सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
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Sunday, September 19, 2010
The Life style of Sri Krishna आखि़र कोई तो बताये कि श्री कृष्ण जी ने कहां कहा है कि वे ईश्वर हैं और लोगों को उनकी पूजा-उपासना करनी चाहिये ? - Anwer Jamal
@ श्री रविन्द्र जी ! आप मुसलमानों से कह रहे हैं कि यदि वे श्रीकृष्ण जी का आदर करते हैं तो उनकी जन्मभूमि पर जबरन और नाजायज़ तौर पर बनाई गई मस्जिद हिन्दुओं को वापस कर दें।
मुफ़्तख़ोरी के लिए ही इस्लाम पर बेबुनियाद आरोप
1. इस संबंध में मुझे यह कहना है कि अयोध्या हो या काशी हरेक जगह मस्जिदें और मुसलमान कम हैं। अगर कोई शासक वहां मन्दिर तोड़ता तो सारे ही तोड़ता और जैसा कि कहा जाता है कि हिन्दुओं से इस्लाम कुबूल करने के लिए कहा जाता था और जो इस्लाम कुबूल नहीं करता था, उसकी गर्दन काट दी जाती थी। अगर मुस्लिम शासकों ने वाक़ई ऐसा किया होता तो इन हिन्दू धर्म नगरियों में आज मुसलमान और मस्जिदें अल्प संख्या में न होतीं। इनकी संख्या में कमी से पता चलता है कि मस्जिदें जायज़ तरीक़े से ही बनाई गई हैं लेकिन ऐतिहासिक पराजय झेलने वाले ख़ामख्वाह विवाद पैदा कर रहे हैं ताकि इस्लाम को बदनाम करके उसके बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके। अगर लोग इस्लाम को मान लेंगे तो फिर न कोइ शनि को तेल चढ़ाएगा और न ही कोई मूर्ति को भोग लगाएगा। इस तरह बैठे बिठाए खाने वालों को तब खुद मेहनत करके खानी पड़ेगी। अपनी मुफ़्तख़ोरी को बनाये रखने के लिए ही इस्लाम पर बेबुनियाद आरोप लगाए जाते हैं जिन्हें निष्पक्ष सत्यान्वेषी कभी नहीं मानते।
सब कुछ पूर्वजन्मों के कर्मफल के अनुसार ही मिलता है
2. इससे यह भी पता चलता है कि हिन्दुओ को अपनी मान्यताओं पर खुद ही विश्वास नहीं है। हिन्दुओं का मानना है कि जो कुछ इस जन्म में किसी को मिलता है वह सब प्रारब्ध के अर्थात पूर्वजन्मों के कर्मफल के अनुसार ही मिलता है। प्रारब्ध को भोगना ही पड़ता है। बिना भोगे यह क्षीण नहीं होता। ईश्वर भी इसे नहीं टाल सकता। यही कारण है कि अर्जुन आदि को भी नर्क में जाना पड़ा था। आपके पिछले जन्मों के फल आज आपके सामने हैं इसमें मुसलमान कहां से ज़िम्मेदार हो गया भाई ?, ज़रा सोचो तो सही। जो कुछ हुआ सब प्रभु की इच्छा से ही हुआ, ऐसा आपको मानना चाहिए अपनी मान्यता के अनुसार।
श्रीकृष्ण जी के असली और जायज़ वारिस केवल मुसलमान हैं
3. केवल मुसलमान ही श्रीकृष्ण जी का आदर करते हैं तब क्यों वे मस्जिद को उन लोगों को दे दें जो श्रीकृष्ण जी को ‘चोर‘ , ‘जार‘ ‘रणछोड़‘ और ‘जुआरियों का गुरू‘ बताकर उनका अपमान कर रहे हैं। अपनी कल्पना से बनाई मूर्ति पर फूल चढ़ाकर मन्दिरों में नाचने और ज़ोर ज़ोर से ‘माखन चोर नन्द किशोर‘ गाने वालों का श्री कृष्ण जी से क्या नाता ?
श्री कृष्ण जी से नाता है उन लोगों का जो श्री कृष्ण जी के आचरण को अपनाये हुए हैं
श्री कृष्ण जी ने एक से ज़्यादा विवाह किये और जितने ज़्यादा हो सके उतने ज़्यादा बच्चे पैदा किये। शिकार खेला और इन्द्र की पूजा रूकवायी और अपनी कभी करने के लिये कहा नहीं। ये सभी आचरण धर्म हैं जिनसे आज एक हिन्दू कोरा है । अगर आज ये बातें कहीं दिखाई देती हैं तो केवल मुसलमानों के अन्दर। इसीलिए मैं कहता हूं कि केवल मुसलमान ही श्री कृष्ण जी के असली और जायज़ वारिस हैं क्योंकि ‘धर्म‘ आज उनके ही पास है।
सब तरीक़े ठीक हैं तो फिर किसी एक विशेष पूजा-पद्धति पर बल क्यों ?
4. आप यह भी कहते हैं कि उपासना पद्धति से कोई अन्तर नहीं पड़ता सभी तरीक़े ठीक हैं। सभी नामरूप एक ही ईश्वर के हैं। तब आप क्यों चाहते हैं कि मस्जिद को ढहाकर एक विशेष स्टाइल का भवन बनाया जाए और उसमें नमाज़ से भिन्न किसी अन्य तरीक़े से पूजा की जाए ?
इसके बावजूद आप एक मस्जिद क्या भारत की सारी मस्जिदें ले लीजिए, हम देने के लिए तैयार हैं। पूरे विश्व की मस्जिदें ले लीजिए बल्कि काबा भी ले लीजिये जो सारी मस्जिदों का केन्द्र आपका प्राचीन तीर्थ है लेकिन पवित्र ईश्वर के इस तीर्थ को, मस्जिदों को पाने के लायक़ भी तो बनिये। अपने मन से ऐसे सभी विचारों को त्याग दीजिए जो ईश्वर को एक के बजाय तीन बताते हैं और उसकी महिमा को बट्टा लगाते हैं।
ऐसे विचारों को छोड़ दीजिए जिनसे उसका मार्ग दिखाने वाले सत्पुरूषों में लोगा खोट निकालें। आप खुद को पवित्र बनाएं, ईश्वर और उसके सत्पुरूषों को पवित्र बताएं जैसे कि मुसलमान बताते हैं। तब आपको कोई मस्जिद मांगनी न पड़ेगी बल्कि काबा सहित हरेक मस्जिद खुद-ब-खुद आपकी हो जाएगी।
@ श्री रविन्द्र जी और श्री अभिषेक जी ! मैं स्वयं को श्रेष्ठ तो नहीं मानता क्योंकि निजी तौर पर मैं श्रेष्ठता का स्वामी नहीं हूं। मैं एक जीवन जी रहा हूं और नहीं जानता कि अन्त किस हाल में होगा, सत्य पर या असत्य पर, मालिक के प्रेम में या फिर तुच्छ सांसारिक लोभ में ?
श्रेष्ठता का आधार कर्म बनते हैं। जब जीवन का अन्त होता है तब कर्मपत्र बन्द कर दिया जाता है। जिस कर्म पर जीवनपत्र बन्द होता है यदि वह श्रेष्ठ होता है तो मरने वाले को श्रेष्ठ कहा जा सकता है। मेरी मौत से ही मैं जान पाऊँगा कि मैं श्रेष्ठ हूं कि नहीं ? तब तक आप भी इन्तेज़ार कीजिये।
मैं अपने बारे में तो नहीं कह सकता लेकिन ईश्वर अवश्य ही श्रेष्ठ है, उसका आदेश भी श्रेष्ठ है। उसकी उपासना करना और उसका आदेश मानना एक श्रेष्ठ कर्म है। ऋषियों का सदा यही विषय रहा है। मेरा विषय भी यही है और आपका भी यही होना चाहिए। भ्रम की दीवार को गिराने के लिए विश्वास का बल चाहिए। पाकिस्तान क्या चीज़ है सारी एशिया का सिरमौर आप बनें ऐसी हमारी दुआ और कोशिश है। इसके लिए चाहिए आपस में एकता बल्कि ‘एकत्व‘।
हमारी आत्मा एक ही आत्मा का अंश है तो फिर हमारे मन और शरीरों को भी एक हो जाना चाहिए। इसी से शक्ति का उदय होगा, इसी शक्ति से भारत विश्व का नेतृत्व करेगा। भारत की तक़दीर पलटा खा रही है, युवा शक्ति ज्ञान की अंगड़ाई ले रही है। जो महान घटित होने जा रहा है हम उसके निमित्त और साक्षी बनें और ऐसे में क्यों न विवाद के सभी आउटडेटिड वर्ज़न्स त्याग दें।
आखि़र कोई तो बताये कि श्री कृष्ण जी ने कहां कहा है कि वे ईश्वर हैं और लोगों को उनकी पूजा-उपासना करनी चाहिये ?
मुफ़्तख़ोरी के लिए ही इस्लाम पर बेबुनियाद आरोप
1. इस संबंध में मुझे यह कहना है कि अयोध्या हो या काशी हरेक जगह मस्जिदें और मुसलमान कम हैं। अगर कोई शासक वहां मन्दिर तोड़ता तो सारे ही तोड़ता और जैसा कि कहा जाता है कि हिन्दुओं से इस्लाम कुबूल करने के लिए कहा जाता था और जो इस्लाम कुबूल नहीं करता था, उसकी गर्दन काट दी जाती थी। अगर मुस्लिम शासकों ने वाक़ई ऐसा किया होता तो इन हिन्दू धर्म नगरियों में आज मुसलमान और मस्जिदें अल्प संख्या में न होतीं। इनकी संख्या में कमी से पता चलता है कि मस्जिदें जायज़ तरीक़े से ही बनाई गई हैं लेकिन ऐतिहासिक पराजय झेलने वाले ख़ामख्वाह विवाद पैदा कर रहे हैं ताकि इस्लाम को बदनाम करके उसके बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके। अगर लोग इस्लाम को मान लेंगे तो फिर न कोइ शनि को तेल चढ़ाएगा और न ही कोई मूर्ति को भोग लगाएगा। इस तरह बैठे बिठाए खाने वालों को तब खुद मेहनत करके खानी पड़ेगी। अपनी मुफ़्तख़ोरी को बनाये रखने के लिए ही इस्लाम पर बेबुनियाद आरोप लगाए जाते हैं जिन्हें निष्पक्ष सत्यान्वेषी कभी नहीं मानते।
सब कुछ पूर्वजन्मों के कर्मफल के अनुसार ही मिलता है
2. इससे यह भी पता चलता है कि हिन्दुओ को अपनी मान्यताओं पर खुद ही विश्वास नहीं है। हिन्दुओं का मानना है कि जो कुछ इस जन्म में किसी को मिलता है वह सब प्रारब्ध के अर्थात पूर्वजन्मों के कर्मफल के अनुसार ही मिलता है। प्रारब्ध को भोगना ही पड़ता है। बिना भोगे यह क्षीण नहीं होता। ईश्वर भी इसे नहीं टाल सकता। यही कारण है कि अर्जुन आदि को भी नर्क में जाना पड़ा था। आपके पिछले जन्मों के फल आज आपके सामने हैं इसमें मुसलमान कहां से ज़िम्मेदार हो गया भाई ?, ज़रा सोचो तो सही। जो कुछ हुआ सब प्रभु की इच्छा से ही हुआ, ऐसा आपको मानना चाहिए अपनी मान्यता के अनुसार।
श्रीकृष्ण जी के असली और जायज़ वारिस केवल मुसलमान हैं
3. केवल मुसलमान ही श्रीकृष्ण जी का आदर करते हैं तब क्यों वे मस्जिद को उन लोगों को दे दें जो श्रीकृष्ण जी को ‘चोर‘ , ‘जार‘ ‘रणछोड़‘ और ‘जुआरियों का गुरू‘ बताकर उनका अपमान कर रहे हैं। अपनी कल्पना से बनाई मूर्ति पर फूल चढ़ाकर मन्दिरों में नाचने और ज़ोर ज़ोर से ‘माखन चोर नन्द किशोर‘ गाने वालों का श्री कृष्ण जी से क्या नाता ?
श्री कृष्ण जी से नाता है उन लोगों का जो श्री कृष्ण जी के आचरण को अपनाये हुए हैं
श्री कृष्ण जी ने एक से ज़्यादा विवाह किये और जितने ज़्यादा हो सके उतने ज़्यादा बच्चे पैदा किये। शिकार खेला और इन्द्र की पूजा रूकवायी और अपनी कभी करने के लिये कहा नहीं। ये सभी आचरण धर्म हैं जिनसे आज एक हिन्दू कोरा है । अगर आज ये बातें कहीं दिखाई देती हैं तो केवल मुसलमानों के अन्दर। इसीलिए मैं कहता हूं कि केवल मुसलमान ही श्री कृष्ण जी के असली और जायज़ वारिस हैं क्योंकि ‘धर्म‘ आज उनके ही पास है।
सब तरीक़े ठीक हैं तो फिर किसी एक विशेष पूजा-पद्धति पर बल क्यों ?
4. आप यह भी कहते हैं कि उपासना पद्धति से कोई अन्तर नहीं पड़ता सभी तरीक़े ठीक हैं। सभी नामरूप एक ही ईश्वर के हैं। तब आप क्यों चाहते हैं कि मस्जिद को ढहाकर एक विशेष स्टाइल का भवन बनाया जाए और उसमें नमाज़ से भिन्न किसी अन्य तरीक़े से पूजा की जाए ?
इसके बावजूद आप एक मस्जिद क्या भारत की सारी मस्जिदें ले लीजिए, हम देने के लिए तैयार हैं। पूरे विश्व की मस्जिदें ले लीजिए बल्कि काबा भी ले लीजिये जो सारी मस्जिदों का केन्द्र आपका प्राचीन तीर्थ है लेकिन पवित्र ईश्वर के इस तीर्थ को, मस्जिदों को पाने के लायक़ भी तो बनिये। अपने मन से ऐसे सभी विचारों को त्याग दीजिए जो ईश्वर को एक के बजाय तीन बताते हैं और उसकी महिमा को बट्टा लगाते हैं।
ऐसे विचारों को छोड़ दीजिए जिनसे उसका मार्ग दिखाने वाले सत्पुरूषों में लोगा खोट निकालें। आप खुद को पवित्र बनाएं, ईश्वर और उसके सत्पुरूषों को पवित्र बताएं जैसे कि मुसलमान बताते हैं। तब आपको कोई मस्जिद मांगनी न पड़ेगी बल्कि काबा सहित हरेक मस्जिद खुद-ब-खुद आपकी हो जाएगी।
आओ और ले लो यहां की मस्जिद, वहां की मस्जिद।
ले लो मदीने की मस्जिद, ले लो मक्का की मस्जिद ।।
@ मान भाई ! ऊंचा नाम मालिक का है। जब आप उसकी शरण में आएंगे तो आपका यह भ्रम निर्मूल हो जाएगा कि कोई आपको नीचा दिखाना चाहता है। यहां केवल सच है और प्यार है, सच्चा प्यार ।@ श्री रविन्द्र जी और श्री अभिषेक जी ! मैं स्वयं को श्रेष्ठ तो नहीं मानता क्योंकि निजी तौर पर मैं श्रेष्ठता का स्वामी नहीं हूं। मैं एक जीवन जी रहा हूं और नहीं जानता कि अन्त किस हाल में होगा, सत्य पर या असत्य पर, मालिक के प्रेम में या फिर तुच्छ सांसारिक लोभ में ?
श्रेष्ठता का आधार कर्म बनते हैं। जब जीवन का अन्त होता है तब कर्मपत्र बन्द कर दिया जाता है। जिस कर्म पर जीवनपत्र बन्द होता है यदि वह श्रेष्ठ होता है तो मरने वाले को श्रेष्ठ कहा जा सकता है। मेरी मौत से ही मैं जान पाऊँगा कि मैं श्रेष्ठ हूं कि नहीं ? तब तक आप भी इन्तेज़ार कीजिये।
मैं अपने बारे में तो नहीं कह सकता लेकिन ईश्वर अवश्य ही श्रेष्ठ है, उसका आदेश भी श्रेष्ठ है। उसकी उपासना करना और उसका आदेश मानना एक श्रेष्ठ कर्म है। ऋषियों का सदा यही विषय रहा है। मेरा विषय भी यही है और आपका भी यही होना चाहिए। भ्रम की दीवार को गिराने के लिए विश्वास का बल चाहिए। पाकिस्तान क्या चीज़ है सारी एशिया का सिरमौर आप बनें ऐसी हमारी दुआ और कोशिश है। इसके लिए चाहिए आपस में एकता बल्कि ‘एकत्व‘।
हमारी आत्मा एक ही आत्मा का अंश है तो फिर हमारे मन और शरीरों को भी एक हो जाना चाहिए। इसी से शक्ति का उदय होगा, इसी शक्ति से भारत विश्व का नेतृत्व करेगा। भारत की तक़दीर पलटा खा रही है, युवा शक्ति ज्ञान की अंगड़ाई ले रही है। जो महान घटित होने जा रहा है हम उसके निमित्त और साक्षी बनें और ऐसे में क्यों न विवाद के सभी आउटडेटिड वर्ज़न्स त्याग दें।
आखि़र कोई तो बताये कि श्री कृष्ण जी ने कहां कहा है कि वे ईश्वर हैं और लोगों को उनकी पूजा-उपासना करनी चाहिये ?
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