सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Wednesday, September 22, 2010
Mandir-Masjid मैं चाहता हूं कि अयोध्या में राम मन्दिर बने - Anwer Jamal
शीर्षक ही ग़लत
‘राम मन्दिर-बाबरी मस्जिद विवाद‘ का शीर्षक ही ग़लत है। इस विवाद के अब तक न सुलझ पाने का एक बड़ा कारण यह भी है। राम मन्दिर उस जगह का नाम इसलिए हुआ कि रामभक्त उस जगह राम मन्दिर बनाना चाहते हैं जिसमें राम की पूजा-उपासना की जाएगी। मस्जिद में उस पैदा करने वाले मालिक की पूजा की जाती है इसलिए मस्जिद के साथ बाबर बादशाह का नाम जोड़ने के बजाय उस सच्चे बादशाह का नाम जोड़ना ज़्यादा उचित है जिसकी पूजा-इबादत मस्जिद में की जाती है और मस्जिद का मालिक भी वही है।
जिसे ‘राम‘ कहते हैं उसी को ‘रहीम‘ कहते हैं
‘राम मन्दिर-रहीम मस्जिद विवाद‘ इस प्रकरण के लिए पूरी तरह उचित है। यदि इतना भी कर लिया जाए तो राजनीतिबाज़ों की फैलाई सारी नफ़रतें पल भर में काफ़ूर हो सकती हैं। क्योंकि राम भी उसी मालिक का नाम है और रहीम भी, संस्कृत में जिसे ‘राम‘ कहते हैं अरबी में उसी को ‘रहीम‘ कहते हैं।
जो सदा से है, जिसने किसी से जन्म नहीं लिया और न ही किसी को इनसानों की तरह जन्म दिया, जो सब कुछ जानता है और हर तरह की शक्ति जिसके अधीन है, उस अजन्मे-अविनाशी एक ही पालनहार को राम और रहीम कहा जाता है।
मस्जिद में मुसलमान जिस मालिक की पूजा-इबादत करते हैं हिन्दू भाई उसे ही राम कहते हैं। मस्जिद कहते हैं उस जगह को जहां मालिक को बड़ा मानकर बन्दे खुद को छोटा ज़ाहिर करने के लिए उसके सामने ‘सज्दा‘ करते हैं। सज्दे को संस्कृत में साष्टांग कहते हैं।
नमाज़ में चार मुख्य आसन इस प्रकार हैं-
गीता में नमाज़
1. क़ियाम - स्थिर आसन अर्थात खड़ा होना।
2. रूकूअ़ - जानुबद्ध आसन अर्थात घुटनों पर हाथ रखकर झुके होने की दशा में कमर को सीधा रखना।
3. सज्दा - साष्टांग अर्थात वह आसन जिसमें धरती को शरीर के आठ अंग स्पर्श करें।
4. क़ाइदा - उपविश्यासन या वज्रासन अर्थात दोनों घुटने मोड़कर बैठना।
गीता के 6ठे अध्याय के 10वें ‘लोक से 14वें ‘लोक तक सूक्ष्म रूप में इन चारों आसनों का वर्णन है और 15वें ‘लोक में इस रीति से योग करने वाले को मृत्यु के बाद भगवद्धाम की प्राप्ति होना बताया है।
इससे पता चलता है कि हिन्दू मनीषियों के लिए न तो नमाज अपरिचित है और न ही वह मालिक जिसके लिए नमाज में नमन और साष्टांग किया जाता है। वस्तुतः नमाज़ भी अरबी भाषा का शब्द नहीं है, यह फ़ारसी भाषा का शब्द है जो संस्कृत से विशेष रूप से क़रीब है। नमाज़ को अरबी में ‘सलात‘ बोलते हैं। ईरान में इस्लाम आया तो उन्होंने अल्लाह को खुदा और सलात को नमाज़ कहा। इससे कोई अन्तर नहीं पड़ा।
मस्जिद में उसी एक पालनहार को नमन किया जाता है जिसे हिन्दू भाई ‘राम‘ कहते हैं। अगर भाषा भेद से ऊपर उठकर देखा जाए तो मस्जिद तो वास्तव में होती ही है ‘राम मन्दिर‘। मस्जिद इतने ज़्यादा आदर्श रूप में राम मन्दिर होती है कि उससे ज़्यादा बना पाना तो दूर कोई सोच भी नहीं सकता।
रामभक्त जब बाबरी मस्जिद पर कुदाल चलाकर खुश हो रहे थे और सोच रहे थे कि वे एक मस्जिद ढहा रहे हैं तब वास्तव में वे एक ‘राम मन्दिर‘ ही ढहा रहे थे और ऐसा राम मन्दिर ढहा रहे थे जैसा कि वे अपने जीवन में कभी बनाने की सोच भी नहीं सकते। ये लोग अपने साथ बाबरी मस्जिद की ईंटें लेकर गये और उनके साथ तरह-तरह से अपमानजनक बर्ताव करके अपनी कुंठाओं को शांत किया। उनके बुरे नतीजे भी सामने आये और आज तक आ ही रहे हैं।
आज भारत विश्व की एक उभरती हुई शक्ति है लेकिन हम खुद अन्दर से ही कमज़ोर हैं। मन्दिर-मस्जिद के विवाद को न सुलझा पाना हमारी एक ऐसी कमज़ोरी है जिसे आज सारी दुनिया देख रही है। ऐसे में क्या तो हमारी छवि बनेगी और कौन हमसे मार्गदर्शन लेगा ?
राम नाम में शक्ति है
राम के भक्त और रहीम के बन्दे आपस में लड़ेंगे तो उनका मालिक उनसे राज़ी नहीं होगा और उनके हालात देखकर दूसरे बहुत से लोग ईश्वर और धर्म से पल्ला झाड़कर नास्तिक ज़रूर बन जाएंगे। इन सबके पापों का बोझ भी उनपर ही पड़ेगा।
रामचन्द्र उपासक थे , उपासनीय नहीं यह आलिम-ज्ञानियों का काम है। उनका कर्तव्य है कि वे लोगों को बताएं कि राम-रहीम एक ही मालिक के नाम हैं और यह कि रामचन्द्र जी जीवन भर उपासना करते रहे, वे उपासक थे , उपासनीय नहीं हैं। वे सर्वज्ञ नहीं थे, दूसरे राजकुमारों की तरह उन्होंने भी वसिष्ठ को गुरू बनाकर उनसे ज्ञान प्राप्त किया। वे सर्वशक्तिमान भी नहीं थे, उन्हें अपनी योजनाओं को सफल बनाने के लिए बहुत से लोगों से सहयोग लेना पड़ा। उन्होंने त्याग किया, कष्ट सहे, संघर्ष किया और विजय पाई। उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम कहकर याद किया जाता है। उन्हें ईश्वर कहना उनके सारे परिश्रम पर पानी फेरना है, ईश्वर की अवज्ञा करना है। ईश्वर उपासनीय है और श्री रामचन्द्र जी आदरणीय हैं।
इतने दंगे हुए, इतना खून बहा लेकिन आज भी मुसलमानों श्री रामचन्द्र जी का नाम आदर से ही लेते हैं। नफ़रत की बुनियाद पर भ्रम की दीवारें खड़ी करने वाले तो पवित्र कुरआन के विरूद्ध पत्रक छापकर बांटते देखे जा सकते हैं लेकिन किसी मुसलमान आलिम ने आज तक रामायण से लेकर कोई पत्रक तैयार नहीं किया।
ज़्यादातर हिन्दू और ज़्यादातर मुसलमान शांतिप्रिय हैं। नफ़रत फैलाने वाले कम हैं और आजकल तो कमज़ोर भी हैं।
‘जोड़ो और राज करो‘ की नीति पर चलने का समय है
राम का सच्चा स्वरूप सामने आते ही मन्दिर-मस्जिद विवाद स्वतः ही समाप्त हो जाएगा। आज तक बांटो और राज करो की नीति पर चला गया। अब ‘जोड़ो और राज करो‘ की नीति पर चलने का समय आ गया है। भारत को नये चैलेंजेज़ के मुक़ाबले के लायक़ बनाने के लिए और उसे विश्व का सिरमौर बनाने के लिए अब यही एकमात्र मार्ग है। यदि इस मार्ग पर आगे न बढ़ा गया तो अपनी आपसी लड़ाईयों से ही हम खुद तबाह हो जाएंगे।
राम तारक मंत्र इस तबाही से बचा सकता है-
राम रामायः नमः
अर्थात राम के राम के लिए नमन है।
मैं चाहता हूं कि अयोध्या में राम मन्दिर बने
जिस राम को यहां नमन किया जा रहा है, उसके स्वरूप का परिचय आम किया जाए तो हिन्दू और मुसलमान तब दो नहीं रहेंगे और न ही उनमें कोई विवाद ही रहेगा।
मैं चाहता हूं कि अयोध्या में राम मन्दिर बने, लेकिन वास्तव में केवल पालनहार राम का ही मन्दिर बनना चाहिए, अन्य का नहीं। मेरा मक़सद तो आपको एक सच्चे मालिक की पहचान कराना है, आप हिन्दी-संस्कृत जानते हैं तो उसे उसमें पहचान लीजिए, अगर आप उर्दू-अरबी जानते हैं तो उसके ज़रिए जान लीजिये कि आप का एक मालिक है जिसने आपको ज़िन्दगी बतौर इम्तेहान दी है और वह आपसे आपके कर्मों का हिसाब लेगा। हमें चाहिए कि हम उसके सामने ज़ालिम और मुजरिम बनकर न जाएं। चारों तरफ़ तबाही मची हुई है, हम सच्चे दिल से तौबा करें और नेक राह पर चलें और दूसरों को भी नेकी की प्रेरणा दें।
‘राम मन्दिर-बाबरी मस्जिद विवाद‘ का शीर्षक ही ग़लत है। इस विवाद के अब तक न सुलझ पाने का एक बड़ा कारण यह भी है। राम मन्दिर उस जगह का नाम इसलिए हुआ कि रामभक्त उस जगह राम मन्दिर बनाना चाहते हैं जिसमें राम की पूजा-उपासना की जाएगी। मस्जिद में उस पैदा करने वाले मालिक की पूजा की जाती है इसलिए मस्जिद के साथ बाबर बादशाह का नाम जोड़ने के बजाय उस सच्चे बादशाह का नाम जोड़ना ज़्यादा उचित है जिसकी पूजा-इबादत मस्जिद में की जाती है और मस्जिद का मालिक भी वही है।
जिसे ‘राम‘ कहते हैं उसी को ‘रहीम‘ कहते हैं
‘राम मन्दिर-रहीम मस्जिद विवाद‘ इस प्रकरण के लिए पूरी तरह उचित है। यदि इतना भी कर लिया जाए तो राजनीतिबाज़ों की फैलाई सारी नफ़रतें पल भर में काफ़ूर हो सकती हैं। क्योंकि राम भी उसी मालिक का नाम है और रहीम भी, संस्कृत में जिसे ‘राम‘ कहते हैं अरबी में उसी को ‘रहीम‘ कहते हैं।
जो सदा से है, जिसने किसी से जन्म नहीं लिया और न ही किसी को इनसानों की तरह जन्म दिया, जो सब कुछ जानता है और हर तरह की शक्ति जिसके अधीन है, उस अजन्मे-अविनाशी एक ही पालनहार को राम और रहीम कहा जाता है।
मस्जिद में मुसलमान जिस मालिक की पूजा-इबादत करते हैं हिन्दू भाई उसे ही राम कहते हैं। मस्जिद कहते हैं उस जगह को जहां मालिक को बड़ा मानकर बन्दे खुद को छोटा ज़ाहिर करने के लिए उसके सामने ‘सज्दा‘ करते हैं। सज्दे को संस्कृत में साष्टांग कहते हैं।
नमाज़ में चार मुख्य आसन इस प्रकार हैं-
गीता में नमाज़
1. क़ियाम - स्थिर आसन अर्थात खड़ा होना।
2. रूकूअ़ - जानुबद्ध आसन अर्थात घुटनों पर हाथ रखकर झुके होने की दशा में कमर को सीधा रखना।
3. सज्दा - साष्टांग अर्थात वह आसन जिसमें धरती को शरीर के आठ अंग स्पर्श करें।
4. क़ाइदा - उपविश्यासन या वज्रासन अर्थात दोनों घुटने मोड़कर बैठना।
गीता के 6ठे अध्याय के 10वें ‘लोक से 14वें ‘लोक तक सूक्ष्म रूप में इन चारों आसनों का वर्णन है और 15वें ‘लोक में इस रीति से योग करने वाले को मृत्यु के बाद भगवद्धाम की प्राप्ति होना बताया है।
इससे पता चलता है कि हिन्दू मनीषियों के लिए न तो नमाज अपरिचित है और न ही वह मालिक जिसके लिए नमाज में नमन और साष्टांग किया जाता है। वस्तुतः नमाज़ भी अरबी भाषा का शब्द नहीं है, यह फ़ारसी भाषा का शब्द है जो संस्कृत से विशेष रूप से क़रीब है। नमाज़ को अरबी में ‘सलात‘ बोलते हैं। ईरान में इस्लाम आया तो उन्होंने अल्लाह को खुदा और सलात को नमाज़ कहा। इससे कोई अन्तर नहीं पड़ा।
मस्जिद में उसी एक पालनहार को नमन किया जाता है जिसे हिन्दू भाई ‘राम‘ कहते हैं। अगर भाषा भेद से ऊपर उठकर देखा जाए तो मस्जिद तो वास्तव में होती ही है ‘राम मन्दिर‘। मस्जिद इतने ज़्यादा आदर्श रूप में राम मन्दिर होती है कि उससे ज़्यादा बना पाना तो दूर कोई सोच भी नहीं सकता।
रामभक्त जब बाबरी मस्जिद पर कुदाल चलाकर खुश हो रहे थे और सोच रहे थे कि वे एक मस्जिद ढहा रहे हैं तब वास्तव में वे एक ‘राम मन्दिर‘ ही ढहा रहे थे और ऐसा राम मन्दिर ढहा रहे थे जैसा कि वे अपने जीवन में कभी बनाने की सोच भी नहीं सकते। ये लोग अपने साथ बाबरी मस्जिद की ईंटें लेकर गये और उनके साथ तरह-तरह से अपमानजनक बर्ताव करके अपनी कुंठाओं को शांत किया। उनके बुरे नतीजे भी सामने आये और आज तक आ ही रहे हैं।
आज भारत विश्व की एक उभरती हुई शक्ति है लेकिन हम खुद अन्दर से ही कमज़ोर हैं। मन्दिर-मस्जिद के विवाद को न सुलझा पाना हमारी एक ऐसी कमज़ोरी है जिसे आज सारी दुनिया देख रही है। ऐसे में क्या तो हमारी छवि बनेगी और कौन हमसे मार्गदर्शन लेगा ?
राम नाम में शक्ति है
- हम कहते हैं कि राम नाम में शक्ति है, अल्लाह के नाम में ताक़त है। हमारे धर्मगुरू सत्य और न्याय की बात करते हैं। तब क्यों नहीं हमारे धर्मगुरू बताते कि राम कौन है और रहीम कौन है ?
- उसकी पूजा-इबादत की सही रीति क्या है ?
- उसके बन्दों के दरम्यान जब विवाद की नौबत आ जाए तो उन्हें क्या करना चाहिए ?
राम के भक्त और रहीम के बन्दे आपस में लड़ेंगे तो उनका मालिक उनसे राज़ी नहीं होगा और उनके हालात देखकर दूसरे बहुत से लोग ईश्वर और धर्म से पल्ला झाड़कर नास्तिक ज़रूर बन जाएंगे। इन सबके पापों का बोझ भी उनपर ही पड़ेगा।
रामचन्द्र उपासक थे , उपासनीय नहीं यह आलिम-ज्ञानियों का काम है। उनका कर्तव्य है कि वे लोगों को बताएं कि राम-रहीम एक ही मालिक के नाम हैं और यह कि रामचन्द्र जी जीवन भर उपासना करते रहे, वे उपासक थे , उपासनीय नहीं हैं। वे सर्वज्ञ नहीं थे, दूसरे राजकुमारों की तरह उन्होंने भी वसिष्ठ को गुरू बनाकर उनसे ज्ञान प्राप्त किया। वे सर्वशक्तिमान भी नहीं थे, उन्हें अपनी योजनाओं को सफल बनाने के लिए बहुत से लोगों से सहयोग लेना पड़ा। उन्होंने त्याग किया, कष्ट सहे, संघर्ष किया और विजय पाई। उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम कहकर याद किया जाता है। उन्हें ईश्वर कहना उनके सारे परिश्रम पर पानी फेरना है, ईश्वर की अवज्ञा करना है। ईश्वर उपासनीय है और श्री रामचन्द्र जी आदरणीय हैं।
इतने दंगे हुए, इतना खून बहा लेकिन आज भी मुसलमानों श्री रामचन्द्र जी का नाम आदर से ही लेते हैं। नफ़रत की बुनियाद पर भ्रम की दीवारें खड़ी करने वाले तो पवित्र कुरआन के विरूद्ध पत्रक छापकर बांटते देखे जा सकते हैं लेकिन किसी मुसलमान आलिम ने आज तक रामायण से लेकर कोई पत्रक तैयार नहीं किया।
ज़्यादातर हिन्दू और ज़्यादातर मुसलमान शांतिप्रिय हैं। नफ़रत फैलाने वाले कम हैं और आजकल तो कमज़ोर भी हैं।
‘जोड़ो और राज करो‘ की नीति पर चलने का समय है
राम का सच्चा स्वरूप सामने आते ही मन्दिर-मस्जिद विवाद स्वतः ही समाप्त हो जाएगा। आज तक बांटो और राज करो की नीति पर चला गया। अब ‘जोड़ो और राज करो‘ की नीति पर चलने का समय आ गया है। भारत को नये चैलेंजेज़ के मुक़ाबले के लायक़ बनाने के लिए और उसे विश्व का सिरमौर बनाने के लिए अब यही एकमात्र मार्ग है। यदि इस मार्ग पर आगे न बढ़ा गया तो अपनी आपसी लड़ाईयों से ही हम खुद तबाह हो जाएंगे।
राम तारक मंत्र इस तबाही से बचा सकता है-
राम रामायः नमः
अर्थात राम के राम के लिए नमन है।
मैं चाहता हूं कि अयोध्या में राम मन्दिर बने
जिस राम को यहां नमन किया जा रहा है, उसके स्वरूप का परिचय आम किया जाए तो हिन्दू और मुसलमान तब दो नहीं रहेंगे और न ही उनमें कोई विवाद ही रहेगा।
मैं चाहता हूं कि अयोध्या में राम मन्दिर बने, लेकिन वास्तव में केवल पालनहार राम का ही मन्दिर बनना चाहिए, अन्य का नहीं। मेरा मक़सद तो आपको एक सच्चे मालिक की पहचान कराना है, आप हिन्दी-संस्कृत जानते हैं तो उसे उसमें पहचान लीजिए, अगर आप उर्दू-अरबी जानते हैं तो उसके ज़रिए जान लीजिये कि आप का एक मालिक है जिसने आपको ज़िन्दगी बतौर इम्तेहान दी है और वह आपसे आपके कर्मों का हिसाब लेगा। हमें चाहिए कि हम उसके सामने ज़ालिम और मुजरिम बनकर न जाएं। चारों तरफ़ तबाही मची हुई है, हम सच्चे दिल से तौबा करें और नेक राह पर चलें और दूसरों को भी नेकी की प्रेरणा दें।
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87 comments:
आपसी प्रेम और सद्भाव बना रहे.........ये ज़रूरी है
मैं तो मथुरा की बात कर रहा हूँ उस पर क्या कहना है कृष्ण भक्त?
अच्छी पोस्ट
आज तक बांटो और राज करो की नीति पर चला गया। अब ‘जोड़ो और राज करो‘ की नीति पर चलने का समय आ गया है। भारत को नये चैलेंजेज़ के मुक़ाबले के लायक़ बनाने के लिए और उसे विश्व का सिरमौर बनाने के लिए अब यही एकमात्र मार्ग है। यदि इस मार्ग पर आगे न बढ़ा गया तो अपनी आपसी लड़ाईयों से ही हम खुद तबाह हो जाएंगे।
बिलकुल ठीक कहा आपने
राम के भक्त और रहीम के बन्दे आपस में लड़ेंगे तो उनका मालिक उनसे राज़ी नहीं होगा और उनके हालात देखकर दूसरे बहुत से लोग ईश्वर और धर्म से पल्ला झाड़कर नास्तिक ज़रूर बन जाएंगे। इन सबके पापों का बोझ भी उनपर ही पड़ेगा।
जिस राम को यहां नमन किया जा रहा है, उसके स्वरूप का परिचय आम किया जाए तो हिन्दू और मुसलमान तब दो नहीं रहेंगे और न ही उनमें कोई विवाद ही रहेगा।
Nice Post
स्वागत योग्य प्रस्ताव !
रवींद्र जी आपका तो हिंदु धार्मिक ग्रंथों मे विश्वास ही नही है फिर आप श्रीकृष्ण जी की बात किस अधिकार से कर रहें हैं ?
अयाज तुम्हारा अपने धार्मिक ग्रन्थ पर विश्वास है? अगर है तो बताओ कि घाटी के सिखों को इस्लाम अपनाने की धमकी इस्लाम सम्मत है या नही?
और किसी के हक की बात करने कि लिए उसका रिश्तेदार होना मेरे लिए जरूरी नही है, तुम्हारे बारे मे मैं नही जानता, मै तो कही भी अन्याय के खिलाफ खडा मिलूंगा, फिर तुम्हारे जैसे लोग चाहे कितना भी पूछे कि मेरा इससे क्या लाभ।
पुनःश्च - मथुरा का मंदिर क्यों तोडा?
रवींद्र साहब अगर कोई किसी को इस्लाम कबूल करने के लिए धमकी देता है तो यह गलत है मगर अब यह साफ हो चुका है कि सिखों को धमकी किसी साजिश के तहत दी गई थी जिसका मकसद सिखों को मुसलमानों के खिलाफ भड़काना था इसलिए यह सवाल पूछना ही अब बेकार है
Namaz ka tarika
सभी तरह की नमाज पढने और उसमें क्या पढा जाता है जानने के लिए देखें
http://www.scribd.com/doc/23821733/namaz-ka-tariqa-tarika-namaj-hindi
अयाज किस साजिश के तहत धमकी दी गई थी? यह तो हम भी जानते हैं कि साजिश है, पर वो साजिश इस्लामीकरण की है। यही साजिश porkistan मे सिखों से जजिया माँगने मे सामने आती है, इसी साजिश के तहत बांग्लादेश मे हिन्दु आक्रमण का निशाना बनते हैं। इस पर लिखने के कारण तस्लीमा के खिलाफ शांति का प्रवर्तक धर्म फतवा जारी कर देता है। इसी साजिश के तहत ओसामा के लिये मस्जिदों मे नमाज पढी जाती है। यह साजिश तो हम सब जानते हैं और इसी का तो विरोध कर रहे हैं।
जमाल राम रहीम एक ही हैं न? और राम मंदिर रहीम मंदिर सर्व धर्म समभाव के लिए सर्वोत्त्म उदाहरण होगा, अतिउत्तम, एक काम करो, म्क्क मे एक मंदिर बनाने का प्रस्ताव दिला दो, हम अयोध्या मे मस्जिद बनवा देंगे। अरे सर्वधर्म समभाव की बात करने वाले तुम लोग, सभी ईश्वर एक बोलने वाले तुम, कितने बडे पाखण्डी हो यह तो इससे ही सिद्ध होता है कि मक्क मस्जिद तो छोडो, उस शहर मे ही गैर मुस्लिम के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा रखा है और कोई मुस्लिम इसके विरोध मे आवाज उठाना तो दूर, सोचता तक नही है।
अयाज सवाल अपनी जगह पर अभी भी है, मेरा प्रश्न है कि जिन मामलो को तुम लोग उठा रहे हो वो कहाँ तक समाज पर प्रभाव डाल रहे हैं?
और मै जिस प्रश्न को उठा रहा हूँ उसका समाज पर क्या प्रभाव पड रहा है। मै जानना चाहता हूँ कि मुस्लिमों ने किस स्तर पर इस तरह की धमकी का विरोध किया है? इसलिय यह प्रश्न तुम्हारे सम्मुख यक्ष प्रश्न की भंति खडा रहेगा। साथ ही यह भी प्रश्न है कि दूसरों के धर्मस्थलों पर आक्रमण कर उसको ध्वस्त करने कि विषय मे कुरान का क्या आदेश है?
पुनःश्चः मथुरा कब मुक्त कर रहे हो?
महक, जरा यह तो बताओ कि दूसरों कि बुराईयां करके कैसे जोडा जाता है इसके बारे मे विस्तार से बताना।
अगर राम रहीम एक है और इनका उच्चारण में फर्क सिर्फ भाषा को लेकर है तो फिर सलात में रामायण या वेदों के श्लोक या या गायत्री मन्त्र क्यों नहीं पड़े जाते ?
किसी हिंदू को इस लेख से परेशान होने कि बजाये खुश ही होना चाहिए कि अनवर जमाल ने इस्लाम को अपनी मन मर्जी से तोड़ मरोड़ को हिंदू धर्म जैसा बना दिया !
ये लेख खुले तौर पर शिर्क कि दावत देता है,
अनवर जमाल आपका अकीदा क्या है वो बयान करे !
A Description of Prophet's (SAW) Prayer
By Shaikh Muhammed Naasir-ud-Deen Al-Albaani.
Translated by Usama ibn Suhaib Hasan.
http://www.qibla.org/pray.htm
संस्कृत शब्द है नमाज
विश्व की एक मात्र भाषा है संस्कृत जहां नम शब्द से नमाज़ का अर्थ निकलता है.नम संस्कृत में सर झुकाने को कहते हैं.और अज वैदिक शब्द है जिसका अर्थ है अजन्मा यानी जिसने दूसरे को जन्म दिया किन्तु स्वयं अजन्मा है.इस प्रकार नम+अज के संधि से नमाज़ बना जिसका अर्थ हुआ अजन्मे को नमन.इस तरह इस शब्द की उत्पत्ति हुई.इरान जाकर फ़ारसी में यह नमाज़ हो गया.ध्यान रहे कि इस्लाम का परिचय भारत में पैगम्बर हज़रत मोहम्मद के जीवनकाल में ही हो गया था.अरब के मुस्लिम कारोबारियों का दक्षिण भारत में आना-जाना शुरू हो गया था.जबकि इरान में इस्लाम बहुत बाद में ख़लीफ़ा उमर के समय पहुंचा था.
भारत के शुरूआती नव-मुस्लिमों ने सलात को नमाज कहना शुरू कर दिया .यह सातवीं सदी का समय है.भारत यानी तब के अखंड भारत से मेरा आशय है.क्योंकि सिर्फ पाकिस्तान, बँगला देश ,नेपाल या श्री लंका में ही इस शब्द का चलन नहीं है.बल्कि पश्चिम में अफगानिस्तान, इरान, मध्य एशियाई मुल्कों तज़ाकिस्तान. कज़ाकिस्तान आदी और पूर्व में म्यांमार , इंडोनेशिया,मलेशिया,थाईलैंड और कोरिया वगैरह में भी सलात की बजाय नमाज़ का प्रचलन है.इन सभी देशों का सम्बन्ध भारत से होना बताया जाता है.
More:
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/2010/03/blog-post.html
बहुत ही बेहतरीन जानकारी... बहुत ही बेहतरीन लेख... आज तो असलम कासमी साहब ने भी अच्छी जानकारी दी. आपस में सभी धर्मों में प्यार और मुहब्बत कायम करने की कोशिश से बढ़कर और क्या हो सकता है?
डा0 जमाल भाई ! विचार से भरा लेख पढ़ कर थोड़ी देर के लिए सोचने लगा कि काश हमारे देश में सारे लोग आप ही के समान हो जाते।
अगर ऐसा हुआ तो मन्दिर मस्जिद का विवाद ही जाता रहेगा। और सब लोग विश्व बंधुत्व के सुत्र में बंध जाएंगे। ....काश कि ऐसा होता..
बधाई हो...सैकड़ों लेख पर भारी है यह लेख
कल 24 सितम्बर है ! कल को सिर्फ़ कल की ही तरह देखें...ठीक उस कल की तरह जो बीते कल में आज को देखा था...! हम कल ऐसे हालात से गुज़रेंगे जिसमें हमें सिर्फ़ एक ही चीज़ को दर्शाना बेहद ज़रूरी है... और वो है ... संयम और सब्र ! अगर हम ऐसा ना कर पाए तो देश एक फ़िर से 60 साल पीछे चला जाएगा. क्या हम चाहेंगे कि हमारे सब्र और संयम ना रख पाने की वजह से आने वाली पीढ़ी हमें गलियां दे... जैसे कि हम उनको कहते हैं जो हमारे पूर्वज थे जिनके बेहद गिरे हुए फैसलों ने हमें आजतक शर्मशार किया हुआ है. हमें किंचित मात्र भी जज़्बाती होने की ज़रूरत नहीं, और अगर आप वाक़ई जज़्बाती होना चाहते हैं तो देशहित में जज़्बाती होईये !
@ Ravinder ji ! अरे अरे कहां गई आप को प्यार करने वालो की भीड?क्यो मुंह छुपाने की कोशिश कर रहे है बाबा.
@ Servent of Allah ! अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2
गल्ला मंडी में क़ीमत की स्थिरता अलाउद्दीन की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। उसके जीवित रहते, इनके मूल्यों में तनिक भी वृद्धि नहीं हुई।
जिन भी बंधु का नाम उनके माता पिता ने रखना आवश्यक नही समझा उन लोगो को उनके बच्चों के नाम से जानना पडता है, ऐसे ही एक बम्धु के लिए - हम लोग अपनी विधियों मे परिवर्तन कर रहे हैं, eco friendly गणेश जी का प्रचलन प्रारंभ हो चुका है, और अगले दो वर्षों मे POP का प्रयोग पूर्णतः बन्द हो जाएगा।
वैसे तुम्हारे पिता ने कोइ नाम नही रखा तुम्हारा इसके लिए मैं बहुत दुःखी हूँ। :-(
@ शेख चिल्ली का बाप,
अल्लाउदीन एक बादशाह था, और वो मर चुका है, अब उसका अकीदा क्या था वो उसके मुताबिक़ उठाया जायेगा और उसने क्या आमाल अपनी जिदगी में किये थे उसका अज्र उसको कब्र में मिल ही रहा होगा !
जो ज़र्रा भर नेकी करेगा तो वो भी सामने आ जायेगा औअर जो ज़र्रा भर बुराई करेगा वो भी सामने आ जायेगा !
जो अमल आप कर रहे वो भी सामने आ जायेंगे,
चाहे आप किसी चिल्ली के बाप बने उससे कोई फर्क नहीं पडेगा !
कोई नहीं बच पायेगा!
अल्लाह का हुक्म कब आ जाये किसी को पता नहीं, सारी मसखरी धरी रह जायेगी !
मेरी ग़ज़ल:
मंदिर-मस्जिद बहुत बनाया, आओ मिलकर देश बनाए
वह जमाल जी , अच्छी बात भी कहते है तो उस में इस्लाम की खिचड़ी पका देते है .पहले पूछ रहे थे की कृष्ण ने कहां कहा है की वे ईश्वर है और उन की पूजा करनी चाहिए .और जब प्रमाण प्रस्तुत कर दिया तो माफ़ी मागने की बजाय गीता पर ही झूठा होने का आरोप लगा दिया . बस गलत व्याख्या करते हुए एक बात पकड़ पर लटक गए . आकाश में देखने पर नछत्रो में चन्द्रमा अकेला ही है जो शोभायमान दीखता है . फिर इस में भगवान श्री कृष्ण ने गलत क्या कहा .
इतने ही धर्म निरपेछ है तो गीता को झूठा कहने के लिए माफ़ी मागिये .
पहले कह रहे थे की श्री कृष्ण की पूजा नही करने चाहिए .और अब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की पूजा न करने की बात कर रहे है
दरसल आप इस्लामी सिद्धन्त की अल्लाह से सिवा किसी की पूजा नही करनी चाहिए को ही थोपने की बात कर रहे है
पहले भी मैं आप को बता चुका हू की गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है की
यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्॥७- २१॥
जो भी मनुष्य जिस जिस देवता की भक्ति और श्रद्धा से अर्चना करने की इच्छा
करता है, उसी रूप (देवता) में मैं उसे अचल श्रद्धा प्रदान करता हूँ।
फिर इस प्रकार की बात कर के आप क्या सिद्ध करना चाहते है. बातो को तोड़ मरोड़ कर पेश करने में तो आप कोइ जोड़ नही है . गीता को झूठा कहते कहते आचानक गीता में नमाज भी आ गयी .
अपने मतलब के लिए व्याख्या अच्छी करते है आप .
बाकि पोस्ट बहुत अच्छी है . इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए आप का धन्यवाद . बाकि पोस्ट का पूरा समर्थन .
अभिषेक जी एक बात ही सत्य है, कुरान एवं इस्लाम ही सत्य है, या तो जमाल की बात प्यार से मान लो या फिर ओसामा के चेले अपनी तरह से समझाएंगे। अब मै और आप तो ठहरे पुराने बेवकूफ, मानेंगे नहीं।
एक अफवाह और ये काफी उड़ा रहे है बाकि मिलकर लपेटने में लगे है की बाबरी ढांचा गिराने वालो का घर बर्बाद हो गया वो तबाह हो गए आदि आदि .
जब की राम मंदिर की सथापना के पुण्य फल से उन्हों ने दिन दूनी रात चौगनी तरक्की की और सफलता की सीढिया चढ़ते चले गए .
अब ये कुंठा बेचारे अफवाह उड़ा कर निकाल रहे है क्यों की यह पर तालिबानियो की नही चलती है न !
Hari Om, Hari Om.Anwar saheb ne acha mudda uthaya , magar kya kare n kuch log bina tang adaye manenge hi nahi.
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हम जो ये सकल दुनिया देखते है ,जिसमे धरती, चाँद, सितारे ,वनस्पति, जीव जंतु हम मनुष्य सब निवास करते है
इस बड़ी दुनिया में हमारा कौन सा स्थान है .क्या वजह है जिसके कारण कुछ खास है हम ||||
शरीर (body) के हिसाब से हम अन्य जीवो के मुकाबले कही नही ठहरते .... हम आम जानवर जैसे कुता से हम अपना मुकाबला करे , क्या हम उसे मुकाबले में तेज भाग सकते है,क्या उसके तरह हमारे दात पंजे तेज है.
नही ,फिर भी हम अपने घर में पालते है
हाथी से २-४ क्या १०-२० भी आदमी भिड जाए फिर भी उसका कुछ नही कर सकते .है उसके शरीर का कोई मुकाबला ..हम तो उसकी सवारी करते है
इसी तरह कोई भी जानवर घोडा गधा कोई आम जानवर
नही नही नही. किसी भी जानवर के मुकाबले हम कमजोर है
फिर हम सब पर अपना सिक्का चलाते है
परमात्मा ने मनुष्य को एक विशेष बुधि दी है जिसके कारण सब संभव है
बुदिदायक परमात्मा का और अपना स्थान हम भूलते जा रहे है
दुनिया में हर वस्तु जो हम इस्तेमाल करते है सब परमात्मा और हमने मिल कर बनायीं है
आप जिस घर में रहते है जरा उसके बारे में सोचिये घर में जो ईटे लगी है किसने बनायीं है
ईटे में जो मिटटी लगी है उसे परमात्मा ने बनाया है उस मिटटी से ईटे मनुष्य ने बनायीं है
पहला सामान उसका(परमात्मा) दूसरा काम हमारा
घर में जो दरवाजे है वो सब लकड़ी या लोहे के होते है .वो लकड़ी पेड़ से कटकर लायी जाती है उसको दरवाजो का रूप आदमी देता है
लोहा मूल रूप से भूमि में अयस्क के रूप में पाया जाता है मनुष्य उसको लोहे के रूप में ढालकर बहुत कुछ बनता है जैसे दरवाजे ,टला ,रेल ,पटरी ,हवाई जहाज आदि आदि
मूल लोहा परमात्मा का बनाया है फिर हम उसका उपयोग करते है
नंबर १ पर भगवान् की वस्तु और नंबर दो पर हम
हम जो अन्न खाते है वो अन्न खेतो में उगता है वो परमात्मा का बनाया है |
उस अन्न से हम भिन्न भिन्न पकवान बनाते है और सेहत बनाते है
यहाँ भी वो नंबर १ और हम २
इस तरह जो भी हम वस्तु इस्तेमाल करते है सब में परमात्मा से बनी है व् हम उसका प्रयोग करते है
इस तरह सब कुछ बनाए वाला भगववान है तो हमे उसका पूजन करना चाहिए और उसको धन्नवाद देना चाहिए
ये सब क्या कोई विज्ञानं बना सकती है नही ,वो सब मूल वस्तु का इस्तेमाल करती है
या ये सब किसी गुरु ने या किसी देवी देवता या किसी अवतार ने बनाया है
नही ना वो सब भी यहाँ आये है चले गए
सब इन्ही की पूजा में लगे है
इस तरह का आदमी जो खाता अपने पिता @परमपिता का हो और, नाम किसी और का जपता हो तो उसे क्या कहेगे आप
आलोक मोहन जी (फर्जी नाम ) आप अपना अज्ञान प्रगट कर द्र्सरो को भ्रमित न करे . इस बात का जवाब अभी जमाल जी के इसी लेख में दिया है पर हर बार एक ही बात अलग अलग तरीके से ले कर चले आते हो .
हिन्दू दर्शन ज्ञान का अथाह सागर है .इस की बात आप को समझ में नही आएँगी .
फिर भी मैं आप के प्रश्न का समाधान कर देता हू
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है की
यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्॥७- २१॥
जो भी मनुष्य जिस जिस देवता की भक्ति और श्रद्धा से अर्चना करने की इच्छा
करता है, उसी रूप (देवता) में मैं उसे अचल श्रद्धा प्रदान करता हूँ।
जल्द ही इस प्रश्न पर मैं अपनी अगली पोस्ट लिखूंगा . आशा करता हू आप का अज्ञान का पर्दा हट जायगा .
शांति, सद्भाव और सौहार्द की ज़रूरत है देश को। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
आभार, आंच पर विशेष प्रस्तुति, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पधारिए!
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
‘कौन और क्यों हैं राम ?‘
@ जनाब मिश्रा जी ! आपका आना एक सुखद अहसास है क्योंकि आप जानते हैं कि ‘कौन और क्यों हैं राम‘। आपकी बात वज़्न और मायने दोनों रखती है, मेरे लिए कुछ ख़ास तौर पर। मालिक आपका रूतबा बुलन्द करे, आमीन।
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@ मेरे अज़ीज़ भाई रविन्द्र जी !
अच्छी बातें हमें एक करती हैं और बुरी बातें हमें बांटती हैं। बुरी बातें जब धर्म के नाम पर की जाती हैं तब वे और भी ज़्यादा बुरी होती हैं। उन बुराईयों की वजह से ही आदमी का धर्म और धर्मग्रंथों से मोहभंग होता है जैसाकि आपका हुआ। जैसी बातों की वजह से आपका मोहभंग हुआ मैं सदा उन्हीं का विरोध करता हूं। धर्म सत्य और सुंदर होता है , धर्म का विरोध मैंने आज तक किया नहीं। हिन्दू-अरबी या सनातन-इस्लाम को मैंने कभी दो धर्म समझा ही नहीं।
धर्म सबका, महापुरूष सबके, इन्हें न बांटो
जैसे हज़रत मुहम्मद साहब स. की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए फैलाई जाने वाली अफ़वाहों को मैं असत्य घोषित करता हूं ऐसे ही उनसे पहले आ चुके महापुरूषों के बारे में भी करता हूं। आप उन्हें केवल अपना ही बनाए रखने की कोशिश करते हैं लेकिन मैं उन्हें अपना भी मानता हूं। महापुरूषों पर एकाधिकार जमाना पाप है, ग़लत है।
एक जान हैं अयोध्या-काशी के हिन्दू-मुस्लिम
अयोध्या हो या काशी या फिर कृष्णजन्मभूमि, वहां के स्थानीय हिन्दुओं को तो अपने पड़ौसी मुसलमानों से कोई आपत्ति है नहीं और बाहर के तत्वों की न तो वे खुद मानते हैं और न ही मुसलमानों को मानने देते हैं। जब-जब इन जगहों का माहौल बाहर के उपद्रवियों ने बिगाड़ा और मुसलमानों ने इन जगहों को छोड़ना चाहा तब-तब वहां के हिन्दुओं ने ही उन्हें वहां रोका और उनकी हिफ़ाज़त की।
भाई वहां के हिन्दू अपने मुसलमान भाईयों को भगाने को तो तैयार हैं ही नहीं बल्कि भागने देने के लिए भी तैयार नहीं हैं। सॉरी, इन नगरियों को मुस्लिम फ़्री बनाने में मैं आपकी कोई मदद नहीं कर पाऊंगा।
वैसे भी गीता में कहा गया है-
हे अर्जुन ! मैं (परमात्मा) सब प्राणियों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूं तथा सम्पूर्ण प्राणियों का आदि, मध्य और अन्त भी मैं ही हूं। 10, 20
जब सबमें एक ही विराजमान है तो फिर आप क्यों टेंशन ले रहे हैं ?
मक्का में मन्दिर
आपने मक्का में मन्दिर बनाने की बात कही है। अच्छा विचार है लेकिन अफ़सोस कि वहां आलरेडी ही परमेश्वर का सबसे प्राचीन मन्दिर ‘आदि पुष्कर तीर्थ‘ मौजूद है जो भी परमेश्वर की महानता को और उसके आदेश को जानता-मानता हो वह वहां जा सकता है।
इसके अलावा अगर आप वहां किसी विशेष देवी-देवता का मन्दिर बनाना चाहते हैं तो कृप्या स्पष्ट करें कि आप किसका मन्दिर वहां बनाना चाहते हैं और क्यों ?
आपका खुद का तो हिन्दू धर्मग्रंथों से मोहभंग हो ही चुका है, आप वहां मन्दिर बनाकर दूसरों का मोहभंग करने पर क्यों तुले हुए हैं ?
आप आते हैं साथ में इतना बड़ा आईना भी लाते हैं मुझे दिखाने के लिए, आईना देखकर मैं अपनी कमियां तलाशने का हरसंभव प्रयास करता हूं। मेरी हितचिन्ता के लिए इतना कष्ट आप उठाते हैं , आपका बहुत आभारी हूं।
मालिक का हर नाम सुंदर और सार्थक है
@ ऐ सर्वेन्ट आफ़ अल्लाह ! क्या मैंने आपके घर अपने किसी बच्चे-बच्ची का रिश्ता भेजा है कि आप मुझसे मेरा अक़ीदा पूछ रहे हैं या आप सऊदी अरब के कोई ‘मुतव्वा‘ हैं ?
मैंने ‘रहीम‘ को ‘राम‘ क्यों कह दिया ?
आपको इस पर इतना ऐतराज़ हुआ कि आपने मेरा अक़ीदा जानने की ठान ली ?
आपको देखकर मुझे मक्का के वे तंगनज़र मुश्रिकीन याद आ गये जो हज़रत मुहम्मद स. पर यह ऐतराज़ किया करते थे कि वे अल्लाह को ‘रहमान‘ क्यों कहते हैं ? ‘रहमान‘ तो ईसाईयों का रब है।
अल्लाह का अपना स्टेटमैंट है -
‘कुलिदउल्लाह अविदउर्-रहमान अंय-यम्मा तदऊ़ फ़लहुल अस्माउल हुस्ना‘
अर्थात कह दीजिए कि अल्लाह को अल्लाह कहकर पुकारो या रहमान कहकर, जिस नाम से भी पुकारो तमाम अच्छे नाम उसी के हैं।
-कुरआन, 17, 110 अनुवाद- मौलाना मुहम्मद जूनागढ़ी, उर्दू से हिन्दी
अल्लाह ने ‘रहमान‘ नाम को कुरआन में अपने निजी नाम के तौर पर इस्तेमाल करके ‘अल्लाह‘ नाम के बराबर इज़्ज़त बख्शी और अपने क़ौल और अमल से बताया कि तमाम अच्छे नाम उसी के हैं।
दुनिया में जो भी सिफ़ते-कमाल और खूबी नज़र आ रही है और उसके लिए जिस ज़बान में जो भी नाम इस्तेमाल होता है, अव्वलन और अस्लन वह खुदा के लिए है, बाद में किसी और के लिए।
मालिक का फ़रमान आया है अलग-अलग भाषाओं में
अरबी बोलने वाले हज़रत मुहम्मद स. और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम से पहले भी हर ज़बान में अल्लाह के नबी और सत्पुरूष आ चुके हैं और लोगों को मालिक का नाम और उसका पैग़ाम बता चुके हैं। हदीस में नबियों की कुल तादाद एक लाख चैबीस हज़ार आयी है। इनके मानने वालों की तादाद और भी ज़्यादा है जिनमें एक बड़ी तादाद सत्पुरूषों अर्थात वलियों की भी है।
‘वमा अर्सल्ना मिर्रसूलिन इल्ला बिलिसानि क़ौमिहि लिनुबय्यिना लहुम‘
अर्थात हमने हर हर नबी को उस की क़ौमी ज़बान में ही भेजा है ताकि उनके सामने वज़ाहत से बयान कर दे।
-कुरआन 14, 4 अनुवादक उपरोक्त
इस आयत के तफ़्सीरी हाशिये में मौलाना सलाहुद्दीन यूसुफ़ लिखते हैं कि ‘फिर जब अल्लाह तआला ने अहले दुनिया पर यह अहसान फ़रमाया कि उन की हिदायत के लिए किताबें नाज़िल कीं और रसूल भेजे तो उस अहसान की तकमील इस तरह फ़रमाई कि हर रसूल को क़ौमी ज़बान में भेजा ताकि किसी को हिदायत का रास्ता समझने में दिक्क़त न हो‘ - पृष्ठ 694, उर्दू से हिन्दी
लोग जो ज़बान बोलते थे उनके सुधार के लिए मालिक की तरफ़ से जो नबी आए उन्होंने भी वही ज़बान बोली जो उनके उम्मती बोलते-समझते थे, उन पर उसी ज़बान में मालिक का कलाम नाज़िल हुआ। इस सबसे यह खूब ज़ाहिर है कि मालिक की खूबियां और बड़ाई भी उसी ज़बान में उतरी और उसी ज़बान के सिफ़ाती नाम अर्थात सगुण नाम उसके लिए इस्तेमाल हुए।
राम नाम कितना प्यारा !
पुरानी ज़बानों में बल्कि सबसे पुरानी ज़बानों में से एक संस्कृत है। संस्कृत में मालिक के सच्चे बन्दों का भी ज़िक्र मिलता है और उसके नामों का भी। मालिक के तो सभी नाम सुन्दर हैं और ‘राम‘ नाम तो इसलिए और भी प्यारा है कि इसके अर्थ में ही ‘रमणीय‘ होना निहित है।
जब मालिक ने ही भाषा-संस्कृति की दीवारों को गिरा दिया तो फिर भला मैं उन्हें कैसे खड़ी कर सकता हूं ?
झगड़े की बुनियाद है हिमाक़त
हिन्दुस्तान में दीन-धर्म का झगड़ा सिरे से है ही नहीं।
हिन्दुस्तान में झगड़ा है सांस्कृतिक श्रेष्ठता और राजनीतिक वर्चस्व का। जो इश्यू ईश्वर-अल्लाह की नज़र में गौण है बल्कि शून्य है हमने उसे ही मुख्य बनाकर अपनी सारी ताक़त एक दूसरे पर झोंक मारी। नतीजा यह हुआ कि हिन्दू और मुसलमान दोनों ही तबाह हो गए। तबाही सबके सामने है। इस तबाही से मालिक का नाम बचा सकता है लेकिन आज उसके नाम पर ही विवाद खड़ा किया जा रहा है।
झगड़ा ख़त्म होता है हिकमत से
अल्लाह की हिकमत और नबियों की सुन्नत के मुताबिक़ मैं अपने मुख़ातब की ज़बान में ही बात करता हूं। मुसलमान से बात करता हूं तो उसे मालिक का नाम लेकर उसका हुक्म उसी ज़बान में बताता हूं जिसे वह समझता है और जब हिन्दी-संस्कृत जानने वालों से संवाद करता हूं तो फिर मेरी भाषा बदल जाती है लेकिन पैग़ाम नहीं बदलता।
मेरा अक़ीदा, मेरा मिशन
‘व इन्नल्लाहा रब्बी व रब्बुकुम फ़-अ़-बुदूहू, हाज़ा सिरातुम्मुस्तक़ीम‘
मेरा और तुम सबका परवरदिगार सिर्फ़ अल्लाह तआला ही है। तुम सब उसी की इबादत करो , यही सीधी राह है।‘ -कुरआन, 19, 36 अनुवादक उपरोक्त
यही मेरा अक़ीदा है। उम्मीद है कि आप समझ गए होंगे लेकिन अगर अब भी कुछ कसर रह गई हो तो मौलाना मुहम्मद जूनागढ़ी साहब रह. के किसी मद्दाह से पूछिये कि हज़रत मौलाना ने रब का अनुवाद फ़ारसी लफ़्ज़ ‘परवरदिगार‘ क्यों किया ?
वंदे ईश्वरम् ! सुंदर प्रस्तुति
@ अनवर जमाल मेरा आपसे न तो पर्सनल रिश्ता है न मुझे आपसे कोई पर्सनल रिश्ता रखने का शौक है, शौक आपको पैदा हुआ इस्लाम कि तरफ बुलाने का और बुलाने लगे कुफ्र कि तरफ, यही शैतान कि चाल है जिसमे अच्छे अच्छे मुब्लिग़ गुमराह हुए और न सिर्फ अपनी दुनिया आखिरत बर्बाद कर बैठे बल्कि दूसरों को भी गुमराही में डाला,
मै साउदी अरब के उलेमा या उनके किसी शैख़ या आलिम कि तकलीद भी नहीं करता और ना किसी को तकलीद करने कि कहता हूँ,
हाँ अगर आप जैसे लोग इस्लाम के नाम पर कुछ भी बयान करने लगे और किसी का भी हवाला देने लगे तो आपसे आपका अकीदा कि आप का अल्ल्लाह, अल्लाह के रसूल और इस्लाम के बारे क्या है पूछने का हक तो होना चाहिए, या नहीं ?
अब आपने ये दूकान सजाई है वेड और कुरान के नाम से तो जवाब देना आपका फर्ज बनता है कि आप का अकीदा कुरान के बारे में क्या है अगर आपको जवाब नहीं देना या आपके पास जवाब नहीं है तो ये दूकानदारी बंद कीजिये, क्योकि जब आपको खुद नहीं पता कि इस्लाम अल्लाह का हुक्म क्या है, रसूल का हुक्म क्या है और इस्लाम क्या है तो आप दूसरों को गुमराही के सिवा क्या देंगे ?
अगर आपके मुताबिक
1 .राम और रहीम एक है तो फिर कल को आप ये बयान भी दे देंगे (और साथ में किसी तर्जुमा करने वाला का हवाला भी शायद दे देंगे ) कि अब बिस्मिल्लाह बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिर्रहीम कि बजाये बिस्मिल्लाहहिर्रहमानिराम पड़े ?
2. अल्लाह ने हर कौम में हर जबान को मानने वाले के बीच उनकी जबान बोलने वाले पैगम्बर भेजे आपकी ये बात बिलकुल सही है लेकिन आपने ये नहीं बताया कि मुहम्मद सल्लाहू आलेही वस्सलाम को कौन सी कौम और कौन सी जुबान बोलने वालो कि तरफ भेजा ?
3. मालिक का हर नाम सुन्दर और सार्थक है तो मुहम्मद नाम कैसा है ? अब्दुल्लाह नाम कैसा है ? इब्राहीम नाम कैसा है ? मूसा नाम कैसा है ? सुन्दर भी है लोकप्रिय भी है, तो फिर मालिक का नाम ये भी रखे जा सकते है,राम नाम इतना सुन्दर और सार्थक है तो मुहम्मद सलालाहू अलेहे वस्सलाम को राम नाम क्यों नहीं सुझा ? उन्होंने ये नाम क्यों नहीं दिया ?
तो क्या आप का इल्म या समझ मुहम्मद सल्लाहू अलेहे वस्सलाम से जयादा है ? या आप पर कोई वहि नाजिल हुई या आपको इलहाम हो गया ?
4. मूसा अलेह सलाम पर Torah नाजिल हुई और उसमे पूरी शरियत थी, जिसके मुताबिक यहूदी आज भी अपनी जिदगी बसर करते है !
(ये और बात है कि मुसलमानों कि तरह जयादातर यहूदी भी तौरात कि हर बात पर अमल नहीं करते या फिर बिलकुल अमल नहीं करते)
जब Torah भी आसमानी किताब है और मुस्लिम उसे आसमानी किताब का दर्जा देते है तो हम अपनी जिदगी के मसले तौरात से या इंजील से भी क्यों नहीं ले लेते, ठीक है उसमे कुछ मिलावट या गलति है तो उसे छोड़ कर बाकी बाते अमल लायी जा सकती ह ?
5. दीन और धर्म कि बात आप कहते है तो दीन लफ्ज़ का मतलब का यकीनन पता नहीं होगा, दीन का तर्जुमा धर्म शब्द से या रिलीजन शब्द से नहीं किया जा सकता इसके लिए अरबी कि डिक्शनरी देखिये और जानिये कि सहाबा ने दीन को क्या जाना था और कैसे समझा था !
6. अगर आप मुझे साउदी अरब वाला मानते है तो आप देवबंद का फतवा देख ले उनकी वेबसाईट पर, उसमे मुसलमानों को दूसरे कि धर्म कि किताबो के हवाले देने और दूसरे धर्म के बारे में बात करने के मुताल्लिक क्या कहा गया है ?
पैगम्बरे इस्लाम के बाद में मुस्लिमो कि राजनैतिक और सामाजिक व्यवस्था ऐसी रही !
1. प्रशासन
2. आम व्यक्ति
प्रशासन में जो व्यक्ति थे खलीफा और मजलिस ऐ शुरा उसमे नेक, आलिम, लोग हुआ करते थे, हर शेत्र के माहिर, जो खुद इन्साफ पर कायम रहे और समाज में इन्साफ कयाम किये हुए थे और जो आम इंसानों कि चाहे मुस्लिम या गैर मुस्लिम उनकी जरूरतों पर पूरा ध्यान देते थे,
वक्त बदला बादशाहत कायम हुई, प्रशासन में नाकाबिल लोग भी शामिल हुए, ना इंसाफी भी होने लगी, यहाँ तक इस्लाम कि बुनियादी बातो को भी कुछ दुश्मने इस्लाम, चापलूसो ने बदलने कि कोशिश की, लेकिन उस दौर में सच्चे उलेमा और आलिम उठ खड़े हुए और बादशाहओ कि और उनके चापलूसो (चापलूस उलेमा) कि चालो को कामयाब नहीं होने दिया, मुस्लिम समाज का ढांचा कुछ इस तरह बन चूका था !
1. बादशाहत (प्रशासन जिसमे गुमराह चापलूस उलेमा, जो मन माफिक तफसीर, तारीखे लिखी)
2. सच्चे उलेमा
3. आम आदमी
इस प्रकार इन दोनो दौर में समाज और आम आदमी पर एक तरह से उलेम या प्रशासन कि पूरी नजर थी, समाज परिवार और खानदान में गुंथा होने के कारण हर कोई कुछ भी करने और कहने से पहेले अपने दीन को, या अपन घर, खानदान कि इज्जत को देखता था,
खास बात गौर करने कि ये है इन दोनो दौर में आलिम प्रशासन से जुड़े हुए थे, या प्रशासन के जरिये आलिम कि नियुक्ति होती थी !
वक्त ने फिर करवट ली बादशाहत किनारे हुई, लोकतंत्र प्रजा तंत्र का बोल बाला हुआ, हर इंसान को अपनी बात कहने कि आजादी मिली, जिसका नतीजा हर आदमी कही भी कुछ भी बोलने लगा,
आज का दौर (लोकतंत्र, प्रजातंत्र) में मुस्लिम समाज कुछ इस तरह बाँट दिया गया या बंट गया !
1. आलिम, उलेमा (इस दौर में आलिम या उलेमा कि नियुक्ति किसी प्रशासन ने नहीं कि बल्कि एक इंसान ने देवबंद में मदरसा खोला और वो चल पड़ा और खुद ही आलिम बन बैठे और खुद ही फतवे देने लगे, दूसरे ने बरेलवी में मदरसा खोला तो उसके चाहने वाले भी आ गए और उसकी बाते मानने लगे तो तो उनकी दूकान भी चल पड़ी, फिर इन्ही कि ब्रांचे या फ्रेचचाइजी खुलने लगी धीरे धीरे इसने एक विचारधारा का रूप ले लिया, जो बाद में एक फिरका के शक्ल बन गया)
2. तालिब ऐ इल्म (अब छात्र या तो इन किसी मदरसे में पड़े या फिर खुद भी इल्म हासिल करे )
3. आम मुसलमान (आम मुसलमान की नजर में तो मुसलमान के घर पैदा होना, मुसलमान नाम रखना, खतना करवाना, गोश्त खाना, और ज्जयादा नेकी करनी हो तो दाडी टोपी का इस्तेमाल करना मुसलमानों होने के लिए काफी है बल्कि ऐसे को तो बहुत अच्छा मुसलमान माना जाता है और जो कुरआन हिफ्ज कर ले या कुरआन कि आयते का बारे में बात करे तो उसे तो बड़ा आलीम समझा जाता है) !
४ फ्री लांसर दाई ( ये लोग जिन्होंने सोचा कि इस्लाम के लिए कुछ काम किया जाए तो NGO का कंसेप्ट इन्होने अपनाया और बिना इल्म के बिना अमल के शुरू हो गए, शायद खुद इन्हें भी नहीं पता कि ये कर क्या रहे है, बाकी दूकान तो चल ही रही है, जकात, सदका, आ ही रहा है, अब धीरे धीरे इनकी भी फ्री लांसर ब्रांचे, फ्रेंच्चाइएजी खुलने लगी और ये भी इस्लाम में एक नए फिरका या विचाधारा को जन्म दे रहे है, मुमकिन है ये कोई नया इस्लाम जिसमे सलात में वेद पड़े जाए और रोजे यहूदियों के मुताबिक रखे जाए जैसे नियम बना डाले, जैसे बॉलीवुड वाले मिलकर नया इस्लाम लंच कर दे जिसमे नाच गाना और उनके दूसरे कामो को ही इबादत मान ली जाए, अगर ऐसे ये चले अपनी मर्जियो के मुताबिक तो आने वाले वक्त में होलीवुड इस्लाम, बोलीवुड इस्लाम, मोडर्न इस्लाम, न्यू इस्लाम, वेद्कुरान इस्लाम, बाइबल कुरआन इस्लाम, तोरात कुरआन इस्लाम, इस्त्यादी वर्जन इस्लाम के बाजार में उपलब्ध होंगे )
अगर जमाल जी ने राम और रहीम एक ही मालिक के दो नाम बताये है तो आप के पेट में मरोड़ क्यों हो रहा है .
@ servant of allah
विश्व का सबसे प्राचीन धर्म और संसकृति हिन्दू धर्म का बेडा भी आप के तरह के लोगो ने गर्त कर दिया .
धर्म का अर्थ है धारण करना
धर्म में गति होती है अर्थात धर्म गतिशील होता है .बहती हुई नदी सदैव पवित्र होती है ,तालाब का जल दूषित होता है क्यों की उस का पानी रुका हुआ होता है
जड़ता ही मुर्खता है यही अनर्थ का कारण है .
आप कुरानी आयातों से बाहर आये और निष्पछ हो कर देखे .राम और रहीम क्या अलग अलग है ?.क्या अनन्त दो हो सकते है ?
मेरा विरोध सिर्फ इसी बात से है. बाकि जमाज जी और आप दोनों इस्लाम के जानकर है .इस्लाम में सही गलत आप लोग ही निर्णय ले सकते है
वर्तमान हालात ये है कि मुसलमानों को तीन हिस्सों में बाँट दिया गया या कहे कि खुद ही बंट गए !
1. अहले सुन्नाह वल जमाह (जमात)
2. फिरका परस्त
3. हिज्बी या पार्टी, ग्रुप
अहले सुन्नाह वल जमाह वो लोग है जो ये दावा करते है कि दीन इस्लाम को वो ऐसे है समझते है जैसे सहाबा, ताबेईन, तबे ताबेइन, और इमामों ने समझा अपनाया, तौहीद हो, कुरआन की तफसीर हो, हदीस हो, कोई और जिंदगी का मसला हो उसमे ये जमात अपने को सहाबा, ताबेईन, तबे ताबेइन, और इमामों के जरिये से जानती और समझती और उनसे हवाला लेती है !
फिरका परसत वो लोग है जो किसी एक सहाबा को ही सही मानते है या उनकी ही तकलीद करते है या किसी एक इमाम (हनाफी, शाफई, हंबली, इत्यादि) या एक से जयादा इमाम कि तकलीद करते है या किसी और बुजुर्ग, वली, औलिया कि तकलीद करते है, ये लोग कुरआन कि तफसीर भी अपने इमाम, वली, औलिया, बुजुर्ग के मुताबिक करते है और अगर सही हदीस इनके इमाम, वली, औलिया, बुजुर्ग कि बात से टकराती है तो सही हदीस को रद्द कर देते या उसे नहीं मानते बल्कि अपने इमाम, वली, औलिया, बुजुर्ग कि बात को मानते है ! यानि मुहम्मद सल्लाहू अलेहे वसल्लम कि बात को छोड़ कर अपने इमाम, वली, औलिया, बुजुर्ग कि बात को मानते है !
हिज्बी या पार्टी, ग्रुप बनाने वाले किसी खास मकसद को लेकर ग्रुप या पार्टी बनाते है जयादातर का मकसद राजनैतिक होता है यानि सत्ता प्राप्त करना ! ये दूसरा मकसद दावत कम्पनी चलाना भी आज कल देखने को मिलता है ! ये लोग जिनका मकसद चाहे सत्ता प्राप्ति हो या दावत कम्पनी चलाना हर फिरके को सही मानते है ! बस इनका मकसद हल होना चाहिए ! इनकी नजर में हर बुजुर्ग, वली, औलिया, इमाम, सबकी सारी बातें सही है ! अगर इनकी ये बात मान ली जाए कि हर किसी हर बात सही है तो गलत क्या है ? यानि ये तो सही और गलत का फैसला भी खुद नहीं कर पा रहे है और समझ पा रहे है तो दूसरों को सही और गलत क्या बताएँगे ? दरअसल इनकी समझ ही गलत है कि ये हर चीज़ को सही मान लेते है !
इन्ही हिज्बी कि एक मिसाल ओसामा बिन लादेन है जिसने सबको मिला कर अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता कायम कि थी, हालांकि उनके विरुद्ध दूसरे मुस्लिम पार्टी वाले भी मुस्लिम कहलाते थे जैसे गुलुब्दीन हिकमतयार आदि चूँकि दोनों का मकसद सत्ता प्राप्ति था तो ये दो मुसलमान गुट भी आपस में लड़े और जो जीता उसने सत्ता प्राप्त कर ली !
इन्होने कुरआन का तर्जुमा अपने अनुसार किया और फिर क्या क्या हुआ सब जानते है ! लेकिन कुल मिलाकर बात ये रही कि इन हिज्बियो और फिरका परस्तो कि वजह से इस्लाम तो बदनाम हुआ ही, कुरआन कि तालीम को भी बदनाम किया गया और कुरआन के खिलाफ भी लोगो ने क्या कुछ नहीं नहीं किया ? और सब से जयादा मुस्लिमो कि इमेज को नुक्सान पहुंचा जिसके कारण ये जुमले आम हुए कि हर मुसलमान आतंवादी नहीं होता लेकिन हर आतंकवादी मुसलमान होता है ?
जमाल साहब भी यहाँ यही कह रहे है जोड़ो और राज करो !
अब इस जोड़ो और राज करो में होगा क्या ?
कि लोग अपनी अपनी विचारधारा पर पर मजबूती से कायम रहते हुए समाज के लिए कुछ भला करने और इन्साफ कायम करने कि जो बाते पार्टी या ग्रुप बनाते वक्त करते थे वो कहीं इधर उधर गुम हो जाती है, और फिर सिर्फ चापलूस, नीच, मौका परस्त लोगो कि भीड़ जमा हो कर राज करने लगती है फिर कुछ हो जाता है तो अभिषेक जैसे लोग ही सबसे पहेले सरकार को गालियाँ निकालते है वहाँ बस नहीं चलता तो ये फिर किसी धर्म के ऊपर अपनी भडास निकालते हुए ये जुमले कहते है “ कि हर मुसलमान आतंवादी नहीं होता लेकिन हर आतंकवादी मुसलमान होता है ? “
अगर व्यक्ति अपनी विचारधारा पर अडिग रहे जैसे मुहम्मद सल्लाहू अलेहे वसल्लम रहे, जिनको साम दाम दंड भेद आदि कि नीतियों से कोई डिगा न सका तो फिर तब ही केवल सच्चे और अच्छे लोग का वर्चस्व कायम हो पाता है और वो ही शासन संभालते है और देश दुनिया में इन्साफ कायम कर पाते है !
जमाल जब तुम जानते हो कि बुरी बातें हमें बाँटती हैं तो क्यों करते हो बेवकूफी? किस हिन्दु ने तुमसे कहा कि अपनी बेटी के साथ कुकर्म करने वाले को मैं भगवान मानता हूँ? फिर क्यों यह गंदगी जबरजस्ती फैला रहे हो?
गम्दगी फैलाओगे तो कोई भी तुमको बुरा भला कहेगा। मैने जो कहा धर्मग्रन्थों के विषय मे उसको समझो पहले फिर टिप्पणी करो - मैने कहा कि आज के समय मे यह इंसान को प्रेरित नही कर पा रही है संमार्ग पर चलने के लिए। जैसे तुमको ही ले लें, तुम हिन्दु धर्म की अच्छाई पर लिखने की बजाए, मालूम नही कहाँ कहाँ से अलिफ लैला की कहानियाँ ले आते हो फिर उसे सही साबित करने के लिए थोथे तर्क देते हो और बुरा भला सुनते हो, इससे बचो। दूसरों का अच्छा देखो, उसके बारे मे ही बात करो। तभी वो तुम्हारे पास आएगा। नही तो तुम यह फालतु की बाते करते रहो और मैं तुमसे ओसामा के कृत्यों का हिसाब लेता रहुँगा। अगर मंजूर है तो मुझे कोई दिक्कत नही , मैं बहस से कभी भागने वाला नही।
यह बहुत अच्छी बात है कि तुम हजरत मुहम्मद साहब के साथ साथ दूसरे महापुरुषों के विषय मे जो अफवाह हैं उनका विरोध करते हो, पर जिस प्रकार मुहम्मद पर जो अफवाह हैं उनका जिक्र किए बिना करते हो वैसा ही तनिक दूसरे महापुरुषों के विषय मे किया करो, अन्यथा अर्थ गलत ही निकलेगा।
रही बात मक्का मे मंदिर की और मेरे जाने की तो सिर्फ तुम्हारे जानकारी के लिये, मेरे साथ कई सहकर्मी सउदी अरब मे काम कर चुके हैं, मैं भी ओमान और कतर मे रह चुका हूं अतः यह भली प्रकार जानता हूं` कि अरब देशों मे residence permit पर एक चिन्ह रहता है, मुस्लिम और गैर मुस्लिम मे भेद करने के लिए, मक्का कि परिधि मे घुसने के पहले, धर्मिक पुलिस हमारा residence permit देखती है और गैर मुस्लिम को उस क्षेत्र मे जाने की अनुमति नही है। तो यह गलत बयानी मेरे साथ नही चलेगी।
रही बात आइना की, तो मैं इतना ही कहना चाहुंगा कि सफाई करने की कोशिश करते करते, जमाल तुम खुद बहुत गन्दे हो गए हो, तो मै एक अच्छे इंसान की भांति तुम्हारे भले के लिए ही वो आइना लाता हूं, अगर कुछ लाभ ले सको तो ले लो नही तो अल्लाह गन्दे लोगो को अपने साथ नही ले जाता जन्नत, ऐसा तुम लोग ही कहते हो।
मेरी उपरोक्त टिप्पड़ी @servant of allah के सन्दर्भ में है. रविन्द्र जी की बात विचारणीय है .रविन्द्र जी , कभी कभी जमाल जी सही बात भी कहते है तो उस का समर्थन भी करना चाहिए
सही बात का कोई विरोध नही है। मैं भी एकता का समर्थक हूँ।
@ रविन्द्र जी !
@ अभिषेक जी !
जमाल साहब के एकता के कथन का जीवंत उधारण यहाँ पढ़ें
अच्छी पोस्ट हे
@ जनाब डाक्टर साहब ! ‘अल्लाह के सेवक‘ को आपके दिए गए जवाब माकूल हैं लेकिन आपका उनसे नाराज़गी जताना या शिकायत करना दुरूस्त नहीं है क्योंकि हिन्दुस्तान में रहने वाले सभी हिन्दू और मुसलमान दोनों ही एक दूसरे के मज़हबी अक़ीदों और रस्मो-रिवाज के बारे में आप जैसी गहरी जानकारी नहीं रखते। एक दूसरे के बारे में तो क्या खुद अपने ही अक़ीदों और रिवाजों के बारे में जानने वाले कम लोग हैं। ज़्यादातर लोग एक ख़ास माहौल में पलते हैं और अपने चारों तरफ़ जो कुछ होता हुआ पाते हैं उसी को सच्चाई की कसौटी मानकर हर चीज़ को उस पर परखते हैं। हरेक का ज़हन बचपन से मिले हुए हालात के सांचे में ढला हुआ है। ‘इरफ़ान‘ उसी को मिलता है जो इस सांचे को तोड़कर सच्चाई को उसी रूप में देख पाता है जैसी कि वह हक़ीक़त में होती है।
‘अल्लाह के सेवक‘ ने भी आपकी बातों में कुछ ऐसी बातें पाईं जो उन्होंने अपने दीनी माहौल में कभी सुनी ही नहीं तो उनका झिझकना और आपसे छिटकना दोनों ही फ़ितरी हैं। आप उन्हें अपनी बात बताएं लेकिन कोई ऐसी बात न कहें जिससे उनकी तबियत को गरानी हो, तकलीफ़ हो।
इसके बाद मैं यह कहना चाहूंगा कि आपके लेखों को ‘वन्दे ईश्वरम्‘ में हमेशा ही मरकज़ी हैसियत दी गई है तब भी आपने अपने ब्लॉग पर उसका लिंक आज तक नहीं लगाया, क्यों ? जबकि इस बार तो ‘भ्रूण रक्षा विशेषांक‘ के तहत अनम बेटी से मुताल्लिक़ आर्टिकल्स भी हैं। तब भी यह रिसाला आपकी तवज्जो का मरकज़ न बन सका, क्यों ?
जिन साहिबान को ‘वन्दे ईश्वरम‘ पढ़ने की तमन्ना हो वे साहिबान अपने नाम मेरे ब्लॉग पर लिखा दें या फिर ईमेल कर दें-
धन्यवाद !
जानिए मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र जी के बारे में
@ ऐ सर्वेन्ट आफ़ अल्लाह ! अगर आपने मेरा लेख ग़ौर से पढ़ा होता और उसे समझ लिया होता तो आपको न तो कोई ग़लतफ़हमी पैदा होती और न ही मुझसे मेरा अक़ीदा पूछने की ज़रूरत ही पेश आती। मेरा अक़ीदा मेरी तहरीरों में साफ़ झलकता है। मैंने साफ़ लिखा है कि राजा दशरथ के बेटे श्री रामचन्द्र जी ने दूसरे राजकुमारों की तरह वसिष्ठ को गुरू बनाकर ज्ञान प्राप्त किया और अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए बहुत से लोगों की मदद भी ली, इससे पता चलता है कि वे सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान नहीं थे। वे जीवन भर खुद नियमित रूप से संध्या-उपासना करते रहे। इससे पता चलता है कि वे उपासक थे, उपासनीय नहीं थे।
मालिक के गुणों पर रखे जाते हैं उसके बन्दों के नाम
मैं इतना साफ़-साफ़ कह रहा हूं और आप फिर भी पूछ रहे हैं कि मुहम्मद और मूसा वग़ैरह नाम भी अच्छे हैं तो ये नाम मालिक के क्यों नहीं हो सकते ?
आपको पता होना चाहिए कि बन्दों के नाम मालिक के नहीं होते जबकि मालिक के सिफ़ाती नाम बन्दों के हो सकते हैं। जैसे ‘रहीम‘ अल्लाह का एक सिफ़ाती नाम है।(कुरआन, 1, 2) और अल्लाह ने हज़रत मुहम्मद स. को भी ‘रहीम‘ कहा है।(कुरआन, 9, 128) एक ही नाम होने के बावजूद आपको कभी कन्फ़्यूज़न नहीं होता क्योंकि आप अपनी परंपराओं को जानते हैं लेकिन राम और रामचन्द्र में नामों का अन्तर होने के बावजूद भी आप भ्रम के शिकार हो गए क्योंकि वैदिक साहित्य और परंपराओं की जानकारी आपको कम है।
रामचन्द्र जी ईश्वर नहीं हैं, राम नहीं हैं
राम उस मालिक का एक सिफ़ाती अर्थात सगुण नाम है जो न कभी पैदा होता है और न ही कभी उसे मौत आती है। वह सब कुछ जानता है और हर चीज़ उसके अधीन है। हर चीज़ को उसी ने रचा है, श्री रामचन्द्र जी को भी। रामचन्द्र जी त्रेतायुग में अयोध्या में पैदा हुए, ज्ञान पाया, कर्तव्य निभाया और सरयू नदी में जल-समाधि ले ली। श्री रामचन्द्र जी देशकाल में अर्थात ज़मान-ओ-मकान में बंधे थे जबकि ‘राम‘ हरेक ज़मान-ओ-मकान से, देशकाल के बंधन से मुक्त है। वह मनुष्य की बुद्धि से, उसके चिंतन से, उसकी कल्पना से, उसकी उपमा से परे है, वराउलवरा है, इसी गुण को प्रकट करने के लिए संस्कृत में उसे परब्रह्म कहते हैं। जो ‘तत्व‘ को जानता है वह इस तथ्य को भी जानता है।
राम नाम बनेगा भारतीय जाति के ‘एकत्व‘ का आधार
सामान्य जनता दशरथपुत्र श्री रामचन्द्र जी को ही ‘राम‘ कहती है तो यह उसकी ग़लती है, इसे उनके पंडित-आचार्यों को सुधारना चाहिए लेकिन यह देखकर दुख होता है कि हिन्दू जनता में इस ग़लती को उन्होंने ही रिवाज दिया है और वे इसे आज भी बनाए रखना चाहते हैं। अपने लेख में मैंने यही कहा है कि अगर ‘पालनहार राम‘ के सच्चे स्वरूप को सामने लाया जाए तो मुसलमान जान लेगा कि वह उसी को रहीम कहता है और तब हिन्दू और मुसलमान दो नहीं रह जाएंगे और भारतीय जाति अपने ‘एकत्व‘ को जान लेगी और दुनिया को शांति और कल्याण का सत्य सनातन मार्ग दिखाएगी जो कि सीधा और सहज है।
@ ऐ सर्वेन्ट आफ़ अल्लाह !
इस्लाम में फ़िरक़े कैसे बनते हैं ?
जब इन्सान दीन में नई बातें बतौर दीन के दाखि़ल कर देता है तब भी फिरक़े बनते हैं और जब इन्सान फ़िक्र-ओ-तदब्बुर छोड़कर हठधर्मी करने लगता है तब भी फ़िरक़े बनते हैं। आपने देवबन्द और बरेली को दुकानों से तश्बीह दी है और खुद बताया नहीं कि दीन की सही फ़िक्र आप किस मसलक से ले रहे हैं ? आप क्यों छिपा गए भाई ?
आप जिसे सही मानते हैं उसका नाम आपको बताना चाहिए था या फिर इस विषय को न ही छेड़ते। नजात का हक़दार वह है जो नबी स. और उनके सहाबा रजि. के तरीके़ पर चले क्योंकि वे उस रास्ते पर चले जो मालिक ने उन्हें बताया और उनसे पहले भी हरेक नबी-सत्पुरूष इसी रास्ते पर चला, चाहे वह किसी भी देशकाल में आ चुका हो, और उसकी भाषा कुछ भी रही हो।
फ़िरक़ापरस्ती से समाज की तबाही
यह बात मैं पहले भी कई बार लिख चुका हूं। एक साफ़-सुथरे लेख को न समझ पाना और लेखक से बदगुमानियां ज़ाहिर करना, करोड़ों लोगों पर मुश्तमिल देवबंद-बरेली फ़िक्र पर ही संदेह प्रकट करना नबी स. और सहाबा रज़ि. का तरीक़ा नहीं है। हां, आपको उनमें जो बात ग़लत लगे उस पर टोकना आप पर वाजिब है, आप का फ़र्ज़ है। विकार हरेक समाज में आते हैं। अगर उन्हें समय रहते दूर न किया जाए तो वे समाज को तबाह कर देते हैं। फ़िरक़ापरस्ती भी एक विकार है। इसका ख़ात्मा भी ज़रूरी है क्योंकि जहां फ़िरक़ापरस्ती होती है वहां दीन नहीं होता।
अनुवाद में हिकमत
आपने लिखा है कि ‘दीन‘ और ‘धर्म‘ में बहुत फ़र्क़ है मैं कहता हूं कि ‘सलात‘ और ‘नमाज़‘ में तो उससे भी ज़्यादा है। मौलाना मुहम्मद जूनागढ़ी साहब ने ‘सलात‘ का अनुवाद उर्दू में ‘नमाज़‘ किया है।(कुरआन, 2, 3) आपने उन पर ऐतराज़ नहीं किया तो मुझ पर क्यों कर रहे हैं भाई ?
बदगुमानियों से बचें
बस मुझे आपसे यही शिकायत है। ऐतराज़ करें तो सब पर करें जहां भी वही एक बात मिले और अगर किसी एक आलिम की हिकमत को आप समझ रहे हैं तो दूसरी जगह भी हिकमत को समझ लीजिए या कम से कम उनके बारे में भला गुमान ही रख लीजिए। दीन में इस्लाही के लिए इल्ज़ामतराशी और बदगुमानियों से बचने की ताकीद भी तो आई है। ज़रा यही देख लिया होता कि आपके अलावा भी यहां दूसरे कई मुसलमान मौजूद हैं, इस्लामी शिआर जिनके चेहरे से अयां है वे भी मेरे लिखे को सराह रहे हैं।
सभी आदमियों की सारी बातें ग़लत नहीं होतीं
‘मैंने कभी नहीं कहा कि हरेक आदमी की हर बात सही होती है‘ फिर आप ऐसा इल्ज़ाम मुझ पर क्यों लगा रहे हैं, जबकि खुद आपकी बातों में ही मैं ग़लतियां देख-दिखा रहा हूं। आपको रविन्द्र जी की नाराज़गी तो नज़र आ ही रही होगी। अगर मैं उनकी सारी बातों को सही कहता तो वे मुझसे क्यों नाराज़ होते भला ?
उम्मीद है कि हक़ बात आप पर स्पष्ट हो चुकी होगी। वस्सलाम, वल्लाहु अअ़लम।
@ मेरे प्यारे भाई अभिषेक जी । क्यों कोरा झूठ बोलते हैं आप कि मैं गीता को झूठा बताता हूं। मैं गीता को सच्चा मानता हूं इसीलिए मैंने गीता का हवाला नमाज़ के सन्दर्भ में भी दिया है।
गीता में क्षेपक अर्थात मिलावट है, ऐसा ब्राह्मण बताते हैं और मैं उनसे अपनी सहमति ज़ाहिर करता हूं। क्षेपक मानने से पूरे ग्रंथ का झूठा होना लाज़िम नहीं आता। यह बात तो आपको समझनी चाहिए।
ख़ैर कोई बात नहीं, आपको मेरा लेख पसंद आने लगा है। यह एक अच्छी बात है। हम तो पहले ही कहते थे कि दूरियां न भी मिटें तो भी कुछ कम तो ज़रूर ही हो जाएंगी। हालांकि दूरियां भ्रम और नफ़रतें बेबुनियाद हैं।
@ जनाब हकीम साहब ! आपकी नसीहत दुरूस्त और शिकायत वाजिब है। मैं आपकी शिकायत दूर करने की कोशिश करूंगा और आपकी नसीहत पर अमल करने की भी भरपूर कोशिश करूंगा, इन्शा अल्लाह।
बारकल्लाहु लना व लकुम।
वस्सलाम ।
@ मान जी ! धन्यवाद !
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आदरणीय , भाई अनवर जमाल,
एक माँ को अपने सभी बच्चे सामान रूप से प्यारे होते हैं। राम हो या रहीम, भारत माता के लिए के लिए दोनों सपूत प्यारे हैं । मंदिर मस्जिद दोनों नहीं चाहिए। पढ़े-लिखे शान्ति पसंद भारतीयों को , चाहे वो हिन्दू हों या मुस्लिम, उन्हें मंदिर बने या मस्जिद, दोनों से कोई फरक नहीं पड़ता।
धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर भ्रष्ट एवं स्वार्थी नेता , राजनीति की रोटियाँ सेंक रहे हैं। और नादान लोग उन्हें सेंकने भी दे रहे हैं। झगडे दंगे होंगे तो गरीबों का नुक्सान होगा। उनका कोई नहीं सोचने वाला।
क्या संवेदनशीलता इतनी मर गयी है लोगों में ? मानवता के बारे में न सोचकर , लोग मंदिर और मस्जिद की आस लगाए बैठे हैं।
शर्म आनी चाहिए हमें। धिक्कार है हम भारत वासियों पर। ये भी नहीं सोचा की वो न्यायाधीश भी एक इंसान ही है जिस पर दोधारी तलवार लटक रही है। ये भी नहीं सोचा की इस फैसले से हमारे देश में कामनवेल्थ गेम पर क्या असर होगा ? मुफ्त में निर्दोष जनता मारी जायेगी। बड़े-बड़े बहादुर लोग सिर्फ तमाशा देखेंगे।
अरे हमें तो फख्र होना चाहिए की हम , एक धर्म-निरपेक्ष देश के नागरिक हैं। आम जनता को इनकार कर देना चाहिए किसी मंदिर या मस्जिद से। नहीं चाहिए कुछ भी ऐसा जो हमारे देश की आधी आबादी को दुखी करे।
हमें एक ऐसे फैसले का इंतज़ार है , जिसमें लिखा हो की हिन्दू-मुस्लिम [ दोनों भाई ] , एक ही कतार में लगकर उस पवित्र स्थल पर साथ ही पूजा करें। जो अपने आप में एक मिसाल हो ।
भाई अनवर जमाल, यदि मैं आपकी बहिन हूँ और आप मेरे भाई, तो फिर हमारी और आपकी ख़ुशी अलग-अलग कैसे हो सकती है ?
हिन्दू मुस्लिम भाई भाई।
भारत की एकता अखंड रहे।
वन्देमातरम !
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इस कमेन्ट को अपनी निम्नलिखित पोस्ट पर भी लगा रही हूँ।
http://zealzen.blogspot.com/2010/09/blog-post_19.html
ठुमक चलत रामचंद्र , बाजत पैजनिया --रामकोट-अयोध्या -- और मेरा बचपन !
आभार।
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बेशक आप मेरी बहन हैं और मैं आपका भाई हूँ और हमारी खुशियाँ अलग नहीं हो सकतीं . हमें बेहतर कल के लिए मजबूत बुनियादों पर मालिक के हुक्म से इंसानियत के लिए जीना ही होगा , साथ साथ . आपका आना सदा ही अच्छा लगता है , शुक्रगुज़ार हूँ आपका .
जमाल जी ,रविन्द्र जी ने कई खाड़ी के देशो में कार्य किया है .वे सिर्फ जमा जबान खर्ची नही करते है बल्कि निकट से जो सत्य देखा है वही बताया है उन्होंने .अगर आप वास्तव में धर्म चर्चा कर रहे है तो फिर सब को अपनी बात रखने का अधिकार है .
आप अपना विरोध अपनी तर्कपूर्ण बातो से करे .किसी को मना करना तो पराजय का संकेत है
खैर मुद्दा ये है की आप कहते है सिर्फ निराकार ईश्वर की पूजा करनी चाहिए .और किसी की नही .
आप ने कृष्ण जी के लिए कहा ,मैंने सिद्ध किया वे ईश्वर थे ,अब आप ने राम के लिए कहा ,ऐसे आप कहते रहेंगे और मैं तर्क -वितर्क होता रहेगा .क्यों आप अपने हर पोस्ट पर निराकार की अवधारणा और साकार का विरोध करते है .
अगर आप अपनी अवधारणा स्पस्ट करे और मैं और वे सभी जो अपनी बात रखना चाहते है साकार ईश्वर की अवधारणा में वे अपनी बात रक्खे . सारी बाते स्पष्ट हो जाएँगी
अयोध्या में अब राम मंदिर बने या मस्जिद, कोई फर्क नहीं पड़ता. किस राम को हिन्दू मानता है यह उसका जाती मसला है, वो खुद ही हल भी कर लेंगे. हम को पहले अपने घर में सुधार की आवश्यकता है, दूसरों के धर्म के मसले में सुधारवादी बन ना , हमको शोभा नहीं देता.
@ S.M.MAsum
जनाब आपने भी एक ही भारत में दो कौम मान लीं. हिन्दुओं को अम्र बिल मारुफ़ व नही अनिल मुनकर न किया जाये, इसके हक़ में कुरआन और सिरत से प्रमाण कीजिये वरना इसे वसवसा और फ़लसफ़ा माना जायेगा।
@ abhishek1502
जो मर जाये वे ईश्वर नही होता श्री राम चन्द्र जी और श्री कृषण जी दोनों की मौत नें बता दिया है कि वे ईश्वर नहीं हैं, और जो भ्रम का शिकार होना चाहे तो उसे कोई सिखाए तो कैसे सिखाए?
एक ईश्वर से हटने के बाद नये नये पूज्य बनते चले जाते हैं फिर इसका कहीं अंत नहीं होता। आज कल शिरडी के साईं बाबा कि पूजा ज़ोरों पर है मानने वाले उन्हें भी ईश्वर कहते हैं, लेकिन क्या वास्तव में वे ईश्वर हैं ?
ये बाते आपने कही है
मालिक के गुणों पर रखे जाते हैं उसके बन्दों के नाम
मैं इतना साफ़-साफ़ कह रहा हूं और आप फिर भी पूछ रहे हैं कि मुहम्मद और मूसा वग़ैरह नाम भी अच्छे हैं तो ये नाम मालिक के क्यों नहीं हो सकते ?
आपको पता होना चाहिए कि बन्दों के नाम मालिक के नहीं होते जबकि मालिक के सिफ़ाती नाम बन्दों के हो सकते हैं। जैसे ‘रहीम‘ अल्लाह का एक सिफ़ाती नाम है।(कुरआन, 1, 2) और अल्लाह ने हज़रत मुहम्मद स. को भी ‘रहीम‘ कहा है।(कुरआन, 9, 128) एक ही नाम होने के बावजूद आपको कभी कन्फ़्यूज़न नहीं होता क्योंकि आप अपनी परंपराओं को जानते हैं लेकिन राम और रामचन्द्र में नामों का अन्तर होने के बावजूद भी आप भ्रम के शिकार हो गए क्योंकि वैदिक साहित्य और परंपराओं की जानकारी आपको कम है।
रामचन्द्र जी ईश्वर नहीं हैं, राम नहीं हैं
राम उस मालिक का एक सिफ़ाती अर्थात सगुण नाम है जो न कभी पैदा होता है और न ही कभी उसे मौत आती है। वह सब कुछ जानता है और हर चीज़ उसके अधीन है। हर चीज़ को उसी ने रचा है,
मेरा तो सिर्फ ये सवाल है कि रहीम नाम किसने रखा अल्लाह का ? क्या अल्लाह ने आपको बताया ? क्या आपके ऊपर कोई फरिश्ता आया ? कोई वहि आई ? कोई इलहाम ? कोई खवाब ? फिर आपने रहीम नाम को अल्लाह का नाम कैसे ठराया ?
जवाब मै ही देता और वो एक ही है कि अल्ल्लाह ने ही फरिश्ता भेजा, वहि नाजिल कि, खवाब भी दिखया लेकिन वो मुहम्मद सलल्लाहू अलेहे वसल्लम को और उनकी बात को सच मानकर आपने और हमने ये माना कि अल्लाह का एक नाम रहीम भी है !
सहीह हदीस है मुहम्मद सलल्लाहू अलेहे वसल्लम ने फरमाया अल्लाह के निनयान्वे ९९ नाम है ! और वो नाम बड़े बड़े मुफ्फ्सिर, मुहद्दिस कुरा और हदीस में तलाशते रहे ! न उन्होंने कभी इंजील कि तरफ रुख किया न तौरात कि तरफ न वेदों कि तरफ !
तो फिर आप हदे कैसे पार कर गए ?
@ अनवर जमाल
आपसे जो सवाल हुए वो आप गोल मोल कर गए !
मेरा अकीदा आपने पूछा है तो मै बता देता हूँ, बताईये किस बारे मै आपको मेरा अकीदा जानना है ! क्योकि आपके जवाब से ये साबित हुआ कि आपको तो अकीदा क्या होता है यही नहीं पता !
बात आपने शुरू कि थी सो मैंने आस सवाल किया और उसके दलील वो बाते आसान लफ्जो में रखी कि शायद आप और दूसरे लोग समझे कि आपकी हैसीयत और आपकी बातो कि अहमियत मुस्लिम समाज में क्या है ! कही ऐसा न हो कि कोई आपकी बात को कोई सौ पर्तिशत सही मानकर उस पर अमल करने लगे !
आज सही और गलत कोई मायेने नहीं रखता बस लोगो कि पसंदीदा बात होनी चाहिए, लोगो ने कुछ किताबे पड़ी और उन किताबो कि तहकीक भी करना जरूरी नहीं समझा कि फलां मौलाना या आलिम कि किताब में कौन सी बात सही है कौन सी गलत, बस हवाला देना काफी हुआ, जैसे कि वो मौलाना या उलेमा पर वहि नाजिल हुए हो ?
कुछ मुसलमान नाम वाले आके आपके लेख कि तारीफ करे बस आपका यही मकसद भर है शायद, सो आपने सोचा मै भी आपकी हर बात में हाँ में हाँ मिला दूंगा, मेरे नजदीक जो भी गलत आया या मैंने पाया मैंने उसको गलत ही कहा है,
कई लोग है आज भी जो इसी पर काम कर रहे है कि फिरका परस्त को खत्म किया जाए और जो गलत तर्जुमा या गलत बातें जिस किसी कि कही गयी उसके बारे में लोगो को बता रहे है चाहे वो तर्जुमा अशरफ अली थानवी का हो. मौलना मौदिदी का हो, या कोई और जुनागड्ड वाले हो या चुना भट्टी वाले हो, ये अलग बात है कि आपने कभी उन लोगो कि तरफ तवज्जो नहीं दी या आके इल्म नहीं आई,
वो जब सच बयान करते है तो कई लोगो को तकलीफ शुरू होती है क्योकि वो सच होता है, आप कि तरह चिकिनी चुपड़ी बाते नहीं करते,
न ही मुझे ऐसी बाते करनी आती है ! ये तो कई आलिम बयान कर चुके है कि देवबंद और बरेलवी के अकीदा कुफ्र और शिर्क वाले है और इसके लिए देवबंद और बरेलवी के उलेमा को खुला चैलेन्ज दिया जा चूका है कि वो साबित करे कि उनके अकीदा कुफ और शिर्क वाले नहीं है !
चूँकि आज आम मुसलमानों को न तो अरबी का इल्म है, न कुरआन हदीस का इल्म, न ही उन्होंने सीखने कि जरूरत समझी, बस किसी कि तकलीद अंधी पैरवी करना दीन समझा तो वो क्या समझ पायेगा कि अकीदा क्या है ? और कौन सा आलिम, उलेमा सही है और कौन सा गलत, कौन से मदरसा का अकीदा क्या है ? मुमकिन है जिसे वो इस्लाम समझ कर अमल कर रहे हो वो कुफ्र हो हो या शिर्क हो ?
ये वो दौर नहीं है कि खलीफा भी अगर कोई गलत बात कहता या गलती से उसके मुंह से कोई बात कुरान सुन्नत के खिलाफ निकल जाती तो आम मुसलमान भी इतना इल्म रखता था और उसे ये हक था कि खलीफा कि इस्लाह कर देता था ! आज किसी आलिम को या उलेमा को आम मुस्लिम कुछ कहे तो वो ऐसे भड़क जाता है जैसे गर्म तवे पर बिठा दिया हो ?
पड़ना लिखना अलग बात है और समझ कर अम्ल कर लेना अलग, इंसान सही इल्म पाकर अमल करना शुरू करे तो कबीले कबूल है वर्ना तो हजारों लाखो, करोडो लोग मस्जिदों से लेकर हरम कि दरों दीवार पर सर पटकते फिरते है लेकिन हिदायत नहीं मिलती !
अल्लाह जिसे चाहता है हिदायत देता है और जिसे चाहता है गुमराह करता है और अल्ल्लाह हिदायत भी उसे ही देता है जो हिदयात कि तमन्ना करता है, हिदायत के लिए जद्दोजहद करता है !
दीन में हर नयी बात इजाद करना बिद्दत है, हर बिद्दत गुमराही है, और हर गुमराही जहन्नुम में ले जाने वाली है ! ये तो तकरीबन हर जुमे में हर मस्जिद में खुत्बे में बयान होता ही है ! मुहम्मद सल्लाहू अलेहे वसल्लम ने अपने आखरी कुतबे में फरमाया और लोगो से गवाही ली थी कि क्या मैंने तुम लोगो तक पूरा दीन पहुंचा दिया ? उस वक्त मौजूद लोगो ने गवाही दी थी हाँ आप ने अपना नबूवत का हक अदा कर दिया और हर वो बात जो अल्लाह ने आपको सिखाई हम तक पहुंचा दी ! अब अगर कोई ये कहे कि मुहम्मद सल्लाहू अलेहे वसल्लम ने राम नाम नहीं सिखाया था तो मै सिखा देता हूँ तो फिर उस शख्स ने मुहम्मद सल्लाहू अलेहे वसल्लम पर तोहमत लगाईं कि नाजुबिल्लाह उन्होंने पूरा दीन नहीं पहुँचाया ! और इस बात को और उस वक्त मौजूद सहाबा कि गवाहियो को झुटला दिया कि आपने पूरा दीन पहुंचा दिया !
अब मेरे कहने से तो शायद आपको तकलीफ होती तो फिर आप खुद ही अपना जायजा ले कि आपने क्या कोई नयी बात इजाद करके मुहम्मद सल्लाहू अलेहे वसल्लम पर तोहमत लगाईं या नहीं ? सहाबा कि गवाहियो को झुटलाया या नहीं ?
वैसे तो मेरी शिकायत उन आम मुसलमानों से लेकर दीन के अलीम और उलेमा से भी रही कि जब कोई मुहम्मद सल्लाहू अलेहे वसल्लम कि तस्वीर बना देते है तो हंगामा होता है, कुरआन कि बेहुरमती करने वाले के खिलाफ धमकिय दी जाती है लेकिन ऐसो लोगो कि बातो को आँख बंद करके तसलीम कर लिया जाता है जो अपनी जाहिलियत के जरिये सरेआम बेहूदा बकवास करते है ! क्या सिर्फ इसलिए कि उनके नाम मुसलमान जैसे है ?
जिस तरह मेरे सवालों को गोल मोल कर गए मेरा कमेन्ट भी गुल हो गया ?????? दुबारा लिखना पड़ेगा !
एक दुकानदार दूकान खोल कर बैठा और उसने सामान सजा दिया कोई आके सामान को देख परके और भाव ताव करे तो उसपर दूकानदार उलटी सीधी बाते शुरू करे या अपनी सेल्स के गुण दिखाने लगे तो ग्राहक भी जानता है ये सिर्फ अपने सामान बेचने कि इसकी ट्रिक है बाकी सामान कि कवालीटी क्या है वो सब जान ही रहे है !
जो नहीं जान पा रहे वो तो ठगे जायेंगे ही, तो ताड़ने का कसूर उनका ही है इसके जिम्मेदार वो ही है क्यों किसी कि लच्छेदार बातो में आके वो अपना घटिया सामान को भी अपने साथ ले आये !
* गलती सुधार
जो नहीं जान पा रहे वो तो ठगे जायेंगे ही, तो ठगने का कसूर उनका ही है !
आज आम मुसलमानों को न तो अरबी का इल्म है, न कुरआन हदीस का इल्म, न ही उन्होंने सीखने कि जरूरत समझी, बस किसी कि तकलीद अंधी पैरवी करना दीन समझा तो वो क्या समझ पायेगा कि अकीदा क्या है और कौन सा आलिम, उलेमा सही है और कौन सा गलत, कौन से मदरसा का अकीदा क्या है ? मुमकिन है जिसे वो इस्लाम समझ कर अमल कर रहे हो वो कुफ्र हो हो या शिर्क हो,
आज सही और गलत कोई मायेने नहीं रखता बस लोगो कि पसंदीदा बात होनी चाहिए, लोगो ने कुछ किताबे पड़ी और उन किताबो कि तहकीक भी करना जरूरी नहीं समझा कि फलां मौलाना या आलिम कि किताब में कौन सी बात सही है कौन सी गलत, बस हवाला देना काफी हुआ, जैसे कि वो मौलाना या उलेमा पर वहि नाजिल हुए हो ?
कुछ मुसलमान नाम वाले आके आपके लेख कि तारीफ करे बस आपका यही मकसद भर है शायद, सो आपने सोचा मै भी आपकी हर बात में हाँ में हाँ मिला दूंगा, मेरे नजदीक जो भी गलत आया या मैंने पाया मैंने उसको गलत ही कहा है !
कई लोग है आज भी जो इसी पर काम कर रहे है कि फिरका परस्त को खत्म किया जाए और जो गलत तर्जुमा या गलत बातें जिस किसी कि कही गयी उसके बारे में लोगो को बता रहे है चाहे वो तर्जुमा अशरफ अली थानवी का हो. मौलना मौदिदी का हो, या कोई और जुनागड्ड वाले हो या चुना भट्टी वाले हो, ये अलग बात है कि आपने कभी उन लोगो कि तरफ तवज्जो नहीं दी या आके इल्म नहीं आई,
वो जब सच बयान करते है तो कई लोगो को तकलीफ शुरू होती है क्योकि वो सच होता है, आप कि तरह चिकिनी चुपड़ी बाते नहीं करते!
न ही मुझे ऐसी बाते करनी आती है ! ये तो कई आलिम बयान कर चुके है कि देवबंद और बरेलवी के अकीदा कुफ्र और शिर्क वाले है और इसके लिए देवबंद और बरेलवी के उलेमा को खुला चैलेन्ज दिया जा चूका है कि वो साबित करे कि उनके अकीदा कुफ और शिर्क वाले नहीं है !
लेकिन अफ़सोस ये वो दौर नहीं है कि खलीफा भी अगर कोई गलत बात कहता या गलती से उसके मुंह से कोई बात कुरान सुन्नत के खिलाफ निकल जाती तो आम मुसलमान भी इतना इल्म रखता था और उसे ये हक था कि खलीफा कि इस्लाह कर देता था ! आज किसी आलिम को या उलेमा को आम मुस्लिम कुछ कहे तो वो ऐसे भड़क जाता है जैसे गर्म तवे पर बिठा दिया हो ?
अकीदा क्या हो और उसके ऊपर अमल कैसे करवाया जाए इस कि जिम्मेदारी तो आलिमो की है, वो जैसा चाहे आम मुसलमानों को मोड दे, जैसा चाहे कुरआन हदीस को बयान कर दे, कौन रोकने वाला है ? कोई समझेगा तो रोकेगा ? जो समझते ही नहीं, जानते ही नहीं वो क्या किसी को बताएँगे ?
पड़ना लिखना अलग बात है और समझ कर अम्ल कर लेना अलग, इंसान सही इल्म पाकर अमल करना शुरू करे तो कबीले कबूल है वर्ना तो कर हजारों लाखो, करोडो लोग मस्जिदों से लेकर हरम कि दरों दीवार पर सर पटकते फिरते है लेकिन हिदायत नहीं मिलती ! अल्लाह जिसे चाहता है हिदायत देता है और जिसे चाहता है गुमराह करता है और अल्ल्लाह हिदायत भी उसे ही देता है जो हिदयात कि तमन्ना करता है, हिदायत के लिए जद्दो जहद करता है !
मेरी सही बाते भी आपको गलत नजर आती है और मेरी सही बातो को भी आप गलत साबित कर रहे है तो ये आपका नजरिया है, इसमें मै तो कुछ नहीं कर सकता कि आपकी सोच, आपका इल्म अगर सही गलत को परख न सके ! सीधी सच्ची बात में भी टेडापान पैदा कर दे ये तो लफ्फाजी का हुनर है !
अन्वेर जमाल साहब माज़रत से साथ अर्ज़ है अम्र बिल मारुफ़ और नही अनिल मुनकर, आप इस्लाम कि, अच्छी बातों को पेश कर के भी कर सकते हैं. अल्लाह एक है यह कुरआन और हदीथ के हवाले से दुनिया को बता सकते हैं. मुझे अभी तक नहीं दिखा इस पोस्ट में कुछ ऐसा , जिसको अम्र बिल मारुफ़ और नही अनिल मुनकर समझा जाए. कुछ इस्पे रौशनी डालें?
जमाल जी निराकार उपासना निश्चय ही शुद्धतम रूप है परन्तु इसका अर्थ यह नही की साकार को पूरी तरह खारिज कर दिया जाए। साकार उपासना निराकार उपासना की सीढी के रूप मे प्रयुक्त होती है, अतः इससे बैर नही किया जा सकता। रही बात कौन ईश्वर है कौन नही, तो मैं इतना कहता हूँ कि मेरा ईश्वर आपके ईश्वर से अलग नही हो सकता, अब यह तो अपनी अपनी भावना पर निर्भर करता है।
अब निराकार भी पूरी तरह से कहाँ इस पर टिक पाते हैं - जैसे काबा का मस्जिद भी एक आकार है, तो इसको ही क्यों पूज्य मानना, इसी दिशा कि तरफ क्यों, इसाईयों मे झूला, कबूतर की तस्वीर की महत्ता, यह सब इस बात को इंगित करती है कि निराकार के उच्च भाव को प्राप्त करने तक हमे एक बुत या बहाने की जरूरत पडती है जो हमको धीरे धीरे उस उच्च भाव तक पहुंचने मे मदद देता है।
सत्य यही है, स्वीकारना या न स्वीकरना व्यक्तिगत आस्था का प्रश्न है।
आप लोग अपने जवाब नई पोस्ट पर देखें .
रविन्द्र नाथ जी, इस्लाम में आकार, अल्लाह का नहीं , मिलेगा कहीं, अल्लाह से जुडी पवित्र चीज़ें, या नबी, पैग़म्बर , ही अकार हैं. मुस्लिम इन सभी अकार कि इज्ज़त करता है और इबादत सिर्फ ओ सिर्फ खुदा कि करता है..
@ S. M. MASUM
APNE THIK HI KAHA HAI..............
@ S. M. MASUM
APNE THIK HI KAHA HAI..............
ANWAR JAMAL SAHAB AAP RAM KO JANTE HI NAHI. RAM MANDIR BHI NAHI BANSAKAT. KYO? MAI BATATA HU RAM KISHKO KAHTE HAI. JISME ANANAT BRAHMAND RAMAA HAI O RAM HAI. 90% HINDU USI RAM KO MANTE HAI AUR USI RAM KA JAAP KARTE HAI. AYODHYA ME SHREE RAM CHANDRA JE KE MANDIR BANANE KI BAAT HO RAHI HAI. JO HINDU SHREE RAM CHANDRA JE KO MANTE THE O MUSLMAN BAN CHUKE HAI. JO ABHI 10% HINDU JINKE RAM CHANDRA JE HAI UNME UTNI HIMMAT HI NAHI KI BINA 90% KE SAHYAG SE RAM MANDIR BANWALE. YAD KARO JAB MULAYAM SINGH NE LASO KO SAMSHAN LE JANE KE LIYE "RAM NAM SATYA HAI" PAR PRATIBANDH LAGAYA THA TAB BJP SATTA ME AYEE THE. JITNE BEVKUF JO RAM KO NAHI JANTE THE MUSLMAN BAN GAYE.
'कहाँ क्या बना', 'क्या बनना चाहिए' जैसे सवाल उठने लगें तो जहाँ हम खड़े हैं वहाँ खड़े रहना मुश्किल हो जाएगा. समय आ गया है कि मानवीय भावना को तरजीह दी जाए.
मन आनंदमग्न हो गया आपकी पोस्ट पढ़कर !
जो राम है वही रहीम है
जो कृष्ण है वही करीम है
इसी विचार में हमारी सलामती, ख़ुशी, और तरक्की है | समय आ गया है कि हम हिन्दू-मुसलमान फूल और खुशबू की तरह रहें |
Nice post thanks for share This valuble knowledge
nice
nice
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Very Nice Post
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