराध ही । देखिये -
रवि के लॉकर में 23 लाख
नई दिल्ली । गृहमंत्रालय के संयुक्त सचिव ओ. रवि के फंड मैनेजर राकेश रस्तोगी को सी बी आई ने गिरफ्तार कर लिया । सीबीआई ने राकेश के क़ब्ज़े से ओ. रवि के लिए घूस में ली गई 22 लाख 75 हज़ार रूपए एक्सिस बैंक के लॉकर से बरामद कर लिए हैं ।
हिन्दुस्तान , 30-04-2010 से साभार
इतनी गंभीर ख़बर को पतले फ़ोंट की मात्र 6 लाइनों में निपटा दिया गया । रिश्वत लेना इस समाज के लिए कोई चैंकाने वाली ख़बर नहीं है । हरेक विभाग में रिश्वत ली और दी जा रही है । फ़र्क़ सिर्फ़ कम ज़्यादा का है । आप रिश्वत देकर नकली मेडिकल सर्टिफ़िकेट बनवा सकते हैं फिर आप पुलिस को रिश्वत देकर मुक़द्दमा भी क़ायम कर सकते हैं । रिश्वत के बल पर आप अपने खि़लाफ़ मुक़द्दमे की चाल सुस्त कर सकते हैं । अपने खि़लाफ़ सम्मन लेकर आने वाले सिपाही को प्रतिवादी मात्र 100-200 रूपये देता है और वह लिख देता है कि प्रतिवादी नहीं मिला । ख़र्चे के लिए मुक़द्दमा क़ायम करने वाली दहेज पीड़िताओं के सम्मन 3-4 साल में भी तामील नहीं हो पा रहे हैं । रिश्वत देकर आप ट्रेन में रिज़र्वेशन करवा सकते हैं । रिश्वत के बल पर इस देश में आतंकवादी पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने में कामयाब हो जाते हैं ।
इतनी गंभीर ख़बर को पतले फ़ोंट की मात्र 6 लाइनों में निपटा दिया गया । रिश्वत लेना इस समाज के लिए कोई चैंकाने वाली ख़बर नहीं है । हरेक विभाग में रिश्वत ली और दी जा रही है । फ़र्क़ सिर्फ़ कम ज़्यादा का है । आप रिश्वत देकर नकली मेडिकल सर्टिफ़िकेट बनवा सकते हैं फिर आप पुलिस को रिश्वत देकर मुक़द्दमा भी क़ायम कर सकते हैं । रिश्वत के बल पर आप अपने खि़लाफ़ मुक़द्दमे की चाल सुस्त कर सकते हैं । अपने खि़लाफ़ सम्मन लेकर आने वाले सिपाही को प्रतिवादी मात्र 100-200 रूपये देता है और वह लिख देता है कि प्रतिवादी नहीं मिला । ख़र्चे के लिए मुक़द्दमा क़ायम करने वाली दहेज पीड़िताओं के सम्मन 3-4 साल में भी तामील नहीं हो पा रहे हैं । रिश्वत देकर आप ट्रेन में रिज़र्वेशन करवा सकते हैं । रिश्वत के बल पर इस देश में आतंकवादी पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने में कामयाब हो जाते हैं ।
जो जिस सीट पर बैठा है उसे बेचने में लगा है ।
देश की इन सीटों पर मुसलमान तो बैठे नहीं हैं । बताइये पूरे देश को बेचने वाले इन लोगों पर लगाम लगाने के लिए क्या किया जा रहा है ?
ये अधिसंख्य लोग जिस धर्म से संबंध रखते हैं क्या इनके कुकर्मों के कारणों को इनके धर्म की शिक्षाओं में तलाशने की कोशिश की जाती है ?
क्या इन मुजरिमों के साथ इनके सारे समाज को कभी सन्देह की नज़र से देखा गया ?
बताइये इनकी तादाद ग़द्दार मुसलमानों से ज़्यादा है या कम ?
देश के 2 लाख किसान महाजनों के क़र्ज़ में दबकर आत्महत्या कर लेते हैं । यह संख्या पाक समर्थित आतंकवाद में मारे जाने वालों से ज़्यादा है या कम ?
जमाख़ोरी और कालाबाज़ारी करके महंगाई बढ़ाने वाले किस धर्म को मानते हैं ?
आज भारत का बाज़ार किस धर्म के मानने वालों के क़ब्ज़े में है ?
देश की जनता ने हरेक पार्टी को आज़माया लेकिन क्या कोई भी पार्टी जनता को आज तक लूट हत्या मर्डर अपहरण और बलात्कार से मुक्ति दिला पाई ?
पूरे भारत में शराब और नशे को बढ़ावा देने वाले व्यापारी किस धर्म को मानते हैं ?
देश में नशे और नंगेपन का चलन आम है और जनता असुरक्षित है और उसे रोटी और इलाज भी मुहय्या नहीं हो पा रहा है ।देश के विकास में लगने वाला रूपया किन लोगों के हाथों में रहता है ?
देश का 70 हज़ार करोड़ रूपया विदेशों में जमा करने वाले ग़द्दार किस धर्म को मानते हैं ?
इसी तरह दूसरे बहुत से भयानक जुर्म हैं जिनके मुजरिमों को अक्सर नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है जिससे समाज में अविश्वास और असुरक्षा का भाव पैदा होता है ।
भाई मनुज की भावनाओं की मैं क़द्र करता हूं क्योंकि वे देश का उत्थान चाहते हैं और मैं भी यही चाहता हूं लेकिन यह तभी संभव होगा जबकि किसी भी मुजरिम को तो बख्शा न जाए और किसी बेगुनाह को सताया न जाए ।
भारत एक धार्मिक बहुलतावादी देश है । अलग अलग समुदायों की आत्मा और कर्मफल सम्बन्धी अलग अलग हैं । हरेक अपने धर्म-मत की तारीफ़ करता है लेकिन वह उसके अनुसार आचरण कितना करता है ?
हरेक मत मनुष्य को ईमानदारी , सत्य, न्याय और परोपकार की शिक्षा देता है । इसके बावजूद भी हमारा देश विश्व के 85 भ्रष्ट देशों में गिना जाता है ।
आखि़र क्यों ?
केवल इसलिए कि अभी लोगों ने धर्म को तो जाना ही नहीं बल्कि वे जिस किसी भी धर्म-मत की सच्चाई के क़ायल हैं उसके तक़ाज़े पूरे करने के प्रति भी गम्भीर नहीं हैं ।यदि हम कल्याण पाना चाहते हैं तो हमें सत्यानुकूल और न्यायपूर्ण आचरण करना ही होगा , चाहे हम किसी भी धर्म-मत को क्यों न मानते हों या बिल्कुल सिरे से नास्तिक ही क्यों न हों ?
अब आप बताइये कि क्या मेरे ऐसा कहने के बाद दुर्भावना सचमुच समाप्त हो जाएगी ?
Thursday, April 29, 2010
आस्तिक होने के लिए केवल ईश्वर का गुणगान करना ही काफ़ी नहीं है बल्कि उसकी बताई हुई ‘जीवन पद्धति‘ का पालन करना भी ज़रूरी है । Follow The Truth
हम सब एक समाज में रहते हैं । सभी सुख , कल्याण और आनन्द चाहते हैं । सभी अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा चाहते हैं । एक बेहतर समाज केवल तभी आकार ले सकता है जबकि उसके सदस्य बेहतर हों । समाज के सदस्य तभी बेहतर हो सकते हैं जबकि वे बेहतर नियमों की पाबन्दी करें ।
नियम तोड़ने वाले लोग कभी बेहतर समाज नहीं बना सकते और वे लोग भी कभी सफल नहीं हो सकते जो नियमों के तो पाबन्द हों लेकिन वे नियम ही समय और धन को बर्बाद करने वाले हों ।
आज बहुत लोग ईश्वर का नाम लेते हैं और समझते हैं कि वे आस्तिक हैं । आस्तिक होने के लिए केवल ईश्वर का गुणगान करना ही काफ़ी नहीं है बल्कि उसकी बताई हुई ‘जीवन पद्धति‘ का पालन करना भी ज़रूरी है ।
उदाहरणार्थ भाई अमित जी हैं । वे वेदादि ग्रन्थों को ईश्वरीय ज्ञान मानते हैं तो उनके लिए लाज़िम है कि वे उनका पालन करें । वेदानुसार अमित जी के पिताजी को 50 वर्ष की आयु होते ही नौकरी करने या खेती करने का अधिकार नहीं बचता । उन्हें घर पर रहने का अधिकार भी नहीं बचता । उनके लिए जंगल जाने का प्रावधान है । प्राचीन काल में यही किया जाता था । अब अगर अमित जी के या किसी भी भारतीय संस्कृति-धर्मवादी के पिताजी 50 वर्ष के बाद भी अपने ही घर पर जमे हुए हैं तो वे अपने धर्म का उल्लंघन और इसलाम का पालन कर रहे हैं ।
यह एक ग़लत बात है कि आप ऐलान करते हैं एक व्यवस्था पर आस्था रखने का और पालन करते हैं उस व्यवस्था का जिसकी कमियां बयान किये बिना आपका दिन नहीं गुज़रता । अगर आप अपने धर्म का पालन नहीं कर पा रहे हैं अगर आप अपने धर्म की परम्पराओं को व्यवहारिक नहीं पाते हैं तो खुलकर स्वीकार कीजिये । चोर दरवाज़े से इस्लाम के उसूल क्यों लेते हैं ?
यही बात उपासना पद्धति की है । भारत की आबादी आज लगभग 1 अरब 18 करोड़ है । क्या आज भारत की प्रति व्यक्ति आय इतनी है कि वे सभी दिन में 3 बार आग में घी-नारियल आदि खाद्य सामग्री जलाकर वैदिक रीति से प्रभु का नाम ले सकें ?
जबकि नमाज़ में लगभग न के बराबर ख़र्च है । इसे अमीर और ग़रीब सभी अदा कर सकते हैं ।
भाई मनुज जी ने बताया कि मुसलमान भी दहेज लेते हैं । इस बात को वे भी जानते हैं कि मुसलमानों में दहेज का वह रूप क़तई नहीं है जो कि हिन्दुओं में पाया जाता है ।हिन्दू भाईयों में तो विवाह की बातचीत ही इस कथन से आरम्भ होती है कि ‘हां जी , तो आप ब्याह में कितना ख़र्च कर सकते हैं ?‘
जबकि मुसलमानों में इतनी बात कहने वाला ज़लील करके घर से भगा दिया जाता है । अलबत्ता मुस्लिम राजपूतों में आज भी हिन्दुओं की तरह ही दहेज की गु्फ़्तगू बिना ज़िल्लत फ़ील किये की जाती है । हिन्दुओं और मुसलमानों में दहेज के चलन के बावजूद एक बुनियादी अन्तर यह है कि जब एक हिन्दू दहेज लेता या देता है तो वह वेदादि ग्रन्थों का पालन कर रहा होता है । श्री रामचन्द्र जी और शिव जी के ‘आदर्श विवाह‘ की नकल कर रहा होता है जबकि मुसलमान जब दहेज ले या दे रहा होता है वह पवित्र कुरआन का उल्लंघन कर रहा होता है । वह मानवता के आदर्श पैग़म्बर साहब से आचरण से दूर होकर ही यह सब कर रहा होता है । यही हाल मुसलमानों में दूसरी कुरीतियों का है ।
मनुज जी ने कहा कि मुसलमान अपनी समस्याओं के हल के लिए 1500 साल पीछे की ओर देखता है जबकि हिन्दू आगे की ओर देखता है ।
बेचारा हिन्दू पीछे क्या देखेगा ?
उसके पास पीछे देखने के लिए न कोई आदर्श व्यवस्था है और न ही कोई आदर्श व्यक्तित्व । ऐसा नहीं है कि यहां आदर्श मानव हुए ही नहीं । बिल्कुल हुए हैं और एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों हज़ारों हुए हैं लेकिन बाद के लोगों ने उनका जीवन चरित्र न सिर्फ़ यह कि सुरक्षित नहीं रखा बल्कि बिगाड़ और दिया । अगर हीरा 1500 वर्ष गुज़रने के बाद भी अपनी क़ीमत नहीं खोता , अगर पहिया हज़ारों साल गुज़रने के बाद भी अप्रासंगिक नहीं होता तो फिर बराबरी , भाईचारे और ब्याजमुक्त व्यवस्था के सिद्धान्त कैसे अप्रासंगिक हो सकते हैं ?हालात के उतार चढ़ाव के मद्दे नज़र इस्लाम में मुज्तहिद आलिम और राष्ट्राध्यक्ष को ‘ज्ञान‘ के आलोक में समयानुकूल फ़ैसले लेने का पूरा अधिकार है । काल परिस्थिति और मानव स्वभाव के कारण आने वाले हरेक विकार को दूर करने के लिए समय समय पर मुजद्दिद आलिम हुए हैं और सृष्टि के अंत तक होते रहेंगे ।
समस्याओं का हल जहां है मुसलमान वहीं देखता है । आपका वर्तमान बनाने वाले पिछले काल के हिन्दू सुधारकों ने भी वहीं देखा था । और जो लोग आज कहीं और देख रहे हैं वे समस्या को हल नहीं कर रहे हैं बल्कि समस्या को और ज़्यादा बढ़ा रहे हैं । तसलीमा नसरीन , फ़िरदौस ख़ान और मुज़्फ्फ़र हुसैन जी ने किस नगर से कितनी कुरीतियां दूर कीं ? समाज को उनकी देन बताइये तो सही ।
हमारा मक़सद उन उसूलों की खोज होना चाहिये जिन से समाज बेहतर बन सके । अब चाहे वे आगे से मिलें या पीछे से । इसलाम इससे रोकता नहीं है । इसलाम का नियम है कि हिकमत अर्थात तत्वदर्शिता की बात जहां से भी मिले ले ली जाये । भारत को बेहतर और सशक्त बनाने के लिए हमें नफ़रत का ख़ात्मा करना होगा और अपने दिमाग़ को बेहतर विचारों के लिए खोलना होगा । जो बेहतर है वही पहले भी धर्म था और आज भी वही धर्म है । जो निकृष्ट है वह न पहले कभी धर्म था और न ही आज उसे धर्म कहा जा सकता है ।
नियम तोड़ने वाले लोग कभी बेहतर समाज नहीं बना सकते और वे लोग भी कभी सफल नहीं हो सकते जो नियमों के तो पाबन्द हों लेकिन वे नियम ही समय और धन को बर्बाद करने वाले हों ।
आज बहुत लोग ईश्वर का नाम लेते हैं और समझते हैं कि वे आस्तिक हैं । आस्तिक होने के लिए केवल ईश्वर का गुणगान करना ही काफ़ी नहीं है बल्कि उसकी बताई हुई ‘जीवन पद्धति‘ का पालन करना भी ज़रूरी है ।
उदाहरणार्थ भाई अमित जी हैं । वे वेदादि ग्रन्थों को ईश्वरीय ज्ञान मानते हैं तो उनके लिए लाज़िम है कि वे उनका पालन करें । वेदानुसार अमित जी के पिताजी को 50 वर्ष की आयु होते ही नौकरी करने या खेती करने का अधिकार नहीं बचता । उन्हें घर पर रहने का अधिकार भी नहीं बचता । उनके लिए जंगल जाने का प्रावधान है । प्राचीन काल में यही किया जाता था । अब अगर अमित जी के या किसी भी भारतीय संस्कृति-धर्मवादी के पिताजी 50 वर्ष के बाद भी अपने ही घर पर जमे हुए हैं तो वे अपने धर्म का उल्लंघन और इसलाम का पालन कर रहे हैं ।
यह एक ग़लत बात है कि आप ऐलान करते हैं एक व्यवस्था पर आस्था रखने का और पालन करते हैं उस व्यवस्था का जिसकी कमियां बयान किये बिना आपका दिन नहीं गुज़रता । अगर आप अपने धर्म का पालन नहीं कर पा रहे हैं अगर आप अपने धर्म की परम्पराओं को व्यवहारिक नहीं पाते हैं तो खुलकर स्वीकार कीजिये । चोर दरवाज़े से इस्लाम के उसूल क्यों लेते हैं ?
यही बात उपासना पद्धति की है । भारत की आबादी आज लगभग 1 अरब 18 करोड़ है । क्या आज भारत की प्रति व्यक्ति आय इतनी है कि वे सभी दिन में 3 बार आग में घी-नारियल आदि खाद्य सामग्री जलाकर वैदिक रीति से प्रभु का नाम ले सकें ?
जबकि नमाज़ में लगभग न के बराबर ख़र्च है । इसे अमीर और ग़रीब सभी अदा कर सकते हैं ।
भाई मनुज जी ने बताया कि मुसलमान भी दहेज लेते हैं । इस बात को वे भी जानते हैं कि मुसलमानों में दहेज का वह रूप क़तई नहीं है जो कि हिन्दुओं में पाया जाता है ।हिन्दू भाईयों में तो विवाह की बातचीत ही इस कथन से आरम्भ होती है कि ‘हां जी , तो आप ब्याह में कितना ख़र्च कर सकते हैं ?‘
जबकि मुसलमानों में इतनी बात कहने वाला ज़लील करके घर से भगा दिया जाता है । अलबत्ता मुस्लिम राजपूतों में आज भी हिन्दुओं की तरह ही दहेज की गु्फ़्तगू बिना ज़िल्लत फ़ील किये की जाती है । हिन्दुओं और मुसलमानों में दहेज के चलन के बावजूद एक बुनियादी अन्तर यह है कि जब एक हिन्दू दहेज लेता या देता है तो वह वेदादि ग्रन्थों का पालन कर रहा होता है । श्री रामचन्द्र जी और शिव जी के ‘आदर्श विवाह‘ की नकल कर रहा होता है जबकि मुसलमान जब दहेज ले या दे रहा होता है वह पवित्र कुरआन का उल्लंघन कर रहा होता है । वह मानवता के आदर्श पैग़म्बर साहब से आचरण से दूर होकर ही यह सब कर रहा होता है । यही हाल मुसलमानों में दूसरी कुरीतियों का है ।
मनुज जी ने कहा कि मुसलमान अपनी समस्याओं के हल के लिए 1500 साल पीछे की ओर देखता है जबकि हिन्दू आगे की ओर देखता है ।
बेचारा हिन्दू पीछे क्या देखेगा ?
उसके पास पीछे देखने के लिए न कोई आदर्श व्यवस्था है और न ही कोई आदर्श व्यक्तित्व । ऐसा नहीं है कि यहां आदर्श मानव हुए ही नहीं । बिल्कुल हुए हैं और एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों हज़ारों हुए हैं लेकिन बाद के लोगों ने उनका जीवन चरित्र न सिर्फ़ यह कि सुरक्षित नहीं रखा बल्कि बिगाड़ और दिया । अगर हीरा 1500 वर्ष गुज़रने के बाद भी अपनी क़ीमत नहीं खोता , अगर पहिया हज़ारों साल गुज़रने के बाद भी अप्रासंगिक नहीं होता तो फिर बराबरी , भाईचारे और ब्याजमुक्त व्यवस्था के सिद्धान्त कैसे अप्रासंगिक हो सकते हैं ?हालात के उतार चढ़ाव के मद्दे नज़र इस्लाम में मुज्तहिद आलिम और राष्ट्राध्यक्ष को ‘ज्ञान‘ के आलोक में समयानुकूल फ़ैसले लेने का पूरा अधिकार है । काल परिस्थिति और मानव स्वभाव के कारण आने वाले हरेक विकार को दूर करने के लिए समय समय पर मुजद्दिद आलिम हुए हैं और सृष्टि के अंत तक होते रहेंगे ।
समस्याओं का हल जहां है मुसलमान वहीं देखता है । आपका वर्तमान बनाने वाले पिछले काल के हिन्दू सुधारकों ने भी वहीं देखा था । और जो लोग आज कहीं और देख रहे हैं वे समस्या को हल नहीं कर रहे हैं बल्कि समस्या को और ज़्यादा बढ़ा रहे हैं । तसलीमा नसरीन , फ़िरदौस ख़ान और मुज़्फ्फ़र हुसैन जी ने किस नगर से कितनी कुरीतियां दूर कीं ? समाज को उनकी देन बताइये तो सही ।
हमारा मक़सद उन उसूलों की खोज होना चाहिये जिन से समाज बेहतर बन सके । अब चाहे वे आगे से मिलें या पीछे से । इसलाम इससे रोकता नहीं है । इसलाम का नियम है कि हिकमत अर्थात तत्वदर्शिता की बात जहां से भी मिले ले ली जाये । भारत को बेहतर और सशक्त बनाने के लिए हमें नफ़रत का ख़ात्मा करना होगा और अपने दिमाग़ को बेहतर विचारों के लिए खोलना होगा । जो बेहतर है वही पहले भी धर्म था और आज भी वही धर्म है । जो निकृष्ट है वह न पहले कभी धर्म था और न ही आज उसे धर्म कहा जा सकता है ।
Wednesday, April 28, 2010
परमेश्वर के गुणों में भी साझीदार बनाना ‘बड़ा जु़ल्म‘ है । The Way to God .
परमेश्वर के सिवा किसी और की भक्ति-वन्दना करना तो दरकिनार , किसी को उसके गुणों में भी साझीदार बनाना ‘बड़ा जु़ल्म‘ है ।
( पवित्र कुरआन , 31, 13 )
जुल्म का वास्तविक अर्थ है , किसी चीज़ को उसकी असली और सही जगह के बजाय दूसरी जगह पर रखना । शिर्क यानि किसी को ईश्वर का साझीदार ठहराना इसीलिये जुल्म है कि बहुदेववादी भक्ति-वन्दना किसी अन्य की करता है जबकि इसका वास्तविक अधिकारी केवल परमेश्वर है । पवित्र कुरआन में जिन्न अर्थात अदृश्य जीवों और इनसानों की रचना का मक़सद और उनके जीवन का उद्देश्य ही यह बताया गया है कि वे परमेश्वर की भक्ति करने वाले नेक बन्दे बनें -
वमा ख़लक़तुल जिन्ना वल इन्सा इल्ला लिया‘अबुदून । ( पवित्र कुरआन , 51, 56 )
अर्थात हमने तो जिन्नों और इनसानों को केवल इसलिए पैदा किया कि वे मेरी बन्दगी करें यानि आज्ञापालन करें ।
जब पैदाइश की बुनियादी वजह यह ठहरी कि , तो यह कैसे सम्भव है कि उस दयालु पालनहार ने अपने बन्दों के लिए कोई रास्ता न बताया हो , और न ही कोई उस रास्ते का बताने वाला पैदा किया हो ?
जब पैदाइश की बुनियादी वजह यह ठहरी कि , तो यह कैसे सम्भव है कि उस दयालु पालनहार ने अपने बन्दों के लिए कोई रास्ता न बताया हो , और न ही कोई उस रास्ते का बताने वाला पैदा किया हो ?
इन दोनों में से पहले सवाल का जवाब तो यह है -
इन्नद्-दीन इन्दल्लाहिल-इस्लाम ।
( पवित्र कुरआन , 3 , 19 )
अर्थात हम तक पहुंचने का रास्ता इस्लाम है ।
यहां इस्लाम से तात्पर्य वह धर्म नहीं , जो आज समाज में इस्लाम कहलाता है बल्कि यह कहा गया है कि वह धर्म यानि मार्ग जो इनसान को परमेश्वर तक पहुंचाता है ,उसका नाम ‘इस्लाम‘ है । दूसरे लफ़्ज़ों में , वे सारे धर्म जो समय समय पर परमेश्वर की ओर से अवतरित हुए , उनमें से हरेक का नाम ‘इस्लाम‘ था ।
लेखक : मालिक राम
पुस्तक : इस्लामियात ( उर्दू ) पृष्ठ 16 का हिन्दी अनुवाद
प्रकाशक : मकतबा जामिया लिमिटेड , नई दिल्ली
जो आदमी जानना चाहे कि मालिक राम कौन थे ?
वह इस पते पर ईमेल करके मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान साहब से पूछ सकता है ।
पुस्तक : इस्लामियात ( उर्दू ) पृष्ठ 16 का हिन्दी अनुवाद
प्रकाशक : मकतबा जामिया लिमिटेड , नई दिल्ली
जो आदमी जानना चाहे कि मालिक राम कौन थे ?
वह इस पते पर ईमेल करके मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान साहब से पूछ सकता है ।
आप यहां से पवित्र कुरआन व अन्य सार्थक साहित्य मुफ्त या क़ीमत देकर मंगा सकते हैं ।
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माधुरी गुप्ता जी पाकिस्तान को संवेदनशील जानकारी देते हुए धरी गईं 007 Indian Bond Madhuri Gupta
जब ऊंची शिक्षा पाने के लिए कोई मोटी रक़म लगाएगा तो वह उसे कई गुना वापस चाहेगा ही , ख़ास तौर से तब जबकि वह ऐसी फ़ैमिली बैकग्राउंड रखता हो जहां बच्चे की तालीम और परवरिश पर आये ख़र्च तक को लड़की पक्ष से ब्याज सहित वसूलने की परम्परा हो । जहां दौलत को बाक़ायदा ईश्वर की पत्नी का दर्जा दे दिया गया हो ।
जब ऊंची शिक्षा पाने के लिए कोई मोटी रक़म लगाएगा तो वह उसे कई गुना वापस चाहेगा ही , ख़ास तौर से तब जबकि वह ऐसी फ़ैमिली बैकग्राउंड रखता हो जहां बच्चे की तालीम और परवरिश पर आये ख़र्च तक को लड़की पक्ष से ब्याज सहित वसूलने की परम्परा हो । जहां दौलत को बाक़ायदा ईश्वर की पत्नी का दर्जा दे दिया गया हो ।
... लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि प्यादों की बलि चढ़ा दी जाती है और मास्टर माइंड अपने राजनैतिक आक़ाओं के कारण बच निकलते हैं । काश ! इस बार ऐसा न हो । एक बात यह भी क़ाबिले ग़ौर है कि 1 - क्या एक माधुरी के पकड़े जाने के बाद अब सारे हिन्दुओं या सारे बनियों को उसी प्रकार शक की नजर से देखा जाएगा जैसे कि अगर माधुरी की जगह किसी मुस्लिम के पकड़े जाने पर किया जाता ?
2 - क्या अब मुसलमानों के अलावा अन्य समुदायों में भी देशद्रोहियों और आतंकवादियों की तलाश की जाएगी ?
3 - मुसलमानों को तो निशाने पर रखा गया और दूसरों की तरफ़ पर्याप्त तवज्जो न दी गयी जिसकी वजह से दौलत के पुजारी देश को बेहिचक बेचते रहे । क्या अब दौलत की हद से बढ़ी हुई हवस और मुसलमानों से बिला वजह नफ़रत को कम करने के लिए सरकार या समाज कुछ सोचेगा ?
देश और समाज को मजबूत बनाने के लिए हमें देश के ग़द्दारों को सिर्फ़ ग़द्दार के रूप में पहचानना होगा और अपने कुत्सित मक़सद के लिए बिला वजह मुसलमानों को बदनाम करने वालों के हौसले पस्त करने होंगे ।
अन्त में मैं कहना चाहूंगा कि कभी कभी भोले भाले आदमी को मक्कार आदमी फंसा भी देते हैं क्योंकि हमेशा चीज़े वैसी नहीं होती जैसी कि वे नज़र आती हैं ।
अभी कोई राय क़ायम न कीजिये । पहले जांच हो जाने दीजिए ताकि सच सामने आ जाये ,अगर दबा न दिया जाए तो .... ।
Tuesday, April 27, 2010
परमेश्वर के सिवाए कोई उपास्य नहीं . The Lord
ला इलाहा इल् - लल्लाह , मुहम्मद- उर - रसूलुल्लाह
अर्थात परमेश्वर के सिवा कोई उपास्य नहीं है , मुहम्मद परमेश्वर के दूत हैं ।
अर्थात परमेश्वर के सिवा कोई उपास्य नहीं है , मुहम्मद परमेश्वर के दूत हैं ।
धर्म की बुनियाद परमेश्वर के अस्तित्व पर पूरा विश्वास और भक्ति है । यही बात सूरा ए फ़ातिहा में यूं कही गई है - इय्याका ना‘बुदु व इय्याका नस्तईन - पवित्र कुरआन , 1, 5
अर्थात हम तेरी ही भक्ति करते हैं और अपने तमाम कामों में तुझ ही से मदद और तौफ़ीक़ तलब करते हैं ।
कु़ल हुवल्लाहु अहद - पवित्र कुरआन , 112 , 1 अर्थात वह परमेश्वर एक है ।
चुनांचे सारे धर्म-मतों में भक्ति का जो भी तरीक़ा प्रचलित है , उसमें मुख़ातिब सिर्फ़ परमेश्वर का ही वुजूद होता है , किसी ऋषि मुनि , नबी या रसूल को संबोधित नहीं किया जाता । यह सबूत है इस बात का कि सभी धर्म-मतों का बुनियादी विश्वास एक परमेश्वर पर यक़ीन और उसकी भक्ति है । इसमें रद्दो बदल या कमी-ज़्यादती बाद की बातें हैं ।
हज़रत उस्मान से रिवायत की गई हदीस में यह कहा गया है कि
जो आदमी इस हाल में मरा कि उसे इस बात का यक़ीन था कि परमेश्वर के सिवाए कोई उपास्य नहीं , वह जन्नत में दाखि़ल हो गया ।
तो इसका भी यही मतलब है कि बुनियादी चीज़ अल्लाह की इबादत है । सो , जब किसी आदमी ने यह फ़र्ज़ अदा कर दिया , तो वह अपनी मन्ज़िले मक़सूद को पहुंच गया ।
लेखक : मालिक राम
कु़ल हुवल्लाहु अहद - पवित्र कुरआन , 112 , 1 अर्थात वह परमेश्वर एक है ।
चुनांचे सारे धर्म-मतों में भक्ति का जो भी तरीक़ा प्रचलित है , उसमें मुख़ातिब सिर्फ़ परमेश्वर का ही वुजूद होता है , किसी ऋषि मुनि , नबी या रसूल को संबोधित नहीं किया जाता । यह सबूत है इस बात का कि सभी धर्म-मतों का बुनियादी विश्वास एक परमेश्वर पर यक़ीन और उसकी भक्ति है । इसमें रद्दो बदल या कमी-ज़्यादती बाद की बातें हैं ।
हज़रत उस्मान से रिवायत की गई हदीस में यह कहा गया है कि
जो आदमी इस हाल में मरा कि उसे इस बात का यक़ीन था कि परमेश्वर के सिवाए कोई उपास्य नहीं , वह जन्नत में दाखि़ल हो गया ।
तो इसका भी यही मतलब है कि बुनियादी चीज़ अल्लाह की इबादत है । सो , जब किसी आदमी ने यह फ़र्ज़ अदा कर दिया , तो वह अपनी मन्ज़िले मक़सूद को पहुंच गया ।
लेखक : मालिक राम
पुस्तक : इस्लामियात ( उर्दू ) पृष्ठ 15 का हिन्दी अनुवाद
प्रकाशक : मकतबा जामिया लिमिटेड , नई दिल्ली
जो आदमी जानना चाहे कि मालिक राम कौन थे ?
वह इस पते पर ईमेल करके मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान साहब से पूछ सकता है ।
info@cpsglobal.org
आप यहां से पवित्र कुरआन व अन्य सार्थक साहित्य मुफ्त या क़ीमत देकर मंगा सकते हैं ।
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Monday, April 26, 2010
गिलानी जैसे नेता कश्मीर के लिए नासूर हैं . आप भी केवल सच को सच कहें । यह न देखें कि यह किसके खि़लाफ़ जाएगा ? resolution
महाजाल ब्लॉग स्वामी ! मैंने आपको 2 मौके़ दिए लेकिन आप मुझ पर अपना ही लगाया गया आरोप साबित न कर सके ।
भाई अमित ब्लॉगिंग में मेरी वजह से आये ताकि लोगों को वेदों के बारे में सही जानकारी दे सकें लेकिन जब महाजाल मालिक ने वेदों, पुराणों की बातों को अप्रासंगिक और बकवास बताया और जनाब महक जी ने वे बातें भी दिखाईं तो वे एक भी बात का जवाब उन्होंने नहीं दिया । जब उनके पास जवाब है तो फिर वे महक जी के प्रश्नों का निराकरण क्यों नहीं करते ?
फिर कहीं से आनन्द पाण्डेय जी प्रकट हो गए । बोले कि वेद पर मैं शोध कर रहा हूं , जवाब मैं दूंगा । महक जी ने उनसे भी पुराने सवाल पूछ लिए । उसके बाद वे भी न जाने कितने लम्बे शोध में जाकर डूब गये ।
अरे भाई ! कोई तो आकर इन्हें संतुष्ट करे या फिर मान लें कि महाजाल मालिक की बात में जान है । अब न तो महाजाल मालिक ही अपना इल्ज़ाम साबित कर पाये और न ही अमित बाबू अपने ब्लॉग जगत में आने क मक़सद ही पूरा कर पाए । दोनों (प्लीज़ माफ़ करना ) हो गए चित्त । लिहाज़ा दोनों एक दूसरे की तारीफ़ कर रहे हैं ताकि लोग यह समझें कि दो दो ब्लॉगर ग़लत थोड़े ही हो सकते हैं । तर्कहीन श्रद्धा केवल अंधविश्वास को जन्म देती है जिसकी प्रतिकियास्वरूप समाज का बुद्धिजीवी वर्ग नास्तिक बन जाता है । समाज के लिए अंधविश्वास भी घातक है और नास्तिकता भी । यह भी देश के लिए घातक है कि अपने राजनीतिक ग्रुप या समुदाय के खि़लाफ़ तो बिल्कुल न बोला जाए और मुसलमानों के खि़लाफ़ जी भर कर ज़हर घोला जाए । इससे समाज में नफ़रत और दूरियां बढ़ती हैं । समाज में ज़हर घोलने के बाद बड़ी मासूमियत से कह दिया जाए कि मैंने तो लिंक दिया था ।
बहुत बड़े लिंक दाता हैं आप ?
हमने या किसी भी मुस्लिम ब्लॉगर ने तुम्हारे सचमुच के ‘नंगेपन‘ का लिंक दिया कभी ?
केवल लेख में ही आईना दिखाया था कि सभी चिल्लाने लगे ।
कोई मांगे तो सही , हम उसे दर्जन से ज़्यादा लिंक देंगे जिन्हें देखकर आपको अपने नंगे यथार्थ का बोध हो जाएगा । इसके बावजूद अपनी ग़लती न मानना और कहना कि आप मुझसे नफ़रत करते हैं । तो क्या आपको इन हरकतों पर प्यार किया जाए ?
ज़रा ठहरिये , आपके आतंकवाद के मुद्दे पर भी आपसे सवाल करूंगा । इस विषय पर तो आपकी तैयारी है न , चलिए इसी पर जवाब दे दीजिएगा । चैलेंज का जवाब तो आप दे नहीं पाए । यहां आपकी हक़ीक़त को हरेक देखेगा । ज़बानी जमाख़र्ची को समझने वाले लोग भी ब्लॉग पढ़ते हैं ।
मैं न तो झूठ बोलता हूं और न धोखा देता हूं । जो दिल में है वही मेरी ज़बान पर मिलेगा ।
महाजाल मालिक से नफ़रत के बावजूद मैंने उनकी सच बात का समर्थन किया है और उनकी आज की पोस्ट पर टिप्पणी दी है कि
गिलानी जैसे नेता कश्मीर के लिए नासूर हैं . सच को मैं हमेशा सच ही कहूँगा चाहे आप जैसा व्यक्ति ही क्यूँ न कहे ?
आप भी केवल सच को सच कहें । यह न देखें कि यह किसके खि़लाफ़ जाएगा ?
सत्य में ही मुक्ति है । वेद कुरआन यही बताते हैं । आइये सत्य की खोज करें और उसे स्वीकार करें। आपस में तर्क वितर्क करने से ही तो समाज के बेकार रिवाजों का उन्मूलन होना संभव है ।
भाई अमित ब्लॉगिंग में मेरी वजह से आये ताकि लोगों को वेदों के बारे में सही जानकारी दे सकें लेकिन जब महाजाल मालिक ने वेदों, पुराणों की बातों को अप्रासंगिक और बकवास बताया और जनाब महक जी ने वे बातें भी दिखाईं तो वे एक भी बात का जवाब उन्होंने नहीं दिया । जब उनके पास जवाब है तो फिर वे महक जी के प्रश्नों का निराकरण क्यों नहीं करते ?
फिर कहीं से आनन्द पाण्डेय जी प्रकट हो गए । बोले कि वेद पर मैं शोध कर रहा हूं , जवाब मैं दूंगा । महक जी ने उनसे भी पुराने सवाल पूछ लिए । उसके बाद वे भी न जाने कितने लम्बे शोध में जाकर डूब गये ।
अरे भाई ! कोई तो आकर इन्हें संतुष्ट करे या फिर मान लें कि महाजाल मालिक की बात में जान है । अब न तो महाजाल मालिक ही अपना इल्ज़ाम साबित कर पाये और न ही अमित बाबू अपने ब्लॉग जगत में आने क मक़सद ही पूरा कर पाए । दोनों (प्लीज़ माफ़ करना ) हो गए चित्त । लिहाज़ा दोनों एक दूसरे की तारीफ़ कर रहे हैं ताकि लोग यह समझें कि दो दो ब्लॉगर ग़लत थोड़े ही हो सकते हैं । तर्कहीन श्रद्धा केवल अंधविश्वास को जन्म देती है जिसकी प्रतिकियास्वरूप समाज का बुद्धिजीवी वर्ग नास्तिक बन जाता है । समाज के लिए अंधविश्वास भी घातक है और नास्तिकता भी । यह भी देश के लिए घातक है कि अपने राजनीतिक ग्रुप या समुदाय के खि़लाफ़ तो बिल्कुल न बोला जाए और मुसलमानों के खि़लाफ़ जी भर कर ज़हर घोला जाए । इससे समाज में नफ़रत और दूरियां बढ़ती हैं । समाज में ज़हर घोलने के बाद बड़ी मासूमियत से कह दिया जाए कि मैंने तो लिंक दिया था ।
बहुत बड़े लिंक दाता हैं आप ?
हमने या किसी भी मुस्लिम ब्लॉगर ने तुम्हारे सचमुच के ‘नंगेपन‘ का लिंक दिया कभी ?
केवल लेख में ही आईना दिखाया था कि सभी चिल्लाने लगे ।
आपके लिंक पर भी वाह वाह और हमारे लेख पर हाय हाय । क्या यही है आपकी सहिष्णुता ?
जिसे सहिष्णुता और तर्कवादिता सीखनी हो , हमारे पास आये । सच्चे सुख का अमर ख़जाना हमारे पास है ।कोई मांगे तो सही , हम उसे दर्जन से ज़्यादा लिंक देंगे जिन्हें देखकर आपको अपने नंगे यथार्थ का बोध हो जाएगा । इसके बावजूद अपनी ग़लती न मानना और कहना कि आप मुझसे नफ़रत करते हैं । तो क्या आपको इन हरकतों पर प्यार किया जाए ?
ज़रा ठहरिये , आपके आतंकवाद के मुद्दे पर भी आपसे सवाल करूंगा । इस विषय पर तो आपकी तैयारी है न , चलिए इसी पर जवाब दे दीजिएगा । चैलेंज का जवाब तो आप दे नहीं पाए । यहां आपकी हक़ीक़त को हरेक देखेगा । ज़बानी जमाख़र्ची को समझने वाले लोग भी ब्लॉग पढ़ते हैं ।
मैं न तो झूठ बोलता हूं और न धोखा देता हूं । जो दिल में है वही मेरी ज़बान पर मिलेगा ।
महाजाल मालिक से नफ़रत के बावजूद मैंने उनकी सच बात का समर्थन किया है और उनकी आज की पोस्ट पर टिप्पणी दी है कि
गिलानी जैसे नेता कश्मीर के लिए नासूर हैं . सच को मैं हमेशा सच ही कहूँगा चाहे आप जैसा व्यक्ति ही क्यूँ न कहे ?
आप भी केवल सच को सच कहें । यह न देखें कि यह किसके खि़लाफ़ जाएगा ?
सत्य में ही मुक्ति है । वेद कुरआन यही बताते हैं । आइये सत्य की खोज करें और उसे स्वीकार करें। आपस में तर्क वितर्क करने से ही तो समाज के बेकार रिवाजों का उन्मूलन होना संभव है ।
Sunday, April 25, 2010
प्रेमपूर्ण समाज बनाने के लिए आपसी मनमुटाव को दूर करना बेहद ज़रूरी है । ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो ज्ञानी होए । Love n Harmony
कुरीतियों का कोई धर्म नहीं होता । इनसान को इनसान बनने के लिए कुछ कायदे- कानून और नियम-संयम की ज़रूरत होती है । समाज के लिए संगठन और ढांचे की भी ज़रूरत होती है । हरेक आदमी अपनी योग्यता के मुताबिक़ अपने वुजूद , अपने परिवार और समाज का कल्याण कर सके , ऐसी व्यवस्था का होना ज़रूरी है । समाज के सदस्य अपने फ़र्ज़ को अदा करें और पस्पर सहयोग करें । बुराई को भलाई से दूर करने का प्रयास करें और जो अतिवादी हो उसे व्यवस्था का प्रबंध तन्त्र सज़ा दे। इसी का नाम धर्म है ।
मराठी बंधु ! मैंने अमित जी को तथ्यपरक जवाब की जगह भावनात्मक संबोधन करने पर टोका था । जबकि मैंने अपने जिन जज़्बात का इज़्हार किया है , वह आपको तथ्यपरक जवाब देने के बाद किया है , जिसका आप से जवाब नहीं बन पा रहा है ।
अपना खून देने की बात अगर इन्दिरा जी ने कही थी तो न तो उन्होंने झूठ कहा था और न ही मैं ग़लत कह रहा हूं ।
किसी का हक़ मारना या मिथ्या आरोप लगाना अधर्म है । महाजाल ब्लॉग स्वामी ने मुझ पर झूठा आरोप लगाया कि
आप हमेशा नरेन्द्र मोदी प्रज्ञाए तोगड़िया आदि को कट्टर और आतंकवादी बताते हो .
मैंने उन्हें कल चैलेंज किया कि
आप हमेशा नरेन्द्र मोदी प्रज्ञाए तोगड़िया आदि को कट्टर और आतंकवादी बताते हो .
मैंने उन्हें कल चैलेंज किया कि
मैं उन्हें चैलेंज करता हूं कि वे मेरे किसी लेख का हवाला दें कि मैंने किस लेख में मोदी प्रज्ञा और तोगड़िया आदि को आतंकवादी कहा है
लेकिन उनकी बात में सच्चाई होती तो सुबूत देते । वे आये और अपनी झेंप मिटाने के लिए मेन मुद्दे पर बात न करके कम महत्व की बात पर नासमझी के साथ टिप्पणी देकर हंसे और चले गये ।
पता नहीं वे अपनी अक्ल पर हंसे या अपनी चालाकी पर ?
लेकिन मैं इतनी आसानी से उन्हें निकल भागने का मौक़ा हरगिज़ न दूंगा । या तो वे अपना इल्ज़ाम साबित करें या फिर भाई अमित की तरह वे भी अपनी ग़लती मानकर माफ़ी मांगे ।
मराठी बंधु ! मैंने अमित जी को तथ्यपरक जवाब की जगह भावनात्मक संबोधन करने पर टोका था । जबकि मैंने अपने जिन जज़्बात का इज़्हार किया है , वह आपको तथ्यपरक जवाब देने के बाद किया है , जिसका आप से जवाब नहीं बन पा रहा है ।
अपना खून देने की बात अगर इन्दिरा जी ने कही थी तो न तो उन्होंने झूठ कहा था और न ही मैं ग़लत कह रहा हूं ।
दरअस्ल भाई अमित से तो मैं प्यार करता हूं और आपसे नफ़रत । कारण आपको पता ही है । लेकिन मैं खुद को इस नफ़रत से मुक्त करना चाहता हूं । इसीलिए मैं अपने दिल में आपके लिए बेहतर विचार सप्रयास पैदा कर रहा हूं और आपको बता भी रहा हूं लेकिन नफ़रत की इस भंवर से मैं केवल अपने ही प्रयास से बाहर नहीं निकल सकता । मुझे आपकी मदद की ज़रूरत है । कृप्या कूटनीति छोड़कर मेरी मदद करें । आपका आभारी रहूंगा ।
मेन मुद्दे पर ध्यान पहले दें ।
प्रेमपूर्ण समाज बनाने के लिए आपसी मनमुटाव को दूर करना बेहद ज़रूरी है । यह भी समाज को एजुकेटेड करने में ही आता है । ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो ज्ञानी होए , कहा भी गया है । बल्कि इसका मर्तबा और ज़रूरत कुछ ज़्यादा ही है ।
भाई अमित ! डा. अनवर जमाल , डा. अयाज़ और डा. अयाज़ आपस में मित्र हैं । तीनों के फोटो जनाब उमर कैरानवी साहब ने लिये और फ़ाइल नेम एक ही दे दिया । जब मैंने उनसे अपना फ़ोटो अपने ब्लॉग में अपलोड करवाया तो फ़ाइल नेम डा. असलम साहब का ही सेव हो गया । हम तीनों की रचनात्मक गतिविधियों का चर्चा आये दिन अख़बारों में भी छपता रहता है । देखें -
भाई अमित ! डा. अनवर जमाल , डा. अयाज़ और डा. अयाज़ आपस में मित्र हैं । तीनों के फोटो जनाब उमर कैरानवी साहब ने लिये और फ़ाइल नेम एक ही दे दिया । जब मैंने उनसे अपना फ़ोटो अपने ब्लॉग में अपलोड करवाया तो फ़ाइल नेम डा. असलम साहब का ही सेव हो गया । हम तीनों की रचनात्मक गतिविधियों का चर्चा आये दिन अख़बारों में भी छपता रहता है । देखें -
http://my.opera.com/sunofislam/blog/show.dml/6773421
भाई तारकेश्वर जी के साथ कभी आइयेगा तो आपको हम तीनों मिलेंगे और आपके हरेक सन्देह और भ्रम को दूर कर देंगे । महक जी, समेत आप भाइयों का मैं आभारी हूं ।
भाई तारकेश्वर जी के साथ कभी आइयेगा तो आपको हम तीनों मिलेंगे और आपके हरेक सन्देह और भ्रम को दूर कर देंगे । महक जी, समेत आप भाइयों का मैं आभारी हूं ।
Saturday, April 24, 2010
किसी भी कुरीति को हिन्दू कुरीति या मुस्लिम कुरीति के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये । Reformation
महाजाल ब्लॉग स्वामी के इस कथन से मैं सहमत हूं कि वेद पुराण में बहुत सी बातें अप्रासंगिक और बकवास हैं । यही बात इसलाम की व्याख्या करने वाली बहुत सी किताबों के बारे में भी सही है ।
हज़रत यूसुफ़ आदि नबियों के क़िस्सों में बहुत इसराईली रिवायतें सम्मिलित होने से उनमें विकार आ गया है । पवित्र कुरआन की कई तफ़सीरों में भी इसराईली रिवायतें सम्मिलित हो गई हैं । कुछ फ़त्वे भी ग़ैर ज़िम्मेदारीपूर्वक दिये जाने से न सिर्फ़ ग़लत बल्कि निंदनीय हैं ।
हज़रत शेख़ अहमद सरहिन्दी , शाह वलीउल्लाह और अन्य मुजद्दिद उलेमा ने इनको तफ़्सील के साथ बयान किया है । बेहतर समाज के लिए बेहतर नियम ज़रूरी हैं । आज समाज तबाह हो रहा है । लोग रोटी , पानी और सुरक्षा के लिए तरस रहे हैं । समय एक क़ीमती सरमाया है, उसे फ़ालतू क्रियाओं में गंवाना अक्लमन्दी नहीं कहा जा सकता । पाखण्ड को धर्म का नाम नहीं दिया जा सकता ।
इससे बुद्धिजीवियों में धर्म के प्रति वितृष्णा पैदा होती है । लोगों को नास्तिक बनाकर उनके सदाचरण को तबाह करने की अनुमति नहीं दी जा सकती ।
कुरीति केवल कुरीति होती है ।
किसी भी कुरीति को हिन्दू कुरीति या मुस्लिम कुरीति के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये । किसी भी कुरीति के विरोध से केवल समाज के भविष्य से लापरवाह लोगों की भावना ही आहत होती है । हम सब बुद्धिजीवी हैं और यह मंच विचार और चर्चा के लिए ही है । अतार्किक लोगों को हरेक जगह झांकने से परहेज़ करना चाहिये ।
लोग बदल रहे हैं , समाज बदल रहा है ।
लेकिन बदलकर वह बन क्या रहा है ?
वह केवल नास्तिक और भौतिकवादी बन रहा है ।
जब देश के आंगन में नक्सली हमले में मारे गए मासूमों की लाशें पड़ी थीं , तब इस देश के युवा आई पी एल के मैचों का लुत्फ़ उठा रहे थे । कैसी संवेदनहीनता है यह ?
हिन्दू धर्मगुरू भी कह रहे हैं कि अब धर्म से नहीं बल्कि केवल आध्यात्मिकता से ही कल्याण होगा . समाज को ध्यान के साथ साथ एक संतुलित व्यवस्था भी दरकार है जो उन्हें रोटी , पानी , दवा , घर , रोज़गार और सुरक्षा प्रदान कर सके । यह व्यवस्था इसलाम है । पवित्र कुरआन इसका आधार है । यह पूर्ण सुरक्षित है और यह कट्टरता नहीं बल्कि सत्य है । यही बात हम मुहम्मद साहब के वचनों के बारे में नहीं कह सकते क्योंकि उनमें कुछ नक़ली हदीसें मिलाना साबित हो चुका है , हालांकि उन्हें पहचानकर अलग कर दिया गया है ।महाजाल ब्लॉगस्वामी द्वारा कुरआन को वेद पुराण की तरह समझ लेना यह साबित करता है कि उन्होंने उसे क्रमबद्ध ढंग से अब तक पढ़ा ही नहीं है । इसका सुबूत खुद उनका कथन है -
मैं अधिकतर आजकल चल रहे हालातों पर लिखता हूं… वेद-पुराण-कुरान पकड़कर नहीं बैठा
रहता… क्योंकि उन "सभी धार्मिक किताबों" में कई बाते अप्रासंगिक हैं, बकवास हैं…।
लेकिन आप हैं कि आज के जमाने की बातें छोड़कर वेदों की आलोचना में लगे रहते हैं,
क्योंकि उससे आपको अपना कार्य जस्टिफ़ाई करने में मदद मिलती है। अन्त में एक फ़ाइनल
बात, आप हमेशा नरेन्द्र मोदी, प्रज्ञा, तोगड़िया आदि को कट्टर और आतंकवादी बताते हो…
यानी विश्व में कुल कितने हिन्दू आतंकवादी हुए? जिन्होंने हिन्दू ग्रन्थ पढ़े और जिन पर हिन्दू संस्कार हुए।
मैं उन्हें चैलेंज करता हूं कि वे मेरे किसी लेख का हवाला दें कि मैंने किस लेख में मोदी , प्रज्ञा और तोगड़िया आदि को आतंकवादी कहा है ?
इसी तरह उन्होंने पवित्र कुरआन को ढंग से पढ़े बग़ैर ही राय क़ायम कर ली है ।
बेहतर है कि वे एक बार किसी अच्छे आलिम द्वारा अनूदित कुरआन व्याख्या सहित पूरा पढ़ लें । पवित्र कुरआन का अनुवाद मुफ़्त मंगाने के लिए के लिए सम्पर्क करें - http://www.cpsglobal.org/
इसके बावजूद मैं वेदादि में उनके द्वारा सत्य स्वीकारने के साहस की तारीफ़ करता हूं ।
इसके बावजूद मैं वेदादि में उनके द्वारा सत्य स्वीकारने के साहस की तारीफ़ करता हूं ।
प्रिय प्रवीण जी और महक जी के कथन से सहमत हूं । सभी धार्मिक नियमों और परम्पराओं की समीक्षा को अब और टालना आत्मघाती क़दम है जिसका नुक्सान हमारे साथ हमारी आने वाली नस्लें भी उठाएंगी ।
भाई अमित जी को चाहिये था कि वे श्रीमान महक जी के प्रश्नों का तथ्यपरक उत्तर देते । भावनात्मक संबोधन सटीक जवाब का विकल्प नहीं हुआ करता ।
इस सबके बाद मैं यह कहूंगा कि
प्रिय भाई अमित ! अल्लाह न करे आपको कभी ज़रूरत पड़े , लेकिन अगर कभी पड़ जाये तो आप अपने लिए या अपने किसी प्यारे के लिए मेरे बदन से मेरे खून की आखि़री बूंद तक निचोड़ लेना ।
यही बात मैं महाजाल ब्लॉग के स्वामी के लिए भी कहता हूं लेकिन एक फ़र्क़ है । भाई अमित के लिए यह कहने में मुझे अपने दिल पर ज़ोर नहीं डालना पड़ा जबकि महाजाल स्वामी के लिए कहने में मुझे अपने दिल को समझाना पड़ा ।उम्मीद है कि हालात सुधरेंगे तो शायद तब यह बात भी बाक़ी न रहे । और प्रवीण जी आप भी इसमें शामिल हैं ।
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Thursday, April 22, 2010
कृप्या महाजाल ब्लॉग के खि़लाफ़ कोई क़ानूनी कार्यवाही न की जाये । save yourself
… वेद-पुराण-कुरान पकड़कर नहीं बैठा रहता… क्योंकि उन "सभी धार्मिक किताबों" में कई बाते अप्रासंगिक हैं, बकवास हैं…। - महाजाल ब्लॉग के स्वामी ने मेरे ब्लॉग पर दिनांक 20.04.10 को यह टिप्पणी की । जिस समय वे यह टिप्पणी कर रहे थे , उस समय ब्लॉग जगत के प्रबुद्ध लोग सामाजिक सद्भावना के लिए परस्पर संवाद कर रहे थे । ऐसे समय उनका ऐसी घोर आपत्तिजनक टिप्पणी करना क्या ठीक था ?उन्होंने वेदादि की कई बातें अप्रासंगिक बता दीं लेकिन मेरे ब्लॉग के हिन्दू आलोचकों में से किसी ने भी यह नहीं कहा कि बकवास वेद की बातें नहीं बल्कि आप की सोच है । मुझ से अनथक शास्त्रार्थ करने वालों ने इन सज्जन को लताड़ पिलाना क्यों उचित न समझा ?
क्या मेरे कथन पर मुझसे इसलिए बहस की जाती है कि मैं एक मुसलमान हूँ और उससे भी ज़्यादा गंभीर बात कम लफ्ज़ों में कहने वाले महाजाल स्वामी को इसलिए नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है कि वह खुद को हिन्दू कहता है ?
एक से कथन पर दो लोगों के साथ दो बर्ताव क्यों ?
भाई अमित , क्या यह दो पैमानों से नापना नहीं कहलाएगा ?
सदभावना क़ायमी हेतु विचार विमर्श के दौरान उन्होंने मेरे ब्लॉग पर पवित्र कुरआन की कई बातों को अप्रासंगिक और बकवास क्यों बताया ?
नफ़रत के कूड़े पर महाजाल ब्लॉग जैसे बहुत से ब्लॉग कुकुरमुत्तों की तरह उगे हुए हैं । इसलाम धर्म और मुसलमानों की आलोचना का इनका शुग़ल बरसों पुराना है । ऐसे ही लोगों के बेबुनियाद आरोप और सवाल मुसलमानों को वस्तुस्थिति स्पष्ट करने के लिए मजबूर करते हैं । लेकिन क्योंकि मुसलमान सहिष्णु होने का दावा नहीं करते बल्कि अपनी सहन शक्ति के द्वारा अपना सहिष्णु होना साबित करते हैं । मुस्लिम ब्लॉगर्स ने कभी नफ़रत फैलाने वाले ऐसे वाहियात और असामाजिक ब्लॉग के खि़लाफ़ न तो कोई बहिष्कार की मुहिम चलाई है और न ही इनके खि़लाफ़ कोई क़ानूनी कार्यवाही की । इसे कहते हैं सच्ची सहिष्णुता ।
हम तो ‘निन्दक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाय‘ में यक़ीन रखते हैं । हमारा विचार है कि महाजाल ब्लॉगस्वामी जैसे लोगों को पुलिस के हवाले करना अपनी असहनशीलता का परिचय देना है । ऐसे लोग समाज में बड़ी संख्या में हैं । सबको तो क़ानून के हवाले करके उनका विचार नहीं बदला जा सकता है। उनका विचार तो उनके सवालों का संतोषजनक जवाब देकर ही बदलना संभव है । बेहतर यह है कि वेद-पुराण पर उनकी मान्यता का खण्डन या मण्डन तो भाई अमित जी जैसे हिन्दू बुद्धिजीवी करें और पवित्र कुरआन पर उनके अनुचित आक्षेप का निराकरण भाई ज़ीशान और भाई सफ़त आलम जैसे मुस्लिम विद्वान करें ।
श्रीमान झा साहब से भी मेरा कहना है कि अपनी प्रोग्रेस को अभी अपने कंट्रोल में ही रखें कहीं ऐसा न हो कि वे जिसको बलि चढ़ाना चाह रहे हों , वह तो बच जाए और उनके ख़ेमे के ही कई भेड़िये बलि की भेड़ साबित हों । क़ानून हिन्दू मुसलमान नहीं देखता । उसका दरवाज़ा तो सबके लिए खुला हुआ है। प्रोग्रेस दूसरा भी कर सकता है ।
काव्य मंजूषा की यह सलाह सचमुच व्यवहारिक है ।
क्या मेरे कथन पर मुझसे इसलिए बहस की जाती है कि मैं एक मुसलमान हूँ और उससे भी ज़्यादा गंभीर बात कम लफ्ज़ों में कहने वाले महाजाल स्वामी को इसलिए नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है कि वह खुद को हिन्दू कहता है ?
एक से कथन पर दो लोगों के साथ दो बर्ताव क्यों ?
भाई अमित , क्या यह दो पैमानों से नापना नहीं कहलाएगा ?
सदभावना क़ायमी हेतु विचार विमर्श के दौरान उन्होंने मेरे ब्लॉग पर पवित्र कुरआन की कई बातों को अप्रासंगिक और बकवास क्यों बताया ?
नफ़रत के कूड़े पर महाजाल ब्लॉग जैसे बहुत से ब्लॉग कुकुरमुत्तों की तरह उगे हुए हैं । इसलाम धर्म और मुसलमानों की आलोचना का इनका शुग़ल बरसों पुराना है । ऐसे ही लोगों के बेबुनियाद आरोप और सवाल मुसलमानों को वस्तुस्थिति स्पष्ट करने के लिए मजबूर करते हैं । लेकिन क्योंकि मुसलमान सहिष्णु होने का दावा नहीं करते बल्कि अपनी सहन शक्ति के द्वारा अपना सहिष्णु होना साबित करते हैं । मुस्लिम ब्लॉगर्स ने कभी नफ़रत फैलाने वाले ऐसे वाहियात और असामाजिक ब्लॉग के खि़लाफ़ न तो कोई बहिष्कार की मुहिम चलाई है और न ही इनके खि़लाफ़ कोई क़ानूनी कार्यवाही की । इसे कहते हैं सच्ची सहिष्णुता ।
हम तो ‘निन्दक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाय‘ में यक़ीन रखते हैं । हमारा विचार है कि महाजाल ब्लॉगस्वामी जैसे लोगों को पुलिस के हवाले करना अपनी असहनशीलता का परिचय देना है । ऐसे लोग समाज में बड़ी संख्या में हैं । सबको तो क़ानून के हवाले करके उनका विचार नहीं बदला जा सकता है। उनका विचार तो उनके सवालों का संतोषजनक जवाब देकर ही बदलना संभव है । बेहतर यह है कि वेद-पुराण पर उनकी मान्यता का खण्डन या मण्डन तो भाई अमित जी जैसे हिन्दू बुद्धिजीवी करें और पवित्र कुरआन पर उनके अनुचित आक्षेप का निराकरण भाई ज़ीशान और भाई सफ़त आलम जैसे मुस्लिम विद्वान करें ।
श्रीमान झा साहब से भी मेरा कहना है कि अपनी प्रोग्रेस को अभी अपने कंट्रोल में ही रखें कहीं ऐसा न हो कि वे जिसको बलि चढ़ाना चाह रहे हों , वह तो बच जाए और उनके ख़ेमे के ही कई भेड़िये बलि की भेड़ साबित हों । क़ानून हिन्दू मुसलमान नहीं देखता । उसका दरवाज़ा तो सबके लिए खुला हुआ है। प्रोग्रेस दूसरा भी कर सकता है ।
काव्य मंजूषा की यह सलाह सचमुच व्यवहारिक है ।
जहाँ तक हो सके आपसी प्रेम बनाये रखिये, एक दूसरे कि संस्कृतियों को हम और
अच्छी तरह समझने की कोशिश करें, एक दूसरे के धर्मों का आदर करें, उनकी अच्छाइयों को
अपनाने की कोशिश करें और अपनी बुराइयों को सुधारने की....विश्वास कीजिये हम एक
स्वस्थ समाज की रचना कर सकते हैं....यह बिल्कुल संभव है...बस ज़रुरत है थोड़ी
सहन-शक्ति, धैर्य और क्षमा की....आज और अभी से शुरू कीजिये ...सब ठीक हो जाएगा...सच
में.... http://swapnamanjusha.blogspot.com/2010/04/blog-post_22.html
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Wednesday, April 21, 2010
जब भगिनी निवेदिता तक अपनी पश्चिमी ड्रेस छोड़कर भारतीय परिधान पहन सकती हैं तो क्या ये तथाकथित राष्ट्रवादी भारतीय परिधान नहीं पहन सकते ? Indian culture
ग़ज़ल
किस तरह यक़ीं दिलाऊँ ज़हर घोलते होंगे
इतने ख़ूबसूरत लब झूठ बोलते होंगे
रात सो चुकी लेकिन शहर के बड़े ताजिर
रात सो चुकी लेकिन शहर के बड़े ताजिर
लड़कियां , दहेजों पर रखकर तौलते होंगे
आदमी का हर लम्हा एक सा नहीं होता
आदमी का हर लम्हा एक सा नहीं होता
झूठ बोलने वाले भी सच बोलते होंगे
इन हवा के झोंकों के हाथ भी नहीं होते
इन हवा के झोंकों के हाथ भी नहीं होते
खिड़कियां मकानों की कैसे खोलते होंगे
होशियार लोगों ने उलझनें बढ़ा दी हैं
होशियार लोगों ने उलझनें बढ़ा दी हैं
रात भर ख़यालों में लोग खौलते होंगे
सारे दिन के मारे हैं , जुगनुओं से मत बोलो
सारे दिन के मारे हैं , जुगनुओं से मत बोलो
रात के अंधेरे में भी कुछ टटोलते होंगे
कल भी सो भूखे लॉटरी के मतवाले
कल भी सो भूखे लॉटरी के मतवाले
हम ‘शफ़क़‘ समझते थे नोट रोलते होंगे
जनाब सतीश सक्सेना जी ने समझाया कि ‘लाइट ले यार‘ और हमने हरिद्वार घुमन्तू भाई तारकेश्वर जी को सदा हल्के में ही लिया । प्राचीन काल में भी भारतीय राजा अपने मनोरजंन के लिए विदूषक रखा करते थे । विदूषक को पूरी छूट होती थी कि वह जो चाहे राजा को कह सकता था । राजा कभी विदूषक को दण्ड नहीं देता था । गांवों की चैपालों में भी मुंहलगे छोरों की बातें बूढ़े लोग अक्सर लाइटली लिया करते थे क्योंकि यही छोरे तो उनकी चिलम भरा करते थे । लेकिन हमारा ब्लॉग न तो किसी राजा की सभा है और न ही गिरी जी कोई विदूषक हैं ।
जनाब सतीश सक्सेना जी ने समझाया कि ‘लाइट ले यार‘ और हमने हरिद्वार घुमन्तू भाई तारकेश्वर जी को सदा हल्के में ही लिया । प्राचीन काल में भी भारतीय राजा अपने मनोरजंन के लिए विदूषक रखा करते थे । विदूषक को पूरी छूट होती थी कि वह जो चाहे राजा को कह सकता था । राजा कभी विदूषक को दण्ड नहीं देता था । गांवों की चैपालों में भी मुंहलगे छोरों की बातें बूढ़े लोग अक्सर लाइटली लिया करते थे क्योंकि यही छोरे तो उनकी चिलम भरा करते थे । लेकिन हमारा ब्लॉग न तो किसी राजा की सभा है और न ही गिरी जी कोई विदूषक हैं ।
हमारा ब्लॉग गांव की चैपाल भी नहीं है और न ही गिरी जी हमारे चिलमची छोरे हैं । इसके बावजूद भी न तो गिरी ने हम सबका मनोरंजन करने में ही कोई कसर छोड़ी और न ही हमने उन्हें लाइटली लेने में ।
भाई तारकेश्वर गिरी एक बेजोड़ शख्िसयत हैं क्योंकि प्रायः उनके लेख की थीम और शीर्षक तक में भी कोई जोड़ नहीं होता । इस सबके बावजूद वे मैदान में डटे रहे और हमसे तांबा और पीतल सब कुछ लिया , बस अगर नहीं ले पाये तो वे हमसे लोहा ही नहीं ले पाये । और वे बेचारे ही क्या ख़ाक लोहा लेते ?
जबकि गोला बारूद से लैस सेनाध्यक्ष तक नक्सलियों से लोहा लेने से पहले अर्जुन की भांति सोच में डूबे हुए हैं ।
लेकिन भइय्या माइन्ड (?) भी क्या गजब पाया है गिरी जी ने । हमें चुपके से माइनस वोट देकर भाग जाते थे और उनकी मुहब्बत में हम ऐसे पागल थे कि हम उन्हें प्लस में वोट करते थे । उनके विचार भी ऐसे हैं जिनसे आज तक वे खुद भी प्रभावित न हो पाए । वे गुण तो गाते हैं भारतीय संस्कृति के और खुद लिबास पहनते हैं पश्चिमी संस्कृति का । वे मुसलमानों से कहते हैं कि तुम भारतीय संस्कृति अपना लो ।
अरे भाई हम तो 100 बार अपना लें लेकिन आप खुद तो एक बार विदेशी संस्कृति त्याग कर दिखा दो। यह कह दो तो जवाब देते हैं कि हमने तो अपने आप को हालात के मुताबिक़ ढाल लिया है । हम कहते हैं कि अगर आज अंग्रेज़ों की पिल रही है तो आप अंग्रेजी लिबास पहने अकड़े अकड़े घूम रहे हैं तो क्या अगर कल को भारत पहले की तरह अखण्ड बन गया और खुदा न ख्वास्ता राज हो गया अफ़ग़ानों का , तो फिर तो आप तुरन्त लम्बे घेर वाली शलवार कमीज़ सिलवाकर अस्तंजा और मिस्वाक करना सीख लोगे ?
कोई पूछेगा तो कह देंगे कि हमने तो खुद को हालात के मुताबिक़ बदल लिया है । अरे भाई , कब तक खुद को आक़ा क़ौमों के चलन में ढालते रहोगे ?
हालात को बदलने की मर्दानगी कब पैदा करोगे ?
यह अजीब बात है कि सावरकर जी के जितने भी मुरीद यहां ब्लॉग बनाये बैठे हैं , सभी उन अंग्रेज़ों की ड्रेस पहनते हैं जिन्होंने सावरकर जी को यातनाएं दी थीं । जब भगिनी निवेदिता तक अपनी पश्चिमी ड्रेस छोड़कर भारतीय परिधान पहन सकती हैं तो क्या ये तथाकथित राष्ट्रवादी भारतीय परिधान नहीं पहन सकते ?कहीं ये सभी जाली राष्ट्रवादी तो नहीं ?
गिरी जी अक्सर हरिद्वार जाते रहते हैं । क्यों जाते हैं ? क्या करने जाते हैं ? नहाने ही जाते होंगे , किसी को नहाते हुए देखने थोड़े ही जाते होंगे ?
गिरी जी बाबा रामदेव जी के भी फ़ैन हैं ।
बाबा रामदेव जी भी एक बेजोड़ शख्िसयत हैं । योग को भारत में किसी उत्पाद की तरह लोकप्रिय बनाने का श्रेय उनको ही जाता है । गिरी जी मुझे बाबा जी के आश्रम में ले जाना चाहते हैं लेकिन जब से इच्छाधारी बाबा की घटना सामने आयी है , तब से तो ...... ।
इसी को कहते हैं कि दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है ।इसके बावजूद बाबा जी जितनी चीज़ें पीने से मना करते हैं उन्हें मैं नहीं पीता । ऐसा मैं उनके कहने से नहीं करता बल्कि उनसे पहले से ही मैं वे सब नहीं पीता ।
कुल मिलाकर गिरी जी मेरा भला चाहते हैं । मेरे बारे में पोस्ट लिख लिख कर वे मेरे साथ साथ अपना भी भला करते रहे । नतीजा यह हुआ कि वह आज वह एक स्टार ब्लॉगर हैं । उन्होंने ऐलान भी कर दिया है कि मैं उनकी वजह से ही सुधरा हूं । लेकिन यह सेहरा भी लोग उनसे छीन लेना चाहते हैं । कोई कहता है कि मैं फ़िरदौस बहन की वजह से सुधरा हूं बल्कि एक ‘पा‘ तो यह कह चुका है कि मैं फ़िरदौस बहन से हार गया हूं । अरे भाई , क्या यहां कोई लूडो का टूर्नामेन्ट हुआ था ?
और क्या मेरे साथ बहन जी कभी खेलीं थीं ?
न , न , न गिरी जी । आप दिल छोटा न करें । हम खुद को आपकी वजह से ही सुधरा हुआ मानेंगे और हमें उम्मीद है कि जनाब सतीश जी भी गिरी जी का दिल रखने की ख़ातिर अपना दावा पेश नहीं करेंगे और इसे ‘लाइटली‘ ही लेंगे । क्यों गिरी जी ! अब तो हो गए न खुश ?
हम तो सुधर जाएं लेकिन यह मराठी बन्धु हमें सुधरने दें , तब न । यह तो हमारे ब्लॉग पर आकर अब भी उल्टी बात कर रहे हैं । यह साहब तो गिरी जी की सारी मेहनत में शुरू से ही पलीता लगाते आ रहे हैं । गिरी जी , अब आप ही बताइये कि हम क्या करें ?
अब आपकी तरह हरेक को तो हम भी ‘लाइटली‘ नहीं ले सकते न । उम्मीद है कि आप जीवन में पहली बार अपनी ‘अनयूज़्ड‘ अक्ल पर ज़ोर डालकर पोस्ट बनाकर उत्तर देंगे ।गिरी जी के अलावा भी जो साहब बताना चाहें बता सकते हैं कि क्या मराठी बंधु सही कह रहे हैं ?
देखिए उनकी टिप्पणी no. 22
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Tuesday, April 20, 2010
मेरे मन की दुनिया में हरेक का स्वागत है । The Power of imagination .
मन की दुनिया भी कितनी अजीब है ?
हरेक अपनी मन की दुनिया का शहंशाह है । अक्सर आदमी अपनी कल्पनाओं में उन चीज़ों को पा लेता है , जो उसे चेतना के स्तर पर सचमुच नहीं मिल पातीं लेकिन कभी कभी इनसान के मन को कल्पना करनी नहीं पड़ती बल्कि उसे कल्पना उसके मन में खुद ब खुद आकार ले लेती हैं । एक आनन्द से भर देने वाली ऐसी ही कल्पना मेरे मन में भी उपजी है । रात बीत चुकी है । दूर तक फैले हुए समुद्र के किनारे मैं ठण्डी रेत पर लेटा हुआ हूं । बांस से बनी हुई मेरी झोंपड़ी का दीपक अभी तक जल रहा है । हल्के हल्के सूरज समुद्र के पानी से निकलता हुआ सा प्रतीत हो रहा है । बादल उसके प्रकाश को ढकने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं । तभी आसमान से नन्हीं नन्हीं बूंदे मेरे बदन पर गिरती हैं और उनकी ठण्डक मेरी रूह तक पहुंचती है । एक ग़ज़ल मन की सतह से बुलन्द होती है और होंठों से गुज़र कर माहौल को तरन्नुम से भर देती है -
बाक़ी हैं कुछ सज़ाएं सज़ाओं के बाद भी
बाक़ी हैं कुछ सज़ाएं सज़ाओं के बाद भी
हम वफ़ा कर रहे हैं उनकी जफ़ाओं के बाद भी
हमें अपने वुजूद से लड़ने का शौक़ है
हम जल रहे हैं तेज़ हवाओं के बाद भी
करता है मेरे अज़्म की मौसम मुख़ालिफ़त
धरती पे धूप आई घटाओं के बाद भी
मौत खुद आके उसकी मसीहाई कर गई
बच न पाया मरीज़ दवाओं के बाद भी
लहजे पे था भरोसा , न लफ़्ज़ों पे था यक़ीं
दिल मुतमईं हो कैसे दुआओं के बाद भी
मुन्सिफ़ से जाके पूछ लो ‘अनवर‘ ये राज़ भी
वो बेख़ता है कैसे ख़ताओं के बाद भी
शब्दार्थ : जफ़ा - बेवफ़ाई , अज़्म - इरादा , मुन्सिफ़ - इन्साफ़ करने वाला
मेरे चारों तरफ़ का माहौल रौशन होने लगता है और तभी मेरे मन की दुनिया में एक तरफ़ से रेत पर टहलते हुए कुछ लोग हंसते - खिलखिलाते चले आ रहे हैं , बिल्कुल एक परिवार के सदस्यों की तरह । यह सच है या मेरे मन में बरसों से जड़ पकड़े बैठी कल्पना , मैं यह जानने के लिए खुद को चिकोटी काटना चाहता हूं लेकिन तभी रूक जाता हूं । अगर यह सिर्फ़ कल्पना ही हुई तो ... ?
शब्दार्थ : जफ़ा - बेवफ़ाई , अज़्म - इरादा , मुन्सिफ़ - इन्साफ़ करने वाला
मेरे चारों तरफ़ का माहौल रौशन होने लगता है और तभी मेरे मन की दुनिया में एक तरफ़ से रेत पर टहलते हुए कुछ लोग हंसते - खिलखिलाते चले आ रहे हैं , बिल्कुल एक परिवार के सदस्यों की तरह । यह सच है या मेरे मन में बरसों से जड़ पकड़े बैठी कल्पना , मैं यह जानने के लिए खुद को चिकोटी काटना चाहता हूं लेकिन तभी रूक जाता हूं । अगर यह सिर्फ़ कल्पना ही हुई तो ... ?
बहरहाल जो भी है सुंदर है , शांतिदायक है । तब तक वे लोग भी मेरे पास चले आते हैं । इनमें सतीश सक्सेना जी हैं , प्रिय अमित हैं , सहसपुरिया , डा. अयाज़ , जनाब उमर कैरानवी , शाह नवाज, सलीम ख़ान , विचार शून्य , प्रवीण शाह जी, महक जी , जनदुनिया वाले बुज़ुर्ग , भाई तारकेश्वर गिरी जी , असलम कासमी, सफ़त भाई और ज़ीशान ज़ैदी हैं । उनसे थोड़ा फ़ासले पर ‘लफ़ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी‘ भी एक मराठी बन्धु से बातचीत कर रही हैं । मेरे मन की दुनिया में हरेक का स्वागत है । मैं सबके स्वागत के लिए उठ खड़ा होता हूं ।
Monday, April 19, 2010
बेशक हिन्दू सद्गुणों की खान है । Great Indians
आदरणीय जनाब सतीश जी ! बेशक हिन्दू सद्गुणों की खान है । सनातन धर्मी भाईयों में ज्ञान और ज्ञानी को आदर देने का गुण पाया जाता है । निरंकारी , राधास्वामी , ब्रह्माकुमारी , इस्कॉन , स्वाध्याय परिवार , गायत्री परिवार , कबीरपंथी , रामकृष्ण मिशन और अन्य अनेक मतों के आचार्यों व पंथानुयायियों से मैं प्रायः मिलता रहता हूं और हरेक को मैं उसकी शालीनता और ध्यान के प्रभाव से उसके चेहरे पर उपजे तेज से ही मुझे उसके मत का पता अमूमन चल जाता है और अगर कभी चूक हो जाती है तो उसकी वाणी से तो पता चल ही जाता है । अपने 21 वर्षीय लम्बे सम्पर्क में मैंने इनके मुंह से कभी बदतमीज़ी की बात नहीं सुनी और न ही मुझे इनसे या इन्हें मुझसे कोई शिकायत कभी पेश आई।
सभी से मेरे दोस्ताना ताल्लुक़ात हैं । रात को भी कभी आवाज़ देता हूं तो दौड़े चले आते हैं । आज सुबह भी मेरे प्रिय मित्र डा. नरेश गिरी मेरे घर आये थे क्योंकि मुझे उनकी मदद की ज़रूरत थी । और यह कहने की बात नहीं है कि मैं भी उन सबके लिए ऐसा ही हूं । लेकिन समाज में दो ग्रुप ऐसे पाये जाते हैं जिनसे मुझे इसलाम , मुसलमान , पवित्र कुरआन और पैग़म्बर साहब के लिए प्रायः कष्टप्रद बातें सुनने को मिलती रहती हैं । अपने लिट्रेचर में भी यह लोग इसलाम के खण्डन की सामग्री निःसंकोच प्रकाशित करते रहते हैं । एक ग्रुप आर्य समाज कहलाता है और दूसरा ग्रुप शाखा में लाठियां चलाता है। मेरे ब्लॉग पर भी बदतमीज़ी करने वाले यही दो ग्रुप हैं , सामान्य हिन्दू नहीं है ।
सौरभ आत्रेय और महाजाल ब्लॉग का स्वामी दोनों ही मुसलमान नहीं हैं । दोनों ने ही इन्तिहाई नीच हरकत की लेकिन किसी ने उन्हें नहीं समझाया । काला चश्मा लगाने वाला और सुअर की गाली देने वाला एक आदमी आये दिन मुसलमान औरत के बुरके पर चिन्ता प्रकट करता रहता है । वह भी मुसलमान नहीं है । ऐसे ही वेब जगत के बाशिन्दे मुझसे प्रश्न करने या व्यंग्य करने आ जाते हैं और जब जवाब लेकर अपना मुंह चाटते हैं तो दूसरे कहते हैं कि हम आहत हो रहे हैं । भाई , इन्हें रोकिए । मेरा वादा है कि ये रूक गए तो कोई आहत नहीं होगा । बेनामी ब्लॉगर्स की तो मैं परवाह ही नहीं करता , उनकी कोई शिकायत भी नहीं पालता । हर हर महादेव के नाम से लिखने वाला आदमी भी जिज्ञासु का शिष्य मुरादाबाद का राजबीर है । मैं उसे जानता हूं । याद रखिए कि कोई मुसलमान या शिवभक्त हिन्दू कभी काबा को गाली नहीं दे सकता ।
अब बताइये मोहतरम , मेरी शिकायत क्या ग़लत है ?
और अब जो भी दिल छलनी करने वाली पोस्ट आएगी , मैं आपको दिखा दूंगा । मेरा जवाब इन्हीं लोगों को होता है , सामान्य हिन्दू भाईयों को मैंने सम्बोधित करके कभी कोई बात नहीं कही । प्रश्नकत्र्ता को तो जवाब दिया ही जाएगा । अब आप बताएं ।
सभी से मेरे दोस्ताना ताल्लुक़ात हैं । रात को भी कभी आवाज़ देता हूं तो दौड़े चले आते हैं । आज सुबह भी मेरे प्रिय मित्र डा. नरेश गिरी मेरे घर आये थे क्योंकि मुझे उनकी मदद की ज़रूरत थी । और यह कहने की बात नहीं है कि मैं भी उन सबके लिए ऐसा ही हूं । लेकिन समाज में दो ग्रुप ऐसे पाये जाते हैं जिनसे मुझे इसलाम , मुसलमान , पवित्र कुरआन और पैग़म्बर साहब के लिए प्रायः कष्टप्रद बातें सुनने को मिलती रहती हैं । अपने लिट्रेचर में भी यह लोग इसलाम के खण्डन की सामग्री निःसंकोच प्रकाशित करते रहते हैं । एक ग्रुप आर्य समाज कहलाता है और दूसरा ग्रुप शाखा में लाठियां चलाता है। मेरे ब्लॉग पर भी बदतमीज़ी करने वाले यही दो ग्रुप हैं , सामान्य हिन्दू नहीं है ।
सौरभ आत्रेय और महाजाल ब्लॉग का स्वामी दोनों ही मुसलमान नहीं हैं । दोनों ने ही इन्तिहाई नीच हरकत की लेकिन किसी ने उन्हें नहीं समझाया । काला चश्मा लगाने वाला और सुअर की गाली देने वाला एक आदमी आये दिन मुसलमान औरत के बुरके पर चिन्ता प्रकट करता रहता है । वह भी मुसलमान नहीं है । ऐसे ही वेब जगत के बाशिन्दे मुझसे प्रश्न करने या व्यंग्य करने आ जाते हैं और जब जवाब लेकर अपना मुंह चाटते हैं तो दूसरे कहते हैं कि हम आहत हो रहे हैं । भाई , इन्हें रोकिए । मेरा वादा है कि ये रूक गए तो कोई आहत नहीं होगा । बेनामी ब्लॉगर्स की तो मैं परवाह ही नहीं करता , उनकी कोई शिकायत भी नहीं पालता । हर हर महादेव के नाम से लिखने वाला आदमी भी जिज्ञासु का शिष्य मुरादाबाद का राजबीर है । मैं उसे जानता हूं । याद रखिए कि कोई मुसलमान या शिवभक्त हिन्दू कभी काबा को गाली नहीं दे सकता ।
अब बताइये मोहतरम , मेरी शिकायत क्या ग़लत है ?
और अब जो भी दिल छलनी करने वाली पोस्ट आएगी , मैं आपको दिखा दूंगा । मेरा जवाब इन्हीं लोगों को होता है , सामान्य हिन्दू भाईयों को मैंने सम्बोधित करके कभी कोई बात नहीं कही । प्रश्नकत्र्ता को तो जवाब दिया ही जाएगा । अब आप बताएं ।
अक्ल तो नहीं लेकिन मुफ़्त सर खपाते हैं
फ़लसफ़ीनुमा बन कर फ़लसफ़ा सिखाते हैं
शरपसन्द अनासिर की यूरिशों के क्या कहने
नफ़रतों के शोलों से ज़िन्दगी जलाते हैं
ज़िन्दगी की अज़्मत का ऐतराफ़ है हमें
मुश्किलों की ज़द में भी हम मुस्कुराते हैं
कलाम - मुजीब शाहपुरी
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Saturday, April 17, 2010
गीता में युद्धोन्माद - Dr. Surendra Kumar Sharma 'Agyat'
वेदों की ही विचारधारा आगे महाकाव्यों में प्रतिफलित हुई । महाभारत में जो ‘गीता‘ मिलती है , उसका प्रमुख लक्ष्य युद्धोन्माद पैदा करना ही है । इस की रचना ही अर्जुन में युद्धलिप्सा जगाने के लिए की गई थी , यद्यपि यह तो नहीं माना जा सकता कि वर्तमान गीता का एक एक शब्द युद्धक्षेत्र में लिखा व कहा गया था । पिछले कम से कम एक हज़ार वर्षों से महाभारत के भीष्म पर्व में जिस रूप में गीता मिलती है , उस से पता चलता है कि जब अर्जुन धनुषबाण छोड़कर युद्ध से विमुख होता है तब श्रीकृष्ण , जो गीता का कथित वक्ता है , उसे अनार्य आदि कहकर फटकार लगाता है और अपनी विविध बातों से उसे युद्ध के लिए भड़काता है तथा संबंधियों को युद्ध में क़त्ल करने में किसी भी प्रकार की अनैतिकता न होने की बात करता है । उदाहरण के लिए कुछ कथन प्रस्तुत हैं -
यदृच्छया चोप्पन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्
अथ चेत् त्वमिमं धम्र्यं संग्रामं न करिष्यसि
ततः स्वधर्म कीर्ति च हित्वा पापमवाप्स्ययसि
( गीता , 2-32,33 )
अर्थात हे अर्जुन , इस तरह के युद्ध का मौक़ा ख़ुशक़िस्मत क्षत्रियों को ही प्राप्त होता है , यह तो स्वर्ग के खुले द्वार सा है । यदि तू इस धर्मयुद्ध को नहीं करेगा , ( क्षत्रिय होने से युद्ध करना तेरा धर्म है , ) तो तेरा धर्म व यश नष्ट हो जाएगा और तुझे पाप लगेगा ।
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय :
( गीता , 2-37 )
अर्थात हे अर्जुन , यदि तू इस युद्ध में मारा गया तो तुझे स्वर्ग की प्राप्ति होगी । यदि तू जीत गया तो पृथ्वी का भोग करेगा । अतः उठ और युद्ध के लिए तैयार हो ।
युद्धाय युज्यस्व ( गीता , 2-38 )
अर्थात युद्ध करने के लिए युद्ध करो ।
निर्ममो भूत्वा युध्यस्व ( गीता , 3-30 )
अर्थात ममतारहित होकर युद्ध करो ।
तस्मात् त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून भुंक्ष्व राज्यं समृद्धम् ( गीता , 3-33 )
अर्थात अर्जुन , उठो यश प्राप्त करो और शत्रुओं को जीत कर इस समृद्ध राज्य का आनन्द उठाओ ।
सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च ( गीता , 8-7 )
अर्थात हे अर्जुन , तू मेरा अर्थात मुझ परमात्मा का स्मरण कर और युद्ध कर ।
महाभारत में अन्यत्र भी ऐसी बातें बहुतायत से मिलती हैं , यथाः
युद्धाय क्षत्रियः सृष्टः संजयेह जयाय च ,
जयन वा वध्यमानो वा प्राप्नोतींद्रसलोकताम्
न शकभवने पुण्ये दिवि तद् विद्यते सुखम् ।
यदमित्रान् वशे कृत्वा क्षत्रियः सुखमेधते
मन्युना दह्यमानेन पुरूषेण मनस्विना ,
निकृतेनेह बहुशः शत्रून प्रति जिगीषया
आत्मानं वा परित्यज्य शत्रुं वा विनिपात्य च ,
अतोऽन्येन प्रकारेण शन्तिरस्य कुतो भवेत्
इह प्राज्ञों हि पुरूषः स्वल्पमप्रियमिच्छति ,
यस्य स्वल्प प्रियं लोके ध्रुवं तस्याल्पमप्रियम्
( महाभारत , उद्योगपर्व , 135-13 से 17 तक )
अर्थात हे संजय , क्षत्रिय जाति इस संसार में युद्ध और विजय के लिए ही रची गई है । यह जीत कर भी और मरकर भी स्वर्ग को प्राप्त करती है ।
क्षत्रिय को जो सुख शत्रुओं को अपने अधीन कर के मिलता है वह उसे स्वर्ग में इंद्र के पवित्र व सुंदर भवन में भी नहीं मिलता । क्रोध से जलने वाले मानी पुरूष को बारबार तिरस्कृत होने पर भी विजय की इच्छा से शत्रुओं पर आक्रमण करना ही चाहिये ।
युद्ध में अपने शरीर को त्याग कर अथवा शत्रु के शरीर को गिरा कर ही उस के हृदय को शांति मिल सकती है , अन्य किसी तरह से नहीं ।
बुद्धिमान पुरूष संसार में अल्प ऐश्वर्य को पर्याप्त नहीं समझता । जगत में थोड़े वैभव से संतुष्ट होने वाले का वह वैभव अनर्थकारी होता है । अतः राजाओं को थोड़े से संतोष नहीं करना चाहिये ।
ये विचार वैदिक काल के अधिक निकट हैं , यद्यपि लिपिबद्ध काफ़ी बाद में हुए । इन में युद्ध में सीधे लड़ने और उस में शत्रु को मार देने अथवा खुद मर जाने की बात है । क्षत्रिय को लड़ना ही चाहिये और विजय प्राप्त करनी ही चाहिये । यह बात कोई अर्थ नहीं रखती कि मुद्दा क्या है , उसे बिना युद्ध के , बिना मारकाट के , अन्य तरीक़ों से सुलझाया जा सकता है या नहीं । हर क्षत्रिय का यह धर्म है कि वह मारकाट करता रहे ।
- यह चिरस्मरणीय लेख ‘हिंदू इतिहास : हारों की दास्तान ‘ पृष्ठ 73-75 , से साभार उद्धृत है । यह पुस्तक विश्व विजय प्रा. लि. एम-12, कनाट सरकस , नई दिल्ली 110001 पर उपलब्ध है । भाई अमित जी ने यह जताया था कि वैदिक साहित्य के साथ उन्हें हमसे ज़्यादा ताल्लुक़ है लिहाज़ा वे उम्र में हमसे छोटे होने के बावजूद इस विषय में हमारे बड़े भाई हैं । हमें छोटा ही सही लेकिन भाई तो माना । हमें तो इस बात की भी खुशी है ।मैंने प्रिय प्रवीण जी व सत्य वाचक श्री महक जी की टिप्पणी मिलने के बाद विश्लेषण किया तो जाना कि कुछ बुद्धिजीवीनुमा जीवों को यह समस्या नहीं है कि हमारे ग्रन्थों की आलोचना क्यों हो रही है क्योंकि प्रायः इससे भी ज़्यादा आलोचनात्मक लेख ब्लॉगवाणी व चिठ्ठाजगत पर प्रकाशित होते ही रहते हैं और लोग मामूली सा कुनमुना कर रह जाते हैं लेकिन इस तरह आपे से बाहर होकर गालियां वहां नहीं बकते । कारण यह है कि उन लेखकों को दुनिया हिन्दू कहती है लेकिन मुझे नहीं बख्शा जाता क्योंकि मैं एक मुसलमान हूं । हालांकि मैं वेदादि में सत्यांश मानता हूं और उनकी दिव्यता और पवित्रता में विश्वास भी रखता हूं । यह तथ्य साफ़ हो जाने के बाद मैंने उचित जाना कि अब वैदिक साहित्य के संबंध में मैं खुद कुछ न कहकर ऐसे महान हिन्दू विद्वानों के लेखों के माध्यम से सत्य को उद्घाटित करूं जिनके माननीय बाप दादा ने गर्भ से ही वेदों के मंत्र सुने हैं और दुनिया में उन्हें प्रकांड पण्डित माना जाता है । डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ एक ऐसे ही विद्वान घराने के पण्डित हैं । अपने परिचय में वे स्वयं लिखते हैं -
- पृष्ठ 13 , भूमिका ‘क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिन्दू धर्म ?‘ अगर अमित जी खुद को मेरा बड़ा भाई समझते हैं तो मेरे पास उनके ताऊ जी मौजूद हैं । उम्मीद है कि अमित जी भी डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ जी को अपने से श्रेष्ठतर व विश्वसनीय मानेंगे । अब किसी भी संस्कृति प्रेमी को मुझे बुरा कहने का कोई हक़ नहीं पहुंचता । आप मुझे चुप करना चाहते थे तो लीजिये मैं तो चुप हो गया और काफ़ी हद तक अपना ब्लॉग ही मैं तो ब्राह्मण को सौंप रहा हूं । मैं तो बहुत लिहाज़ करता था कुछ कहने में , लेकिन डा. अज्ञात साहब सच कहने में किसी का ज़रा भी लिहाज़ नहीं करते । मैं तो वेदों में ईश्वर की वाणी का अंश मानता हूं लेकिन वे तो ईश्वर को ही नहीं मानते तो वेदों को ईश्वरीय क्या मानेंगे ?
आप मुझ आस्तिक को बर्दाश्त न कर पाये लेकिन अब आपको एक नास्तिक को सुनना और सराहना या फिर कराहना होगा । जब कोई आदमी किसी नेमत की क़द्र नहीं करता तो उसके साथ ऐसा ही होता है ।
अब आपको अपने समाज के एक से बढ़कर एक विद्वानों के अमृतवचन सुनने को मिलेंगे और जब आपको अपनी ग़लती का अहसास हो जाएगा और आपको लगेगा कि इनसे तो अनवर ही ठीक था तो फिर मैं ही बोलूंगा लेकिन तब आपको मानना पड़ेगा कि अमित जी मेरे बड़े भाई नहीं हैं बल्कि वे मेरे अनुज ही हैं आयु में भी और ज्ञान में भी और अगर कोई नहीं मानेगा तब भी वह इस फ़ैक्ट को जल्द ही जान लेगा ।
यदृच्छया चोप्पन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्
अथ चेत् त्वमिमं धम्र्यं संग्रामं न करिष्यसि
ततः स्वधर्म कीर्ति च हित्वा पापमवाप्स्ययसि
( गीता , 2-32,33 )
अर्थात हे अर्जुन , इस तरह के युद्ध का मौक़ा ख़ुशक़िस्मत क्षत्रियों को ही प्राप्त होता है , यह तो स्वर्ग के खुले द्वार सा है । यदि तू इस धर्मयुद्ध को नहीं करेगा , ( क्षत्रिय होने से युद्ध करना तेरा धर्म है , ) तो तेरा धर्म व यश नष्ट हो जाएगा और तुझे पाप लगेगा ।
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय :
( गीता , 2-37 )
अर्थात हे अर्जुन , यदि तू इस युद्ध में मारा गया तो तुझे स्वर्ग की प्राप्ति होगी । यदि तू जीत गया तो पृथ्वी का भोग करेगा । अतः उठ और युद्ध के लिए तैयार हो ।
युद्धाय युज्यस्व ( गीता , 2-38 )
अर्थात युद्ध करने के लिए युद्ध करो ।
निर्ममो भूत्वा युध्यस्व ( गीता , 3-30 )
अर्थात ममतारहित होकर युद्ध करो ।
तस्मात् त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून भुंक्ष्व राज्यं समृद्धम् ( गीता , 3-33 )
अर्थात अर्जुन , उठो यश प्राप्त करो और शत्रुओं को जीत कर इस समृद्ध राज्य का आनन्द उठाओ ।
सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च ( गीता , 8-7 )
अर्थात हे अर्जुन , तू मेरा अर्थात मुझ परमात्मा का स्मरण कर और युद्ध कर ।
महाभारत में अन्यत्र भी ऐसी बातें बहुतायत से मिलती हैं , यथाः
युद्धाय क्षत्रियः सृष्टः संजयेह जयाय च ,
जयन वा वध्यमानो वा प्राप्नोतींद्रसलोकताम्
न शकभवने पुण्ये दिवि तद् विद्यते सुखम् ।
यदमित्रान् वशे कृत्वा क्षत्रियः सुखमेधते
मन्युना दह्यमानेन पुरूषेण मनस्विना ,
निकृतेनेह बहुशः शत्रून प्रति जिगीषया
आत्मानं वा परित्यज्य शत्रुं वा विनिपात्य च ,
अतोऽन्येन प्रकारेण शन्तिरस्य कुतो भवेत्
इह प्राज्ञों हि पुरूषः स्वल्पमप्रियमिच्छति ,
यस्य स्वल्प प्रियं लोके ध्रुवं तस्याल्पमप्रियम्
( महाभारत , उद्योगपर्व , 135-13 से 17 तक )
अर्थात हे संजय , क्षत्रिय जाति इस संसार में युद्ध और विजय के लिए ही रची गई है । यह जीत कर भी और मरकर भी स्वर्ग को प्राप्त करती है ।
क्षत्रिय को जो सुख शत्रुओं को अपने अधीन कर के मिलता है वह उसे स्वर्ग में इंद्र के पवित्र व सुंदर भवन में भी नहीं मिलता । क्रोध से जलने वाले मानी पुरूष को बारबार तिरस्कृत होने पर भी विजय की इच्छा से शत्रुओं पर आक्रमण करना ही चाहिये ।
युद्ध में अपने शरीर को त्याग कर अथवा शत्रु के शरीर को गिरा कर ही उस के हृदय को शांति मिल सकती है , अन्य किसी तरह से नहीं ।
बुद्धिमान पुरूष संसार में अल्प ऐश्वर्य को पर्याप्त नहीं समझता । जगत में थोड़े वैभव से संतुष्ट होने वाले का वह वैभव अनर्थकारी होता है । अतः राजाओं को थोड़े से संतोष नहीं करना चाहिये ।
ये विचार वैदिक काल के अधिक निकट हैं , यद्यपि लिपिबद्ध काफ़ी बाद में हुए । इन में युद्ध में सीधे लड़ने और उस में शत्रु को मार देने अथवा खुद मर जाने की बात है । क्षत्रिय को लड़ना ही चाहिये और विजय प्राप्त करनी ही चाहिये । यह बात कोई अर्थ नहीं रखती कि मुद्दा क्या है , उसे बिना युद्ध के , बिना मारकाट के , अन्य तरीक़ों से सुलझाया जा सकता है या नहीं । हर क्षत्रिय का यह धर्म है कि वह मारकाट करता रहे ।
- यह चिरस्मरणीय लेख ‘हिंदू इतिहास : हारों की दास्तान ‘ पृष्ठ 73-75 , से साभार उद्धृत है । यह पुस्तक विश्व विजय प्रा. लि. एम-12, कनाट सरकस , नई दिल्ली 110001 पर उपलब्ध है । भाई अमित जी ने यह जताया था कि वैदिक साहित्य के साथ उन्हें हमसे ज़्यादा ताल्लुक़ है लिहाज़ा वे उम्र में हमसे छोटे होने के बावजूद इस विषय में हमारे बड़े भाई हैं । हमें छोटा ही सही लेकिन भाई तो माना । हमें तो इस बात की भी खुशी है ।मैंने प्रिय प्रवीण जी व सत्य वाचक श्री महक जी की टिप्पणी मिलने के बाद विश्लेषण किया तो जाना कि कुछ बुद्धिजीवीनुमा जीवों को यह समस्या नहीं है कि हमारे ग्रन्थों की आलोचना क्यों हो रही है क्योंकि प्रायः इससे भी ज़्यादा आलोचनात्मक लेख ब्लॉगवाणी व चिठ्ठाजगत पर प्रकाशित होते ही रहते हैं और लोग मामूली सा कुनमुना कर रह जाते हैं लेकिन इस तरह आपे से बाहर होकर गालियां वहां नहीं बकते । कारण यह है कि उन लेखकों को दुनिया हिन्दू कहती है लेकिन मुझे नहीं बख्शा जाता क्योंकि मैं एक मुसलमान हूं । हालांकि मैं वेदादि में सत्यांश मानता हूं और उनकी दिव्यता और पवित्रता में विश्वास भी रखता हूं । यह तथ्य साफ़ हो जाने के बाद मैंने उचित जाना कि अब वैदिक साहित्य के संबंध में मैं खुद कुछ न कहकर ऐसे महान हिन्दू विद्वानों के लेखों के माध्यम से सत्य को उद्घाटित करूं जिनके माननीय बाप दादा ने गर्भ से ही वेदों के मंत्र सुने हैं और दुनिया में उन्हें प्रकांड पण्डित माना जाता है । डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ एक ऐसे ही विद्वान घराने के पण्डित हैं । अपने परिचय में वे स्वयं लिखते हैं -
मेरी दो पीढ़ियां हिंदू धर्म से सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं । मेरे पिता
शास्त्रार्थ महारथी पं. अमरनाथ शास्त्री ‘प्रतिवादि-भयंकर‘, सनातन धर्म प्रतिनिधि
सभा पंजाब ( लाहौर ) से संबद्ध रहे । वे त्यागमूर्ति पं. गोस्वामी गणेशदत्त जी के
साथ धर्म प्रचार का काम करते रहे और आर्य समाजियों से शास्त्रार्थ करते रहे । स्मरण
रहे , उन हाथों पराजित हो कर 1936 में फ़तहगढ़ चूडियां (पंजाब) में प्रसिद्ध आर्य
समाजी विद्वान शास्त्रार्थ महारथी पं. मनसाराम ने 1875 के ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ को मंच पर ही आग लगा दी थी ।
- पृष्ठ 13 , भूमिका ‘क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिन्दू धर्म ?‘ अगर अमित जी खुद को मेरा बड़ा भाई समझते हैं तो मेरे पास उनके ताऊ जी मौजूद हैं । उम्मीद है कि अमित जी भी डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ जी को अपने से श्रेष्ठतर व विश्वसनीय मानेंगे । अब किसी भी संस्कृति प्रेमी को मुझे बुरा कहने का कोई हक़ नहीं पहुंचता । आप मुझे चुप करना चाहते थे तो लीजिये मैं तो चुप हो गया और काफ़ी हद तक अपना ब्लॉग ही मैं तो ब्राह्मण को सौंप रहा हूं । मैं तो बहुत लिहाज़ करता था कुछ कहने में , लेकिन डा. अज्ञात साहब सच कहने में किसी का ज़रा भी लिहाज़ नहीं करते । मैं तो वेदों में ईश्वर की वाणी का अंश मानता हूं लेकिन वे तो ईश्वर को ही नहीं मानते तो वेदों को ईश्वरीय क्या मानेंगे ?
आप मुझ आस्तिक को बर्दाश्त न कर पाये लेकिन अब आपको एक नास्तिक को सुनना और सराहना या फिर कराहना होगा । जब कोई आदमी किसी नेमत की क़द्र नहीं करता तो उसके साथ ऐसा ही होता है ।
अब आपको अपने समाज के एक से बढ़कर एक विद्वानों के अमृतवचन सुनने को मिलेंगे और जब आपको अपनी ग़लती का अहसास हो जाएगा और आपको लगेगा कि इनसे तो अनवर ही ठीक था तो फिर मैं ही बोलूंगा लेकिन तब आपको मानना पड़ेगा कि अमित जी मेरे बड़े भाई नहीं हैं बल्कि वे मेरे अनुज ही हैं आयु में भी और ज्ञान में भी और अगर कोई नहीं मानेगा तब भी वह इस फ़ैक्ट को जल्द ही जान लेगा ।
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Friday, April 16, 2010
क्या वेद अहिंसावादी हैं ? - डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ The True Hindu
जब मुसलिम देशों के संसाधनों पर क़ब्ज़ा जमाने के लिए उन पर हमले किए गए या किसी मुल्क में मुसलिम समुदाय को उनके वाजिब हक़ से महरूम रखा गया तो प्रतिक्रियास्वरूप उनमें उग्रवाद पनपा । फिर एक सुनियोजित षड्यन्त्र के तहत उनके हमलों को इसलाम के सिद्धान्तों से जोड़ कर उनके धर्म को ही कटघरे में खड़ा करने का कुत्सित प्रयास किया गया । बुद्धिजीवी होने का दम भरने वालों में कुछ लोग तो पवित्र कुरआन पर रिसर्च सी करके यह साबित करने में ही लगे हुए हैं कि मुसलमानों में कट्टरता का कारण पवित्र कुरआन है ।
हिन्दुस्तान में हज़ारों दंगे हुए जिनमें सन 84 के दंगों की तरह प्रशिक्षित सांप्रदायिक हिन्दूनुमा जीवों ने भयानक मारकाट की लेकिन किसी मुसलमान ने तो आजतक उनके पीछे उनके धर्मग्रन्थ की शिक्षाओं को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया । ये दुर्भावनाग्रस्त स्वकल्पनाजीवी अगर वेदादि पर सरसरी सी भी नज़र डाल लेते तो उन्हें खुद की कट्टरता का मूल नज़र आ जाता ।
डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ ने इसी महान मूल को ढूंढ निकाला है । उनके द्वारा लिखित पुस्तक ‘हिंदू इतिहास : हारों की दास्तान ‘ पृष्ठ 71 व 72 से यह चिरस्मरणीय लेख साभार उद्धृत है । यह पुस्तक विश्व विजय प्रा. लि. एम-12, कनाट सरकस , नई दिल्ली 110001 पर उपलब्ध है । अज्ञात जी जैसे लोग ही वास्तव में सच्चे हिन्दू और सच्चे ज्ञानी कहलाने के हक़दार हैं ।
क्या वेद अहिंसावादी हैं ?
भारत में प्रवेश के समय अथवा शुरू से ही आर्य लड़ाकू रहे हैं , ऐसा वेदों से पता चलता है । उन्हें यहां के मूल निवासियों , द्रविड़ों आदि अथवा अपने विरोधियों से पगपग पर और जम कर लोहा लेना पड़ा , युद्ध उनके लिए अनिवार्यता थी । इसलिए युद्धों में ज़्यादा से ज़्यादा मारकाट करने वाले को सर्वोच्च देवता क़रार दिया गया ।
ऋग्वेद का एक चैथाई भाग युद्ध और युद्ध के इस देवता से संबंध रखता है . ऋग्वेद में कुल 1,017 सूक्त हैं । इनमें 250 इंद्र से संबंधित हैं । इतने ज़्यादा सूक्त अन्य किसी देवता से संबंधित नहीं मिलते । नीचे इंद्र और उसके युद्धों का वर्णन करने वाले कुछ मंत्र प्रस्तुत हैं :
त्वमेतात्र् जनराज्ञो द्विदशाबंधुना सुश्रवसोपजग्मुषः ,
षष्टिं सहसा नवतिं नव श्रुतो नि चक्रेण रथ्या दुष्पदावृणक्
( ऋग्वेद , 1-53-9 )
अर्थात हे इंद्र , सुश्रवा नामक राजा के साथ युद्ध करने के लिए आए 20 राजाओं और उनके 60,099 अनुचरों को तुमने पराजित कर दिया था ।
इंद्रो दधीचो अस्थभिर्वृत्राण्यप्रतिष्कुतः जघान नवतीर्नव ।
( ऋग्वेद , 1-84-13 )
अर्थात अ-प्रतिद्वंदी इंद्र ने दधीचि ऋषि की हड्डियों से वृत्र आदि असुरों को 8-10 बार नष्ट किया ।
अहन् इंद्रो अदहद् अग्निः इंद्रो पुरा दस्यून मध्यन्दिनादभीके ।
दुर्गे दुरोणे क्रत्वा न यातां पुरू सहस्रा शर्वा नि बर्हीत्
( ऋग्वेद , 4-28-3 )
अर्थात हे सोम , तुझे पी कर बलवान हुए इंद्र ने दोपहर में ही शत्रुओं को मार डाला था और अग्नि ने भी कितने ही शत्रुओं को जला दिया था । जैसे किसी असुरक्षित स्थान में जाने वाले व्यक्ति को चोर मार डालता है , उसी प्रकार इंद्र ने हज़ारों सेनाओं का वध किया है ।
अस्वापयद् दभीयते सहस्रा त्रिंशतं हथैः, दासानिमिंद्रो मायया ।
( ऋग्वेद , 4-30-21 )
अर्थात इंद्र ने अपने कृपा पात्र दभीति के लिए अपनी शक्ति से 30 हज़ार राक्षसों को अपने घातक आयुधों से मार डाला ।
नव यदस्य नवतिं च भोगान् साकं वज्रेण मधवा विवृश्चत्,
अर्चंतींद्र मरूतः सधस्थे त्रैष्टुभेन वचसा बाधत द्याम ।
( ऋग्वेद , 5-29-6 )
अर्थात इंद्र ने वज्र से शंबर के 99 नगरों को एक साथ नष्ट कर दिया । तब संग्राम भूमि में ही मरूतों ने त्रिष्टुप छंद में इंद्र की स्तुति की । तब जोश में आकर इंद्र ने वज्र से शंबर को पीड़ित किया था ।
नि गव्यवो दुह्यवश्च पष्टिः शता सुषुपुः षट् सहसा
षष्टिर्वीरासो अधि षट् दुवोयु विश्वेदिंद्रस्य वीर्या कृतानि
( ऋग्वेद , 7-18-14 )
अर्थात अनु और दुहयु की गौओं को चाहने वाले 66,066 संबंधियों को सेवाभिलाषी सुदास के लिए मारा गया था । ये सब कार्य इंद्र की शूरता के सूचक हैं ।
वेदों में युद्ध के लिए युद्ध करना बड़े बड़े यज्ञ करने से भी ज़्यादा पुण्यकारी माना गया है । आज तक जहां कहीं यज्ञ होता है , उस के अंत में निम्नलिखित शलोक पढ़ा जाता है ।
अर्थात अनेक यज्ञ , कठिन तप कर के और अनेक सुपात्रों को दान दे कर ब्राह्मण लोग जिस उच्च गति को प्राप्त करते हैं , अपने जातिधर्म का पालन करते हुए युद्धक्षेत्र में प्राण त्यागने वाले शूरवीर क्षत्रिय उस से भी उच्च गति को प्राप्त होते हैं ।
हिन्दुस्तान में हज़ारों दंगे हुए जिनमें सन 84 के दंगों की तरह प्रशिक्षित सांप्रदायिक हिन्दूनुमा जीवों ने भयानक मारकाट की लेकिन किसी मुसलमान ने तो आजतक उनके पीछे उनके धर्मग्रन्थ की शिक्षाओं को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया । ये दुर्भावनाग्रस्त स्वकल्पनाजीवी अगर वेदादि पर सरसरी सी भी नज़र डाल लेते तो उन्हें खुद की कट्टरता का मूल नज़र आ जाता ।
डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ ने इसी महान मूल को ढूंढ निकाला है । उनके द्वारा लिखित पुस्तक ‘हिंदू इतिहास : हारों की दास्तान ‘ पृष्ठ 71 व 72 से यह चिरस्मरणीय लेख साभार उद्धृत है । यह पुस्तक विश्व विजय प्रा. लि. एम-12, कनाट सरकस , नई दिल्ली 110001 पर उपलब्ध है । अज्ञात जी जैसे लोग ही वास्तव में सच्चे हिन्दू और सच्चे ज्ञानी कहलाने के हक़दार हैं ।
क्या वेद अहिंसावादी हैं ?
भारत में प्रवेश के समय अथवा शुरू से ही आर्य लड़ाकू रहे हैं , ऐसा वेदों से पता चलता है । उन्हें यहां के मूल निवासियों , द्रविड़ों आदि अथवा अपने विरोधियों से पगपग पर और जम कर लोहा लेना पड़ा , युद्ध उनके लिए अनिवार्यता थी । इसलिए युद्धों में ज़्यादा से ज़्यादा मारकाट करने वाले को सर्वोच्च देवता क़रार दिया गया ।
ऋग्वेद का एक चैथाई भाग युद्ध और युद्ध के इस देवता से संबंध रखता है . ऋग्वेद में कुल 1,017 सूक्त हैं । इनमें 250 इंद्र से संबंधित हैं । इतने ज़्यादा सूक्त अन्य किसी देवता से संबंधित नहीं मिलते । नीचे इंद्र और उसके युद्धों का वर्णन करने वाले कुछ मंत्र प्रस्तुत हैं :
त्वमेतात्र् जनराज्ञो द्विदशाबंधुना सुश्रवसोपजग्मुषः ,
षष्टिं सहसा नवतिं नव श्रुतो नि चक्रेण रथ्या दुष्पदावृणक्
( ऋग्वेद , 1-53-9 )
अर्थात हे इंद्र , सुश्रवा नामक राजा के साथ युद्ध करने के लिए आए 20 राजाओं और उनके 60,099 अनुचरों को तुमने पराजित कर दिया था ।
इंद्रो दधीचो अस्थभिर्वृत्राण्यप्रतिष्कुतः जघान नवतीर्नव ।
( ऋग्वेद , 1-84-13 )
अर्थात अ-प्रतिद्वंदी इंद्र ने दधीचि ऋषि की हड्डियों से वृत्र आदि असुरों को 8-10 बार नष्ट किया ।
अहन् इंद्रो अदहद् अग्निः इंद्रो पुरा दस्यून मध्यन्दिनादभीके ।
दुर्गे दुरोणे क्रत्वा न यातां पुरू सहस्रा शर्वा नि बर्हीत्
( ऋग्वेद , 4-28-3 )
अर्थात हे सोम , तुझे पी कर बलवान हुए इंद्र ने दोपहर में ही शत्रुओं को मार डाला था और अग्नि ने भी कितने ही शत्रुओं को जला दिया था । जैसे किसी असुरक्षित स्थान में जाने वाले व्यक्ति को चोर मार डालता है , उसी प्रकार इंद्र ने हज़ारों सेनाओं का वध किया है ।
अस्वापयद् दभीयते सहस्रा त्रिंशतं हथैः, दासानिमिंद्रो मायया ।
( ऋग्वेद , 4-30-21 )
अर्थात इंद्र ने अपने कृपा पात्र दभीति के लिए अपनी शक्ति से 30 हज़ार राक्षसों को अपने घातक आयुधों से मार डाला ।
नव यदस्य नवतिं च भोगान् साकं वज्रेण मधवा विवृश्चत्,
अर्चंतींद्र मरूतः सधस्थे त्रैष्टुभेन वचसा बाधत द्याम ।
( ऋग्वेद , 5-29-6 )
अर्थात इंद्र ने वज्र से शंबर के 99 नगरों को एक साथ नष्ट कर दिया । तब संग्राम भूमि में ही मरूतों ने त्रिष्टुप छंद में इंद्र की स्तुति की । तब जोश में आकर इंद्र ने वज्र से शंबर को पीड़ित किया था ।
नि गव्यवो दुह्यवश्च पष्टिः शता सुषुपुः षट् सहसा
षष्टिर्वीरासो अधि षट् दुवोयु विश्वेदिंद्रस्य वीर्या कृतानि
( ऋग्वेद , 7-18-14 )
अर्थात अनु और दुहयु की गौओं को चाहने वाले 66,066 संबंधियों को सेवाभिलाषी सुदास के लिए मारा गया था । ये सब कार्य इंद्र की शूरता के सूचक हैं ।
वेदों में युद्ध के लिए युद्ध करना बड़े बड़े यज्ञ करने से भी ज़्यादा पुण्यकारी माना गया है । आज तक जहां कहीं यज्ञ होता है , उस के अंत में निम्नलिखित शलोक पढ़ा जाता है ।
अर्थात अनेक यज्ञ , कठिन तप कर के और अनेक सुपात्रों को दान दे कर ब्राह्मण लोग जिस उच्च गति को प्राप्त करते हैं , अपने जातिधर्म का पालन करते हुए युद्धक्षेत्र में प्राण त्यागने वाले शूरवीर क्षत्रिय उस से भी उच्च गति को प्राप्त होते हैं ।
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पवित्र कुरआन,
विश्व विजय प्रा. लि.,
सच्चे हिन्दू और सच्चे ज्ञानी
Thursday, April 15, 2010
आप जिस सहानुभूति से वेदों पुराणों और स्मृतियों को समझने का प्रयास करते हैं , पवित्र कुरआन को भी ऐसे सम्मानपूर्वक समझने का प्रयास कीजिये । The solution
ब्लॉग के ज़रिये हम दिलों के बीच मौजूद दीवारों को गिरा सकते हैं । हमारे लेखन का मक़सद भी यही है लेकिन कुछ लोगों का मक़सद यह है कि उन ख़ताओं के लिए भी ज़िम्मेदार भी मुसलमानों को ठहराओ , जिनके गुनाहगार वास्तव में वे खुद हैं ।
किसी हमदर्द के समझाने से मैं शांत हो गया था । मैंने ऐलान 3 दिन के लिए किया था लेकिन मैंने और ज़्यादा मोहलत दी ।
लेकिन मेरी इस ख़ामोशी के अंतराल में एक विषपुरूष ने पूरी पोस्ट क्रिएट कर दी कि मुसलमान संगठित तरीक़े से हिन्दू लड़कियों को मुसलमान बना रहे हैं ।
बताइये , ऐसा क्यों किया गया ?
क्या ऐसे आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला कभी समाप्त हो पाएगा ?
क्या ऐसे में मुझे जवाब देना चाहिये था या फिर मैं चुप लगा जाता ?
कोई हिन्दू भाई इसका उचित जवाब देता तो शायद मैं चुप रह जाता लेकिन मजबूरन मुझे इन आरोपवादियों को सच्चाई बतानी पड़ी और उसमें मैंने जानबूझकर वेदों का नाम तक नहीं लिया ।
वेदों का नाम नहीं लिया तो भाई अमित शर्मा बिगड़ गये बोले कि आपने अपने ब्लॉग का नाम वेद कुरआन क्यों रखा ?
इस ब्लॉग पर आप ख़तना , लिंगाग्र, स्तंभन और वीकनेस का ज़िक्र क्यों कर रहे हैं ?
आप अपने ब्लॉग का नाम बदलिए ।
मैं तो अमित शर्मा जी के अन्दर बिल्कुल मुल्ला मौलवियों जैसी शर्मो-हया देखकर दंग ही तो रह गया ।
सोचता रहा कि क्या जवाब दूं ?
क्या इन्होंने सचमुच वेद नहीं पढ़े ?
अगर पढ़े हैं तो लिंगाग्र जैसे नॉर्मल वर्ड्स पर इस तरह लजाने का नाटक क्यों कर रहे हैं ?
अगर कोई समस्या समाज में मौजूद है और उसका समाधान भी है , तो उसका ज़िक्र क्यों न किया जाएगा ?
हमने तो संक्षिप्त में ज़िक्र किया है , लेकिन कोर्स में तो पूरी संरचना दी गई है जिसे सभी भाई बहन पढ़ते हैं और मां बाप ऊँची फ़ीस देकर पढ़ाते हैं और खुश होते हैं कि हमारे बच्चे विज्ञान पढ़ रहे हैं ।
क्या हमारे पूर्वज कुछ कम वैज्ञानिक थे ?
जिस लिंग की संरचना और कार्यों पर पश्चिमी वैज्ञानिक आज प्रकाश डाल रहे हैं उसकी विवेचना तो हमारे मनीषी हज़ारों या अरबों साल पहले ही कर चुके हैं ।
न सेशे यस्य रोमशं निषेदुषो विजृम्भते ,
सेदीशे यस्य रम्बतेऽन्तरा सक्थ्या कपृद विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
ऋग्वेद 10-86-17
अर्थात वह मनुष्य मैथुन करने में सक्षम नहीं हो सकता , जिस के बैठने पर लोमयुक्त पुरूषांग बल प्रकाश करता है । वही समर्थ हो सकता है , जिसका पुरूषांग दोनों जांघों के बीच लंबायमान है ।
हमने तो वेदों में आर्य नारी को भी ‘ार्माते लजाते हुए नहीं देखा -
उपोप मे परा मृश मा मे दभ्राणि मन्यथाः ,
सर्वामस्मि रोमशा गन्धारीणामिवाविका ।
ऋग्वेद 1- 126- 7
अर्थात मेरे पास आकर मुझे अच्छी तरह स्पर्श करो । यह न जानना कि मैं कम रोमवाली अतः भोग के योग्य नहीं हूं । मैं गांधारी मेषी ( भेड़ ) की तरह लोमपूर्णा ( रोमों से भरी हुई ) और पूर्ण अवयवा ( जिसके अंग पूर्ण यौवन प्राप्त हैं ) हूं ।
अफ़सोस श्री अमित शर्मा जी के हाल पर । मुझे तो लगता है कि उन्होंने शायद आज तक गर्भाधान संस्कार भी न किया होगा अन्यथा वे इस मन्त्र को ज़रूर जानते । सनातन धर्म पुस्तकालय , इटावा द्वारा 1926 में छपवाई गई ‘ ‘षोडष संस्कार विधि‘ के अनुसार गर्भाधान संस्कार में यह मन्त्र लेटी हुई पत्नी की नाभि के आसपास हाथ फेरते हुए 7 बार पढ़ा जाता है ।
ओं पूषा भगं सविता मे ददातु रूद्रः कल्पयतु ललामगुम ।
ओं विष्णुर्योनिं कल्पयतु त्वष्टा रूपाणि पिंशतु ।
आसिंचतु प्रजापतिर्धाता गर्भं दधातु ते ..
ऋग्वेद 10-184-1
अर्थात पूषा और सविता देवता मुझे भग ( स्त्री की योनि ) दें , रूद्र देवता उसे सुन्दर बनाए । विष्णु स्त्री की योनि को गर्भ धारण करने योग्य बनाए , त्वष्टा गर्भ के रूप का निश्चय करे , प्रजापति वीर्य का सिंचन करे और धाता गर्भ को स्थिर करे ।
देखा अमित जी ! आप तो मात्र वेदों की भावना को आत्मसात न कर पाने के कारण शर्मा रहे थे वर्ना ऐसी कोई बात नहीं है और न ही मुझे अपने ब्लॉग का नाम ही बदलने की ज़रूरत है ।
भाई अमित जी को तो इसमें भी खोट निकालना था और बताना था कि महान तो केवल हम हैं । सो उन्होंने हमें इल्ज़ाम दे डाला -
हम गर्भाधान संस्कार करतें है,तो वोह भी हमारा एक सम्यक रीती से निभाया जाने वाला धार्मिक संस्कार है. लेकिन आप जिस परम्परा का अनुगमन करतें है वहाँ काम, वासना की पूर्ति के लिए प्रयोग किया जाता है ,और उसके आवश्यक संस्कार के रूप में लिंगाग्र को कपडे से रगड़कर स्थंबन का स्वाभाव विकसित किया जाता है, ताकि चार चार प्रियतमाओं सहित खुद की भी वासना पूर्ति हो सके.
बृहदारण्यक उपनिषद , 6-4-7 के अनुसार
स्त्री यदि मैथुन न करने दे तो उसे उस की इच्छा के अनुसार वस्त्र आदि दे कर उसके प्रति प्रेम प्रकट करे । इतने पर भी यदि वह मैथुन न करने दे तो उसे डंडे या हाथ से ( थप्पड़ , घंूसा आदि ) मारकर उसके साथ बलपूर्वक समागम करे । यदि यह भी संभव न हो तो ‘मैं तुझे शाप दे दूंगाा , तुम्हें वंध्या अथवा भाग्यहीना बना दूंगा ‘ - ऐसा कहकर ‘इंद्रियेण‘ इस मंत्र का पाठ करते हुए उसके पास जाए । उस अभिशाप से वह ‘दुर्भगा‘ एवं वंध्या कही जाने वाली अयशस्विनी ( बदनाम ) ही हो जाती है ।
अब कहिये , क्या यही है गर्भाधान की सम्यक रीति ?
अरे भाई , क्यों देवताओं की तरह कामातुर हो रहे हो ?
पत्नी के मन को भी तो समझो । उसे कोई प्रॉब्लम भी तो हो सकती है ?
पहले अपनी पत्नी के मन को समझना सीखो । फिर वे न किसी इच्छाधारी के पास जायेंगी और न किसी मुसलमान के पास । तब आपके दिमाग़ से लव जिहाद का फ़र्ज़ी डर भी निकल जाएगा ।
कृप्या अपनी लड़कियों को बदनाम न करें , उन्हें अच्छी बातें सिखायंे ।
लेकिन आप अच्छी बातें सिखाएंगे किस किताब से ?
सब जगह तो उपरोक्त सामग्री भरी पड़ी है ।
भाई अमित जी ने मेरी ग़लतफ़हमी दूर करते हुए बताया कि
फिर वही बात जमाल साहब आपको हर जगह काम ही काम(वासना युक्त ) ही क्यों दिखाई देता है. बार बार एक ही बात क्यों सिखलानी पड़ती है की वेद एक सम्पूर्ण ज्ञान है जिसमें जीवन के हर एक पक्ष का समावेश है. आप तो ऐसे उचल कूद मचा रहे है जैसे की ७वी ८वी में पड़ने वाला उपरी क्लासेस में पदाई जाने वाली जीव विज्ञान विषयक की पुस्तक को पढकर हैरान हो जाये .
जब वेद जीवन के हर पक्ष का विवेचन कर रहें है तो पति पत्नी के बीच होने वाली मीठी नोकझोंक का तरीका भी सिखाएगा, यहाँ मारने कूटने की बात नहीं आई है बंधु . गृहस्थ में पति पत्नी के बीच मान-मनुहार आदि जो रस्वर्धक सम्यक क्रियाये है उनका उल्लेख है. मारण का उपदेश नहीं है ताडन का उल्लेख है,और ताडन मारण-कूटन नहीं होता मेरे भाई .यहां 'काम' का अमर्यादित आवेग नहीं है। शास्त्रों में जो ६४ कलाओं का ज्ञान प्रदान किया गया है उनमे एक काम कला भी है. उसका अध्यन भी आवश्यक है, उसमें पति-पत्नी की इन सामान्य प्रीतिवर्धक चेस्ताओं का वर्णन है ,इसमें आप इतने क्यों उद्विग्न है. इतनी सामान्य सी बात आपके दिमाग में क्यों कर नहीं घुसी.भारतीय संस्कृति में प्रजवर्धन के लिए प्रजनन क्रिया को यज्ञ बतलाया है.
मैं उनकी बात समझ भी जाता लेकिन वेद में तो यह भी आया है -
जिस समय पिता ने अपनी कन्या ( उषा ) के साथ सम्भोग किया , उस समय पृथिवी के साथ मिलकर शुक्र का सेक किया अर्थात वीर्य सींचा , सुकृती देवों ने व्रतरक्षक ब्रह्म ( वास्तोष्पति वा रूद्र ) का निर्माण किया ।
ऋग्वेद 10-61-7
मुझे तो इस मन्त्र पर भी कोई ऐतराज़ नहीं है क्योंकि भाई अमित इसका भी निराकरण कर देंगे ।
मुझे इस बात पर ऐतराज़ है कि जब आप वेदों की शर्मनाक बातों के गूढ़ार्थ निकाल सकते हैं और उनसे सन्तुष्ट भी हो जाते हैं तो फिर पवित्र कुरआन की आयतों के सरल अर्थ को समझते समय आपकी अक्ल क्यों बदल जाती है ?
अब आपको उसमें कमियां कैसे दिखाई देने लगती हैं ?
आप जिस सहानुभूति से वेदों पुराणों और स्मृतियों को समझने का प्रयास करते हैं , पवित्र कुरआन को भी ऐसे सम्मानपूर्वक समझने का प्रयास कीजिये । सारे विवाद समाप्त हो जाएंगे ।
कल Pushpendra ji और Zeal ji ने भी पूछा था कि प्रेम कैसे फैलेगा ?
मैं कहता हूं कि दो पैमानों से नापना छोड़ दीजिए , प्रेम फैल जाएगा । अगर आप अपने ग्रन्थ का सम्मान चाहते हैं तो दूसरा भी तो यही चाहता है । अगर आप खुद को गद्दार कहलाना पसन्द नहीं करते तो दूसरा भी अपने लिए इस लफ़्ज़ को पसन्द नहीं करता ।
अगर आप बेजा इल्ज़ाम किसी पाक किताब या पूरी क़ौम पर लगाएंगे तो फिर दूसरी तरफ़ से जवाब आना तो लाज़िमी ही है । महाभारत से लेकर ताज़ा नक्सली हमले तक जब भी भाई ने भाई को मारा मुल्क और वतन का सिर्फ़ और सिर्फ़ नुक्सान ही हुआ है ।
हिन्दुओं की तरह हरेक जुर्म के गुनाहगार मुसलमानों में भी हैं । उन्हें पकड़ो और सज़ा दो लेकिन न किसी बेगुनाह हिन्दू को नक्सलवादी घोषित करके मारो और न ही किसी बेगुनाह मुसलमान को ।
आपकी तरह मैं भी समाज में इज़्ज़त से अपने प्यारे वतन की खि़दमत करते हुए जीना चाहता हूं और अपने बच्चों को भी यही सिखाना चाहता हूं । फिर क्यों आप मुझे और मेरी क़ौम को संदिग्ध बनाने पर तुले हुए हैं ?
क्या आप चाहते हैं कि मेरा बच्चा किसी दिन दंगे का शिकार होकर मर जाए ?
मैं तो आपके बच्चे के लिए ऐसा नहीं चाहता ।
अपने बच्चों की हिफ़ाज़त के लिए हमें कूटनीति को छोड़कर सत्य और न्याय को अपनाना ही होगा । हम सब ऋषियों की सन्तान हैं । इस पवित्र भूमि पर इसके अलावा हमारे लिए न तो कोई पथ है और न ही कोई उपाय ।
सत्य में ही मुक्ति है । इसी से प्रेम उपजेगा और इसी से भारत बनेगा विश्वगुरू । क़ौमों लड़ाना कोई सेवा नहीं है । हत्या चाहे जिस भी मनुष्य की हो लेकिन लहू महर्षि मनु का ही बहता है , मरता धरती का ही लाल है ।
आप अम्न का माहौल बनाने के लिए मिलकर जो कुछ भी करेंगे , मुझे सदा अपने साथ पाएंगे और मुझ जैसे हरेक मुसलमान को भी ।
Wednesday, April 14, 2010
पत्नी के मन को भी तो समझो । उसे कोई प्रॉब्लम भी तो हो सकती है ? Falsehood of love jihad .
ब्लॉग के ज़रिये हम दिलों के बीच मौजूद दीवारों को गिरा सकते हैं । हमारे लेखन का मक़सद भी यही है लेकिन कुछ लोगों का मक़सद यह है कि उन ख़ताओं के लिए भी ज़िम्मेदार भी मुसलमानों को ठहराओ , जिनके गुनाहगार वास्तव में वे खुद हैं ।
किसी हमदर्द के समझाने से मैं शांत हो गया था । मैंने ऐलान 3 दिन के लिए किया था लेकिन मैंने और ज़्यादा मोहलत दी ।
लेकिन मेरी इस ख़ामोशी के अंतराल में एक विषपुरूष ने पूरी पोस्ट क्रिएट कर दी कि मुसलमान संगठित तरीक़े से हिन्दू लड़कियों को मुसलमान बना रहे हैं ।
बताइये , ऐसा क्यों किया गया ?
क्या ऐसे आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला कभी समाप्त हो पाएगा ?
क्या ऐसे में मुझे जवाब देना चाहिये था या फिर मैं चुप लगा जाता ?
कोई हिन्दू भाई इसका उचित जवाब देता तो शायद मैं चुप रह जाता लेकिन मजबूरन मुझे इन आरोपवादियों को सच्चाई बतानी पड़ी और उसमें मैंने जानबूझकर वेदों का नाम तक नहीं लिया ।
वेदों का नाम नहीं लिया तो भाई अमित शर्मा बिगड़ गये बोले कि आपने अपने ब्लॉग का नाम वेद कुरआन क्यों रखा ?
इस ब्लॉग पर आप ख़तना , लिंगाग्र, स्तंभन और वीकनेस का ज़िक्र क्यों कर रहे हैं ?
आप अपने ब्लॉग का नाम बदलिए ।
मैं तो अमित शर्मा जी के अन्दर बिल्कुल मुल्ला मौलवियों जैसी शर्मो-हया देखकर दंग ही तो रह गया ।
सोचता रहा कि क्या जवाब दूं ?
क्या इन्होंने सचमुच वेद नहीं पढ़े ?
अगर पढ़े हैं तो लिंगाग्र जैसे नॉर्मल वर्ड्स पर इस तरह लजाने का नाटक क्यों कर रहे हैं ?
अगर कोई समस्या समाज में मौजूद है और उसका समाधान भी है , तो उसका ज़िक्र क्यों न किया जाएगा ?
हमने तो संक्षिप्त में ज़िक्र किया है , लेकिन कोर्स में तो पूरी संरचना दी गई है जिसे सभी भाई बहन पढ़ते हैं और मां बाप ऊँची फ़ीस देकर पढ़ाते हैं और खुश होते हैं कि हमारे बच्चे विज्ञान पढ़ रहे हैं ।
क्या हमारे पूर्वज कुछ कम वैज्ञानिक थे ?
जिस लिंग की संरचना और कार्यों पर पश्चिमी वैज्ञानिक आज प्रकाश डाल रहे हैं उसकी विवेचना तो हमारे मनीषी हज़ारों या अरबों साल पहले ही कर चुके हैं ।
न सेशे यस्य रोमशं निषेदुषो विजृम्भते ,
सेदीशे यस्य रम्बतेऽन्तरा सक्थ्या कपृद विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
ऋग्वेद 10-86-17
अर्थात वह मनुष्य मैथुन करने में सक्षम नहीं हो सकता , जिस के बैठने पर लोमयुक्त पुरूषांग बल प्रकाश करता है । वही समर्थ हो सकता है , जिसका पुरूषांग दोनों जांघों के बीच लंबायमान है ।
हमने तो वेदों में आर्य नारी को भी ‘ार्माते लजाते हुए नहीं देखा -
उपोप मे परा मृश मा मे दभ्राणि मन्यथाः ,
सर्वामस्मि रोमशा गन्धारीणामिवाविका ।
ऋग्वेद 1- 126- 7
अर्थात मेरे पास आकर मुझे अच्छी तरह स्पर्श करो । यह न जानना कि मैं कम रोमवाली अतः भोग के योग्य नहीं हूं । मैं गांधारी मेषी ( भेड़ ) की तरह लोमपूर्णा ( रोमों से भरी हुई ) और पूर्ण अवयवा ( जिसके अंग पूर्ण यौवन प्राप्त हैं ) हूं ।
अफ़सोस श्री अमित शर्मा जी के हाल पर । मुझे तो लगता है कि उन्होंने शायद आज तक गर्भाधान संस्कार भी न किया होगा अन्यथा वे इस मन्त्र को ज़रूर जानते । सनातन धर्म पुस्तकालय , इटावा द्वारा 1926 में छपवाई गई ‘ ‘षोडष संस्कार विधि‘ के अनुसार गर्भाधान संस्कार में यह मन्त्र लेटी हुई पत्नी की नाभि के आसपास हाथ फेरते हुए 7 बार पढ़ा जाता है ।
ओं पूषा भगं सविता मे ददातु रूद्रः कल्पयतु ललामगुम ।
ओं विष्णुर्योनिं कल्पयतु त्वष्टा रूपाणि पिंशतु ।
आसिंचतु प्रजापतिर्धाता गर्भं दधातु ते ..
ऋग्वेद 10-184-1
अर्थात पूषा और सविता देवता मुझे भग ( स्त्री की योनि ) दें , रूद्र देवता उसे सुन्दर बनाए । विष्णु स्त्री की योनि को गर्भ धारण करने योग्य बनाए , त्वष्टा गर्भ के रूप का निश्चय करे , प्रजापति वीर्य का सिंचन करे और धाता गर्भ को स्थिर करे ।
देखा अमित जी ! आप तो मात्र वेदों की भावना को आत्मसात न कर पाने के कारण शर्मा रहे थे वर्ना ऐसी कोई बात नहीं है और न ही मुझे अपने ब्लॉग का नाम ही बदलने की ज़रूरत है ।
भाई अमित जी को तो इसमें भी खोट निकालना था और बताना था कि महान तो केवल हम हैं । सो उन्होंने हमें इल्ज़ाम दे डाला -
हम गर्भाधान संस्कार करतें है,तो वोह भी हमारा एक सम्यक रीती से निभाया जाने वाला धार्मिक संस्कार है. लेकिन आप जिस परम्परा का अनुगमन करतें है वहाँ काम, वासना की पूर्ति के लिए प्रयोग किया जाता है ,और उसके आवश्यक संस्कार के रूप में लिंगाग्र को कपडे से रगड़कर स्थंबन का स्वाभाव विकसित किया जाता है, ताकि चार चार प्रियतमाओं सहित खुद की भी वासना पूर्ति हो सके.
बृहदारण्यक उपनिषद , 6-4-7 के अनुसार
स्त्री यदि मैथुन न करने दे तो उसे उस की इच्छा के अनुसार वस्त्र आदि दे कर उसके प्रति प्रेम प्रकट करे । इतने पर भी यदि वह मैथुन न करने दे तो उसे डंडे या हाथ से ( थप्पड़ , घंूसा आदि ) मारकर उसके साथ बलपूर्वक समागम करे । यदि यह भी संभव न हो तो ‘मैं तुझे शाप दे दूंगाा , तुम्हें वंध्या अथवा भाग्यहीना बना दूंगा ‘ - ऐसा कहकर ‘इंद्रियेण‘ इस मंत्र का पाठ करते हुए उसके पास जाए । उस अभिशाप से वह ‘दुर्भगा‘ एवं वंध्या कही जाने वाली अयशस्विनी ( बदनाम ) ही हो जाती है ।
अब कहिये , क्या यही है गर्भाधान की सम्यक रीति ?
अरे भाई , क्यों देवताओं की तरह कामातुर हो रहे हो ?
पत्नी के मन को भी तो समझो । उसे कोई प्रॉब्लम भी तो हो सकती है ?
पहले अपनी पत्नी के मन को समझना सीखो । फिर वे न किसी इच्छाधारी के पास जायेंगी और न किसी मुसलमान के पास । तब आपके दिमाग़ से लव जिहाद का फ़र्ज़ी डर भी निकल जाएगा ।
कृप्या अपनी लड़कियों को बदनाम न करें , उन्हें अच्छी बातें सिखायंे ।
लेकिन आप अच्छी बातें सिखाएंगे किस किताब से ?
सब जगह तो उपरोक्त सामग्री भरी पड़ी है ।
Tuesday, April 13, 2010
वेदों का नाम नहीं लिया तो भाई अमित शर्मा बिगड़ गये बोले कि आपने अपने ब्लॉग का नाम वेद कुरआन क्यों रखा ?
भारत को अगर सबल बनाना है तो भारत में बसने वाले लोगों को अपने गिले शिकवे भुलाकर आपस में दूध चीनी की तरह रहना होगा और फिर बाक़ी दुनिया को भी इसी तरह रहना सिखाना होगा । इसके लिए जीवन के उस मक़सद को भी पाना होगा जो स्वयं ईश्वर द्वारा निर्धारित है और उस विधान को भी जानना समझना होगा जो उसके द्वारा अवतरित है ।
विकार चाहे मुसलमानों में हों या हिन्दुओं में , उन्हें अस्वीकार करना होगा , उन्हें त्यागना होगा । कोई भी बीमारी पुरानी होने से लाभदायक नहीं बन सकती । कौन सी चीज़ विकार है और कौन सी चीज़ अमृत ? , इसे मनुष्य की बुद्धि तय नहीं कर सकती । इसे केवल ईश्वर की वाणी से ही तय किया जा सकता है । आपके पास ईश्वर की वाणी के जो भी अवशेष हैं , आप उसमें टटोलिए । हमारे पास जो सुरक्षित वाणी है हम उसमें देखते हैं । अगर हम कल्याण की सच्ची इच्छा से मिलकर प्रयास करेंगे तो हमारा भला ज़रूर होगा । यह हमारी सोच है । हम भी इसी देश के वासी हैं और हम भी इसका भला चाहते सोचते और हदभर करते हैं । ताज़ा नक्सली हमले में मरने वाले दीगर भाइयों के साथ मुसलमान भी थे ।
ब्लॉग के ज़रिये हम दिलों के बीच मौजूद दीवारों को गिरा सकते हैं । हमारे लेखन का मक़सद भी यही है लेकिन कुछ लोगों का मक़सद यह है कि उन ख़ताओं के लिए भी ज़िम्मेदार भी मुसलमानों को ठहराओ , जिनके गुनाहगार वास्तव में वे खुद हैं ।
किसी हमदर्द के समझाने से मैं शांत हो गया था । मैंने ऐलान 3 दिन के लिए किया था लेकिन मैंने और ज़्यादा मोहलत दी ।
लेकिन मेरी इस ख़ामोशी के अंतराल में एक विषपुरूष ने पूरी पोस्ट क्रिएट कर दी कि मुसलमान संगठित तरीक़े से हिन्दू लड़कियों को मुसलमान बना रहे हैं ।
बताइये , ऐसा क्यों किया गया ?
क्या ऐसे आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला कभी समाप्त हो पाएगा ?
क्या ऐसे में मुझे जवाब देना चाहिये था या फिर मैं चुप लगा जाता ?
कोई हिन्दू भाई इसका उचित जवाब देता तो शायद मैं चुप रह जाता लेकिन मजबूरन मुझे इन आरोपवादियों को सच्चाई बतानी पड़ी और उसमें मैंने जानबूझकर वेदों का नाम तक नहीं लिया ।
वेदों का नाम नहीं लिया तो भाई अमित शर्मा बिगड़ गये बोले कि आपने अपने ब्लॉग का नाम वेद कुरआन क्यों रखा ?
इस ब्लॉग पर आप ख़तना , लिंगाग्र, स्तंभन और वीकनेस का ज़िक्र क्यों कर रहे हैं ?
आप अपने ब्लॉग का नाम बदलिए ।
मैं तो अमित शर्मा जी के अन्दर बिल्कुल मुल्ला मौलवियों जैसी शर्मो-हया देखकर दंग ही तो रह गया ।
सोचता रहा कि क्या जवाब दूं ?
क्या इन्होंने सचमुच वेद नहीं पढ़े ?
अगर पढ़े हैं तो लिंगाग्र जैसे नॉर्मल वर्ड्स पर इस तरह लजाने का नाटक क्यों कर रहे हैं ?
अगर कोई समस्या समाज में मौजूद है और उसका समाधान भी है , तो उसका ज़िक्र क्यों न किया जाएगा ?
हमने तो संक्षिप्त में ज़िक्र किया है , लेकिन कोर्स में तो पूरी संरचना दी गई है जिसे सभी भाई बहन पढ़ते हैं और मां बाप ऊँची फ़ीस देकर पढ़ाते हैं और खुश होते हैं कि हमारे बच्चे विज्ञान पढ़ रहे हैं ।
क्या हमारे पूर्वज कुछ कम वैज्ञानिक थे ?
जिस लिंग की संरचना और कार्यों पर पश्चिमी वैज्ञानिक आज प्रकाश डाल रहे हैं उसकी विवेचना तो हमारे मनीषी हज़ारों या अरबों साल पहले ही कर चुके हैं ।
न सेशे यस्य रोमशं निषेदुषो विजृम्भते ,
सेदीशे यस्य रम्बतेऽन्तरा सक्थ्या कपृद विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
ऋग्वेद 10-86-17
अर्थात वह मनुष्य मैथुन करने में सक्षम नहीं हो सकता , जिस के बैठने पर लोमयुक्त पुरूषांग बल प्रकाश करता है । वही समर्थ हो सकता है , जिसका पुरूषांग दोनों जांघों के बीच लंबायमान है ।
हमने तो वेदों में आर्य नारी को भी ‘ार्माते लजाते हुए नहीं देखा -
उपोप मे परा मृश मा मे दभ्राणि मन्यथाः ,
सर्वामस्मि रोमशा गन्धारीणामिवाविका ।
अर्थात मेरे पास आकर मुझे अच्छी तरह स्पर्श करो । यह न जानना कि मैं कम रोमवाली अतः भोग के योग्य नहीं हूं । मैं गांधारी मेषी ( भेड़ ) की तरह लोमपूर्णा ( रोमों से भरी हुई ) और पूर्ण अवयवा ( जिसके अंग पूर्ण यौवन प्राप्त हैं ) हूं ।
अफ़सोस श्री अमित शर्मा जी के हाल पर । मुझे तो लगता है कि उन्होंने शायद आज तक गर्भाधान संस्कार भी न किया होगा अन्यथा वे इस मन्त्र को ज़रूर जानते । सनातन धर्म पुस्तकालय , इटावा द्वारा 1926 में छपवाई गई ‘ ‘षोडष संस्कार विधि‘ के अनुसार गर्भाधान संस्कार में यह मन्त्र लेटी हुई पत्नी की नाभि के आसपास हाथ फेरते हुए 7 बार पढ़ा जाता है ।
ओं पूषा भगं सविता मे ददातु रूद्रः कल्पयतु ललामगुम ।
ओं विष्णुर्योनिं कल्पयतु त्वष्टा रूपाणि पिंशतु ।
आसिंचतु प्रजापतिर्धाता गर्भं दधातु ते ..
ऋग्वेद 10-184-1
अर्थात पूषा और सविता देवता मुझे भग ( स्त्री की योनि ) दें , रूद्र देवता उसे सुन्दर बनाए । विष्णु स्त्री की योनि को गर्भ धारण करने योग्य बनाए , त्वष्टा गर्भ के रूप का निश्चय करे , प्रजापति वीर्य का सिंचन करे और धाता गर्भ को स्थिर करे ।
देखा अमित जी ! आप तो मात्र वेदों की भावना को आत्मसात न कर पाने के कारण शर्मा रहे थे वर्ना ऐसी कोई बात नहीं है और न ही मुझे अपने ब्लॉग का नाम ही बदलने की ज़रूरत है ।
.... और चूंकि इसलाम पर ऐतराज़ करना ज़माने का दस्तूर बन चुका है तो हर आदमी लालायित सा रहता है कि इसलाम पर एक दो एतराज़ मैं भी जड़ दूं , चाहे अपने ग्रन्थ से किंचित भी वाक़फ़ियत न हो ।
बवाल जी भी कल निकाह में मह्र देने पर ऐतराज़ कर गये और हमें एक सुअवसर प्रदान कर गये वैदिक साहित्य की महान गहराई में एक और ग़ोता लगाने का , लेकिन आज का सारा समय तो मेरे मोहक मुस्कान स्वामी जी की नज़्र हो गया । सो आज के लिए तो सॉरी लेकिन ....
धार्मिक सामान्य ज्ञान बढ़ाएं -
प्रश्नों का उत्तर देकर पुण्य पाएं । पुण्य नक़द मिलता है ।
1 - मनु स्मृति के अनुसार विवाह के कुल कितने प्रकार हैं ?
2 - क्या मनु स्मृति कन्या को ख़रीदने को भी विवाह का ही एक प्रकार मानती है ?
3 - यदि हां , तो विवाह के उस प्रकार का नाम बताएं ?
4 - मनु स्मृति में वर्णित विवाह का कौन सा प्रकार इसलामी निकाह के सदृश है ?
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Monday, April 12, 2010
आप दहेज की मांग छोड़ दीजिए और फिर देखिए कि मुसलमानों के साथ हिन्दू लड़कियों के विवाह में कितनी कमी आती है ? Dowry .
हम जिस कायनात में रहते बसते हैं इसकी एक एक चीज़ नियम में बंधी है । कायनात की हर चीज़ परिवर्तनशील है लेकिन इसी कायनात की एक चीज़ ऐसी है जो कभी नहीं बदलती और वह है नियम , जिसका पालन हर चीज़ कर रही है । अपरिवर्तनीय नियमों की मौजूदगी बताती है कि नियम बनाने और उन्हें क़ायम रखने वाली कोई अपरिवर्तनशील हस्ती ज़रूर मौजूद है। इसी हस्ती को लोग हरेक भाषा में ईश्वर , अल्लाह , गॉड , यहोवा और खु़दा वग़ैरह नामों से जानते हैं ।
प्रकृति और जीवों में जैसे जैसे चेतना और बुद्धि का विकास होता गया वैसे वैसे उसमें ज्ञान और सामथ्र्य का स्तर भी बढ़ता गया और मनुष्य में यह सबसे अधिक पाये जाने से वह स्वाभाविक रूप से सबसे ज़्यादा ज्ञान का पात्र ठहरा और जहां ज्ञान होता है वहां शक्ति का उदय खुद ब खुद होता है ।
प्रकृति की हरेक चीज़ तो नियम का पालन करने में मजबूर है लेकिन इनसान ज्ञान के कारण शक्ति के उस मक़ाम को पा चुका है कि चाहे तो वह नियम को माने और चाहे तो नियम की अवहेलना कर दे । नियम के पालन या भंग करने में तो वह आज़ाद है लेकिन नियम के विरूद्ध चलकर उसका नष्ट होना निश्चित है , यह भी कायनात का एक अटल नियम है और यह एक ऐसा नियम है कि यह इनसान पर ज़रूर लागू होता है । कोई भी इनसान न तो इसे भंग कर सकता है और न ही इसे बदल सकता है ।
इनसान केवल एक सामाजिक प्राणी ही नहीं बल्कि एक नैतिक प्राणी भी है ।
एक इनसान को व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से जीवन गुज़ारने के लिए बहुत से साधनों की ज़रूरत पड़ती है । इन साधनों को वह प्राप्त भी करता है और दूसरों को देता भी है ।औरत की जिस्मानी बनावट मर्द के मुक़ाबले अलग है । बच्चे की पैदाइश और उसका पालन पोषण उसे एक मर्द से डिफ़रेन्ट बनाता है । शारीरिक रूप से वह मर्द के मुक़ाबले कमज़ोर भी पायी जाती है । खुद सारे मर्द भी जिस्मानी ताक़त में बराबर नहीं होते । लोगों का ज्ञान भी उनकी ताक़त में फ़र्क़ पैदा कर देता है । लोगों के हालात भी उनकी ताक़त को मुतास्सिर करते हैं। वह कौन सा विधान हो , जिसका पालन करते हुए अलग अलग ताक़त वाले सभी औरतों और मर्दों की सभी जायज़ ज़रूरतें उनके सही वक्त पर इस तरह पूरी हो जायें कि न तो उनकी नैतिकता प्रभावित हो और न ही उनमें आपसी नफ़रत से संघर्ष के हालात पैदा हों ?
इसी विधान का नाम धर्म है ।
सृष्टि के दीगर नियमों की तरह यह विधान भी स्वयं विधाता की तरफ़ से निर्धारित है । आदमी को आज़ादी है कि वह चाहे तो इस विधान को माने और चाहे तो न माने लेकिन न मानने की हालत में इनसानी सोसायटी का अन्याय और असंतुलन का शिकार होना लाज़िमी है । जहां अन्याय होगा तो फिर वहां नफ़रत और प्रतिकार भी जन्मेगा , जिसका फ़ैसला ताक़त से किया जाएगा या फिर छल और कूटनीति से । इनमें से हरेक चीज़ समस्या को बढ़ाएगी , शांति और नैतिकता को घटाएगी ।
इनसान अपने लिए विधान बनाने में न तो कल समर्थ था और न ही आज समर्थ है । विधाता के विधि विधान का पालन करने में ही उसका कल्याण है । पवित्र कुरआन यही बताता है । पवित्र कु़रआन ही मानवता के लिए ईश्वरीय विधान है , ईश्वर की वाणी है ।
यह एकमात्र सुरक्षित ईशवाणी है , ऐतिहासिक रूप से यह प्रमाणित है । यह अपनी सच्चाई का सुबूत खुद है । कोई मनुष्य इस जैसी वाणी बनाने में समर्थ नहीं है । यह अपने आपमें एक ऐसा चमत्कार है जिसे कोई भी जब चाहे देख सकता है ।
जैसे ईश्वर अद्वितीय है वैसे ही उसकी वाणी भी अद्वितीय है । यहां हमारे स्वदिल अज़ीज़ भाई प्रिय प्रवीण जी का एक प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि
प्रिय प्रवीण जी ! आप एक ज्ञानी आदमी हैं । इस तरह के छोटे मोटे सवाल तो आप खुद भी हल कर सकते हैं और आपकी पहुँच तो उस लिट्रेचर तक है जो बहुतों को देखने के लिए भी नसीब नहीं होता । शायद इस तरह के सवाल पूछकर आप या तो ब्लॉगर्स के ज्ञान का स्तर जांचना चाहते होंगे या फिर उनका स्तर कुछ ऊँचा उठाना चाहते होंगे ।
आपने ब्लॉगवाणी से तो कभी नहीं पूछा कि जब उसके शरीर और जिव्हा नहीं है तो उसे वाणी कहां से प्राप्त हो गयी ?
मनुष्य के आधार पर ईश्वर की कल्पना करने से ही इस तरह के सवाल जन्म लेंगे और जब इन्हें हल करने की तरफ़ बढ़ा जायेगा तो फिर एक के बाद एक बहुत से दर्शन जन्म लेंगे और ईश्वर के वुजूद संबंधी प्रश्नों का अंत तब भी न होगा और तब दर्शनों के चक्कर में पड़कर न्यायपूर्ण रीति से लोगों के हक़ अदा करने की शिक्षाएं भुला दी जाएंगी ।
पूर्व में , इसलाम को जब वैदिक धर्म के नाम से जाना जाता था , तब यही कुछ हुआ । ईश्वर के अस्तित्व के बारे में प्रश्न उठा कि वह कैसा है ?
क्या वह ऐसा है ? या फिर वह ऐसा है ?
उत्तर में नेति नेति इतना कहा गया कि निर्गुण ब्रह्म की कल्पना ने जन्म ले लिया । एक ऐसा अचिन्त्य और अविज्ञेय ईश्वर जिस तक इनसान की कल्पना भी पहुंचने में बेबस है । यह एक ठीक बात है लेकिन इनसान तो कुछ समस्याएं भी रखता है और उनमें वह ईश्वर की मदद भी चाहता है तो फिर सगुण ईश्वर की कल्पना को जन्म लेना ही था । तब न केवल इनसानों को बल्कि मछली , कछुआ और सुअर तक को ईश्वर का अवतार मान लिया गया । ईश्वर के गुणों को निश्चित करने के चक्कर में ही निर्गुण भक्ति धारा और सगुण भक्ति धारा का जन्म हुआ । प्रयोगशाला का विषय इनसानी जिस्म है । इसकी हरेक नस नाड़ी को चीर फाड़कर देखा जा सकता है और देखा जा भी चुका है लेकिन क्या इनसानी जिस्म की सारी गुत्थियां हल कर ली गयी हैं ?
नहीं ।
ईश्वर प्रयोगशाला का विषय नहीं है । वह आपकी बुद्धि का विषय है । आप बुद्धि से काम लेंगे तो आप जान जायंगे कि हां , ईश्वर वास्तव में है । आप प्रकृति की कोई भी चीज़ देखेंगे तो आप उसमें एक डिज़ायन और व्यवस्था पाएंगे और डिज़ायन और व्यवस्था तभी मुमकिन होती है जबकि बुद्धि , ज्ञान और शक्ति से युक्त एक हस्ती मौजूद हो । इनसान किस कमज़ोर हालत में पैदा होता है लेकिन यह इनसान भी आज इस बात में सक्षम है कि रेडियो और टेलीफ़ोन जैसी निर्जीव चीज़ों को ‘वाणी‘ दे दे ।
इनसान ऐसे घर बना चुका है जिन्हें स्मार्ट हाउस कहा जाता है । यह घर अपने मालिक की ज़रूरतों को बिना उसके बयान किए समझ लेता है और संकेत मात्र से पूरा भी कर देता है । इनसान तो निर्जीव भी नहीं है । उसके अन्तःकरण में सर्वथा समर्थ परमेश्वर की ओर से वाणी का अवतरण तो किंचित भी ताज्जुब की बात न होना चाहिये । ख़ास तौर से तब जबकि इनसान खुद बिना किसी ज़ाहिरी सबब के दूसरे आदमी के मन में अपना पैग़ाम पहुंचाने में सक्षम है । इस विद्या को टेलीपैथी के नाम से जाना जाता है ।मुस्लिम सूफ़ियों , हिन्दू योगियों और बौद्ध साधकों के लिए यह एक मामूली सी बात है और आज पश्चिमी देशों में यह विद्या भी दीगर विद्याओं की तरह सिखाई जाती है । जब खुद इनसान ही बिना जिव्हा के अपना पैग़ाम दूसरे इनसानों तक पहुंचा सकता है तो फिर उस सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बारे में ही इसे क्यों असंभव मान लिया जाए ?
......................................................................................................................................................................एक प्रबुद्ध व्यक्ति के प्रश्न के जवाब के बाद एक वेबकृमि की इस चिन्ता पर क्या टिप्पणी की जाए कि लड़के लड़कियां अन्तरधार्मिक विवाह क्यों कर रहे हैं ?
नरगिस समेत बहुत सी फ़िल्मी हीरोइनों ने हिन्दू भाइयों से विवाह किया ।
क्या उन कलाकार मर्दों को किसी गुरूकुल या आश्रम से ऐसा करने का आदेश या मिशन दिया गया था ?
काम तो ऐसा प्रबल होता है कि जब इसका आवेग उठता है तो एक ऐसा व्यक्ति भी केवट की कन्या से नाव में , बीच पानी में ही बलात्कार कर बैठता है जिसे दुनिया ऋषि समझती थी । विश्वामित्र भी मेनका के वार से न बच पाए । मुरली की तान सुनकर तो सभी गोपियां अपने पति और बच्चों तक को बिसराकर अपने आशिक़ के पास भागा करती थीं । ऐसा पुराण बताते हैं लेकिन मैं इसे सत्य नहीं मानता , लेकिन जो लोग इसे सत्य मानते हैं उनके लिए यह प्रमाण बनेगा ।
शकुंतला ने दुष्यंत को अपना सर्वस्व सौंपने से पहले कब पिता की अनुमति ली थी ?
ज़्यादा लिखना मैं मुनासिब नहीं समझता क्योंकि इन प्रसिद्ध कथाओं को सभी जानते हैं ।प्रेम विवाह या गंधर्व विवाह प्राचीन भारतीय परम्परा है । कितनी ही मुस्लिम लड़कियां आज हिन्दुओं के घरों में बैठी गाय के गोबर से चौका लीप रही हैं । ठीक ऐसे ही कुछ हिन्दू लड़कियों ने मुसलमानों के साथ वक्त गुज़ारा । उन्हें बरता , परखा और फिर अपने क़ानूनी हक़ का इस्तेमाल करते हुए उनसे जीवन भर का नाता जोड़ लिया । जब औरत मर्द आपस में घुलमिलकर अंतरंग सम्बन्ध बनाएंगे तो यह स्थिति तो आएगी ही , मुस्लिम के साथ भी और ग़ैर मुस्लिम के साथ भी । इसमें हाय तौबा मचाने और इसलाम को बदनाम करने की क्या ज़रूरत है ?
इसलाम की तालीम तो मर्द के लिए यह है कि वह न तो औरत को तकने या घूरने का गुनाह करे और न ही वह औरत को छुए , चाहे औरत मुस्लिम हो या ग़ैर मुस्लिम । और अफ़सोस है ऐसी बहनों पर जो अक्ल के दुश्मनों की हां में हां मिलाकर उनकी भलसुगड़ाई बटोरना चाहती हैं ताकि उन्हें सामान्य मुसलमान न समझा जाए बल्कि उन्हें विशिष्ट चिंतक समझा जाए और उनकी तरक्क़ी होती रहे । आज माता की कथाएं सहेलियों को पढ़कर सुनाई जा रही हैं तो कल सास को भी सुनाई जाएंगी । कोई कुछ पढ़े और किसी को सुनाए या किसी हिन्दू के साथ ही घर बसाए , हमें कोई ऐतराज़ नहीं है । हमें तो ऐतराज़ इस बात पर है कि बहन जी अलगाववादी नामहीन लौंडे के ब्लॉग पर कह रही हैं कि इसलाम में किसी हिन्दू लड़की को मुसलमान करने पर 72 हूरों का लालच दिया गया है । हमें पवित्र कुरआन की हज़ारों आयतों और लाखों हदीसों में इस अर्थ की कोई एक भी आयत या सही हदीस दिखाईये वर्ना तौबा कीजिए । किसी भी बड़े मदरसे के आलिम का जायज़ा ले लीजिये , उसकी पत्नी पुश्तैनी मुसलिम घराने से ही मिलेगी । मौलवी साहिबान के घरों में तो कोई हिन्दू लड़की नहीं मिलेगी , हां उनकी तालीम से हटकर चलने वाले कलाकारों , नेताओं और पत्रकारों के घरों में ज़रूर हिन्दू लड़कियां ज़रूर मिल जाएंगी । हिन्दू लड़कियां मुसलमान लड़कों से ब्याह क्यों कर रही हैं ?
क्योंकि हिन्दू लड़कों के बाप तो अपने बेटों की ऊँची क़ीमत वसूलते हैं और हरेक लड़की के बाप में इतनी क़ीमत देने की ताक़त होती नहीं । अब लड़की करे तो क्या करे ?
आप दहेज की मांग छोड़ दीजिए और फिर देखिए कि मुसलमानों के साथ हिन्दू लड़कियों के विवाह में कितनी कमी आती है ?
मुसलमान से ब्याह करने के पीछे ख़तना भी एक बड़ा कारण है क्योंकि ख़तना के बाद लिंगाग्र कपड़े की रगड़ खाता है जिससे उसमें घर्षण के समय स्तम्भन का स्वभाव विकसित हो जाता है और वह अपनी प्रिया को पूर्ण संतुष्ट करने में सक्षम होता है ।मुसलमान भोजन में प्रायः वे चीज़ें खाता है जो भारद्वाज ऋषि ने भरत जी की सेना को उस समय परोसी थीं जब वे मेरे प्रिय श्री रामचन्द्र जी को वापस लाने के लिए निकले थे और उनका पता पूछने के लिए उनके आश्रम में एक रात के लिए ठहरे थे । आयुर्वेद भी उन्हें पुष्टिकारक मानता है । इससे भी मुसलमान ज़्यादा पुष्ट होकर अपनी प्रिया को ज़्यादा संतुष्ट करता है ।
लव जिहाद का भी चर्चा ख़ामख्वाह किया जाता है । ऐसा कोई जिहाद हिन्दुस्तान में नहीं चल रहा है । लेकिन इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि जिहाद कोई भी हो , उसे लड़ने के लिए मज़बूत हथियार और अच्छी ट्रेनिंग की ज़रूरत पड़ती है । हरेक हिन्दू को देखना चाहिये कि लव जिहाद में काम आने वाला हथियार कौन सा है ?
और उसका हथियार कितना सक्षम है ?
उसने ट्रेनिंग किस गुरू से ली है ?
सन्यासियों से गृहस्थ धर्म की ट्रेनिंग लोगे तो फिर कुवांरी लड़कियां मुसलमानों की पनाह में आएंगी और शादीशुदा औरतें किसी इच्छाधारी का दामन थामेंगी । कारगिल हो या ताज़ा नक्सली हमला , हरेक चोट के बाद यही हक़ीक़त सामने आयी कि सैनिकों के हथियार भी वीक थे और उनकी ट्रेनिंग भी नाकाफ़ी थी । यही बात तथाकथित लव जिहाद के प्रकरण में है ।तुम्हारी लड़कियां अगर दूसरों के पास जा रही हैं तो यह तुम्हारी कमी और कमज़ोरी के कारण है । अपनी ‘वीकनेस‘ को दूर कीजिए , मुसलमानों को दोष क्यों देते हो ?
प्रकृति और जीवों में जैसे जैसे चेतना और बुद्धि का विकास होता गया वैसे वैसे उसमें ज्ञान और सामथ्र्य का स्तर भी बढ़ता गया और मनुष्य में यह सबसे अधिक पाये जाने से वह स्वाभाविक रूप से सबसे ज़्यादा ज्ञान का पात्र ठहरा और जहां ज्ञान होता है वहां शक्ति का उदय खुद ब खुद होता है ।
प्रकृति की हरेक चीज़ तो नियम का पालन करने में मजबूर है लेकिन इनसान ज्ञान के कारण शक्ति के उस मक़ाम को पा चुका है कि चाहे तो वह नियम को माने और चाहे तो नियम की अवहेलना कर दे । नियम के पालन या भंग करने में तो वह आज़ाद है लेकिन नियम के विरूद्ध चलकर उसका नष्ट होना निश्चित है , यह भी कायनात का एक अटल नियम है और यह एक ऐसा नियम है कि यह इनसान पर ज़रूर लागू होता है । कोई भी इनसान न तो इसे भंग कर सकता है और न ही इसे बदल सकता है ।
इनसान केवल एक सामाजिक प्राणी ही नहीं बल्कि एक नैतिक प्राणी भी है ।
एक इनसान को व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से जीवन गुज़ारने के लिए बहुत से साधनों की ज़रूरत पड़ती है । इन साधनों को वह प्राप्त भी करता है और दूसरों को देता भी है ।औरत की जिस्मानी बनावट मर्द के मुक़ाबले अलग है । बच्चे की पैदाइश और उसका पालन पोषण उसे एक मर्द से डिफ़रेन्ट बनाता है । शारीरिक रूप से वह मर्द के मुक़ाबले कमज़ोर भी पायी जाती है । खुद सारे मर्द भी जिस्मानी ताक़त में बराबर नहीं होते । लोगों का ज्ञान भी उनकी ताक़त में फ़र्क़ पैदा कर देता है । लोगों के हालात भी उनकी ताक़त को मुतास्सिर करते हैं। वह कौन सा विधान हो , जिसका पालन करते हुए अलग अलग ताक़त वाले सभी औरतों और मर्दों की सभी जायज़ ज़रूरतें उनके सही वक्त पर इस तरह पूरी हो जायें कि न तो उनकी नैतिकता प्रभावित हो और न ही उनमें आपसी नफ़रत से संघर्ष के हालात पैदा हों ?
इसी विधान का नाम धर्म है ।
सृष्टि के दीगर नियमों की तरह यह विधान भी स्वयं विधाता की तरफ़ से निर्धारित है । आदमी को आज़ादी है कि वह चाहे तो इस विधान को माने और चाहे तो न माने लेकिन न मानने की हालत में इनसानी सोसायटी का अन्याय और असंतुलन का शिकार होना लाज़िमी है । जहां अन्याय होगा तो फिर वहां नफ़रत और प्रतिकार भी जन्मेगा , जिसका फ़ैसला ताक़त से किया जाएगा या फिर छल और कूटनीति से । इनमें से हरेक चीज़ समस्या को बढ़ाएगी , शांति और नैतिकता को घटाएगी ।
इनसान अपने लिए विधान बनाने में न तो कल समर्थ था और न ही आज समर्थ है । विधाता के विधि विधान का पालन करने में ही उसका कल्याण है । पवित्र कुरआन यही बताता है । पवित्र कु़रआन ही मानवता के लिए ईश्वरीय विधान है , ईश्वर की वाणी है ।
यह एकमात्र सुरक्षित ईशवाणी है , ऐतिहासिक रूप से यह प्रमाणित है । यह अपनी सच्चाई का सुबूत खुद है । कोई मनुष्य इस जैसी वाणी बनाने में समर्थ नहीं है । यह अपने आपमें एक ऐसा चमत्कार है जिसे कोई भी जब चाहे देख सकता है ।
जैसे ईश्वर अद्वितीय है वैसे ही उसकी वाणी भी अद्वितीय है । यहां हमारे स्वदिल अज़ीज़ भाई प्रिय प्रवीण जी का एक प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि
प्रिय प्रवीण जी ! आप एक ज्ञानी आदमी हैं । इस तरह के छोटे मोटे सवाल तो आप खुद भी हल कर सकते हैं और आपकी पहुँच तो उस लिट्रेचर तक है जो बहुतों को देखने के लिए भी नसीब नहीं होता । शायद इस तरह के सवाल पूछकर आप या तो ब्लॉगर्स के ज्ञान का स्तर जांचना चाहते होंगे या फिर उनका स्तर कुछ ऊँचा उठाना चाहते होंगे ।
आपने ब्लॉगवाणी से तो कभी नहीं पूछा कि जब उसके शरीर और जिव्हा नहीं है तो उसे वाणी कहां से प्राप्त हो गयी ?
मनुष्य के आधार पर ईश्वर की कल्पना करने से ही इस तरह के सवाल जन्म लेंगे और जब इन्हें हल करने की तरफ़ बढ़ा जायेगा तो फिर एक के बाद एक बहुत से दर्शन जन्म लेंगे और ईश्वर के वुजूद संबंधी प्रश्नों का अंत तब भी न होगा और तब दर्शनों के चक्कर में पड़कर न्यायपूर्ण रीति से लोगों के हक़ अदा करने की शिक्षाएं भुला दी जाएंगी ।
पूर्व में , इसलाम को जब वैदिक धर्म के नाम से जाना जाता था , तब यही कुछ हुआ । ईश्वर के अस्तित्व के बारे में प्रश्न उठा कि वह कैसा है ?
क्या वह ऐसा है ? या फिर वह ऐसा है ?
उत्तर में नेति नेति इतना कहा गया कि निर्गुण ब्रह्म की कल्पना ने जन्म ले लिया । एक ऐसा अचिन्त्य और अविज्ञेय ईश्वर जिस तक इनसान की कल्पना भी पहुंचने में बेबस है । यह एक ठीक बात है लेकिन इनसान तो कुछ समस्याएं भी रखता है और उनमें वह ईश्वर की मदद भी चाहता है तो फिर सगुण ईश्वर की कल्पना को जन्म लेना ही था । तब न केवल इनसानों को बल्कि मछली , कछुआ और सुअर तक को ईश्वर का अवतार मान लिया गया । ईश्वर के गुणों को निश्चित करने के चक्कर में ही निर्गुण भक्ति धारा और सगुण भक्ति धारा का जन्म हुआ । प्रयोगशाला का विषय इनसानी जिस्म है । इसकी हरेक नस नाड़ी को चीर फाड़कर देखा जा सकता है और देखा जा भी चुका है लेकिन क्या इनसानी जिस्म की सारी गुत्थियां हल कर ली गयी हैं ?
नहीं ।
ईश्वर प्रयोगशाला का विषय नहीं है । वह आपकी बुद्धि का विषय है । आप बुद्धि से काम लेंगे तो आप जान जायंगे कि हां , ईश्वर वास्तव में है । आप प्रकृति की कोई भी चीज़ देखेंगे तो आप उसमें एक डिज़ायन और व्यवस्था पाएंगे और डिज़ायन और व्यवस्था तभी मुमकिन होती है जबकि बुद्धि , ज्ञान और शक्ति से युक्त एक हस्ती मौजूद हो । इनसान किस कमज़ोर हालत में पैदा होता है लेकिन यह इनसान भी आज इस बात में सक्षम है कि रेडियो और टेलीफ़ोन जैसी निर्जीव चीज़ों को ‘वाणी‘ दे दे ।
इनसान ऐसे घर बना चुका है जिन्हें स्मार्ट हाउस कहा जाता है । यह घर अपने मालिक की ज़रूरतों को बिना उसके बयान किए समझ लेता है और संकेत मात्र से पूरा भी कर देता है । इनसान तो निर्जीव भी नहीं है । उसके अन्तःकरण में सर्वथा समर्थ परमेश्वर की ओर से वाणी का अवतरण तो किंचित भी ताज्जुब की बात न होना चाहिये । ख़ास तौर से तब जबकि इनसान खुद बिना किसी ज़ाहिरी सबब के दूसरे आदमी के मन में अपना पैग़ाम पहुंचाने में सक्षम है । इस विद्या को टेलीपैथी के नाम से जाना जाता है ।मुस्लिम सूफ़ियों , हिन्दू योगियों और बौद्ध साधकों के लिए यह एक मामूली सी बात है और आज पश्चिमी देशों में यह विद्या भी दीगर विद्याओं की तरह सिखाई जाती है । जब खुद इनसान ही बिना जिव्हा के अपना पैग़ाम दूसरे इनसानों तक पहुंचा सकता है तो फिर उस सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बारे में ही इसे क्यों असंभव मान लिया जाए ?
......................................................................................................................................................................एक प्रबुद्ध व्यक्ति के प्रश्न के जवाब के बाद एक वेबकृमि की इस चिन्ता पर क्या टिप्पणी की जाए कि लड़के लड़कियां अन्तरधार्मिक विवाह क्यों कर रहे हैं ?
नरगिस समेत बहुत सी फ़िल्मी हीरोइनों ने हिन्दू भाइयों से विवाह किया ।
क्या उन कलाकार मर्दों को किसी गुरूकुल या आश्रम से ऐसा करने का आदेश या मिशन दिया गया था ?
काम तो ऐसा प्रबल होता है कि जब इसका आवेग उठता है तो एक ऐसा व्यक्ति भी केवट की कन्या से नाव में , बीच पानी में ही बलात्कार कर बैठता है जिसे दुनिया ऋषि समझती थी । विश्वामित्र भी मेनका के वार से न बच पाए । मुरली की तान सुनकर तो सभी गोपियां अपने पति और बच्चों तक को बिसराकर अपने आशिक़ के पास भागा करती थीं । ऐसा पुराण बताते हैं लेकिन मैं इसे सत्य नहीं मानता , लेकिन जो लोग इसे सत्य मानते हैं उनके लिए यह प्रमाण बनेगा ।
शकुंतला ने दुष्यंत को अपना सर्वस्व सौंपने से पहले कब पिता की अनुमति ली थी ?
ज़्यादा लिखना मैं मुनासिब नहीं समझता क्योंकि इन प्रसिद्ध कथाओं को सभी जानते हैं ।प्रेम विवाह या गंधर्व विवाह प्राचीन भारतीय परम्परा है । कितनी ही मुस्लिम लड़कियां आज हिन्दुओं के घरों में बैठी गाय के गोबर से चौका लीप रही हैं । ठीक ऐसे ही कुछ हिन्दू लड़कियों ने मुसलमानों के साथ वक्त गुज़ारा । उन्हें बरता , परखा और फिर अपने क़ानूनी हक़ का इस्तेमाल करते हुए उनसे जीवन भर का नाता जोड़ लिया । जब औरत मर्द आपस में घुलमिलकर अंतरंग सम्बन्ध बनाएंगे तो यह स्थिति तो आएगी ही , मुस्लिम के साथ भी और ग़ैर मुस्लिम के साथ भी । इसमें हाय तौबा मचाने और इसलाम को बदनाम करने की क्या ज़रूरत है ?
इसलाम की तालीम तो मर्द के लिए यह है कि वह न तो औरत को तकने या घूरने का गुनाह करे और न ही वह औरत को छुए , चाहे औरत मुस्लिम हो या ग़ैर मुस्लिम । और अफ़सोस है ऐसी बहनों पर जो अक्ल के दुश्मनों की हां में हां मिलाकर उनकी भलसुगड़ाई बटोरना चाहती हैं ताकि उन्हें सामान्य मुसलमान न समझा जाए बल्कि उन्हें विशिष्ट चिंतक समझा जाए और उनकी तरक्क़ी होती रहे । आज माता की कथाएं सहेलियों को पढ़कर सुनाई जा रही हैं तो कल सास को भी सुनाई जाएंगी । कोई कुछ पढ़े और किसी को सुनाए या किसी हिन्दू के साथ ही घर बसाए , हमें कोई ऐतराज़ नहीं है । हमें तो ऐतराज़ इस बात पर है कि बहन जी अलगाववादी नामहीन लौंडे के ब्लॉग पर कह रही हैं कि इसलाम में किसी हिन्दू लड़की को मुसलमान करने पर 72 हूरों का लालच दिया गया है । हमें पवित्र कुरआन की हज़ारों आयतों और लाखों हदीसों में इस अर्थ की कोई एक भी आयत या सही हदीस दिखाईये वर्ना तौबा कीजिए । किसी भी बड़े मदरसे के आलिम का जायज़ा ले लीजिये , उसकी पत्नी पुश्तैनी मुसलिम घराने से ही मिलेगी । मौलवी साहिबान के घरों में तो कोई हिन्दू लड़की नहीं मिलेगी , हां उनकी तालीम से हटकर चलने वाले कलाकारों , नेताओं और पत्रकारों के घरों में ज़रूर हिन्दू लड़कियां ज़रूर मिल जाएंगी । हिन्दू लड़कियां मुसलमान लड़कों से ब्याह क्यों कर रही हैं ?
क्योंकि हिन्दू लड़कों के बाप तो अपने बेटों की ऊँची क़ीमत वसूलते हैं और हरेक लड़की के बाप में इतनी क़ीमत देने की ताक़त होती नहीं । अब लड़की करे तो क्या करे ?
आप दहेज की मांग छोड़ दीजिए और फिर देखिए कि मुसलमानों के साथ हिन्दू लड़कियों के विवाह में कितनी कमी आती है ?
मुसलमान से ब्याह करने के पीछे ख़तना भी एक बड़ा कारण है क्योंकि ख़तना के बाद लिंगाग्र कपड़े की रगड़ खाता है जिससे उसमें घर्षण के समय स्तम्भन का स्वभाव विकसित हो जाता है और वह अपनी प्रिया को पूर्ण संतुष्ट करने में सक्षम होता है ।मुसलमान भोजन में प्रायः वे चीज़ें खाता है जो भारद्वाज ऋषि ने भरत जी की सेना को उस समय परोसी थीं जब वे मेरे प्रिय श्री रामचन्द्र जी को वापस लाने के लिए निकले थे और उनका पता पूछने के लिए उनके आश्रम में एक रात के लिए ठहरे थे । आयुर्वेद भी उन्हें पुष्टिकारक मानता है । इससे भी मुसलमान ज़्यादा पुष्ट होकर अपनी प्रिया को ज़्यादा संतुष्ट करता है ।
लव जिहाद का भी चर्चा ख़ामख्वाह किया जाता है । ऐसा कोई जिहाद हिन्दुस्तान में नहीं चल रहा है । लेकिन इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि जिहाद कोई भी हो , उसे लड़ने के लिए मज़बूत हथियार और अच्छी ट्रेनिंग की ज़रूरत पड़ती है । हरेक हिन्दू को देखना चाहिये कि लव जिहाद में काम आने वाला हथियार कौन सा है ?
और उसका हथियार कितना सक्षम है ?
उसने ट्रेनिंग किस गुरू से ली है ?
सन्यासियों से गृहस्थ धर्म की ट्रेनिंग लोगे तो फिर कुवांरी लड़कियां मुसलमानों की पनाह में आएंगी और शादीशुदा औरतें किसी इच्छाधारी का दामन थामेंगी । कारगिल हो या ताज़ा नक्सली हमला , हरेक चोट के बाद यही हक़ीक़त सामने आयी कि सैनिकों के हथियार भी वीक थे और उनकी ट्रेनिंग भी नाकाफ़ी थी । यही बात तथाकथित लव जिहाद के प्रकरण में है ।तुम्हारी लड़कियां अगर दूसरों के पास जा रही हैं तो यह तुम्हारी कमी और कमज़ोरी के कारण है । अपनी ‘वीकनेस‘ को दूर कीजिए , मुसलमानों को दोष क्यों देते हो ?
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