सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Saturday, April 17, 2010
गीता में युद्धोन्माद - Dr. Surendra Kumar Sharma 'Agyat'
वेदों की ही विचारधारा आगे महाकाव्यों में प्रतिफलित हुई । महाभारत में जो ‘गीता‘ मिलती है , उसका प्रमुख लक्ष्य युद्धोन्माद पैदा करना ही है । इस की रचना ही अर्जुन में युद्धलिप्सा जगाने के लिए की गई थी , यद्यपि यह तो नहीं माना जा सकता कि वर्तमान गीता का एक एक शब्द युद्धक्षेत्र में लिखा व कहा गया था । पिछले कम से कम एक हज़ार वर्षों से महाभारत के भीष्म पर्व में जिस रूप में गीता मिलती है , उस से पता चलता है कि जब अर्जुन धनुषबाण छोड़कर युद्ध से विमुख होता है तब श्रीकृष्ण , जो गीता का कथित वक्ता है , उसे अनार्य आदि कहकर फटकार लगाता है और अपनी विविध बातों से उसे युद्ध के लिए भड़काता है तथा संबंधियों को युद्ध में क़त्ल करने में किसी भी प्रकार की अनैतिकता न होने की बात करता है । उदाहरण के लिए कुछ कथन प्रस्तुत हैं -
यदृच्छया चोप्पन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्
अथ चेत् त्वमिमं धम्र्यं संग्रामं न करिष्यसि
ततः स्वधर्म कीर्ति च हित्वा पापमवाप्स्ययसि
( गीता , 2-32,33 )
अर्थात हे अर्जुन , इस तरह के युद्ध का मौक़ा ख़ुशक़िस्मत क्षत्रियों को ही प्राप्त होता है , यह तो स्वर्ग के खुले द्वार सा है । यदि तू इस धर्मयुद्ध को नहीं करेगा , ( क्षत्रिय होने से युद्ध करना तेरा धर्म है , ) तो तेरा धर्म व यश नष्ट हो जाएगा और तुझे पाप लगेगा ।
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय :
( गीता , 2-37 )
अर्थात हे अर्जुन , यदि तू इस युद्ध में मारा गया तो तुझे स्वर्ग की प्राप्ति होगी । यदि तू जीत गया तो पृथ्वी का भोग करेगा । अतः उठ और युद्ध के लिए तैयार हो ।
युद्धाय युज्यस्व ( गीता , 2-38 )
अर्थात युद्ध करने के लिए युद्ध करो ।
निर्ममो भूत्वा युध्यस्व ( गीता , 3-30 )
अर्थात ममतारहित होकर युद्ध करो ।
तस्मात् त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून भुंक्ष्व राज्यं समृद्धम् ( गीता , 3-33 )
अर्थात अर्जुन , उठो यश प्राप्त करो और शत्रुओं को जीत कर इस समृद्ध राज्य का आनन्द उठाओ ।
सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च ( गीता , 8-7 )
अर्थात हे अर्जुन , तू मेरा अर्थात मुझ परमात्मा का स्मरण कर और युद्ध कर ।
महाभारत में अन्यत्र भी ऐसी बातें बहुतायत से मिलती हैं , यथाः
युद्धाय क्षत्रियः सृष्टः संजयेह जयाय च ,
जयन वा वध्यमानो वा प्राप्नोतींद्रसलोकताम्
न शकभवने पुण्ये दिवि तद् विद्यते सुखम् ।
यदमित्रान् वशे कृत्वा क्षत्रियः सुखमेधते
मन्युना दह्यमानेन पुरूषेण मनस्विना ,
निकृतेनेह बहुशः शत्रून प्रति जिगीषया
आत्मानं वा परित्यज्य शत्रुं वा विनिपात्य च ,
अतोऽन्येन प्रकारेण शन्तिरस्य कुतो भवेत्
इह प्राज्ञों हि पुरूषः स्वल्पमप्रियमिच्छति ,
यस्य स्वल्प प्रियं लोके ध्रुवं तस्याल्पमप्रियम्
( महाभारत , उद्योगपर्व , 135-13 से 17 तक )
अर्थात हे संजय , क्षत्रिय जाति इस संसार में युद्ध और विजय के लिए ही रची गई है । यह जीत कर भी और मरकर भी स्वर्ग को प्राप्त करती है ।
क्षत्रिय को जो सुख शत्रुओं को अपने अधीन कर के मिलता है वह उसे स्वर्ग में इंद्र के पवित्र व सुंदर भवन में भी नहीं मिलता । क्रोध से जलने वाले मानी पुरूष को बारबार तिरस्कृत होने पर भी विजय की इच्छा से शत्रुओं पर आक्रमण करना ही चाहिये ।
युद्ध में अपने शरीर को त्याग कर अथवा शत्रु के शरीर को गिरा कर ही उस के हृदय को शांति मिल सकती है , अन्य किसी तरह से नहीं ।
बुद्धिमान पुरूष संसार में अल्प ऐश्वर्य को पर्याप्त नहीं समझता । जगत में थोड़े वैभव से संतुष्ट होने वाले का वह वैभव अनर्थकारी होता है । अतः राजाओं को थोड़े से संतोष नहीं करना चाहिये ।
ये विचार वैदिक काल के अधिक निकट हैं , यद्यपि लिपिबद्ध काफ़ी बाद में हुए । इन में युद्ध में सीधे लड़ने और उस में शत्रु को मार देने अथवा खुद मर जाने की बात है । क्षत्रिय को लड़ना ही चाहिये और विजय प्राप्त करनी ही चाहिये । यह बात कोई अर्थ नहीं रखती कि मुद्दा क्या है , उसे बिना युद्ध के , बिना मारकाट के , अन्य तरीक़ों से सुलझाया जा सकता है या नहीं । हर क्षत्रिय का यह धर्म है कि वह मारकाट करता रहे ।
- यह चिरस्मरणीय लेख ‘हिंदू इतिहास : हारों की दास्तान ‘ पृष्ठ 73-75 , से साभार उद्धृत है । यह पुस्तक विश्व विजय प्रा. लि. एम-12, कनाट सरकस , नई दिल्ली 110001 पर उपलब्ध है । भाई अमित जी ने यह जताया था कि वैदिक साहित्य के साथ उन्हें हमसे ज़्यादा ताल्लुक़ है लिहाज़ा वे उम्र में हमसे छोटे होने के बावजूद इस विषय में हमारे बड़े भाई हैं । हमें छोटा ही सही लेकिन भाई तो माना । हमें तो इस बात की भी खुशी है ।मैंने प्रिय प्रवीण जी व सत्य वाचक श्री महक जी की टिप्पणी मिलने के बाद विश्लेषण किया तो जाना कि कुछ बुद्धिजीवीनुमा जीवों को यह समस्या नहीं है कि हमारे ग्रन्थों की आलोचना क्यों हो रही है क्योंकि प्रायः इससे भी ज़्यादा आलोचनात्मक लेख ब्लॉगवाणी व चिठ्ठाजगत पर प्रकाशित होते ही रहते हैं और लोग मामूली सा कुनमुना कर रह जाते हैं लेकिन इस तरह आपे से बाहर होकर गालियां वहां नहीं बकते । कारण यह है कि उन लेखकों को दुनिया हिन्दू कहती है लेकिन मुझे नहीं बख्शा जाता क्योंकि मैं एक मुसलमान हूं । हालांकि मैं वेदादि में सत्यांश मानता हूं और उनकी दिव्यता और पवित्रता में विश्वास भी रखता हूं । यह तथ्य साफ़ हो जाने के बाद मैंने उचित जाना कि अब वैदिक साहित्य के संबंध में मैं खुद कुछ न कहकर ऐसे महान हिन्दू विद्वानों के लेखों के माध्यम से सत्य को उद्घाटित करूं जिनके माननीय बाप दादा ने गर्भ से ही वेदों के मंत्र सुने हैं और दुनिया में उन्हें प्रकांड पण्डित माना जाता है । डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ एक ऐसे ही विद्वान घराने के पण्डित हैं । अपने परिचय में वे स्वयं लिखते हैं -
- पृष्ठ 13 , भूमिका ‘क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिन्दू धर्म ?‘ अगर अमित जी खुद को मेरा बड़ा भाई समझते हैं तो मेरे पास उनके ताऊ जी मौजूद हैं । उम्मीद है कि अमित जी भी डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ जी को अपने से श्रेष्ठतर व विश्वसनीय मानेंगे । अब किसी भी संस्कृति प्रेमी को मुझे बुरा कहने का कोई हक़ नहीं पहुंचता । आप मुझे चुप करना चाहते थे तो लीजिये मैं तो चुप हो गया और काफ़ी हद तक अपना ब्लॉग ही मैं तो ब्राह्मण को सौंप रहा हूं । मैं तो बहुत लिहाज़ करता था कुछ कहने में , लेकिन डा. अज्ञात साहब सच कहने में किसी का ज़रा भी लिहाज़ नहीं करते । मैं तो वेदों में ईश्वर की वाणी का अंश मानता हूं लेकिन वे तो ईश्वर को ही नहीं मानते तो वेदों को ईश्वरीय क्या मानेंगे ?
आप मुझ आस्तिक को बर्दाश्त न कर पाये लेकिन अब आपको एक नास्तिक को सुनना और सराहना या फिर कराहना होगा । जब कोई आदमी किसी नेमत की क़द्र नहीं करता तो उसके साथ ऐसा ही होता है ।
अब आपको अपने समाज के एक से बढ़कर एक विद्वानों के अमृतवचन सुनने को मिलेंगे और जब आपको अपनी ग़लती का अहसास हो जाएगा और आपको लगेगा कि इनसे तो अनवर ही ठीक था तो फिर मैं ही बोलूंगा लेकिन तब आपको मानना पड़ेगा कि अमित जी मेरे बड़े भाई नहीं हैं बल्कि वे मेरे अनुज ही हैं आयु में भी और ज्ञान में भी और अगर कोई नहीं मानेगा तब भी वह इस फ़ैक्ट को जल्द ही जान लेगा ।
यदृच्छया चोप्पन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्
अथ चेत् त्वमिमं धम्र्यं संग्रामं न करिष्यसि
ततः स्वधर्म कीर्ति च हित्वा पापमवाप्स्ययसि
( गीता , 2-32,33 )
अर्थात हे अर्जुन , इस तरह के युद्ध का मौक़ा ख़ुशक़िस्मत क्षत्रियों को ही प्राप्त होता है , यह तो स्वर्ग के खुले द्वार सा है । यदि तू इस धर्मयुद्ध को नहीं करेगा , ( क्षत्रिय होने से युद्ध करना तेरा धर्म है , ) तो तेरा धर्म व यश नष्ट हो जाएगा और तुझे पाप लगेगा ।
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय :
( गीता , 2-37 )
अर्थात हे अर्जुन , यदि तू इस युद्ध में मारा गया तो तुझे स्वर्ग की प्राप्ति होगी । यदि तू जीत गया तो पृथ्वी का भोग करेगा । अतः उठ और युद्ध के लिए तैयार हो ।
युद्धाय युज्यस्व ( गीता , 2-38 )
अर्थात युद्ध करने के लिए युद्ध करो ।
निर्ममो भूत्वा युध्यस्व ( गीता , 3-30 )
अर्थात ममतारहित होकर युद्ध करो ।
तस्मात् त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून भुंक्ष्व राज्यं समृद्धम् ( गीता , 3-33 )
अर्थात अर्जुन , उठो यश प्राप्त करो और शत्रुओं को जीत कर इस समृद्ध राज्य का आनन्द उठाओ ।
सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च ( गीता , 8-7 )
अर्थात हे अर्जुन , तू मेरा अर्थात मुझ परमात्मा का स्मरण कर और युद्ध कर ।
महाभारत में अन्यत्र भी ऐसी बातें बहुतायत से मिलती हैं , यथाः
युद्धाय क्षत्रियः सृष्टः संजयेह जयाय च ,
जयन वा वध्यमानो वा प्राप्नोतींद्रसलोकताम्
न शकभवने पुण्ये दिवि तद् विद्यते सुखम् ।
यदमित्रान् वशे कृत्वा क्षत्रियः सुखमेधते
मन्युना दह्यमानेन पुरूषेण मनस्विना ,
निकृतेनेह बहुशः शत्रून प्रति जिगीषया
आत्मानं वा परित्यज्य शत्रुं वा विनिपात्य च ,
अतोऽन्येन प्रकारेण शन्तिरस्य कुतो भवेत्
इह प्राज्ञों हि पुरूषः स्वल्पमप्रियमिच्छति ,
यस्य स्वल्प प्रियं लोके ध्रुवं तस्याल्पमप्रियम्
( महाभारत , उद्योगपर्व , 135-13 से 17 तक )
अर्थात हे संजय , क्षत्रिय जाति इस संसार में युद्ध और विजय के लिए ही रची गई है । यह जीत कर भी और मरकर भी स्वर्ग को प्राप्त करती है ।
क्षत्रिय को जो सुख शत्रुओं को अपने अधीन कर के मिलता है वह उसे स्वर्ग में इंद्र के पवित्र व सुंदर भवन में भी नहीं मिलता । क्रोध से जलने वाले मानी पुरूष को बारबार तिरस्कृत होने पर भी विजय की इच्छा से शत्रुओं पर आक्रमण करना ही चाहिये ।
युद्ध में अपने शरीर को त्याग कर अथवा शत्रु के शरीर को गिरा कर ही उस के हृदय को शांति मिल सकती है , अन्य किसी तरह से नहीं ।
बुद्धिमान पुरूष संसार में अल्प ऐश्वर्य को पर्याप्त नहीं समझता । जगत में थोड़े वैभव से संतुष्ट होने वाले का वह वैभव अनर्थकारी होता है । अतः राजाओं को थोड़े से संतोष नहीं करना चाहिये ।
ये विचार वैदिक काल के अधिक निकट हैं , यद्यपि लिपिबद्ध काफ़ी बाद में हुए । इन में युद्ध में सीधे लड़ने और उस में शत्रु को मार देने अथवा खुद मर जाने की बात है । क्षत्रिय को लड़ना ही चाहिये और विजय प्राप्त करनी ही चाहिये । यह बात कोई अर्थ नहीं रखती कि मुद्दा क्या है , उसे बिना युद्ध के , बिना मारकाट के , अन्य तरीक़ों से सुलझाया जा सकता है या नहीं । हर क्षत्रिय का यह धर्म है कि वह मारकाट करता रहे ।
- यह चिरस्मरणीय लेख ‘हिंदू इतिहास : हारों की दास्तान ‘ पृष्ठ 73-75 , से साभार उद्धृत है । यह पुस्तक विश्व विजय प्रा. लि. एम-12, कनाट सरकस , नई दिल्ली 110001 पर उपलब्ध है । भाई अमित जी ने यह जताया था कि वैदिक साहित्य के साथ उन्हें हमसे ज़्यादा ताल्लुक़ है लिहाज़ा वे उम्र में हमसे छोटे होने के बावजूद इस विषय में हमारे बड़े भाई हैं । हमें छोटा ही सही लेकिन भाई तो माना । हमें तो इस बात की भी खुशी है ।मैंने प्रिय प्रवीण जी व सत्य वाचक श्री महक जी की टिप्पणी मिलने के बाद विश्लेषण किया तो जाना कि कुछ बुद्धिजीवीनुमा जीवों को यह समस्या नहीं है कि हमारे ग्रन्थों की आलोचना क्यों हो रही है क्योंकि प्रायः इससे भी ज़्यादा आलोचनात्मक लेख ब्लॉगवाणी व चिठ्ठाजगत पर प्रकाशित होते ही रहते हैं और लोग मामूली सा कुनमुना कर रह जाते हैं लेकिन इस तरह आपे से बाहर होकर गालियां वहां नहीं बकते । कारण यह है कि उन लेखकों को दुनिया हिन्दू कहती है लेकिन मुझे नहीं बख्शा जाता क्योंकि मैं एक मुसलमान हूं । हालांकि मैं वेदादि में सत्यांश मानता हूं और उनकी दिव्यता और पवित्रता में विश्वास भी रखता हूं । यह तथ्य साफ़ हो जाने के बाद मैंने उचित जाना कि अब वैदिक साहित्य के संबंध में मैं खुद कुछ न कहकर ऐसे महान हिन्दू विद्वानों के लेखों के माध्यम से सत्य को उद्घाटित करूं जिनके माननीय बाप दादा ने गर्भ से ही वेदों के मंत्र सुने हैं और दुनिया में उन्हें प्रकांड पण्डित माना जाता है । डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ एक ऐसे ही विद्वान घराने के पण्डित हैं । अपने परिचय में वे स्वयं लिखते हैं -
मेरी दो पीढ़ियां हिंदू धर्म से सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं । मेरे पिता
शास्त्रार्थ महारथी पं. अमरनाथ शास्त्री ‘प्रतिवादि-भयंकर‘, सनातन धर्म प्रतिनिधि
सभा पंजाब ( लाहौर ) से संबद्ध रहे । वे त्यागमूर्ति पं. गोस्वामी गणेशदत्त जी के
साथ धर्म प्रचार का काम करते रहे और आर्य समाजियों से शास्त्रार्थ करते रहे । स्मरण
रहे , उन हाथों पराजित हो कर 1936 में फ़तहगढ़ चूडियां (पंजाब) में प्रसिद्ध आर्य
समाजी विद्वान शास्त्रार्थ महारथी पं. मनसाराम ने 1875 के ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ को मंच पर ही आग लगा दी थी ।
- पृष्ठ 13 , भूमिका ‘क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिन्दू धर्म ?‘ अगर अमित जी खुद को मेरा बड़ा भाई समझते हैं तो मेरे पास उनके ताऊ जी मौजूद हैं । उम्मीद है कि अमित जी भी डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ जी को अपने से श्रेष्ठतर व विश्वसनीय मानेंगे । अब किसी भी संस्कृति प्रेमी को मुझे बुरा कहने का कोई हक़ नहीं पहुंचता । आप मुझे चुप करना चाहते थे तो लीजिये मैं तो चुप हो गया और काफ़ी हद तक अपना ब्लॉग ही मैं तो ब्राह्मण को सौंप रहा हूं । मैं तो बहुत लिहाज़ करता था कुछ कहने में , लेकिन डा. अज्ञात साहब सच कहने में किसी का ज़रा भी लिहाज़ नहीं करते । मैं तो वेदों में ईश्वर की वाणी का अंश मानता हूं लेकिन वे तो ईश्वर को ही नहीं मानते तो वेदों को ईश्वरीय क्या मानेंगे ?
आप मुझ आस्तिक को बर्दाश्त न कर पाये लेकिन अब आपको एक नास्तिक को सुनना और सराहना या फिर कराहना होगा । जब कोई आदमी किसी नेमत की क़द्र नहीं करता तो उसके साथ ऐसा ही होता है ।
अब आपको अपने समाज के एक से बढ़कर एक विद्वानों के अमृतवचन सुनने को मिलेंगे और जब आपको अपनी ग़लती का अहसास हो जाएगा और आपको लगेगा कि इनसे तो अनवर ही ठीक था तो फिर मैं ही बोलूंगा लेकिन तब आपको मानना पड़ेगा कि अमित जी मेरे बड़े भाई नहीं हैं बल्कि वे मेरे अनुज ही हैं आयु में भी और ज्ञान में भी और अगर कोई नहीं मानेगा तब भी वह इस फ़ैक्ट को जल्द ही जान लेगा ।
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84 comments:
@भाई अमित ! आपने वेदमंत्र का यह नवीन अर्थ किस विद्वान से लिया है जो किसी भी प्राचीन विद्वान के भाष्य में नहीं मिल रहा है ?
ये बेचारे तो भोले लोग हैं । इन्होंने वेदों की सूरत भी न देखी होगी । ये आज आपकी वाह वाह कर रहे हैं लेकिन जब मैं आपके गुरू के अन्य विचार अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करूंगा तो फिर इनमें से आपके गुरू जी की वाह वाह करने कोई नहीं आयेगा । यह हमारा दावा भी है और वादा भी । बस , जल्दी से उस आदमी का नाम बताइये जिसके भावार्थ को आप फ़ोल्लो कर रहे हैं । मैं इस मजमे को यह भी दिखाऊँगा कि अमित जी जिसे महान समझ रहे हैं वह वेदों के एक मंत्र , एक लाइन बल्कि एक लफ़्ज़ का अनुवाद करने की योग्यता से भी रिक्त था लेकिन यहां तो पब्लिक भगवे कलर के कपड़ों में संस्कृत जानने वाले हरेक ऐरे ग़ैरे को गुरू या साक्षात ईश्वर ही मान लेती है । लेकिन पब्लिक का क्या है ? पब्लिक तो कुछ भी कह देती है । अब देखिये , अगर मैं ग़लत नहीं हूं तो ......
ख़ैर छोड़िये , आप पहले नाम बताइये । बाक़ी बातें उसके बाद ही होंगी ।
@भाई सहसपुरिया ! मेरी दुआएं आपके साथ हैं । मालिक उन्हें कुबूल करे और आपकी महबूब हस्तियों की मग़फ़िरत फ़रमाये । आमीन
अब ज्यादा कुछ कहने को तो है नहीं इन लोगो के पास ,Ctrl+c Ctrl+v यही काम है इनका ,रही बात जो मुख्य रूप से इनके कब्ज़ का कारण है वो यह है की आपके पुरखे पाकिस्तान क्यों नहीं चले गए?अगर नहीं गए तो आप को चले जाना चाहिए.
हम तो तुम्हारी छाती पर मूँग दलेँगे सालो
मज़ा आ गया जमाल साहब आज की पोस्ट ने पूरी पोल खोल दी
ज़माल मियां आदाब, ये हिन्दू धर्म की सहिष्णुता की ही मिसाल है की यहाँ सुधार की हमेशा ही गुंजायश रहती है। हमारे धर्म में फतवे जैसी चीज ही नहीं है की किसी ने गलत बात का भी विरोध किया तो दे दो फतवा उसका सर कलम करने का। हम हर चीज में ईश्वर का अंश समझते हैं इस लिए सब को अपनी बात कहने का हक़ देते हैं। ये हिन्दुओं का भारत ही है जहाँ छोटे से छोटा धार्मिक समुदाय भी खुद को सुरक्षित समझता है (सिर्फ मुसलमानों को छोड़ कर। क्या कारण है आप ज्यादा जानते होंगे।) जिस धर्म में सुरेन्द्र शर्मा जैसे लोग भी आजादी के साथ अपनी बात कह गए वहां भला किसी दुसरे को क्या परेशानी होगी। परेशानी तब होती है जब आप खुद के धर्म की गलत बातों का विरोध करने की बजाये दुसरे धर्मों की ओर देखते हैं क्योंकि अगर आप कहीं कोई सुधार करना ही चाहते हैं तो सबसे पहले अपना घर अपना धर्म सुधारो फिर दुसरे की बात करो। अगर आप अपने धर्म में विद्यमान गलत बातों का खुल कर विरोध करने की हिम्मत कर सको तो फिर हिन्दू धर्म के विषय में जो कुछ भी कहोगे उसे सब लोग आराम से सुनेंगे। अरे भाई जब हमने सुरेंदर शर्मा का विरोध नहीं किया और उसे अज्ञात ही रहने दिया तो तुमसे क्या बैर। पर अपनी बात दोहराऊंगा की पहले अपने धर्म की गलत बातों का विरोध करो फिर दुसरे की बात करो।
Bhagavad-Gita 2.32
yadṛcchayā copapannaḿ
svarga-dvāram apāvṛtam
sukhinaḥ kṣatriyāḥ pārtha
labhante yuddham īdṛśam
SYNONYMS
yadṛcchayā — by its own accord; ca — also; upapannam — arrived at; svarga — of the heavenly planets; dvāram — door; apāvṛtam — wide open; sukhinaḥ — very happy; kṣatriyāḥ — the members of the royal order; pārtha — O son of Pṛthā; labhante — do achieve; yuddham — war; īdṛśam — like this.
TRANSLATION
O Pārtha, happy are the kṣatriyas to whom such fighting opportunities come unsought, opening for them the doors of the heavenly planets.
PURPORT
As supreme teacher of the world, Lord Kṛṣṇa condemns the attitude of Arjuna, who said, "I do not find any good in this fighting. It will cause perpetual habitation in hell." Such statements by Arjuna were due to ignorance only. He wanted to become nonviolent in the discharge of his specific duty. For a kṣatriya to be on the battlefield and to become nonviolent is the philosophy of fools. In the Parāśara-smṛti, or religious codes made by Parāśara, the great sage and father of Vyāsadeva, it is stated:
kṣatriyo hi prajā rakṣan
śastra-pāṇiḥ pradaṇḍayan
nirjitya para-sainyādi
kṣitiḿ dharmeṇa pālayet
"The kṣatriya's duty is to protect the citizens from all kinds of difficulties, and for that reason he has to apply violence in suitable cases for law and order. Therefore he has to conquer the soldiers of inimical kings, and thus, with religious principles, he should rule over the world."
Considering all aspects, Arjuna had no reason to refrain from fighting. If he should conquer his enemies, he would enjoy the kingdom; and if he should die in the battle, he would be elevated to the heavenly planets, whose doors were wide open to him. Fighting would be for his benefit in either case.
बेटा , माफ़ करना आपको मैंने बेटा कहा है, क्योंकि आप अभी बच्चे हैं।
अगर नमाज को अरबी या उर्दू की बजाय हिन्दी या संस्कृत मैं अगर पढना हो तो भी आप येही कहेंगे की ये हमारे अल्लाह के खिलाफ है। क्योंकि अरब समाज मैं सभी लोग अनपढ़ रहते थे। अरब समाज मेमाँ और बहन लिए कोई जगह तो थी नहीं। अरब समाज में औरत को तो सिर्फ बच्चा पैदा करने की मशीन समझा जाता था इसलिएआपका वो कलवे भी येही कहता है ।
तुम अरबी सोच रखने वाले क्या जानो की माँ की इज्जत क्या होती है। औरत तो तुम्हारी नजर में खेती है , चाहे जैसे इस्तेमाल करो।
मगर aap हिंदुस्तान में रह रहे हैं। आप के माँ और बाप भी हिन्दुस्तानी ही हैं। आप के अन्दर बहने वाला खून भी हिन्दुस्तानी ही है। लेकिन आपकी सोच अरबियन क्यों ।
Bhagavad-Gita 2.33
atha cet tvam imaḿ dharmyaḿ
sańgrāmaḿ na kariṣyasi
tataḥ sva-dharmaḿ kīrtiḿ ca
hitvā pāpam avāpsyasi
SYNONYMS
atha — therefore; cet — if; tvam — you; imam — this; dharmyam — as a religious duty; sańgrāmam — fighting; na — do not; kariṣyasi — perform; tataḥ — then; sva-dharmam — your religious duty; kīrtim — reputation; ca — also; hitvā — losing; pāpam — sinful reaction; avāpsyasi — will gain.
TRANSLATION
If, however, you do not perform your religious duty of fighting, then you will certainly incur sins for neglecting your duties and thus lose your reputation as a fighter.
PURPORT
Arjuna was a famous fighter, and he attained fame by fighting many great demigods, including even Lord Śiva. After fighting and defeating Lord Śiva in the dress of a hunter, Arjuna pleased the lord and received as a reward a weapon called pāśupata-astra. Everyone knew that he was a great warrior. Even Droṇācārya gave him benedictions and awarded him the special weapon by which he could kill even his teacher. So he was credited with so many military certificates from many authorities, including his adopted father Indra, the heavenly king. But if he abandoned the battle, not only would he neglect his specific duty as a kṣatriya, but he would lose all his fame and good name and thus prepare his royal road to hell. In other words, he would go to hell, not by fighting, but by withdrawing from battle.
Bhagavad-Gita 2.34
akīrtiḿ cāpi bhūtāni
kathayiṣyanti te 'vyayām
sambhāvitasya cākīrtir
maraṇād atiricyate
SYNONYMS
akīrtim — infamy; ca — also; api — over and above; bhūtāni — all people; kathayiṣyanti — will speak; te — of you; avyayām — forever; sambhāvitasya — for a respectable man; ca — also; akīrtiḥ — ill fame; maraṇāt — than death; atiricyate — becomes more.
TRANSLATION
People will always speak of your infamy, and for a respectable person, dishonor is worse than death.
PURPORT
Both as friend and philosopher to Arjuna, Lord Kṛṣṇa now gives His final judgment regarding Arjuna's refusal to fight. The Lord says, "Arjuna, if you leave the battlefield before the battle even begins, people will call you a coward. And if you think that people may call you bad names but that you will save your life by fleeing the battlefield, then My advice is that you'd do better to die in the battle. For a respectable man like you, ill fame is worse than death. So, you should not flee for fear of your life; better to die in the battle. That will save you from the ill fame of misusing My friendship and from losing your prestige in society."
So, the final judgment of the Lord was for Arjuna to die in the battle and not withdraw.
Bhagavad-Gita 2.35
bhayād raṇād uparataḿ
maḿsyante tvāḿ mahā-rathāḥ
yeṣāḿ ca tvaḿ bahu-mato
bhūtvā yāsyasi lāghavam
SYNONYMS
bhayāt — out of fear; raṇāt — from the battlefield; uparatam — ceased; maḿsyante — they will consider; tvām — you; mahā-rathāḥ — the great generals; yeṣām — for whom; ca — also; tvam — you; bahu-mataḥ — in great estimation; bhūtvā — having been; yāsyasi — you will go; lāghavam — decreased in value.
TRANSLATION
The great generals who have highly esteemed your name and fame will think that you have left the battlefield out of fear only, and thus they will consider you insignificant.
PURPORT
Lord Kṛṣṇa continued to give His verdict to Arjuna: "Do not think that the great generals like Duryodhana, Karṇa, and other contemporaries will think that you have left the battlefield out of compassion for your brothers and grandfather. They will think that you have left out of fear for your life. And thus their high estimation of your personality will go to hell."
Bhagavad-Gita 2.36
avācya-vādāḿś ca bahūn
vadiṣyanti tavāhitāḥ
nindantas tava sāmarthyaḿ
tato duḥkhataraḿ nu kim
SYNONYMS
avācya — unkind; vādān — fabricated words; ca — also; bahūn — many; vadiṣyanti — will say; tava — your; ahitāḥ — enemies; nindantaḥ — while vilifying; tava — your; sāmarthyam — ability; tataḥ — than that; duḥkha-taram — more painful; nu — of course; kim — what is there.
TRANSLATION
Your enemies will describe you in many unkind words and scorn your ability. What could be more painful for you?
PURPORT
Lord Kṛṣṇa was astonished in the beginning at Arjuna's uncalled-for plea for compassion, and He described his compassion as befitting the non-Āryans. Now in so many words, He has proved His statements against Arjuna's so-called compassion.
Bhagavad-Gita 2.37
hato vā prāpsyasi svargaḿ
jitvā vā bhokṣyase mahīm
tasmād uttiṣṭha kaunteya
yuddhāya kṛta-niścayaḥ
SYNONYMS
hataḥ — being killed; vā — either; prāpsyasi — you gain; svargam — the heavenly kingdom; jitvā — by conquering; vā — or; bhokṣyase — you enjoy; mahīm — the world; tasmāt — therefore; uttiṣṭha — get up; kaunteya — O son of Kuntī; yuddhāya — to fight; kṛta — determined; niścayaḥ — in certainty.
TRANSLATION
O son of Kuntī, either you will be killed on the battlefield and attain the heavenly planets, or you will conquer and enjoy the earthly kingdom. Therefore, get up with determination and fight.
PURPORT
Even though there was no certainty of victory for Arjuna's side, he still had to fight; for, even being killed there, he could be elevated into the heavenly planets.
Bhagavad-Gita 2.38
sukha-duḥkhe same kṛtvā
lābhālābhau jayājayau
tato yuddhāya yujyasva
naivaḿ pāpam avāpsyasi
SYNONYMS
sukha — happiness; duḥkhe — and distress; same — in equanimity; kṛtvā — doing so; lābha-alābhau — both profit and loss; jaya-ajayau — both victory and defeat; tataḥ — thereafter; yuddhāya — for the sake of fighting; yujyasva — engage (fight); na — never; evam — in this way; pāpam — sinful reaction; avāpsyasi — you will gain.
TRANSLATION
Do thou fight for the sake of fighting, without considering happiness or distress, loss or gain, victory or defeat — and by so doing you shall never incur sin.
PURPORT
Lord Kṛṣṇa now directly says that Arjuna should fight for the sake of fighting because He desires the battle. There is no consideration of happiness or distress, profit or gain, victory or defeat in the activities of Kṛṣṇa consciousness. That everything should be performed for the sake of Kṛṣṇa is transcendental consciousness; so there is no reaction to material activities. He who acts for his own sense gratification, either in goodness or in passion, is subject to the reaction, good or bad. But he who has completely surrendered himself in the activities of Kṛṣṇa consciousness is no longer obliged to anyone, nor is he a debtor to anyone, as one is in the ordinary course of activities. It is said:
devarṣi-bhūtāpta-nṛṇāḿ pitṝṇāḿ
na kińkaro nāyam ṛṇī ca rājan
sarvātmanā yaḥ śaraṇaḿ śaraṇyaḿ
gato mukundaḿ parihṛtya kartam
"Anyone who has completely surrendered unto Kṛṣṇa, Mukunda, giving up all other duties, is no longer a debtor, nor is he obliged to anyone — not the demigods, nor the sages, nor the people in general, nor kinsmen, nor humanity, nor forefathers." (Bhāg. 11.5.41) That is the indirect hint given by Kṛṣṇa to Arjuna in this verse, and the matter will be more clearly explained in the following verses.
एक बेवक़ूफ़ आदमी की तुलना आप श्री कृष्ण से कर रहे हैं , वो भी एक ऐसे आदमी की जो रेगिस्तान में अपनी पूरी जिंदगी बिता दी, जिसने पूरी दुनिया तो कभी देखि नहीं।
कुरान एक धार्मिक किताब है, क्यों उसका मजाक उड़ने पर तुले हुए हैं आप,
कंही ऐसा न हो की लोगो का विश्वाश कुरान पर से हट जाये।
जिस पूजा घर में अल्लाह के लिए नमाज पढ़ते हो उसी पूजा घर को गन्दा कर के रखने वाले डॉ अनवर जमाल तुम्हे क्या पता की वेदक्या चीज हैं। ऋषि और महर्षीयों का योगदान क्यों भूल कर के बैठे हो।
तुम्हारे कुरान में अल्लाहं के अलावा और तो कुछ हैं नहीं। पूरी दुनिया देखो, देखने के लिए बहुत कुछ है कुरान के अलावा।
Bhagavad-gītā 3.30
mayi sarvāṇi karmāṇi
sannyasyādhyātma-cetasā
nirāśīr nirmamo bhūtvā
yudhyasva vigata-jvaraḥ
SYNONYMS
mayi — unto Me; sarvāṇi — all sorts of; karmāṇi — activities; sannyasya — giving up completely; adhyātma — with full knowledge of the self; cetasā — by consciousness; nirāśīḥ — without desire for profit; nirmamaḥ — without ownership; bhūtvā — so being; yudhyasva — fight; vigata-jvaraḥ — without being lethargic.
TRANSLATION
Therefore, O Arjuna, surrendering all your works unto Me, with full knowledge of Me, without desires for profit, with no claims to proprietorship, and free from lethargy, fight.
PURPORT
This verse clearly indicates the purpose of the Bhagavad-gītā. The Lord instructs that one has to become fully Kṛṣṇa conscious to discharge duties, as if in military discipline. Such an injunction may make things a little difficult; nevertheless duties must be carried out, with dependence on Kṛṣṇa, because that is the constitutional position of the living entity. The living entity cannot be happy independent of the cooperation of the Supreme Lord, because the eternal constitutional position of the living entity is to become subordinate to the desires of the Lord. Arjuna was therefore ordered by Śrī Kṛṣṇa to fight as if the Lord were his military commander. One has to sacrifice everything for the good will of the Supreme Lord, and at the same time discharge prescribed duties without claiming proprietorship. Arjuna did not have to consider the order of the Lord; he had only to execute His order. The Supreme Lord is the soul of all souls; therefore, one who depends solely and wholly on the Supreme Soul without personal consideration, or in other words, one who is fully Kṛṣṇa conscious, is called adhyātma-cetas. Nirāśīḥ means that one has to act on the order of the master but should not expect fruitive results. The cashier may count millions of dollars for his employer, but he does not claim a cent for himself. Similarly, one has to realize that nothing in the world belongs to any individual person, but that everything belongs to the Supreme Lord. That is the real purport of mayi, or "unto Me." And when one acts in such Kṛṣṇa consciousness, certainly he does not claim proprietorship over anything. This consciousness is called nirmama, or "nothing is mine." And if there is any reluctance to execute such a stern order, which is without consideration of so-called kinsmen in the bodily relationship, that reluctance should be thrown off; in this way one may become vigata-jvara, or without feverish mentality or lethargy. Everyone, according to his quality and position, has a particular type of work to discharge, and all such duties may be discharged in Kṛṣṇa consciousness, as described above. That will lead one to the path of liberation.
Bhagavad-gītā 3.33
sadṛśaḿ ceṣṭate svasyāḥ
prakṛter jñānavān api
prakṛtiḿ yānti bhūtāni
nigrahaḥ kiḿ kariṣyati
SYNONYMS
sadṛśam — accordingly; ceṣṭate — tries; svasyāḥ — by his own; prakṛteḥ — modes of nature; jñāna-vān — learned; api — although; prakṛtim — nature; yānti — undergo; bhūtāni — all living entities; nigrahaḥ — repression; kim — what; kariṣyati — can do.
TRANSLATION
Even a man of knowledge acts according to his own nature, for everyone follows the nature he has acquired from the three modes. What can repression accomplish?
PURPORT
Unless one is situated on the transcendental platform of Kṛṣṇa consciousness, he cannot get free from the influence of the modes of material nature, as it is confirmed by the Lord in the Seventh Chapter (7.14). Therefore, even for the most highly educated person on the mundane plane, it is impossible to get out of the entanglement of māyā simply by theoretical knowledge, or by separating the soul from the body. There are many so-called spiritualists who outwardly pose as advanced in the science but inwardly or privately are completely under particular modes of nature which they are unable to surpass. Academically, one may be very learned, but because of his long association with material nature, he is in bondage. Kṛṣṇa consciousness helps one to get out of the material entanglement, even though one may be engaged in his prescribed duties in terms of material existence. Therefore, without being fully in Kṛṣṇa consciousness, one should not give up his occupational duties. No one should suddenly give up his prescribed duties and become a so-called yogī or transcendentalist artificially. It is better to be situated in one's position and to try to attain Kṛṣṇa consciousness under superior training. Thus one may be freed from the clutches of Kṛṣṇa's māyā.
महोदय अगर आपने गीता को समझ लिया होता तो मेरा दावा है कि आप इस प्रकार की उलूल जुलूल बातें करना छोड़कर गीता के उपदेश दे रहे होते।
और वैसे भी गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है जो अपने आप को मुझे समर्पित करेगा वही इस महात्म्य को समझ पायेगा तो पहले अपने आप को भगवान कृष्ण के प्रति समर्पित कीजिये फ़िर गीता या वेद के आख्यान कीजिये।
कम बोले को ज्यादा समझें..
ज़माल मियां तुम्हारे पहले कमेन्ट में तुमने बड़ी अजीब सी बात की है। पहले तो तुम अमित के गुरु जी के वेदों की एक लाइन का अर्थ ना जानने और उनकी कही दूसरी बातोंको सबके सामने लाने की बात करते हो फिर पूछते हो की उनके गुरूजी का क्या नाम है । एक ही जगह पर दो विपरीत बातें कहने की कमी तुममे पहले से ही थी या अभी अमित की पोस्ट पढ़कर कुछ फर्क पड़ा है। कुछ दिनों की छुट्टी लो दोस्त किसी ठन्डे प्रदेश में घूम आओ। गर्मी बहुत है।
islam ke dwara duniya me atank , hinsa aur durachar faila hai ,jabse islam aya tabse karono ki hatya karke bhi chup nahi aj bhi hinsa me hi baswas. kaha tum kuran jaisi pustak se tulna kar rahe ho .kripya gita par kament band karo.
अज्ञात शर्मा की और किताबे भी गहरी resersh के बाद लिखी गयी है
उनके बारे me भी bataaya jaye
हिंदू समाज सामाजिक तथा पारिवारिक समस्याओं पर हमारी पुस्तकें
सरिता व मुक्ता इस की संबंधित पत्रिकाओं में समय समय पर हिंदू समाज, प्राचीन भारतीय संसकृति, आर्थिक, सामाजिक तथा पारिवारिक समस्याओं पर प्रकाशित विचारणीय लेखों के रिप्रिंट अब 12 सैटों में उपलब्ध, हर सेट में लगभग 25 लेख
पुस्तकः हिंदू समाज के पथभ्रष्टक तुलसीदास
हिंदू समाज को पथभ्रष्ट करने वाले इस संत कवि के साहित्यिक आडंबरों की पोल खोलकर उस की वास्तविकता उजागर करना ही इस पुस्तक का उददेश्य है
पुस्तक, रामायणः एक नया दृष्टिकोण
प्रचलित लोक धारणा के विपरीत कोई धर्म ग्रंथ न होकर एक साहित्यिक रचना है, इसी तथ्य को आधार मानते हूए रामायण के प्रमुख पात्रों, घटनाओं के बारे में अपना चिंतन प्रस्तुत किया है, रामायण की वास्तविकता को समझने के लिए विशेष पुस्तक
पुस्तकः हिंदू इतिहासः हारों की दास्तान
प्रचलित लोक धारणा के विपरीत कोई धर्म ग्रंथ न होकर एक साहित्यिक रचना है, इसी तथ्य को आधार मानते हुए रामायण के प्रमुख पात्रों, घटनाओं के बारे में अपना चिंतन प्रस्तुत किया है रामायण की वास्तविकता को समझने के लिए विशेष पुस्तक
पुस्तकः क्या बालू की भीत पर खडा है हिंदू धर्म?
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पुस्तकः कितने अप्रासंगिक हैं धर्म ग्रंथ
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पुस्तकः हिंदू संस्कृतिः हिन्दुओं का सामाजिक विषटन
पुस्तकः कितना महंगा धर्म
English book:
The Ramayana : A new Point of view
Hindu: A wounded society
The history of Hindus: the Saga of defeats
A study of the ethics of the banishment of Sita
Tulsidas: Misguider of Hindu society
The Vedas; the quintessence of Vedic Anthologies
India: what can it teach us!
God is my एनेमी
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111, आशियाना टावर्स, ऐगिजबिशन रोड, पटना 800001
122, चिनौय टेड सेंटर, 116, पार्क लेन, सिकंदराबाद 500003
अरे भाई हमें तो heart attack हो जायेगा हमारा भरम बना रहने दो
kaya itna hi kachha hamara dharam hai hame to aaj pata chala
चाचा मेरी माँ को घोडी कब बनाओगे,मेरा बाप तो मर गया एक भैया आप ही की मदद से मिल जाये
@विचार सुनिये अनवर तो सायण को प्रमाणिक मानते हैं
और निसन्देह अमित जी के गुरू को भी जानते हैं वेदार्थ को बिगाडने में तो केवल दयानन्द जी का नाम
मशहूर है शायद इसी लिये अमित जी नाम लेते हुये शर्मा रहे हैं क्यूंकि इधर उनका नाम लिया नहीं उधर उनके विचारों का पोस्टमार्टम शुरू
आपका हर लेख क्रिया की प्रितिक्रिया है, मगर गिरे हुए और चिपकू लोगो को कोन बताए? इन को तो बस ''बुधीजीवी'' बनने की धुन है, अब ज़ाहिर सी बात है ''बुधीजीवी '' कहलाने के लिए इस्लाम और मुसलमान से अच्छा सॉफ्ट टारगेट कोन सा होगा, जिन्होने ज़िंदगी मैं कभी कोई कुछ नही किया वो कूप मंडूक बुधीजीवी आज हमें जीना सीखा रहे है? ताज्जुब है और सद अफ़सोस इनकी सोच पर या यूँ कहिए लानत है.....
जब आदमी के पास तर्क नहीं रहते तो वह गालियों पर उतर आता हे , यही हमारे हिन्दू भाई लोग कर रहे हें ,अरे भाई सच को सच कहना सीखो , , , सीखो , आखिर कब शिखोगे ,,,,,,,,, समें बीत जाएगा तब सीखोगे , ?
मैं अनवर जमाल के कहने से क्यों मानू ,मैं तो स्वयं पढूंगा ,ओर अगर सच मैं ऐसा ही होगा तो मैं हिदू धर्म को शद्धांजलि दे दूंगा ,,, सत्य की जय हो ,,,,
--अब तो मज़हब कोई ऐसा बनाया जाए
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी बनाया जाए
जिसमें हर इंसान को इन्सां बनाया जाए
जिसकी खुशबू से महक उठे पड़ोसी का भी घर
फूल ऐसा कोई बगिया में खिलाया जाए
अब तो ....................इन्सां बनाया जाए
आग बहती है यहाँ गंगा में भी झेलम में भी
कोई बतलाये कहाँ जा कर नहाया जाए
अब तो .....................इन्सां बनाया जाए
तेरे दुख और दर्द का हम पर भी हो इतना असर
तू रहे भूखा तो मुझसे भी न खाया जाए
अब तो ......................इन्सां बनाया जाए
जिस्म अपने कई हैं लेकिन दिल तो अपने एक हैं
तेरा आँसू मेरी पलकों पे उठाया जाए
अब तो......................इन्सां बनाया जाए
dr. jamaal agar amit ka intjar h to thodi tasalli rakhiye woh ganw gaye h mere unse ph. pe baat hui thi, itna mat tadpo tumhari is kabj ka churan bhi dende woh tumko
मुस्लिम समाज आज इतना अकेला खडा है कि वो अपनी खूनी पहचान या आतंकवादी की पहचान, को छुपान के लिये दूसरे धर्म की किताबों का चीड फाड कर रहा है और झूटी और मनगडंत बाते कहता रहता है, अनबर भी उसी की उपज है जो एक "परेशान आत्मा" है और उसके सथी जो वाह वाह करते रह्ते है "परेशान आत्मायें"
आज मुसलमानो को इसकी जरूरत क्यों पड रही है| इसके लिये क्या हिन्दू पवित्र धर्म ग्रन्थ वेद, पुराण, रामायन और गीता दोसी है या बाइबिल या यहूदी धर्म पुस्तक या बौध धर्म पुस्तक. मुसलमान लोग इन किताबो को नही पडते, तो फिर जाहिर ये किताबे मुसल्मान की इस दशा के लिये दोशी नही हो सकते
आज किसी भी देश मे देखो लोग मुसलमानो से परेशान , चाहे खुद पाकिस्तान और अफ्गानिसतान या चीन , नाईजीरिया, अमेरिका, स्लोवाकिया, रूस, चेचन आदि देश हो| भारत तो परेशान है ही|
इन सब के लिये मुसल्मान नही केवल "खूनी किताब कुरान" दोशी है जिसके लेखक है पैगम्बर, पैगम्बर को खूनी साहित्या लिख्नने के लिये अज्ञानपीठ पुरस्कार मिलना चाहिये | कुरान धर्म पुस्तफ़्क नही है यह केवल साहित्या है|
जो एक फतवे की तरह काम करती है और लोगो को डराती है कुरान अपने आप मे एक फतवा है| जैसे सोहेब 7,8 दिन से रात , दिन सादी से पहले सानिया के घर रह रहा था, फिर सोहेब को सरिया कानून (फतवा कानून) याद आया वो रात को ही होटल रहने के लिये चला गया बेचार सोहेब
आज के समाज मे कुरान की प्रासांगिकता खत्म हो चुकी है| कुरान मे दूसरे धर्मो के बारे मे गलत लिखा है जैसे इसाई और यहूदी हमारे दुस्मन है तो जो किताव दूसरे धर्म को गलत बतात है वह कैसे धर्म पुस्तक हो सकती, इस्लाम को छोड कर किसी भी धर्म पुस्तक मे दूसरे धर्म के बारे मे गलत नही लिखा है
कुरान को आप कही से भी पढो, यह केवल फत्वे की बात करता है, और डरावनी बाते होती है, जो इस किताब को पडता है, यही डरावनी बाते, उसको आदमी से सैतान बना देता है जैसा आत्मघाती बम और डा. अनवर,
डा. अनवर वेदो को गलत सबित करने पे तुले है, रात दिन (24*7) मेहनत कर रहे है क्या इससे इस्लाम को फायदा पहुचेगा, क्या मुस्लिम समाज का भला होगा जो करते कुछ काम नही करते है केवल इस्लाम के नाम आरक्षण मागते रहते है|
डा. अनवर अगर इतना समय अपने बच्चो को पढने मे लगाते तो उसको आरक्षर की जरूरत नही होती, मुस्लिम समाज या देश का भला होता, लेकिन क्या मुस्लिम समाज को देश की चिन्ता रहती है ये जिस भी देश रहते है उन्के लिये सिर दर्द बन जाते हैन जैसे चीन, रूस, भारत, फ्रांस, मुस्लिम समाज देश द्रोही होते है, इनको केवल इस्लाम की चिन्ता रहती जैसे भारत, अफ्गानिस्तान, पाकिस्तान, नाईजीरिया, इराक मै आये दिन मुस्लिम लोग बम फोड ते रहेते है इस्लाम के नाम पर, इनके देश की चिन्ता नही है
ये देस का राष्ट्रिया गत वंदेमात्र या भारत माता की जै नही गा सकते, इसमे भी इनको कुरानी फतवा से डर लग जाता है
मुनाफ पटेल
गीता का उपदेश है की अगर सगा सम्बन्धी भी ज़ालिम (अत्याचारी) हो जाए तो उसके खिलाफ जिहाद करो. और यही कुरआन का भी सन्देश है.
आपसे अनुरोध (नहीं) है कमेंटस माडरेट लगालो फिर झूठ ही कह सकोगे मुझे धमकियां दी जा रही हैं, सच कहने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी अपने आप दूसरों को दिखायी देंगी
Geeta ke Dharm Yudh aur Kuraan ke Jihaad mein bahut antar hai.Koi unhe ek samajhne ki bhool naa kare.
Geeta ke jis yudh ke samarthan ke sandesh ko yahan bhaii Jamaal ji ne uthaaya hai us se pehle hamein ye bhi dekhna chaahiye ki wo sandesh kiske prati kaha gaya hai aur kyon kaha gaya hai.Ye sandesh kisi bhi aise person ke against nahin diya gaya hai jo ki hamaare vichaaron se sehmat na ho.Ye to aise logon ke khilaaf diya gaya hai jo hamein nuksaan pahuchaane ki koshish karein, jo hamein maarne ki koshish karein, jo hamaare adhikaar lene ki koshish karein phir chaahe wo hamaare apne hi kyon na ho lekin aise logon ki koshish hamein safal nahin hone deni hai aur unka anth karna hai kyonki pehle unhone hamein nuksaan pahuchaanne ki koshish ki.Jaise ki Duryodhan, Shakuni aur Kaurvon ka poori mahabharat mein character dekha jaaye to unhone har baar paandvo ko nuksaan pahuchaane ko koshish ki, unke adhikaar lene ki koshish ki, unhe maarne ki koshish ki aur isme unke kul ke bade log bhi bas tamaasha dekhte rahe aur jo galat kar rahe the unhi ka saath diya.Tab jaakar unke is injustice aur atyachaaron ke jawaab mein ye geeta ka yudh sandesh diya gaya.
Lekin Kuran mein to Har us person ke khilaaf jihaad karne ki, uska katl karne ki baat kahi gayi hai jo aapke vichaaron se thoda bhi disagree ho.Ab bhala ye bhi koi baat hui.Aap jo karna chahte hain wo karein lekin aap mere upar kisi bhi prakar ki zabardasti nahin kar sakte ki tum bhi aisa hi karo varna tumhe maar diya jaayega.
Yahi to fark hai Geeta ke yudh sandesh mein aur Kuraan ke jihaad mein ki Geeta mein kaha gaya hai ki jo tumhe nuksaan pahuchaaye sirf uske khilaaf yudh karo chaahe wo tumhaara apna ho ya paraya jabki kuran kehti hai ki koi tumhe nuksaan pahuchaaye ya naa pahuchaayein lekin tumhe to usey nuksaan pahuchaana hi hai kyonki wo tumhaari baaton se agree nahin hai.
Kuran ki ye baatein "Jiyo aur Jeene Do" ke siddhant ke khilaaf hain.
डॉ अनवर जमाल !
आपने प्रतिक्रिया वादियों को जवाब देने के नाम पर जो ब्लाग बना रखा है ! मेरी राय में वह सिर्फ दूसरों की धार्मिक भावनाओं का उपहास बनाने का एक साधन मात्र है चूंकि आपने कई बार मुझे आदरपूर्वक संबोधित करते हुए सम्मानित किया है अतः मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि इस ब्लाग पर से दूसरे धर्म से सम्बंधित समस्त लेख छापने,उल्लेख और उन पर कमेंट्स देने तुरंत बंद कर दें जिससे अन्य भाइयों की आस्था आहत न हो !
आशा है सद्भाव बनाए रखेंगे !!
सादर !
dharm के नाम पर पाखँड का परदाफाश करना महान काम है जो अनवर जमाल साहब बखूबी कर रहे है
आप कौन है और परिचय क्या है ...यह तो नहीं मालूम डॉ अयाज अहमद ! मगर मकसद आपका ..? कभी सोचें जरूर !
धरम के नाम पर पाखण्ड का पर्दाफाश करना ही चाहिए मगर किसके धर्म की बात कर रहें हैं आप अपने धर्म की ? अथवा हिन्दू या अन्य धर्मों की ? अगर गंदगी साफ़ करने का शौक है तो अपने घर से शुरू करनी चाहिए न कि आप किसी और के घर आ जायेंगे ! किसी और के घर की सफाई करने की कोशिश करने वाले को जाहिल बाद दिमाग कहा जाता है !
आशा है मेरी बात को अन्यथा न लेकर सही तरह से गौर फरमाएंगे !
भाई जमाल ...तू क्या समझाता हे की में झूठी गीता की बुराई करके बड़ा मोलवी बन जाऊंगा ....गीता कृषण को समझा हे रहीम खान खाना ने ...रसखान ने ...जो डूब गए थे कृषण की भक्ती में ....तू एक कटर कटवा बना चाहता हे...पहले तेरा उद्देश्य था सारा संसार कटवा बन के हरे रंग का हो जाये ....लकिन तेरी मारने लग गये तो तूझे भी लिंगागर की याद आयी ...लकिन अब बहुत देर हो चुकी हे ...लूंगी छोड़ के भागना पड़ेगा ...अभी अमीत भाई और सुरेश जी सर के सामने ..केसे भोख्ला जाता हे तू ....पिगाम्बेर जो ठहरा
च चा तू क्या समझाता हे हिंदुवो के एक महान गरंथ गीता की बुराई करके एक बड़ा मोलवी बन जायेगा .....हार गया इस्लाम भारत में आ के ..डूब गया गंगा जमुना में ...कृषण को समझा हे अब्दुल रहीम खान खाना ने ...रसखान ने ..डूब गए थे वो इनकी भक्ती में ...तू क्या समझाता हे की तेरी झूटी बुरइयो से हिन्दू धरम में आग लग जायेगी ....गलीच इस्लाम की तरफ आकर्षीत होंगे हिन्दू युवा ...कभी नहीं जो गलीच्छ धरम अपनी सगी बहन को नहीं छोड़ता हे (तू तो शास्त्रों में झूटे से तोड़ मरोड़ के पेश करता हे जिसकी हवा भाई अमीत ने निकल दी थी) वो कोनसा धरम हे ?..जो अपनी माँ को अंडे देने वाली मुरगी मानता हे??? वो कोनसा धरम हे ??? जो अपने बाप कोनमाज पढ़ने वाला व्यक्ती मानता हे .(.इसके आलावा कुछ नहीं ) वो नालायक धरम हे इस्लाम .......हिन्दू धरम भारत के कण कण में बसा हुआ हे .....जब ही तो १४०० साल के इतिहास में तूम शासक हो के भी इस धरम का झांट का बाल भी बांका नहीं कर सके तो सपने देखना छोड़ ...और अपना कीमती वकत अपनी कोम की खिदमद में लगा ..तेरे जेसे चूतिये की वजह से इस्लाम बदनाम हे ....आज किसी भी जगह मूसल्मान्न को शक की निगाहों से देखा जाता उसे नोकरी देने से कतराते हे लोग क्यों??
आज अजीज प्रेम जी तेरे जेसी घटिया सोच रखते तो टॉप बिजिनेस मेन नहीं बनते ..अब्दुल कलाम जेसा महान आदमी., जीस पैर आज कोई भी आम आदमी गर्व कर सकता हे ....तूझ जेसे पैर मूतना भी पसंद करेगा ..जवाब देना नहीं तो समझूंगा की सुवर को कितना भी गिरियावो वो तो वंही मूह मरेगा जन्हा गंदगी हो ...पिग्म्बेर जो ठहरा ......जय श्री राम
डॉ अनवर जमाल ,
कृपया विश्वास करें मेरा, आप विद्वान् है मेरा अभी भी मानना यही है ! मगर जिस राह आप जा रहे हो उससे माहौल और विषाक्त हो रहा है ...मैं आपको उस राह से रोकने का प्रयास करने हेतु यह लिख रहा हूँ !
मुझे अब भी यह विश्वास नहीं होता कि आपके मन में वैमनस्य बढाने की ही इच्छा है ...अगर यह सच है तो आप जैसे समझदार लोग समाज को बहुत कुछ देने की क्षमता या लेने की क्षमता रखते हैं ! इंसानियत की दुहाई देने वाले हमारे धर्मग्रन्थ आपको क्या करवाने पर मजबूर कर रहे हैं ! बापस आइये, अपने पूरे ईमान के साथ और कुछ नयी शुरुआत करें अनवर भाई ! यह देश आपका उतना ही है जितना मेरा ... मैं आपको समझाने की ध्रष्टता क्यों कर रहा हूँ ....??
saleem said...
चाचा मेरी माँ को घोडी कब बनाओगे,मेरा बाप तो मर गया एक भैया आप ही की मदद से मिल जाये
इन पंक्तियों को लिखने वाले सलीम पर क्लिक करिये, घूम फिर कर वेदकुरआन पर पहुंच जायेंगे, अब मैं इनके कमेन्ट पर यही कह सकता हूं कि भगवान इन्हें सद्बुद्धि दे....यदि यह अपनी मां के बारे में इतनी विकृत सोच रखते हैं तो इनके मानसिक स्तर का अंदाजा लगाया जा सकता है...
सच्चे मुसलमानों से मिलना है तो मिलें महफूज जी से, फौजिया से, फिरदौस जी से, इन तालिबानियों के लिये तो बुश अंकल ही ठीक है...
अनवर जमाल साहब आपके ब्लॉग का पोस्ट भी पढ़ा और उस पर दिए कमेंट्स भी पढ़े। गीता को लेकर पोस्ट में जो बातें उठाई गई हैं वो एक अच्छी और सार्थक बहस का हिस्सा बन सकती हैं, लेकिन यहां कमेंट्स के जरिए जो बातें निकलकर सामने आ रही हैं उसे देखते हुए इस स्तरहीन बहस में हिस्सा बनने से हम तो साफ हिचक रहे हैं। धर्म चाहे कोई भी हो यदि उसमें कोई बुराई है तो उस पर चर्चा होनी चाहिए साथ ही हमें उसमें सुधार की गुंजाइश भी ढूंढनी चाहिए।
Geeta ke Dharm Yudh aur Kuraan ke Jihaad mein bahut antar hai.Koi unhe ek samajhne ki bhool naa kare.
Geeta ke jis yudh ke samarthan ke sandesh ko yahan bhaii Jamaal ji ne uthaaya hai us se pehle hamein ye bhi dekhna chaahiye ki wo sandesh kiske prati kaha gaya hai aur kyon kaha gaya hai.Ye sandesh kisi bhi aise person ke against nahin diya gaya hai jo ki hamaare vichaaron se sehmat na ho.Ye to aise logon ke khilaaf diya gaya hai jo hamein nuksaan pahuchaane ki koshish karein, jo hamein maarne ki koshish karein, jo hamaare adhikaar lene ki koshish karein phir chaahe wo hamaare apne hi kyon na ho lekin aise logon ki koshish hamein safal nahin hone deni hai aur unka anth karna hai kyonki pehle unhone hamein nuksaan pahuchaanne ki koshish ki.Jaise ki Duryodhan, Shakuni aur Kaurvon ka poori mahabharat mein character dekha jaaye to unhone har baar paandvo ko nuksaan pahuchaane ko koshish ki, unke adhikaar lene ki koshish ki, unhe maarne ki koshish ki aur isme unke kul ke bade log bhi bas tamaasha dekhte rahe aur jo galat kar rahe the unhi ka saath diya.Tab jaakar unke is injustice aur atyachaaron ke jawaab mein ye geeta ka yudh sandesh diya gaya.
Lekin Kuran mein to Har us person ke khilaaf jihaad karne ki, uska katl karne ki baat kahi gayi hai jo aapke vichaaron se thoda bhi disagree ho.Ab bhala ye bhi koi baat hui.Aap jo karna chahte hain wo karein lekin aap mere upar kisi bhi prakar ki zabardasti nahin kar sakte ki tum bhi aisa hi karo varna tumhe maar diya jaayega.
Yahi to fark hai Geeta ke yudh sandesh mein aur Kuraan ke jihaad mein ki Geeta mein kaha gaya hai ki jo tumhe nuksaan pahuchaaye sirf uske khilaaf yudh karo chaahe wo tumhaara apna ho ya paraya jabki kuran kehti hai ki koi tumhe nuksaan pahuchaaye ya naa pahuchaayein lekin tumhe to usey nuksaan pahuchaana hi hai kyonki wo tumhaari baaton se agree nahin hai.
Kuran ki ye baatein "Jiyo aur Jeene Do" ke siddhant ke khilaaf hain.
अनवर भाई,
युद्ध की बात करना, युद्ध के लिए प्रिशिक्षण लेना, युद्ध के लिए उपदेश देना अथवा युद्ध के लिए युवाओं को तैयार करना, इसमें से कुछ भी बुरा नहीं है. बस बुरा है युद्ध का गलत उपयोग. क्योंकि अगर उपरोक्त बातें बुरी होती तो आज किसी भी देश में सेना नहीं होती. आज हम अपने देश के वीर जवानों पर फख्र नहीं करते. और अगर हमारे जवान युद्ध के लिए तैयार नहीं होते तो आज हम पहले ही की तरह गुलाम होते.
बस बात यह है कि युद्ध के उपदेशों को लोग सामान्य हालातों के उपदेश बता कर सारी दुनिया को बेवक़ूफ़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं. और दर-असल स्वयं अपने आप को ही बेवक़ूफ़ बना रहे हैं.
वैसे अनवर भाई, यह ज़रूरी नहीं होता कि जानवरों के भोंकने से जवाब में इंसान भी भोकने लग जाएँ. यह सब लिखने से बेहतर है, दोनों धर्मों में क्या समानताएं हैं, इस पर रौशनी डालते. शांति और भाईचारे की आज पुरे विश्व को ज़रुरत है. वैसे भी हमारे मज़हब का नाम ही शांति है, और इससे बड़ी बात कोई दूसरी हो ही नहीं सकती है.
@ मेरे मेहरबान और शफीक बुज़ुर्ग जनाब सतीश जी ! मैं न तो आपसे दूर हूँ और न ही बाहर , आपकी बात ज़ुरूर रखी जाएगी लेकिन इन्हें कौन रोकेगा ?जो कहते हैं कि
...' ऐसे में भारत के जागरूक लोगों को सतर्क रहना चाहिए कि ऐसी मांग उठती रही और उन्हें पूरा किया जाता रहा तो दक्षिण एशिया में एक और मुस्लिम देश का नक्शा न उभर आए।' http://www.bhartiyapaksha.com/?p=३१७४
एक vishpurush दूसरे ब्लॉग पर और खुद मेरे ब्लॉग पर भी कमेन्ट करता है और url में मेरा ही एड्रेस दल देता है . इसी आदमी ने एक रोज़ अलबेला खत्री के नाम से मेर ब्लॉग पर गली लिखी , जबकि दुनिया जानती है कि मैं प्राय रात को ही नेट उसे करता हूँ . यही आदमी दो दिन पहले मेरे ब्लॉग पर यूँ कह रहा था कि अनवर तो फिरदौस से हर कर बोखला गया है . यह मराठी आदमी मुझे लोगों से और लोगों को मुझ से लड़ाना चाहता है क्यूँ कि खुद में तो किसी नुद्दे पर बात करने कि हिम्मत है नहीं . कृपया इस शैतान से होशियार रहें .
http://vedquran.blogspot.com/2010/04/true-hindu.html
आज मेरा मूड था कि विचार शून्य की यह ग़लत फहमी दूर कर दूँ कि हिन्दू धर्म में सहिष्णुता है . डॉ. अज्ञात ने खोल कर बताया है कि कैसे वेदों में अपने से इतर मान्यता वालों को मरने का आदेश है . कैसे वैदिकों ने bodhh और jain लोगों का क़त्ले आम किया . चार्वाक , शंकराचार्य , दयानंद जी , गाँधी जी को कैसे मारा ? ८४ में सिखों को कैसे मारा ? मुसलमानों का तो ज़िक्र करना ही बेकार है , उनका खून तो खून मन ही नहीं गया कभी . सब लिखता लेकिन छोड़ दिया आदरणीय सतीश जी के कहने पर . अब अगली पोस्ट तभी लिखूंगा जब कोई इस्लाम या कुरान पर नाहक इल्ज़ाम लगाएगा . क्यूँ मोहतरम, तब तो आप मुझे बोलने का हक देंगे .
भाई शाह नवाज में आपकी बातो से सहमत हूँ ....क्या हक़ बनता हे किसी को की वो दूसरो के धरम से झूटी बाते तोड़ मरोड़ के मन चाही व्याख्या कारे .अब आप का काबा आप के लिए पवित्र हे ..कोई कहे उसे चूत...तो केसा लगेगा ..अरे ये हिन्दुस्तान हे ....नहीं तो आग लगा दे ..यंहा जो भी आया यंही का हो के रह गया ...सभी मिल गये इस मिटी में ..शक कुसान..यवन ..अकरानता....मुस्लिम भी हमारे भाई हे ....बाकी कुछ सुवर बन ने पैर तूले हुवे हे वो भी अरबी ...वो इनको पैसा दे रहे हे.....ये पैसा ले रहे हे ...काम इस्लाम को बढ़ावो...अरे भाई वो तो बढ़ ही रहा हे ना ?? इंडिया के जैसा सूखी मुसलमान भाई कंही और नहीं हे ..बाकी जमाल जैसे ...??/ क्या कन्हे इसको ..ये पंखा चला के या कूलर चला के ब्लॉग लिखता हे .....आप किस हालत में अपने बचो को पाल रहे हो ??/ ये किसे से छूपा नहीं हे .....इसके पास शेखो के पैसे आरहे हे ...आपके पास अपनी कमाई के ..सोचो और अपना दीन अपना ईमान ...अपना ईमान इंसानियत हे ??/ खवाजा की नगरी से महादेव
@ Mahak Ji,
आपने कहा "Kuran mein to Har us person ke khilaaf jihaad karne ki, uska katl karne ki baat kahi gayi hai jo aapke vichaaron se thoda bhi disagree ho."
ऐसा हरगिज़ नहीं है. कुरआन में सिर्फ उनके खिलाफ लड़ने का हुक्म है जो हमें नुक्सान पहुचाने की कोशिश करें, जो हमें मारने की कोशिश करें, जो हमारे अधिकार लेने की कोशिश करें. शांतिप्रिय लोगों के साथ कुरआन कैसे सुलूक की बात करता है कृपया यहाँ शाहनवाज़ भाई की पोस्ट देखें.
Zeashan Bhaii
Post ke link ke liye dhanyavaad. Maine isey khola aur poora padha hai.
Agar is par yakeen kiya jaaye to phir to geeta ke sandesh aur kuraan ke jihaad mein koi antar nahin lagta kyonki phir to dono hi pratikriya ki baatein karti hain.Agar ye sach hai to yakeen maaniye kisi bhi hindu ko kuraan ke jihaad se koi problem nahin ho sakti.
Lekin aapse ek baat jaanna chahoonga. Aaj saari duniyaa mein jo ye Al-Qaeda aur Taliban ka network hai wo kuch aurhi kehta hai. Wey kehte hain ki unki to kuraan mein yahi kaha gaya hai ki jo tumse thoda bhi disagree ho usey maar do tumhe jannat milegi. Tab jaakar mere saath-2 karodon logon ko kuraan pe sandeh hota hai kyonki wey bhi kuraan ka hawaala dekar hi katl-e-aam machate hain. Chaah kisi person ne unhe kuch na kaha ho lekin wey to apne vichaar doosron par zabardasti thopna chaahte hain aur jab unse iska reason maanga jaata hai to wey kuraan ko aage kar dete hain. Tab karodon ogon ka kuran ke prati sandeh hona swabhawik hai ki kon si kuraan asli hai, wo jo aap bhaii bata rahe hain yaa phir wo jo wey shaitaan bata rahen hain
Chaliye world ke baare mein to chodiye lekin hamaare aur aapke desh hindustaan mein hi jab aisa ho raha hai to isey aap kya kahenge.Aap kahenge ki mahak bhaii, hindustaan mein to aisa kahan ho raha hai lekin zeashan ji wo baat aapne bhi suni hogi ki abhi pichli "Ganesh chaturthi" par jab salmaan khan ne Ganesh ji ki murti apne ghar mein staphit ki aur uski pooja wagaraha ki to unke khilaaf fatwa jaari kar diya gaya aur muslim samaaj unke khilaaf ho gaya.Ab bataaiye isme salmaan khan ne aapko kya nuksaan pahuchaane ki koshish ki,aapka kon sa adhikaar lene ki koshish ki yaa phir kahan aapko maarne ki koshish ki.Aisa kyon Zeashan bhaii, hamaare dharm ke kitne log aapke yahan Chaadar chadhane aate hain, khuda se allaha se dua karte hain, humne to kabhi aise logon ke khilaaf kabhi kuch galat nahin kaha ki tum kyon wahan musalmaano ke yahan gaye, kyon unke khuda ki ibadat ki.Hamein to khushi hi hoti hai jab dono taraf ke log ek dusre ka itna samaan karte hain.Aisi hi bahut saari baatein hain jinhe agar aap chaahenge to aapke samaksh prastut karoonga.
Main ye sab baatein kehkar aap par koi aarop nahin laga raha hoon kyonki main maanta hoon ki kuch galat logon ki wajah se poori kaum ko galat nahin kaha jaa sakta lekin aapki taraf se bhi to in galat baaton ka poore zor-shor se virrodh hona chaahiye jis se ki ye galat log aapki kaum ko badnaam na kar paayein.
Main maanta hoon ki ache aur bure log har dharam mein hain, shaitaan hamaare yahan bhi hain shaitaan aapke yahan bhi hain.
Agar meri kisi baat se aapko dukh pahooncha ho to shama karein.
Dhanyavaad
Decide every one
http://lh4.ggpht.com/_6GzWh0KCetw/S8vC7ctn5rI/AAAAAAAAABg/Pned-H6M4aE/s400/uy.jpg
अरब से आये थे तो जंगली सूवर बन के आये थे ,,,लकिन इस धरती की पवित्रता ने इनको ज्ञान दिया ..तहजीब सिखाई ...आदर करना सिखाया ....माता पिता की सेवा करना सिखाया ...केवल अज्ञात को मानाने वालो को पीर दिए ..उनकी मजार पर माथा टेकना सिखाया ...अगरबती जोना सीखाया ...इतर फुलेल डालना सिखाया ..गुलाब के फूल डालना सिखाया ....कविता शायरी सिखाई ..पर्कर्ती को समझाना सीखाया ....आम का सवाद भी इसे धरती चखा ....साले हरामी कान्हा तो अरब में लंड कटवा के के ऊँटो के पिछ्हे घूमा करते थे ...उन्हें ज्ञान दिया .....हत्यारे इस धरती पर आके यंहा के ज्ञान से सूफी बन गए ...उन्हें नयी दिशा मिली ,,उन्हें खुदा इसी धरते पर मिला ...वंहा अरबिस्तान में नहीं ?? अब कुछ चूतिये अरबी सूवर यंहा से पोषित हो कर ..अरब की गांड चाटना चाहे तो जमाल से अछ्हा उदहारण कंही नहीं मिलेगा .....वन्देमातरम
@ Munaf Patel , Very Good Article
आज के समाज मे कुरान की प्रासांगिकता खत्म हो चुकी है| कुरान मे दूसरे धर्मो के बारे मे गलत लिखा है जैसे इसाई और यहूदी हमारे दुस्मन है तो जो किताव दूसरे धर्म को गलत बतात है वह कैसे धर्म पुस्तक हो सकती, इस्लाम को छोड कर किसी भी धर्म पुस्तक मे दूसरे धर्म के बारे मे गलत नही लिखा है
कुरान को आप कही से भी पढो, यह केवल फत्वे की बात करता है, और डरावनी बाते होती है, जो इस किताब को पडता है, यही डरावनी बाते, उसको आदमी से सैतान बना देता है जैसा आत्मघाती बम और डा. अनवर,
डा. अनवर वेदो को गलत सबित करने पे तुले है, रात दिन (24*7) मेहनत कर रहे है क्या इससे इस्लाम को फायदा पहुचेगा, क्या मुस्लिम समाज का भला होगा जो करते कुछ काम नही करते है केवल इस्लाम के नाम आरक्षण मागते रहते है|
Bhaii Har Har Mahadev
Jo baat tum kehna chaahte ho wo ache shabdon mein bhi to keh sakte ho. Agar tum bhaii Anwer Jamaal ko apna virodh jataana chaahte ho ki is topic par tum unse sehmat nahin ho, agree nahin ho to ye baat gandi gaaliyon ka use kare bina shaleenta se kaho.Main bhi kai topics par unse disagree hoon lekin iska matlab ye nahin ki hum ek doosre ko galliyaan dena shuru kar de.Saamne waala jis language mein baatein kar raha hai usey usi language mei jawaab do.Agar wo shaleenta se, tameez se koi galat baat kar raha hai to tumhe bhi tameez rakhkar hi baat ka zawaab dena chahiye.Lekin agar wo tumhe pehle gaali de to tumhe haq banta hai eent ka zawaab patthar se dene ka lekin pehle tum gaali-galoch shuru mat karo. Tumhe pata hai tumhare jaise hinduon aur kuch musalmaanon ke aise hi attitude ki wajah se hinduon aur musalmaanon me bewajah ladaiyaan hoti hain, kitne log maare jaate hain aur mulk divide ho jaata hai.Jamaal ji ne aaj tak jo bhi baatein kahin hain maana ki wo sab sahi nahi thi lekin unhone apni maryaada,apni tehzeeb aur sanskaar mein rehkar kahin.Toh isliye meri tumse request hai ki apni maryaada mein rehkar baat karo aur baatchit ka ek leval ek seema rakho,usey cross mat karo.
@Mahak Ji,
मौलाना डा. ताहिर-उल-कादरी विश्व प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान व चिन्तक है. जिनका अभी हाल ही में 600 पन्नों का फतवा आया है की आतंकवादी, सुसाइड बोम्बर और निर्दोषों को मारने वाले जिहादी पूरी तरह इस्लाम से बाहर हैं और उनकी जगह नरक है. ये फतवा आप यहाँ पढ़ सकते हैं या यहाँ देख सकते हैं.
ऐसा नहीं की इस्लामी विद्वान इसके लिए चिंतित नहीं या इसके खिलाफ बोल नहीं रहे हैं. आतंकवाद से जितना नुक्सान गैर मुस्लिमों को है उससे कहीं ज्यादा मुस्लिमों का हो रहा है.
रही बात सलमान खान जैसे केसेज़ की, तो दो चार राज ठाकरे टाइप के छोटे मोटे मुस्लिम गुट पब्लिसिटी के चक्कर में बयान दिया करते हैं, ये पूरी मुस्लिम कम्युनिटी का प्रतिनिधित्व नहीं होता. दूसरी बात की इनके बयान को इनकी व्यक्तिगत राये के सम्बन्ध में देखना चाहिए. मिसाल के तौर पर मैं कहूं की शराब पीना गलत है, तो मेरी बात मानकर न तो हर शराब पीने वाले की गर्दन उड़ा दी जायेगी और न मैं खुद शराबी की गर्दन उड़ाऊंगा. तो बेहतर यही है की ऐसे बयानों को या तो इग्नोर कर दिया जाए या अगर कोई अच्छा बयान है तो उसे प्रोमोट कर देना चाहिए.
धन्यवाद!
महक भाई .वन्देमातरम
अगर कोई आपको हाथ जोड़ कर फिर उन्ही हाथो को खोल केर एक जोरदार चांटा मारे...रीअक्शन क्या होगा ?? तूम वेसे ही थोड़ी पर्किरिया अपनावोगे ....तूम dyrect jhannte दार thapdd रशीद करोगे उसके ....ये शक्श भी ईसी लायक हे ....ये प्यार से मारने में यकीन रखता हे ...में वार से मारने में यकीन रखता हूँ ...गाली तो निकलेगी ना ..ये ब्लॉग इसका हे इस लिए चूतिया चाश्मिस गलिया नहीं निकाल सकता हे ...बाकी मन में तो जवालामुखी चल रहा होगा इसके ..भाई महक गाली के साथ कुछ बाते हे उनके बारे में भी कुछ कहो .....disscuss का कोई फायदा नहीं इस चूतिये से उलूल जुलूल लिखेगा तो क्या दिस्कुस्स करू ..भाई अमीत खोल रहा इसकी पोल ....सुरेश जी सर वेसे ही ऐसी गंदी जगह पर रूची नहीं लेते हे ....
वेदों में हो या गीता में या और कही गलत काम करने वाले के लिए तो सजा ही निर्धारित होगी.
पूरे मानव समाज में दो तरीके के प्राणी बताते हुए ; वेद गीता और अन्य शास्त्रों में उनको दो भागो में विभक्त किया गया है--एक दैवी प्रकृति के और दूसरी आसुरी प्रकृति के ----भय का आभाव,मान की स्वच्छता ,तत्वज्ञान की जिज्ञासा,दान,संयम,स्वाध्याय,ताप,सरलता,अहिंसा,सत्य का पालन,क्रोध का आभाव,त्याग,शांति,चुगली ना खाना, सारे प्राणियों पे दया,अलोलुपता,मृदुता,लज्जा,अचंचलता ,क्षमा ,कहीं भी वैर भाव न होना --- ये सब दैवीय प्रकृति के लोगो के लक्षण बताये गए है.
इनके ठीक उलट प्रकृति के लोगो को असुर बताया गया है. लेकिन वे यह कैसे समझेंगे जो आतंकवादियों को भी असमानता का शिकार बता कर उनकी पैरवी करते हो.
वेदों की तो यह स्पष्ट आज्ञा है की--- "मा हिंस्यात सर्व भूतानि \" (किसी भी प्राणी की हिंसा ना करे) लेकिन संसार के प्राणियों को कष्ट देने वाले आतातियों को और पापियों को दंड देना किस विधान से हिंसा है ? दंड अपराधी को ही दिया जाता है,निरपराधी को नहीं .
लेकिन इस बात को वे लोग कैसे समझेंगे जो दुगुनो से ही भरे हो और अपने पंथ का अनुयायी बनाने के लिए मारकाट को उचित मानते हो , आतंकवादियों को भी सरकारी तंत्र का पीड़ित बताते हुए उनका पक्ष लेते हो .
http://27amit.blogspot.com
आप खुद तो किसी भी घटिया मैगजीन के लेखों से ज्ञान प्राप्त करके बकवादन कर रहे है और हम से हमारे गुरूजी का नाम जानना चाहते है. अब इतनी ही मरोड़ उठ रही है तो इनको बता ही दूँ की आप जिन महानुभाव का कयास लगा रहे है, उनके वेद जिज्ञासु होने से मैं उनका आदर तो करता हूँ, लेकिन उनका अनुसरण नहीं करता हूँ . पिछली पोस्ट में बताए गए मंत्रो के ये अर्थ तो मैंने जयपुर संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री कर रहे मेरे एक मित्र से पूछे थे. अब देखिये की एक शास्त्री कर रहे स्टुडेंट ने ही जो अर्थ बताये है, उनसे ही आपके पाप का भंडाफोड़ हो गया तो जब किसी वेद विद्वान् से आप का पाला पड़ जाये तो आप जैसों का क्या हाल हो हर कोई समझ सकता है .
http://27amit.blogspot.com/
अमीत भाई लूंगी का एक पल्ला तो चछा के हाथ में रहने दो ...लिंगागर के आड़े ????
चाचा कोई जवाब नहीं,,,,,,,, लिगाग्र को कपडे से रगड़ने बैठे हो क्या ..रगड़े जावो रगड़े जावो ...किसने बताया डा. जाकीर ने ??
भाइयो इस चूतिये को खुद के धरम में खतना क्यों करते हे ये भी पता नहीं ....कहता हे की कटे लैंड से कपडा रगड़ खाने से लंड कड़क होता हे ....हेना बच्चाकाना जवाब ...बलकी असली कारन ये हे ......
** खतना (Circumcision)यहूदी और इस्लाम में इसलिये है क्योंकि यह धर्म रेगिस्तान में अस्तित्व में आये, Glans- Penis के ऊपर चढ़ी चमड़ी (Prepuce) के नीचे एक स्राव जमा हो जाता है जिसे Smegma कहते हैं यह महिला के Genital tract के लिये व स्वयं पुरूष जननांग ले लिये Carcinogenic है, पानी की कमी थी नियमित स्नान-सफाई संभव नहीं थी... इसलिये खतना की परंपरा चली।....अब क्या आशा रखोगे इस चूतिये से आप ये...वेदों की वख्या करने चला हे ...किसी अज्ञात बाप की अज्ञात ओलाद से से अड़ कचरा ज्ञान ले के ...ज्ञान बाँटने चलाहे .........जब इसे खुद लंड क्यों कटा जाता हे ही पता नहीं तो क्या ..बताएगा ये
क्या 'हिन्दू शब्द भारत के लिए समस्या नहीं बन गया है?
आज हम 'हिन्दू शब्द की कितनी ही उदात्त व्याख्या क्यों न कर लें, लेकिन व्यवहार में यह एक संकीर्ण धार्मिक समुदाय का प्रतीक बन गया है। राजनीति में हिन्दू राष्ट्रवाद पूरी तरह पराजित हो चुका है। सामाजिक स्तर पर भी यह भारत के अनेक धार्मिक समुदायों में से केवल एक रह गया है। कहने को इसे दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय माना जाताहै, लेकिन वास्तव में कहीं इसकी ठोस पहचान नहीं रह गयी है। सर्वोच्च न्यायालय तक की राय में हिन्दू, हिन्दुत्व या हिन्दू धर्म की कोई परिभाषा नहीं हो सकती, लेकिन हमारे संविधान में यह एक रिलीजन के रूप में दर्ज है। रिलीजन के रूप में परिभाषित होने के कारण भारत जैसा परम्परा से ही सेकुलर राष्ट्र उसके साथ अपनी पहचान नहीं जोडऩा चाहता। सवाल है तो फिर हम विदेशियों द्वारा दिये गये इस शब्द को क्यों अपने गले में लटकाए हुए हैं ? हम क्यों नहीं इसे तोड़कर फेंक देते और भारत व भारती की अपनी पुरानी पहचान वापस ले आते।
हिन्दू धर्म को सामान्यतया दुनिया का सबसे पुराना धर्म कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि दुनिया में ईसाई व इस्लाम के बाद हिन्दू धर्म को मानने वालों की संख्या सबसे अधिक है। लेकिन क्या वास्तव में हिन्दू धर्म नाम का कोई धर्म है? दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर रहे डॉ. डी.एन. डबरा का कहना है कि 'हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे नया धर्म है..........
http://navyadrishti.blogspot.com/2009/12/blog-post_31.html
dr. jamaal abhi bhi samjho in sabse kuch nahi hoga. pyaar badane ki bate karo jo sab islaam se prem kare, is tarah to aap islaam ko bahut dur kar rahe ho
waise amit bhai ke churan se aapki kabj dur hui yaa nahi, kuc seekho inse kaise shalinta se apni baat kahte h
पिग्मेम्बर मोहमद ने ऊँची गांड करके सुवर की जेसे चिल्लाने के अलावा इन्हें कुछ नहीं सिखाया ...उसके आलावा कुरान से मारकाट और वहशीपन ये अपने आप सिख गए ....भारत में आकर थोड़े इंसान जेसे बने हे केवल थोड़े .....ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करना इनका एम हे .....वो भले गोबर खा के ही बड़े हो ...उनके दिमाग में बचपन से ही जहर भरा जाता हे ...क्यों ???? खुदा की खिदमत कर रहे हें ये ???? वहा रे खिदमद दारो.....???
जूते लगाने के मामले में हिन्दू बड़े संकोची स्वभाव के हैं, इसीलिये भारत में मुसलमानों को खुलेआम हिन्दुत्व पर जोरदार तरीके से चौतरफ़ा गन्दगी फ़ेंकने की सहूलियत हासिल है…
@ भाई अमित जी ! आपके शास्त्री मित्र ने किस ज्ञानी के अर्थ को फोल्लो किया है ? आप आखिर नाम बता क्यूँ नहीं देते ?
@ हर हर ... ! भाई आप लोग जब अपने देवता के चरणों में सर झुकाते हो तो आपके कूल्हे क्या मुसलमानों कि तरह नहीं होते ?
@ महक जी ! आपका सादर स्वागत है .
@ जनदुनिया वालो ! जल्दी ही मैं आपके लिए खास पोस्ट लिखूंगा .
@ सतीश जी ! मैंने आपसे कल पूछा था कि ' जब कोई इस्लाम या कुरान पर नाहक इल्ज़ाम लगाएगा . क्यूँ मोहतरम, तब तो आप मुझे बोलने का हक देंगे ?'
लेकिन आपने कोई जवाब नहीं दिया . क्यूँ ?
जमाल साहब मेरे मित्र ने किसी भाष्यकार के अर्थ को फालो करके नहीं बताया है, बल्कि उसके पास व्याकरण सब्जेक्ट होने से खुद को ही इतना सामान्य सा अर्थ पता है .मैंने उससे सिर्फ अर्थ, और सन्दर्भ के बारे में ही पूछा था. जो की उस ने बड़ी आसानी से बता दिए और किसी भी तरह की व्याख्या के लिए भी पूछा था. लेकिन आपकी बात के लिए तो इतना ही काफी था.
और जो आप स्वामी श्रीदयानंद जी के बारे में कयास लगा रहे है तो इतना समझ लीजिये की, उन्होंने भले ही अपनी मान्यता के अनुसार वेद भाष्य किया होगा, पर शब्दार्थ तो व्याकरण के अनुसार ही किया था ना मेरे बंधु. अगर मेरे मित्र के बताये अर्थ और आप द्वारा प्रकाशुत किये जाने वाले दयानन्दजी के अर्थ की भाषा का मिलान हो जाये तो पाठक इतने मुरख थोड़े है की ये भी ना समझेंगे की, व्याख्या और शब्दार्थ में क्या भेद है. दयानंद जी के भाष्य से सहमती नहीं भी हो तो शब्दार्थ तो एक ही रहेगा श्रीमान. क्यों इतना परेशां हो रखे हो .
कुछ ऐसा लिखो की मुस्लिम समाज में शिक्षा का स्तर बड़े, समाज के परिवारों में घूम-घूम के उन्हें समझाओ की सिर्फ एक पीड़ी को ग्रेजुएट बना दो पूरा समाज ग्रेट बन जायेगा. अपने लेखन कर्म से शिक्षा और सद्भाव का वातावरण बनाइये, क्यों माहौल भारी कर रहे है. कहीं ऐसा ना हो की जिस तरह से नेता शब्द आज गाली बनगया है, उसी तरह से जमाल मुसलमानों के लिए और अमित हिन्दुओं के लिए गाली बन जाये की . "बड़ा जमाल बना फिर रहा है" या "बड़ा अमित बन रहा है" .
आपने ब्लॉग शुरू करते वक्त भाईचारे की बातों की घोषणा की थी क्या इसी तरह भाईचारा फैलेगा ???
ईश्वर सभी को सद्बुद्धि दे !!!
भाई जमाल गीता में धरम युद्ध हे ..खुद के हक़ के लिए ..अत्याचारों के विरूद्ध .......आप ने पुरी परिस्ठ भूमी देखि क्या ?? गीता क्यों लिखी गयी ...किस संधर्भ में लिखी गयी ..महा भारत क्यों हुआ ?? नहीं ना ?? आप धरम युद्ध को युधो उन्माद कहो ..केसे अच्छा लगे हलाकि आप ने उस (अज्ञात की माँ ने लोक लाज के भय से छोड दिया होगासे किसी जगह ).....का उदहारण दिया ...लकिन आप दोनों का उदश्य हे की हिन्दू धरम को निचे दिखाया जाये ...अपने धरम की जो बुराइया हे उनके समक्ष खड़ा किया जाये ??/ आम रीती रिवाज होतो चलता हे ,लकिन गीता को गलत ठरना कंहा उचित हे ...शत्रीय का धरम होता हे ..अन्याय के विरोध में तत्पर रहना ...ना की मासूमो का खून बहाना ...इस्लाम कबूल नहीं करने पैर सर कलम कर देना ...जेसा की अभी दो सीखो का तालिबान ने स्वायत घाटी में कलम किया गया ...भाई जमाल आप की उंगलियों से दो शब्द भी उन हत्यारों के खिलाफ निकल जाते तो में आप को इंसानियत का सच्चा पैरोकार मानता ....लकिन आप की नजर में वो जायज हे ....इस्लाम ही वो धरम हे जो मान ने नहीं मानने पर सीधे खुदा के पास पहुचाता हे ........भाई हिंदुवो ने कब धरम परिवर्तन के लिए अभियान छेड़े ..आप कहते हो की सम्राट अशोक ह्त्यरा था ..हा हम भी मानते उसका मानवता के खिलाफ अपराध किया ..न की उसे देवता बना बेठे ..उसने खुद ने प्राश्चित किया ....ना की और ज्यादा लोगो के सर कलम करवाए ...आप लोग इस जगह आके क्यों ठहर जाते हो ?????? क्यों नहीं आवाज उठाते हो भाई .....क्योकि फतवा जरी हो जायेगा??भाई मरद बनते हो कहते हो पठान हूँ ..एक पठान तो वो थे जो राना सांगा के साथ कन्धा से कन्धा मिला के बाबर की माँ बहिन की थी ........इबरिहम हुक्ल्की ........पठान के नाम को लाजवो मत ....क्यों गलिय बक्वाते हो भाई यार ...गलियों की कमी नहीं हे लकिन सभ्य रहने दो ??/भाई जमाल अपना जो अछ्हा सा उदाहरन वो देना ''' वन्देमातरम ''''
डॉ अनवर जमाल का यह प्रश्न
@ सतीश जी ! मैंने आपसे कल पूछा था कि ' जब कोई इस्लाम या कुरान पर नाहक इल्ज़ाम लगाएगा . क्यूँ मोहतरम, तब तो आप मुझे बोलने का हक देंगे ?'
लेकिन आपने कोई जवाब नहीं दिया . क्यूं ?
हम दोनों ही इस महान देश के नागरिक हैं , फिर मैं कौन होता यह हक देने वाला ! कोई भी घ्रणित मानसिकता का इंसान अगर आपकी श्रद्धा पर इलज़ाम लगाता है या आप की श्रद्धा पर उंगली उठाता है तो वह समाज का अपराधी है ! ऐसे लोग अपने बच्चों के भविष्य के लिए अपराधी है ....आने वाले समय के लिए अपराधी हैं ...
मेरा यह मानना है कि इस्लाम या कुरआन पर कोई भी सच्चा या थोडा भी पढ़ा लिखा हिन्दू कभी इलज़ाम नहीं लगाएगा ! आप यकीन मानिए अनवर भाई !हिन्दू मानसिकता दुसरे धर्मों और मान्यताओं का सम्मान करना ही सिखाती है !अगर कोई व्यक्ति इसके खिलाफ कहीं बोलता है तो यकीनन वह संकीर्ण और घटिया मानसिकता वाला अपवाद हिन्दू हो सकता है और ऐसे लोग हर धर्म में हैं !
आपका कहना है कि आप व्यथित हैं कि आप और आपकी मान्यताओं के खिलाफ गन्दा और असहनीय बोला जा रहा है , अतः आप मजबूर हैं इन लोगों को यह समझाने पर कि खुद उनका धर्म क्या कहता है , और आप यह साबित करने के लिए उल्लेख और सन्दर्भ धार्मिक ग्रंथों के हिसाब से दे रहे हैं !
अपने विद्वान् दोस्त से मेरा प्रश्न यह है कि कि किसे जवाब दे रहे हैं आप ?
अनाम बुजदिलों को जिनकी कोई पहचान नहीं है ...ये वे अनपढ़ और अशिक्षित मुस्लिम हैं जो विभिन्न कारणों से हिन्दू जन मानस के साथ जुड़ना कभी पसंद नहीं करते और हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए हिन्दू देवी देवताओं के नाम के साथ अवतारित होकर आपके ब्लाग पर ऐसी गंदी गन्दी गालियाँ बकते है जो शायद वे अपने घर में कभी बोलने का सोंच भी ना पायें !
या वे चंद हिन्दुओं को जो विभिन्न कारणों से साम्प्रदायिक भावना के साथ जुड़े हैं और चाहते हैं कि उन्हें कहने का मौका मिलता रहे !
या उनको जो अपने धर्म को उतना ही कठोरता से निबाहते हैं जैसे आप लोग !
या उन मूर्ख ब्लागरों को जो अपना नाम चमकाने के लिए किसी भी मशहूर व्यक्ति के कहे पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करने का प्रयत्न करते हैं जिससे वे अपने मोहल्ले में मशहूर हो सकें ! आप किसे श्रेय देना चाहेंगे अनवर भाई !
कुरआन शरीफ को मानने वाले करोड़ों हैं और हम सब इसकी इज्ज़त करते हैं ! मगर आप अगर इन लोगों के घटिया कमेंट्स छाप कर , अपने करनी को ठीक ठहराना चाह रहे हैं तो निस्संदेह मेरे जैसे और लोग और संस्थाओं के प्रयासों को जाने अनजाने में बर्बाद कर रहे हैं ! यह रास्ता कभी ठीक नहीं हो सकता अनवर भाई ....कृपया दुबारा विचार करें और बिना सहायकों से मदद लिए विचार करें ! खुदा आपकी मदद करे ! अंत में शहरोज़ की कृपा से हबीब जालिब की एक ग़ज़ल आपकी नज़र है जो मुझे बहुत पसंद है !
"खतरा है ज़र्दारो को
गिरती हुई दीवारों को
सदियों के बीमारों को
खतरे में इस्लाम नहीं
सारी जमीन को घेरे हुए
हैं आखिर चंद घराने क्यों ?
नाम नबी का लेने वाले
उल्फत से बेगाने क्यों
खतरा है बटमारों को
मगरिब के बाज़ारों को
नव्वावों गद्दारों को
खतरे में इस्लाम नहीं "
सादर !
Posted by सतीश सक्सेना at 10:18 PM
na koi hindu na musalmaan hoga ,
har taraf bas insaan hoga ,
insaniyat ki puja karenge hum ,
na koi allah na bhagwan hoga.....
मै आपके माध्यम से उन लोगो से अपने लिए एक अपील करना चाहता हु की मेरा परिवार इस समय एक बहुत ही संकटपूर्ण स्थिति से गुजर रहा है व्यवसाय में घटा होने के कारण हमारे ऊपर लगभग 25 लाख का कर्ज हो चूका है, जिसका ब्याज भरने की क्षमता अब हमारे पास नहीं है . मेरी आप लोगो से गुजारिश है की मेरी सहायता करें . मेरा SBI a /c no . है shakil khan -10207386213 plz .
Namo Buddhay, JAI BHIM wishing you good health. I want to consult you on latest article published in SARITA. unfortunately, I don't have your contact number. Kindly give me the missed call on this number 09029788490/91.
Mr. Ratankumar Patliputra Editor Bahujun Utthan Hindi, English national monthly
rkp51vihar@gmail.com
Address, 51 Siddharth Vihar Wadala Bombay-31
Hope you obliged me by giving a missed call. Thanking you & regards.
कुरान हो या भगवदगीता या कोई भी और पवित्र ग्रन्थ सभी में अच्छे के साथ अच्छा और बुरे के साथ भी अच्छा बताया गया है। भगवान या अल्लाह कभी अपने बच्चों को दुःख नही देता । कर भला तो हो भला। फर्क सिर्फ इतना है कि समझने वाला क्या समझता है और इन पवित्र ग्रंथों में से भाईचारा लेता है या दुश्मनी। वेसे भी दुश्मनी की आग किसी का मजहब नही पहचानती उसका काम तो सिर्फ जलाना होता है, चाहे हिन्दू हो या मुसलमान या कोई और मजहब या इंसान। दृष्टी बदले से सृष्टि और नजर बदलने से नजरिया बदल जाता है। कृपया एक होके रहो। जय हिन्द+ जय पाक।
*दयानंद और आर्य समाजियों के सब गपोड़ है �� ... दयानंद ने सब साकार देवताओं को ही फेक झुठा निराकार ईश्वर बना दिया .... तो फिर देवता कौन है ??*
*( ऋग्वेद मण्डल 4 - 18 ) में साकार इंद्र देवता ( 1000 लिंग वाला ) के साथ विरैत्र नाम का एक दैत्य और कि युद्ध का वर्णन है जहां इंद्र देवता के बारे दांत टुट जाते हैं । https://en.m.wikipedia.org/wiki/Vritra... Ye Baat “महाभारत" में भी मिलता है और “निरुक्त" ( वेदांग कि एक शाखा ) से भी सिद्ध है, श्रीमदभागवत पुराण में भी है*
*अब दयानंद झूठे ने साकार इंद्र देवता को ही वेदों के "झूठे पद-अर्थ" ( झुठा ट्रांसलेशन ) फेक झुठा निराकार ईश्वर बना दिया*
*आर्य समाजियों ने इसी तरह वेदों के सब फेक और "झूठा पद-अर्थ" (झुठा ट्रांसलेशन ) कर के गोबर को दुध से धोने कि नाकाम कोशिश की है... मगर फेल हो गए .... आर्य समाजियों के वेदो फेक झुठा पद-उर्थ और झुठा ट्रांसलेशन , वेदांग कि किसी भी शाखा से सिद्ध नहीं है... वेदों के सारे ब्राम्हण ग्रंथ, स्मृती ग्रंथ, अरण्यक और उपनिषद् से सिद्ध नहीं होता है आर्य समाजियों के वेदो के "झुठा पद-अर्थ" और झुठा ट्रांसलेशन और फेक भाष्य.... वेद मंत्रों के पद-अर्थ में इतने सारे फेक शब्द घुसा दिया है आर्य समाजियों ने जिसका सम्बन्ध मूल मंत्र से होता ही नहीं है*
*आर्य समाज ���� कि फेक और झूठे वेद भाष्य कि पोल खोल देखें उनकी हि किताबों कि हार्डकॉपी के साथ सच के साथ* ����https://www.sachkaaina.com/p/all-post.html?m=1
*“नियोगी" दयानंद के “नियोगी" चेलों ने तो अपने नाजायज “नियोगी" बाप दयानंद के हि अर्थ गायब कर दिए ऑनलाइन वेदों में*
*आर्य समाजियों के सब झूठ और गपोड़ हैं* ��
ये एक भी book कही नही मिल रही , मुझे ये सारी books चाहिये । मैं किस प्रकार मांगा सकता हूँ ।
Dr surendra kumar sharma agyat जी की किताबें कैसे मिलेगी , किसी भी online website पर उपलब्ध नही है , " क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिन्दू धर्म " book मिल सकती है क्या कही ।
पर उनकी बुक online मिल नही रही
Online ye book kaise milegi
Kai se Quran k meaning jo aaj hai wo prachin Quran bhasya me nahi milte h,to uske liye aap kya kahenge?
Agar mujhe islam ko janna ho,to mai kiski kitaab padhu,kiske paas jau, Understand Muhammad by Ali Sina padhkar uske chasme se islam ki jankari lu,ex muslim se islam k baare me sunu ,ya kisi Muslim aalim.mulano o dwar ,Quran hadees k dwara,ye bataiye,apko pata h aaj muslim aur Isaai k liye gussa kyu h ek to aapne Hinduism k khilaaf khule manch par Zaqir aur naya logon ne bolna shuru kiya fir aap jaise ki kami thode hi hai,fir iske baad kyu kehte h ki Islamophobia fail raha h,khud hi dusre k Dharm me kyu dakhal dete h aaplog? Jab aap dete h,hamare murti puja me dakhal,aur jab hum teen talaq ,hijab me dakhal dete h to aapki fat jati h,fir kahoge ki court kaun hota h hijab kuran me hai ya nahi ye decide karnewala,usi tarah se surendra aur aap kaun hote h Hinduism me kya h decide karnewale, Surendra kya islam ko manta hai?wo nastik h matlab wo aapko bhi nahi manta h,bas farq itna h ki wo hindu h to usne apne Dharm k khilaaf likhkar nastik hua ,waise hi Ali Sina aurwafa sultan,Harris Sultan Ali wahi bhi h ok
गीतोपदेश के 1.5 घंटे की अवधि मे़ शकुनि मामा क्या कर रहे थे? उनके भांजे के लिए तो मौका था ? शंख बजाकर युद्ध की औपचारिक घोषणा के बावजूद ، युद्ध का "टाइम आउट " किसने दिया और कौरवों ने कैसे मान लिया ? गीता कल्पित आख्यान है، जो बाद के भीष्मपर्व में बेतुकेपन से एटैच कर दिया! गीता का प्रसिद्ध श्लोक /2/47(कर्मण्येवाधिकारस्ते ) " बेगारवाद " का विज्ञापन है!
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