सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Tuesday, March 23, 2010
क्या वाक़ई हज्रे अस्वद शिवलिंग है ? Black stone : A sign of ancient spiritual history.
क्या वाक़ई हज्रे अस्वद शिवलिंग है ?
हमने कल आपको बताया था कि सच्चा शिव कौन है ?
सच्चा शिव वह परमेश्वर है जिसने मनुष्य को अपने स्वभाव पर रचा ।
परमेश्वर ने मनुष्य की रचना अपने अंश से नहीं बल्कि अपनी मनन शक्ति से की ।
मनुष्य की रचना से पहले भी हरेक चीज़ की रचना उसने ऐसे ही की ।
कायनात तरक्क़ी करते हुए एक स्टेज से दूसरी स्टेज की तरफ़ बढ़ती रही ।
ईश्वरीय योजना के अनुसार चीज़ें बनती रहीं और मिटती रहीं । यह सिलसिला आज भी जारी है । इसी दरम्यान वह मरहला आया जब ईश्वर ने प्रथम मानव की सृष्टि की और उसी के वाम पक्ष से , उसके बायें भाग से उसकी पत्नी को पैदा किया ।
यही जोड़ा पहला जोड़ा था । इसी से सारे मनुष्यों की उत्पत्ति हुई ।इसी पहले जोड़े को शिव और पार्वती कहा गया । इसी प्रथम पुरूष को ब्रह्मा कहा गया । शिव भी परमेश्वर का गुणवाचक नाम है और ब्रह्मा भी । क्योंकि मनुष्य में ईश्वर के गुण प्रतिबिम्बित होते हैं , इसलिये ईश्वर के अधिकतर सगुण नाम प्रायः प्रथम पुरूष के लिए इस्तेमाल हुए हैं ।
प्रथम के लिए संस्कृत में आद्य और आदि शब्द भी आये हैं ।
आदि से ही शब्द आदिम् बना जो कालान्तर में मुख सुख के कारण आदम प्रचलित हो गया । ईश्वर कल्याण करता है । अतः शिव कहलाता है । उत्पत्ति करने के कारण उसे ही ब्रह्मा कहा जाता है ।
प्रथम पुरूष ने इस सुंदर धरा पर सन्तान को पैदा किया । उसका रक्षण-शिक्षण किया । मनुष्य जाति का आरम्भ करके सारे जगत का कल्याण किया । मानव जाति की उत्पत्ति करने की वजह से उन्हें ब्रह्मा कहा गया और सबका कल्याण करने के कारण उन्हें शिव कहा गया ।
यहां यह भी समझ लेना ज़रूरी है कि लिंग का अर्थ होता है ‘चिन्ह‘ अर्थात निशान ।
नर की पहचान उनके यौनांग से होने के कारण उसे भी लिंग कह दिया जाता है ।
इस तरह लिंग शब्द कई अर्थ देता है जिनमें से दो का बयान यहां कर दिया गया ।
एक शिवलिंग तो वह है जो आम तौर से भारत के शिवालयों में बल्कि आजकल तो खुले आम हरेक नगर के चैराहों पर देखे जा सकते हैं । ये तो यौनांगों की आकृतियां हैं ।
पवित्र काबा के काले पत्थर का कोई सम्बन्ध यौनांग से नहीं है और न वह भारत के शिवलिंग की तरह लम्बा होता है ।
हज्रे अस्वद एक अण्डाकार काला पत्थर है ।
शिव अर्थात अजन्मे परमेश्वर और प्रथम पुरूष का स्मृति चिन्ह होने के कारण उसे शिवलिंग कहा जा सकता है ।
यह पत्थर स्वर्ग का है ।
यह मनुष्य को उसके महान स्वर्गिक पद और रूप की स्मृति का बोध कराता है ।
यह मनुष्य पर ईश्वर के जीवन रूपी सबसे बड़े वरदान की याद दिलाता है ।
यह शून्य रूपाकार वाला पत्थर इनसान को उसकी वास्तविक पापशून्य स्थिति की भी याद दिलाता है । इनसान के अवचेतन में उसका इतिहास और उसकी स्मृतियां मौजूद होती हैं ।
इस दिव्य चिन्ह को देखते ही उसके अवचेतन में दबा पड़ा उसका निष्पापी स्वरूप उसकी चेतना पर छा जाता है और उसके लिए पाप के मार्ग पर और आगे बढ़ना असंभव बना देता है । इस समय एक मानव अपने उस रूप को पा लेता है जैसा कि वह अपने शिशुकाल में था । यहीं से उसके दिल में अपने गुनाहों पर शर्मिन्दगी पैदा होती है , जो तौबा का रूप ले लेती है । यह उसके जीवन का टर्निंग पॉइंट होता है ।
यह लम्हा हरेक को नसीब नहीं होता बल्कि यह वरदान केवल उसी को नसीब होता है जो कि ईश्वरीय वरदान का खोजी होता है । जो लोग अपने नाम के साथ हाजी लिखकर मुसलिम मतदाताओं को प्रभावित करने आदि की ग़र्ज़ से हज करते हैं उनमें न तो किसी चेतना का उदय होता है और न ही वे ईश्वर के इस दिव्य वरदान को पाते हैं ।
पवित्र काबा का काला पत्थर कुछ दीगर वजहों से कुछ और भी ख़ासियतें रखता है । उन सब ख़ासियतों के कारण और अपने पूर्वजों से इसकी निस्बत होने के कारण एक मुसलिम इससे प्रेम करता है ।इनसान जिससे प्रेम करता है , उसे वह आदर भी देता है ।
इस दिव्य चिन्ह को चूमकर एक मुसलमान अपने प्रेम और आदर को ही प्रकट करता है ।
लेकिन...
क्या हज्रे अस्वद को चूमना मूर्ति पूजा के समान नहीं है ?...
इस पर हम कल बात करेंगे , इन्शा अल्लाह ।
@आदरणीय सीनियर सिटीज़न जनाब ए. बी. जी ,एकता और सुधार की बातों को मानने के लिए हम प्रमाण नहीं मांगते ।इस उम्र में आप पर अधिक लोड डालना वैसे भी ठीक नहीं । लोगों को ज़रूरत हुई तो आपकी बात के समर्थन में प्रमाण भी हम ही उपलब्ध करा देंगे । वैसे भी यह मुमकिन नहीं है कि पृथ्वी के केन्द्र पर एक अहम हिन्दू तीर्थ हो और उसका ज़िक्र वेदों और पुराणों में न हो ।
अलबत्ता हरेक महापुरूष के बारे में फैला दी गई अश्लील और बेहूदा कथाओं को विकार समझकर हम नकारते हैं । अब यदि आप या कोई दीगर आदमी उन्हें सत्य मानता है तो उनकी सत्यता के हक़ में प्रमाण दिया जाना ज़रूरी है । आप दें या कोई और , जो चाहे दे । हो सकता है कि हम ग़लत समझ रहे हों और हक़ीक़त कुछ और हो ।
@प्रिय मोहक मुस्कान स्वामी भाई अमित जी ,आपके सवाल के जवाब में मेरा चुप रहना मात्र इस कारण से है कि
1- मैं आपको खोना नहीं चाहता ।
2- दो आदमियों की बातचीत में ऐसे भी प्रसंग आ जाते हैं जो दूसरे लोगों को नागवार लगते हैं ।
3- इसीलिये मैंने आपको दो प्रश्नवीरों का हश्र सुनाकर सावधान करना अपना फ़र्ज़ समझा ।
4- आजकल मैं श्री मुरारी जी की सलाह मानकर ‘लहजा सुधार प्रैक्टिस‘ कर रहा हूं । आपको जवाब देता हूं तो मेरी प्रैक्टिस खण्डित हो जायेगी ।
... लेकिन आपके आग्रह को पूरा करने के लिए मैं आपको जवाब देने का प्रयास करूंगा ।
आज एक सवाल मैं भी अपने पाठकों से पूछना चाहूंगा । पाठकों की गिनती तो काउन्टर तक़रीबन 300 दिखाता है जबकि टिप्पणियां उससे आधी या तिहाई भी नहीं मिलतीं । जब हम आपके लिए अपने विचार प्रकट करने के लिए घण्टों मेहनत करते हैं तो क्या आप दो वाक्य लिखकर अपनी पसंद या नापसंद नहीं लिख सकते ?
मैं अपने सभी पाठकों के प्रति आभार व्यक्त करता हूं और उनके प्रति भी जो मुझे नियमित रूप से नापसन्द का वोट देते हैं । उनकी नियमित आमद सराहनीय है ।
सबका आभार ।
हमारा तो मिज़ाज ये है कि
माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके
कुछ ख़ार कम तो कर गये , गुज़रे जिधर से हम
क्या हम कह सकते हैं कि एक और दिन ऐसा गुज़र गया जबकि किसी की भावना आहत नहीं हुई ?
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48 comments:
अलबत्ता हरेक महापुरूष के बारे में फैला दी गई अश्लील और बेहूदा कथाओं को विकार समझकर हम नकारते हैं । अब यदि आप या कोई दीगर आदमी उन्हें सत्य मानता है तो उनकी सत्यता के हक़ में प्रमाण दिया जाना ज़रूरी है । आप दें या कोई और , जो चाहे दे ।
शिवलिंग पर आपकी रचना अच्छी लगी। आपने काबा के पवित्र काले पत्थर का जिक्र किया है। उस पत्थर के बारे में थोड़ी और जानकारी देते तो अच्छा होता। आपकी रचनाओं से ही धर्म को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
nice post
@Sahib e Janduniya
Aapki Khwahish ka ahatram zuroor kiya jayega. Abhi ye series chalti rahegi.
@Sau par ek bhari chot marne wale bhai
aapka shukriya.
लो कम से कम ये तो माना आपने की, की हाजी हज करने तो जाते हैं मगर इसी बहाने उस हज्रे अस्वद को चूमने जाते हैं। मगर क्या ये सही नहीं है की पूजा करना, प्यार करना, चूमना एक ही बात है ।
तो ये बताइए की सिर्फ हिन्दू बुतपरस्त क्यों हुए। मुसलमान क्यों नहीं.
हमने तो ये भी नहीं कहा की अरब मैं हिन्दू रहते थे। हिन्दू तो हिंदुस्तान मैं हैं। और ये बताइए की उन ३६० मूर्तियों का क्या हुआ। क्या ये उनमे से एक नहीं है।
@Bhai Tarkeshwar ji
आजकल मैं श्री मुरारी जी की सलाह मानकर ‘लहजा सुधार प्रैक्टिस‘ कर रहा हूं । आपको जवाब देता हूं तो मेरी प्रैक्टिस खण्डित हो जायेगी ।
... लेकिन आपके आग्रह को पूरा करने के लिए मैं आपको जवाब देने का प्रयास करूंगा ।
@Bhai Tarkeshwar ji
क्या हज्रे अस्वद को चूमना मूर्ति पूजा के समान नहीं है ?इस पर हम कल बात करेंगे ,
इन्शा अल्लाह ।
Jab ye baat main pehle hi likh chuka hun to apko ye sawal aaj nahi puchhna chahiyye tha.
Dear Tarkeshwer ji aapko batana chaahunga k muslims hajre aswad ko kyun coomte hain to sunein " hazrat umar (razi allahotala anho)no is patthar ko chooma aur kaha- e kale patthar mai tujhe khoob jaanta hoon na tu nafa pahuncha sakta hai na nuksaan lekin main tujhe isliyen choomta hoon k pyare nabi hazrat muhammad sallalaho alaihe wassalam ko tujhe choote hue deka hai" to bhai tarkeshwer ji ise choomne ka matlab but parasti nahi hua balki muhabbat dikhata hai k musalman ye sochkar is patthar ko choomte hain k wo apne nabi k hhathon ko choom rahe hain. I think now u can understand !!!
पहली बात तो यह की मेरी उम्र ३० वर्ष से कम है, और मैं एक बॉडी बिल्डर भी हूँ. पहचान के एक विदेशी बुजुर्गवार की फोटू लगाई हुई है, इसी से मुझे बुजुर्ग मान बैठे.
दूसरे अल अस्वाद साफ़ साफ़ नारी गुप्तांग की प्रतिकृति है.
http://4.bp.blogspot.com/_SbGSSRU5LeE/R8nuY1cl2XI/AAAAAAAAAj4/1U5kP3hcA2o/s400/black+stone+sacred+yoni+at+mecca.jpg
और हां जमाल, परिक्रमा के बारे में भी बताना
anwer miyan photo bada lagana tha,,, 30 saal ke buddhe ne नारी गुतांग nahin dekha,,dekha hota to farq pata hota.
nice post
यही जोड़ा पहला जोड़ा था । इसी से सारे मनुष्यों की उत्पत्ति हुई ।इसी पहले जोड़े को शिव और पार्वती कहा गया । इसी प्रथम पुरूष को ब्रह्मा कहा गया । शिव भी परमेश्वर का गुणवाचक नाम है और ब्रह्मा भी
SHAITAN N AADAM KO BAHKANEY KI PURI KOSHISH KI PAR WO USKO DUBARA BAHKA NA SAKA TAB USNEY AADAM K BAAD USKI AULAAD KO BAHKAYA AUR INSAAN KO INSAAN KI POOJA KARNA SIKHAYA...
तू डाक्टर है के सेक्स गुरू, तू झूटा है हमने इसे कभी लिंग नहीं बताया और अगर लिंग कह देते तो अब फिर नारी गुप्तांग नहीं कह सकते तू हमारे मुंह में शब्द घुसा रहा है
अनवर भाई सलाम क़बूल कीजिए, जवाब नही आपकी शालीनता का. लगता है आप हमारे 'बुधीजीवियो' की ''देशप्रेम'' की दुकान बंद करवा ही देंगे, संस्कृतिप्रेम और देशप्रेम का इनका ब्रांड अब पिट चुका है ये बात इनकी समझ मैं भी आ ही गयी होगी.
अनवर भाई , अगर आप अपनी शालीनता को ऐसे ही बनाये रखेंगे तो मैं ये जरुर उम्मीद करता हूँ आपसी विचार विमर्श से हिन्दू और मुसलिम के बीच की आपसी दुरी जल्दी ही ख़त्म हो जाएगी। औ मैं उन ब्लोगेर बंधू से अनुरोध करता हूँ की टिका टिप्णी करते समय अपने पूर्वजो का ध्यान रखे । सही शब्दों का इस्तेमाल करते हुए ही अगर बहस को जारी रखे तो आपसी सदभाव बना रहेगा न की और ज्यादा दुरी।
मुझे लगता है काबे पर इससे स्पष्ट कोई पोस्ट नहीं हो सकती है. एक बात जो मैं जोड़ना चाहता हूँ वह यह की जो लोग इस पत्थर के काला होने की वजह से इसे शिवलिंग से जोड़ रहे हैं वह जान लें की यह पत्थर असलियत में सफ़ेद है, जो लोगों के हाथ पड़ते पड़ते काला हो गया.
आदरणीय गुरूजी (जमाल जी) प्रणाम
लगता है चेले से कुछ भूल हो गई, इसीलिए जवाब नहीं लिखा, गुरूजी एक बार मेरे ब्लॉग पर आके एक निर्देश दे दिया होता |
निवेदन है आप से की मुझे एकलव्य न बनने दें, नहीं तो गलती से कुछ सीख भी गया तो .............
आप के साथ काबा भी चलने को तैयार हूँ, लेकिन एक समस्या है, मैं मांस नहीं खाता, और अरब जाकर मैं कहीं अकेला ना पड़ जाऊं इसलिए , गुजारिश की थी की "अहिंसा व्रत ले लें"
माना की आप के पास समय नहीं, लेकिन चेले के लिए थोडा समय निकालना तो आपका पड़ेगा ही, क्योंकि जब मैं आपको हर मुश्किल झेल कर लिखता हूँ तो जवाब तो आप को देना ही पड़ेगा, आज नहीं तो कल
मुरीद आपका
पंकज
@ ab inconvenienti
जैसा कि अनवर भाई ने बता कि "हज्रे अस्वद एक अण्डाकार काला पत्थर है।" इसके बाद आपका प्रश्न स्वत: ही बेमानी हो जाता है. आप शायद उस पत्थर को ढंकने वाले कवर से प्रभावित हैं. जबकि हज्रे अस्वाद उसके अन्दर दिखाई देने वाला पत्थर मात्र है. और उसका मूलत: रंग सफ़ेद है, लेकिन लोगो ने उसको छू-छू कर काला कर दिया है.
इसलिए कहते हैं किसी को जानने के लिए उसके बारे में पूरी जानकारी हासिल कर लेना ही उचित होता है.
मेरे भाई अरब जाने के लिए मांस खाने की कोई आवश्यकता नहीं है. ना ही हर एक मुसलमान मांसाहारी होता है. इसलिए वहां पर हर तरह के भोजन का बंदोबस्त होता है. आप जाने का इरादा तो बनाइये.
शिव भी परमेश्वर का गुणवाचक नाम है और ब्रह्मा भी
संगे अस्वाद के ऊपर बहुत ही अच्छा लेख लिखा है आपने. यह लेख वाकई प्रशंसा के काबिल है.
AAP LOG SABHI MERE SE AGE MAIN BADE HAI MERA AGE 20 HAI PAR SHAYAD KUCH AAP KO BATANA CAHTA HU PAGAMBER SAHAB KURESH VANSH KE THE JAHA WO BHI HINDU KI TARAH POOJA PATH MURTI POOJA KARTE THE AUR JO KABA KI BAAT HO RAHI HAI USE RAJA VIKRAMADITYA NE BANAYA MUSLIM BHAI LOG KITNE MURKH HOTE HAI AAJ PATTA CHALA AAJ TAK MAINE NAHI SUNA AUR DEKHA KI KOI SAFED ( WHITE ) CHEEZ KO HATH LAGAYE TO KALA HOGA KYO KI JAB HUM CHAVAL ( RICE ) MAMULI CHEEZ KO BHI CHUE TO KALI NAHI HOGI DOOSRI BAAT KI AAP KA WO BLACK STONE ITNA PROTECT HAI PHIR WHITE SE KALA KAISE HO GAYA AUR HO BHI GAYA TO AAP KA WO DHARAM AUR KABA GALAT HO GAYE AGAR SACHA ALLAH KA HOTA TO RANG KABHI NA BADALTA ALLAH USKI HIFAZAT KARTA HUM BHI SHIVLING KI POOJA KARTE HAI KAHI KAHI WHITE SHIVLING BHI HOTA HAI PAR NA AAJ TAK DEKHA AUR SUNA KI WO KALA HO GAYA JABKI MUSLIM US KABA PAR ITNA KHARCH KARTE HAI AUR HUM LOG JAYDA NAHI KARTE ..................... JAI SHRI RAM JAI HIND.... HAR HAR MAHADEV
जान लें की यह पत्थर असलियत में सफ़ेद है, जो लोगों के हाथ पड़ते पड़ते काला हो गया
और उसका मूलत: रंग सफ़ेद है, लेकिन लोगो ने उसको छू-छू कर काला कर दिया है.
पर इस्लाम के माने हुए जानकार शेख तबरसी तो कुछ और ही फरमाते हैं,
Muslims believe that the stone was originally pure and dazzling white, but has since turned black because of the sins it has absorbed over the years.
^ Shaykh Tabarsi, Tafsir, vol. 1, pp. 460, 468. Quoted in translation by Francis E. Peters, Muhammad and the Origins of Islam, p. 5. SUNY Press, 1994. ISBN 0-7914-1876-6
@ab inconvenienti
Kii post se ye to sabit ho gaya ki kaba ka pather, YONI ke hii aakara ka hain, Jese musalmaan bhai kiss karte hain
@ साहिबे देश धर्म जी,
वर्क ज़्यादा और टाइप स्पीड कम होने के कारण जवाब नहीं दे पाता क्षमा.
पाचन प्रॉब्लम के बाइस मैं भी शाकाहारी हूँ.
आप शिष्य नही बल्कि गुरू हैं और वो भी प्राचीनकाल से.
खुद को पहचानें कृपा होगी.
@ ab inconvenienti ji, जैसे हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती और हर खुला मुँह गुदा नहीं होता वैसे ही हर गोल चीज़ योनि नहीं होती और हर काला पत्थर पेनिस के अर्थ वाला शिवलिंग नहीं होता. मैं आपसे १० साल बड़ा हूँ. क्या अपने चाचा से बात करने का कोई संस्कार नहीं सिखाया माँ ने ?
मुझे अपना लहजा बदलने पर मजबूर मत करो.
अरे कोई समझाओ इस अर्ध बूढ़े को.
@ab inconvenienti:
आपकी तस्वीर देखकर लगता है आप पढने एवं समझने की जगह हंसने में सारा समय व्यर्थ कर देते हैं.
श्रीमान मेरे कहने का मतलब भी वही था, लोग उसे इतनी अधिक संख्या में छूते हैं कि उनके पापो के प्रभाव से संगे अस्वद काला हो गया है.
@ Anonymous: जब किसी वस्तू को करोडो-अरबों लोग छूते हैं तो उनके हाथो के स्पर्श और गंदगी से भी किसी भी वस्तु का रंग बदल जाना स्वाभाविक है. रही बात आकार की तो ऊपर समझा गया है, परन्तु आपके ऊपर एक कहावत एकदम ठीक बैठती है, कि सोने वाले को जगाया जा सकता है, परन्तु सोने का नाटक करने वाले को जगाना मुश्किल है.
@ जमाल साहब -यह पत्थर स्वर्ग का है ।
समाधान -
हिन्दू के लिए कण-कण परमात्मा का है
यो भूतं च भव्य च सर्व यश्चाधितिष्ठति
स्वर्यस्य च केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नम:.
जो भूत, भविष्य और सबमें व्यापक है, जो दिव्यलोक का भी अधिष्ठाता है, उस ब्रह्म को प्रणाम है.(अथर्ववेद 10-8-1)
@ जमाल साहब-यह मनुष्य को उसके महान स्वर्गिक पद और रूप की स्मृति का बोध कराता है ।
@ जमाल साहब-यह मनुष्य पर ईश्वर के जीवन रूपी सबसे बड़े वरदान की याद दिलाता है ।
समाधान -
मूर्ति-पूजा क्या है? पत्थर, मिट्टी, धातु या चित्र इत्यादि की प्रतिमा को माध्यस्थ बनाकर हम सर्वव्यापी अनन्त शक्तियों और गुणों से सम्पन्न परमात्मा को अपने सम्मुख उपस्थित देखते हैं । निराकार ब्रह्म का मानस चित्र निर्माण करना कष्टसाध्य है । बड़े योगी, विचारक, तत्ववेत्ता सम्भव है यह कठिन कार्य कर दिखायें,किन्तु साधारण जन के जिए तो वह नितांत असम्भव सा है । मानस चिन्तन और एकताग्रता की सुविधा को ध्यान में रखते हुए प्रतीक रूप में मूर्ति-पूजा की योजना बनी है । साधक अपनी श्रद्धा के अनुसार भगवान की कोई भी मूर्ति चुन लेता है और साधना अन्तःचेतना ऐसा अनुभव करती है मानो साक्षात् भगवान से हमारा मिलन हो रहा है ।
@ जमाल साहब-यह शून्य रूपाकार वाला पत्थर इनसान को उसकी वास्तविक पापशून्य स्थिति की भी याद दिलाता है । इनसान के अवचेतन में उसका इतिहास और उसकी स्मृतियां मौजूद होती हैं ।
समाधान -
परम तत्त्व की आकृति के बारे में प्रत्येक समुदाय, वर्ग में भेद हो सकता है। एक ग्रीक दार्शनिक ने कहा है कि यदि कुत्ते, गधे और ऊँट भी चित्र बना सकते तो उनके ईश्वर की आकृति भी उन्हीं की तरह होती। यानी अपने अपने मनोजगत् के आधार पर ही धर्म की आकृति स्वरूप लेती है। आप उसे मूर्ति कह लें या कोई विशेष आकृति। यदि हम किसी विशेष दिशा की ओर मुँह करके पूजा करते हैं या ईंट-पत्थर को जोड कर किसी पवित्र स्थल का निर्माण करते हैं जहाँ कुछ देर के लिए जाकर हम उस एक परम सत्ता का ध्यान कर सकें, अपने को जोड सकें उससे तो यह कृत्य भी उस निराकार विराट् सत्य को एक साकार रूप में सीमित करने की प्रक्रिया है।
@ जमाल साहब-इस दिव्य चिन्ह को देखते ही उसके अवचेतन में दबा पड़ा उसका निष्पापी स्वरूप उसकी चेतना पर छा जाता है और उसके लिए पाप के मार्ग पर और आगे बढ़ना असंभव बना देता है । इस समय एक मानव अपने उस रूप को पा लेता है जैसा कि वह अपने शिशुकाल में था । यहीं से उसके दिल में अपने गुनाहों पर शर्मिन्दगी पैदा होती है , जो तौबा का रूप ले लेती है ।
समाधान -
'' हमारे यहाँ मूर्तियाँ मन्दिरों में स्थापित हैं, जिनमें भावुक जिज्ञासु पूजन, वन्दन अर्चन के लिए जाते हैं और ईश्वर की मूर्तियों पर चित्त एकाग्र करते हैं । घर में परिवार की नाना चिन्ताओं से भरे रहने के कारण पूजा, अर्चन, ध्यान इत्यादि इतनी तरह नहीं हो पाता, जितना मन्दिर के प्रशान्त स्वच्छ वातावरण में हो सकता है । अच्छे वातावरण का प्रभाव हमारी उत्तम वृत्तियों को शक्तिवान् बनाने वाला है । मन्दिर के सात्विक वातावरण में कुप्रवृत्तियाँ स्वयं फीकी पड़ जाती हैं ।
मूर्ति-पूजा के साथ-साथ धर्म मार्ग में सिद्धांतमय प्रगति करने के लिए हमारे यहाँ त्याग और संयम पर बड़ा जोर दिया गया है । सोलह संस्कार, नाना प्रकार के धार्मिक कर्मकाण्ड, व्रत, जप, तप, पूजा, अनुष्ठान,तीर्थ यात्राएँ, दान, पुण्य, स्वाध्याय, सत्संग ऐसे ही दिव्य प्रयोजन हैं, जिनसे मनुष्य में संयम ऐसे ही दिव्य प्रयोजन हैं, जिनसे मनुष्य में संयम और व्यवस्था आती है । मन दृढ़ बनकर दिव्यत्व की ओर बढ़ता है । आध्यात्मिक नियंत्रण में रहने का अभ्यस्त बनता है ।
सन्तों की मजार बनाना या ईसा को क्रूस पर लटके दिखाना, या मृतक की समाधि बनाना सब कुछ किसी प्रतिमा का पूजन ही है. इस प्रकार जो काम सब कर रहे हैं उसको देखते हुए मन्दिर में किसी मूर्ति को स्थापित कर देने का विरोध नहीं किया जा सकता.
Dr Anvar ,
Ab sanskaar kii baten karne lag gaye,
Pahle sab log aapke samjhaaraha the.
Beta sambhal ja, par tum nahii mane,
Kaba Choot so sexy. Tum अपना लहजा बदल सकते हो, Dekhte hain kiten gaharaai tak jaate ho (kaba kii YONI KII)
Thanks @ab inconvenienti
@ Shah Nawaz Ji, Ab to कहावत hii kahate phiroge, ye baat to sidh ho gaye kii kaba ka aakar "YONI" ke jaisa hai. Bhole Naath ("Ling Wale Baba") ki jai
@ सोने वाले को जगाया जा सकता है, परन्तु सोने का नाटक करने वाले को जगाना मुश्किल है.
Sone kaa natak to tum or Dr Anvar kar rahe the, App log Jabardasti jhoot pe jhoot likhe jaa rahe the. Jab baat apne pe aati hai to , kishi ko "कहावत" or "संस्कार " yaad aane lagta hain
@...मुझे अपना लहजा बदलने पर मजबूर मत करो.
अरे कोई समझाओ इस अर्ध बूढ़े को.... Dr Anver Lahaja Badlo, Ek baar Modi ne Leheja Badle thaa... Anjaam Dekha naaa....
लगे हाथ यह भी बता दीजिये की,हिंदुस्थानी हज यात्री जो सरकारी सब्सिडी से हज के किये जाते है .
तो उनकी वह यात्रा मालिक के दर पे कुबूल है या रद्द है.
बाकी तो हज किनके ऊपर फ़र्ज़ है और किस तरीके से जायज है यह तो पवित्र कुरान की रौशनी में में आप ही
ज्यादा बेहतर बता सकतें है
गुरूजी
इस्लाम को मैं बहुत करीब से तो नहीं, पर जानता जरूर हूँ, इसमें ऐसा कुछ भी बुरा नहीं है की, इसके पीछे पड़ कर इसमें से कमियां निकली जाएँ, मैं तो यह मानता हूँ की जिस विचारधारा ने करोड़ों लोगो में ईश्वर के प्रति आस्था दृढ की, कई असभ्य जातिओं को एक सूत्र में पिरोया वह विचारधारा कभी पूरी तरह गलत नहीं हो सकती, करोडो लोगों में हमसे भी समझदार लोग रहें होंगे, किसी ने परिस्थिति के अनुसार तो किसी ने रूचि और आस्था के अनुसार इस्लाम को अपनाया होगा
जहाँ तक मुझे लगता है, हिन्दुओं को ईसाईयों की तरह इस्लाम के उदय से कोई मतभेद नहीं है, कहीं ना कहीं इस्लाम में अहिंसा शब्द ना होना ही तथा मुसलमानों द्वारा गौ हत्या ही हिन्दू-मुस्लिम मतभेद का कारण है,
इसलिए मैंने आप से विनती की "अहिंसा व्रत लेने की" स्वाद के लिए सौहार्द छोड़ देना तो समझदारी नहीं है !
गुरूजी इसलिए कहाँ, क्योंकि आप आदमी के स्वभाव को पहचानते हैं, और एक आदमी में यह सबसे बड़ा गुण है, जो खुदा ने आप को दी है>
Murid Pankaj Rajpoot
मेरे प्यारे अमित जी,
मैं एक वैष्णव हूँ, और मंदिर भी जाता हूँ, मूर्ति पूजा भी करता हूँ, लेकिन आप से एक घटना का जिक्र करना चाहता हूँ, २६ जनवरी की परेड देखने गया, वापस आते समय कनाट प्लेस स्थित शिवाजी टर्मिनल के सामने जो दृश्य देखा वह हिन्दुओं को शर्मसार करने वाली एक चीज देखी, एक साहब दीवार पर धर बहा रहे थे, उस दीवार पर जिस पर जमीन से दो - ढाई फूट की ऊँचाई पर हिन्दू देवी देवताओं की फोटो लगी हुई थी, दीवार पर जगह बिलकुल खाली न थी, धार बहाने वाले साहब से कौम पूछी तो बोले हिन्दू !
मुसलमान और ईसाई मूर्ति पूजा करतें भी हैं तो हमसे अछि तरह ही करते है, जिसे भगवान् कह कर पूजते हैं, उसकी,ना तो बेइज्जती करते हैं और ना ही करने देते हैं, अनवर साहब को ही देख लो वो चार हैं, हम हजार हैं फिर भी गुरूजी निडरता से डेट हुए हैं, नाकारा तो हम हुए न बड़ी आसानी से सह लेते हैं, वो भी हंसकर .
साहब वीनती करोंग आप से की इस विषय पर अपने ब्लॉग में लिखे, क्यों दूसरों के धर्म में सर खपाते हैं !
याद रखिये !
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात |
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावह: || (गीता ३/३५)
कृपा करके लिंक देख लें - http://rashtradharmsewasangh.blogspot.com/2010/02/blog-post_283.html
यार कितना टाईम है बकवास बातो के लिये यहां पर लोगो के पास
@प्रिय मोहक मुस्कान स्वामी भाई अमित जी ,
आपके सवाल के जवाब में मेरा चुप रहना मात्र इस कारण से है कि
1- मैं आपको खोना नहीं चाहता ।
2- दो आदमियों की बातचीत में ऐसे भी प्रसंग आ जाते हैं जो दूसरे लोगों को नागवार लगते हैं ।
3- इसीलिये मैंने आपको दो प्रश्नवीरों का हश्र सुनाकर सावधान करना अपना फ़र्ज़ समझा ।
4- आजकल मैं श्री मुरारी जी की सलाह मानकर ‘लहजा सुधार प्रैक्टिस‘ कर रहा हंू । आपको जवाब देता हूं तो मेरी प्रैक्टिस खण्डित हो जायेगी ।
... लेकिन आपके आग्रह को पूरा करने के लिए मैं आपको जवाब देने का प्रयास करूंगा ।
nice post
chachha back foot per kese khelne lag gye......akal aa gayee?????
indeed absolutely right ans:
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Dr anwer hamal jaldi me study kar gye apni kahi baat se article me khud hi palat gye tum kis tathya ko adhar maankar ye siddh lar sakte ho ki kai jagah shinljng unki yonjbka oratik he tum ye siddh kar do aur me ye siddha kar dunga ki wo makkeshwar mahadev kyu he islam me jska jikr kese he kin research fojndations ne iske baare me kya sabut diye bacche study acvhe se karo islam ko aoni soch ke sath chota mat banao
mohammad ne bataya hai kya ki vo kyon ise chumte the
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