सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Sunday, September 19, 2010
The Life style of Sri Krishna आखि़र कोई तो बताये कि श्री कृष्ण जी ने कहां कहा है कि वे ईश्वर हैं और लोगों को उनकी पूजा-उपासना करनी चाहिये ? - Anwer Jamal
@ श्री रविन्द्र जी ! आप मुसलमानों से कह रहे हैं कि यदि वे श्रीकृष्ण जी का आदर करते हैं तो उनकी जन्मभूमि पर जबरन और नाजायज़ तौर पर बनाई गई मस्जिद हिन्दुओं को वापस कर दें।
मुफ़्तख़ोरी के लिए ही इस्लाम पर बेबुनियाद आरोप
1. इस संबंध में मुझे यह कहना है कि अयोध्या हो या काशी हरेक जगह मस्जिदें और मुसलमान कम हैं। अगर कोई शासक वहां मन्दिर तोड़ता तो सारे ही तोड़ता और जैसा कि कहा जाता है कि हिन्दुओं से इस्लाम कुबूल करने के लिए कहा जाता था और जो इस्लाम कुबूल नहीं करता था, उसकी गर्दन काट दी जाती थी। अगर मुस्लिम शासकों ने वाक़ई ऐसा किया होता तो इन हिन्दू धर्म नगरियों में आज मुसलमान और मस्जिदें अल्प संख्या में न होतीं। इनकी संख्या में कमी से पता चलता है कि मस्जिदें जायज़ तरीक़े से ही बनाई गई हैं लेकिन ऐतिहासिक पराजय झेलने वाले ख़ामख्वाह विवाद पैदा कर रहे हैं ताकि इस्लाम को बदनाम करके उसके बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके। अगर लोग इस्लाम को मान लेंगे तो फिर न कोइ शनि को तेल चढ़ाएगा और न ही कोई मूर्ति को भोग लगाएगा। इस तरह बैठे बिठाए खाने वालों को तब खुद मेहनत करके खानी पड़ेगी। अपनी मुफ़्तख़ोरी को बनाये रखने के लिए ही इस्लाम पर बेबुनियाद आरोप लगाए जाते हैं जिन्हें निष्पक्ष सत्यान्वेषी कभी नहीं मानते।
सब कुछ पूर्वजन्मों के कर्मफल के अनुसार ही मिलता है
2. इससे यह भी पता चलता है कि हिन्दुओ को अपनी मान्यताओं पर खुद ही विश्वास नहीं है। हिन्दुओं का मानना है कि जो कुछ इस जन्म में किसी को मिलता है वह सब प्रारब्ध के अर्थात पूर्वजन्मों के कर्मफल के अनुसार ही मिलता है। प्रारब्ध को भोगना ही पड़ता है। बिना भोगे यह क्षीण नहीं होता। ईश्वर भी इसे नहीं टाल सकता। यही कारण है कि अर्जुन आदि को भी नर्क में जाना पड़ा था। आपके पिछले जन्मों के फल आज आपके सामने हैं इसमें मुसलमान कहां से ज़िम्मेदार हो गया भाई ?, ज़रा सोचो तो सही। जो कुछ हुआ सब प्रभु की इच्छा से ही हुआ, ऐसा आपको मानना चाहिए अपनी मान्यता के अनुसार।
श्रीकृष्ण जी के असली और जायज़ वारिस केवल मुसलमान हैं
3. केवल मुसलमान ही श्रीकृष्ण जी का आदर करते हैं तब क्यों वे मस्जिद को उन लोगों को दे दें जो श्रीकृष्ण जी को ‘चोर‘ , ‘जार‘ ‘रणछोड़‘ और ‘जुआरियों का गुरू‘ बताकर उनका अपमान कर रहे हैं। अपनी कल्पना से बनाई मूर्ति पर फूल चढ़ाकर मन्दिरों में नाचने और ज़ोर ज़ोर से ‘माखन चोर नन्द किशोर‘ गाने वालों का श्री कृष्ण जी से क्या नाता ?
श्री कृष्ण जी से नाता है उन लोगों का जो श्री कृष्ण जी के आचरण को अपनाये हुए हैं
श्री कृष्ण जी ने एक से ज़्यादा विवाह किये और जितने ज़्यादा हो सके उतने ज़्यादा बच्चे पैदा किये। शिकार खेला और इन्द्र की पूजा रूकवायी और अपनी कभी करने के लिये कहा नहीं। ये सभी आचरण धर्म हैं जिनसे आज एक हिन्दू कोरा है । अगर आज ये बातें कहीं दिखाई देती हैं तो केवल मुसलमानों के अन्दर। इसीलिए मैं कहता हूं कि केवल मुसलमान ही श्री कृष्ण जी के असली और जायज़ वारिस हैं क्योंकि ‘धर्म‘ आज उनके ही पास है।
सब तरीक़े ठीक हैं तो फिर किसी एक विशेष पूजा-पद्धति पर बल क्यों ?
4. आप यह भी कहते हैं कि उपासना पद्धति से कोई अन्तर नहीं पड़ता सभी तरीक़े ठीक हैं। सभी नामरूप एक ही ईश्वर के हैं। तब आप क्यों चाहते हैं कि मस्जिद को ढहाकर एक विशेष स्टाइल का भवन बनाया जाए और उसमें नमाज़ से भिन्न किसी अन्य तरीक़े से पूजा की जाए ?
इसके बावजूद आप एक मस्जिद क्या भारत की सारी मस्जिदें ले लीजिए, हम देने के लिए तैयार हैं। पूरे विश्व की मस्जिदें ले लीजिए बल्कि काबा भी ले लीजिये जो सारी मस्जिदों का केन्द्र आपका प्राचीन तीर्थ है लेकिन पवित्र ईश्वर के इस तीर्थ को, मस्जिदों को पाने के लायक़ भी तो बनिये। अपने मन से ऐसे सभी विचारों को त्याग दीजिए जो ईश्वर को एक के बजाय तीन बताते हैं और उसकी महिमा को बट्टा लगाते हैं।
ऐसे विचारों को छोड़ दीजिए जिनसे उसका मार्ग दिखाने वाले सत्पुरूषों में लोगा खोट निकालें। आप खुद को पवित्र बनाएं, ईश्वर और उसके सत्पुरूषों को पवित्र बताएं जैसे कि मुसलमान बताते हैं। तब आपको कोई मस्जिद मांगनी न पड़ेगी बल्कि काबा सहित हरेक मस्जिद खुद-ब-खुद आपकी हो जाएगी।
@ श्री रविन्द्र जी और श्री अभिषेक जी ! मैं स्वयं को श्रेष्ठ तो नहीं मानता क्योंकि निजी तौर पर मैं श्रेष्ठता का स्वामी नहीं हूं। मैं एक जीवन जी रहा हूं और नहीं जानता कि अन्त किस हाल में होगा, सत्य पर या असत्य पर, मालिक के प्रेम में या फिर तुच्छ सांसारिक लोभ में ?
श्रेष्ठता का आधार कर्म बनते हैं। जब जीवन का अन्त होता है तब कर्मपत्र बन्द कर दिया जाता है। जिस कर्म पर जीवनपत्र बन्द होता है यदि वह श्रेष्ठ होता है तो मरने वाले को श्रेष्ठ कहा जा सकता है। मेरी मौत से ही मैं जान पाऊँगा कि मैं श्रेष्ठ हूं कि नहीं ? तब तक आप भी इन्तेज़ार कीजिये।
मैं अपने बारे में तो नहीं कह सकता लेकिन ईश्वर अवश्य ही श्रेष्ठ है, उसका आदेश भी श्रेष्ठ है। उसकी उपासना करना और उसका आदेश मानना एक श्रेष्ठ कर्म है। ऋषियों का सदा यही विषय रहा है। मेरा विषय भी यही है और आपका भी यही होना चाहिए। भ्रम की दीवार को गिराने के लिए विश्वास का बल चाहिए। पाकिस्तान क्या चीज़ है सारी एशिया का सिरमौर आप बनें ऐसी हमारी दुआ और कोशिश है। इसके लिए चाहिए आपस में एकता बल्कि ‘एकत्व‘।
हमारी आत्मा एक ही आत्मा का अंश है तो फिर हमारे मन और शरीरों को भी एक हो जाना चाहिए। इसी से शक्ति का उदय होगा, इसी शक्ति से भारत विश्व का नेतृत्व करेगा। भारत की तक़दीर पलटा खा रही है, युवा शक्ति ज्ञान की अंगड़ाई ले रही है। जो महान घटित होने जा रहा है हम उसके निमित्त और साक्षी बनें और ऐसे में क्यों न विवाद के सभी आउटडेटिड वर्ज़न्स त्याग दें।
आखि़र कोई तो बताये कि श्री कृष्ण जी ने कहां कहा है कि वे ईश्वर हैं और लोगों को उनकी पूजा-उपासना करनी चाहिये ?
मुफ़्तख़ोरी के लिए ही इस्लाम पर बेबुनियाद आरोप
1. इस संबंध में मुझे यह कहना है कि अयोध्या हो या काशी हरेक जगह मस्जिदें और मुसलमान कम हैं। अगर कोई शासक वहां मन्दिर तोड़ता तो सारे ही तोड़ता और जैसा कि कहा जाता है कि हिन्दुओं से इस्लाम कुबूल करने के लिए कहा जाता था और जो इस्लाम कुबूल नहीं करता था, उसकी गर्दन काट दी जाती थी। अगर मुस्लिम शासकों ने वाक़ई ऐसा किया होता तो इन हिन्दू धर्म नगरियों में आज मुसलमान और मस्जिदें अल्प संख्या में न होतीं। इनकी संख्या में कमी से पता चलता है कि मस्जिदें जायज़ तरीक़े से ही बनाई गई हैं लेकिन ऐतिहासिक पराजय झेलने वाले ख़ामख्वाह विवाद पैदा कर रहे हैं ताकि इस्लाम को बदनाम करके उसके बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके। अगर लोग इस्लाम को मान लेंगे तो फिर न कोइ शनि को तेल चढ़ाएगा और न ही कोई मूर्ति को भोग लगाएगा। इस तरह बैठे बिठाए खाने वालों को तब खुद मेहनत करके खानी पड़ेगी। अपनी मुफ़्तख़ोरी को बनाये रखने के लिए ही इस्लाम पर बेबुनियाद आरोप लगाए जाते हैं जिन्हें निष्पक्ष सत्यान्वेषी कभी नहीं मानते।
सब कुछ पूर्वजन्मों के कर्मफल के अनुसार ही मिलता है
2. इससे यह भी पता चलता है कि हिन्दुओ को अपनी मान्यताओं पर खुद ही विश्वास नहीं है। हिन्दुओं का मानना है कि जो कुछ इस जन्म में किसी को मिलता है वह सब प्रारब्ध के अर्थात पूर्वजन्मों के कर्मफल के अनुसार ही मिलता है। प्रारब्ध को भोगना ही पड़ता है। बिना भोगे यह क्षीण नहीं होता। ईश्वर भी इसे नहीं टाल सकता। यही कारण है कि अर्जुन आदि को भी नर्क में जाना पड़ा था। आपके पिछले जन्मों के फल आज आपके सामने हैं इसमें मुसलमान कहां से ज़िम्मेदार हो गया भाई ?, ज़रा सोचो तो सही। जो कुछ हुआ सब प्रभु की इच्छा से ही हुआ, ऐसा आपको मानना चाहिए अपनी मान्यता के अनुसार।
श्रीकृष्ण जी के असली और जायज़ वारिस केवल मुसलमान हैं
3. केवल मुसलमान ही श्रीकृष्ण जी का आदर करते हैं तब क्यों वे मस्जिद को उन लोगों को दे दें जो श्रीकृष्ण जी को ‘चोर‘ , ‘जार‘ ‘रणछोड़‘ और ‘जुआरियों का गुरू‘ बताकर उनका अपमान कर रहे हैं। अपनी कल्पना से बनाई मूर्ति पर फूल चढ़ाकर मन्दिरों में नाचने और ज़ोर ज़ोर से ‘माखन चोर नन्द किशोर‘ गाने वालों का श्री कृष्ण जी से क्या नाता ?
श्री कृष्ण जी से नाता है उन लोगों का जो श्री कृष्ण जी के आचरण को अपनाये हुए हैं
श्री कृष्ण जी ने एक से ज़्यादा विवाह किये और जितने ज़्यादा हो सके उतने ज़्यादा बच्चे पैदा किये। शिकार खेला और इन्द्र की पूजा रूकवायी और अपनी कभी करने के लिये कहा नहीं। ये सभी आचरण धर्म हैं जिनसे आज एक हिन्दू कोरा है । अगर आज ये बातें कहीं दिखाई देती हैं तो केवल मुसलमानों के अन्दर। इसीलिए मैं कहता हूं कि केवल मुसलमान ही श्री कृष्ण जी के असली और जायज़ वारिस हैं क्योंकि ‘धर्म‘ आज उनके ही पास है।
सब तरीक़े ठीक हैं तो फिर किसी एक विशेष पूजा-पद्धति पर बल क्यों ?
4. आप यह भी कहते हैं कि उपासना पद्धति से कोई अन्तर नहीं पड़ता सभी तरीक़े ठीक हैं। सभी नामरूप एक ही ईश्वर के हैं। तब आप क्यों चाहते हैं कि मस्जिद को ढहाकर एक विशेष स्टाइल का भवन बनाया जाए और उसमें नमाज़ से भिन्न किसी अन्य तरीक़े से पूजा की जाए ?
इसके बावजूद आप एक मस्जिद क्या भारत की सारी मस्जिदें ले लीजिए, हम देने के लिए तैयार हैं। पूरे विश्व की मस्जिदें ले लीजिए बल्कि काबा भी ले लीजिये जो सारी मस्जिदों का केन्द्र आपका प्राचीन तीर्थ है लेकिन पवित्र ईश्वर के इस तीर्थ को, मस्जिदों को पाने के लायक़ भी तो बनिये। अपने मन से ऐसे सभी विचारों को त्याग दीजिए जो ईश्वर को एक के बजाय तीन बताते हैं और उसकी महिमा को बट्टा लगाते हैं।
ऐसे विचारों को छोड़ दीजिए जिनसे उसका मार्ग दिखाने वाले सत्पुरूषों में लोगा खोट निकालें। आप खुद को पवित्र बनाएं, ईश्वर और उसके सत्पुरूषों को पवित्र बताएं जैसे कि मुसलमान बताते हैं। तब आपको कोई मस्जिद मांगनी न पड़ेगी बल्कि काबा सहित हरेक मस्जिद खुद-ब-खुद आपकी हो जाएगी।
आओ और ले लो यहां की मस्जिद, वहां की मस्जिद।
ले लो मदीने की मस्जिद, ले लो मक्का की मस्जिद ।।
@ मान भाई ! ऊंचा नाम मालिक का है। जब आप उसकी शरण में आएंगे तो आपका यह भ्रम निर्मूल हो जाएगा कि कोई आपको नीचा दिखाना चाहता है। यहां केवल सच है और प्यार है, सच्चा प्यार ।@ श्री रविन्द्र जी और श्री अभिषेक जी ! मैं स्वयं को श्रेष्ठ तो नहीं मानता क्योंकि निजी तौर पर मैं श्रेष्ठता का स्वामी नहीं हूं। मैं एक जीवन जी रहा हूं और नहीं जानता कि अन्त किस हाल में होगा, सत्य पर या असत्य पर, मालिक के प्रेम में या फिर तुच्छ सांसारिक लोभ में ?
श्रेष्ठता का आधार कर्म बनते हैं। जब जीवन का अन्त होता है तब कर्मपत्र बन्द कर दिया जाता है। जिस कर्म पर जीवनपत्र बन्द होता है यदि वह श्रेष्ठ होता है तो मरने वाले को श्रेष्ठ कहा जा सकता है। मेरी मौत से ही मैं जान पाऊँगा कि मैं श्रेष्ठ हूं कि नहीं ? तब तक आप भी इन्तेज़ार कीजिये।
मैं अपने बारे में तो नहीं कह सकता लेकिन ईश्वर अवश्य ही श्रेष्ठ है, उसका आदेश भी श्रेष्ठ है। उसकी उपासना करना और उसका आदेश मानना एक श्रेष्ठ कर्म है। ऋषियों का सदा यही विषय रहा है। मेरा विषय भी यही है और आपका भी यही होना चाहिए। भ्रम की दीवार को गिराने के लिए विश्वास का बल चाहिए। पाकिस्तान क्या चीज़ है सारी एशिया का सिरमौर आप बनें ऐसी हमारी दुआ और कोशिश है। इसके लिए चाहिए आपस में एकता बल्कि ‘एकत्व‘।
हमारी आत्मा एक ही आत्मा का अंश है तो फिर हमारे मन और शरीरों को भी एक हो जाना चाहिए। इसी से शक्ति का उदय होगा, इसी शक्ति से भारत विश्व का नेतृत्व करेगा। भारत की तक़दीर पलटा खा रही है, युवा शक्ति ज्ञान की अंगड़ाई ले रही है। जो महान घटित होने जा रहा है हम उसके निमित्त और साक्षी बनें और ऐसे में क्यों न विवाद के सभी आउटडेटिड वर्ज़न्स त्याग दें।
आखि़र कोई तो बताये कि श्री कृष्ण जी ने कहां कहा है कि वे ईश्वर हैं और लोगों को उनकी पूजा-उपासना करनी चाहिये ?
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66 comments:
आ ग़ैरियत के परदे इक बार फिर उठा दे।
बिछड़ों को फिर मिला दें नक्शे दूई मिटा दें।।
सूनी पड़ी हुई है मुद्दत से दिल की बस्ती।
आ इक नया शिवाला इस देश में बना दें।।
दुनिया के तीरथों से ऊँचा हो अपना तीरथ।
दामाने आसमाँ से इस का कलस मिला दें।।
हर सुबह उठ के गाएं मंत्र वह मीठे मीठे।
सारे पुजारियों को ‘मै‘ पीत की की पिला दें।।
शक्ति भी शांति भी भक्तों के गीत में है।
धरती के बासियों की मुक्ति प्रीत में है।।
देख लिया अनवर जी ,मैंने आपसे क्या कहा था लेकिन आप मानें तब ना ,जनाब अब तो समझ जाइए की आपकी एकता की किसी भी अपील का उन लोगों पर कोई असर नहीं होने वाला जिनका main agenda ही आपकी हर बात का विरोध करना है फिर चाहे वो सही हो या गलत ,वे मानकर बैठे हैं की आप जो भी कहेंगे गलत ही कहेंगे ,Mr.Ravindr के तो कहने ही क्या ,उनकी बातें और तर्क बहस कम और धमकी अधिक प्रतीत होती है ,
अभिषेक जी ने अभी-२ थोड़ी जिम्मेदारी पूर्वक अपनी बात ज़रूर रखी है लेकिन आपके प्रति वो पूर्वाग्रह अभी भी नहीं छोड़ा की ये सब आपका रचा हुआ चक्रव्यूह है
मैं इस पूरी बहस में नहीं पड़ना चाहता था क्योंकि मेरा ग्रंथों के विषय में ज्ञान इतना अधिक नहीं है जितना की इस बहस में भाग लेने वाले माहानुभावों का लेकिन एक बात आपको फिर कहता हूँ जमाल जी के बहस वहाँ पर की जाती है जहाँ पर दोनों पक्ष अपने-२ पूर्वाग्रहों को side में रखकर आपस में बातचीत करें ,यहाँ पर Mr.Ravindr तो इस बात के लिए लड़ रहें हैं की " कौन सही है " जबकि बहस की दिशा होनी चाहिए की " क्या सही है "
मुझे लगता है की आपको अब इस पूरी बहस का अंत कर देना चाहिए क्योंकि इसका कोई नतीजा नहीं निकलना वाला
महक
मैं और रविन्द्र जी पूर्वाग्रह से ग्रस्त नही है अपितु आप अपने परम पूज्य गुरु जमाल जी के मोह से ग्रस्त है .रविन्द्र जी के तर्क वर्तमान की कसौटी पर खरे है .जो सही है वही मैंने कहा और अगर वो बात जमाल जी के विचारो के खिलाफ तो मैं सच कहना छोड़ नही सकता .
जमाल जी के अनुसार श्री कृष्ण जी के असली वारिस मुस्लिम है तो गुरु जी की बात मान कर आप मुस्लिम हो जाये क्यों की हिन्दू तो कृष्ण जी का अपमान करते है .
श्री कृष्ण जी की अनेक रानिया थी पर उन में से कोइ उन की सौतेली माँ या पुत्र वधु जैनब नही थी .
जमाल जी जाईये और गीता का अध्यन कीजिय आप को अपने प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा .अगर आप को न मिले तो मैं दे दूंगा .
भाई अनवर जमाल जी !
बहुत बहुत मुबारक हो यह आलेख आपको..........
सच ! बहुत ही उम्दा और सार्थक काम किया है आपने............मैं भीतर तक प्रभावित हुआ, परन्तु मेरे भाई, सच कहना आसान है - सच सहना बड़ा मुश्किल है .
मानव जात का इतिहास साक्षी है, जिसने भी सच बोलने का प्रयास किया लोगों ने उसे चैन से नहीं जीने दिया
भगवान् आपका भला करे और आपको सामर्थ्य दे की आप अपनी बात को और अधिक मुखर होकर कह सकें......परन्तु प्यारे भाई ! बुरा नहीं मानना, ये हिन्दू- ये मुसलमान, हटाओ इस मसले को .........समूचे जगत की, तमाम कायनात की बात करो.........
मुस्लिम - हिन्दू होने से कुछ नहीं होगा, जो होगा, इन्सान बन कर होगा
आपका धन्यवाद
अनवर साहब आप एक सच्चे समाज सुधारक हो और समाज के सामने सत्य को उजागर करना हर समाज सुधारक तरह आप का भी काम है जिसे आप बखूबी अंजाम दे रहे हैं। पर सत्य तो कड़वा होता है इस लिए इसके कारण उन लोगों के पेट मे दर्द होता ही है जिनकी रोजी रोटी इसी असत्य के कारण चल रही है इस कारण इन लोगों का आपका विरोध करना स्वाभाविक है जो कि यह चंद लोग पूरी ताकत के साथ कर रहे हैं पर अब लोग इन्हे पहचान चुके है और इनकी बातों मे नही आ रहे हैं यही बात इन लोगों को कुंठित करती है और इनकी कुंठा इनके कमेँट के रूप मे सामने आ रही हैं ।
मैं महक जी का समर्थन करता हूँ. कि बहस की दिशा होनी चाहिए कि " क्या सही है "
" सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से, के ख़ुशबू आ नहीं सकती कभी कागज़ के फूलों से ।"
वास्तव में सच सहना मुश्किल है, और उससे ज्यादा मुश्किल है सत्य का समर्थन करना , जो कि आपने किया, इसके लिए मैं आपका शुक्रिया अदा करता हूँ ।
सबको सच की तलाश रहनी चाहिए
अन्यथा बहुत कम मेरे जैसे भाग्यशाली होते हैं
जिन्हें सच्चा रास्ता मिल जाता है
बहुत जल्द ही आप का नाम एक समाज सुधारक के रूप में लिया जायेगा, और इतना ही नहीं मूर्ति भी लगेगी आपकी इसी हिंदुस्तान में।
मुबारक हो कि आपने इतनी हिम्मत से ये लिखा कि ले लो काबा भी।
आप को तो सभी धर्म के बारे में अच्छी लेकिन काम जानकारी हैं। कभी गीता को माथे पे लगा करके फिर आदर भाव से पढियेगा तो आप को पता चल जायेगा कि भगवान श्री कृष्ण जी ने कब और कंहा कहा था कि वो ईश्वर हैं और सब उनकी पूजा और उपासना करे।
में भी कह सकता हूँ कि -कुरान को आप लोग कैसे कहते हैं कि वो आसमानी किताब हैं।
@@ डा. अनवर जमाल साहब
बिना लाठी तोड़े सांप मारने की कला तो कोई आप से सीखे !!
@@@ महक जी आप तो अनवर जी की चमचागिरी खुले आम कर रहे हो - ये भी चलेगा
@@@@ अनवर जमाल साहब -- जब मौका मिले हिंदुओं के ऊपर शब्दों के बाण चला ही देते हैं आप और फिर बड़ी चालाकी के साथ मुद्दे को बदल कर लिख देते हैं, मैं श्रेष्ठ नहीं हूँ !!!
आप इस्लाम को कितना जानते हैं, इसकी परीक्षा तो आप देनी ही पड़ेगी !१
और हम हिंदुत्व को कितना जानते हैं, इसकी भी परीक्षा होनी ही चाहिए !!
आपकी परीक्षा का विषय -
हुसैन बिन मनसूर अल-हल्लाज (AL-HALLAJ)--- उनके शब्द उनके लिए मौत का कारण बन गए - ९१३ में उनकों जेल में डाल दिया गया, प्रताड़ित भी किया गया, तौबा करने को कहा गया --- अल ह्ल्लाज को २६ मार्च ९२२ से सलीब पर चढ़ा दिया गया गया !!!
आखिर उन्होंने ऐसा कौन सा गुनाह किया था ?!! क्यों डरते थे उनसे इस्लाम के करता-धर्ता ?!!
हमारा परीक्षा प्रश्न आप तैयार कीजिये !!!!!
http://meradeshmeradharm.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html#more
Anwer Bhai Assalamu Alaikum,
Bahut acha jawab diya hai aapne ye jawab bilkul uchit hai.
@ महक जी ! बेशक आप सच कहते हैं। जो लोग पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं उनसे बहस नहीं करनी चाहिए। अगर ये लोग न्याय दृष्टि से देखते तो कभी उन हिन्दुओं से भी तो सवाल करते जो कहते हैं कि पुराण तो गधों अर्थात बिना पढ़े- लिखे लोगों के लिए ही लिखे गए हैं।
इन लोगों का ख़याल करके अगर मैं चुप हो जाऊंगा तो फिर यह कौन कहेगा कि महापुरूषों को गालियां मत दीजिए ?
महक जी मुझसे प्यार करते हैं, मेरा सम्मान करते हैं लेकिन उनके प्यार को भी मोह और इज़्हारे प्यार को चमचागिरी नाम दे रहे हैं। खुद तो किसी भाई के प्रति प्यार के दो बोल अदा कर नहीं सकते और अगर कोई और करे तो उसके दिल से भी जज़्बात का अपहरण कर लेना चाहते हैं।
ख़ैर महक जी ! ये आज ऐसे हैं लेकिन कल ऐसे नहीं रहेंगे , इन्शा अल्लाह। आज इन्हें ग़लतफ़हमी है कि ‘हिन्दू‘ केवल इनका परिचय है ‘मेरा‘ नहीं। कल भेद बुद्धि मिटेगी तो दूरी न भी मिटे तो भी घटेगी ज़रूर। मान जी में क्रांतिकारी परिवर्तन आ ही चुका है।
@ जनाब अलबेला जी ! इन्सानियत के उसूल क्या हैं ? उनका स्रोत क्या है ? इनसानियत का आदर्श कौन है ? यह तय होना मानवता के हित में है। यह तय होने के बाद उसका नाम चाहे ‘हिन्दू धर्म‘ रख लिया जाए या ‘इस्लाम‘ या फिर इनसानियत, कोई अंतर नहीं पड़ता । जीने के लिए कुछ उसूल तो बहरहाल लाज़िमी चाहियें। वे उसूल और आदर्श सबके सामने आ जाएं मेरा प्रयास भी यही है न कि धर्म परिवर्तन पर। वैसे भी मैं धर्म परिवर्तन वर्जित और हराम मानता हूं क्योंकि यह एक असंभव काम है। जो धर्म परिवर्तन करता है वह अधर्म करता है।
@ ऐ साहिबे देश-धर्म ! आपने सिर्फ़ सूफ़ी मंसूर हल्लाज का ज़िक्र हिंदी में पढ़ लिया और चूंकि न्यायानुसार उन्हें क़त्ल कर दिया गया तो आपको लगा कि इस्लाम के खि़लाफ़ एक अच्छा क्ल्यू हाथ आ गया। लेकिन बात ऐसी नहीं है। इस्लाम में दर्शन या सूफ़ियत के नाम पर कुछ भी करते फिरने की इजाज़त नहीं है। सूफ़ी मंसूर शेख़ जुन्नैद बग़दादी के शिष्य थे और उन्हीं के निर्देशन में सूफ़ी साधना करते थे। साधना के दौरान उन पर ‘हाल‘ तारी हो गया और उनके मुख से ‘अनल हक़‘ निकलने लगा जो कि ‘अहं ब्रह्मस्मि‘ का समानार्थी है। पहले उन्हें समझाया गया लेकिन यह वाणी उनकी नियंत्रित चेतना से नहीं निकलती थी कि वे रोक सकने पर कुदरत रखते। उस हाल में भी वे खुदा से दुआ करते थे और नमाज़ वक्त पर ही अदा करते थे। क़ाज़ी के सामने मसला रखा गया और तमाम गवाह और सुबूत देखकर क़ाज़ी के हुक्म से उनकी गर्दन उनके तन से जुदा कर दी गयी। दुर्भाग्य से भारत में ऐसा कम ही हो पाया और जिसके जी में जो आया उसने वह कहा और लिखा । नतीजा यह है आज भी भारत में कितने ही लोग हैं जो कहते हैं वे ‘ईश्वर‘ या उसका ‘अंश‘ हैं। मीडिया उन्हें आये दिन ऐसे कामों को करते हुए दिखाती रहती है जो कि एक सामान्य नागरिक भी नहीं करता। इसी के चलते भारत में ईश्वर की वाणी का लोप हो गया और उसकी जगह घर-घर में गीता पढ़ी जाने लगी जिसका ज़िक्र भाई तारकेश्वर गिरी जी ने किया है। यही कारण है कि भारत में ‘तन्त्रमार्ग‘ पनपा और आज भी मासूम बच्चों की बलि आज भी दी जा रही है । ऐसा तब ही होता है जबकि ईश्वरीय सिद्धांतों से समझौता करके लोगों को मनमाने दर्शन बनाने और समाज को उनपर चलाने की अनुमति दे दी जाती है। इस्लाम इसकी जड़ काटकर समाज को सुरक्षा और शांति देता है क्योंकि इस्लाम का धात्वर्थ ही ‘शांति‘ है।
@ प्यारे भाई गिरी जी ! आपने गीता जी का नाम लिया है , मैं भी उसका आदर करता हूं , उसे पढ़ता भी हूं लेकिन आपने चैप्टर वग़ैरह कुछ भी नहीं बताया कि श्रीकृष्ण जी ने कहां कहा है वे ईश्वर हैं और लोगों को उनकी पूजा-उपासना करनी चाहिए ?
क्या ‘अहं ब्रह्मस्मि‘ पद का उल्लेख गीता में नहिं है?
यदि है तो यही वह उल्लेख है जब श्री कृष्ण नें कहा मैं ही ईश्वर हूं,मैं ही समस्त भूतों में हूं। मेरी शरण में आ जाओ।
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया॥४-६॥
यद्यपि मैं अजन्मा और अव्यय, सभी जीवों का महेश्वर हूँ,
तद्यपि मैं अपनी प्रकृति को अपने वश में कर अपनी माया से ही
संभव होता हूँ॥
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति॥५- २९॥
मुझे ही सभी यज्ञों और तपों का भोक्ता, सभी लोकों का महान ईश्वर,
और सभी जीवों का सुहृद जान कर वह शान्ति को प्राप्त करता है।
योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना।
श्रद्धावान् भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः॥६- ४७॥
और सभी योगीयों में जो अन्तर आत्मा को मुझ में ही बसा कर श्रद्धा से
मुझे याद करता है, वही सबसे उत्तम है।
मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः॥७- ३॥
हजारों मनुष्यों में कोई ही सिद्ध होने के लिये प्रयत्न करता है। और सिद्धि के लिये
प्रयत्न करने वालों में भी कोई ही मुझे सार तक जानता है।
मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः।
असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु॥७- १॥
मुझ मे लगे मन से, हे पार्थ, मेरा आश्रय लेकर योगाभ्यास करते हुऐ तुम बिना शक के
मुझे पूरी तरह कैसे जान जाओगे वह सुनो।
ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते॥७- २॥
मैं तुम्हे ज्ञान और अनुभव के बारे सब बताता हूँ, जिसे जान लेने के बाद
और कुछ भी जानने वाला बाकि नहीं रहता।
मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः॥७- ३॥
हजारों मनुष्यों में कोई ही सिद्ध होने के लिये प्रयत्न करता है। और सिद्धि के लिये
प्रयत्न करने वालों में भी कोई ही मुझे सार तक जानता है।
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।
अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा॥७- ४॥
भूमि, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार – यह भिन्न भिन्न आठ रूपों
वाली मेरी प्रकृति है।
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्॥७- ५॥
यह नीचे है। इससे अलग मेरी एक और प्राकृति है जो परम है – जो जीवात्मा का रूप
लेकर, हे महाबाहो, इस जगत को धारण करती है।
एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय।
अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा॥७- ६॥
यह दो ही वह योनि हैं जिससे सभी जीव संभव होते हैं। मैं ही इस संपूर्ण
जगत का आरम्भ हूँ औऱ अन्त भी।
मत्तः परतरं नान्यत्किंचिदस्ति धनंजय।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव॥७- ७॥
मुझे छोड़कर, हे धनंजय, और कुछ भी नहीं है। यह सब मुझ से वैसे पुरा हुआ है
जैसे मणियों में धागा पुरा होता है।
रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु॥७- ८॥
मैं पानी का रस हूँ, हे कौन्तेय, चन्द्र और सूर्य की रौशनी हूँ, सभी वेदों में वर्णित
ॐ हूँ, और पुरुषों का पौरुष हूँ।
पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु॥७- ९॥
पृथवि की पुन्य सुगन्ध हूँ और अग्नि का तेज हूँ। सभी जीवों का जीवन हूँ, और तप
करने वालों का तप हूँ।
बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्।
बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्॥७- १०॥
हे पार्थ, मुझे तुम सभी जीवों का सनातन बीज जानो। बुद्धिमानों की बुद्धि मैं हूँ और
तेजस्वियों का तेज मैं हूँ।
बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम्।
धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ॥७- ११॥
बलवानों का वह बल जो काम और राग मुक्त हो वह मैं हूँ। प्राणियों में वह इच्छा जो धर्म विरुद्ध न
हो वह मैं हूँ हे भारत श्रेष्ठ।
ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये।
मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि॥७- १२॥
जो भी सत्तव, रजो अथवा तमो गुण से होता है उसे तुम मुझ से ही हुआ जानो, लेकिन
मैं उन में नहीं, वे मुझ में हैं।
त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत्।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम्॥७- १३॥
इन तीन गुणों के भाव से यह सारा जगत मोहित हुआ, मुझ अव्यय और परम को नहीं जानता।
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते॥७- १४॥
गुणों का रूप धारण की मेरी इस दिव्य माया को पार करना अत्यन्त कठिन है।
लेकिन जो मेरी ही शरण में आते हैं वे इस माया को पार कर जाते हैं।
न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः।
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः॥७- १५॥
बुरे कर्म करने वाले, मूर्ख, नीच लोग मेरी शरण में नहीं आते। ऍसे दुष्कृत लोग, माया द्वारा
जिनका ज्ञान छिन चुका है वे असुर भाव का आश्रय लेते हैं।
चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ॥७- १६॥
हे अर्जुन, चार प्रकार के सुकृत लोग मुझे भजते हैं। मुसीबत में जो हैं, जिज्ञासी,
धन आदि के इच्छुक, और जो ज्ञानी हैं, हे भरतर्षभ।
तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः॥७- १७॥
उनमें से ज्ञानी ही सदा अनन्य भक्तिभाव से युक्त होकर मुझे भजता हुआ सबसे उत्तम है। ज्ञानी को
मैं बहुत प्रिय हूँ और वह भी मुझे वैसे ही प्रिय है।
उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्।
आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्॥७- १८॥
यह सब ही उदार हैं, लेकिन मेरे मत में ज्ञानी तो मेरा अपना आत्म ही है। क्योंकि मेरी
भक्ति भाव से युक्त और मुझ में ही स्थित रह कर वह सबसे उत्तम गति - मुझे, प्राप्त करता है।
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥७- १९॥
बहुत जन्मों के अन्त में ज्ञानमंद मेरी शरण में आता है। वासुदेव ही सब कुछ हैं, इसी भाव में
स्थिर महात्मा मिल पाना अत्यन्त कठिन है।
कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः।
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया॥७- २०॥
इच्छाओं के कारण जिन का ज्ञान छिन गया है, वे अपने अपने स्वभाव के अनुसार, नीयमों का पालन करते हुऐ
अन्य देवताओं की शरण में जाते हैं।
यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्॥७- २१॥
जो भी मनुष्य जिस जिस देवता की भक्ति और श्रद्धा से अर्चना करने की इच्छा
करता है, उसी रूप (देवता) में मैं उसे अचल श्रद्धा प्रदान करता हूँ।
स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते।
लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान्॥७- २२॥
उस देवता के लिये (मेरी ही दी) श्रद्धा से युक्त होकर वह उसकी अराधना करता है और अपनी इच्छा पूर्ती
प्राप्त करता है, जो मेरे द्वारा ही निरधारित की गयी होती है।
अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्।
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि॥७- २३॥
अल्प बुद्धि वाले लोगों को इस प्रकार प्रप्त हुऐ यह फल अन्तशील हैं। देवताओं का यजन करने वाले
देवताओं के पास जाते हैं लेकिन मेरा भक्त मुझे ही प्राप्त करता है।
अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः।
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्॥७- २४॥
मुझ अव्यक्त (अदृश्य) को यह अवतार लेने पर, बुद्धिहीन लोग देहधारी मानते हैं। मेरे परम
भाव को अर्थात मुझे नहीं जानते जो की अव्यय (विकार हीन) और परम उत्तम है।
नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्॥७- २५॥
अपनी योग माया से ढका मैं सबको नहीं दिखता हूँ। इस संसार में मूर्ख मुझ अजन्मा और विकार हीन
को नहीं जानते।
वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन।
भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन॥७- २६॥
हे अर्जुन, जो बीत चुके हैं, जो वर्तमान में हैं, और जो भविष्य में होंगे, उन सभी जीवों को मैं जानता हूँ, लेकिन मुझे
कोई नहीं जानता।
इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत।
सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परन्तप॥७- २७॥
हे भारत, इच्छा और द्वेष से उठी द्वन्द्वता से मोहित हो कर, सभी जीव जन्म चक्र में फसे रहते हैं, हे परन्तप।
येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम्।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः॥७- २८॥
लेकिन जिनके पापों का अन्त हो गया है, वह पुण्य कर्म करने वाले लोग द्वन्द्वता से
निर्मुक्त होकर, दृढ व्रत से मुझे भजते हैं।
जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये।
ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम्॥७- २९॥
बुढापे और मृत्यु से छुटकारा पाने के लिये जो मेरा आश्रय लेते हैं वे उस ब्रह्म को,
सारे अध्यात्म को, और संपूर्ण कर्म को जानते हैं।
साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः।
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः॥७- ३०॥
वे सभी भूतों में, दैव में, और यज्ञ में मुझे जानते हैं। मृत्युकाल में भी इसी
बुद्धि से युक्त चित्त से वे मुझे ही जानते हैं।
हे पार्थ (अभिषेक जी)अब अपने शस्त्रों को तनिक विराम दो। वांछित फ़लित हो चुका।
ईश्वर भाव:
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति॥५- २९॥
मुझे ही सभी यज्ञों और तपों का भोक्ता, सभी लोकों का महान ईश्वर,
और सभी जीवों का सुहृद जान कर वह शान्ति को प्राप्त करता है।
पूजा भाव:
तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः॥७- १७॥
उनमें से ज्ञानी ही सदा अनन्य भक्तिभाव से युक्त होकर मुझे भजता हुआ सबसे उत्तम है। ज्ञानी को
मैं बहुत प्रिय हूँ और वह भी मुझे वैसे ही प्रिय है।
प्रत्युत्तर के लिये काफ़ी है।
विपक्ष को प्रत्यंचा चढाने दो।
जमाल जी , आसा करता हू की आप को संस्कृत न सही हिंदी तो आती होगी .
पढ़ लीजिये .
आप के ज्ञान का मैं ऐसे ही भंडा फोड़ता रहूँगा .
@@@@@ Anwer Jamal Sahib
इस्लाम में दर्शन या सूफ़ियत के नाम पर कुछ भी करते फिरने की इजाज़त नहीं है!!!
उस समय आपका (हमारा भी) इस्लाम कहाँ चला गया था, जब बड़े-बड़े सुल्तानों और इस्लामिक राज्य चलाने वाले शासकों ने सूफियों को संरक्षण प्रदान किया!! अनुदान दिए !! जो सर अल्लाह के सिजदे में झुकना था, कब्रों पर जा कर झुकाया गया !! उस समय भी काजी-हाजी सब थे, पर शासकों के तलवे चाटते रहने के कारण उन्होंने कुछ नहीं किया !!
वैसे मैंने हिंदी की किताब नहीं, इस्लाम का इतिहास पढ़ा है !!
एक और बात - मेरी खंडन-मंडन में कोई रुचि नहीं है, पर हर बार आप कुछ ऐसा लिख देतें हैं, की बात गले से नहीं उतरती!!
मुझे आप से मिलना है, बताइये मुलाकात कैसे होगी !!
मेरे ईमेल - indian_pankaj@in.com
Daya karake phone karen to badi meharbaani - 09717119022
'मैं अल्लाह हूँ' या 'मैं ईश्वर हूँ' कहने वाले दो तरह के लोग होते हैं.
पहली तरह के वो लोग जो अल्लाह की इबादत या तारीफ आत्मकथात्मक शैली में करते हैं. मिसाल के तौर पर मैं महात्मा गांधी पर एक किताब लिखूं और उसके जुमले कुछ इस तरह हों, 'मैं गांधी हूँ. मैंने देश की आज़ादी में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है.....' वगैरह.
तो ऐसे लोग अपने अकीदे में सच्चे होते हैं.
दूसरी तरह के वो लोग होते हैं, जो वास्तव में अपने को दूसरों से अल्लाह या ईश्वर कहलाना चाहते हैं. वो चाहते हैं की लोग उन्हें अल्लाह समझकर उनके सामने सर झुकाएं और उनकी इबादत करें. ऐसे लोग पाखंडी और धूर्त होते हैं.
जमाल जी के ज्ञान का एक और नमूना देखिये ,ये कहते है की
''अपने मन से ऐसे सभी विचारों को त्याग दीजिए जो ईश्वर को एक के बजाय तीन बताते हैं और उसकी महिमा को बट्टा लगाते हैं।''
गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते है की
यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्॥७- २१॥
जो भी मनुष्य जिस जिस देवता की भक्ति और श्रद्धा से अर्चना करने की इच्छा
करता है, उसी रूप (देवता) में मैं उसे अचल श्रद्धा प्रदान करता हूँ।
जमाल जी आधा ज्ञान बेहद खतरनाक होता है ऐसे लोग खुद तो भटकते है साथ में दूसरो को भी भटका देते है .आप के यहाँ दर्शन नाम की कोइ चीज नही है ,इसी लिए इस्लाम आद्यात्मिक नही अपितु ''भौतिक ''सवरूप है .
सम्पूर्ण सुन्नी इस्लामिक संसकृति का इतिहास शराब ,स्त्री भोग और सत्ता पर आधारित था और अब भी मानसिकता वही है .इस का आध्यात्मिकता से कोइ लेना देना नही है क्यों की करम कुछ भी करो इश्वर के सिंघासन के बगल से मोहम्मद साहब तो जन्नत का रास्ता बता ही देंगे .फिर चाहे बम से दूसरो(शियाओ ) को उडाओ या कुरान के हुकुम से काफिरों का क़त्ल करो .
दुनिया का सबसे बड़ा झूठ
''इस्लाम शांति का मजहब है''
एक बात और मैंने आप का विरोध करने की कसम नही खाई है पर आप जब अपने में झाकने की बजाय की दूसरो पर उंगली उठाते है तो बाकि की तीन उगलिया आप की तरफ है ये बताना मै अपना कर्तव्य समझता हू .
जैदी जी की बात से पूर्णतयः सहमत ,
जो सही है उस का समर्थन और गलत का पुरजोर विरोध
@सुज्ञ जी अभिषेक जी ईश्वर के मुख्य गुण कौन कौन से हैं ?
इस का विस्तृत उत्तर मैं जल्द ही अपने ब्लॉग पर दूंगा
आखि़र कोई तो बताये कि अल्लाह जी ने कहां कहा है कि वे ईश्वर हैं और लोगों को उनकी इबादत करनी चाहिये ?
@मेरे ज्ञानाभिलाषी बन्धु सुज्ञ जी और
@ सत्योत्सुक अभिषेक जी ! आपने गीता जी के हवाले तो दिए। इट मीन्स आपने उसे पढ़ा है लेकिन आपने कभी उस पर तत्वबुद्धि से विचार नहीं किया।
क्या चन्द्रमा एक नक्षत्र है ?
आदित्यानामहं विष्णुज्र्योतिषां रविरंशुमान्।
मरीचिर्मरूतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी।। 21 ।।
मैं आदित्यों में विष्णु, प्रकाशों में तेजस्वी सूर्य, मरूतों में मरीचि तथा नक्षत्रों में चन्द्रमा हूं। (गीता, 10, 21)
तथ्य- यदि श्री कृष्ण जी वास्तव में ईश्वर होते और यह विराट जगत उनके अधीन होता तो वे अवश्य जानते कि चन्द्रमा कोई नक्षत्र नहीं है।
1. ब्लॉग जगत में और इससे बाहर बहुत सारे विद्वान मौजूद हैं उनसे पूछिये कि ‘ क्या चन्द्रमा एक नक्षत्र है ?‘
फिर मुझे बताईये कि गीता में विश्वास रखने वाले ‘ज्योतिषी‘ और ‘वैज्ञानिक‘ क्या जवाब देते हैं ?
2. यदि आप गीता के कहने के बावजूद चन्द्रमा को नक्षत्र नहीं मानते तो फिर आप कैसे कहते हैं कि हम गीता में विश्वास रखते हैं और उसे मानते हैं ?
3. यदि आप श्री कृष्ण जी के मुख से चन्द्रमा को नक्षत्र घोषित किये जाने के बावजूद भी उनके दावे को सत्य नहीं मानते तो फिर खुद को ईश्वर बताने संबंधी उनके दावे को सत्य मानने का, आपके पास क्या आधार है ?
4. यह क्या तरीक़ा है कि जिस बात को चाहो झुठला दो और जिस बात को चाहो मान लो ?
खुद गीता की बातों को नकारते रहें और जगत में खुद को विश्वासी मशहूर किये रखें। मनमानी करना, वासना में जीना और पाखण्ड इसी का नाम है। जो कोई इसे ग़लत बता दे, मैं उससे क्षमा मांगकर अपनी ग़लती सुधार लूंगा।
झूठी बातें कवियों की हैं
5.नकारना आपकी मजबूरी है क्योंकि कवि ने अपनी मर्ज़ी से जो चाहा लिखा और कह दिया कि यह श्री कृष्ण जी ने कहा है। अब सबके सामने ज्ञान आता जा रहा है और कवियों का झूठ साफ़ दिखाई दे रहा है। झूठी बातें कवियों की हैं और सत्य बातें सत्पुरूषों की हैं। जो बात ग़लत निकले वह किसी सत्पुरूष की नहीं हो सकती। यह मेरा सिद्धांत है। मेरा क्या है , बल्कि सनातन सत्य है, यह मेरा भी है और आपका भी है। आप इसे केवल इसलिए न मानें कि मैं भी इसे मानता हूं तो यह तो कोई न्याय की बात नहीं है।
आओ सच को जानो, आओ सच को मानो।
मैं आपका हमदर्द हूं , दिल से मुझे पहचानो।।
हिन्दू धर्म की कोई भी बात झूठी नहीं हो
6. हिन्दू धर्म की कोई भी बात झूठी नहीं हो सकती और जो बात झूठी होगी वह हिन्दू धर्म की हो नहीं सकती। झूठी बात केवल केवल झूठों की ओर से हो सकती है और कवियों से बड़ा झूठा कोई होता नहीं।
इस्लाम सत्य है
7. अब आप कहिये कि ‘इस्लाम‘ की कोई बात झूठी नहीं हो सकती और जो झूठी बात हो वह इस्लाम की नहीं हो सकती। मेरी ज़बान नहीं अटकती तो आपकी क्यों अटक जाती है ?
सत्य की खोज का तरीक़ा
8. जो सच्चे होते हैं उनकी कविता भी सच्ची होती है। धर्म के 10 लक्षणों में एक लक्षण है ‘सत्य‘। ईश्वर तक पहुंचने का माध्यम सत्य है न कि झूठ। झूठ को त्यागते ही सत्य खुद-ब-खुद प्रकट हो जाता है। यदि आप सत्य की खोज में हैं तो अपने जीवन को झूठ से मुक्त कीजिये। न तो चन्द्रमा नक्षत्र है और न ही श्री कृष्ण जी ईश्वर हैं और न ही यह सब उन्होंने कहा है। गीता में क्षेपक है यह एक सिद्ध तथ्य है। ये बातें गीता में क्षेपक हैं।
जमाल साहब,
यह न्यायप्रियता नहिं हैं
यदि आपका उद्देश्य गीता को काल्पनिक काव्य ठहराना था तो हम सीधी चर्चा उस विषय पर करते।
आपने प्रश्न पैदा किया कि"श्रीकृष्ण जी ने कहां कहा है वे ईश्वर हैं और लोगों को उनकी पूजा-उपासना करनी चाहिए ?" जिसका अभिषेक जी नें युक्तियुक्त प्रमाणों सहित समाधान प्रस्तूत कर दिया। उस विषय पर आपके मौन को क्या मानें?
अब लगता है आप सत्य के परिपेक्ष में गीता और कुरआन की गवेषणा चाहते है।
फ़िर आप एक अलग पोस्ट लगाकर इस विषय पर चर्चा आमंत्रित किजिये।
और दोनो शास्त्रों में शब्द प्रयोग को हूबहू (बिना प्रतिकों का सहारा लिये)सत्य की कसौटी पर परखें।
मै तो एक सप्ताह की पुनः छुट्टी पर जा रहा हूं, आकर में अवश्य इस धर्म-चर्चा में हिस्सा लुंगा।
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@--7। अब आप कहिये कि ‘इस्लाम‘ की कोई बात झूठी नहीं हो सकती और जो झूठी बात हो वह इस्लाम की नहीं हो सकती। मेरी ज़बान नहीं अटकती तो आपकी क्यों अटक जाती है ?
आदरणीय अनवर जमाल जी,
उपरोक्त पंक्ति में आपको हिन्दुओं से अपेक्षा है की वो भी ये कहें। यहीं तो आपसे गलती हो रही है। आप बिना किसी अपेक्षा तथा स्वार्थ के यही बात कहें तो कोई बात बने।
भागवद गीता में कहा गया है की --कर्म करते चलो , फल की इच्छा मत करो।
आप बिना किसी से अपेक्षा किये , मानवता की सेवा कीजिये, फिर देखिये कितनी सत्रुष्टि मिलेगी।
.
वंदे ईश्वरम् ! सभी बंधुओ से अनुरोध है कि वंदे ईश्वरम् का नया अंक मंगाने के लिए vandeishwaram@gmail.com पर अपना पता email करें
@जनाब सुज्ञ जी ! न तो मैं महाभारत को काल्पनिक मानता हूँ और न ही गीता को . अलबत्ता दोनों की रचना कवियों ने की है और अतिश्योक्ति और भरपूर कल्पना से काम लिया और बाद में इसमें क्षेपक भी हुए ऐसा विद्वान मानते हैं और मैं उनसे सहमत हूँ . आप चाहेंगे तो मैं ब्रह्मण शोधकों के उन सभी हवालों को पेश कर दूंगा . जो बात श्री कृष्ण जी ने नहीं कही उसे उनकी नहीं कहा जा सकता , यही न्यायप्रियता है .
अभिषेक जी कहते हैं कि वे गीता आदि पुराने ग्रंथों के मुताबिक नहीं चलते , यही तो वासना है और ये लोग मुझे नासमझ बता रहे हैं , ताज्जुब है , आपने उनकी न्यायप्रियता का जायजा क्यों न लिया भाई ?
देखिये
मेरे बहस का विषय कभी भी मूलतः धर्म ग्रन्थ नही रहे, उनसे मेरा मोहभंग बहुत पहले हो चुका है, http://vedquran.blogspot.com/2010/09/real-praise-for-sri-krishna-anwer-jamal.html?showComment=1284913551266#c961951144771188494
@बहन दिव्या जी जी ! आपकी बात सही है , मैं इसे अपने अमल में लाने की कोशिश करूँगा लेकिन इतना ज़रूर कहूँगा की समाज बनता है सहयोग से और सहयोग के लिए आवाज़ देना बुरा नहीं है . आप जैसी विदुषी बहन के वचन सुमन से ये ब्लॉग महका , मुझे ख़ुशी है . धन्यवाद .
@जो बात श्री कृष्ण जी ने नहीं कही उसे उनकी नहीं कहा जा सकता , यही न्यायप्रियता है .
जनाब,
कैसे निश्चित होगा यह श्रुत हुबहू नहिं है,कौन सी अतिश्योक्ति है और कौन कल्पना? कौनसा अंश प्रमाणिक शुद्ध है और कौन सा प्रक्षेप? कौन शोधक विश्लेषक गीतार्थ व न्यायक है,कौन पूर्वाग्रहरहित है।
कौन सत्य विश्लेषण समर्थ है?
अर्थार्त, आप अपनी न्यायप्रियता सिद्ध करने के लिये, आज कैसे सिद्ध करेंगे कि "श्री कृष्ण जी ने नहीं कहा" और श्री कृष्ण जी के कहने के यह मायने नहिं थे। अतित के उस पहलू को सादृश्य,साक्षात करना आपके लिये असम्भव है।
जैसे कि चन्द्रमा नक्षत्र नहीं होता इसे सामान्य ज्योतिषी भी जनता है , ये बात श्री कृष्ण जी भला कैसे कह सकते हैं ? इसी तरह इश्वर के गुणों को ले लीजिये और देख लीजिये कि क्या सर्वज्ञता आदि गुण उनमें घटित होते हैं अथवा नहीं ?
जैसे कुरआन में कई बातें,गूढार्थ है, तब कुरआन के विश्लेषक कहते है"अलाह ही बेह्तर जानता है"
फ़िर ठीक वैसे ही गीता के अनबुझ रहस्यों और प्रतिको के बारे में क्यों नहिं मान लेते कि "सर्वज्ञ ईश्वर ही स्पष्ठ जानता है"
जो स्पष्ट नहीं है उसे गूढ़ माना जायेगा चाहे जिस ग्रन्थ में हो लेकिन जो स्पष्ट है उसे नकारा नहीं जायेगा जैसे कि चन्द्रमा नक्षत्र नहीं है .
डॉ. जमाल साहब जवाब नहीं आप का '''छुरी को शहद में भिगो '''' के काटते हो आप किसी को ?किसी महान धर्म के महान गरंथ की तोड़ मरोड़ के मनचाही व्याख्या भी कर दी, छद्म एकता भाई चारे के नाम पर बरी भी हो गए,इन गर्न्थो में जो भी असंभव सी दिखाने वाली बाते साकेतिक और पर्तिकात्मक हे ,जेसे की ७२ हूरो का कुरान में वर्णन हे क्या आप शपथ ले के सिद्ध करसकते हो क्या इस ७२ हूरो के मामले को ?जिनके पीछे हजारो युवा बे मोत मारे जाते हे ,इस बारे आप अपील कर सकते हो क्या की भाइयो ७२ हूरे कुछ नहीं केवल भरम हे आप खुदा का दिया जीवन नष्ट ना करे ?आप तो समाज सुधारक हे |या क़ुरबानी के नाम पर लाखो बेगुनाह जानवरों को मोत के मुह सुला के अल्लाह के राजी होने कामना करने वालो ,उसकी नजर में तो सभी बराबर हे ,फिर अपनी जीभ के सवाद की खातिर उस परभू की आड़ लेना ,आप का सबसे बड़ा पाखंड हे |,भला एक निरीह से दिखाने वाले जानवर की गर्दन काट देना किस बात क़ुरबानी,क्या आप की ये परम्परा भी सांकेतिक हे या नहीं ?उसी परकार इस विशाल परम्परा वाले धरम में सांकेतिक परम्पराए हे जो आज के समय में अपर्संगिक हे ,आप ने तो गीता पर ही परशन चिन्ह लगाना शुरू कर दिया ? मेरे हूरों वाले परशन का उत्तर देना सर ? संख्या मुझे ठीक से याद नहीं लकिन लोग तो एक पीछे ही कुर्बान हो जाते हे इतनी के पीछे तो किसी भी मोत के लिए तेयार हो जायेंगे बन्दे ?
. साहब आप के पर्यास अच्छे हे ,जेसे की 5..6 पहले आप ने भार्स्ताचार का मुदा उठाया था ,वो बहुत परसंगिक था ,अब भी इन हराम की कमाई पर पलने वाले हराम जादोको आइना दिखाये जमाल जी |ये अनेतिक अपचारी, ये देव्तावो के सामने सर झुकने वाले पाखंडी
ये साले हराम की कमाई से poshen करने झूठे वाले लोग ?८०% गरीब जनता की पेट कटाई से मोज उड़ाने वाले chamkaddo के केखिलाफ आंधी कड़ी करने के में, आप का शुक्रिया अता होगा ...जय हिंद
जमाल जी , आप से मैंने कहा था की अध कचरा ज्ञान खतरनाक होता है .गीता पूर्णतयः वैज्ञानिक ग्रन्थ है .विज्ञानियों को ये सब जानने में अभी बहुत समय लगेगा .
जड़ता मुर्खता है और गीता मूर्खो के लिए नही है .जड़ता छोड़ कर गीता का अध्यन कीजिय जवाब मिल जायेगा .
चलिए मैं ही बता देता हू . आप के बस की बात नही है
ज्योतिष शास्त्र में सत्ताईस नछत्र माने गए है जो हमें जीवन भर प्रभावित करते है .पर सूर्य और चन्द्रमा नछत्रो की अपेछा अधिक पास है .और ये हमें अन्य किसी की तुलना में अधिक प्रभावित करते है .
सूर्य अपनी राशि १ माह में में बदल्रा है जब की चन्द्रमा की राशी ढाई दिन में बदल जाती है .अर्थात चन्द्रमा अधिक chanchal और प्रभावी है .
जब चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति से इतने बड़े ज्वार- भाटा आते है की पानी आवेशित हो कर सैकड़ो फुट ऊपर उठ जाता है तो सोचिये हमारे शरीर में 70 % जल है ,ये हमें कितना प्रभावित करता होगा होगा .
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में सूर्य राशी की अपेछा चन्द्र राशी की मान्यता अधिक है . अर्थात हमें प्रभावित करने वाले नछत्रो की अपेछा चन्द्रमा सर्वाधिक प्रभावित करता है
तो भगवान श्री कृष्ण ने क्या गलत कहा .
@ मान जी ! आपने कहीं से ७२ हूरों की बात सुन ली और मन में ऐतराज़ पाल लिया . कुरआन शरीफ में जिस जगह ७२ हूरों की बात आई हो पहले उस जगह को खुद देख लीजिये तत्पश्चात मुझे दिखा दीजिये , जवाब आपको ज़रूर दिया जायेगा . इतनी लम्बी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद .
@ अभिषेक १५०२ ! क्या चन्द्रमा नक्षत्र है ? इतनी लम्बी बात बताई और मूल प्रश्न अधूरा ही छोड़ दिया .
क्या आप जानते है की वेदों में नक्षत्रों की तादाद २८ और २९ भी आई है ?
क्या आप २९ नक्षत्रों के नाम बता सकते हैं या फिर मैं बताऊँ ?
लेकिन एक बात आपकी काबिल ए तारीफ़ है कि जो बात आपको सूझी वह स्वामी प्रभु भक्तिपाद भी न कह सके जो कि "हरे रामा हरे कृष्णा" के संस्थापकाचार्य हैं . बल्कि उन्होंने तो कह दिया कि ब्रह्माण्ड में अनेक सूर्य कि मान्यता ही वैदिक वांग्मय के विपरीत है . मेरे पास उनकी टीका है . ये न तो सस्ती और घटिया होती है और न ही यह सड़क के किनारे बिकती है .
जमाल जी आप झूठ बोल कर मुझे बदनाम करने की कोशिस न करे .
आप ने कहा है की
''अभिषेक जी कहते हैं कि वे गीता आदि पुराने ग्रंथों के मुताबिक नहीं चलते , यही तो वासना है और ये लोग मुझे नासमझ बता रहे हैं , ताज्जुब है , आपने उनकी न्यायप्रियता का जायजा क्यों न लिया भाई''
ये मेरा नही रविन्द्र जी का कथन था . आप का दिया हुआ लिंक भी इस बात की पुष्टि करता है
@ पंकज जी ! इंसानी आमाल को खुदा कि मुहब्बत में आखरी इन्तेहा तक कैसे डुबोया जाए और इंसानी मिज़ाज से नाफ़रमानी को कैसे निकला जाए "इस्लामी तसव्वुफ़" का सब्जेक्ट यही है . कुछ लोग हक़ीकी अर्थों कि ज़ाहिरी ताबीर करते वक़्त मुगालता खा जाते हैं जबकि कुछ लोग सिरे से ही फर्जी होते हैं . सुल्तानों ने तीसरे दर्जे के सूफियों को कभी संरक्षण नहीं दिया . और दूसरे दर्जे के सूफियों कि मुखालिफ़त आलिमों के साथ खुद सूफियों ने भी की जैसा कि मंसूर हल्लाज के वाकये में देखा भी जा सकता है . कठोर वचन आपको शोभा नहीं देते . बाक़ी आपकी मर्ज़ी .
किसने कहा की चन्द्र नछत्र है ,कम के कम तुलना तो ठीक से कीजिये .
आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी॥१०- २१॥
आदित्यों (अदिति के पुत्रों) में मैं विष्णु हूँ। और ज्योतियों में किरणों युक्त सूर्य हूँ। मरुतों (49 मरुत नाम के देवताओं) में से मैं
मरीचि हूँ। और नक्षत्रों में शशि (चन्द्र)।
ठीक से पढ़ लो आँखे खोल कर
अदिति के पुत्र नही है पर उन की तुलना में विष्णु
ज्योति नही है बल्कि स्वयं ज्योति उत्पन्न करने वाले सूर्य है
नछत्र नही बल्कि नछत्रो की तुलना में चन्द्र है
नछत्रो की तुलना में चन्द्र क्यों है ये मैं बता चुका हू .
क्या जमाल जी , आप को हर बात बच्चो की तरह बतानी पड़ती है . या तो आप के समझने की छमता कम है या पूर्वाग्रह से ग्रस्त आप सत्य को देखना ही नही चाहते है .
आयज जी आप अपने प्रश्न का उत्तर मेरे ब्लॉग में आ कर देख ले
@ Bhai !आजकल तो आप दोनों दो बदन एक जान से हो रहे हैं शायद यही वजह है की रविन्द्र जी की जगह आपका नाम लिखा गया , सॉरी. लेकिन आप रविन्द्र जी पर तो मेरा ऐतराज़ उचित मानेंगे ?
ऐसा कीजिये पहले आप सभी आदित्यों , मरुतों और नक्षत्रों के नाम एक जगह लिख लीजिये फिर तुलना करके निष्कर्ष निकालना आसान होगा .
मैं जो जानता हूँ आपको बताऊंगा और जो नहीं जनता वह आपसे सीखूंगा ., सीख भी रहा हूँ .
जमाल मेरे विषय मे कोई दूसरा क्यों तुम्हारे एतराज को मानेगा?
कुछ मेरी तरफ से भी हो जाएः-
महक - बहुत अच्छा लगा कि तुमने निष्पक्ष हो कर विचार किया और यह जानते हुए भी कि तुम्हारा ज्ञान हिन्दु धर्म्ग्रन्थों के विषय मे शून्य है, तुमने बिना श्रीमद्भागवत पुराण पढे जमाल को सही और मुझे गलत बोल कर न्याय की जो पक्षधरता की है, उसको स्वर्णाअक्षरों मे जगह मिल जाएगी। रही बात धमकाने की तो पुलिस की आहत ही चोर को धमकी लगती रही है सदियों से, इसमे पुलिस का कोइ दोष नही है। तुमने कहा कि बहस कि दिशा होनी चाहिए कि सही क्या हैः- चलो मैं तुमसे पूछता हूँ क्या तुम ऐसे किसी को भगवान मानते हो जो अपने पुत्री से बलात्कार करे? या तुम किसी हिन्दु को जानते हो जो ऐसा माने? पर मुस्लिम समुदाय अपनी पुत्रवधु से बलात्कार को न सिर्फ जायज मानता है बल्कि इसे शादी करने का लाईसेन्स भी मानते है, भले ही लडकी राजी न हो। और वैसे भी जमाल मुझसे ज्यादा हिन्दु ध्र्म के विषय मे जानते हैं ठीक उसी प्रकार जैसे उनका ज्ञान नरकासुर का एक नाम भौमासुर भी है के बारे मे है, इसी से ज्ञात होता है
अयाज़ः- पेट मे दर्द तो तुम लोगो को हो रहा है जब मै पूछना प्रारम्भ करता हूँ इस्लाम के अनुयायियों के हरकतों के बारे मे। जमाल कहता है कि इस्लाम का अनुसरण इस्लाम के अनुयायियों के प्रेम भाव के कारण हैः- जरा घाटी मे दिए गये सिख भाईयों को मुस्लिमों के प्रेम संदेश भी तो सुनाओ कि कैसे प्यार से उन्हे इस्लाम अपनाने को बोलते हो तुम लोग?
जमाल तुम्हारा कृष्ण के विषय मे कितना गहन ज्ञान है सब एक के बाद एक करके बाहर आ रहा हैः- १. नरकासुर और भौमासुर दो हैं, २. कृष्ण ने नही कहा कि वो ईश्वर हैं। कृष्ण ने अर्जुन को जब अपना विराट रूप दिखाया था तब क्या कहा था वो भी बता दो - जरूर कहा होगा कि मेरा एक चेला आयेगा वो तुम सबको अपनी बहुओं से विलास करने की आजादी देगा यही परम सत्य है। संभवतः यही कहा होगा, जरा तुम्हारे पास गीता की जो प्रति है देख लेना उसमे वैसे भी पिछले post मे कैरानवी ने स्वीकार किया था कि वो रुपये मे मिलने वाली किताबों से धर्म सीखता है, तो तुम्हारे धर्म ज्ञान का क्या स्तर होगा वो दिखता है।
मुफ्तखोरी - अगर मंदिर मे चढावा मुफ्तखोरी है तो मस्जिद और मजार पर चढावा मे कौन सा पहाड तोडना पडता है जरा इसका उल्लेख विस्तार से आवश्यक है।
श्रीकृष्ण के असली वारिस तनिक स्पष्ट करेंगे कि वो श्रीकृष्ण से संबंधित गतिविधियां कब प्रारंभ करेगे मथुरा जन्मभूमि पर। क्या श्रीकृष्ण के असली वारिस यह बताने का कष्ट करेगे कि मंदिर तोडने के विषय मे कुरान मे क्या लिखा है?
अगर यह नाजायज है तो कुरान कि बात मानते हुए कब वापस कर रहे हो हमे मंदिर?
और अगर जायज है तो इस्लाम मे शांति की परिभाषा से हम सभी अवगत होना चाहेंगे।
कृष्ण जी ने अनेक विवाह किये पर एक भी रक्त संबंध मे नही किए - मुस्लिम स्वीकार करेंगे यह बंधन?
कृष्ण जी ने शिकार खेला पर गौ वध निषेध रहा - मुस्लिम स्वीकार करेंगे यह बंधन?
कृष्ण जी ने इन्द्र की पूजा रुकवाई - गोवर्धन की प्रारंभ कराई - क्या मुस्लिम स्वीकार करेंगे यह?
फिर तो मुस्लिम भी उन बातों को नही मानता है जिनका प्रवर्तन श्रीकृष्ण जी करते थे, पर हिन्दु कम से कम उनको अपना भगवान मानता है, उनके जन्मस्थल पर जबरन कब्जा नही करता जो मुस्लिम करते हैं, फिर कैसे मुस्लिम उनके अनुयायी हुए?
सब पूजा पद्धति ठीक हैं, तो जिस तरीके से सदियों से पूजा चलती आ रही थी उसको रोक कर मंदिर क्यों तोड दिया?
मदीने मक्का की बात करके ढोंग मत रचो, दिल्ली मे महरौली मे मस्जिद के सामने सरकारी शिलालेख है, यह मस्जिद मंदिरों को ढहा कर बनाई गई है, है हिम्मत तो सिर्फ उसको ही दे कर दिखा दो, उसका तो कोई महत्व भी नही है।
जमाल हाँ मैने लिखा था कि मेरा मोह भंग हो चुका है धर्म ग्रन्थों से क्योंकि यह हमारे समाज को प्रेरित करने मे दुर्भाग्य से अक्षम सिद्ध हो रही हैं, और इस समय जो धर्मग्रन्थ सबसे अधिक चर्चा मे है वो निरपराध लोगो को मौत के घाट उतारने के संदेश देने के लिए कुख्यात है इस समय। इस समय मैं योगेश्वर श्रीकृष्ण के "यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति भारत, अभि-उत्थानम् अधर्मस्य तदा आत्मानं सृजामि अहम् । परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुस्-कृताम्, धर्म-संस्थापन-अर्थाय सम्भवामि युगे युगे ।" अनुरूप उनकी ही प्रतीक्षा कर रहा हूँ जो कि उनके जन्म्स्थल पर उनके मंदिर को ध्वस्त करने वालों को समुचित उत्तर देगें, अपने शस्त्रों से।
वासना गीता को मानने या न मानने मे नही है, वासना तो धर्म की आड मे अधर्म करने मे है, मांसाहार मे है, रक्त संबंध दूषित करने मे है। अपने रक्त संबंध मे विलास करने मे है। दूसरों को प्रताडित करने मे है, porklistan मे हिन्दुओं से, सिखों से जजिया मांगने मे है, कश्मीर मे सिखों को धर्म परिवर्तन की धमकी देने मे है।
@ प्यारे भाई रविन्द्र जी ! कृपया क्रोध न करें ,पहले एक बार स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य जी की पुस्तक पढ़ लीजिये , उन्हें भी इसी तरह की बहुत सी गलतफहमियां थीं . प्लीज़ , एक प्यार भरी विनती है यह .
@ Bhai Abhishek ji !
डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ की टिप्पणी
नक्षत्राणामहं शशी
अर्थात नक्षत्रों में मैं चंद्रमा हूं गीता, 10, 21
यह बात प्राचीन भारतीय मान्यताओं और आधुनिक खगोलविज्ञान दोनों दृष्टियों से ग़लत है। यजुर्वेद (तैत्तरीय संहिता 4,4,10) और शतपथ ब्राह्मण (10,5,45) में 27 नक्षत्रों के नाम हैं। अथर्ववेद (19,7,1) में 28 नक्षत्र कहे गये हैं और महाभारत (अनुशासनपर्व, अ. 64) में 29 नक्षत्रों के नाम बताए गये हैं।
1. कृत्तिका, 2. रोहिणी, 3. मृगशिरा 4. आद्र्रा 5. पुनर्वसु 6. पुष्य 7. आश्लेषा 8. मघा 9. पूर्वा फाल्गुनी 10. उत्तरा फाल्गुनी 11. उत्तरा 12. हस्त 13. चित्रा 14. स्वाती 15. विशाखा 16. अनुराधा 17. ज्येष्ठा 18. मूल 19. पूर्वाषाढ़ा 20. उत्तराषाढ़ा 21. अभिजित 22. श्रवण 23. धनिष्ठा 24. शतभिषा 25. पूर्वा भाद्रपदा 26. उत्तरा भाद्रपदा 27. रेवती 28. अश्विनी 29. भरणी
यहां कहीं भी चंद्रमा को नक्षत्रों में नहीं गिना गया। स्पष्ट है कि प्राचीन भारतीय दृष्टि से चंद्रमा को नक्षत्र नहीं कहा जा सकता।
आधुनिक विज्ञान का मत है कि चंद्रमा न केवल नक्षत्र नहीं है, बल्कि यह ग्रह भी नहीं है। यह तो पृथ्वी का उपग्रह मात्र है। उसे नक्षत्र कहना ग़लत है। ऐसे में गीता का लेखक सर्वज्ञ सिद्ध नहीं होता।
(क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिंदू धर्म, पृष्ठ 460)
यह पूरी टिप्पणी डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात‘ की है। क्या आप उनके ज्ञान को भी अधकचरा कहने का साहस करेंगे ?
नहीं, अब आपकी हिम्मत नहीं होगी, क्योंकि अब आपके सामने किसी मुसलमान का नहीं बल्कि एक पण्डित का नाम है। विश्व पुस्तक मेले में यह पुस्तक भी बिक रही थी, आप इसे क्यों नहीं लाए ?
जमाल जी मैं पुनःश्च कहता हूँ कि मै किसी भी धर्म को उसके आदर्शों की बजाए उसके अनुयायियों के आचरण से समझता हूँ, कया मेरे द्वारा माननीय शंकराचार्य की पुस्तक पढने से कश्मीर के सिखों को अभय दान मिल जाएगा? क्या पाकिस्तान मे सिख बंधुओं का उत्पीडन रुक जाएगा? अगर हाँ तो मैं, इस पुस्तक का पाठ जरूर करूँगा, पर यह कैसे होगा आप मुझे समझाइए।
पुनःश्च - मथुरा पर से अतिक्रमण कब हटा रहे हैं?
@ भाई मेरे प्यार में तो लोग जान दे देते हैं , आप एक शहर से अतिक्रमण की क्या बात करते हो . जब नफरत की दीवारें गिरा दी जाएँगी तब न कोई कश्मीर मांगेगा और न कोई कश्मीर से भागेगा .
मैं तो सिर्फ मथुरा की बात कर रहा हूँ उस पर क्या कहना है कृष्ण भक्त?
श्री कृष्ण जी ने कहां कहा है कि वे ईश्वर हैं और लोगों को उनकी पूजा-उपासना करनी चाहिये.
ठीक है नहीं कहा होगा? या कहा हो? इस से क्या फर्क पड़ता है? जो श्री कृष्ण को मां ता है, यह उसका मसला है.
Aap hindu dharma par aur hindu granthon par itna kuchh acha aur bura likhten hain. Aap apni jankari ke mutabiq batayen ki Kuraan main kya kya baten hai jo achchi nahin hain. (Apka jawaab padh kar hi main ye faisla karoonga ki bhavishye mein aap ke blog par aaya jaye ya nahin)
सत्य पाने का सनातन मार्ग
@ भाई रवीन्द्र नाथ जी ! धर्म का ज्ञान उसी से लिया जाता है जो धर्म के अनुसार आदर्श आचरण भी करता हो। जो आदर्श आचरण करने वाले से ज्ञान नहीं लेता, वह सत्य का ज्ञान कभी पा नहीं सकता। जिसने भी सत्य पाया है इसी मार्ग से पाया है। आप इससे हटकर चलते हैं तो यह आपकी मर्ज़ी है।
ईशवाणी में बुरी बातों की शिक्षा नहीं दी जाती
@ संजीव जी ! ईश्वर की वाणी क़ुरआन से पहले भी आई है। क़ुरआन सहित ईश्वर की सभी वाणियां ऐसी हैं कि उनमें कोई एक बात भी बुरी नहीं हो सकती। क़ुरआन से पहले आ चुकी वाणियों का कुछ न कुछ हिस्सा आज भी मिलता है। वह भी हमारी बात की सत्यता को प्रमाणित करता है।
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