सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



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Monday, August 30, 2010

About Namaz on road part 2nd मस्जिद को तिमंज़िली बना लीजिये और जब तक तामीर का काम पूरा हो तब तक नमाज़ दो या तीन शिफ़्टों में पढ़ लीजिये। इस तरह नमाज़ मस्जिद के अंदर ही अदा हो जायेगी और इबादत करने वाले जुल्म करने और लोगों के लिए फ़ित्ना बनने से बच जाएंगे। - Anwer Jamal

ऐ हमारे रब ! हमें इन्कारियों के लिए फ़ित्ना न बना और ऐ हमारे रब, हमें बख् दे, बेशक तू ज़बर्दस्त है, हिकमत वाला है।          पवित्र कुरआन, 60, 5
                                                                  
दीन रहमत है, दीन ख़ैरख्वाही है, दीन अद्ल है, दीन फ़ज़्ल है, दीन हक़ है और ज़ुल्म बातिल है। दीन रहमत है न सिर्फ़ मुसलमानों के लिए बल्कि सबके लिए, सारे जहां के लिए। अगर कोई अमल दुनिया के ज़हमत बन रहा है, लोगों की हक़तल्फ़ी हो रही है, जुल्म हो रहा है तो यक़ीन कर लीजिये कि यह ‘कुछ और‘ है दीन हरगिज़ नहीं है।
ज़ुल्म इंसाफ़ का विलोम है। आम तौर पर लोग मारपीट और क़त्ल वग़ैरह को ही जुल्म मानते हैं लेकिन ‘ज़ुल्म‘ की परिभाषा है ‘चीज़ का ग़ैर महल‘ में इस्तेमाल करना यानि किसी चीज़ का वह इस्तेमाल करना जो उस चीज़ का सही इस्तेमाल न हो। मस्लन मस्जिद नमाज़ के लिए बनाई जाती है और लोग उसमें इबादत और एतकाफ़ न करें तो यह मस्जिद पर जुल्म है। इसी तरह सड़क इसलिए बनाई जाती है ताकि लोग उसपर चलकर अपनी ज़रूरतें पूरी करें। सड़क की स्वाभाविक प्रकृति उसपर चलना है। अगर कुछ लोग सड़क पर चलने के फ़ितरी अमल में ख़लल डालते हैं तो वे सड़क पर चलने वालों पर ही नहीं बल्कि खुद सड़क पर भी जुल्म करते हैं।
बारात,जुलूस और प्रदर्शनों की वजह से आये दिन लोग यह जुल्म सरे आम करते हैं। अक्सर इसे टाल दिया जाता है क्योंकि यह जुल्म करने वाले हक़ अदा करने का मिज़ाज ही कब रखते हैं, लेकिन हद तो तब हो जाती है कि जब यह जुल्म वह तबक़ा करता है जिसे रब ने ‘हक़ व इंसाफ़‘ का गवाह बनने के लिए ही उठाया हो, और फिर यह रास्ता रोकना भी इबादत करने के लिए हो तो जुर्म और भी ज़्यादा संगीन हो जाता है।
नमाज़ में दुआ मांगी जा रही है ‘दिखा और चला हमें सीधा रास्ता‘ और हालत यह है कि उनकी दुआ की ख़ातिर दूसरे बहुत से लोग रास्ता चलने से महरूम खड़े हैं या फिर दुश्वारी से गुज़र रहे हैं। यह सड़क पर भी जुल्म है और सड़क पर चलने वालों पर भी।
इसलिए कि मस्जिद छोटी पड़ जाती है और लोग ज़्यादा आ जाते हैं। इसका सीधा सा समाधान यह है कि मस्जिद को तिमंज़िली बना लीजिये और जब तक तामीर का काम पूरा हो तब तक नमाज़ दो या तीन शिफ़्टों में पढ़ लीजिये। इस तरह नमाज़ मस्जिद के अंदर ही अदा हो जायेगी और इबादत करने वाले जुल्म करने और लोगों के लिए फ़ित्ना बनने से बच जाएंगे।
हिन्दू भाईयों से हमेशा नमाज़ की अदायगी में सहयोग मिलता आया है, यह सच है और इसके लिए मुस्लिम समुदाय हिन्दू भाईयों का शुक्रगुज़ार है और खुद भी उनके आयोजनों में बाधा नहीं डालता लेकिन याद रहे कि लोगों को भड़काकर राजनीति करने वाले इंसान के रूप में शैतान भी हमारे दरम्यान ही रहते-बसते हैं। मुसलमानों को कोई भी मौक़ा शैतान को नहीं देना चाहिये जिसकी वजह से शैतान लीडर हिन्दू भाइयों और मुसलमान भाईयों को एक दूसरे के खि़लाफ़ खड़ा करने में कामयाब हो सके।
इसके अलावा एक बात यह कॉमन सेंस की है कि हम इस देश के नागरिक हैं और हम सभी को अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। आदमी अपने घर से किसी ज़रूरत के तहत ही निकलता है। कहीं आग लग रही होती है और फ़ायर ब्रिगेड को समय पर पहुंचना होता है और बैंक लुट रही होती है, औरतों की इज़्ज़तों पर डाका पड़ रहा होता है और पुलिस उस तरफ़ भागी चली जा रही होती है। किसी मरीज़ को सीरियस कंडीशन में अस्पताल ले जाया जा रहा होता है या फिर छोटे बच्चे स्कूल से अपने घर लौट रहे होते हैं। इसके अलावा भी बहुत सी इमरजेंसी होती हैं जिनके सही समय पर पूरा न होने की वजह से बहुत से लोग अपनी जान और आबरू हमेशा के लिए गंवा बैठते हैं।
दीन रहमत है और मुसलमानों को चाहिए कि वे दुनिया में रहमत फैलाने वाले बनें न कि सोये हुए फ़ित्नों को जगाने की कोशिश करें। सड़क पर नमाज़ अदा करना सड़क पर और राहगीरों पर जुल्म है, अपनी नमाज़ को गुनाह से आलूदा करना है। खुदा पाक है और पाक अमल ही उसकी बारगाह तक पहुंचता है जो आदमी इतनी सी बात भी न पहचान सके, वह बेशऊर है। ये बेशऊर लोग जो रमज़ान में मस्जिदें भर देते हैं वे रमज़ान ख़त्म होते ही नदारद हो जाते हैं।
क्या नमाज़ रमज़ान के बाद फ़र्ज़ नहीं रहती ?
हक़ीक़त यह है कि उन्हें नमाज़, दीन और उसके तक़ाज़ों का सही शऊर ही नहीं था। अगर उन्हें वाक़ई मारिफ़त और शऊर होता तो वे बाद में भी नमाज़ के पाबन्द रहते। ये लोग नमाज़ पर भी जुल्म करते हैं। दीनी संस्थाओं से वाबस्ता लोगों को चाहिए वे लोगों में दीन का सही शऊर पैदा करें और मुस्लिम समाज को सही दिशा देकर देश और दुनिया को बेहतर संदेश दें।

Wednesday, June 23, 2010

What is best ? तुम दुनियावी ज़िन्दगी को प्राथमिकता देते हो और परलोक बेहतर है और शाश्वत है। यही पूर्व ग्रंथों में भी है,

परमेश्वर कहता है-


और ‘हमने‘ आदम की औलाद को इज़्ज़त दी और ‘हमने‘ उन्हें जल-थल में सवार किया और उन्हें पाक चीज़ों में से रोज़ी दी और ‘हमने‘ उन्हें अपनी बहुत सी सृष्टि पर प्रधानता दी। -बनी इस्राईल, 70
‘हमने‘ इनसान को बेहतरीन संरचना पर पैदा किया। -अलअलक़, 4
तो इनसान को देखना चाहिये कि वह किस चीज़ से पैदा किया गया है। वह एक उछलते पानी से पैदा किया गया है। -अत्तारिक़, 5-6
सो नसीहत करो अगर नसीहत फ़ायदा पहुंचाये। वह शख्स नसीहत कुबूल करेगा जो डरता है और उससे बचेगा वह जो बदबख्त होगा। वह पड़ेगा बड़ी आग में। फिर न उसमें मरेगा और न जिएगा। कामयाब हुआ जिसने ख़ुद को पाक किया और अपने रब का नाम लिया, फिर नमाज़ क़ायम की, बल्कि तुम दुनियावी ज़िन्दगी को प्राथमिकता देते हो और परलोक बेहतर है और शाश्वत है।

यही पूर्व ग्रंथों में भी है, मूसा और इबराहीम के सहीफ़ों में। -अलआला,10-19
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1. सारे इनसान एक बाप की औलाद हैं।


2. सारे इनसान एक परिवार हैं।

3. इस परिवार का मुखिया स्वयं परमेश्वर है।
4. जल थल में इनसान के लिये भोजन और सवारी का परमेश्वर ने ही किया है न कि इनसान ने।
5. एक गंदे पानी में उछलकर गर्भाशय तक जाने की क्षमता भी उसी दयालु मालिक ने रखी है।
6. एक नापाक पानी से परमेश्वर ने मनुष्य की रचना की ताकि उसके लिये घमण्ड करने की कोई वजह न बचे और जब भी वह अपनी संरचना पर विचार करे तो वह अपने मालिक की कुदरत का क़ायल और शुक्रगुज़ार बन जाये।
7. इनसान को मालिक ने बेहतरीन रूप आकार और योग्यता के साथ पैदा किया। उसे इज़्ज़त भी दी और बहुत सी चीज़ों और जीवों पर उसे प्रधानता दी।
8. अब इनसान को चाहिये कि वह अपनी ताक़त और अपने साधनों को रचनात्मक कामों में, सेवा के कामों में लगाये जैसा कि उसे मालिक ने हुक्म दिया है। सफलता इसी में है।
9. जो लोग मालिक के हुक्म को भुलाकर अपनी ख्वाहिशों की पूर्ति में ही मगन हो गये और न तो अपना फ़र्ज़ पूरा किया और न ही लोगों को उनका हक़ दिया और जब उन्हें नेक नसीहत की तो उसे नज़रअन्दाज़ कर दिया तो ये लोग दुनिया में फ़साद फैलने का कारण बनते हैं। दंगे, युद्ध और आपसी संघर्ष इन्हीं लोगों की नाजायज़ ख्वाहिशों के नतीजे में भड़कते हैं। इन्हीं लोगों के कारण लोगों का ईश्वर, धर्म और नैतिकता पर से विश्वास उठ जाता है और पूरा समाज ख़राबियों का शिकार हो जाता है।
10. इन कुकर्मों का नतीजा दुनिया में तो चाहे वे भोगने से बच जायें लेकिन परलोक में इनका ठिकाना आग का गड्ढा होगा।
11. इस लोक के बजाय परलोक का जीवन बेहतर और शाश्वत है।
12. परमेश्वर कहता है कि कुरआन से पहले भी जब कभी ईश्वरीय वाणी की प्रकाशना की गयी है, उसमें भी यही बताया गया है।
13. इस्लाम के नियम नये नहीं हैं और न ही ये पुराने ग्रंथों की नक़ल हैं बल्कि जिस ईश्वर की ओर से पूर्व ग्रंथों की प्रकाशना की हुई है उसी ने कुरआन को भी अवतरित किया है।
14. जो कुछ भिन्नता है वह पुराने ग्रंथों में क्षेपक और विद्वानों के अनुवाद और व्याख्या के कारण है। धर्म के मौलिक सिद्धान्त जैसे कि ईश्वर का एक होना, कर्मों का पूरा फल परलोक में मिलना और ईश्वर की ओर से मनुष्य को ज्ञान की प्रकाशना होना आदि कभी नहीं बदले।
15. धर्म के इम्पलीमेंटेशन के तरीक़े से परम्पराओं में भी अन्तर देखा जा सकता है लेकिन यह सब गौण है। मुख्य चीज़ सिद्धान्त है, वह सदा से ही एक हैं।
16. सबका मालिक एक है और सबका धर्म भी एक ही है।