सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Thursday, May 20, 2010

Hope for life क्या अपाहिज भ्रूण को जन्म लेने का अधिकार है ?



डा. मीनाक्षी ने गर्भस्थ शिशु को टर्मिनेट करवाने की सलाह दी और मैंने शिशु को परमेश्वर की इस सुन्दर धरा पर खिलखिलाने और अपनी मां की गोद में खेलने का मौक़ा देने का फ़ैसला लिया ।
हम दोनों के नज़रिये और फ़ैसले में इतना बड़ा अन्तर क्यों है ?
क्या इसलिए कि डा. मीनाक्षी एक हिन्दू महिला हैं और मैं एक मुसलमान ?
नहीं । डा. मीनाक्षी का यह फ़ैसला एक हिन्दू का फ़ैसला नहीं बल्कि एक आधुनिक डाक्टर का फ़ैसला है ।
कोई भी हिन्दू अपने शास्त्रों के आधार पर मुझे ऐसी सलाह नहीं दे सकता । ईश्वर को जीवनदाता और विधाता मानने वाला हिन्दू ठीक वही निर्णय लेगा जो कि एक मुसलमान लेगा जबकि आधुनिक शिक्षा तो ईश्वर और आत्मा को ही नहीं मानती । न ही वह मनुष्य के जन्म का कोई उच्चतर उद्देश्य ही तय कर पाई है । उसके लिए तो बच्चा भी एक Product है जिसे नाक़िस होने की वजह से रिजेक्ट किया जा सकता है ।

इस समस्या के कई पहलू हैं और हरेक पहलू तफ़्सीली बहस चाहता है । इसका एक पहलू तो मां-बाप के जज़्बात और आर्थिक सामाजिक कष्टों से संबंधित है । इसका दूसरा पहलू खुद अपाहिज बच्चे के कष्टमय जीवन से संबंधित है और इसका तीसरा पहलू समाज के लिए उसके उपयोगी या अनुपयोगी होने से संबंधित है । हरेक पहलू अहम है और उनमें से किसी एक को भी नज़रअन्दाज़ करना ठीक नहीं है ।इससे पहले कि मैं पहले पहलू पर अपना ख़याल ज़ाहिर करूं , मैं कहना चाहूंगा कि समाधान तक पहुंचने के लिए खुद समस्याएं ही वास्ता और ज़रिया बनती हैं । अगर हम समस्याओं के अन्त के लिए ‘न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी‘ वाली नीति अपनाते हैं तो यह मानवता के विकास को अवरूद्ध करना होगा । आवश्यकताएं ही अविष्कार की जननी हैं ।

मैं अलबेला खत्री जी का आभारी हूं कि उन्होंने मुझे बिल्कुल सही मश्विरा दिया और मैं सुबह के पुरसुकून लम्हों में अपने मालिक से प्रार्थना कर रहा हूं और अभी मुझे ध्यान आया कि मुझे अपने ब्लॉग पर पधारने वाले भाइयों के लिए भी उन्हीं लम्हों में सच्चे मालिक से अरदास करनी चाहिए । कल सुबह से मैं यह भी शुरू कर दूंगा । सबके लिए , चाहे वह मुझ पर स्नेह लुटाने वाले अलबेला जी हों या फिर मेरे विचारों से असहमत कृष्ना जी , मान जी और मनुज जी आदि हों ।

आखि़र सभी मेरे भाई हैं । उनकी असहमति या विरोध का मतलब यह नहीं है कि वे मेरे दुश्मन हैं या वे मानवीय संवेदना से ख़ाली पत्थर मात्र हैं ।

मनुज जी ने एक बार परम आर्य जी को उनकी सख्तकलामी पर टोका था और पिछली पोस्ट पर उन्होंने मान जी को टोका । इससे उनके उदारमना होने का पता चलता है और मुझे मान जी का अपनाइयत भरा जवाब भी अच्छा लगा । अगर दिल में नफ़रत और लहजे में तल्ख़ी न हो तो आपसी संवाद हमारे दिल के गुबार को कम कर देता है

जिन लोगों ने मुझे डाक्टर मीनाक्षी राना की सलाह मान लेने का सुझाव दिया मैंने उनकी हमदर्दी को भी महसूस करके खुद को काफ़ी कुछ हल्का पाया । प्रिय प्रवीण जी तो मात्र भौतिक और लौकिक हानि-लाभ के आधार पर सोचने वाले आदमी हैं । उनके सुझाव से असहमत होने के बावजूद मैं उनसे कुछ कहने की स्थिति में खुद को फ़िलहाल नहीं पाता लेकिन मेरे जो वैदिक और पौराणिक भाई आध्यात्मिक मूल्यों में विश्वास रखते हैं मैं उनसे ज़रूर जानना चाहूंगा कि उनके सुझाव का आधार भारतीय सांस्कृतिक मूल्य हैं या उन्होंने पश्चिम के कोरे बुद्धिवाद की चपेट में आकर ऐसा कह डाला ?अगर बच्चे को भविष्य के संभावित कष्टों से बचाने का तरीक़ा उन्हें मार देना ही है तो फिर वे मां-बाप क्यों निन्दा के पात्र ठहरते हैं जो ग़रीबी से तंग आकर अपने बच्चों को भविष्य के कष्टों से बचाने की ख़ातिर पहले उनकी हत्या करते हैं और फिर खुद भी आत्महत्या कर लेते हैं ?
और फिर कष्ट मात्र अपाहिज लोग ही नहीं भोगते । समाज का कौन सा आदमी ऐसा है जो आज कष्ट नहीं भोग रहा है ?
क्या समाज के हरेक आदमी को कष्टों से मुक्ति के लिए अपनी जान दे देनी चाहिए ?
हरेक बच्चा अपने जीवन में अनगिनत कष्ट भोगता है और अन्ततः मर जाता है । जब अन्त मौत ही है तो फिर इतना कष्ट क्यों उठाया जाए ?
क्या यह बेहतर न होगा कि हरेक मां-बाप अपने बच्चों को पैदा होते ही मार दिया करें ताकि वे जीवन में पेश आने वाले कष्टों को भोगने से बच जाएं ?
कोई बाल यौन शोषण का शिकार होता है तो कोई लड़की बलात्कार या प्रेमी की बेवफ़ाई का दुख उठाती है । प्रायः लड़के-लड़कियों को उनके सपनों का जीवनसाथी नहीं मिल पाता और वे अपना मन मारकर बस किसी तरह निबाह करती रहती हैं । वे मां बनती हैं तो भी भयंकर वेदना उठानी पड़ती है और फिर बच्चों को पालना ही अपने आप में एक कष्टप्रद साधना है । इनसान का तो जीवन ही कष्ट से भरपूर है । वह कष्ट से बच नहीं सकता । दरअस्ल हमें यह भी समझना पड़ेगा कि कष्ट हमारे जीवन में रखे क्यों गये हैं ?

क्या कष्ट हमारे लिए यातना मात्र हैं या इनसे मानवीय चरित्र और सभ्यता के निर्माण में कोई मदद भी मिलती है ?

आपके बेहतर विचारों का सदा स्वागत है । काजल जी के नाम से जिन भी सज्जन ने टिप्पणी की है , उनकी तरफ़ से मैं काजल जी से क्षमा चाहता हूं । लेकिन उनसे यह भी कहना चाहूंगा कि उन्हें प्रस्तुत पोस्ट पर अपने विचार व्यक्त करने चाहियें थे ।

24 comments:

honesty project democracy said...

हमारे ख्याल से यहाँ हिन्दू और मुस्लिम का कोई वजह नहीं नजर आता / यहाँ व्यक्तिगत भावना का जुड़ाव अहम् रोल अदा करता है / वैसे अगर बच्चा मानसिक विकलांगता का शिकार नहीं है तो उसे जन्म दिया जा सकता है / उम्दा विचारणीय प्रस्तुती / अनवर जमाल जी आज हमें आपसे सहयोग की अपेक्षा है और हम चाहते हैं की इंसानियत की मुहीम में आप भी अपना योगदान दें / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें ------ http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html

Mohammed Umar Kairanvi said...

समाज का हर आदमी कष्ट भोग रहा है उसे कष्‍टों से मुक्ति के लिय कडे और सत्‍य रास्‍ते पे चलने के कठोर निर्णय लेने होंगे उन्‍हीं में हमारी भलाई

Ayaz ahmad said...

अनवर साहब हमें आप से यही उम्मीद थी। अल्लाह जो करता है अच्छा ही करता है ।वह सदैव आपके व हमारे सबके साथ है ।

Ayaz ahmad said...

जीवन तो सारा दुख से भरा है यहाँ जब जब सुख आता है उसके बाद बड़ा दुख भी आता है इसका मतलब ये नही की जीवन ही समाप्त कर लिया जाए

bittu said...

agar dharti par viklaang na ho to log khud ko bhagwaan samjhne lagenge

सहसपुरिया said...

अल्लाह आपको खुश रखे ''आमीन''

सहसपुरिया said...

इसी को कहते हैं ........
सच्चे लोग सच्चा आनंद

सहसपुरिया said...

ड़ा० साहब बहुत खूब हैं आप और आपका फ़ैसला.
मैने पहले ही कहा था आप जैसे लोगो से ही हम नासमझो को राह मिलती है और फ़ैसला करने की ताक़त भी...बेशक अल्लाह आप को इस का अज्र देगा, दुनिया में भी और आखरत में भी.......... इंशाल्लाह

Shah Nawaz said...

बिलकुल सही फैसला है आपका. आपकी तो लगता है पूरी ज़िन्दगी ही अल्लाह के रास्ते की दावत है.

Shah Nawaz said...

आप अगर इसी तरह समाज के कल्याण के कार्य करें और लोगो के भड़कावे को दरकिनार करें तो यकीन मानिये पुरे भारितीय समाज को लाभ होगा. इंशाल्लाह.

Kumar Jaljala said...

असली मीनाकुमारी की रचनाएं अवश्य बांचे
फिल्म अभिनेत्री मीनाकुमारी बहुत अच्छा लिखती थी. कभी आपको वक्त लगे तो असली मीनाकुमारी की शायरी अवश्य बांचे. इधर इन दिनों जो कचरा परोसा जा रहा है उससे थोड़ी राहत मिलगी. मीनाकुमारी की शायरी नामक किताब को गुलजार ने संपादित किया है और इसके कई संस्करण निकल चुके हैं.

Man said...
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Man said...

डॉ. अयाज आज से चार साल पहले नासमझी में मेने ऐसा ही कदम उठा लिया था ,क्योकि मुझे लगता था की मेरे पास मेरा INTELIGENT बेटा पहले से ही हे ,मेने ABORTION करवा दिया ,एक सवस्थ होने वाली ओलाद का .लकिन मुझे ऐसा महसूस होता हे की मेरी ओलाद काफी बड़ी हो गयी हे ,वो इधर उधर घूमती फिर रही हे ,एक रात ये सोच के खूब रोया ,उसकी माँ को भी सपने में गोरा चिठा बालक एक दो बार दिखाई दिया ,लेकिन महाराज को पूछने पर उन्होंने बताया की ये वो नहीं हे ,ये आपके मकान के इधर से निकलता हे ,लेकिन हे तुम्हारे परिवार का ही |.अब डॉ. कितना गलत काम हे ये ,यदी इंसान इ योनी उसे कितनी तपश्या के बाद मिलती हे उसी को ही ABORTION से लोग ख़तम कर रहे हे ?

zeashan haider zaidi said...

मन साहब ने बिलकुल सही बात कही. देखा ये गया है की लायेक और काबिल औलाद माँ बाप को छोड़ कर निकल लेती है, और जिससे कोई उम्मीद नहीं होती जो नाकारा समझा जाता है अंत में बुढापे में वही माँ बाप का सहारा बनता है.

Man said...
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Man said...

जीशान जी में उस ओलाद की बात नहीं कर रहा हूँ ,बल्कि उस ओलाद की कह रहा हूँ जिसको मेने दुनिया में आने रोक दिया ,लकी मुझे लगता हे वो दुनिया में ही हे और ५,६ साल का हो गया हे और यंही इस धरती पर घूम रहा हे ,में उसको याद करके रोता हूँ .

Ayaz ahmad said...

हजरत अबूहुरैरा (रज़ि) से रिवायत है कि प्यारे नबी मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा: " विधवा स्त्री और विकलांग के लिए कोशिश करने वाला ऐसा है जैसा अल्लाह के मार्ग मे संघर्ष करने वाला।'

DR. ANWER JAMAL said...

मान जी ! आदमी को अगर किसी भी ईश्वरीय व्यवस्था में विश्वास रखता है तो उसे उसका पालन करना चाहिये । ईश्वर , धर्म और नैतिकता में विश्वास आदमी से अपनी क़ीमत मांगता है । अच्छा चरित्र और पारलौकिक कल्याण के लिए आदमी को परिश्रम भी करना पड़ता है और त्याग भी । आज का आदमी प्राचीन मूल्यों पर अपना विश्वास
तो व्यक्त करता है लेकिन फ़ैसला लेते समय अक्सर उस पर आधुनिक शिक्षा के नास्तिक संस्कार हावी हो जाते हैं । जिसके नतीजे में आदमी पाप कर डालता है और जीवन भर उसका ज़मीर उसे कचोटता रहता है । उस बच्चे का आपको अक्सर नज़र आना यही बताता है कि वह कृत्य आपके चित्त में गहरा अंकित हो गया है । इसका समाधान यह है कि आप अपनी ग़लती स्वीकार करें और दूसरों को ऐसी ग़लती करने से रोकें । आप अपने मन को हल्का पायेंगे ।

Ayaz ahmad said...

@MAN जी अल्लाह क़ुरआन मे फ़रमाता है"(अल्लाह) ने पैदा किया मौत और जीवन को, ताकि तुम्हारी परीक्षा करे कि तुममे कर्म की निगाह से कौन सबसे अच्छा है"(क़ुरआन,67:2)

Man said...

सही हे डॉ. जमाल साहब इसका परषित यही हे की में दुसरो को ऐसा करने से रोकू ..जीस से मेरे दिल का बोझ कम हो सके

DR. ANWER JAMAL said...

भाइयो, आप सभी को एक अन्यंत दुःख देने वाली घटना का साझीदार बना रहा हूँ . एम्स के प्रसूती विभागकी की डॉ अंजली खेडा के परामर्श अनुसार बच्चे को जन्म देने से माँ की जान को ख़तरा है. बहुत सोच समझ कर मैंने गर्भ समापन कराने का निर्णय लिया है, बाकी अल्लाह के हाथ में है. आप सभी दुआ करें और मैं भी दुआ कर रहा हूँ. कुछ महीनो के किये ब्लॉग जगत से दूर रहूँगा.

Ayaz ahmad said...

ये ऊपर वाला कमेँट किसी फर्जी व्यक्ति ने अनवर भाई के नाम से किया है

DR. ANWER JAMAL said...

Request as a order बहन फ़िरदौस की ख़ातिर भाई एजाज़ इदरीसी से एक पठानी विनती
बहन फ़िरदौस साहिबा ! आप एक आला तालीमयाफ़्ता ख़ातून हैं । आपने एजाज़ की पोस्ट से आहत होकर अपने ब्लॉग के साथ ज़्यादती कर डाली । आपके अमल से आपकी हस्सासियत ए तबअ और नज़ाकत ए क़ल्ब का पता चलता है । आपके दुख से हम भी बहुत दुखी हैं । हम आपकी भी क़द्र करते हैं और आपके हक़ ए आज़ादी ए इज़्हारे ख़याल की भी । जब कभी आपको ज़रूरत पड़ेगी , यह बन्दा ए मोमिन आपके साथ होगा । हम आपके पुकारने की भी इन्तेज़ार न करेंगे । आपके लिए हमारा मश्विरा एक शेर की शक्ल में है -
आंसुओं की शमशीरों से ये जंग न जीती जाएगी
लफ़्ज़ ए मुजाहिद लिखना होगा झंडों पर दस्तारों पर
शब्दार्थ - अश्क - आंसू , शमशीर - तलवार ,
मुजाहिद - सत्य के लिए जानतोड़ संघर्ष करने वाला , दस्तार - पगड़ी
भाई एजाज़ साहब के लिए एक फ़रमान बशक्ले इल्तेजा यह है कि आइन्दा आप बहन फ़िरदौस के बारे में ख़ामोशी इख्तियार करें या फिर उनका तज़्करा ख़ैर के साथ करें । उनके साथ गुफ़्त ओ शुनीद के लिए हम लखनवी अख्लाक़ से मुज़य्यन जनाब सलीम ख़ान साहब को काफ़ी समझते हैं । कोई भी एजाज़ लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी और हमारी मुश्तरका इज़्ज़त को मजरूह करने का मजाज़ हरगिज़ हरगिज़ नहीं है ।
जय हिन्द , वन्दे ईश्वरम्

Vibha Rani said...

धरती पर आ कर मनुष्य जो कष्त भोगता है, उसके लिए पहले से ही किसी बच्चे को यह जान कर भी क्यों लाया जाए कि दुनिया तो तकलीफ उठाने के लिए ही है? नहीं साहब, साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है और अगर जांच के दौरान यह पता चलता है कि बच्चे में कोई असामानयता है तो उस गर्भ को गिराने में सबकी भलाई है, अपंग बच्चे की तकलीफ दिन रात बच्चा झेले, मां बाप झेले. और जिंदगी का कोई भरोसा नहीं. कल को मां बाप को कुछ हो जाए तो फिर उस बच्चे की परवरिश कौन करेगा? तो उस बच्चे को ताज़िंदगी दुख में जीते रहने को मज़बूर करने में किसकी क्या भलाई है?