सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Sunday, September 5, 2010
The real sense of worship सर्वशक्तिमान ईश्वर को लोगों की पूजा-इबादत की क्या ज़रूरत है ? - Anwer Jamal
मालिक बेनियाज़ है, बन्दे उसके मोहताज हैं
कुछ लोग पूछते हैं कि सर्वशक्तिमान ईश्वर को लोगों की पूजा-इबादत की क्या ज़रूरत है ? वह क्यों हमारे मुंह से अपनी तारीफ़ सुनना चाहता है ?, उस मालिक को हमारे रोज़ों की क्या ज़रूरत है ?, वह क्यों हमें भूखा रखना चाहता है ?
हक़ीक़त यह है कि लोगों का ऐसे सवाल करना यह बताता है कि वे इबादत के मूल भाव को नहीं समझ पाए हैं इसलिए ऐसे सवाल कर रहे हैं। नमाज़-रोज़ा दीन का हिस्सा हैं, उसका रूक्न हैं। दीन की ज़रूरत बन्दों को है जबकि उस मालिक को न दीन की ज़रूरत है और न ही बन्दों की, वह तो निरपेक्ष और बेनियाज़ है।
अलफ़ातिहा : दुआ भी और हिदायत भी
नमाज़ में बन्दा खुदा से ‘सीधा मार्ग‘ दिखाने की दुआ करता है। यह दुआ कुरआन की पहली सूरा ‘अलफ़ातिहा‘ में है। नमाज़ में यह दुआ कम्पलसरी है। यह दुआ मालिक ने बन्दों को खुद अपने पैग़म्बर के ज़रिये सिखाई है। यह दुआ हिदायत की दुआ है और खुद भी हिदायत है। पूरा कुरआन इसी दुआ का जवाब है, ‘अलफ़ातिहा‘ की तफ़्सील है। जो कुछ पूरे कुरआन में विस्तार से आया है वह सार-संक्षेप और खुलासे की शक्ल में ‘अलफ़ातिहा‘ में मौजूद है।
‘सीधे रास्ते‘ की दुआ करने के बाद एक नमाज़ी पवित्र कुरआन का कुछ हिस्सा पढ़ता-सुनता है, जिसमें उसे मालिक बताता है कि उसका मक़सद क्या है ? और उसे पूरा करने का ‘मार्ग‘ क्या है ? उसके लिए क्या करना सही है ? और क्या करना ग़लत है ? उसके कामों का नतीजा इस दुनिया में और मरने के बाद परलोक में किस रूप में उसके सामने आएगा ?
तमाम खूबियों का असली मालिक खुदा है
कुरआन के ज़रिये नमाज़ी को जो ज्ञान और हुक्म मिलता है, उसके सामने मालिक की जो बड़ाई और खूबियां ज़ाहिर होती हैं, उसके बाद नमाज़ी शुक्र और समर्पण के जज़्बे से अपने रब के सामने झुक जाता है। उसकी बड़ाई और खूबियों को मान लेता है और अपनी ज़बान से भी इक़रार करता है। खुदा सभी खूबियों का असली मालिक है और जो खूबियों का मालिक होता है, वह तारीफ़ का हक़दार भी होता है, यह हक़ीक़त है। नमाज़ के ज़रिये इनसान इसी हक़ीक़त से रू-ब-रू होता है।
नमाज़ के ज़रिये होती है अहंकार से मुक्ति
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। सच पाने के लिए झूठ को और ज्ञान पाने के लिए अज्ञान को खोना ही पड़ेगा। ‘मैं बड़ा हूं‘ यह एक झूठ है, अज्ञान है, इसी का नाम अहंकार है। एक बन्दा जब नमाज़ में झुकता है और अपनी नाक खुदा के सामने ज़मीन पर रख देता है, अपने आप को ज़मीन पर डाल देता है, तब वह मान लेता है कि ‘खुदा बड़ा है‘ जो कि एक हक़ीक़त है।
इस हक़ीक़त के मानने से खुदा को कोई फ़ायदा नहीं होता, फ़ायदा होता है बन्दे को। वह झूठ, अज्ञान और अहंकार से मुक्ति पा जाता है, उसके अन्दर विनय और आजिज़ी की सिफ़त पैदा होती है। इसी सिफ़त के बाद इनसान ‘ज्ञान‘ पाने के लायक़ बनता है। ज्ञान पाने के बाद जब नमाज़ी उसके आलोक में चलता है तो उसे ‘मार्ग‘ स्पष्ट नज़र आता है। अब उसके पास मालिक का हुक्म होता है कि क्या करना है ? और क्या नहीं करना है ?
रोज़े के ज़रिये मिलती है भक्ति की शक्ति
नमाज़ी के सामने ‘मार्ग‘ होता है और उसपर चलने का हुक्म भी लेकिन किसी भी रास्ते पर चलने के लिए ज़यरत होती है ताक़त की। हरेक सफ़र में कुछ न कुछ दुश्वारियां ज़रूर पेश आती हैं। ज़िन्दगी का यह सफ़र भी बिना दुश्वारियों के पूरा नहीं होता, ख़ासकर तब जबकि चलने वाला सच्चाई के रास्ते पर चल रहा हो और ज़माने के लोग झूठे रिवाजों पर। कभी ज़माने के लोग उसे सताएंगे और कभी खुद उसके अंदर की ख्वाहिशें ही उसे ‘मार्ग‘ से विचलित कर देंगी।
रोज़े के ज़रिये इनसान में सब्र की सिफ़त पैदा होती है। रोज़े की हालत में इनसान खुदा के हुक्म से खुद को खाने-पीने और सम्भोग से रोकता है जोकि उसके लिए आम हालत में जायज़ है। रोज़े से इनसान के अंदर खुदा के रोके से रूक जाने की सिफ़त पैदा होती है, जिसे तक़वा कहते हैं।
रोज़ा इनसान को नफ़ाबख्श बनाता है
रोज़े में इनसान भूख-प्यास की तकलीफ़ झेलता है। इससे उसके अंदर सच्चाई के लिए तकलीफ़ उठाने का माद्दा पैदा होता है और वह दूसरे भूखे-प्यासों की तकलीफ़ का सच्चा अहसास होता है। इसी अहसास से उसमें उनके लिए हमदर्दी पैदा होती है जो उसे लोगों की भलाई के लिए अपना जान-माल और वक्त कुरबान करने पर उभारती है। खुदा की इबादत इनसान को समाज के लिए नफ़ाबख्श बनाती है। जिन लोगों को रोज़ेदार से नफ़ा पहुंचता है उनके दिलों में उसके लिए इज़्ज़त और मुहब्बत पैदा होती है। वे भी चाहते हैं कि वह खूब फले-फूले। इस तरह समाज में अमीर-ग़रीब के बीच की खाई पटती चली जाती है।
जिस समाज में रोज़े का चलन आम हो, वहां के ग़रीब लोग कभी अपने समाज के मालदारों के ख़ात्मे का आंदोलन नहीं चलाते जैसा कि रूस आदि देशों में चलाया गया और करोड़ों पूंजीपतियों का खून बहाया गया या जैसा कि नक्सलवादी आज भी देश में बहा रहे हैं।
समरस समाज को बनाता है रोज़ा
रोज़े की हालत में आदमी खुद को झूठ, चुग़ली, लड़ाई-झगड़े और बकवास कामों से बचाता है, गुस्से पर क़ाबू पाना सीखता है। इनमें से हरेक बात समाज में फ़साद फैलने का ज़रिया बनती है। रोज़ेदार दूसरों को सताकर या मिलावट करके या सूद लेकर माल कमाना नाजायज़ मानता है और आमदनी के तमाम नाजायज़ तरीक़े छोड़ देता है। ये तमाम तरीक़े भी मुख्तलिफ़ तरीक़ों से समाज में बिगाड़ फैलाते हैं और वर्ग संघर्ष का कारण बनते हैं। इसके विपरीत रोज़ेदार बन्दा खुदा के हुक्म से ज़कात-फ़ितरा और सद्क़ा की शक्ल में दान देता है। वह लोगों को भूखों को खिलाता है और ज़रूरतमंदों की ज़रूरत पूरी करता है। ऐसा करके वह न तो लोगों से शुक्रिया की चाहत रखता है और न ही वह दिखावा ही करता है क्योंकि यह सब वह मालिक की मुहब्बत में करता है। वह किसी जाति-भाषा या राष्ट्र और इलाक़े की बुनियाद पर यह सब नहीं करता। मानव जाति में भेद पैदा करने वाली हरेक दीवार उसके लिए ढह जाती है। समाज में एकता और समरसता पैदा होती है यह सारी बरकतें होती हैं रोज़े की, खुदा की इबादत की।
रोज़े की ज़रूरत इनसान को है, उस सर्वशक्तिमान ईश्वर को नहीं।
इबादत का अर्थ क्या है ?
‘इबादत‘ कहते हैं हुक्म मानने को। नमाज़ भी इबादत है और रोज़ा भी। बन्दा हुक्म मानता है तभी तो नमाज़-रोज़ा अदा करता है और फिर नमाज़-रोज़े ज़रिये के ज़रिये उसमें जो सिफ़तें पैदा होती हैं उनके ज़रिये वह ‘मार्ग‘ पर चलने के लायक़ बनता है, और ज़्यादा इबादत करने के क़ाबिल बनता है। इबादतों के ज़रिये उसके अंदर विनय, समर्पण, सब्र, तक़वा, हमदर्दी, मुहब्बत और कुरबानी की सिफ़तें पैदा होती हैं, जिनमें से हरेक सिफ़त उसके अंदर दूसरी बहुत सी सिफ़तें और खूबियां पैदा करती हैं। जो बन्दा खुद को खुदा के हवाले कर देता है और उसके हुक्म पर चलता है जोकि तमाम खूबियों का असली मालिक है, उस बन्दे के अंदर भी वे तमाम खूबियां ‘डेवलप‘ हो जाती हैं जोकि उसे ‘मार्ग‘ पर चलने में सफल बनाती हैं, उसे उसकी सच्ची मंज़िल तक पहुंचाती हैं। इबादत के ज़रिये बन्दा अपने रब से जुड़ता है और इबादत के ज़रिये ही उसके अंदर ये तमाम खूबियां डेवलप होती हैं, इसलिए इबादत बन्दों की ज़रूरत है न कि खुदा की।
रूहानी भोजन क्या है ?
जहां खुदा ने हवा-पानी, मौसम-फ़सल और धरती-आकाश बनाया ताकि लोगों के शरीरों की ज़रूरतें पूरी हों, वहीं उसने उनके लिए अपनी इबादत निश्चित की ताकि वे न भटकें और उनके मन-बुद्धि-आत्मा की ज़रूरतें पूरी हों।
आज इनसानी आबादी का एक बड़ा हिस्सा भूखा सोता है और जो लोग खा-पी रहे हैं उनके भोजन में भी प्रोटीन, विटामिन्स और मिनरल्स आदि ज़रूरी तत्व सही मात्रा में नहीं होते, यह एक हक़ीक़त है। ठीक ऐसे ही आज बहुत से लोग नास्तिक बनकर रूहानी तौर पर भूखे-प्यासे भटक रहे हैं लेकिन न तो वे अपनी भूख-प्यास का शऊर रखते हैं और न ही यह जानते हैं कि उन्हें तृप्ति कहां और कैसे मिलेगी ?
धर्म के नाम पर अधर्म क्यों ?
जो लोग समझते हैं कि वे मालिक का नाम ले रहे हैं, ईश्वर का नाम ले रहे हैं, उसका गुण-कीर्तन कर रहे हैं, उनका भी बौद्धिक और चारित्रिक विकास नहीं हो पा रहा है क्योंकि न तो उनकी श्रद्धा और समर्पण की रीति सही है और न ही उन्हें सही तौर पर रूहानी भोजन के सभी तत्व समुचित मात्रा में मिल पा रहे हैं और वे इसे जानते भी नहीं हैं।
जो लोग मालिक की बताई रीति से पूजा-इबादत नहीं करते और अपनी तरफ़ से भक्ति के नये-नये तरीक़े निकालते हैं और समझते हैं कि वे उसके भजन गा रहे हैं, उसकी तारीफ़ कर रहे हैं और उनकी स्तुति-वंदना से प्रसन्न होकर वह उनकी कामनाएं-प्रार्थनाएं पूरी करेगा, वास्तव में वे लोग उस सच्चे मालिक पर झूठे इल्ज़ाम लगा रहे होते हैं, उसे गालियां दे रहे होते हैं। जिससे मालिक नाराज़ हो रहा होता है और वे अपने घोर पाप के कारण उसके दण्ड के भागी बन रहे होते हैं।
ईश्वर के विषय में पाप की कल्पना क्यों ?
ये लोग एक मालिक के बजाय तीन मालिक बताते हैं। कोई कहता है कि पैदा करने वाले ने अपनी बेटी के साथ करोड़ों साल तक बलात्कार किया तब जाकर यह सारी सृष्टि पैदा हुई।
कोई कहता है कि जिसके ज़िम्मे पालने का काम है वह चार महीने के लिए पाताल लोक में जाकर सो जाता है। वह आदमी बनकर मां के पेट से जन्म लेता है। जन्म लेकर वह समाज में ऊंचनीच क़ायम करता है, चोरी करता है, युद्ध करता है और जीतने के लिए युद्ध के नियम भंग करता है।
कोई मारने वाले को नशा करने वाला बताता है और कहता कि वह मौत के डर से अपने ही भक्त से डरकर भाग खड़ा हुआ। ये लोग ईश्वर को मनुष्यों की तरह लिंग-योनि और औलाद वाला नर-नारी बताते हैं। नाचना-कूदना, उन्हें छेड़ना, उनका अपहरण कर लेना, रूप बदलकर कुवांरी कन्याओं से और पतिव्रताओं से राज़ी-बिना राज़ी सम्भोग करना, हरेक ऐब उसके साथ जोड़ दिया। कह दिया कि वह लोगों को भटकाकर पाप कराने के लिए भी धरती पर जन्म ले चुका है। यहां तक लिख डाला कि वह कछुआ-मछली, बल्कि सुअर तक बनकर दुनिया में आ चुका है।
माइथोलॉजी का आधार ही मिथ्या है
इन्हीं सब ‘मिथ्या‘ बातों पर उन्होंने अपनी माइथोलॉजी खड़ी की और अपने दर्शन रचे। इन्हीं बातों की वे कथा सुनाते हैं और इन्हीं बातों को वे अपने भजनों में गाते हैं।
जो लोग इन बातों को नहीं मानते वे नास्तिक बन जाते हैं और दूध का जला बनकर छाछ को भी फूंक मारते रहते हैं और जो लोग इन बातों को मान लेते हैं वे जीवन भर लुटते रहते हैं और समाज में ग़लत परम्पराओं को बढ़ावा देते हैं। दोनों ही तरह इनसान अज्ञान में फंसकर जीता है और अपने जन्म का मक़सद जाने बिना और उसे पूरा किये बिना ही मर जाता है।
ईश्वर के दूत का अपमान क्यों ?
कुछ दूसरे लोगों ने कहा कि ईश्वर ने दुनिया में अपने इकलौते पुत्र को भेजा और वह लोगों के पापों के बदले में क्रूस पर लानती होकर मर गया। जिससे प्रार्थना कर रहे हैं, उसी को लानती कह रहे हैं और चाहते हैं कि उनकी प्रार्थनाएं सुनी जाएं, उनके संकट उनसे दूर किये जाएं।
ज्ञान के बिना व्यर्थ है कर्म और भक्ति
यह सब इसलिए हो रहा है कि ये लोग अपने कॉमन सेंस से काम नहीं ले रहे हैं और ईश्वर की सिखाई रीति के बजाय मनमाने तरीक़े से भक्ति कर रहे हैं। अगर सेंस से काम न लिया जाए तो फिर नमाज़-रोज़ा भी महज़ रस्म और दिखावा बनकर रह जाते हैं जिनपर मालिक की तरफ़ से ईनाम मिलने के बजाय सज़ा मिलती है।
खुदा की इबादत, ईश्वर की भक्ति हरेक इनसान पर उसी रीति से करना अनिवार्य है जो रीति ईश्वर ने अपने दूतों-पैग़म्बरों के माध्यम से सिखाई है। जो इस बात को मानता है वह आस्तिक-मोमिन है और जो नकारता है वह नास्तिक अर्थात काफ़िर है।
अक्लमन्द इनसान कभी मालिक की नाशुक्री नहीं करता
‘काफ़िर‘ का अर्थ नाशुक्रा भी होता है। ईश्वर की ओर से मानव जाति पर हर पल बेशुमार नेमतें बरसती हैं। ईश्वर के उपहार पाकर इनसान को उसका उपकार मानना चाहिए और खुद भी दूसरों पर उपकार करना चाहिए, यही है ईश्वर का सच्चा आभार मानना, उसे सच्चे अर्थों में धन्यवाद कहना।
एक अच्छा इनसान, बुद्धि-विवेक से काम लेने वाला इनसान कभी नाशुक्रा और नास्तिक नहीं हो सकता सिवाय उसके जो ‘इबादत‘ के सही अर्थ को न समझ पाया हो और अपने सच्चे मालिक की सही अर्थों में पूजा-इबादत न कर पाया हो।
ऐ मालिक ! हमें माफ़ कर दे और हमसे राज़ी हो जा
ईश्वर पवित्र है हरेक ऐब और कमी से और वह तमाम खूबियों का असली मालिक है। हम रब की पनाह चाहते हैं इस बात से कि उसके बारे में कभी कोई ऐसी बात सुनें जो उसकी शान के मुनासिब न हो। जो लोग नादानी में उसके विषय में मिथ्या कल्पना करते हैं हम उनके बारे में भी हम उस मालिक से माफ़ी मांगते हैं।
कुछ लोग पूछते हैं कि सर्वशक्तिमान ईश्वर को लोगों की पूजा-इबादत की क्या ज़रूरत है ? वह क्यों हमारे मुंह से अपनी तारीफ़ सुनना चाहता है ?, उस मालिक को हमारे रोज़ों की क्या ज़रूरत है ?, वह क्यों हमें भूखा रखना चाहता है ?
हक़ीक़त यह है कि लोगों का ऐसे सवाल करना यह बताता है कि वे इबादत के मूल भाव को नहीं समझ पाए हैं इसलिए ऐसे सवाल कर रहे हैं। नमाज़-रोज़ा दीन का हिस्सा हैं, उसका रूक्न हैं। दीन की ज़रूरत बन्दों को है जबकि उस मालिक को न दीन की ज़रूरत है और न ही बन्दों की, वह तो निरपेक्ष और बेनियाज़ है।
अलफ़ातिहा : दुआ भी और हिदायत भी
नमाज़ में बन्दा खुदा से ‘सीधा मार्ग‘ दिखाने की दुआ करता है। यह दुआ कुरआन की पहली सूरा ‘अलफ़ातिहा‘ में है। नमाज़ में यह दुआ कम्पलसरी है। यह दुआ मालिक ने बन्दों को खुद अपने पैग़म्बर के ज़रिये सिखाई है। यह दुआ हिदायत की दुआ है और खुद भी हिदायत है। पूरा कुरआन इसी दुआ का जवाब है, ‘अलफ़ातिहा‘ की तफ़्सील है। जो कुछ पूरे कुरआन में विस्तार से आया है वह सार-संक्षेप और खुलासे की शक्ल में ‘अलफ़ातिहा‘ में मौजूद है।
‘सीधे रास्ते‘ की दुआ करने के बाद एक नमाज़ी पवित्र कुरआन का कुछ हिस्सा पढ़ता-सुनता है, जिसमें उसे मालिक बताता है कि उसका मक़सद क्या है ? और उसे पूरा करने का ‘मार्ग‘ क्या है ? उसके लिए क्या करना सही है ? और क्या करना ग़लत है ? उसके कामों का नतीजा इस दुनिया में और मरने के बाद परलोक में किस रूप में उसके सामने आएगा ?
तमाम खूबियों का असली मालिक खुदा है
कुरआन के ज़रिये नमाज़ी को जो ज्ञान और हुक्म मिलता है, उसके सामने मालिक की जो बड़ाई और खूबियां ज़ाहिर होती हैं, उसके बाद नमाज़ी शुक्र और समर्पण के जज़्बे से अपने रब के सामने झुक जाता है। उसकी बड़ाई और खूबियों को मान लेता है और अपनी ज़बान से भी इक़रार करता है। खुदा सभी खूबियों का असली मालिक है और जो खूबियों का मालिक होता है, वह तारीफ़ का हक़दार भी होता है, यह हक़ीक़त है। नमाज़ के ज़रिये इनसान इसी हक़ीक़त से रू-ब-रू होता है।
नमाज़ के ज़रिये होती है अहंकार से मुक्ति
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। सच पाने के लिए झूठ को और ज्ञान पाने के लिए अज्ञान को खोना ही पड़ेगा। ‘मैं बड़ा हूं‘ यह एक झूठ है, अज्ञान है, इसी का नाम अहंकार है। एक बन्दा जब नमाज़ में झुकता है और अपनी नाक खुदा के सामने ज़मीन पर रख देता है, अपने आप को ज़मीन पर डाल देता है, तब वह मान लेता है कि ‘खुदा बड़ा है‘ जो कि एक हक़ीक़त है।
इस हक़ीक़त के मानने से खुदा को कोई फ़ायदा नहीं होता, फ़ायदा होता है बन्दे को। वह झूठ, अज्ञान और अहंकार से मुक्ति पा जाता है, उसके अन्दर विनय और आजिज़ी की सिफ़त पैदा होती है। इसी सिफ़त के बाद इनसान ‘ज्ञान‘ पाने के लायक़ बनता है। ज्ञान पाने के बाद जब नमाज़ी उसके आलोक में चलता है तो उसे ‘मार्ग‘ स्पष्ट नज़र आता है। अब उसके पास मालिक का हुक्म होता है कि क्या करना है ? और क्या नहीं करना है ?
रोज़े के ज़रिये मिलती है भक्ति की शक्ति
नमाज़ी के सामने ‘मार्ग‘ होता है और उसपर चलने का हुक्म भी लेकिन किसी भी रास्ते पर चलने के लिए ज़यरत होती है ताक़त की। हरेक सफ़र में कुछ न कुछ दुश्वारियां ज़रूर पेश आती हैं। ज़िन्दगी का यह सफ़र भी बिना दुश्वारियों के पूरा नहीं होता, ख़ासकर तब जबकि चलने वाला सच्चाई के रास्ते पर चल रहा हो और ज़माने के लोग झूठे रिवाजों पर। कभी ज़माने के लोग उसे सताएंगे और कभी खुद उसके अंदर की ख्वाहिशें ही उसे ‘मार्ग‘ से विचलित कर देंगी।
रोज़े के ज़रिये इनसान में सब्र की सिफ़त पैदा होती है। रोज़े की हालत में इनसान खुदा के हुक्म से खुद को खाने-पीने और सम्भोग से रोकता है जोकि उसके लिए आम हालत में जायज़ है। रोज़े से इनसान के अंदर खुदा के रोके से रूक जाने की सिफ़त पैदा होती है, जिसे तक़वा कहते हैं।
रोज़ा इनसान को नफ़ाबख्श बनाता है
रोज़े में इनसान भूख-प्यास की तकलीफ़ झेलता है। इससे उसके अंदर सच्चाई के लिए तकलीफ़ उठाने का माद्दा पैदा होता है और वह दूसरे भूखे-प्यासों की तकलीफ़ का सच्चा अहसास होता है। इसी अहसास से उसमें उनके लिए हमदर्दी पैदा होती है जो उसे लोगों की भलाई के लिए अपना जान-माल और वक्त कुरबान करने पर उभारती है। खुदा की इबादत इनसान को समाज के लिए नफ़ाबख्श बनाती है। जिन लोगों को रोज़ेदार से नफ़ा पहुंचता है उनके दिलों में उसके लिए इज़्ज़त और मुहब्बत पैदा होती है। वे भी चाहते हैं कि वह खूब फले-फूले। इस तरह समाज में अमीर-ग़रीब के बीच की खाई पटती चली जाती है।
जिस समाज में रोज़े का चलन आम हो, वहां के ग़रीब लोग कभी अपने समाज के मालदारों के ख़ात्मे का आंदोलन नहीं चलाते जैसा कि रूस आदि देशों में चलाया गया और करोड़ों पूंजीपतियों का खून बहाया गया या जैसा कि नक्सलवादी आज भी देश में बहा रहे हैं।
समरस समाज को बनाता है रोज़ा
रोज़े की हालत में आदमी खुद को झूठ, चुग़ली, लड़ाई-झगड़े और बकवास कामों से बचाता है, गुस्से पर क़ाबू पाना सीखता है। इनमें से हरेक बात समाज में फ़साद फैलने का ज़रिया बनती है। रोज़ेदार दूसरों को सताकर या मिलावट करके या सूद लेकर माल कमाना नाजायज़ मानता है और आमदनी के तमाम नाजायज़ तरीक़े छोड़ देता है। ये तमाम तरीक़े भी मुख्तलिफ़ तरीक़ों से समाज में बिगाड़ फैलाते हैं और वर्ग संघर्ष का कारण बनते हैं। इसके विपरीत रोज़ेदार बन्दा खुदा के हुक्म से ज़कात-फ़ितरा और सद्क़ा की शक्ल में दान देता है। वह लोगों को भूखों को खिलाता है और ज़रूरतमंदों की ज़रूरत पूरी करता है। ऐसा करके वह न तो लोगों से शुक्रिया की चाहत रखता है और न ही वह दिखावा ही करता है क्योंकि यह सब वह मालिक की मुहब्बत में करता है। वह किसी जाति-भाषा या राष्ट्र और इलाक़े की बुनियाद पर यह सब नहीं करता। मानव जाति में भेद पैदा करने वाली हरेक दीवार उसके लिए ढह जाती है। समाज में एकता और समरसता पैदा होती है यह सारी बरकतें होती हैं रोज़े की, खुदा की इबादत की।
रोज़े की ज़रूरत इनसान को है, उस सर्वशक्तिमान ईश्वर को नहीं।
इबादत का अर्थ क्या है ?
‘इबादत‘ कहते हैं हुक्म मानने को। नमाज़ भी इबादत है और रोज़ा भी। बन्दा हुक्म मानता है तभी तो नमाज़-रोज़ा अदा करता है और फिर नमाज़-रोज़े ज़रिये के ज़रिये उसमें जो सिफ़तें पैदा होती हैं उनके ज़रिये वह ‘मार्ग‘ पर चलने के लायक़ बनता है, और ज़्यादा इबादत करने के क़ाबिल बनता है। इबादतों के ज़रिये उसके अंदर विनय, समर्पण, सब्र, तक़वा, हमदर्दी, मुहब्बत और कुरबानी की सिफ़तें पैदा होती हैं, जिनमें से हरेक सिफ़त उसके अंदर दूसरी बहुत सी सिफ़तें और खूबियां पैदा करती हैं। जो बन्दा खुद को खुदा के हवाले कर देता है और उसके हुक्म पर चलता है जोकि तमाम खूबियों का असली मालिक है, उस बन्दे के अंदर भी वे तमाम खूबियां ‘डेवलप‘ हो जाती हैं जोकि उसे ‘मार्ग‘ पर चलने में सफल बनाती हैं, उसे उसकी सच्ची मंज़िल तक पहुंचाती हैं। इबादत के ज़रिये बन्दा अपने रब से जुड़ता है और इबादत के ज़रिये ही उसके अंदर ये तमाम खूबियां डेवलप होती हैं, इसलिए इबादत बन्दों की ज़रूरत है न कि खुदा की।
रूहानी भोजन क्या है ?
जहां खुदा ने हवा-पानी, मौसम-फ़सल और धरती-आकाश बनाया ताकि लोगों के शरीरों की ज़रूरतें पूरी हों, वहीं उसने उनके लिए अपनी इबादत निश्चित की ताकि वे न भटकें और उनके मन-बुद्धि-आत्मा की ज़रूरतें पूरी हों।
आज इनसानी आबादी का एक बड़ा हिस्सा भूखा सोता है और जो लोग खा-पी रहे हैं उनके भोजन में भी प्रोटीन, विटामिन्स और मिनरल्स आदि ज़रूरी तत्व सही मात्रा में नहीं होते, यह एक हक़ीक़त है। ठीक ऐसे ही आज बहुत से लोग नास्तिक बनकर रूहानी तौर पर भूखे-प्यासे भटक रहे हैं लेकिन न तो वे अपनी भूख-प्यास का शऊर रखते हैं और न ही यह जानते हैं कि उन्हें तृप्ति कहां और कैसे मिलेगी ?
धर्म के नाम पर अधर्म क्यों ?
जो लोग समझते हैं कि वे मालिक का नाम ले रहे हैं, ईश्वर का नाम ले रहे हैं, उसका गुण-कीर्तन कर रहे हैं, उनका भी बौद्धिक और चारित्रिक विकास नहीं हो पा रहा है क्योंकि न तो उनकी श्रद्धा और समर्पण की रीति सही है और न ही उन्हें सही तौर पर रूहानी भोजन के सभी तत्व समुचित मात्रा में मिल पा रहे हैं और वे इसे जानते भी नहीं हैं।
जो लोग मालिक की बताई रीति से पूजा-इबादत नहीं करते और अपनी तरफ़ से भक्ति के नये-नये तरीक़े निकालते हैं और समझते हैं कि वे उसके भजन गा रहे हैं, उसकी तारीफ़ कर रहे हैं और उनकी स्तुति-वंदना से प्रसन्न होकर वह उनकी कामनाएं-प्रार्थनाएं पूरी करेगा, वास्तव में वे लोग उस सच्चे मालिक पर झूठे इल्ज़ाम लगा रहे होते हैं, उसे गालियां दे रहे होते हैं। जिससे मालिक नाराज़ हो रहा होता है और वे अपने घोर पाप के कारण उसके दण्ड के भागी बन रहे होते हैं।
ईश्वर के विषय में पाप की कल्पना क्यों ?
ये लोग एक मालिक के बजाय तीन मालिक बताते हैं। कोई कहता है कि पैदा करने वाले ने अपनी बेटी के साथ करोड़ों साल तक बलात्कार किया तब जाकर यह सारी सृष्टि पैदा हुई।
कोई कहता है कि जिसके ज़िम्मे पालने का काम है वह चार महीने के लिए पाताल लोक में जाकर सो जाता है। वह आदमी बनकर मां के पेट से जन्म लेता है। जन्म लेकर वह समाज में ऊंचनीच क़ायम करता है, चोरी करता है, युद्ध करता है और जीतने के लिए युद्ध के नियम भंग करता है।
कोई मारने वाले को नशा करने वाला बताता है और कहता कि वह मौत के डर से अपने ही भक्त से डरकर भाग खड़ा हुआ। ये लोग ईश्वर को मनुष्यों की तरह लिंग-योनि और औलाद वाला नर-नारी बताते हैं। नाचना-कूदना, उन्हें छेड़ना, उनका अपहरण कर लेना, रूप बदलकर कुवांरी कन्याओं से और पतिव्रताओं से राज़ी-बिना राज़ी सम्भोग करना, हरेक ऐब उसके साथ जोड़ दिया। कह दिया कि वह लोगों को भटकाकर पाप कराने के लिए भी धरती पर जन्म ले चुका है। यहां तक लिख डाला कि वह कछुआ-मछली, बल्कि सुअर तक बनकर दुनिया में आ चुका है।
माइथोलॉजी का आधार ही मिथ्या है
इन्हीं सब ‘मिथ्या‘ बातों पर उन्होंने अपनी माइथोलॉजी खड़ी की और अपने दर्शन रचे। इन्हीं बातों की वे कथा सुनाते हैं और इन्हीं बातों को वे अपने भजनों में गाते हैं।
जो लोग इन बातों को नहीं मानते वे नास्तिक बन जाते हैं और दूध का जला बनकर छाछ को भी फूंक मारते रहते हैं और जो लोग इन बातों को मान लेते हैं वे जीवन भर लुटते रहते हैं और समाज में ग़लत परम्पराओं को बढ़ावा देते हैं। दोनों ही तरह इनसान अज्ञान में फंसकर जीता है और अपने जन्म का मक़सद जाने बिना और उसे पूरा किये बिना ही मर जाता है।
ईश्वर के दूत का अपमान क्यों ?
कुछ दूसरे लोगों ने कहा कि ईश्वर ने दुनिया में अपने इकलौते पुत्र को भेजा और वह लोगों के पापों के बदले में क्रूस पर लानती होकर मर गया। जिससे प्रार्थना कर रहे हैं, उसी को लानती कह रहे हैं और चाहते हैं कि उनकी प्रार्थनाएं सुनी जाएं, उनके संकट उनसे दूर किये जाएं।
ज्ञान के बिना व्यर्थ है कर्म और भक्ति
यह सब इसलिए हो रहा है कि ये लोग अपने कॉमन सेंस से काम नहीं ले रहे हैं और ईश्वर की सिखाई रीति के बजाय मनमाने तरीक़े से भक्ति कर रहे हैं। अगर सेंस से काम न लिया जाए तो फिर नमाज़-रोज़ा भी महज़ रस्म और दिखावा बनकर रह जाते हैं जिनपर मालिक की तरफ़ से ईनाम मिलने के बजाय सज़ा मिलती है।
खुदा की इबादत, ईश्वर की भक्ति हरेक इनसान पर उसी रीति से करना अनिवार्य है जो रीति ईश्वर ने अपने दूतों-पैग़म्बरों के माध्यम से सिखाई है। जो इस बात को मानता है वह आस्तिक-मोमिन है और जो नकारता है वह नास्तिक अर्थात काफ़िर है।
अक्लमन्द इनसान कभी मालिक की नाशुक्री नहीं करता
‘काफ़िर‘ का अर्थ नाशुक्रा भी होता है। ईश्वर की ओर से मानव जाति पर हर पल बेशुमार नेमतें बरसती हैं। ईश्वर के उपहार पाकर इनसान को उसका उपकार मानना चाहिए और खुद भी दूसरों पर उपकार करना चाहिए, यही है ईश्वर का सच्चा आभार मानना, उसे सच्चे अर्थों में धन्यवाद कहना।
एक अच्छा इनसान, बुद्धि-विवेक से काम लेने वाला इनसान कभी नाशुक्रा और नास्तिक नहीं हो सकता सिवाय उसके जो ‘इबादत‘ के सही अर्थ को न समझ पाया हो और अपने सच्चे मालिक की सही अर्थों में पूजा-इबादत न कर पाया हो।
ऐ मालिक ! हमें माफ़ कर दे और हमसे राज़ी हो जा
ईश्वर पवित्र है हरेक ऐब और कमी से और वह तमाम खूबियों का असली मालिक है। हम रब की पनाह चाहते हैं इस बात से कि उसके बारे में कभी कोई ऐसी बात सुनें जो उसकी शान के मुनासिब न हो। जो लोग नादानी में उसके विषय में मिथ्या कल्पना करते हैं हम उनके बारे में भी हम उस मालिक से माफ़ी मांगते हैं।
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67 comments:
‘वन्दे ईश्वरम‘ का नाम तो आपने सुना ही होगा और हो सकता है कि आपने उसे देखा भी हो। धर्म के आधार पर फैली ग़लतफ़हमियों को मिटा कर आपसी सद्भाव बढ़ाने के मक़सद से इसका प्रकाशन किया जा रहा है। इसका नया अंक छपकर प्रेस से आ गया है। जो लोग इसे पढ़ने के मुतमन्नी हों वे लोग अपने पोस्टल एड्रेस मेरे ब्लॉग पर लिखने की मेहरबानी करें ताकि पत्रिका उन्हें भेजी जा सके।
धन्यवाद
चंद लाइनें भाई साहब डा. अनवर जमाल के नाम
आपकी तहरीर अच्छी लगी, पिछले काफ़ी दिनों रमज़ान और पत्रिका की तैयारी की वजह से नेट पर किसी ब्लाग पर कमेंट न कर सका। आप अच्छा लिखते हैं लेकिन कभी-कभी उकसाने वालों के फेर में पड़कर भड़क जाते हैं। अपनी बात कहना अच्छा है लेकिन भड़क उठना बात के वज़न को कम कर देता है। आपका आज का लेख पसंद आया। अल्लाह आपको कामयाबी दे। आमीन
पत्रिका में इस बार तक़रीबन सभी लेख ब्लॉग्स से लिये गये हैं और आपकी बेटी अनम को मरकज़ में रखते हुए पूरा अंक ‘भ्रूण रक्षा विशेषांक‘ ही निकाला गया है।
http://alhakeemunani.blogspot.com/2010/09/blog-post.html
anvr bhaayi bhut khub bhaayi aapne to hmen roze nmaaz kaa path pdhaa diya inshaa allah jo bhi kmi he use hm sudharne ki koshish krenge lekin khudaa ki qsm aap apni yeh muhim jari rkhiye or ismen agr hmari khin zrurt ho to zrur btaaeye agr aapki yeh muhim zraa bhi sfl hui to inshaallah desh men insaaniyt hi insaaniyt hogi aapne aek aek baat shi khi he shikh dene ke liyen shukriyaa inshaaalah yaad rkhenge . akhtar khan akela kota rajsthan
सच्ची और अच्छी पोस्ट
नमाज़ में बन्दा खुदा से ‘सीधा मार्ग‘ दिखाने की दुआ करता है। यह दुआ कुरआन की पहली सूरा ‘अलफ़ातिहा‘ में है। नमाज़ में यह दुआ कम्पलसरी है।
nice post
सच्ची और अच्छी पोस्ट
ज्ञान के बिना व्यर्थ है कर्म और भक्ति
अच्छी पोस्ट
मोहतरम डॉ.अनवर जमाल साहब
नमस्कार !
अच्छा आलेख लिखा है ।
मेरी रचना " अभी रमज़ान के दिन हैं " पढ़ने के लिए शस्वरं पर पधारें , और अपने कमेंट से नवाज़ें ।
ताज़ा पोस्ट पर भी आपकी टिप्पणी अपेक्षित है ।
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
पिछले दो दिन से मन बहुत अशांत था ,दिलों-दिमाग में विचारों का एक भूचाल सा आया हुआ था ,आज तो ब्लॉग्गिंग को हमेशा के लिए अलविदा कहने का फैसला कर ही लिया था और अपनी अंतिम पोस्ट आप सभी के नाम लिख ही रहा था की तभी संयोग से कहिये या फिर उस परमपिता परमात्मा की इच्छा से ,अचानक आप का फोन आ गया
आपसे बातें करके मन को जो शान्ति मिली बता नहीं सकता ,कभी उसे पोस्ट में डालने की कोशिश करूँगा ,मैंने आपकी बातों पर गौर किया और बहुत सोच-विचार करने के बाद अपने फैसले को बदला ,आपने एक बड़े भाई की तरह बहुत ही स्नेहपूर्वक मुझे बातें समझायीं और मेरे ब्लॉग्गिंग के प्रति मृत हो चुके मन में फिर से प्राणों का संचार किया ,गुरु उसी को कहते हैं जो शिष्य के अन्धकार को दूर करके उसे प्रकाशमयी और सच्ची राह दिखा दे ,इससे साबित होता है की आप मेरे लिए वैसे ही गुरुतुल्य नहीं हैं ,आप सच में इसके काबिल हैं ,आपकी बतायी गई बातों से एक गज़ब की उर्जा मिली और कभी ना रुकने की हिम्मत भी ,जमाल भाई ,इसके लिए आपका सदैव ह्रदय से आभारी रहूँगा
महक
पोस्ट के साथ महक जी का कमेंटस पढकर बहुत खुशी हुयी
महक जी का कमेंटस पढकर बहुत खुशी हुयी
क्या आपने हिंदी ब्लॉग संकलक हमारीवाणी" का नया क्लिक कोड अपने ब्लॉग पर लगाया हैं?
हमारीवाणी एक निश्चित समय के अंतराल पर ब्लाग की फीड के द्वारा पुरानी पोस्ट का नवीनीकरण तथा नई पोस्ट प्रदर्शित करता रहता है. परन्तु इस प्रक्रिया में कुछ समय लगता है. हमारीवाणी में आपका ब्लाग शामिल है तो आप स्वयं क्लिक कोड के द्वारा हमारीवाणी पर अपनी ब्लागपोस्ट तुरन्त प्रदर्शित कर सकते हैं.
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जमाल, क्या तुम्हारे ईश्वर ने व्यक्तिगत रूप से तुम्हे आ कर बताया था कि उसकी इबादत की विधि क्या है? अगर हाँ तो हमे भी उसका साक्षात्कार कराओ, नही, तो जैसे तुम किसी और की बात को मानते हो, शेष अन्य भी उनके हिसाब से सही हैं।
रही बात तीन देवता की तो मैं इतना कह दूं कि हिन्दु दर्शन तो तुम्हे समझ आता नही और भविष्य मे भी कोई सम्भावना दिखती नहीं। तुम्हारे घर मे तुम अपनी पत्नी के लिये पति, बच्चों के लिये पिता और माँ के लिये पुत्र हो ति क्या तुम ३ व्यक्ति हो गए? हिन्दु दर्शन एकेश्वर वाद मे ही विश्वास रखता है, हिन्दु दर्शन मे सामान्य जन को समझाने हेतु अलग अलग कर्म विधान के अनुसार अलग अलग नाम दिया है बस। गीता पढो, प्रारम्भ मे ही भगवान ने कहा है, "मैं ही जन्म देता हूं, मैं ही पालन करता हूँ, मैं ही संहार करता हूँ" क्या इससे सिद्ध नही होता कि ब्रह्मा, विष्णु महेश तीनो एक ही इश्वर के रूप हैं।
तुमने कहा "वह आदमी बनकर मां के पेट से जन्म लेता है।" अर्थात प्रत्येक मनुष्य मे ईश्वर का अंश है, कुछ ही पूर्णता को प्राप्त करते हैं।
लिंग एवं योनि से तो तुम्हारा विशेष लगाव है, इसकी चर्चा बिना तुम्हारा रोजा हराम है। तुम बताओ हम तो इश्वर को ऐसा बोलते हैं, पर क्या इस्लाम की सुफी परंपरा मे इश्वर को पुर्लिंग नही मानते हैं? अगर हाँ तो उसका भी लिंग होगा, जरा इस्लाम के सूफी मत पर भी थोडा प्रकाश डालने का दुःसाहस किया करो, या डरते हो अपने विरुद्ध फतवे से?
"वह कछुआ-मछली, बल्कि सुअर तक बनकर"-----> यह हिन्दु दर्शन का एक रूप है जिससे यह हमे ज्ञात रहे कि सब सृष्टि एक ईश्वर की है। तुम बताओ कि सुअर किसने पैदा किया, शायद तुम्हारे खुदा के पास सृष्टि करने की पूर्ण विधा नही रही होगी अतः यह काम किसी और ने किया होगा। अगर तुम ऐसा नही मानते हो तो जरा बताओ किस अहंकार के साथ तुम खुदा (अगर उसने सृष्टि की रचना की है तो) के बनाए एक नमूने से घृणा करते हो?
"पैदा करने वाले ने अपनी बेटी के साथ करोड़ों साल तक बलात्कार किया" ---> किस पुस्तक मे लिखा है?, मैने कुरान नही पढा है, शायद उसमे लिखा होगा। नही तो पुस्तक का नाम दो। (मैं जानता हूँ कि तुम सडक के किनारे बिकने वाली किताबों के नाम दोगे जो तुम लोगो के ही धन से हिन्दु धर्म को कलंकित करने के उद्देश्य से प्रकाशित की जाती हैं) हमने यह जरूर सुना है कि खुदा के भेजे हुए पैगंबर ने अपनी बहु से बलात्कार किया था फिर शर्म ढकने को उससे निकाह कर लिया। हमने तो यह भी सुना है कि खुदा अपने मानने वालो की संख्या बढाने हेतु घूस भी देता है, जन्नत मे ७२ हूर, और न जाने क्या क्या............हमने यह भी सुना है कि खुदा ने अपने बनाए हुए नमूनो मे फर्क रखता है, मर्द को ज्यादा बडा ओहदा देता है और औरत को छोटा। तो यह ऊँच नीच तुम्हारे यहाँ भी है, दूसरे रूप मे।
भाई अनवर जमाल जी
नमस्कार !
मेरे ब्लॉग पर पधारने का शुक्रिया ।
आदरणीय रवीन्द्र नाथ जी की टिप्पणी पर आपके यथोचित प्रत्युत्तर की मुझे भी प्रतीक्षा रहेगी ।
सधन्यवाद …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
भाई रविद्र जी ! आपके सवालों का स्वागत है , जिस शालीनता से आपने सवाल पूछे हैं, मैं उनकी सरहाना करता हूँ । कुरआन के विरुद्ध दुष्प्रचार आज एक बड़ी समस्या है । आप उसी की चपेट में आकर ख़ुदा और उसके पैग़म्बर पर घिनौना आरोप बिना सबूत लगा रहे हैं । कुरआन आपने पढ़ा नहीं आप खुद कह रहे हैं , तो क्या यह बहतर न होगा कि आप एक बार कुरआन और मुहम्मद साहब की जीवनी को हरेक पूर्वाग्रह से मुक्त होकर पढ़ लें । और रही बात 72 हूरों पर ऐतराज़ की तो कृपया यह जान लें की यह एक वादा है जो नेक मोमिन के लिए पूरा होगा जन्नत में । लेकिन रजा दशरथ जी के पास 350 रानियाँ थीं पटरानियों से अलग और महात्मा श्रीकृषण जी की 16000 रानियाँ थीं गोपियों और पटरानियों से अलग और यह सब उनके पास था इसी दुनिया में, और किसी मुस्लमान ने आज तक न उनका मज़ाक उड़ाया और न ही उनके बहुविवाह पर ऐतराज़ जताया । अब आप जान लीजिये की मुस्लमान महापुरुषों का सम्मान करते हैं , चाहे लोग उसे हिन्दू महापुरुष क्यों न कहते हों । मुस्लमान न तो पैग़म्बर साहब को ख़ुदा मानते हैं और न अन्य किसी महापुरुष को ईश्वर मान सकते हैं । क्योंकि ईश्वर अजन्मा और अविनाशी है , अरबी में ईश्वर को ही अल्लाह कहते हैं, नाम दो हैं लेकिन सब का मालिक एक है । जो इसे नहीं जानता वह भ्रम में पड़ा हुआ है , कृपया भ्रम से निकलें ।
चलिए हक़ जी की बात मान लेते है की कुरान के खिलाफ साजिश हो रही है .
पर कुरान के दिशा निर्देश मानना हर मुस्लिम का फर्ज है ये तो मानते होंगे. फिर क्यों सुन्नी आतंकवादी कुरान की आयातों को आधार बना कर पूरी दुनिया में आतंकवाद फैला रहे है . न सिर्फ हिन्दू बल्कि सिया मुस्लिम तो और भी ज्यादा त्रस्त है सुन्नियो से .
हर रोज धमाको से दुनिया भर में सिया मुस्लिम हलाक हो रहे है .
असली मुस्लिम तो शांतिप्रिय सिया मुस्लिम है .
सुन्नियो को क्यों न इस्लाम से खारिज कर दिया जाये ?
अभिषेक जी इस्लाम को मानने इस्लाम में दाखिल है और न मानने वाला इस्लाम से खारिज है । कौन इस्लाम में दाखिल है या खारिज है इसका फैसला मुफ्ती करते है अगर आप उनके फैसले से सहमत नही हैं तो आपका स्वागत हैं आप आइए और खुद मुफ्ती बन जाइए और फिर क़ुरआन हदीस की रोशनी में अपने विवेक से फैसला लीजिए और बताइए कि कौन इस्लाम में दाखिल है और कौन खारिज है बिना सबूत भावनाए भड़काना दूसरों के साथ अपने आपको भी भटकाना हैं "सीधे मार्ग" पर चलिए और भटकने से बचिए।
रवींद्रनाथ आपने बिल्कुल सही स्थान पर आकर इस्लाम के संबंध में प्रश्न किए है हमें मालूम है कि इस्लाम के बारे में आपके ज्ञान का स्रोत एक घटिया स्थान का उठना बैठना है जिसे आपने सहर्ष स्वीकारा भी है । प्रश्न अगर सही जगह पर हो तो उनके उत्तर भी संतुष्ट करने वाले ही मिलेंगे अन्यथा भटकाव का खतरा रहता है आप एजाज़ साहब के दिखाए मार्ग पर चले तो आपके संशय का सही निवारण हो सकता है आशा है आप "सीधे मार्ग" की तलाश मे दुराग्राह से काम न लेगेँ और सच्चे मन से अध्ययन करेंगे
जो लोग निष्पक्ष होकर हज़रात मुहम्मद साहब की जीवनी पढ़ते हैं । तो वे उनके कार्यों की प्रशंसा किये बिना नहीं रहते, प्रोफ़ेसर रामा कृष्णराव की पुस्तक उसका प्रबल प्रमाण है ।
http://islaminhindi.blogspot.com/
अयाज जी ,मैंने तो सिर्फ सच कहा है , मुस्लिम धर्म पर तो सिर्फ सुन्नियो का कब्ज़ा है और सुन्नी कुरान की जो व्याख्या करते है उस से तो आतंकवाद ही फैला है और लोग समझते है की पूरी मुस्लिम कौम दोषी है .
क्या आप इस से इंकार कर सकते है की रोज सिया धमाको में मारे जा रहे है . सुन्नियो को इस्लाम की अगुवाई का ठेका किसने दिया .अहमदिया समुदाय को इस्लाम से खारिज करने का अधिकार सुन्नियो को किसने दिया .
अली एक महान योद्धा थे साथ ही साथ निर्मल ह्रदय के पवित्र महापुरुष भी थे . . जब उन से न जीत पाए तो नमाज पड़ते वक्त पीठ पर जंजर किसने भोका .
वृद्ध हुसैन को तलवार क्यों उठानी पड़ी .
मैं मुस्लिम इतिहास में नहीं जाना चाहता हू पर सुन्नी विचार धारा बेहद खतरनाक है.
सारे सबूत आप की किताबो में मौजूद है आप खुद ही देख लीजिये .
अभिषेक जी, हमारी तो किसी किताब में नहीं लिखा कि हज़रत अली र0 की कमर में नमाज़ पढ़ते वक्त किसी ने कभी खंजर भोँका था । या तो आप अफवाहेँ फैला रहे हैं या फिर खुद ही अफवाहों के शिकार हैं । धर्म एक नाज़ुक विषय है इसलिए जो कहें सही कहें और सबूत के साथ कहें ।
आप wikipedia देख लीजिये , नमाज पढ़ते समय उन पर छिप कर वार किया गया . जाहिर सी बात है हमला पीछे से हुआ .इतनी हिम्मत तो किसी की भी नहीं होगी उस वक्त की हजरत अली पर सामने से वार करे .
wikipedia का लिंक
en.wikipedia.org/wiki/Ali#Death
हज़रत इमाम अली सन् 40 हिजरी के रमज़ान मास की 19वी तिथि को जब सुबह की नमाज़ पढ़ने के लिए गये तो सजदा करते समय अब्दुर्रहमान पुत्र मुलजिम ने आपके ऊपर तलवार से हमला किया जिससे आप का सर बहुत अधिक घायल हो गया तथा दो दिन पश्चात रमज़ान मास की 21वी रात्री मे नमाज़े सुबह से पूर्व आपने इस संसार को त्याग दिया।
http://jagranjunction.com/2010/04/22/%E0%A4%B9%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%B2-%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A8-%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%80/
नया अंक छपकर प्रेस से आ गया है। जो लोग इसे पढ़ने के मुतमन्नी हों वे लोग अपने पोस्टल एड्रेस vandeishwaram@gmail.com
पर भेजने की की मेहरबानी करें ताकि पत्रिका उन्हें भेजी जा सके।
हकीम यूनुस खान जी ने सही कहा है. हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम ने कुछ बागियों की साजिश के तहत उस वक़्त शहीद किया था जब वे सजदे में थे. इसका शिया सुन्नी मसले से कोई लेना देना नहीं था. हज़रत अली अलैहिस्सलाम का दर्जा मुस्लिम्स के हर फिरके के लिए नबी के बाद सबसे ज्यादा बुलंद है.
@Ezaz Ul Haq- मैने कुरान नही पढा मैने स्वीकार किया, आपने राजा दशरथ की ३५० रानियाँ बताई है, कृपया अपना स्रोत मुझे बताये क्योंकि मैने जितनी भी रामायण और उसके भाष्य पढे सब ३ बताते हैं। अगर 72 हूरों का वादा नेक मोमिन के लिए है तो नेक महिलाओं के लिये क्या वायदा है?
आपका कथन है "किसी मुस्लमान ने आज तक न उनका (हिन्दु देवी देवताओं का) मज़ाक उड़ाया" कृपया स्पष्ट करें जमाल ने इस लेख मे जो आरोप लगाए हैं वो किन पर हैं?
आप कहते हैं "नाम दो हैं लेकिन सब का मालिक एक है । जो इसे नहीं जानता वह भ्रम में पड़ा हुआ है , कृपया भ्रम से निकलें ।" यह जमाल को बोलिये कि वो तीन देवता कि कहनिया जो पढता है और पढाता है, उसको समझे और फिर बात करे।
@Dr. Ayaz Ahmad इस्लाम के बारे में मेरे आपके ज्ञान का स्रोत इस्लाम मानने वालों का व्यवहार है, और मैं जहाँ उठता बैठता हूँ वो जगह इस जगह से लाख गुना अच्छी है, तो ऐसे मे अगर वो घटिया है तो इसके बारे मे अपने विचारो से अवगत कराए। मेरा मार्ग सीधा है, कृपया जमाल को समझाए कि हमारे मान बिंदुओं पर लांछन न लगाए अन्यथा ऐसे असहज करने वाले प्रश्नों का सामना करना ही पडेगा। मैने बहुत अध्य्यन के पश्चात ही प्रश्न किये हैं उनका उत्तर दें।
@ रविन्द्र जी ! पहले आप सभी लोग यह जान लें ईश्वर पवित्र है और उसके सत्पुरुष भी . सत्पुरुष खाते पीते हैं , सोते जागते हैं लेकिन नशा नहीं करते जुआ नहीं खेलते बल्कि नशे और जुए से रोकते हैं . सत्पुरुष कभी झूठ नहीं बोलते और न ही धोखे से वार करते हैं
जो लोग सत्पुरुषों और ईश्वर के विषय में ऐसा कहते हैं वे "सत्य" नहीं जानते .
मैं ईश्वर को पवित्र मानता हूँ और श्रीकृष्ण आदि सत्पुरुषों को भी . कवियों ने अपनी कल्पना से बहुत सी ऐसी बातें लिख डालीं जो शोभनीय नहीं हैं और मैं उन्हें यहाँ विस्तार से बताने में हिचक रहा हूँ . आप ज्यादा जोर डालेंगे तो मुझे मजबूरन बताना पड़ेगा .
खैर जिन्होंने इस्लाम कि स्टडी कम कि है उनके लिए पेश है कुछ मालूमात -
इस्लाम धर्म के प्रमुख मत व विश्वास
इस्लाम की परिभाषा
इस्लाम शब्द अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है अमन,शान्ति,अच्छाई,आत्मसमर्पण व सलामती.
संक्षेप में ईश्वर के आदेशों और ईश्वर के पैगम्बर हजरत मुहम्मद सल्ल: की शिक्षाओं को इस्लाम कहते है.
और इस्लाम के अनुयायी को मुस्लिम या मुसलमान कहते हैं.
इस्लाम के प्रमुख मत व विश्वास
१. ईश्वर एक है जिसको अरबी में अल्लाह,फ़ारसी में खुदा और हिन्दी में ईश्वर कहते हैं.
२. इबादत (पूजा) के योग्य केवल ईश्वर है.ईश्वर के अलावा और कोई इबादत के योग्य नहीं.
३. ईश्वर ही सृष्टि का रचयिता है,उसने ही पूरे संसार को पैदा किया.उसने ही सभी मनुष्यों औरजीवों को
जीवन दिया. ईश्वर सर्वशक्तिमान है.ईश्वर सब का पालनहार है.
४. ईश्वर ने समय समय पर संसार में मनुष्यों के मार्गदर्शन के लिए अपने दूत भेजे.ये सभी दूतमनुष्यों
में से ही थे.ये ईश्वर का सन्देश लोगों तक पहुंचाते थे.इनको नबी या पैगम्बर कहते हैं.जिन पैगम्बरों को
ईश्वर ने धर्मग्रन्थ प्रदान किये उनको रसूल कहते हैं.प्रमुख रसूल चार है.हजरतमूसा अलैहिस्सलाम इनको तौरेत,हजरत दाउद अलैहिस्सलाम इनको ज़बूर,हजरत ईसा अलैहिस्सलामइनको इंजील और हजरत
मुहम्मद सल्ल: इनको कुरआन प्रदान किया गया.
५. हजरत मुहम्मद सल्ल: ईश्वर के अंतिम रसूल व पैगम्बर है.उनके बाद क़यामत(प्रलय) तककोई दूसरा
पैगम्बर नहीं आ सकता.
६. ईश्वर द्वारा रसूलों को प्रदान किये गए सभी आसमानी किताबें(धर्मग्रन्थ) सत्य है.ईश्वरीय धर्मग्रन्थ
चार है-तौरेत,ज़बूर,इंजील और कुरआन. १.तौरेत हजरत मूसा अलैहि: को प्रदान की गयी ये यहूदियों का
प्रमुख धर्मग्रन्थ है.२.ज़बूर ये दाउद अलैहि: को प्रदान की गयी.ये यहूदियों और ईसाईयों दोनों का धर्मग्रन्थ
है. ३.इंजील ईसा अलैहि: को प्रदान की गयी.ये ईसाईयों का प्रमुख धर्मग्रन्थ है.ईसाई इसेबाइबल कहते हैं.
कुरआन को छोड़कर बाकी तीनों धर्मग्रंथों में यहूदियों और ईसाईयों ने बदलाव करदिए हैं.अब ये तीनो
धर्मग्रन्थ अपने मूल रूप में नहीं है.इसलिए इस्लाम में ये तीनो धर्मग्रन्थ मान्यनहीं है. इन तीनों धर्मग्रंथों
के आदेश और शिक्षाओं को मानना मुसलमानों के लिए वर्जित है.
७. कुरआन ईश्वरीय ग्रन्थ है.इसका एक एक शब्द ईश्वर की वाणी है.इसका एक भी शब्द किसी पैगम्बर
या किसी दुसरे व्यक्ति का नहीं है.कुरआन अंतिम ईश्वरीय ग्रन्थ है.
८. फ़रिश्ते-ईश्वर की एक ऐसी अदृश्य मखलूक (प्राणी) है जिनको ईश्वर ने नूर(प्रकाश) से पैदा किया.
इसलिए ये मनुष्यों को दिखाई नहीं देते.ये ईश्वर की हर आज्ञा का पालन करते हैं.इनको ईश्वर ने विभिन्न
कामों में लगा रखा है.फ़रिश्ते पूरी तरह से पाप से मुक्त है.
९. अच्छी या बुरी किस्मत ईश्वर की देन है.जीवन में जो कुछ अच्छा या बूरा होता है सब ईश्वर की तरफ
से है.जीवन में जो कुछ हो रहा है या जो कुछ होने वाला है सबको ईश्वर पहले से जानता है.मनुष्य जो कुछ
अच्छा या बूरा करता है वो अपनी मर्ज़ी से करता है लेकिन इसकी अनुमति ईश्वर की दी हुई है.मनुष्यों अपने
पापों और कुकर्मों का खुद जिम्मेदार है क्योंकि उन्हें करने या न करने का निर्णय ईश्वर ने मनुष्यों को दिया है.
१०. मरने के बाद और क़यामत(प्रलय) से पहले एक और दुनिया है.मरने के बाद सभी मनुष्यों को वहीँ रहना
पड़ता है.वहां मनुष्यों को उनके कर्मों के अनुसार किसी को सुख मिलता है और किसी को दुःख और तकलीफ.
११. एक दिन ये पृथ्वी व आकाश बल्कि पूरा ब्रह्माण्ड नष्ट हो जायेगा.इसी दिन का नाम क़यामत या प्रलय है.
प्रलय कब आएगा इसका सही ज्ञान केवल ईश्वर को है लेकिन ईश्वर ने कुरआन में और पैगम्बर मुहम्मद सल्ल:
ने हदीस में कई निशानियाँ बताई है जो प्रलय आने से पहले जाहिर होंगी.
१२. ईश्वर ने अपनी आज्ञाओं का पालन करने वालों के लिए जन्नत(स्वर्ग) बनाया है और आज्ञाओं का पालन न
करने वालों,दुष्टों व पापियों के लिए जहन्नम(नरक) बनाया है.
१३. प्रलय आने के बाद सभी मनुष्य मर जायेंगे.फिर सृष्टि के आरम्भ से लेकर प्रलय आने तक जितने भी मनुष्य
हुए उन सबको वापस जीवन दिया जायेगा.फिर उनके कर्मों का हिसाब होगा .जिनके कर्म अच्छे होंगे उनको स्वर्ग
में रखा जायेगा और जिनके कर्म बुरे होंगे उनको नरक में डाल दिया जायेगा.
इस्लाम मत के अनुसार ऊपर बताई गयी सभी बातों पर इस्लाम के अनुयायी को दृढ व पूर्ण विश्वास होना
अनिवार्य है.इनमें से एक भी बात का इनकार करने वाला व्यक्ति इस्लाम से बेदखल(निष्कासित) है.
http://satya-islam.blogspot.com/2010/04/blog-post_21.html?showComment=1284128707217_AIe9_BF9JrxLhUFRFBXIom9fhDoG1nBD8BIaQXew0d9jpwAqgsSwnWzZGMf-9iCAVitHVFimUsSZ2zZWRdOzIFZZKMA6ih1mqP60dVfWsqQ6nwJjXC5HhiA-iCWo5CRJ2NEUVG9PYBEeo_VkkrPURbIl3uqllRQ0ONeIXH8DwgUcaTlDu1rJ8Z6Y_VGfKAZS_qo609xgxuijQfez8xLDp8KghaVpfMaa7HpECUX3lOQj4yjeevRTQavP41uzfPnye3GdS55O-soOuSPLAozS3nq0pB20e46W78iJc-HhLt_kUPbQFfaAVupV4L6Ynkqs2d4Fc1q0XJF2NPPvhI1vbUoiP-tg-iN3PagnqiZPOkOZXHrjBme-ZZh7uOW-r1gxYdni_2fk9r5WM3-Cv7lVWeE8t65WeEIdisz2b_YPjetJOkF6R4UNUDKWXJ9roFa3qhBzN7YxRSUV_uOHhEvDdBRQy5FLvLBhFGdV9k8xj45kouFr5OzScIdsdNgthgyMxGTNUOauVdjAN4cQsK1jum7xEgYqGEtQFBAvhsm-8TH7XcDK3BF6RTcE1pvQE0G5RNQGblEMyzSV-spH3cJ1WCX7LpmYFhG4DgAXVTqh55Vp2lWybWKGFFj94osLOGh1ydaKbqF1ADaCiAnmF53UEIk1pRfS8S80oLo39NHUMoIH_KFhOl6YthpK9CDzp-IHPgg9noMrMmj86VcRSmfUqOgl7k2xHAZ6bDG0y-pgaTtcvTqgsyAD4yQ#c1389168754525085218
जमाल ईश्वर एवं सत्पुरुषो की पवित्रता पर किसको विरोध है? सत्पुरुष न सिर्फ नशे एवं जुआ से दूर रहते हैं अपितु दया की मूर्ति होते हैं, क्षमा की मूर्ति होते हैं, हिंसा से दूर रहते है। रही बात कवियो ने क्या लिखा है, यहा पर आलेख मे कही भी ऐसा जिक्र नही है, अपितु ऐसा लग रहा है कि लेखक कवियो की बात को सही मान कर धर्म पर आक्षेप कर रहा है, अगर लेखक का विरोध कवियो से है तो उसको ऐसा लिखना चाहिये।
रही बात विस्तार से बताने की तो मै सिर्फ इतना कहुँगा कि लेख मे जो लिखा है वो कम नही है, और धमकी देने की कोइ जरूरत नही, जो लिखते बने लिखो, फिर मेरे प्रश्न भी झेलो, मेरे प्रश्न तुम्हारे लेख के ऊपर ही होगे कही और से नही, जैसा कि तुम्हारे कुछ लोग विषय भटकाने का प्रयत्न करते हैं
जमाल तुम लोग कहते हो कि कुरान मे बदलाव नही किया जा सकता क्योंकि यह आसमानी किताब है, तो आसमानी किताबे (तुम्हारे हिसाब से) तौरेत, ,ज़बूर, और इंजील भी हैं, फिर इनमे बदलाव कैसे संभव है, अगर इनमे बदलाव संभव है तो कुरान मे कैसे नही, स्पष्ट करो।
@ रविन्द्र जी ! आपके सवालों से हमें कोई परेशानी नहीं है , आप पूछिये हम बताने के लिए तैयार हैं लेकिन कम से कम आपके सवालों से यह तो लगना चाहिये कि आपको अपने धर्म के फ़ंडामेंटल्स क्लियर हैं। आप पूछते हैं कि कहां लिखा है कि राजा दशरथ के साढ़े तीन सौ रानियां थीं, मैंने तो केवल 3 के बारे में सुना है ?
इससे पता चलता है कि आपने आज तक न तो रामायण पढ़ी है और न ही रामायण पर रिसर्च करने वालों के लेख । आपके सवालों से यह भी पता चलता है कि आपने मेरे नये लेख पढ़े हैं लेकिन पुराने लेख नहीं पढ़े हैं जहां मैंने स्पष्ट लिखा है कि वेद ईश्वरीय ज्ञान है और हिन्दू या वैदिक धर्म अपने मूल के ऐतबार से निर्दोष है । कमी हिन्दू धर्म की नहीं है बल्कि कमी उन कवियों और दार्शनिकों की है जिन्होंने मूल धर्म में अपनी कल्पनाएं मिला दीं ।
कुल 1,24,000 हज़ार नबी-रसूल हुए हैं जिन्हें संस्कृत में ऋषि कहा गया है । मनु महाराज को कुरआन में नूह कहा गया है । 45 बार उनका नाम आया है । मुस्लिम होने के लिए उन्हें ईश्वर की ओर से और सत्य मानना लाज़िम है जो ऐसा नहीं मानता वह काफ़िर है और इस्लाम से ख़ारिज है । एक ऋषि को जो सम्मान एक मुसलमान देता है वह तो स्वयं हिन्दुओं में भी देखने के लिए नहीं मिलता । कुरआन में आया है कि मनु महाराज ने समाज के दलितों-वंचितों को गले से लगाया , अपनी नौका पर चढ़ाया और उच्च जाति के अहंकारी लोगों को श्राप दिया और इ्र्रश्वर ने जल प्रलय की और उन सभी को डुबाया । जबकि हिन्दू साहित्य कहता है कि उन्होंने समाज में ऊंचनीच फैलाई और शूद्रों पर जुल्म की तालीम दी । अब हम आपसे कैसे सहमत हो जाएं और कैसे मान लें कि उन्होंने धर्म और न्याय की नहीं बल्कि अधर्म और अन्याय की तालीम दी ?
इसलिये हम यही मानते हैं कि उनकी तालीम में जुल्म की बात उनके बाद के लोगों ने मिलाई है । बताइये हम क्या ग़लत करते हैं ?
सभी 1,24,000 नबियों-ऋषियों पर ईश्वर की वाणी अवतरित हुई । हमें मालिक ने सबके नाम नहीं बताये हैं । नाम केवल तौरेत ज़बूर और इंजील के बताए हैं बाक़ी के केवल लक्षण बताएं हैंं । हम सभी की सत्यता में विश्वास रखते हैंं । उनमें फेरबदल हो गए तो उनके बाद के नबियों-ऋषियों के माध्यम से ईश्वर ने फिर से अपनी वाणी मानव जाति को दे दी , लेकिन अब दुनिया का अंत क़रीब है और ऋषि परंपरा का भी समापन हो गया है । हज़रत मुहम्मद साहब स. पर नबियों की श्रृंखला भी पूरी हो गई । अब कोई नया नबी आने वाला नहीं है । इसलिये ईश्वर ने मानव जाति के लिए अपनी वाणी कुरआन को सुरक्षित बना दिया ताकि मानव जाति के लिए हमेशा सही-ग़लत का पैमाना और मार्गदर्शन मौजूद रहे ।
अब आप यह बताइये कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. ने अपने से पहले आ चुके मनु महर्षि की सत्यता की गवाही दी और उनपर लगने वाले आरोपों का खंडन किया और यह सब कुरआन में लिखा है । ऐसे पवित्र और निष्पक्ष नबी पर और ऐसे ग्रंथ पर घिनौने आरोप बिना सुबूत लगाना कितना उचित है ?
क्या यह ऐसा ही नहीं हो रहा है कि बया पक्षी ने एक बंदर को नेक नसीहत की और बंदर ने उसे मानकर लाभ उठाने के बजाय बया का घोंसला ही नष्ट कर दिया ?
अंत में ...
ईश्वर सत्य है और उसके ऋषि-नबी भी लेकिन उनके बारे में कही गई हरेक बात सत्य नहीं है। ईश्वर न खाता है और न ही सोता है और किसी को नष्ट करने के लिए उसे खुद पैदा होने की और जंग करने की कोई ज़रूरत नहीं है । ये सब काम इंसानों के हैं । इंसान महापुरूष हो सकता है , ऋषि-नबी हो सकता है लेकिन परमेश्वर नहीं हो सकता क्योंकि ईश्वर अजन्मा है , अविनाशी है , देशकाल से परे है ।
जमाल जी , कृपया कुरान की उन आयातों पर भी थोडा सा प्रकाश डालने का कष्ट करे जिन के कारण मुस्लिम फिदाइन बन रहे है और जेहाद से पूरी दुनिया को त्रस्त कर रक्खा है .
अब आप ये धोखे वाली रटी रटाई गयी बात मत कहना की आतंकवादियों का कोइ मजहब नही होता .
बात बात पर फ़तवा पादने वाले मौलवी जेहाद की बात आते ही गूंगे और बहरे हो जाते है .
इमराना का बलात्कार करने वाले ससुर की इमराना से शादी का फ़तवा आ जाता है पर जिहाद के खिलाफ ,
बस रटी रटाई बात कह कर पलड़ा झाड लेते है
अर्थात
मौनः स्वीकृत लच्छनम
अभिषेक ! आपकी लेंग्वेज निहायत घटिया है , या तो आपने तमीज़ नहीं सीखी है या फिर आपके दिल में बैठी हुई नफ़रत ने आपकी ज़बान ख़राब कर दी है . फतवा इस्लामी शब्दावली का एक शब्द है जिसका आप अनादर कर रहे हैं . आप दूसरों का आदर क्या कर पाएंगे जबकि आप अपने ही महापुरुषों को चोर और जार लिखते और कहते हैं ?
और फिर दूसरों के बारे में भी ऐसी ही कल्पना कर लेते हैं . इससे उन महापुरुषों में तो दोष सिद्ध नहीं होता लेकिन ये पता चल जाता है की आप जैसे लोगों को अपने ब्लॉग पर अहमियत देना ठीक नहीं है . बात करनी है तो शिष्टाचार के साथ कीजिये वरना अपने स्तर का कोई दूसरा ब्लॉग ढूँढ लीजिये .
मैने रामायण भी पढा है और उस पर कुछ अन्य लेख भी, रामायण मेरे पाठ्यक्रम का अंग था कक्षा ६ मे। मै फिर से अपने प्र्श्न को दोहराता हूँ और कहता हूँ कि राजा दशरथ की ३ ही रानियाँ थी, हाँ अगर किसी ने पेरियार की रामायण पढी हो तो वो ३५० क्यों ३ लाख भी कह सकता है।
मैने पुराने लिख भी पढे हैं पर मेरा प्रश्न इस लेख मे लिखे गये तथ्यों के प्रति हैः- किस धर्म ग्रंथ मे लिखा है "पैदा करने वाले ने अपनी बेटी के साथ करोड़ों साल तक बलात्कार किया", तुमने लिखा "जन्म लेकर वह समाज में ऊंचनीच क़ायम करता है" किसने ऐसा किया? राम ने निषाद को अपना मित्र बनाया, भीलनी के जूठे बेर खाये, कृष्ण ने विदुर के यहाँ केले की जगह छिलके खाए, जामवंत की पुत्री से विवाह किया। आखिर कौन है वो जिस पर इल्जाम लग रहा है, कुछ नाम है उस्का या सिर्फ इल्जाम लगाने भर का काम है? अगर कोई सुअर मे भी ईश्वर का अंश देखता है तो यह इश्वर की सर्वव्यापकता का अनुभव है, इसमे क्या बुराई है? इन प्रश्नों के उत्तर की प्रतीक्षा में
प्रश्न तो इस्लाम पर भी हैं, अभीषेक ने कोइ गलत बात नही पूछी, इमराना से बलात्कार करने वाले उसके ससुर को संगसार क्यों नही, इनाम क्यों?
साथ ही मेरे मूल comment मे जो प्रश्न उठाए हैं उनके उत्तर की भी प्रतीक्षा है
मुझे एक e-Mail आया ish vani से कहते हैं "कृपया यह भी बताएं कि आपने हिन्दू धर्म के कौन कौन से ग्रंथ अभी तक पढ़े हैं ताकि आपसे संवाद करते समय उनका हवाला दिया जा सके और वह आपके लिए प्रमाण बने।"
तो बन्धु मै कहना चाहता हूँ कि आप किसी भी धर्म ग्रंथ का हवाला दे पर हवाला तो दें, इस लेख मे किसी भी धर्म ग्रंथ का हवाला देने से लेखक मुँह चुराता नजर आता है। लेखक ने यदि पुस्तकों का, धर्म ग्रंथो का नाम दिया होता तो क्या मै पूछता कि किस धर्म ग्रंथ मे लिखा है "पैदा करने वाले ने अपनी बेटी के साथ करोड़ों साल तक बलात्कार किया" इत्यादि......
इसके अतिरिक्त हिन्दु दर्शन की अनेक बाते कहानियों के माध्यम से है जिन्हे यथा रूप मे लेने पर अलग अर्थ निकलता है और वास्तविक निहितार्थ कुछ और होता है, यथा शिव का भस्मासुर से भागना, निश्चय ही शिव को किसी से डर कर भागने की आवश्यकता नहीं पर यह कथा है व्यक्ति के पहचानने से जुडी, अर्थात अगर बुरे व्यक्ति को नही पहचानोगे तो क्या अनर्थ हो सकता है, इसको समझें।
किसने कहा की आतंकवाद के खिलाफ फतवा नहीं? ये फतवा आप यहाँ पढ़ सकते हैं या यहाँ देख सकते हैं.
इमराना का ससुर इस समय जेल में अपने किये की सजा भुगत रहा है उसे कोई इनाम नहीं मिला है. अगर मुसलमान इस सजा को पर्सनल ला के खिलाफ मानते तो खामोश न रहते.
डॉ. जमाल सहाब हिन्दुओ में उंच नीच की बात करते हो खुद को आईने में देखो ....
(१)लडकिया गिना दोगे जो तुमने सउदिया से यंहा ला के अपनी बहू या बीबी बनाई हो ,(पूरे एशिया में )और कितनी गिन ना चाहोगे एशिया की मुस्लिम और दुसरी जात की लडकिया अरबो के रखेले बनी हुई हे ? कान्हा गयी तुम्हारे धरम की समानता ....और एकता ...कारण वो तुम्हे दोयाम मानते हे ..जवाब दो
(२)शिया सूनी का खूनी झगडा भी क्या इस्लामिक एकता का ही उदाहरन हे ?तालिबानियों के खिलाफ लडती पाकिस्तानी सेना भी इस्लामिक एकता का अछा उदहारण हे ?
(३).बराबर मतलब कोई उंच नीच नहीं कोई जाती पाती नहीं ..तो केवल ये भारत के मुसलमानों के लिए ही लागू होगी क्या ?तो भारत के अन्दर की ही बात करते हे ...पठान क्यों अपनी बेटी देशवाली को नहीं देना चाहता हे ?मुग़ल क्यों अपनी बेटी देशवाली को नहीं देना चाहता हे ? शेयद क्यों इन देशवाली मुसलमानों से खुद को ऊँचा समझता हे ?...ये अहमदी समाज क्यों मुसलमानों में बेचारा अलग थलग पड़ा हे ?
मोहमदी जिन्हें दो कोडी का समझते हे ?पठान देश्वलियो के हाथ का पानी पीना पसंद नहीं करते हे ..क्यों? खायाम्खानी सभी मुसलमानों से श्रेष्ठ क्यों बने हुवे हे ?(और वो हे) डा.भाईजमाल यंहा स्त्रियों किदशा पर आप ने ब्लॉग नहीं लिखा था आप ने जात पात उंच नीछ की बात उठाई थी ?
MANजी आप अनवर साहब की दूसरी बातों से सहमत हो ?
@Zeeshaan zaidi:- मुझे तुमसे तो कम से कम तथ्यपरक टिप्पणी की आशा थी। क्या इमराना के ससुर को फतवे के अनुसार इमराना से निकाह करने का निर्देश नही मिला था? क्या वो मुस्लिम कानून / रिवाजों के चलते जेल मे है, IPC के चलते नहीं?
@Ayaz Ahamed:- हमे जमाल जी के हिन्दु धर्म को नीचा दिखाने के तरीके से असहमति है। हमे उनके और आप सभी के तरीको पर आपत्ति है जिसमे हिन्दु धर्म की बुराई को गलत तथ्यॉ के माध्यम से निरुपित कर मुस्लिम अपनाने की बात होती है।
जिस प्रकार हिन्दु धर्म मे कुछ कुरीतियां आ गई हैं उसी प्रकार मुस्लिम जगत भी उससे अछूता नही है, जब हम उस पर बात करते हैं तो सभी आपत्ति जताते हैं, और जब हमारी बात आती है तो सच झूठ सभी प्रकार के अनर्गल आरोप लगा दिए जाते हैं।
यदि आप हमारे कुरितियॉ मे इतना रुचि रखते हैं तो स्वाभाविक रूप से हमारे बीच भी कुछ लोग हो सकते हैं जो आप की कुरितियों मे रुचि रखते हों। उनका विरोध किस आधार पर करते हैं आप सभी? बेह्तर होगा कि हम सभी दूसरों पर कीछड उछालने की बजाए अपना घर साफ करें। अगर आपको कुछ lead चाहिए तो मैं दूंगा, कहां क्या कुरितीयां है मुस्लिम समुदाय मे। आप सब उस पर काम करें तो समाज का. देश का भला होगा।
मैं स्वयं भी इसी प्रकार के मुहिम से जुडा हुआ हूँ। और आशा है कि आप भी इससे सबक ले कर सही दिशा मे आगे बढेगे।
@ Man साहब अनवर साहब ने लिखा है कि ईश्वर और धर्म का सही बोध बहुत कम लोगों को होता है नबी ऋषि के जाने के बाद लोग धर्म से हटकर मनमानी करते हैं मुसलमानों के जो काम आप गिना रहें हैं वे भी अनवर साहब की बात को ही प्रमाणित करते हैं उन्होने मुसलमानों को संबोधित करके भी उन्हें तौबा और सुधार की प्ररेणा देती हुई कई पोस्ट लिखी हैं । वंदे ईश्वरम् ।
डॉ. अयाज साहब, डॉ.जमाल साहब उदाहरण हिन्दू धरम से क्यों लेते हे .,बकी उनकी दूसरी बाते बिलकुल सही हे .में भी इनकी बातो से सहमत हूँ |
@ MAN जी ! उदहारण देने का मकसद बात को समझाना होता है जब अनवर साहब ईसाई या किसी मुस्लमान को समझाते हैं या सुधार की प्रेरणा देते है, तो उदहारण भी ईसाई या इस्लामी साहित्य से ही देते हैं, इसी तरह जब वे हिन्दू भाईयों से संवाद करते हैं तो उदहारण भी हिन्दू साहित्य से ही देना स्वाभाविक है । जबकि नास्तिक बुद्धिजीवों से बात करते हुए वे किसी भी धार्मिक साहित्य से प्रमाण नहीं देते, बल्कि केवल बौधिक तर्क वितरक करते हैं।
@ रविन्द्र नाथ जी ! कुरीतियों का कोई धर्म नहीं होता, एक समाज की कुरीतियाँ दूसरे समाज पर भी बुरा प्रभाव डालती हैं, इसलिए कुरीतिओं के खात्मे के लिए 'मिलकर' प्रयास करना ज़रूरी है . हम सभी एक भारत के नागरिक हैं इसलिए हम सभी एक परिवार हैं , जो लोग धर्म-मत के आधार पर हिन्दुओं-मुसलमानों को दो अलग-अलग घरों का रहने वाला समझते हैं, वे भारतीय समाज में मानसिक विभाजन करते हैं और नफ़रत की बुनियाद पर भ्रम की दीवारें खड़ी करते हैं। आज ज़रुरत एक होने की है न कि बटने और बांटने की, एक होने का सबसे बड़ा आधार यह है की सब का मालिक एक है, और पैग़म्बर मुहम्मद साहब की जीवनी हर एक मनुष्य के लिए आदर्श है। जो इसे नहीं मानता वह यह बताये कि वह कैसे तय करेगा की कौनसी बात कुरीति है और उसका खात्मा किस तरीके से किया जाये ? हज़रत मुहम्मद साहब से पहले आ चुके ऋषिओं, नाबिओं का जीवन भी एक आदर्श जीवन था, लेकिन आज उनका जीवन चरित्र हमारे पास सुरक्षित नहीं है.यह एक दुखद सत्य है।
एजाज उल हलक साहब में आप की बात का मान रखता हूँ ,लेकिन ये मनघडंत उदहारण जो किसी घटिया साहित्य यापूस्तको से उठा के डॉ. जमाल साहब यहाँ इस तरह पर्स्तुत करते हे मानों हिन्दुस्तानी आबादी ९०% हिन्दू हिस्सा इसी जहालत में जी रह हो, जबकि इन घटिया बातो को मानने वाले २% भी नहीं की किसी ने अपनी बेटी से करोडो वर्षो से बलात्कार किया ?इस तरह की बाते कोई नहीं मानता हे |जबकि साहब उठा के इस तरह प्र्स्रूत करते हे की ये तो हिंदुवो के जीवन की आवशक बुराई बन चुकी हे ?कुरूतिय बुराइया सभी जगह हे |
@ MANजी अनवर साहब ने यह कभी नही कहा कि इन बातों को अधिसंख्य हिंदु मानते है ब्लकि उन्होने इन कुरीतियों के प्रति समाज को जागरूक करने का प्रयत्न किया । किसी भी कुरीति के मानने वालों की संख्या चाहे जितनी कम हो परंतु उसके खिलाफ लोगों को जागरूक न किया जाए तो उनकी संख्या बड़ी तेजी से बढ़ सकती है । क्योकि बुराई अच्छाई के मुकाबले ज्यादा जल्दी फैलती है ।
राजेंद्र स्वर्णकार जी ! आपने इस प्रश्नौत्तर पर कोई प्रतिकिर्या नहीं दिखाई ।
@ रविन्द्र जी ! (1 ) वाल्मीकि रामायण में आया है कि राम जन्म के समय रजा दशरथ की आयु 60 हज़ार साल थी. अयोध्या कांड 34वें सर्ग श्लोक नंबर 10 -13 में कि रजा दशरथ के कौसल्या आदि महारानियों के अलावा 350 जवान रानियाँ भी थीं, वे सभी पतिव्रता थीं, प्रष्ट संख्या 283 प्रकाशन गीता प्रेस गोरखपुर।
(2 ) श्रीमदभागवत महापुराण के 10 -59 में आया है की श्री कृषण जी ने 16100 राज कन्याओं से विवाह कर उन्हें अपनी पत्नी बनाया और उन सभी ने दासियों सहित उनकी भली प्रकार सेवा की ।
( 3 ) ये वे सामान्य तथ्य हैं जिन्हें गीता, रामायण न पढ़ने वाला हिन्दू भी जानता है, इनके न जानने से पता चलता है की आप सामान्य हिन्दू के स्तर का भी ज्ञान नहीं रखते, आपने हवाला माँगा सो मैंने दे दिया, लेकिन मुझे इन दोनों साहिबान के बहु विवाह पर कोई ऐतराज़ नहीं है क्योंकि आज तक किसी भी मुस्लिम आलिम ने इन पर ऐतराज़ किया भी नहीं है, हमें सम्मान सिखाया गया है हम सभी महापुरुषों का सम्मान करते भी हैं ।
(4 ) दुःख होता है यह देख कर कि जो हिन्दू श्री कृषण जी को ईश्वर का दर्जा देते हैं वे उनके अश्लील चित्र बनाते हैं, उनके भक्त उन्हें सरहाते हैं जबकि मक़बूल फ़िदा के इसी कर्म को घिनौना बताते है और उन्हें देश से भगाते हैं,जो कर्म दुसरे का निंदनीय है वह अपना होकर प्रशाश्नीय कैसे बन जाता है? इसी दोहरे माप दंड पर मुझे सख्त ऐतराज़। यहाँ देखें
( 5 ) 16100 रानियों के लिए यहाँ देखें
( 6 ) गीता और रामायण के सड़क पर बिकने से वे घटिया नहीं हो जाती बल्कि इससे उनकी लोकप्रियता का पता चलता है ।
@ रविन्द्र जी ! (1 ) वाल्मीकि रामायण में आया है कि राम जन्म के समय रजा दशरथ की आयु 60 हज़ार साल थी. अयोध्या कांड 34वें सर्ग श्लोक नंबर 10 -13 में कि रजा दशरथ के कौसल्या आदि महारानियों के अलावा 350 जवान रानियाँ भी थीं, वे सभी पतिव्रता थीं, प्रष्ट संख्या 283 प्रकाशन गीता प्रेस गोरखपुर।
(2 ) श्रीमदभागवत महापुराण के 10 -59 में आया है की श्री कृषण जी ने 16100 राज कन्याओं से विवाह कर उन्हें अपनी पत्नी बनाया और उन सभी ने दासियों सहित उनकी भली प्रकार सेवा की ।
( 3 ) ये वे सामान्य तथ्य हैं जिन्हें गीता, रामायण न पढ़ने वाला हिन्दू भी जानता है, इनके न जानने से पता चलता है की आप सामान्य हिन्दू के स्तर का भी ज्ञान नहीं रखते, आपने हवाला माँगा सो मैंने दे दिया, लेकिन मुझे इन दोनों साहिबान के बहु विवाह पर कोई ऐतराज़ नहीं है क्योंकि आज तक किसी भी मुस्लिम आलिम ने इन पर ऐतराज़ किया भी नहीं है, हमें सम्मान सिखाया गया है हम सभी महापुरुषों का सम्मान करते भी हैं ।
(4 ) दुःख होता है यह देख कर कि जो हिन्दू श्री कृषण जी को ईश्वर का दर्जा देते हैं वे उनके अश्लील चित्र बनाते हैं, उनके भक्त उन्हें सरहाते हैं जबकि मक़बूल फ़िदा के इसी कर्म को घिनौना बताते है और उन्हें देश से भगाते हैं,जो कर्म दुसरे का निंदनीय है वह अपना होकर प्रशाश्नीय कैसे बन जाता है? इसी दोहरे माप दंड पर मुझे सख्त ऐतराज़ है। यहाँ देखे http://en.wikipedia.org/wiki/File:Balakrishna_at_National_Museum,_New_Delhi.jpg
( 5 ) 16100 रानियों के लिए यहाँ देखें http://en.wikipedia.org/wiki/Krishna
( 6 ) गीता और रामायण के सड़क पर बिकने से वे घटिया नहीं हो जाती बल्कि इससे उनकी लोकप्रियता का पता चलता है ।
@ MAN जी ! जिन पुस्तकों से मैंने हवाला दिया है उनमें हिन्दुओं कि अक्सिरियत विश्वास रखती है, और उन्हें घटिया पुस्तक नहीं बल्कि ईश्वरीय ग्रन्थ मानती हैं, ऐसा मैं समझता हूँ, कुछ ग़लत हो तो कृपया सही तथ्य सामने लायें ।
1 अनवर साहब ने तो कहीं पुराण कथाओं में विश्वास रखने वालों की जनसँख्या का प्रतिशत दिखाया नहीं, फिर आप कैसे कह सकते है की वे अधिसंख्यक हिन्दुओं द्वारा पुराण कथाओं में विश्वास रखना बता रहे हैं ।
2 कृपया बताएं पुराणों को मानने वाले हिन्दू समाज में बहु संख्यक हैं या अल्प संख्यक अर्थात ज्यादा है या उँगलियों पर गिनने लायक. आप द्वारा अपने विचार प्रकट करने के लिए मैं आप का शुक्रगुज़ार हूँ , मैं आप द्वारा पोस्ट पर आने और तथ्यों की पुष्टि करने के लिए शुक्रगुज़ार हूँ ।
कृपया यहाँ भी देखें
@Dr. Ayaz Ahmad सर्व प्रथम तो कोई भी हिन्दु यह नही मानता कि "पैदा करने वाले ने अपनी बेटी के साथ करोड़ों साल तक बलात्कार किया" यह मानने वाले सिर्फ जमाल और आप लोग हैं तो हिन्दुओं नही तो मैने बार बार कहा है कि धर्म ग्रन्थों का हवाला दो उस पर चुप्पी मार कर बैठे है सब। द्वितीय अल्पसंखक बुराई इस्लाम मे भी है, MAN जि ने गिनाई उस पर क्या करने वाले हैं, क्या अरबों को कोई संदेश देगे? इस्लाम मे भी स्त्री प्रताडना, दहेज, जाति - पांत जैसी कुरीतियां हैं, उस पर क्या कर रहे हैं?
मुझे तो स्पष्ट रूप से यह मामला बुराई दूर करने के प्रयत्न के बजाए बुराई करने का लग रहा है। जिस प्रकार लेखक ने बिना संदर्भ, बिना ठोस प्रमाण के आरोप लगाए हैं वो लेखक के मंतव्य पर प्रश्न चिन्ह पैदा करता है।
@ रविन्द्र जी ! @ MAN जी ! कृपया
यहाँ क्लिक करें
@ रविन्द्र जी !
@ MAN जी ! कृपया यहाँ भी पढ़ें
Jamal Sahab aap Apna blog padhe...
http://jeevanka1sach.blogspot.com/
@EJAJ UL HAQ:- बहुत धन्यवाद कि आप ने यह जानकारी पा ली कि मेरे पास एक सामान्य हिन्दु जितना भी ज्ञान नही है। अब आप के ज्ञान वर्धन हेतु गीताप्रेस गोरखपुर संसकृत रामायण नही तुलसी कृत रामचरितमानस का मुद्रण करता है। अतः आपके पास जो भी ग्रंथ है वो रामायण नही है, उसके तथ्य झूठे हैं, कृपया उससे तुरंत मुक्ति पाए। कृष्ण जी की ८ पटरानियाँ थी जो कि विभिन्न कारणों से उनसे ब्याही थी, जैसे मुहम्मद साहब के कई विवाह हुए थे। रही बात १६१०० कन्याओं की तो उनको नरकासुर से मुक्त कराने के पश्चात योगेश्वर श्रीकृष्ण ने उनका समाज मे पुनर्वास कराया, संसकृत मे पति का अर्थ संरक्षक भी होता है, आप का ज्ञान तो मुझसे (जिसे एक सामान्य हिन्दु से भी कम मालूम है) ज्यादा है, (आपके बातों से यही प्रतीत होता है) तो आप तो इसको जानते ही होगे मुझे पूरा विश्वास है तब आप किस लोभ मे इस अफवाह गिरोह मे सम्मिलित हुए हैं कृपया स्पष्ट करें।
श्रीकृष्ण का अश्लील चित्रण!!!! शायद आपको प्रेम और वासना मे अंतर नही मालूम, अन्यथा ऐसा नही कहते।
रही बात गीता और रामायण के सडक पर बिकने की तो मैने तो आज तक कही नही देखा हाँ घटिया उपन्यास जरूर मिलते हैं। काश यह इतने लोकप्रिय होते।
गीता के वाक्यों का संदर्भ बिना समझे दिया गया है, योगेश्वर श्रीकृष्ण ने आत्मा के संदर्भ मे यह कहा है, और कहा है कि आत्मा परमात्मा का अंश है, समस्त जीवधारीयों मे आत्मा वास करती है, अगर आपका गीता मे सच मे विश्वास है तो आपसे मत भिन्नता रखते है उनसे शत्रुता छोडे।
आपलोगो ने इतने सारे reference दिए पर अभी तक किसी ने नही बताया कि किस पुस्तक मे लिखा है कि "पैदा करने वाले ने अपनी बेटी के साथ करोड़ों साल तक बलात्कार किया तब जाकर यह सारी सृष्टि पैदा हुई।"
अजाज उल हक़ साहब आप के लिंक पर किलिक किया ,..अच्छी जानकारी मिली हकीकत में हिन्दू धर्म इतना विशाल और उदारमना हे की जिस तरह गंगा में सेकड़ो नदिया ,उप नदिया गंदे नाले भी आकर मिलते हे लेकिन उसकी पवित्रता में लोग इसतरह आत्मलीन हो के डूबकी लगते हे जेसे की माँ का आंचल हो |आप जिस ""वाल्मीकि रामायण"" की बात कर रहे हे मेने इस तरह की कोई बात उसमे नहीं पढ़ी जरूर मूल गरंथ से छेड़ छाड़ हुई हे ,और दूसरी बात घर घर का महाकाव्य तुलसीदास कृत रामायण हे सर न की वाल्मीकि रामायण |
अजाज उल हक़ साहब अभी हम कुरान के कुछ उदाहरन देंगे तो रास्ट्रीय आपदा आ जाएगी ,जेसे की खतना इस्लाम में कूपर्था हे जो की अरबी माहोल के हिसाब से वैज्ञानिक थी इसका कारन भी CEALEAR था लेकिन इसे इस तरह मान लिया गया हे जेसे इसके बिना सम्पूर्ण मुस्लिम नहीं हो सकता ....पहले अपनी कूपर्थावो को हटावो साहब ......कारण ये हे खतना का ........
** खतना (Circumcision)यहूदी और इस्लाम में इसलिये है क्योंकि यह धर्म रेगिस्तान में अस्तित्व में आये, Glans- Penis के ऊपर चढ़ी चमड़ी (Prepuce) के नीचे एक स्राव जमा हो जाता है जिसे Smegma कहते हैं यह महिला के Genital tract के लिये व स्वयं पुरूष जननांग ले लिये Carcinogenic है, पानी की कमी थी नियमित स्नान-सफाई संभव नहीं थी... इसलिये खतना की परंपरा चली।......अब सहाब इन झूटी कूरितियो को हटाने केबारे ME आप क्या कहंगे ?
@रवींद्र जी ब्रह्मा जी यह प्रसंग आप श्रीमद भागवत 3, 12 मे यह वर्णन पढ़ सकते हैं अश्लील वर्णन कवि की झूठी कल्पना है जिसे यहाँ लिखना उचित नही है । दूसरी बात यह कि आप गीता प्रेस की सूची मंगाकर देख ले आपको पता चल जाएगा कि वाल्मीकि रामायण भी वहीं से छपी है और तुलसीकृत मानस भी इसी पर टिकी है । श्रीकृष्ण जी ने16100 राजकुमारियों का पुनर्वास कैसे और किस नगर मे कराया आपने प्रमाण नही बताया । श्रीकृष्ण जी का संबंध एक बच्चे की माँ और अपनी मामी राधा जी जोड़ना और उनके नंगे चित्र बनाना उनका अनादर करना है पाप है । इससे बचें जैसे की मुसलमान बचते हैं ।
nice post with nice comments - maja aa gaya
http://naukari-times.blogspot.com/
रानियाँ भौमासुर की कैद में थीं न कि नरकासुर की . आपने जहाँ पढ़ा है उसका हवाला दीजिये . अपने मन से मत बताइये.
जमाल भौमासुर और नरकासुर एक ही व्यक्ति का नाम है। जैसे रावण और दशानन, मेघनाद और इन्द्रजीत। मेरा काम अपने मन से कहानियाँ सुनाने का नही है, वो मैने इस ब्लोग के लेखक से लिए छोड रखा है।
जानकारी के लिए प्रेम सागर का पाठ कीजीए शांति मिलेगी और कृष्ण जी के बारे मे ज्ञान भी बढेगा।
@ रविन्द्र जी ! आप अभी भी अपने मन से कह रहे हैं, यदि नहीं तो भौमासुर, नरकासुर एक ही व्यक्ति के नाम हैं, इसका का हवाला तो दीजिये,
इस्लाम आतंक ? या आदर्श यहाँ पढ़ें
श्री कृष्ण जी की बुलन्द और सच्ची शान को जानने के लिये कवियों की झूठी कल्पनाओं को त्यागना ज़रूरी है
@ ravindra ji ! कवियों ने श्री कृष्ण जी का चरित्र लिखने में भी झूठी कल्पनाओं का सहारा लिया। श्री कृष्ण जी द्वारा गोपियों आदि के साथ रासलीला खेलने का बयान लिख दिया। यह भी कवि की कल्पना मात्र है। सच नहीं बल्कि झूठ है।
श्रीमद्भागवत महापुराण 10, 59 में लिख दिया कि उनके रूक्मणी और सत्यभामा आदि 8 पटरानियां थीं। एक अवसर पर उन्होंने भौमासुर को मारकर सोलह हज़ार एक सौ राजकन्याओं को मुक्त कराया और उन सभी को अपनी पत्नी बनाकर साधारण गृहस्थ मनुष्य की तरह उनके साथ प्रेमालाप किया और इनके अलावा भी उन्होंने बहुत सी कन्याओं से विवाह किये। इन सभी के 10-10 पुत्र पैदा हुए। इस तरह श्री कृष्ण जी के बच्चों की गिनती 1,80,000 से ज़्यादा बैठती है।
कॉमन सेंस से काम लेने वाला हरेक आदमी कवि के झूठ को बड़ी आसानी से पकड़ लेगा। मिसाल के तौर पर 10वें स्कन्ध के अध्याय 58 में कवि कहता है कि कोसलपुरी अर्थात श्री कृष्ण जी ने अयोध्या के राजा नग्नजित की कन्या सत्या का पाणिग्रहण किया। राजा ने अपनी कन्या को जो दहेज दिया उसकी लिस्ट पर एक नज़र डाल लीजिए।
‘राजा नग्नजित ने दस हज़ार गौएं और तीन हज़ार ऐसी नवयुवती दासियां जो सुन्दर वस्त्र तथा गले में स्वर्णहार पहने हुए थीं, दहेज में दीं। इनके साथ ही नौ हज़ार हाथी, नौ लाख रथ, नौ करोड़ घोड़े और नौ अरब सेवक भी दहेज में दिये।। 50-51 ।। कोसलनरेश राजा नग्नजित ने कन्या और दामाद को रथ पर चढ़ाकर एक बड़ी सेना के साथ विदा किया। उस समय उनका हृदय वात्सल्य-स्नेह उद्रेक से द्रवित हो रहा था।। 52 ।।‘
तथ्य- क्या वाक़ई अयोध्या इतनी बड़ी है कि उसमें नौ अरब सेवक, नौ करोड़ घोड़े और नौ लाख रथ समा सकते हैं ?
जिस महल में ये सब रहते होंगे, वह कितना बड़ा होगा?
इनके अलावा एक बड़ी सेना भी थी, उसकी संख्या भी अरबों में ही होगी। यह सब कवि की कल्पना में होना तो संभव है लेकिन हक़ीक़त में ऐसा होना संभव नहीं है। इतिहास में भी भारत के किसी एक राज्य की तो क्या पूरे भारत की जनसंख्या भी कभी इतनी नहीं रही।
कृष्ण बड़े हैं कवि नहीं। सत्य बड़ा है कल्पना नहीं। आदर प्रेम ज़रूरी है। श्री कृष्ण जी के प्रति आदर व्यक्त करने के लिए हरेक आदमी की बात को मानने से पहले यह परख लेना वाजिब है कि इसमें कितना सच है ?
@ MAN ! श्री कृष्ण जी का आदर मुसलमान भी करते हैं बल्कि सच तो यह है कि उनका आदर सिर्फ़ मुसलमान ही करते हैं क्योंकि वे उनके बारे में न तो कोई मिथ्या बात कहते हैं और न ही मिथ्या बात सुनते हैं। उनकी शान में बट्टा लगाने वाली हरेक बात को कहना-सुनना पाप और हराम मानते हैं।
@Ezaz ul ha:- मैने पुस्तक का नाम दिया है, "प्रेम सागर" नाम दिखेगा मेरी टिप्पणी मे।
@Dr. Ayaz Ahmad:- मैं गीताप्रेस की पुस्तकों की सूची मंगा लूगा पर और देख लूंगा। १६१०० कुमारियों के विषय मे किसी पुस्तक मे पढने कि आवश्यकता नही है दिमाग लगाने की जरूरत है। श्रीकृष्ण
Man जी:- कुरान मे गुस्ताखी की बात छोडिए, अभी इस शांति के महाग्रन्थ के जलए जाने कि झूठी खबर पर घाटी मे कितने भवन जला दिए गये। मुहम्मद साहब के विषय मे एक कहानी पढी थी, जिसमे बताया गया था कि कैसे अपने उपर कूडा फेकने वाली औरत के प्रति भी वो सद्भाव रखते थे, उस कहानी को छापने के बाद अखबार के दफ्तर पर हमला होता है और अंततः उस अखबार को यह सदासयता पूर्ण घटना छापने पर माफी माँगनी पडी। ऐसे अनेक घटनाएँ हैं।
इस्लाम मैं आतंकवाद के खिलाफ फतवा नहीं है, यह सवाल ही गलत है. कुरान मैं बार बार कहा गया है की एक बेगुनाह का क़त्ल ऐसा है जैसे पूरी इंसानियत का क़त्ल किया गया. क्या अब भी फतवा चहिये? हाँ अगर कोई मुसलमान इसको मानता ना दिखाई दे तो यह उस इंसान का जाती मसला है. आज यह भी साबित हो चुका है, आतंकवाद किसी धर्म विशेष की जागीर नहीं. आज अमेरिका लाखों इंसानों को क़त्ल करे तो कोई आतंकवादी होने का इलज़ाम किसी ईसाई या यहूदी पे नहीं लगाता. क्यूँ?
इस्लाम हमेशा इन्साफ का साथी और ज़ुल्म के खिलाफ रहा है.
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