सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Thursday, April 29, 2010
आस्तिक होने के लिए केवल ईश्वर का गुणगान करना ही काफ़ी नहीं है बल्कि उसकी बताई हुई ‘जीवन पद्धति‘ का पालन करना भी ज़रूरी है । Follow The Truth
हम सब एक समाज में रहते हैं । सभी सुख , कल्याण और आनन्द चाहते हैं । सभी अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा चाहते हैं । एक बेहतर समाज केवल तभी आकार ले सकता है जबकि उसके सदस्य बेहतर हों । समाज के सदस्य तभी बेहतर हो सकते हैं जबकि वे बेहतर नियमों की पाबन्दी करें ।
नियम तोड़ने वाले लोग कभी बेहतर समाज नहीं बना सकते और वे लोग भी कभी सफल नहीं हो सकते जो नियमों के तो पाबन्द हों लेकिन वे नियम ही समय और धन को बर्बाद करने वाले हों ।
आज बहुत लोग ईश्वर का नाम लेते हैं और समझते हैं कि वे आस्तिक हैं । आस्तिक होने के लिए केवल ईश्वर का गुणगान करना ही काफ़ी नहीं है बल्कि उसकी बताई हुई ‘जीवन पद्धति‘ का पालन करना भी ज़रूरी है ।
उदाहरणार्थ भाई अमित जी हैं । वे वेदादि ग्रन्थों को ईश्वरीय ज्ञान मानते हैं तो उनके लिए लाज़िम है कि वे उनका पालन करें । वेदानुसार अमित जी के पिताजी को 50 वर्ष की आयु होते ही नौकरी करने या खेती करने का अधिकार नहीं बचता । उन्हें घर पर रहने का अधिकार भी नहीं बचता । उनके लिए जंगल जाने का प्रावधान है । प्राचीन काल में यही किया जाता था । अब अगर अमित जी के या किसी भी भारतीय संस्कृति-धर्मवादी के पिताजी 50 वर्ष के बाद भी अपने ही घर पर जमे हुए हैं तो वे अपने धर्म का उल्लंघन और इसलाम का पालन कर रहे हैं ।
यह एक ग़लत बात है कि आप ऐलान करते हैं एक व्यवस्था पर आस्था रखने का और पालन करते हैं उस व्यवस्था का जिसकी कमियां बयान किये बिना आपका दिन नहीं गुज़रता । अगर आप अपने धर्म का पालन नहीं कर पा रहे हैं अगर आप अपने धर्म की परम्पराओं को व्यवहारिक नहीं पाते हैं तो खुलकर स्वीकार कीजिये । चोर दरवाज़े से इस्लाम के उसूल क्यों लेते हैं ?
यही बात उपासना पद्धति की है । भारत की आबादी आज लगभग 1 अरब 18 करोड़ है । क्या आज भारत की प्रति व्यक्ति आय इतनी है कि वे सभी दिन में 3 बार आग में घी-नारियल आदि खाद्य सामग्री जलाकर वैदिक रीति से प्रभु का नाम ले सकें ?
जबकि नमाज़ में लगभग न के बराबर ख़र्च है । इसे अमीर और ग़रीब सभी अदा कर सकते हैं ।
भाई मनुज जी ने बताया कि मुसलमान भी दहेज लेते हैं । इस बात को वे भी जानते हैं कि मुसलमानों में दहेज का वह रूप क़तई नहीं है जो कि हिन्दुओं में पाया जाता है ।हिन्दू भाईयों में तो विवाह की बातचीत ही इस कथन से आरम्भ होती है कि ‘हां जी , तो आप ब्याह में कितना ख़र्च कर सकते हैं ?‘
जबकि मुसलमानों में इतनी बात कहने वाला ज़लील करके घर से भगा दिया जाता है । अलबत्ता मुस्लिम राजपूतों में आज भी हिन्दुओं की तरह ही दहेज की गु्फ़्तगू बिना ज़िल्लत फ़ील किये की जाती है । हिन्दुओं और मुसलमानों में दहेज के चलन के बावजूद एक बुनियादी अन्तर यह है कि जब एक हिन्दू दहेज लेता या देता है तो वह वेदादि ग्रन्थों का पालन कर रहा होता है । श्री रामचन्द्र जी और शिव जी के ‘आदर्श विवाह‘ की नकल कर रहा होता है जबकि मुसलमान जब दहेज ले या दे रहा होता है वह पवित्र कुरआन का उल्लंघन कर रहा होता है । वह मानवता के आदर्श पैग़म्बर साहब से आचरण से दूर होकर ही यह सब कर रहा होता है । यही हाल मुसलमानों में दूसरी कुरीतियों का है ।
मनुज जी ने कहा कि मुसलमान अपनी समस्याओं के हल के लिए 1500 साल पीछे की ओर देखता है जबकि हिन्दू आगे की ओर देखता है ।
बेचारा हिन्दू पीछे क्या देखेगा ?
उसके पास पीछे देखने के लिए न कोई आदर्श व्यवस्था है और न ही कोई आदर्श व्यक्तित्व । ऐसा नहीं है कि यहां आदर्श मानव हुए ही नहीं । बिल्कुल हुए हैं और एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों हज़ारों हुए हैं लेकिन बाद के लोगों ने उनका जीवन चरित्र न सिर्फ़ यह कि सुरक्षित नहीं रखा बल्कि बिगाड़ और दिया । अगर हीरा 1500 वर्ष गुज़रने के बाद भी अपनी क़ीमत नहीं खोता , अगर पहिया हज़ारों साल गुज़रने के बाद भी अप्रासंगिक नहीं होता तो फिर बराबरी , भाईचारे और ब्याजमुक्त व्यवस्था के सिद्धान्त कैसे अप्रासंगिक हो सकते हैं ?हालात के उतार चढ़ाव के मद्दे नज़र इस्लाम में मुज्तहिद आलिम और राष्ट्राध्यक्ष को ‘ज्ञान‘ के आलोक में समयानुकूल फ़ैसले लेने का पूरा अधिकार है । काल परिस्थिति और मानव स्वभाव के कारण आने वाले हरेक विकार को दूर करने के लिए समय समय पर मुजद्दिद आलिम हुए हैं और सृष्टि के अंत तक होते रहेंगे ।
समस्याओं का हल जहां है मुसलमान वहीं देखता है । आपका वर्तमान बनाने वाले पिछले काल के हिन्दू सुधारकों ने भी वहीं देखा था । और जो लोग आज कहीं और देख रहे हैं वे समस्या को हल नहीं कर रहे हैं बल्कि समस्या को और ज़्यादा बढ़ा रहे हैं । तसलीमा नसरीन , फ़िरदौस ख़ान और मुज़्फ्फ़र हुसैन जी ने किस नगर से कितनी कुरीतियां दूर कीं ? समाज को उनकी देन बताइये तो सही ।
हमारा मक़सद उन उसूलों की खोज होना चाहिये जिन से समाज बेहतर बन सके । अब चाहे वे आगे से मिलें या पीछे से । इसलाम इससे रोकता नहीं है । इसलाम का नियम है कि हिकमत अर्थात तत्वदर्शिता की बात जहां से भी मिले ले ली जाये । भारत को बेहतर और सशक्त बनाने के लिए हमें नफ़रत का ख़ात्मा करना होगा और अपने दिमाग़ को बेहतर विचारों के लिए खोलना होगा । जो बेहतर है वही पहले भी धर्म था और आज भी वही धर्म है । जो निकृष्ट है वह न पहले कभी धर्म था और न ही आज उसे धर्म कहा जा सकता है ।
नियम तोड़ने वाले लोग कभी बेहतर समाज नहीं बना सकते और वे लोग भी कभी सफल नहीं हो सकते जो नियमों के तो पाबन्द हों लेकिन वे नियम ही समय और धन को बर्बाद करने वाले हों ।
आज बहुत लोग ईश्वर का नाम लेते हैं और समझते हैं कि वे आस्तिक हैं । आस्तिक होने के लिए केवल ईश्वर का गुणगान करना ही काफ़ी नहीं है बल्कि उसकी बताई हुई ‘जीवन पद्धति‘ का पालन करना भी ज़रूरी है ।
उदाहरणार्थ भाई अमित जी हैं । वे वेदादि ग्रन्थों को ईश्वरीय ज्ञान मानते हैं तो उनके लिए लाज़िम है कि वे उनका पालन करें । वेदानुसार अमित जी के पिताजी को 50 वर्ष की आयु होते ही नौकरी करने या खेती करने का अधिकार नहीं बचता । उन्हें घर पर रहने का अधिकार भी नहीं बचता । उनके लिए जंगल जाने का प्रावधान है । प्राचीन काल में यही किया जाता था । अब अगर अमित जी के या किसी भी भारतीय संस्कृति-धर्मवादी के पिताजी 50 वर्ष के बाद भी अपने ही घर पर जमे हुए हैं तो वे अपने धर्म का उल्लंघन और इसलाम का पालन कर रहे हैं ।
यह एक ग़लत बात है कि आप ऐलान करते हैं एक व्यवस्था पर आस्था रखने का और पालन करते हैं उस व्यवस्था का जिसकी कमियां बयान किये बिना आपका दिन नहीं गुज़रता । अगर आप अपने धर्म का पालन नहीं कर पा रहे हैं अगर आप अपने धर्म की परम्पराओं को व्यवहारिक नहीं पाते हैं तो खुलकर स्वीकार कीजिये । चोर दरवाज़े से इस्लाम के उसूल क्यों लेते हैं ?
यही बात उपासना पद्धति की है । भारत की आबादी आज लगभग 1 अरब 18 करोड़ है । क्या आज भारत की प्रति व्यक्ति आय इतनी है कि वे सभी दिन में 3 बार आग में घी-नारियल आदि खाद्य सामग्री जलाकर वैदिक रीति से प्रभु का नाम ले सकें ?
जबकि नमाज़ में लगभग न के बराबर ख़र्च है । इसे अमीर और ग़रीब सभी अदा कर सकते हैं ।
भाई मनुज जी ने बताया कि मुसलमान भी दहेज लेते हैं । इस बात को वे भी जानते हैं कि मुसलमानों में दहेज का वह रूप क़तई नहीं है जो कि हिन्दुओं में पाया जाता है ।हिन्दू भाईयों में तो विवाह की बातचीत ही इस कथन से आरम्भ होती है कि ‘हां जी , तो आप ब्याह में कितना ख़र्च कर सकते हैं ?‘
जबकि मुसलमानों में इतनी बात कहने वाला ज़लील करके घर से भगा दिया जाता है । अलबत्ता मुस्लिम राजपूतों में आज भी हिन्दुओं की तरह ही दहेज की गु्फ़्तगू बिना ज़िल्लत फ़ील किये की जाती है । हिन्दुओं और मुसलमानों में दहेज के चलन के बावजूद एक बुनियादी अन्तर यह है कि जब एक हिन्दू दहेज लेता या देता है तो वह वेदादि ग्रन्थों का पालन कर रहा होता है । श्री रामचन्द्र जी और शिव जी के ‘आदर्श विवाह‘ की नकल कर रहा होता है जबकि मुसलमान जब दहेज ले या दे रहा होता है वह पवित्र कुरआन का उल्लंघन कर रहा होता है । वह मानवता के आदर्श पैग़म्बर साहब से आचरण से दूर होकर ही यह सब कर रहा होता है । यही हाल मुसलमानों में दूसरी कुरीतियों का है ।
मनुज जी ने कहा कि मुसलमान अपनी समस्याओं के हल के लिए 1500 साल पीछे की ओर देखता है जबकि हिन्दू आगे की ओर देखता है ।
बेचारा हिन्दू पीछे क्या देखेगा ?
उसके पास पीछे देखने के लिए न कोई आदर्श व्यवस्था है और न ही कोई आदर्श व्यक्तित्व । ऐसा नहीं है कि यहां आदर्श मानव हुए ही नहीं । बिल्कुल हुए हैं और एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों हज़ारों हुए हैं लेकिन बाद के लोगों ने उनका जीवन चरित्र न सिर्फ़ यह कि सुरक्षित नहीं रखा बल्कि बिगाड़ और दिया । अगर हीरा 1500 वर्ष गुज़रने के बाद भी अपनी क़ीमत नहीं खोता , अगर पहिया हज़ारों साल गुज़रने के बाद भी अप्रासंगिक नहीं होता तो फिर बराबरी , भाईचारे और ब्याजमुक्त व्यवस्था के सिद्धान्त कैसे अप्रासंगिक हो सकते हैं ?हालात के उतार चढ़ाव के मद्दे नज़र इस्लाम में मुज्तहिद आलिम और राष्ट्राध्यक्ष को ‘ज्ञान‘ के आलोक में समयानुकूल फ़ैसले लेने का पूरा अधिकार है । काल परिस्थिति और मानव स्वभाव के कारण आने वाले हरेक विकार को दूर करने के लिए समय समय पर मुजद्दिद आलिम हुए हैं और सृष्टि के अंत तक होते रहेंगे ।
समस्याओं का हल जहां है मुसलमान वहीं देखता है । आपका वर्तमान बनाने वाले पिछले काल के हिन्दू सुधारकों ने भी वहीं देखा था । और जो लोग आज कहीं और देख रहे हैं वे समस्या को हल नहीं कर रहे हैं बल्कि समस्या को और ज़्यादा बढ़ा रहे हैं । तसलीमा नसरीन , फ़िरदौस ख़ान और मुज़्फ्फ़र हुसैन जी ने किस नगर से कितनी कुरीतियां दूर कीं ? समाज को उनकी देन बताइये तो सही ।
हमारा मक़सद उन उसूलों की खोज होना चाहिये जिन से समाज बेहतर बन सके । अब चाहे वे आगे से मिलें या पीछे से । इसलाम इससे रोकता नहीं है । इसलाम का नियम है कि हिकमत अर्थात तत्वदर्शिता की बात जहां से भी मिले ले ली जाये । भारत को बेहतर और सशक्त बनाने के लिए हमें नफ़रत का ख़ात्मा करना होगा और अपने दिमाग़ को बेहतर विचारों के लिए खोलना होगा । जो बेहतर है वही पहले भी धर्म था और आज भी वही धर्म है । जो निकृष्ट है वह न पहले कभी धर्म था और न ही आज उसे धर्म कहा जा सकता है ।
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41 comments:
Wah Anwar Sahab, Kamal ka lekh Likha hai. Very Good
हमारा मक़सद उन उसूलों की खोज होना चाहिये जिन से समाज बेहतर बन सके । अब चाहे वे आगे से मिलें या पीछे से । इसलाम इससे रोकता नहीं है । इसलाम का नियम है कि हिकमत अर्थात तत्वदर्शिता की बात जहां से भी मिले ले ली जाये । भारत को बेहतर और सशक्त बनाने के लिए हमें नफ़रत का ख़ात्मा करना होगा और अपने दिमाग़ को बेहतर विचारों के लिए खोलना होगा । जो बेहतर है वही पहले भी धर्म था और आज भी वही धर्म है । जो निकृष्ट है वह न पहले कभी धर्म था और न ही आज उसे धर्म कहा जा सकता है
"उदाहरणार्थ भाई अमित जी हैं । वे वेदादि ग्रन्थों को ईश्वरीय ज्ञान मानते हैं तो उनके लिए लाज़िम है कि वे उनका पालन करें । वेदानुसार अमित जी के पिताजी को 50 वर्ष की आयु होते ही नौकरी करने या खेती करने का अधिकार नहीं बचता । उन्हें घर पर रहने का अधिकार भी नहीं बचता । उनके लिए जंगल जाने का प्रावधान है"
Dr. Sahab Vedon mein kahan likha hai ki 50 Saal ki aayu ke bad Jangal mein rehna chahiye??
aise Vedon me kabhi bhi likha hua nahi ho sakta hai. Kripya Soch-Samajh kar likhiye
Main yeh to maan sakta hun ki Islam ke niyam Insaniyat ke liye achhe hai, parantu yeh kehna ki vedon ke niyam achhe nahi hai, bilkul galat hai.
Niyam chahe Vedon ke ho athva Kuran ke, Sab ke sab manav jati ke uddhar ke liye banaye gae hai.
आज बहुत लोग ईश्वर का नाम लेते हैं और समझते हैं कि वे आस्तिक हैं । आस्तिक होने के लिए केवल ईश्वर का गुणगान करना ही काफ़ी नहीं है बल्कि उसकी बताई हुई ‘जीवन पद्धति‘ का पालन करना भी ज़रूरी है ।
उदाहरणार्थ भाई अमित जी हैं । वे वेदादि ग्रन्थों को ईश्वरीय ज्ञान मानते हैं तो उनके लिए लाज़िम है कि वे उनका पालन करें । वेदानुसार अमित जी के पिताजी को 50 वर्ष की आयु होते ही नौकरी करने या खेती करने का अधिकार नहीं बचता । उन्हें घर पर रहने का अधिकार भी नहीं बचता । उनके लिए जंगल जाने का प्रावधान है । प्राचीन काल में यही किया जाता था । अब अगर अमित जी के या किसी भी भारतीय संस्कृति-धर्मवादी के पिताजी 50 वर्ष के बाद भी अपने ही घर पर जमे हुए हैं तो वे अपने धर्म का उल्लंघन और इसलाम का पालन कर रहे हैं ।
Achha likha he
"जबकि मुसलमान जब दहेज ले या दे रहा होता है वह पवित्र कुरआन का उल्लंघन कर रहा होता है । वह मानवता के आदर्श पैग़म्बर साहब से आचरण से दूर होकर ही यह सब कर रहा होता है । यही हाल मुसलमानों में दूसरी कुरीतियों का है"
Sahi Kaha aapne!!!!!!!!!!!!
@श्रीमान संजीव गुप्ता जी ये बात सबको पता है की हिन्दू धर्म आश्रमों में विभक्त haiऔर पचास साल की उम्र के बाद वान्परास्थ ashram hai
दहेज ऋगवेद (प्रथम मंडल, सूक्त 125) में आता है कि राजा स्वनय ने अपनी पुत्री के विवाह के अवसर पर अपने दामाद कक्षिवत को आभूषणों से अलंकृत 10 कन्याएं, 10 रथ, चार चार के दल में चलने वाले सुदृढ शरीर के घोडे, धन, धातु के बरतन, बकरियां, भेडें, 100 निष्क् (कंठाभूषण/स्वर्ण मुद्रा), 1,060 गौएं और एक सौ बैल दिए. (देखें, ऋगवेद1/125/1 और 1/126/2-3 पर सायणभाष्य, तथा शौनक ऋषि कृत बृहत देवता 3/146-150)
ब्लागवाणी तू एग्रीगेटर है अनवर जमाल के मामले में तू एग्री कटर अर्थात हाटलिस्ट से इनकी पोस्ट को हटाने को हमेशा तत्पर न रहा कर
हमारा मक़सद उन उसूलों की खोज होना चाहिये जिन से समाज बेहतर बन सके ।
@ Mr.Manuj
आपने मुझसे पूछा है की
"@ महक ,आप मेरी बातों से कब सहमत नहीं थे कृपया बताएं"
मेरे दोस्त आप शायद वो post भूल गए हैं जिस post से आपका इस वेद-कुरान ब्लॉग पर पदार्पण हुआ था .उसका लिंक मैं आपको दे देता हूँ
http://vedquran.blogspot.com/2010/04/resolution.html
इसमें आपने मुझसे और जमाल भाई से कुछ सवालों के जवाब मांगे थे.जमाल भाई का पता नहीं लेकिन मैंने आपके हर सवाल का उत्तर दिया था और आपसे सवाल किया भी था लेकिन आपने उसके जवाब ना वहां दिए और ना यहाँ.
मैं जानता था की आपके पास इनका कोई जवाब नहीं होगा इसलिए मैं आपसे बार-२ इनके जवाब मांगकर आपको शर्मिंदा नहीं करना चाहता था और तभी मैंने "रात गयी, बात गयी" वाले सिद्धांत को follow करते हुए अपने किसी भी comment में आपसे दोबारा जवाब नहीं मांगे .मैंने सोचा था की अपना ही भाई है, समझ जाएगा, थोडा जोश ज्यादा है और होश काफी कम .लेकिन अब फिर आपने मुझे आपको आइना दिखाने पर मजबूर कर दिया है.आप जान न चाहते हैं ना की आपकी किन बातों से मैं सहमत नहीं था तो लीजिये एक-२ कर के एक बार फिर आपके सामने रख रहा हूँ ,इनके ज़वाब दे देना फिर आगे बात करते हैं
@ मनुज
1.
आपका प्रश्न -
@ महक
जिन बातों को लेकर आप डा जमाल का समर्थन कर रहे है मसलन गर्भाधान संस्कार, मुझे बताईये कितने प्रतिशत हिंदू इस प्रकार से गर्भाधान करते हैं. सिर्फ एक उदहारण दे दीजीये जो आपने स्वयं देखा हो!!नहीं दे सकते ना!!!
मेरा उत्तर -
@मनुज
बात "गर्भाधान संस्कार" की तो इसके जवाब में आपसे ये कहना चाहूंगा की जब वे इस प्रकार से गर्भाधान करते ही नहीं हैं फिर उन्हें इसके विरोध से problem क्या है ? Problem तो उन्हें होनी चाहिए जो इसे follow करते हैं .
आप इस बात को बेहतर तरीके से समझ पाएं इसके लिए एक example देता हूँ .
"अगर मैं कहता हूँ की जो लोग शराब पीते हैं उन्हें जेल में बंद कर देना चाहिए तो इससे problem तो उन लोगों को होनी चाहिए जो शराब पीते हैं .जो नहीं पीते उनका इससे जब कुछ लेना -देना ही नहीं है तो उन्हे क्यों परेशानी हो रही है ."
उम्मीद है इससे आप बेहतर तरीके से समझे होंगे .
2.
इसके बाद आपने जो राज ठाकरे को defend करने का प्रयास किया था मैं उससे भी बिलकुल सहमत नहीं था और ना ही आज हूँ ,उसका जवाब मैंने आपको कुछ यूँ दिया था लेकिन आपकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
1)
आपका प्रश्न -
क्या ठाकरे ने कभी महाराष्ट्र को भारत से अलग करने की मांग उठाई ?
मेरा उत्तर-
मेरे भाई आप शायद ये भूल गए हैं की अभी हाल ही में राज ठाकरे ने एक statement दिया था जिसमे उसने कहा था की
"अगर भारत सरकार ने मराठियों के प्रति अपना नजरिया ठीक नहीं किया तो फिर मराठियों के सब्र का बाँध टूट सकता है और वे महाराष्ट्र को भारत से अलग करने की मांग कर सकते हैं फिर मैं भी उन्हें नहीं रोक पाऊँगा "
इस statement में साफ़ साफ़ दिख रहा है की किस प्रकार वो मराठियों को भड़काने और भारत को डराने की कोशिश कर रहा है .
आपका प्रश्न -
2 )क्या उनकी पार्टी शिवसेना भारत के शत्रु पाकिस्तान से पैसा पाती है और भारत के खिलाफ विष-वमन करती है ?
मेरा उत्तर-
ये तो और serious बात है की उनकी पार्टी भारत से पैसा पाती है और भारत के ही खिलाफ विष-वमन करती है , भारत को ही टुकड़ों में बाटनें की कोशिश करती है और हर issue को "मराठी vs उत्तर भारतीय" बना देती है जिससे देश की अखंडता और एकता को गहरा नुक्सान पहुँचता है मतलब जिस थाली में खाती है उसी में छेद करती है .
आपका प्रश्न -
३)क्या शिवसेना ने किसी भी साम्प्रदायिक दंगे में पहल की ? (मुंबई दंगे में पहल मुस्लिमो की तरफ से की गयी थी)
मेरा उत्तर-
आपके इस point से सहमत हूँ .जो पहल करता है फिर उसे परिणाम भुगतने के लिए भी तैयार रहना चाहिए .
आपका प्रश्न-
4)क्या ठाकरे ने भारत के राष्ट्र-ध्वज को जलाने का आवाहन किया ?
मेरा उत्तर-
उन्होंने जब भारत को ही "मराठी vs north indians" में divide कर दिया है तो फिर अब क्या बचता है .और उनके बर्ताव से तो ऐसा भी लगता है की किसी दिन वे भारत के राष्ट्र-ध्वज को जलाने का आवाहन भी कर सकते हैं , वो जब अपनी बहुत सी गंभीर हरकतों पर ही शर्मिंदा नहीं हैं तो ऐसा नहीं लगता की इसका भी उन्हें कोई अफ़सोस होगा .
आपका प्रश्न-
5)मुंबई दंगों के बाद अब मुंबई में हिंदू और मुस्लिमो की आबादी का आपात देखिये और कश्मीर में अब हिंदू-मुस्लिम आबादी का अनुपात देखिये !!
मेरा उत्तर -
इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ की कश्मीर से एक सुनियोजित षड़यंत्र के अनुसार हिन्दुओं को बेघर किया गया है .
उम्मीद है अब आप समझ गयें होंगे की आपकी किन बातों से मैं बिलकुल सहमत नहीं हूँ लेकिन अब दोबारा मुझे याद दिलाने की जरूरत न पड़े, जनाब कभी खुद भी पढ़ लिया कीजिये की किसने आपके सवालों के क्या जवाब दिए हैं
@ कैरान्वी साहब
बहुत-२ शुक्रिया कासमी साहब की book का link देने के लिए
मैंने इसे खोलकर पूरा पढ़ा है और यकीन मानिए इसमें जो प्रश्न उठाये गए हैं वही बचपन से मेरे मन में भी उठते थे.मुझे खुद भी ये सही नहीं लगता था की जब मुझे बताया जाता था की जो लोग इस जन्म में कष्टों को भोग रहें हैं ये उन्हें उनके पूर्वजन्म का फल मिल रहा है.ऐसा कैसे हो सकता है की जिस व्यक्ति को उसके बुरे कर्मों की सज़ा मिल रही है उसे सज़ा मिलते समय ये भी ना बताया जाए की आखिर उसे किस गुन्नाह की सज़ा मिल रही है, उसने पिछले जन्म में ऐसे कौन से बुरे कर्म किये थे जिसकी सज़ा उसे दी जा रही है .सच में ये न्याय नहीं कहा जा सकता और वो परमपिता परमात्मा अन्याय कभी कर नहीं सकता . ऐसी ही बहुत सी बातें हैं जिनका जवाब मुझे अब तक किसी ने नहीं दिया है .इनमे से कुछ बातें मैंने भाई अमित शर्मा जी के समक्ष भी रखीं थी मसलन
"----------------------------------‘‘मनुस्मृति’’ का पहला पन्ना ही खोलिये तो आपको बुनियादी बात जो मिलेगी वह यह है कि इन्सानी समाज चार खानों में आवंटित है पहला ब्राह्मण है जिसका रूत्बा सबसे ऊपर है, दूसरा क्षत्रिय, तीसरा वेश्य और चैथा शूद्र है ।
शुद्र सब से नीचे है और ऊपर के तीनों वर्गो की सेवा करना उसका परम कर्तव्य है ।
इस पुस्तक के मशहूर हिन्दी अनुवादक ‘‘आचार्य वाद्रायण’’ पहले अध्याय के दूसरे श्लोक पर टिप्पणी करते हुए लिखते हैं -
वेद का वचन है कि ‘‘भगवान’’ ने अपने मुहं से ब्राह्मण को भुजाओं से क्षत्रिय को जांघों से वेश्य को और पैरों से शूद्र को पैदा किया है ।
-(मनुस्मृति पृष्ठ 7, टीकाकार आचार्य वादरायण, डायमंड पब्लिकेशन, मेरठ)
मनु स्मृति के अनुसार ब्राह्मण भगवान के सिर से उत्पन्न है, इसलिए वह सब से ऊपर है अन्य उसके बाद क्रमशः यहाँ तक कि शूद्र को इन्तिहाई जिल्लत का जीवन जीने पर मजबूर किया गया है। वह न तो शिक्षा प्राप्त कर सकता है और न ही धार्मिक कार्य कर सकता है। श्रीराम ने शंबूक नामी शूद्र का वध केवल इसलिए कर दिया था कि उसने शूद्र होते हुए भी जप-तप करने का दुस्साहस किया था ।
यहाँ पर न्याय व्यवस्था में भी सब के लिए अलग-अगल कानून है समान जुर्म होने पर ब्राह्मण के लिए हल्की से हल्की सजा, क्षत्रिय और वेश्य के लिए अपेक्षाकृत कठोर और शूद्र के लिए कठोर से कठोर सजा का विधान है। मसलन कहा गया है -
शूद्र अगर आरक्षित महिला से संभोग करे तो उसका वध किया जाए या उसकी मूत्रेन्द्रि काट दी जाय, क्षत्रिय या वेश्य करे तो आर्थिक दंड दिया जाए और ब्राह्मण करे तो उसके सर के बाल मुंडवाये जाए। -(मनुस्मृति अध्याय 8, श्लोक 374 से 379)
मनुस्मृति में यह ऊंच-नीच जीवन से मृत्यु तक चलती है यहाँ तक कि चारो वर्णो के पार्थिव शरीर को शमशान घाट ले जाने के लिए अलग-अलग रास्तों से ले जाने का विधान है । (देखें मनुस्मृति अध्याय 5, श्लोक 95)------------------------------"
मैंने भी ये सवाल उठाया था की आखिर किसी के जन्म के साथ ही हम उसमे ये पवित्र अपवित्र का भेद-भाव,मैं श्रेष्ठ हूँ , मैं सबसे ऊपर हूँ aur तुम सबसे नीचे हो आदि आदि. आप इन्हें यहाँ मेरे comments में देख सकते हैं .
http://vedquran.blogspot.com/2010/04/save-yourself.हटमल
मैंने भी इन बातों को भाई अमित शर्मा जी के समक्ष रखा था और उनसे इन्हें justify करने के लिए कहा था क्योंकि वो वेदों या किसी भी धार्मिक किताब में कोई भी बात अप्रासंगिक, गलत एवं बकवास नहीं मानते .लेकिन ना तो उनकी ही तरफ से ना ही किसी और वेदों के महान ज्ञाता के द्वारा इन जिज्ञासाओं को शांत किया गया .मैं फिर से सारे विद्वानों से निवेदन करता हूँ कृप्या इन शंकाओं का जल्द से जल्द समाधान करें अन्यथा सत्य को स्वीकार करें की प्रत्येक धार्मिक किताबों में बहुत सी बातें गलत, अप्रासंगिक, विकारयुक्त ,बकवास एवं मनुष्य की उन्नति में बाधक हैं और ये कुरीतियाँ हैं जिन्हें की जल्द से जल्द दूर किया जाना चाहिए क्योंकि इसमे हमारा ही भला है.
इसी प्रकार के कई और महत्त्वपूर्ण प्रश्न इस लेख में उठाये गए हैं, कृप्या विद्वान् जन इनका भी समाधान करें
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सामान्य रूप से माना जाता है कि माँस भक्षण हिन्दू धर्म में पाप है मनुस्मृति में भी इसके स्पष्ट प्रमाण मौजूद हैं अध्याय 5 के श्लोक 51 में मांस भक्षण के गुनाहगारों में मांस काटने वाले से लेकर परोसने वाले और खाने वाले को पाप लगने की बात कही गई है। परन्तु विचित्र बात यह है कि इसी अध्याय के श्लोक 30 में कहा गया है -
भक्ष्य पदार्थो को प्रति दिन खाने से भक्षक को किसी प्रकार का दोष नहीं लगता, (5 - 30)
इसी अध्याय के श्लोक 27 मे है -
ब्राह्मणों को माँस भोजन खिलाने की इच्छा होने पर विवेक शील द्विज को मांस को प्रोक्षण विधि से शुद्ध कर के खिलाना चाहिये, और स्वयं भी खाना चाहिये । (5-27)
इसी अध्याय के श्लोक 32 में है -
खरीदे गये, मार कर लाये गये अथवा किसी अन्य द्वारा उपहार आदि के रूप में दिये गये किसी पशु के मांस को देवों और पितरों को समर्पित करने तथा उनका अर्चन पूजन करने के उपरान्त प्रसाद के रूप में मांस को खाने वाला दोषग्रस्त नहीं होता (5-32)
इसी अध्याय के श्लोक 36 में है -
मन्त्रों द्वारा पशुओं को परिष्कृत करने के उपरान्त ही उनका वध करना और मांस भक्षण करना चाहिए यही प्राचीन परम्परा है और यही वेद की आज्ञा है। (5-36)
अध्याय 3 में मांस द्वारा पितरोें को श्राद्ध करने सम्बन्धी कहा गया है
विभिन्न पशु-पक्षियों के मांस से श्राद्ध करने पर पितरों की तृप्ति-सन्तुष्टि की अवधि का उल्लेख करते हुए मनु जी बोले महऋषियांे ! मनुष्य के पितर विधि विधान से श्राद्ध करने पर मछली के मांस से दो महीने तक हिरन के मांस से तीन महीने तक, मेंढे के मांस से चार महीने तक, पक्षियों के मांस से पांच महीने तक, बकरे के मांस से छः महीने तक, मृग के माँस से नौ महीने तक, ऐण मृग के मांस से आठ महीने तक, रुरुमृग के मांस से नौ महीने तक, शूकर के मांस से दस महीने तक भैंसे तथा खरगोश और कछुए के मांस से ग्यारह महीने तक तृप्त सन्तुष्ट रहते हैं । इस प्रकार श्राद्ध में उपयुक्त पशु पक्षियों का मांस परोस कर पितरोें को दीर्घकाल तक तृप्त सन्तुष्ट बनाये रखना चाहिए।
- (अध्याय 3, श्लोक 269, 270, 271)
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उक्त प्रकार के श्लोकों से क्या समझा जाए? यही न कि एक और मांस भक्षण निषेध है और दूसरी ओर माँस भक्षण के न केवल आदेश ही हैं अपितु मांस द्वारा श्राद्ध करने से पितर दीर्घकाल तक तृप्त बने रहते हैं ।
इसी प्रकार कुछ और प्रश्न इसमे उठाये गए हैं जो सत्य के काफी करीब हैं , आप महा ग्यानी लोग कृपया इनका भी हल करें
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धर्म यद्यपि कईं हैं परन्तु परलोक के बारे में मुख्यतः दो ही विचारधाराएं पाई जाती हैं। एक वह जिसे हिन्दू धर्म पेश करता है, अर्थात आवागमन का सिद्धान्त। और दूसरा वह, जिसे इस्लाम पेश करता है, यानी यह कि, मरने के बाद दोबारा से कोई इस दुनिया में नहीं आयेगा। अब वह अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग में जायेगा। या नरक में, उसने अगर दुनिया में रहते धर्म के बताये मार्ग पर जीवन व्यतीत किया है तो उसकी आत्मा के लिये स्वर्ग का आराम है, वरना नरक की भयानक यातनाएं।
अब यह प्रश्न आता है कि इन दोनों विचारधाराओं में से किसे सही कहें, और किसे गलत ठहराएं ।
यद्यपि विज्ञान इस विषय पर मौन है। परन्तु सच्चाई को जानने के कुछ और भी पैमाने हैं और वे हैं, बुद्धि और विवेक आदि।
इस सन्दर्भ में आवागमन के सिद्वान्त पर कुछ महत्वपूर्ण तथ्य प्रश्न चिह्न लगाते हैं। जो इस प्रकार हैं -
1. सांसारिक इतिहास के वैज्ञानिक अध्ययन से साबित हो चुका है कि इन्सान से पहले अन्य जीव जन्तु, कीट पतंगों और वनस्पतियों की उत्पत्ति हुई, प्रश्न यह है कि ये वस्तुएं अगर मनुष्य के बुरे कर्मो का परिणाम हैं तो मनुष्य से पहले इनकी उत्पत्ति किस के बुरे कर्मो का परिणाम था ?
2. अन्य जीव जन्तु एवं वनस्पति इन्सान की एसी आवश्यकताएं हैं कि अगर ये न रहें तो इन्सानी जीवन कठिन हो जाए, अगर ये इन्सान के बुरे कर्मो का परिणाम हैं तो मानना होगा कि इन सब वस्तुओं के अस्तित्व को बनाये रखने के लिये बुरे कर्म भी जरूरी हैं, जो धर्म के विपरीत हैं।
3. कलयुग में इन्सानी आबादी का बढ़ना भी इस ख्याल का खंडन करता है। स्पष्ट है कि अगर अन्य वस्तुएं इन्सान के बुरे कर्मो का परिणाम होती हैं तो इस युग में इन्सानी आबादी घटती चली जाती, और अन्य वस्तुएं अधिक होती, जबकि वर्तमान में स्थिति विपरीत है।
4. अगर इन्सान का लंगड़ा-लूला, अन्धा-बहरा होना उसके पहले जन्म के बुरे कर्मो का परिणाम है, तो प्रश्न उठता है कि आज दुनिया भर मेंे पोलियों के खिलाफ आन्दोलन करके इन्सान के लंगडा पैदा होने पर काफी हद तक नियन्त्रण कर लिया गया है। आखिर यह कैसे हुआ कि पोलियो ड्राप की दो बूंद मनुष्य के किसी गुनाह का कफ्फारा बन गई ?
5. यह सिद्धान्त, गरीबों, कमज़ोरों और अपाहिजों से सहानुभूति और हमदर्दी को घटाता है, क्यांेकि अगर यह विकार उनके पिछले कर्मो का फल है तो उनकी मदद क्यों की जाए? और यह धर्म की शिक्षा के खिलाफ है।
6. अगर इन्सानी विकार और उस पर होने वाली जुल्म व ज्यादती व आपदाओं की पीड़ा, सभी उसके पिछले जन्म के कर्मो का परिणाम हंै तो फिर मानना चाहिए कि यहाँ पर जो भी हो रहा है वह सब न्यायसंगत है, लूटमार अत्याचार सब कुछ तर्कसंगत है, न तो कुछ पाप बचता है, और न पुण्य का आधार । क्योंकि जैसा किसी ने किया था वैसा भुगत रहा है।
7. आधुनिक विज्ञान के अध्ययन से पता चलता है, कि मनुष्य जन्तु और वनस्पति इन तीनों में जीव है परन्तु तीनों का जीवन अलग अलग प्रकार का है, मसलन पेड़ पौधों में जीवन है लेकिन आत्मा, बुद्धि विवेक और चेतना नहीं होती, जन्तुओं में जीवन होता है, बुद्धि आत्मा होती है, परन्तु विवेक और विचार नहीं होता, जबकि मनुष्य में जीवन आत्मा बुद्धि विवेक और विचारादि सब कुछ होता है। ऐसे में क्या यह न्यायसंगत है कि गलती तो करें पांच क्रियाओं वाला जीव, परन्तु सजा दी जाए तीन या दो क्रियाओं वाले जीव को, वह भी उस से विवेक और विचार को निकाल कर, जब कि दण्ड या पुरस्कार का सीधा सम्बन्ध विवेक और विचार से है। आप एक बुद्धिहीन व्यक्ति को पुरस्कार दें या दण्ड, उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता, तात्पर्य यह है कि यह एक बड़ी विडंबना है कि इसके अनुसार पाप तो करता है मनुष्य और दण्ड भोगता है गधा, या विवेकहीन व बुद्धिहीन वृक्ष ।
8. अगर मनुष्य की अपंगता उसके पूर्व जन्म के बुरे कर्मो का फल है तो न्याय व्यवस्था का तकाज़ा है कि दंडित व्यक्ति को पता हो कि उसके वे कौन कौन से पाप हैं जिनकी यह सजा है। हम दुनिया में भी देखते हैं कि मुजरिम को उसका गुनाह बता कर और उस को सफाई का मौका देकर सजा दी जाती है। मगर ईश्वर का कानून क्या इतना अन्धा है कि न बाजपुर्स (स्पष्टीकरण) और न यह बताना कि हम किस अपराध की सजा काट रहे हैं, यह कैसी न्याय व्यवस्था है ?
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इन सब बातों में मैं लेखक के साथ हूँ और सभी विद्वजनों से एक बार फिर प्राथना करता हूँ की इनका तथ्यों के साथ जवाब दें अन्यथा सत्य को स्वीकारें.
लेकिन कुछ बातें लेख में ऐसी हैं जिनसे मैं बिलकुल सहमत नहीं हूँ मसलन
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1.
इस्लामी सिद्धान्त बहुत स्पष्ट है वह यह कि एक दिन कयामत (प्रलय) हो जायेगी और यह सारा संसार नष्ट हो जायेगा, फिर हश्र का दिन अर्थात हिसाब किताब का दिन बरपा होगा, अतः सारे इन्सानों को पुनः जीवित किया जायेगा और उनके कर्मो का लेखा जोखा जो ईश्वर के यहाँ सुरक्षित होगा उनके सामने रख दिया जायेगा और बुरे कर्म करने वाले से पूछा जायेगा कि तूने यह-यह बुरे कार्य किये थे? तो वह मुकरने का प्रयास करेगा परन्तु उसके शरीर के अंग हाथ और पैर उसके खिलाफ गवाही देंगे। इसी का चित्रण करते हुए पवित्र ‘‘कुरआन’’ में कहा गया है :--
(और जिस दिन) कर्म पत्रिका (सामने) रखी जायेगी तो तुम अपराधियों को देखोगे कि जो कुछ उसमें होगा उससे डर रहे होंगे और कह रहे होंगें, हाय हमारा दुर्भाग्य यह कैसी किताब है जिस ने कोई छोटी बात छोड़ी है न बड़ी, अपितु सभी को अपने अन्दर समाहित कर रखा है जो कुछ उन्होंने किया होगा सब मौजूद पायेंगे और तुम्हारा रब (ईश्वर) किसी पर जुल्म
न करेगा
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इसमें कहा गया है लोगों के कर्मों के हिसाब-किताब के दिन (जिसे क़यामत का दिन कहा गया है )उन्हें फिर से जिंदा कर दिया जाएगा और उनका फैसला किया जाएगा की उन्हें स्वर्ग में रखा जाए की नरक में,ये बात बिलकुल समझ से बाहर है की जब उन्हें फिर से जिन्दा करके ही उनका फैसला करना है तो फिर उन्हें पहले मृत ही क्यों किया गया ?, जीते जी ही उन्हें उनके कर्मों का फल क्यों नहीं दिया गया ?,साथ ही इसमे एक definite दिन मुक़र्रर किया गया है की उन सबके अच्छे और बुरे कर्मों का फैसला उसी दिन किया जाएगा जो अब तक इस पृथ्वी पर जन्मे हैं या जन्मे थे, इसका फैसला उसी दिन किया जाएगा की उन्हें स्वर्ग में रखा जाए या नरक की आग में तो फिर यहाँ पर प्रश्न ये उठता है की जब तक वो दिन नहीं आता तब तक ये लोग किस मेहमान घर में ठहरे हुए हैं ? क्योंकि आप इनका पुनर्जन्म तो मानते ही नहीं तो फिर अब तक जो प्राणी मृत्यु को प्राप्त हुए हैं उन्हें आपकी विचार धरा के अनुसार कहाँ रखा गया है ?कृपया बताएं
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2 .
मनुस्मृति गो मूत्र एवं गोबर रस को पवित्र मान कर उसके सेवन करने की प्रेरणा देती है । (देखें मनुसृमति अध्याय 11, श्लोक 212) मलमूत्र चाहे जिसका हो, बुद्धि तो यही कहती है कि वह अपवित्र है। फिर चाहे वह किसी इंसान का हो या जानवर का। कुछ महाशयों को यह कहते सुना गया है कि गाय के मूत्र से औषधियां बनती हैं। परन्तु मेरा प्रश्न यह है कि अगर इससे औषधियां बनाई जाती हैं तो क्या इसका विकल्प नहीं? और अगर आस्था की बात है तो अपवित्र वस्तु में आस्था कैसी?
दिनांक 20.3.2010 को हिंदी समाचार पत्रों में हरिद्वार के महाकुंभ का एक समाचार छपा है जिसमें बताया गया है कि दसियों विदेशियों ने हिंदू धर्म की दीक्षा प्राप्त की, जिन्हें पंचगव्व (गौमूत्र, गोबर, दूध, घी और दही के मिश्रण) से धार्मिक अनुष्ठान कराया गया और पंचगव्व को ‘श्ारीर पर मलकर उनका ‘शुद्धिकरण किया गया। (देखें दैनिक जागरण, 20.3.2010)। बुद्धि कहती है कि अपवित्र वस्तुओं से ‘शुद्धि नहीं अशुद्धि प्राप्त होती है।
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इस विचार से मैं strongly असहमत हूँ क्योंकि अगर किसी प्राणी के मलमूत्र से किसी औषधि का निर्माण करके किसी असाध्य बिमारी की ठीक करके किसी व्यक्ति को जीवन दिया जा सकता है तो फिर इसमें क्या गलत है ?अशुद्ध चीज़ को भी शुद्ध किया जा सकता है वर्ना आप एक बात बताइये -
ये सिद्ध हो चुका है की पानी को उबालकर पीने से उसमें जो भी कीटाणु मौजूद हैं वे सारे remove हो जाते हैं और पानी pure हो जाता है .अगर ऊपर वाली विचारधारा का अनुसरण किया जाए तो फिर तो पानी भी पहले अशुद्ध था , फिर तो हमें वो भी नहीं पीना चाहिए क्योंकि इनके अनुसार अशुद्ध चीज़ को शुद्ध तो किया ही नहीं जा सकता .
ऐसे ही इसके बहुत से उदहारण हैं लेकिन समय की सीमा है इसलिए नहीं दे पा रहा हूँ
अंत में कैरानावी साहब आपको बहुत-२ धन्यवाद ये लिंक उपलब्ध कराने के लिए, मैं तो कहूँगा की आप सब भाई-बहिन इसे पढ़ें और इसमे उठाये हुए प्रशनो का हल ढूँढने की कोशिश करें, @ मनुज ख़ास कर आप , अन्यथा इसे स्वीकार करें .
http://aslamqasmi.blogspot.com/2010/03/book.html#comments
वेद काल से लेकर आज तक वेदों में बताई गयी बातें जो मानव धर्म है जिन्हें शास्वत धर्म भी कहा जाता है , में कोई परिवर्तन नहीं आया है. वोह पहले भी ऐसे ही थे आज भी ऐसे ही है और आगे भी ऐसे ही रहेंगे. और वोह मानव धर्म है सर्वकल्याण की भावना, वसुधैव कुटुम्बकम की भावना. ये वेद ज्ञान अपरिवर्तनीय है .
लेकिन जीवन जीने की पद्दति हमेशा परिवर्तित होती रही है और इसका कोई विरोध नहीं है .क्योंकि जब वेदों में ही स्रष्टि काल के चार विभाग युगानुसार किये गए है. और उनमें उत्पन्न होने वाले प्राणियों का गुण-स्वाभाव भी बतला दिया गया है. भैया सिर्फ ५/६ पुस्तकें पढ़कर अपने हिसाब से घोड़े दौड़ाने से कुछ नहीं होने वाला है. जब पूरे क्रम को ठीक ढंग से नहीं समझोगे तो यूँ ही उटपटांग बकवादन करोगे.
हर क्रम को समझे बिना और उनको अलग अलग करके देखोगे तो कुछ समझ नहीं आएगा, अपने साथ साथ दूसरों को भी भरमावोगे . लेकिन असल मंशा भी तो आपकी यही ही है ना की दूसरों को भरमाना है,
क्योंकि देवबंद में आपको ट्रेनिंग ही भरमाने की मिली है. अब भैया यह तो सभी को समझ में आगया है और सभी ने इधर मुंह करना भी छोड़ दिया है. आपही लोग आपस में "परस्परं प्रशंस्ति अहो रूपं अहो ध्वनि" अनुसार लगे रहते है और कुछ मेरे और मनुज जैसे आदत के मारे यहाँ आ जाते है .
बाकि ओछी मानसिकता व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त शब्दों से उजागर हो ही जाती है, ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा.
क्योंकि आदत से मजबूर आप फिर कुछ तान छेड़ेंगे. पंद्रह सौ बरसों की पदैयिश लाखों सालों की धारा को क्या रोकेगी डाक्टर साहब.
करते रहिये आप बकवादन, बाकि महक के रूप में भी आप ने अब अपनी वर्तनी में सुधार कर लिया नहीं तो आप जो लिखते थे थोडा अजीब लगता था .
और महक रूप में जो वही वाहियात सवाल पूछें है उनका जवाब वहीँ देंगे क्योंकि वहां भी तो आपको को कमेन्ट मिलनी चहिये ना . नहीं तो आपकी आस अधूरी ही राह जायेगी.
हा हा हा!मज़ा आ गया जी आज तो!बड़ा मजेदार मसाला प्रस्तुत किया डॉक्टर साहब आज आपने!
मस्त एक दम,चटाखेदार!
कुंवर जी,
@ महक जी आपको जिस किताब का कहा था वह उधर नहीं, आपको उधर कुछ और मिल गया लेकिन अब तो उसको उन्हें डालना ही होगा, एक किताब के नहीं उनकी 5 किताबों को पढना और फिर उनका जवाब तलाशा जाना चाहिये
हालांकि आप गोर से पढोगे तो उनकी हर किताब किसी न किसी का जवाब ही है
1. बलराज मधोक के नाम एक पत्र
online
2. हिन्दू आतंकवाद बेनकाब
online
3. जिहाद या फसाद
online
4. हिन्दू राष्ट्र - सम्भव या असम्भव come soon
5. प्रलोक की समस्या online
aslamqasmi.blogspot.com
25 साल की आयु तक बृह्मचाये
25 से 50 गृहस्त् आश्रम
50 से 75 वानप्रस्थ आश्रम- जंगल में बच जाये तो फिर
75 से आगे सन्यास आश्रम
मनुस्मृति, शतपथ बृहम्ण
@ अमित भाई
आपसे वेदों में ही वर्णित कुछ बातों के जो की विरोधाभासी प्रतीत होती हैं उनके तर्कपूर्ण जवाब मांगे थे ना की आपका ये हताशा भरा भाषण .आप वेदों के ज्ञाता हैं और जिज्ञासु की शंकाओं का निवारण करना आपका कर्तव्य है .लेकिन इसमें आपकी गलती नहीं है. आपकी खुद की आत्मा भी ये बात जानती है की वेदों की इन बातों को आप कभी justify नहीं कर सकते. इसलिए सीधा तर्कशील जवाब देने की बजाये बातों को घुमा रहें हैं.जो बातें क्रमानुसार पूछी हैं उनका जवाब दीजिये अन्यथा सच को स्वीकार कीजिये .
यही सन्देश आपके छोटे भाई और मेरे काबिल मित्र मनुज के लिए भी है की भाई मनुज बातों को गोल-मोल मत घुमाना , जो पूछा है उसका तर्कपूर्ण जवाब देना ताकि आपस के तर्क-वितर्क से किसी सही निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके .
mahak .. ab to mukota utaar do..
"जवाब दीजिये अन्यथा सच को स्वीकार कीजिये ."
इससे पता चालता है की ये महक कोई और नहीं जमाल ही है क्यों की इसी लहजे में अमित भाई को जमाल कई बार धमकाने की कोशिस कर चुका है .
चिंता मत करो जमाल + महक अमित भाई तुम्हे जवाब भी देंगे तुम्हारी तरह थाले थोड़े है अभी बैंक वांक का काम निपटा रहे होंगे .
दोस्तो महक को महकने दो, जमाल साहब महीने भर से रात में दो तीन घण्टे के लिये नेट पर आते हैं, महक ने आज अपना सारा कुछ उंडेल दिया जबकि जमाल साहब अपने अन्दर 3 साल तक लगातार ब्लागिंग में अपना ज्ञान उंडेलते रहें तब भी शायद खाली न हो
@ महक जी आप ने एक बार हम तीन से पूछा था आपको युनिकोड में टाइपिंग करने का हमने क्यूं बताया उसका जवाब उस कहानी में तलाशिये जिसमें एक योद्धा दूसरे खाली हाथ योद्धा को हथियार देता है ताकि टक्कर बराबरी की हो, उम्मीद है समझ गये होंगे न समझें तो भी कोई बात नहीं अभी समय है विचार करते रहो
विश्व गौरव से सहमत- ब्लागवाणी तू एग्रीगेटर है अनवर जमाल के मामले में तू एग्री कटर अर्थात हाटलिस्ट से इनकी पोस्ट को हटाने को हमेशा तत्पर न रहा कर जैसा कि इस समय भी
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26 टिप्पणी प्राप्त
फिर हॉटलिस्ट में नहीं तू ब्लागवाणी अपना नाम एग्री कटर agree cutter रख ले जचेगा
तू ब्लागवाणी अपना नाम एग्री कटर agree cutter रख ले जचेगा
@Amit Sharma Ji,
आपने कहा, 'जीवन जीने की पद्दति हमेशा परिवर्तित होती रही है'
यही कांसेप्ट इस्लाम का भी है. इस्लाम धर्म मानव के लिए प्रथम मानव की उत्पत्ति से ही रहा है. लेकिन उसकी शरियतें (जीवन जीने की पद्दति) बदलती रही. इनमें अंतिम शरियत वह है जो अंतिम पैगम्बर मुहम्मद (स.अ.) ने बताई.
@Mahak Ji,
आपका प्रश्न काफी दिलचस्प है, "ये बात बिलकुल समझ से बाहर है की जब उन्हें फिर से जिन्दा करके ही उनका फैसला करना है तो फिर उन्हें पहले मृत ही क्यों किया गया ?, जीते जी ही उन्हें उनके कर्मों का फल क्यों नहीं दिया गया ?,साथ ही इसमे एक definite दिन मुक़र्रर किया गया है की उन सबके अच्छे और बुरे कर्मों का फैसला उसी दिन किया जाएगा जो अब तक इस पृथ्वी पर जन्मे हैं या जन्मे थे, इसका फैसला उसी दिन किया जाएगा की उन्हें स्वर्ग में रखा जाए या नरक की आग में तो फिर यहाँ पर प्रश्न ये उठता है की जब तक वो दिन नहीं आता तब तक ये लोग किस मेहमान घर में ठहरे हुए हैं ? क्योंकि आप इनका पुनर्जन्म तो मानते ही नहीं तो फिर अब तक जो प्राणी मृत्यु को प्राप्त हुए हैं उन्हें आपकी विचार धरा के अनुसार कहाँ रखा गया है ?कृपया बताएं."
इस्लाम इसके बारे में क्या कहता है, इसका जवाब मैं विस्तार से दूंगा दो-तीन दिन बाद एक लेख के द्वारा.
@ bhaii ashwin
तुम्हे पहले भी कहा था की तुम अगर नाम लेकर भी comment करोगे तो भी मुझे बुरा नहीं लगेगा क्योंकि मैं जानता हूँ की तुम्हारी आँखों पर भी दूसरे भाईयों की तरह वही पट्टी बंधी हुई है जो कुछ समय पहले मेरी आँखों पर भी बंधी हुई थी .दोस्त किसी भी चीज़ को हिन्दू मुस्लिम के चश्में से देखने की बजाये एक इंसान के नज़रिए से देखो की वो बात सही है या गलत .
@ पुष्पेन्द्र भाई
तुम भी कुछ लोगों की तरह मुझे गलत समझ रहे हो. मेरा मकसद अपने खुद के ही हिन्दू धर्म का अपमान करना नहीं है बल्कि इसमें जो भी कुरीतियाँ हैं उन्हें दूर करने का है ताकि कल को कोई ये ना कह सके की आपके खुद के धर्म में तो इस गलत बात का समर्थन किया गया है फिर आप हमें कैसे कह रहें हैं ?
और एक बात और तुम एक सार्थक बहस को गलत दिशा में ले जा रहे हो.मेरे और अमित भाई के बीच में यहाँ कोई बोक्सिंग मैच नहीं चल रहा .मैं उन्हें धमकी देने के बारे में कभी सोच भी नहीं सकता.मैं एक छोटे भाई के नाते और एक जिज्ञासु की भांति उनके और सभी विद्वानों के समक्ष कुछ प्रश्न रखें हैं जिनका मैं चाहता हूँ की वो उत्तर दें और साबित करें की ये कुरीति नहीं हैं, इससे मुझे ही अधिक ख़ुशी होगी.मेरा उनसे कोई व्यक्तिगत बैर नहीं है. कुछ points पर मतभेद हैं जो मैं चाहता हूँ की आपसी तर्क-वितर्क से दूर हो सकें .
@ आदरनिये कैरान्वी जी
बुरा मत मानियेगा लेकिन मेरे पास अभी भी उड़ेलने को बहुत कुछ है और जिस दिन मैंने अपना सब कुछ उड़ेल दिया उस दिन आप भी उन भाइयों की list में शामिल हो जायेंगे जो की अज्ञानता एवं धर्मान्धता की पट्टी बंधीं होने के कारण मेरा विरोध कर रहें हैं .
"@ महक जी आप ने एक बार हम तीन से पूछा था आपको युनिकोड में टाइपिंग करने का हमने क्यूं बताया उसका जवाब उस कहानी में तलाशिये जिसमें एक योद्धा दूसरे खाली हाथ योद्धा को हथियार देता है ताकि टक्कर बराबरी की हो, उम्मीद है समझ गये होंगे न समझें तो भी कोई बात नहीं अभी समय है विचार करते रहो"
आपने ये जो लाइन कही है इसकी वजह से दूसरे हिन्दू भाइयों को ये गलतफ़हमी हो सकती है की आप मुझे मेरे ही हिन्दू भाईयों के खिलाफ तैयार कर रहें हैं.मैं क्यों लडूंगा अपने ही हिन्दू भाइयों से ? दरअसल मैं उन्हें या किसी और को हिन्दू मुस्लिम के नज़रिए से देखता ही नहीं ,सब उस परमेश्वेर के पैदा किये हुए इंसान हैं.मैं ये नहीं कह रहा हूँ की आपका मकसद ये है लेकिन कुछ लोग इसे यही समझेंगे.
मैं पहले भी ये बात स्पष्ट कर चूका हूँ और एक बार फिर करना चाहता हूँ की -"मैं किसी का भी विरोध ये सोच कर नहीं करता की वो हिन्दू है या मुसलमान , मेरा दोस्त है या दुश्मन .मैं विरोध करता हूँ तो गलत बातों का जो हम सबका नुक्सान कर रहीं हैं फिर चाहे वो हिन्दू ने कहीं हो या मुसलमान ने . अच्छे और बुरे लोग सारे धर्मों में हैं , हमारा फ़र्ज़ बनता है की जो भी व्यक्ति सही कह रहा है चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम हमें उसका साथ देना चाहिए और जो भी व्यक्ति गलत कह रहा है, अगर आपको वो गलत लग रहा है तो उसका विरोध करना चाहिए बिना ये देखे की वो मेरे धर्म का है या दुसरे धर्म का, हिन्दू है या मुस्लिम, सिख है या इसाई ."
जमाल भाई इस मामले में मुझे आपसे बेहतर समझते हैं.वो जानते हैं की महक मेरी किसी बात का साथ इसलिए नहीं दे रहा क्योंकि वो एक हिन्दू है और मैं एक मुस्लिम .वो साथ इसलिए दे रहा है क्योंकि वो बात उसे सही लग रही है.और वो ये भी जानते हैं की जब महक को मेरी कोई बात गलत लगेगी तो वो उसपे मेरा विरोध भी करेगा. क्योंकि मैं पहले भी ऐसा कर चूका हूँ.
ये बात बिलकुल समझ से बाहर है की जब उन्हें फिर से जिन्दा करके ही उनका फैसला करना है तो फिर उन्हें पहले मृत ही क्यों किया गया ?, जीते जी ही उन्हें उनके कर्मों का फल क्यों नहीं दिया गया ?,साथ ही इसमे एक definite दिन मुक़र्रर किया गया है की उन सबके अच्छे और बुरे कर्मों का फैसला उसी दिन किया जाएगा जो अब तक इस पृथ्वी पर जन्मे हैं या जन्मे थे, इसका फैसला उसी दिन किया जाएगा की उन्हें स्वर्ग में रखा जाए या नरक की आग में तो फिर यहाँ पर प्रश्न ये उठता है की जब तक वो दिन नहीं आता तब तक ये लोग किस मेहमान घर में ठहरे हुए हैं ? क्योंकि आप इनका पुनर्जन्म तो मानते ही नहीं तो फिर अब तक जो प्राणी मृत्यु को प्राप्त हुए हैं उन्हें आपकी विचार धरा के अनुसार कहाँ रखा गया है ?
aur mere blog par dekhen media creation ka baddha mazaq
@ zeashan भाई
मुझे आपका मेरे सवाल को हल करने के लिए लिखा हुआ लेख पढ़कर ख़ुशी होगी.आपके अन्दर की यही तो बात है जो मैं सब भाईयों में देखना चाहूंगा की किसी भी criticism या सवाल को इस नज़र से मत लो की वो तुम्हारा अपमान करने के लिए पुछा गया है, उसे एक opportunity की तरह लो और solve करके दुसरे को ज़वाब देने की कोशिश करो अन्यथा उससे अपनी सहमति जताओ ताकि एक सही निष्कर्ष , एक सही नतीजे पर पहुंचा जा सके .अब सवाल मैंने आप मुस्लिम भाइयों से भी पूछे लेकिन आप ने नाराज़ होने की बजाये उसे हल करने पर जोर दिया .यही बात मैं और भाइयों में भी चाहूंगा .
लेकिन दुःख की बात यहाँ है की ऐसा नहीं है.दोनों धर्मों में और इस ब्लॉग पर भी कुछ ऐसे लोग हैं जो इन बातों से उत्तेजित हो जाते हैं और बात को गलत sense में ले लेते हैं.मैंने इस पर कुछ observations किये हैं की ऐसा क्यों है, आखिर क्यों वे लोग गलत बातों को भी कुरीति नहीं मानना चाहते , इसके कुछ following reasons हैं -
1.
हिन्दू इसलिए नहीं मानना चाहते क्योंकि एक मुसलमान इस बात को कह रहा है , इससे उन्हें ऐसा लगता है की वो जान -बूझकर हमारे धर्म का अपमान कर रहा है चाहे उसने बात सही ही क्यों न कही हो .
2.
Same बात मुस्लिमों पर भी apply होती है की अगर कोई हिन्दू उनके धर्म में शामिल कुरीतियों जैसे पर्दा प्रथा ,4 शादियाँ etc.को उठता है तो वे भी इसका तर्कशील जवाब देने की बजाये यही समझते हैं की ये व्यक्ति जान - बूझकर हमारे धर्म को बदनाम कर रहा है फिर चाहे उसने सही बात ही क्यों न कही हो .
3.
अगर कोई हिन्दू व्यक्ति ही अपनी धार्मिक किताबों में शामिल किसी कुरीति का विरोध करता है तो उसे स्वीकार इसलिए नहीं किया जाता क्योंकि उसे से इन so-called ऊँची जाती कहे जाने वाले लोगों को अपना एकाधिक्कर जो की इन ग्रंथों ने इन्हें दे रखा है वो छिनने का डर रहता है .लेकिन ऐसे लोग ये नहीं जानते की जितने अत्याचार या फिर भेद -भाव ये उन धर्म ग्रंथों का रेफेरेंस देकर उन छोटी जातियों या फिर नीच जाती कहे जाने वाले लोगों पर करते हैं फिर वही लोग अपराध (crime) जगत का सहारा लेकर (जहाँ पर ऊँची या नीची जाती नाम की कोई चीज़ नहीं है )इन पर क़यामत बनकर गिरते हैं .मुझे दिल से बताइये की अगर हमारे समाज में संतान के जन्म से ही ये उंच -नीच का भेद -भाव ना किया जाए और सबको equal opprtunities (saman मोके एवं सामान अधिकार ) दियें जाएँ तो फिर ये अपराध , ये "दलित vs ब्रह्मण " जैसे टकराव क्या ख़त्म नहीं हो सकते .
4.अगर कोई मुस्लिम ही अपने धर्म में शामिल किसी कुरीति का विरोध करता है तो उसे भी इसी प्रकार स्वीकार नहीं किया जाता क्योंकि इससे मर्दों को अपने एकाधिकार छिनने कर डर पैदा हो जाता है ,उन्हें पता है की अगर ये गलत बातें remove हो गयीं तो फिर महिलाएं हमें हर field में defeat करने का दम रखती हैं और ये बात उनका male ego सहन नहीं कर पाता .
लेकिन यहाँ एक बात ज़रूर कहना चाहूंगा की हिन्दुओं में एक बात काफी अच्छी है की कोई भी व्यक्ति अगर धर्म की किसी कुरीति की और ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करे तो उसे केवल नकारा जा सकता है लेकिन मुस्लिमों के case में तो उसके खिलाफ "फतवे" जारी कर दिए जाते हैं , बेचारे की जान पर बन आती है .वो भी सोचता होगा की यार बड़ा अच्छा इनाम मिला मुझे सही बात को उठाने का .ये बात पूरी तरह से गलत है .सबको अपने विचार रखने की पूरी आज़ादी तो मिलनी ही चाहिए , इसीसे समाज में शामिल विकारों को दूर किया जा सकता है और awareness लायी जा सकती है .
और अंत में zeashan भाई आपसे ये जानना चाहूंगा की आपने comment देते समय कुछ words को bold (dark ) कैसे किया ? कृपया बताएं.
@Mahak Ji,
अगर किसी लाइन को बोल्ड करना है तो लाइन के शुरू में <> के अन्दर b लिखें और लाइन के अंत में <> के अन्दर /b लिखकर बंद कर दें. बीच का मैटर बोल्ड हो जाएगा.
hamare yahan ek shabd hai " sundari raad" matlab jaise ki sunaar grahak ke samne aise ladte haai jaise unka nuksaan horaha ho grahak ko bharmane ke liye aapas men ladte hai.
usi tarah yeh karanvi or mahak bana jamaal lad rahe hai
चूतियों की बकवास चल रही है इधर।
अच्छा है कि ब्लागवाणी में ये हरामखोर हाट लिस्ट मे नही है सालों को इस्लाम के अलावा कुछ आता-जाता नहीं, गधे कही के सब के सब्।
maa chudao saalo, bas chutiyan bakarchodi kate rahiyo maadar k bhosde, tere bas ki kuch naa hai. mere gao ke kutte ki jhant bhi ukhdegi tujhse..
Very clear, Straight and true information.
It is really very easy to understand the truth for a sensible person.
Keep Up.
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