सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Thursday, April 15, 2010

आप जिस सहानुभूति से वेदों पुराणों और स्मृतियों को समझने का प्रयास करते हैं , पवित्र कुरआन को भी ऐसे सम्मानपूर्वक समझने का प्रयास कीजिये । The solution


ब्लॉग के ज़रिये हम दिलों के बीच मौजूद दीवारों को गिरा सकते हैं । हमारे लेखन का मक़सद भी यही है लेकिन कुछ लोगों का मक़सद यह है कि उन ख़ताओं के लिए भी ज़िम्मेदार भी मुसलमानों को ठहराओ , जिनके गुनाहगार वास्तव में वे खुद हैं ।
किसी हमदर्द के समझाने से मैं शांत हो गया था । मैंने ऐलान 3 दिन के लिए किया था लेकिन मैंने और ज़्यादा मोहलत दी ।
लेकिन मेरी इस ख़ामोशी के अंतराल में एक विषपुरूष ने पूरी पोस्ट क्रिएट कर दी कि मुसलमान संगठित तरीक़े से हिन्दू लड़कियों को मुसलमान बना रहे हैं ।
बताइये , ऐसा क्यों किया गया ?
क्या ऐसे आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला कभी समाप्त हो पाएगा ?
क्या ऐसे में मुझे जवाब देना चाहिये था या फिर मैं चुप लगा जाता ?
कोई हिन्दू भाई इसका उचित जवाब देता तो शायद मैं चुप रह जाता लेकिन मजबूरन मुझे इन आरोपवादियों को सच्चाई बतानी पड़ी और उसमें मैंने जानबूझकर वेदों का नाम तक नहीं लिया ।
वेदों का नाम नहीं लिया तो भाई अमित शर्मा बिगड़ गये बोले कि आपने अपने ब्लॉग का नाम वेद कुरआन क्यों रखा ?
इस ब्लॉग पर आप ख़तना , लिंगाग्र, स्तंभन और वीकनेस का ज़िक्र क्यों कर रहे हैं ?
आप अपने ब्लॉग का नाम बदलिए ।
मैं तो अमित शर्मा जी के अन्दर बिल्कुल मुल्ला मौलवियों जैसी शर्मो-हया देखकर दंग ही तो रह गया ।
सोचता रहा कि क्या जवाब दूं ?
क्या इन्होंने सचमुच वेद नहीं पढ़े ?
अगर पढ़े हैं तो लिंगाग्र जैसे नॉर्मल वर्ड्स पर इस तरह लजाने का नाटक क्यों कर रहे हैं ?
अगर कोई समस्या समाज में मौजूद है और उसका समाधान भी है , तो उसका ज़िक्र क्यों न किया जाएगा ?
हमने तो संक्षिप्त में ज़िक्र किया है , लेकिन कोर्स में तो पूरी संरचना दी गई है जिसे सभी भाई बहन पढ़ते हैं और मां बाप ऊँची फ़ीस देकर पढ़ाते हैं और खुश होते हैं कि हमारे बच्चे विज्ञान पढ़ रहे हैं ।
क्या हमारे पूर्वज कुछ कम वैज्ञानिक थे ?
जिस लिंग की संरचना और कार्यों पर पश्चिमी वैज्ञानिक आज प्रकाश डाल रहे हैं उसकी विवेचना तो हमारे मनीषी हज़ारों या अरबों साल पहले ही कर चुके हैं ।
न सेशे यस्य रोमशं निषेदुषो विजृम्भते ,
सेदीशे यस्य रम्बतेऽन्तरा सक्थ्या कपृद विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
ऋग्वेद 10-86-17
अर्थात वह मनुष्य मैथुन करने में सक्षम नहीं हो सकता , जिस के बैठने पर लोमयुक्त पुरूषांग बल प्रकाश करता है । वही समर्थ हो सकता है , जिसका पुरूषांग दोनों जांघों के बीच लंबायमान है ।
हमने तो वेदों में आर्य नारी को भी ‘ार्माते लजाते हुए नहीं देखा -
उपोप मे परा मृश मा मे दभ्राणि मन्यथाः ,
सर्वामस्मि रोमशा गन्धारीणामिवाविका ।
ऋग्वेद 1- 126- 7
अर्थात मेरे पास आकर मुझे अच्छी तरह स्पर्श करो । यह न जानना कि मैं कम रोमवाली अतः भोग के योग्य नहीं हूं । मैं गांधारी मेषी ( भेड़ ) की तरह लोमपूर्णा ( रोमों से भरी हुई ) और पूर्ण अवयवा ( जिसके अंग पूर्ण यौवन प्राप्त हैं ) हूं ।
अफ़सोस श्री अमित शर्मा जी के हाल पर । मुझे तो लगता है कि उन्होंने शायद आज तक गर्भाधान संस्कार भी न किया होगा अन्यथा वे इस मन्त्र को ज़रूर जानते । सनातन धर्म पुस्तकालय , इटावा द्वारा 1926 में छपवाई गई ‘ ‘षोडष संस्कार विधि‘ के अनुसार गर्भाधान संस्कार में यह मन्त्र लेटी हुई पत्नी की नाभि के आसपास हाथ फेरते हुए 7 बार पढ़ा जाता है ।
ओं पूषा भगं सविता मे ददातु रूद्रः कल्पयतु ललामगुम ।
ओं विष्णुर्योनिं कल्पयतु त्वष्टा रूपाणि पिंशतु ।
आसिंचतु प्रजापतिर्धाता गर्भं दधातु ते ..
ऋग्वेद 10-184-1
अर्थात पूषा और सविता देवता मुझे भग ( स्त्री की योनि ) दें , रूद्र देवता उसे सुन्दर बनाए । विष्णु स्त्री की योनि को गर्भ धारण करने योग्य बनाए , त्वष्टा गर्भ के रूप का निश्चय करे , प्रजापति वीर्य का सिंचन करे और धाता गर्भ को स्थिर करे ।
देखा अमित जी ! आप तो मात्र वेदों की भावना को आत्मसात न कर पाने के कारण शर्मा रहे थे वर्ना ऐसी कोई बात नहीं है और न ही मुझे अपने ब्लॉग का नाम ही बदलने की ज़रूरत है ।

भाई अमित जी को तो इसमें भी खोट निकालना था और बताना था कि महान तो केवल हम हैं । सो उन्होंने हमें इल्ज़ाम दे डाला -

हम गर्भाधान संस्कार करतें है,तो वोह भी हमारा एक सम्यक रीती से निभाया जाने वाला धार्मिक संस्कार है. लेकिन आप जिस परम्परा का अनुगमन करतें है वहाँ काम, वासना की पूर्ति के लिए प्रयोग किया जाता है ,और उसके आवश्यक संस्कार के रूप में लिंगाग्र को कपडे से रगड़कर स्थंबन का स्वाभाव विकसित किया जाता है, ताकि चार चार प्रियतमाओं सहित खुद की भी वासना पूर्ति हो सके.

बृहदारण्यक उपनिषद , 6-4-7 के अनुसार
स्त्री यदि मैथुन न करने दे तो उसे उस की इच्छा के अनुसार वस्त्र आदि दे कर उसके प्रति प्रेम प्रकट करे । इतने पर भी यदि वह मैथुन न करने दे तो उसे डंडे या हाथ से ( थप्पड़ , घंूसा आदि ) मारकर उसके साथ बलपूर्वक समागम करे । यदि यह भी संभव न हो तो ‘मैं तुझे शाप दे दूंगाा , तुम्हें वंध्या अथवा भाग्यहीना बना दूंगा ‘ - ऐसा कहकर ‘इंद्रियेण‘ इस मंत्र का पाठ करते हुए उसके पास जाए । उस अभिशाप से वह ‘दुर्भगा‘ एवं वंध्या कही जाने वाली अयशस्विनी ( बदनाम ) ही हो जाती है ।
अब कहिये , क्या यही है गर्भाधान की सम्यक रीति ?
अरे भाई , क्यों देवताओं की तरह कामातुर हो रहे हो ?
पत्नी के मन को भी तो समझो । उसे कोई प्रॉब्लम भी तो हो सकती है ?
पहले अपनी पत्नी के मन को समझना सीखो । फिर वे न किसी इच्छाधारी के पास जायेंगी और न किसी मुसलमान के पास । तब आपके दिमाग़ से लव जिहाद का फ़र्ज़ी डर भी निकल जाएगा ।
कृप्या अपनी लड़कियों को बदनाम न करें , उन्हें अच्छी बातें सिखायंे ।
लेकिन आप अच्छी बातें सिखाएंगे किस किताब से ?
सब जगह तो उपरोक्त सामग्री भरी पड़ी है ।
भाई अमित जी ने मेरी ग़लतफ़हमी दूर करते हुए बताया कि
फिर वही बात जमाल साहब आपको हर जगह काम ही काम(वासना युक्त ) ही क्यों दिखाई देता है. बार बार एक ही बात क्यों सिखलानी पड़ती है की वेद एक सम्पूर्ण ज्ञान है जिसमें जीवन के हर एक पक्ष का समावेश है. आप तो ऐसे उचल कूद मचा रहे है जैसे की ७वी ८वी में पड़ने वाला उपरी क्लासेस में पदाई जाने वाली जीव विज्ञान विषयक की पुस्तक को पढकर हैरान हो जाये .
जब वेद जीवन के हर पक्ष का विवेचन कर रहें है तो पति पत्नी के बीच होने वाली मीठी नोकझोंक का तरीका भी सिखाएगा, यहाँ मारने कूटने की बात नहीं आई है बंधु . गृहस्थ में पति पत्नी के बीच मान-मनुहार आदि जो रस्वर्धक सम्यक क्रियाये है उनका उल्लेख है. मारण का उपदेश नहीं है ताडन का उल्लेख है,और ताडन मारण-कूटन नहीं होता मेरे भाई .यहां 'काम' का अमर्यादित आवेग नहीं है। शास्त्रों में जो ६४ कलाओं का ज्ञान प्रदान किया गया है उनमे एक काम कला भी है. उसका अध्यन भी आवश्यक है, उसमें पति-पत्नी की इन सामान्य प्रीतिवर्धक चेस्ताओं का वर्णन है ,इसमें आप इतने क्यों उद्विग्न है. इतनी सामान्य सी बात आपके दिमाग में क्यों कर नहीं घुसी.भारतीय संस्कृति में प्रजवर्धन के लिए प्रजनन क्रिया को यज्ञ बतलाया है.

मैं उनकी बात समझ भी जाता लेकिन वेद में तो यह भी आया है -
जिस समय पिता ने अपनी कन्या ( उषा ) के साथ सम्भोग किया , उस समय पृथिवी के साथ मिलकर शुक्र का सेक किया अर्थात वीर्य सींचा , सुकृती देवों ने व्रतरक्षक ब्रह्म ( वास्तोष्पति वा रूद्र ) का निर्माण किया ।
ऋग्वेद 10-61-7

मुझे तो इस मन्त्र पर भी कोई ऐतराज़ नहीं है क्योंकि भाई अमित इसका भी निराकरण कर देंगे ।
मुझे इस बात पर ऐतराज़ है कि जब आप वेदों की शर्मनाक बातों के गूढ़ार्थ निकाल सकते हैं और उनसे सन्तुष्ट भी हो जाते हैं तो फिर पवित्र कुरआन की आयतों के सरल अर्थ को समझते समय आपकी अक्ल क्यों बदल जाती है ?
अब आपको उसमें कमियां कैसे दिखाई देने लगती हैं ?
आप जिस सहानुभूति से वेदों पुराणों और स्मृतियों को समझने का प्रयास करते हैं , पवित्र कुरआन को भी ऐसे सम्मानपूर्वक समझने का प्रयास कीजिये । सारे विवाद समाप्त हो जाएंगे ।
कल Pushpendra ji और Zeal ji ने भी पूछा था कि प्रेम कैसे फैलेगा ?
मैं कहता हूं कि दो पैमानों से नापना छोड़ दीजिए , प्रेम फैल जाएगा । अगर आप अपने ग्रन्थ का सम्मान चाहते हैं तो दूसरा भी तो यही चाहता है । अगर आप खुद को गद्दार कहलाना पसन्द नहीं करते तो दूसरा भी अपने लिए इस लफ़्ज़ को पसन्द नहीं करता ।
अगर आप बेजा इल्ज़ाम किसी पाक किताब या पूरी क़ौम पर लगाएंगे तो फिर दूसरी तरफ़ से जवाब आना तो लाज़िमी ही है । महाभारत से लेकर ताज़ा नक्सली हमले तक जब भी भाई ने भाई को मारा मुल्क और वतन का सिर्फ़ और सिर्फ़ नुक्सान ही हुआ है ।
हिन्दुओं की तरह हरेक जुर्म के गुनाहगार मुसलमानों में भी हैं । उन्हें पकड़ो और सज़ा दो लेकिन न किसी बेगुनाह हिन्दू को नक्सलवादी घोषित करके मारो और न ही किसी बेगुनाह मुसलमान को ।
आपकी तरह मैं भी समाज में इज़्ज़त से अपने प्यारे वतन की खि़दमत करते हुए जीना चाहता हूं और अपने बच्चों को भी यही सिखाना चाहता हूं । फिर क्यों आप मुझे और मेरी क़ौम को संदिग्ध बनाने पर तुले हुए हैं ?
क्या आप चाहते हैं कि मेरा बच्चा किसी दिन दंगे का शिकार होकर मर जाए ?
मैं तो आपके बच्चे के लिए ऐसा नहीं चाहता ।
अपने बच्चों की हिफ़ाज़त के लिए हमें कूटनीति को छोड़कर सत्य और न्याय को अपनाना ही होगा । हम सब ऋषियों की सन्तान हैं । इस पवित्र भूमि पर इसके अलावा हमारे लिए न तो कोई पथ है और न ही कोई उपाय ।
सत्य में ही मुक्ति है । इसी से प्रेम उपजेगा और इसी से भारत बनेगा विश्वगुरू । क़ौमों लड़ाना कोई सेवा नहीं है । हत्या चाहे जिस भी मनुष्य की हो लेकिन लहू महर्षि मनु का ही बहता है , मरता धरती का ही लाल है ।
आप अम्न का माहौल बनाने के लिए मिलकर जो कुछ भी करेंगे , मुझे सदा अपने साथ पाएंगे और मुझ जैसे हरेक मुसलमान को भी ।

35 comments:

वन्दे ईश्वरम vande ishwaram said...

वन्दे ईश्वरम ! एक सटीक सुझाव है

Aslam Qasmi said...

जिस समय पिता ने अपनी कन्या ( उषा ) के साथ सम्भोग किया , उस समय पृथिवी के साथ मिलकर शुक्र का सेक किया अर्थात वीर्य सींचा , सुकृती देवों ने व्रतरक्षक ब्रह्म ( वास्तोष्पति वा रूद्र ) का निर्माण किया । ऋग्वेद 10-61-7

yeh hamen scan karke bhejna

शेखचिल्ली का बाप said...

नेकी का रास्ता ही इंसानियत का रास्ता है , देर सवेर सभी को यह बात समझ में आ ही जाएगी , आप समझाते रहें लेकिन प्यार से जनाब ,

DR. ANWER JAMAL said...

शेख जी ! मैं तो प्यार ही फैलाने खड़ा हुआ हूँ लेकिन आप लोग भी तो कुछ सहारा लगायें .

Balbeer said...

lovely . appriciated .

विश्‍व गौरव said...

सत्य में ही मुक्ति है ।

SLEEM said...

चिंतनीय

Anonymous said...

समाज वेदों और कुरआन की गलीज़ दुनिया से बहुत आगे आ गया है और अब किसी को पुराने कचरे से से कुछ सीखने की ज़रुरत नहीं है. वेद भी कचरा हैं और कुरआन भी. ऐसे में हिन्दुओं की ये बात अच्छे है कि उनमें यह कहने का साहस है, जैसा कि यहाँ बहुतों ने कहा लेकिन कोई मुसलमान अपने कचरा कुरआन को कचरा नहीं कहेगा. उसके लिए वह अंतिम किताब जो ठहरी.

Anonymous said...

"जिस समय पिता ने अपनी कन्या ( उषा ) के साथ सम्भोग किया , उस समय पृथिवी के साथ मिलकर शुक्र का सेक किया अर्थात वीर्य सींचा , सुकृती देवों ने व्रतरक्षक ब्रह्म ( वास्तोष्पति वा रूद्र ) का निर्माण किया । ऋग्वेद 10-61-७

yeh hamen scan karke bhejna"

चूतिये असलम कासमी, उसे स्कैन करके क्या अपनी गांड में डालेगा? ये हिन्दू बकवास अब कोई हिन्दू नहीं मानता इसलिए उसे वहीं रहने दे जहाँ वह है, तू पहले अपनी कुरानी बकवास को अपने पिछवाड़े में घुसा ले.

Ayaz ahmad said...

nice post

Ayaz ahmad said...

स्त्री यदि मैथुन न करने दे तो उसे उस की इच्छा के अनुसार वस्त्र आदि दे कर उसके प्रति प्रेम प्रकट करे । इतने पर भी यदि वह मैथुन न करने दे तो उसे डंडे या हाथ से ( थप्पड़ , घंूसा आदि ) मारकर उसके साथ बलपूर्वक समागम करे । यदि यह भी संभव न हो तो ‘मैं तुझे शाप दे दूंगाा

सहसपुरिया said...

दो पैमानों से नापना छोड़ दीजिए , प्रेम फैल जाएगा । अगर आप अपने ग्रन्थ का सम्मान चाहते हैं तो दूसरा भी तो यही चाहता है । अगर आप खुद को गद्दार कहलाना पसन्द नहीं करते तो दूसरा भी अपने लिए इस लफ़्ज़ को पसन्द नहीं करता ।

सहसपुरिया said...

आप खुद को गद्दार कहलाना पसन्द नहीं करते तो दूसरा भी अपने लिए इस लफ़्ज़ को पसन्द नहीं करता

सहसपुरिया said...

AAP KISKO SAMJHA RAHE HAIN, UNKO JO SAMJHNE KO TAYYAR HI NAHI HAIN, IN LOGO KO TO ''BUDHIJIVI'' BANNE KA BHOOT CHADA HUA HAI.....
''GIRE'' HUE KI HARKAT TO AAP DEKH HI RAHE HAIN MUSALMAANO KA 'HAMDARD' BANNE PAR TULA HUA HAI.

Taarkeshwar Giri said...

Sriman ji Haridwar main to khuoob intjar karvaya aapne. Ab Saleem Khan saheb se mera number le karke hello hai hi kar lijiye.

MLA said...

Aap bahut aachha likhte hain Anwar Sahab. Mujhe lagta hai ki aisa aapka swabhav nahi hai, parantu jab log ulte-sidhe sawaal karte hain, tab hi aap jaise ko taisa wali kahawat ke hisaab se Jawab dete hain. Badhiya hai.

Jab koi naa maane to aise hi andaaz mein jawab dena zaroori hai.

Rashmig G said...

आपकी लेखनी आछी है, परन्तु आप बहुत कटु-भाषा का इस्तेमाल करते हैं. थोडा सा संयम से काम लें तो सबके लिए बहुत फायदे की बात है. आपकी तरह मेरा भी यही मानना है, कि वेद और कुरान एक ही परमेश्वर की भेजी हुई किताबें हैं. यह सब मैं अपने गुरूजी से सीखती आई हूँ, आशा करती हूँ, कि एक दिन सभी लोग इस सत्य को स्वीकार करते हुए प्यार और मोहब्बत के साथ प्रभु की भक्ति में लीन होंगे और आपस में प्रेम के साथ रहेंगे. अगर आज पूरा भारत यह बात मान लें तो सारे झगडे-फसाद ही समाप्त हो जाएं.


आपके इस लेख की हैडिंग मुझे बहुत पसंद आई.

आप जिस सहानुभूति से वेदों पुराणों और स्मृतियों को समझने का प्रयास करते हैं , पवित्र कुरआन को भी ऐसे सम्मानपूर्वक समझने का प्रयास कीजिये

HAR HAR MAHADEV said...

bhai ameet chachha to aapke hatha dho ker pichhe pad gaya ...he..??? kanhi ftava jaree naa karva de...

EJAZ AHMAD IDREESI said...

+100

Anonymous said...

चूतिये असलम कासमी, उसे स्कैन करके क्या अपनी गांड में डालेगा? ये हिन्दू बकवास अब कोई हिन्दू नहीं मानता इसलिए उसे वहीं रहने दे जहाँ वह है, तू पहले अपनी कुरानी बकवास को अपने पिछवाड़े में घुसा ले.

Anonymous said...

@ Anonymous - Please dont use abusive language,

and note that, some of the dumb and fool muslims have commented above, but they just copy and pasted few lines from article, so just pity on them, they dont have brains

Amit Sharma said...

जमाल साहब अपना यह कमाल कब तक दिखाते रहेंगे आप ? एक सामान्य सी बात एक शब्द है - "गवाक्ष" इसका मतलब किसी से भी पूछो, सबकोई कहेंगे खिड़की,विंडो आदि. क्यों जी साहब गाय की आँख क्यों नहीं गव+अक्ष =गवाक्ष होता है. अब पहले आप यह समझो की खिड़की को गवाक्ष क्यों कहतें है- इसलिए की पुराने समय में खिडकियों की डिजायन गाय की आँख की तरह बनायीं जाती थी. आपको और कहीं नहीं दिखे तो जयपुर आजाइएगा हमारे ही पुराने मकान में दिखा दूंगा साहब.
अब दुहिता शब्द को लीजिये साफ़ साफ़ मतलब है "दोहन करने वाली". भारतीय संस्कृति में कृषि व गौपालन का अति उत्तम स्थान रहा है। एक दो नहीं लाखों गाँव वाले इस देश में दूध दही की नदियाँ बहती थी। हर घर में स्त्रियाँ ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गृहनीयाँ आनंदसे घर के काम शुरू करती थी जिनमें गोशाला का काम सबसे पहले होता अब बड़ी स्त्रियाँ ( माताएं) तो गोबर वगैरा फेंकने जैसे भारी काम करती और परिवार की कन्या दूध दोहती थी जिससे दुहिता यानी दुहने वाली कहलाई. क्या करें अगर दुहिता शब्द सिर्फ और सिर्फ बेटी के लिए ही रूढ़ हो गया है तो ?

Amit Sharma said...

अब लेतें है ऋग्वेद के दसवें मंडल के इकसठवें सूत्र के दसवें मंत्र का आप द्वारा बतलाया गया अर्थ और वास्तविक अर्थ और सन्दर्भ भी . सन्दर्भ जरूरी है क्योंकि आप हर बात सन्दर्भ से हटाकर और अर्थ बदलकर प्रस्तुत कर रहें है.
आपने ऋग्वेद 10-61-7 का अर्थ इस प्रकार लिखा है -
जिस समय पिता ने अपनी कन्या ( उषा ) के साथ सम्भोग किया , उस समय पृथिवी के साथ मिलकर शुक्र का सेक किया अर्थात वीर्य सींचा , सुकृती देवों ने व्रतरक्षक ब्रह्म ( वास्तोष्पति वा रूद्र ) का निर्माण किया ।
ऋग्वेद 10-61-7

अब पहले तो यह मंत्र किस सन्दर्भ में आया है यह बता दूँ . इस 61वे सूक्त में वर्षा चक्र को समझाया जा रहा है की किस प्रकार सूर्य जल को अपनी किरणों से अवशोषित कर पुनः धरती पे बरसाता है.
इस सूक्त के पहले मंत्र से ही अर्थ पढ़ते चलते है फिर सातवें मंत्र जिसका अनर्थ जमाल साहब ने किया है,को और यथार्थ का अर्थ देखते हुए आगे के मंत्रो का भी अर्थ पढेंगे. मेरी सभी से प्रार्थना है की जिस मंत्र का उल्लेख जमाल साहब ने किया है को - अर्थ, सन्दर्भ और भाव सहित समझते हुए "दुहिता" शब्द के अर्थ को भी ध्यान में रखियेगा.

Amit Sharma said...

वेदवाणी का परिश्रम से अभ्यास करने वाला मनुष्य इस कठिन वेदज्ञान का कर्म और वाणी में बुद्धि द्वारा प्रयुक्त करके संघ आदि में उपदेश करता है. उसके माता पिता और पूजनीय जो कार्य करते है उस यज्ञ कार्य में वह पाक करने के दिन सप्त होताओं एन ब्रह्मा बनकर सिथित होता है.10-61-1

वह वेदज्ञ पुरुष ऋत्विज को देने के लिए धन को देने के लिए धन को बाँटता हुआ और कुबुद्धियों का दमन करता हुआ सारी पृथ्वी को यज्ञ वेदी बना देता है. तथा इसे परमार्थ के लिए समझकर त्वरित गमन और अत्यंत प्रत्युत्मन्नमति होकर अपने समर्त्य को सर्वर्त्र इस प्रकार बिखेरता है की वह यहीं आवे और मेघ के जल के सामान सर्वत्र फैले 10-61-2

ये सूर्य चन्द्र देवता के रूप में मान के सामान तीक्षण गति से उन यज्ञों में यजमान के कर्म से जाकर अपना भाग ग्रहण करतें है जिन यज्ञों में अधर्व्यु कर्म करने वाला अपने हाथ में सामग्री को लेकर अँगुलियों के द्वारा यज्ञ के देवता के निर्देश के साथ आहुति प्रदान करता है 10-61-3

जब उषा का समय होता है तब द्युलोक के पलक सूर्य और चन्द्रमा को लक्ष्य में रखकर मैं यजमान आहुति प्रदान से उनकी प्रशंशा करता हूँ. वे बिना हनी किये हमारे यज्ञों को प्राप्त होते है,आहुति भाग को ग्रहण करते है और वर्षा आदि से अन्न देने वाले और ज्ञान के विषय बनकर ज्ञान के साधन बनते है. 10-61-4

प्रजापति रूद्र=अग्नि की उत्पादन शक्ति विस्तार को प्राप्त होती है. उसके द्वारा उत्पादन शक्ति रूप तेज को दृढ और नर तथा देवों का हितकारी पार्थिव अग्नि अपने अन्दर ढंककर रख लेता है और वह तेज सर्वत्र फैलता है.वस्तुता यह तेज है जो द्युलोक से ग्रहण किया जाता है 10-61-5

Amit Sharma said...

आदित्य और उषा वा द्युलोक के परस्पर अभिगमन में आदित्य अरुण किरण नामक तेज को द्युलोक में फैलाता है और दिन की उत्पत्ति होती है. सूर्य का यह तेज द्युलोक में भरा पड़ा है 10-61-6

आदित्य जब द्युलोक उषा को अभिव्याप्त करता है तब पृथ्वी के साथ सांगत होकर आकाश में तेज को सिक्त करता है उससे दिन का प्रकाश और अग्नि आदि उत्पन्न होते है. इस अग्नि को वस्तोस्श्पति रूद्र=अग्नि कहा जाता है 10-61-7

वह वस्तोश्पत्ति अग्नि विध्युदबल के सामान यज्ञ में घृत आदि को प्राप्त कर यज्ञ देवों की और फेंकता है.एस सब को वह हम से दूर पहुंचता है 10-61-9

जो अग्नि दिन में और रात में भी आसानी से कार्य में नहीं लाया जा सकता है और जलने आदि का भय जिससे प्राणिमात्र को बना रहता है, जिसे बिना किसी आचादन के खुले हाथ कोई नहीं छू सकता,वही विधिवत प्रयोग में लाया जाकर यज्ञ में समिधा,अन्न आदि का प्राप्त करने वाला पदार्थों का धारक और संयोग विभाग का साधन बन जाता है 10-61-10

नवीन गति वाली अग्नि की लपटें सृष्टि नियम और उसके योग को बताती हुयी शीघ्र ही पृथ्वी पर आ जाती है. वे द्यु और पृथ्वी लोक में रहकर वायु को प्राप्त होती है और जल का दोहन करती है 10-61-11

ये अग्नि की लहरें नवीन धन के सामान जल की वाश्प्भूत बीज को सीचतें हुए आकाश से वृष्टि करतें है. तथा इस प्रकार ये तेरे लिए हे यजमान! पवित्र जल रूप धनको अमृत देने वाली गाय के दूध के समान देते है 10-61-11

Amit Sharma said...

क्या कोई बुद्धिमान जीव बता सकता है की इस पुरे प्रसंग में पिता सूर्य द्वारा अपनी पुत्री उषा के साथ सम्भोग किया. उषा सूर्य की पत्नी है जो सूर्य की किरणों को दुहकर सारे ब्रह्माण्ड में फैलाती है .

बताइए जमाल साहब दो पैमानों से कौन नाप रहा है ,कौन बैर फैला रहा है. आप खुद ही अपने आप को संदिघ्द बना रहे है और कोई नहीं, और हम तो आपकी पवित्र ग्रन्थ का भी पुरे सन्मान के साथ समझने का प्रयाश करतें है आप ही लोगों का आग्रह है की इसका एक एक शब्द जिस रूप में है उसी तरह अर्थ समझना होगा. आप बेहतर जानते है.

जमाल साहब इस तरह जहर उगलते हुए कुछ मार्मिक अपील करने का क्या फायदा जब से आपने ब्लॉग शुरू किया है तब से आप हिन्दू धर्मग्रंथों का अनर्गल अर्थ-अनर्थ किये जा रहें है बताइए शुरुवात किसने की. अब भी अगर आपमें मानवता विद्यमान है तो इस प्रकार कीचड़ मत उछालिये कोई भी आपके ब्लॉग से मालूम कर सकता है की शुरुवात कहाँ से हुई थी.
जमाल साहब ऐसा क्यों कर रहें है आप कृपया बतलाइए क्या मिल जाएगा आपको.

Amit Sharma said...

क्या कोई बुद्धिमान जीव बता सकता है की इस पुरे प्रसंग में पिता सूर्य द्वारा अपनी पुत्री उषा के साथ सम्भोग किया. उषा सूर्य की पत्नी है जो सूर्य की किरणों को दुहकर सारे ब्रह्माण्ड में फैलाती है .

बताइए जमाल साहब दो पैमानों से कौन नाप रहा है ,कौन बैर फैला रहा है. आप खुद ही अपने आप को संदिघ्द बना रहे है और कोई नहीं, और हम तो आपकी पवित्र ग्रन्थ का भी पुरे सन्मान के साथ समझने का प्रयाश करतें है आप ही लोगों का आग्रह है की इसका एक एक शब्द जिस रूप में है उसी तरह अर्थ समझना होगा. आप बेहतर जानते है.

जमाल साहब इस तरह जहर उगलते हुए कुछ मार्मिक अपील करने का क्या फायदा जब से आपने ब्लॉग शुरू किया है तब से आप हिन्दू धर्मग्रंथों का अनर्गल अर्थ-अनर्थ किये जा रहें है बताइए शुरुवात किसने की. अब भी अगर आपमें मानवता विद्यमान है तो इस प्रकार कीचड़ मत उछालिये कोई भी आपके ब्लॉग से मालूम कर सकता है की शुरुवात कहाँ से हुई थी.
जमाल साहब ऐसा क्यों कर रहें है आप कृपया बतलाइए क्या मिल जाएगा आपको.

Unknown said...

इस्लाम के शिया गुट के अनुसार मोहम्मद साहब अपना उत्तराधिकारी हज़रत अली को घोषित कर गए थे. लेकिन उनकी मृत्य के बाद हज़रत अली तो मोहम्मद साहब के कफ़न दफ़न में लगे रहे और कुछ कुटिल व प्रभावशाली लोगों ने आपस में मीटिंग करके हज़रत अबूबक्र को खलीफा बना दिया ताकि इस्लाम की सत्ता उनके हाथ में आ जाए और वे अपनी मनमानी कर सकें. शियों के अनुसार इस्लामी आतंकवाद ऐसे ही लोगों की देन है.

HAR HAR MAHADEV said...

Aneet bhai bilkool nanga kar diya chachhako..aap pandit jo thahare....chachhha jangho ke bichh haath daal ke baithaa he ..kanhi lingagr dikh nahee jaye...kapade se ragada huaa???

HAR HAR MAHADEV said...

vanha Ameet padhama chachhha ,..mene sochaa chachhaa kanhi dar nahee jave...aur chachhaa mere shahar mee aap kya kar rahe the?????

S.M.Masoom said...

Anwar jamal sb aap ka message ब्लॉग के ज़रिये हम दिलों के बीच मौजूद दीवारों को गिरा सकते हैं behtareen hai. Kattarwadi, na bane ager insaan aur ilem leta rahae toh hi yeh mumkin hai. Money power game main dharm ka istemaal ki logoon kae diloon main nafrat paida kerta hai aur loog ek doosrae ko samajhna hi nahin chatae.

DR. ANWER JAMAL said...

@प्यारे भाई गिरी जी ! आपका नम्बर मैं सलीम जी से लूं लेकिन सलीम जी का मोबाइल नं. मैं किससे लूं । आप अपना नं. मुझे ईमेल क्यों नहीं कर देते ?
आपने ईमेल एड्रेस लिया किस काम के लिए था ? आप तो सचमुच बहुत भोले हैं । यह सब भोले बाबा के ध्यान का प्रभाव मालूम होता है ।

Anonymous said...

क्या कोई बुद्धिमान जीव बता सकता है की इस पुरे प्रसंग में पिता सूर्य द्वारा अपनी पुत्री उषा के साथ सम्भोग किया. उषा सूर्य की पत्नी है जो सूर्य की किरणों को दुहकर सारे ब्रह्माण्ड में फैलाती है .

बताइए जमाल साहब दो पैमानों से कौन नाप रहा है ,कौन बैर फैला रहा है. आप खुद ही अपने आप को संदिघ्द बना रहे है और कोई नहीं, और हम तो आपकी पवित्र ग्रन्थ का भी पुरे सन्मान के साथ समझने का प्रयाश करतें है आप ही लोगों का आग्रह है की इसका एक एक शब्द जिस रूप में है उसी तरह अर्थ समझना होगा. आप बेहतर जानते है.

जमाल साहब इस तरह जहर उगलते हुए कुछ मार्मिक अपील करने का क्या फायदा जब से आपने ब्लॉग शुरू किया है तब से आप हिन्दू धर्मग्रंथों का अनर्गल अर्थ-अनर्थ किये जा रहें है बताइए शुरुवात किसने की. अब भी अगर आपमें मानवता विद्यमान है तो इस प्रकार कीचड़ मत उछालिये कोई भी आपके ब्लॉग से मालूम कर सकता है की शुरुवात कहाँ से हुई थी.
जमाल साहब ऐसा क्यों कर रहें है आप कृपया बतलाइए क्या मिल जाएगा आपको.

Anonymous said...

मेरी मा कहती है कि अनपण,अधपण से जाय्दा ठीक होता है पहले अच्छी तरह वेद पडे ..वेद मे इस तरह की बात होगी ये स्रिफ़ एक मुस्लिम ही कर सकता है

DR. ANWER JAMAL said...

@ आलोक मोहन जी ! ये अनुवाद भारत के शंकराच्र्यों द्वारा तो मान्यता प्राप्त है नहीं , पता नहीं कहाँ से तुक भिड़ा रहे हैं जनाब अमित शर्मा जी . क्या उषा यानि उजाला भी कभी गर्भवती होता है ?