सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है, More More More
Monday, August 30, 2010
About Namaz on road part 2nd मस्जिद को तिमंज़िली बना लीजिये और जब तक तामीर का काम पूरा हो तब तक नमाज़ दो या तीन शिफ़्टों में पढ़ लीजिये। इस तरह नमाज़ मस्जिद के अंदर ही अदा हो जायेगी और इबादत करने वाले जुल्म करने और लोगों के लिए फ़ित्ना बनने से बच जाएंगे। - Anwer Jamal
ऐ हमारे रब ! हमें इन्कारियों के लिए फ़ित्ना न बना और ऐ हमारे रब, हमें बख् दे, बेशक तू ज़बर्दस्त है, हिकमत वाला है। पवित्र कुरआन, 60, 5
दीन रहमत है, दीन ख़ैरख्वाही है, दीन अद्ल है, दीन फ़ज़्ल है, दीन हक़ है और ज़ुल्म बातिल है। दीन रहमत है न सिर्फ़ मुसलमानों के लिए बल्कि सबके लिए, सारे जहां के लिए। अगर कोई अमल दुनिया के ज़हमत बन रहा है, लोगों की हक़तल्फ़ी हो रही है, जुल्म हो रहा है तो यक़ीन कर लीजिये कि यह ‘कुछ और‘ है दीन हरगिज़ नहीं है।
ज़ुल्म इंसाफ़ का विलोम है। आम तौर पर लोग मारपीट और क़त्ल वग़ैरह को ही जुल्म मानते हैं लेकिन ‘ज़ुल्म‘ की परिभाषा है ‘चीज़ का ग़ैर महल‘ में इस्तेमाल करना यानि किसी चीज़ का वह इस्तेमाल करना जो उस चीज़ का सही इस्तेमाल न हो। मस्लन मस्जिद नमाज़ के लिए बनाई जाती है और लोग उसमें इबादत और एतकाफ़ न करें तो यह मस्जिद पर जुल्म है। इसी तरह सड़क इसलिए बनाई जाती है ताकि लोग उसपर चलकर अपनी ज़रूरतें पूरी करें। सड़क की स्वाभाविक प्रकृति उसपर चलना है। अगर कुछ लोग सड़क पर चलने के फ़ितरी अमल में ख़लल डालते हैं तो वे सड़क पर चलने वालों पर ही नहीं बल्कि खुद सड़क पर भी जुल्म करते हैं।
बारात,जुलूस और प्रदर्शनों की वजह से आये दिन लोग यह जुल्म सरे आम करते हैं। अक्सर इसे टाल दिया जाता है क्योंकि यह जुल्म करने वाले हक़ अदा करने का मिज़ाज ही कब रखते हैं, लेकिन हद तो तब हो जाती है कि जब यह जुल्म वह तबक़ा करता है जिसे रब ने ‘हक़ व इंसाफ़‘ का गवाह बनने के लिए ही उठाया हो, और फिर यह रास्ता रोकना भी इबादत करने के लिए हो तो जुर्म और भी ज़्यादा संगीन हो जाता है।
नमाज़ में दुआ मांगी जा रही है ‘दिखा और चला हमें सीधा रास्ता‘ और हालत यह है कि उनकी दुआ की ख़ातिर दूसरे बहुत से लोग रास्ता चलने से महरूम खड़े हैं या फिर दुश्वारी से गुज़र रहे हैं। यह सड़क पर भी जुल्म है और सड़क पर चलने वालों पर भी।
इसलिए कि मस्जिद छोटी पड़ जाती है और लोग ज़्यादा आ जाते हैं। इसका सीधा सा समाधान यह है कि मस्जिद को तिमंज़िली बना लीजिये और जब तक तामीर का काम पूरा हो तब तक नमाज़ दो या तीन शिफ़्टों में पढ़ लीजिये। इस तरह नमाज़ मस्जिद के अंदर ही अदा हो जायेगी और इबादत करने वाले जुल्म करने और लोगों के लिए फ़ित्ना बनने से बच जाएंगे।
हिन्दू भाईयों से हमेशा नमाज़ की अदायगी में सहयोग मिलता आया है, यह सच है और इसके लिए मुस्लिम समुदाय हिन्दू भाईयों का शुक्रगुज़ार है और खुद भी उनके आयोजनों में बाधा नहीं डालता लेकिन याद रहे कि लोगों को भड़काकर राजनीति करने वाले इंसान के रूप में शैतान भी हमारे दरम्यान ही रहते-बसते हैं। मुसलमानों को कोई भी मौक़ा शैतान को नहीं देना चाहिये जिसकी वजह से शैतान लीडर हिन्दू भाइयों और मुसलमान भाईयों को एक दूसरे के खि़लाफ़ खड़ा करने में कामयाब हो सके।
इसके अलावा एक बात यह कॉमन सेंस की है कि हम इस देश के नागरिक हैं और हम सभी को अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। आदमी अपने घर से किसी ज़रूरत के तहत ही निकलता है। कहीं आग लग रही होती है और फ़ायर ब्रिगेड को समय पर पहुंचना होता है और बैंक लुट रही होती है, औरतों की इज़्ज़तों पर डाका पड़ रहा होता है और पुलिस उस तरफ़ भागी चली जा रही होती है। किसी मरीज़ को सीरियस कंडीशन में अस्पताल ले जाया जा रहा होता है या फिर छोटे बच्चे स्कूल से अपने घर लौट रहे होते हैं। इसके अलावा भी बहुत सी इमरजेंसी होती हैं जिनके सही समय पर पूरा न होने की वजह से बहुत से लोग अपनी जान और आबरू हमेशा के लिए गंवा बैठते हैं।
दीन रहमत है और मुसलमानों को चाहिए कि वे दुनिया में रहमत फैलाने वाले बनें न कि सोये हुए फ़ित्नों को जगाने की कोशिश करें। सड़क पर नमाज़ अदा करना सड़क पर और राहगीरों पर जुल्म है, अपनी नमाज़ को गुनाह से आलूदा करना है। खुदा पाक है और पाक अमल ही उसकी बारगाह तक पहुंचता है जो आदमी इतनी सी बात भी न पहचान सके, वह बेशऊर है। ये बेशऊर लोग जो रमज़ान में मस्जिदें भर देते हैं वे रमज़ान ख़त्म होते ही नदारद हो जाते हैं।
क्या नमाज़ रमज़ान के बाद फ़र्ज़ नहीं रहती ?
हक़ीक़त यह है कि उन्हें नमाज़, दीन और उसके तक़ाज़ों का सही शऊर ही नहीं था। अगर उन्हें वाक़ई मारिफ़त और शऊर होता तो वे बाद में भी नमाज़ के पाबन्द रहते। ये लोग नमाज़ पर भी जुल्म करते हैं। दीनी संस्थाओं से वाबस्ता लोगों को चाहिए वे लोगों में दीन का सही शऊर पैदा करें और मुस्लिम समाज को सही दिशा देकर देश और दुनिया को बेहतर संदेश दें।
दीन रहमत है, दीन ख़ैरख्वाही है, दीन अद्ल है, दीन फ़ज़्ल है, दीन हक़ है और ज़ुल्म बातिल है। दीन रहमत है न सिर्फ़ मुसलमानों के लिए बल्कि सबके लिए, सारे जहां के लिए। अगर कोई अमल दुनिया के ज़हमत बन रहा है, लोगों की हक़तल्फ़ी हो रही है, जुल्म हो रहा है तो यक़ीन कर लीजिये कि यह ‘कुछ और‘ है दीन हरगिज़ नहीं है।
ज़ुल्म इंसाफ़ का विलोम है। आम तौर पर लोग मारपीट और क़त्ल वग़ैरह को ही जुल्म मानते हैं लेकिन ‘ज़ुल्म‘ की परिभाषा है ‘चीज़ का ग़ैर महल‘ में इस्तेमाल करना यानि किसी चीज़ का वह इस्तेमाल करना जो उस चीज़ का सही इस्तेमाल न हो। मस्लन मस्जिद नमाज़ के लिए बनाई जाती है और लोग उसमें इबादत और एतकाफ़ न करें तो यह मस्जिद पर जुल्म है। इसी तरह सड़क इसलिए बनाई जाती है ताकि लोग उसपर चलकर अपनी ज़रूरतें पूरी करें। सड़क की स्वाभाविक प्रकृति उसपर चलना है। अगर कुछ लोग सड़क पर चलने के फ़ितरी अमल में ख़लल डालते हैं तो वे सड़क पर चलने वालों पर ही नहीं बल्कि खुद सड़क पर भी जुल्म करते हैं।
बारात,जुलूस और प्रदर्शनों की वजह से आये दिन लोग यह जुल्म सरे आम करते हैं। अक्सर इसे टाल दिया जाता है क्योंकि यह जुल्म करने वाले हक़ अदा करने का मिज़ाज ही कब रखते हैं, लेकिन हद तो तब हो जाती है कि जब यह जुल्म वह तबक़ा करता है जिसे रब ने ‘हक़ व इंसाफ़‘ का गवाह बनने के लिए ही उठाया हो, और फिर यह रास्ता रोकना भी इबादत करने के लिए हो तो जुर्म और भी ज़्यादा संगीन हो जाता है।
नमाज़ में दुआ मांगी जा रही है ‘दिखा और चला हमें सीधा रास्ता‘ और हालत यह है कि उनकी दुआ की ख़ातिर दूसरे बहुत से लोग रास्ता चलने से महरूम खड़े हैं या फिर दुश्वारी से गुज़र रहे हैं। यह सड़क पर भी जुल्म है और सड़क पर चलने वालों पर भी।
इसलिए कि मस्जिद छोटी पड़ जाती है और लोग ज़्यादा आ जाते हैं। इसका सीधा सा समाधान यह है कि मस्जिद को तिमंज़िली बना लीजिये और जब तक तामीर का काम पूरा हो तब तक नमाज़ दो या तीन शिफ़्टों में पढ़ लीजिये। इस तरह नमाज़ मस्जिद के अंदर ही अदा हो जायेगी और इबादत करने वाले जुल्म करने और लोगों के लिए फ़ित्ना बनने से बच जाएंगे।
हिन्दू भाईयों से हमेशा नमाज़ की अदायगी में सहयोग मिलता आया है, यह सच है और इसके लिए मुस्लिम समुदाय हिन्दू भाईयों का शुक्रगुज़ार है और खुद भी उनके आयोजनों में बाधा नहीं डालता लेकिन याद रहे कि लोगों को भड़काकर राजनीति करने वाले इंसान के रूप में शैतान भी हमारे दरम्यान ही रहते-बसते हैं। मुसलमानों को कोई भी मौक़ा शैतान को नहीं देना चाहिये जिसकी वजह से शैतान लीडर हिन्दू भाइयों और मुसलमान भाईयों को एक दूसरे के खि़लाफ़ खड़ा करने में कामयाब हो सके।
इसके अलावा एक बात यह कॉमन सेंस की है कि हम इस देश के नागरिक हैं और हम सभी को अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। आदमी अपने घर से किसी ज़रूरत के तहत ही निकलता है। कहीं आग लग रही होती है और फ़ायर ब्रिगेड को समय पर पहुंचना होता है और बैंक लुट रही होती है, औरतों की इज़्ज़तों पर डाका पड़ रहा होता है और पुलिस उस तरफ़ भागी चली जा रही होती है। किसी मरीज़ को सीरियस कंडीशन में अस्पताल ले जाया जा रहा होता है या फिर छोटे बच्चे स्कूल से अपने घर लौट रहे होते हैं। इसके अलावा भी बहुत सी इमरजेंसी होती हैं जिनके सही समय पर पूरा न होने की वजह से बहुत से लोग अपनी जान और आबरू हमेशा के लिए गंवा बैठते हैं।
दीन रहमत है और मुसलमानों को चाहिए कि वे दुनिया में रहमत फैलाने वाले बनें न कि सोये हुए फ़ित्नों को जगाने की कोशिश करें। सड़क पर नमाज़ अदा करना सड़क पर और राहगीरों पर जुल्म है, अपनी नमाज़ को गुनाह से आलूदा करना है। खुदा पाक है और पाक अमल ही उसकी बारगाह तक पहुंचता है जो आदमी इतनी सी बात भी न पहचान सके, वह बेशऊर है। ये बेशऊर लोग जो रमज़ान में मस्जिदें भर देते हैं वे रमज़ान ख़त्म होते ही नदारद हो जाते हैं।
क्या नमाज़ रमज़ान के बाद फ़र्ज़ नहीं रहती ?
हक़ीक़त यह है कि उन्हें नमाज़, दीन और उसके तक़ाज़ों का सही शऊर ही नहीं था। अगर उन्हें वाक़ई मारिफ़त और शऊर होता तो वे बाद में भी नमाज़ के पाबन्द रहते। ये लोग नमाज़ पर भी जुल्म करते हैं। दीनी संस्थाओं से वाबस्ता लोगों को चाहिए वे लोगों में दीन का सही शऊर पैदा करें और मुस्लिम समाज को सही दिशा देकर देश और दुनिया को बेहतर संदेश दें।
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12 comments:
nice
अगर कोई अमल दुनिया के ज़हमत बन रहा है, लोगों की हक़तल्फ़ी हो रही है, जुल्म हो रहा है तो यक़ीन कर लीजिये कि यह ‘कुछ और‘ है दीन हरगिज़ नहीं है। मस्लन मस्जिद नमाज़ के लिए बनाई जाती है और लोग उसमें इबादत और एतकाफ़ न करें तो यह मस्जिद पर जुल्म है। इसी तरह सड़क इसलिए बनाई जाती है ताकि लोग उसपर चलकर अपनी ज़रूरतें पूरी करें। सड़क की स्वाभाविक प्रकृति उसपर चलना है। अगर कुछ लोग सड़क पर चलने के फ़ितरी अमल में ख़लल डालते हैं तो वे सड़क पर चलने वालों पर ही नहीं बल्कि खुद सड़क पर भी जुल्म करते हैं।
नमाज़ में दुआ मांगी जा रही है ‘दिखा और चला हमें सीधा रास्ता‘ और हालत यह है कि उनकी दुआ की ख़ातिर दूसरे बहुत से लोग रास्ता चलने से महरूम खड़े हैं या फिर दुश्वारी से गुज़र रहे हैं। यह सड़क पर भी जुल्म है और सड़क पर चलने वालों पर भी।
याद रहे कि लोगों को भड़काकर राजनीति करने वाले इंसान के रूप में शैतान भी हमारे दरम्यान ही रहते-बसते हैं। मुसलमानों को कोई भी मौक़ा शैतान को नहीं देना चाहिये जिसकी वजह से शैतान लीडर हिन्दू भाइयों और मुसलमान भाईयों को एक दूसरे के खि़लाफ़ खड़ा करने में कामयाब हो सके।
इसके अलावा एक बात यह कॉमन सेंस की है कि हम इस देश के नागरिक हैं और हम सभी को अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। आदमी अपने घर से किसी ज़रूरत के तहत ही निकलता है। कहीं आग लग रही होती है और फ़ायर ब्रिगेड को समय पर पहुंचना होता है और बैंक लुट रही होती है, औरतों की इज़्ज़तों पर डाका पड़ रहा होता है और पुलिस उस तरफ़ भागी चली जा रही होती है। किसी मरीज़ को सीरियस कंडीशन में अस्पताल ले जाया जा रहा होता है या फिर छोटे बच्चे स्कूल से अपने घर लौट रहे होते हैं। इसके अलावा भी बहुत सी इमरजेंसी होती हैं जिनके सही समय पर पूरा न होने की वजह से बहुत से लोग अपनी जान और आबरू हमेशा के लिए गंवा बैठते हैं।
दीन रहमत है और मुसलमानों को चाहिए कि वे दुनिया में रहमत फैलाने वाले बनें न कि सोये हुए फ़ित्नों को जगाने की कोशिश करें। सड़क पर नमाज़ अदा करना सड़क पर और राहगीरों पर जुल्म है, अपनी नमाज़ को गुनाह से आलूदा करना है।
क्या नमाज़ रमज़ान के बाद फ़र्ज़ नहीं रहती ?
हक़ीक़त यह है कि उन्हें नमाज़, दीन और उसके तक़ाज़ों का सही शऊर ही नहीं था। अगर उन्हें वाक़ई मारिफ़त और शऊर होता तो वे बाद में भी नमाज़ के पाबन्द रहते। ये लोग नमाज़ पर भी जुल्म करते हैं। दीनी संस्थाओं से वाबस्ता लोगों को चाहिए वे लोगों में दीन का सही शऊर पैदा करें और मुस्लिम समाज को सही दिशा देकर देश और दुनिया को बेहतर संदेश दें।
मुस्लिम समाज एक दौर में अनुशासित समाज कि मिसाल कायम किये था वर्तमान में मुस्लिम समाज में अनुशासन हीनता बहुत जयादा नजर आती है,
नमाज जो अनुशासन सिखाना का बेहतरीन अमल है उसको ही अनुशासन हीनता से अदा किया जाता है, हैरानी कि बात ये है कि लीडर (इमाम) इससे बेखबर हो कर फ़टाफ़ट नमाज अदा करने कि फिराक में रहते है, वैसे उन्हें खुद ही कभी अनुशासन में रहना नहीं सीखा तो उन्हें कैसे पता हो कि अनुशासन है कि चिड़िया का नाम ? तो वो कहाँ से लोगो को सिखाएंगे ?
@आदरणीय ,प्रिय एवं गुरुतुल्य अनवर जमाल जी
आपकी उपरोक्त सभी lines मुझे बेहद सच्ची लगीं और सच में मैं आपसे काफी प्रभावित हूँ ,बिना किसी दबाव में आये सच को सच कहने का आपका माद्दा वाकई काबिल-ऐ-तारीफ़ है
बहुत से मुद्दों पर आपकी और हमारी राय बहुत मिलती है और उन सभी बातों में मैं पूरी तरह से आपके साथ हूँ ,और बल्कि मैं ही नहीं वतन की एकता को बनाए रखने वाले ज्यादातर हिंदू और मुस्लिम भाई भी आपके साथ हैं
मैं तो चाहता था की आप इस पोस्ट को " ब्लॉग संसद " पर भी डालें लेकिन अभी-२ शंकर फुलारा जी ने एक प्रस्ताव पेश किया है " ब्लॉग संसद " पर, आपसे प्रार्थना है की उस पर मतदान होने के पश्चात आप इस पोस्ट को " ब्लॉग संसद " पर भी डालें और अभी के प्रस्ताव पर आप भी अपनी महत्वपूर्ण राय प्रस्तुत करें
http://blog-parliament.blogspot.com/2010/08/blog-post_30.html
महक
अनवर भाई बहुत अच्छे शब्दों से आपने समझाया है कि हर पढ़ने वाला आपके लेख को आसानी से समझ सकता है इसमे पूरे तर्क भी है ये सामाजिक समस्या से जुड़ा मुद्दा है इसका हल तो निकलना ही चाहिए पता चला कि नमाज़ पढ़ तो रहे थे सवाब के लिए लेकिन हो रहा है अपने को अज़ाब और दूसरे लोगों को परेशानी । ये सब सही इल्म न होने की वजह से है । सड़कों को जाम करना कौन सा धर्म है जिससे लोगों को सिर्फ परेशानी ही होती है इस तरह के तमाम आयोजनों पर रोक लगना ज़रूरी है
Kasam Se kah raha hun ki maja aa gaya apka lekha padhne ke bad.
GREAT
बहुत ख़ूब कहा
मुबारक है कलम आपकी............
Dear Dr. Anwar sahib and supportive commentators , mere kisi bhi comment ka matlab ye bilkul nahi hai ki sadak par hi namaz ada ki jaye ya isko zid banakar namaz padhi jaye.Har sensible aadmi es baat ka samarthan karta hai ki uske kisi bhi amal se kisi dusre ko takleef na pahunche. ye issue baseless es lye hai ki ghar se namaz ke liye nikalne wala insaan ko khud ye pata nahi hota ki usko masjid me jagah kahan milegi aur uski neeyat kam se kam sadak par namaz padhne ki nahi hoti. aur ye chunki uska ek regular amal nahi hai to isliye na to ye sadak par zulm huaa na kisi aur par, lekin agar wo sirf sadak par jagah milne ke dar se farz namaz ko na ada kare to zarur khud ke upar zulm ho jayeega namaz jaan boojh kar tark karne ki wajah se. dusri baat ye hai ki jin loogon ko ye samjha ja raha hai masjid ke bahar jinko jagah mili hai wo sirf kabhi kabhi namaz padhne wale hai to ye badghumani ke alawa kuch nahi hai. aur badghumani ek muslamaan ke liye bada jurm hai. bahar jisko jagah mili hai wo koi bhi ho sakta hai. ek tahajjud guzar bhi aur ek aam namazi ya koi aur.
Dr. anwar sahab aur aur unke supportive commentators ye bhool rahe hai ki trimdhi shareef ki jis hadeeth me sadak par namaz jayez nahi hai wo kis pashmanzar ki baat hai. kiya aapne kabhi kisi aadmi ko aam rasto par ya sadko par namaz padhte dekha hai ya iske liye zid karte dekha ho ki nahi me to aaj GT road par hi namaz ada karunga?shayad nahi. lekin chunki ye ek majboori ki baat hai aur ghair iradatan hai aur lagataar nahi hai aur agar kisi ko fir bhi takleef pahuchti hai to nadamat aur excuse bhi hai, to es surat me ye issue apne aap me bilkul baseless hai. raha swal iske diye gaye hal aur solutions ka,jisme masjidoon ko multi stories building banane ki baat kahi hai aur namaz ko teen ya char baar me ada karne ki kahi gaye hai, to aap ye zarur jaante honge kyunki aap servant of allah hain ki es zamane me kuch baatoon ki practical applications nahi hai sirf ye solutions blog sites aur kitaboon ki aur achche kalamkaaroon ki khoobsurti ke liye hain.
ye issue baseless kyuun hai? ye is liye hai kyoonki namaz zyada se zyada 5 min me ada ho jaati hai aur pur irade ke sath sadko par aapni zayaz aur na jayaz mangoon ko pura karane ke liye lagaye gaye jaam jo kai dinoo tak lagataar chalte hai (Jisme Gurjar biradri ka jam zyada bhari jaam mana jaat hai)un issues par na Dr. sahab ke paas hal hai na hamari sarkaar ke paas aur na hi servant of allah ke paas.
ek news agency ke data aur visleshan par agar gaur karen to hindustaan me har saal kam se kam 1000 logoon ki zinddagi sadakoon par lagaye gaye in jaamoon ki nazar ho jaati hai jisme marne wale khaas taur par aam admi jo apni zarurat se ghar se bahar nikla ho ya wo mareez jise emergency medical facility ki zarurat hai, shamil hain.
koi bhi news aaj 1-sep-2010 tak aisi reported nahi hai ki puri duniya me namaz ki wajah se ek aadmi ki bhi jaan gaye ho.
hamare desh me aaj bhi 45 % gaoon aise hai jahan azan sirf es liye nahi kahi jaati kyoonki baaki aur loogoon ko uski awaz se takleef hoti hai. kiya es surat me masjidoon se loudspeakers ka utara jaana ek munasib hal hai, jis mulk ke samvidhan me apne mazhab ki duties ko pura karne ki khuli azadi hai.?
in tamam daleel aur hujjat ke bawjood mere likhne ka ye bilkul maqsad nahi hai ki me us baat ko support karuun jo logon ko takleef pahuncha rahi ho.
mera maqsad sirf ye hai ki hum ek dusre ko support kareen ek aapsi bhai chare ko qayam karne ki jaddo jehed karen , muslim - non muslim bhai chara sahi mayne me qayam ho aur chunki loogoon ka waqt bhi ek amanat hai usko baseless issues uthakar barbaad na karen .
wish u good luck , fe amanallah , allah hafiz.
मेरी पोस्ट "अँडा खाओ देश बचाओ" देखें
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