सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Saturday, May 1, 2010
परमेश्वर ने सृष्टि के आरम्भ से ही मानवजाति के मार्गदर्शन के लिए अपने दूत और मार्गदर्शक भेजे हैं । Divine Chain of Divine Messengers .
अल्लज़ीना यूमिनूना बिल ग़ैइबि व यूक़ीमूनस्सलाता व मिम्मा रज़क़नाहुम युनफ़िक़ून , वल्लज़ीना यूमिनूना बिमा उन्ज़िला इलैइका वमा उन्ज़िला मिन क़ब्लिका वबिल आखि़रतिहुम यूक़िनून । पवित्र कुरआन , 2,3-4
(ये वे लोग हैं) जो
1- अनदेखे ख़ुदा पर ईमान लाते हैं , और
2- (उसी की) इबादत में में मशग़ूल रहते हैं , और
3- परमेश्वर ने उन्हें जो (भौतिक , मानसिक , चारित्रिक , आध्यात्मिक ग़र्ज़ तमाम) योग्यताएं प्रदान की हैं , वे (उसकी और उसके बन्दों की राह में) ख़र्च करते हैं , और वे लोग जो
4- उस ‘ज्ञान‘ पर विश्वास करते हैं जो तुम्हारी तरफ़ अवतरित किया गया , और
5- (उनका यह विश्वास है कि परमेश्वर ने सृष्टि के आरम्भ से ही मानवजाति के मार्गदर्शन के लिए अपने दूत और मार्गदर्शक भेजे हैं । इसलिए) वे पिछले सभी (ईशदूतों और उन पर) अवतरित ईशज्ञान पर भी विश्वास रखते हैं , और
6- उन्हें परलोक पर भी यक़ीन है । (जब लोगों के पाप-पुण्य के अनुसार उन्हें यातना और पुरस्कार दिया जाएगा ।) यही शिक्षा सभी धर्म-मतों की है और यही वह मार्ग है जो इनसान को उसकी सच्ची मन्ज़िल तक पहुंचाने वाला है ।
लेखक : प्रोफ़ेसर मालिक राम
लेखक : प्रोफ़ेसर मालिक राम
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31 comments:
बहुत बढ़िया
इसी तरह इस पोस्ट पे सीखने को मिलता रहे की ईश्वरीय ज्ञान किसे और क्यों कहते है
जब शुरू में भेजे थे तो ये लफंगा ००७ में कहाँ से आ टपका ?
nice
nice + vote
Ek aur nice post.........great!
(जब लोगों के पाप-पुण्य के अनुसार उन्हें यातना और पुरस्कार दिया जाएगा ।) यही शिक्षा सभी धर्म-मतों की है और यही वह मार्ग है जो इनसान को उसकी सच्ची मन्ज़िल तक पहुंचाने वाला है
Anwar Bhai, yahi voh gyan hai jo insan ko insan banae rakhta hai, varna insaan jab Ishwar ko nahi maanta to apne aap ko hi sab kuchh manne lagta hai, fir insaan Haiwan aur Shaitan ban jaataa hai.
सीआरपीएफ़ के दो और यूपी पुलिस के तीन जवानों सहित छह गिरफ़्तार कर लिये गए । ग़द्दार कैसे सुधर जाएंगे ? Politics and Crime .
सीआरपीएफ़ के दो और यूपी पुलिस के तीन जवानों सहित छह गिरफ़्तार कर लिये गए । यशोदानंदन रिटायर्ड एसआई , हवलदार विनोद पासवान और विनेश सिंह , मुरादाबाद पुलिस अकादमी स्थित आर्म डिपो में तैनात नाथी राम सम्मिलित हैं। ये लोग सरकारी असलहा देश के ग़द्दारों को सप्लाई किया करते थे । इनके पास से भारी मात्रा में सरकारी असलहा बरामद किया गया ।
बात दरअस्ल यह है कि जब शिक्षा और नौकरी पाने में भारी ख़र्चा आये , शिक्षा इनसान को जीवन का मक़सद देने में नाकाम हो , सच्चे ईश्वर के मार्ग दर्शन को भुला दिया जाए। कम्पनियां अपना उत्पाद बेचने के लिए इनसान को उसकी चादर से बाहर पैर निकालने के लिए उकसाएं तो आखि़र इनसान करेगा भी क्या ?
आज लोग इनका नाम सुनकर इनसे नफ़रत का इज़्हार करेंगे । इन्हें तुरन्त गोली मार दिये जाने जैसी जज़्बाती और अव्यवहारिक बातें कहकर ऐसा ज़ाहिर करेंगे कि जैसे उनसे बड़ा देशभक्त कोई दूसरा है ही नहीं लेकिन ऐसे ग़द्दार तो यहां हर विभाग में मिल जाएंगे और इतने मिल जाएंगे कि उन्हें मारने के लिए गोलियां भी कम पड़ जाएंगी और उन्हें जलाने के देश का सारा जंगल भी ।
http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2010/05/politics-and-crime.html
nice post
आदमी बेईमानी किसके लिए करता है । अपनी औलाद की बेहतरी के लिए । आप देश के ऐसे संस्थानों की सूची बनाइये जहां ऊँची तालीम के लिए मोटी रक़म दी जाती है । अब इनके बापों की लिस्ट बनाइये । इनके बापों की आय का स्रोत देखिये । अब अगर वे सर्विस करते हैं तो उनकी आय और ख़र्च का ब्यौरा मिलाइये आपको आसानी से ग़द्दार मिल जाएंगे । लेकिन अगर वह कोई फ़ैक्ट्री मालिक है तो आपको उस पर बिजली आदि सरकारी बिल की रक़म लाखों और करोड़ों की तादाद में बक़ाया मिलेगी जिसे वह इलाक़े के राजनेता और अफ़सरों से मिलकर अदा करने से बचता रहता है । इस तरह सभी मलाई चाटते रहते हैं और मंहगाई में पिसती है बेचारी ग़रीब जनता ।
इस तरीके़ से आपको ऊँचे दर्जे के ग़द्दार आसानी से मिल जाएंगे लेकिन इन्हें पकड़ने में किसी की दिलचस्पी हो तब न आदमी बेईमानी किसके लिए करता है । अपनी औलाद की बेहतरी के लिए । आप देश के ऐसे संस्थानों की सूची बनाइये जहां ऊँची तालीम के लिए मोटी रक़म दी जाती है । अब इनके बापों की लिस्ट बनाइये । इनके बापों की आय का स्रोत देखिये । अब अगर वे सर्विस करते हैं तो उनकी आय और ख़र्च का ब्यौरा मिलाइये आपको आसानी से ग़द्दार मिल जाएंगे । लेकिन अगर वह कोई फ़ैक्ट्री मालिक है तो आपको उस पर बिजली आदि सरकारी बिल की रक़म लाखों और करोड़ों की तादाद में बक़ाया मिलेगी जिसे वह इलाक़े के राजनेता और अफ़सरों से मिलकर अदा करने से बचता रहता है । इस तरह सभी मलाई चाटते रहते हैं और मंहगाई में पिसती है बेचारी ग़रीब जनता ।
इस तरीके़ से आपको ऊँचे दर्जे के ग़द्दार आसानी से मिल जाएंगे लेकिन इन्हें पकड़ने में किसी की दिलचस्पी हो तब न
इस तरीके़ से आपको ऊँचे दर्जे के ग़द्दार आसानी से मिल जाएंगे लेकिन इन्हें पकड़ने में किसी की दिलचस्पी हो तब न ।
ग़द्दार पहले भी पकड़े गए हैं और अब भी पकड़े गए हैं लेकिन न तो क़ानून का भय उनमें पहले पैदा हुआ और न ही अब होगा क्योंकि सभी जानते हैं मलाईदार ओहदा पाने के लिए राजनैतिक संरक्षण ज़रूरी है और किसी का राजनैतिक संरक्षण पाने के लिए बहरहाल ख़र्च तो करना ही पड़ता है । जब आदमी ख़र्च करेगा तो उसे लाभ के साथ निकालना वह अपना अधिकार मानता है ।
जब राजनेता ही सुधरने के लिए तैयार नहीं हैं तो उनके पिछलग्गू कैसे सुधर जाएंगे ?
सुधार के लिए ज़रूरी है कि आदमी यह समझ ले कि उसे जिस मालिक ने पैदा किया है वह उसके हर कर्म को देख रहा है और वह उसे उसके पाप-पुण्य का बदला ज़रूर देगा । ईश्वर और परलोक में यक़ीन के बिना इनसान का आचरण सुधरने वाला नहीं है । इसीलिए ऋषियों और पैग़म्बरों ने सदैव इनसान के मन में इन सिद्धान्तों को दृढ़ता से जमाने पर बल दिया । काल बदला हाल बदला लेकिन इनसान नहीं बदला ।
आज भी उसका हरेक काम भय और लालच से ही प्रेरित होता है ।
जिन लोगों ने स्वर्ग नर्क का इनकार किया है वास्तव में वे इनसान की मनोभावनाओं से वाक़िफ़ ही नहीं हैं । इनसान को इनसान बनाने के लिए उसे उसे मालिक की याद और उसके आदेश से जोड़ना ज़रूरी है तब वह तन्हाई में भी कोई जुर्म न करेगा क्योंकि उसे ‘ज्ञान‘ है कि सच्चा बादशाह उसे देख रहा है ।
इस तरीके़ से आपको ऊँचे दर्जे के ग़द्दार आसानी से मिल जाएंगे लेकिन इन्हें पकड़ने में किसी की दिलचस्पी हो तब न ।
ग़द्दार पहले भी पकड़े गए हैं और अब भी पकड़े गए हैं लेकिन न तो क़ानून का भय उनमें पहले पैदा हुआ और न ही अब होगा क्योंकि सभी जानते हैं मलाईदार ओहदा पाने के लिए राजनैतिक संरक्षण ज़रूरी है और किसी का राजनैतिक संरक्षण पाने के लिए बहरहाल ख़र्च तो करना ही पड़ता है । जब आदमी ख़र्च करेगा तो उसे लाभ के साथ निकालना वह अपना अधिकार मानता है ।
जब राजनेता ही सुधरने के लिए तैयार नहीं हैं तो उनके पिछलग्गू कैसे सुधर जाएंगे ?
सुधार के लिए ज़रूरी है कि आदमी यह समझ ले कि उसे जिस मालिक ने पैदा किया है वह उसके हर कर्म को देख रहा है और वह उसे उसके पाप-पुण्य का बदला ज़रूर देगा । ईश्वर और परलोक में यक़ीन के बिना इनसान का आचरण सुधरने वाला नहीं है । इसीलिए ऋषियों और पैग़म्बरों ने सदैव इनसान के मन में इन सिद्धान्तों को दृढ़ता से जमाने पर बल दिया । काल बदला हाल बदला लेकिन इनसान नहीं बदला ।
आज भी उसका हरेक काम भय और लालच से ही प्रेरित होता है ।
जिन लोगों ने स्वर्ग नर्क का इनकार किया है वास्तव में वे इनसान की मनोभावनाओं से वाक़िफ़ ही नहीं हैं । इनसान को इनसान बनाने के लिए उसे उसे मालिक की याद और उसके आदेश से जोड़ना ज़रूरी है तब वह तन्हाई में भी कोई जुर्म न करेगा क्योंकि उसे ‘ज्ञान‘ है कि सच्चा बादशाह उसे देख रहा है ।
इस तरीके़ से आपको ऊँचे दर्जे के ग़द्दार आसानी से मिल जाएंगे लेकिन इन्हें पकड़ने में किसी की दिलचस्पी हो तब न ।
ग़द्दार पहले भी पकड़े गए हैं और अब भी पकड़े गए हैं लेकिन न तो क़ानून का भय उनमें पहले पैदा हुआ और न ही अब होगा क्योंकि सभी जानते हैं मलाईदार ओहदा पाने के लिए राजनैतिक संरक्षण ज़रूरी है और किसी का राजनैतिक संरक्षण पाने के लिए बहरहाल ख़र्च तो करना ही पड़ता है । जब आदमी ख़र्च करेगा तो उसे लाभ के साथ निकालना वह अपना अधिकार मानता है ।
जब राजनेता ही सुधरने के लिए तैयार नहीं हैं तो उनके पिछलग्गू कैसे सुधर जाएंगे ?
सुधार के लिए ज़रूरी है कि आदमी यह समझ ले कि उसे जिस मालिक ने पैदा किया है वह उसके हर कर्म को देख रहा है और वह उसे उसके पाप-पुण्य का बदला ज़रूर देगा । ईश्वर और परलोक में यक़ीन के बिना इनसान का आचरण सुधरने वाला नहीं है । इसीलिए ऋषियों और पैग़म्बरों ने सदैव इनसान के मन में इन सिद्धान्तों को दृढ़ता से जमाने पर बल दिया । काल बदला हाल बदला लेकिन इनसान नहीं बदला ।
आज भी उसका हरेक काम भय और लालच से ही प्रेरित होता है ।
जिन लोगों ने स्वर्ग नर्क का इनकार किया है वास्तव में वे इनसान की मनोभावनाओं से वाक़िफ़ ही नहीं हैं । इनसान को इनसान बनाने के लिए उसे उसे मालिक की याद और उसके आदेश से जोड़ना ज़रूरी है तब वह तन्हाई में भी कोई जुर्म न करेगा क्योंकि उसे ‘ज्ञान‘ है कि सच्चा बादशाह उसे देख रहा है ।
good
@अमित जी ये दुसरे number का अनामी कमेन्ट आपके साथी नवरतन ने तो नहीं किया?
माशाल्लाह , इक और अच्छी पोस्ट .
अच्छा होता अगर आयत बिस्मिल्लाह से शुरू करते.
@ अयाज भाई
आपने एक-२ बात सच कही है
सही लिखा प्रोफ़ेसर मालिक राम ने
@Bhai sahespuriya , ब्लॉग की पहली पोस्ट बिस्मिल्लाह से ही शुरू की गई है .
हर व्यक्ति अपने मकान को शीशमहल बनाने की जुगत में है और दूसरे के घर पर पत्थर फेंक रहा है.
मित्रों आप सबको याद होगा की अभी पिछले लेख में मैंने हमारे धर्म ग्रंथों में शामिल कुछ गलत बातों के बारे में लिखा था और आप सब विद्वजनो से मेरी उन शंकाओं का निवारण करने का निवेदन किया था .उन्हें पढ़कर एक भाई जिनका की नाम आनंद पाण्डेय है और जो की वेदों पर शोध भी कर रहें हैं,उन्होंने मुझसे वादा किया था की वो मेरी इन सभी शंकाओं का निवारण करेंगे और इसके बदले में मैंने भी उनसे वादा किया था की वो इनका जो भी हल प्रस्तुत करेंगे उसे मैं हुबहू अपने ब्लॉग पर डालूँगा .उन्होंने कल ही मुझे मेरी पूछी गयी कुछ बातों का जवाब मुझे भेजा है और मैं उनके इन शंकाओं के निवारण को हुबहू प्रस्तुत करने के लिए वचनबध हूँ, इसलिए अपना वादा निभाते हुए मैं उनके द्वारा मुझे e -mail के through भेजे गए जवाब को हुबहू, बिना किसी काट-छांट या editing के यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ
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कोई भी ग्रन्थ अप्रासंगिक नहीं है अपितु हमारे विचार ही उन्हें अप्रासंगिक हैं।।
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|ANAND PANDEY
4:46 PM (17 hours ago)
प्रिय महक जी
अच्छा लगा कि ये सारे तथ्य आपकी जिज्ञासा के अंग मात्र हैं।
मैं आपके सारे शंकाओं का समाधान करना चाहूंगा किन्तु मेरी लिखने की गति थोडा कम है अत: ये समाधान मैं आपको टुकडो में दूंगा।
सब से पहले मनुस्मृति जनित शंकाओं का समाधान प्रस्तुत कर रहा हूं।
किन्तु यहां किसी भी शंका को समाधित करने से पहले मैं एक बात अवश्य चाहूंगा कि आप इन्हे समसामयिक युग के दृष्टि कोण से देखें क्यूकि कोई भी ग्रन्थ अपने प्रणयन के काल की समसामयिक समस्याओं के निदान हेतु ही लिखा जाता है जो कि जरूरी नहीं कि हर काल में चरितार्थ हो और दूसरी बात यह कि कोई भी परम्परा समाज को सुधारने या सही मार्ग पर ले जाने के लिये आती है, हां ये अलग बात है कि उस परम्परा को लोग धीरे -2 रूढि कर देते हैं जो समाज के अहित का कारण भी बनने लग जाती है पर इसमें उस परम्परा या उस परम्परा का विधान करने वाले लोगों का कोई दोष नहीं निकाला जाना चाहिये।
मै आपको एक छोटा सा उदाहरण देना चाहूंगा।
सती प्रथा हमारे समाज का अभिषाप मानी जाती है जिसका उन्मूलन बडे विवादों के वाद किया जा सका।
इस प्रथा को आज के समय में कोई भी संभ्रान्त व्यक्ति उचित नहीं ठहरायेगा पर थोडा सा सोंचकर बताइये कि क्या ये उस समय भी इतना ही बुरा था जब लोगों की पत्नियों को आक्रमणकारी सेनायें बुरी तरह से यौनाचार हेतु प्रयोग करती थीं।
जबतक पति जीवित रहता था तबतक तो कदाचित वो पत्नी के सम्मान की रक्षा कर लेता था पर मरने के बाद तो नहीं कर सकता था तो उस समय अगर ये व्यवस्था लागू थी तो इसका क्रियान्वयन करने वाला व्यक्ति प्रमत्त तो नहीं कहा जा सकता।
यहां ये भी प्रश्न उठ सकता है कि बहुत से लोग इस परिस्थिति से समझौता कर लेते रहे होंगे तो उनकी पत्नियों के लिये जबरदस्ती क्यूं की जाती थी तो इसका उत्तर सिर्फ इतना है कि अगर एक स्त्री को इस तरह की छूट दे दी जाती तो कदाचित और भी औरतें मृत्यु के डर से आक्रान्ताओं की रखैल बनने के लिये तैयार हो जातीं और फिर आप कल्पना कर सकते हैं कि आज का भारत कैसा होता या आज की स्थिति क्या होती। शायद भारतीय संस्कृति का नाम भी मिट गया होता।
अब उस समय की पुस्तकों में सती प्रथा या बाल विवाह की बहुत ही बडाई होती रही होगी तो अगर आज के परिवेश में हम उन पुस्तकों को देखें तो हमे खासा अनुचित लगेगा पर क्या हम उन पुस्तकों को बिल्कुल ही गलत ठहरा सकते हैं | नहीं ,,, हमें उन्हें गलत कहने का अधिकार नहीं है। पर हां हम आज उन पुस्तकों की मान कर सतीप्रथा या बाल विवाह भी नहीं ला सकते अत: हमें उनसे केवल समसामयिक विषयों पर चरितार्थ हो रहे विषयों का चयन ही करना चाहिये।
ठीक इसी क्रम में मै अब आपके मनुस्मृति जनित शंकाओं का समाधान करता हूं।
वस्तुत: आज जो मनुस्मृति ग्रन्थ प्राप्त होता है वह प्राचीन मनुस्मृति का प्रतिनिधि मात्र करता है। इस ग्रन्थ्ा के साथ बहुतों ने बहुत ही खिलवाड किया ।
फिर भी अगर यही इसका मूल रूप रहा हो तो भी इसके विषय में कुप्रचार इसकी प्राय: गलत ब्याख्या के कारण हुई।
आपको इस बात की आपत्ति है कि ब्राह्मण ईश्वर के मुख से क्यूं उत्पन्न हुआ और शूद्र पैरों से तो इससे क्या शूद्र की समाज में महत्ता समाप्त हो जाती है।
कतई नहीं।
जरा आपके शरीर में ही ये व्यवस्थाएं लागू करके देखते हैं।
अगर ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ है और शूद्र सर्वथा महत्व हीन तो आपके शरीर से शूद्र हटा दिये जाएं और उसके बदले आपको एक ब्राह्मण और दे दिया जाए।
अर्थात् अब आपको दो मुख हो गये और आपके पैर हटा दिये गये । कल्पना कीजिये क्या आप बहुत सहज महसूस कर रहे हैं।
आपके पहले प्रश्न का यही उत्तर बन पडता है ।
दूसरी बात आपने इस ब्यवस्था को जाति व्यवस्था कहीं नहीं सुना होगा क्यूकि ये वर्ण व्यवस्था थी जो ब्यक्तियों के कार्य के अनुसार निर्धारित होती थी। अर्थात् जिसके जो कर्म होते थे उनको उसी तरह के कार्य दे दिये जाते थे और उसको उसी वर्ग का मान लिया जाता था। अगर किसी ब्राह्मण का पुत्र भी किसी शूद्र की भांति प्रवित्त होता था तो उसे शूद्र की ही संज्ञा दे दी जाती थी पर बाद में इस वर्ण व्यवस्था को जाति व्यवस्था मान लिया गया तो इसमें महाराज मनु या उनके सिद्धान्त गलत क्यूं कहे जाएं।
वर्ण व्यवस्था का एक अद्भुत उदाहरण दे रहा हूं
कारूरहं ततो भिषगुपलप्रक्षिणी नना।
नानाधियो वसूयवोनु गा इव तस्थिमेन्द्रायेन्दो परि स्रव।। ऋग्वेद 9,112,3
उपरोक्त मन्त्र में एक ही परिवार के लोगों को भिन्न -2 कर्म का सम्पादन करते हुए दिखाया गया है।
मन्त्रार्थ- मैं मन्त्रों का सम्पादन करता हूं1। हमारे पुत्र वैद्य हैं2, मेरी कन्या बालू से जौ आदि सेंकती है3 इस तरह भिन्न-2 कार्यो का सम्पादन करते हुए भी जिस तरह गोपालक गौ की सेवा करते है उसी तरह हे सोमदेव हम आपकी सेवा करते हैं। आप इन्द्रदेव के निमित्त प्रवाहित हों।
इस मन्त्र में एक ही परिवार में तीन कर्म दिये हैं और किसी को भी किसी से श्रेष्ठ या निम्न नहीं माना गया है।
कहना सिर्फ इतना है मित्र कि थोडा सा वैशम्य देखकर किसी बात का गलत अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिये और सम्भव है अब आपकी इस समस्या का निराकरण हो गया हो कि किसी जाति परम्परा को उंच या नीच नहीं कहा गया, मतलब अगर कोई शूद्र है तो जरूरी नहीं उसका सत्कर्म करने वाला पुत्र भी शूद्र श्रेणी ही ग्रहण करे।
आपकी दूसरी समस्या
श्रीराम ने शम्बूक नामक शूद्र का वध क्यूं किया , जबकि वो तप कर रहा था।
आप के इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है-
श्री राम के राज्य में सर्वत्र कार्यप्रणाली का श्रेष्ठतम प्रतिपादन था अर्थात जिस के हिस्से में जो कार्य था वो अपने कार्य के प्रति पूर्ण समर्पित था अत: राज्य में अकाल मृत्यु नहीं होती थी।
शम्बूक एक ब्राह्मण द्रोही शूद्र था और तब के ब्राह्मण आज के ब्राह्मणों की तरह नहीं थे जो कर्म से तो शूद हों और ब्राह्मण होने का आडम्बर करें।
शम्बूक सामाजिक व्यवस्था के निर्माण के लिये नहीं अपितु ब्राह्मण वर्ग को नीचा दिखलाने के लिये तप कर रहा था।
और तो और उसके तप का माध्यम हठयोग था तथा वह मांसाहार तथा अभक्ष्यादिकों से तप का पोषण कर रहा था। इस तरह किया गया तप रामराज्य के लिये घातक सिद्ध हुआ और एक ब्राह्मण पुत्र की अकाल मृत्यु हो गई । इस कारण श्री राम ने उसका वध कर दिया। किसी को नीचा दिखाने के लिये किया गया कोई महान कार्य भी निरा तुच्छ माना जाता है।
आपने दक्ष प्रजापति के यज्ञ के विषय में जरूर सुना होगा, दक्ष तो ब्रह्मा का पुत्र था फिर भी शिव की दुर्भावना वश किया हुआ उसका यज्ञ नष्ट कर दिया गया और उसकी दुर्गति हुई।
शम्बूक की तरह ही रावण का प्रसंग ले सकते हैं।
रावण तो महर्षि पुलत्स्य (सप्तर्षियों मे से एक ऋषि) का नाती था, पर उसके आचार विचार निरा राक्षसों के थे अब अगर कोई ये कहे कि राम क्षत्रिय थे अत: ब्राह्मण का उत्थान देख नहीं सके और उसका वध कर दिया तो इसे आप क्या कहेंगे।
ये तो एकांगी विचार का ही परिपोषण है।
फिर आप ये क्यूं नहीं देखते कि राम ने शस्त्र विद्या महर्षि विश्वामित्र से ली थी जो एक क्षत्रिय थे ।फिर भी स्वयं महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें ब्रह्मर्षि कहा था और श्री राम उन्हें नत होते थे। क्या इस प्रसंग से जाति व्यवस्था का लेश भी दिखाई देता है।
तो जिन श्रीराम ने एक क्षत्रिय को गुरू माना , एक ब्राह्मण को मृत्युदण्ड दिया अगर उन्होंने शम्बूक को मारा तो क्या उनकी व्यवस्था में खोट आ गयी। आप स्वयं विचार कीजियेगा , उत्तर आपका अपना मन ही दे देगा।
तीसरी शंका आपके मन्त्रार्थ के गलत अध्ययन के कारण है
यहां मैं मन्त्रार्थ दे रहा हूं।
वैश्य:,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, चार्हति ।।374
जो वैश्य परस्त्री को एक वर्ष तक घर मे रखे उसे सर्वस्व हरण का दण्ड देना चाहिये, क्षत्रिय द्वारा एसा करने पर सहस्र पणों का तथा शूद्र द्वारा एसा करने पर मूत्र से सिर मुडाने का दण्ड देना चाहिये।
उभावपि,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, कटाग्निना।।375
जो वैश्य और क्षत्रिय रक्षित ब्राह्मणी से संभोग करते हैं उन्हे वही दण्ड देना चाहिये जो इस कृत्य के लिये शूद्र को मिलती है या फिर उन्हें चटाई में लपेटकर आग में झोंक देना चाहिये।
इसी तरह से अन्य के भी मन्त्रार्थ वैभिन्य के कारण ही आपकी ये शंका उत्पन्न हुई है अत: इसमें आपकी कोई भी गलती नहीं मानता हूं।।
रही बात इनके शवों को अलग-2 दिशाओं से ले जाने की तो इसमें कोई भी दुर्भावना नहीं दिखती क्यूकि आज भी ज्यादातर ग्रामों मे शूद्रों की बस्तियां दक्षिण में ही होती है अत: यह केवल इस लिये ही नियमित किया गया कि कदाचित कोई भी वर्गद्वन्द्व न होने पाये। वस्तुत: ग्रन्थ का आशय केवल समाज में शान्ति व्यवस्था बनाये रखने से ही है अत: कुछ नियम ऐसे भी बने थे जो आज अप्रासंगिक होते दिख रहे हैं।
दण्ड विधान वैभिन्य इस कारण था कि एक ब्राह्मण जो समाज में उच्च पदासीन था, लोगों के मानस पटल पर जिसका सम्मानित प्रतिबिम्ब था उसको समाज के मध्य अपमानित करना ही मृत्यु के समान था पर क्रम नीचे जाने पर अगर आप एक शूद्र को उसके किसी जघन्य कृत्य के लिये केवल अपमानित कर के छोड दिया जाता तो उसकी कोई हानि न होती क्यूंकि समाज उससे ब्राह्मण का सा सम्मानित व्यवहार नहीं करता था , और इस थोडे से दण्ड प्राप्त होने पर वह वही कृत्य दुवारा भी उतने ही सानन्द करता इसलिये कठोर दण्ड के नियम यथोक्त निर्मित हुए।।
प्रिय महक जी
आशा है आपकी जिज्ञासा का कुछ तो समन कर सका हूंगा।
आपके शेष प्रश्नों का उत्तर भी इसी क्रम में देता रहूंगा पर अगर मेरे द्वारा दिये गये इन उत्तरों में आपकी जरा सी भी श्रद्धा दिखी तो।
एक बात और कहना चाहूंगा । आज हमारे देश की जो स्थिति है वो आप स्वयं ही देख रहे हैं । इसमें बताने जैसा कुछ भी नहीं है। हमारे देश के नेतागण ही इस देश को नष्ट करने पर लगे हैं, और फिर उपर से पाकिस्तान , बांग्लादेश, चीन , अफगान आदि देशों की सीमाओं से कुछ न कुछ अनिष्ट हो ही रहा है तो हमारा आज कर्तब्य ये बनता है कि हम भारत को भारत ही रहने दे इसे हिन्दू या मुस्लिम कौम में न बांटें और ये कार्य तभी सम्भव हो सकेगा जब हम अपने किसी भी धर्मग्रन्थ पर कटाक्ष न करें। चाहे वो वेद हों, पुराण हों, कुरान हों या गुरूग्रन्थ साहब हो । ये सारे ग्रन्थ बडे पवित्र हैं तथा इनमें हमारे प्राण बसते हैं अत: इनपर कुछ भी कटाक्ष करने से हमें तो कुछ नहीं मिलने वाला अपितु आपसी द्वेष ही बढेगा।
और जरा ये बताइये कि क्या समाज इन ग्रन्थों के हिसाब से आज या कभी भी चला है, अर्थात् क्या वो सारी व्यवस्थाएं लोगों द्वारा पालित हैं, और अगर नहीं तो क्यूं बिना वजह इन ग्रन्थों की टांग खींची जाए कि इनमें ये लिखा है , उनमें वो लिखा है। इसका क्या मतलब बनता है।
आज का जो कानून बना है क्या लोग उसका शत् प्रतिशत् पालन करते हैं या कि आज के कानून में जो लिखा है वो सब सही ही लिखा है, और अगर एसा नहीं है फिर भी तो लोग उसे मानते तो हैं ही न। क्यूं नहीं कोई इस पूरी कानून ब्यवस्था की कमियों के खिलाफ बगावत करता है।
कई बार हमें हमारे मां पिता तक से कुछ अप्रत्याशित् या अनुचित दण्ड प्राप्त हो जाता है या कुछ ऐसा व्यवहार होता है जिसकी हम आशा भी नहीं करते होते हैं तो क्या यह उचित है कि हम उनका समाज के बीच में अपमान करें या प्रतिरोध करें।।
अगर आप इन बातों से सहमत हैं तो शायद फिर आपको उन प्रश्नों के उत्तर की आशा न रहेगी।
शेष आपकी इच्छा।
आखिर में एक निवेदन सभी ब्लागर मित्रों से है कि कृपया अपनी तर्कशक्ति तथा लेखन शक्ति का प्रयोग व अपनी उर्जा को समाज के निर्माण में तथा भारत की उन्नति हेतु लगायें इससे हमारे व्यक्तित्व का विकास तो होगा ही , साथ ही साथ हमारा भारत, अखण्ड भारत बनेगा ।
कभी भी किसी भी धर्म या धार्मिक ग्रन्थों पर कटाक्ष करने से पहले ये जरूर विचार करियेगा कि जब भी देश पर संकट पडा है तो सारे भारतीय केवल भारतीय होते हैं न कि हिन्दू, मुसलमान । आजादी की लडाई भी हमने साथ ही लडी है।
धर्मवाद और जातिवाद तो कमीने नेताओं का शगल है। हमें तो जो भी वाद चलाना है वो हमारे भारत के लिये ही चलाना है अत: हांथ जोडकर निवेदन करता हूं कि संयुक्त भारत परिवार को विघटित न होने दें अन्यथा परिणाम किसी भी व्यक्ति के लिये हितकर नहीं होगा।।
आप लोगों का सहयोग एक सुरक्षित भारत का निर्माण करेगा।।
जय हिन्द
तो ये था वो जवाब जो भाई ने मुझे भेजा .
मुझे इस बात की अत्यधिक प्रसन्नता है की चलो किसी ने तो हिम्मत की हमारे वेदों के बारे में उत्पन शंकाओं के निवारण की ,उनके इस लेख से एक बात तो माननी पड़ेगी की आज के समय में ये सती प्रथा और बाल-विवाह आदि भले ही कुरीति हों लेकिन उस समय इनका जन्म एक कुरीति के रूप में नहीं हुआ था अपितु समाज के भले के लिए हुआ था लेकिन आज वो दौर नहीं है जिसके लिए इन्हें उत्पन किया गया था और मुझे ख़ुशी है की भाई आनंद ने स्वयं कहा है की -" हम उन पुस्तकों को बिल्कुल ही गलत नहीं ठहरा सकते हैं पर हां हम आज उन पुस्तकों की मान कर सतीप्रथा या बाल विवाह भी नहीं ला सकते अत: हमें उनसे केवल समसामयिक विषयों पर चरितार्थ हो रहे विषयों का चयन ही करना चाहिये।"
उनसे इस पर पूर्णतया सहमत हूँ.
साथ ही उन्होंने मनु-स्मृति में निहित ब्रह्मण-शुद्र के बीच के भेद-भाव को स्पष्ट करते हुए बताया है की ये भेद-भाव उनके जन्म के आधार पर न होकर उनके कर्म के आधार पर किया गया है.जैसे की आज जो लोग बेकसूरों को मारते हैं उन्हें हम आतंकवादी कहते हैं और जो अपने देश की भलाई के लिए कार्य करते हैं उन्हें हम देशभक्त या फिर राष्ट्रवादी या फिर राष्ट्रभक्त कहते हैं ।इसी तरह जो श्रेष्ठ कार्य करे तो उसे ब्राहमण कहा गया है और नीच कार्य करने वाले को शुद्र .और उन्होंने ये भी बताया है की अपने सत्कार्यों के जरिये एक शुद्र माना जाने वाला व्यक्ति भी ब्रह्मण पद को प्राप्त कर सकता है और अपने दुष्कर्मों के जरिये एक ब्राहमण समझा जाने वाला व्यक्ति भी शुद्रता को प्राप्त हो सकता है.तो अगर सच में ये भेद-भाव जन्म को ना लेकर कर्म को लेकर है तो फिर मुझे इससे कोई आपत्ति नहीं लेकिन बहुत से गाँवों में आज भी ये भेद-भाव व्यक्ति के कर्मों को न लेकर उसके जन्म को लेकर है की वो किसके घर पैदा हुआ है।आपसे और अन्य विद्वजनो से प्राथना है की इसे उन लोगों को समझाने का प्रयास करें जो इसे व्यक्ति के जन्म को लेकर करते हैं.
इससे एक बात तो स्पष्ट होती है की भगवान् ने अगर चाक़ू फल काटने के लिए बनाएं हैं और अगर कोई उनसे किसी जीव को काटने लगे तो इसमे चाक़ू या फिर भगवान् का कोई दोष नहीं,ये उस व्यक्ति की नासमझी है जो वो उसे समझ नहीं पा रहा क्योंकि भगवान् ने वो चीज़ गलत कार्य के लिए बिलकुल नहीं बनाई है.भगवान् ने वो चीज़ दुरुपयोग के लिए नहीं बल्कि उसके सदुपयोग के लिए बनाई है .लेकिन एक बात ज़रूर कहना चाहूंगा की "criticism " को कभी भी गलत अर्थ में ना लें, ये हमें ही अपने आप को बेहतर बनाने में मदद करता है.दवाई कडवी जरूर होती है लेकिन उसका असर हमारी भलाई करता है.अगर स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद,राजा राम मोहन राय आदि ने कुरीतियों को "criticise " और उनके removal के लिए प्रयास ना किया होता तो वे कभी भी दूर नहीं हो सकती थीं और आज हम भी उन्हें एक शाप के रूप में ढो रहे होते.
अंत में भाई आनंद पाण्डेय को बहुत-२ धन्यवाद देना चाहूंगा की उन्होंने हम सबकी शंकाओं को हल करके वेदों के प्रति हमारे नज़रिए को एक सही मार्गदर्शन प्रदान करने की कोशिश की.आनंद भाई जो थोड़ी सी शंकाएं रह गयी हैं मैं चाहूंगा की आप उनका भी निवारण करें ताकि हमें उनका भी सही दर्शन प्राप्त हो.
धन्यवाद
महक
@@ "मैंने भी उनसे वादा किया था की वो इनका जो भी हल प्रस्तुत करेंगे उसे मैं हुबहू अपने ब्लॉग पर डालूँगा .उन्होंने कल ही मुझे मेरी पूछी गयी कुछ बातों का जवाब मुझे भेजा है और मैं उनके इन शंकाओं के निवारण को हुबहू प्रस्तुत करने के लिए वचनबध हूँ, इसलिए अपना वादा निभाते हुए मैं उनके द्वारा मुझे e -mail के through भेजे गए जवाब को हुबहू, बिना किसी काट-छांट या editing के यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ"
isse ik baat to saaf ho gayi ki ye MAHAK JAMAAL hi hai
मैं जानता था और हूँ की ये सब पढने के बाद कुछ मूर्ख लोग कहेंगे की अब तो साबित हो गया की ये महक नहीं महक के रूप में जमाल भाई ही हैं वरना महक को तो इन बातों को खुद के ब्लॉग पर डालना चाहिए था, जमाल भाई के ब्लॉग पर क्यों डाला ?
कुछ लोग ऐसा इसलिए कहेंगे क्योंकि वो हर उस व्यक्ति से चिढ़ते हैं जो सत्य बोलता है और कुछ अज्ञानवश ऐसा कहेंगे. तो उन सब लोगों को मैं याद दिलाना चाहूंगा की मैंने वेदों के बारे में ये चर्चा सिर्फ अपने ब्लॉग पर नहीं बल्कि इस ब्लॉग पर भी की थी ,इसलिए मेरा फ़र्ज़ बनता है की मैं इसे खुद के और जमाल भाई के ब्लॉग पर भी डालूँ .और इसीलिए मैंने इसे दोनों ब्लोग्स पर डाला है .
और साथ ही मैं जमाल भाई के ब्लॉग को मेरे ब्लॉग से अलग नहीं मानता .दोनों ही ब्लॉग हर तरह की कुरीति का विरोध, सच का हर कीमत पर साथ और एक सार्थक बहस के लिए एक मंच का समर्थन करते हैं .
कुछ दिनों से मैं स्वयं हैरान हूँ की लोग मेरी तुलना जमाल भाई से कैसे कर रहें हैं ?वे ऐसा कैसे कर सकते हैं ये जानते हुए भी के जमाल भाई मुझसे बहुत आगे हैं पर फिर भी वे ऐसा कर रहें हैं.शायद इसका कारण हम दोनों की लेखन शैली में समानता और हमारा स्वभाव है .जमाल भाई को भी जो सही लगता है वो उसे पूरी दृढ़ता से बिना किसी की परवाह किये हुए लिखतें हैं फिर चाहे कोई नाराज़ हो या खुश और मैं भी. मैं खुद इस बात को मान चूका हूँ की मैं जमाल भाई और सुरेश चिपलूनकर जी को गुरुतुल्य मानता हूँ और इनके ब्लोग्स पढ़-पढ़कर ही मुझे काफी कुछ सिखने को मिला है.
तो इसलिए आप सबसे निवेदन है की मेरी तुलना जमाल भाई से ना की जाए क्योंकि मेरे लिए तो ये गर्व की बात है लेकिन जमाल भाई के लिए शायद ना हो क्योंकि जो व्यक्ति पहले ही एक level acheive कर चूका है फिर उसे उस व्यक्ति के साथ compare करना जो अभी नया है और उससे छोटे level पर है तो ये पहले व्यक्ति के प्रति अन्याय होगा .
धन्यवाद
महक
महक भाई आप सच का साथ देते रहे
Good Post.
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