सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Saturday, September 25, 2010

The mystery of Ram nam राम नाम का रहस्य और उसकी महिमा _ Anwer Jamal

राम नाम का रहस्य

मालिक ने अपने बन्दों को नेकी का सीधा रास्ता दिखाने के लिए हमेशा किसी नेक बन्दे को ही चुना। उन नेक बन्दों ने मालिक के हुक्म से लोगों को नेक बातें बताईं और खुद उन पर अमल करके दिखाया। उन्होंने सख्त तकलीफ़ें उठाईं और बड़ी कुर्बानियां दीं, लोगों के लिए मिसाल और आदर्श क़ायम किया। ऐसा हरेक क़ौम में हुआ।

वलिकुल्लि क़ौमिन हाद (अलकुरआन)
अर्थात और हरेक क़ौम के लिए एक मार्गदर्शक हुआ है।
जिस क़ौम में नबी आया, उसी क़ौम की ज़बान में उसके दिल पर मालिक का कलाम नाज़िल हुआ और उसी क़ौम की ज़बान में उसने उपदेश दिया। उनके जाने के बाद जब उनकी स्मृति को लिखा गया तो मालिक का कलाम, नबी का उपदेश, उनके हालात-इतिहास और लिखने वालों के नज़रिये सब एक जगह जमा हो गए। इंजील इसकी मिसाल है।

आज अधिकतर ईसाई हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के कलाम में बयान की गई मिसालों को हक़ीक़ी अर्थों में लेते हैं और हज़रत ईसा मसीह अ. को ‘गॉड‘ कहते हैं। जिसने सारी दुनिया को पैदा किया है उसे भी ईसाई भाई ‘गॉड‘ ही कहते हैं।
अनुवाद का उसूल 
कुरआन के आलिम जब कुरआन का अंग्रेज़ी में अनुवाद करते हैं तो अल्लाह के लिए वे ‘गॉड‘ शब्द का इस्तेमाल बेहिचक करते हैं और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में साफ़ कर देते हैं वे ‘गॉड‘ नहीं हैं बल्कि प्रौफ़ेट ऑफ़ गॉड हैं।
इसी तरह जब आलिमों ने फ़ारसी में तर्जुमा किया तो अल्लाह के लिए खुदा लफ़्ज़ इस्तेमाल किया जबकि फ़ारसी बोलने वाले ‘दो खुदा‘ मानते थे। लफ़्ज़ खुदा को लिया गया और उनसे कहा गया कि खुदा दो नहीं होते सिर्फ़ एक होता है।
‘गॉड‘ और ‘खुदा‘ अल्फ़ाज़ की मौजूदगी बताती है कि उस पैदा करने वाले मालिक के लिए हर ज़बान में अच्छे नाम मौजूद हैं और कामिल आलिमों द्वारा उनका इस्तेमाल करना उनके इस्तेमाल को जायज़ साबित करता है।
‘गॉड‘ और ‘खुदा‘ का इस्तेमाल न करना सिर्फ़ अपनी तंगनज़री और कमइल्मी को ज़ाहिर करता है।
इसी तरह हिन्दी में मालिक की खूबियां बयान करने के बारे में देखा जा सकता है कि उसका एक नाम राम है और हिन्दू भाईयों में यह आम रिवाज में है। एक मशहूर राजा हुए हैं उनका नाम मालिक के नाम पर रामचन्द्र रखा गया। लोगों ने उन्हें चाहा, ये चाहतें इतनी बढ़ीं कि कवियों ने उनकी शान में महाकाव्य रच डाले। प्रेम में उन्होंने अति की और उन्हें ईश्वर ही मशहूर कर दिया। हिन्दू ज्ञानियों में आज भी ऐसे लोग हैं जो इस सत्य को जानते हैं और जनसामान्य को समझाते भी रहते हैं लेकिन भावनाओं में जीने वाली जनता ‘तथ्यों‘ की अनदेखी सदा से करती आयी है। लोगों के ग़लत अक़ीदे की वजह से राम नाम दूषित नहीं हो जाता। जो बात ईसाईयों और पारसियों से कही गई वही बात हिन्दू भाईयों से भी कही जाएगी कि ईश्वर एक है, राम उसका एक सुंदर सगुण नाम है, कोई भी राजा ईश्वर नहीं हो सकता। राजा रामचन्द्र ईश्वर नहीं हैं। उनका जीवन इस बात का साक्षी है।
शिर्क  के  नुक्सान से  बचाने के लिएलोगों को शिर्क से, नुक्सान से बचाने के लिए पहले बरसों किसी मदरसे में पढ़कर पूरा आलिम-फ़ाज़िल होना ज़रूरी है। यह बात कुरआन-हदीस में तो कहीं आई नहीं। हां, हज़रत मुहम्मद स. ने यह ज़रूर कहा है-

बल्लिग़ू अन्नी वलौ आयह (अल-हदीस)
अर्थात मेरी तरफ़ से पहुंचाओ चाहे एक ही आयत पहुंचाओ।

इस देश में मालिक को राम कहने वाले भी मौजूद हैं और उसे रहीम कहने वाले भी। दोनों को ही मालिक से प्यार है।
नेकी की बात
एक वर्ग इबादतगाह को ‘मंदिर‘ कहता है और दूसरा ‘मस्जिद‘। मस्जिद में मालिक की इबादत उस तरीक़े से होती है जैसे कि हज़रत मुहम्मद स. ने सिखाया और मंदिर में मालिक की पूजा उस तरीक़े से नहीं होती जैसे कि हिन्दुओं में आ चुके ऋषि सिखा कर गए थे। वे ऋषियों के मार्ग से हट चुके हैं और अब दार्शनिकों और कवियों का अनुसरण कर रहे हैं। अगर हम एक बेहतर बात पर हैं तो हम अपने हिन्दू भाईयों को यह सोचकर नहीं छोड़ सकते कि पहले हम अपना घर ठीक कर लें बाद में उन्हें सही बात बताएंगे। जब हम उन्हें नेकी की बात बताएंगे तो हिन्दी-संस्कृत का इस्तेमाल लाज़िमन करना पड़ेगा और मालिक के उन नामों का भी जो कि हिन्दी-संस्कृत में आम तौर पर बोले और समझे जाते हैं। अगर उनके बारे में कोई भ्रम होगा तो उसे भी स्पष्ट कर दिया जाएगा कि बात ऐसे नहीं बल्कि ऐसे है।
सारी नेकियों की जड़ क्या है ?
सारी  नेकियों की जड़ ‘तौहीद‘ यानि ‘एकेश्वरवाद‘ है और सारी बुराईयों की जड़ ‘शिर्क‘ है यानि एक सच्चे मालिक के साथ या उसके गुणों में किसी अन्य को साझीदार ठहराना। शिर्क की वजह से मानव जाति की एकता खंडित होती है और बहुत से मत-मतांतर बनते हैं। उन सभी मतों में श्रेष्ठता और वर्चस्व की जंग छिड़ती है और टकराव में मानव जाति तबाह होती है। उनकी जंगों को देखकर लोगों में ईश्वर और धर्म से वितृष्णा और बेज़ारी फैलती है। लोग उच्च आदर्शों के बजाय अपने मन की तुच्छ वासनाओं के लिए जीने लगते हैं हर आदमी दौलत के अंबार लगा लेना चाहता है। दौलत की होड़ में आदमी अपने ही बच्चों को उनकी मां की कोख में ही मार डालने लगता है, ऐसे आदमियों से दूसरों को दया कैसे मिल सकती है ?
धर्म की स्थापना कैसे हो ?
पढ़े-लिखे लोग नास्तिक हो जाते हैं। दीन-धर्म की बातें नासमझों की बातें क़रार दे दी जाती हैं और जब वे लोग दीन-धर्म के नाम पर एक-दूसरे का खून बहाते हैं तो उससे नास्तिक लोगों के आरोप की ही पुष्टि होती है। इससे नास्तिकता के ख़ात्मे और दीन के क़ियाम यानि धर्म की स्थापना का काम एक असंभव काम बनकर रह जाता है।
आलिमों-ज्ञानियों के दरम्यान कोई झगड़ा नहीं है 
धार्मिक लोगों का आपसी टकराव समाज को तबाह और ईश्वर-अल्लाह को नाराज़ करता है। शान्ति के सामान्य नियम हमारे संविधान का हिस्सा हैं जिनका कि पालन हर हाल में किया जाना चाहिए और जिस बात पर भी विवाद हो उसे आलिमों-ज्ञानियों के लिए छोड़ देना चाहिए। उसे वे शान्ति के दायरे में सुलझा लेंगे। वस्तुतः उनके दरम्यान कोई झगड़ा है भी नहीं। झगड़ा तो राजनीति के धंधेबाज़ों ने सत्ता हथियाने के लिए खड़ा किया है। उन्होंने ‘राम‘ नाम का अवैध इस्तेमाल करके लोगों की भावनाएं भड़काईं। लोग मारे गए और उन्होंने राज किया। अब लोग भड़कते नहीं सो वे भी भड़काते नहीं। दो बार से वे केन्द्र की सत्ता से दूर हैं। सो वे भी सोच रहे हैं कि अब कैसे सत्ता हथियाई जाए, पुराने हथकंडे अब काम आ नहीं रहे हैं ?
गुनाहों से तौबा करके एक ही मालिक के हुक्म की फ़र्मांबरदारी  कीजिए
ऐसे में मुसलमान की ही यह ज़िम्मेदारी है कि वह सभी लोगों को बताए कि ज़िन्दगी मालिक ने दी है ताकि वह आज़माए। हरेक आदमी आज़माया जा रहा है। जैसा करेगा वैसा फल उसे मिलना है। हर आदमी अपने धार्मिक ग्रंथों से जुड़े, ईश्वर के गुणों को जाने और ईश्वर के सच्चे स्वरूप को पहचाने। सच की तलाश ही उसे सच तक पहुंचाएगी और लोक-परलोक के तमाम कष्टों से मुक्ति दिलाएगी। सभी नबियों ने यही कहा है और दुनिया के अंत में आखि़री नबी हज़रत मुहम्मद स. ने भी लोगों को गुनाहों से तौबा करके एक ही मालिक के हुक्म की फ़र्मांबरदारी के लिए कहा है।
पिछली पोस्ट का विषय यही था।

@ सर्वेंट ऑफ़ अल्लाह ! पहले आप यह बताईये कि क्या अल्लाह के लिए ‘गॉड‘ या ‘खुदा‘ नाम इस्तेमाल करना आपके मसलक में जायज़ हैं ? जबकि ये नाम न तो कुरआन में हैं और न ही हदीसों में हैं। बाक़ी बातें आपके इस एक जवाब में होंगी।
भलाई का हुक्म देना और बुराई से रोकना
@ वॉइस ऑफ़ पीपुल ! पिछली पोस्ट में मैंने लोगों को बताया कि सबका मालिक एक है, वह पैदा नहीं होता और न ही उसे मौत आती है। अलग-अलग ज़बानों में उसके नाम ज़रूर अलग-अलग हैं लेकिन वह एक ही है, सभी को उसी एक मालिक की पूजा-इबादत करनी चाहिए।
क्या यह बात ‘अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुन्कर‘ अर्थात भलाई का हुक्म देना और बुराई से रोकना कहलाएगी या नहीं ?.
### कमेंट अनवार अहमद साहब की तरफ़ से था।

ऋषि मार्ग ही श्रेष्ठ है
@ रविन्द्र जी ! निराकार-साकार और सगुण-निर्गुण का भेद दार्शनिकों का पैदा किया हुआ है, जिसे कवियों ने अलंकारों से सजाकर जनमानस में लोकप्रिय बना दिया। ज्ञानियों को तो केवल यह देखना है कि ऋषि किस मार्ग पर खुद चले और किस मार्ग पर चलने की प्रेरणा आजीवन वे देते रहे ?
ऋषि मार्ग ही श्रेष्ठ है, अनुकरणीय है। उनसे हटकर हर चीज़ गुमराही है और उसमें समाज की तबाही है। केवल और केवल ऋषि मार्ग ही कल्याणकारी और कष्टों से मुक्ति देने वाला है।

74 comments:

Anonymous said...

@ अनवर जमाल,

मेरे नजदीक अल्लाह को GOD या खुदा कहना जायज नहीं है !

अब आगे बात कीजिये !

अजय सिंह said...

इस्लाम में स्त्रियों को क्या दर्जा है ज्यादा बढा चढाकर लिखने से हकीकत नहीं बदल जाता है
इस लिंक को खोले और देखे साबुत सहित कि क्या और कितना महत्त्व है इस्लाम में स्त्रियों का .....
http://bharatgarv.blogspot.com/2010/09/blog-post_18.html

ABHISHEK MISHRA said...

आप को कोंस्पेक्ट ही गलत है जो एक को दो समझता है और साकार को उस की अभिव्यक्ति नही मानता है . मेरे ब्लॉग में आये और पढ़े की साकार क्या है .
jayatuhindurastra.blogspot.com/2010/09/blog-post_25.html

Ayaz ahmad said...

सर्वेँट आफ अल्लाह आप क्या मानते है ये तो बाद की बात है पहले आप अपनी पहचान बताएँ ।

Ayaz ahmad said...

अनवर भाई आपने बहुत अच्छा जवाब दिया है

Ayaz ahmad said...

अनवर भाई सर्वेँट आफ अल्लाह सिर्फ आपका विषय बदलना चाहता है और इसी मकसद से आपकी पोस्ट पर आकर कमेँट कर रहा है ।

S.M.Masoom said...

पिछली पोस्ट में मैंने लोगों को बताया कि सबका मालिक एक है, वह पैदा नहीं होता और न ही उसे मौत आती है। अलग-अलग ज़बानों में उसके नाम ज़रूर अलग-अलग हैं लेकिन वह एक ही है, सभी को उसी एक मालिक की पूजा-इबादत करनी चाहिए।
क्या यह बात ‘अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुन्कर‘

इस बात को कहने , के लिए ना अयोध्या जाने कि ज़रुरत थी और ना ही, रामचंद्र के ज़िक्र कि. आप मुस्लिम हैं, कुरान का पैग़ाम बता दें, अब जिस को जो मानना है माने. आप का फाज़ पूरा होगेया.

Unknown said...

ईश्वर अल्लाह तेरो नाम
सबको सन्मति दे भगवान

zeashan haider zaidi said...

@Servant of Allah
आपने कहा "मेरे नजदीक अल्लाह को GOD या खुदा कहना जायज नहीं है ! "
अगर ये आपका ख्याल है तो दीन में जाती ख्याल के लिए कोई जगह नहीं क्योंकि दीन आखिरी नबी रसूल अल्लाह (स.) के साथ मुकम्मल हो चुका है.
और अगर ये आपका जाती ख्याल नहीं है तो इसके लिए रसूल(स.) की किसी हदीस या कुरआन का हवाला दीजिये.

Anonymous said...

@ Dr. Ayaz Ahmad तारुफ तो मुख़्तसर उम्मत ऐ मुस्लिम का मैंने दे दिया था पिछले पोस्ट के कमेंट्स में, बाकी मुझे ये इल्म नहीं है कि यहाँ कमेंट्स देने के लिए कोई और ID प्रूफ, ड्राविंग लाइसेंस, वोटर आई डी, पासपोर्ट, बिजली का बिल, पानी का बिल, आदि के साथ किसी फॉर्म को भर कर देना होता है !

@ zeashan zaidi जब दीन में जाती ख़याल कि गुंजाइश नहीं तो अनवर जमाल के जाती ख्याल में एतराज नहीं हुआ आपको ?

हवाला तो खुद अनवर जमाल ने दे दिया कि God और खुदा शब्द कुरआन और हदीस में नहीं आया है !

S.M.Masoom said...

"दीन में जाती ख़याल कि गुंजाइश नहीं" yh qanoon sabhee muslims pe lagoo hona chaiye.

zeashan haider zaidi said...

@Servant of Allah
मुझे न आपके ख्यालों से एतराज़ है न अनवर साहब के. लेकिन चूंकि आप ही ने कहा था की हर बात के लिए रसूल (स.) की हदीस या कुरआन का सुबूत ज़रूरी है, इसलिए मैंने आपसे ये बात पूछी.
वैसे भी आपकी या अनवर साहब की बात तभी मान्य होगी जब कुरआन या हदीस से हवाला दिया जाए. वरना कोई क्यों मानेगा.

Ejaz Ul Haq said...

@ Servant of Allah !
1 आप अल्लाह के लिए GOD या ख़ुदा लफ्ज़ कहना जायज़ नहीं मानते और इसके हक़ में किसी अलीम का हवला भी नहीं देते इससे पता चलता है कि यह आपका ज़ाती नज़रिया है , जो अरब ईरान से लेकर देवबंद बरेली तक से छपी हुई कुरआन की तफ़सीरों के खिलाफ़ है इससे पता चलता है कि आप उम्मते मुस्लीमा का हिस्सा ही नहीं हैं। अगर हैं तो अपने नज़रियों के हक़ में मुस्लिम उलेमा के कथन -वचन पेश करें ।
2 'चंद किताबें पढ़कर आदमी दीन की बातें बताने लायक नहीं बन जाता' ऐसा आप का कहना है । तब आप खुद क्यों बाजाब्ता पूरे आलिम बनने से पहले ही दीन की बातें बताने क्यों आगये हैं ? आप पूरे आलिम बनकर आयें या किसी पूरे आलिम को ही साथ ले आयें वरना तो यही माना जायेगा कि जो इलज़ाम आप दूसरों पर लगा रहे हैं वे आप पर भी ख़ुद साबित है.
@ अजय सिंह !
औरत हो या मर्द इस्लाम में उसके अधिकार और कर्तव्य क्या हैं? यह जानने के लिए देखें केवल इस्लाम की अधिकृत वेब साईट।
@ abhishek1502 !
साकार को हिन्दू मान्यता तब मिली जब ऋषिओं का आभाव हो गया था, और कविओं का प्रभाव हो गया था ।ऋषिओं ने कहीं वेद आदि में मूर्ति पूजा सिखाया हो तो प्रमाण दें ।
@ S.M.Masum !
मंदिर मस्जिद मुद्दे पर हिन्दू मुसलमानों में तनाव है ऐसे में कुरआन का मानव जाती के नाम क्या पैग़ाम है? आप ही बता देते । आप दो पोस्ट पर आए और अनवर साहब पर एतराज़ किया और चले गये । पैग़ाम आपने भी नहीं बताया।

Ejaz Ul Haq said...

@ Servant of Allah !
1 आप अल्लाह के लिए GOD या ख़ुदा लफ्ज़ कहना जायज़ नहीं मानते और इसके हक़ में किसी अलीम का हवला भी नहीं देते इससे पता चलता है कि यह आपका ज़ाती नज़रिया है , जो अरब ईरान से लेकर देवबंद बरेली तक से छपी हुई कुरआन की तफ़सीरों के खिलाफ़ है इससे पता चलता है कि आप उम्मते मुस्लीमा का हिस्सा ही नहीं हैं। अगर हैं तो अपने नज़रियों के हक़ में मुस्लिम उलेमा के कथन -वचन पेश करें ।
2 'चंद किताबें पढ़कर आदमी दीन की बातें बताने लायक नहीं बन जाता' ऐसा आप का कहना है । तब आप खुद क्यों बाजाब्ता पूरे आलिम बनने से पहले ही दीन की बातें बताने क्यों आगये हैं ? आप पूरे आलिम बनकर आयें या किसी पूरे आलिम को ही साथ ले आयें वरना तो यही माना जायेगा कि जो इलज़ाम आप दूसरों पर लगा रहे हैं वे आप पर भी ख़ुद साबित है.

Ejaz Ul Haq said...

@ अजय सिंह !
औरत हो या मर्द इस्लाम में उसके अधिकार और कर्तव्य क्या हैं? यह जानने के लिए देखें केवल इस्लाम की अधिकृत वेब साईट।

Ejaz Ul Haq said...

@ abhishek1502 !
साकार को हिन्दू मान्यता तब मिली जब ऋषिओं का आभाव हो गया था, और कविओं का प्रभाव हो गया था ।ऋषिओं ने कहीं वेद आदि में मूर्ति पूजा सिखाया हो तो प्रमाण दें ।

Ejaz Ul Haq said...

@ S.M.Masum !
मंदिर मस्जिद मुद्दे पर हिन्दू मुसलमानों में तनाव है ऐसे में कुरआन का मानव जाती के नाम क्या पैग़ाम है? आप ही बता देते । आप दो पोस्ट पर आए और अनवर साहब पर एतराज़ किया और चले गये । पैग़ाम आपने भी नहीं बताया।

Anonymous said...

जिस तरह आज कल घर घर में रामचरितमानस का पाठ हो रहा है .उस तरह न हमरे मूल ग्रन्थ वेदों का पाठ क्यों नही होता
आज इस बात कोई विचार नही करता .....
सबसे पहले अन्य धर्म की बात करते है ..मुस्लिम में ये नही की कुरान के अतरिक्त कोई धार्मिक किताब नही चलती है .है पर जब भी कोई फतवा या अन्य कोई विवाद पैदा होता है अंत में एक मात्र कुरान की बात चलती है ..इस लिये वो एक जुट है
ईसाई तो बाईबल के अत्रिरित किसी की बात ही नही करते
एक हिन्दू ही एसा है जो अपने मूल को छोडकर सभी कुछ पड़ता है .सच्चाई ये है उसे कभी वेद पड़ने ही नही दिया गया
९०% तो लोग ये भी नही जानते कि उनका मूल ग्रन्थ क्या है ?
वो पड़ता क्या है सबसे नीच धर्म ग्रन्थ रामचरितमानस

एक समय तक हिन्दू मात्र वेद पड़ता था .पुरे समाज में एकता थी सब एक मानव जाति में बधे थे.कोई उचा नेचा नही था .वो एक मात्र परमात्मा की आराधना थी .....कोई अंधविश्वास नही था

फिर आया राजाओ का काल .....एक चतुर जाति ने अपने निजी लाभ के लिये राजा सहित प्रजा को वेद से दूर करना सुरु किया ...और उसकी रोजी रोटी चल निकली
समाज में अंधविश्वास आने लगा

वेद क्यों नही पढाये गए उसके कारण
लोगो में जाति बंधन नही होता ..सब एक दुसरे से जुड़े होते ..उच्च नीच नही होता ....चतुर लोग समाज में फूट नही डाल पाते ....
वेद कोई जाति बब्धन नही देता .हम सब एक होते .सबको उस परमात्मा की संतान बताता है

उस चतुर जाति ने लोगो को उस परमात्मा से दूर कर नए देवी देवताओ की पूजा का चलन सुरु किया ...ये चलन आज भी चल रहा है अब तक पता नही कितने देवताओ ,अवतारों का चलन सुरु हो चूका है

ये स्तर गिरता ही चला गया अब पेड़ पोधो,जानवरों .मरे लोगो की लाशो की पूजा तक आ पंहुचा है
अंधविश्वास ...वेद केवल परमात्मा ,प्रकति ,और मानव के रिश्ते की बात करता है .वो किसी प्रकार के चमत्कार ,वरदान,अवतार .माया का विरोध करता है

विज्ञानं स धर्मह
जो विज्ञानं पर लागू हो वही धर्म है ..बाकी अंधविश्वास है
आप होसियार हो जाते ..सब प्रकार के पाखंडो का विरोध करते ..समाज में फैले तमाम मंदिर नही होते ..उनका फ़ोकट का धंधा नही होता
हर मानव योग करता .सब स्वस्थ होते .दिमाग बहुत तेज होता.......ये उन्को बर्दाश्त नही था वो हमको हमेशा दबा,गिरा देखना चाहते है

अन्ध्विवास फ़ैलाने के लिये पुराण लिखे गए..जिसमे केवेल महा गप्प है कोई काम की बात नही है
अपने कर्मो के सहारे छोड़ भाग्य के सहारे रहने को कहा गया , समाज को किस्मत और भाग्य का पाठ पद्य गया .ताकि बैठे बैठे और बर्बाद हो जाओ ...

पुराण में कोई राजा भगवान की पूजा करता है और भगवान प्रकट होते है और मनचाहा वरदान मागने को कहते है सच तो ये है आप जो कर्म करते है वही मिलता है....

इस तरह की कहानिया सुनकर आपको बर्बाद किया गिया ..उनके पात्रो की पूजा करने के लिये मंदिर की स्थापना की गयी ..उनका काम चलता रहा .ये सब एक चतुर जाति का कमाल है .मौका है बाहर आ जाओ इन चीजो से

अवतार को प्रमुखता दी गयी ...जब राम कर्ष्णा नही थे तब भी ये धेरती थी और सफलता से चल्रेही थी ..साफ़ है और और इस सबका मालिक है

रामचरितमानस में राम के सीता खो जाने पर राम रास्ते में जानवरों से सीता का पता पूछने और रावण के दस सिर सब पड़ते है .काम की चीज कोई नही पड़ता

जाही विधि होई धर्म निर्मूला |तो सब करे वेद प्रीतिकुला||

जब धर्म नस्ट करना तो वेद के विपरीति जाना चाहिए ....

चलत कुपंथ वेद मर्ग छाडे |कपट कलेवर तन मनी भाड़े ||
जो वेद के मार्ग को छोडकर दुसरे मार्ग पर चलता है ,वो कपटी है,चरित हीन है, वो भाड़ है


रामचरित मानस में २८८ बार वेद शब्द आया है वो कभी नही पड़ते

कुछ लोग कह सकते है की वेद तो संस्कृत में है कोंन पड़ेगा .अरे साहब हिंदी में ही पद डालो तो आप का कल्याण हो जायेगा

Mahak said...

very nice post anwar ji

ABHISHEK MISHRA said...

@आलोक मोहन (फर्जी नाम ), श्री राम चरित्र मानस का अपमान करते तुम्हे शर्म नही आती . और सारे सेकुलर खामोश है .
लगता है तुने कुरान ठीक से नही पढ़ी .या औरो की तरह छाती से रट ली है .अगर मैंने कुरान के सच्चाई बताई तो बेटा मू छुपाने की जगह नही मिलेगी . दूसरो की उपदेश देने से पहले अपना गिरहबान झाक लिया कर .
आसमानी किताब में ईश्वर के आदेश की झलक देखो और खुद ही तय लो दुनिया का सबसे नीच ग्रन्थ कौन सा है .
सूरए निशा की २४ आयत देखिये
''और शौहरदार औरते मगर वह औरते जो (जिहाद में कुफ्फार से )तुम्हारे कब्जे में आ जाये हराम नही (ये) खुदा का तहरीरी हुकुम( है जो) तुम पर (फर्ज किया गया) है ''

जेहाद कर के जबरदस्ती पकड़ी गयी औरतो के साथ बलात्कार का हुकुम अल्लाह देता है जो हर मुस्लमान का फर्ज है . ये आसमानी किताब के खुदा का हुकुम है . ऐसी घटिया बात क्या ईश्वर की वाणी हो सकती है .
मुझे इस्लाम की पोल खोलने पर मजबूर मत करो . और भी बाते है अपनी सौतेली माँ और पुत्र वधु से निकाह करने वाले अल्लाह के सबसे प्यारे बन्दे के बारे में .
हिन्दू धर्म की बुराई कर ने की बजाय अपना धर्म जा कर सुधारो .

DR. ANWER JAMAL said...

@ अभिषेक जी ! मैंने आपसे पहले भी शिष्ट और मर्यादित व्यवहार की विनती की थी और आप सुधर भी गए थे लेकिन ये क्या बात हुई कि अलोक मोहन कि बात पर आप पैगम्बर साहब कि तौहीन करें ? ये आपको आखरी चेतावनी है इसके बाद आपके कमेंट्स इस ब्लॉग पर नज़र नहीं आएंगे . शायद आपसे कुछ सीखना मेरे नसीब में नहीं है , अफ़सोस .

DR. ANWER JAMAL said...

एक ही सर्वोच्च शक्ति के अनेक नाम हैं
चराचर जगत में चैतन्य रूप से व्याप्त ईश्वर की सत्ता का वर्णन ऋग्वेद में अनेक रूपों में प्राप्त होता है। कुछ वेदविशारदों ने अनेक देववाद का प्रतिपादन करके ऋग्वेद को अनेकदेववादी बना दिया है और कुछ लोग ऋग्वेद में उपलब्ध अनेक सर्वोत्कृष्ट देवताओं की कल्पना करते हैं। यह केवल ऋग्वेद का पूर्णतया अनुशीलन न करने पर होता है। वास्तव में सत्ता एक ही है, जिसका अनेक सूक्तों में अनेकधा वर्णन प्राप्त होता है।
इन्द्र, मित्र, वरूण, अग्नि, गरूत्मान, यम और मातरिश्वा आदि नामों से एक ही सत्ता का वर्णन ब्रह्मज्ञानियों द्वारा अनेक प्रकार से किया गया है-
‘‘इन्द्रं मित्रं वरूणमग्निमाहुदथो दिव्यः स सुपर्णो गरूत्मान्।
एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्त्यग्नि यमं मातरिश्वानमाहुः।।
(ऋग्वेद, मं. 10, सू. 114, मं. 5)
वेदान्त में कहा गया है कि ‘एकं ब्रह्म द्वितीयं नास्ति, नेह, ना, नास्ति किंचन‘ अर्थात् परमेश्वर एक है, उसके अतिरिक्त दूसरा नहीं।
परमेश्वर प्रकाशकों का प्रकाशक, सज्जनों की इच्छा पूर्ण करने वाला, स्वामी, विष्णु (व्यापक), बहुतों से स्तुत, नमस्करणीय, मन्त्रों का स्वामी, धनवान, ब्रह्मा (सबसे बड़ा), विविध पदार्थों का सृष्टा, तथा विभिन्न बुद्धियों में रहने वाला है, जैसा कि ऋग्वेद, 2,1,3 से पुष्ट होता है-
‘‘त्वमग्ने इन्द्रो वृषभः सत्रामसि, त्वं विष्णुरूरूगायो नमस्यः।
त्वं ब्रह्मा रयिबिद् ब्रह्मणास्पते त्वं विधर्तः सचसे पुरन्ध्या।।‘‘
अधोलिखित मंत्र में परमेश्वर को द्युलोक का रक्षक, शंकर, मरूतों के बल का आधार, अन्नदाता, तेजस्वी, वायु के माध्यम से सर्वत्रगामी, कल्याणकारी, पूषा (पोषण करने वाला), पूजा करने वाले की रक्षा करने वाला कहा गया है-
‘‘त्वमग्ने रूद्रो असुरो महोदिवस्त्वं शर्धो मारूतं पृक्ष ईशिषे।
त्वं वातैररूणैर्याति शंगयस्तवं पूषा विधतः पासि नुत्मना।।
(ऋग्वेद, मं. 2, सू. 1, मं. 6)
परमेश्वर स्तोता को धन देने वाला है, रत्न धारण करने वाला सविता (प्रेरक) देव है। वह मनुष्यों का पालन करने वाला, भजनीय, धनों का स्वामी, घर में पूजा करने वाले की रक्षा करने वाला है। इसके प्रमाण में ऋग्वेद मं. 2, सू. 1, मं. 7 से प्रस्तुत है-
‘‘त्वमग्ने द्रविणोदा अरंकृते त्वं देवः सविता रत्नधा असि।
त्वं भगो नृपते वस्व ईशिषे त्वं पायुर्दमे यस्तेऽविधत्।।
इस मन्त्र में प्रयुक्त ‘अग्नि‘ शब्द ‘अज‘ (प्रकाशित होना) + दह् (प्रकाशित होना) + नी (ले जाना) + क्विप् प्रत्यय से निष्पन्न होकर प्रकाशक परमेश्वर का अर्थ निष्पादक है। ‘नृपति‘ शब्द नृ (मनुष्य) + पा (रक्षा करना) + ‘डति‘ प्रत्यय से बन कर ‘मनुष्यों का पालक अर्थ देता है। इसी प्रकार प्रेरणार्थक ‘सु‘ धातु में तृच् प्रत्ययान्त ‘सु‘ प्रत्यय से प्रेरक अर्थ ‘सविता‘ शब्द से निष्पादित होता है।
सभी के मन में प्रविष्ट होकर जो सब के अन्तःकरण की बात जानता है, वह सत्ता ईश्वर एक ही है। इसका प्रतिपादन अथर्ववेद (10, 8, 28) में ‘एको ह देवो प्रविष्टः‘ कथन से किया गया है।
लेखक-पं. वेदप्रकाश उपाध्याय, विश्व एकता संदेश 1-15 जून 1994 से साभार, पृष्ठ 10-11

Anonymous said...

जमाल जी आपने जो भी कहा वो मेरे प्रश्न का उत्तर नही है, मैने कहा कि एक बहाना चाहिए सबको शुरुआत मे, निराकार की धारणा अति उच्च कोटि की है, सब नही उसको समझ सकते, मुस्लिम भी अपने यहाँ काबा और ७८६ के तस्वीरें सजा कर रखते हैं, और उससे प्रेरणा लेते हैं, निराकार उपासना के उच्च धरातल पर इन सबकी कोइ आवश्यकता नही होती, अगर मुस्लिम निराकार के इतने ही प्रबल पक्षधर हैं तो मस्जिद (अयोध्या मे) पर इतना बल क्यों?

DR. ANWER JAMAL said...

कहाँ कहाँ से निकलना पड़ेगा ?
@ रविन्द्र जी ! इस्लाम में ईश्वर का प्रतीक बनाना हराम है , जबकि महापुरुषों की परम्पराओं के प्रतीक बनाना जायज़ है . काबा या ७८६ ईश्वर का प्रतीक नहीं है और अयोध्या में मस्जिद बनाने की भी कोई ज़िद नहीं है , अदालत जो भी फ़ैसला देगी उसे मान लिया जायेगा .
आज आप कह रहे हैं कि अयोध्या रामचंद्र जी कि जन्मभूमि है यहाँ से हटो कल आप कहेंगे कि भारत रामचंद्र जी कि "कर्मभूमि" है यहाँ से भी निकलो और फिर कहेंगे कि सारी धरती ही मनु की है और मनु के वंशज होने से राम ही उसके अकेले मालिक है यहाँ से भी निकलो . कहाँ कहाँ से निकलना पड़ेगा ?

Anonymous said...

@abhishek ji----maine jo likha wo mere shabd nhi hai

wo sab tulsi das ne kaha
जाही विधि होई धर्म निर्मूला |तो सब करे वेद प्रीतिकुला||

jab hindu dhrm ko nast kerna ho to ved ke khilaf chalo

maine yese koi bat nhi kahi jisme ram ka apmaan ho ...

maine hindo ko sahi rah per chalne aur unki bhalai ke liye kaha hai

Anonymous said...

भाई परमात्मा साकार रूप की पूजा उसकी तरफ चलने की पहली सिड़ी है
जैसे किसी बच्चे को पहले ज्ञान देने के लिए कॉपी पर लिख लिख कर अभ्यास कराया जाता है
उसके बाद वो सब लिखने लगता है

साकार पूजा के बाद ही निराकार परमात्मा ज्ञान संभव है

DR. ANWER JAMAL said...

.यह देखो जो सुधार देगी आपका जीवन ! मौत जो कि सबसे बड़ा सच है जीवन का .

Anonymous said...

अभिषेक जी -मुझे आपसे से जायदा हिन्दुओ की चिंता है
इसलिए मै चाहता हू वो इन पाखड़ो से निकल कर उस एक परमात्मा की ओर चले
और सब एक हो ...

DR. ANWER JAMAL said...

@ Alok ji ! वेद मूर्तिपूजा का निषेध करते हैं भाई . ये परमात्मा तक नहीं बल्कि नरक तक पहुंचाती है , ऐसा वेद बताते हैं .

Anonymous said...

वैसे तो परमात्मा के बहुत से नाम है, या कहें हर नाम परमात्मा का ही है |
स्वामी दयानद ने वैसे तो लगभग ५० प्रमुख नाम बताये है
पर उनकी कलम "शिव" नाम पर आकर रुक गयी ..
इस नाम के बाद किसी नाम की जरुरत ही नही है
गौतम बुध ,कबीर ,दयानद,विव्कानन्द आदि संतो इसी नाम जपने के बाद ही ज्ञान प्राप्त हुआ
यही एक नाम आप का कल्याण कर सकता है

राम(रामेशवरम -राम के इश्वर ) और कृष्ण (गोपेश्वर -गोप के इश्वर ) ने भी इनकी आराधना के बाद ही सफलता और नाम पाया है

Anonymous said...

@anwar jamal nhi ye sahi nhi hai

@anwar jamal ji-bahut se upnish me bakayda fool jal ,rachna se pooja kerne ko kaha gaya


maine kab kaha ki ved me murti pooja kerne ko kaha gaya hai
ved koi raja rani ki kahani nhi hai

"maine jo kaha sab santo ke bato anubhuo ke aadhar per kaha hai "

mai bat ko galat tareke se mat kaho ..mujhe pasand nhi hai

Anonymous said...
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Anonymous said...

ved me narak aur swarg ke bare me bhi nhi hai

S.M.Masoom said...

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमाया कि “ दीन को नुक़्सान पहुँचाने वाले तीन लोग हैं, बे अमल आलिम, ज़ालिम व बदकार इमाम और वह जाहिल जो दीन के बारे में अपनी राय दे।”

Unknown said...
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Anonymous said...

@mr.sonu ...ishvar aap ko sasbhudhi de

Unknown said...

@mr.sonu ...ishvar aap ko sasbhudhi de

ये sasbhudhi क्या होता है भई ,एक घंटे से गूगल पर सर्च कर रहा हूँ पर मुझे तो मतलब नहीं मिला ,बेटा आलोक मोहन ,अगर तुझे लिखना नहीं आता तो क्यों बेकार में अपना और दूसरों का समय बर्बाद कर रहा है ,जा जाकर के अपनी सिलवा के आ जो फट गई है ,वरना अभिषेक ने तो थोड़ी फाड़ी है, मैं ऐसी फाडूगा की कोई दरजी भी नहीं सिल पायेगा

Ayaz ahmad said...

जो असम्भूति अर्थात प्रकृति रूप जड़ पदार्थ ( अग्नि , मिट्टी , वायु आदि ) की उपासना करते हैं , वे अज्ञान अंधकार मे प्रविष्ट होते है और जो 'सम्भूति' अर्थात इन प्रकृति पदार्थों के परिणाम स्वरूप सृष्टि ( पेड़ , पौधे , मूर्तियाँ आदि ) मे रमण करते हैं वे उससे भी अंधकार में पड़ते हैं । (यजुर्वेद : 40 : 9)
अनुवाद श्रीराम शर्मा आचार्य

Anonymous said...

@ Ejaz Ul Haq

अल्लाह ने इंसान को पैदा किया अक्ल अता की, इल्म भी सिखाया और वो इल्म सिखाया जो फरिश्तों को भी नहीं दिया था, इंसान को दुनिया में भेजने के बाद जब इंसान गुमराहियो में पड़ने लगा और अपनी नफ्स और शैतान के बहकावे में आके जो कुछ अल्लाह ने उसे अता किया था (चाहे इल्म हो या दूसरे साज सामान) में बिगाड़ पैदा करने लगा तो हिदायत के लिए अल्लाह ने नबी और रसूल भेजे,

फिर इंसान को ये हक दिया कि वो उसके पैगम्बरों को माने या न माने, उनकी बातो को माने या न माने, वो जो कहे वैसे अपने ख़याल बनाये या अपनी नफ्स, शैतान और दूसरे इल्म को अपना ख़याल बनाये,

अब जो इंसान या जिन्न सिर्फ अल्लाह के रसूल और और उसकी किताब को माने और जो कुछ उसमे बताया गया है उसे ही अपना नजरिया बनाये तो वो सही है या जो कोई अपने मर्जी भी उसमे मिलाकर नए नए नजरिये पेश करे वो सही है ?

कुरआन और हदीस में बयान बाते ही मेरा नजरिया है और इसके लिए किसी आलिम, उलेमा या जमात कि जरुरत नहीं है !

आलिम और उलेमा कि जरुरत इल्म सीखने के लिए होती है न कि उन आलिमो या उलेमा कि पैरवी करने के लिए ! पैरवी सिर्फ अल्लाह और उसके रसूल कि शर्त है ! जो कि कुरआन कि इस आयत से साबित है जो एक बार नहीं बल्कि कई सुराह: में आई है !

वा अतिउल्लाह वा अतिअर रसूल !

अगर इस को मानने से कोई मुस्लिम होने या मुहम्मद सल्लाहू अलेहे वसल्लम कि उम्मती होने से बेदखल करे तो उसकी अक्ल पर मातम करने के सिवा कोई क्या करे ?

आपके ये कमेंट्स में कही बाते मेरे लिए नया तजुर्बा नहीं है बल्कि इससे बुरे बुरे तजुर्बो से दो चार हो चुका हूँ इसलिए मुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ता अगर मेरे अगर मेरे बारे में या मेरे लिए कोई ऐसी बाते कह भी दे !

वैसे ये दौर ही ऐसा है कि जिस पर इनाम मिलना चाहिए उस पर दुत्कार मिलती है !

न काबिल और नकारा लोग जो बैठे है ऊपर से नीचे तक ! अगर काबिल आ गए तो उनका पत्ता साफ़ हो जाएगा !

Anonymous said...

* गलती सुधार

पैरवी सिर्फ अल्लाह और उसके रसूल कि शर्त है !

कि जगह पड़े !

पैरवी अल्लाह के हुक्म और रसूल के तरीके कि शर्त है !

Anonymous said...

जमाल फिर से तुम बेड्गब बातें करने लगे, मैने कब कहा कि अयोध्या से मुस्लिमों को हम निकाल रहे हैं? और हम तो उन्हे नही निकाल रहे पर मक्का से जरूर गैर मुस्लिमों को निकाल दिया गया है, कश्मीर से निकाल दिया है, अफ्गानिस्तान से निकाल दिया था।

इस प्रश्न का उत्तर तो तुम दो कि कहाँ कहाँ से गैर मुस्लिमों को निकालने का इरादा है तुम लोगो का?

ABHISHEK MISHRA said...
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ABHISHEK MISHRA said...
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ABHISHEK MISHRA said...

जमाल जी ,
राम चरित्र मानस को नीच ग्रन्थ कहने पर मौन साध गए और जब मैंने सच बोलना सुरु किया तो मुझे नसीहत देना लगे .ऐसे दोगले मापदंडो वाले ब्लॉग को मेरा अंतिम प्रणाम !
अब आप खुश हो जाये आप के ब्लॉग पर आप का वैचारिक स्तर पर प्रतिरोध कर सत्य बताने वाला कम हो गया .

Anonymous said...

इस हिसाब से तो सभी मुस्लिम अंधकार में जाने वाले है
क्योकि वो तो क़बर की पूजा करते है
वह तो किसी की लाश ही दफ़न होती है जो की पेड़ पोधो की पूजा सेबहुत बुरा है
कई बार तो ये भी तय नही होता है की वो लाश किसी आदमी की है या जानवर की

S.M.Masoom said...

Servent of Allah @न काबिल और नकारा लोग जो बैठे है ऊपर से नीचे तक ! अगर काबिल आ गए तो उनका पत्ता साफ़ हो जाएगा
Bikul sahee farmaya.

S.M.Masoom said...

afrat ko qatl ker do siyasat ko dedo maat

Aur hum ko roz apne gale se lagaao tum

Ajmer jake Ram ka mandir banayeN hum

Aur Ram Janm Bhomi pe masjid banaoo tum

Jawaid Badauni

Ejaz Ul Haq said...

मालिक के नाम पर हो जाओ एक
@ sarvent of allah !
इताअत करो अल्लाह की और इताअत करो रसूल की और उललिल अम्र की ( अल कुरआन )
1 आपने उललिल अम्र को क्यों छोड़ दिया ?
2 अपने अभी तक कुरआन शरीफ़ और हदीस को मानने के दावे करने के बावजूद उनमें से अब तक किसी का भी अनुवाद करके पैग़ाम सबके सामने पेश क्यों नहीं किया ?
3 आपने कहा इल्म सीखने के लिए आलिम की ज़रुरत होती है, आपने किस आलिम से इल्म सिखा बताइए? अगर आप उम्मते मुस्लिमा के सदस्य हैं तो ।
4 अगर आप ख़ुद आलिम नहीं हैं तो आप दीन की बातें चाँद किताबें पढ़ कर बताते हैं या बिना पढ़े?
@ S.M.MAsum !
आलिम और जाहिल की परिभाषा हदीस के मुताबिक़ क्या है? क्योंकि दौरे नबवी में मौजूदा तर्ज़ के मदसे तो थे ही नहीं।
@ alok mohan!
अलोक जी, कब्र को पूजें या समाधी को जो भी ऐसा करेगा पाप करेगा अंधकार में जियेगा और नरक में गिरेगा । हिन्दू हो या मुस्लमान कम हों या ज़्यादा ।
@ ए जाने वाले !
नाम बदल कर मत आ जाना लोग पहचान जायंगे ।
@ Ravindar Nath ji !
रविंदर जी आप की मालूमात ग़लत है मक्के से ग़ैरमुस्लिमों को निकला ही नहीं गया ।तो कहीं से भी निकालने वाले हम नहीं हैं । और कश्मीर से जिन्हें निकाला गया उन्हीं जैसे को महाराष्ट्र से भी खदेड़ा गया। अगर आप ने मराठी ब्लोगर्स से सवाल नहीं किया तो अनवर साहब ही क्यों पूछ रहे हैं ? और दोहरी मानसिकता दर्शा रहे हैं ।

Anonymous said...

@ Ejaz Ul Haq

मै सब बिना पढ़े ही बताता हूँ क्योकि पढ़न लिखना मुझे आता नहीं, अब सीखूंगा, आप कोई उस्ताद बता दे !

S.M.Masoom said...

हज़रत अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम ने फ़रमाया कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने मुझे इल्म के हज़ार बाब तालीम किये। जिन में हर बाब में हज़ार हज़ार बाब थे। (ख़ेसाले सदूक़ जिल्द2 पेज 176)

S.M.Masoom said...

हज़रत अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम बेवकूफ़ (मूर्ख) की हम नशीनी (संगति) इख़तियार न करो, क्यों कि वह तुम्हारे सामने अपने कामों को सजा कर पेश करेगा और चाहेगा कि तुम उसी के ऐसे हो जाओ।

S.M.Masoom said...

अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुन्कर

मारूफ़ हर अच्छे और पसंदीदा काम और मुन्कर हर बुरे और ना पसंदीदा काम को शामिल है।

दीन और अक़्ल की नज़र में बहुत से काम मारूफ़ और पसंदीदा हैं जैसे नमाज़ और दूसरे फ़ुरु ए दीन, सच बोलना, वअदे को वफ़ा करना, सब्र व इस्तेक़ामत, फ़ोक़रा और नादारों की मदद, अफ़्व व गुज़श्त, उम्मीद व रजा, राहे ख़ुदा में इन्फ़ाक़, सिलए रहम, वालेदैन का ऐहतेराम, सलाम करना, हुस्ने ख़ु्ल्क़ और अच्छा बर्ताव, इल्म को अहमियत देना, हम नौअ, पड़ोसियों और दोस्तों के हुक़ूक़ की रिआयत, हिजाबे इस्लामी की रिआयत, तहारत व पाकीज़गी, हर काम में ऐतेदाल और मयाना रवी और सैंकड़ों। उस के मुक़ाबले में बहुत से ऐसे उमूर पाये जाये हैं जिन्हे दीन और अक़्ल ने मुन्कर और ना पसंद शुमार किया है जैसे तर्के नमाज़, रोज़े न रखना, हसद, कंजूसी, झूट, तकब्बुर, ग़ुरूर, मुनाफ़ेक़त, ऐब जूई और तजस्सुस, अफ़वाह फैलाना, चुग़ल ख़ोरी, हवा परस्ती, बुरा कहना, झगड़ा करना, ना अम्नी पैदा करना, अंधी तक़लीद, यतीम का माल खा जाना, ज़ुल्म और ज़ालिम की हिमायत करना, मंहगा बेचना, सूद ख़ोरी, रिशवत लेना, इंफ़ेरादी और इज्तेमाई हुक़ूक़ को पामाल करना वग़ैरह वग़ैरह।

रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम एक ख़ूब सूरत मिसाल में मुआशरे को एक कश्ती से तशबीह देते हुए फ़रमाते हैं कि अगर कश्ती में सवार अफ़राद में से कोई यह कहे कि कश्ती में मेरा भी हक़ है लिहाज़ा उस में सूराख़ कर सकता हूँ और दूसरे मुसाफ़ेरीन उस को इस काम से न रोकें तो उस का यह काम सारे मुसाफ़िरों की हलाकत का सबब बनेगा। इस लिये कि कश्ती के ग़र्क़ होने से सब के सब ग़र्क़ और हलाक हो जायेगें और दूसरे अफ़राद इस शख़्स को इस काम से रोर दें तो वह ख़ुद भी निजात पा जायेगा और दूसरे मुसाफ़ेरीन भी।
(सही बुख़ारी जिल्द 2 पेज 887)

अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर को सही तरीक़े से अंजाम देने की सब से अहम शर्त मारूफ़ और मुन्कर, उन के शरायत और उन के तरीक़ ए कार को जानना है लिहाज़ा अगर कोई शख़्स मारूफ़ और मुन्कर को न जानता हो तो किस तरह उस को अंजाम देने की दावत दे सकता है या उस से रोक सकता है?।। एक डाक्टर और तबीब उसी वक़्त बीमार का सही इलाज कर सकता है जब वह दर्द, उस की नौईयत और उस के असबाब व अवामिल से आगाह हो।

अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर की शर्त यह है कि अम्र व नही करने की वजह से ज़रर और नुक़सान का ख़तरा न हो।
www.aqyouth.blogspot.com

Anonymous said...

@विन्द्र जी आप सही कह रहे है
१०० हिन्दुओ के बीच १ मुस्लिम आराम से रह सकता है और खुद को safe फील करता
है
पर १०० मुस्लिमानो के बीच १ हिन्दू परिवार का गुजरा आराम से नही हो सकता
जहाँ पर भी मुस्लिम बहुतायत थी वह लगभग हिन्दुओ का सफाया हो चुका है

DR. ANWER JAMAL said...

पूर्वजों के बयान की हिकमत
जनाब एस.एम.मासूम साहब ! कुरआन ए हकीम के अहकाम को बयान करना एक अच्छी बात है लेकिन हमें यह भी देखना चाहिए कि अल्लाह ने सिर्फ़ अपने अहकाम ही बयान नहीं किए बल्कि जिस क़ौम को संबोधित किया, उसे उसके पूर्वजों की भी याद दिलाई और बताया कि उसके पूर्वज मुश्रिक अर्थात बहुदेववादी नहीं थे बल्कि वे सभी एक ईश्वर के प्रति सत्यनिष्ठ लोग थे जिन्होंने जीवन भर लोगों का उपकार किया। आप अलबक़रह, आले-इमरान, अलमायदा, अलअनआम और सूरह इबराहीम में इस अन्दाज़ को देख सकते हैं।
अल्लाह से सीखिये हिकमत का तरीक़ा अर्थात ‘तत्वदर्शिता‘
अल्लाह के अन्दाज़ बेशक हिकमत के अन्दाज़ होते हैं। लोग अपने पूर्वजों से प्रेम करते हैं, उनकी परंपराओं का निर्वाह और सम्मान करते हैं। जब हिन्दुस्तान का प्राचीन इतिहास देखा गया तो पता चला कि यहां भी बहुदेववाद-शिर्क बाद में फैला। हिन्दुस्तान के लोग इस्लाम को विदेशी धर्म समझते हैं और देवी-देवताओं के पूजन को देशी विधि। हिन्दुस्तान का प्राचीन धार्मिक साहित्य मूर्तिपूजा को मानव के लिए पतनकारी मानता है लेकिन बाद में जब दार्शनिकों के प्रभाव से मूर्तिपूजा भारत में आम हो गई और हर तरफ़ उनकी तूती बोलने लगी तब मूर्तिपूजा को मान्यता देने वाले प्रकरण भी रच लिए गए। इस तरह निराकार उपासना को श्रेष्ठ कहने के बावजूद मूर्तिपूजा को भी जायज़ घोषित कर दिया गया।
प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों में मूर्तिपूजा का खंडन
अल्लाह ने एकेश्वरवाद और उपकार की शिक्षा देते हुए अरब के मुश्रिकों, ईसाईयों और यहूदियों को उनके पूर्वज हज़रत इब्राहीम व अन्य नबियों और हकीम लुक़मान जैसे सत्पुरूषों की मिसाल भी दी ताकि उनके लिए ‘सत्य‘ का सनातन रूप प्रकट हो और उनके लिए सत्य स्वीकार करना आसान हो जाए। आज जब हम अपने हिन्दू भाईयों को कुरआन का पैग़ाम देते हैं तो पवित्र कुरआन से उनका अजनबीपन दूर करने के लिए ज़रूरी है कि उन्हें उनके पूर्वजों और उनकी प्राचीन परंपराओं के हवाले याद दिलाया जाए कि मूर्तिपूजा आपके धर्म का मूल नहीं है, बल्कि एक विकार है जिसके खि़लाफ़ बहुत से हिन्दू सुधारकों ने आवाज़ उठाई है। इस तरह किसी के लिए भी मूर्तिपूजा का कोई वास्तविक आधार शेष नहीं बचता सिवाय हठधर्मी के। जिन देवियों की अरब के लोग पूजा करते थे उनका नाम लेकर मालिक ने लोगों को उनकी पूजा से रोका, चाँद , सूरज और सितारों की पूजा से रोका . यहूदियों और ईसाईयों को को भी हज़रत उज़ैर और हज़रत ईसा का नाम लेकर उन्हें अल्लाह का बेटा कहने से मना किया . यह अल्लाह का तरीका है की पिन पॉइंट करके बताया कि यह बुराई है इसे न करो .
हिन्दू धर्मग्रंथों में है एक मालिक का बयान
हिन्दू एक बहुत पुरानी क़ौम है और उसमें अनगिनत लोगों ने मालिक को पहचाना और उसके प्रति समर्पित होकर अपना जीवन गुज़ारकर आदर्श क़ायम किया। उनमें से हज़रत आदम अ. और सैलाब वाले हज़रत नूह अ. का नाम आज भी उनके साहित्य में दर्ज मिलता है और पवित्र कुरआन में इनका ज़िक्र को बुनियादी अहमियत हासिल है। अगर ये न होते तो आज ज़मीन पर मानव जाति ही न होती। कुरआन को पैग़ाम तो दिया जाए लेकिन इनका ज़िक्र न किया जाए यह हिकमत के सरासर खि़लाफ़ है। इस्लाम दीन ए क़य्यिम अर्थात सनातन धर्म है, सदा से है और हरेक ऋषि-नबी ने अन्तिम संदेष्टा हज़रत मुहम्मद स. के आने की भविष्यवाणी की है, यह एक ऐसी हक़ीक़त है जिसे सभी धर्मग्रंथों के विद्वानों ने खुद प्रमाणित किया है। वेद-कुरआन ब्लॉग के माध्यम से इसी सच्चाई को सबके सामने लाने का प्रयास किया जा रहा है।
अल्लाह का हुक्म भी यही है
‘और उन को नूह का हाल सुनाओ....।‘ (सूरह यूनुस, 71)
ध्यान के लिए ईश्वर की मूर्ति बनाना ज़रूरी नहीं है
कुछ लोग ईश्वर के ध्यान के लिए मूर्ति की आवश्यकता बताते हैं। यह केवल एक बहाना मात्र है मूर्तिपूजा को बनाये रखने के लिए। योगी लोग अपने भीतर के चक्रों पर ध्यान जमाते हैं या फिर अपनी नाक के अगले हिस्से पर जैसा कि गीता के 6ठे अध्याय के 13वें श्लोक में बताया गया है। नमाज़ में भी आदमी अपने सामने, अपने पैरों के दरम्यान और सज्दे में अपनी नाक के अगले हिस्से पर ही नज़र जमाए रखता है। ध्यान तो मन का विषय है। जब किसी से सच्चा प्यार होता है तो फिर नज़र जहां भी जाती है उसी एक का जलवा नज़र आता है। मन में सच्चा प्रेम जगाने की ज़रूरत है न कि मूर्तियां बनाने की। अगर फिर भी ध्यान एकाग्र करने के लिए कोई साकार चीज़ चाहिए तो खुद अपनी नाक ही काफ़ी है। ध्यान ईश्वर की कृतियों पर भी जमाया जा सकता है। इसके लिए ईश्वर की मूर्तियां बनाने की कोई ज़रूरत नहीं है। इससे बहुत से मत-मतांतर बन चुके हैं। उनसे तीर्थों की संख्या बढ़ती ही चली जा रही है। क्या फ़ायदा ऐसा काम करके जिसे करने से ‘वेद‘ रोकते हों ?

DR. ANWER JAMAL said...

2- विरोध करें लेकिन सभ्यता का दामन न छोड़ें
अलग-अलग सोच-विचार और संस्कृतियों के लोग इस ब्लॉग पर आते हैं। उनके सामने कुरआन का पैग़ाम रखा जाता है जो कि उनकी समझ में आ भी सकता है और उसे समझने में उन्हें दिक्क़त भी आ सकती है। ऐसे में हरेक को चाहिए कि वह ब्लॉग पर दिए गए लिंक्स का अवलोकन करे। जिहाद और काफ़िर आदि शब्दों को लेकर जो ग़लतफ़हमियां सुनियोजित तरीक़े से समाज में फैलाई गई हैं, वे निर्मूल हो जाएंगी। इसके बाद भी जो शंकाएं शेष रह जाएं, उन्हें हमारे सामने रखा जाए, इन्शा अल्लाह तसल्लीबख्श जवाब दिया जाएगा। आप जिज्ञासा भी ज़ाहिर कर सकते हैं और ऐतराज़ भी जता सकते हैं। आप कुरआन से अपनी असहमति भी प्रकट कर सकते हैं। आपको किसी भी तरह से कुरआन को मानने के लिए बाध्य नहीं किया जा रहा है लेकिन आप शिष्टाचार के लिए बाध्य हैं। आप बदतमीज़ी नहीं कर सकते, आप गालियां नहीं दे सकते, किसी ब्लॉगर को रूसवा करने की कोशिश नहीं कर सकते। आप किसी की बात नकारते हैं तो तथ्य दीजिए, यही सभ्यता का तरीक़ा है। यह दौर शिक्षा, खोज और अनुसंधान का है। जग अब सच ही मानेगा। फ़ालतू शोर-पुकार अब काम न देगा।
@ अलोक मोहन जी ! सभी मुसलमान क़ब्रों कि पूजा नहीं करते . १०० मुसलमानों के बीच एक हिन्दू नहीं रह सकता , यह कहकर क्या आप हिन्दुओं को बुजदिल कहना चाहते हैं या फिर मुसलमानों को अराजक मने बैठे हैं ?

Man said...

डॉ. जमाल साहब वन्दे इश्वर्म ,
आप के पोस्ट की लगभग बाते ठीक हे कुछ बातो पर असहमत हुआ जा सकता हे लेकिन आप को धन्यवाद |

Anonymous said...
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DR. ANWER JAMAL said...

@ मान जी ! सत्य के समर्थन के लिए आपका शुक्रिया . आप मेरे विरोधी थे लेकिन सत्य के नहीं यह बात आप हमेशा प्रमाणित करते आये हैं . धन्यवाद
श्लोक : श्रुतिस्मृतिपुराणानां विरोधो यत्र दृश्यते।
तत्र श्रौतं प्रमाणन्तु तयोद्वैधे स्मृति‌र्त्वरा॥
भावार्थ : अर्थात जहाँ कहीं भी वेदों और दूसरे ग्रंथों में विरोध दिखता हो, वहाँ वेद की बात की मान्य होगी।
2- ऋग्वेद में अग्निसूक्त, वरूणसूक्त, विष्णु-सूक्त आदि में जिस सत्ता का गुणगान हुआ है वही सत्ता ईश्वर है। उसका ग्रहण लोग अनेक प्रकार से करते हैं। कोई उसे शिव मानता है, कोई शक्ति, कोई ब्रह्म कोई उसे बुद्ध मानता है, कोई उसे कत्र्ता कोई उसे अर्हत् मानता है। एक को अनेक रूपों में मानना सबसे बड़ा विभेद है और ऐसा करना वेदों के अर्थ का अनर्थ करना है तथा यह आर्य धर्म के विरूद्ध है। देवी हो या देव, नर हो या नारी, अच्छा हो बुरा, चराचर जगत में चेतनता रूप में वह ईश्वर सभी पर अधिष्ठित है। यदि चेतनता रूप में वह ईश्वर जगत् में व्याप्त न हो तो जगत् का क्रियाकलाप ही स्थगित हो जाए। जो मनुष्य शुद्ध अन्तःकरण का है, एवं विकारों से रहित है, उसके अन्दर उस परमानन्दमयी सत्ता का प्रकाश रहता है। इसलिए उस ईश्वर को सर्वत्र अनुभव करना चाहिए एवं सदाचार और एकनिष्ठा से उसे प्राप्त करने का प्रयत्न भी करना चाहिए।

Anonymous said...

@ejaz bhai"कब्र को पूजें या समाधी को जो भी ऐसा करेगा पाप करेगा अंधकार में जियेगा और नरक में गिरेगा । हिन्दू हो या मुस्लमान"


बहुत सही कहा आप ने
पर समस्या तो तब खड़ी होती है जब कोई इंसान अपने पापो को धर्म से जोडकर बहुत लोगो को गुमराह करता है
इसी से आने वाली पीडी गलत राह पर जाती है

मुझे तो इस बहस में पडकर ये लग रहा है की यहाँ कोई एक दुसरे के उपर कीचड उछलने की बहस चल रही हो
"तू गन्दा नही.. तू मुझसे भी गन्दा .."
अपनी तरफ तो कोई देख ही नही रहा

अपने आप को सुधारो सब सुधर जायेगा

Anonymous said...

न मै हिन्दुओ को बुजदिल मानता हु और न ही मुस्ल्माओ को अराजक
"बात हिदुओ के दुसरे धर्म के लोगो के प्रति प्रेम की है " जो की मुस्लिमो में कम है
यदि आप इसे बुजदिली कहते है है तो ये आप का नही आपके संस्कारो और धार्मिक अवगुणों का दोष है

यदि एसा नही है तो मुस्लिम बाहुल्य जगहों पर हिन्दू क्यों पलायन कर रहा है

DR. ANWER JAMAL said...

@ अलोक जी ! आपको पता होना चाहिए कि इस ब्लॉग पर किसी को गाली देने कि छूट नहीं है , आपको भी नहीं . आपने सोनू जी को गाली दी इसलिए मुझे आपका कमेन्ट मिटाना पड़ा .
२- सामान रीती रिवाज के लोग आपस में सहज महसूस करते हैं यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है . मुसलमान किसी देवी देवता को नहीं पूजता , इसलिए मुस्लिम मुहल्लों में मंदिर , गाय और बन्दर नहीं होते , इनकी तलाश में हिन्दू भाइयों को हिन्दू बहुल इलाकों में जाना पड़ता है , सो वे वहीँ चले जाते हैं अपनी सुविधा के लिए . जिन मुस्लिम मुहल्लों में ये सब सुविधा उपलब्ध है वहाँ के हिन्दू भाई कहीं नहीं जाते , मज़े से रहते हैं .
### हर इंसान की यह ज़िम्मेदारी है कि वह जो बात भी कहना चाहे, कहने से पहले उस पर ग़ौर करे और कोई काम करना हो ओ करने के पहले उसके ग़ौर ओ फ़िक्र करे । इस्लाम, इंसानों को तमाम कामों में ग़ौर व ख़ोज़ करने की नसीहत करता है.

S.M.Masoom said...

शुक्रिया अन्वेर जमाल साहब , इस बात का कि आप मेरे ब्लॉग पढ़ते भी हैं, और उसके हिस्सों को दूसरों तक पहुंचाते भी हैं..
मेरी यह पोस्ट पूरी पढ़ें.
http://aqyouth.blogspot.com/2010/09/blog-post_27.html
"हर इंसान की यह ज़िम्मेदारी है कि वह जो बात भी कहना चाहे, कहने से पहले उस पर ग़ौर करे और कोई काम करना हो ओ करने के पहले उसके ग़ौर ओ फ़िक्र करे । इस्लाम, इंसानों को तमाम कामों में ग़ौर व ख़ोज़ करने की नसीहत करता है"

Unknown said...

अनवर जी ,इस कमअक्ल ओर बैऊड़े आलोक मोहन की औकात नहीं है मुझे गाली देने की , इसकी गैं.........औ सॉरी ,मुझे याद आया की आप गाली देने की छूट नहीं देते इस ब्लॉग पर

बेटे आलोक ,जल्दी से उस ब्लॉग का पता बता जहाँ पर ऐसी छूट हो ताकि वहीँ पर आकर तेरी पहले से ही फटी हुई को ओर फाडू

ओर हाँ दर्जी का इंतज़ाम करके रखियो :) :) :)

Anonymous said...

maine kon si gaali di anwar

do hindo ko ladaker maza le rehe ho
agr wo gaali lagi to jo sonu me mere baare me likha shayad wo bada sbhya laga hoga aap ko
shayad tabhi wo aap ke blog ki shobha bada rehe hai

agr itna bura tha wo cooment to delete kerne ki kya jarur thi 1 din bad ker lete
kam sekam sonu bhi dekh leta maine kya likha yha

ha aap ne comment ko delete kerke confusion jaroor paida ker diya

good

sonu tum alokmohan@ovi.com per mujhse lad sakte ho

Anonymous said...

"मुसलमान किसी देवी देवता को नहीं पूजता , इसलिए मुस्लिम मुहल्लों में मंदिर , गाय और बन्दर नहीं होते , इनकी तलाश में हिन्दू भाइयों को हिन्दू बहुल इलाकों में जाना पड़ता है"

क्या बात है जमाल साहब इस बार तो जोरदार तर्क दिया आप ने
आप के हिसाब से कश्मीर के "गाय भैस कुत्ते बंदर" तो मुस्लिम मार कर खा गया
अब बेचारा हिन्दू इनके बिना रह नही सकता
तो अपने घर बार को छोडकर इन जानवरों की तलाश मध्य प्रदेश में आकर बस गए

कमाल की बात बताई आपने

Anonymous said...

रही बात बाबरी विवाद की मै भी मस्जिद गिराने का पुरजोर विरोध करता हू
पर क्या जब मंदिर तोडा का जा रह होगा ..तो कोई भी मुस्लिम इसका विरोध करने नही आया
कि मंदिर क्यों तोड़ रहे हो ...किसी की धेमिक भवन को तोडना टीक नही है
तब शायद कुरान का वास्ता देकर इसे सही बता कर जश्न मनाने में जुटे होगे

आज भले ही मस्जिद बनाने का आदेश आये तब भी मंदिर ही बनेगा
इस बार हिन्दू नही दबेगा
मै राम का उपासक न सही ,,उन्हें अपने मार्गदर्शक जरूर मानता हू

रही बात मेरी और mrsonu के बीच लड़ाई की तो वो दो हिन्दू भाइयो की वौचारिक मतभेदों की लड़ाई है
वो हम आपसमे निपट लेगे ...हम्हे किसी मुस्लिम मध्यस्थ की जरुरत नही है

Ayaz ahmad said...

@आलोक मोहन जी हमने आपको बता दिया कि वेदों मे स्वर्ग नरक का कहाँ ज़िक्र है । वेदों मे शिव नाम कहीं नही है आपने कहाँ देखा ? हमें भी बताएँ

S.M.Masoom said...

धर्म गुरु मौलाना कल्ब ए सादिक ने कहा सच्चे मर्यादा पुरषोत्तम और हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) को मानने वाले बनो और इस देख मैं अमन काएम करो किसी के भी बहकाने मैं ना आओ, अफवाहों को नजर अंदाज़ करो और इस देश को पकिस्तान ना बनने दो, इसी टूटने से बचाओ.
http://aqyouth.blogspot.com/2010/09/blog-post_1978.html

DR. ANWER JAMAL said...

janab Masum sahab ! Bahut khoob kaha Hazrat maulana ne , Jazakallah .

Ejaz Ul Haq said...

ईश्वर एक है, धरती एक है
@ srvent opf allah !
जब आप ख़ुदा कहना जायज़ नहीं मनाते तो आप सलात को नमाज़ क्यों कहते हैं नमाज़ शब्द भी तो कुरआन और हदीस में नहीं आया।

Ejaz Ul Haq said...

@ अनवर साहब ! कमेन्ट दिखाने पर ग़ौर कीजिये , अगर अलोक मोहन अपनी ग़लती नहीं मानते तो ।

Ejaz Ul Haq said...

@ alok mohan ji !

क्या आप का लिखा हुआ दिखाया जय तब आप मानेंगे " *तीये " यह खाना गली देना होता है, कश्मीर को लेकर गैरमुस्लिम समाज आमतौर पर भ्रमित है । रियासत जम्मू एंड कश्मीर के जो मुस्लमान नेता अलगाववादी आन्दोलन चला रहे हैं । उसे शेष भारत के मुसलमानों का कोई समर्थन प्राप्त नहीं है यही वजह है कि शेष भारत से कोई भी मुस्लमान उनके सशस्त्र आन्दोलन में आज तक शरीक नहीं हुआ। उनके अलगाववादी आन्दोलन के बारे में सवाल उन कश्मीरी लेखकों से पूछा जाना चाहिए जो कि अलगाववाद के समर्थक हैं न कि हर एक भारतीय मुस्लमान से । कश्मीर से हिन्दुओं को भगाए जाने का सवाल कश्मीरियों से पूछिए क्योंकि कश्मीर को अलग करने की मांग को हम नाजायज़ मानते हैं क्योंकि तोड़ना नाजायज़ और जोड़ना इस्लाम में वाजिब है हम तो चाहते हैं की बंगलादेश और पाकिस्तान भी जुड़ें और देश भी ताकि साड़ी धरती 'एक' हो जाये सारी धरती हमारी माँ है इसलिए हम भारत को माता नहीं कहते, जो भारत को माता कहते हैं वे धरती का विभाजन स्वीकार करते हैं. जबकि हम इसे अस्वीकार करते हैं। ईश्वर एक है, धरती एक है, इसलिए सारी मानव जाती को भी अब एक हो जाना चाहिए. कौन विरोध करता है मेरी बात का ।

Ejaz Ul Haq said...

ग़लती सुधार

यह खाना गाली देना होता है,) की जगह ((यह कहना गाली देना होता है, ) पढ़ा जाये ।

Anonymous said...

dr ayaj ahmad sahab
यजुर वेद के १६ अध्याय में पूरा शिव रूपी परमात्मा का विवरण है
जायदा ही वेद पर बात करना हो तो आप मेरे घर आओ दिन रात वेद पर ही बात होगी

कुछ सूत्र दे रह हू|
नमस्ते रूद्र मन्वते तुइश्वे नमह भाहूमुत ते नमह|
या ते रूर्दा शिव त्न्रून घेरापपा नस्किकी ||
ये सही नही लिखा होगा पर आप यजुर वेद के १६ अध्याय में पूरा शिव रूपी परमात्मा का विवरण पड़ सकते हो
आप ने तो कही नही दिखया की वेद में नरक/स्वर्ग का विवरण है

वैसे ये बार आप जमाल जी से पूछ लेते तो जायदा बता देते
"एख रूद्र दुतीय नास्ति"
एक मात्र वो शिव ,रूद्र है दूसरा भी है ये कहने वाल टिक नही सकता