सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Wednesday, June 23, 2010

What is best ? तुम दुनियावी ज़िन्दगी को प्राथमिकता देते हो और परलोक बेहतर है और शाश्वत है। यही पूर्व ग्रंथों में भी है,

परमेश्वर कहता है-


और ‘हमने‘ आदम की औलाद को इज़्ज़त दी और ‘हमने‘ उन्हें जल-थल में सवार किया और उन्हें पाक चीज़ों में से रोज़ी दी और ‘हमने‘ उन्हें अपनी बहुत सी सृष्टि पर प्रधानता दी। -बनी इस्राईल, 70
‘हमने‘ इनसान को बेहतरीन संरचना पर पैदा किया। -अलअलक़, 4
तो इनसान को देखना चाहिये कि वह किस चीज़ से पैदा किया गया है। वह एक उछलते पानी से पैदा किया गया है। -अत्तारिक़, 5-6
सो नसीहत करो अगर नसीहत फ़ायदा पहुंचाये। वह शख्स नसीहत कुबूल करेगा जो डरता है और उससे बचेगा वह जो बदबख्त होगा। वह पड़ेगा बड़ी आग में। फिर न उसमें मरेगा और न जिएगा। कामयाब हुआ जिसने ख़ुद को पाक किया और अपने रब का नाम लिया, फिर नमाज़ क़ायम की, बल्कि तुम दुनियावी ज़िन्दगी को प्राथमिकता देते हो और परलोक बेहतर है और शाश्वत है।

यही पूर्व ग्रंथों में भी है, मूसा और इबराहीम के सहीफ़ों में। -अलआला,10-19
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1. सारे इनसान एक बाप की औलाद हैं।


2. सारे इनसान एक परिवार हैं।

3. इस परिवार का मुखिया स्वयं परमेश्वर है।
4. जल थल में इनसान के लिये भोजन और सवारी का परमेश्वर ने ही किया है न कि इनसान ने।
5. एक गंदे पानी में उछलकर गर्भाशय तक जाने की क्षमता भी उसी दयालु मालिक ने रखी है।
6. एक नापाक पानी से परमेश्वर ने मनुष्य की रचना की ताकि उसके लिये घमण्ड करने की कोई वजह न बचे और जब भी वह अपनी संरचना पर विचार करे तो वह अपने मालिक की कुदरत का क़ायल और शुक्रगुज़ार बन जाये।
7. इनसान को मालिक ने बेहतरीन रूप आकार और योग्यता के साथ पैदा किया। उसे इज़्ज़त भी दी और बहुत सी चीज़ों और जीवों पर उसे प्रधानता दी।
8. अब इनसान को चाहिये कि वह अपनी ताक़त और अपने साधनों को रचनात्मक कामों में, सेवा के कामों में लगाये जैसा कि उसे मालिक ने हुक्म दिया है। सफलता इसी में है।
9. जो लोग मालिक के हुक्म को भुलाकर अपनी ख्वाहिशों की पूर्ति में ही मगन हो गये और न तो अपना फ़र्ज़ पूरा किया और न ही लोगों को उनका हक़ दिया और जब उन्हें नेक नसीहत की तो उसे नज़रअन्दाज़ कर दिया तो ये लोग दुनिया में फ़साद फैलने का कारण बनते हैं। दंगे, युद्ध और आपसी संघर्ष इन्हीं लोगों की नाजायज़ ख्वाहिशों के नतीजे में भड़कते हैं। इन्हीं लोगों के कारण लोगों का ईश्वर, धर्म और नैतिकता पर से विश्वास उठ जाता है और पूरा समाज ख़राबियों का शिकार हो जाता है।
10. इन कुकर्मों का नतीजा दुनिया में तो चाहे वे भोगने से बच जायें लेकिन परलोक में इनका ठिकाना आग का गड्ढा होगा।
11. इस लोक के बजाय परलोक का जीवन बेहतर और शाश्वत है।
12. परमेश्वर कहता है कि कुरआन से पहले भी जब कभी ईश्वरीय वाणी की प्रकाशना की गयी है, उसमें भी यही बताया गया है।
13. इस्लाम के नियम नये नहीं हैं और न ही ये पुराने ग्रंथों की नक़ल हैं बल्कि जिस ईश्वर की ओर से पूर्व ग्रंथों की प्रकाशना की हुई है उसी ने कुरआन को भी अवतरित किया है।
14. जो कुछ भिन्नता है वह पुराने ग्रंथों में क्षेपक और विद्वानों के अनुवाद और व्याख्या के कारण है। धर्म के मौलिक सिद्धान्त जैसे कि ईश्वर का एक होना, कर्मों का पूरा फल परलोक में मिलना और ईश्वर की ओर से मनुष्य को ज्ञान की प्रकाशना होना आदि कभी नहीं बदले।
15. धर्म के इम्पलीमेंटेशन के तरीक़े से परम्पराओं में भी अन्तर देखा जा सकता है लेकिन यह सब गौण है। मुख्य चीज़ सिद्धान्त है, वह सदा से ही एक हैं।
16. सबका मालिक एक है और सबका धर्म भी एक ही है।

31 comments:

सहसपुरिया said...

GOOD POST

सहसपुरिया said...

इनसान को चाहिये कि वह अपनी ताक़त और अपने साधनों को रचनात्मक कामों में, सेवा के कामों में लगाये जैसा कि उसे मालिक ने हुक्म दिया है। सफलता इसी में है।

सहसपुरिया said...

हमने‘ इनसान को बेहतरीन संरचना पर पैदा किया। -अलअलक़, 4

talib د عا ؤ ں کا طا لب said...

मुहतरम मुहब्बी भाई,
अस्सलाम अल्लैकुम व्राह्मतुल्लाह वबराकाताहू !
मैं भी हमारी अंजुमन का एक अदना सा मेंबर हूँ.हाँ कुछ सबब हैं जिसके बायस मैं वहाँ फिलवक कुछ ताऊन दे पाने में क़ासिर हूँ. हाँ कमेन्ट करने की हत्तल इमकान कोशां रहता हूँ.

अंजुमन में ब्लॉग लिंक देने का रिवाज नहीं है.अच्छी बात है.
लेकिन बिरादरान !! आप लोग अपने ब्लॉग पर तो 'दीन-दुन्या' का लिंक बसद शौक़ दे सकते हैं.मैंने जितने लिंक मिल सके हैं देने की कोशिश की है.और हाँ कभी फुर्सत मिले तो वहाँ घूम भी आया करें, क्या ज़हमत होगी !! और वक़्त रहा तो चंद अलफ़ाज़ नवाज़ आयें, मैं फ़र्त -ए -मुसर्रत से झूम जाऊं !

उम्मीद की इस अदने सी गुज़ारिश को नज़र अंदाज़ नहीं किया जाएगा !

वस्सलाम

talib د عا ؤ ں کا طا لب said...

इनसान को चाहिये कि वह अपनी ताक़त और अपने साधनों को रचनात्मक कामों में, सेवा के कामों में लगाये जैसा कि उसे मालिक ने हुक्म दिया है। सफलता इसी में है।

talib د عا ؤ ں کا طا لب said...

इस्लाम के नियम नये नहीं हैं और न ही ये पुराने ग्रंथों की नक़ल हैं बल्कि जिस ईश्वर की ओर से पूर्व ग्रंथों की प्रकाशना की हुई है उसी ने कुरआन को भी अवतरित किया है।

Ayaz ahmad said...

अच्छी पोस्ट

Satish Saxena said...

उपरोक्त पोस्ट ध्यान से पढी और बड़ी अच्छी लगी अनवर भाई !

आज हकनामा की एक पोस्ट http://haqnama.blogspot.com/2010/05/in-name-of-allah-most-gracious-most.html पर दिया कमेंट्स आपकी नज़र है

ये बेहतरीन लाइनें है जिसमें कोई कमी नहीं , काश हम अपने परिवार में रहने वाले कम से कम इसलिए लड़ना बंद कर दें कि हमारी आस्था और मान्यताएं अलग अलग हैं ! अगर हम दूसरे भाइयों के धर्मों का उनकी मान्यताओं का आदर करना न सीख सकें तो कम से कम उनका अपमान तो न करें ! "सिर्फ हम और हमारा धर्म सबसे अच्छा है बाकी सब ख़राब हैं" पर विद्वानों का क्या कहना है !?
एक बात और
अगर हमारी आस्था और मान्यताएं वाकई अच्छी हैं तो दूसरे अपने आप खिंचे चले आयेंगे , हमारी आस्था का सम्मान सब करें इसके लिए बेचैनी क्यों ?
काश हम परिवार में रहना सीख सकें !

DR. ANWER JAMAL said...

@ जनाब सतीश सक्सेना जी! बेचैनी इस बात की नहीं है कि लोग मेरी मान्यताओं का सम्मान करने लगें बल्कि बेचैनी इस बात की है कि लोग अम्न व अमान से जीना सीख लें। जब किसी घर में एक बन्दा दूसरे बन्दे का हक़ मार लेता है तो उस घर में झगड़ा खड़ा होने का कारण पैदा हो जाता है। ऐसे ही जब एक वर्ग दूसरे वर्गों को उनका वाजिब हक़ नहीं देता तो समाज में संघर्ष और हिंसा का बीज पड़ जाता है। किस का हक़ क्या है ?
औरत का मर्द पर, मर्द का औरत पर, ग़रीब का पंूजीपति पर , पूंजीपति का निर्धन पर, मां-बाप का औलाद पर, औलाद का मां-बाप पर, नागरिकों का हाकिम पर, हाकिम का नागरिकों पर, अनाथों विधवाओं मुसाफ़िरों और अपाहिजों का समाज पर। इसी के साथ यह कि नैतिक नियम क्या हैं और उनका पालन कैसे और क्यों किया जाये ?
इन बातों के निर्धारण का हक़ केवल उस पैदा करने वाले को है । उसे छोड़कर जब भी कोई दार्शनिक यह नियम और सीमाएं तय करने की कोशिश करेगा तो लाज़िमन वह एक ऐसा काम करने की कोशिश करेगा जिसका न तो उसे अधिकार है न ही उसके अन्दर उसकी योग्यता है।
आज सारा समाज दुखी और परेशान है। उसकी परेशानियों का हल सच्चे मालिक के नियमों को जानने मानने में निहित है। लोग दुखी हों और उन्हें देखकर वह आदमी बेचैन न हो जिसके पास उनकी समस्याओं का समाधान है , यह कैसे संभव है ?
इस्लाम मात्र पूजा-पाठ, और माला जपने वाले संप्रदाय का नाम नहीं है। यह लोगों की समस्याओं के हल का नाम है।

समस्या चाहे कन्या के जन्म की हो या दहेज की हो। तिल तिल कर घुट घुट कर जीने वाली औरत की हो या फिर विधवा की । सूद - ब्याज की चक्की में पिस रही जनता की हो या फिर ग़रीबों में पनप रहे आक्रोश से डरने वाले धनवानों की। नशे से जर्जर हो रहे समाज की हो या फिर धन के लिये तन बेचने वाली तवायफ़ों की, हरेक के लिये इज़्ज़तदार तरीके़ से समुचित हल केवल इस्लाम में है। यह कोई दावा नहीं है बल्कि एक हक़ीक़त है। घर में दवा मौजूद हो और लोग मर रहे हों , यह देखकर बेचैन होना तो स्वाभाविक है।

DR. ANWER JAMAL said...

@ तालिब भाई! अल्लाह आपके मसलों को अपने दस्ते कुदरत से हल फ़रमाये। आपके ब्लॉग का लिंक ज़रूर लगाया जायेगा। इन्शा अल्लाह।
मोमिन को मसले परेशान नहीं करते अगर वह मालिक के हुक्म के तहत जी रहा है। वह जीता इसलिये है क्योंकि उसका मालिक चाहता है कि जिये और जब उसके सामने मौत आ जाती है तो वह मरता भी उसी शौक़ से है क्योंकि उसका मालिक चाहता है कि अब वह मर जाये। हर काम में मालिक की मर्ज़ी को ऊपर और अपनी ख्वाहिश को नीचे रखना चाहिये, सही बन्दगी का तरीक़ा यही है। फिर आपको कोई चीज़ ग़मज़दा नहीं कर सकती और न ही रिज़्क़ और वसाएल की तंगी आपको सता सकती है।
लोग अपनी ख्वाहिश को ऊपर और मालिक के हुक्म को नीचे रखकर ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं और फिर चाहते हैं कि मालिक उनकी ख्वाहिशें पूरी करे। वे खुद खुदा बने बैठे हैं और मालिक को अपनी ख्वाहिशों का पाबन्द बना लेना चाहते हैं।
मैं भी बहुत पेचीदा मसलों से घिरा हुआ हूं लेकिन वह मालिक जो ज़मीन व आसमानों का नूर है उसी के कलाम से मेरे दिल का चराग़ रौशन है और उसी के कलाम की बरकत से मुझे राह मिली। मालिक को आपसे समर्पण चाहिये , सच्चा और पूरा। उसमें वह किसी की शिरकत नहीं चाहता, आपकी ख्वाहिशों और आपके नफ़्स की भी नहीं। सारी समस्याओं की जड़ यही नफ़्स और ख्वाहिशें हैं , इनकी फ़ना आपकी समस्याओं को फ़ना कर देगी।

DR. ANWER JAMAL said...

सभी भाइयों को इत्तिला दी जाती है कि आज 2.50 बजे दोपहर डा. कान्ता के नर्सिंग होम में
मेरी वाइफ़ ने एक मासूम सी बेटी को अल्लाह के फ़ज़्ल से जन्म दिया है। उसकी कमर पर एक खुला हुआ ज़ख्म है और रीढ़ की हड्डी में पस है। उसकी दोनों टांगों में हरकत भी नहीं है। डिलीवरी नॉर्मल हुई है लेकिन बच्ची को मज़ीद इलाज की ज़रूरत है। मां की हालत ठीक है। अल्लाह का शुक्र है। वही हमारा रब है और उसी पर हम भरोसा करते हैं। अपनी हिकमतों को वही बेहतर जानता है। हमारी ज़िम्मेदारी अपने फ़र्ज़ को बेहतरीन तरीक़े से अदा करना है। सभी दुआगो साहिबान से मज़ीद दुआ की इल्तजा है। अब ब्लॉगिंग शायद नियमित नहीं रह पायेगी। बच्ची के लिये भी दौड़भाग करनी पड़ेगी।

Man said...

डॉ.जमाल में मालिक से दुआ करूंगा की जच्चा और बच्चा दोनों उसकी किरपा से स्वस्थ रहे ,मंगल कामना सर्वशक्तिमान से

Anonymous said...

Bchchi ki mubarak baad...bachchi jald sehat mand ho ye dua hai.... Allah ne jitni bimari paida ki uski davaa bhi paida ki hai ...Quran hadith mai aisee davaao ka jikr bhi hai jo kisi hakeem se mashvira kar ke di jaaye.... aur Quran hadith mai duao ka bhi bayaan hai jo bimari mai pad liye jaaye.

DR. ANWER JAMAL said...

@ man ! शुक्रिया .

Satish Saxena said...
This comment has been removed by the author.
Satish Saxena said...

डॉ अनवर जमाल !
" हरेक के लिये इज़्ज़तदार तरीके़ से समुचित हल केवल इस्लाम में है। यह कोई दावा नहीं है बल्कि एक हक़ीक़त है। घर में दवा मौजूद हो और लोग मर रहे हों , यह देखकर बेचैन होना तो स्वाभाविक है।"

आपके इस जवाब से मैं सहमत नहीं हूँ , इस्लाम को मैं बुरा नहीं मानता मगर अपने धर्म को भी किसी धर्म से कम नहीं समझता ! खैर इस बात का जवाब कम से कम मैं अभी नहीं देना चाहता !
अपने धर्म को दूसरों से अच्छा बताने की कोशिश मैं सिर्फ कमअक्ली अथवा संकीर्णता ही मानता हूँ !

आपकी नवजात मासूम बच्ची की हालत जान मन बहुत ख़राब हो गया ! जन्म विकृतियों का इलाज़ एलोपैथिक में कम ही पाया जाता है, ईश्वर से मेरी हार्दिक प्रार्थना है कि बच्ची को इस मुसीबत से निजात दिलाएं ! जितना आप को मैं आपके लेखों के द्वारा जानता हूँ आप एक नेक इंसान हैं सो परमपिता आपका मददगार होगा ! हाँ एक बात और ...

अगर इस भाई के लायक कोई जरूरत पड़े तो रात को भी याद करने से सकुचाना नहीं , मैं अमीर नहीं हूँ मगर इश्वर ने दिल बड़ा दिया है इसका यकीन रखियेगा ! अगर अकेलापन महसूस करें तो मुझे याद अवश्य करियेगा !

आदर सहित

DR. ANWER JAMAL said...

अभी तो फ़िलहाल डा. नरेश सैनी ने ड्रेसिंग कर दी है लेकिन उसे न्यूरोसर्जन को दिखाना होगा। आप सही कहते हैं , पैदाइशी विकृतियों में एलोपैथी कम कारगर है। पस के लिये तो साइलीशिया वग़ैरह भी तीर बहदफ़ हैं। लेकिन इस समय मैं खुद ही अपने घर, अपने शहर से दूर हूं। अपनी वाइफ़ की छाती की गांठ को मैंने ब्रायोनिया 30 की मात्र दो बूंद की एक खुराक से घुलते हुए, ग़ायब होते हुये देखा है। रात के समय गांठ थी और सुबह के समय गांठ ग़ायब। मज़े की बात यह है कि इस दवा के बारे में मैंने ग़ाज़ियाबाद के रेलवे स्टेशन के बाहर रद्दी पत्रिकाओं में से किसी में बस यूं ही पढ़ लिया था। घर पर आया तो वालिदा साहिबा के बुख़ार की वजह से ब्रायोनिया रखी हुई थी।
बहरहाल एक भाई ने कहा भी है कि मालिक ने हरेक बीमारी के लिये दवा बनाई है लेकिन कभी कभी पूंजीपति दवासाज़ों और कमीशनख़ोर डाक्टरों की वजह से वह दवा आदमी की पहुंच से बाहर हो जाती है। इस्लाम यहां न तो सिस्टम में है और न ही अधिसंख्या के जीवन में। परलोक को भूलकर लोग जी रहे हैं और अपनी और दूसरों की समस्याएं बढ़ा रहे हैं।
आपका और मेरा ईश्वर एक ही है और धर्म भी। मेरी नज़र में तो दुई है नहीं। इस पर फिर कभी बात करेंगे, इन्शा अल्लाह।
आप चाहे बड़े आदमी न हों लेकिन मेरे लिये बड़े ही हैं। मैं आपसे प्यार करता हूं, बहुत प्यार। इतना प्यार कि आपके लिये अपने जज़्बात का इज़्हार करते हुए हमेशा की तरह मेरी आंखों में नमी तैरने लगी है जबकि अपनी बच्ची की बीमारी की ख़बर फ़ोन पर सुनकर भी ऐसा न हुआ था। आपके अच्छे मश्विरों का हमेशा सम्मान करता रहूंगा।
आदर सहित

talib د عا ؤ ں کا طا لب said...

@जमाल साहब !!
अव्वल तो आपको दुख्तर नेक अख्तर की मुबारक बाद !! अल्लाह बेशक रहीम है करीम है, हमारा यही अक़ीदा है.उसे jald ही सेहत्याबी अता करेगा आमीन !!

और हाँ ! मैं अल्लाह के फजल ओ करम से खूश याब हूँ.
शहरोज़ साहब को फ़िलहाल रिजक का मसला दरपेश है.
आप सही ढंग से चीज़ों को समझा करें और मज़ामीन पढ़ा करें.

Taarkeshwar Giri said...

बहुत ख़ुशी हुई ये जानकर के की प्यारी सी बिटिया ने आपके घर में कदम रखा है. बिटिया ने घर में कदम रखा है तो ये समझिये की लक्ष्मी ने कदम रखा है. हमारी ढेर सारी दुवा है उसके साथ. जब उपर वाला पैदा करता है तो अच्छी जिंदगी भी deta है, और वोही सब करता धर्ता है , बेफिक्र रहे सब ठीक हो जायेगा.

Ayaz ahmad said...

बेटी की बहुत बहुत मुबारकबाद और बच्ची की सेहत के लिए दुआ। अल्लाह आपकी बेटी को जल्द सहतयाब करे

zeashan haider zaidi said...

अल्हम्द-ओ-लिल्लाह-ए-रब्बिल-आलमीन! वही आपकी बेटी को सेहत अता फरमाए! आमीन.

The Straight path said...

अल्लाह आप की बिटिया को अच्छी सेहत अता फर्माय

HAKEEM SAUD ANWAR KHAN said...

अस्सलामु अलैकुम ! एक अच्छे होम्योपैथ मेरे जानकर हैं , उनको साथ लेकर आऊंगा .इंशा अल्लाह ! मौला करीम है ! सेहत की दुआ करते हैं !

S.M.Masoom said...

अनवर जमाल साहेब, मदद अल्लाह से मांगें,वो क्या मदद करेंगे जो खुद अल्लाह की मदद के मोहताज है. उसनें सिर्फ रुसवाई है. अल्लाह आप की परेशानी को हल करे.

Amit Sharma said...

जमाल साहब, बेटी के जन्म की बहुत बहुत बधाई, ईश्वर इस फूल को जल्द ही स्वस्थ कर आपका आंगन महकाने के लिए घर भेजे यही प्रार्थना है

सत्य गौतम said...

जय भीम क्या आपने बाबा साहब का साहित्य पढ़ा है

DR. ANWER JAMAL said...

@ जनाब सतीश सक्सेना जी!आपका सजेशन बज़रिये हकीम सऊद साहब मिला और उनके ही मेहरबान बुज़ुर्ग दोस्त जनाब डाक्टर प्रभात अग्रवाल साहब से सलाह भी ली गयी तो उन्होंने ये प्रेस्क्राइब किया . दवा दी जा रही है .
Silicea 30 x , Cal. fluor. 12 x ,
Myristica sab. 30
मालिक से उसके फ़ज़ल की उम्मीद रखते हैं . आपके समीम ए क़ल्ब से शुक्रगुज़ार हैं .

HAKEEM YUNUS KHAN said...

अल्लाह से आपके लिए दुआगो हैं . करीम आका आप पर अपना फ़ज़ल फरमाए .
आमीन.

Anwar Ahmad said...

आपके लिए दुआ कर रहा हूँ और जल्द ही खुद आकर आपसे मिलूँगा . अल्लाह की रहमत वसीअ है , अपनी जद्दोजहद जारी रखिये , इंशा अल्लाह सब ख़ैर होगी .

Anonymous said...

phool bhii beemaar hote hain, koee bhee phool seedhe phoole nahee bantaa. phool banne se pahle usko 2-3 stage se gugarnaa padta hain. kai phool, banne se pahle hee beemar ho jaate hain, or murjhaa ke gir jaate hain. Hamare desh mein POLIO ke sikaar bachho mein, 80% musalmaan hain, KYON.., Kyonki islam mein POLIO kii dava peena haraam hain. ishee kaa nuksaan HINDU dharm ke bachho ko uthaana pad rahaa hain. MUSALMAAN bachhe AATMGHAATI BOMB le kar ghoomte rahte hain.
Anver tumne sahee kahaa -- "बच्चे अबोध और मासूम होते हैं। शिकवे शिकायत और रंजिंशे देर तक उनके मन में नहीं ठहरतीं। साथ खेलते हैं तो लड़ भी लेते हैं और छीन झपट भी कर लेते हैं लेकिन बच्चे बदनीयत नहीं होते।"
Lekin musalmaan dharm ne na jaane kitne bachho ko apaahij(POLIO ke seekaar), or anaath banaa diyaa hain- bomb phod kar. Isliye aap eshii galti mat karna Bhagwaan bhole naath ka naam lekar , Apne hone wale bachhe ko POLIO pila dena
Bhagwaan bhole naath aapke bachhe ko tandurast rakhe - ONLY BHOLENAATH

Hindu Dharm to bachho ko BHAGWAAN ka roop maante jaise ki AApne BAAL KRISHN LEELA mein aapne dekha hoga.
POORA BRAHMAAND Bachhe ke muh mein samaaya hua thaa(paigamber bhii wahii ghoom rahe the)

Musalmaan log bachho ko PAAPI banaa detaa hain , esliye musalmaano ko अपनी मान्यता पर विचार karnaa chaahiye or bachho ko polio se bachhao

MERA matlab hain DUNIYA mein kewal HINDU dharm hii "DAHRM" hain , baaki sab dharm ek aadmii ke banaaye or ek aadmi kii kitaab ke anusaar chalte hain

RAJ

Anonymous said...

Anvar bhai mere khayaal se aapke bachhe kii davaa pakistaan yaa banglaadesh mein mil jaayegii , kyonki vahaan musalmaan log jyaadaa rahte hain.

Pichhle 2 saalon mein pakistaan or bangladesh yaa arab deshon ke 10000 bachho ko hindu doctaron ne theek kiyaa.

Aapkii bachhii ko sahee davaa mile, Bholenaath se yahii gujaaras kartaa hoon. Davaa kaa koi dharm nahee hotaa

Raj